रविवार, 10 फ़रवरी 2019


विंध्य की विरासत

सतना    इन्द्र धनुषी  भूमि

भाग २

   गगन  में  चमकते   इंद्रधुष   के विविध छटाओं  की तरह  ,   सतना  जिले की चारों और की   विस्तृत  भूमि भी कई रंगों , कई छटाओं , को बिखरती मनोरम भूमि है !  पूर्व दिशा की और रीवा रियासत , और बघेल राजवंश  के स्मृति चिन्ह , सज्जन पुर की गढ़ी , माधव गढ़ के किले , और रामपुर बघेलान  जैसे कस्बों की गाथाएं हैं  , तो पश्चिम दिशा   में सोहावल  की गढ़ी , नागोद का किला ,  और कालीलजनर किले   की इतिहास के साथ ,  चौमुखनाथ का शिव  मंदिर , और  श्रेयांस गिरी के जैन  मंदिर और कन्दराएँ  ,  लोगों   के मन में जिज्ञासा  जगाते   है   , उत्तर दिशा में राम के  बारह वर्षीय वनवास के पग चिन्ह अंकित किये हुए    चित्रकूट ,  भक्तों को आकर्षित करटा  है , और  कोठी , का किला , अपनी कथा कहने को निमंत्रित करता है ,  तो दक्षिण में  ,  भरुहत पहाड़ पर मिले बौद्धकालीन स्तूपों के अवशेष  , उंचेहरा  की  धातु शिल्प की जादूगरी ,    मैहर का संगीत , और माता शारदा का पवित्र  धाम  लोगों को  सम्मोहित  करता है !   विंध्यके पर्वत श्रेणियों के रूप में दक्षिण से पश्चिम की और फ़ैली , परसमनिया पठार की भूमि  कई ऐतिहासिक धरोहरों को अपने आँचल में छिपाए है ! यहां बौद्ध धर्म के अवशेष हैं , तो जैन धर्म के मंदिर भी ,  यहां राम के पद चिन्ह हैं , तो शिव के विभिन्न  दर्शन भी ,  यहां  मैहर की  शारदा हैं , तो भरजुना की दुर्गा भी , यहां संगीत कला की  उत्कृष्ट  साधना है तो आदिकालीन  धातु कला की चमक भी , यहां  कालिंजर जैसे  अजेय दुर्ग हैं , तो   ऐतिहासिक  किलों के साथ   सामंती इतिहास की  गढ़ियाँ  भी ,  यह क्षेत्र  सभी धर्मों , सभी पंथों , और सभी राजवंशों की यादगार  भूमि है , जो अपने आप में अनोखी है !

   हम आप के साथ चित्रकूट और मैहर की भूमि के दर्शन करें , इससे पूर्व , यहां  की   विभिन्न  भूमि में  फ़ैली  , विभिन्न धरोहरों को देखते चलते हैं !

     भरहुत पहाड़ 
    विजय के बाद  , हिंसा के प्रति , उत्पन्न हुई वितृष्णा से  ग्रसित होकर   सम्राट अशोक ने जब , बौद्ध धर्म अपना कर , पूरे भारत में उसके प्रचारार्थ , बौद्ध मठ और स्तूप बनवाये , तो उसी श्रंखला में , सतना के निकट स्थापित इस भरहुत पहाड़ पर अंकित हुआ वह इतिहास , जिसकी झलक ना सिर्फ अभी भी इस पहाड़ पर विदवमान है , बल्कि इसकी चमक बंगाल के कलकत्ता  इंडियन  म्यूजियम और विदेशों के अन्य  म्यूजियम को भी चमत्कृत कर रही है !

    इस स्थान में निकले पाषाण मूर्तियों के अवशेष , स्तूप , और  तोरण  द्वार , , सांची के स्तूप की शैली के बताये गए हैं , किन्तु इनके निर्माण का समय ,  ईसा से ११० वर्ष पूर्व से ले कर तीसरी  सदी  पूर्व तक माना गया है  इससे  ऐसा  विदित होता है की यहां के स्तूपों का निर्माण धीरे धीरे कई वर्षों तक होता रहा है !


    

  उंचेहरा का धातु शिल्प 

   सतना मैहर मार्ग पर बसा है , बौद्ध काल का गौरवमयी गावं उंचेहरा ! यहां कभी कांसे के बर्तन , और सिक्कों की ढलाई का काम आदिकाल से हो रहा था ! कांसे के बर्तनों में , बेले , थालियां , आदि प्रमुख थे , जो उत्तर भारत के कई नगरों तक जाते थी !  किसी समय घर घर भट्टियां लगती थीं और  ताम्बे और रांगे को , एक निश्चित अनुपात में मिला कर  , मिश्र धातु तैयार की जाती थी , जिसे यहां की भाषा में फूल कहा जाता था ! फूल से अर्थ था , फूल जैसे नाजुक बर्तन , जो थोड़े से आघात से तुरंत टूट जाए !   थाली बनानी की प्रक्रिया में सभी कारीगर हस्त कला का उपयोग करते थे , जो श्रम साध्य काम था !
      वक्त ने , ना सिर्फ देश की सांस्कृत परम्पराओं पर कुठारघात  किया , बल्कि   कुटीर कला को पूरी तरह नष्ट कर दिया ! आज फूल के बर्तन बनाने का पैतृक कार्य उंचेहरा में कोई नहीं करना चाहता , इस लिए फूल के बर्तन बनाने की कला अब लुप्त होती जा रही है !  कला के लुप्त होने और संस्कृति के बदलते रूप के प्रति आज पुराणी पीढ़ी का क्या कथन है आइये मिलते हैं उंचेहरा निवासी ,,,,,,से !

 ( इंटरव्यू )

     


    नाचना का चौमुख नाथ मंदिर 

    शैव मत के साधकों का स्थान था नाचना कुठरा  गावं   जो की  नागोद के निकट जसो गावं से थोड़ा आगे स्थित है !  उसके आस पास  फैले विशद क्षेत्र में  कभी शिव के कई मंदिर बने थे , जिन्हे गुप्त काल का कहा गया है !  अभी जो शिव मंदिर उपलब्ध है , उसमें शिव की चार मुख मुद्राएं , शिव लिंग के स्वरूप में  चारों और उत्कीर्ण है !   इन मुद्राओं में तीन मुद्राएं शान्ति स्वरूप में है , जबकि एक मुद्रा में शिव की जीभ को , विष के प्रभाव से ऐंठता हुआ दिखाया गया है ! शिव की यह  मुख  मुद्रा अध्भुत है , और   देखते  ही बनती है !  चौमुखी शिवलिंग होने के कारण , इसे चौमुख नाथ कहा गया है !
     कहते हैं समुद्र मंथन से निकले हुए तीव्र हलाहल से जब पूरी श्रष्टि जलने लगी तो , शिव ने उस हलाहल को पी लिये ! हलाहल पीते समय जो उन्हें कष्ट हुआ , उससे उनकी मुद्रा में जो तनाव उत्पन्न हुआ , और जीभ ऐंठी , उसका चित्रण इस मूर्ती में बहुत सजीव है !

    आज यह स्थान पर्यटन स्थल बन गया है !  चौमुखनाथ मंदिर के अलावा और भी कई मंदिर यहां ध्वस्त अवस्था में है जो शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण की चीज है !


    श्रेयाशगिरि 
   श्रेयांशगिरि एक पर्वत है , जिस की  प्राकृतिक में  जैन धर्म की कई मूर्तियां आदिकाल से स्थापित है ! कुछ   इतिहासकार इसे ईसा से  चौथी  सदी पूर्व के समय का बताते हैं ! क्यूंकि यहां पर उत्कीर्ण मूर्तियों के लिए कोई शिला लेख उपस्थित नहीं है , इसलिए इसका समय काल निश्चित रूप से तय कर पाना कठिन है !  जैन  धर्माचार्यों के कथना नुसार , सामान्यतः , अन्य जैन  मूर्तियों  के स्थलों में २४ रेखाओं के चक्र मिलते हैं , जबकि यहां १४ रेखाओं के चक्र हैं , जो मोक्ष के प्रतीक माने जाते हैं  इसलिए यह स्थान बहुत प्राचीन काल का  है ! श्रेयांश गिरी की प्रथम गुफा में ३२ ारों से युक्त भगवान् आदिश्वर की प्रतिमा स्थित है ! सिद्ध पीठ पर विराजमान आदिनाथ कमलासन मुद्रा में है !  इस मूर्ती में सही वत्स नहीं है ! केश विन्यास अनुपम है  और मूर्ती के नेत्र खुले हैं !  मूर्ती के दोनों और चमर  धारी यक्ष है ! मूर्ती के पृष्ठ भाग में विशाल प्रभा मंडल है !
 इस गुफा के पीछे एक और गुफा है जो लाल पत्थरों से ढंक दी गयी है ! जबकि दूसरी गुफा में सिंह पीठ पर भगवान् पार्श्वनाथ खड़े हुए हैं ! गतिशील लेकिन खड़ा चक्र है ! मूर्ती के पार्श्व में सात फनो  वाली  नागावली है !

     इस गिरी की मूर्तियां दर्शनीय हैं !  प्राकृतिक गुफा में उत्कीर्ण मूर्तियां पर्यटकों के लिए आश्चर्य  के साथ गहन श्रद्धा  और आस्था का भाव  उत्पन्न करती हैं


   भाकुलबाबा 

  नागोद तहसील के जसो गावं के  वन क्षेत्र में स्थापित है शिव का मंदिर ! यहां एक गुफा है ,, जहां जाना दुरूह है ! संभवतः यह मंदिर भी उन्ही शिव आराधकों ने बनवाया है , जिन्होंने नाचना में चौमुखनाथ का मंदिर बनवाया है ! यह गुप्त कालीन है और सम्बहव्तः चौथी सदी का है !



  भरजुना का दुर्गा मंदिर  
और भटनवारा का देवी मंदिर 

  इसकी जानकारी ज्यादा नहीं है ! शूटिंग के समय साधारण ढंग से शूट करलें   इसे मुख्य कमेंट्री में दिखासा दें !
  धारकुंडी आश्रम 

      धन वैभव , से विरक्त हो कर जैम नौशी शान्ति की तलाश में , राजप्रासादों को छोड़ कर वन में आता है तो , पर्वत और कंदराएँ ही उसे आश्रय देती हैं , और आध्ययात्म की और उन्मुख करती हैं !  धार कुंडी , सतना के बिरसिंगपुर के निकट , एक संत द्वारा स्थापित किया गया आश्रम है जहां  आने पर मन को ना सिर्फ शान्ति मिलती है , बल्कि रमणीय प्रकृति के दर्शन होते हैं !
         यहां  संत ,,,,,,,,, का आश्रम है !और एक देवालय भी है !  यह आश्रम स्वावलंबन का पाठ पढ़ाता है ,,क्यूंकि यहां आवश्यकता की चीजें आश्रम में ही उत्पन्न की जाती है !  खेतों से उपज , सब्जियां मिलती है , और बहती हुई जल धारा से विद्युत् शक्ति , जिससे आश्रम  प्रकाशित होता है !  आज यहां आयुर्वेद का बड़ा अस्पताल भी बन गया है , जिसमें चारों और बसे ग्रामीण  निशुल्क चिकित्सा का लाभ लेते हैं !
  सतना का यह धारकुंडी आश्रम  लोगों की आस्था का केंद्र है !
 गिद्ध कूट 
     

   प्राकृतिक स्वच्छता के संरक्षक अगर कोई जीव हैं , तो वे हैं गिद्ध !  गिद्ध पूरी तत्रह प्रकृति पर निर्भर हैं  और प्रदूषित मांस नहीं खाते हैं , इसलिए , निरंतर बढ़ते प्रदुषण के कारण यह प्रजाति अब समाप्त होने की कगार पर है !
     सतना से अमरपाटन हो कर , रामनगर जाते समय मार्ग में पड़ता है गिद्ध कूट ! यह एक पर्वत है , जिस पर बहु संख्या में गिद्ध आज भी निवास कर रहे हैं !  कहते हैं की यहां , हनुमान जी को , लंका में बैठी , सीता जी का पता जिस सम्पाती गिद्ध ने दिया था , यह रामायण काल के बलिष्ठ गिद्ध , बालयकाल की ,सम्पाती की    निवास भूमि थी !    (अपनी   डॉक्यूमेंट्री लगा दें )

   नागोद का किला

1478 में, राजा भोजराज जूदेव ने उचेहराकल्प (वर्तमान में उचेहरा शहर) की स्थापना की थी जिसे उन्होंने तेली राजाओं से नारो के किले पर कब्जा कर प्राप्त की थी। 1720 में रियासत को अपनी नई राजधानी के नाम पर नागौद नाम दिया गया। 1807 में नागौद,  पन्ना रियासत  के अन्तर्गत आता था और उस रियासत को दिए गए सनद में शामिल था। हालांकि, 1809 में, शिवराज सिंह को उनके क्षेत्र में एक अलग सनद द्वारा मान्यता प्राप्ति की पुष्टि हुई थी। नागौद रियासत, 1820 में बेसिन की संधि के बाद एक ब्रिटिश संरक्षक बन गया। राजा बलभद्र सिंह को अपने भाई की हत्या के लिए 1831 में पदच्युत कर दिया गया था। फिजुलखर्ची और वेबन्दोबस्ती के कारण में रियासत पर बहुत कर्ज हो गया और 1844 में ब्रिटिश प्रशासन ने आर्थिक कुप्रबंधन के कारण प्रशासन को अपने हाथ में ले लिया। नागौद के शासक  १८६७ के विद्रोह  के दौरान अंग्रेजों के वफादार बने रहे फलस्वरूप उन्हें धनवाल की परगना दे दी गई। 1862 में राजा को गोद लेने की अनुमति देने वाले एक सनद प्रदान किया गया और 1865 में वहाँ का शासन पुनः राजा को दे दिया गया। नागौद रियासत 1871 से 1931 तक बघेलखण्ड एजेंसी का एक हिस्सा रहा, फिर इसे अन्य छोटे राज्यों के साथ बुंदेलखंड एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया। नागौद के अंतिम राजा, एच.एच. श्रीमंत महेंद्रसिंह ने 1 जनवरी 1950 को भारतीय राज्य में अपने रियासत के विलय पर हस्ताक्षर किए।

        नागोद एक रियासत के रूप में माना गया है , जिसका मूल उंचेहरा है ! उंचेहरा और नागोद दोनों जगह किले हैं ! यह किले यद्यपि सुदृढ़ स्थिति में नहीं हैं , किन्तु दर्शनीय हैं !  यहां के वर्तमान राजा नगींद्र सिंह , मध्यप्रदेश के गृहमंत्री रह चुके हैं ! 

     


    कालिंजर का अजेय दुर्ग 
 प्राचीन काल में यह दुर्ग  जे जाक भुक्ति  साम्राज्य के अधीन था। बाद में यह १०वीं शताब्दी तक  चंदेला  राजपूतों के अधीन , और फिर  रीवा के सोलंकियों  के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर  महमूद गजनवी , , कुतुबुद्दीन ऐबक   शरशाह सूरी  और  हुमायूं  आदि ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। कालिंजर विजय अभियान में ही तोप के गोले से शेरशाह की मृत्यु हो गई थी। मुगल शासनकाल में बादशाह  अकबर  ने इसपर अधिकार किया।
बाद में यह राजा  छतरसाल  के हाथों में आ गया और अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो  गुप्तवंश  के तीसरी से पांचवी शताब्दी  तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ  शिल्प कला  के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। 
कालिंजर शब्द (कालंजर) प्राचीन पौराणिक  हिन्दू ग्रंथों  में उल्लेख तो पाता है, किन्तु इस किले का सही सही उद्गम स्रोत अभी अज्ञात ही है। जनश्रुतियों के अनुसार इसकी स्थापना  चंदेल वंश  के संस्थापक चंद्र वर्मा ने की थी, हालांकि कुछ इतिहासवेत्ताओं का यह भी मानना है कि इसकी स्थापना केदारवर्मन द्बारा  करवायी गई थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार  औरंगजेब  ने इसके कुछ द्वारों का निर्माण कराया था। हिन्दू पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार यह स्थान  सतयुग  में कीर्तिनगर, त्रेता युग  में मध्यगढ़,  द्वापर युग में सिंहलगढ़ और  कलियुग  में कालिंजर के नाम से विख्यात रहा है! जिस पहाड़ी पर कालिंजर दुर्ग निर्मित है, यह दक्षिण पूर्वी  विंध्याचल  श्रेणी का भाग है।! पर्वत का यह भाग १,१५० मी॰ चौड़ा है व ६-८ कि॰मी॰ में फ़ैला हुआ है। इसके पूर्वी ओर एक अन्य छोटी किन्तु ऊंचाई में इसी के बराबर पहाड़ी है, जो कालिंजरी कहलाती है। कालिंजर पर्वत की भूमितल से ऊंचाई लगभग ६० मी॰ है। यहाँ विंध्याचल पर्वतमाला के अन्य पर्वत जैसे मईफ़ा पर्वत, फ़तेहगंज पर्वत, पाथर कछार पर्वत, रसिन पर्वत, बृहस्पति कुण्ड पर्वत, आदि के बीच बना हुआ है। ये पर्वत बड़ी चट्टानों से युक्त हैं व यहाँ ढेरों प्रकार के वृक्ष एवं झाड़ियां पाई जाती हैं, जिनमें से कई औषधीय भी हैं।इस दुर्ग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ढेरों युद्धों एवं आक्रमणों से भरी पड़ी है। विभिन्न राजवंशों के हिन्दू राजाओं तथा मुस्लिम शासकों द्वारा इस दुर्ग पर वर्चस्व प्राप्त करने हेतु बड़े-बड़े आक्रमण हुए हैं, एवं इसी कारण से यह दुर्ग एक शासक से दूसरे के हाथों में चलता चला गया। किन्तु केवल चन्देल शासकों के अलावा,: कोई भी राजा इस पर लम्बा शासन नहीं कर पाया।
इस दुर्ग में सात द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है। दुर्ग का प्रथम द्वार सिंह द्वार कहलाता है, और यही मुख्य द्वार भी है। इसके उपरान्त द्वितीय द्वार गणेश द्वार कहलाता है, जिसके बाद तृतीय दरवाजा चंडी द्वार है। चौथे द्वार को स्वर्गारोहण द्वार या बुद्धगढ़ द्वार भी कहते हैं। इसके पास एक जलाशय है जो भैरवकुण्ड या गंधी कुण्ड कहलाता है। किले का पाचवाँ द्वार बहुत कलात्मक बना है तथा इसका नाम हनुमान द्वार है। यहाँ कलात्मक शिल्पकारी, मूर्तियाँ व चंदेल शासकों से सम्बन्धित शिलालेख मिलते हैं। इन लेखों में मुख्यतः  कीर्तिवर्मन तथा मदन वर्मन का नाम मिलता है। यहाँ मातृ-पितृ भक्त,  श्रवणकुमार  का चित्र भी दिखाई देता है। छठा द्वार लाल द्वार कहलाता है जिसके पश्चिम में हम्मीर कुण्ड स्थित है। चंदेल शासकों का कला-प्रेम व प्रतिभा यहाँ की दो मूर्तियों से साफ़ झलकती है। सातवाँ व अंतिम द्वार नेमि द्वार है। इसे महादेव द्वार भी कहते हैं। इनके अलावा मुगल बादशाह आलमगीर औरंगजेब  द्वारा निर्मित आलमगीर दरवाजा, चौबुरजी दरवाजा, बुद्ध भद्र दरवाजा, और बारा दरवाजा नामक अन्य द्वार भी हैं। यहीं एक कुण्ड भी है जो सीताकुण्ड कहलाता है। किले में स्थित दो तालों, बुड्ढा एवं बुड्ढी ताल के जल को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है जिसमें स्नान कर स्वास्थ्य लाभ उठाया जाता था। इनका जल चर्म रोगों के लिए लाभदायक बताया जाता था व मान्यता है कि इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है।
यहाँ कई त्रिमूर्ति भी बनायी गई हैं, जिनमें  ब्रम्हा , विष्णु ,  एवं शिव  के चेहरे बने हैं। कुछ ही दूरी पर  शेष शायी विष्णु  की  क्षीरसागर  स्थित विशाल मूर्ति बनी है। इनके अलावा भगवान  शिव , कामदेव , शचि (इन्द्राणी), आदि की मूर्तियां भी बनी हैं। इनके अलावा यहाँ की मूर्तियां विभिन्न जातियों और धर्मों से भी प्रभावित हैं। यहाँ स्पष्ट हो जाता है कि चन्देल संस्कृति में किसी एक क्षेत्र विशेष का ही योगदान नहीं है। चन्देल वंश से पूर्ववर्ती बरगुजर शासक शैव मत के आवलम्बी थे। इसीलिये अधिकांश पाषाण शिल्प व मूर्तियां शिव, पार्वती,  नंदी  एवं शिवलिंग की ही हैं। शिव की बहुत सी मूर्तियां नृत्य करते हुए में ताण्डव मुद्रा में, या फिर माता पार्वती के संग दिखायी गई हैं। इनके अलावा अन्य आकर्षणों में वेंकट बिहारी मन्दिर, दस लाख तीर्थों का फल देने वाला सरोवर, सीता-कुण्ड, पाताल गंगा, आदि हैं। 

कालिंजर दुर्ग में प्रतिवर्ष  कार्तिक पूर्णिमा  के अवसर पर पाँच दिवसीय  कटकी मेला  (जिसे कतिकी मेला भी कहते हैं) लगता है। इसमें हजारों श्रद्धालुओं कि भीड़ उमड़ती है। साक्ष्यों के अनुसार यह मेला चंदेल शासक परिमर्दिदेव (११६५-१२०२ ई॰) के समय आरम्भ हुआ था, जो आज तक लगता आ रहा है। इस कालिंजर महोत्सव का उल्लेख सर्वप्रथम परिमर्दिदेव के मंत्री एवं नाटककार वत्सराज रचित नाटक रूपक षटकम में मिलता है। उनके शासनकाल में हर वर्ष मंत्री वत्सराज के दो नाटकों का मंचन इसी महोत्सव के अवसर पर किया जाता था। कालांतर में मदनवर्मन के समय एक पद्मावती नामक नर्तकी के नृत्य कार्यक्रमों का उल्लेख भी कालिंजर के इतिहास में मिलता है। उसका नृत्य उस समय महोत्सव का मुख्य आकर्षण हुआ करता था। एक सहस्र वर्ष से यह परंपरा आज भी कतकी मेले के रूप चलती चली आ रही है, जिसमें विभिन्न अंचलों के लाखों लोग यहाँ आकर विभिन्न सरोवरों में स्नान कर नीलकंठेश्वर महादेव के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। तीर्थ-पर्यटक दुर्ग के ऊपर एवं नीचे लगे मेले में खरीददारी आदि भी करते हैं। इसके अलावा यहाँ ढेरों तीर्थयात्री तीन दिन का कल्पवास भी करते हैं। इस भीड़ के उत्साह के आगे दुर्ग की अच्छी चढ़ाई भी कम होती प्रतीत होती है। यहाँ ऊपर पहाड़ के बीचों-बीच गुफानुमा तीन खंड का नलकुंठ है जो सरग्वाह के नाम से प्रसिद्ध है। वहां भी श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है।

   विंध्य भूमि के इस ऐतिहासिक दुर्ग को देखे बगैर  विंध्याचल पर्वत की महत्ता को आंकना कठिन है , इसलिए राजवंशों के उत्थान पतन की गाथाएं हृदय में संजोये , इस दुर्गम  दुर्ग को नमन करना आवश्यक है ! 




  





   बिरसिंगपुर के गैबी नाथ

   सतना से करीब तीस किलोमीटर दूर स्थित है , बिरसिंगपुर का अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर गैबी नाथ मंदिर ! यहां शिव और पार्वती के अलग अलग मंदिर हैं जिनके बीच स्थापित है एक तालाब ! शिव मंदिर से पार्वती के मंदिर तक लम्बी बंधन की कतार है , जो उन्हें दंपत्ति के रूप में दिखाती है ! कहते हैं की यवनो के आक्रमण के समय , इस शिव लिंग पर किसी एवं ने तलवार चलाई तो इससे दूध की धरा  बह  निकली थी ! यह देख  यवन  भी इसे नमन कर वापिस लौट गए थे ! आज इस शिव लिंग का अभिषेक यहां के ग्रामीण आस्था के साथ करते हैं , और लोगों की मनोकामना यहां पूरी होती ही है !
 शिवरात्रि में यहां बहुत बड़ा मेला लगता है ! इस मेले में दूर दूर से ग्रामीण आते हैं ,
 यह इस स्थान का सिद्ध मंदिर है !
  सतना की भूमि पर यह सिद्ध मंदिर माना गया है जिसके दर्शन से पुण्य लाभ होता है !


 माधव गढ़  का किला


     रीवा के महाराजा  विश्वनाथ प्रताप  प्रताप सिंह , प्रकृति प्रेमी और  विद्वान थे ,  उन्होंने  अपने  राज्य के अंतर्गत , तमसा नदी के किनारे यह  गढ़ी  बनवाई और उसे अपने छोटे भाई लक्ष्मण सिंह को सौंप दी ! लक्ष्मण सिंह ने बाद में इस गढ़ी का विकास किया , और यहां अपने महल के साथ , एक छोटा सा दरबार हाल , और  तमसा नदी के सौंदर्य को निहारने के लिए किले की दीवार पर एक छायादार बैठक बनवाई !
   बल खाती , तमसा नदी यहां पथरीले क्षेत्र बहती है , इसलिए नदी की धार  उथली , और चौड़ी हो कर , इसकी रमणीयता बढ़ा देती है ! गढ़ी से जुड़ा  माधव गढ़ एक प्राचीन गावं है ! आज़ादी के बाद यह विकसित हुआ है , किन्तु मात्र दस किलोमीटर दूर सतना नगर इसकी सभी जरूरतें पूरी क्र देता है , इसलिए , यहां बाज़ार विकसित नहीं हुआ !

  ( अपनी डाक्यूमेंट्री लगा दें )

   किले और  गढ़ियों  में विशेष अंतर् यह है की ,  गढ़ियाँ  सामंतों के निवास हेतु बनती थीं  जबकि किले युद्ध से बचाव करने के लिए , चारों और के परकोटे सहित तैयार किये जाते थे !  कोठी की गढ़ी , सोहावल की गढ़ी , सज्जनपुर की गढ़ी ,  जैसी कई   गढ़ियाँ  इस क्षेत्र में मौजूद है , जो बघेल राज की सुदृढ़ता का प्रतीक हैं !  इसके अतिरिक्त यहां  मठ  भी देखने को मिलते हैं जो सन्यासियों के मठ कहलाते हैं ! किसी युग में सन्यासी भी  योद्धा  होते  थे , और वक्त पड़ने पर किसी भी  राजा की सहायता भी करते थे ! यह स्वतंत्र , घुम्मकड़ , स्वावलम्बी फौज थी  जो अखाड़े के रूप में घूमती रहती थी !
     धर्म के  सबसे बड़े मेले , कुम्भ में , आने वाले अखाड़े इसी परम्परा का प्रतीक हैं !   !



 रामपुर बघेलान

   सोलंकी राजपूत , बघेलों  की वृहत बस्ती है , रामपुर बघेलान !  यहां भी एक गढ़ी है ! आज यह एक विकसित  कस्बा है जहां शिक्षा , संस्कृति , के अलावा , एक समर्द्ध बाजार भी है ! 
   इस क्षेत्र में कभी पशुपालन को बहुत महत्त्व दिया जाता था , इस लिए यहाँ दूध और खोवे के अत्यंत स्वादिष्ट मिष्ठान बनते हैं , जिनमें   दूध से बने एक मिस्ठान ,,," खुर्चन " को बहुत पसंद किया जाता है !  खुर्चन , दूध की मलाई की परतों से तैयार होता है ! 
 

 स्थान की शूटिंग करें अगर उचित समझें तो लिख दिया जाएगा !

  रामवन 

    सतना रीवा मार्ग पर  बसे   सज्जनपुर गावं के निकट बना है ' रामवन ' जिसका तुलसी संग्रहालय ,  दर्शनीय है ! यहां   मूर्तियों के संग्रहालय के अलावा , हस्तलिखित प्राचीन रामायण भी उपलब्ध है ! यहां एक राम का मंदिर है , और उसके पीछे उपवन है !  उपवन में हनुमान जी के विराट स्वरूप को दर्शाने वाली ऊंची मूर्ती प्रतिष्ठापित है ! इस हनुमान परिसर में ,, राम की पूरी कथा , एक बड़ी गैलरी के रूप में , मूर्तियों  द्वारा उत्कीर्ण है !  आस्था , और मानवीय पवित्र संबंधों को भूलती , नयी पीढ़ी को अपने गौरवमयी संस्कृति से परिचय करवाने हेतु बना यह हनुमान मंदिर  सार्थक  है !
 हनुमान परिसर के सामने ही बना है , शिव परिवार का मनोरम दृश्य , जो कैलाश पर विराजे  शिव के साथ , गणेश , कार्तिकेय , और नंदी के दर्शन भी करवाता है !  यहां भी चारों और एक दीर्धा है , विभिन्न देवी देवताओं की !
        रामवन में , एक बहुत सुन्दर भवन है , जहां सदैव , धार्मिक संवादों के आयोजन होते रहते हैं !
   पर्यटकों  को आकर्षित करने के लिए , राम वन एक उपवन बन गया है , जहां अब  वाटर  पार्क के अलावा , बच्चों के स्वतन्त्र खेलने के लिए कई साधन उपलब्ध हैं ! रामवन परिसर में , अब एक  विविध व्यंजनों युक्त , केंटीन भी है , जहां जा कर पर्यटक , दर्शनों के पश्चात , भोजन भी प्राप्त कर सकता है !
 यहां बसंत पंचमी के दिन , ग्रामीणों का बड़ा मेला लगता है !

   सतना जिले का राम वन , आज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है , जहां ज्ञान है , आध्यात्म है , दर्शन है , और उपवन का  आकर्षण है ! सतना आने पर यहां जरूर आना चाहिए !

 प्रिज्म सीमेंट  , जे पी सीमेंट   खजुराहो सीमेंट संयंत्र

    सीमनेट संयंत्र हैं ! इनकी अगर शूटिंग कर लें तो तथ्य लिख देंगें !
   सतना की भूमि , कई धरोहरों से युक्त भूमि है , जिसे देखने के लिए वृहत भ्रमण और पर्यटन की जरूरत है ! तथापि , अगर आप एक बार इस भूमि पर पग रखेंगें , तो बिना सब कुछ देखे , लौटने का मन नहीं होगा !
   एक बार मन बनाइये ,,, और यहां आकर प्रकृति , और धरोहरों के बीच खो जाइये !

    

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

  विंध्य की विरासत 
 रीवा रियासत 

(  भाग दो )

 रीवा रियासत के अंतर्गत , महत्वपूर्ण स्थान है  , शहडोल जिले में ,  मेकल पर्वत पर स्थित आम्रकूट यानी आज का अमरकंटक !
  इस स्थान से दो  महत्वपूर्ण नदियाँ निकली हैं , जिनका उल्लेख पुराणों में भी है ! इस स्थान को आम्रकूट इस लिए कहा गया क्योंकि यह पर्वत शिखर कभी , आम के पेड़ों से आच्छादित था !आम की  पत्ती  शुभ कार्यों  का ,,  उल्लास का ,  , प्रतीक है ! किसी भी देवता के पूजन हेतु , रखे गए कलश में , आम्र पत्र अनिवार्य अंग है ! आदि काल से किसी के स्वागत हेतु बनाये गए बंदनवार में आम की पत्तियों का उपयोग होता रहा है !
      मेकल पर्वत का शिखर , अद्भुत है , यहां आकाश से गिरी कोई भी बूँद , किसी भी दिशा की और जा सकती है , इस लिए विभिन्न नदियों का प्रवाह विभिन्न दिशाओं की और उन्मुख हुआ ! नर्मदा जहां , पश्चिम दिशा की और गयी , वहीं सोन पूर्व की और , ! एक अन्य नदी , महा नदी भी यहां से निकल कर दक्षिण दिशा की और बह निकलती है !
          मेकल पर्वत पर कंधा टिकाये ,  लेटा , विंध्याचल पर्वत , अपनी पर्वत श्रेणियों को किसी वेणी की तरह फैलाये , उत्तर पूर्व दिशा की और निहार रहा है ! वह अगस्त्य ऋषि के आगमन की दिशा में शीश  झुकाये , उनका आदेश पालन करता हुआ जस का तस लेटा , है !    शहडोल जिला  इसी पर्वत श्रेणियों की वेणियों में फ़ैली विंध्य भूमि का , दक्षिण दिशा का    अंतिम द्वार है !
 अमरकंटक   ,,  नर्मदा और सोन के उद्गमस्थान होने के कारण आज  पर्यटन  का केंद्र बन गया है ! नर्मदा की  उतपत्ति  गोमुख  से है ! वह वहां से निकल कर एक कुंड में आती है , जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं ! यहां से एक पतली धारा बन कर वह पश्चिम की और बहती है , और एक शिखर से फिसलती हुई नीचे उत्तर जाती है !
        जबकि सोनमुडा स्थान से निकलती है सोन नदी ! यह पूर्व दिशा की और चल कर , आगे ऊँचे शिखर से सीधी नीचे की और छलांग लगा देती है ! नीचे गिरते ही यह विदीर्ण हो कर भूमिगत हो जाती है ! भूमि के नीचे नीची , दलदली क्षेत्र में , बिखरे रूप में चल कर , आगी जा कर यह पुनः एक धारा के रूप में प्रकट होती है !  वहां से पहले यह सीधे उत्तर की और मुख कर करके तीव्र गामी  होती  है , और जब  रास्ते में उसे  मिलती  है जौहला नदी तो , जिसका पानी  समेट  कर वह , एक बड़ी नदी का रूप धारण कर लेती है !आगे कैमोर पर्वत का सहारा ले कर वह बाणसागर बाँध में फ़ैल जाती है , !  बाण सागर बाँध से आगे वह पूर्व दिशा का रुख ले लेती है और सीधी जिले में बहती हुई ,,  बिहार की और चली जाती है !
       सोनघाटी के तट पर बना गहन जंगल ही  विंध्याटवी  कहलाता है !
  अमरकंटक , नर्मदा के उद्गम होने के कारण आज संत  महर्षियों  का निवास बन चुका है ! यहां कई आश्रम बन गए हैं , और पर्यटकों के ठहरने के लिए पूर्ण सुविधायुक्त होटल भी हैं !

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   शहडोल नगर , जन जातियों का नगर था ! १६  वीं सदी  में , इसे सुहागपुर के नाम से एक छोटे से गावं के रूप में जाना जाता था ! उस काल में यहां भर राजवंशों का राज था !  बाद में बघेली राजाओं ने यह क्षेत्र जीत कर यहां तक अपने राज का विस्तार किया !  गुप्त काल से लेकर , बघेलों के समय तक , धीरे धीरे यहाँ अन्य जातियां भी आईं , और यह क्षेत्र द्रविड़ और आर्य संस्कृति का मिला जुला रूप बन गया !  कुछ लोगों की मान्यता है की यह , महाभारत काल का विराट नगर था , जहां पांडवों ने अज्ञातवास का अंतिम वर्ष व्यतीत किया था !
   तथापि यह क्षेत्र , आदिवासी , जनजाति बाहुल्य क्षेत्र ही है ! यहां के मूल निवासियों में कॉल , बैगा , भारिया , अगरिया , कमर , पाँव , गोंड जातियां प्रमुख हैं , जिनका भोजन बाजरा , मक्का , धान ,  कोदो है ! इनकी संस्कृति में महुआ , मुख्य फल है , जिससे वे शराब बनाते हैं ! शिकार इनका शौक है , और जंगली मुर्गा , इनका पालतू जानवर !
     यहां  आकर बसी अन्य अनुसूचित , और पिछड़ी जातियों की संस्कृति भी , समृद्ध , सवर्ण जातियों से अलग है ! , कोरी , कुम्हार , बसोर , के साथ , अहीर गडरिया , जैसे लोग भी यहां उत्सवों में अपनी संस्कृति अनुसार नृत्य गान करते हैं !
 जन जातियों की सामाजिक  एवं सांस्कृतिक सोच में , मनोरंजन  की प्रमुखता है ! सामूहिक नृत्य इन की परम्परा है   एवं  विशेष वेश भूषा , इनकी धरोहर ! बदन पर गोदना इन का परम्परा गत आभूषण है ! तथापि चांदी के कई विभिन्न आभूषण ये विभिन्न पर्वों पर धारण करते हैं !कर्मा,  शैला , रीना ,   सज नई  , ददरिया , टप्पा , इनके लोकगीत है !
 शैला नृत्य एक सामूहिक नृत्य है ! यह पुरुषों का है ! मोर पंख , कलगी , के साथ घुँघुरु बाँध कर यह नृत्य किया जाता है ! मादल  और ढोलक की थाप पर , चांदनी रात में , अर्धवृत बना कर , मोरपंखी कलगी सर में लगा कर , कौड़ियों के बाजूबंदों से सजे स्त्री पुरुष , मग्न हो कर इस तरह नाचते हैं की रात कब बीत गयी पता ही नहीं चलता !
 कोलदहा नृत्य में स्त्रियां लहंगा , गलता , अथवा साधारण परिधान में ही मस्ती के साथ नृत्य करती हैं ! अहीरों का नृत्य बीछी है ! इसमें नगड़िया बजाई जाते है , और उसकी लय पर नृत्य !   केहरापोता नृत्य में अंग संचालन का कमाल है ! मुख पर घूंघट होता है , और अँगुलियों की कलात्मक , संचालन मन मोह लेता है ! विभिन्न जातियों की अपनी अलग लोक परम्परा है  ताड़नानुसार , कलार , कोहार , तेली , काछी , कहार, धोबी कोरी , और बारी जातियां अलग अलग शैली में नृत्य करते हैं और इनके लोकगीत भी अलग अलग हैं !
 जनजातियों के देवी देवता भी अलग हैं ! घमसान , बाघसु , कोलिया , भैंसासुर ,  बदकादेव , दूल्हादेव , मस्तानबाबा , घटबैगा , लगुरा , ठाकुरदेव , आदि कई देव इनके लिए आराधान और पूजा का  विषय हैं !  विपदाओं , और रोगों के अनुसार महामाई , फूलमती , घटपरिया , दुरसीन , हल्की ,  देवियों के नाम भी इन के बीच प्रचिलित होते हैं !
 पराशक्तियों में आस्था रखने वाली जन जातियां शिव एवं शक्ति को आदि देव मानती हैं !
 गोंड जाती निराली और भोली होती है , यह जंगलों में एकांत पहाड़ियों पर बास्ते हैं ! इनकी स्त्रियां जड़ीबूटी बेचतीं हैं ! ये रक्षार्थ कुत्ता साथ में पालते हैं , जो इनका गण चिन्ह भी है !
    विकसित क्षत्र की धरोहरें , भले ही पर्यटकों को अधिक लुभाती हैं , किन्तु विंध्य भूमि पर बसी जन जातियों की संस्कृति उससे भी ज्यादा लुभावनी है !

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     वन्य जीवन के दर्शन के लिए आज , सरकार ने वन्य अभ्यारण बना दिए हैं ! इसमें  सीधी जिले का बगदरा , जहां कभी महराजा मार्तण्ड सिंह ने सफ़ेद शेर के शिशु को पकड़ा था , विशिष्ट है ! यहां काला हिरण , तेंदुआ , चिंकारा नीलगाय जैसे वन्य जीव , अभ्यारण की सैर करते सहज ही दिख जाते हैं ! पर्यटकों के लिए यह अभ्यारण एक आकर्षण है , जहां अब ठहरने के लिए सर्व सुविधायुक्त होटल बना दिए गए हैं !
       शहडोल जिले के पनपता जंगल का अभ्यारण भी आज चर्चित हो चुका है ! यहाँ तेंदुआ , चीतल , चौसिंगा , भालू , साम्भर नीलगायें सहज ही विचरण करते हुए मिल जाती हैं !  इसी प्रकार सीधी जिले का संजय वन्य अभ्यारण भी अब  राष्ट्रीय स्टार पर प्रसिद्धि पा चुका है !  सीधी जिले में ही गहरे सोन नदी के पानी में घड़ियाल पल रहे हैं , ! इन योजनाओं के माध्यम से प्रकृति को संतुलित करने का प्रयास है !
      बघेलों की राजधानी , बांधवगढ़ में जो वन्य अभ्यारण  बना है , वह आज विश्व प्रसिद्धि पा रहा है ! ऊंची पहाड़ी पर बने बांधवगढ़ किले के चारों और की भूमि पर आज कई बाघ विचरण कर रहे हैं ! इसमें जंगली भेंसे , चीतल  , नीलगाय सहज ही दिखती है ! बांधवगढ़ में पर्यटकों का मेला जैसा लगता है ! उनकी सुख सुविधा के लिए सभी सुविधायुक्त कई होटल ,  ताला  नामक गावं में उपलब्ध है !

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 बघेल राजवंश द्वारा बसाया गया , गोविंदगढ़  किला , भी आज पर्यटकों को लुभा रहा है ! इस किले के साथ जुड़ा एक भव्य तालाब नौकायन के लिए  उपयुक्त स्थान है ! किले के अंदर बना , कठ  बंगला ,  एक दर्शनीय स्थान है ! इस कथ बंगले में , यहां के स्थानीय फिल्मकारों द्वारा  आल्हा उदल  के  जीवन  व्रत पर  बनाई  गयी  फिल्म रक्त चन्दन के दृश्य , बहुत सुन्दर बने  दीखते हैं ! फिल्म कारों के लिए और पिकनिक के लिए यह चित्ताकर्षक स्थान है
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 कलचुरियों के काल में शिव का एक भव्य मंदिर ,  रीवा  रियासत के गोर्गी गावं में बनाया गया था ! यह स्थान भी आज पर्यटन स्थल बन गया है ! कलचुरी काल में मूर्तियों का काम बड़े भव्य स्टार पर हुआ ! कहते हैं की गोर्गी का शिव मंदिर बहुत विशाल था ,  और उसके मेहराब , और द्वार , काफी ऊँचे थे ! इस स्थान की शिव पार्वती की मूर्ती आज रीवा नफगर के पद्मधर पार्क में राखी हुई है , जबकि एक तोरण दार के अवशेष , रीवा के पुतरिया दरवाजे पर लगा दिए गए हैं !
     इतिहास और संस्कृति की दृष्टि से यह स्थान बहुत महत्वपूर्ण और दर्शनीय  है !
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  सोन नदी के किनारे , फैला गहन वन ,  विंध्याटवी  के नाम से  जाना जाता है ! सोन के किनारे पर , संस्कृति और साहित्य के कई ऐतिहासिक स्थल , आज यात्रियों को शोध कार्य के लिए पुकारते हैं !  सीधी जिले में , भवरसेन नामक स्थान पर सोन के किनारे , कभी , बाणभट्ट ने आश्रम बना कर , अद्भुत कथा  काव्य की  रचना की थी , कादम्बरी नामक यह रचना , कई दृश्य आँखों के सामने  चित्रित  कर देती है , जिसमें , कई जन्मों में नायक  नायिका बार बार मिलते है !
 बाणभट्ट हर्षवर्धन के काल में उनके राज दरबार के कवी थे ! हर्षचरित नामक ग्रन्थ की रचना भी उन्ही के द्वारा की गयी ! उनसे अनबन होने पर वे इस सोन नदी के तट पर आये , और उन्होंने यहीं आश्रम बना कर , प्राकृतिक सौन्दर्य आत्मसात करते हुए , अद्भुत कल्पनाशीलता के साथ , अलंकार और उपमाओं से युक्त कथा ,,,कादम्बरी लिखी ! विशेष बात यह है की , यह रचना पिता पुत्र की कलम से  निरंतरता बनाते हुए लिखी गयी   जिसमें प्रवाह में कोई अंतर् नहीं आया !
  वन्य जीवन , और बाणभट्ट की कर्म भूमि निहारने पर्यटकों को यहां भी जरूर आना चाहिए !
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  भवरसेन जो कभी  भ्रमर शैल  के नाम से उच्चारित होता था , के निकट ही , है सोन नदी के तट पर , बना चन्दरेह   मंदिर !यह एक सुन्दर शिवालय है जो स्थापत्य में अनूठा है !  कलचुरी काल में प्रशांत शिव नामक एक तपस्वी और विद्वान , महर्षि हुए , जिनके  शिष्य , थे प्रबोध शिव ! प्रबोध शिव ने जन जातियों को शक्षित करने का प्रयास किया ! वे लोक हितकारी , वास्तुविशारद थे !  वे उत्कृष्ट निर्माता थे और प्रस्तर तुड़वा कर पहाड़ों के मध्य मार्ग बनवाये !  उन्होंने तालाब बनवाये , गहन वनो से रास्ते निकाले !
 चाँद रेह  का मंदिर उन्ही के काल का है वास्तुकला की दृष्टि से तथा प्रस्तर कला की दृष्टि से दर्शनीय है !

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 सोन नदी तट पर ही स्थापित है , सीधी जिलें स्थित , मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम ! यह ऊंचाई पर है  क्यूंकि त्रेता ययुग में यहाँ गहन वन था , और वन्य जीवों से से भय होता था ! सोन की बहती धारा , और रामायण काल का आश्रम , मन में धार्मिक अनुभूतियाँ जगा देता है ! चित्रकूट की तरह , यह स्थान भी पवित्र माना जाता है , क्यूंकि भगवान् राम के चरण यहां पड़े थे !
  यह पर्यटकों के लिए ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व पूर्ण है !
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 बांधवगढ़ किला
  यह अत्यंत प्राचीन किला है ! इस किले पर कई राजवंशों ने अधिकार जमाया , किन्तु लम्बे समय तक यह किला किसी के पास नहीं टिका !लगभग २७०० फ़ीट ऊंची ,   पहाड़ी पर बना यहां का दुर्ग सदा अजेय रहा ! यद्यपि इसने कई विभिन्न आक्रमण झेले , किन्तु दुर्गम पहुँच मार्ग के कारण , यह सदा सुरक्षित रहा !इस गढ़ के लिए तीन मील लम्बी घुमाव दार चढ़ाई चढ़नी पड़ती है ! यहां शेषशायी विष्णु प्रतिमा प्रतिस्थापित है  जो यह यह बताता है की यह दुर्ग वैष्णव मत के  अनुयायियों ने  बनवाया होगा !यहां से , मध्यकाल में , सोन घाटी में घुसने वालों पर नजर राखी जाती थी !  सिकंदर लोधी के आक्रमण के समय बघेल राजा ने यहीं शरण ली थी !  गहोरा के दुर्ग से हटने के बाद , बघेलों की राजधानी यहां लम्बे समय तक रही , किन्तु अकबर से अनबन होने पर बघेल अपनी राजधानी यहां से उठा कर रीवा ले गए !  शेर शाह सूरी ने अपनी साथज़ार घुड़सवारों की सेना यहीं टिकाई थी !
 बांधवगढ़ में अन्य मूर्तियों के साथ कच्छप , बाराह , नरसिंह , मत्स्य , , राम,  कृष्ण ,और हनुमान की अद्भुत मूर्तियां है ! कहते हैं इन मूर्तियों को कलचुरी काल क्ले मंत्री गोलक ने बनवाया था !  १५ वीं सड़ी में यहां हाथियों के क्रय विक्रय हेतु एक बड़ा मेला लगता था !
 बांधवगढ़ के नीचे चारों और बहुत बड़ा गहन वन है , जो अब , बांधवगढ़ अभ्यारण के नाम से विख्यात है !
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 पाली बीरसिंघ पुर
 यह क्षेत्र मध्यकाल में , दहाड़ क्षेत्र के नाम से जाना जाता था ! यह क्षेत्र १६ वीं सड़ी के अंत में बघेल राजाओं के आधीन हुआ ! यहां पूर्व मध्यकालीन जैन मंदिर , जैन धर्म की मूर्तियां , भग्नावशेष में उपलब्ध है !

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  पुष्पराज गढ़ तहसील
 यह भूमि घोर जंगल वाली , विरल संख्यावाली आदिवासियों की बस्तियों की भूमि है ! आज से करोड़ों वर्ष पूर्व यहां समुद्र लहलहाता था ! राजेंद्र ग्राम से २५ किलोमीटर दूर , ुफ्री खुर्द में सागरीय शिलाओं के टुकड़े मिलते हैं !  पुष्पराजगढ़ तहसील के पहाड़ी क्षेत्र में अनेक घात हैं जिसमें होकर , सोहाग पुर की और से , आक्रमण कारी आक्रमण करने आते थी ! यही घात तीर्थ यात्रियों और व्यापारियों के आवागमन के  काम आते थे ! वहां मिले पाषाण उपकरण यह सिद्ध करते हैं की आदिकाल से ही जौहला और मुण्डाकोना घाटों की बीच मानव सभ्यता पनपी थी !
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   रीवा से इलाहाबाद की और जाते हुए , गढ़ के निकट सोहागी घाटे पर , कोठार  में बौद्ध कालीन स्तूप मिले हैं ! यह बौद्ध मठ के रूप बौद्ध भिक्षुओं के लिए , धर्मप्रचार हेतु , विश्रामस्थल के रूप में बनाये गए थे ! यहां जल की पर्याप्त व्यवस्था थी ! और बौद्ध भिक्षु यहां रह  कर साधना करते थे !

 यहां खुदाई अभी जारी है , जमीन के गर्भ में समाई   सभ्यता , और धरोहरों के राज उजागर होना बाकी है !
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 रीवा के चारों और कई प्रपात है जो दर्शनीय है ! इनमें क्योटी का  प्रपात ,  बहती प्रपात , पुरवा प्रपात , और चचाई प्रपात दर्शनीय हैं !  चचाई में के निकट ही अमलाई , ओरियंटल पेपर मिल है !  बांसों का जंगल होने के कारण यहां कागज़ बनाने के लिए कच्चामाल बहुतायत में उपलब्ध है !
    पर्यावरण की शर्त पर हुआ विकास , लोकहित में नहीं माना जा सकता ! पेपर प्लांट से निकलने वाले रसायन , यहां की नदी के जल को प्रदूषित कर रहे हैं जो बहुत चिंतनीय है ! स्थानीय समाज सेवी संस्थाएं और सरकार , उन व्यवस्थाओं के प्रति अब सचेत हो रहीं हैं , जिसके रहते जल प्रदुषण को रोका जा सके !
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  सिंचाई और विद्युत् परियोजनाओं के उद्देश्य को ले कर बांधे गए बाँध  , भी आधुनिक भारत के तीर्थ होते हैं ! सोन नदी पर बांधा गया , महा कवी बाणभट्ट के नाम का बाणसागर बाँध , , आज  पर्यटन  का आकर्षण बन रहा है ! बड़े जलाशय में नौका बिहार सम्भव है ! बाँध से निकल कर बहता हुआ जल ,  नयनाभिराम दृश्य  उत्पन्न  करता है  !   यहां जल विद्युत् उत्पादन का बड़ा केंद्र है , जो तकनीकी , दृष्टि से , इंजीनियरिंग के क्षात्रों के भ्रमण की जगह है !
          यहां से निकल कर , बड़ी नहरों के माध्यम से  नदी का  जल आज , बघेलखण्ड के कई एकड़ भूमि को सींच कर , उन्नति कृषि का साधन बन गया है  !    बाणसागर परियोजना देश का अभिनव प्रयोग है ! सोन के जल को रीवा ला कर पहले रीवा से , गोविंदगढ़ मार्ग पर बने  मार्ग पर बने एक जल विद्युत् केंद्र  से सम्बद्ध किया  गया है  जहां ,  १० मेगावाट की विद्युत् का उत्पादन किया जाता है !   इस केंद्र से निकली जल धार पुनः नहर  के द्वारा ,  बिछिया नदी  में जुड़ती है , और बीहरके  संगम से होती हुई , आगे सिरमौर से पूर्व , तमसा नदी से जा मिलती है ! सिरमौर में पुनः जल विद्युत् उपकेंद्र के द्वारा विद्युत् उत्पन्न कर , प्रदेश की विद्युत् मांग को पूरा करने में ,  यह योजना   महत्त्व पूर्ण साबित हुई है !
 सोन पर बनाये गए बाँध ने , यहां की भूमि का जल स्तर बहुत ऊपर उठा दिया है   ,  और कुँए , बावड़ियों  में , सुख गया जल फिर अवतरित हो गया है  ! रीवा नगर में , बीहर नदी में बहता हुआ , निरंतर जल , झरने की तरह मनोरम वातावरण उतपन्न करता है  !
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 रीवा सीधी मार्ग पर स्थित गूढ़ कसबे में , देश का अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्लांट स्थापित हुआ है ! यह प्लांट अद्वितीय है , और दर्शनीय है ! यहां सौर्य ऊर्जा के   बड़े बड़े  सौर्य  पैनलों के माध्यम से , 250  मेगा वाट विद्युत् पैदा की जा रही है , जो सारे देश  का अभिनव प्रयोग है !  इस प्लांट की क्षमता वृद्धि कर , इससे ७५० मेगावाट की विद्युत्  उतपन्न करने  का लक्ष्य है ! यह अपने प्रकार का एशिया में बना , एक अभिनव सोलर पावर प्लांट है !

 मानव जीवन प्रकृति प्रदत्त साधनो पर ही निर्भर है , जिसमें , अग्नि , जल , वायु  ही प्रमुख है ! हमारे लिए सूर्य एक प्रकृति प्रदत्त ऊर्जा का श्रोत है , जिससे मिली ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा ,में   बदल कर हम हम विद्युत्  प्रकाश , और विद्युत् जनित  यांत्रिक शक्ति को  प्राप्त कर सकते हैं !  पर्यावरण की दृष्टि से यह नित्तांत  हानि रहित मार्ग है  क्योंकि पृथ्वी के गरब में स्थित , कोयले , और पेट्रोलियम पदार्थो का खजाना अब बहुत काम होता जा रहा है  और इसके दुष्परिणाम पृथ्वी के ताप के बढ़ने के कारण , अब ऋतुओं में हुए  गहन परिवर्तन के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं !  बढ़ता हुआ भू स्खलन , भूकंप , भी , प्रकृति से छेड़  छाड़  का परिणाम है ! जल विद्युत् उत्पादन और    सौर्य  ऊर्जा उत्पादन  के  प्रयोग , पर्यावरण के लिए , वरदान है  जिसके लिए विंध्य भूमि आज नए सिरे से स्तुति योग्य है !
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  रीवा राज की   की सांस्कृतिक विरासत ,देश में अनूठी हैं  ,! प्राकृतिक सौंदर्य में यहां के वन अभ्यारण , जल प्रपात ,  पर्वत श्रेणियों में बने तीर्थ स्थल ,  किले , जहां भ्रमण योग्य दर्शनीय स्थान है , वहीं यहां के रीत रिवाज , बोली ,  उत्सव , खानपान  , लोकसंगीत , लोकनृत्य भी विविध छटाओं के दर्शन  करवाती है ! बघेली  बोली में  आज बहुत से नाटक लिखे जा रहे हैं , कवितायें गढ़ी जा रही है , साहित्यिक रचनाएं की जा ! यहां के खान पान पर भी  बहुत कुछ कहने सुनाने योग्य बातें हैं !  बघेल खंड भूमि की उर्वरा भूमि , चावल , दाल गेहूं , जो , चना  के साथ साथ सोयाबीन जैसी कैश क्रॉप उत्पन्न कर रही है !  यूकेलिप्टिस की खेती भी यहां की गयी , और उससे धन कमाया गया !  यहां के  ग्रामीण प्रमुख व्यंजन हैं - बड़ा , मुँगौरा , भात ,  खीर , रिकंज , खिचड़ी , खिचरा , सेमी , फुलौरी , कढ़ी , पपड़ी , रसाज , दरिया , सेतुआ  !  ये व्यंजन ना सिर्फ पौष्टिक हैं बल्कि स्वादिष्ट हैं ! समय समय पर व्यंजनों का मेला भी यहां लगता रहता है !
 यहां के लोकगीतों में सोहर और व्याह के गीत बहुत सुन्दर हैं ! वैवाहिक अवसर पर हुए नगों में माटी मगरा , मातृका पूजन , मड़वा , सिलपोनी , जनेऊ , भीख , मुंडन , रिसाई , वृच्छा , कंकण भुंजाई , तेल चढ़ाई , दुआरचारा , बाटी मिलाई कलेवा के साथ विदाई आदि के बहुत मधुर गीतों के गायन का प्रचलन है !  ऋतू गीतों में बरखा , झूला , बारहमासा , होली , फगुआ , चैती , कजली , टप्पा जैसे मधुर गीतों का चलन है !  आस्था गीतों में देवी गीत , भगत  इस धारा के विशिष्ट गीत हैं ! नचनहाइ , सजनहाइ गेलहाइ , बेलन्हाई   पुतरी  पुतरा  , हिंदुली , आदि गीत परस्पर संबंधों पर आधारित , घटनाओं के गीत हैं !
 उत्सवों में मकर संक्रांति , बसंत पंचमी , शिवरात्री , नागपंचमी ,  खजुलैयाँ , के मेले   स्थान स्थान पर आयोजित होते  हैं ! पारिवारिक रिश्तों की मिठास ,     संतान सप्तमी , वट  सावित्री , भैयादूज , राखी , तीजा , करवाचौथ जैसे त्योहारों से में दिखती है , तो रामनवमी , अक्षयतृतीया , हरछट , जन्माष्टमी , गणेश चतुर्थी अनंत चौदस ,  देवोत्थानी एकादशी पर आस्था और भक्ति भाव का ज्वार देखते ही बनता है !

   इस क्षेत्र के   लोकसंस्कृति के दर्शन  वृहत स्तर पर करना सम्भव नहीं ! इसके लिए फिल्म माध्यम ही सटीक माध्यम है ! कुछ  युवा इस दिशा में प्रयत्न शील हैं  जिनके सार्थक परिणाम जरूर ही आगे आयेंगें !

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   रेवा नगरी से हट कर , ग्रामीण क्षेत्रों में फ़ैली धार्मिक स्थलों की धरोहरें  दर्शनीय है , जिनमें गोर्गी प्रमुख है ! यह शैव संस्कृति का , ऐतिहासिक शिव मंदिर का भग्नावेश स्थिति में उपलब्ध  दर्शनीय स्थल है ! पुरातत्व की दृष्टि से यह बहुत  महत्वपूर्ण स्थल है , इसी तरह चंद  रेह  स्थित मंदिर भी कलचुरी काल की प्रस्तर कला के दर्शन करवाते हैं !
 ग्रामीण क्षत्रों में बनी ऐतिहासिक धरोहरों और प्राचीन मंदिरों में देवी तालाब  आस्था का केंद्र है ! वहीं रायपुर कलचुरियाँ में बना अरविंदर आश्रम , एक शान्ति पीठ है जहां अशोक का वृक्ष , और अरविन्द का मंदिर दर्शनीय है ! ीासी नगर में , कर्मासिन माता का मंदिर है , कलचुरियों की आराध्या है ! नईगढ़ी का अष्टभुजी मंदिर भी दर्शनीय है , और तमरा पहाड़ पर बना हनुमान मंदिर , सिद्ध मंदिर माना जाता है !
        रीवा से बाहर , गूढ़ मार्ग पर बना प्राचीन मंदिर चिरहुलानाथ , हनुमान जी का सिद्ध मंदिर माना जाता है ! यहां हर शनिवार , मंगलवार को भक्तों की भीड़ , मेले का रूप ले लेती है ! मंदिर में  पूजा पाठ का भी रिवाज है , इस लिए पंडित पुरोहितों की उपस्थिति सदा वहां रहती है !
 मंदिर से लगा , तालाब भी बहुत सुन्दर है !
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 रीवा के निकट , बेला , गोविंदगढ़ मार्ग पर ,  मुकुंदपुर सफारी आज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है ! महराज पुष्पराज सिंह , और  ऊर्जा मंत्री राजेंद्र सिंह के अथक प्रयासों से , सफ़ेद शेर की वापसी  रीवा की भूमि पर पुनः सम्भव हो सकी है ! यह स्थान रमणीक है , जहां पहले भाग में , वन्य प्राणियों का ज़ू है  और दूसरे भाग में छोटा सा अभ्यारण बनाया गया है जिसमें सफ़ेद शेर उन्मुक्त विचरण करता है ! दुसरे भाग की सैर के के लिए , वन विभाग द्वारा  सुरक्षित बसें चलाई जाती हैं , जिनमे बैठ कर , हर वे के लोग , सहजता से सफ़ेद शेर को विचरण करते देख सकते हैं !
  सफ़ेद शेर , वस्तुतः बाघ की प्रजाति है ! यह रीवा रियासत द्वारा , पूरेविश्व को सौंपी गयी नायाब सौगात है ! इसकी कथा का प्रदर्शन  पोस्टरों , और  चित्रों के माध्यम से सफारी के अंदर बने एक विश्राम स्थल पर किया गया है जो दर्शनीय है !
 मुकुंदपुर , का व्हाइट टाइगर सफारी  रीवा की शान है ! यह पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनता  जा रहा है !

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 संस्कृति ऊपर से थोपी गयी विचारधार नहीं है , बल्कि उत्तरोत्तर प्रगति  के साथ , मनुष्य के अंदर विदवमान , मानवीय ऊर्जा है ! लोक संस्कृति समाज में  भाईचारे , और आपसी सौर्हार्दः का संवंधरण करती है ! उसे सहेज कर रखती है ! बदलते हुए सांस्कृतिक परिवेश में , देश की मिटी से  जुडी  ऐतिहासिक   सांस्कृतिक , और पुरातात्विक धरोहरें , न सिर्फ दर्शन की चीज़ है , बल्कि आत्मसात करने की चीज़ है ! विंध्य भूमि के एक भाग , बघेल खंड के दर्शन हमने किये , किन्तु यह तो  गागर  में सागर  जैसा है !   जितना देखें उतना कम ! क्यूंकि विंध्य भूमि का कण कण , ऊर्जा , और समृद्ध इतिहास से भरा हुआ है !
   हमें विश्वाश है की आप इस क्षेत्र का भ्रमण जरूर करेंगे , और यहां से वे यादें सहेज कर ले जायेंगें , जो आप को यहां बार बार भ्रमण हेतु विवश करेंगी !

--- आलेख सभाजीत    


  विंध्य की विरासत

  रीवारियासत  रीवा राज 
   ( नेपथ्य में वाइस ओवर )
 वैदिक काल में , शुक्र पुत्री देवयानी  के पति ययाति का राज चौदह द्वीपों पर था ! महराज ययाति ने अपने आधीन राज्य  भूमि को अपने दो पुत्रों यदु और तुर्वशु को बाँट दिया ! जिसमें दक्षिण पूर्व का भाग तुर्वशु को मिला ! भूमि का वही  भाग , विंध्याचल श्रेणियों के मध्य बसा विंध्य था , जहां आज विंध्य की श्रेणी कैमोर  पर्वत  के निकट बसा  विकसित नगर रीवा , अपनी अलग सांस्कृतिक विरासत लिए , किसी रत्न की तरह चमक  रहा  है  !

 रेवा का अर्थ  दुर्गम भूमि से है !  रीवा का अर्थ , रेतीले पथरीले  क्षेत्र से भी है ! रेवा का  अर्थ  त्वरित गति से  भी है  ! रीवा राज्य के लिए यह सभी अर्थ लागू होते हैं ! भौगोलिक क्षेत्र की दृष्टि से , इस राज्य के दोनों और , आदिकालीन दो कूट स्थापित हैं , एक आम्रकूट , और दूसरा चित्रकूट ! ये दोनों ही कूट आर्य और द्रविण संस्कृतियों  का मिला  जुला केंद्र रहे हैं ! इस क्षेत्र में पहले , वनवासी जातियों   का निवास  था , जो वनोपज पर  अपना जीवन निर्वाह करती  थे ! ईसा पूर्व यह क्षत्र कौशाम्बी के महराज उदयन  के अधिकार में था ! उदयन  के बाद , यहां   मघों  का शाशन आया !  मघवंशियों  ने अपनी राजधानी  की   यिन्ध्य श्रेणियों पर बने बांधवगढ़  किले में   स्थापित की !  थी !  मघों  को  हटा कर नागवंशी आये !  ईसा के बाद की तीसरी सदी तक यहां  नागवंशियों का राज था जिन्हे भार शिव भी कहा गया है  ! बाद में गुप्त वंश का साम्राज्य आया , ! उन्हें हरा कर यहां कलचुरी आये , और कलचुरियों को हराकर अलग अलग क्षेत्रों में ,   चन्देलों , और बघेलों ने अपना राज विस्तारित किया !

   पुरुष एंकर --,( किले की बुर्ज से )--'  कहते हैं की गुजरात से आये सोलंकी राजपूतों ने वर्ष १२८९ ईस्वीं  में , पहले चित्रकूट क्षेत्र के पहाड़ी  किले मड़फा पर अधिकार किया ! यह किला  कभी चन्देलों के आधीन था  और खाली पड़ा था ! तत्कालीन बघेल राजा व्याघ्रदेव ने  अपने राज्य के विस्तार हेतु , गुजरात से विभिन्न जाती के लोगों को बुलाया  जिनमें क्षत्रियों के अलावा , ब्राम्हिन , कायस्थ और मुस्लिम भी थे ! बाद में उन्होंने निकटवर्ती किले , कालिंजर , गोहरा   , और मण्डीहा पर भी अधिकार कर लिया !
   कालांतर में बघेल राजा  कर्णदेव  को कलचुरियों की पुत्री से विवाह करने पर बांधवगढ़ का किला , सौगात में मिला !  महराज कर्ण देव संस्कृत के ज्ञाता थे ! उन्हें ज्योतिष का भी ज्ञान था   ! महराज  कर्णदेव ने पूरे कैमोर श्रंखला की भूमि पर राज विस्तार किया ! भारशिवों को हरा कर उन्होंने भरहुत पहाड़ तक अपना राज बढ़ाया !  बांधवगढ़ किले का इतिहास बहुत  प्राचीन बताया गया है ! बांधवगढ़ किले को लक्ष्मण का किला कहा गया है ,, !  

   भरहुत हो कर , बांधव गढ़ के मार्ग से कभी  कौशाम्बी  जाने का रास्ता था ! इसलिए बांधवगढ़ ना सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टि से , बल्कि व्यापारिक दृष्टि से भी महत्व पूर्ण था !
  स्त्री एंकर -   बघेल राजवंश के राजा , रामवचन्द्र  के राज में गोहरा उनकी राजधानी थी ! किन्ही कारणों से मुगलों ने जौनपुर राज के सामंत ,   गाजी पर आक्रमण किया ! नवाब गाजी ने  , राजा रामचंद्र से शरण  माँगी  , और रामचंद्र देव ने उनसे शरण दे दी ! उससे खिन्न हो कर अकबर ने गोहरा पर आक्रमण करने के लिए सेना भेजी ! महराज रामचंद्र देव , गाजी नवाब को ले कर दुर्गम किले बांधवगढ़ किले में चले गए ! अकबर ने वहां भी सेना भेज दी , उससे  डर  कर , नवाब तो  वहां से भाग गया ! महाराज रामचंद्र देव को इसका खामियाजा , गोहरा किले को गवां कर करना पड़ा ! बाद में अकबर ने उनके दरबार के गायक तानसेन को भी बुलवा भेजा ! बीरबल  जो पहले  बघेल राज के निवासी थे ,  पहले ही अकबर के दरबारी हो चुके थे , वो  तानसेन को लेने आये ! महराज रामचंद्र देव ने पहले तो अकबर से लोहा लेने की ठानी , किन्तु बाद में तानसेन और बीरबल के समझाने पर उन्होंने तानसेन को आगरा जाने दिया !

  पुरुष एंकर -   मुगलों की आँख की किरकिरी हो जाने के कारण , बघेल राजवंश को बहुत परेशानी उठानी पडी ! कुछ दिनों के लिए अकबर ने बांधवगढ़ का किला अपने अधिकार में ले लिये , किन्तु बाद में उसे बघेल शाशक विक्रम देव को वापिस कर दिया ! विक्रमदेव ने एक बार शिकार पर आने पर , रीवा में एक अधबना किला देखा , जो शेर शाह सूरी का पुत्र सलीम शाह , छोड़ कर चला गया था ! बार बार की आशंकाओं के निराकरण के लिए विक्रम देव ने अपनी राजधानी इसी किले में बना ली और इसका विकास किया !
 इसी किले के महराज विश्वनाथ सिंह ने , जो साहित्य में अभिरुचि रखते थे , पहला नाटक आनंद रघुनन्दन लिखा , ! यह हिंदी भाषा का पहला नाटक कहा जाता है !
    स्त्री एंकर -  बघेल राजवंश की परम्परा में महराज रघुराज सिंह और महराज गुलाब सिंह का नाम रीवा के विकास कार्यों हेतु उल्लेखनीय है ! महराज रघुराज सिंह के काल में एक सुन्दर कसबे , गोविन्द गढ़ को बसाया गया जहां आज बहुत बड़ा सरोवर जल का आगार है ! इन्ही के  काल में वन संरक्षण को प्रधानता मिली , और इन्ही के काल में अंगरेजी भाषा का प्रातः स्कूल रीवा में स्थापित हुआ !  महराज गुलाब सिंह देव के समय में  रीवा राज की सेना में कटौती हुई जिससे अधिक से अधिक धन जन कल्याण के लिए लगाया जा सके ! उन्होंने राज में निर्मित बांधों में कृषकों को भी सिंचाई का अधिकार दिया ! उन्होंने अनाथालय बनवाये ! दशहरा उत्सव को उन्होंने सार्वजनिक किया और खुद जनता के बीच आ कर हल चलाया ! उन्होंने अपने शाशन काल में , इतिहास लेखन को प्रारम्भ किया ,  और प्रथम  बैंक  बघेल खंड बैंक की स्थापना की ! इन्ही के समय में रीवा नगर प्रथम बार विद्युत् से जगमगाया !  बघेल  राजवंश के वे यशश्वी राजा माने जाते हैं !

     पुरुष एंकर-  देश के आज़ाद होने के समय , यहां के महराज रहे , मार्तण्ड सिंह जो देव !  आज़ादी के बाद जो पहला प्रदेश ,  विंध्य प्रदेश के नाम से शहडोल , सीधी , रीवा , पन्ना , छतरपुर , टीकमगढ़ , और दतिया रियासत को मिला कर बनाया गया , उसके ये राज प्रमुख बने ! विश्व को पहले सफ़ेद शेर की सौगात देने वाले यही बघेल राजा हैं , जिन्होंने  बगदरा के गहन जंगल में , सफ़ेद शेर के प्रथम शिशु ,  को २७ मई १९५१ में  पकड़ा ! गोविन्द गढ़ के किले पाले गए इस सफ़ेद शेर से करीब ४६ सफ़ेद शेर जन्म लिए , जो सम्पूर्ण विश्व को भेंट किये गए !  महराज  मार्तण्ड  सिंह  जू  देव , तीन बार  लोक सभा सांसद रहे !इन्हे अपने पूर्वजों की तरह शिकार का शौक था , और इन्होने भी कई हिंसक वन जीवों का शिकार किया !
    स्त्री एंकर -  रेवा राज्य के वर्तमान महराज हैं , महराज पुष्पराज सिंह  जो बघेल शाशकों के यशश्वी इतिहास के वारिस हैं और जिन्होंने सामाजिक कार्यों में तथा रीवा के विकास में अपना अभिन्न योगदान दिया ! इन्होने पर्यावरण के लिए उल्लेखनीय योगदान  दिया और सफ़ेद शेर की प्रजाति , जिससे यह धारा पूरी तरह वंचित हो गयी थी , को वापिस रीवा लौटाने का  अभियान चलाया ! आज उनके प्रयास से मुकुंदपुर में टाइगर सफारी बन गया है , जहां सफ़ेद शेर दर्शनीय है !  महराज पुष्पराज सिंह ,  आधुनिक  भारत के रीवा के  महराज हैं , और विकास में विशवास रखते हैं !उन्होंने बघेल राजवंश की धरोहरों को , रावा के किले में अक्षुण रखा है , वे वन्य जीवन की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं , उन्होंने बाघिन नाम से एक व्रत चित्र का निर्माण किया , जिसमें सफ़ेद शेर की कथा है ! उन्होंने बांधवगढ़ किले को सामाजिक हाथों में सौंप कर , उसे सभी पर्यटकों के लिए खोला ! वे सांसद भी रह चुके हैं !
 ( पुष्पराज सिंह का इंटरव्यू )
   (  नेपथ्य में  वाइस ओवर )

       आज का   रीवा नगर ,  चार  जिलों की कमश्निरी का केंद्र है , जिसमें शहडोल , रीवा , सीधी , और सतना जिले समाहित हैं ! यहां  का  जन जीवन राजनैतिक  दृष्टि से बहुत उथल पुतल भरा है ! यहां  क्षत्रिय  , और ब्राम्हणो के अलावा , खेती करने वाले  , पटेलों की बसावट भी  बहुतायत में है ! रीवा नगर  के  मध्य  में बने  परिसर , पीली कोठी और कोठी कम्पाउंड  परिसर में  , बघेल रियासत के समय में बने भवन  , रीवा की  विकसित  हुई  भव्यता और स्थापित्य की कथा कहते हैं ! वहीं रीवा के किले से जुड़े पुराने रियासती  भवन   , उपरहटी , और तरहटी में , बसे    लोग , रीवा रियासत की प्रगति के  प्रत्यक्ष  गवाह हैं ! रीवा का किला , ऐतिहासिक है !  इसमें एक भाग , यहां के राजा , पुष्पराज सिंह के निवास हेतु उपयोग में आरहा है , जबकि  किले के  बाहरी प्रांगण में आज शिक्षा हेतु , उनके ही द्वारा एक उत्कृष्ट स्कूल  संचालित किया जा रहा है !  प्रांगण में रखी  तोपें , बघेल शाशकों के समय  , का यश बखान रही हैं ! किले के एक भाग  को महराज ने , बघेल म्यूजियम के लिए भेंट कर दिया है , जिसमें , उनके काल के अस्त्र  शस्त्र   , उपयोग में आने वाले सामान ,  आदि पर्यटकों को देखने के   लिए उपलब्ध है !
     किले के दो द्वार हैं !पूर्व दिशा में बहती ,  , बिछिया नदी के  घाटों को जोड़ता  ' पुतरिया दरवाजा '  वहां की मेहराब में चित्रित मूर्तियों के कारण , पुतरिया दरवाजा कहलाता है ! कहते हैं ये मेहराब , वस्तुतः , कलचुरी काल के  विशाल शिव मंदिर का भग्नावशेष ,  तोरण द्वार  है , जो इस दरवाजे के ऊपर  लगा दिया गया है ! इस द्वार से बाहर आने पर , एक और लक्ष्मण बाग़ है , जहां भव्य मंदिर हैं , और नदी किनारे बनाया गया भव्य बगीचा है !  दूसरी और एक विशाल तालाब ' रानी तालाब ' है , जिस पर एक प्राचीन मंदिर में दुर्गा भवानी की मूर्ति स्थापित है !  नवरात्रि में , महिलायें यहां जल चढाती हैं , मेला लगता है , और मनौती की जाती है !  कुछ वर्षों पूर्व तालाब का उन्नयन किया गया है , जहां अब नौकायन की सुविधा भी प्राप्त है !
 किले की उत्तरी दिशा में बना द्वार , मछरिया दरवाजा कहलाता है ! यह रीवा की  रियासती युग की बस्ती , उपरहटी  से जुड़ा हुआ है ! इस नगरी में राजाओं के वैद्य , पुरोहित , ब्राम्हण ,  और मुंशी , कारिंदे रहते थे ! किले की पश्चिमी भाग को छूती हुई बीहर नदी  निकलती है , जिसमें आकर बिछिया नदी  समा जाती है ! किले  के पीछे बीहर नदी पर बना हुआ घाट  राजघाट  कहलाता है !जहां बघेल वंशी राजाओं की छतरियां बनी हैं ! इनमें  महराज विश्वनाथ सिंह की छतरी विशिष्ट है ! किले के ही पश्चमी भाग में , जगन्नाथ भगवान् का मंदिर स्थापित है !  पुराणी बस्ती को  घेरता हुआ , परकोटा , पुराने रीवा की सीमाएं बांधता दिखता है , जिसके बस्ती  में प्रवेश करने वाले  उपरहटी और तरहटी  दरवाजे अब भग्नावस्था में है !

    स्त्री एंकर -  किले की विशेष शोभा है , भगवान् मृत्युंजय का प्राचीन मंदिर ! इसमें स्थापित शिव लिंग बहुत प्राचीन है !  यह रीवा नगरी के लोगों की आस्था का केंद्र है ! प्रायः हर दिन यहां दर्शनार्थियों  तांता बंधा रहता है ! शिव लिंग का  जल,  दूध  ,  बेल  पत्री  , शहद , आदि के साथ पुरोहितों के मंत्रोच्चारणों  सहित   अभिषेक होता है !  मंदिर के बाहर , गणेश की विशाल मूर्ती है , और एक पुराना  वट वृक्ष है जिसकी परिक्रमा करके महिलायें मनौती करती हैं !  मंदिर के द्वार के निकट हनुमान जी की मूर्ती भी स्थापित है ! राजशाही के युग में यह मंदिर , राजाओं के आधीन था , किन्तु अब यह न्यास के आधीन है !
   पुरुष एंकर -
 कोठी कम्पाउंड में बने  भवन , बघेल  राजशाही  के वैभव की गाथा कहते हैं !यहां का मुख्य भवन है ' वेंकट भवन "   जो महराज वेंकट रमन सिंह की याद दिलाता है ! इस भवन में अब मूर्ती संग्रहालय है ! इस महल का स्थापत्य , और भव्यता देखते ही बनती है !यह दो मंजिला भवन है , और इसकी सीढ़ियां और  इसका ऊपरी भाग आकर्षक है !
    इसी भवन से सट  कर बनी है एक बावड़ी !सुरक्षा की दृष्टि से आज इसके चारों और जाली लगा दी गयी है !  कहते है , यहां से एक सुरंग , सीधे रीवा किले को जाती है , जो अब बंद हो गयी है ! आज का कमिश्नर  आफिस भी एक कोठी का भाग  है !  बावड़ी के निकट ही बना है , भगवान् कामेश्वरनाथ का शिव मंदिर ! यह स्थान  यहां के चिंतकों , रचना कारों के लिए , वरदान प्राप्ति का सिद्ध मंदिर है ! मंदिर के एक और बनी दालान में , कर्मकांडी पुरोहितों की गड्डियां है जहां पूजा पाठ का , विघ्न निवारण का कार्य होता है !
      स्त्री एंकर  -  इसी कम्पाउंड में जिला न्यायालय परिसर है ! एक और न्यायाधीशों के कोर्ट हैं , तो दूसरी और काले कोट धारण किये वकीलों की बैठकें ! यहां न्याय प्राप्ति  के लिए आये , जिले भर के लोगों का मेला सा लगा रहता है !
   कोठी  कम्पाउंड के पश्चिमी भाग में बना है घोड़ा चौक !   यहां घोड़े पर सवार महराज वेंकट सिंह की ,  शानदार मूर्ती लगी है , ! मूर्ती के चारों और क्यारियां बना कर क्षेत्र को घेर दिया गया है , जिससे मूर्ती की भव्यता कायम रहे !  इस चौक से लगा है , शहीद पद्मधर पार्क ! यह पार्क अब व्यवस्थित बगीचे का रूप है ! इसके अंदर फैले छोटे से मैदान में अक्सर यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम और राज नैतिक सभाओं का आयोजन होता रहता है ! पार्क में शिव  पार्वती की  विशाल मूर्ती लगी है , जो  गोर्की  से लाकर यहां लगा दी गयी है ! यह  कलचुरी काल की मूर्तिकला का उत्कृष्ट नमूना है !
      पुरुष एंकर -  घोड़ा चौराहा , आज रीवा का व्यस्ततम बाज़ार है ! यहां से ले कर केले मार्ग तक फैला बाजार , पूर्ववर्ती रीवा की निशानी है , जबकि कोठी कंपाउन के बाहरी हिस्सों पर विकसित हुआ शिल्पी प्लाज़ा , और पीली कोठी का बाज़ार।  आधुनिक रीवा की छवि  के दर्शन करवाता है !  घोड़े चौराहे पर , उज्जयनी महरानी द्वारा बनवाया गया प्रेक्षागृह , उनकी नाटकों की अभिरुचि का गवाह है ! यह प्रेक्षा गृह कभी विंध्य प्रदेश का विधान सभा भवन बना था ! आज यह प्रेक्षा गृह , नगर निगम भवन की तरह उपयोग में आ रहा है  , जहां नगरनिगम आयुक्त के साथ महापौर रीवा का आफिस लगता है !
 यह नगर , चार विभिन्न  मार्गों द्वारा , सतना , बनारस , इलाहाबाद , सीधी , शहडोल  के नगरों से जुड़ा हुआ है !  इलाहाबाद - बनारस मार्ग पर बहुत से होटल बने हुए हैं ! इसी मार्ग पर बना है ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय , जो ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व पूर्ण है ! ठाकुर रणमत सिंह का नाम यहां अत्यंत श्रद्धा से लिया जाता है ! अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत की रणभेरी बजाने वाले वे  पहले सेनानी थे !  अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर , कुछ दिनों , सतना की छावनी में रखा , और फिर चुपचाप  बांदा  ले जा कर फांसी दे दी ! रन बाँकुरे रणमत सिंह बाद में यहां अंग्रेजों के विरुद्ध हुए आंदोलन में ,  अपनी शहादत के कारण एक मिसाल बन गए , और उन्होंने राजनैतिक चेतना की वह  रणभेरी फूंकी  की पूरा बघेल खंड , अंग्रेजों के विरुद्ध , आंदोलन का गढ़ बन गया !  इसी क्रम में यहाँ युवा शहीद , लाल प्रद्युम्न  सिंह  का नाम भी बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है  जिन्होंने वीरता पूर्वक , इलाहाबाद में तिरंगा फहराते हुए , सीने पर गोली झेली !
     स्त्री एंकर    करीब   पचास वर्ष पूर्व , रीवा को आकाशवाणी रीवा की सौगात मिली , किसका प्रसारण केंद्र  इसी महाविद्यालय के दूसरी और , इसी मार्ग पर बना  ! इस प्रसारण केंद्र ने , यहां के साहित्यकारों , रचनाकारों , कवियों , लोक गायकों , लोकगीतों ,  नाट्यकारों  को नया मंच दिया ! रेडियो नाटक लिखे गए , और प्रसारित हुए !  यहां के युवा कलाकारों की रचनात्मक प्रतिभा प्रस्फुटित हुई ! नाट्य के प्रति रुझान बढ़ा तो  मंचीय नाटक खेले जाने लगे ! संस्थाएं बनी , नाट्य लेखक और  नाट्य निर्देशक सामने आये !  कला की एक रचनात्मक धारा  बहने लगी जो अब एक परम्परा का रूप ले चुकी है !  रीवा का आकाशवाणी केंद्र अब , और भी उन्नत ऍफ़ एम् बेंड के साथ इस क्षेत्र में अपना अलग स्थान बना रहा है !
     पुरुष एंकर -  इसी इलाहाबाद रोड पर आगे है सिरमौर चौराहा ! यह इस नगर का व्यासतरम चौक है ! यहां एक उन्नत बाज़ार है !  हाल में ही  बढ़ते ट्रेफिक की असुविधाओं के कारण अब यहां एक  उन्नत  ओवर ब्रिज बना दिया गया है ! इस चौराहे से एक मार्ग बस्ती की और जाता है , जहां पर अमहिया क्षेत्र , रीवा के राजनैतिक पुरोधाओं का गढ़ है !  इसी चुराहे पर है रीवा की महरानी , प्रवीण कुमारी  द्वारा बनाया गया , बालिकाओं का स्कूल , पी के स्कूल !  दूसरा मार्ग यहां के अवधेषप्रताप सिंह विश्व विद्यालय की और जाता है , जो बघेलखण्ड की शिक्षा का आधार भूत गढ़ है ! सिरमौर मार्ग की और जाते हुए , बीच में पड़ता है स्टेडियम ! जहां राष्ट्रीय पर्व , स्वतंत्रता दिवस , और गणतंत्र दिवस , परेड के साथ धूम धाम से मनाया जाता है !स्टेडियम के बगल में ही है औद्योगिक शिक्षण केंद्र , ! और आगे है , रीवा का इंजीनियरिंग कालेज !  उसके आगे जाने पर मिलता है , अवधेश प्रताप सिंह विश्व विद्यालय का विशाल परिसर ! यहां , विज्ञान , वाणिज्य , पर्यटन , पुरातत्व , पत्रकारिता , भाषा ,  संस्कृति के विषय से डिग्री के पाठ्यक्रम संचालित होते हैं ! किसी युग में , टीकमगढ़ , छतरपुर , पन्ना , सतना , शहडोल , सीधी जिले के सभी महा विद्याक्य इससे संबद्ध थे , किन्तु अब  टीकमगढ़ छतरपुर महाविद्यालय , सागर से सम्बद्ध हो गए है !
      स्त्री एंकर -   रीवा को एक विशाल गुरुकुल कहा जाए तो गलत ना होगा ! यहां हर शिक्षा की समुचित व्यवस्था है !  अवधेश प्रताप  विश्विद्यालय  का परिसर यहीं है ! इंजीनियरंग कालेज के अतिरिक्त कई तकनीकी कालेज भी यहां है ! ठाकुर रण मत सिंह  महाविद्यालय के साथ यहां कया महाविद्यालय , और विज्ञान महाविद्यालय बहुत पहले से स्थापित है !  सैनिक शिक्षा के साथ , एकेडिमिक शिक्षा का विद्यालय , सैनिक स्कूल , क्षेत्र का विरला स्कूल है !  चिकित्सा के क्षेत्र में , यहां  संजय गांधी मेडिकल कालेज , चिकित्सकों की बड़ी टीम प्रति वर्ष देश को भेंट करता है !  आयुर्वेद महाविद्यालय भी यहां है !  पड़रा स्थित  कृषि विद्यालय यहां के क्षेत्रों के लिए वरदान है ! इसके अतिरिक्त जे ऐल इसके अतिरिक्त कई विद्यालय , विभिन्न मुहल्लों में संचालित है ! जिसमें सरस्वती शिशु मंदिर , क्राइस्ट  ज्योति स्कूल, केंद्रीय विद्यालय , मार्तण्ड विद्यालय , मारुती विद्यालय , मंडप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र , आदर्श बहुउद्देशीय विद्यालय प्रमुख हैं !   यहां का शिक्षा का प्रतिशत ९५ प्रतिशत से ऊपर है ! इसलिए यहां का रहवासी , राजनैतिक चेतना से ओत  प्रोत है ! रीवा , आज़ादी के बाद , समाजवादी विचारधारा का गढ़ रहा ! यहां ,, के प्रखर समाजवादी नेता , यमुना प्रसाद शास्त्री , और श्री निवास तिवारी हुए ! कालांतर में श्रीनिवास  तिवारी जी ने कांग्रेस अपना ली और वे कांग्रेस शाशन काल में , मंत्री तथा विधान सभा अध्यक्ष बने ! समाजवादियों के अलावा बहुजन समाज पार्टी का बोलबाला भी इस क्षेत्र में रहा ! लोकसभा के इतिहास में सबसे पहला , बहुजन पार्टी का सांसद यहीं से चुना गया !  आज के विकास के पुरोधा , भाजपा के नेता , श्री राजेंद्र शुक्ला  का निवास भी रीवा है , जो भाजपा शासन काल में ऊर्जा मंत्री रह चुके हैं !

      पुरुष एंकर -  संगीत और कला का यह गढ़ रहा है !  महाराज रामचंद्र देव के समय में , बौद्धिक सम्पदा के धनी ,  अकबर दरबार के ख्याति प्राप्त रत्न बीरबल और तानसेन  यहीं से आगरा गए थे ! आज के समय में   बावने परिवार की मूर्तिकला  और चित्र कला , पेंटिंग आदि , आज चारों और धूम मचा रही है !  संगीत  परम्पराओं को जीवित रखने के लिए कुंती रामा संगीत अकादमी , निरंतर भव्य संगीत के आयोजन करती है ! यहां के सुगम संगीत गायक , देश की चर्चित प्रतियोगताओं के विजेता कलाकार रहे हैं ! यहां की गायिका प्रतिभा बघेल आज , फिल्म उद्योग में परचम लहरा रही हैं , मणिकर्णिका की ताजा फिल्म के गीत , उनके स्वर में है , जिसे देश की जनता गुनगुना रही है ! ग़ज़ल गायकी के गायक , डाक्टर राजनारायण का नाम , एक परिचित नाम बन चुका है ! दूसरी और लोक गायकी भी उभर कर सामने आयी है ! आकाशवाणी रीवा केंद्र से प्रतिदिन प्रसारित होने वाले लोकगीत , इस देश की संस्कृति को चारों और फैला रहे हैं !रीवा नगर में हे सुपारी के खिलौने बनाने वाले अद्भुत कला कार हैं , जिनकी कला कृतियान  राष्ट्रपति , प्रधान मंत्री को भेंट की  जा चुकी है ! लकड़ी के खिलौने यहां बहुतायत में बनते हैं !

  स्त्री एंकर -   साहित्य और संस्कृति में भी रीवा का अपना इतिहास रहा है ! आनंद रघुनन्दन नामक नाटक , रीवा  महराज विश्वनाथ सिंह का लिखा , पहला हिंदी नाटक है ! नाट्य परम्परा में यहां कई कलाकारों का  नाम वरीयता क्रम के साथ लिया जाता है ! हरिकृष्ण  खत्री , योगेश त्रिपाठी ,  अनुराधा चतुर्वेदी ,  हीरेन्द्र सिंह ,  अनवार अहमद , हरीश धवन , आदि नाट्यकार इस नगर की नाट्य विधा के पुरोधा माने जाते हैं ! योगेश त्रिपाठी को , रेडियो नाटक लेखन के लिए देश का प्रथम पुरूस्कार मिल चुका है !  उनके लिखे नाटक , हबीब तनवीर , संजय उपाध्याय , जैसे उत्कृष्ट निर्देशक खेल चुके हैं ! हाल में ही उनका लिखा  नाटक न्यू जर्सी में भी खेला गया है !  हीरेन्द्र सिंह के लिखे नाटक भी लगातार खेले जारहे हैं , वहीं हरीश धवन का नाम नाट्य निर्देशक और  वरिष्ठ कलाकारों में लिया जाता है !
   पुरुष एंकर -   साहित्य के क्षेत्र में भी यह नगर अनूठा है !  बघेली संस्कृति , उत्सव , रीति रिवाज , लोक कला , पर लिखी किताबों के लिए यहां भगवती प्रसाद शुक्ल का नाम आदर से लिया जाता है ! इसके  अलावा , लखनप्रताप सिंह , गोमती प्रसाद विकल , आर्या प्रसाद त्रिपाठी , , चंद्रिका प्रताप द्विवेदी , सेवाराम त्रिपाठी   के लेखन ने  यहाँ की साहित्यिक धारा में अनेकों रंग भरे हैं !   काव्य जगत में यहां के उत्कृष्ट कवियों में गिरजा शंकर शुक्ल , प्रणय , दिनेश कुशवाहा  उमेश मिश्र लखन  जहां रसधार बहा रहे हैं , वहीं बुंदेली  काव्य के प्रणेता , अमोल बटरोही , श्रीनिवास शुक्ल , रामनरेश त्रिपाठी रामलखन केवट , यहां के काव्य गगन पर नक्षत्र की भाँती चमक रहे हैं !  हिंदी कथा लेखन में यह क्षेत्र बहुत अग्रणीय है !  यहां के कथाकारों में , ओमप्रकाश मिश्र , लालजी गौतम , सपना सिंह  विवेक द्विवेदी और सुधीर कमल जैसे लेखक , विभिन्न पात्र पत्रिकाओं में अपना विशिष्ट स्थान बना रहे हैं !
      पत्रिकारिता जगत में यहां के पत्रकार राष्ट्रीय क्षितिज पर छाये हुए हैं ! जयराम शुक्ला , का नाम आज देश की पत्रिकारिता  में अगली पंक्ति में है ! वहीं शशिकांत त्रिवेदी , अजय तिवारी , राकेश मिश्रा , अशोक मिश्रा , यहाँ के उत्कृष्ट पत्रकारों में गिने जाते हैं !

    स्त्री एंकर - बघेलों की राजधानी , रीवा नगर को रीवा की सम्पूर्ण रियासत का नाभि केंद्र  कह सकते हैं ! यह नगर आज , मध्यप्रदेश के कई विकसित शहरों से आगे बढ़ कर , अपना विशिष्ट स्थान बना चुका है !  यहाँ की बीहर नदी में अविरल बहता पानी , बता रहा है , की विकास के मार्ग पर , उत्तरोत्तर प्रगति में इसका कोई सानी नहीं है !  जब  से यहां रेल लाइन आयी है ,यह नगर देश के सभी महानगरों से जुड़ गया है ! आज यहां से भोपाल जाने वाली ट्रेन विंध्यांचल एक्सप्रेस को कई बार , स्वच्छता के उत्कृष्ट पुरूस्कार से नवाजा जा चुका है !  इसलिए , देश के नक़्शे पर अब रीवा नगर , अपरचित नहीं रह गया है !

     पुरुष एंकर -  लेकिन रीवा नगर का अर्थ रीवा रियासत की सम्पूर्ण संस्कृति , और  धरोहर  नहीं कहला सकती  , इसलिए , अगले अंक में हम चलेंगे , रीवा रियासत की वे धरोहरें , संस्कृति को देखने , जो यहां तीन जिलों , सीधी , रीवा , और शहडोल  में फ़ैली हुई है !

--- आलेख सभाजीत   ,


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बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

विंध्य की विरासत
चित्रकूट

 ( मार्ग  पर गेरुआ वस्त्र पहने साधू ,  पोटली बांधे गृहस्थ पुरुष ,  स्त्रियां  चली जा रही हैं ,, मार्ग दुर्गम , घाटी वाला है ,, कैमरा आकाश से नीचे उतरता हुआ दूर से जाते हुए इन समूहों के देखता है ,, उनके पैरों के कट्स , गठरी के कट्स , दिखाते हैं नेपथ्य से आवाज़ आती है --
 अब चित चेत चित्रकूटहिं चलु
    कोपित कलि  ,लोपित मंगल मगु , विल्स बढ़त मोह माया मलु   ,
भूमि  विलोकु  राम पद अंकित , वन विलोकु रघुवर बिहार थलु ,
  शैल संग , भव भंग , हेतु लखु , दलन कपट पाखंड दंत दलु ,,

  तभी उनके गुजरने पर एक  दिशा से एक पुरुष  एंकर आगे आता है )
  पुरुष एंकर -तुलसीदास का यह भजन ,  भजन नहीं , बल्कि एक अनुभूति है ! वह अनुभूति , जिसे एक संत ने आत्म सार की , वह अनुभूति जिसे मुगलों के कटटर शहंशाह , औरंगजेब ने  भी  महसूस की , वह अनुभूति जिसकी चाह में आज ग्रामीण जन अपने घरबार त्याग कर ,  यहां आकर समय व्यतीत करते हैं ,, वह अनुभूति अगर कहीं  उपलब्ध  है तो उस स्थान का  नाम है चित्रकूट !
    महिला एंकर - चित्रकूट ,,! 
जहां   आदिकाल से , प्रकृति वात्सलयमयी  माँ  की तरह , मनुष्य को अमृत बांटने को आतुर है !जहां मानव के उज्ज्वलतम चरित्र की बानगी राम कथाओं के रूप में जन जन में व्याप्त है ! जहां सरल हृदय व पवित्र विचारों की मंदाकिनी  , जन समूहों के रूप में उमड़  कर ,  चित्ताकर्षक  पर्वतों के  बीच , सलिला की तरह समा जाती है !
पुरुष एंकर-
 चित्रकूट 
 जो अनादि काल से विभिन्न सभ्यताओं के मिलन का साक्षी रहा ! जिसने राजनीति को नए आयाम दिए ! जहां सत्ता ने त्याग को नमन किया ! जहां गृहस्थ जीवन के दर्शन को पुण्य दिशा मिली , जहां आत्मिक चिंतन के  , ज्ञान का अविरल शोध हुआ ! वही चित्रकूट !
       विंध्यांचल श्रेणियों की छितराई पर्वतमालाओं  की श्रेणियों के बीच घिरा , भूमि का रमणीक भाग , जिसके चारों और खड़े पर्वत कूट , मानो पहरेदार बन कर इस भूमि भाग की रक्षा कर रहे हैं  , जहां राम ने अपने वनवास के तरह साल  आदिवासियों और वंचितों के मध्य रह कर  व्यतीत किये   !  जिन के शिखर पर बैठ कर , कर्म योगी लक्ष्मण ने , अपने बड़े भाई की रक्षा के दायित्व को एक सिपाही की तरह निभाया ! जहां रघुकुल की एक रानी ने , अपने पति धर्म निबाहने के लिए , सुखों का त्याग करके  पर्ण  कुटी में वास किया !  वही चित्रकूट , आज भारत के उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश के संधि द्वार पर , अवरिल बहती मंदाकिनी के तट  पर उत्कीर्ण , उन पवित्र पृष्ठों को पलटता हुआ दिखता है ,,  जो जन जन के हृदय पृष्ठों पर , आदर्श बन कर अंकित हो चुके हैं !
    चित्रकूट आज आध्यात्म , आस्था , हिन्दूदर्शन , पर्यावरण ,  प्रकृति सौन्दर्य , व पर्यटन का केंद्र बना हुआ है ! यह सामाजिक चिंतन के महर्षि , भारत रत्न  नानाजी देशमुख , के आदर्श ग्राम के स्वप्न  की मूर्ती है ! यह विद्या का गढ़ है ! सेवा का केंद्र है ! आध्यात्म और चिंतन की तपोभूमि है !
 महिला एंकर -

इस तपोभूमि पर पहुँचने के लिए , मध्यप्रदेश के सतना  नगर से एक  उन्नत सड़क  मार्ग उपलब्ध  है  जहां  सतना से लगातार कई बसें दिन भर यहां श्रद्धालुओं को ले कर आती हैं !   इस सड़क मार्ग से , अपने वाहन से   या टेक्सी से , आसानी से चित्रकूट पहुंचा जा सकता है !  दूसरी और , प्रयागराज से झांसी की और जाने वाले रेल मार्ग पर बने , कर्वी चित्रकूट स्टेशन पर उत्तर कर भी यहां आसानी से आया जा सकता है ! उत्तरप्रदेश के नगर , बांदा से , अथवा प्रयागराज से भी एक उन्नत राजमार्ग , इस स्थान तक पहुँचने के लिए उपलब्ध है !

पुरुष एंकर -

 चित्रकूट का तोरणद्वार है , मंदाकिनी नदी पर बना ,रामघाट , जो उत्तर प्रदेश की भू भूमि पर है ! यहां मंदाकिनी नदी अपनी गहन धारा के साथ शांत भाव से बहती है ! रामघाट वह  घाट  है , जहां रामचरित  मानस  के रचियता  , गोस्वामी तुलसी दास जी को राम के दर्शन हुए थे ! तुलसी दास का जन्म बांदा जिले के राजापुर गावं का माना जाता है ! कहते हैं की जन्म के समय से ही इनके माता पिता ने इनका त्याग , किन्ही कारणों से कर दिया था ! इनका लालन पालन संत नरहरिदास के संरक्षण में हुआ ! युवा होने पर , पत्नी पर हुई आसक्ति के कारण , इन्हे पत्नी ने के कटु वचन  सुनने  पड़े !   पत्नी ने कहा , जितना तुम मुझ पर आसक्त हो , उसका एक अंश भी  तुम्हारी अगर राम पर आसक्ति होती , तो तुम्हारा जीवन सुफल हो जाता !  पत्नी के वचनो से व्यथित हो कर इन्होने राम भक्ति का मार्ग अपना लिया ! स्वतन्त्र घूमते हुए इन्होने काशी में विद्यार्जन किया  और राम कथा  को जन भाषा में लिखने का निश्चय किया !

स्त्री एंकर - (  घाट  पर  घूमते हुए विभिन्न जगहों पर )
 वह  काल हिन्दू धर्म के संक्रमण का काल था ! उस समय भारत में मुगलों का शाशन था , और तेजी से धर्म परिवर्तन हो रहा था ! सामाजिक मूल्य , स्वार्थ के आगे तिरोहित हो रहे थे !  आपसी  रिश्ते , वैमनस्य के जाल में फंसते जा रहे थे ! पारिवारिक संबंध , टूट रहे थे ! लोग ज्ञान को धर्म पुस्तकों में बाँध  कर तिजोरियों में सहेज  रहे थे !   नीतियां , अनीति के सामने सर झुका रही थी ! तब युवा तुलसी दास ने राम कथा को , सामाजिक हित में , चारों और फैलाने का निश्चय किया !  लेकिन राम कथा लिखने के लिए , उन्हें जरूरी लगा की पहले रामभक्त हनुमान की शरण में जाया जाए !   हनुमान जी की खोज में वे यहां वहां भटकने लगे , तभी उनके गुरु ने बताया की ,  हनुमान जी , काशी में एक राम कथा के दौरान श्रोता बन कर आते हैं !  वे श्रोताओं के अंत में , एक दीन  हीन  पुरुष बन कर बैठते हैं , तुम वहां जा कर उनके   पैर  पकड़ लो , वे तुम्हे राम के दर्शन करवा देंगे ,,और तब तुम्हारी कृति आसानी से पूर्ण हो जाएगी !
 युवा तुलसी दास ने वैसा ही किया ! हनुमान जी ने उन्हें , चित्रकूट जा कर वास  करने की सलाह दी !  उन्होंने कहा की वहां राम , मंदाकिनी घाट  पर आयेंगें  , तुम्हे आशीष देंगें , उस वक्त मैं भी वहां , शुक वेश में एक पेड़ पर रह कर इंगित करूंगा !
 राम ने चित्रकूट आकर , यहीं रामचरित  मानस  लिखा !  राम लक्ष्मण  , दो बालकों के स्वरूप में रोज  आकर उनसे मिलते रहे , लेकिन तुलसी दास उन्हें पहचान नहीं पाए ! अंत में शुक वेश में हनुमान जी ने उन्हें इंगित किया की जिन बालकों  के मस्तक पर तुम रोज चंदन लगाते हो , वे ही राम और लक्ष्मण हैं !   तुलसी दास जी के   अनुनय पर  तब राम ने उन्हें इसी मंदाकिनी घाट पर  साक्षात दर्शन दिए !

   रामघाट  वह  स्थान है जहां राम ने अपनी पहली पर्ण  कुटीर बनाई थी ! यह वह स्थान है जहां पर इस क्षेत्र के प्रजापति , मत्गयेन्द्र विराजमान हैं !

पुरुष एंकर - ( मत्गयेन्द्र मंदिर  में खड़े हो कर  )
मत्गयेन्द्र  अर्थात भगवान्  शिव  ! उनका विशाल मंदिर आज इस रामघाट पर स्थापित हैं ! मत्गयेन्द्र , अर्थात शिव इस क्षेत्र के प्रजापति थे ! यह स्थान उस समय द्रविणो , तथा आदिवासियों की कार्यस्थली था , जिनके आराध्य शिव ही थे  इसलिए उन्हें यहां का प्रजापति कहा गया ! ऋषियों से मार्गदर्शन ले , जब राम यहां जनजातियों के बीच रमने आये , तो उन्होंने सर्व प्रथम यहां के प्रजापति , शिव का पूजन किया और उनसे इस क्षेत्र में रहने की अनुमति माँगी !  मत्गयेन्द्र मंदिर में आज भी उस उस पूजन की व्याख्या , यहां के पुजारी करते हैं !
    राज वैभव में  पले  , एक निर्वासित राजकुमार को , यहां की जनजाति ने अपने सर आँखों पर बैठाया ! और राम उनके सुख दुःख , उनकी जीवन शैली के बीच ऐसे रमे , की वे यहां के बिना राजमुकुट के उनके हृदय पर राज करने वाले  राजा बन गए ! कहते हैं की राम के अतिरिक्त , सतयुग में राजा नल , द्वापर में पांडवों , ने भी अपना निर्वासन काल यहीं व्यतीत किया !
        कालांतर में , गोस्वामी तुलसी दास के अतिरिक्त , रहीम और कवी भूषण की काव्य साधना स्थली भी यही भूमि रही !
 स्त्री एंकर -( विभिन्न स्थानों पर खड़े हो कर ) 
 मत गयेन्द्र मंदिर के नीचे ही है , वह स्थली जहां राम की पर्ण कुटीर थी ! आज भक्तों ने यहां एक पक्का मंदिर बना दिया है , जो आस्थावानों के लिए तीर्थ स्थल है !  पर्ण  कुटीर स्थल के स्थल के निकट ही है , राम के जीवन यापन के स्मृति चिन्ह - यञवेदी , और राघव प्रयाग ! राघव प्रयाग एक संगम है जहां   तीन   नदियाँ , मंदाकिनी , पयस्वनी और  गायत्री , मिलती हैं !कहते हैं की गायत्री अदृश्य है  व संक्रांति के अवसर पर ही उसकी श्वेत धारा दिखती है ! इससे संगम पर भगवान् राम ने अपने पिता महराज दशरथ का पिंडदान किया था !
  पर्ण  कुटी से थोड़ा हट कर है भारत मंदिर  ! जहां राम को मनाने के लिए , अयोध्या से आयी प्रजा के साथ  भरत  ने   राज सभा  बैठाली थी   ! यह भारत की वह पहली राज सभा थी , जिसने  महलों के अंदर पनपे कुचक्रों  , के विरोध में , प्रजातांत्रिक मूल्यों को वरीयता दी थी ! यह वह सभा थी , जिसमें , एक भाई ने  रोते  हुए , अपने बड़े भाई से मनुहार की थी , की वह वापिस अयोध्या लौट चले ! यह वही सभा थी , जिसमें सार्वजनिक रूप से , स्वार्थों से भटकी रानी कैकेयी ने बिलखते हुए पश्चाताप किया था !
 रामघाट  इसलिए आज , आस्थावानों की आस्था का केंद्र है ,,! यहां आ  कर  लोग उन खोये हुए मूल्यों को तलाशते हैं , जो किसी युग में आदर्श थे !
 रामघाट पर सजी   रंग बिरंगी  नावें , पर्यटकों को , मंदाकिनी नदी के दर्शन करवाती हैं !  घाट  पर लहरों के बीच उतराती यह नौकाएं आज के , काश्मीर के शिकारों की तरह रमणीक लगती हैं ! पर्यटक इस सवार हो कर , रामघाट से अनुसुइया घाट  तक जल मार्ग से यात्रा करते हैं !  रामघाट  वह स्थान है , जहां से मंदाकिनी का छोर पकड़ कर प्रकृति के रमणीय दृश्यों को आत्मसात किया जा   सकता है !
पुरुष एंकर - ( नाव में बैठे हुए नदी में  )

मंदाकिनी के जल मार्ग से ऊपर की और  चलने पर , धीरे धीरे पक्के घाट  विलीन हो जाते हैं और प्रकृति का नैसर्गिक स्वरूप उभरने  लगता है !  मनुष्य निर्मित  कोलाहल , भवनों के आँखों से ओझल होते ही , दूर हो ,   हो जाता है और मंदाकिनी के दोनों तटों पर दूर तक बिखरे बृक्षों की   पंक्तियाँ , पक्षियों का कलरव , मन मोहने लगता है ! दूर मंदाकिनी  के उद्गम छोर पर समाधिस्थ , चित्रित पर्वत कूट अपने प्रतिबिम्ब को मंदाकिनी के जल में निहारते नजर आते हैं ! मनुष्य अपनी बनाई , कांक्रीट की दुनिया से हट कर , प्रकृति की दुनिया में कदम रखते हुए ,  आल्हादित  हो  सुख का अनुभव करने लगता है
 रामघाट से थोड़ा ऊपर चलने पर  एक और वन के तट  ,और   दूसरी और आश्रमों के कृतिम  घाट  निरंतर  गुजरते हुए दीखते हैं  !  इस जल यात्रा में पहले आता है प्रमोद वन ! यह एक  पुराना , राजशाही युग का , कुञ्ज  वन  है  ! यहां पर स्थापित , वृद्धाश्रम , , पौराणिक काल की उस प्रथा का द्योतक है , जब चतुर्थ वय  में व्यक्ति  ,  दुनिया  के  माया मोह , सुख वैभव को  त्याग कर ,ईश्वर आराधना के लिए वानप्रस्थ ग्रहण करता था ! इस स्थान पर , मंदिरों का नव निर्माण किया गया है जो दर्शनीय है !
 यहां मंदाकिनी की धारा फ़ैल गयी है  व उसकी गहराई इतनी कम है की छोटे बच्चे धारा के बीच बैठ कर ही स्नान करते , किलोल करते नज़र आते हैं !
  महिला  एंकर -
 प्रमोदवन से ऊपर आने पर   , मंदाकिनी की गहराई , और गति क्षीण हो जाती है ! यहां स्थित है , जानकी कुंड ! कहते हैं यहां जनकसुता स्नान करती थी ! पूर्व की और जहां आज भी वन सुषमा है , वहीं पश्चिमी तट पर बने आश्रमों के विभिन्न भवन , प्रकृति से  छेड़  छाड़   की गवाही देते नज़र आते हैं   !  जानकी कुंड से थोड़ा ऊपर की और आते ही दिखती है स्फटिक शिला   !
 इस स्फटिक शिला का वर्णन रामचरित  मानस में उपलब्ध है  जहां पर भगवान् राम ने , देवी सीता का स्वयं श्रृंगार ,किया  और जहां पर विचलित मति वाले , इंद्र  सुत  , जयंत ने  देवी सीता से अभद्रता करने का प्रयास किया ! यह शिला साक्षी है उस घटना की , जिसमें भगवान् राम ने , नारी से अभद्रता करने वाले , इंद्रपुत्र को बलशाली और राजपुरुष के मद में चूर होने के कारण , किये गए अभद्रता का  दंड  , उसके एक नेत्र को फोड़ कर दिया ! यह एक ऐतिहासिक सीख थी , जिसमें कुदृष्टि का दंड , नेत्र हीनता ठहराई गयी !
इस स्थल से ऊपर है , मंदाकिनी का उद्गम छोर , ! स्थिर चित्त , वृद्ध जाताओं युक्त , ऊंचाइयों को छूता  मंद गिरि पर्वत , और उससे प्रकट होती मंदाकिनी ,  वह प्राकृतिक  स्थल है  , जहां आकर मनुष्य स्वयं को भूल  कर प्रकृतिस्थ हो जाता   है  ! इसी स्थान पर था , महर्षि अत्रि और सती अनुसुइया का आश्रम , जहां देवी अनुसुइया ने , देवी सीता को गृहस्थ जीवन के मूल मंत्र की दीक्षा दी थी !  यहां के दर्शन करके , स्त्रियां खुद को परम् सौभाग्यशाली मानती हैं ! वे सती अनुसुइया से अपने  सफल गृहस्थ जीवन  के निर्वाह की  कामना करती हैं !
 पुरुष एंकर- 
 यहां से जो पर्वत श्रेणियों का  क्रम शुरू  होता है वह उत्तर दिशा की और दूर तक फैला दिखता है ! यही विंध्याचल की श्रेणियां हैं , जिन पर एक से एक नयनाभिराम दृश्य युक्त , रमणीक स्थल हैं ! इसी पर्वत श्रेणियों के मध्य आता है , गुप्त गोदवरी का , आकर्षक स्थल !  चित्रकूट  की और , दो गुफाओं के अंदर बह रही है गुप्त  गोदावरी ! यहां क्रमशः तीन गुफाएं हैं ,  जिनके अंदर निरंतर जल प्रवाहित होता रहता है ! अंदर के स्थान बहुत रोमांचक हैं ! कहीं कहीं कमर बराबर पानी है ,  कहीं पर सुखी जमीन है ! कहते हैं , यह स्थान राम  के मंत्रणा  कक्ष थे , जहां वे विभिन्न स्थानों से आये ऋषियों के साथ , असुर संहारने के लिए  चर्चाएं करते थे ! आज यहां बहुत से पर्यटक , प्रकृति निर्मित इन अनोखी गुफाओं को देखने आते हैं !
 स्त्री एंकर -  ,
 चित्रकूट का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ  स्थल है  कामद गिरी !लगभग पांच किलोमीटर के व्यास में फैला , करीब तीन सौ  फ़ीट ऊंचा  कामद  गिरी अंडा कार है ! पर्वत का ऊपरी भाग चौरस है ! पर्वत पर आच्छादित गहन वन , पर्वत की शोभा दूनी कर देते हैं !  कामदगिरि , कामनाओं को पूर्ण करने वाला गिरी है ! इस गिरी पर राम ने निरंतर कई वर्षों तक निवास किया !  संभावना है की विभिन्न ऋतुओं में , प्राकृतिक अवरोधों के कारण , राम चित्रकूट के विभिन्न भागों में समय समय पर निवास करते रहे हों ! इसलिए सम्पूर्ण चित्रकूट ही एक पवित्र स्थल माना गया है !
 मान्यता है की इस गिरी की परिक्रमा करने पर आस्थावानों की कामनाएं इस हद तक यह गिरी पूर्ण कर देता है की फिर कोई कामना बाकी नहीं बचती ! यह हिन्दू दर्शन का मंत्र है ! कामनाएं मनुष्यों में पाप वृत्ति की जनक होती हैं , ये अगर पूर्ण हो कर   शेष बाकी ना बचें , तो मोक्ष का द्वार खुल जाता है ! कामद  गिरी इस मार्ग का अधिष्ठाता है !
   पुरुष एंकर -नंगे  पाँव ,पांच किलोमीटर की परिक्रमा  करना , एक कठिन कार्य है  किन्तु आस्थावानों के लिए यह कोई कठिन नहीं ! सं १६८८ के बाद ,  बुंदेला राजा छत्रसाल ने यह क्षेत्र मुगलों से मुक्त करवाया था !  रानी चंद्र कुंवरि ने १७५२ में इस गिरी के चारों और पक्का  मार्ग बनवाया !बाद में राजा अमानसिंघ के काल में इस गिरी के चारों और मठों तथा बावड़ियों का निर्माण हुआ ! कालांतर में कई राजवंशों द्वारा इस गिरी के चारों और अन्य कई बावड़ियां  और धर्मशालाएं बनाई गयीं ! धीरे धीरे संतों और महंतों के मठ और अखाड़े भी यहां बन गए ! आज , परिक्रमा के दौरान बहुत से पुराने अवशेष  देखने को मिलते हैं !
   स्त्री एंकर -परिक्रमा के क्रम में एक स्थान मिलता है जिसे भरत मिलाप स्थल कहा जाता है ! जनश्रुति है की यह वह स्थल है , जहां , राम से  भरत  का  प्रथम मिलन हुआ था  जब भरत उन्हें मनाने चित्रकूट पहुंचे ! इस मिट्टी में , दो भाइयों के परम स्नेह की  अविरल  अश्रु धार समाई है , जो इस माटी को माथे से लगाने योग्य बनाती है ! यह वह स्थल है , जहां समय भी दो भाइयों के पवित्र मिलन को देख ठगा सा खड़ा रह गया था !
 कामदगिरि से थोड़ी दूर , स्थित है भरत कूप ! यह वह स्थान है ,जहां  भरत  ने रात्रि विश्राम किया , और राम अभिषेक के लिए एकत्रित किया सात नदियों का जल , एक कूप में इस लिए दाल दिया क्यूंकि राम ने अयोध्या लौटना स्वीकार नहीं किया ! आज इस स्थल पर एक भरत मंदिर है और , एक पक्का कूप , जिसका जल बहुत मीठा है ! लोग यहां आकर कूप से निकले जल को मस्तक से  लगाते  हैं और भरत मंदिर में भरत के दर्शन करते हैं !
    पुरुष एंकर - जहां राम हों , वहां उनके अनुयायी हनुमान का निवास ना हो , यह सम्भव नहीं ! चित्रकूट के सबसे ऊँचे गिरी पर बिराजे हनुमान , जैसे आज इस भूमि भाग की निरंतर पहरेदारी कर रहे हैं ! इस शिखर पर पहुँचने के लिए ३६० सीढ़ियां चढ़ाना पड़ता है  ! शिखर पर पहुँचने के बाद पूरा चित्रकूट एक  नज़र में दिखाई देता है !  इस कूट पर विराजे हनुमान की मूर्ती प्राकृतिक शिलाओं में अंकित है ! इस शिखर पर एक जल धार अविरल बहती है , इसलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं ! कथाओं के अनुसार , लंका में दग्ध हुई पूंछ की जलन मिटाने जब  हनुमान जी ने राम से विनय की तो , राम ने उन्हें इस स्थान पर निवास करने को कहा , जहां उन्हें बहती हुई जलधार से  शीतलता अनुभव हो ! हनुमान धारा इसलिए चित्रकूट का अभिन्न अंग है , जो हनुमान जी का विश्राम स्थल है !
  स्त्री एंकर-आज का चित्रकूट सबके लिए है ! उनके लिए भी जो यहां आदिकालीन पवित्रधाम मान कर कामना पूर्ती के लिए आते हैं और उनके लिए भी जो सेवाभाव से यहां नए प्रतिमान गढ़ने अपना निवास बनाते हैं !  आज के युग के महर्षियों में नानाजी देशमुख का नाम श्रद्धा से लिया जाता है !  , वनवासियों के बीच रमे राम  ने जो वनवासियों की सहायता ,  सुरक्षा ,  सेवा का  संकल्प लिया था , उस परम्परा का निर्वहन आज यहां के कई सामाजिक और धार्मिक संस्थान कर रहे हैं !   ,  ,

   पुरुष एंकर -  महाराष्ट्र से आये ,  नाना जी  देशमुख यहां के जन जीवन के लिए देवड्डोत बन कर उभरे ! दीन  दयाल शोध संस्थान के अधिष्ठाता ने यहाँ  देश का प्रथम ग्रामीण विश्विद्यालय स्थापित किया !  चित्र कूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के नाम से बनी इस यूनिवर्सिटी में  आज विज्ञान , कृषि , इंजीनियरिंग तकनीक , ग्राम व्यवस्था , और शिक्षा के विषय पर स्नातक हो कर , कई युवा देश के विभिन्न जगहों पर समाज की सेवा कर रहे हैं ! नानाजी ने निशुल्क शिक्षा , समाज के उत्थान , कृषि स्वावलंबन  , एवं शुद्ध पेयजल के मुद्दों पर , इस क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है !
     यहां नेत्र चिकित्सा का , अत्यंत आधुनिक अस्पताल है , जहां नेत्रों  का इलाज होता है !  इस चिकित्सालय में दूर दूर से लोग आते हैं !  देश की अत्यंत विश्वशनीय  चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद पर ना सिर्फ यहां शोध हो रहे हैं , बल्कि कई  अस्पताल भी हैं , जहां असाध्य रोगों का शर्तिया इलाज हो रहा है ! योग के यहां कई केंद्र है  जो स्वस्थ जीवन जीने की कला प्रचारित कर रहे हैं !  यहां वृद्धाश्रम भी है , और नेत्रहीनों के आश्रम भी  जो विभिन्न संस्थाएं चला रही हैं !

 यद्यपि चित्रकूट पर्यावरण की दृष्टि से स्वच्छ है , किन्तु धीरे धीरे , प्रकृति से छेड़छाड़ होने के कारण , इसका , प्राकृतिक स्वरूप बदल  रहा है ! आज यह राम के वनवासी जीवन का चित्रकूट ना हो  कर  , बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं , सुविधाओं , मनोरंजन , और धार्मिक अखाड़ों की भूमि बनता जा रहा है !  विंध्याचल की पर्वत श्रेणियों से छन कर निकली मंदाकिनी भी , अब प्रदूषण के थपेड़े झेलने लगी है !

   राम तो रमने वाले व्यक्ति हैं ! उन्हें धार्मिक मठों में , आश्रमों में , राज प्रासादों में , बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं में ढूंढना  मुश्किल है  क्यूंकि वे त्याग की मूर्ती हैं , ! अयोध्या का वैभव त्याग कर जब उन्होंने वनवासियों का साथ दिया , तो वे अब विकास की चकाचौंध  से आलोकित चित्रकूट में कब तक रामेंगें यह चिंतन का विषय है !  राम तो मिलेंगें , उन्ही ग्रामीणों के बीच में , उन वनवासियों के बीच में , उन वंचितों के बीच में  जहां उन्हें शबरी के बेर खाने को मिलेंगें !
   
         फिर भी अगर शुद्ध ह्रदय से उन्हें पुकारेंगे तो वे यहां चित्रकूट में भी , दिखाई दे जाएंगे , अपने अनुज , अपनी भार्या , के साथ , विचरण करते हुए ! जरूरत सिर्फ दृष्टि की है ,, और अगर उस दृष्टि के साथ आप चित्रकूट आयेंगें , तो एक बार ना सही , किन्तु बार बार आने पर , एक दिन वे मिल ही जाएंगे !  राम ने कहा था --
 " निर्मल म,न जन सोइ मोहे पावा , मोहि कपट छल छिद्र ना भावा !! "
   तो आइये चित्रकूट ,, क्यूंकि जब चित चेतेगा , मन शुद्ध होगा , तो राम आपके ह्रदय में विराज जाएंगे !

  --- आलेख सभाजीत
   

सोमवार, 18 नवंबर 2019



अयोध्या के राजकुमार , युग पुरुष राम के परिवेश में ढलने वाले तपस्वी राम की तपस्या का गवाह है ,,चित्रकूट !  मत्गयेन्द्र  मंदिर से लेकर , मंदाकिनी के विभिन्न घाटों  पर , कामद गिरी के  शिखर पर , गुप्त गोदावरी की गहन कंदराओं में , गृहस्थ जीवन के आदर्श , सती  अनुसुइया के पवित्र आश्रम पर , भार्या सीता के के साथ , रमणीक स्फटिक शिला पर , एकांत वास करते राम के पद चिन्ह , यहां आने वाले हर रामभक्त के लिए , मनोकामनाओं के पूरक हैं ! किन्तु राम किसी विशेष भूमिभाग , किसी विशेष विचारधारा के परिचायक नहीं है ! वे तो गरीब केवट के हठ  को सहजता से  स्वीकारने वाले , आदिवासी निषाद राज के अभिन्न मित्र , ज्ञानी तपस्वियों के आदर्श , शबरी के झूठे बेर  प्रेम पूर्वक खाने वाले , जलचर , नभचर ,  , गरुड़ , काकभुशण्ड , जटायु , सम्पत , के आराध्य , किष्किंधा के वानरों के ह्रिदय सम्राट , रावण और विशाल सागर के अभिमान का हनन करने वाले , वे महापुरुष हैं , जिनकी कीर्ति , भारत में ही नहीं , विश्व के अनेक देशों में आज भी सूर्य की तरह  दमक रही है !
     राम कथाएं , नेपाल , श्रीलंका , और वर्मा देश की प्राणवायु हैं !येडागास्कर द्वीप से ले कर , आस्ट्रेलिया तक , राम की यश पताका आज भी फहरा रही हैं !मलेशिया , थाईलैंड , कम्बोडिया , जावा , सुमात्रा , बाली द्वीप , में राम के जीवन प्रसंग आज भी जन जन  में चर्चित हैं !  वहां  के भू भाग में , राम के युग की , आर्य संस्कृति के अवशेष आज भी विदवमान हैं !यहाँ तक की , फिलीपींस , चीन , जापान , और प्राचीन अमेरिका में भी राम की छाप आज भी देखने को मिलती है ! पेरू के राजा खुद को सूर्यवंशी ही नहीं , कौशल्या सुत  राम के वंशज मानते हैं !
    विश्वव्यापी  राम के इस विराट  स्वरूप को  लोगों के ह्रदय में स्थापित करने के लिए , आधुनिक महर्षि , नानाजी देशमुख ने चित्रकूट की भूमि सर्वथा उपयुक्त माना ! चित्रकूट आने वाले सभी राम भक्तों , साधकों , पर्यटकों , और भारतीय दर्शन के शोधकर्ताओं को राम के उस विश्व्यापी विराट छवि के दर्शन होते हैं ,  , नानाजी देश मुख द्वारा स्थापित किये गए रामदर्शन मंदिर में ! इस भव्य स्थान पर , राम से साक्षात्कार होता है , दीर्धाओं में उत्कीर्ण , राम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के चित्रण से , जो बड़े यत्न से , विभिन्न देशों की , विभिन्न  सांस्कृतिक  शैलियों में उत्कीर्ण की गयी हैं ! अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्रयेष्ठि यज्ञ से ले कर , वशिष्ठ और विश्वामित्र के सान्निध्य में , धनुर्धर राम की श्रष्टि के चित्रों के साथ , सीता स्वयंबर , राम वनवास ,केवट संवाद ,निषाद मित्रता , सीताहरण , जतायुवध , हनुमान मिलन , बाली वध , अशोकवाटिका , रामरावण युद्ध और राम के राजतिलक की गाथा  विशिष्ट शैलियों , और उत्कृष्ट कला के साथ उकेरी गईं है , जो विश्व के हर देश में बसे राम से से साक्षात करवाती है , और चित्रकूट पर्यटन पर आया हर व्यक्ति , इस वीथिका से निकल कर ,  राम से एकात्म हो कर , राम मय हो जाता है ।
     
         राम यदि चित्रकूट न आये होते तो वे प्रकृति की उस अलौकिक शक्ति , उसकी ऊर्जा , और अमोघ औषधियों से परिचित न हुए होते , जो प्राकृतिक कन्द मूल , वनस्पतियों , और प्रकृति के नियमों में समाहित हैं । इसी प्राकृतिक शक्तियों को संचित कर , वे उस बल के स्वामी बने , जिससे निशाचरों का विनाश हुआ , और नाभि कुंड में अमृत सँजोये , रावण का विनाश  भी सहजता पूर्वक हो सका । भारत के उस प्राकृतिक ज्ञान , ऊर्जा , औषधियों की जनक , आयुर्वेद की उस महाशक्ति की, विभिन्न जड़ी बूटियों को पुनः युवाओं से जोड़ने , उन्हें शिक्षित करने हेतु , औषधियों की खेती का कार्य आज , नानाजी देशमुख के प्रयत्नों से साकार हो गया है । आज के चित्रकूट में आधुनिक शिक्षा के साथ , विलुप्त होते पुरातन ज्ञान विज्ञान को भी संरक्षित करने का काम , नानाजी देशमुख द्वारा स्थापित संस्था द्वारा अबाध गति से किया जा रहा है ।

       आज का चित्रकूट , सिर्फ आस्था , से शीश नवाने का तीर्थस्थल  ही नहीं है , बल्कि भारतीय परंपराओं , सेवा , शिक्षा ,और संस्कृति का अभिनव केंद्र है । कहना न होगा कि आस्था का चित्रकूट अगर राम पर केंद्रित है तो सांस्कृतिक ज्ञान का चित्रकूट , युगपुरुष नानाजी देशमुख पर , जिन्होंने तत्व सार से ,  राम  को  चित्रकूट के जनजीवन से संजो दिया ।

 --- सभाजीत





   
   

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

विन्ध्य की विरासत

 मैहर नगरी  शारदाधाम

नेपथ्य गीत -,, स्त्री स्वर में ,, , ' कैसे के दर्शन पाऊं री , माई तोरी संकरी किवड़िया ' 


  एंकर - सतना से ४० कि ० मी ० दूर , ,    , हावड़ा- मुंबई रेलवे मार्ग  पर बसा मैहर नगर , आज सम्पूर्ण भारत का पवित्र  तीर्थ स्थल  है !  हजारों   श्रद्धालु भक्तों का मेला इस नगर के प्रांगण में दिन रात  लगा रहता है ! क्यों ना हो ,,? ,,विंध्य श्रेणी के  त्रिकूट पर्वत पर विराजी ,   , विवेक और वाणी की अधिस्ठात्री , सिद्धि  दात्री  माई शारदा  का धाम  तो  इसी नगरी में है !  विश्व में संगीत  का डंका बजाने वाले , सितार के  जादूगर  , और सरोद वाद्य के अद्वितीय साधक , रविशंकर और अलीअकबर खान साहब का  गुरुकुल  भी तो  इसी नगरी में   है !  आध्यात्म  , और  भक्ति मार्ग  के स्वामी ,  सिद्ध संत नीलकंठ महराज की तपोभूमि  भी  तो  यही नगर मैहर  है !
    , मैहर का अर्थ है ,," माई हार "  यानी मैया का आँगन ! माई के आँगन में आया हर व्यक्ति ,    खुद को बेटे की तरह  ,   माँ  के सुरक्षित आँचल में निर्भय महसूस करता है ! उसे विश्वाश होता है की  माँ उसके  सब  दुःख दर्द दूर करेंगी , हर कष्ट का निवारण करेंगी , और वह  माँ  के दर्शन करके ,  एक नयी ऊर्जा के साथ ,  मन में शान्ति धारण कर यहां से  वापिस अपने घर लौटता है ! माँ  की ममता होती ही ऐसी है ,, की  बिना हिचक , वह अपनी संतान को वह सब देती है ,  जो उनसे मनुहार करके मांगते हैं !

  ! संकल्प की लाल ध्वजा आसमान में फहराते हुए , मीलों दूर से टोली बना कर ,  भक्ति  गीत गाते हुए , ग्रामवासी ,  माँ के आँगन में पहुँचते हैं  खेतों में बोई फसल के प्रतीक चिन्ह जवारों  के साथ  , की हे माँ ,,हमारा कृषि धन तुम्हें अर्पित है ,, तुम हमारे घर , परिवार , और कृषि धन की रक्षा करना !

     कई लोग इस स्थान को शक्तिपीठ  मानते  हैं !यहां विभिन्न  वेशभूषाओं में तांत्रिक , और साधक भी पहुँचते हैं ,  ,  अपने तप , और अपनी साधना   का फल पाने के लिए !  ,
 

  ( रेलवे स्टेशन )
        प्रतिवर्ष श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देख कर , रेलवे विभाग ने इस स्टेशन को , प्रतीक्षालयों  को सुविधायुक्त  और आकर्षक बना दिया है ! स्टेशन पर , ट्रेनों के रुकने हेतु , सर्वसुविधायुक्त , ३  लम्बे प्लेटफार्म  बन चुके हैं ! स्टेशन पर खान पान की सुविधा के साथ , जल वितरण की समुचित व्यवस्था है ! स्टेशन पर  इस नगरी की महत्ता का विवरण भी अंकित किया गया है ,,,जिसमें इसे संगीत महर्षि , उस्ताद अलाउद्दीन खान की नगरी के रूप में भी उल्लेखित किया गया है ! स्टेशन से बाहर निकलते ही , ऑटो रिक्शा , यात्रियों का इंतज़ार करते खड़े दीखते हैं ! ये मंदिर तक जाने का आधुनिक साधन हैं ! कुछ वर्षों पूर्व  , मंदिर जाने के लिए तांगों  और साधारण  रिक्शाओं का भी प्रचलन था किन्तु समय के परिवर्तन ने इन्हे विलुप्त कर दिया !
      (   घंटाघर चौक )

  मैहर की शारदा देवी मंदिर की और अग्रसर होते हुए , मार्ग में , मैहर बस्ती  के भी दर्शन होते हैं ! चहल पहल से भरपूर बस्ती ,  अपनी धार्मिक आस्थाओं के साथ साथ अपनी जीवन्तता का भी परिचय देती है !  मार्ग में पड़ने वाले कुछ पुराने मंदिरों को पार कर , मैहर के उस चौराहे से गुजरते हैं ,  जो घंटाघर चौक कहलाता है ! इस चौराहे पर ही मैहर का मुख्य बाज़ार है ! यहीं  एक संगीत महाविद्यालय भवन है , जिसमें  उस्ताद अलाउद्दीन खां  के द्वारा स्थापित मैहर बेंड का वादन हर शाम होता है !  चौराहे से देवी मंदिर की और आगे बढ़ने पर , मिलता है , विशाल तालाब विष्णु सागर ! गर्मियों में यह प्रायः सूखा रहता है , किन्तु बरसात में इसका जल सड़क के किनारों को छूने लगता है ! त्रिकूट पर्वत पर स्थापित मंदिर की आभा यहीं से स्पष्ट दृष्टिगत होने लगती है , और हर यात्री के पग , उल्लासित हो क्र मंदिर निहारते हुए , तेजी से उठने लगते हैं !
      

   ( बीएस स्टेण्ड )

आगे आता है , मैहर का सर्वसुविधायुक्त , बस स्टेण्ड ! सड़क मार्ग से आने वाले यात्रिओं  की बसें इस स्थान तक आ कर यात्रिओं को उतारती हैं !  बसों से उतरे हुए , यात्रियों के झुण्ड भी , माता के दर्शन के लिए , अपनी पग यात्रा प्रारम्भ करते हैं !  साधन संपन्न यात्री , यहां खड़े , ऑटो रिक्शाओं का सहारा ले लेते हैं ,, और मंदिर की और अग्रसर हो जाते हैं !
    किसी भी साधन से आये , किसी भी दिशा से आये , किसी भी स्थिति से आये , इस नगरी में , माता के दर्शन हेतु आया हर व्यक्ति , एक श्रद्धालु ही होता है ! माता के  दर्शन हेतु  आया , थका हारा , उसका एक पुत्र ! जिसे अपनी माँ के दर्शनों की चाह है , और माँ  ने जिसे अपने धाम बुलाया है !

       लगभग  १०० मीटर ऊँचे , उत्तंग शिखर पर बिराजी शारदा , आदिशक्ति का  सार्व भौम  स्वरूप हैं , जो मनुष्य की जिह्वा में वास करती है ! यह आदि शक्ति , जन्म से ले कर मृत्यु तक , सम्पूर्ण  जीवों  के विवेक और बुद्धि की स्वामिनी है ! ज्ञान के प्रतीक चिन्ह , कमल , शंख ,  पोथी  , और माला  , उनके कर  कमलों  में विदवमान है ! ज्ञान के अनुयायी भक्तों की रक्षा का भार , वे स्वयं उठाती हैं !  उनके भक्तों को किसी  अस्त्र  ,  शस्त्र  युद्ध कौशल , शारीरिक बल की जरूरत नहीं ! संकट के क्षणों में , अपने असहाय भक्त  की रक्षा , वे उसे बुद्धि  प्रदान करके करती हैं !
        , शारदा मंदिर के  प्रांगण में प्रवेश करते ही मन आल्हादित हो जाता है ! मंदिर के नीचे फैले क्षेत्र में ,  ध्वजा पताकाओं से  सजा  ,  छोटा सा बाजार , स्थानीय मेले का आनंद देता है !  माँ  को प्रसाद चढ़ावे  में , नारियल ,  इलायची दाने , चुनरी , और फूल  मालाएं स्वीकार हैं ! यह सहज  चढ़ावा है , जो हर व्यक्ति की आर्थिक सीमाओं के अंदर है ! मंदिर और मंदिर के  पूरे  परिसर की व्यवस्था की बागडोर आज स्थानीय प्रशाशन के हाथों है ! ,इसलिए , नवरात्रि की संभावित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए , परिसर से बहुत पहले से ही , छावं युक्त मार्ग विभाजन , इस तरह किया गया है , की श्रद्धालु गण कतार   में चल कर , निर्विघ्न रूप से मंदिर तक पहुँच सकें ! मंदिर के नीचे बनी दुकानों में , हाथ  पावं  धोने  , नहाने की समुचित व्यवस्था है ! ! मध्यमवर्गीय सम्पन्न श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए , यहां स्थानीय औद्योगिक संस्थानों   ने  धर्मशालाएं बना दी हैं  जहां लोग ठहर भी सकते हैं !
      - प्रसाद हाँथ में लिए , यात्री नंगे  पावँ  , मंदिर की प्रथम   सीढ़ी   पर बने , विशाल  प्रवेश द्वार पर पहुँचते हैं , जहां द्वारपाल के रूप में स्थापित हैं ,,भैरव देव ! जय  माँ  शारदे के जय घोष के साथ , ललाट पर टीका लगवा ,  माता का नाम ले  कर भक्त  शुरू करते हैं ११५६  सीढ़ियों की  छायादार  चढ़ाई ! पर्वत  शिखर पर पहुँचने के लिए किसी जमाने में मात्र ५६५ बिना छाया दार ,  सीढ़ियां ही थी , जो तीन चरणों  की दुर्गम , यात्रा को बहुत श्रमदायक बना देती थी !  लेकिन आज , पर्वत शिखर पर पहुँचने के लिए , यात्रा बहुत सुगम हो गयी है ! मंदिर के निकट से , ऊपर शिखर तक पहुँचने के लिए आज एक  आधुनिक  रोप  वे उपलब्ध है , जिसमें निर्धारित किराया दे कर ,  सरलता पूर्वक ऊपर पहुंचा  जा सकता  है ! मंदिर के चारों और घूम कर , ऊपर शिखर तक जाने वाली , एक सड़क मार्ग भी है , जिसके माध्यम से वाहन सहित , पर्वत के तीसरी चरण तक आसानी से पहुंचा जा सकता है !

      बलुवा पर्वत के क्षरण की आशंकाओं को देखते हुए , अब पूरी सतर्कता बरती जा रही है , इसलिए नारियल चढाने का काम अब नीचे के प्रवेश द्वार पर ही सम्पन्न कर दिया जाता है ! अपने बालक की मंगल कामना के साथ , मुंडन संस्कार करवाने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी , अब मंदिर के नीचे ही , एक स्थान नियत कर दिया गया है !  यहां , नाइयों की टोलियां , अपने आसान  बिछाये  ,   बढ़ावे के गीतों के मध्य , रट सुबकते बच्चों का मुंडन करते है , जिनकी फीस स्थानीय प्रशाशन ने नियत कर दी है !
       जितनी भक्ति , जितना  परिश्रम , , उतना ही फल , की भावना  से  ओत  प्रोत अधिकतर श्रद्धालु , मंदिर पहुँचने के लिए ,  सीढ़ी  मार्ग ही , चुनते हैं !  प्रारम्भ में जोश देखते ही बनता है , लेकिन धीरे धीरे उन्हें मालुम हो जाता है की , माँ  के दर्शन आसान नहीं , जब स्वेद कण उनके मुंह पर झलकने लगते हैं ! ऊपर की और नजर गड़ाए , मान से दर्शनों की मनुहार करते , वृद्ध , अपाहिज , भी हिम्मत नहीं हारते और एक एक  सीढ़ी चढ़ते हुए , अंत में पहुँच ही जाते हैं मंदिर के द्वार पर !
         सीढी और सड़क मार्ग से पहुंचे यात्री जब मंदिर के प्रवेशद्वार पर पहुँचते हैं , तो उन्हें वहां बैठा मिलता है एक नफरी ! नगाड़े की ध्वनि करता हुआ , वह सबकी मनोकामनाओं की पूर्ती की मंगल कामना करता है ! अंदर एक छोटा सा प्रांगण है , जिसमें , हर सुविधाओं से पहुंचे श्रद्धालु , एक सार हो कर कतार  बद्ध  हो क्र आगे बनी , संगमरमर की सीढियों पर चढ़ कर  माँ  के समक्ष जा खड़े होते हैं ! माँ  की झलक पाते ही हर यात्री , अपने  श्रम  और थकान को भूल कर , उन्हें एकटक अपलक निहारने लगता है ! आल्हादित मन में एक ही भाव उत्पन्न होता है ,,'माँ ,,, मेरा कुछ नहीं , जो कुछ दिया वह तुम्हारा ही है ! ! माता के सामने माथा टेक  कर वह अपनी मनोव्यथा , मनोकामना व्यक्त करता है और साथ लाये नैवेद्य को भक्तिभाव के साथ समर्पित कर देता है ! एक क्षण के लिए , शक्ति और भक्ति एकसार हो उठती है ! चरणामृत ग्रहण कर , माथे पर टीका लगवा कर , प्रसाद ग्रहण कर , प्रफुल्लित मन से लोग आगे बढ़ जाते हैं , कतार का एक अंग बन कर !
   कभी कभी श्रद्धालुओं को माँ  की  आरती में  भी समंलित होने का अवसर मिल जाता है  जो दिन में तीन समय होती है !  प्रातः ,  दोपहर ,  और सांध्या की आरती दर्शनीय है ! जिनमे  आरती का सामूहिक गीत , और अग्नि की लौ , एक ऐसे वातावरण का सृजन करती है , जो अलौकिक होता है !

   आगे  , नरसिंघ अवतार की मूर्ती विराजमान है और बगल में है संकटमोचक हनुमान !  नरसिंघ अवतार की मूर्ती  विष्णु के अवतार की द्योतक है !  किन्तु इस अवतार का स्वरूप अनोखा है ! हाथ में कोई  अस्त्र  शस्त्र  नहीं , ना मनुष्य है ना पशु ,किन्तु हिरणाकश्यप जैसे वरदानी असुर की मृत्यु का कारक  है !  यह स्वरूप  हिरणाकश्यप को मिले उन वरदानी कवच का बौद्धिक तोड़ है , जिसके बिना , उसका अंत सम्भव ही नहीं था ! उधर हनुमान हैं , जो   विष्णु की  सहायतार्थ शिव द्वारा  लिया गया अवतार  कहे गए हैं ! विद्या    वारिधि  , बुद्धि विधाता , हनुमान के लिए ज्ञान और शक्ति एक ही स्वरूप में  निहित है !  देवी परिसर में इन दोनों अवतार स्वरूपों का आध्यात्मिक महत्त्व है ,,इसलिए , देवी दर्शन के बाद , श्रद्धालु ,इन्हे सर नवाते हैं !
  मंदिर के पृष्ठ भाग में , माँ को याद दिलाते रहने के लिए , हत्थे लगाने का रिवाज है ! मंदिर के पीछे  वाले  शिखर प्रांगण में आ कर लोग संतोष अनुभव करते हैं की उनकी देवी दर्शन की साध पूरी  हुई ! प्रांगण में लगे वट वृक्ष को महिलायें धागा बाँध कर मनौती करती हैं !  माता के मंदिर परिसर  का  कण कण साध पूरी करने का साधन  है ! यहां घुमन्तु फोटोग्राफर  , मंदिर यात्रा की यादगारों को  फोटो में ढाल कर तुरंत पकड़ा देते हैं ,,, सदैव के लिए सहेज कर रखने के लिए !
     ,शिखर से नीचे झाँकने पर , नीचे बसी दुनिया  और चलते फिरते लोग , खिलौनों की तरह प्रतीत होते हैं ! हिन्दू धर्म का यही तत्व सार है ,,,जब आप ईश्वर के निकट होते हैं तो शेष दुनिया आपको बौनी दिखती है ! शिखर से नीचे उतरते हुए यात्री धीरे धीरे  पुनः  उसी  मायाजाल में प्रवेश करने लगते हैं , जिसे छोड़ कर , वे ऊपर माँ के दर्शन हेतु गए थे ! सीढ़ियों के दोनों और बैठे याचक , बहुरूपिये , मदारी , संपेरे , उन्हें नीचे की दुनिया से  जोड़ने  का माध्यम बनते हैं !नीचे बाज़ार है , माँ के चित्रों , मूर्तियों , अंगूठियों , घणो से सजी धजी दुकाने , भौतिक धरातल पर फिर ले आती हैं ! स्त्रियां अपने सुहाग रक्षा का सिंदूर खरीदती है , तो बच्चे खिलौने , और शर्म से निवृत हुए पुरुष क्षुधा शांत करने के लिए रेसुरेन्ट तलाशते हैं !
    माता के दर्शन , वर्षों के पाप धो देती है ! धरातल पर आकर भले ही मनुष्य फिर से मायाजाल में फंस जाता है , किन्तु माता उसे सदैव सचेत करती रहती है ! यही मनुष्य का जीवन क्रम है ,, अनवरत , निरंतर , !यही जीवन चक्र है ,,! यही हिन्दू दर्शन है !
   
 (   आल्हा का अखाड़ा )

" माता के भक्तों में , महोबे के शूरवीर , और आध्यात्मिक साधक , ' आल्हा ' का नाम यहां बहुत चर्चित है ! मंदिर के पीछे , एक स्थान ' आल्हा के अखाड़े  " के नाम से विख्यात है ! किंवदंती है की आल्हा शारदा के परम भक्त थे , और उन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त  था ! वे नियमित रूप से इस मंदिर में आते थे ,, और माता को पुष्प चढ़ाते थे ! वे चंदेल शाशक परमाल के दरबार के योद्धा थे , और जब १२वीं सदी में , दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान ने चन्देलों को हराया , और आल्हा के  छोटे भाई उदल  बलिदान हो गए , तो  आल्हा जंगलों में चले गए ! आज भी  एक पुष्प , ब्रम्ह मुहूर्त बेला में , मंदिर के पट खोलने पर , माता के चरणों में चढ़ा हुआ दिखता है ,  कहते हैं वह आल्हा द्वारा चढ़ाया जाता है !
   

  (  रामपुर मंदिर )

   त्रिकूट पर्वत के  पीछे , पर्वत श्रंखला का जो किला नुमा एक घेरा दिखता है ,, उस पर स्थापित है एक और सिद्ध पुरुष , नीलकंठ महराज  का तपस्या स्थल !  नीलकंठ महराज पर माता की कृपा थी , और उन्हें कई सिद्धियां प्राप्त थीं ! कहते हैं की जो एक बार महराज के मुख से निकल जाए , वह  होनी में   बदल  जाता  था ! उनके इस स्थान पर आज एक  प्राचीन रामपुर  मंदिर है , जिसमें राधाकृष्ण की भव्य मूर्तियां स्थापित है !
     
     (   ओइला  आश्रम )
  नीलकंठ महराज द्वारा एक आश्रम सतना मार्ग पर स्थापित किया गया था  , जहां उनके आध्यात्म गुरु ढलाराम की समाधि है ! यह आश्रम अब '  ओयला  आश्रम ' के नाम से भव्य धार्मिक परिसर का रूप ले चुका है ! नीलकंठ महराज द्वारा , गरीबों के लिए प्रारम्भ किये भंडारे की परम्परा यहां आज भी निरंतर है !  नील कंठ महराज के समाधिस्थ होने पर उनकी भी समाधि यहीं बनाई गयी , और उसके साथ विभिन्न देवताओं के भव्य मंदिर भी निर्मित हुए ! यहां सिद्धविनायक , आदिशक्ति जगदम्बा , आदिदेव शिव , लक्ष्मी नारायण , राधाकृष्ण और रामदरबार की भव्य मूर्तियां हैं , जो आये हुए यात्रियों की मनोकामना पूर्ण करते हैं ! मैहर का यह पवित्र स्थान भी , माता शारदा के मंदिर के बाद दर्शनीय स्थान के रूप में जाना जाता है !
   
   ( गोला मठ )

 धर्म ध्वजा धरनी , मैहर में अनेको अनेक प्राचीन स्थान , सिद्ध क्षेत्र की तरह बिखरे हुए हैं !  जिसमें बड़ा अखाड़ा , गोला मठ , हरनामपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर , गोपाल मंदिर आदि हैं ! मंदिर मार्ग पर स्थित गोला मठ १०वीं सदी में , कलचुरियों द्वारा बनाया गया शिव मंदिर है ! यह पूर्वमुखी , पंचरावी , नागरा शैली में बनाया गया मंदिर है , जिसके बारे में कहा जाता है की इसे मात्र पंद्रह दिनों में तैयार किया गया था !  इसके शिल्प में , खजुराहो के मंदिरों के दर्शन होते हैं  , जो बताते हैं , की  भोग और योग से ऊपर उठने पर ही शिव की प्राप्ति होती है !गोला मठ को भी मैहर के एक और साधक , मुड़िया महराज की तपोस्थली कहा जाता है ! बड़े अखाड़े में महाराजा मैहर के प्रथम गुरु द्वारा स्थापित   राम जानकी मंदिर है ! हरनामपुर के समीप स्थापित जगन्नाथ मंदिर में प्रस्तर कला के विशिष्ट नमूने देखने योग्य हैं !  यहां वर्ष में एक बार रथ यात्रा भी निकलती है !
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     (   बाबा अलाउद्दीन )
       मैहर एक और सिद्ध पुरुष की तपोस्थली है , संगीत के महर्षि उस्ताद अलाउद्दीन खां की तपोस्थली ! बंगाल से , संगीत विद्या की प्यास मन में  लिए निकले  , अलाउद्दीनखाँ ने पहले कई घरानो में संगीत सीखने के लिए देश की  गालियां नापीं , और अंत में रामपुर घराने से उन्हें वीणा वाद्य के बाज का गुरुमंत्र प्राप्त हुआ ! किन्तु यह सीख भी दी गयी की वह हमेशा उसी घराने के शिष्य कहलाएं  और किसी को यह विद्या ना स्थानांतरित करें !  विद्या दान की वस्तु है ,, प्रसार की वस्तु है , इस मंत्र  को हृदय में रख कर वह मैहर आये , और शारदा की ड्योढ़ी पर बैठ कर महीनो सरोद पर  रियाज़ किया ! माता प्रसन्न हुई तो उनके  गुण  ग्राहक बने यहां के राजा बृजेन्द्र सिंह ! अलाउद्दीनखाँ से उन्होंने ना सिर्फ गंडा  बंधवाया , बल्कि उन्हें भूमि दी , आर्थिक सहायता दी ! धीरे धीरे बाबा अलाउद्दीन की ख्याति पूरे देश में फ़ैल गयी और माता शारदा की कृपा से उन्हें दो ऐसे शिष्य रत्न मिले जिन्होंने , मैहर को एक संगीत घराने का नाम दे दिया ! सितार के जादूगर , पंडित रविशंकर , और खुद अलाउद्दीनखां साहब के पुत्र  सरोद वादक अली अकबर खान ,  बाबा से संगीत सीख  कर , देश के वे रत्न बने जिनकी चमक देश के साथ साथ  विदेश तक में  आलोकित हुई ! सुश्री , अन्नपूर्णा देवी , जो बाबा की बेटी थी , एक कुशल संगीत साधक हुईं , और उनका विवाह रविशंकर के साथ हुआ !
          बाबा के समाधि स्थल का नाम मदीना भवन है , जो उनकी पत्नी के नाम पर है ! यहां पर उनके जीवनकाल के चित्र , पुराणी यादें ताजा करते हैं ! उनके ही घर में एक म्यूजियम भी है जहां अनेक प्रकार के भारतीय वाद्य यंत्र , मैहर गुरुकुल की कथा कहते दीखते हैं ! बाबा , प्रयोग धर्मी संगीतज्ञ थे ! राजा के शस्त्रगार में  रखी  पुराणी बंदूकों की नालें काट कर उन्होंने उसे एक नए वाद्य यंत्र का स्वरूप दे दिया , जो आज मैहर बेंड का  अभिनव  वाद्य , नलतरंग कहलाता है !  मैहर बेंड भी बाबा के दें है , जिसमें उन्होंने मैहर के संगीत प्रेमी बच्चों को जोड़ कर , उन्हें वाद्य यंत्र बजाना सिखाया , और सैकड़ों तर्जें इज़ाद की , जो आज मैहर बेंड की शान है !

     ( राजघराना महल )
 ,  मैहर की आधारशिला है यहां का राजघराना ! जिसके कला प्रेम से ही आज मैहर पूरे देश में , संगीत घराने के रूप में विकसित हुआ ! यहां के राजा बृजेन्द्र सिंह को भी एक सिद्ध पुरुष कहा जाए तो अतिशियोक्ति ना होगी ! जिस स्थान पर माता शारदा विराजी हो , उस स्थान के राजा पर माँ की ऐसी कृपा रही , की उन्हें कभी संकट देखने या झेलने का कोई अवसर सम्मुख नहीं आया ! महाराजा बृजेन्द्र सिंह वे भागीरथ थे , जो संगीत की मंदाकिनी बाबा अलाउद्दीन को मैहर ले कर आये !
 मैहर रजवाड़े के महल उस संगीत चेतना , और भक्ति भाव के गवाह हैं , जो इस रजवाड़े में व्याप्त रही ! रजवाड़े के महल , परकोटे , भग्नावशेष ,  किले , प्राचीरें , आज भी उन राज सिद्धों को नमन करती हैं , जिनके कारण आज मैहर दृश्य है ! उनके महल के दरबार में अभी भी लगता है जैसे संगीत की महफ़िल अभी अभी उठी हो !


   ( सीमेंट उद्योग संस्थान के चित्र )
        ! यद्यपि आज रजवाड़े और राजा नहीं रहे , किन्तु उनके स्थान पर , औद्योगिक घ्राणो के  विशिष्ट उद्योगपति , मैहर की यश पताका  पूरे विश्व में फहरा रहे हैं ! विंध्यांचल की तराई में , कटनी से रीवा तक , पृथ्वी के गर्भ में छिपी , एक अदम्य शक्ति , लाइम स्टोन आज विश्व में उच्च गुणवत्ता की सीमेंट का आधार है ! जो आधुनिक भारत के निर्माण में अपनी अदब्वितीय भूमिका निबाह रही है ! पहले यहां चुने के भट्ठे लगते थे ,, लेकिन पर्यावरण के मूल्यों को नमन करते हुए अब वे शांत हैं ! आज यहां , बिरला घराने का  मैहर सीमेंट उद्योग के साथ साथ , रिलायंस सीमेंट , केजेएस सीमेंट के संयंत्र निरंतर सीमेंट निर्माण में संलग्न हैं !
        
        ( िचौल आर्ट के सीक्वेंस ) 
        बदलती हुई संस्कृति के बीच ,  पुरानी  संस्कृति को कलात्मक स्वरूप दे कर , अक्षुण रखने का काम कर रही है , मैहर के निकट बसे  ग्राम  इचौल में स्थापित।  इचौल  आर्ट संस्था ! यह आज एक दर्शनीय स्थान के रूप में करवट लेता स्थान है जो सतना मार्ग पर , मैहर से मात्र दस किलोमीटर दूर है ! यहां कबाड़ से निकली चीजों को अद्भुत रूप दिया गया  है और इसे एक पार्क के स्वरूप में विकसित किया गया है ! परिसर के अंदर ही , एक रेस्टोरेंट है जहां सभी व्यंजन मिलते हैं !

     ( उपसंहार )
  ,, आध्यात्म , संगीत , भक्ति , और शक्ति की पर्याय मैहर नगरी को लोग कई पीढ़ियों से नमन कर रहे हैं ! मैहर के वायुमंडल में संगीत झंकृत होता रहा है  , और सिद्ध दात्री माँ  शारदा की अनुकम्पा , इस भूमि के कण कण पर है ! माँ  के दर्शनों की ललक मन में लिए यहाँ के ग्रामीणों के कंठ से , लोकगीतों के  मधुर स्वर निरंतर फूटते हैं,,
 " माई के दुआरे एक अंधा पुकारे , देवो  दर्श घर जाऊं री , माई तोरी संकरी किवड़िया " 
   प्राचीन काल में भले ही माई के मंदिर की किवड़िया संकरी रही होगी , लेकिन आज माई के द्वार की किवड़िया संकरी नहीं हैं ! पूरे देश के कोने कोने से आकर माई के दर्शनों का अमृतपान , भक्त निरंतर , ३६५ दिन करते हैं , और माई उन्हें निरंतर वात्सल्य भाव से  निहारती है , उनकी मनोकामना पूरी करती है , उनके  दुखों का निवारण करती हैं !
         एक बार मैहर आइये , तो आप बार बार मैहर आएंगे , यह हमारा विश्वाश है ! 

---- आलेख सभाजीत