tag:blogger.com,1999:blog-42379866846662908612024-03-13T09:17:58.980-07:00sourabhsabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.comBlogger85125tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-58145585928838812162021-07-15T03:57:00.002-07:002021-07-15T03:59:56.946-07:00गद्य रचनाएं <p> काफी हाउस में वे रोज़ की तरह , पांच बजे इकट्ठे हुए !! उनकी टेबल खिडकी के पास ही थी ! वे सब बुद्धिवादी थे और रोज़ देश की किसी ना किसी समस्या पर बहस करते थे ! वे पूरी बहस में सरकार और व्यवस्था की धज्जियां उडाते और वर्तमान को कोसते ....बहस में कभी कभी इतने उत्तेजित हो जाते कि लगता वे एक दूसरे की कालर पकड़ लेंगे !!</p><p><br /></p><p> आज जब इकट्ठे हुए तो घोष बाबू बहुत चिंतित थे ! सुबह के अखबार में उनके शहर से सेकडों किलो मीटर दूर .मेरठ में एक भीषण दुर्घटना हुई थी जिसमे एक युवक ट्रक के नीचे आ कर छितरा गया था ! घोष बाबू ने बात शुरु की कि ट्रेफिक पुलिस कुछ नही देखती उसकी लापरवाही से .एक युवा और एक भरे पूरे घर का तो पूरा भविष्य ही ऊजड गया ! फौरन ही तिवारी , भल्ला , मेहता , केलकर , नायर ,विषय में कूद गये ! पहले पुलिस की ,फिर ट्रक ड्रायवरों की , फिर व्यवसाईयों की , फिर ज़िले की व्यवस्था की , फिर नेताओं की , फिर राजनितिक पार्टियों से होती हुई बहस केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री तक पहुँच गयीं !इस बीच तीन बार काफी आई और खत्म हो गयी !आवाजें इतनी तेज हो गयीं , और चेहरे इतने तमतमा गये कि लगा हाथा पायी ना हो जाये !</p><p><br /></p><p> खिडकी से बाहर इस बीच एक बहुत जोर से आवाज आयी ! लगा जैसे कोई गाडी किसी और गाडी से टकरा गयीं ! एक मोटर सायकिल शायद एक ट्रक के नीचे आ गयीं थी ! थोडी देर में वहां भीड हो गयीं .! कुछ लोग चिल्लाते हुए किसी घायल व्यक्ति को रिक्शे में टांग कर ले गये ..उसे उठाते समय ट्रेफिक पुलिस के सफेद कपडे भी खून में सन गये ! थोडी देर में ही भीड छंट गयीं ! </p><p><br /></p><p> काफी हाउस की खिडकी एयर टाईट थी ! बाहर दिखा तो ज़रूर लेकिन आवाजे नही सुनाई दीं ! </p><p>काफी हाउस के अन्दर उनकी बहस बदस्तूर चालू रही ! बात मेरठ की थी सभी का ह्रदय बेध चुकी थी और तब भल्ला केन्द्र में नेत्रत्व परिवर्तन की जोरदार वकालत में लगा था !</p><p><br /></p><p> आधा घंटे बाद भल्ला को जब फ़ोन आया तो वे सब काफी छोड कर बदहवास उठ खड़े हुए .!</p><p><br /></p><p> भल्ला का बेटा अस्पताल में था ...उसका एक एक्सीडेंट मोटर साएकिल से अभी अभी ..काफी हाउस के पास वाली रोड पर हुआ था ! सड़क चलते लोगों ने ट्रेफिक पुलिस की सहायता से उठा कर समय रहते अस्पताल पहुँचा दिया था .!!</p><p><br /></p><p> कहते हैं मौके पर उपस्थिति लोगों ने बातचीत में समय जाया ना करके तुरंत उसे अस्पताल पहुँचा दिया इसलिये उसकी जान बच गयीं !!</p><p><br /></p><p> ---- सभाजीत</p><p>***********</p><p>फिल्म इंडस्ट्री को प्रतिभावान अभिनेता , डायरेक्टर , स्क्रिप्ट राइटर प्रदान करने हेतु स्थापित की गई पूना फिल्म इंस्टीट्यूट भी साधारण विद्यार्थी को विद्यार्जन देने हेतु उनकी आर्थिक सीमाओं से सदा बाहर रही ! इसलिए यह संस्थान सिर्फ उस अभिजात्य वर्ग के ही काम आया , जो पैसा देकर , अपने बच्चे को शिक्षा प्राप्त करवा सकते थे !</p><p><br /></p><p> दूसरे , यह संस्थान सिर्फ पूना जैसे ' महानगर ' की सीमा में सिमट कर रह गया ! यह ' यूनिवर्सिटी ' नहीं बन पाया , और " डिस्टेंट " एजुकेशन देने के लिए योग्य नहीं बन पाया ! </p><p> इसके हास्टल खर्चे भी बहुत थे , और महानगर होने के कारण विद्यार्थी की पाकिट मनी भी अधिक खर्च होती थी ! </p><p><br /></p><p> वस्तुतः , जब तक फिल्मे , सेल्युलाइड आधारित रही ,,,उसकी तकनीक भी जटिल रही ! </p><p> पहले तीव्र प्रकाश में फिल्म शूट करना होता था , फिर प्रोसेस करके , निगेटिव बनाना , फिर कांटेक्ट प्रिंट जिस पर एडीटिंग होती थी , विभिन्न टुकड़ों को मोबीला पर काट काट कर फिर जोड़ना , फिर साउंड स्टूडियो में एडिटिंग , और फिर अंत में ' रिलीस प्रिंट ' ! </p><p><br /></p><p> इन जटिल कार्यो के लिए मुंबई में ही लेब स्थापित हुई , और साउंड स्टूडियो भी ! किन्तु इनके पोस्ट प्रोडक्शन का व्यय इतना अधिक था , की कलात्मक फिल्म बनाने वाला यह व्यय उठा ही नहीं सकता था ! इसलिए सत्यजित राय ने ३५ एम एम की जगह पहले १६ एम एम कैमरे का उपयोग किया , जिसमे पोस्ट प्रोडक्शन व्यय कम था ! </p><p><br /></p><p> लेकिन , आज , digital सिस्टम आने के बाद जरूरी नहीं रहा की फिल्म को ' उद्योग ' की तरह , एक चहारदीवारी में कैद रखा जा सके ! आज कैमरे में फिल्म की जगह छोटी सी मेमोरी कार्ड लगती है , जिसमे कई घंटे की शूटिंग रिकार्ड हो सकती है ! एक से एक इफेक्ट से सुसज्जित , एडिटिंग सॉफ्टवेयर आ गए , जो एक कंप्यूटर सिस्टम पर काम करते हैं ,,,और अब एडिटिंग कोई कठिन काम नहीं रहा ! </p><p><br /></p><p> ऐसे में भारी भरकम फीस युक्त फिल्म इंस्टीट्यूटों की प्रासिंगकता समाप्त ही मानी जानी चाहिए ! ,,, तकनीक के सरलीकरण के बाद , जो शेष बचता है , वह प्रतिभा पर निर्भर करता है -- जैसे अभिनय , निर्देशन , और इसके लिए कोई व्यक्ति किसी इस्टीट्यूट पर निर्भर नहीं ! </p><p><br /></p><p> दिलीप को एक्टिंग किसने सिखाई ,,,,मीना कुमारी किस इंस्टीट्यूट की क्षात्र थी ,,?? देवानंद ने क्या पढ़ कर काम किया ,,,?? ,,,यह सवाल स्वयं फिल्म इंस्टीट्यूट की निरर्थकता का जबाब हैं ! </p><p><br /></p><p> इसलिए आज , बस फिल्म बनाने की लगन , और जज़्बा चाहिए ,,,, अगर वह है ,,,तो सब कुछ आपके आसपास ही है ,,,दूर जाने की जरुरत नहीं !! </p><p><br /></p><p> एक बात और है , पिछले ६५ वर्षों से हम फिल्म को मुंबई की सीमाओं से मुक्त नहीं करवा पाये ,,, इसका कारण यह है की यह शिक्षा के पाठ्यक्रम में जोड़ा ही नहीं गया ! काश की यह विधा हर यूनिवर्सिटी में , अन्य पाठ्यक्रम , एमबीएस , इंजीनियरिंग , की तरह पाठ्यक्रम से चालु करती ,,,क्यूंकि आज इस पाठ्यक्रम को संचालित करने के लिए ना तो अलग से किसी बड़े केम्पस की जरुरत है , ना किसी बड़े स्टूडियो या लेब की , और ना किसी बड़े बजट की ! '</p><p>--'सभाजीत '</p>sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-53498629421461879672021-04-06T01:06:00.003-07:002021-04-06T02:29:14.428-07:00<p> कविताएं,,</p><p>गरीब हूँ,,</p><p><br /></p><p>दिमागी ज़िल्लत नहीं,,</p><p> बस,,</p><p>,,,' पेट,,और,,जीभ ' ,,हूँ ।</p><p>,,,गरीब हूँ,,।।</p><p><br /></p><p>सोता हूँ ,,पीता हूँ ,,खाता हूं ,,</p><p>उतना ही कमाता हूँ ,,</p><p>जितना पचाता हूँ ,,</p><p>न कोई मेरा मुरीद,,</p><p>न में किसी का मुरीद हूँ ,,।</p><p>,,,,,,,,गरीब हूँ ।।</p><p><br /></p><p>लुट जाऊंगा ,,</p><p>इसका भी कोई डर नहीं ,,</p><p>क्योंकि ,,</p><p>मेरा पास अपना कोई घर नहीं ,,।</p><p> वक्त ने ,,जिसको ,,</p><p>जगह जगह रफू किया </p><p>खूंटी पर टँगी,एक ,</p><p> फटी हुई कमीज हूँ ,,।</p><p><br /></p><p>,,,गरीब हूँ ।</p><p><br /></p><p>मेरे बारे में सोच कर ,</p><p> कई कई लोग ,,हैरान है ,,।</p><p> सदियों से बहता पसीना ,,</p><p> ही मेरी एक पहचान है ,,</p><p> उजले रंग रूप में ,</p><p>मेरी कोई जगह नहीं ,,</p><p> कीचड़ और गन्दगी में बसे </p><p> लोगों का नसीब हूँ ,,।। ,,</p><p><br /></p><p>गरीब हूँ ।</p><p><br /></p><p>कुछ भरे पेट लोगों के लिए,,</p><p>एक ' बर्निंग ' ,,सब्जेक्ट हूँ ,,</p><p>संविधान के पेजों में दर्ज ,</p><p>कानूनी एक्ट हूँ ,,</p><p>बड़े बड़े पैकीज के लिए ,</p><p>सरकारी पैक्ट हूँ ,</p><p>किसी को आंखों से न दिखे ,,</p><p>ऐसा एक फैक्ट हूँ ,,</p><p>चुनावों में मसीहा</p><p>बाकी समय खुद ,</p><p>,,बेजान,,,' सलीब ' हूँ ,,।</p><p><br /></p><p>गरीब हूँ ,,।</p><p><br /></p><p>---सभाजीत</p><p>**विकास ***</p><p> </p><p> मेरे दादा के पास ,</p><p> नही थी कोई जेब ..,</p><p> क्यूँकी </p><p> वे पहनते थे एक धोती ...ओर बंडी ,</p><p> जिसमे नही होती थी जेबें .!</p><p><br /></p><p> ओर </p><p> पिता के पास थी दो जेबें ,</p><p> उनके कुरते में ,</p><p> इसलिये थोडा डरते रहे ,</p><p> अकले सड़क पर जाने से ,</p><p><br /></p><p> मेरे पास है ,.. हैं कई जेबें ,</p><p> चोर जेबें .., चैन बन्द जेबें ..,</p><p> आधुनिक जींस ..पेंट ओर शर्टों में ,</p><p> ... डरा हुआ रहता हूँ ..,</p><p> नही निकलता घर से बाहर ,</p><p> कि पता नही कौन हो लुटेरा ,</p><p> दोस्त ,भाई , यार की शक्ल में ,</p><p><br /></p><p>मन से कोई बात,,</p><p>कभी,,</p><p> सीधी ,,उतर गयी कागजों पर ,</p><p>उसे पहचान बना लिया ,,</p><p>कुछ लोगों ने ,,,</p><p>, मेरी,,!</p><p><br /></p><p>उम्र भर ,,</p><p>वही पहचान लिए,,</p><p>घूमता रहा ,,</p><p>हाट बाजार,,,</p><p>और बेचता रहा,,</p><p>चिन्दी चिन्दी लिखा,,,</p><p>बहुत कुछ ,,।।</p><p><br /></p><p>हर बार,,</p><p>मिलते रहे तमगे,,</p><p>कीमत की तरह ,,</p><p>और सजते गए ,,</p><p>मेरी पहचान पर,,</p><p>मेडल की तरह,,।</p><p><br /></p><p>एक दिन,,</p><p>मुड़ के देखा,,</p><p>तो पाया,,</p><p>हज़ारों लोगों को ,,</p><p>पीछे खड़े हुए ,,</p><p>मेरी तरह ही </p><p>तमगे लगे हुए ,,</p><p> हँस रहे थे ,,</p><p> मेरे जैसे कई लोग ,,,</p><p><br /></p><p>और,,</p><p>नज़र उठा कर जो देखा सामने ,,</p><p>तो देखा ,,</p><p> कब्रों में सोये थे ,,</p><p>कई लोग,,</p><p><br /></p><p>तमगे,,</p><p>जिनकी कब्र पर ,</p><p>बिछे हुए थे फूलों की तरह ,,।</p><p><br /></p><p>दायें और बाएं,,</p><p>खड़े थे और भी </p><p>बहुत से ,,,</p><p>तमगों से सजे ,,</p><p>आंखों से घूरते ,,</p><p>होठों से मुस्कराते ,,</p><p>कई,, कई लोग ,,।</p><p><br /></p><p>घबरा कर ,,</p><p>पूछा मन से ,,</p><p>क्या कोई मैं,,फौजी था,,?</p><p>या अपनी बात मौज में कहने वाला,,</p><p>एक मनमौजी था ,,?? </p><p><br /></p><p>मगर,,</p><p>मन पर तो जड़ चुके थे,</p><p>अब,</p><p>कई कई तमगों के ताले ,,</p><p>मन में कहां उपजने वाले थे ,,</p><p>सहज जवाब,,</p><p>पुरानी अनुभूतियों वाले ,? </p><p><br /></p><p>--' सभाजीत '</p><p>हुआ,,</p><p>,,थालियों का ध्वनि नाद,,,</p><p>यह उद्गघोषित करने के लिए,</p><p>कि हम हैं,,जिंदा</p><p>अपने घरों में रह कर</p><p>' अपने लिए ,,'</p><p> ' अपनों के लिए ,,',,!</p><p><br /></p><p>और कृतज्ञ हैं उनके भी ,</p><p>जो हैं जिंदा,,</p><p>' दूसरों के लिए ।' </p><p><br /></p><p>जो हमें नहीं जानते,</p><p>और जिन्हें हम भी नहीं जानते,,,</p><p>उनके और हमारे बीच ,,</p><p> एक रिश्ता है ,</p><p>,,'कर्तव्य 'का,,।</p><p> अहसास का,,</p><p> कि,,</p><p> जब भी हम होंगे असहाय </p><p> उनके सुदृढ हाथ ,,</p><p> सम्हाल लेंगें हमें ।</p><p><br /></p><p> जरूरी है यह अहसास,,</p><p> ये रिश्ता ,,</p><p> हम उन सब के बीच ,,भी</p><p> जहां की खिड़कियों ,,</p><p> छतों ,,बालकनियों से , </p><p> उठी है ध्वनि तरंगें ,,</p><p> एक दूसरे के समवेत स्वरों में ,</p><p> एक दूसरे को देखते हुए ,,</p><p> की यह ध्वनि तुम्हारे लिए भी है ,,</p><p> तुम भी अब अजनबी नहीं हो ,,</p><p> जब भी होंगे असहाय तुम </p><p>,,,,तो ,</p><p> पुकार लेना हमें ,, ,,</p><p> तुम अकेले नहीं हो</p><p> हम सम्हाल लेंगें तुम्हें ,, </p><p> आकर बे हिचक,,</p><p> और सौंप देंगें तुम्हें </p><p> विश्वास के उस मसीहा के सुदृढ हाथों में ,,</p><p> जिनके कृतज्ञ हैं हम ,,।</p><p><br /></p><p> ये भोजन की थाली की ध्वनि ,,</p><p> सिर्फ ध्वनि नहीं ,,</p><p> एक ,,,रिश्ता है ,,</p><p> ,,,अहसास है ,,</p><p> जो गूंज रहा है , कानों में ,,,शब्द बन कर ,</p><p> कि</p><p> भले ही हम घर में हैं ,,लेकिन,,यह समझ लो ,,</p><p> हम भी जिंदा थे,</p><p> ,जिंदा हैं ,,</p><p> ' दूसरों के लिए '</p><p><br /></p><p> -- सभाजीत</p><p>मुझ पर रख कर पैर ..,</p><p> कई ' ऊँचाई ' पाये ,</p><p> मुझ पर रख कर पैर .</p><p> कई नीचे भी आये ..,</p><p><br /></p><p> सीढी थे या कि </p><p> फिर सीढी का डंडा ...,</p><p> फिर भी खुश थे ..,</p><p> चलो किसी के काम तो आये ..!!</p><p><br /></p><p> जीवन के दिन हमने अपने ..,</p><p> यही बिताये ...!!</p><p><br /></p><p>वे सब मरे हुए हैं ,,</p><p> जो ,,</p><p> मृत्यु से डरे हुए हैं ,,!!</p><p><br /></p><p>मृत्यु की प्रतीक्षा में ,</p><p> जो जीते हैं जिंदगी , </p><p> जीत जिनका लक्ष्य है , , </p><p> है देश जिनकी बंदगी ,,</p><p><br /></p><p> शोक कैसा ,,,?? </p><p> उनके लिए ,,??? </p><p> वे तो हैं बलिदानी ,,!! </p><p>वे नहीं हम सब जैसे , </p><p> वे तो हैं ,,,,देश - अभिमानी ,,!! </p><p><br /></p><p> घर से जिस दिन चले थे , </p><p> सब मोह उस दिन त्यागे थे , </p><p> छातियाँ दीवार थीं , </p><p> टकराने , सबसे आगे थे ,,!! </p><p><br /></p><p> छल से होगा वार , </p><p>तो वे बल से करेंगें छार छार </p><p> खंजर की नोक नहीं ,,,</p><p> तलवार की हैं वे ,, तीखी धार , !</p><p><br /></p><p> आँखों में आंसू नहीं , </p><p> गर्व को धारण करो , </p><p> करो जय घोष , भरो हुंकार ,</p><p> युद्ध का ,</p><p> उच्चारण करो ,,!!</p><p><br /></p><p>!!जो हम से टकराएंगे </p><p> हम जड़ से उन्हें मिटाएंगें ,, !!</p><p><br /></p><p>बसन्त में सब कुछ पीली पीली है </p><p>यही सोच कर मोहल्ले के शराबी ने ,</p><p>सुबह से ही पीली है ,,,,।</p><p>शरीफों ने कहा -नासपीटे ,</p><p> आज तो शर्म करता ,,,आज बसन्त है ,</p><p> सबको बोतल पलट दिखाते बोला,,,।</p><p> देखलो,'बस अंत ' है ।</p><p><br /></p><p> #कलजुगी_बसन्त </p><p><br /></p><p> 😂😄😆</p><p><br /></p><p>बिना पते लिफाफे सा ,</p><p> अपने अन्दर लिये एक संदेश </p><p><br /></p><p> भटकता रहा शहर शहर , गाँव गाँव ,</p><p> हर गली ,हर कूँचे , बिना ठांव ,</p><p><br /></p><p> हाथों में कुछ देर थाम ,</p><p> कुछ देर घूरते रहे लोग , </p><p> अजनबी निगाहों से ,</p><p> ओर फिर लौटा दिया ,</p><p> यह कह कर ..,</p><p> कि ' उनका नहीं मैं .' ..!!</p><p><br /></p><p> तो किसके लिये लिखा था संदेश ?</p><p> उस ईश्वर ने ..??</p><p> मेरे अन्दर ...!</p><p> ज़िसका ना था कोई पता ,</p><p> ना जात ना पांत ,</p><p> ना घर बार ..ना धर्म ,</p><p> सिर्फ धुंधला सा नाम भर था ,</p><p> ...'' इंसान ''</p><p><br /></p><p>" अहसास " अगर ' माँ " है ,</p><p> तो ' विश्वास ' है पिता ..!</p><p> ' धड़कन ' है अगर माँ तो ,</p><p> हर ' सांस ' है पिता ..!!</p><p><br /></p><p> छतरी की तरह सर पे रहे ,</p><p> हर जगह हर वक्त ,</p><p> जब याद करो, पाओगे तुम्हारे ,</p><p> आसपास है पिता ..!!..</p><p><br /></p><p><br /></p><p>."..गन " ...के साये में .. , </p><p>' गण ' - स्वतंत्र है </p><p>सर्द , ठिठुरता </p><p>लोक तंत्र है ..!!</p><p><br /></p><p> परम्पराएँ ही ,,,</p><p>" धर्म -ग्रंथ " है ..,</p><p>धर्म है मकडी ,</p><p>हम पतंग है ..!</p><p><br /></p><p>हम सब पापी .,</p><p>धर्म के घाती ,</p><p>मुल्ला .- पंडित </p><p>सभी संत है ..!!</p><p><br /></p><p>पंथ के अन्दर , </p><p>कई पंथ है ,</p><p>मठों में बैठे ,</p><p>कई भुजंग है</p><p><br /></p><p>चतुर शिकारी ,</p><p>ठग -व्यापारी ,</p><p>हाथ में थामे ,</p><p>राजदंड हैं ..!</p><p><br /></p><p>बर्गर -पिज्जा ,</p><p>मांस ओर मज्जा ,</p><p>खाने की ,</p><p>पहली पसन्द है ,</p><p><br /></p><p>बिकती शिक्षा ,</p><p>दान ओर भिक्षा ,</p><p>राजनीति का ,</p><p>प्रसंग है ,</p><p><br /></p><p>आशायें तो , </p><p>बहु अनंत है ,</p><p>हाथ है खाली ,</p><p>जेब तंग है ..,</p><p><br /></p><p>चलो कि सब ,</p><p>जन मन गण गाये ,</p><p>नेताओं को हाथ हिलायें ,</p><p>कहो कि हम सब भारत वासी ,</p><p>नेताओं के संग संग है ..!!</p><p><br /></p><p>--sabhajeet</p><p><br /></p><p>वो उनकी फ़ौज है ,,,</p><p>और </p><p>ये हमारी फ़ौज़ है ,,,।</p><p>बन्दूकें जब भी चलेंगी ,,,</p><p>तो जो चलाएंगे </p><p>उनकी निश्चित मौत है ।</p><p>लेकिन </p><p>जो चलवाएंगे ,</p><p>वे पहले भी सदा सुरक्षित रहे ,</p><p>आगे भी रहेंगे,,</p><p>उनकी पहले भी मौज थी ,</p><p>आगे भी मौज है ,,,।</p><p><br /></p><p>😣😩</p><p><br /></p><p>खाली बैठे आदमी को ,</p><p>हाथों में दे कर कुछ रकम ,</p><p>उसने कहा ,,घर से निकल, </p><p> चल ,</p><p> हल्ला बोल ,,। </p><p>चीखता वह सड़क पर ,</p><p>दौड़ा एक दिशा में ,,</p><p>और शांत हवा भी ,</p><p>थिरक गई ,,</p><p>हल्ला बोल,,हल्लाबोल,,।</p><p>क्या हुआ ,,,?? </p><p>,पूछा किसी ने ,</p><p>तो था जबाब ,,</p><p>बस हल्ला बोल ,,।</p><p>कुछ हुआ है ,,</p><p>सोच कर जो लोग कुछ निकले घरों से ,</p><p>हर तरफ हर कोई बोला ,</p><p>हल्ला बोल ,हल्ला बोल ,,।</p><p><br /></p><p>जिस तरफ देखा ,,</p><p>तो हाथ लहराते दिखे ,</p><p>झंडे , बैनर , तख्तियां ,</p><p>हाथों में फहराते दिखे,,</p><p>व्यवस्था को बदलने जो ,</p><p>गीत दुष्यंत ने लिखे ,</p><p>व्यवस्था को ' तोड़ने ' का लक्ष्य साध ,</p><p>वो गीत ,</p><p>बच्चे गाते दिखे ,,!!</p><p><br /></p><p>व्यवस्था को बनाये रखने ,</p><p> किसी बच्चे का पिता ,</p><p>वर्दी पहन जो ड्यूटी पर दिखा ,</p><p> डिगाने कर्तव्य से ,</p><p> दोस्त के ही पिता पर , </p><p> बच्चे ,</p><p>पत्थर बरसाते दिखे ।</p><p><br /></p><p> जो गए थे बनने,</p><p>इस देश का भविष्य ,</p><p>विद्या के मंदिरों में ,</p><p>धर्म के खातिर ,</p><p>वो सभी ,</p><p>खुद को बरगलाते दिखे ।</p><p><br /></p><p>नागरिकता,,नागरिकता,,।।</p><p> देखो छिनी नागरिकता,,</p><p> देखो लुटी नागरिकता ,,</p><p> नहीं मिली नागरिकता ,,</p><p> धर्म ढली नागरिकता ,,।।</p><p> </p><p> किसको खली नागरिकता ,?</p><p> किसको भली नागरिकता ,?</p><p> किसने छली नागरिकता ,?</p><p> किसकी टली नागरिकता ,,,?? </p><p><br /></p><p> एक मुंह ,,हज़ारों बात ,</p><p> दावँ पेंच ,घात,, आघात,,</p><p> सुबह शाम , दिन और रात ,,</p><p> डाल डाल ,,पात पात ,,।।</p><p><br /></p><p> ढूंढते रहे नागरिकता ,,</p><p> शहर शहर,राज्य राज्य ,,</p><p> बूझते रहे नागरिकता,,</p><p> द्वार द्वार ,,गली गली ,</p><p> पूछते रहे नागरिकता ,,</p><p><br /></p><p> मगर,,</p><p> उन्हें न दिखी ,</p><p> केम्प में ठिठुरी ,, </p><p> सहमती अस्मत बचा ,</p><p> भागी हुई ,</p><p> बेसहारा मां की गोद में </p><p> दुधमुंही </p><p> नागरिकता ,,</p><p> खुद के भविष्य के </p><p> सहारे के लिए ,</p><p> भारत के नेताओं से ,</p><p> नन्हे नन्हे हाथ उठा ,,</p><p> शरण की भीख मांगती ,,</p><p> जीवन से दुखी ,</p><p> नागरिकता ,,।।</p><p><br /></p><p> ,,सभाजीत</p><p><br /></p><p>जा मिया</p><p>जाम कर ,,</p><p>तिरंगे थाम कर ,</p><p>देश को </p><p>बदनाम कर ,,।।</p><p><br /></p><p>बजा ढपली ,</p><p>गीत गा ,</p><p>जिस जमाने से ,</p><p>सहम , </p><p>लिखीं , पंक्तियां दुष्यंत ने ,</p><p>उस जमाने को भुला,</p><p>कुछ तालियां </p><p>अब </p><p>पीट आ ,,।।</p><p><br /></p><p>क्या तेरा ,</p><p>कोई लक्ष्य है ,?</p><p>या की तू खुद ,</p><p>पथभृष्ट है ,,?? </p><p>क्या है आज़ादी का मतलब ? ,</p><p>' गुलामी ' से ,,</p><p> पूछ आ,,।</p><p><br /></p><p>या फिर चोरों के लिए,</p><p>कर सेंधमारी ,</p><p>और अंधेरे में ही ,</p><p>भटक कर ,</p><p>सिपाही से ही ,</p><p>जूझ जा ,,।।</p><p><br /></p><p>पेड ..,</p><p> कभी होते थे ,</p><p> रास्ते के रखवाले ...,</p><p> </p><p> गुजरते हुए लोग , </p><p> उसके नीचे ,</p><p> थक कर लेते थे सांस ,</p><p> रूक कर,</p><p> बतियाते थे ,</p><p> अजनबी, </p><p> गावं वालो से ,</p><p> </p><p> नापते थे दूरी ,</p><p> तय किये सफर की ,</p><p> ओर भरते थे ,</p><p> प्राण वायु , स्फूर्ति,,</p><p> अपने अन्दर ,</p><p> अगले अनजाने सफर के लिए ..!!</p><p> </p><p> बातियाते लोग ,</p><p> कहते थे ..राह तो है ,</p><p> एक थकान ,</p><p> दो घरों की दूरी ,</p><p> पर</p><p> पेड है जीवन ,</p><p> जीने के लिये ...</p><p> ज़रूरी ...!</p><p><br /></p><p> धीरे धीरे ...,</p><p> फैलते गये रास्ते , मर्यादायें तोड़,</p><p> ओर सिकुडते गये पेड ,</p><p> </p><p> यहां तक कि ,</p><p> एक दिन वे बन गये. </p><p> रास्ते के व्यवधान ,</p><p> तेज गति यात्रियो के लिए . </p><p> ,,,,,, रोडे !</p><p> </p><p> विहंगो का बोझ लादे ,</p><p> परोपकारी साधक ,</p><p> रास्ते के सोंदर्य में , </p><p> हो गये बाधक , </p><p> </p><p> दिन दिन संवरती ,</p><p> इठलाती,,,</p><p> ,,,,,, राह , </p><p> बन गयी .</p><p> ..रूपवती रोड ,</p><p> कटते ,,कटते पेड ,</p><p> बन गए ,</p><p> बस,,,</p><p> मार्ग दर्शक बोर्ड </p><p> </p><p> अपने अपने पंखो को संभाल ,</p><p> दाने पामी की तलाश में ,</p><p> दूर देश के लिए ,,</p><p> उड गये विहंग ,</p><p> बूढे पेड के लिये ,</p><p> क्यों करें ,, </p><p> कोई अब रंज ...??</p><p><br /></p><p> ,,,सभाजीत</p><p><br /></p><p>प्रदर्शन में ,,</p><p>मर गए लोग ,,!</p><p>वहां क्यों गए थे ,,? </p><p>ये शायद उन्हें भी नहीं पता था ।</p><p><br /></p><p>उन्हें सिर्फ किसी ने बताया था ,,</p><p>कि वे खतरे में है ,,।</p><p>कोई समझा,,,</p><p>आसमान टूटने वाला है ,</p><p>किसी को लगा ,,ज़मीन फट रही है ,,</p><p>किसी को कहा गया ,,</p><p>कल ही प्रलय हो जाएगी ,,</p><p>किसी ने समझा ,,</p><p>शरीर से लिपटा धर्म ,,</p><p>आने वाला बवंडर,,</p><p> उड़ा देगा </p><p> और वे </p><p>फटेहाल ,,अनावृत हो जाएंगे ।</p><p>कोई डर गया कि कल , </p><p>छीन लेगा कोई ,</p><p>उनके बाप दादाओं के ज़माने के घर ,</p><p>और भेज देगा उन्हें सात समुंदर पार,,</p><p>काले पानी की तरह ,,।</p><p><br /></p><p>कठपुतलियों की तरह ,</p><p>बिना अपनी किसी समझ के , </p><p>बिना प्रयोजन , </p><p>वे नाचते रहे ,,</p><p>उस तमाशे का हिस्सा बन ,</p><p>जिसकी तालियां , सिक्के , और वाहवाही ,</p><p>तय थी उस तमाशाई के लिए , </p><p>जो नचा रहा था उन्हें,,</p><p> पर्दे के पीछे खड़ा होकर ,</p><p>और बजा रहा था सीटी ,</p><p>चतुरता से,,</p><p>उंगलियों में उलझे धागों से , </p><p>फंसे किरदारों को उचकाते हुए ।</p><p><br /></p><p>काठ और आग का रिश्ता ,</p><p>नहीं जानती ,,</p><p>कठपुतलियां ,,</p><p>की आग सुलगती रहे इसलिए,,</p><p>काठ जरूरी है ,</p><p> जलने के लिए ।</p><p><br /></p><p>तमाशे में ,,</p><p> कुछ कठपुतलियां , </p><p>जल गईं ,, मर गईं ,,</p><p>तो क्या हुआ ,,?? </p><p>तमाशाइयों और तमाशों का रिश्ता </p><p>तो बना रहेगा ,,</p><p>चोली दामन की तरह ,,</p><p>क्योंकि कठपुतलियां तो हिस्सा ही है ,,</p><p>लड़ाई ,,और मरने मारने के </p><p>तमाशे दिखाने का ,,।</p><p><br /></p><p>नौकरी ,, वो है ,</p><p>जो , </p><p>करी तो करी ,</p><p>,वरना ,</p><p>,ना करी ,,!!</p><p><br /></p><p>सेवा ,, भी वो है,</p><p> जो , </p><p> करी तो मन से करी , </p><p> वरना,</p><p> ना करी !</p><p><br /></p><p>खिदमत ,,, वो है ,</p><p>जो , </p><p>खादिम द्वारा ,, </p><p> मालिक की,,</p><p> हर हालत में ,,</p><p> करी ही करी ,</p><p> </p><p>कभी भी , </p><p>किसी भी हालत में ,,</p><p>',ना ', </p><p> ना करी ,,!!</p><p><br /></p><p>हुज़ूर को , </p><p> नौकर नहीं चाहिए , </p><p>ना चाहिए ,,सेवक , </p><p>चाहिए बस </p><p>' खादिम ',, </p><p><br /></p><p> ढूंढ ही लेते हैं वे , </p><p> सात फाइलों में दबे , </p><p> अपने ,,,उसको ,,!</p><p><br /></p><p> </p><p> जो खड़ा रहे अलादीन के जिन्न की तरह ,</p><p><br /></p><p> ज़रा भी घिसी जाए , </p><p> जब भी , किसी फ़ाइल की तली , </p><p> तो हाथ जोड़े ,</p><p>आ जाए भागता ,,कहता हुआ ,,!</p><p>, मेरे आका ,, क्या है हुकुम ,,??</p><p><br /></p><p>****</p><p>किताबों के कीड़े ,</p><p>किताबों में रहते हैं ,,</p><p>किताबें कुतरते , </p><p>किताबें खाते हैं ,,</p><p>और जब बहुत मोटे हो जाते हैं , </p><p> तब बाहर आते हैं ,,!!</p><p><br /></p><p>बाहर निकलने पर , </p><p>वे दीमक को समझाते हैं ,,!</p><p>की किताबें तो बस वही हैं ,,</p><p>जिसको उन्होंने पढ़ा ,,</p><p>बाकी तो ,,बकवास है , </p><p> ' मूर्खों का गढ़ा ',,!!</p><p><br /></p><p>वर्जनाओं को तोड़ दो ,</p><p> हवाओं का रुख मोड़ दो ,,</p><p>तुम घुसो हर जगह पर , </p><p>हर पुराने घर , </p><p>फोड़ दो , </p><p><br /></p><p>तुम लिखो कि,,</p><p>नदियों के धारे ,,</p><p>ऊपर से नीचे क्यों नहीं बहे ,,? </p><p>तुम कहो कि,,</p><p>पर्वत घमंडी ,,</p><p>सर उठाये क्यों खड़े ,,??</p><p><br /></p><p>तुम ये पूछो , </p><p> क्यों हवा में ,,परिंदों का राज है ,,? </p><p>तुम ये पूछो , </p><p> शेर क्यों ,,</p><p> बकरी को खाने को आज़ाद है ,,?? </p><p>तुम बताओ ,,</p><p> नई पीढ़ी को,,, कि ,,</p><p>वाद ही संवाद है ,,!</p><p>तुम समझाओ ,</p><p>प्रगति का मतलब ही बस , </p><p> प्रतिवाद है ,,!! </p><p><br /></p><p>बदल दो तुम देश , </p><p> हर परिवेश , </p><p>तोड़ कर पुराने विश्वाश ,</p><p>मिटा दो किंबदंती , </p><p> कि,,लिख लो , </p><p>खुद नया इतिहास ,,,!!</p><p>भुला दो पूर्वजों के नाम , </p><p>पुराने खानपान ,,!</p><p>कि किंचित शेष ना रह पाए , </p><p> अपने आप की पहचान ,,!!</p><p><br /></p><p>प्रगति के नाम पर , </p><p>विदेशी हाथ,,,</p><p> थाम कर ,,</p><p>तुम धरो एक लक्ष्य , </p><p>की हो तुम्हारा ,,</p><p>चतुर्दिश ,,एकछत्र ,,राज ,,,</p><p>रटाते रहो सबको सदा , </p><p>की बाकी सब हैं , </p><p> गरीब और मजदूर ,,</p><p>एक तुम ही हो , </p><p> सबके ,,," गरीब नवाज़ " ,,,!!</p><p>रियासत से ,,</p><p> सियासत तक , </p><p>प्रजा कहलाये ,हरदम ,एक चिड़िया ,,</p><p>और तुम रहो ,,</p><p>उनके शिकारी ,,,</p><p> आसमां में उड़ते ,,,' बाज़ ' ,,!!</p><p><br /></p><p>--- सभाजीत</p><p><br /></p><p>******</p><p>कवियों में कविता है ,</p><p> कविता में ' लाईने ' है , </p><p> कवि मगर खुद ,</p><p> टूटे - फूटे चटके हुए आईने हैं ।</p><p> </p><p><br /></p><p> बसों में , ट्रेनो में , </p><p> ठसाठस लोग हैं ,</p><p> डाक्टरों की क्लीनिक में </p><p> ,लाइन भी एक् ' रोग ' है ,</p><p> </p><p> फोन पर भी ' रुकिये ,</p><p> आप क्यू में है '..आवाज है ..!</p><p> मंदिरों की लाईने तो , </p><p> .... भगवान के घर की राह है !</p><p> </p><p> लाईने ही मर्ज है , </p><p> लाईने ही फर्ज है ,</p><p> लाइनो को तोड़ना भी ,</p><p> किसी के लिये आदर्श हैं ..!!</p><p> </p><p> लाइनो पर ट्रेन है , </p><p> सभी फ़ास्ट मेल है </p><p> बोगियां तो सुधर गईं ,</p><p> इंजन ही फेल हैं ।</p><p> </p><p><br /></p><p> लाइने तरंग हैं .. </p><p> आयेंगी जायेंगी ,</p><p> सिंधु तट को भिगो कर ,</p><p> नई ईबारते लिख जायेंगी !!</p><p> </p><p>तरंगो को गिन कर। ,</p><p> हम भला क्या पायेंगे ? </p><p> जब तलक खुद सिंधु में </p><p> एक् नाव लेकर ना उतर जायेंगे ??</p><p><br /></p><p> ,,सभाजीत</p><p><br /></p><p>********</p><p><br /></p><p>चलो , </p><p> दस दिन और , </p><p> भटक लें ,,!</p><p><br /></p><p>एग्जिट पोल के, </p><p> कयासों पर , </p><p>लगा कर , </p><p>" अटकलें ,,!! </p><p><br /></p><p> किसी को , </p><p> बैठा दें , </p><p> सिंहासन पर , </p><p>किसी को , </p><p> मन ही मन , ,</p><p> नीचे पटक लें ,,! </p><p><br /></p><p>चौराहों पर , </p><p>बघारें </p><p>अपनी पार्टी की तारीफ़ , </p><p>दूसरे गर बघारें , </p><p>तो चुपचाप , </p><p> वहां से , </p><p> सटक लें ,,!! </p><p><br /></p><p>बना कर , </p><p>किसी को मसीहा , </p><p>खुद पांच साल के लिए , </p><p>अपनी ही बनायी क्रूस पर , </p><p> फिर से ,</p><p> लटक लें ,! </p><p><br /></p><p> वोटों को , </p><p> बाँट कर जातियों में , </p><p> इंसानो को , </p><p> छान , बीन कर , </p><p> लोकतंत्र के सूपे से , </p><p> फटक लें ,! </p><p><br /></p><p>नागनाथ की जगह , </p><p> सांपनाथ के बदलाव को , </p><p>मान कर , अपनी नियति </p><p>अगर , रेप , लूट , और घोटाले हों भी , </p><p>तो आगे ,</p><p> आँखों में आये , </p><p> आंसुओं को , </p><p> हलक के नीचे , </p><p>बिना सिसकी लिए , </p><p> खामोशी से , गटक लें ,,!</p><p><br /></p><p>---सभाजीत</p><p><br /></p><p>**********</p><p><br /></p><p>टोपियों के बाजार में ,</p><p> जब गया वह ....</p><p> तो उसे भायी ...एक ही टोपी ,</p><p> फौजी की ...!!</p><p><br /></p><p> वैसे वहां ओर भी टोपी थी ..,</p><p> ज़िसे पहन रहे थे लोग ,</p><p> ओर निहार रहे थे शीशे में ,</p><p> खुद को बार बार आत्म मुग्ध हो कर .!</p><p><br /></p><p> नेता , खिलाडी , इंजीनियर , ओर </p><p> व्यवसायी के रूपों में ...!</p><p><br /></p><p> लौटा जब घर , </p><p> तो सिहर गयी ...माँ ..,</p><p> यही टोपी तो पहन कर गये थे वो ..</p><p> ओर फिर नही लौटे ..!</p><p><br /></p><p> लौटी थी तो एक बर्दी , </p><p> जो उसने छिपा कर रख ली थी </p><p> संदुकची में ...</p><p> अमानत समझ कर ..!</p><p><br /></p><p> छब्बीस जनवरी को ,</p><p> उसे मिला था एक तमगा .,</p><p> एक सनद ओर कुछ रूपये ..!!</p><p> जो दीवार पर आज भी टंगे है ..!!</p><p><br /></p><p> पेट में था शिब्बू ,</p><p> जब चले गये थे वो ..,</p><p> तो बेटे को सिर्फ फोटो में ही</p><p> दिखा पायी थी वह ,</p><p> उसके पापा को ,..!!</p><p><br /></p><p> फोटो में ,टोपी पर रीझ कर ,</p><p> मांगता था वह ..,</p><p> . वही टोपी ..बार बार ...,</p><p> हर त्योहार पर ,</p><p> ओर टालती थी वह ..,</p><p> की उससे भी कोई ओर रंगीन टोपी ,</p><p> ला देगी अपने बेटे को ..!!</p><p><br /></p><p> लेकिन ...शिब्बू तो , </p><p> ले आया वही टोपी ...</p><p> पहन कर जाने को था तैयार..,</p><p> पिता को खोजने ..,</p><p> उसी सरहद पर ,</p><p> जहां पर कोई भी खो सकता है ..</p><p> कभी भी ....!!</p><p><br /></p><p> भरे मन से ,</p><p> बेटे की ज़िद पर ..,</p><p> जाने दिया था बस कुछ साल पहले ,</p><p> की हर दिन ...,</p><p> फोन का इंतजार करके ,</p><p> चहक उठती थी वह ...</p><p> एक सवाल ..,</p><p> खाना तो ठीक से खाते हो ना ..??</p><p><br /></p><p> पडोस के गावं में ,</p><p> लड़की देख ली है ..,</p><p> देव उठनी ग्यारस के बाद ..,</p><p> हाथ भी पीले करने है तुम्हारे ..!</p><p> आओगे ना ??</p><p> एक माह पहले ..??</p><p><br /></p><p> लौट रहा था अब वह घर ,</p><p> उसके बुलाने पर ..,</p><p> बारात ले कर ...!</p><p><br /></p><p> गजरों से सजा गावं </p><p> बिगुल बजाते फौजी ,</p><p> </p><p> फूलों की माला ...ओर ,</p><p> तिरंगे का बाना पहने ,</p><p> बिलकुल अपने पिता की तरह ,</p><p> शांत ...मुस्कराता हुआ ..!</p><p> फर्क बस इतना था , </p><p> पहले एक वर्दी भर थी ..,</p><p> अब वर्दी में शिब्बू था ..!!</p><p><br /></p><p> भरी निगाहों से .,</p><p> उसे दिख रही थी ..,दूर दूर तक ..,</p><p> टोपियां ही टोपियां ..</p><p> नेताओं की .., पुलिस की ,</p><p> पंचों की सरपंचों की ,</p><p> आम की ..खास की ,</p><p> दूर की ..पास की ...</p><p><br /></p><p> युवाओं के सैलाब में .,</p><p> उसे नही दिखी ..,</p><p> वह टोपी ...</p><p> ज़िसे पहनी थी शिब्बू ने ...</p><p> प्यार से ...,</p><p> अपने पिता की बहादुरी पर ,अपने ,</p><p> अधिकार से ..!! </p><p><br /></p><p> .....सभाजीत .</p><p>***********</p><p><br /></p><p>जल में...,</p><p> एक छोटी मछली को ,</p><p> बडी मछली खा गयी ,</p><p> हलचल हूई ,भगदड मची ,</p><p> हिलोरें उठीं ., और कुछ नही हुआ ..!!</p><p> लोगों ने बल को नियति मान ,</p><p> मत्स्य को पूज लिया ,</p><p> और छोटी मछलियो को भोजन मान ,</p><p> उन्हे अपने जालों में फंसा ,</p><p> खुद खा गये ...!!</p><p> </p><p> जल के किसी कोने में , </p><p> किसी भी तल पर </p><p> ना कोई संवेदना जागी </p><p> ना फूटी कोई विद्रोह की आग .!!</p><p><br /></p><p> थल में ,</p><p> एक शेर ने ..अचानक झपट्टा मार ,</p><p> शांति से घास चरते ,</p><p> मृगों के झुंड पर किया वार ,</p><p> मार कर उन्हे ,</p><p> बना लिया अपना आहार ,</p><p> लोगों ने बल को नियति मान ,</p><p> शेर को पूज लिया , </p><p> </p><p> ओर मृगों को भोजन मान ,</p><p> निकल पडे करने उनका शिकार !!</p><p><br /></p><p> कही भी इन निरीहों के प्रति ,</p><p> ना उठी हूक , ना बही कहीं ,</p><p> द्रग धार ...!!</p><p><br /></p><p> नभ में भी ,</p><p> बलवानो ने किया राज ,</p><p> छोटे परिन्दों को , </p><p> खा गये चील , बाज ,</p><p> लोगों ने बल को नियति मान ,</p><p> गरुडों को पूज लिया ,</p><p> छोटी चिडियों को </p><p><br /></p><p> खुद अपने भोजन के लिये फंसा ले गये .,</p><p> फंदेबाज ..!</p><p> इन नि:शक्तों के लिये , नभ में ,</p><p> ना हुआ कोई घमासान ,</p><p> ना उठी आवाजें ,</p><p> ना दिये किसी ने प्राण ...!!</p><p> </p><p> आश्चर्य कि ,</p><p> युगों युगों से ...,</p><p> जल ,थल ओर नभ में </p><p> निर्बल ओर बल ..,</p><p> श्रष्टि के बने रहे अनिवार्य अंग ,</p><p> विपरीत ध्रुवों पर टिके , </p><p> एक दुसरे के परस्पर . </p><p> विरोधी हो कर भी , </p><p> चलते रहे संग संग ..!! </p><p> </p><p> न हुए एक दुसरे के खिलाफ , </p><p> न ही हुए कभी लाम बद्ध ..,</p><p> एक दूसरे को मिटाने .नही लड़े कोई </p><p> युद्ध,,।</p><p> </p><p> फिर क्यू मानव ,</p><p> दो दलों में बंट गया ??</p><p> एक दूसरे को काट कर ,</p><p> क्यू खुद भी ,</p><p> कट् गया ...??</p><p><br /></p><p> शायद यहां निर्बल ओर बल के बीच ,</p><p> एक ओर वर्ग -- </p><p> ' दुर्बल ' भी था ,</p><p> ज़िसके मन में </p><p> ' बलशाली बन ,</p><p> सत्ता बल हाथियाने का</p><p> छल था ,</p><p><br /></p><p> निर्बल ओर बल , </p><p> इस दुर्बल के शिकार बने .,</p><p> </p><p> तलवारें,, दुर्बल के हाथ रही ,</p><p> निर्बल,, बस उसकी धार बने ..!!</p><p><br /></p><p> ----सभाजीत</p><p>************</p><p><br /></p><p>पूनम का चांद ,</p><p> यूँ तो हर माह , </p><p> मेरे आंगन में आता है ,</p><p><br /></p><p> अपनी धवल मुस्कान से ,</p><p> मेरे मन को लुभा जाता है .!!</p><p><br /></p><p> लेकिन </p><p> ओ " शरद पूर्णिमा " ,, के "ज्ञानी " चन्द्र ,</p><p> तेरी गुरूतर सीख , </p><p> मेरे काम ना आयेगी ,</p><p><br /></p><p> शरद ऋतु की चांदनी रातें , </p><p> मेरे मन को साल,,,साल जायेगी ,</p><p> पिय जो बसे परदेश ,</p><p> तो तेरी शीतलता भी ,</p><p> मेरे हृदय को ,</p><p> विरह की आग में </p><p> झुलसायेगी.... !!</p><p>---' सभाजीत' </p><p>***********</p><p>माता - पिता </p><p> ******</p><p><br /></p><p>मर जाते हैं लोग ,</p><p>जन - परिजन ,</p><p> सुह्रद ,</p><p> माता - पिता ,</p><p> धुंधला जाती है </p><p> छवि ,</p><p> लेकिन</p><p> ' अहसास ' नहीं मरते ।</p><p> </p><p> घुप्प अंधेरे में ,</p><p> जहां ,,</p><p> सूझता नहीं </p><p> हाथ को हाथ ,,,</p><p> या निर्जन में ,</p><p> दिशाहीन घनघोर ,</p><p> समस्याओं के </p><p> आच्छादित जंगल में ,</p><p> एक घट जल की तलाश में ,</p><p> तरसते ,</p><p> सूखे कुएं की तरह ,</p><p> आवाज देते , रह रह कर झांकते ,</p><p> अपने ही मन में , </p><p> जब घबराता है दिल ,</p><p> तभी लगता है ,</p><p> की कोई है जरूर साथ</p><p> क्योंकि ,</p><p> कभी भी ,,</p><p> सिर पर , </p><p> आशीष से सराबोर , </p><p> कंपकंपाते दो </p><p> अदृश्य हाथों के , </p><p> ' विजयी भव,,,'</p><p> वचनों के , </p><p> विश्वाश नहीं मरते है ।।</p><p><br /></p><p> -- सभाजीत</p><p>**************</p><p>जब भी दर्पण में देखती ,</p><p> तो ईठला कर , मुस्कराते हुए ,</p><p> वह पूछती रही ..,</p><p> पहचानते हो मुझे ,..??</p><p> ओर हर बार ,</p><p> मुंह बिचका कर ,</p><p> चिढाती रही , मैं उसको ,</p><p> चलो हटो ,</p><p> मुझे ओर भी कई काम हैं ,</p><p> तुम्हें निहारने के अलावा ..!!</p><p> इस दुनिया में ....,!!</p><p><br /></p><p> ना जाने कब ओर कैसे ,</p><p> बस गयीं थी एक नयी दुनिया ,</p><p> उसी कमरे में ,</p><p> जहां रखा था ..आदमकद आयना ,</p><p> मेरा बालसखा , </p><p> मेरी उम्र का राजदार ,</p><p> जो मायके से मुझे पछयाये ,</p><p> चला आया था ,</p><p> डोली चढ कर </p><p> मेरे साथ ..!!</p><p><br /></p><p> बच्चों की निकर , </p><p> बिटिया का दूपट्टा ,</p><p> इनकी शर्ट ,</p><p> ओर कभी कभी ,</p><p> मेरी साडी , </p><p> जब टंग जाती उस पर ,</p><p> तो ना वह मुझे कभी देख पाता ,</p><p> ओर ना मैं उसे ..!!</p><p><br /></p><p> धीरे धीरे बीतता गया समय ,</p><p> ओर पड़ता गया धुंधला वह ,</p><p> इतना धूमिल ,</p><p> कि उसे देखने की </p><p> आदत ही नही रही ,</p><p><br /></p><p> लेकिन ...</p><p> कई सालों बाद ,</p><p> आज हम आमने सामने थे कमरे , में ,</p><p> निपट अकले ..,</p><p> कोई नही था वहां ,</p><p><br /></p><p> बच्चों की निकर ,</p><p> अटेची में बाँध ,</p><p> ले गयीं थी बहूएं अपने साथ ,</p><p> बेटी हो गयीं थी विदा ,</p><p> ओर इनकी शर्ट ,</p><p> दे दी थी मैने दान ,</p><p> क्यूँकी उसे पहनने के लिये , </p><p> वे थे ही नही उस दुनिया में ,</p><p> वही दुनिया ,</p><p> अब नही थी वहां ,</p><p> जो शुरु हुईं थी इसी कमरे से ,</p><p><br /></p><p> आयने में उभरी </p><p> उसी आक्रति ने जब पूछा मुझे ,</p><p> " पहचानती हो मुझे ," ??</p><p> तो मैने भी खिलखिला कर कहा ,</p><p> बखूबी ...,</p><p> तुम्हें भूली ही कब थी ..??</p><p> तुम्ही तो हो , </p><p> जो मुझमें रही हमेशा समाई ,</p><p> ए मेरी छाया ,</p><p> अभी शेष है उम्र ,</p><p> तो रहेंगे साथ साथ ,</p><p> करेंगे दिन रात ,</p><p> ढ़ेर सारी बात ,</p><p> ना बचे है वे वस्त्र , </p><p> जो तुम्हें ढ़क पायें ,</p><p> --' सभाजीत ' </p><p>***************</p><p>दिन रात ..</p><p>तपिश झेलता ,</p><p>धरती के चारों और ...,</p><p> घूम घूम कर ...,</p><p>सूरज से ...,</p><p>आँख मिचोनी खेलता ,</p><p> चन्दा क्या जाने की .. ,</p><p>वह सलोना है ...,</p><p> किसी नन्हे से बच्चे को</p><p>बहलाने का ,</p><p> एक खिलोना है !!</p><p>--'सभाजीत' </p><p>**************</p><p>कमर भर पानी में ,</p><p>खडे होकर ,</p><p>अपलक ताकते हुए .. आसमान में .,</p><p>एक अंजुली पानी .</p><p>.फेंका था ..,</p><p>तुम्हारी तरफ ...,</p><p>जो वापिस आ गिरा </p><p>मेरे ही मुह पर ... ,</p><p>शायद तुम प्यासे नही थे ,</p><p>प्यासा था ...मै ही ..!</p><p><br /></p><p>हाँ ...प्यासा था मैँ ...,</p><p>साल के पन्द्रह दिनो में .,</p><p>तुम्हे याद करने के लिये ..,</p><p>इन पन्द्रह दिनो में ही तो ..,</p><p>एक दिन तुम्हारा था ..,</p><p>जन्म का नही .,</p><p>तुम्हारी मृत्यु का ...,</p><p>उस विदा का .दिन ,</p><p>जब तुम चले गए थे ,</p><p>सदा के लिये ...!!</p><p><br /></p><p>य़ाद आने को तो ,</p><p>कई बातें थीं ...,</p><p>तुम्हारी ऑर मां की ..,</p><p>वो मां का कंघी काढ देना ..,</p><p>मोजे पहनाना ..,</p><p>और तुम्हारा ..</p><p>सायकिल में लगी छोटी सीट पर मुझे बैठा कर ,</p><p>बाजार ले जाना ..,!</p><p>अपना पेट काट कर ,</p><p>मुझे पढाना ..,</p><p>ऑर मेरे अफसर बनने पर ,</p><p>गर्व से मुझे निहारना ..!!</p><p><br /></p><p>लेकिन पन्द्रह दिन तो ,</p><p>यूँ ही गुज़र गये ...,</p><p>इधर उधर पानी देते ,</p><p>कोवों को बुलाते ..,</p><p>पंडित को खिलाते ..,</p><p>ना तुम याद आये ना तुम्हारी य़ादें ..!</p><p><br /></p><p>एक दिन ,तुम्हारे ..,टूटे बक्से में .</p><p>दिख गये ...तुम ऑर मां ,...एकसाथ ..!</p><p>जब एक पैन ..ओर पुराना टिफिंन ..</p><p>एक कोने में धन्से हुए , टकरा गये मेरी ऊँगलियो से ..,</p><p>ना जाने क्यू ..</p><p>सहसा ..बिलख गयीं ..मेरी आँखे ..,</p><p> फफ़क कर रो पडा मैं ..,</p><p>वह पानी ,</p><p>धार बन कर बह गया , आँखो से ..,</p><p> अविरल रुका ही नही ,</p><p>ज़िसे मैने फेंका था ...अंजुली भर ..,</p><p>नदी में धन्स कर .., </p><p>मेरे होठों को कर गया ..तर ., </p><p>आकंठ की </p><p>लगा अब कोई प्यासा नही ..रहा ..,</p><p>ना तुम ..,</p><p> ना मैं .. !!</p><p>- ' 'सभाजीत ' </p><p>*************</p><p>दूर से ,</p><p> पुराना लिबास पहने आदमी ,</p><p> बदला हुआ नही दिखता ..!</p><p><br /></p><p> होता है आभास ,</p><p> जैसे ..वही है ताजापन ,</p><p> वही हिम्मत ,</p><p> वही कुछ कर गुजरने की ताकत ,</p><p> वही नूर ..!</p><p><br /></p><p> रोज धो कर पहनते हुए ,</p><p> लिबास के रेशे रेशे ,</p><p> तार तार ,</p><p> धूप बरसात से उडे हुए रंग ,</p><p> कब हुए जार जार </p><p> ये रोज देखती आँख की </p><p> हैसियत से बाहर था !!</p><p><br /></p><p> दूर से उसी लिबास को देख ,</p><p> सोचते रहे लोग ..</p><p> देखो नही बदला ये शख्श ,</p><p> </p><p> कोई नही जानता ,</p><p> कि बदलने को ,</p><p> दूसरा लिबास , </p><p> उसके पास था ही नहीं .!!</p><p><br /></p><p> और,,,</p><p> लिबास बदलने का अर्थ ,,,</p><p> बदलना नहीं होता ,,!!</p><p> --' सभाजीत ' </p><p>************</p><p>कई दिनों पहले से ,</p><p>खो गयी है किताब ।</p><p><br /></p><p>वो किताब ,</p><p>जिस में झांक कर ,</p><p>ढूंढ लेता था ,</p><p>अपने सवालों के हल ,</p><p>कुछ खास पेजों पर ,,</p><p><br /></p><p>वो किताब ,</p><p>जिसके कई पेज के कोने </p><p>मोड़ कर रखे थे ,,</p><p>की जब भी हो मुश्किलें </p><p>आसानी से खोल सकूं ,,</p><p>टटोल कर उन्हें ,,।</p><p><br /></p><p>वो किताब ,</p><p>जिसे पढ़ने में </p><p> कई बार रुक गया था ,</p><p>और बोझिल आंखों को बंद कर ,</p><p>खो गया था सपनो में ,,</p><p>और </p><p>जूझता रहा था कि ,</p><p>कल्पना और सत्य क्या कभी ,</p><p>एक हो सकते हैं ।??</p><p><br /></p><p>वो किताब ,,</p><p>वर्षों पहले से ,,</p><p>जिसमें रखा था ,</p><p>एक ,,</p><p>मटमैला सा नोट ,,</p><p>इनाम में में मिला ,</p><p>किसी बड़े के आशीष के </p><p> स्मृति चिन्ह की तरह ,,।</p><p><br /></p><p>वो किताब ,</p><p>जिसमे दबे थे ,</p><p>कुछ नम्बर ,,</p><p>कुछ खत ,</p><p>कुछ निशान ,</p><p>मोरपंखी धागों की तरह ,,</p><p><br /></p><p>जिनके धुंधले चेहरे ,,</p><p>अब याद करने पर भी </p><p>याद नहीं आते ।</p><p>बिना किताब देखे ,,</p><p>लेकिन जिन्हें </p><p>भूल नहीं पाते,</p><p>,,जो मिटते भी नहीं ,,</p><p>बार बार मेटे ,,!!</p><p><br /></p><p> ।</p><p><br /></p><p>--'सभाजीत '</p><p>**************</p><p>गाय मत पालिये ,</p><p>पालिये एक ' कुत्ता ',,!</p><p>क्योंकि ,,</p><p>गाय तो माँ है ,,,</p><p>और </p><p>कुत्ता है ,,</p><p>,,नॉकर ।</p><p><br /></p><p>गाय के लिए जरूरी है चारा ,</p><p>चारे के लिए जरूरी है चरोखर ,,</p><p>चरोखर के लिए चाहिए मैदान ,,।</p><p>मैदान के लिए चाहिए ज़मीन ,,!</p><p>और ज़मीन बहुत कीमती है भाई ,,।</p><p><br /></p><p>मैदान अब प्लाट हैं ,, </p><p>प्लाट पर उगते हैं फ्लैट ,,</p><p>फ्लैट होते हैं कांक्रीट ,</p><p>और,,</p><p>कांक्रीट खाया नहीं जा सकता </p><p>क्योंकि ,,</p><p>कांक्रीट ,,खुद खा जाता है ,,</p><p>आदमी को ,,</p><p>आदमी ,,वही ,</p><p>जो पालता था कभी गाय ,</p><p>,,एक माँ को ,,,।</p><p><br /></p><p>तो बिना चारा,,, </p><p>,,आज ,,</p><p>कैसे पल सकती है कोई गाय ,,?</p><p>पल सकता है , तो ,,बस ,कुत्ता ,,।</p><p>क्योंकि खाता है वहः झूठन ,,</p><p>लज़ीज़ मांस ,</p><p>अंडा ,,</p><p>जो नहीं उगता मैदानों में ,,</p><p>मिल जाता है आसानी से ,</p><p>बूचड़ खानों में ।</p><p><br /></p><p>कुत्ता ,,</p><p>लड़ता है मालिक के लिए ,</p><p>भौकता है रात दिन ,</p><p>हिलाता है। दुम ,,</p><p>चाटता है मालिक को ,</p><p>वफादारी निभाता है ,,</p><p>मालिक के फेंके हुए ,</p><p>एक एक कौर के लिए ।</p><p>दे देता है जान ,,।</p><p><br /></p><p>एक दिन ,</p><p>जब हर इंसान के पास होगा ,</p><p>एक कुत्ता ,,</p><p>तो कुत्ते ही ,</p><p>दे देंगे जान , </p><p>आपस में लड़ मर कर ,,</p><p>अपने मालिक की खातिर ,</p><p>और ,,</p><p> बचा रहेगा ,,इंसान ,,</p><p>कुत्तों के खातिर ,,।।</p><p><br /></p><p>--'सभाजीत '</p><p>****************</p><p>लिखा जो मेने कुछ ,</p><p> तो क्यों लिखा ??,</p><p> यह सोच कर में हैरान हूँ , </p><p> अपनी बचपन की दोस्त , </p><p> इस कलम से , </p><p> में परेशान हूँ। ।!!</p><p> --' सभाजीत ' </p><p>**************</p><p>अभिमन्यु की मृत्यु पर , </p><p>छाती पीट कर नहीं रोये पांडव , </p><p>क्योंकि वे जानते थे , </p><p>अभिमन्यु का जन्म हुआ ही था , </p><p> ' वीर गति ' के लिए ,,!!</p><p><br /></p><p> चक्रव्यूह भेदने का ज्ञान , </p><p> सबको नहीं होता , </p><p> और जिन्हे होता है , वे होते हैं भय रहित ,</p><p> जन्म मृत्यु से परे , </p><p>व्यूह के अंतिम द्वार तक पहुँच कर , </p><p>वे लड़ते हैं अकेले ही , </p><p>अंतिम लक्ष्य ,,,' जय - विजय ' के लिए ! </p><p><br /></p><p> जब लक्ष्य हो जय विजय , </p><p> और दृष्टि हो ,,' हस्तिनापुर ' , </p><p>तो फिर सभी योद्धा ही हैं , </p><p>वे भी जो मार देते हैं , </p><p> और वे भी जो मर जाते हैं ,,!</p><p> फिर रुदन किस बात का ,?? </p><p> क्या यह भय है उन जीवितों को , </p><p> की एक दिन वो भी मर सकते हैं , </p><p>" लड़ते " हुए ,,? </p><p><br /></p><p> समर का अगर हिस्सा हुए , </p><p> तो मृत्यु तो है अंतिम परिणीति , </p><p> फिर चाहे हो ' अश्वतथामा हथ भयो ' के झूठे शब्द , </p><p> या किसी शिखंडी की आड़ , जिसके पीछे से चलें , </p><p> तीक्ष्ण बाण ,,!</p><p> धराशायी करदें , किसी ' द्रोण ' या ' भीष्म ' को , </p><p> लेलें कवच कुण्डल दान में , </p><p> और ,,</p><p> रथ का पहिया उठाते कर्ण का , </p><p> करदें वध , </p><p> कह कर यही ,,,की यही है ' न्याय " ,,!</p><p> </p><p> दुश्शाशन की , जांघ पर,</p><p> हो वर्जित गदा का प्रहार , </p><p> या फिर बदले की आग में , </p><p> जला दे कोई ' उत्तरा ' की कोख " ,,!</p><p><br /></p><p> समर है , </p><p> यदि जय विजय का , </p><p> तो सभी हैं युद्ध ' अपराधी ' !</p><p> वे भी , जो छिप कर चलाते हैं बाण , </p><p> और वो भी जो लाक्षागृह की आड़ में , </p><p> रचते हैं ,," षड्यंत्र " ,,!</p><p><br /></p><p> जय विजय सेआगे , </p><p> यदि शेष बचती है तो केवल ' आस्था ' </p><p> जो दिखती है ,,किसी को कृष्ण के रूप में , </p><p> युग पुरुष सी , </p><p> या किसी को , </p><p> बस छलिया ,!</p><p> किसी को दिखती है पाषाण में ,</p><p> ईश्वर की छवि , </p><p> तो किसी को केवल,</p><p> एक खुरदुरा पत्थर ,,!!</p><p><br /></p><p> सत्य सिर्फ भौतिक ही नहीं , </p><p> आत्मिक भी होता है , </p><p> यह जान लेने के बाद , </p><p> शायद शेष ही ना रहे , </p><p> जय - विजय का समर ,,!! </p><p> मरने - मारने की आकांक्षा !!</p><p> ना छाती पीट कर रोने की परम्परा , </p><p> ना रुदालियों का जमघट , </p><p><br /></p><p> रह जाएँ शेष तो बस , </p><p> कबीर के ढाई अक्षर प्रेम के , </p><p> मीठे व्यंग के चुटीले बाण , </p><p> जिसे मुस्करा कर झेल लें सब , </p><p> और बाँध लें ' सार - सार ' अपनी गांठों में ,,!!</p><p><br /></p><p> कह कर की हे मनीष ,,! </p><p>,,,' साहब सलाम ' </p><p> हे काली मसि में मुंह डुबोती ,,,</p><p> अमृत कलम , </p><p> तुझे ,," प्रणाम " ,,!! </p><p><br /></p><p> ,,,सभाजीत</p><p>**************</p><p>,,,, बाढ़ में ,,,,</p><p> </p><p> डूब गया</p><p> ,मेरा , ,,,' बस्ता ,,,!</p><p> </p><p> बह गयी मेरी ,,,</p><p> ' पाठशाला ,,,</p><p> </p><p> ढह गया वह घर ,,,</p><p> जिसमें रहते थे ,,,</p><p> मेरे बूढ़े टीचर जी ,,,!!</p><p><br /></p><p> , </p><p> घर में रंभाती ,,,</p><p> ,,, ' भेंस ' </p><p> ना जाने कैसे ,, बच गयी </p><p> जो नहीं थी बिलकुल ' पढ़ी लिखी ' ,,१</p><p><br /></p><p> नहीं जानती थी ,,</p><p> जो , ' बीन ' का संगीत , </p><p> ,,नेता का भाषण , </p><p> स्वागत गीत ,,,!!</p><p><br /></p><p> जानती थी </p><p> बस मुझको , </p><p> बचपन से ,,,</p><p> चाटती थी मेरा हाथ , </p><p> </p><p> , मालुम थी उसे ,</p><p> ' प्यार ' की भाषा , </p><p> ' स्नेह ' का अर्थ ,,,!!</p><p><br /></p><p> जानवर होकर भी ,</p><p> समझती थी </p><p> मनुष्य के प्रति अपना फ़र्ज़ ,,,!!</p><p><br /></p><p> मेरी आवाज़ , उसके साथ ,</p><p> , अब ,,</p><p> रोते रोते मंद है , </p><p> क्यूंकि ,,, </p><p> चैनलों पर होरहे प्रोग्रामों में , </p><p> दिल्ली की कुर्सी के आगे , </p><p> सबकी आँख 'परदे' पर है , </p><p> और ' कान ' बंद हैं ,,,!!</p><p> --' सभाजीत ' </p><p>*************</p><p>कौन जानता है ,</p><p>'गरल' और 'अमृत' का स्वाद ..?</p><p>शायद गरल 'मीठा' हो ..,</p><p> और अमृत 'कड़वा' ..!!</p><p>गरल एक सत्य है ..,</p><p> मृत्यु जैसा ..!</p><p>जो है अनिवार्य..!!</p><p>और.. अमृत है बस.. 'चाह'..!,</p><p> कुछ पलों,दिनों, और वर्षों की ..!!</p><p>चाह है असीमित..,</p><p>उम्र सीमित..!</p><p>चुनना है मुझे उन दोनों में से कुछ एक..,</p><p> तो मैं चुनूंगा- "मिठास" !!</p><p>'कडवाहट' के साथ जी कर भी क्या करूँगा मैं ..??</p><p>*************</p><p>यह बबूल का पेड़ जो माँ ,</p><p> होता जे एन यू तीरे ,</p><p> में भी उस पर बैठ ,,कन्हैया ,</p><p> बनता धीरे धीरे ,,।</p><p><br /></p><p> ले देती गर माइक मुझको ,</p><p> एक लाउडस्पीकर वाली ,</p><p> किसी तरह अध्यक्ष की कुर्सी ,</p><p> मिल जाती गर खाली ,,।</p><p><br /></p><p> कूद क्षात्रों के कंधों पर ,</p><p> उचक के जो चढ़ पाता </p><p> देश विरोधी नारे मैं भी ,</p><p> गला फाड़ चिल्लाता ,,।।</p><p> </p><p> हर विपक्ष का दल ,आगे बढ़ ,</p><p> हर दिन मुझ को फुसलाता ,</p><p> और चुनाव का टिकट मुझे ,</p><p> देने को रोज बुलाता ,,।</p><p><br /></p><p> पर बबूल का पेड़ नहीं तब ,</p><p> कहीं मुझे फिर दिखता ,</p><p> बस नोटों के बीच हमारा ,</p><p> सारा जीवन पलता,,।</p><p><br /></p><p> 😆😆😎</p><p> ( एक पुरानी कविता की पैरोडी )</p><p>**************</p><p><br /></p><p> हर द्रश्य आज तमाशा है ।</p><p>और तमाशाई है लोग ,,।।</p><p>आंख से नहीं देखते ,</p><p>देखते हैं मोबाइल से ,</p><p>जिसमें नहीं होता ,,</p><p>,,, दिल ,!!</p><p><br /></p><p> चमकता है वहां ,</p><p> बस ,," रिचार्ज "का बिल ,,!!</p><p><br /></p><p>दिल जो भर आता था ,</p><p>कभी कभी छलक जाता था ,,</p><p>दिल जो गाता था ,</p><p>उसमें कोई समाता था ,</p><p>दिल जो टूट जाता था ,</p><p>कोई अनजान भी ,</p><p>उसे लूट जाता था ,</p><p>दिल जो जिद पर आता था , </p><p>रातों में रुलाता था ।</p><p>दिल जिस पर होता था गुमाँ,</p><p>दिल जो कभी होते थे जवां,।</p><p><br /></p><p>अब कहाँ गए चे वो दिल ? </p><p>जो मर गए उदास हो ,</p><p>घुट कर तिल तिल ।</p><p>अब तो सीने में " कलेजे " हैं ,</p><p>बड़े से जिगर है ,</p><p>और मष्तिस्क में </p><p> " भेजे " हैं ,</p><p>शीशों के घरोंदों में रहने वालों ने </p><p> नाज़ुक से दिल ,</p><p> किसने कब सहेजे हैं ??</p><p><br /></p><p>दिल तो आज रोटी रोजी है ,</p><p>मोबाइल में कैद ,,</p><p>एक "इमोजी " है ।</p><p><br /></p><p>हो सके तो ,</p><p>दिल को ढूंढ लाएं ,</p><p>चलो ,,कब्रगाहों , श्मशानों में </p><p>घूम आएं ,,</p><p>जहां बेजान शरीरों में , आत्माओं में भी ,</p><p>दिल अभी कहीं ज़िंदा हो ,</p><p> उनके दिल से मिल कर ,</p><p> हम ,</p><p> आज </p><p> ,खुद ,अपने से थोड़ा </p><p>,,,शर्मिंदा हों ।</p><p><br /></p><p>-'सभाजीत</p><p>************</p><p>अवतार...!!</p><p><br /></p><p>जाने कितने भजन हमने ,</p><p>मंदिरों में दिन रात गाये,</p><p><br /></p><p>'राम ' फिर वापिस न आये ॥!!</p><p><br /></p><p>कितने पुतले ,</p><p>हर गली हर जगह ,</p><p>गाँधी के लगाए,</p><p><br /></p><p>सौ बरस के बाद , गाँधी को न पाए ॥!!</p><p><br /></p><p>दीन दिख कर ,</p><p>खुद को हमने कहा निर्बल ,</p><p>भक्त बनकर ,</p><p>असहायों की , पंक्तियों में , हुए शामिल ,</p><p>बचाने अब हमें शायद,</p><p>फिर से वो अवतार आयें ॥!!</p><p><br /></p><p>हर तरफ देखा सभी दिन,</p><p>धर्म धारण , कर रहें है ,</p><p>प्रकति के प्रत्येक अंग,</p><p>कर्म को ही धर्म कहते ,</p><p>बृक्ष , पानी, सूर्य चन्द्र ,</p><p>प्रकृति के इस धर्म की फिर ,</p><p>क्योँ इबारत पढ़ न पाए,</p><p><br /></p><p>अग्नि ,जल , मिटटी , और वायु,</p><p>से बने है जीव सब,</p><p>हम प्रकृति के अंश है ,</p><p>हम में ही बसता है वो " रब" ,</p><p>'को अहम् 'से 'सो अहम्' का ,</p><p>मंत्र क्यों ना , जान पाए॥,</p><p><br /></p><p>ग्लानिहोगी धर्म की जब ,</p><p>'असत' का होगा विकास,</p><p>उदित होऊंगा " में " तब ,</p><p>करने सभी दुष्टों का नाश,,</p><p>कृष्ण के इस " में " को हम ,</p><p>क्यों नहीं पहचान पाए॥?</p><p><br /></p><p>" में " नहीं कोई 'अहम् ' ,</p><p>न कोई 'अभिमान ' है॥,</p><p>में तो केवल आत्मा का ,</p><p>'सत्य धारी ' नाम है ,,</p><p>उसने कितने बार पकड़ा॥,</p><p>हम रहे दामन छुडाये ॥!!</p><p><br /></p><p>मुझ में ही है सभी वे सब ,</p><p>राम , गांधी , और कृष्ण ,</p><p>खुद से ही हम , खुदा है ॥,</p><p>और खुद में ब्रम्हा और विष्णु,</p><p>हमारे अंतस का ' में "</p><p>जिस भी दिन जग जायेगा ,</p><p>यह ज़माना , उसी दिन ,</p><p>अवतार सन्मुख , पायेगा ॥!!</p><p><br /></p><p><br /></p><p>-- सभाजीत शर्मा</p><p>*************</p><p>उसके शालीन चेहरे पर बात हुई ,</p><p>वो किससे क्यों दूर , और किसके कितने पास हुई ,</p><p>वो कब बहू बनीं , और कब सास हुई,</p><p>वो कब तलक आम रही , और कब खास हुई ,</p><p>वो किस पर मेहरबान , और किसके गले की फांस हुई ,</p><p><br /></p><p>लेकिन ,,,</p><p>किसी ने न जाना ,,,</p><p>वो क्यों , कब , किसके लिए ,,अकेले में ,,</p><p>उदास हुई ,,।।</p><p><br /></p><p> - सभाजीत </p><p><br /></p><p>#ज़माना</p><p>***************</p><p>लकड़हारे को मिला ,</p><p>न्याय,,,</p><p>ईश्वर का ,,</p><p>अगले जन्म में बनाया</p><p>उसे एक पेड़,,,</p><p>और मरे हुए पेड़ को बनाया</p><p>एक ' लकड़हारा ' ।</p><p>जन्म से , ,,,बूढा होकर , </p><p>सूख कर निर्बल हुआ पेड़ ,</p><p>डर से कांपते हुए , </p><p>करता रहा इंतज़ार ,,,</p><p>कि ,,</p><p>न जाने कब आजाये ,,</p><p>लकड़हारे के वेष में ,</p><p>पिछले जन्म का पेड़ ,,</p><p>और काट दे उसे ,,समूल ,,जड़ से ,,</p><p>जैसा ,,उसने किया था ।</p><p><br /></p><p> बहती हवा से , </p><p>उड़ते बादल से , </p><p>कोटर में बैठे ,पंछियों से , </p><p>लेता रहा टोह ,,हरदिन,,</p><p>मगर ,,</p><p>नहीं आया वह पिछले जन्म का पेड़,,</p><p>कुल्हाड़ी लेकर ,,।</p><p><br /></p><p>एक दिन गुजरते हुए एक पथिक से ,</p><p>पूछा उसने ,, कि ,,</p><p> कहां गया वह लकड़हारा - पेड़ ? </p><p>तो पथिक ने बताया ,,</p><p>कि वह तो बन गया ,,</p><p>एक कुशल ,"माली ",,!</p><p>ऊसर मिट्टी को अपने हाथों सींच कर , </p><p>हज़ारों हज़ार पौधे रोपे उसने ,,</p><p>जो अब बन गए हैं आज गहन जंगल ।</p><p>पानी भरे बादल , थम गये वहीं , </p><p>रम गए नन्हे पंछी वहीं ,,उन्ही डालों में ,,</p><p>हवा तो वहीं बतियाती रहती है हरदम ,,।</p><p><br /></p><p>इसलिए किसी ने आकर ,</p><p>नहीं बताया तुम्हे। ,</p><p>उस भगवान के बारे में , </p><p>जिसका न्याय यही था ,,</p><p>कि</p><p>तुम महसूस करो आजन्म ,,</p><p>,,मौत की सिहरन ,</p><p>और वह भोगे ,,,</p><p>जीवन का आनन्द ,,।।</p><p>क्योंकि </p><p>नही जन्मे थे तुम दुबारा किसी बदले के लिए ,</p><p>बल्कि जन्मे थे ,, </p><p>महसूस करने को ,,</p><p>अपने कर्म ,,।</p><p><br /></p><p>--सभाजीत</p><p>***************</p><p>रंगीनियाँ नहीं , कोठे नहीं ,</p><p> अच्छा हुआ जो गालिब ..तुम मर गये ,</p><p> शायर सब प्रागतिशील हो गये , </p><p> लेकर अवार्ड अपने अपने घर गये ..!!</p><p><br /></p><p> 😨😨😁</p><p>***************</p><p>WE INDIAN </p><p><br /></p><p>भक्त तो हैं ,</p><p>मगर आसक्त नही .,</p><p>क्रांति का मतलब ,</p><p>हमारे लिये .." लाल लाल रक्त " नही ..!</p><p>किसी ओर जगह बोये गये ,</p><p>ओर किसी ओर देश में जा निकलें ,</p><p>हम ऐसे विस्तारवादी ..." दरख्त " नही !!</p><p>ज्ञान हमारे लिये चिन्तन मनन है ,</p><p>राज करने के ताज ओ तख्त नही ..!!</p><p>हथोडा सिर में मार कर ,</p><p>हँसिये से काट ले सिर ,</p><p>हम इतने चालाक , कम्बखत नही ,</p><p>हमने अपने लुटेरों को भी ,</p><p>मेहमान मान इज्जत बख्शी ,</p><p>हम नर्म मीठे खर्बूजे ही रहे ,</p><p>चाकुओं की तरह चमकदार ,</p><p>कातिल ओर सख्त नही ..!!</p><p>---' सभाजीत ' </p><p>*************</p><p>" योगेश्वर कृष्ण " </p><p><br /></p><p>'....मैं नहीं कोई अंग..</p><p>मैं तो आत्मा हूँ ,</p><p>जलने , कटने , मरने से मैं क्योँ डरुंगा ?</p><p>मैं नहीं कोई रंग ..,</p><p>मैं तो आसमां हूँ ..,</p><p>एक कोना भरने से क्या पूरा भरूँगा ?</p><p>मैं नहीं कोई राह ...,</p><p>मैं तो एक दिशा हूँ ..,</p><p>क्या किसी एक लक्ष्य पर जा कर रूकूंगा ?</p><p>मेरी सीमाओं को</p><p>ना परिभाषित करो..,</p><p>मैं तो हूँ अनंत , युग युग तक जियूँगा..!!........,</p><p><br /></p><p>... सभाजीत</p><p>*************</p><p>सदियों पहले ,</p><p>आदम स्वर्ग से धकेला गया </p><p>और लुढ़क कर ,</p><p>पृथ्वी पर आया ,,</p><p>पीछे पीछे हव्वा भी आई ,,</p><p>और ,,,</p><p>उसके भी पीछे ,</p><p>वह अधखाया फल ,</p><p>लुढ़कते हुए पृथ्वी पर आया </p><p>और ज़मीन पर बिखर गया ।</p><p>पानी बरसा , </p><p>गरमी मिली ,</p><p>और फल फिर धरती पर उग गया ।</p><p>एक बृक्ष बन कर ,,।</p><p>और धीरे धीरे ,</p><p>फैल गया चारों ओर ,</p><p>जंगल बन कर ,,।</p><p>आदम और हव्वा ,,</p><p>भूल गए कि कोई फल था , </p><p>चाहत के विषफल का स्वाद ,</p><p>मुंह में लिए ,</p><p>उन्होंने भी बसा ली ,</p><p>बस्तियां ,,जंगलों के बीच ।</p><p>अब मनुष्य था ,</p><p>और हवस का जंगल ,</p><p>फैलते गए फैलते गए ,,</p><p>इतना कि ,</p><p>सागर और आसमान भी ,</p><p>छोटे पड़ गए उनके लिए ।</p><p>कभी कभी ,</p><p>याद आता था उन्हें खुदा ,,</p><p>जो डराता था उन्हें ,,</p><p>की फल मत खाना ,,</p><p>लेकिन बस डर ही तो था ,</p><p>खुदा नहीं था ज़मीन पर ,</p><p>वो तो आसमान में था , </p><p>जो दिखता ही नहीं था,,</p><p>तो डरना भी क्या ?? </p><p><br /></p><p>आदम , हव्वा , और फल ,</p><p>हो गए चाहत और हवस का पर्याय ।</p><p>पुरुष आदम </p><p>और स्त्री हव्वा , </p><p>धर्म और कर्म हो गए ।</p><p>इतना ही शेष बचा ,,</p><p>फलों के विषाक्त ढेर,,</p><p>दिन भर उनके चारों ओर सजे </p><p>ललचाते रहे ,,</p><p>और बताते रहे ,,</p><p>स्वर्ग का मतलब ,</p><p>तो हम तीन ही हैं न ? </p><p>खुदा तो ,</p><p>हमारे मरने के बाद ही ,</p><p>आएगा हमारे सामने ,,</p><p>तब क्या करेगा ? ,,</p><p>हिसाब , फैसला ,? </p><p>और तब कहां लुढ़कायेगा हमें ?</p><p>किसी दूसरी धरती पर ?? </p><p>जहां फिर होंगे हम तीनों फिर से साथ साथ ,</p><p>क्योंकि हम तो अमर हैं ,,</p><p>रूह हैं ,,</p><p>खुदा के स्वर्ग की ,</p><p>और बिना स्वर्ग के ,</p><p>खुदा की क्या पहचान ?? </p><p><br /></p><p>😊😁</p><p>**************</p><p>वह कौन औरत है ,,? </p><p>जो दिन में पालती है एक लड़की को , </p><p> बेटी की तरह , </p><p>और रात को , </p><p> बेच देती है , </p><p>चन्द सिक्कों के लिए ,,?? </p><p><br /></p><p>वह कौन सी गाड़ियां हैं , </p><p>काली , लाल , नीली , पीली , </p><p> जो , </p><p> ढोती है मासूमों को , </p><p>असबाब की तरह , </p><p> इस्तेमाल होने के लिए , </p><p><br /></p><p>वह कौन से रंगीन होटल हैं , </p><p>जहाँ बुक होता है कमरा , </p><p>व्यभिचार के लिए , </p><p> पूरी जानकारी के साथ ,,,</p><p>जहाँ से कोई सिसकी ,</p><p> नहीं निकल सकती बाहर , </p><p> साउंड प्रूफ खिड़कियाँ तोड़ कर , </p><p><br /></p><p>वह कौन सा यात्री है , </p><p>जो ठहरता है,, कमरों में </p><p> पूरी निर्भीकता के साथ , </p><p>की उसके ऐशो आराम के पूरे इंतज़ाम , </p><p> पहले से ही निश्चित हैं , </p><p> बिना किसी खतरे के , </p><p><br /></p><p>वह कौन सी पुलिस है , </p><p>जो रखती है सतर्क आँखें ,</p><p> होटल में लगे , </p><p>, सी सी टीवी के कैमरे पर , </p><p> मगर देख नहीं पाती ,</p><p> अंधेरे दृश्य ,,।</p><p> जो भांप लेती है , किसी एक ही हलचल से , </p><p> किसी की भी नियत , </p><p> किसी भी सूरत में , देख लेती है , , </p><p> रोते हुए चेहरे ,</p><p> की कुछ तो घटा है गलत , </p><p> रोशनी से नहाये होटल की , स्याह दीवारों के पीछे , </p><p>मगर तलाश नहीं पाती ,</p><p>धुँधलाया सच ।।</p><p><br /></p><p>जिस दिन ,</p><p>कोई पुण्य प्रसून बाजपेयी , रवीश , सुधीर , रजत </p><p>सियासत को बदलने की , बातों में ना उलझ कर , </p><p> सचमुच ढूंढने में लग जाएगा , </p><p>इन सवालों के जबाब , </p><p> अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ , </p><p>निर्भीकता से , </p><p>उसी दिन , </p><p> शुरू हो जाएगी वह जंग , </p><p> जो बदल देगी , ना सिर्फ तस्वीर समाज की , </p><p> बल्कि ' तकदीर ' भी , </p><p> उन मासूम बेटियों की , </p><p> जिनकी जुबान सदियों से बंद हैं , </p><p> लेकिन आँखें बता रही हैं , कई दास्ताँ , </p><p> आंसुओं से भरी ,</p><p> बेबस ज़िंदगी की ,,!!</p><p><br /></p><p> या फिर अगर , दूर दूर तक , नहीं हुआ कोई भी ,</p><p> फिर भी , </p><p> लिजलिजी मोमबत्तियां नालियों में बहा , </p><p> अगर लोग निकल आएंगे , घरों से बाहर , </p><p> ढूंढने,</p><p> इन सवालों के जबाब , </p><p> बल्कि ढूंढने खुद , </p><p> उन लोगों को , </p><p>जो छुपे हैं , सफ़ेद पॉश , , धवल वस्त्रों की चमक में , </p><p>सुरक्षा घेरों में , </p><p> तो छिड़ जाएगी वो जंग , </p><p> जिसका फैसला , </p><p> आरपार ही होगा , </p><p> सदा के लिए ,,!</p><p><br /></p><p>,,,सभाजीत </p><p>,**************</p><p>वचन ही तो था .,</p><p> </p><p> एक पिता का ...,</p><p> जो दिया था उसने ,,</p><p> एक बेटी को ,</p><p> ,,,,' ऐ ,मेरे आंगन के कोमल फूल ! '</p><p> ,, पालूँगा मैं तुम्हें,</p><p> एक माली की तरह ...,! '</p><p> </p><p> रखूँगा अपने घर के आंगन में , </p><p> सुरक्षित ...,</p><p> बचाकर आंधी , तपन से,,</p><p> तना रहूँगा ,,</p><p> एक छाते की तरह ,</p><p> तुम्हारे सर पर , </p><p> अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ ,.</p><p> तब तक , </p><p> जबतक ..</p><p> .झुलस कर धूप में ,</p><p> खुद मेरी त्वचा ,,</p><p> ज़र्जर ना हो जाये ..!</p><p><br /></p><p> वचन ही तो था ,</p><p> </p><p> जो दिया था ,,</p><p> सहोदर ने ,</p><p> कि रखूंगा ,,,</p><p> एक सेतु की तरह ,</p><p> जोड कर तुम्हें ,</p><p> तुम्हारी अपनी पुरानी ड्यौढ़ी से ,</p><p> हर साल , </p><p> जब पडेंगे इस गावं में झूले ,</p><p> तो लाऊंगा लौटा कर वापिस ,</p><p> कि खो ना जाये </p><p> तुम्हारी शरारत ,</p><p> खिलखिलाहट ,,</p><p> ओर बचपन ,</p><p> जो रखा है सहेजकर ,</p><p> मैने अपने बस्ते में अभी तक , </p><p> चाकलेट की तरह ,...!!</p><p><br /></p><p> वचन ही तो था , </p><p> </p><p> जो दिया था ..पति ने ,</p><p> ,, रखूँगा तुम्हें ह्रदय में ,</p><p> एक सुन्दर मूर्ति की तरह ,</p><p> कि आलोकित रहे मेरा जीवन ,</p><p> तुम्हारी मृदु मुस्कान से ,</p><p> आंगन की तुलसी , </p><p> मन्दिर का दीप ,</p><p> तुम्हें सोंप कर मेरी माँ ,</p><p> निश्चिंत होजाये ...,</p><p> जीवित रहेंगी परम्परायें ..,</p><p> उसके जाने के बाद भी ..!</p><p> </p><p> घर की रुन झुन ..,</p><p> बजे तुम्हारे आँचल के तले ,</p><p> एक नन्ही बेटी का रूप धर ,</p><p> ओर मैं दूँ फिर एक वचन .</p><p> .पिता बन ,</p><p> तुम्हारे पिता की तरह ..!</p><p><br /></p><p> ये वचन ही तो थे</p><p> वे रक्षा सूत्र ,</p><p> जो निभाने के लिये ही हुए थे स्रजित ,</p><p> एक नारी की रक्षार्थ !</p><p> एक पुरूष की बलिष्ठ,,</p><p> कलाई पर ,</p><p> बंधे कुछ धागों के रूप में ,</p><p> अग्नि वेदी के सामने ,</p><p> गन्ठजोडें के रूप में ,</p><p> जो आज भी शाश्वत है ,</p><p><br /></p><p> बस छूट गया है... , </p><p> वह " पौरुष .."..</p><p> जो परम्परा थी,,,</p><p> पुरूष की गूंजती ध्वनि में ,</p><p> आदि ग्रंथों के ,,</p><p> अमिट लेख की तरह ,</p><p> कि,,,,</p><p> .. " प्राण जायें पर वचन ना ज़ाई ..!"</p><p><br /></p><p> _____ सभाजीत </p><p>************</p><p>कोई ,,</p><p>ऐसा क्यूँ लगा ,?</p><p>जिससे कभी नहीं मिले </p><p>न कभी बात की ,</p><p>सिर्फ ,</p><p>नाम से ही परिचित रहे ,</p><p>जानते रहे ,उसे ,,ऐसे ,,</p><p>,जैसे ,,</p><p> जानते हों सदियों से </p><p> ,</p><p><br /></p><p>कोई ,</p><p> ऐसा क्यूँ लगा ? </p><p> कि जिसे टेर लें ,</p><p> कभी भी </p><p> कोलाहल में ,</p><p> , घबराकर , </p><p> असहाय से ,</p><p> और दूर से ही जबाब मिले,,</p><p> की परेशाँ क्यों हो ,,</p><p> में हूँ न ,,,!!</p><p><br /></p><p>कोई ,,</p><p>ऐसा क्यों लगा ? </p><p>जिसका चेहरा ,</p><p>लगा ,,कि</p><p>अभी अभी तो देखा है ,</p><p>घर में ,</p><p>बाहर में ,</p><p>भीड़ में ,,</p><p>अपने चारों ओर ,,</p><p>कि जिसकी सहज मुस्कान </p><p>विश्वाश है ,</p><p>घने तिमिर में ,</p><p>कौंधती किसी ,विद्युत रेखा सी,</p><p>सावधान करती,</p><p>कदम उठने से पहले </p><p> सम्हलने की ।</p><p><br /></p><p>कोई ,</p><p>ऐसा क्यों लगा ,</p><p>कि</p><p>चले जाने के बाद भी ,</p><p>होता रहा आभास ,</p><p>कि वह अभी बैठा है</p><p> वहीं ,</p><p>जहां नज़र आता रहा ,</p><p>हर वक्त ,</p><p>हर घड़ी ,</p><p>की बात अभी पूरी ही कहाँ हुई थी,</p><p>उससे,</p><p>अभी तो सिर्फ मेरी ही सुनी थी उसने ,</p><p>अपनी खुद की बात ,</p><p> कही ही कहाँ थी ,,??</p><p><br /></p><p> ---सभाजीत </p><p><br /></p><p> आदरणीय सुषमा स्वराज के जाने के बाद ,</p><p> श्रद्धांजलि ।</p><p>*************</p><p>हक एक समंदर है ,</p><p>फ़र्ज़ एक मूंगा है </p><p>हक के हज़ारों जीभ </p><p>फ़र्ज़ मगर गूंगा है ।</p><p><br /></p><p>हक है बोलना ,</p><p>हक है डोलना ,</p><p>हक है खोलना ,</p><p> ज़हर घोलना ,,।</p><p><br /></p><p>हक है ताकना , </p><p> दूसरों के घर झांकना ,</p><p> बेबसी आंकना , </p><p>, कर्ज़ों में फांसना । ।</p><p><br /></p><p>कीचड़ में घसीटना ,</p><p>सरेआम पीटना ,,।</p><p>लूटना खसोटना ,,</p><p>गिद्धों की तरह नोंचना ।</p><p><br /></p><p>हक है झूमना </p><p> हक है चूमना ,</p><p>हक है घूमना,</p><p>हक है सूंघना ,,।।</p><p><br /></p><p>हक है गरीबी , </p><p>हक है नसीबी ,</p><p> हक है नई बीबी ,</p><p>हक है हबीबी ।</p><p><br /></p><p>हक है खरीद फरोख्त ,</p><p>हक है हर एक गोश्त ,,</p><p>हक है नई चोट </p><p> हक है एक एक वोट ।</p><p><br /></p><p>हकों के इस देश में , </p><p>शरीफों के भेष में ,</p><p> बड़े घाघ शिकारी है ,</p><p> कुर्बानी एक फ़र्ज़ है ,</p><p> इसलिए सावधान ,,फ़र्ज़दाँ</p><p> कल तुम्हारी बारी है ।</p><p><br /></p><p> --' सभाजीत '</p><p>**************</p><p>दूर तक </p><p>करती रहीं पीछा ,</p><p>किसी की नज़र ,</p><p>,,कि शायद </p><p>देख ले वो ,</p><p>पीछे मुड़ कर ,,।</p><p><br /></p><p>पीछे ,,,,</p><p>जहां उंकेरे थे ,</p><p>उसने अपने खुद के ,</p><p>पदचिन्ह ,,।</p><p>स्मृति क्षण ,,।</p><p><br /></p><p>जहां , </p><p>रुक कर ,,</p><p>सुस्ताया था ,,</p><p>पिया था मीठाजल ,</p><p>पोंछे थे स्वेद कण ,</p><p><br /></p><p>पीछे </p><p>जहां पूछा था उसने ,</p><p>आगे गन्तव्य का पता ,,</p><p>किया था हिसाब ,</p><p>कि ,</p><p>कितना चल चुका ,,</p><p>और कितना शेष है , सफर ,,।</p><p><br /></p><p>पीछे ,,</p><p>जहां रखी थी ,</p><p>अपने अनुभवों की गठरी ,,</p><p>जिसमें बंधी थी , कई पलों की यादें ,</p><p>मनुहारें , वादे , नेह -स्नेह के , लबादे ,।</p><p><br /></p><p>सब कुछ था पीछे ,</p><p>जबकि आगे कुछ नहीं था ,,</p><p>आगे तो था </p><p>अज्ञात ,,</p><p>और पीछे था ज्ञात ,,।</p><p><br /></p><p>है सिद्धार्थ </p><p>फिर भी ,</p><p>नही देखा मुड़ कर ,</p><p>एक भी बार ,,,</p><p>सिद्धि की चाह , </p><p>क्या मोह नहीं थी ,</p><p>जिसकी चाहत में ।</p><p>तुमने त्याग दिए ,</p><p>सभी मोह ,</p><p>चाहत के ? </p><p><br /></p><p>जो निकले थे ,</p><p>पोंछने आंसू किसी आगत के ,,</p><p>तो क्यों विमुख हुए ,</p><p>पीछा करती सिसकियों और क्रंदन से ,</p><p>विलखते स्वर से</p><p>जो थे किसी अपने ही </p><p>एक स्वजन , आहत के ??</p><p><br /></p><p>---'सभाजीत '</p><p>****************</p><p>तुम्हारे कहने पर , </p><p> अगर ये मान भी लें </p><p> कि वे </p><p> तानाशाह , फासिस्ट , ज़ालिम हैं,</p><p><br /></p><p> लेकिन</p><p> अपने गिरेबान में </p><p> झांक कर बताओ ,</p><p> कि,</p><p> सचमुच उन्हें हटा कर ,</p><p> क्या आप ,</p><p> उनकी जगह लेने के ,</p><p> ' काबिल ' हैं ,,???</p><p> --' सभाजीत ' </p><p>***********</p><p>कन्या दान की वस्तु है , </p><p> पहले संपत्ति है पिता की , </p><p> फिर पति की ,,,! </p><p> ऐसी संपत्ति ,</p><p> जो हस्तारंतित हो सकती है , </p><p> यही कहते हैं समाज के धर्म शाश्त्र , </p><p> एक बंधी हुई , मटमैली हो गयी , </p><p> किताब के अनुसार ,,,!</p><p><br /></p><p> कन्या एक पौधा है , </p><p> नर्सरी में , बो कर बड़ा किया गया पौधा , </p><p> जिसे बाद में स्थांतरित कर , </p><p> एक बगीचे में रोप दिया जाए , , </p><p> जो दे सके</p><p> फल , </p><p> छाया , हवा , आँचल की ठंडक , </p><p>किसी अनजान बाग़ के रखवाले को , </p><p><br /></p><p>कन्या एक गाय है , </p><p>जिसके गले में एक रस्सी , </p><p>शुरू से ही बंधी रहती है , </p><p>इसलिए की वह मचल ना सके ,</p><p> ना कर सके किलोल , </p><p> खूंटे से बंधने की आदत शुरू से ही ,</p><p>पाल ले वह , </p><p>की बस उसे तो खूंटा बदलना है , </p><p>चाहे यहां हो या वहां ,,!! </p><p><br /></p><p>वस्तु , गाय , पौधा ,,,</p><p>बन कर भी वह ढूंढती है , </p><p>पुरुष की नज़रों में , </p><p>अपनत्व की वह ललक , </p><p> जो ना तोड़े उसका विश्वाश ,, </p><p> सजाये , सँवारे , दुलारे उसे , </p><p>हाथों की सुरक्षित दीवारों के अंदर , </p><p>की भय के अंदर झांकने की , </p><p> कोई खिड़की हो ही ना वहां , </p><p>उस दीवारों के परकोटे में ,,!</p><p><br /></p><p> लेकिन क्या यह हुआ है कभी ??, </p><p> उस जहां में , </p><p> जहां के परकोटे पारदर्शी हों , </p><p> और हर वक्त , </p><p> आदमी भेड़ियों की शक्ल में , </p><p> शिकार पर झपटने को तैयार हों , </p><p> हर वक्त , </p><p> तीखी कुल्हाड़ी हाथ में लिए , </p><p> पौधे ही काटने को तैयार हों ,,,लकड़हारे , </p><p> हर वक्त, </p><p> गाय को मार कर भूख मिटाने को ,</p><p> लपकने को तैयार हों , </p><p> कसाई ,,??</p><p> --' सभाजीत ' </p><p>************</p><p>क्रोंच पक्षी के ,</p><p> प्रेमालाप ,</p><p> और बहेलिये के तीर से ,</p><p> बिंधे,,</p><p> ' नर पक्षी ' के ,</p><p> शरीर पर क्रंदन करते ,</p><p> करुणा से द्रवित हो कर ,</p><p> बालमीक ने,</p><p> एक कालजयी रचना कर दी ।</p><p><br /></p><p> जो समा गई हर दिल मे ,</p><p> बदल दिए युग मूल्य ,</p><p> पूजी गई घर घर ,,,</p><p> लिखी गई बार बार ,</p><p> जब तक नही निकली ,</p><p> अश्रुधार ,</p><p> हर आंख से ।</p><p><br /></p><p> लेकिन ,</p><p> किसी क्रूर शिकारी ,,</p><p> ' श्वान के मुंह मे दबी ' ,</p><p> किसी नन्ही , कोमल चिड़िया का ,</p><p> पंख नोचे जाने पर ,</p><p> मरणांतक ,</p><p> उठा </p><p> आर्तनाद ,</p><p><br /></p><p> क्यों नही दिखा ,</p><p> किसी बाल्मीकि को ?</p><p> क्यों नही उठा </p><p> करुणा का ज्वार ,</p><p> कि ,,,लिख जाता ,</p><p> एक ऐसा आदि ग्रन्थ ,</p><p> जो सत्य था</p><p> सदियों से सदियों तक ,</p><p> </p><p> एक ऐसा आदिग्रन्थ ,,</p><p> जिसकी ,घटनाएं,</p><p> कभी किसी ,</p><p> मंच पर घटित नही हुई ,</p><p> </p><p> लेकिन , </p><p> घटना,,</p><p> जो खेली गई,,</p><p> खेली जाती रही </p><p> तब से आज तक,</p><p> निरन्तर ,</p><p> बन्द कमरों में ,</p><p> कई,,, </p><p> निर्जन स्थलों में ,</p><p><br /></p><p> हर दिन ,,हर समय ,,।।</p><p> --'सभाजीत' </p><p>*************</p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><p> </p><p><br /></p><p> ,</p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p><p> </p><p> ,</p><p><br /></p><p>,</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-46712622651545742382021-01-14T09:44:00.007-08:002021-03-07T06:16:55.022-08:00कविताएं <p> </p><p>भन्ते,,।</p><p><br /></p><p>आना भिक्षाटन हेतु ,</p><p>किसी दिन अपने ही घर ,,।</p><p><br /></p><p>पर आना दिन में ,,</p><p>रात न आना चुपके चुपके ,</p><p>अपराध हुआ वो न दोहराना </p><p>चुपके चुपके ,,।</p><p>वहः पुण्य नहीं था पाप ,</p><p>किया जो तुमने छुप के,,</p><p>एक बार तो देखा होता ,</p><p>सोते पुत्र को मुड़ के,,? </p><p><br /></p><p>तकता जो सूनी डगर,</p><p>अश्रु आंखों में भर,,भर ।।</p><p><br /></p><p><br /></p><p>तुमने त्यागा, पर </p><p>तुम्हें त्याग सकती थी कैसे ,,? </p><p>आँचल के तले दुलारी ,,</p><p> तुम्हारी मूरत ऐसे ,</p><p> न कभी उऋण हो पाओगे ,</p><p><br /></p><p><br /></p><p>,,,,,4,,,,,</p><p><br /></p><p>शानदार पल ,,।</p><p><br /></p><p>***************</p><p><br /></p><p> निशीथ के आगमन का इंतज़ार करते हम फिर से रामलीला भवन के उस कार्यालय में बैठ गये जो अब आधुनिक विवाह भवन का कार्यालय कक्ष था । यह कार्यालय कक्ष भवन के पीछे के उस भू भाग में बनाया गया था जहां एक लंबे कक्ष में कभी हम लोग स्वरूप बना करते थे । इसी कक्ष में लोहे की बड़ी बड़ी पेटियों में , राम लक्ष्मण , भरत , शत्रुघ्न , और सीता माता के भव्य सुंदर , रत्न जड़ित मुकुट सहेज कर रखे जाते थे । हमारे मुख पर पहले मुर्दाशंख का लेप लगाकर , हमें गोरा बना दिया जाता , फिर माथे और कपोलों पर लाली मल के , उन पर गोल बिंदुओं के चक्र बनाये जाते । भौंहें गाढ़ी की जाती और ललाट पर एक बहुत बड़ा विष्णु मुखी तिलक । जब हम वस्त्र धारण कर , और भव्य मुकुट बांध , राम लक्ष्मण सीता आदि का रूप धारण करके एक पंक्ति में एक साथ बैठते , तो हमें अपना स्वयम का कोई बोध शेष न रहता । हमें लगता ,,हम सब वही हैं ,,ईश्वर के स्वरूप। और तब अन्य सभी पात्र , परशुराम , बाली , सुग्रीव , यहां तक कि रावण और मेघनाद भी एक एक कर आकर हमारी आरती उतारते और आंखें मूंद प्रार्थना करते कि यदि उनसे लीला का निर्वाह करते हुए कोई त्रुटि हो जाये तो हम उन्हें क्षमा करें । </p><p><br /></p><p> लीला से पूर्व , हमारे श्रृंगार होते समय , इस कक्ष पर कड़ा पहरा रहता कि कोई अंदर न आने पाए । इस कक्ष में बैठते ही मेरी आँखों में श्रृंगार करने वाले उन लोगों की , छवि तैर गईं जो ईश्वर को रचते थे । हल्के महाराज और गुल्ली सोनी के चेहरे मुझे अब भी याद थे । बीच बीच में , विनोद भाई के ताया जी , नगर के अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति घिस्सू बाबू आकर ताकीद करते कि लीला का समय हो रहा है ,, सब तैयार हो जाएं । नौगावँ की रामलीला में सूत्रधार की वाचक परम्परा भी थी जिसे स्वयम घिस्सू बाबू निभाते । घिस्सू बाबू का नौगावँ के लोगों के दिलों पर एकछत्र राज था । उनका इतना सम्मान था कि उनकी कही बात अकाट्य होती थी । वे बहुत कम बोलते थे ,, किन्तु उनके बोले दो शब्द भी महत्वपूर्ण होते थे । वे दो साथियों के साथ , मंच के एक कोने पर खड़े हो , रामायण हाथ में ले , प्रसंग का सस्वरपाठ करते और तब लीला प्रारम्भ होती । </p><p><br /></p><p> रामलीला भवन के कायाकल्प में सबकुछ बदल चुका था । अतीत के कोई चिन्ह अब शेष नहीं बचे थे । इसी बीच ,,मुझे इधर उधर ताकते देख विनोद भाई ने पूछा ,,-' यह परिवर्तन तुम्हें कैसा लगा सभाजित ,,?? " </p><p><br /></p><p> मैंने कहा ,,-" यह तो कायाकल्प है ,,मुझे तो पूरे नगर का कायाकल्प हुआ दिख रहा है ,, आप यहां हैं इसलिए इसे आप सिर्फ परिवर्तन मान रहे हैं ,,लेकिन परिवर्तन में मूल आत्मा तो उसी काया में रहती है ,,काया नहीं बदलती ,,। " </p><p> </p><p> विनोदभाई मेरे इशारे को समझ गए । बोले ,,-" तुम तो जानते ही हो ,, नौगावँ के लिए हमारे पूर्वजों का कितना बड़ा योगदान है । यहां की रामलीला की स्थापना भी 125 वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने की । यह रामलीला भवन भी उन्होंने बनाया ,,उस युग का अद्भुत थियेटर या कहो नाट्यगृह , उन्ही ने सजाया । यहां का भव्य पुस्तकालय भी उन्हीं की देंन था । यहां की धर्मशाला भी उनकी धार्मिक सोच का परिणाम थी । नौगावँ में विशाल लाल कोठी थी जो नौगावँ की पहचान और उसका गौरव थी । जानते हो ,,?? ,,,,,उस कोठी में 69 कमरे थे । किसी महल से कम न थी वहः कोठी । डिसलरी थी ,,पेट्रोल पम्प्प था ,,। हमारे अपने प्लेन थे ,, जो नौगावँ की हवाई पट्टी पर शान से उतरते थे । लेकिन इस सब धन संपदा से आगे बढ़ कर थी - हमारी वहः प्रतिष्ठा ,,जो हमने नौगावँ को निस्वार्थ सजाने के लिए अर्जित की थी । नौगावँ हमारा ऋणी था और हम नौगावँ के । नौगावँ हमारे लिए एक मंदिर था और हम थे पुरोहित । तब लोग नौगावँ के लिए जीते थे ,,और अब सिर्फ खुद के लिए जीते हैं । पहले सबकुछ निस्वार्थ था ,,अब सब के पीछे स्वार्थ है । " </p><p><br /></p><p> वे थोड़ा भावुक होने लगे थे ,,उन्होंने कहा ,,--" अब नए नए धनकुबेर पैदा हो गये हैं और नेता भी । नौगावँ की एक एक इंच भूमि को भुना लेना चाहते हैं । नई पीढ़ी में हमारे परिवार के लोगों के प्रति श्रद्धा का भाव समाप्त है । लोग नए नए दावे करते हैं ,,अदालतों में खड़े हो कर हमें अपनी ही भूमि के अधिकार पत्र सिद्ध करने पड़ते हैं । लोग हर संस्थान को सार्वजनिक करना चाहते हैं । मैं जानता हूँ ,,रामलीला कमेटी यदि पंचायती हो गई तो सब अधिकार की बात करेंगें किन्तु नौगावँ की इस विरासत का मेंटेनेंस कोई नहीं करेगा । इस स्थिति में यही उचित था कि इसका कायाकल्प कर दूं । टाकीज का चलन जब से खत्म हो गया ,,यह भवन अनुपयोगी हो गया,,। स्कूल में इतनी आय नहीं कि वहः इस विशाल भवन की मरम्मत करवा सके । इसलिए बहुत सोच बिचार कर इसे विवाहगृह बनवा दिया । अमर तो कुछ भी नहीं ,,किन्तु इसके कायाकल्प से मेरे पूर्वजों द्वारा निर्मित यह भवन अब और कुछ वर्ष जी जाएगा ,,यही मेरे लिए संतोष की बात है । " </p><p><br /></p><p> उनकी बात से मैं विस्मित हो गया । मैं अतीत में विचर रहा था,,वे वर्तमान में थे । मैं अतीत के स्वप्नलोक में था तो वे वर्तमान के कठोर धरातल पर । रामलीला में मुझे तीर बनाकर ,,' ,,राम जी ,,!! ,,इस तीर से मारना रावण को ' कहने वाले सरल हृदय सहपाठी विनोद ने जीवन के कितने उतार चढ़ाव देखे थे ,,में उससे भिज्ञ था । अपने अधिकार और न्याय की लड़ाई में उनके अपनों ही से उन्हें कितना उलझना पड़ा था ,,ये बात किसी से छुपी न थी । सचमुच परिवर्तनशील तो इंसान है ,, और जब उसमें परिवर्तन होगा तो अन्य बातों में परिवर्तन तो स्वाभाविक ही था ।</p><p><br /></p><p> तभी निशीथ आ गये । वे गर्मजोशी से गले लगे । निशीथ की काया वैसी ही थी ,,लिन थिन,,। ,,यानी स्लिम । अलबत्ता बाल सफेद हो चुके थे और कुछ दांत गिर चुके थे । निशीथ उदास थे । मैनें पूछा ,,- " निशीथ तुम जल्दी बूढ़े क्यों हो गये। ? " ,,तो निशीथ ने बताया कि उनके साथ एक बहुत दारुण घटना घट चुकी है । पिछले वर्ष कोरोना में उनके युवा बड़े पुत्र की अचानक मृत्यु हो गई । वे मिठाई की दुकान के संचालक थे । मुझे भी धक्का लगा । मैनें कहीं पढा जरूर था किंतु वहः निशीथ के पुत्र थे यह मुझे नहीं मालूम था । निशीथ ने कहा ,,उसके दो छोटे छोटे बच्चे हैं ,,हमने उन्हें अभी भी मालूम नहीं होने दिया है ,,वे पूछते हैं ,,पापा कब आयेंगें तो हम उन्हें बहला देते हैं । लेकिन अब शायद वे समझ चुके हैं ,,ज्यादा जिद नहीं करते । " ! निशीथ की बात से मुझे बहुत दुख अनुभव हुआ । माहौल थोड़ी देर के लिए विषादपूर्ण हो गया । मुझे निशीथ का वहः बाड़ा नुमा बड़ा घर याद हो आया जिसके बाहरी अहाते में बाद में वे लोग दुर्गा जी बैठामे लगे थे । मिठाई की दुकान भी इसी अहाते में बना दी गई थी । तभी विनोद बोले ,,</p><p> -" जानते हो ,,?? निशीत को भी अपनी प्रोपर्टी सिद्ध करने अदालत तक जाना पड़ा । तब मैनें अदालत को बताया कि नौगावँ की प्रसिद्ध कोठी वाली जमीन हमारे पूर्वजों ने निशीथ के पूर्वजों से ही खरीदी थी ,, वे यहां के हमसे भी पहले के लैंडलॉर्ड हैं ,,! " </p><p><br /></p><p> मुझे इस रहस्योद्घाटन पर आश्चर्य हुआ । मैनें कहा ,,विनोद भाई ,,!मैं तो सोच रहा था कि आप लोग नौगावँ की स्थापना से ही यहां आ गये होंगे ,,और निशीथ के पूर्वज बाद में ,,। " </p><p><br /></p><p> विनोद ने कहा " ,,नहीं ,,! निशीथ के पूर्वज यहां पहले आये ,,हम बाद में । </p><p><br /></p><p> निशीथ ने बताया कि उसके पूर्वज अंग्रेजों के यांत्रिकी विभाग के इम्प्लॉयी थे । तो जब छावनी यहां आई तभी उसके पूर्वज उसके साथ यहां आ गये थे । तभी यह जमीन और कोठी के वहः जमीन जिसमें बाद में कोठी बनी ,,उनकी सम्पत्ति हो चुकी थी । </p><p><br /></p><p> मैनें विनोद से पूछा ,,-" तो आपका परिवार फिर नौगावँ क्यों आया ,,?? " </p><p><br /></p><p> उन्होंने कहा ,," लंबी कहानी है । हमारे पूर्वज नेपाल उत्तराखंड के निकट के थे । उन्होंने अंग्रेजों के समय कुछ बांध बनाये । अंग्रेजों ने कांट्रेक्टर में रूप में ,,उन्हें उत्तर प्रदेश बुला कर छावनी की बिल्डिंग बनाने का काम सौंपा तो वे उत्तर प्रदेश आये । वहां उनका व्यवसाय पनपा तो जब नौगावँ में छावनी आई तो उन्हें यहां बुलाया गया । आज जो नौगावँ की मिलिट्री छावनी की बिल्डिंग्स है वे हमारे पूर्वजों ने ही बनाईं । यहां के तीन पुराने प्रमुख बांध भी हमारे द्वारा बनवाये थे । मजबूत इतने की कुदाली मारो तो कुदाली मुड़ जाए पर दीवार में निशान न पड़े । किसी समय जब नौगावँ से रीवा जाने के लिए आधुनिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम नहीं था तब माल ढुलाई और आवागमन में लिए हमारी ही बग्घी सीरम चलती थी । हम अंग्रेजों के प्रथम श्रेणी के कांट्रेक्टर जरूर रहे किन्तु हमने अपनी धार्मिक आस्था , रहनसहन , संस्कृति नहीं बदली । नौगावँ के लिए हमने वहः सब कुछ किया जो एक आदर्श नागरिकऔर उसके संरक्षक को करना चाहिए था । हमारे पास आज भी जमीन की सभी पुरानी रजिस्ट्री मौजूद हैं ,,यहां तक कि शाहजहां काल में आबंटित जमीन के रुक्के भी हमारे पास उपलब्ध हैं । " </p><p><br /></p><p> विनोद की बताई बातों में सच्चाई थी । जब हम बहुत छोटे थे तब एक बार हमने कोठी परिवार का एक इंजिन का एक वायुयान हवाई पट्टी पर उतरते देखा था । बाद में जनरल करिअप्पा के मिलिट्री वायुयान को भी नौगावँ की हवाई पट्टी पर उतरते देखा था । नौगावँ कि हवाईपट्टी छोटे वायुयानों की लेंडिंग के लिए सर्वथा उपयुक्त थी । </p><p><br /></p><p> अचानक विनोद ने फोन लगाया और दिल्ली में बस गये मेरे एक अंतरंग सहपाठी नवल से कहा ,,, नवल ,,! सभाजित आया है लो उससे बात करो । " नवल भंडारी मेरे साथ पढा था । उसने छूटते ही कहा ,," लक्ष्मण और राम के टू इन वन सरूप को नमन । " मुझे हंसी आ गयी । मैनें भी कहा ,,मुझे मुकेश के रिकॉर्ड्स सुनाने वाले ,,तुम्हें जिंदगी के उजाले मुबारक । ' नवल भी जोर से हंसा । वस्तुतः नवल के घर उन दिनों एक रिकॉर्ड प्लेयर होता था ,,और नवल छांट छांट कर मुझे मुकेश के रिकॉर्ड्स सुनाता था । कुछ देर तक पुरानी यादें ताजा की । नवल अब दिल्ली में बड़ा उद्योगपति बन चुका था । लेकिन अब पूरा कारोबार बच्चों को सौंप कर आनन्द का जीवन व्यतीत कर रहा था । </p><p><br /></p><p> अब तक शाम के चार बजे गये थे । बच्चे आतुर ठेवकी कब हमारा मिलन पूरा हो और हम सतना की ओर प्रस्थान करें तो हमने एक बार फिर विनोद से विदा मांगी । चलते चलते मैनें कहा कि सब मिल गए ,,बस गुड्डन पाठक नहीं मिले । शायद वहः इंदौर में है ,,इसलिए फोन नहीं उठाया । इतना सुनते ही विनोद बोले --" ,,कौन ,,?? गुड्डन पाठक विधायक ,,?? वो तो यहीं है ,,। ठहरो अभी बुलाता हूँ । " ,,और उन्होंने तुरंत फोन कर कहा --" कहां हो गुड्डन ,, ?? ,,फौरन रामलीला भवन चले आओ ,,। सभाजित आया है ,,। यहां तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं हम लोग ,,! " </p><p><br /></p><p> वैभव ने कार चालू कर ली थी । मेरे बैठने का इंतजार कर ही रहा था ,,विनोद की आवाज सुन उसने चुपचाप फिर कार बन्द कर ली । वहः जान गया था कि अब जल्दी ही पापा नौगावँ से बाहर नहीं निकल पाएंगें ।</p><p><br /></p><p> गुड्डन पाठक मेरे लिए अनुज समान है । जब 1966 में , हम लोग शिवोम के बगल वाले रैकवार के मकान में किराए से दो वर्ष रहे ,,तब नन्हे गुड्डन पाठक को फ्रेंड्स फ़ोटो स्टूडियो के बरामदे में पैंया पैंया चलते देखता रहता था । गुड्डन मुझसे 12 वर्ष छोटे भाई शार्दूल के सहपाठी भी रहे । बाद में हम लोग 1968 में पाराशर के प्रेस के बगल वाले मकान में शिफ्ट हो गये जहां प्रदीप के साथ मिल कर हमने अलंकार संगीत संघ बनाया , वहीं गिटार सीखा , वहीं पोलटेक्निक पास किया और वहीं से 1970 में नॉकरी करने बालाघाट निकल गया । </p><p><br /></p><p> बाद में जब 1990 में विद्युत मंडल का अधिकारी बन फिर से दो वर्ष हेतु नौगावँ आना हुआ तो गुड्डन से निकटता बढ़ी । गुड्डन का विकसित फोटो स्टूडियो स्थापित हो चुका था ,,। अक्सर में वहां जाता और गुड्डन से आग्रह करता कि वहः वीएचएस पर स्थानीय मोन्यूमेंट ,,मऊ सहानिया के छत्रसाल के महल पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाये । मेरे नौगावँ के अल्पकालीन निवास के कारण वहः सम्भव नहीं हुआ । </p><p><br /></p><p> इस बीच गुड्डन ने क्षात्र राजनीति अपना ली और राजनीति में चले गए । बाद में एक दिन शार्दूल ने बताया कि गुड्डन विधायक हो गए । गुड्डन फिर एक बार निकट आये और एनआरआई बर्ड्स में आकर तो वे प्रतिदिन के साथी हो गये । अब विनोद को आश्चर्य हो रहा था तो मैनें उन्हें गुड्डन से अपने सम्बन्धों के बारे में बताया ।</p><p><br /></p><p> गुड्डन ने ज्यादा इंतजार नहीं करवाया । वे आते ही बोले,,भाईसाहब ,,! मैनें देर से आपका कॉल देखा ,,और जब वापिस लगाया तो आपका फोन बंद हो चुका था । </p><p><br /></p><p> मैनें जांचा तो पाया कि सचमुच मेरा फोन बंद हो चुका था । </p><p><br /></p><p> गुड्डन ने फ़ोन करके रामलीला के अत्यंत पुराने पड़ गए एक राजगद्दी का फोटो घर से मंगवा कर विनोद को थमाया और कहा की पहचानिए,,अगर इसमें कोई व्यक्ति पहचान में आ रहा हो । फोटो पुराना होने के कारण बिल्कुल फेड हो चुका था फिर भी विनोद ने नजर गड़ा कर कई लोगों को,,मन्नी भैया , गुल्ली सोनी , रामकुमार जी ,,आदि को पहचान लिया किन्तु राम लक्ष्मण आदि को पहचानने में विफल रहे । उन्होंने मुझे वहः फोटो थमाते हुए कहा ,," अब तुम देखो,,किसी को पहचान पाओ तो बताओ ,,। " </p><p><br /></p><p> मैनें ध्यान से देखा ,,तो मुझे लगा की सीता के रूप में मिट्ठू यानी चंद्रप्रकाश अवस्थी है ,,किन्तु शेष चेहरे पहचान नहीं पाया । तभी अचानक राम जी के पीछे चंवर डुलाते छोटे से चेहरे पर निगाह पड़ी तो मेरे मुंह से निकला ,," अरे ये तो मैं हूँ ,,लक्ष्मण के स्वरूप में ,, और फिर तत्काल सब को पहचान गया ,,दाएं भरत के स्वरूप में थे प्रेमलाल नायक , बाएं शत्रुघ्न बने गोविंद शर्मा , और राम के स्वरूप में जगदीश तिवारी । यह फोटो 1962 में , गुड्डन के पापा जी , श्री के एन पाठक जी द्वारा खींची गयी ऐतिहासिक फोटो थी । </p><p> </p><p> गुड्डन ने धरोहर के तौर पर वहः फोटो विनोद को सौंपी और कहा ,," चलिये ,,अब मेरे साथ भी देखिए अपने पुराने नौगावँ को । " </p><p><br /></p><p> मैनें निशीथ और विनोद से विदा ली और चल पड़ा गुड्डन के साथ</p><p><br /></p><p> --' सभाजित ' </p><p><br /></p><p> ( क्रमशः )</p><p><br /></p><p>भाव भंगिमाएं,,!</p><p><br /></p><p>किसी लहर की तरह , </p><p>आती हैं ,,</p><p>और </p><p>तट की रेत के </p><p> खुरदुरे चेहरे पर ,</p><p>एक इबारत लिख चली जाती है ।</p><p><br /></p><p>रेत के खुरदुरे चेहरों पर ,</p><p>यादों के पांवों के चिन्ह,,</p><p>बार बार भींगने पर भी ,</p><p>एकदम नहीं मिटते ,,</p><p>होते हैं धूमिल शनैः शनैः ।</p><p><br /></p><p>रेत तपती है </p><p>चटख धूप में ,,</p><p>और ठंडा जाती है </p><p>चाँद की शीतल चांदनी से ,,।</p><p><br /></p><p>चटख धूप , </p><p>और नीरव रात में ,</p><p>कोई नहीं गुजरता रेत पर ,</p><p>नितांत अकेले होते हैं </p><p>रेतीले चेहरे ,</p><p><br /></p><p>भींगते </p><p>नमकीन खारे पानी से ,</p><p>उलझते,,</p><p>लहर के वेग से ,,</p><p>कभी कभी चुप चाप ,</p><p>बतियाते हैं अंधेरी रातों में ,</p><p>टिमटिमाते तारों से ,</p><p>खुरदुरे चेहरे ,</p><p>वक्त गुजारने के लिए ,,।</p><p><br /></p><p>की सूरज की पहली किरण बन कर , </p><p>सुबह सबेरे ,</p><p>कोई बच्चा आये ,</p><p>और बनाले अपने घरौंदे के महल ,</p><p>उसकी गोद में , </p><p>दिनभर ,,</p><p>नन्ही आंखों में , </p><p>सपने सजाने के लिए,,।।</p><p><br /></p><p>--'सभाजीत '</p><p><br /></p><p>है एक पुराना पेड़ ,,</p><p>स्कूल के मोड़ पर ,,</p><p>पूछता हूं उससे ठहर कर रोज ,</p><p>बताओ ,,,कैसा दिखता था ,</p><p>बचपन में ,,' मैं ',,!!</p><p><br /></p><p>😑</p><p>घर की वह पुरानी पौर,,</p><p>जिसे कभी लोग , कचहरी ,</p><p>व बैठका भी कहते रहे,,</p><p>उसमें लगे अपने आराध्यों के चित्र,,</p><p> कभी हमारे धर्म , कर्म , संस्कृति के प्रेरक रहे ,,।</p><p>सत्य अनुगामी रहें ,,हम,,</p><p>संकल्प यह लेते रहे ।</p><p><br /></p><p>उसके बाद ,,</p><p>उसी पौर में लगे,,</p><p>दादा, परदादा , पूर्वजों सहित ,</p><p>राणा , शिवा , गांधी जैसे युग पुरुषों के ,</p><p>तपस्वी चित्र हमें ,</p><p>कर्म और धर्म , </p><p>नीति और रीति ,</p><p>की दिशा देते रहे ,,</p><p>भटक न जाएं हम ,,कभी,,</p><p>ये संस्कार संजोते रहे । </p><p><br /></p><p>समय बदला,,</p><p><br /></p><p>पौर भी बदली ,,</p><p>बन गयी ग्राईंग रूम </p><p>और बदल गए ,,</p><p>चित्र,,किसी कला दीर्घा की तरह,,।</p><p>उसने ,,जंगल और बस्ती का मिला जुला ,,</p><p>अजायबघर रूप धारण किया ,</p><p>शेर चीते , भालू, बंदर , </p><p>बगुले बतख , काले कबूतर ,</p><p>कांच के शोरूम में सजे ,</p><p>अलमारी के ऊपर ,,,,</p><p>गन्धहीन फूल ,पौधे मनीप्लांट </p><p>कमरों में उगे ।</p><p>कहीं खजुराहो की मूर्ति ,</p><p>कहीं अभिनेता अभिनेत्री के मुखड़े,</p><p>कोनों ,,दीवारों की </p><p>रौनक बने,,।</p><p><br /></p><p>उन्हीं के बीच कहीं ,</p><p>पुरातात्विक वस्तुओं के टूटे फूटे ,,</p><p>विकलांग टुकड़े कहते दिखे,,</p><p>क्या थे हम और अब क्या हो गए,,।</p><p>हमारे कलात्मक मूल्य,,</p><p>कहां खो गये ,,!!</p><p><br /></p><p>किन्तु अब तो वहः पौर,,</p><p>पहचानी ही नहीं जाती ,</p><p>दरवाजों की ऊंची मेहराब </p><p>नज़र नहीं आती ,,</p><p>गति के साथ </p><p>सभी बह गए ,,</p><p>पुराने प्रतीक सब ,</p><p>ढह गये ।</p><p>गावँ , गली , मोहल्ला तो वही है ,</p><p>एक दूसरे को टेर कर </p><p> प्यार अधिकार से बुलाने का </p><p>हल्ला नहीं हैं ,,</p><p>अपने अपने कमरों में ,</p><p>सब मौन है ,,</p><p>आवाज़ के नाम पर , </p><p>बस टीवी ऑन है ,,।</p><p>कोई किसी से नहीं पूछता ,,</p><p>माता पिता के अलावा ,,</p><p>आप कौन हैं ,,</p><p><br /></p><p> गर्व से कहता है आदमी ,,</p><p>ये नया दौर है,,</p><p>में ढूंढता हूँ ,,</p><p>जहां में चैन से दो मिनट बैठ सकूं,,</p><p>वो कहां मेरे पूर्वजों की,,</p><p> खोई पौर है ।।</p><p><br /></p><p>---" स्व0 श्री ज्ञानसागर शर्मा</p><p><br /></p><p>सभी का आभार प्रकट करते हुए ,,,उनकी डायरी की एक बुंदेली रचना शेयर कर रहा हूँ ,,।</p><p> ये रचनाये मेरे पूज्य पिता स्व0 श्री ज्ञानसागर शर्मा जी की है । जो उन्होंने अंतिम दिनों में लिखीं । ।</p><p>******** </p><p><br /></p><p>,,,हरएं ,,हरएं,,सब कछू हिरानों,,</p><p> जों रओ ठौर ठिकानों,,।</p><p><br /></p><p> आज काल कौ चका चलत रओ ,</p><p> बदल गओ जमानों,,।।</p><p> फूलौ फूलों देख बगीचा ,</p><p> फूल फूल मंडरानौ,,।</p><p> रूप स्वरूप सँवारौ निसदिन ,</p><p> राग रंग रस छानौ ,,।।</p><p> उठी हाट , लुट गई बजरिया ,</p><p> रओ सओ सोई बिकानौ ।</p><p> सब है,,!,,और लगत सब अपनौ,</p><p> छिन में होत बिरानौ,,।</p><p> 'ज्ञान ',,ध्यान बिन , भवसागर में ,</p><p> डूबौ और उतरानों,,।।</p><p><br /></p><p> --स्व0 श्री ज्ञानसागर शर्मा </p><p> 31-3-94</p><p><br /></p><p>सूर्य,,!</p><p>***</p><p><br /></p><p> हे ,,सूर्य,,!</p><p><br /></p><p> तुम रोज सुबह ,</p><p> पूरब में उगते ,,</p><p> पश्चिम डूबते,,</p><p> इस तरह आते जाते,,</p><p> रोज के इस आवागमन से,</p><p> नहीं ऊबते,,?? </p><p><br /></p><p> जबकि ,,</p><p> हमारे पूर्वजों ने ,</p><p> इस ' आवागमन ' से मुक्ति पाने,,</p><p> कितने कष्ट सहे,,</p><p> कितने तप किये ,,।</p><p><br /></p><p> और,,,</p><p> हमें भी,,</p><p> इससे मुक्त होने के,</p><p> कितने सन्देश दिए,,।।</p><p><br /></p><p> किन्तु तुम,,??</p><p> तुम तो रोज सुबह आते ,,</p><p> सबको जगाते हो ,,।</p><p> दिन भर की कड़ी धूप में तप कर ,</p><p> थक कर ,,शाम को ,,</p><p> अंधेरे की गोद में सो जाते हो,,।</p><p> </p><p> शायद इसलिए,,</p><p> की तुम्हें हमारी पृथ्वी से प्यार है ,,</p><p> इसकी सन्तति पर </p><p> दुलार है ,,।</p><p><br /></p><p> इसीलिए,,तो,,,</p><p> तुमने ,,आवागमन , को अपनाया ,,</p><p> विरक्ति, मुक्ति , मोक्ष ,, ठुकराया ,</p><p> खुद जलकर भी </p><p> सतरंगी किरणों की चूनर से,,</p><p> सुबह शाम ,,</p><p> धरती को सजाया ।</p><p><br /></p><p> रोज नई आशा,,</p><p> तुम्हारा ही दिया दान है,,</p><p> तुम्हारा निःस्वार्थ प्रेम ,,</p><p> सचमुच महान है,,।</p><p><br /></p><p> यही प्रेरणा ले,,</p><p> कहते हैं ,,, हम,,,!</p><p> सौ बार जन्म लेंगे,,</p><p> हर बार ये प्रण लेंगें ,,</p><p> किन्तु जहां मानव नहीं बसता,,</p><p> वह' स्वर्ग ' नहीं लेंगें ,,हम,,।</p><p><br /></p><p> --" श्री ज्ञानसागर शर्मा</p><p><br /></p><p>चर्चा मेरी नज़्म की , </p><p>जो तेरी बज़्म में न हुई तो ,</p><p>कोई बात नहीं ,,!</p><p>मेरे आने के बाद ये चर्चा हुई ,</p><p>की बज़्म सूनी है ,,</p><p>यही मेरे लिए काफी है ,,।।</p><p><br /></p><p>--'सभाजीत'</p><p>😐</p><p><br /></p><p>पिया कुआं खुदा दो घर में,,।</p><p><br /></p><p>अंकरी संकरी गैल गावँ की ,</p><p>उपटा लगै है पग में ,,।</p><p>छलकत गगरी , भीगत चूनर ,</p><p> ताकें छैला मग में ,,</p><p><br /></p><p>पनघट पै गुइयाँ बातूनी,</p><p>बात करत आपस में,,</p><p>कैसें राखत सखी पिया को ,</p><p>बांध कै अपने बस में ,,।</p><p><br /></p><p>चिकनी जगत , बनी पनघट की ,</p><p>रपटत पावँ धरत में ,,</p><p>छूटत रास, लुढ़कती गगरी,</p><p>डर लागै सँभरत में ,,।</p><p><br /></p><p>सबखों लगत , की पैलें भर लें , </p><p>मन उरझत झगरत में ,</p><p>घर की सुधि , कै काम परे हैं ,</p><p>समय न लगै कड़त में,,।</p><p><br /></p><p>कितने दिन की बात दबी रई</p><p> आगई आज अधर में ,,</p><p>आन जान कौ रट्टा छूटै,,</p><p> हो पनघट जो घर में ,,।</p><p><br /></p><p>,,,,' सभाजीत ' ,,!</p><p><br /></p><p>मेरे दादाजी श्री गुलाबराय ' राय ' द्वारा रचित , कबीर पंथ पर आधारित , बुंदेलखंडी भाषा में 70 वर्ष पूर्व लिखे गये, निर्गुणी पद , ।</p><p><br /></p><p> सुमिरिनी नामक पुस्तक में कुल 28 रचनाएं हैं जो 70 वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई थी ।</p><p> इन पदों की विशेषता है कि सम्पूर्ण रचना अनुप्रास अलंकार में है और भाषा बुंदेली है ,,!</p><p><br /></p><p> इन रचनाओं में एक रचना यहां उद्धत है ,,</p><p><br /></p><p>***************</p><p><br /></p><p> ,," पंछी ",,,!</p><p><br /></p><p> **********</p><p><br /></p><p> पंछी पाय पींजरा प्यारौ,,</p><p> बोद बुद्धि बिन बिकल बिचारौ,,।</p><p><br /></p><p> सुरत , सबद, संजोग , सहारौ,,</p><p> नेक नज़र नर नित्त निहॉरौ,,,</p><p> मोह, महामद, मनसा , मारौ,,</p><p><br /></p><p> करौ कुटिल क्रोदानन , कारौ,,।</p><p> पंछी पाय पींजरा प्यारौ,,।।</p><p><br /></p><p> भरमई , भूत, भयानो, भारौ ,</p><p> झंझट ,झंका , झोंकन , झारौ,</p><p> बाधा , बिपदा , बेग बड़ारौ,</p><p><br /></p><p> सेवक , स्वामी, सरन , सुखारौ</p><p> पंछी पाय पींजरा प्यारौ,,।।</p><p><br /></p><p> तुमरी, तुमरी , तोय , तुमारौ ,</p><p> पथिक , पियै, प्रभु, पूरौ पारौ,</p><p> दीनद्याल-दर, दींन दुखारौ,,?</p><p><br /></p><p> पाओं परौ पापियै पुकारौ,,।</p><p> पंछी पाय पींजरा प्यारौ,,।।</p><p><br /></p><p> --- पं0 गुलाबराय ,,'राय ' !</p><p><br /></p><p> ' ,,रामस्वरूप',,गह्यो मन में,,।</p><p><br /></p><p>जिहि पायो दशरथ कौशल्या ,</p><p>वात्सल्य पग्यो सुत दर्शन में ,।</p><p><br /></p><p>जिहि लख्यो सिया पिय रूप ,</p><p>बसायो हिय उर अंतस मधुवन में ,,।</p><p><br /></p><p>जिहि चरनन धोय पियो केवट ,</p><p> छूटयो भवसागर बंधन में ,,।</p><p><br /></p><p>जिहि तुलसी दास चढाय ललाट ,</p><p>धरयो सिर माथे चंदन में ,,।</p><p><br /></p><p>जिहि सुमरयो अंजनि पुत्र ,</p><p>भयो मणि रूप , राम हिय भक्तन में ।</p><p><br /></p><p> भक्त सभाजित , तृप्त भयो ,</p><p>लख राम सबहि दिश कण कण में ।</p><p><br /></p><p>-' भक्त सभाजीत '</p><p><br /></p><p>😁</p><p><br /></p><p>,," मुस्कान ,,</p><p>जो चिपकी थी ,,</p><p>तुम्हारे होठों पर,,</p><p>एक ' इमोजी ' थी ।</p><p><br /></p><p>यह हकीकत,</p><p>बहुत दिनों बाद , </p><p> तुम्हारे ही शिष्यों ने ,</p><p> तुम पर ,</p><p>कई' शोध ,' करके ,</p><p>खोजी थी,,,।।</p><p><br /></p><p>--' सभाजित'</p><p><br /></p><p>😊</p><p> </p><p> आज पूज्य पिताजी ,</p><p> श्री ज्ञानसागर शर्मा जी की लिखी यह बुंदेली रचना ।</p><p><br /></p><p>**********</p><p><br /></p><p>रस की बोरी, मिसरी घोरी,,</p><p>बोली बोल चिरइयाँ,,</p><p>उदक फुदक अंगना में फिरतीं ,</p><p>खेलें चइयाँ मइयाँ,,।</p><p>नौंनीं उमर लगै लरकइयां,,।।</p><p><br /></p><p>राजा बेटा , लल्लू , कल्लू ,</p><p>आधौ आंग उघारै,,</p><p>आड़ौ लगा डठूला कारौ,</p><p>आँखिन काजर पारै,,</p><p>बउ की पकर उँगरिया नौनी,</p><p>निंगरए पइयां पइयाँ,,।।</p><p><br /></p><p>नौंनी उमर लगै लर कइयां,,।।</p><p><br /></p><p>बिन्नू रानी , फूला , मूला ,,</p><p>कमर कछौटा मारें,</p><p>फूलनवारी पैर कतईया ,</p><p>कंदा कन्देला डारै,</p><p>धूरा में , भरबूला खेलैं,,</p><p>नीम तरै की छइयां,,।।</p><p><br /></p><p>नौनीं उमर लगै लरकइयां,,।।</p><p><br /></p><p>जे बारे से भइया बिन्नू,,</p><p> बूझें बात सयानी ,,</p><p>कैसें चमकत चंदा सूरज,</p><p>बरसत कैसें पानीं ,,</p><p><br /></p><p>बब्बा की हैं मूछें लंबी ,</p><p>काए हमाए नइयाँ,,?? </p><p><br /></p><p>नौंनी उमर लगै लरकइयाँ,,।</p><p><br /></p><p> गली गावँ गलयारे द्वारे,,</p><p> ऊंची महल अटारी ,,</p><p> इन गैंदा गैंदन सौं महकी ,</p><p> घर घर की फुलवारी ,,</p><p> जे रूठें ,,जग इन्हें मनावै ,</p><p> सबकी नैन तरईयां,,।।</p><p><br /></p><p> नौंनी उमर लगै लरकइयाँ,,,।।</p><p><br /></p><p> --' श्री ज्ञान सागर शर्मा ' </p><p><br /></p><p>#2020大晦日 </p><p><br /></p><p>◆◆◆◆◆</p><p><br /></p><p>मुश्किल में कटा,,</p><p>बीस सौ बीस ,,</p><p><br /></p><p>बिछुड़े अपने,</p><p> टूटे सपने ,,।।</p><p> बन गया वर्तमान </p><p>दुखद अतीत,,।</p><p><br /></p><p>स्वार्थों से उपजे </p><p>दंगे फसाद </p><p> कर गईं कितनी ,</p><p>आंखें उदास ,</p><p>दुश्मन </p><p>बन गये जान के वो ,</p><p>जो थे कल तक ,</p><p>आपस के </p><p>मीत,,।।</p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p><p>अपनों से,</p><p>अपनों का बचाव ,</p><p>लावारिश अंत्योष्टिया ,</p><p> कर गई घाव ,,,</p><p>एकाकी अंतिम यात्रा , </p><p>स्वजनों की ,</p><p>दे गई टीस ,,।</p><p><br /></p><p>तपती दोपहरी,</p><p>चले पांव </p><p>मीलों दूरी ,</p><p>हो गए गावँ ,,</p><p>,राहत की लेने सांस धरे ,</p><p>पटरी पर कट गए,,थके </p><p>शीश ,,।</p><p><br /></p><p>सड़कें सूनी </p><p>सूने बाजार ,</p><p>घर में बैठे,,</p><p>हो कर लाचार ,,</p><p>दूरस्थ बसे,,स्वजनों के हित ,</p><p>सहमे सहमे दिन हो गए </p><p>व्यतीत,,।।</p><p><br /></p><p>सरहद पर ,</p><p>गहराए बादल ,</p><p> पर युद्ध की साजिश ,</p><p> हुई विफल ,</p><p>हारा दुश्मन, पीछे भागा,,</p><p> और शौर्य देश का गया ,,</p><p>जीत ,,।।</p><p><br /></p><p> फिर एकबार,,</p><p>लौटे पुराण,</p><p>दशरथ नन्दन के तीक्ष्ण बाण </p><p>दे गये याद उन मूल्यों की ,</p><p>जिन में बसती है ,,</p><p>रीत नीति ,,।</p><p><br /></p><p>बहुत सहा ,,</p><p>अब माफ करो,,</p><p>है प्रकृति ,,न अब उपहास करो ,,</p><p>हम पूजेंगे सब नियम तुम्हारे ,</p><p> तम हरो , दिशाएं उजास करो ,</p><p>आने वाले दिन का हो नया सूर्य ,</p><p>आशा से तकते हम </p><p> ,,इक्कीस ,,।</p><p><br /></p><p>--' सभाजित '</p><p><br /></p><p>वर्ष 2020 ,,</p><p>तुम्हारे साथ चले </p><p>365 कदम,,,</p><p>याद रहेंगे ,,,</p><p><br /></p><p>खट्टी मीठी यादें बन कर ,,,।</p><p> हमारे दिलों में </p><p>आबाद रहेंगें ।।</p><p><br /></p><p>तुम,</p><p>कभी हँसे,,</p><p>कभी मुस्कराये ,</p><p> तुम्हारी आँखों में दिखे ,,,कभी ,,,</p><p>भविष्य की चिंता के , ,</p><p>गमगीन साये ,,।।</p><p><br /></p><p>लोगों को ,,</p><p> कुछ जख्म दिए ,</p><p>तो कुछ के जख्म </p><p> ,,सहलाये ,,,।।</p><p><br /></p><p>शुक्रिया ,,,</p><p>कि ,,</p><p>मेरी ज़िन्दगी में भी ,</p><p>हमसाया बन कर आये,</p><p>अच्छे दिन,,,,</p><p> अगर ना दिखा सके ,</p><p>तो बुरे दिन भी नही दिखाए ,,।</p><p><br /></p><p>अलविदा ,,,,</p><p>तुमने जो ,, कुछ नया दिया ,</p><p>तो </p><p>बहुत कुछ पुराना ले लिया ।</p><p><br /></p><p> चक्र हैं समय का ,</p><p>उसका एक हिस्सा,,</p><p>तुम भी हो ,,हम भी हैं ,,।</p><p>गुजरते वक्त , और नियति के गुलाम ,</p><p>तुमभी हो , हम भी हैं ।।</p><p><br /></p><p>इसलिए ,</p><p>तुमसे न कोई शिकवा है ,</p><p>न गिला है ,,</p><p>मुस्करा कर बांध लिया,</p><p> यादों की पोटली में ,</p><p>जो तुमसे ,,</p><p>उपहारों में मिला है ।</p><p><br /></p><p>--'सभाजित '</p><p><br /></p><p>🙄</p><p><br /></p><p>' खुदा' था उधर,,</p><p>और </p><p>'खुदी ' थी इधर,,</p><p><br /></p><p>खुदी ने खुदा से मिलने न दिया ,,।</p><p><br /></p><p>राह,,</p><p>दरवाजे के आगे बहुत थी मगर,,</p><p>किवाड़ों ने ,,</p><p>बाहर निकलने न दिया ,,।</p><p><br /></p><p>***********</p><p>* खुदा -- ईश्वर</p><p>* खुदी - गैरत , स्वाभिमान ,,।</p><p><br /></p><p>--स्वरचित</p><p><br /></p><p>कटी पतंग की तरह ,</p><p>आसमान से ,,,</p><p>धरती की ओर गिरते हुए ,,</p><p>बहुत खुश हूं ,,</p><p>किंचित भी,,</p><p> घबरा नहीं रहा हूँ ,मैं,,।</p><p><br /></p><p>आसमान में था,,</p><p>तो डोर से बंधा ,</p><p>किसी की उंगलियों पर </p><p>नाचता रहा ।</p><p><br /></p><p>लहरा कर नाचते हुए ,,</p><p>डोर की ढील पर ,</p><p>और ऊंचे,,और ऊंचे ,,</p><p>जाता रहा मैं,,</p><p><br /></p><p>अपने गंतव्य की ओर ,,</p><p>कर्तव्य मान कर</p><p>उड़ते हुए </p><p>पंछियों को रोक कर,,</p><p>बेवजह बतियाता रहा ,, मैं,,।</p><p><br /></p><p>ऊंचाई पर पहुंच कर भी ,</p><p>अपने साथ उड़ती ,,</p><p>कई अन्य पतंगों से ,,</p><p>बेवजह ,,भिड़ कर ,,</p><p>पेंच लड़ाता रहा ,, मैं,,।</p><p><br /></p><p>लेकिन अब ,,</p><p>हवा के झोंकों पर , </p><p>मंद मंद डोलते ,, </p><p>नीचे आ रहा हूँ ,,</p><p>तो एक अलग ही सुख ,,</p><p>पा रहा हूँ मैं ,,।।</p><p><br /></p><p>जानता हूँ,,</p><p>कि ,,</p><p>नीचे कई हाथ आतुर हैं </p><p>लपकने को मुझे ,,</p><p>किन्तु बालकों की टोलियों में ,</p><p> मुझ पर गड़ी हुई आंखों में ,,</p><p>उपलब्धि की 'आस' ,, लख ,</p><p>मन ही मन आनन्द से भर ,</p><p>हर्षित हो,,,,</p><p>मुस्करा रहा हूँ मैं,,।।</p><p><br /></p><p>--' सभाजित '</p><p><br /></p><p>सुनते थे,,</p><p>उनका एक ' गुट ' था,,</p><p>लेकिन जब मैं गया वहां ,,</p><p>तो देखा ,,</p><p>गुट के अंदर एक और गुट था,,।</p><p>गुट में थे कई कई और गुट,,</p><p>हर गुट में,,</p><p>दमघुटता था,,</p><p><br /></p><p> ऊपर से दिखने को ,,</p><p>हर गुट,,</p><p>बिल्कुल एकजुट था ।</p><p><br /></p><p>--" सभाजित "</p><p><br /></p><p>पथिक,,</p><p>तुम आना कभी इधर,,।</p><p><br /></p><p>यद्यपि हैं बटमार यहां ,,</p><p>पर ,,उनसे कैसा डर ,,?? </p><p><br /></p><p>लुटना है नियति सफर की ,,</p><p>तो लुटो यहीं आकर,,।</p><p><br /></p><p>तुम तलाश में निकले शिव की ,</p><p>यहां तो हम सब नटवर,,।</p><p><br /></p><p>--' सभाजित ' </p><p><br /></p><p>कहो महाकवि,,!</p><p>अपनी कविता ,,</p><p>कैसीं लिख दूं ,,?? </p><p><br /></p><p>पिछली साहित्यिक थी,,</p><p>गरिष्ठ थी,,? </p><p>बोलो ,,' ऐसी वैसी ' लिख दूँ,,???</p><p><br /></p><p>स्तुति लिखवाई जिनकी ,</p><p>अब खफा हो गए उनसे तुम ,</p><p> तो उनकी ,,' ऐसी तैसी ' लिख दूँ ,,?? </p><p><br /></p><p> गेरुआ रंग फिरकापरस्त है ,?</p><p>तो हरी स्याहि से ,,</p><p>दीवारों पर ,,</p><p>कुछ बातें ,,</p><p>नारों जैसी लिख दूं ,,,,?? </p><p><br /></p><p>देश की मिट्टी की कविताएं ,,</p><p>तुम्हें रोपने में समर्थ नहीं,,</p><p>तो चलो ,,विदेशी गमलों की ,,</p><p>स्टारबेरी फेंटेसी लिख दूं,,? </p><p><br /></p><p>🙂</p><p><br /></p><p>😊</p><p><br /></p><p>जब भी मिले ,,</p><p>बुरे दिन ,,</p><p>लुभावने बन के मिले,,।</p><p><br /></p><p>लगा कि ,,</p><p>यही हैं ,,</p><p>हमारे हितुआ,,हमारे मीत,,</p><p><br /></p><p>तृष्ना ,,वितृष्णा ,</p><p>टूटन,,थकन,,</p><p>बार बार असफलताओं से ,</p><p>जर्जर हुआ मन ,,</p><p><br /></p><p>इन्हें देख ,,</p><p> आश्वत हुआ ,,</p><p>शायद बुरा वक्त </p><p>अब हुआ ,,</p><p>व्यतीत ,,।</p><p><br /></p><p>तपती सी रेत में ,,</p><p>मृगतृष्णा बन आई ,,</p><p>आशा की झलक से </p><p><br /></p><p>आंखों का संचित घट ,,</p><p>बार बार छलकते,,</p><p>अंत गया ,,</p><p>रीत,,।।</p><p><br /></p><p>--' सभाजित '</p><p><br /></p><p>खाली बैठे आदमी को ,</p><p>हाथों में दे कर कुछ रकम ,</p><p>उसने कहा ,,घर से निकल, </p><p> चल ,</p><p> हल्ला बोल ,,। </p><p>चीखता वह सड़क पर ,</p><p>दौड़ा एक दिशा में ,,</p><p>और शांत हवा भी ,</p><p>थिरक गई ,,</p><p>हल्ला बोल,,हल्लाबोल,,।</p><p>क्या हुआ ,,,?? </p><p>,पूछा किसी ने ,</p><p>तो था जबाब ,,</p><p>बस हल्ला बोल ,,।</p><p>कुछ हुआ है ,,</p><p>सोच कर जो लोग कुछ निकले घरों से ,</p><p>हर तरफ हर कोई बोला ,</p><p>हल्ला बोल ,हल्ला बोल ,,।</p><p><br /></p><p>जिस तरफ देखा ,,</p><p>तो हाथ लहराते दिखे ,</p><p>झंडे , बैनर , तख्तियां ,</p><p>हाथों में फहराते दिखे,,</p><p>व्यवस्था को बदलने जो ,</p><p>गीत दुष्यंत ने लिखे ,</p><p>व्यवस्था को ' तोड़ने ' का लक्ष्य साध ,</p><p>वो गीत ,</p><p>बच्चे गाते दिखे ,,!!</p><p><br /></p><p>व्यवस्था को बनाये रखने ,</p><p> किसी बच्चे का पिता ,</p><p>वर्दी पहन जो ड्यूटी पर दिखा ,</p><p> डिगाने कर्तव्य से ,</p><p> दोस्त के ही पिता पर , </p><p> बच्चे ,</p><p>पत्थर बरसाते दिखे ।</p><p><br /></p><p> जो गए थे बनने,</p><p>इस देश का भविष्य ,</p><p>विद्या के मंदिरों में ,</p><p>धर्म के खातिर ,</p><p>वो सभी ,</p><p>खुद को बरगलाते दिखे ।</p><p><br /></p><p>नागरिकता,,नागरिकता,,।।</p><p> देखो छिनी नागरिकता,,</p><p> देखो लुटी नागरिकता ,,</p><p> नहीं मिली नागरिकता ,,</p><p> धर्म ढली नागरिकता ,,।।</p><p> </p><p> किसको खली नागरिकता ,?</p><p> किसको भली नागरिकता ,?</p><p> किसने छली नागरिकता ,?</p><p> किसकी टली नागरिकता ,,,?? </p><p><br /></p><p> एक मुंह ,,हज़ारों बात ,</p><p> दावँ पेंच ,घात,, आघात,,</p><p> सुबह शाम , दिन और रात ,,</p><p> डाल डाल ,,पात पात ,,।।</p><p><br /></p><p> ढूंढते रहे नागरिकता ,,</p><p> शहर शहर,राज्य राज्य ,,</p><p> बूझते रहे नागरिकता,,</p><p> द्वार द्वार ,,गली गली ,</p><p> पूछते रहे नागरिकता ,,</p><p><br /></p><p> मगर,,</p><p> उन्हें न दिखी ,</p><p> केम्प में ठिठुरी ,, </p><p> सहमती अस्मत बचा ,</p><p> भागी हुई ,</p><p> बेसहारा मां की गोद में </p><p> दुधमुंही </p><p> नागरिकता ,,</p><p> खुद के भविष्य के </p><p> सहारे के लिए ,</p><p> भारत के नेताओं से ,</p><p> नन्हे नन्हे हाथ उठा ,,</p><p> शरण की भीख मांगती ,,</p><p> जीवन से दुखी ,</p><p> नागरिकता ,,।।</p><p><br /></p><p> ,,सभाजीत</p><p><br /></p><p>जा मिया</p><p>जाम कर ,,</p><p>तिरंगे थाम कर ,</p><p>देश को </p><p>बदनाम कर ,,।।</p><p><br /></p><p>बजा ढपली ,</p><p>गीत गा ,</p><p>जिस जमाने से ,</p><p>सहम , </p><p>लिखीं , पंक्तियां दुष्यंत ने ,</p><p>उस जमाने को भुला,</p><p>कुछ तालियां </p><p>अब </p><p>पीट आ ,,।।</p><p><br /></p><p>क्या तेरा ,</p><p>कोई लक्ष्य है ,?</p><p>या की तू खुद ,</p><p>पथभृष्ट है ,,?? </p><p>क्या है आज़ादी का मतलब ? ,</p><p>' गुलामी ' से ,,</p><p> पूछ आ,,।</p><p><br /></p><p>या फिर चोरों के लिए,</p><p>कर सेंधमारी ,</p><p>और अंधेरे में ही ,</p><p>भटक कर ,</p><p>सिपाही से ही ,</p><p>जूझ जा ,,।।</p><p><br /></p><p>********</p><p><br /></p><p> भजन</p><p><br /></p><p>**</p><p><br /></p><p> धन्य है रामस्वरूप ।</p><p><br /></p><p> </p><p>बुद्धि ज्ञान प्रभुता के दल में ,,</p><p> वे ही सबके ' भूप ',,।</p><p><br /></p><p> रिक्त और प्यासे घट को ज्यों,</p><p> मिले ज्ञान जल 'कूप ',!</p><p><br /></p><p>ठिठुरन भरे , घने वन में ज्यों,</p><p>सुखद गुनगुनी ' धूप ,' !</p><p><br /></p><p> माया मोह फटक दे जैसे,,</p><p> राम नाम का ,,' सूप ',</p><p><br /></p><p> जिनकी उपमा खुद ही हों ,,वो,,</p><p> अनुपम और अनूप ,,।।</p><p><br /></p><p> ,,,,''भक्त सभाजीत ' </p><p><br /></p><p>पेड ..,</p><p> कभी होते थे ,</p><p> रास्ते के रखवाले ...,</p><p> </p><p> गुजरते हुए लोग , </p><p> उसके नीचे ,</p><p> थक कर लेते थे सांस ,</p><p> रूक कर,</p><p> बतियाते थे ,</p><p> अजनबी, </p><p> गावं वालो से ,</p><p> </p><p> नापते थे दूरी ,</p><p> तय किये सफर की ,</p><p> ओर भरते थे ,</p><p> प्राण वायु , स्फूर्ति,,</p><p> अपने अन्दर ,</p><p> अगले अनजाने सफर के लिए ..!!</p><p> </p><p> बातियाते लोग ,</p><p> कहते थे ..राह तो है ,</p><p> एक थकान ,</p><p> दो घरों की दूरी ,</p><p> पर</p><p> पेड है जीवन ,</p><p> जीने के लिये ...</p><p> ज़रूरी ...!</p><p><br /></p><p> धीरे धीरे ...,</p><p> फैलते गये रास्ते , मर्यादायें तोड़,</p><p> ओर सिकुडते गये पेड ,</p><p> </p><p> यहां तक कि ,</p><p> एक दिन वे बन गये. </p><p> रास्ते के व्यवधान ,</p><p> तेज गति यात्रियो के लिए . </p><p> ,,,,,, रोडे !</p><p> </p><p> विहंगो का बोझ लादे ,</p><p> परोपकारी साधक ,</p><p> रास्ते के सोंदर्य में , </p><p> हो गये बाधक , </p><p> </p><p> दिन दिन संवरती ,</p><p> इठलाती,,,</p><p> ,,,,,, राह , </p><p> बन गयी .</p><p> ..रूपवती रोड ,</p><p> कटते ,,कटते पेड ,</p><p> बन गए ,</p><p> बस,,,</p><p> मार्ग दर्शक बोर्ड </p><p> </p><p> अपने अपने पंखो को संभाल ,</p><p> दाने पामी की तलाश में ,</p><p> दूर देश के लिए ,,</p><p> उड गये विहंग ,</p><p> बूढे पेड के लिये ,</p><p> क्यों करें ,, </p><p> कोई अब रंज ...??</p><p><br /></p><p> ,,,सभाजीत</p><p>प्रदर्शन में ,,</p><p>मर गए लोग ,,!</p><p>वहां क्यों गए थे ,,? </p><p>ये शायद उन्हें भी नहीं पता था ।</p><p><br /></p><p>उन्हें सिर्फ किसी ने बताया था ,,</p><p>कि वे खतरे में है ,,।</p><p>कोई समझा,,,</p><p>आसमान टूटने वाला है ,</p><p>किसी को लगा ,,ज़मीन फट रही है ,,</p><p>किसी को कहा गया ,,</p><p>कल ही प्रलय हो जाएगी ,,</p><p>किसी ने समझा ,,</p><p>शरीर से लिपटा धर्म ,,</p><p>आने वाला बवंडर,,</p><p> उड़ा देगा </p><p> और वे </p><p>फटेहाल ,,अनावृत हो जाएंगे ।</p><p>कोई डर गया कि कल , </p><p>छीन लेगा कोई ,</p><p>उनके बाप दादाओं के ज़माने के घर ,</p><p>और भेज देगा उन्हें सात समुंदर पार,,</p><p>काले पानी की तरह ,,।</p><p><br /></p><p>कठपुतलियों की तरह ,</p><p>बिना अपनी किसी समझ के , </p><p>बिना प्रयोजन , </p><p>वे नाचते रहे ,,</p><p>उस तमाशे का हिस्सा बन ,</p><p>जिसकी तालियां , सिक्के , और वाहवाही ,</p><p>तय थी उस तमाशाई के लिए , </p><p>जो नचा रहा था उन्हें,,</p><p> पर्दे के पीछे खड़ा होकर ,</p><p>और बजा रहा था सीटी ,</p><p>चतुरता से,,</p><p>उंगलियों में उलझे धागों से , </p><p>फंसे किरदारों को उचकाते हुए ।</p><p><br /></p><p>काठ और आग का रिश्ता ,</p><p>नहीं जानती ,,</p><p>कठपुतलियां ,,</p><p>की आग सुलगती रहे इसलिए,,</p><p>काठ जरूरी है ,</p><p> जलने के लिए ।</p><p><br /></p><p>तमाशे में ,,</p><p> कुछ कठपुतलियां , </p><p>जल गईं ,, मर गईं ,,</p><p>तो क्या हुआ ,,?? </p><p>तमाशाइयों और तमाशों का रिश्ता </p><p>तो बना रहेगा ,,</p><p>चोली दामन की तरह ,,</p><p>क्योंकि कठपुतलियां तो हिस्सा ही है ,,</p><p>लड़ाई ,,और मरने मारने के </p><p>तमाशे दिखाने का ,,।</p><p><br /></p><p>🙏🙏</p><p><br /></p><p>नौकरी ,, वो है ,</p><p>जो , </p><p>करी तो करी ,</p><p>,वरना ,</p><p>,ना करी ,,!!</p><p><br /></p><p>सेवा ,, भी वो है,</p><p> जो , </p><p> करी तो मन से करी , </p><p> वरना,</p><p> ना करी !</p><p><br /></p><p>खिदमत ,,, वो है ,</p><p>जो , </p><p>खादिम द्वारा ,, </p><p> मालिक की,,</p><p> हर हालत में ,,</p><p> करी ही करी ,</p><p> </p><p>कभी भी , </p><p>किसी भी हालत में ,,</p><p>',ना ', </p><p> ना करी ,,!!</p><p><br /></p><p>हुज़ूर को , </p><p> नौकर नहीं चाहिए , </p><p>ना चाहिए ,,सेवक , </p><p>चाहिए बस </p><p>' खादिम ',, </p><p><br /></p><p> ढूंढ ही लेते हैं वे , </p><p> सात फाइलों में दबे , </p><p> अपने ,,,उसको ,,!</p><p><br /></p><p> </p><p> जो खड़ा रहे अलादीन के जिन्न की तरह ,</p><p><br /></p><p> ज़रा भी घिसी जाए , </p><p> जब भी , किसी फ़ाइल की तली , </p><p> तो हाथ जोड़े ,</p><p>आ जाए भागता ,,कहता हुआ ,,!</p><p>, मेरे आका ,, क्या है हुकुम ,,??</p><p><br /></p><p>किताबों के कीड़े ,</p><p>किताबों में रहते हैं ,,</p><p>किताबें कुतरते , </p><p>किताबें खाते हैं ,,</p><p>और जब बहुत मोटे हो जाते हैं , </p><p> तब बाहर आते हैं ,,!!</p><p><br /></p><p>बाहर निकलने पर , </p><p>वे दीमक को समझाते हैं ,,!</p><p>की किताबें तो बस वही हैं ,,</p><p>जिसको उन्होंने पढ़ा ,,</p><p>बाकी तो ,,बकवास है , </p><p> ' मूर्खों का गढ़ा ',,!!</p><p><br /></p><p>वर्जनाओं को तोड़ दो ,</p><p> हवाओं का रुख मोड़ दो ,,</p><p>तुम घुसो हर जगह पर , </p><p>हर पुराने घर , </p><p>फोड़ दो , </p><p><br /></p><p>तुम लिखो कि,,</p><p>नदियों के धारे ,,</p><p>ऊपर से नीचे क्यों नहीं बहे ,,? </p><p>तुम कहो कि,,</p><p>पर्वत घमंडी ,,</p><p>सर उठाये क्यों खड़े ,,??</p><p><br /></p><p>तुम ये पूछो , </p><p> क्यों हवा में ,,परिंदों का राज है ,,? </p><p>तुम ये पूछो , </p><p> शेर क्यों ,,</p><p> बकरी को खाने को आज़ाद है ,,?? </p><p>तुम बताओ ,,</p><p> नई पीढ़ी को,,, कि ,,</p><p>वाद ही संवाद है ,,!</p><p>तुम समझाओ ,</p><p>प्रगति का मतलब ही बस , </p><p> प्रतिवाद है ,,!! </p><p><br /></p><p>बदल दो तुम देश , </p><p> हर परिवेश , </p><p>तोड़ कर पुराने विश्वाश ,</p><p>मिटा दो किंबदंती , </p><p> कि,,लिख लो , </p><p>खुद नया इतिहास ,,,!!</p><p>भुला दो पूर्वजों के नाम , </p><p>पुराने खानपान ,,!</p><p>कि किंचित शेष ना रह पाए , </p><p> अपने आप की पहचान ,,!!</p><p><br /></p><p>प्रगति के नाम पर , </p><p>विदेशी हाथ,,,</p><p> थाम कर ,,</p><p>तुम धरो एक लक्ष्य , </p><p>की हो तुम्हारा ,,</p><p>चतुर्दिश ,,एकछत्र ,,राज ,,,</p><p>रटाते रहो सबको सदा , </p><p>की बाकी सब हैं , </p><p> गरीब और मजदूर ,,</p><p>एक तुम ही हो , </p><p> सबके ,,," गरीब नवाज़ " ,,,!!</p><p>रियासत से ,,</p><p> सियासत तक , </p><p>प्रजा कहलाये ,हरदम ,एक चिड़िया ,,</p><p>और तुम रहो ,,</p><p>उनके शिकारी ,,,</p><p> आसमां में उड़ते ,,,' बाज़ ' ,,!!</p><p><br /></p><p>--- सभाजीत</p><p><br /></p><p>कवियों में कविता है ,</p><p> कविता में ' लाईने ' है , </p><p> कवि मगर खुद ,</p><p> टूटे - फूटे चटके हुए आईने हैं ।</p><p> </p><p><br /></p><p> बसों में , ट्रेनो में , </p><p> ठसाठस लोग हैं ,</p><p> डाक्टरों की क्लीनिक में </p><p> ,लाइन भी एक् ' रोग ' है ,</p><p> </p><p> फोन पर भी ' रुकिये ,</p><p> आप क्यू में है '..आवाज है ..!</p><p> मंदिरों की लाईने तो , </p><p> .... भगवान के घर की राह है !</p><p> </p><p> लाईने ही मर्ज है , </p><p> लाईने ही फर्ज है ,</p><p> लाइनो को तोड़ना भी ,</p><p> किसी के लिये आदर्श हैं ..!!</p><p> </p><p> लाइनो पर ट्रेन है , </p><p> सभी फ़ास्ट मेल है </p><p> बोगियां तो सुधर गईं ,</p><p> इंजन ही फेल हैं ।</p><p> </p><p><br /></p><p> लाइने तरंग हैं .. </p><p> आयेंगी जायेंगी ,</p><p> सिंधु तट को भिगो कर ,</p><p> नई ईबारते लिख जायेंगी !!</p><p> </p><p>तरंगो को गिन कर। ,</p><p> हम भला क्या पायेंगे ? </p><p> जब तलक खुद सिंधु में </p><p> एक् नाव लेकर ना उतर जायेंगे ??</p><p><br /></p><p> ,,सभाजीत</p><p><br /></p><p>चलो , </p><p> दस दिन और , </p><p> भटक लें ,,!</p><p><br /></p><p>एग्जिट पोल के, </p><p> कयासों पर , </p><p>लगा कर , </p><p>" अटकलें ,,!! </p><p><br /></p><p> किसी को , </p><p> बैठा दें , </p><p> सिंहासन पर , </p><p>किसी को , </p><p> मन ही मन , ,</p><p> नीचे पटक लें ,,! </p><p><br /></p><p>चौराहों पर , </p><p>बघारें </p><p>अपनी पार्टी की तारीफ़ , </p><p>दूसरे गर बघारें , </p><p>तो चुपचाप , </p><p> वहां से , </p><p> सटक लें ,,!! </p><p><br /></p><p>बना कर , </p><p>किसी को मसीहा , </p><p>खुद पांच साल के लिए , </p><p>अपनी ही बनायी क्रूस पर , </p><p> फिर से ,</p><p> लटक लें ,! </p><p><br /></p><p> वोटों को , </p><p> बाँट कर जातियों में , </p><p> इंसानो को , </p><p> छान , बीन कर , </p><p> लोकतंत्र के सूपे से , </p><p> फटक लें ,! </p><p><br /></p><p>नागनाथ की जगह , </p><p> सांपनाथ के बदलाव को , </p><p>मान कर , अपनी नियति </p><p>अगर , रेप , लूट , और घोटाले हों भी , </p><p>तो आगे ,</p><p> आँखों में आये , </p><p> आंसुओं को , </p><p> हलक के नीचे , </p><p>बिना सिसकी लिए , </p><p> खामोशी से , गटक लें ,,!</p><p><br /></p><p>---सभाजीत</p><p><br /></p><p>' भगवान ' ,</p><p>और ' शैतान ' ,</p><p>अब अलग अलग इंसानों में ,</p><p>ढूंढे जा रहे हैं ।</p><p> जबकि ,</p><p>भगवान और शैतान ,दोनों , </p><p>एक ही इंसान में ,</p><p>रहते हैं ।</p><p><br /></p><p>जैसे ,,</p><p>बिना दो पहलुओं के , </p><p> कोई सिक्का , </p><p>नहीं होता ,,,</p><p> उसी तरह बिना भगवान और शैतान के ,,</p><p>कोई इंसान नही होता । </p><p><br /></p><p> आइए इंसान को पहचाने ,,</p><p>सिक्के की तरह ,</p><p>उसके मूल्य को नहीं ।</p><p><br /></p><p>😑</p><p><br /></p><p>टोपियों के बाजार में ,</p><p> जब गया वह ....</p><p> तो उसे भायी ...एक ही टोपी ,</p><p> फौजी की ...!!</p><p><br /></p><p> वैसे वहां ओर भी टोपी थी ..,</p><p> ज़िसे पहन रहे थे लोग ,</p><p> ओर निहार रहे थे शीशे में ,</p><p> खुद को बार बार आत्म मुग्ध हो कर .!</p><p><br /></p><p> नेता , खिलाडी , इंजीनियर , ओर </p><p> व्यवसायी के रूपों में ...!</p><p><br /></p><p> लौटा जब घर , </p><p> तो सिहर गयी ...माँ ..,</p><p> यही टोपी तो पहन कर गये थे वो ..</p><p> ओर फिर नही लौटे ..!</p><p><br /></p><p> लौटी थी तो एक बर्दी , </p><p> जो उसने छिपा कर रख ली थी </p><p> संदुकची में ...</p><p> अमानत समझ कर ..!</p><p><br /></p><p> छब्बीस जनवरी को ,</p><p> उसे मिला था एक तमगा .,</p><p> एक सनद ओर कुछ रूपये ..!!</p><p> जो दीवार पर आज भी टंगे है ..!!</p><p><br /></p><p> पेट में था शिब्बू ,</p><p> जब चले गये थे वो ..,</p><p> तो बेटे को सिर्फ फोटो में ही</p><p> दिखा पायी थी वह ,</p><p> उसके पापा को ,..!!</p><p><br /></p><p> फोटो में ,टोपी पर रीझ कर ,</p><p> मांगता था वह ..,</p><p> . वही टोपी ..बार बार ...,</p><p> हर त्योहार पर ,</p><p> ओर टालती थी वह ..,</p><p> की उससे भी कोई ओर रंगीन टोपी ,</p><p> ला देगी अपने बेटे को ..!!</p><p><br /></p><p> लेकिन ...शिब्बू तो , </p><p> ले आया वही टोपी ...</p><p> पहन कर जाने को था तैयार..,</p><p> पिता को खोजने ..,</p><p> उसी सरहद पर ,</p><p> जहां पर कोई भी खो सकता है ..</p><p> कभी भी ....!!</p><p><br /></p><p> भरे मन से ,</p><p> बेटे की ज़िद पर ..,</p><p> जाने दिया था बस कुछ साल पहले ,</p><p> की हर दिन ...,</p><p> फोन का इंतजार करके ,</p><p> चहक उठती थी वह ...</p><p> एक सवाल ..,</p><p> खाना तो ठीक से खाते हो ना ..??</p><p><br /></p><p> पडोस के गावं में ,</p><p> लड़की देख ली है ..,</p><p> देव उठनी ग्यारस के बाद ..,</p><p> हाथ भी पीले करने है तुम्हारे ..!</p><p> आओगे ना ??</p><p> एक माह पहले ..??</p><p><br /></p><p> लौट रहा था अब वह घर ,</p><p> उसके बुलाने पर ..,</p><p> बारात ले कर ...!</p><p><br /></p><p> गजरों से सजा गावं </p><p> बिगुल बजाते फौजी ,</p><p> </p><p> फूलों की माला ...ओर ,</p><p> तिरंगे का बाना पहने ,</p><p> बिलकुल अपने पिता की तरह ,</p><p> शांत ...मुस्कराता हुआ ..!</p><p> फर्क बस इतना था , </p><p> पहले एक वर्दी भर थी ..,</p><p> अब वर्दी में शिब्बू था ..!!</p><p><br /></p><p> भरी निगाहों से .,</p><p> उसे दिख रही थी ..,दूर दूर तक ..,</p><p> टोपियां ही टोपियां ..</p><p> नेताओं की .., पुलिस की ,</p><p> पंचों की सरपंचों की ,</p><p> आम की ..खास की ,</p><p> दूर की ..पास की ...</p><p><br /></p><p> युवाओं के सैलाब में .,</p><p> उसे नही दिखी ..,</p><p> वह टोपी ...</p><p> ज़िसे पहनी थी शिब्बू ने ...</p><p> प्यार से ...,</p><p> अपने पिता की बहादुरी पर ,अपने ,</p><p> अधिकार से ..!! </p><p><br /></p><p> .....सभाजीत .</p><p><br /></p><p>जल में...,</p><p> एक छोटी मछली को ,</p><p> बडी मछली खा गयी ,</p><p> हलचल हूई ,भगदड मची ,</p><p> हिलोरें उठीं ., और कुछ नही हुआ ..!!</p><p> लोगों ने बल को नियति मान ,</p><p> मत्स्य को पूज लिया ,</p><p> और छोटी मछलियो को भोजन मान ,</p><p> उन्हे अपने जालों में फंसा ,</p><p> खुद खा गये ...!!</p><p> </p><p> जल के किसी कोने में , </p><p> किसी भी तल पर </p><p> ना कोई संवेदना जागी </p><p> ना फूटी कोई विद्रोह की आग .!!</p><p><br /></p><p> थल में ,</p><p> एक शेर ने ..अचानक झपट्टा मार ,</p><p> शांति से घास चरते ,</p><p> मृगों के झुंड पर किया वार ,</p><p> मार कर उन्हे ,</p><p> बना लिया अपना आहार ,</p><p> लोगों ने बल को नियति मान ,</p><p> शेर को पूज लिया , </p><p> </p><p> ओर मृगों को भोजन मान ,</p><p> निकल पडे करने उनका शिकार !!</p><p><br /></p><p> कही भी इन निरीहों के प्रति ,</p><p> ना उठी हूक , ना बही कहीं ,</p><p> द्रग धार ...!!</p><p><br /></p><p> नभ में भी ,</p><p> बलवानो ने किया राज ,</p><p> छोटे परिन्दों को , </p><p> खा गये चील , बाज ,</p><p> लोगों ने बल को नियति मान ,</p><p> गरुडों को पूज लिया ,</p><p> छोटी चिडियों को </p><p><br /></p><p> खुद अपने भोजन के लिये फंसा ले गये .,</p><p> फंदेबाज ..!</p><p> इन नि:शक्तों के लिये , नभ में ,</p><p> ना हुआ कोई घमासान ,</p><p> ना उठी आवाजें ,</p><p> ना दिये किसी ने प्राण ...!!</p><p> </p><p> आश्चर्य कि ,</p><p> युगों युगों से ...,</p><p> जल ,थल ओर नभ में </p><p> निर्बल ओर बल ..,</p><p> श्रष्टि के बने रहे अनिवार्य अंग ,</p><p> विपरीत ध्रुवों पर टिके , </p><p> एक दुसरे के परस्पर . </p><p> विरोधी हो कर भी , </p><p> चलते रहे संग संग ..!! </p><p> </p><p> न हुए एक दुसरे के खिलाफ , </p><p> न ही हुए कभी लाम बद्ध ..,</p><p> एक दूसरे को मिटाने .नही लड़े कोई </p><p> युद्ध,,।</p><p> </p><p> फिर क्यू मानव ,</p><p> दो दलों में बंट गया ??</p><p> एक दूसरे को काट कर ,</p><p> क्यू खुद भी ,</p><p> कट् गया ...??</p><p><br /></p><p> शायद यहां निर्बल ओर बल के बीच ,</p><p> एक ओर वर्ग -- </p><p> ' दुर्बल ' भी था ,</p><p> ज़िसके मन में </p><p> ' बलशाली बन ,</p><p> सत्ता बल हाथियाने का</p><p> छल था ,</p><p><br /></p><p> निर्बल ओर बल , </p><p> इस दुर्बल के शिकार बने .,</p><p> </p><p> तलवारें,, दुर्बल के हाथ रही ,</p><p> निर्बल,, बस उसकी धार बने ..!!</p><p><br /></p><p> ----सभाजीत</p><p><br /></p><p>पूनम का चांद ,</p><p> यूँ तो हर माह , </p><p> मेरे आंगन में आता है ,</p><p><br /></p><p> अपनी धवल मुस्कान से ,</p><p> मेरे मन को लुभा जाता है .!!</p><p><br /></p><p> लेकिन </p><p> ओ " शरद पूर्णिमा " ,, के "ज्ञानी " चन्द्र ,</p><p> तेरी गुरूतर सीख , </p><p> मेरे काम ना आयेगी ,</p><p><br /></p><p> शरद ऋतु की चांदनी रातें , </p><p> मेरे मन को साल,,,साल जायेगी ,</p><p> पिय जो बसे परदेश ,</p><p> तो तेरी शीतलता भी ,</p><p> मेरे हृदय को ,</p><p> विरह की आग में </p><p> झुलसायेगी.... !!</p><p><br /></p><p>माता - पिता </p><p> ******</p><p><br /></p><p>मर जाते हैं लोग ,</p><p>जन - परिजन ,</p><p> सुह्रद ,</p><p> माता - पिता ,</p><p> धुंधला जाती है </p><p> छवि ,</p><p> लेकिन</p><p> ' अहसास ' नहीं मरते ।</p><p> </p><p> घुप्प अंधेरे में ,</p><p> जहां ,,</p><p> सूझता नहीं </p><p> हाथ को हाथ ,,,</p><p> या निर्जन में ,</p><p> दिशाहीन घनघोर ,</p><p> समस्याओं के </p><p> आच्छादित जंगल में ,</p><p> एक घट जल की तलाश में ,</p><p> तरसते ,</p><p> सूखे कुएं की तरह ,</p><p> आवाज देते , रह रह कर झांकते ,</p><p> अपने ही मन में , </p><p> जब घबराता है दिल ,</p><p> तभी लगता है ,</p><p> की कोई है जरूर साथ</p><p> क्योंकि ,</p><p> कभी भी ,,</p><p> सिर पर , </p><p> आशीष से सराबोर , </p><p> कंपकंपाते दो </p><p> अदृश्य हाथों के , </p><p> ' विजयी भव,,,'</p><p> वचनों के , </p><p> विश्वाश नहीं मरते है ।।</p><p><br /></p><p> -- सभाजीत</p><p><br /></p><p>जब भी दर्पण में देखती ,</p><p> तो ईठला कर , मुस्कराते हुए ,</p><p> वह पूछती रही ..,</p><p> पहचानते हो मुझे ,..??</p><p> ओर हर बार ,</p><p> मुंह बिचका कर ,</p><p> चिढाती रही , मैं उसको ,</p><p> चलो हटो ,</p><p> मुझे ओर भी कई काम हैं ,</p><p> तुम्हें निहारने के अलावा ..!!</p><p> इस दुनिया में ....,!!</p><p><br /></p><p> ना जाने कब ओर कैसे ,</p><p> बस गयीं थी एक नयी दुनिया ,</p><p> उसी कमरे में ,</p><p> जहां रखा था ..आदमकद आयना ,</p><p> मेरा बालसखा , </p><p> मेरी उम्र का राजदार ,</p><p> जो मायके से मुझे पछयाये ,</p><p> चला आया था ,</p><p> डोली चढ कर </p><p> मेरे साथ ..!!</p><p><br /></p><p> बच्चों की निकर , </p><p> बिटिया का दूपट्टा ,</p><p> इनकी शर्ट ,</p><p> ओर कभी कभी ,</p><p> मेरी साडी , </p><p> जब टंग जाती उस पर ,</p><p> तो ना वह मुझे कभी देख पाता ,</p><p> ओर ना मैं उसे ..!!</p><p><br /></p><p> धीरे धीरे बीतता गया समय ,</p><p> ओर पड़ता गया धुंधला वह ,</p><p> इतना धूमिल ,</p><p> कि उसे देखने की </p><p> आदत ही नही रही ,</p><p><br /></p><p> लेकिन ...</p><p> कई सालों बाद ,</p><p> आज हम आमने सामने थे कमरे , में ,</p><p> निपट अकले ..,</p><p> कोई नही था वहां ,</p><p><br /></p><p> बच्चों की निकर ,</p><p> अटेची में बाँध ,</p><p> ले गयीं थी बहूएं अपने साथ ,</p><p> बेटी हो गयीं थी विदा ,</p><p> ओर इनकी शर्ट ,</p><p> दे दी थी मैने दान ,</p><p> क्यूँकी उसे पहनने के लिये , </p><p> वे थे ही नही उस दुनिया में ,</p><p> वही दुनिया ,</p><p> अब नही थी वहां ,</p><p> जो शुरु हुईं थी इसी कमरे से ,</p><p><br /></p><p> आयने में उभरी </p><p> उसी आक्रति ने जब पूछा मुझे ,</p><p> " पहचानती हो मुझे ," ??</p><p> तो मैने भी खिलखिला कर कहा ,</p><p> बखूबी ...,</p><p> तुम्हें भूली ही कब थी ..??</p><p> तुम्ही तो हो , </p><p> जो मुझमें रही हमेशा समाई ,</p><p> ए मेरी छाया ,</p><p> अभी शेष है उम्र ,</p><p> तो रहेंगे साथ साथ ,</p><p> करेंगे दिन रात ,</p><p> ढ़ेर सारी बात ,</p><p> ना बचे है वे वस्त्र , </p><p> जो तुम्हें ढ़क पायें ,</p><p><br /></p><p><br /></p><p>दिन रात ..</p><p>तपिश झेलता ,</p><p>धरती के चारों और ...,</p><p> घूम घूम कर ...,</p><p>सूरज से ...,</p><p>आँख मिचोनी खेलता ,</p><p> चन्दा क्या जाने की .. ,</p><p>वह सलोना है ...,</p><p> किसी नन्हे से बच्चे को</p><p>बहलाने का ,</p><p> एक खिलोना है !!</p><p><br /></p><p>कमर भर पानी में ,</p><p>खडे होकर ,</p><p>अपलक ताकते हुए .. आसमान में .,</p><p>एक अंजुली पानी .</p><p>.फेंका था ..,</p><p>तुम्हारी तरफ ...,</p><p>जो वापिस आ गिरा </p><p>मेरे ही मुह पर ... ,</p><p>शायद तुम प्यासे नही थे ,</p><p>प्यासा था ...मै ही ..!</p><p><br /></p><p>हाँ ...प्यासा था मैँ ...,</p><p>साल के पन्द्रह दिनो में .,</p><p>तुम्हे याद करने के लिये ..,</p><p>इन पन्द्रह दिनो में ही तो ..,</p><p>एक दिन तुम्हारा था ..,</p><p>जन्म का नही .,</p><p>तुम्हारी मृत्यु का ...,</p><p>उस विदा का .दिन ,</p><p>जब तुम चले गए थे ,</p><p>सदा के लिये ...!!</p><p><br /></p><p>य़ाद आने को तो ,</p><p>कई बातें थीं ...,</p><p>तुम्हारी ऑर मां की ..,</p><p>वो मां का कंघी काढ देना ..,</p><p>मोजे पहनाना ..,</p><p>और तुम्हारा ..</p><p>सायकिल में लगी छोटी सीट पर मुझे बैठा कर ,</p><p>बाजार ले जाना ..,!</p><p>अपना पेट काट कर ,</p><p>मुझे पढाना ..,</p><p>ऑर मेरे अफसर बनने पर ,</p><p>गर्व से मुझे निहारना ..!!</p><p><br /></p><p>लेकिन पन्द्रह दिन तो ,</p><p>यूँ ही गुज़र गये ...,</p><p>इधर उधर पानी देते ,</p><p>कोवों को बुलाते ..,</p><p>पंडित को खिलाते ..,</p><p>ना तुम याद आये ना तुम्हारी य़ादें ..!</p><p><br /></p><p>एक दिन ,तुम्हारे ..,टूटे बक्से में .</p><p>दिख गये ...तुम ऑर मां ,...एकसाथ ..!</p><p>जब एक पैन ..ओर पुराना टिफिंन ..</p><p>एक कोने में धन्से हुए , टकरा गये मेरी ऊँगलियो से ..,</p><p>ना जाने क्यू ..</p><p>सहसा ..बिलख गयीं ..मेरी आँखे ..,</p><p> फफ़क कर रो पडा मैं ..,</p><p>वह पानी ,</p><p>धार बन कर बह गया , आँखो से ..,</p><p> अविरल रुका ही नही ,</p><p>ज़िसे मैने फेंका था ...अंजुली भर ..,</p><p>नदी में धन्स कर .., </p><p>मेरे होठों को कर गया ..तर ., </p><p>आकंठ की </p><p>लगा अब कोई प्यासा नही ..रहा ..,</p><p>ना तुम ..,</p><p> ना मैं .. !!</p><p><br /></p><p>दूर से ,</p><p> पुराना लिबास पहने आदमी ,</p><p> बदला हुआ नही दिखता ..!</p><p><br /></p><p> होता है आभास ,</p><p> जैसे ..वही है ताजापन ,</p><p> वही हिम्मत ,</p><p> वही कुछ कर गुजरने की ताकत ,</p><p> वही नूर ..!</p><p><br /></p><p> रोज धो कर पहनते हुए ,</p><p> लिबास के रेशे रेशे ,</p><p> तार तार ,</p><p> धूप बरसात से उडे हुए रंग ,</p><p> कब हुए जार जार </p><p> ये रोज देखती आँख की </p><p> हैसियत से बाहर था !!</p><p><br /></p><p> दूर से उसी लिबास को देख ,</p><p> सोचते रहे लोग ..</p><p> देखो नही बदला ये शख्श ,</p><p> </p><p> कोई नही जानता ,</p><p> कि बदलने को ,</p><p> दूसरा लिबास , </p><p> उसके पास था ही नहीं .!!</p><p><br /></p><p> और,,,</p><p> लिबास बदलने का अर्थ ,,,</p><p> बदलना नहीं होता ,,!!</p><p><br /></p><p><br /></p><p>कई दिनों पहले से ,</p><p>खो गयी है किताब ।</p><p><br /></p><p>वो किताब ,</p><p>जिस में झांक कर ,</p><p>ढूंढ लेता था ,</p><p>अपने सवालों के हल ,</p><p>कुछ खास पेजों पर ,,</p><p><br /></p><p>वो किताब ,</p><p>जिसके कई पेज के कोने </p><p>मोड़ कर रखे थे ,,</p><p>की जब भी हो मुश्किलें </p><p>आसानी से खोल सकूं ,,</p><p>टटोल कर उन्हें ,,।</p><p><br /></p><p>वो किताब ,</p><p>जिसे पढ़ने में </p><p> कई बार रुक गया था ,</p><p>और बोझिल आंखों को बंद कर ,</p><p>खो गया था सपनो में ,,</p><p>और </p><p>जूझता रहा था कि ,</p><p>कल्पना और सत्य क्या कभी ,</p><p>एक हो सकते हैं ।??</p><p><br /></p><p>वो किताब ,,</p><p>वर्षों पहले से ,,</p><p>जिसमें रखा था ,</p><p>एक ,,</p><p>मटमैला सा नोट ,,</p><p>इनाम में में मिला ,</p><p>किसी बड़े के आशीष के </p><p> स्मृति चिन्ह की तरह ,,।</p><p><br /></p><p>वो किताब ,</p><p>जिसमे दबे थे ,</p><p>कुछ नम्बर ,,</p><p>कुछ खत ,</p><p>कुछ निशान ,</p><p>मोरपंखी धागों की तरह ,,</p><p><br /></p><p>जिनके धुंधले चेहरे ,,</p><p>अब याद करने पर भी </p><p>याद नहीं आते ।</p><p>बिना किताब देखे ,,</p><p>लेकिन जिन्हें </p><p>भूल नहीं पाते,</p><p>,,जो मिटते भी नहीं ,,</p><p>बार बार मेटे ,,!!</p><p><br /></p><p> ।</p><p><br /></p><p>--'सभाजीत '</p><p><br /></p><p>,गाय मत पालिये ,</p><p>पालिये एक ' कुत्ता ',,!</p><p>क्योंकि ,,</p><p>गाय तो माँ है ,,,</p><p>और </p><p>कुत्ता है ,,</p><p>,,नॉकर ।</p><p><br /></p><p>गाय के लिए जरूरी है चारा ,</p><p>चारे के लिए जरूरी है चरोखर ,,</p><p>चरोखर के लिए चाहिए मैदान ,,।</p><p>मैदान के लिए चाहिए ज़मीन ,,!</p><p>और ज़मीन बहुत कीमती है भाई ,,।</p><p><br /></p><p>मैदान अब प्लाट हैं ,, </p><p>प्लाट पर उगते हैं फ्लैट ,,</p><p>फ्लैट होते हैं कांक्रीट ,</p><p>और,,</p><p>कांक्रीट खाया नहीं जा सकता </p><p>क्योंकि ,,</p><p>कांक्रीट ,,खुद खा जाता है ,,</p><p>आदमी को ,,</p><p>आदमी ,,वही ,</p><p>जो पालता था कभी गाय ,</p><p>,,एक माँ को ,,,।</p><p><br /></p><p>तो बिना चारा,,, </p><p>,,आज ,,</p><p>कैसे पल सकती है कोई गाय ,,?</p><p>पल सकता है , तो ,,बस ,कुत्ता ,,।</p><p>क्योंकि खाता है वहः झूठन ,,</p><p>लज़ीज़ मांस ,</p><p>अंडा ,,</p><p>जो नहीं उगता मैदानों में ,,</p><p>मिल जाता है आसानी से ,</p><p>बूचड़ खानों में ।</p><p><br /></p><p>कुत्ता ,,</p><p>लड़ता है मालिक के लिए ,</p><p>भौकता है रात दिन ,</p><p>हिलाता है। दुम ,,</p><p>चाटता है मालिक को ,</p><p>वफादारी निभाता है ,,</p><p>मालिक के फेंके हुए ,</p><p>एक एक कौर के लिए ।</p><p>दे देता है जान ,,।</p><p><br /></p><p>एक दिन ,</p><p>जब हर इंसान के पास होगा ,</p><p>एक कुत्ता ,,</p><p>तो कुत्ते ही ,</p><p>दे देंगे जान , </p><p>आपस में लड़ मर कर ,,</p><p>अपने मालिक की खातिर ,</p><p>और ,,</p><p> बचा रहेगा ,,इंसान ,,</p><p>कुत्तों के खातिर ,,।।</p><p><br /></p><p>--'सभाजीत '</p><p><br /></p><p>लिखा जो मेने कुछ ,</p><p> तो क्यों लिखा ??,</p><p> यह सोच कर में हैरान हूँ , </p><p> अपनी बचपन की दोस्त , </p><p> इस कलम से , </p><p> में परेशान हूँ। ।!!</p><p><br /></p><p>अभिमन्यु की मृत्यु पर , </p><p>छाती पीट कर नहीं रोये पांडव , </p><p>क्योंकि वे जानते थे , </p><p>अभिमन्यु का जन्म हुआ ही था , </p><p> ' वीर गति ' के लिए ,,!!</p><p><br /></p><p> चक्रव्यूह भेदने का ज्ञान , </p><p> सबको नहीं होता , </p><p> और जिन्हे होता है , वे होते हैं भय रहित ,</p><p> जन्म मृत्यु से परे , </p><p>व्यूह के अंतिम द्वार तक पहुँच कर , </p><p>वे लड़ते हैं अकेले ही , </p><p>अंतिम लक्ष्य ,,,' जय - विजय ' के लिए ! </p><p><br /></p><p> जब लक्ष्य हो जय विजय , </p><p> और दृष्टि हो ,,' हस्तिनापुर ' , </p><p>तो फिर सभी योद्धा ही हैं , </p><p>वे भी जो मार देते हैं , </p><p> और वे भी जो मर जाते हैं ,,!</p><p> फिर रुदन किस बात का ,?? </p><p> क्या यह भय है उन जीवितों को , </p><p> की एक दिन वो भी मर सकते हैं , </p><p>" लड़ते " हुए ,,? </p><p><br /></p><p> समर का अगर हिस्सा हुए , </p><p> तो मृत्यु तो है अंतिम परिणीति , </p><p> फिर चाहे हो ' अश्वतथामा हथ भयो ' के झूठे शब्द , </p><p> या किसी शिखंडी की आड़ , जिसके पीछे से चलें , </p><p> तीक्ष्ण बाण ,,!</p><p> धराशायी करदें , किसी ' द्रोण ' या ' भीष्म ' को , </p><p> लेलें कवच कुण्डल दान में , </p><p> और ,,</p><p> रथ का पहिया उठाते कर्ण का , </p><p> करदें वध , </p><p> कह कर यही ,,,की यही है ' न्याय " ,,!</p><p> </p><p> दुश्शाशन की , जांघ पर,</p><p> हो वर्जित गदा का प्रहार , </p><p> या फिर बदले की आग में , </p><p> जला दे कोई ' उत्तरा ' की कोख " ,,!</p><p><br /></p><p> समर है , </p><p> यदि जय विजय का , </p><p> तो सभी हैं युद्ध ' अपराधी ' !</p><p> वे भी , जो छिप कर चलाते हैं बाण , </p><p> और वो भी जो लाक्षागृह की आड़ में , </p><p> रचते हैं ,," षड्यंत्र " ,,!</p><p><br /></p><p> जय विजय सेआगे , </p><p> यदि शेष बचती है तो केवल ' आस्था ' </p><p> जो दिखती है ,,किसी को कृष्ण के रूप में , </p><p> युग पुरुष सी , </p><p> या किसी को , </p><p> बस छलिया ,!</p><p> किसी को दिखती है पाषाण में ,</p><p> ईश्वर की छवि , </p><p> तो किसी को केवल,</p><p> एक खुरदुरा पत्थर ,,!!</p><p><br /></p><p> सत्य सिर्फ भौतिक ही नहीं , </p><p> आत्मिक भी होता है , </p><p> यह जान लेने के बाद , </p><p> शायद शेष ही ना रहे , </p><p> जय - विजय का समर ,,!! </p><p> मरने - मारने की आकांक्षा !!</p><p> ना छाती पीट कर रोने की परम्परा , </p><p> ना रुदालियों का जमघट , </p><p><br /></p><p> रह जाएँ शेष तो बस , </p><p> कबीर के ढाई अक्षर प्रेम के , </p><p> मीठे व्यंग के चुटीले बाण , </p><p> जिसे मुस्करा कर झेल लें सब , </p><p> और बाँध लें ' सार - सार ' अपनी गांठों में ,,!!</p><p><br /></p><p> कह कर की हे मनीष ,,! </p><p>,,,' साहब सलाम ' </p><p> हे काली मसि में मुंह डुबोती ,,,</p><p> अमृत कलम , </p><p> तुझे ,," प्रणाम " ,,!! </p><p><br /></p><p> ,,,सभाजीत</p><p><br /></p><p>,,,, बाढ़ में ,,,,</p><p> </p><p> डूब गया</p><p> ,मेरा , ,,,' बस्ता ,,,!</p><p> </p><p> बह गयी मेरी ,,,</p><p> ' पाठशाला ,,,</p><p> </p><p> ढह गया वह घर ,,,</p><p> जिसमें रहते थे ,,,</p><p> मेरे बूढ़े टीचर जी ,,,!!</p><p><br /></p><p> , </p><p> घर में रंभाती ,,,</p><p> ,,, ' भेंस ' </p><p> ना जाने कैसे ,, बच गयी </p><p> जो नहीं थी बिलकुल ' पढ़ी लिखी ' ,,१</p><p><br /></p><p> नहीं जानती थी ,,</p><p> जो , ' बीन ' का संगीत , </p><p> ,,नेता का भाषण , </p><p> स्वागत गीत ,,,!!</p><p><br /></p><p> जानती थी </p><p> बस मुझको , </p><p> बचपन से ,,,</p><p> चाटती थी मेरा हाथ , </p><p> </p><p> , मालुम थी उसे ,</p><p> ' प्यार ' की भाषा , </p><p> ' स्नेह ' का अर्थ ,,,!!</p><p><br /></p><p> जानवर होकर भी ,</p><p> समझती थी </p><p> मनुष्य के प्रति अपना फ़र्ज़ ,,,!!</p><p><br /></p><p> मेरी आवाज़ , उसके साथ ,</p><p> , अब ,,</p><p> रोते रोते मंद है , </p><p> क्यूंकि ,,, </p><p> चैनलों पर होरहे प्रोग्रामों में , </p><p> दिल्ली की कुर्सी के आगे , </p><p> सबकी आँख 'परदे' पर है , </p><p> और ' कान ' बंद हैं ,,,!!</p><p><br /></p><p>कौन जानता है ,</p><p>'गरल' और 'अमृत' का स्वाद ..?</p><p>शायद गरल 'मीठा' हो ..,</p><p> और अमृत 'कड़वा' ..!!</p><p>गरल एक सत्य है ..,</p><p> मृत्यु जैसा ..!</p><p>जो है अनिवार्य..!!</p><p>और.. अमृत है बस.. 'चाह'..!,</p><p> कुछ पलों,दिनों, और वर्षों की ..!!</p><p>चाह है असीमित..,</p><p>उम्र सीमित..!</p><p>चुनना है मुझे उन दोनों में से कुछ एक..,</p><p> तो मैं चुनूंगा- "मिठास" !!</p><p>'कडवाहट' के साथ जी कर भी क्या करूँगा मैं ..??</p><p><br /></p><p>यह बबूल का पेड़ जो माँ ,</p><p> होता जे एन यू तीरे ,</p><p> में भी उस पर बैठ ,,कन्हैया ,</p><p> बनता धीरे धीरे ,,।</p><p><br /></p><p> ले देती गर माइक मुझको ,</p><p> एक लाउडस्पीकर वाली ,</p><p> किसी तरह अध्यक्ष की कुर्सी ,</p><p> मिल जाती गर खाली ,,।</p><p><br /></p><p> कूद क्षात्रों के कंधों पर ,</p><p> उचक के जो चढ़ पाता </p><p> देश विरोधी नारे मैं भी ,</p><p> गला फाड़ चिल्लाता ,,।।</p><p> </p><p> हर विपक्ष का दल ,आगे बढ़ ,</p><p> हर दिन मुझ को फुसलाता ,</p><p> और चुनाव का टिकट मुझे ,</p><p> देने को रोज बुलाता ,,।</p><p><br /></p><p> पर बबूल का पेड़ नहीं तब ,</p><p> कहीं मुझे फिर दिखता ,</p><p> बस नोटों के बीच हमारा ,</p><p> सारा जीवन पलता,,।</p><p><br /></p><p> 😆😆😎</p><p> ( एक पुरानी कविता की पैरोडी )</p><p> </p><p>हर द्रश्य आज तमाशा है ।</p><p>और तमाशाई है लोग ,,।।</p><p>आंख से नहीं देखते ,</p><p>देखते हैं मोबाइल से ,</p><p>जिसमें नहीं होता ,,</p><p>,,, दिल ,!!</p><p><br /></p><p> चमकता है वहां ,</p><p> बस ,," रिचार्ज "का बिल ,,!!</p><p><br /></p><p>दिल जो भर आता था ,</p><p>कभी कभी छलक जाता था ,,</p><p>दिल जो गाता था ,</p><p>उसमें कोई समाता था ,</p><p>दिल जो टूट जाता था ,</p><p>कोई अनजान भी ,</p><p>उसे लूट जाता था ,</p><p>दिल जो जिद पर आता था , </p><p>रातों में रुलाता था ।</p><p>दिल जिस पर होता था गुमाँ,</p><p>दिल जो कभी होते थे जवां,।</p><p><br /></p><p>अब कहाँ गए चे वो दिल ? </p><p>जो मर गए उदास हो ,</p><p>घुट कर तिल तिल ।</p><p>अब तो सीने में " कलेजे " हैं ,</p><p>बड़े से जिगर है ,</p><p>और मष्तिस्क में </p><p> " भेजे " हैं ,</p><p>शीशों के घरोंदों में रहने वालों ने </p><p> नाज़ुक से दिल ,</p><p> किसने कब सहेजे हैं ??</p><p><br /></p><p>दिल तो आज रोटी रोजी है ,</p><p>मोबाइल में कैद ,,</p><p>एक "इमोजी " है ।</p><p><br /></p><p>हो सके तो ,</p><p>दिल को ढूंढ लाएं ,</p><p>चलो ,,कब्रगाहों , श्मशानों में </p><p>घूम आएं ,,</p><p>जहां बेजान शरीरों में , आत्माओं में भी ,</p><p>दिल अभी कहीं ज़िंदा हो ,</p><p> उनके दिल से मिल कर ,</p><p> हम ,</p><p> आज </p><p> ,खुद ,अपने से थोड़ा </p><p>,,,शर्मिंदा हों ।</p><p><br /></p><p>-'सभाजीत</p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p><p> </p><p> ,</p><p><br /></p><p>🙂</p><p><br /></p><p><br /></p><p>रग्घू और भग्घू दो सगे भाई थे ।</p><p><br /></p><p>एक ही कोख से जाये,,।</p><p><br /></p><p>आज़ादी के बाद पैदा हुए इन भाइयों का आज़ादी का ज्ञान सिर्फ 15 अगस्त , 26 जनवरी पर , तिरंगे और राष्ट्रगान तक सिमट कर रह गया था । नेताओं द्वारा मंच पर दिए गये भाषणों में उन्हें संविधान के अंतर्गत दिए गये अधिकारों के बारे में चींख चींख कर बताया गया और यह भी चेताया गया कि जब तक लोग उन्हे वोट देते रहेंगे ,,संविधान सुरक्षित रहेगा और उनके अधिकार भी । तभी कुछ लोगों ने उन्हें यह भी समझाया कि यदि अब आज़ाद हिंद की सरकार कुछ न दे तो वे सुविधाएं छीन कर भी प्राप्त कर सकते हैं । खूनी रंग के लाल झंडे उन्हें थमाते हुए उन्हें बताया गया कि खून उबलने के लिए ही है । विरोध हर जगह लाज़िमी है । आज़ादी से पहले की संस्कृति अब फटी कमीज की तरह है । अब रोज नए लिबास पहनना , झूमना , गाना , खुश रहना उनका अधिकार है । समस्याएं सुलझाना सरकार का काम है ,, समस्याएं पैदा करना आपका काम । अब तो जंगल के शेर को भी मेहनत कर अपनी खुराक ढूंढने की जरूरत नहीं ,,। सरकार उन्हें जू में रखेगी । वे प्रदर्शनी बनेगे , सरकार उस पर राजस्व कमाएगी और अशक्त जानवरों का मांस बैठे बैठे उन्हें मुहहैय्या करवाएगी ,,भले ही वे शिकार करने वाले फुर्तीले शेर , आलसी हो जाने के कारण जू में सोते सोते ही अकाल मृत्यु के शिकार हो जाएं ।</p><p> बहरहाल ,,, असली किस्सा तो रग्घू और भग्घू का है ,,। </p><p> यहां किस्सा खुद भटक रहा है ,,इसलिए रुख मोड़ते हैं ।</p><p><br /></p><p> तो रग्घू और भग्घू एक ही गावँ की पाठशाला में पढ़े , स्कूल की स्पर्धा दौड़ में दौड़े , लड़े झगड़े , और बड़े हो गये । रग्घू भग्घू के घर में कोई बड़ी खेती नहीं थी । दो बीघा जमीन थी उनके पिता के पास । उनके पिता खेत में जो बीज बोते वहः उनके खेत की ही फसल का होता था । फसल में ज्वार बोते ,,जिसमें ज्यादा पानी नहीं लगता था । लहलहाते ज्वार के पके हुए भुट्टे जब गर्व से मस्तक उठा , आसमान की ओर ताकने लगते तो रग्घू के पिता उन्हें काट कर सब बराबर कर देते । भुट्टों से ज्वार के दाने निकालने के लिए रग्घू के पिता पड़ोसी के घर से बैल मांग लाते , या कभी कभी रग्घू और भग्घू भे अपने पैरों से भुट्टे मसल कर ज्वार के दाने अलग कर लेते । रग्घू की मां खुद चक्की से , सुबह उठ कर ज्वार का आटा बना लेती और गर्म रोटी जब रग्घू भग्घू को देती तो वे उसे गुड़ के साथ खा कर छप्पन भोग का आनन्द लेते । </p><p> रग्घू के घर एक गाय भी थी । उसका दूध रग्घू भग्घू पीते ,,और फिर उसके नन्हे बछड़े के साथ दौड़ने की स्पर्धा करते । गाय का चारा खेत में उगी घास और ज्वार के डंठलों को चूरा कर बनता । </p><p> उन दिनों तक रग्घू भग्घू किसान के बेटे कहलाते थे । उनके पिता को यह बताया गया था कि जब तक वे दो बैलों की जोड़ी को पूजते रहेंगे ,,उन्हें एक कागज की पुर्जी चढ़ाते रहेगें तब तक ही वे सुखी रहेंगे ,,क्योंकि बैल की जोड़ी ही तो हल हांकती है ,,बैलगाड़ी में जुटती है ,,और यही जोड़ी सरकारी है ,,बाकी सब कुछ प्राइवेट,,। </p><p> और प्राइवेट का मतलब है शोषक ,,जमींदार ,,,साहूकार ,,।</p><p><br /></p><p> तो रग्घू भग्घू को प्राइवेट शब्द सुनते ही पारा चढ़ जाता ,,।</p><p><br /></p><p>--' सभाजित' </p><p><br /></p><p>( क्रमशः) </p><p><br /></p><p>* यदि कथा पसन्द आयेगी तो आगे कहूँगा ,,वरना रोक दूंगा )</p><p> </p><p><br /></p><p> </p>sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-2088923283438009242020-12-23T10:34:00.008-08:002021-01-14T09:31:17.289-08:00 ,,किस्सा ए तोतामैना ,,,<p> अपनी रचनाएं मैं कहीं भी करीने से संजोकर नहीं रख पाया । कुछ जरूर ब्लॉग में लिखने के कारण दिख जाती हैं किंतु बहुत सी तो यदाकदा शरारती बच्चे की तरह , यहां वहां से कूद फांद कर मेरी गोद में आ कर चढ़ जाती है ,,,। इन्ही में से एक यह रचना है जो वर्ष 2009 की एक स्थानीय पत्रिका ,,' उपनयन ' में छपी थी और अचानक आज पुरानी धूल झाड़ते हुए टपक पड़ी ।</p><p> </p><p> लिखने के बाद , मुझे भी यह रचना अच्छी लगी थी तो आज इसे पुनर्जीवित कर रहा हूँ ,,।</p><p> </p><p> आप भी आनन्द लीजिए ,,,,,,,।</p><p><br /></p><p>★★★</p><p><br /></p><p>********************</p><p> ' किस्सा ए तोता मैना ' ,,!!</p><p><br /></p><p>*********************</p><p> </p><p><br /></p><p> रोज़ की तरह , तोता अपनी प्रिय डाल पर आकर बैठ गया । </p><p> वहां उसकी साहित्यिक प्रतिद्वंदी ,,' मैना ' ,,पहले से ही आकर वहां बैठी थी । दोनों ने एक दूसरे पर निगाह डाली , और फिर एक दूसरे को निगाहों से तौलने लगे ।</p><p> तोते ने मैना से पूछा --" आज मर्दों की बेवफाई पर कोई कहानी नहीं कहोगी ,,??" </p><p> मैना ने एक निगाह तोते पर निगाह डाली और फिर निर्विकार भाव से बोली ,,,</p><p> -" मेरे पास तो आज कुछ कहने को नहीं है ,,मुझे तो ऐसा लगता है कि जो कुछ पहले कहा ,,वहः भी गलत है । " </p><p> --" क्यों,,?? ,,तुम तो औरतों की बड़ी हिमायती ,और मर्दों की आला दर्जे की आलोचक रही हो ,,आज ये बदला हुआ अंदाज़ क्यों ,,?? </p><p> मैना ने एक गहरी निगाह तोते पर डाली । ,,,तोता भी कुछ उदास उदास था ,,लेकिन एक चतुर साहित्यकार की तरह अपनी उदासी छुपाने की कोशिश कर रहा था । मैना ने एक अर्थपूर्ण द्रष्टि उस पर डालते हुए कहा ,,</p><p> " हम औरतों के पास ,,' अंदाज़ ' ही तो है ,,जो ' बदलते ' रहना चाहिए ।,,ये कहो कि तुम उदास क्यों हो आज ,,? ,,क्या कुछ सोचते रहे रातभर ,?? " </p><p>--" सोचने से हम तोतों का क्या सरोकार ,,! ,,हम तो तोते हैं ,,,रट्टू तोते ,,!!,,दूसरों से लिया ज्ञान ,,यहां वहां ,,बघारने वाले तोते,,!!,," ---तोते ने उंसाँस भरते हुए अपनी आंखें दूसरी ओर घुमा ली ।</p><p> मैना ने तोते की उदासी ताड़ ली । थोड़ा अपनत्व भरे स्वर में बोली --" ऐ तोते,,!,,नज़रें न घुमा ,,! ,,सच सच बता क्या हुआ तेरे साथ ,,? ,,क्या औरतों की कोई बहुत बड़ी बेवफाई का हाल तूने खुद देख लिया ,,? " </p><p> अपनत्व भरे बोल तोते की कमजोरी थे । मैना को मीठे मीठे बोलते देख वहः पंख फड़फड़ाने लगा । फिर धीरे से पंजा उठा कर बोला ,,," मुझे दक कांट्रेक्ट मिल गया था ,, कुछ दिन उसी के चक्कर में फंस गया था । " </p><p> --" कांट्रेक्ट ??,, कैसा कांट्रेक्ट ,,?? -"--मैना ने अपनी बड़ी बड़ी आंखें विस्मय से घुमाई ।</p><p> --" कांट्रेक्ट ,,!!,,,स्क्रिप्टिंग का कांट्रेक्ट ,,!! " </p><p> -" स्क्रिप्टिंग का कांट्रेक्ट ,,?? ,,,यानि अब तुम कहानी कहने की जगह स्क्रिप्टिंग करने लगे ,,?? ,,अरे वाह,,!,,क्या तुम स्क्रिप्ट लिखोगे ,,??" </p><p> --" नहीं ,,!,,मैं लिखना तो जानता नहीं ,, लेकिन जो मैं बोलता हूँ। लोग उसे ही लिखना शुरू कर देते हैं ,,।"</p><p> -" तो तुम सरेआम बोलते ही क्यों हो ,,?? " </p><p> --" कहा न ,,' कांट्रेक्ट ',,!! ,,मुझे कांट्रेक्ट मिल गया था ,,।। कांट्रेक्ट ईमानदारी से पूरा करना जरूरी होता है ,,!" </p><p> -" अच्छा तो किसने दिया यह कांट्रेक्ट ,,??" </p><p> -" एक प्रोड्यूसर ने ,,!"</p><p> --" प्रोड्यूसर ने ,,?? ,,कौन है यह दिलदार प्रोड्यूसर ,,??"</p><p> --" वहः प्रोड्यूसर है ,,,दिलदार नहीं ,,। ,,दिलदारी और प्रोड्यूसरी ,, नदी के दो जुदा जुदा पाटों मि तरह होते है ,,"</p><p> -" चलो ठीक है ,, ! ,,मैं भी तो जानूं उस प्रोड्यूसर का नाम ,,!! "</p><p> - " नाम में क्या रखा है ,,,हाँ मैं उसके काम के बारे में बता सकता हूँ । "</p><p>--" ,चलो यही सही,,! ,,भला क्या करता है तुम्हारा यह प्रोड्यूसर,,?" </p><p>--" करता नहीं ,,करती है कहो,,! ,,वह एक औरत है ,,!" </p><p>- " तुम एक औरत के लिए काम करने लगे ,,?? ,,अरे तोते,,!,,तुम तो औरतों के धुर विरोधी रहे हो ,, ।,,उसकी बेवफाई की हज़ारों कहानियां ,,इसी डाल पर बैठ कर तूने मुझसे कही ,,! ,,फिरभी औरतों के लिए काम करने पहुंच गये,,??" </p><p>- " मैं खुद नहीं गया ,,उसने मुझे खबर भिजवाई थी ,,कि वहः औरतों की बेवफाई पर सीरियल बना रही है ,,पूरे सीरियल में औरतों का करेक्टर ' विलेन ' का ही रहेगा ,,।"</p><p>-" छी छी,,!,,एक औरत हो कर औरतों पर ही कीचड़ उछालती है वो,,?,,क्या हमजात औरतों के लिए कोई हमदर्दी नहीं उसके दिल में ,,?" </p><p>-" दिल,,?,,मैनें पहले ही कहा ,,दिल है ही कहाँ उसके पास ,,? ,,वह तो प्रोड्यूसर है ,,दिलदार नहीं ,,!" </p><p> -" बहुत खूब,,! ,,तुम बाज नहीं आये तोते,,!!, औरतों की बेवफाई को दुनिया में दिखाने के लिए अब सीरियलों में घुस गये,,? ,,अभी तक तो डाल से ही टर्राते थे ,,!" </p><p>-" मैनें कहा न ,,मैं खुद नहीँ गया था वहां,,--मुझे बुलाया गया था ,,!"</p><p>-" क्या फर्क पड़ता है ,,,तुम तोते होते ही ऐसे हो ,,। ,,औरतें जरा सा दाना डाल दें तो जहन्नुम में भी पहुंच जाओगे,,,और फिर तमाचा पड़ जाए तो लौट कर औरतों की बेवफाई पर किस्से गढ़ कर सुनाने लगोगे,,।,,,मैं जानती थी,,,।,,,तुमसे यही उम्मीद थी । ,,"</p><p>-" तुम गलत समझ रही हो मैना ,,!,,मैं,, वैसा तोता नहीं हूँ ,,! "</p><p> -" ठीक है ,,! ,,तो वहां क्या झखमारते रहे ,,बतलाओ,,!" </p><p> -" वहां उन्होंने मुझे एक एसी होटल रूम में रखा । फिर सोने का पिंजरा भी दिया ,,,जिसमें एक खुला हैंगर भी था । उन्होंने कहा ,,' मैं जैसे चाहूं वैसे रहूँ,, उन्हें कोई हर्ज नहीं ,,!" </p><p>-" अच्छा तो फिर,,? " </p><p> -" फिर पहले मेरी खातिरदारी हुई,,! " </p><p> -" खातिरदारी ,,? ,,कैसी खातिरदारी,,??" </p><p> -" एक आदमी चांदी की कटोरी में लाल अनार में दाने भर कर लाया ,,मेरा स्वादिष्ट भोजन ,,!,,वर्क लगा अमरूद,,! ,,मीठी मिर्ची ,,,वगैरह,,! " </p><p> -" मीठी मिर्ची ,,?? ,,अरे तोते ,,!,,क्या तेरी अक्ल फिर गई है ,,?? ,,मिर्च कहीं मीठी होती है ,,???" </p><p> --" पता नहीं,,, उन्होंने कहा ,,मिर्च की नई प्रजाति है,,। ,,शक्कर की तरह मीठी,,,,देखने में पूरी लाल लाल मिर्च ,,विदेशी है ,,!" </p><p> -" बहुत खूब ,,! ,,अब तुम कहोगे की अनार के दानों का स्वाद मिर्च की तरह तीखा था ,,,क्यों,,?? " </p><p> -" बिल्कुल सही ,,",,-तोता चोंक उठा --,," तुम्हें कैसे पता ,,?? ,,तुम तो अनार खाती नहीं ,,?" </p><p> -" तुम्हारी इस अफीमी कहानी से ,,!,,"</p><p> -" अरे नहीं ,,! ,,यह कहानी नहीं ,,हकीकत थी ,,,' मैना जी ',,!"-- तोते ने अपनी बात का बज़न बढाने के लिए ,,मैना को आदर का चारा डालते हुए कहा --" आप विश्वास करें ,,!" </p><p> - " ये तुम से आप पर कैसे पहुंच गये तोते,,?? ,,-- मैना झल्ला उठी --" अपनी औकात में रहो ,,!,,,,लखनवी नज़ाकत सिर्फ नवाबों के लिए होती है ,, आम लोगों के लिए नहीं ,,!,,याद रखो की तुम एक तोते हो ,,नाचीज़ तोते,,! ,,तुम्हारे कई पुरखों को नवाब अपने पिंजरों में पालते थे ,,और गिफ्ट में अपनी हीराजान को दे आते थे ,,कोठों पर फुदकने के लिए ,,! " </p><p>- " गलती हुई मोहतरमा ,,! ,,- तोते ने अपने पंख उठाकर कानों से लगाते हुए कहा - " लेकिन यकीन करें ,,मैं सही बोल रहा हूँ ,,! "</p><p> -" चलो ठीक है यही सही ,,कि तुमने मीठी मिर्च और चटपटे अनार खाये ,, और क्या किया ,,??" </p><p> -" उस मायानगरी का नज़ारा अजीब था मैना ,,!,,मैनें पानी मांगा ,,तो उन्होंने मेरे सामने चमचमाते पतले कांच के प्याले में लाल लाल शराब रख दी । " </p><p> -" शराब ,,??,, - मैना ने अपनी नाक पर पंजा रख लिया । मुंह सिकोड़ कर बोली - " पानी मे बदले शराब ,,?? ,,यह क्या तमाशा था वहां ,,?? " </p><p> -" मैनें भी यही कहा ,,-' क्या तमाशा है ,,?? ,,मैं पानी मांग रहा हूँ ,,और आप शराब परोस रहे हैं ,,?? ,,पानी नहीं है क्या आपके पास ,,?? " </p><p>-" बिल्कुल सही ,,!,,पहलीबार तुम्हारी अक्ल पर गुरूर करने का जी चाह रहा है ।,,,,तोते,,!,,तुमने सही कहा ,,लेकिन फिर उन्होंने क्या कहा ,,?? " </p><p>-" उन्होंने कहा -' पानी,??,,,हमारा पानी तो कब का उत्तर चुका है ,,हम तो बिना पानी के हैं ,,यही शराब है जो आप को नज़र है ,,!" </p><p> -" तो फिर,,? ,,फिर क्या कहा तुमने ,,?? " </p><p> -" मैनें प्याले की तरफ से नज़रें फेर ली ।,,मैनें कहा की मैं पानी पीता हूँ ,,,शराब नहीं पीता ,,।"</p><p> -" तो फिर,,?,,फिर क्या हुआ ,,? ,,"</p><p> -वे हंसने लगे । उनमें से एक मशहूर शायर था । मैनें पहचान लिया । उसकी शायरी और तरन्नुम , आज़ादी के पहले हर जुबान पर रहते थे । वह शायर बोला - ' शराब में भी ' आब ' है ।,,आप पी कर देखें ,,,आपकी आब की जरूरत इसी से पूरी हो जाएगी । ',,,!"</p><p> दूसरा एक कवि था । वह भी चहकने लगा । बोला ,,-' शब में जब आब घुल जाती है तो शबाब हो जाती है ।,,आब इस तरह वहां भी है ,,समझे तोतेज़ान,,! " </p><p> -" हे भगवान,,!! ,,,तुम कहाँ फंस गये थे तोते ,,?? ,,कहां पहुंच गये बेवकूफी में ,,!" </p><p> -" मैं भी यही सोच कर खुद को कोसने लगा ,,मुझे लगा ,,ये शायर,,ये कवि,,' आब ' को शराब , शबाब , कबाब में ढूंढ रहे हैं जबकि आब तो नदियों , समुद्र, तालाबों में बिखरा पड़ा है ,,। क्या इनकी सोच इतनी तंग हो गयी है कि आब की पहचान भूल गए हैं ,,? ,,ये क्या लिखेंगें,,?,,क्या करेंगें,,??,,उस दुनिया के लिए ,, जो पूरी दुनिया के लिए कुछ दिखाने लायक चीजें बना रही है ,,?? ,,"</p><p> -" बिल्कुल सही,,! ,,तुमने उन्हें फटकारा नहीं,,??" </p><p> -" में उन्हें फटकारने जा ही रहा था कि ' वो ' आ गई ,,!"</p><p> -" वो कौन ,,,?" </p><p> - " वही प्रोड्यूसर,,!,,उसे देखते ही सब उसके पैरों पर बिछ गये । वहः प्रोड्यूसर हाथ में एक ,,' कोड़ा ' लिए थी ,,। कोड़े की ' मूठ ' ,,सोने की थी और रस्सी हज़ार हज़ार के नोटों को बट कर बनाई गई थी । आते ही उसने कोड़ा फटकारा,,। " </p><p> -" तो तुम उन्हें फटकार नहीं पाए,,??" </p><p> -" अरे मैं क्या फटकारता ,,?? ,,कोड़े की फटकार ही इतनी तेज थी कि उसमें मेरी टॉय टांय कौन सुनता ,,?? " </p><p> -" फिर,,?,,फिर,,?? </p><p> -" उसने आते ही सबसे पहले सबको घूरा,,फिर खिल खिला कर हंसी,,!" </p><p> -" हंसने लगी,,,बदजात,,?? " - मैना ने घृणा से मुंह सिकोड़ा ।</p><p> -" हां। वो हँसी,, फिर बोली ,,--' अच्छा तो आप ही हैं वो मशहूर हीरामन तोता जी ,,? ,,जिनके सुनाए किस्से ,' किस्सा ए ,तोता मैना ' किताब में दर्ज हैं ,,? " </p><p> -" अच्छा,,?,,पहचान गई तुम्हें ,,? ,वैसे तोतों की शक्लें तो एक जैसी ही होती है ,,कितना मुश्किल है किसी तोते को पहचानना ,,? "</p><p> -" हाँ,, में भी कहूँ ,,कैसे पहचान गयी ,,जबकि मेरे गले में कोई पट्टा नहीं , मेरे पंख भी कतरे हुए नहीं थे ,,फिर भी पहचान गयी कि मैं ही हीरामन तोता हूँ ,,!" </p><p> -" बहुत होशियार थी ,,! "</p><p> -" हाँ,, बहुत होशियार थी ,,फिर बोली ,,- ' माया नगरी में आपका स्वागत है ।यहां राइटर्स की कमी है ,,आप हमारी जरूरत पूरी करें ,,हम आपकी करेंगे,!"</p><p>- " तुमने क्या कहा ,,?" </p><p> -" मैनें कहा कि आप मेरी जरूरतें पूरी नहीं कर सकतीं ,, मुझे एक खुली डाल चाहिए,,।,,लाल तीखी मिर्च,,। ,,और पेड़ पर पके अनार के दानों के साथ मटके का पानी।,,</p><p>जो आपके यहाँ नही है ,,,अलबत्ता ,,हुकुम करें,,,।ऐन आपके लिए क्या कर सकता हूँ ,,?</p><p>-" फिर,,?,,फिर क्या हुआ ,,?? </p><p> -" मेरी बात सुन कर उसमें चेहरे पर थोड़ी शिकन आ गयी । फिर सम्हलकर बोली ,,-' हम आपके लिए पेड़ का एक सैट लगवा देंगें,, अनार तो बाज़ार में मिल जाएंगे,,भले ही वे पके हुए नहीं मिलेंगे , इंजेक्शन से पकाए हुए मिलेंगे,,। मेरे यहाँ सैट बनाने वाला एक बूढ़ा कारीगर रोटी के साथ सूखी मिर्च खाता है,,। मिर्च उससे मांग ली जाएगी और पानी डिस्टिल्ड वाटर की बोतलों से मिल जाएगा । कहिए,,कि आप अब हमारे लिए काम करेंगें कि नहीं ,,? ",,,',,,- इतना कह कर आदतन उसने अपना कोड़ा फटकारा । ,,,,कोड़े की आवाज़ इतनी खतरनाक थी कि कान फट जाएं ,,। मैं बेहोश होते होते बचा ।</p><p>-" बड़ी मायावी थी ,,,,,बच्चों की कहानियों की डायन की तरह,,,,क्या उसके कुछ दांत बाहर थे,,?? " </p><p>-" पूरी तरह बाहर नहीं थे लेकिन ऊपरी दांत कुछ उठे हुए थे ,।"</p><p>-" और उम्र ,,?? " </p><p>- " मायानगरी में उम्र नहीं पहचानी जा सकती मैना,,! ,,वहां सभी के चेहरे रात में चमकते हैं ,,जवान लगते हैं ,,सुबह वे सभी चेहरे भयावह हो जाते हैं ,,, उमरदार हो जाते हैं । इसलिए वे चेहरे अक्सर बड़े बड़े बंगलों में छुप कर रहते हैं । सिर्फ कैमरे के सामने आते हैं ,,पूरे मेकप के साथ ,,! "</p><p> -" हे भगवान ,,!! ,, आगे क्या हुआ,,?? " </p><p> -" मैनें कहा - ' मुझे मंजूर है ,,!'</p><p> -" क्या कहा तुमने,,?,,,मंजूर है ,,??,,,उन शायरों और कवियों का हश्र देख कर भी तुमने कहा कि तुम्हें मंजूर है ,,???</p><p>- " हाँ,,,!,,मैनें यही कहा कि मुझे मंजूर है,,!,,लेकिन मैं काम करने से पहले किसी की इजाजत लेना चाहूंगा । समझ लीजिए,,अगर इजाजत नहीं मिली तो मैं काम नहीं करूंगा । "</p><p>-" तब उस प्रोड्यूसर ने क्या कहा तुझसे,,? " </p><p>-" उसने कहा - ' यह कैसा इकरार है ,,? ,,इसमें तो इनकार झलकता है ,,! "</p><p>-" फिर,,? "</p><p>- " मैनें जवाब दिया - ' मेरा इकरार इसी तरह का है ,,,,लेमिन अब पहले यह जान लूं ,,मुझे आप कबसे जानती हैं ,,? " </p><p> -" जरूर,,!,,"-- उसने कहा - ' आप महान किस्सागो हीरामन ही हैं ,,और यह बात अब किसी से छुपी नहीं है ,,। आप पेड़ पर बैठ कर जो कहानी कहते थे उसे एक बहेलिए ने सुना ,,जो आपको पकड़ने गया था । लेकिन आपकी कहानियों को सुन कर उसका मन फिर गया ,,,,। उसने वे सभी कहानियां पेड़ के नीचे बैठ कर लिख डाली । " </p><p>- " अच्छा ,,,???" -- मुझे इस रहस्योद्घाटन पर आश्चर्य हुआ । मुझे कंपकंपी आ गयी ,,,भगवान ने बचाया ,,।</p><p>-" उन कहानियों को लिख कर वहः एक प्रकाशक के पास गया । ,,जो अकबर- बीरबल के चुटकुले छाप कर किताब बना कर बेचता था । ,,'</p><p>-" अरे वाह ,,!"</p><p>-" वहः प्रकाशक ही मेरे महान पिता थे । उन्होंने आपके किस्सों को छापा ,,,,,' किस्सा ऐ तोतामैना ,,' ,,जो खूब खूब बिकी ,,!" </p><p>-" फिर,,",,!</p><p>- " फिर उन किस्सों को आधार बना कर मैनें यहां नए नए सीरियल में उन पात्रों को डाला ,,सिर्फ बैकग्राउंड बदल दिया ,,!'</p><p>-" जैसे ,,</p><p>-" जैसे ,,बेवफा औरत,,कभी बहू, ,,तो कभी सास ,,। ,,कभी बीबी तो कभी प्रेमिका,,। ,,कभी दूसरी बीबी ,,तो,,कभी तीसरी बीबी,,।,,कभी माँ तो कभी बेटी,,,। ,,,कभी ननद तो कभी भाभी,, वगैरह वगैरह,,।लेकिन रही वो वेबफा ही ,,उन किस्सों की तरह ,,। " </p><p>-" फिर इससे क्या मिला आपको,,? " </p><p>-" बेशुमार दौलत ,,और नाम ,,। ,,उसी दौलत से मैनें ये कोड़ा बनवाया है ,,सुनेंगें इसकी आवाज़ ,,??" </p><p>- " नहीं नहीं ,,,रहने दें ,,। "-मैनें डर से घिघियाकर कहा ,,। </p><p>- " आपके पास तो बहुत राइटर्स है,,आप उन्ही की कहानियों को बदलकर क्यों नहीं नई कहानी बना लेतीं ,,?</p><p> वहः हँसी,,। बोली - ' आप क्या समझते हैं ,,? क्या मैनें ऐसा नहीं किया होगा ,,? ,,मैनें यही किया ,,! ,,और कई सालों से एकछत्र इस इंडस्ट्री पर राज कर रही हूँ ,,लेकिन पिछले दिनों से अब लोग समझने लगे हैं ,,।मेरे सीरियल फ्लॉप हो रहे हैं ,,,। मुझे कुछ नई। कहानियां चाहिए ,,</p><p> --" बेवफाई में कुछ नया नहीं होता ,,'-मैनें कहा , ' ,जैसा कि मैनें कहा है कि मैं आपका प्रस्ताव मंजूर करता हूँ ,लेकिन मैनें यह भी कहा है कि मैं किसी की इजाजत लेना चाहूंगा ,,।" </p><p>-" भला किसकी इजाजत लेना चाहते हैं ,,आप,,?,,क्या आप कहीं प्रतिबंधित हैं ,,? " </p><p>-" नहीं,,!,,में प्रतिबंधित नहीं,,लेकिन ' प्रतिबध्द ' हूँ । मैं कहानी अपनी विदुषी प्रतिद्वंदी मैना को सुनाता था । किसी और को सुनाने से पहले मुझे उसकी इजाजत लेनी पड़ेगी । ,,मुझे जाने दीजिए,,,मैं उससे पूछ कर लौट आऊंगा ,,!" </p><p>-" और अगर उसने इजाजत नहीं दी तो ,,? " </p><p>-" नहीं ,,,वो आपके जैसी नहीं है । आप होठों को लिपिस्टिक से पोत कर लाल करती हैं ,,,उसकी चोंच ,,प्राकृतिक है । उसके बोल भले ही पुरुषों के लिए आलोचनात्मक रहे हों ,,लेकिन दिल से वहः उदार है । ,,,और फिर अगर उसने मना किया तो फिर मैं किसी भी हालत में आपको कहानी नहीं सुना सकता ,,! ,,फिर मैनें एडवांस भी तो नहीं लिया आपसे,," </p><p>वहः हँसी,,। ,,बोली -" अभी आप औरतों को नहीं जानते ,,जाइये मैना से पूछ आइए ,,मैं आपको छोड़ती हूँ । "</p><p> इतना कह कर तोता चुप हो गया । फिर मैना की ओर मुड़ कर बोला --" में वहां से रात भर उड़ कर यहां आ गया ,, अब कहो मैना,,, तुम्हें छोड़ कर मैं वहां जाऊं या नहीं ,,??" </p><p> मैना थोड़ी देर चुप रही । फिर उसका गला भर आया ,,आंखें भींगने लगीं । वहः आंसू दबाते हुए बोली ,,- </p><p>-" तोते ,,! मेरा तुमसे कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं । हम लोग जो कहानियां कहते थे ,,वे मन बहलाने के लिए थीं । दिखाने के लिए नहीं । तुम अपने मन के राजा हो,,। तुम कहीं भी जा सकते हो । लेकिन हो सके ,,तो साल में एकबार जरूर अपने पुराने पेड़ पर लौटना । यहां में रोज तुम्हारी बाट जोहूँगी । </p><p> रही बात अपनी कहानियों की,,, तो सच कहूँ,,न मर्द बेवफा होता है ,और ,न औरत । वफ़ा एक कीमती रत्न है,,जो कहीं भी देखने को मिल जाएगी । तुम देखो - युधिष्ठर का वफादार कुत्ता ,,युधिष्ठर के साथ साथ पहाड़ के अंतिम छोर तक गया । ,,,सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से छीन लाई ,,। ,,मजनू अपनी प्रेमिका के प्रेम में पागल हो गया । ये सब वफ़ा की पराकाष्ठा है । वफ़ा ,,प्यार से उपजती है ।,,प्यार मनुष्यता का अनमोल गहना है । यह सभी पहन भी सकते हैं और नहीं भी । वफ़ा बिकाऊ नहीं है ,,,न कहानियों में ,,न कहीं और ,,। ,,अपनी उस प्रोड्यूसर से कहना ,,,,की अपनी कहानियों में वहः ' प्यार ' दिखाए,,बाकी सब कुछ अपने आप दिख जाएगा ,,! " </p><p> इतना कह कर मैना , डबडबाई आंखों में भर आईं बूंदों को तोते से छिपाने के लिए मुंह मोड़ कर दूसरी ओर क्षितिज में देखने लगी ।</p><p> तोता अपलक थोड़ी देर मैना को ताकता रहा । फिर उसने उड़ान भरने के लिए खोले अपने पंख चुपचाप वापिस समेट लिए । </p><p> थोड़ी देर चुप रह कर ,,,खिलखिला कर उसने अपनी हँसी बिखेरी,,,और बोला --</p><p> -" आ गई न धोखे ने मैना ,,??,,,अच्छा ,,अब यह कह की कैसी रही मेरी आज की यह कहानी,,??" </p><p><br /></p><p>****</p><p><br /></p><p>-'सभाजीत' </p><p><br /></p><p>55 वर्ष पूर्व का नौगावँ </p><p>,,,और </p><p> आज की सोच ,,।</p><p>* ****</p><p><br /></p><p> बड़े मंदिर की ओर मुड़ते ही , कार्नर पर एक चर्च था । लोग उसे छोटा चर्च कहते थे । बड़ा चर्च शायद नौगावँ के बाहरी बस्ती में ,, एमईएस क्षेत्र में था जो शायद ब्रिटिश काल में अंग्रेजों के प्रार्थना हेतु बनाया गया होगा ।</p><p><br /></p><p> इतवार को जब हम लोग , बैट बल्ला खेलने पोस्ट आफिस के खुले मैदान में जाते तो चर्च में अंदर लंबी बेंचों पर बैठे 5 - 10 लोग , कुछ प्रवचन सुनते दिखते । कभी वे सामूहिक स्वर में प्रार्थना करते दिखते । अंदर पीछे की दीवार पर एक लकड़ी का क्रॉस , ( क्रूस ) लगा दिखता जिसे देख हम समझते कि यह कोई शुभ चिन्ह है । </p><p><br /></p><p> चर्च के ही परिसर में एक घर था जिसमें पादरी रहते थे ,,हम लोग उनके घर के बाहर लगे बड़े पोस्टर भी देखते जिसमें लिखा रहता था कि ईश्वर ने दुनिया के भले के लिए अपना पुत्र ही भेज दिया । हम उस उम्र में नहीं जानते थे कि ईश्वर का पुत्र कौन था और उसने आकर दुनिया का क्या भला किया । लेकिन इतना जरूर जानते थे कि यह ईसाइयों का मंदिर है जिसमें आ कर वे पूजा करते हैं । यह भी कौतूहल रहता था कि आखिर अपने धार्मिक मंदिर में बैठ कर वे एक आदमी का क्या भाषण सुनते हैं ,,? </p><p><br /></p><p> ईसाई क्या है , यह मुझे तब बिल्कुल नहीं मालूम था । कहीं पोस्टरों में लिखा देखा था ,,' हिन्दू मुस्लिम , सिख , ईसाई ,,हम सब हैं भाई भाई ,,' ,,,,' तो यह समझ आता कि ये चारों बिल्कुल अलग लोग हैं जिन्हें भाई समझने , मानने की बात प्रचारित की जा रही है ,,। दूसरे,,यह सवाल भी मन में उठता ,,की अगर ये भाई भाई हैं तो बताने की क्या जरूरत,,?? ,,वे तो भाई भाई जैसे रहते हुए दिखने चाहिए । </p><p><br /></p><p> संयोग से मेरी कक्षा में कोई इसे लड़का नहीं था जो दोस्त बनता और में उससे अपनी जिज्ञासाएं दूर करता । किन्तु एक व्यक्ति को मैं जरूर जानता था जिनका नाम मसीह था । मसीह शब्द ईसा मसीह से ही जुड़ा होने के कारण , में सोचता कि यह धर्मात्मा होगा ,, किन्तु अधिकतर लोगों के झगड़ों में ही उसका नाम उछलते देखता तो समझ गया था कि नाम से काम का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं । </p><p><br /></p><p> कुछ दिनों बाद जब एक युवक मेरा मित्र बना ,,' प्रदीप राव ' तो बहुत दिनों तक तो मैं यह जान ही नहीं पाया कि वो ईसाई है । कारण की न तो उसका नाम ब्रेंग्रेजा था , न थॉमस , न मसीह । </p><p> उल्टे जब मुझे यह पता चला कि वे ईसाई हैं तो उन्होंने मुझे लोगों को यह बताने को मना किया कि लोग यह बात जानें । उन्होंने कहा कि मैं भारतीय हूँ , पूर्वज हिंदू परिवार से थे तो जो मेरी असली पहचान है , भारतीय उपनामों की , वही मेंटेन रहने दें । में कोई विदेशी नहीं ,, न विदेशियों की संतान हूँ ,,तो भले ही धर्म से ईसाई हूँ पर पहचान से भारतीय नाम से ही पुकारा जाना पसंद करूंगा ।</p><p> वे मुझे अपने घर ले जाने से परहेज करते थे । लेकिन एक बार जब उन्हें भीषण बुखार चढ़ा तो मैं उन्हें देखने उनके घर पहुंच ही गया । उनके घर ज्ञे पर पता चला कि वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो भारतीय हिन्दू नाम से पुकारा जाना पसंद करते थे जबकि उनके सभी सगे सम्बन्धी अपने क्रिश्चियन नाम रख चुके थे ।</p><p><br /></p><p> प्रदीप राव चर्च नहीं जाते थे यह बात भी उन्होंने मुझे बताई । </p><p>ऐसा नहीं था कि वे धर्म नहीं मानते थे , लेकिन वे कहते कि ईश्वर सब जगह है । वे संगीत को अपना लक्ष्य मानते और हर इतवार ,,सुबह साइकिल लिए मेरे घर आजाते ,, संगीत की कोई नई कम्पोजीशन सुनने और उस पर गीत रचने । होली पर वे जरूर गले मिलते , गुजिया पपडिया खाते , टीका लगवाते ।</p><p><br /></p><p> अच्छे मित्र होने के बावजूद उन्होंने मुझे कभी चर्च आने के लिए आमंत्रित नहीं किया । एक बार मैनें आग्रह किया तो वे बोले कि उन्हें ही वे व्याख्यान समझ नहीं आते तो मैं वहां जा कर क्या समझूंगा ।</p><p><br /></p><p> उनदिनों बड़े दिन का मतलब मुझे मेरी माताजी ने यूँ समझाया था कि आज से दिन थोड़ा थोड़ा करकेँ बड़े होने लगेंगे । उन दिनों न कोई लिख कर , न बोल कर , किसी त्योहार की शुभकामनाएं व्यक्त करते , बल्कि एक दूसरे के यहां जा कर खा पी आते । केक में अंडा होने के कारण , प्रदीप मुझे कभी केक ऑफर नहीं करते थे । </p><p><br /></p><p> बाद में ,, बालाघाट में एक मित्र बने ,, विजय थॉमस । वे भी बहुत मधुर बांसुरी बजाते थे और टीचर थे । नाम से विजय और उपनाम से थॉमस । तो मैं सहज ही जान गया कि वे क्रिश्चियन हैं । उनके घर ज्ञे पर वे अपनी पत्नी से कहते कि इन्हें वहः नाश्ता देना जिसमें अंडा न हो । यह ब्राह्मण हैं ,,इनका धर्म न बिगड़े इसका ध्यान रखना । </p><p><br /></p><p> नॉकरी में कोई साथी ऐसा नहीं मिला जिसके बीच रह कर मैं क्रिश्चियन धर्म को समझ सकता,, किन्तु सरकारी काम से जब में केरल गया तो मुझे वहां पग पग पर चर्च मील । इन चर्चों में हिन्दू धर्म की पूजा की तरह मूर्तियां लगीं देखी , चर्च के गुम्बद भी मंदिरों के शिल्प में देखे , जो बाहर से मंदिर होने का भृम पैदा करते थे । अंदर तो मूर्तियों की लंबी दीर्घा देखी ,,जिसमें यीशु की जीवन कथा की झांकी थी । ये झांकी उससे ज्यादा सुंदर थी जो हम लोग कभी जन्माष्टमी पर हर घर में बनी देखते थे । मुझे यह समझ में आया कि यहां लोगों ने हिन्दू मंदिरों का शिल्प , मूर्तियां , और उपासना पद्धति अपना ली है सिर्फ हिन्दू देवता को छोड़ कर , फलतः मेरल का 70 प्रतिशत से अधिक समाज क्रिश्चियन धर्म अपना चुका है ।</p><p><br /></p><p> कालांतर में कॉलेज में पढ़ने गईं मेरी बेटियों ने क्रिसमिस दिवस पर चर्च जाने की इच्छा जाहिर की तो मुझे आश्चर्य हुआ । ये बच्चे मंदिर जाने से सकुचाते थे तो चर्च में उन्हें ऐसा क्या आनन्द आ रहा था कि वे वहां ज्ञे की इच्छा व्यक्त कर रहे थे । बच्चों ने बताया कि वहां बहुत अच्छी सजावट है ,लोग भी आधुनिक वस्त्र पहन कर आते हैं । वहां का वातावरण प्रसन्नता का और व्यावहारिक है । </p><p><br /></p><p> कल मेरी बहू , पुत्र , बेटी , मेरे पौत्र को ले कर फिर चर्च गये । ऐसा लगा कि वहां उन्हें पिकनिक जैसा कोई आकर्षण दिख रहा है इसलिए गये हैं ।</p><p><br /></p><p> बाद में लौट कर पुत्र ने बताया कि वहां भारी भीड़ थी । चर्च में क्रिश्चियन्स के अलावा अधिकतम हिन्दू लोग दिखे जो आनन्द मनाने आये । वहां की रौनक आकर्षक थी । ऐसी तो अपने त्योहारों में भी देखने को नहीं मिलती ।</p><p><br /></p><p> मुझे पुत्र की इस बात ने सोचने को मजबूर कर दिया कि विगत वर्षों में हमने क्या खोया है और क्या पाया है । अब होली में वहः उल्लास , रक्षा बंधन में वह आत्मिक अनुभूति, जन्माष्टमी की वे आकर्षक झांकिया , दीपावली की देर रात की वहः गूंज , दशहरे का रावण दहन का आकर्षण , संक्रांति का वहः नदियों पर लगने वाला मेला,,कहां खो गया ,,जिसमें हमारे बच्चों को आकर्षण नहीं दिखता ।</p><p><br /></p><p> क्या एक संस्कृति,,दूसरी संस्कृति का रूप ले रही है ,,? और यदि हां ,,तो एक समाज अपना बहुत कुछ खो नहीं रहा है ,,?? </p><p><br /></p><p>--' सभाजीत '</p><p><br /></p><p>-",,,1,,,</p><p><br /></p><p>टॉयलिट:एक प्रेमकथा भुक्तभोगी ।</p><p><br /></p><p>*****</p><p><br /></p><p>कल एक टीवी चैनल पर , अक्षयकुमार और भूमि पेडनेकर द्वारा अभिनीति , सिद्धार्थ सिंह द्वारा लिखित , और श्री नारायण सिंह द्वारा निर्देशित फिल्म ' टॉयलिट : एक प्रेम कथा " देखने को मिली । इस फ़िल्म को देख कर लगा कि कुछ लोग अभी भी हैं जो " सार्थक सिनेमा " की लीक पर डटे हुए हैं और समाज की तथा देश की स्वाभाविक सामयिक ज्वलंत समस्याओं को फिल्मों की विषयवस्तु बना कर , दर्शकों को समस्याओं के हल ढूंढने के लिए जाग्रत कर रहे हैं । फ़िल्म देख कर मुझे स्वयम पर भी क्षोभ हुआ कि इस फ़िल्म को पूर्व में देखने से में कैसे वंचित रह गया । </p><p>फ़िल्म की कथा और पटकथा ने मुझे अनायास ही 65 वर्ष पूर्व उत्तरप्रदेश के अपने ही गावँ " चिरगावँ ' की यादों में पहुंचा दिया जहां मेरा बालमन बहुत से दृश्य अपनी नन्ही आंखों में सँजोता रहता था । यह गावँ गलियों में बसा गावँ है और देश की साहित्यिक गरिमा के लिए विख्यात है । गावँ के ठीक बीचों बीच , पहाड़ी पर बना एक ध्वस्त किला था जिस पर झाड़ झंखाडों ने अपना साम्राज्य जमा रखा था । किले की पहाड़ी पर चढ़ने के रास्ते में , अंतिम घर हमारा था ,,जिस के चबूतरे पर आकर हम लोग सुबह सुबह मुंह धोते । </p><p> चिरगावँ में जिस भी साधारण घर में धूम धाम से शादी होती , उसकी नई नवेली बहु दूसरी सुबह , घूंघट डाले अपनी ननदों के साथ लोटा लिए हमारे घर के सामने से जरूर गुजरती । कारण ,,कि,, गावँ में कुछ बड़े घरों को छोड़ कर किसी भी घर में शौचालय नहीं होता था और पूरा गावँ शौच के लिए , किसी युग के ठाट बाट के लिए बने किले के खंडहरों में , झाड़ियों के बीच शौच करने के लिए इसी मार्ग से पहाड़ी पर चढ़ते थे । कई बार हमारे घर की बड़ी बूढ़ी दादी चबूतरे पर खड़ी हो कर पूछ लेती की नई नवेली बहू किस घर की , किस लड़के की व्याहता है और घर बैठे ही उन्हें न सिर्फ उसका पूरा परिचय की वहः किस गावँ से आई है , मिल जाता बल्कि नई बहू का प्रणाम भी मिल जाता और वे उसे आषीश देतीं । </p><p> घरों में शौचालय न होने का कारण भी यही था कि छुआछूत के कारण मेहतर को घर में प्रवेश वर्जित था और वहः पीछे बने शौचालय में सफाई हेतु जा नहीं सकता था और घर के दरवाजे , चबूतरे पर शौचालय बनाना ,,शुद्धि और धर्म परम्परा के विरुद्ध था । दूसरे,,बस्ती के मकान भी छोटे होते थे,,जहां रहने के लिए कुछ गिने चुने कमरे ही लोग बनवाना , प्राथमिक आवश्यकता समझते थे । नगर के राजा का खंडहर हुआ किला जब जनता का सार्वजनिक शौचालय बन चुका था तो कोई अपने घर में भिष्टा को जगह क्यों दे ,,?? </p><p> हमारे घर की बगल में एक बड़ी बगिया थी ,,जिसके पिछले भाग में हमारे ताऊजी ने बड़ा शौचालय बनवा दिया था । मेहतरानी आकर सुबह पुकार लगाती और हम लोग बगिया की फटकिया इस तरह बचकर खोल देते की कहीं मेहतरानी की छाया भी हम पर न पड़ जाए । वहः शौचालय साफ करके बगिया के रास्ते ही बाहर चली जाती । यद्यपि हमारे घर में शौचालय था किंतु फिर भी हम बच्चे गावँ की परंपरा निभाने कभी कभी किले पर चढ़ जाते जहां झाड़ियां ही आड़ होती थी और खांसी वर्जना ।</p><p><br /></p><p> पता नहीं क्यों ,,,तब हमारे मन में इस परंपरा के विरुद्ध कोई खयाल क्यों नहीं उठा ,,जबकि वास्तव में यह नगर के मध्य में पनपती बहुत बड़ी गंदगी ही थी जिसकी सफाई कभी नहीं होती थी और जिसे किले पर ही घूमते सुअर ही अंजाम देते थे ।</p><p><br /></p><p> बाद में नौगावँ आने पर हमने देखा कि हर घर में शौचालय थे और सफाई की व्यवस्था भी म्युनिस्पिल कारपोरेशन की थी । नौगावँ चूंकि अंग्रेजों द्वारा बसाई गई बस्ती थी इसलिए एक अंतर जरूर समझ ने आया कि आज़ादी के बाद भी भारत के अविकसित गावों में सफाई और शौच व्यवस्था पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था । ,,अलबत्ता ,,गरीब अमीर , मजदूर पूंजीपति , हिन्दू मुस्लिम , ही वे मुद्दे थे जिसका छोर पकड़ कर राजनैतिक पार्टियां समाज सेवा कर सकती थी । </p><p><br /></p><p> नॉकरी के दौरान ,,मेरी पोस्टिंग अधिकतम नगरीय क्षेत्र में रही । किन्तु बालाघाट प्रवास के अंतिम दौर में मेरी पोस्टिंग , दो वर्षों के कार्यकाल में , एमपी महाराष्ट्र बॉर्डर स्थित वितरण केंद्र ,,' रजेगावँ ' में हो गई । यह निपट छोटा सा गावँ था जहां के घरों में शौचालय थे ही नहीं । गावँ से सट कर एक नदी ' बाघ नदी ' थी जो शौच का साधन थी । पूरे गावँ में तीन घर ही ऐसे थे जिसमें शौचालय थे । जिनमें एक बीड़ी का कारखाना था , एक डॉक्टर का घर था , और एक शिक्षक का घर । मैनें किसी तरह बीड़ी के कारखाने वालों को पटाया और अपनी व्यवस्था कर ली । </p><p> किन्तु मात्र छह माह के बाद ही मेरा विवाह हो गया । </p><p>आम मुझे शौचालय की महत्ता पता चली । जब तक ऐसा घर न मिले जिसमें शौचालय हो ,,में पत्नी को साथ रखने में असमर्थ था । गावँ के शिक्षक के घर का एक हिस्सा वे किराए पर देते थे किंतु उस समय वहः खाली नहीं था । बीड़ी के कारखाने में रोज शौचालय हेतु मेरी नई नवेली पत्नी वहां जाए यह मैं स्वीकार नहीं कर सकता था । यद्यपि बालाघाट नगर का एक फ्लैट जो मैनें किराए पर लिया हुआ था मेरे पास था किंतु वहां से प्रतिदिन 20 किलोमीटर का अप डाउन भी सम्भव नहीं था ।</p><p><br /></p><p> तो मन मसोस कर , अपनी नियति मांन कर , मैनें पत्नी से तब तक दूर रहने का निर्णय लिया जब तक कि शिक्षक वाला किराए का मकान खाली न हो ,,।</p><p><br /></p><p> और जीवन के शुरू में ही मैनें शौचालय के कारण विरह में काट लिए ।</p><p><br /></p><p>--'सभाजीत '</p><p><br /></p><p>( क्रमशः )</p><p><br /></p><p>,,,2,,,,,</p><p><br /></p><p>टॉयलेट,,एक प्रेमकथा ,,भुक्त भोगी ।</p><p><br /></p><p>****</p><p><br /></p><p> आज के युग की बड़ी कशमकश है ,,विवाहोत्तर पति पत्नी में उपजने वाली प्रीति के लिए वांछित वातावरण का अभाव । वस्तुतः वियोग ही गाढ़ी प्रीति का आधार है ,,ऐसा शास्त्रों में वर्णित घटनाओं से सिद्ध होता है । किन्तु आधुनिक समाज में वियोग को श्राप मांन लिया जाता है ,,और आधुनिक पीढी विवाह के बाद तो क्या ,,विवाह से पूर्व भी एक साथ रह कर अपने अंतरंग क्षण साथ साथ बिताने को ही प्रीति की गहनता का आधार मानते हैं । ऐसे में पति के बिना , परम्परागत संयुक्त परिवार में पत्नी बहुत दिनों तक आ कर रह पाए यह सम्भव नहीं होता और परिवार के विघटन की नीवं भी यहीं से पड़ती है ।</p><p> </p><p> फिल्मों से 'पिया के घर' की परिभाषा पढ़ी अधिकांश लड़कियां यह जानती ही नहीं थीं कि वस्तुतः पिया का कोई घर होता ही नहीं ,,बल्कि जिस घर में वे राज करने का सपना अपनी आंखों में संजो कर आईं हैं वहः उनके पिया का घर न हो कर , उनके पिया के पिता का , यानी ससुर का घर होता है जहां परम्परागत रीति रिवाज , नियमकायदे , मुंह बाए उसकी बाट जोह रहे होते हैं । एक कच्चे घड़े को , ससुराल के अलाव में तपा कर पक्का बनाने का प्रयास पहले कठोरता से होता है । </p><p> </p><p> इस क्रिया में घटों में जल भरने की अपेक्षा अक्सर उनमें रिसाव होना स्वभावतः शुरू हो जाता है और फिर आजीवन , पिया कितना भी चाहे , उस घट में अपने ज्ञान का जल भर ही नहीं पाता ।</p><p><br /></p><p> संयोग से मुझे ईश्वर ने बुद्धि कुछ ज्यादा ही दे रखी थी तो मैं वियोग के लाभ हानि के दोनों पक्षों से परिचित था । बचपन से , द्रष्टि के माध्यम से , अनुभव बटोरने की कला मुझे आ चुकी थी तो मैं भविष्य के आगत भय के प्रति पहले ही सतर्क होने की कोशिश करने लगा ।</p><p><br /></p><p> दिसम्बर 1977 में हुए विवाह के बाद , 10 -12 दिन साथ रह कर में वापिस अकेला रजेगावँ लौट आया । समस्या ज्यों की त्यों थी ,,शौचालय मेरे लिए विलेन का रूप धारण किये खड़ा था । गनीमत यह थी कि पत्नी प्रथम विदा के अंतर्गत एक दो माह के लिए अपने मायके लौट गईं थी और मुझे समय मिल गया था कि मैं उचित व्यवस्था वाला घर ले लूं ।</p><p><br /></p><p> किन्तु उस गावँ में एक मात्र तीन शौचालयों वाले घरों में एकमात्र शिक्षक का ही घर था जहां में सपत्नीक रह सकता था । इसलिए मैनें शिक्षक को मनाने का प्रयास किया । शिक्षक उसूलों वाले थे । उन्होंने कहा कि जब तक पहला किरायेदार खाली न करे ,,वो मकान नहीं दे सकते ।</p><p><br /></p><p> इस उहापोह में पूरे दस माह बीत गये । न मकान मिला ,,न पत्नी आई । अलबत्ता वे अपने ससुराल में आ कर सास ससुर , ननदों , देवर के भरे पूरे घर में रहने लगीं । चिट्ठियां हमारी प्रीत का सेतु थीं । ये चिट्ठियां भी 10 दिनों में आ जा पातीं थीं । में अपने पत्रों में उन्हें ,,गुरु पितु मातु की सेवा और उनके महत्व का उपदेश देता और वे सीता का हवाला दे कर वन में भी , किन्हीं भी परिस्थितियों में पति का साथ निभाने का धर्म समझातीं । इन पत्रों में शिकायत भी होती और मनुहार भी । </p><p><br /></p><p> विवाह से पूर्व , मेरी पत्नी की बड़ी बहिन , यानि बड़ी साली ने मेरा इंटरव्यू लेते हुए पूछा था कि आप जहां रहते हैं ,,वहां बिजली तो है न ,,?? तो मैनें गर्व से बताया कि मैं विद्युत इंजीनियर हूँ ,,जहां में रहूंगा तो बिजली तो रहेगी ही ,,!' फिर उन्होंने पूछा - और पानी का नल,,?? ' तो मैनें बताया कि बालाघाट जिले का मुख्यालय है ,, विकसित शहर है ,,नगर निगम के नल आते हैं ,,!! " उन्होंने आश्वस्त होते हुए फिर कोई अगला सवाल नहीं पूछा था ! उन्होंने कहा ,,' अन्यथा मत लीजिएगा ,,,मेरी लाडली छोटी बहिन शहर में पली बढ़ी है ,,वहः कुएं से पानी नहीं खींच पाती,,और न ही लालटेन में रहने की उसे कोई आदत है । ,,,इसलिए ये सवाल पूछ लिए ,,!"</p><p><br /></p><p> लेकिन उन्हें शायद यह पता नहीं था कि देश में ऐसी जगहें भी हैं ,,जहां बिजली तो है ,,और पानी भी ,,लेकिन शौचालय नहीं हैं । और दुर्भाग्य से अब मेरी पोस्टिंग ऐसी ही जगह हो चुकी थी । अब सोच रहा था कि अगर मेरी पत्नी की बड़ी बहिनजी को यह मालूम हुआ तो किस मुंह से जवाब दूंगा ,,?? उनकी लाडली बहिन इन विषम परिस्थितियों में कैसे रहेंगीं ,,??</p><p><br /></p><p> स्थिति अनुसार , मेरे पिताजी ने उन्हें आगे की पढ़ाई हेतु फॉर्म भरा दिया ताकि वे अपना मन उस ओर लगा लें और रजेगावँ भूल जाएं । वे अनमने मन से उसमें जुट गईं लेकिन रजेगावँ के अदभुत स्वप्निल संसार का आकर्षण उनके मन से नहीं छूटा । वे पत्रों में रजेगावँ देखने की मनुहार करने लगी ,,और मैं था कि रजेगावँ में ऐसा घर तलाश रहा था जहां उन्हें ला कर रख सकूं ।</p><p><br /></p><p> ऐसी ही स्थितियों में एक पत्र में उनके द्वारा लिखी दो पंक्तियों से मैं विचलित हो गया । पूरे पत्र के अंत में उन्होंने लिखा --' यहां वातावरण ठीक है किंतु कुछ बातें पत्र में नहीं लिख सकती । थोड़ा लिखा ,,ज्यादा समझना ,,! "</p><p><br /></p><p> में सोचने लगा ,,ऐसा क्या है जो नहीं लिखा जा सका ?? और वहः थोड़ा क्या है जिसे मुझे ज्यादा समझना चाहिए ,,?? </p><p><br /></p><p> लिहाजा मैनें अपने सीनियर विवाहित मित्रों से सलाह ली । उन्होंने कहा तुम बहुत दिनों से घर नहीं गये । तुम्हें अविलम्ब घर जाना चाहिए और उनकी मन की बात समझना चाहिए । रजेगावँ की परिस्थितियों को उन्हें मिल कर बताओ ,,,। सन्देशन खेती ठीक नहीं । </p><p><br /></p><p> तो मैनें आननफानन दो दिन की छुट्टी ली और एक दोस्त की बुलेट मोटर साइकिल लेकर , एक मित्र को सहयात्री बना कर रात के बारह बजे ही चल पड़ा 500 किलोमीटर की नौगावँ यात्रा पर ,,।</p><p><br /></p><p> यह यात्रा तो एडवेंचर ही थी क्योंकि इस यात्रा में भीषण दुर्घटना होते बची और दमोह के आगे रात 2 बजे ,,बटियागढ़ के पास डाकुओं के चक्कर में आते आते बचे ।</p><p><br /></p><p> --' सभाजीत ' </p><p><br /></p><p>( क्रमशः )</p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p>sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-28509303888275855752020-12-19T03:22:00.010-08:002021-01-14T08:32:03.280-08:00मेरे सपनों के साथी <p><span style="font-size: large;">कुलदीप,,।</span></p><p><span style="font-size: medium;">स्वप्न दिल में उपजते हैं, आंखों में पनपते हैं और किसी अपने जैसे साथी के हाथों का सहारा पाकर जीवंत हो उठते हैं । पहले बालाघाट , और फिर लखनादौन से अचानक डेरा उखड़ने से फ़िल्म विधा के मेरे स्वप्न धूमिल हो गए ,,किन्तु खंडित नहीं हुए । अपने धूमिल स्वप्नों को हृदय में संजोए जब मैं बालाघाट आया तो मेरा स्वरूप बदल चुका था । अब मैं अधिकारियों को चुनोती देने वाला विभागीय यूनियन का एक जुझारू नेता बन चुका था और कला का रुझान मन के किसी कोने में दब चुका था । अधिकारियों ने मुझे नियंत्रित रखने के लिए सतना का व्यस्ततम औद्योगिक वितरण केंद्र कुलगवां का भार मुझे थमा दिया । यह केंद्र नगर से बाहर, बिरला रॉड पर , पन्नीलाल पावर हाउस के मेरे सरकारी क्वार्टर से करीब 4 किलोमीटर दूर था । अक्सर मैं पैदल ही आफिस चला जाता और रात वापिस घर लौटता ।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> सतना नगर का आज का व्यस्ततम सिमरिया चौक उस समय तक विकसित नहीं हुआ था । हाउसिंग बोर्ड ने इस चौराहे पर कुछ दुकानें बना कर , एक मार्केट की संरचना जरूर की थी , किन्तु उनमें अधिकतम खाली थीं । इसी चौराहे पर हाउसिंग बोर्ड द्वारा बने एक लंबे हॉल में , नव निर्मित ' इंडियन कैफे हाउस ' शाम को जब सज जाता तो यह चौराहा जैसे जीवित ही उठता । हाउसिंग बोर्ड की रोड से लगी एक दुकान में विविध विद्युत सामग्री बिकते देख मैं जब वहां ठिठका तो उस दुकान के युवा मालिक के व्यवहार ने मेरा मन मोह लिया । यह दुकान एक आकर्षक युवक ' किशोर वर्मा ' की थी । पिता सतना सीमेंट वर्क्स में उच्च पद पर थे,,किन्तु पढ़ी लिखी इस नई पीढ़ी के युवाओं के पास , नॉकरी के अवसर अब विलुप्त थे । इसलिए किशोर वर्मा ने विद्युत के फानूस , कैसिट्स , बल्ब , और एचएमवी के रिकॉर्ड्स की दुकान खोल ली थी । </span></p><p><span style="font-size: medium;"> जल्दी ही आफिस आने जाने के मार्ग में यह दुकान मेरा एक अड्डा बन गयी । मेरे खोए हुए कलात्मक रुझान को यह अड्डा फिर से जाग्रत करने लगा । किशोर के पास बहुत ही क्लासिक संगीत के कैसिट्स और पुरानी फिल्मों के गीतों के रिकॉर्ड्स संग्रहित थे । मेरे पहुंचने पर वो कहते ,,आज आपके लिए बहुत खास कैसिट चुन के रखा है ,, इत्मीनान से बैठिए,,और सुनिए ,,। और तब इत्मीनान का अंत जब होता तो पता चलता ,,मैनें बैठे बैठे ही वहां तीन घण्टे बिता दिए हैं ,,और घर में पहुंचने को बहुत लेट हो चुका हूँ ।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> इसी दुकान पर एक युवा व्यक्ति से मुलाकात हुई ,, । किशोर ने परिचय करवाते हुए कहा ,,' ये कुल्ली मामा हैं । सार्वजनिक मामा ,,। इनकी भी एक दुकान है ,,इसी हाउसिंग बोर्ड परिसर में ,,मेरी दुकान के पीछे ,,इन्हें भी संगीत का शौक है ,,!' ,,</span></p><p><span style="font-size: medium;"> युवक ने अपने विशिष्ट लहजे में हाथ मिला कर जब अपनी भारी आवाज में मुझे ' हैलो शर्मा जी ' कहा तो मैं चोंक पड़ा । ऐसा लगा जैसे अमीन शायनी ने मुझे पुकारा हो । इस छोटे से कद के , इस युवा व्यक्ति की आवाज इतनी वजनदार होगी ,,इसकी उम्मीद मुझे नहीं थी । फिर भी मैनें तस्दीक करने के लिए जब उनसे पूछा कि वे अमीन शायनी की शैली में क्यों बोल रहे हैं तो वे मुस्कराए । उन्होंने कहा कि यह उनकी ओरिजनल आवाज है ,,वे किसी शैली की नकल नहीं कर रहे । किशोर ने भी हंसते हुए कहा कि हम तो परेशान हैं ,,बिनाका गीतमाला हमारा पीछा ही नहीं छोड़ रही । दिन में कई बार अमीन शायनी की आवाज जब कान में पड़ती है तो हम रेडियो की ओर देखने लगते हैं कि वहः खुला तो नहीं रह गया ।' </span></p><p><span style="font-size: medium;"> पहले परिचय से ही लगा,, जैसे यह मेरा कोई खोया हुआ अंतरंग साथी है । मेरी ही राह में भटका हुआ एक पथिक । उसने अपना पूरा परिचय देते हुए कहा कि उसका नाम कुलदीप सक्सेना है । किशोर की दुकान के पीछे ही उसकी एक छोटी सी जूतों की दुकान है । उसने मुझे अपनी दुकान में आने को आमंत्रित किया तो मैं अनायास ही उसके साथ खिंचा हुआ उसकी दुकान में चला गया । </span></p><p><span style="font-size: medium;"> कुलदीप की दुकान अपेक्षाकृत बहुत छोटी दुकान थी । उसमें ,,आगरा से लाये गए जूतों के डिब्बे करीने से सजे हुए थे । कुलदीप ने कहा कि यह व्यवसाय उसके मन का व्यवसाय नहीं है । किन्ही अपरिहार्य कारणों से उसे सतना आना पड़ा और विपरीत परिस्थियों में तत्कालिक रूप से उसे यह व्यवसाय अपनाना पड़ा । सिमरिया चौक का शॉपिंग काम्प्लेक्स वैसे भी व्यवसाय के लिए मुफीद जगह नहीं थी ,,ऊपर से जूतों की दुकान ,, जहां नई ब्रांड के जूते रखना उसके बस से बाहर था । कभी कभार कोई इक्का दुक्का ग्राहक आ भी जाता तो कुलदीप से नहीं पटता,,। क्योंकि कुलदीप सिद्धांत का पक्का था । वहः झुक कर , किसी पैरों के जूते का नाप लेने का काम कभी नहीं कर सकता था और दूसरे वहः प्रिंटिड रेट से एक पैसा भी कम करने को राजी नहीं था । सतना के दूसरे बाजार में ,,दिनों दिन उन्नति करती अन्य दुकानों की स्पर्धा में ,,कुलदीप के सिद्धांत ही उसके व्यवसाय में पहली बाधा थे ।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> शीघ्र ही मेरी बैठक , किशोर की दुकान से हट कर कुलदीप की दुकान हो गई । यद्यपि यहां मेरे लिए संगीत का वहः आकर्षण उपलब्ध नहीं था ,, किन्तु मुझे उससे भी बड़ा आकर्षण जो कुलदीप में दिखा ,,वहः था ,,संघर्ष के प्रति उसका जुझारूपन । उसकी आँखों में भी कुछ छूटे हुए स्वप्न थे ,,जिन्हें पूरा करने के लिए वहः कृतसंकल्प था । बातों बातों में उसने बताया कि उसके पास उसका अपना एक गौरवमय अतीत था । उसके पिता देश के एक जाने माने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और आज़ादी के बाद वे आगरा के मेयर रह चुके थे । पिता की हुई मृत्यु के बाद , पारिवारिक विद्वेष वश , उसके चाचाओं ने उसकी सम्पत्ति पर अधिकार कर लिया । कुलदीप और उनके बड़े भाई प्रदीप तब बहुत छोटे थे ,,और जब वे कुछ समझने लायक हुए तब तक सब कुछ लुट चुका था । किसी तरह पैतृक घर में रहते हुए उन्होंनेअपने पिता की पेंशन के आधार पर , आगरा में पैर जमाने की कोशिश की ,,तो विधना ने उनके बड़े भाई प्रदीप को अचानक उनसे छीन लिया । </span></p><p><span style="font-size: medium;"> कुलदीप ने बताया कि उस उम्र में भी वे दिल्ली के एक बड़े आर्केस्ट्रा से जुड़ कर उद्घोषणा संचालन के काम में दक्ष हो चुके थे । उनकी आवाज में जादू था,,अमीनशायनी के अंदाज़ का ,,तो आर्केस्ट्रा वाले उन्हें बुला लेते थे और वे ग्रुप में जा कर , अपनी परफॉर्मेंस से, आर्केस्ट्रा कार्यक्रम में चारचांद लगा देते । मेहनत की एवज में कम आमदनी ने ही उन्हें जिद्दी बना दिया था कि वे अपनी मेहनत के बदले एक पैसे की रियायत भी मंजूर नहीं करेंगें ।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> बड़े भाई की अचानक मृत्यु ने उनसे उनकी एंकरिंग की जगमगाती दुनिया छीन ली ।विपरीत परिस्थियों में ,,उनके चाचाओं की लालच ने उनको आगरा छोड़ने को विवश कर दिया तो वे अपनी माताजी के साथ , सतना आकर , अपने बड़े जीजाजी के संरक्षण में , सतना में बस गये । हालफिलहाल कोई काम समझ नहीं आया तो जूतों के लिए प्रसिद्ध आगरा से जूते लाकर उन्होंने यह दुकान यहां खोल ली । कुलदीप के बड़े जीजा जी हाउसिंग बोर्ड में ऑफिस सुपरिन्टेन्डेन्ट के पद पर पदस्थ थे तो उन्हें हाउसिंग बोर्ड की यह दुकान सहज ही मिल गयी । </span></p><p><span style="font-size: medium;"> सतना आकर उन्होंने अपनी दुनिया फिर ढूंढने की कोशिश की तो सतना के स्थानीय आर्केस्ट्रा ग्रुप में उन्हें एंकरिंग करने का अवसर सहज ही मिलने लगा । किन्तु उनका लक्ष्य तो क्षितिज का सूर्य बनने का था ,,, और सतना का आकाश इसके लिए सीमित था । मैनें देखा कुलदीप में छटपहाट थी ,,कुछ कर गुजरने की ,,किन्तु वे इस काम में लिए अकेले थे । मार्ग भी एकांगी था ,,एंकरिंग का ,,जिसके अवसर के लिए सतना बहुत छोटा शहर था । अपने बालाघाट प्रवास में मैनें नागपुर के बड़े आर्केस्ट्रा ग्रुप ' मेलोडी मेकर्स ' के संचालक और उद्घोषक ओपी शर्मा को देखा था । ओपी शर्मा भी बालाघाट से अपने मन में सपने संजोए नागपुर गये और वहां उन्होंने वहां विभिन्न कलाकारों को जोड़कर एक उच्च स्तरीय म्यूजिकल ग्रुप बनाया जिसकी धूम पूरे विदर्भ में छा गयी थी । मेरे सामने एक और ओपी शर्मा खड़ा था,,किन्तु उसके लिए जिस वितान की जरूरत थी वहः उपलब्ध नहीं था । न जाने मुझे क्यों लगा कि इस वितान को रचने में मुझे उसका साथ देना चाहिए तो मैनें निश्चय किया कि अब मेरे रचनात्मक कार्यों का सारथि होगा ,,कुलदीप ।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> किन्तु कुलदीप को अग्रसर करने के लिए जरूरी था कि वहः पहले एक निश्चित आय के साथ , खुद को अपने पैरों पर खड़े होने का काम करे ,,और जूते की दुकान तो वहः काम बिल्कुल नहीं हो सकती थी,,।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> इसलिए मैनें एक प्लान बनाया और उसके सामने रखा,,ऐसा प्लान जिसमें कला आधार थी और प्रतिदान निश्चित ।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> कुलदीप ने सहर्ष मेरी बात मान ली और हम लोगों ने एक संस्था बनाई,,' कनक एडवर्टाइज़िंगस ',,! यह संयोग ही था कि इसमें कनक शब्द मेरी श्रीमती के नाम से लिया गया ,,और एडवरटाइजिंग उस अधूरे स्वप्न से जिसे पूरा करने की तमन्ना हम दोनों के मन में एक सी थी ।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> कहते हैं कि ' एक से पंख के पक्षी आकाश में एक साथ उड़ते हैं ' ,,तो हम भी एक सी आकांक्षाओं के दो पंछी इन नए आकाश में उड़ान भरने चल पड़े ,,,बिना यह जाने</span><span style="font-size: large;"> कि हमारी हमारी उड़ानें किस ऊंचाई तक पहुंच पाएंगी ,,।</span></p><p><span style="font-size: large;"> आ,,2,,</span></p><p><span style="font-size: large;">,,,,,,2,,,,,,</span></p><p><span style="font-size: large;">मेरे सपनों के साथी,,,</span></p><p><span style="font-size: large;">कुलदीप,,।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;">****</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;">' एडवरटाइजिंग ' शब्द ही उस खुले वितान का द्योतक था जिसमें रचनाधर्मिता विभिन्न आकर्षक कलाओं के साथ , विहंग रूप में ऊंचाई तक उड़ने में समर्थ थी । मेलोडी मेकर्स ग्रुप के मेरे मित्र ओपी शर्मा ने पत्रिकाओं में फोटोग्राफी के सुंदर दृश्यों के साथ , प्रोडक्ट को जोड़ कर सफल विज्ञापन बनाये थे । सड़कों पर होर्डिंग्स लगा कर , उन पर एक अलग डिजाइन बना कर उन्होंने विज्ञापनों को नया आयाम दिया था । नागपुर की प्रमुख टॉकीजों में ,, इंटरवल के समय में , उन्होंने स्क्रीन के पीछे से , आडियो जिंगल की अभिनव शुरुवात की थी जो खासी लोकप्रिय साबित हुई । जिंगल में उदघोषणा और संगीत कम्पोजीशन ,,दोनों समाविष्ट थे । तो उसी तर्ज पर यह सब काम कनक एडवरटाइजमेंट के अंतर्गत सतना में करने का बीड़ा उठाया कुलदीप ने । </span></p><p><span style="font-size: large;"> </span></p><p><span style="font-size: large;"> सतना उस समय तक विज्ञापन एजेंसी के नाम पर शून्य था । विज्ञापन के नाम पर बाहर से कुछ पेंटर लोग आकर , किसी बड़ी बिल्डिंग की बड़ी दीवार पर , चित्र उकेर कर चले जाते थे । होर्डिंग लगाने का रिवाज सतना में था ही नहीं । ट्रांसपेरेंसी की फोटोग्राफी कोई नहीं करता था । टाकीज में दिखाने को जो स्लाइड बनती थी वे कांच पर अक्सर कुछ लिख कर दिखा दी जाती थीं । सर्वथा नए प्रयोगों के साथ , विज्ञापन का यह क्षेत्र कुलदीप को बहुत आकर्षक लगा । तो उन्होंने इस विज्ञापन जगत को पूरी शिद्दत के साथ अपनाने की ठान ली । लिहाजा मेरे प्रस्ताव पर , मेरे छोटे भाई शार्दूल शर्मा के साथ भागीदारी करकेँ इस काम को अंजाम देना शुरू कर दिया ।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> कुलदीप ने दुकान के सामान की फुटपाथ सेल लगा कर पूरी सामग्री बेच दी । दुकान की रंगाई कर उसे आफिस का नया रूप दिया । सामने ग्लास डोर लगा कर आफिस को भव्यता दी और एक आफिस टेबिल के साथ कुछ सुंदर चेयर लगा कर आफिस को शानदार बना दिया । अब दृश्य बदल गया था । जो मित्रों की बैठकें कभी किशोर वर्मा की दुकान पर सजती थीं ,,अब वे कुलदीप के भव्य आफिस में सजने लगीं । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> एक सप्ताह के अंदर ही कुलदीप ने अचंभित कर दिया । उसने स्थानीय ब्रेड फेक्ट्री ,' आनन्द ब्रेड ' का विज्ञापन जुगाड़ लिया । शहर में पहली होर्डिंग लगाने में लिए सिमरिया चौक की एक दुकान की छत भी किराए पर ले ली । हमने होर्डिंग डिजाइन की और पेंटर की तलाश शुरू की । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> उस समय सतना के प्रमुख पेंटरों में दिलीप बनर्जी प्रमुख पेंटर थे । वे एक अच्छे पेंटर तो थे ही ,,एक अच्छे संगीतकार और अच्छे बांसुरी वादक भी थे । कुलदीप ने जब उन्हें पेंटिंग के लिए आग्रह किया तो उन्होंने कहा --'बोर्ड दुकान पर छोड़ दो ,, पेंट हो जाने पर ले जाना । कुलदीप ने जब बताया कि वहः बोर्ड नहीं होर्डिंग है ,,और उन्हें वहीं जा कर पेंट करना पड़ेगा तो उन्होंने नाहीं कर दी । कुलदीप ने हार नहीं मानी ,,वे एक दूसरे नवयुवक ' मकसूद ' को ढूंढ लाये और आननफानन में तीन दिनों में ही होर्डिंग तैयार करकेँ छत पर लगवा दी । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> आनन्द ब्रेड की पहली होर्डिंग ने कुलदीप के हौंसले बुलंद कर दिए । अब जो होर्डिंग्स का क्रम शुरू हुआ तो स्थानीय लोगों की दृष्टि इन होर्डिंग्स पर गयी । व्यापारियों को विज्ञापन की महत्ता समझ में आने लगी ।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> नागपुर, जबलपुर , जैसे बड़े महानगरों से विज्ञापन की धारा को मोड़ कर हम लोग सतना जैसे उदीयमान शहर में ले आये थे इसका हर्ष हमें था । लेकिन जिंगल बनाना और उन्हें सतना में रिकार्ड करना एक चुनोती ही थी । जिंगल लिखने , और उसकी धुन बनाने का काम तो मैं कर सकता था किंतु उसकी रिकार्डिंग करना टेढ़ी खीर थी । कारण इस कार्य में वाद्य बृन्द युक्त आर्केस्ट्रा , और कुशल गायकों के साथ , जिंगल रिकार्ड करना एक कठिन तकनीकी कार्य था । मल्टी ट्रेक रिकार्डिंग का चलन तब तक निकटवर्ती शहर जबलपुर में भी उपलब्ध न था । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> तो फिर जिंगल सतना में कैसे रिकार्ड हों ,, यह प्रश्न हमारे समक्ष था । सतना में स्थानीय कलाकार तो थे ,,किन्तु वे किसी ग्रुप में एकजुट नहीं थे । इसी तरह रिकार्डिंग का तकनीकी ज्ञान किसी को नहीं था ,,यद्यपि अलग अलग साउंड सर्विसिज की कई दुकानें सतना में मौजूद थी । मल्टी ट्रेक रिकार्डिंग तो बहुत दूर की बात थी ,,सिंगल ट्रेक रिकार्डिंग भी सतना में सम्भव नहीं थी । किन्तु स्वप्नों को साकार करने के लिए कृतसंकल्प कुलदीप ने व्यवस्था ढूंढ ली ।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> बुंदेलखंड के निकटवर्ती शहर छतरपुर में एक समृद्ध आर्केस्ट्रा मौजूद था । इसे नौगावँ और छतरपुर के प्रतिभाशाली लोग मिल कर चला रहे थे । यह नौगावँ के प्रतिभावान संगीतकार श्री अमर सिंह सक्सेना के निर्देशन और छतरपुर के बहुमुखी कलाकार मनोहर सिंह के सान्निध्य से स्थापित हुआ था । मनोहर सिंह आर्केस्ट्रा के लिए वांछित साउंड सिस्टम और वाद्य यंत्र खरीद लाये थे ,,जिनमें आडियो फेडर भी सम्मलित था । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> कुलदीप ने छतरपुर जा कर मनोहर सिंह को राजी किया और वे मेरी बनाई धुनों के जिंगल रिकार्ड करने को तैयार हो गये । दो तीन साजिंदों में साथ , गायक गायिकाओं ने मिलकर जिंगल गाये और मनोहर सिंह ने काफी मशक्कत के साथ , सिंगल ट्रेक टेप रिकॉर्डर पर , वन गो शैली में जिंगल रिकार्ड किये । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> जब ये जिंगल , सतना की प्रमुख टॉकीजों में , इंटरवल के समय , स्क्रीन के पीछे , बड़े स्पीकर्स पर बजे तो सतना जैसे शहर में आश्चर्य की लहर दौड़ गयी । जो काम अभी तक मुम्बई में होता था वहः हम लोगों ने सतना में करकेँ दिखा दिया था । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> अब विज्ञापन की कोई कमी नहीं थी,,न होर्डिंग्स में न आडियो जिंगल्स में । हम लोगों की जोड़ी ने वहः कर दिखाया था जो अब तक सिर्फ एक स्वप्न था ।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> इस बीच मेरे जीवन में एक और धूमकेतु का उदय हुआ ,,उदय प्रताप सिंह के रूप में जो नगर में यूपी सिंह के नाम से विख्यात थे । इस धूमकेतु ने मुझे मुम्बई के विख्यात फ़िल्म निर्देशक मनमोहन देसाई के चीफ असिस्टेंट श्री बिंदु शुक्ला से मिलवा दिया जो खुद भी एक सफल फीचर फिल्म ' मेरा जीवन ' का निर्देशन कर चुके थे । वे मूलतः सतना के ही थे और बाल अवस्था में ही मुम्बई चले गये थे । बिंदु शुक्ला के साथ एक नए ग्रुप की रचना हुई जिसमें तय किया गया कि फ़िल्म निर्माण भी अब हम लोग सतना ही से शुरू करेंगे । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> किन्तु कुछ निजी कारणों से , बिंदु शुक्ला ने तीन सदस्यों से ज्यादा चौथे सदस्य को प्रारंभिक चरण में जोड़ना अस्वीकार कर दिया । मूलतः यूपी सिंह , बिंदु शुक्ला और मेरा ग्रुप में होना अपरिहार्य माना गया ,तो चौथे सदस्य के रूप में कुलदीप को कुछ समय तक इंतजार करने को कहा गया । </span></p><p><span style="font-size: large;"> </span></p><p><span style="font-size: large;"> कुलदीप के स्वाभिमान ने समझौता करने से अस्वीकार कर दिया ,,नतीजन हमारे पहले उद्देश्य के लक्ष्य में दरार आना स्वाभाविक थी ,,और वहः दरार आ भी गई ।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> कुलदीप ने हमारी संयुक्त संस्था कनक एडवरटाइजिंग तोड़ दी और स्वतंत्र कार्य करने का निश्चय ले लिया । यद्यपि मैनें उन्हें बहुत समझाया कि यह समस्या अल्पकालिक है ,,और बाद में तुम्हें इसमें जोड़ ही लिया जायेगा ,,किन्तु कुलदीप निश्चय के दृढी थे । उन्होंने कहा ,,की अगर अभी नहीं तो कभी नहीं ।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> तो हम बीच मार्ग में ही विलग हो गये,, लेकिन जो अंतरंगता कायम हुई थी वहः हमें विलग न कर सकी । कुछ वर्षों के बाद हम लोग फिर मिले और तब हमने मिल कर जो किया वहः ,, उस अतीत के वर्तमान से बहुत आगे था ,,।</span></p><p><br /></p><p><span style="font-size: large;">,,,,,3,,,,,</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;">मेरे सपनों के साथी,,</span></p><p><span style="font-size: large;">*****************</span></p><p><span style="font-size: large;">कुलदीप </span></p><p><span style="font-size: large;">******************</span></p><p><span style="font-size: large;"> आज से 40 वर्ष पूर्व , सतना में , एक एडवरटाइजिंग एजेंसी स्थापित करने का विचार वस्तुतःमेरे लिए , मेरी प्रयोगधर्मिता को आधार देने से बढ़ कर और अधिक कुछ भी न था । एडवरटाइजिंग शब्द तो मात्र एक मंच था , जिस पर खड़े हो कर हम उन रचनात्मक कार्यों को जामा पहनाने की चेष्टा करने वाले थे जो महानगरों की थाती बन कर रह गया था । जब हमारी प्रतिभा हमें जिंगल रचने की क्षमता देती है तो उसे मूर्तवत करने के लिए हम मुम्बई महानगरी के मोहताज क्यों रहें ,,? यह भावना सदा मुझे कुरेदती थी । कुलदीप के पास अपनी एक अलग आवाज़ थी । किन्तु उस आवाज़ के लिए क्या अमीन शायनी की तरह रेडियो सीलोन ही एकमात्र अनिवार्य मंच था ,,जिस पर जा कर जब वहः गूंजती तभी लोग उसे पहचानते ,,?? कुलदीप के पास मंच संचालन , और प्रबंधन का अद्भुत गुण था ,,किन्तु छोटे शहर में वहः गुण उपयुक्त साधन न होने के कारण दम तोड़ रहा था , तो मुझे लगा कि इस गुण के उपयोग के लिए क्यों न इस छोटे शहर को ही माध्यम बनाया जाए ,,?? </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> और मेरी प्रयोगधर्मिता कुलदीप का साथ पा कर बहुत हद तक सफल हुई । कुलदीप ने अपने प्रबंधन के गुण से , महानगरों में लगने वाली होर्डिंग्स की धारा को स्थानीय स्तर पर ला कर सुलभ बना दिया । यही नहीं ,,उन्होंने जिंगल रिकार्डिंग के लिए विकासशील छोटे नगर छतरपुर को उस समय माध्यम बनाया जब कि रिकार्डिंग का कार्य आसपास के किसी भी नगर में सम्भव नहीं था । उन्होंने अपने परिश्रम से जिंगल्स के प्रस्तुतिकरण के लिए , फ़िल्म टाकीज को एक सुलभ मंच बना दिया । इन प्रयोगों से अपरोक्ष में उन सब रचनाकारों , कलाकारों को एक नया सम्बल मिला जो अभी तक संगीत को मात्र आर्केस्ट्रा का मंच मानते थे । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> कुलदीप के विलग होने से एक प्रवाह अचानक बाधित हो गया क्योंकि अगले चरण में मेरा लक्ष्य अपने प्रयासों से फ़िल्म विधा को छोटे नगरों तक लाने का था । कुलदीप के ही बनाये आफिस से इस चरण को प्रारम्भ करने का कार्य शुरू हुआ था ,,एक नई संस्था के गठन के साथ ' ,,सुलभ आर्ट्स ' के रूप में । नामाकरण करते समय सुलभ शब्द का चयन भी इसी लिए हम लोगों ने किया कि हम क्षेत्रीय कला प्रतिभा को , फ़िल्म के सशक्त माध्यम से , मंच दिलाने का प्रयास करेंगे । किन्तु क्या यह कार्य इतना आसान था ,,?? सिवा एक दिवा स्वप्न के ,,?? जो मरुभूमि में नहर खोदने जैसा था ,,?? </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> मेरे इन सपनों को दिशा देने के लिए जिस एक और धूमकेतु का उदय मेरे जीवन में हुआ था वहः था उदय प्रताप सिंह । उदयप्रताप को सतना के लोग यूपी सिंह कह कर पुकारते थे । कैमिस्ट्री विषय से स्नातक हुए यूपी सिंह सतना में पीवीसी शूज़ की फैक्ट्री डालने जा रहे थे । निस्संदेह यह कार्य भी बाटा जैसी बड़ी कम्पनियों के विरुद्ध छोटे नगर में छेड़ा गया बिगुल ही था ,,क्योंकि पीवीसी शूज , चमड़े के जूतों की अपेक्षा बहुत सस्ते में कामगारों को उपलब्ध हो सकते थे । तो वैचारिक रूप से , बड़े नगरों से तकनीक ले कर , छोटे नगरों को उद्यमी बनाने के सिद्धांत में हम एक्मतेंन थे । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> कुलदीप मेरी कलात्मक रचनाओं के वाहक थे तो यूपी सिंह तकनीक स्थापना के । मेरे लिए तो दोनों ही मेरी भुजाएं थे । किंतु संयोग ऐसा बना की दोनों एक साथ न बंध सके । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> कुलदीप ने विलग होकर अपना अलग मार्ग चुन लिया । उन्होंने अपनी एक नई संस्था बनाई और विज्ञापन के मार्ग पर वे अग्रसर हो लिए । सुलभ आर्ट्स का आफिस , कुलदीप के ऑफिस से हटकर मनोरमा प्रेस आ गया । सुलभ आर्ट्स ने अपने सपने साकार किये । वहः दूरदर्शन से अनुबंधित हो गई और पूरे मध्यप्रदेश में होने वाली विभिन्न सांस्कृतिक , क्रीड़ा जगत , और समाचार की गतिविधियों के कवरेज के लिए अधिकृत हो गई । सुलभ आर्ट्स ने वर्ष 1987 में , क्षेत्रीय कलाकारों को ले कर , बुंदेलखंड के कुंडेश्वर ग्राम में , औपचारिकेटर शिक्षा को ले कर 28 मिनट की एक सार्थक फ़िल्म ,,'गोरेलाल ' बनाई , जो जयपुर दूरदर्शन से जब प्रसारित हुई ,तो संस्था के उस स्वप्न को साकार कर गयी , जो मैनें कभी बालाघाट , लखनादौन , रहते देखा था । </span></p><p><span style="font-size: large;"> </span></p><p><span style="font-size: large;"> इन 6 वर्षों के अंतराल की अपनी एक अलग कहानी है ,,जिसमें फ़िल्मविधा ने सतना को फिल्मांकन के पटल पर अंकित कर दिया । निश्चित ही इसका श्रेय यूपी सिंह और मुम्बई निवासी फ़िल्म निर्देशक श्री बिंदु शुक्ला को जाता है ,,जिन्होंने इस कार्य में उल्लेखनीय रोल निभाया । समय मिला तो अपने सपनों के साथी यूपी सिंह पर अलग वृहत संस्मरण लिखूंगा , फिलहाल तो मेरा केंद्र बिंदु मेरे पहले साथी कुलदीप ही हैं ।</span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> विलग हो कर कुलदीप , विज्ञापन के कार्य में ज्यादा दिन स्थिर नहीं रह पाए । जिन महानुभाव को पेंटर बतौर उन्होंने अवसर दिया , उन्होंने ही कुछ दिनों बाद अपनी एक अलग एडवरटाइजमेंट की संस्था खोल ली । शहर ने विज्ञापन का महत्व समझा तो कई लोग इसे व्यवसाय मान कर इसमें कूद गये । उधर जैसे ही टेलीविजन का पदार्पण हुआ तो टाकीज का आकर्षण लोगों के मन से जाता रहा । जिन जिंगल्स को टाकीज का मंच मिला था वे टाकीज ही क्षीण हो गईं । नतीजन कुलदीप ने विज्ञापन की दुनिया छोड़ दी । इसबीच 1985 में आई भीषण आंधी ने भी होर्डिंग्स को बहुत क्षति पहुंचाई । कुलदीप ने अलग दिशा में व्यवसाय का मार्ग पकड़ा । उन्होंने मसालों की फैक्ट्री लगाई किन्तु वहः स्पर्धा का व्यवसाय था । उसमें स्थिर होना उनके लिए सम्भव नहीं हो पाया । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> तब उन्होंने विरासत में मिले राजनैतिक गुण को आजमाया । उन दिनों वी पी सिंह ने कांग्रेस से विलग हो कर अलग पार्टी बना ली थी । वीपी सिंह राजनीति में शुचिता का सिंबल बन कर उभरे थे । बहुमत से जीते , और प्रधानमंत्री बने ,,श्री राजीव गांधी को वीपी सिंह ने अपनी निर्मल छवि बना कर पटखनी दे दी थी । कुलदीप श्री वीपी सिंह से जुड़ गये । कुलदीप की राजनैतिक विरासत शुचिता और ईमानदारी के साथ , राष्ट्र भक्ति पर आधारित थी तो जल्दी ही। उनके लिए राजनीति के बड़े द्वार खुल गए । वीपी सिंह के निकटस्थ परिचितों में उनका नाम शुमार हो गया । राजनीति के क्षेत्र में वे जल्दी ही मेनका गांधी और विद्याचरण शुक्ल के अंतरंग हो गए । </span></p><p><span style="font-size: large;"> किन्तु सिद्धांतों के पक्के कुलदीप को कितने दिन राजनीति रास आती ,,?? खद्दर पहन कर सिद्धांतों पर अडिग हो कर राजनैतिक संत तो बना जा सकता है किंतु राजनैतिक सत्ता का सफल नेता नहीं । जल्दी ही एक बार राजनीति से कुलदीप का मोह भंग हो गया । उधर वीपी सिंह की तथाकथित राजनैतिक शुचिता की राजनीति क्षीण हुई , मेनका गांधी और विद्याचरण क्षीण हुए ,,,इधर कुलदीप के लिए भी राजनीति के द्वार क्षीण होगये ,, तो कुलदीप ने राजनीति छोड़ दी । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> यद्यपि कुलदीप मुझसे विलग हुए थे किंतु में आत्मिक रूप से उनसे विलग नहीं हुआ था । मैं उनकी क्षमताओं को जानता था और आश्वस्त था कि एक दिन फिर वे रचनात्मक कार्यों की ओर मुड़ेंगें । राजनीति छोड़ने के बाद वे सचमुच फिर रचनात्मक कार्यों की ओर मुद्दे ,,। विलग हो कर भी हमारे बीच , एक दूसरे के हालचाल लेने हेतु संवाद बने रहे । में अक्सर उनके घर पहुंच जाता और उनकी माता जी मुझे अपने हाथ से बने व्यंजन प्रेम से खिलातीं । माताजी के साथ हुए हमारे संवादों के बीच कुलदीप का विवाह प्रमुख मुद्दा रहता । वे क्षीण हो रही थीं और अब जल्दी ही अपनी बहू को देखने को व्यग्र थीं । में भी जब अपने किसी अन्य कायस्थ मित्र से मिलता तो कुलदीप के लिए एक बहु की तलाश करता । इसी बीच कुलदीप की बहू की तलाश पूरी हुई और उसका विवाह महोबा में हो गया । कुलदीप जैसे स्वच्छंद विचरते गजराज को अंकुश लगते देख मुझे भी बहुत खुशी हुई । सौभाग्य से कुलदीप को सुषमा के रूप में , बहुत सुघड़ , सरल हृदय , और अनुगामी जीवनसाथी मिली । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> इसबीच मुझे भी कई स्थानांतरण झेलने पड़े । कुलगवां से पहले सतना शहर, फिर जैतवारा होते हुए जब मैं नागौद पदस्थ हुआ तो मुझे एक भीषण घातक हमला झेलना पड़ा । हमले के बाद कुछ दिनों मैं मैहर रहा और वहां से प्रमोशन पर नौगावँ चला गया । मेरे नौगावँ स्थानांतरित होते ही सुलभ आर्ट संस्था बन्द हो गई । </span></p><p><span style="font-size: large;"> बदला हुआ नौगावँ भी मुझे रास नहीं आया तो 1991 में मैनें रीवा जिले के गहन वन प्रांतीय क्षेत्र त्योंथर में अपने अनुरोध पर स्थानांतरण ले लिया । इस समय तक फिल्मांकन विधा सेल्युलाइड से हट कर वीडियो का रूप धारण कर चुकी थी । इस तकनीक से जुड़ कर मैंने भी एक वीएच एस कैमरा 1989 में खरीद लिया था और उसे अपने छोटे भाई शार्दूल को सौंप दिया था । सतना में बहुत से वीएचएस कैमरे आ चुके थे और कई स्टूडियो मालिक , शादी विवाह के छायांकन का काम शुरू कर चुके थे । इन लोगों में स्टूडियो मालिक भल्लन और विनोद यादव शीर्षस्थ थे । सीमेंट फेक्ट्री में कार्यरत एक और व्यक्ति ,,अग्रवाल जी एक वीएचएस कैमरा बहुत पहले ले आये थे । कुलदीप जब फिर से रचनात्मक कार्यों की ओर मुड़े तो उन्होंने अग्रवाल जी का सान्निध्य लिया । कुलदीप ने जिंगल की तर्ज पर वीडियो शूट करने का प्रयास किया । किन्तु उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिली । जब मुझे पता चला कि कुलदीप पुनः उस रचनात्मक दिशा की ओर मुड़ रहे हैं तो मुझे बेहद खुशी हुई । आखिर तो मैनें उन्हें बहुत पहले ही चुना था ,,अपने रचनात्मक स्वप्नों को साकार करने के लिए ,,तो एक दिन में जब सतना आया तो सीधे कुलदीप के पास गया और उन्हें एक प्लान दिया ,,इस दिशा में कुछ मिलकर अनोखा करने के लिए । </span></p><p><span style="font-size: large;"> कुलदीप ने थोड़ा सोचा विचारा और अंततः सहर्ष राजी हो गए । </span></p><p><span style="font-size: large;"> </span></p><p><span style="font-size: large;"> और अब हम फिर कई वर्षों के अंतराल के बाद फिर एकजुट हो गये ,रचनात्मक कार्यों के आकाश में नई उड़ान भरने के लिए । </span></p><p><span style="font-size: large;"><br /></span></p><p><span style="font-size: large;"> और सचमुच यह उड़ान एक अलग ही उपलब्धि दे गई हम लोगों को ,,।</span></p><p><br /></p><p><span style="font-size: medium;"><br /></span></p><p> </p>sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-48110579431182570612020-12-04T20:45:00.001-08:002020-12-04T20:56:54.332-08:00<p> ,,,</p><p>,,,,,अमर,,,,</p><p>60 वर्ष पूर्व का नौगावँ याद आ रहा है ।</p><p> तब नौगावँ कस्बा सांस्कृतिक रूप से बहुत धनी था लेकिन आधुनिकता से बहुत दूर । </p><p>इस कस्बे की बसावट आस पास के नगरों के लिए कौतूहल थी । 132 चौराहे वाले इस कस्बे की करीब 40 किलोमीटर की चौड़ी सड़कों पर हर आधे किलोमीटर पर एक चौराहा था । सड़क के दोनों ओर पक्की चौड़ी नालियां थीं , जो सुबह शाम , दोनों टाइम धुलती थी । अधिकतम घर एकमंजिला थे । </p><p> यह कस्बा चारों ओर से निकटवर्ती बड़े नगरों से आवागमन के मार्गों से जुड़ा था । छोटे से बाजार में जरूरत की सभी चीजें थीं । कुछ घरों में मोटर गाड़ियां भी थीं । और उनके लिए तत्कालीन ' बर्माशैल ' कम्पनी का एक पेट्रोल पंप भी । यह कस्बा सभी वर्गों और जातियों के लोगों का सामुदायिक निवास था । यहां पुलिस स्टेशन से ज्यादा मामले , कस्बे के प्रभावशाली व्यक्ति की दहलीज पर निबटते थे जिनकी रहवासी कोठी इस कस्बे की शान थी । </p><p> इस कस्बे में उस समय सेना के लिए एक ट्रेनिंग सेंटर था जो बहुत बड़े क्षेत्र में फैला था । इस कस्बे में हवाईजहाज उतरने के लिए हवाई पट्टी थी । जिस पर यदा कदा कस्बे की कोठी के मालिक मुन्नालाल एंड संस् के निजी हवाईजहाज अपने डैने फैलाये उतरते रहते थे । जब ही हवाई जहाज उतरता , कस्बे के लोगों की भीड़दौड़ते हुए उसके दर्शन करने वहां पहुंच जाती । </p><p> इस छोटे से कस्बे में उस समय की बड़ी महामारी के इलाज हेतु , टीबी अस्पताल था । जिसमें बड़ी बड़ी एक्सरमशीनें लगीं थी । चिकित्सा के लिए सम्पन्न प्राथमिक चिकित्सालय भी था । यहां शराब बनाने की एक समृद्ध डिसलरी भी थी । </p><p> इस कस्बे में तत्कालीन विंध्यप्रदेश का हाई कोर्ट भी रहा , पीडब्ल्यूडी का अधीक्षणयंत्री कार्यालय भी , बड़ा पोस्ट आफिस भी और मत्स्य विभाग का बड़ा कार्यालय भी ।</p><p> यह कस्बा शिक्षण संस्थाओं का आकर्षक केंद्र रहा जहां तकनीकी शिक्षा हेतु पॉलिटेक्निक , प्राइमरी शिक्षा हेतु उत्कृष्ट विद्यालय , सहकारी प्रशिक्षण का स्कूल , और सबसे महत्वपूर्ण हायर सेकेंडरी स्कूल भी था जहां से क्षात्र आदर्श शिक्षा ग्रहण कर देश के हर कोने में नाम कमाने निकल जाते थे ।</p><p> खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों का यह अनूठा केंद्र था । यहां के नागरिक संस्कारित और धर्मपरायण थे । यहां टेनिस जैसा राजसी खेल भी प्रचलित था और सामूहिकता का प्रतीक हॉकी , बॉलीबॉल भी । यहां की बालिकाओंऔर बालकों में बैडमिंटन भी बहुत लोकप्रिय था । </p><p> यहां का वार्षिक उत्सव रामलीला थी । </p><p>खेल के लिए सुविधायुक्त कोर्ट भी थे । नगर में समृद्ध एक पुस्तकालय भी था । </p><p> </p><p> ऐसे समृद्ध , और संस्कारों के धनी नगर में प्रतिभाएं जन्म न लें ,यह तो हो ही नहीं सकता था । इसलिए इस कस्बे में कई घरों में प्रतिभाओं ने जन्म लिया और उन्हीं में से एक प्रतिभा , नगर के शीर्षस्थ , प्रख्यात , और कानून के ज्ञाता 'श्री जानकी प्रसाद सक्सेना ' के घर में जन्मी जिनका नाम माता पिता ने प्यार से ' अमर ' सिंह रखा । सिंह की पदवी सम्भवतः उन्हें पारिवारिक रूप से अंग्रेजी शाशकों से मिली थी । </p><p> </p><p> सब कुछ होने के बाद भी इस कस्बे में , सुगम संगीत , और वादन की कोई परम्परा नहीं थी । अलबत्ता कुछ लोग बांसुरी पर राग रागनियां सीख कर , शास्त्रीय संगीत में निष्णात हो , बाहर निकल जगये थे । ताल वाद्य में तबले के जानकार जरूर थे किंतु वे भी महापंडित न थे । </p><p> अमर सिंह सक्सेना को भी संगीत में रुचि थी तो उन्हें घर में ही सितार सिखाने हेतु एक शिक्षक लगाया गया । घर में ही उन्होंने हारमोनियम पर उंगली चलाना सीखा और गाना भी । उनके घर के पीछे बने , बड़े मंदिर में एक व्यक्ति थे कालिका प्रसाद , जो उनके सितार के गुरु बने । बाद में नगर के सिध्दहस्त हारमोनियम वादक से उन्होंने हारमोनियम सीखा । स्वरों और रागों का थोड़ा ज्ञान उन्हें मिला तो सुरों की शुद्धता उनकी निधि बन गयी ।।</p><p> लेकिन वे बंधे हुए हारमोनियम से सुरों से बंध कर ही नहीं रह गये । उन्हें सितार के तारों की मींड और स्ट्रोक ने ज्यादा आकर्षित किया । उन्होंने जल्दी ही समझ लिया की संगीत का माधुर्य और विस्तार का अथाह समुद्र तो तारों के झंकृत होने पर है । हार्मोनी और सिम्फोनी में नहीं । </p><p> इसलिए वे तार वाद्य यंत्र के सहयात्री हो गये । और उन्होंने अपने मार्ग खुद ढूंढना शुरू कर दिए । </p><p><br /></p><p> करीब 10 वर्ष की उम्र में , कक्षा 6 में , जब मैं उनके अनुज प्रताप सक्सेना का सहपाठी बना तब तक वे बेंजो नामक वाद्य यंत्र बजाने लगे थे । मैनें उन्हीं दिनों जाना कि वे संगीत समर्पित व्यक्ति हैं और पृयोग धर्मी भी । सबसे बड़ी बात यह थी कि वहः विज्ञान के क्षात्र थे और हर विधा में विज्ञान का छोर पकड़ कर तह तक जाने से नहीं चूकते थे ।</p><p> वहः युग फिल्मी संगीत का स्वर्णयुग था । गीतों में बहुत मधुरता होती थी और बोलों में जादू । उस समय शंकर जयकिशन , एसडी बर्मन , मदन मोहन , जयदेव , ओपी नैय्यर, नौशाद , की एक से एक मधुर धुनें अवतरित हो रहीं थीं जिसकी कम्पोजीशन तो अद्भुत होती ही थी , इंटरल्यूड तक गायन और वादन के योग्य होते थे । </p><p> बेंजो भारतीय वाद्य नहीं था । उसमें एक ही सुर पर ट्यून करकेँ छह तार लगते थे जिन्हें दाएं हाथ से स्प्लेक्टरम के माध्यम से झंकृत किया जाता था और बाएं हाथ से फिक्स की दबा कर धुन निकाली जाती थी । </p><p> </p><p> प्रताप मुझ से करीब दस माह छोटे थे और अमर भाई मुझसे दो वर्ष बड़े । लिहाजा मैंने उन्हें ' भाईसाहब ' कह कर पुकारा ।</p><p> </p><p> एक संगीत शिक्षक का पुत्र होने के कारण संगीत भी मेरी घुट्टी में था तो मैं सहज ही अमर भाई साहब के वादन को गौर से नोटिस करने लगा ।</p><p><br /></p><p> मैनें देखा कि वे ' कुहू कुहू बोले कोयलिया ' जैसे शास्त्रीय संगीत आधार गीत की तानें बहुत निपुणता और शुद्धता से बजा रहे हैं तो मैं चमत्कृत हो गया ।</p><p><br /></p><p> किन्तु उनका मन अतृप्त था । फिल्मी संगीत में युगल गीत में स्त्री और पुरुष स्वर की पिच को वे वाद्य यंत्र पर उतार लेने को व्यग्र थे तो उन्होंने बेंजो के सभी छहों तार हटा दिए और दो महीन तार और दो मोटे तारों के सैट लगा कर बेंजो को अनोखा वाद्य बना दिया ।</p><p><br /></p><p> मजे की बात थी कि अब मोटे तारों से रफी साहब की ध्वनि और पतले तारों में लता की गायकी की धुन युगल गीत बन कर कानों में माधुर्य घोल रही थी ।</p><p><br /></p><p> और हम बेंजो के इस नए रूप को देख कर भौंचक्के थे साथ में अमर भाईसाहब की प्रयोगधर्मिता को देख कर भी ।</p><p><br /></p><p> ---सभाजीत</p><p><br /></p><p> </p><p>,,,2,,,,,,</p><p><br /></p><p> अमर भाईसाहब को बेंजो बजाते देख मेरे मन में भी बेंजो बजाने की अभिलाषा जगी । लेकिन बेंजो तो मेरे पास था नहीं ।इसलिए मैं उसकी तलाश में जुट गया । </p><p>उस युग में बेंजो भी कीमती वाद्य यंत्र था और बड़े शहरों में ही बिकता था । मैं जानता था कि मेरे पिताजी मुझे बेंजो खरीद कर तो कभी देंगें नहीं । कारण स्पष्ट था ,,,यद्यपि वे खुद एम म्यूज़ थे और लखनऊ में बाकायदा रतनजनकर की शिष्यता में शास्त्रीय संगीत सीखे थे किंतु संगीत को जीवकोपार्जन हेतु व्यवसाय बना कर नौकरी करने से वे असंतुष्ट थे । उनका मानना था कि कला और लक्ष्मी में छत्तीस का आंकड़ा है और तेजी से बदलते आर्थिक युग में कलाकार और कला को वहः स्टेटस नहीं मिलता जो अन्य विषयों में सहज ही मिल जाता है । इसलिए संगीत की दुनिया में वे मुझे कदम रखने ही नहीं देना चाहते थे ।</p><p> फिर भी उन दिनों वे व्यायज़ हायर सेकेंडरी स्कूल में ही संगीत शिक्षक थे और उनके आधीन संगीत का एक प्रकोष्ठ था जिसमें सभी वाद्य यंत्र उपलब्ध थे । </p><p> तो मैं स्कूल में ही एक दिन उनके उस प्रकोष्ठ में चला गया जहां एक बेंजो मैनें देखा । बेंजो देख कर मैनें जिद पकड़ ली कि वे मुझे बेंजो इशू करवा दें । लेकिन उन्होंने मुझे यह कह कर टाल दिया कि वहः खराब है । बाद में घर आकर फिर में जब जिद करने लगा तो उन्होंने साफ मना कर दिया ।</p><p> कुछ ही दिनों बाद , जब मैं अपने एक सहपाठी रामनरेश के घर गया जो उस समय स्कूल के उप प्राचार्य के पद पर तैनात श्री गणेश सिंह के भतीजे थे , उनके घर में रामनरेश को उसी बेंजो से छेड़छाड़ करते देखा जिसे पिताजी ने मुझे इशू करने से मना कर दिया था तो समझ गया की पिताजी ने मुझसे बचाने के लिएवहः बेंजो वाइस प्रिंसिपल के भतीजे को इशू कर दिया था ।</p><p> रामनरेश को संगीत से कोई रुचि नहीं थी । मेरे मांगने पर उसने वहः बेंजो मुझे दे दिया और में उसे घर ले आया । मैं उसे जब बजाने लगा तो मुझे देख कर पिताजी ने कुछ नहीं कहा ।</p><p> अब बेंजो की प्रेरणा देने वाले अमर भाई साहब को देख देख कर मैंने अथक रियाज़ शुरू किया और में उसे बखूबी बजाने लगा ।</p><p> लेकिन अमर भाईसाहब के लिए तो बेंजो बहुत साधारण चीज थी । वे तो सितार सीख कर कला में पारंगत हुए थे इसलिए वहः यात्रा मेरे लिए बिल्कुल वैसी ही थे जैसे एक बहुत कुशल पायलट आगे चल रहा हो और उसके बनाये रास्ते पर पीछे पीछे में दौड़ रहा हूं ।</p><p> </p><p> कुछ ही दिनों में वे हायर सेकेंडरी पास करकेँ 1964 में छतरपुर महाराजा कालेज चले गये । अब मैं पीछे अकेला रह गया । मैनें अमर भाईसाहब के पदचिन्हों पर चलते हुए अपने बेंजो में भी खर्ज के दो मोटे तार लगाए और युगल गीत बजाने लगा । </p><p> </p><p> तभी वे जब नौगावँ आये तो उन्होंने मुझे एक नया करिश्मा करकेँ दिखाया । उन्होंने बेंजो का कीबोर्ड निकाल दिया और पेन को तारों पर घसीट के एक गीत बजा कर दिखा दिया । बेंजो का यह नया पृयोग मेरे लिए अनोखा था किंतु यह बाज बहुत मधुर था । </p><p><br /></p><p> उन्होंने ही बताया कि यह " हवाईयन गिटार " का बाज है । अब तक गिटार शब्द हम सबके लिए सर्वथा नया शब्द था । क्योंकि गिटार तो कभी रूबरू देखा नहीं था । फिल्मों में जरूर विश्वजीत एक्टर को उसे हाथों में ले कर उछलते कूदते देखा था । लेकिन यह बजता कैसे होगा यह हम लोग नहीं जानते थे ।</p><p><br /></p><p> इस बाज को सुनने के बाद मैनें रेडियो सीलोन की प्रातः कालीन सभा सुनना शुरू की जहां नियमित एक गीत गिटार पर बजता ही था । इसी सिलसिले में वादकों के नामों से भी परिचित हुआ ,,," वानशिपले" और एस हजारा सिंह " ,,। गीतों की मधुर धुनें सुन कर भी मेरे लिए यह पहेली ही बना रहा कि आखिर इसे बजाते कैसे हैं ।</p><p><br /></p><p> एक दिन जब मैं प्रताप से मिलने उसके घर गया तो प्रताप के बाबूजी , यानी उनके पिताजी ने कहा --" सभाजीत ,,! अमर एक गिटार ले आये हैं ,,जा कर देखो ,,!"</p><p> तभी अमर भाईसाहब खुद अपने हाथों में एक वुडन गिटार लिए बाहर निकल आये । उन्होंने घुटनों पर उसे रख कर , दाएं हाथ में नेल्स पहन कर। बाएं हाथ से स्टील के एक बार से बजाया तो अलग अलग स्ट्रिंग पर मींड में मचलता हवाईयन गिटार जैसे गाने लगा । </p><p><br /></p><p> नौगावँ का सम्भवतः वहः पहला गिटार था और अमर भाईसाहब पहले वादक । क्योंकि नौगावँ जैसे छोटे कस्बे में गिटार कभी बजा ही नहीं था । और शायद हम लोग नौगावँ के वे पहले श्रोता थे जिन्होंने रूबरू गिटार देखा था और जाना कि यह कैसे बजता है ।</p><p><br /></p><p> अमर भाईसाहब तो गिटार ले कर छतरपुर चले गये लेकिन मुझे फिर विचलित कर गये । </p><p><br /></p><p> मेरे मन में गिटार के लिए लालच जगा गये और मुझे एक नया अभियान सौंप गये कि मैं गिटार तलाशूं,,।</p><p> लेकिन जब मुझे बेंजो ही बड़ी जुगत से मिल पाया था तो अब गिटार कहां से पाऊं ,,?? </p><p><br /></p><p> इसी बीच 1966 में हायर सेकेंडरी पास करकेँ मैं नौगावँ पॉलिटेक्निक में चला गया और प्रताप छतरपुर ,,,आगे के ग्रेजुएशन के लिए महाराजा कॉलिज में दाखिला लेने ।</p><p><br /></p><p> उधर भाईसाहब निरन्तर एक उत्कृष्ट गिटार वादक बनने के सोपान चढ़ रहे थे इधर नौगावँ में में गिटार जुगाड़ने की तलाश में भटकने लगा ।</p><p><br /></p><p> जहां चाह वहां राह ,,,। मुझे भी 1967 में एक टूटा हुआ गिटार मिला जो दतिया से मुझे मेरे चाचा जी के न्यायाधीश मित्र , श्री देवेंद्र जैन ने भिजवाया ।</p><p><br /></p><p> किन्तु अब वहः मौका नहीं था कि मैं अमर भाईसाहब को देख देख कर सीख सकूं ,,क्योंकि वे तो छतरपुर में थे और में उनसे 24 किलोमीटर दूर नौगावँ में ।</p><p> और जब उन्हें , 1967 में अपने ही पोलटेक्निक कॉलिज के एनुअल फंक्शन में मंच पर गिटार बजाते देखा तो स्तब्ध रह गया । वे अब वुडन गिटार नहीं ,,बल्कि स्व निर्मित इलेक्ट्रिक गिटार बजा रहे थे ।</p><p><br /></p><p> गीत था , मेरा साया फ़िल्म का , आशा भोंसले का गाया ,,," झुमका गिरा रे ,,," पूरे अंदाज़ में और बेस स्ट्रिंग ने बीच में जब पूछा ,," फिर क्या हुआ ,,?? " </p><p><br /></p><p> तो पूरे हॉल में तालियां थमने का नाम न ली ।</p><p><br /></p><p> यह बाज तो बिल्कुल अलग था ,,,जिसके आगे वानशिपले और हजारा सिंह भी कहीं नहीं टिकते थे ।</p><p><br /></p><p> उन्होंने अब मुझे नई राह दिखा दी थी ,,की गिटार सिर्फ गाता ही नहीं बोलता भी है ,,बखूबी वैसा ही ,,जैसा गीत में कोई बोलता है ।</p><p><br /></p><p> मैनें भी ठान लिया ,,, अब ऐसा ही मैं भी बजाऊंगा,,।</p><p><br /></p><p> - ' सभाजीत ' </p><p><br /></p><p> ,,,,3,,,</p><p><br /></p><p> प्रताप के छतरपुर चले जाने से , अमर दादा का विशाल घर और परिसर सूना ही हो गया । बाबूजी भी वकालत के लिए छतरपुर ही रहने लगे और परिवार भी वहीं रहने लगा । उन्होंने वहां एक बड़ा घर , रेस्टहाउस पहाड़ी के नीचे , मुख्य मार्ग पर ले लिया ।</p><p> मेरे लिए भी पॉलिटेक्निक का नया वातावरण मिल गया और नए मित्र भी । इसलिए अब अमर भाईसाहब से और प्रताप से मिलने जुलने का क्रम शिथिल हो गया ।</p><p> किन्तु वे कभी कभी इतवार को नौगावँ भी आ जाते थे और तब मैं उनसे मिलने का मौका नहीं चूकता था । इसीबीच एक दिन वे आये और बोले कि तुम्हें छतरपुर के जलविहार मेले के कार्यक्रम में एक मुकेश का गीत गाना है । उनके हिसाब से मैं मुकेश के गीत ' ठीक ठाक ' गा लेता था । मैं सहर्ष मांन गया । वे गिटार साथ लाये थे । उन्होंने कहा - ' रिदिम ' नहीं बजेगी ,,,तुम्हे मेरे हवाईयन गिटार के ' वेम्पस ' पर गाना पड़ेगा । मैं वहः भी मांन गया । ,,क्योंकि इस के अलावा मेरे पास चारा ही क्या था । हवाईयन गिटार पर " कॉर्ड्स " नहीं बजाए जा सकते । किन्तु सुरों के आधार पर , फ्रेट्स पर बार स्थिर रख कर वेम्पस देते हुए रिदिम देना सम्भव है । उन्होंने वेम्पस दिए ,,और मैनें गाया ,,' हरी भरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन । '' वे मुझे प्रेक्टिस करवा कर संतुष्ट हुए और फिर मैंने छतरपुर जा कर यह गीत गाया ।</p><p> बिना तबले , के गिटार के रिदिम पर यह गीत श्रोताओं को कुछ अलग हट कर ही लगा । लोगों ने तालियां बजाईं। लेकिन निश्चित था कि ये तालियां गिटार के वेम्पस के रिदिम के सर्वथा नए पृयोग के लिए थीं ।</p><p> छतरपुर के इस नए घर में मैनें कुछ नईं चीजें देखी ,,जैसे एक रिकॉर्ड प्लेयर , कुछ एल पी रिकॉर्ड्स , और एक नया स्पेनिश गिटार । </p><p> प्रताप ने बताया कि अब भाईसाहब हवाईयन गिटार कम बजाते हैं ,,बल्कि स्पेनिश गिटार ज्यादा बजाते हैं । स्पेनिश गिटार तो पाश्च्यात संगीत की शास्त्रीयता और नियम कायदे से बंधा था । उसके स्ट्रिंग की ट्यूनिंग भी अलग नियमान्तर्गत थी । उसमें फिल्मी धुनें बजाने का कोई स्कोप नहीं था । उसके कॉर्ड्स भी स्थापित थे जिसमें उंगलियों को सभी स्ट्रिंग्स पर , निश्चित फ्रेट्स पर रख कर ही निकालना सम्भव था । तो भाईसाहब को इस विधा में क्या ऐसा दिखा की वे इस ओर मुड़ गये,,?? </p><p> इसका जवाब खुद भाईसाहब ने दिया । उन्होंने एक एल पी , रिकार्ड प्लेयर पर चढ़ाया और कहा --" सुनो इसे ,,यह विश्व विख्यात गिटार वादक ' चैट एटकिन्स " है । जैसे भारत मे रविशंकर विख्यात हैं वैसे ही विदेश में यह व्यक्ति विख्यात है । स्पेनिश गिटार एक पूर्ण समर्थ वाद्य है ,, बिल्कुल वैसे ही जैसे भारत में सरोद या सितार । " </p><p><br /></p><p> और सचमुच ,,जब मैनें वहः रिकार्ड सुना तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं । मुझे पहली बार यह समझ में आया कि पाश्चात्य संगीत में भी सौंदर्य है , मधुरता है , और शास्त्रीयता है । भाईसाहब ने बताया कि यह व्यक्ति स्प्लेक्टलम से गिटार नहीं बजा रहा है बल्कि हाथों की सभी उंगलियों और अंगूठे से सभी तारों को छेड़ रहा है और फ्रेट्स पर उसकी उंगलियां पानी की तरह चल रही हैं ।</p><p> फिर उन्होंने वेंचर्स ग्रुप के कुछ रिकार्ड चढ़ाए जो उस समय पूरे देश में लोकप्रिय हो रहे थे । उसमें तो स्पेनिश गिटार का पूरा ग्रुप ही था ,,अद्भुत ।</p><p><br /></p><p> अब मुझे लगा कि और भी जहाँ हैं ,,इस जहाँ के आगे । अभी तक तो मैं फिल्मी धुनों और उसके हवाईयन गिटार पर वादन तक ही अटका था ,,लेकिन भाई साहब ने तो एक नई दुनिया के ही दर्शन करवा दिए थे ।</p><p><br /></p><p> मुझे याद आया कि पॉलिटेक्निक के मंच पर उन्होंने इलेक्ट्रिक गिटार बजाया था ,,तो क्या भाई साहब ने हवाईयन गिटार में भी नया इलेक्ट्रिक गिटार ले लिया ,,?? 1967 में इलेक्ट्रिक गिटार खरीदना और बजाना बहुत बड़ी बात थी । मैनें प्रताप से जब इस बारे में पूछा तो प्रताप हंसने लगा । उसने बताया कि यह अमर भाईसाहब की अपनी खोज और अपना पृयोग है । उनका गिटार वही पुराना वुडन गिटार है और कोई नया इलेक्ट्रिक गिटार नहीं खरीदा ।</p><p><br /></p><p> प्रताप ने बताया कि उन्होंने जब प्लेयर लिया तो उसी आधार पर उन्होंने कम्पन को विद्युत तरंगों में बदलने वाले प्लेयर के एक नए पिकअप को अलग से खरीद लिया । जैसा हम सब लोगों ने पढ़ा है कि रिकार्ड पर चलते हुए , पिकअप में लगी निडिल में जो कम्पन पैदा होता है वहः इलेक्ट्रो मैग्नेट फील्ड के जरिये पिकआप विद्युत तरंग में बदल देता है ,,तो भाई साहब ने वुडन गिटार के ब्रिज पर महिलाओं द्वारा बुनने के पृयोग में आने वाली ' क्रोशिया ' फंसाईं और उसके मुंह पर पिकअप फंसा दिया । इस तरह जो कम्पन तारों में हुआ वहः क्रोशिया के जरिये पिकप को मिला और पिकप से उन्होंने एमलीफ़ायर को जोड़ दिया ,,,तो बन गया ,," ' इलेक्ट्रिक गिटार ,,' !!</p><p><br /></p><p> सचमुच यह पृयोग अचंभित कर गया । विज्ञान तो हम सब पढ़ते हैं किंतु उसका इतना सार्थक पृयोग क्या कोई , कभी करता है ,,?? लेकिन भाई साहब तो बिरले निकले ।</p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p><p> उधर ,,, स्पेनिश गिटार , हवाईयन गिटार जैसा सहज नहीं था । उसे सीखने के बाकायदा पश्चिमी संगीत के व्याकरण के बीच से गुजरना जरूरी था ।</p><p><br /></p><p> भाईसाहब तो कॉर्ड्स की बुक ही खरीद लाये थे । और स्टाफ नोटेशन को भी समझने की कोशिश कर रहे थे । मेरे लिए तो यह सब उपाय दुरूह थे ।</p><p><br /></p><p> दूसरे,,मेरे हाथ तो अभी तक हवाईयन गिटार ही नहीं आया था ,, स्पेनिश तो दूर की कौड़ी थी । यह वो समय था जब लोग स्पेनिश गिटार पर बजे ,, ' कम सेप्टेंबर ' धुन का जादू नहीं भूले थे और नृत्य में ' ट्विस्ट ' हर रईस घर का बच्चा करना शुरू कर दिया था । फिल्मों में आर डी बर्मन का पदार्पण हो चुका था , और तीसरी मंजिल फ़िल्म का ,," आजा आजा ,,में हूँ प्यार तेरा " का सुरीला इंटरल्यूड हर श्रोता के कानों में बस गया था । फ़िल्म के हर संगीत निर्देशक , यहां तक कि नौशाद भी अपनी धुनों में स्पेनिश गिटार बजवाना शुरू कर दिए थे ।</p><p><br /></p><p> अब एक मुश्किल और भी थी ,,की भाई साहब नौगावँ से 24 किलो मीटर दूर हो चुके थे ,,अब उन्हें देख देख कर भी स्पेनिश गिटार सीखना सम्भव नहीं था ।</p><p><br /></p><p> तभी वे छतरपुर में बीएससी करने के बाद एम एस सी फिजिक्स से करने शहडोल चले गये ,,तो जो कभी कभी होना सम्भव था वहः बिल्कुल असम्भव हो गया ।</p><p><br /></p><p> इधर मेरी पढ़ाई भी कठिन ही थी । मैनें उस समय 1966 में , सबसे कठिन ट्रेड ' इलेक्ट्रिकल ' चुना था तो मेरे पिताजी मुझे अधिक मेहनत के लिए आगाह करने लगे थे । वे भला मुझे गिटार क्यों ख़रीदवाते ,,?? </p><p><br /></p><p> अलबत्ता मेरे आग्रह पर उन्होंने मुझे ' ताल ' सिखाना स्वीकार कर लिया । और मैनें तबले पर सभी ताल बजाने सीख लिए ।</p><p><br /></p><p> ऐसी स्थिति में आगे मेरे काम आये मेरे चाचाजी ,,' गुणसागर सत्यार्थी ' जी । उन्होंने अपने मित्र श्री देवेंद्र जैन को कहा ,,,जो उस समय दतिया में सिविल जज थे ।</p><p>उनके पास एक टूटा गिटार था जो कभी चाव से बजाने के लिए उन्होंने लखनऊ से खरीदा था । किंतु जज होने के कारण कभी सीख न पाए और वहः गिटार उखड़ गया था । उन्होंने कहा कि वे दतिया बस से उसे नौगावँ भिजवा देंगें ।</p><p><br /></p><p> अब हर शाम में बसस्टेंड जाता ,,बस कंडक्टर से पूछता ,,लेकिन गिटार का आगमन नहीं हुआ । हर दिन में उदास होकर एक गीत की पंक्तियां ,,," ये तमन्ना ही रही,, उनका पयाम आएगा ,," ,,यूँ गुनगुनाता ,,,' ये तमन्ना ही रही उनका गिटार आएगा ,,',,!!</p><p> </p><p> जब एक माह बीत गया तो निराश होकर मैंने बस स्टैंड जाना बंद कर दिया । लेकिन एक शाम यूंही जब मैं शिवोम के घर गया जो पड़ोस में ही था तो देखा कि शिवोम उस प्रतीक्षित टूटे गिटार को एक कवर से निकाल कर देख रहा था । पूछने पर शिवोम ने बताया कि कोई कंडक्टर बस स्टैंड से आकर दे गया है और बता गया है कि किन्हीं जज साहब ने दतिया से भेजा है ।</p><p> </p><p> उस टूटे गिटार को देख कर मुझे लगा ,,जैसे मुझे स्वर्ग मिल गया है । मैं शिवोम से वहः गिटार घर ले आया ,,और उसे जुडवाने की जुगत में लग गया ।</p><p><br /></p><p> गिटार तो जुड़ गया ,,लेकिन मेरा गाइड और पायलट तो शहडोल जा चुका था । अब जो कुछ करना था मुझे मष्तिष्क में बसे उस अनुभव के आधार पर ही करना था जो भाई साहब को देख कर मिला था ।</p><p><br /></p><p>---' सभाजीत '</p><p><br /></p><p>,,,,,4 ,,,,</p><p><br /></p><p>अमर भाईसाहब के शहडोल चले जाने के बाद , मुझे नौगावँ के सुगम सँगीत और फिल्मी संगीत का क्षेत्र खाली खाली लगने लगा । यद्यपि नौगावँ में परम्परागत संगीत की अविरल धार अभी उतनी ही सघन थी और उसका प्रभाव बढ़ रहा था । मेरे पिताजी श्री ज्ञान सागर शर्मा , शास्त्रीय संगीत के सुदृढ स्तम्भ थे । नगर के लोकप्रिय संगीतज्ञ , शिवोम के पिताजी श्री नारायणदास आहूजा जी भी संगीतज्ञ थे । और उन दिनों कीर्तन की विधा के उभरते कलाकारों में पी डब्ल्यू डी कार्यरत श्री एम पी मिश्रा जी की बहुत धूम थी । हर त्योहार में , बड़े मंदिर में लोगों की भीड़ कीर्तन सुनने जुटती और मिश्रा जी , फिल्मों की नई नई धुनों पर कीर्तन करते । उनके साथ उनकी मंडली में " झींका " बजाने वाले जगदीश मास्साब की मुद्राएं लोगों के आकर्षण का केंद्र होती ।</p><p> लेकिन न जाने क्यों ,,मुझे यह संगीत आकर्षित ही नहीं करता था । में भाईसाहब द्वारा अपनाई गई नइ लीक , सुगम संगीत , फिल्मी संगीत , और वाद्य वादन का मुरीद था । यह विडंबना ही थी कि नगर के युवा गायक तो बनना चाहते थे किंतु वाद्य वादन के प्रति उनका कोई झुकाव नहीं था । यहां तक कि ताल वाद्य में भी किसी ने जानकार होने की कोशिश नहीं की । उस समय मलखान सिंह ढोलक तो आकर्षक बजाते थे किंतु तबले जैसे परिपूर्ण ताल वाद्य से अनिभिज्ञ थे । और बिना तबले के फिल्मी संगीत या सुगम संगीत को दिशा देना सम्भव ही नहीं था ।</p><p> जब मैं पॉलीटेक्निक के प्रथम वर्ष में था तो शिवोम के घर के बगल में , एक किराए के घर में रहता था , जिसका ऊपरी कमरा हमेशा खाली रहता था । उन्हीं दिनों मैनें उस खाली कमरे में सुगम संगीत की गोष्ठियां शुरू की । उस गोष्ठी में प्रदीप राव भी आते थे जो इसराज बजाते थे । वे तबले पर भी हाथ आजमा लेते थे और शायरी भी करते थे । वे प्रायः अपने स्वर में अपनी लिखी नज़्म पढ़ते । उधर शिवोम को भी " बोंगो ड्रम ' बजाने का चस्का लगा । यह चस्का उसे इसलिए लगा क्योंकि छतरपुर में महलों के निकट रहने वाले , दो चौरसिया भाई , विनोद और अशोक चौरसिया , संगीत सभाओं में जुगलबंदी में तबला और बोंगो बजाते थे , जो बहुत प्रभावी होता था ।</p><p> लेकिन मेरी तरह , शिवोम के पास भी ,,ललक तो थी किन्तु बोंगो ड्रम नहीं था । उन दिनों बोंगो कहीं मिलता भी नहीं था ,,सिर्फ कलकत्ता या मुम्बई जैसे महानगर को छोड़ कर , जहां से उसे लाना दुष्कर था । तो ,,शिवोम ने डालडा घी के दो छोटे और बड़े डिब्बे कटवाए और ढोलक की तरह नीचे कुंदे लगवा कर रस्सी से ऊपर खाल मड़वा दी -- तो बन गया एक देशी बोंगो ,,! -- अब प्रदीप ने और शिवोम ने तबले और बोंगों पर प्रेक्टिस शुरू की और जल्दी ही वे तैयार भी होगये ,,चौरसिया ब्रदर्स को टक्कर देने । </p><p><br /></p><p> मेरे पास भी गिटार आ ही गया था । किंतु मुझे रियाज़ की जरूरत थी । पिताजी का रुख यद्यपि थोड़ा नरम पड़ गया था किंतु इतना नरम भी नहीं कि मैं सब कुछ छोड़ कर संगीत साधना में लीन हो जाऊं । इसलिए मैनें प्रेक्टिस शुरू जरूर की , किन्तु रात में , उनके सो जाने के बाद ही , बाहर के कमरे में दरवाजा बंद करके दो बजे तक गिटार बजाता रहा ।</p><p> अचेतन मन में तो , भाइसाहब को देख कर सीखा गिटार था ही ,, डी एन ए में विद्यमान मेरे अपने संगीत ने जल्दी ही मुझे पारंगत कर दिया । मैं बेस स्ट्रिंग , लीड स्ट्रिंग पर गीत बजाने के साथ साथ इंटरल्यूड्स भी बजाने लगा ।</p><p> वे दिन सुगम संगीत और फ़िल्म संगीत के स्वर्णिम दिन थे । छतरपुर जलविहार मेले में , कानपुर से दो युगल गायक ,,उषा और राजेन्द्र परदेशी आते और अपनी आवाज़ की धूम मचा कर चले जाते ।तबले की संगत में एक अद्वितीय तबला वादक ,," हुक्मानी " अलग से भारी फीस ले कर आता ,,लेकिन वैसा तबला वादक दूर दूर तक उपलब्ध नहीं था । वे अधिकतम नए फिल्मी गीत गाते और साथ देते हुक्मानी । हुक्मानी हूबहू वही ठेका तबले पर बजाते जो फ़िल्म में , गीत में बजा होता । यह आश्चर्य का विषय था कि मात्र हारमोनियम , कण्ठस्वर , और तबले की थाप से सजी वहः महफ़िल , एक यादगार महफ़िल में तब्दील हो जाती और लीग ' पिन ड्राप साइलेन्स ' के साथ वे मधुर गीत पुनः पुनः सुनने की शिफारिश करते। और पूरी रात यूंही गुजर जाती ।</p><p> </p><p> तो 1967 में , मेरे मन में भी एक साध जगी की मैं एक सुगम संगीत का दल बनाऊं । प्रदीप और शिवोम ताल वाद्य के लिए तैयार हो चुके थे । उधर प्रदीप भी अपनी नॉकरी के फंड से किसी तरह एडवांस निकलवा कर एक सेकेण्ड हैंड एकोर्डियन खरीद लाये । अब जरूरत थी गायक गायिकाओं की जो मंच पर राजेन्द्र परदेशी और उषा की तरह युगल गीत गा सकें । लेकिन ऐसे गायक गायक तो नौगावँ में मिलना सम्भव था ही नहीं ।</p><p> </p><p> हम लोगों ने मिलकर " अलंकार म्यूज़िक एशोषियेशन ' के नाम से दल बना लिया । मैनें हारमोनियम सम्हाला , प्रदीप ने तबला , शिवोम ने बोंगों ,। हम लोगों ने वाद्य में गिटार और एकार्डियन को जोड़ी बना लिया । प्रदीप एकार्डियन पर , युगल गीतों में , लता की पंक्ति बजाते और मैं गिटार की बेस स्ट्रिंग पर मुकेश या रफी की गायजी पंक्ति । इंटरल्यूड हम मिलजुल कर आपस में बांट लेते ।</p><p> लेकिन बिना गायकों के तो दल अधूरा ही था । गायक तो सहीत बोस के रूप में मिल गये किन्तु स्त्री कंठ का तो अभाव ही था । तब हम लोगों ने सोचा कि भले ही कोई बालिका ही दल में गाने लगे तो हम बच्चों के गीत गवा कर यह कमी पूरी कर लेंगें । </p><p> </p><p> और हमारी यह साध पुरी की , आदरणीय चाचा जी की दो सुरीली बेटियों ,,साधना और अर्चना ने । वे बहुत मधुर गातीं थीं । तो हमने बच्चों के दो गीत ,, 'बच्चे मन के सच्चे ',,और 'बापू सुन ले ये पैगाम ,' उनके कण्ठों में तैयार करवाये । </p><p><br /></p><p> सुगम संगीत में मुझे धुनें कम्पोज़ करने की ललक जगी । प्रदीप ने गीत लिखना शुरू किया और मैनें कम्पोज़ करना । जल्दी ही हमारे पास अपनी खुद की धुनों और गीतों का बड़ा जखीरा तैयार हो गया । सहयोग से इस जखीरे की हर धुन मधुर बन गयी और गीत मनोहर । तो अब हमारे पास खुद का एक सम्पूर्ण दल तैयार हो गया और हमने कार्यक्रम देना शुरू किया । </p><p> </p><p> मुझे याद है जब , पहले कार्यक्रम में ,, टीकमगढ़ में , मैदान में जुटी श्रोताओं के बीच , अर्चना की सुरीली आवाज ' बापू सुन ले ये पैगाम ' गूँजी तो चारों ओर लोग स्तब्ध रह गये । आवाज़ और गीत के बोलों ने लोगों की आंखें भिंगो दी । उधर सुहीत ने भी गाया - " चांदी की दीवार न तोड़ी ,," तो लोग झूम गये । हमारे स्व रचित गीत " आँसू समझ के गम को पिये जा रहे हैं हम ,," ने भी समां बांध दिया । हमलोगों ने गिटार और एकार्डियन पर दो युगल गीत बजाए ,," सावन का महीना " और " गाता रहे ,,मेरा दिल ,," ,,!!</p><p><br /></p><p> टीकमगढ़ के सफल कार्यक्रम ने हमारा हौसला बढ़ा दिया । फिर हमने कई कार्यक्रम दिए जिनमें अधिकतम आर्मी के आई टी बी पी ट्रेनिंग सेंटर के मंच पर आयोजित हुए । आईटीबीपी के कमांडेंट श्री रमेश अग्निहोत्री हमारे दल के बड़े प्रशंसक हो गये । उस मंच पर मैनें भी एसडी बर्मन का गाया गीत गाया ,,' मेरे साजन हैं उस पार,,',,।। अग्निहोत्रीजी उस गीत के मुरीद हो गये । वे कहीं अन्यत्र भी मंच पर मुझे देखते तो चिट भेज देते ,,,' ' मेरे साजन हैं उस पार गाओ ,,सभाजीत ,,!!" !</p><p><br /></p><p> इसी सिलसिले में वहः दिन भी आया जब मुझे गिटार देने वाले चाचा जी देवेंद्र जैन ने पूरे दल के साथ सतना बुलवाया और हमने उनके दिए टूटे गिटार पर अच्छी हालत में गीत बजा कर सुनाए ।</p><p><br /></p><p> इस बीच यदा कदा अमर भाईसाहब भी आते रहे और उन्हें यह देख कर खुशी होती कि मै गिटार बजाने लगा हूँ । अलबत्ता मेरे पिताजी मेरी इस संगीत पार्टी से बहुत खुश नहीं थे । उन्हें चिंता सताती रहती थी कि इस संगीत पार्टी के चक्कर में , में अपना भविष्य न बिगाड़ लूं । क्योंकि उनकी एक ही साध थी कि मैं संगीतज्ञ नहीं ,,बल्कि एक इंजीनियर बनूँ ।</p><p><br /></p><p> और एकदिन जब अमर भाईसाहब नौगावँ आये तो पिताजी ने उनसे मेरी एक्टिविटीज को ले कर रुक्क्षता प्रकट की । अमर भाईसाहब थोड़ी देर सुने,, फिर बोले ,," मुझे नहीं मालूम की सभाजीत एक सफल इंजीनियर बन पाएगा कि नहीं ,, किन्तु वहः एक सफल कलाकार बन जायेगा ,,,इसकी में गारंटी देता हूँ ,,बशर्ते आप उसे भी संगीत सिखा दें ,,। ,,जो जन्मजात। गुण हैं ,, उन्हें आप चाह कर भी नहीं रोक पाएंगें । "</p><p><br /></p><p> बात साधारण थी किन्तु पिताजी को शायद घर कर गयी । उन्होंने मुझे फिर संगीत के लिए रोका भी नहीं किन्तु उन्होंने सिखाया भी नहीं । नतीजतन में शास्त्रीय संगीत में शून्य ही रह गया ।</p><p><br /></p><p> मैनें 1969 में डिप्लोमा पूरा किया और मुझे 1970 में नौकरी मिल गयी तो मैं विद्युत मंडल में सबइंजीनियर बन कर बालाघाट चला गया और पीछे छोड़ गया संगीत की ,, आर्केस्ट्रा या सुगम संगीत की दुनिया ।</p><p><br /></p><p> उधर अमर भाईसाहब भी भौतिकी से एमएससी करकेँ पी एच डी रिसर्च करने सागर चले गये,,।</p><p>उन्होंने प्रारंभिक वर्षों में ' सेमी कंडक्टर ' पर रिसर्च की किन्तु बाद में उन्हें फेलोशिप में भाभा एटोमिक रिसर्च संस्थान के तत्वाधान में ' लेसर रे ' पर रिसर्च करने का ऑफर मिला तो वे पुनः नई रिसर्च के लिए मुम्बई चले गये ।</p><p> हम लोग 7 वर्षों के लिए एक दूसरे के जीवन से अनभिज्ञ रहे किन्तु फिर मौका आया और मेंने इन 7 वर्षों के बारे में पूरी जानकारी उनके बारे में ले ली । </p><p><br /></p><p> वर्ष 1977 में कुछ साम्यतायों ने हमें समानांतर कर दिया ।</p><p><br /></p><p>--' सभाजीत ' </p><p><br /></p><p>,,,,,,5,,,,,,,</p><p><br /></p><p> बालाघाट जाने पर मेरे स्वप्न - विहंगों को नया आकाश मिला । सतपुड़ा की गोद में बसे इस छोटे से नगर में पग पग पर बिखरी , वन सुषमा ने मेरा मन मोह लिया । मेरा सौभाग्य था कि मेरा हेडक्वार्टर जिला मुख्यालय बालाघाट नगर में ही बना दिया गया । </p><p> 1969 में ही , मेरे चाचा जी श्री गुणसागर सत्यार्थी जी ने , मेरी संगीत अभिरुचियों को देखते हुए , मेरे हाथों में मुझे एक नया उपहार ,,नायलॉन स्ट्रिंग का एक रशियन स्पेनिश गिटार थमा दिया था । इस गिटार जी आवाज़ बहुत मधुर थी । बेस स्ट्रिंग्स तो ऐसे बोलते थे जैसे सरोद की गमक हो । </p><p> में अपने साथ , फर्स्ट एपोइंटमेंट में ही , उसे ले कर बालाघाट गया । बालाघाट में शास्त्रीय संगीत का एक बड़ा विद्यालय था । इस विद्यालय में जिस के नाम से विद्यालय था वही एक कम वय का किशोर मुझे सितार बजाते दिखा । यह बहुत प्रतिभावान युवा था । जितनी महारत उसे सितार पर प्राप्त थी , उतनी ही महारत उसे वायलिन पर भी प्राप्त थी । तबले पर संगत के लिए , उसके छोटे भाई भी उतने ही पारंगत थे । </p><p> जल्दी ही मैं उस परिवार में घुल मिल गया । बालाघाट में गिटार का कोई प्रचलन नहीं था । इसलिए मुझे उस संगीत समाज में विशेष महत्व मिला । मैनें देखा कि इस छोटे से नगर में नाट्य विधा भी अपने उत्कृष्ट स्तर पर विद्यमान थी । काव्य गोष्ठियां भी होती थी जिसमें नगर के कई प्रतिभाशाली कवि काव्य पाठ करते । जल्दी ही में इस नगर की मुख्य साहित्यिक एवम सांस्कृतिक धारा का अंग बन गया । </p><p> यहां आकर मुझे लगा कि नौगावँ में जो बहुत कुछ नहीं था ,, वो यहां बहुत कुछ था । नौगावँ में जिस संगीत की धारा को प्रवाहित करने के लिए मुझे विशेष यत्न करने पड़े थे वे यहां स्वयमेव विद्यमान थे । किंतु फिर भी यहां कलाकार बिखरे हुए थे , उनमें आपसी सामंजस्य नहीं था । इसी दौरान मेरी मित्रता नगर के एक युवा कवि ,,शरद श्रीवास्तव " से हुई जिनके गीतों में महाकवि नीरज के भावों जैसी कसक थी । ये गीत सुनकर मेरी धुन कम्पोजिंग की चाहत फिर जाग उठी । जल्द ही हम लोग एक दूसरे के पूरक हो गये ,,। में धुन बनाता ,,वे गीत लिख देते ,,या फिर वे गीत लिखते में धुन बनाता ,,। धीरे धीरे मेरे पास सुरबद्ध कई गीतों का खजाना बन गया । ये गीत सभी मनः स्थितियों के थे । फिल्मों के सर्वथा अनुकूल । तो अब हम इनका क्या करें ,,?? यह सवाल हमारे मन में कौंधा ।</p><p> इसके निदान के लिए मैनें उपाय सोचा । मैनें एक स्पूल वाला टेपरिकार्डर खरीदा । एक छोटे छोटे दृश्य वाली स्क्रिप्ट लिखी । उसमें डायलॉग बुलवाए , रिकार्डिंग के वक्त ही बैकग्राउंड संगीत डाला , और एक गीत कम्पोज़ कर के रिकार्ड किया । मुझे वहां मेरे मित्रों में फ्ल्यूट वादक , मेंडोलिन वादक , वायलिन वादक सहज ही मिल गये । दृश्य था ,,नायक के जन्म दिन का ,,और नायिका ने शरद के लिखे बोलों को इस प्रकार गाया ,,,," दिल दे रहा है ,,क्या क्या दुआएं ,,महफ़िल में दिलबर ,,कैसे बताएं ,,!! ! उन सीमित साधनों में भी गीत फैंटास्टिक रिकार्ड हुआ ।</p><p><br /></p><p> इस मेहनत का फल भी मुझे शीघ्र ही मिला । उनदिनों बालाघाट के निवासी श्री मुकुंदभाई त्रिवेदी , नागपुर रह कर एक स्थानीय फ़िल्म " भादवाँ माता " बना रहे थे । वे बालाघाट आये तो हमने उन्हें अपना गीत और बैकग्राउंड संगीत सुनवाया । वे अपनी फिल्म के बैकग्राउंड संगीत हेतु किसी नए और सस्ते संगीतकार की तलाश में थे ,,तो उन्होंने प्रभावित होकर कहा ,,' ,आप तैयार रहिए ,,मद्रास चलकर आप बैकग्राउंड तैयार करवाइए । अगली फिल्म में बुंदेलखंड की रीजनल फ़िल्म बनाऊंगा। ,,तब आपको फुलफ़्लेज संगीत निर्देशक बना दूंगा ,,!!" </p><p> शरद और मुझे लगा कि फ़िल्म जगत के रास्ते अब हमारे लिए खुल चुके हैं और हम अपनी अगली उड़ान की कल्पना मुम्बई फ़िल्म इंडस्ट्रीज़ के लिए करने लगे । किन्तु भाग्य को कुछ और ही मंजूर था । फ़िल्म प्रोसेसिंग और पोस्ट प्रोडक्शन के लिए मुकुंदभाई के पास पैसे ही नहीं बचे । फ़िल्म की शूटिंग क्वालिटी भी साधारण थी इसलिए किसी ने भी पैसा लगाने से इनकार कर दिया और फ़िल्म डब्बे में चली गयी ।</p><p><br /></p><p> इन सब गतिवीधियों के बीच भी , में नौगावँ से निरन्तर जुड़ा रहा । जिस अलंकार संगीत संघ को मैं अधर में छोड़ आया था उसे पीछे प्रदीप ने सम्हालने की कोशिश की । इस सिलसिले में मैने अपने इस ग्रुप को , गणेश पूजा कार्यक्रमों में , मंच पर कार्यक्रम देने आमंत्रित करवाया । बालाघाट मराठी संस्कृति का नगर था । वहां गणेश उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता था । इन्ही उत्सवों में एक गणेशोत्सव समिति ने आर्केस्ट्रा के रूप में नौगावँ के अलंकार म्यूजिक एसोशिएशन को बुलाया । प्रदीप दलबल सहित बालाघाट आये । </p><p><br /></p><p> किन्तु संयोग ,, ,,की उस दिन घनघोर वर्षा हुई । पूरा मैदान जल से सराबोर हो गया । मंच भींग गया ,,। न जनता आ पाई ,,न कार्यक्रम हो पाया । दूसरे दिन फिर कार्यक्रम हुआ ,,,किन्तु उस भींगे भींगे समां में कोई मजा न आ पाया । ,</p><p> ,' फिर याद कीजियेगा कभी ,,',, ,कह कर प्रदीप अपने दल को ले कर लौट गये । </p><p><br /></p><p> बालाघाट में रहते हुए भी में नौगावँ से निरन्तर जुड़ा रहा । बीच बीच में जब भी आता ,,प्रदीप से , शिवोम से जरूर मिलता । एक चक्कर प्रताप के घर का भी लगाता और एक चक्कर आदरणीय चाचा जी ,,अवस्थी जी के घर का भी । </p><p> इस बीच छतरपुर में आकाशवाणी का केंद्र खुल गया । सारी साहित्यिक और संगीत की गतिवीधियों का आकाशवाणी केंद्र प्रश्रय दाता हो गया । तो नौगावँ की अपेक्षा छतरपुर अधिक महत्वपूर्ण हो गया ।</p><p><br /></p><p> जब भी नौगावँ आता ,,,प्रताप से भाईसाहब के बारे में खोज खबर लेता । प्रताप से ही पता चला कि भाईसाहब मुम्बई में हैं और अपने शोध के साथ साथ मुम्बई फ़िल्म इंडस्ट्रीज़ में अपना स्थान बनाने का प्रयास कर रहे हैं । अब तक भाईसाहब एक उत्कृष्ट स्पेनिश गिटार वादक बन चुके थे । वे मेरी अपेक्षा अधिक सक्षम संगीतज्ञ पहले ही थे । अब मुम्बई जा कर स्टाफ नोटेशन से गिटार बजाने में वे और अधिक पारंगत हो चुके थे । सोने में सुहागा यह था कि उन्हें प्रख्यात बांसुरी वादक और फ़िल्म डिवीजन के संगीत निर्देशक श्री रघुनाथ सेठ का वरद हस्त प्राप्त था । निश्चित ही उनकी दुनिया अब मुम्बई में बसने वाले थी ,,चाहे वे भाभा एटॉमिक सेंटर के साइंटिस्ट बनते अथवा फ़िल्म इंडस्ट्रीज के उत्कृष्ट स्पेनिश गिटारिस्ट ,,दोनों ही स्थितियों में उनका भविष्य उज्ज्वल था । अब मुझ में और उनमें दो अंतर स्पष्ट थे ,,,- वे संगीत के एक विधिक जानकार थे ,,एक इंजीनियर की तरह और में अनुभव से सीखा एक जानकार ,,एक कुशल मिस्त्री की तरह ।</p><p> </p><p> लेकिन दूसरा अंतर मेरे पक्ष में अधिक ।महत्वपूर्ण था । मैं धुनों का सृजक था और वे वादक । तो मुझे संतोष था कि मेरी संगीत की जानकारी विधिक न होने पर भी मेरे लिए तो उपयोगी ही थी । </p><p><br /></p><p> इसी श्रंखला में प्रदीप राव भी नौगावँ छोड़ कर मुम्बई जा पहुंचे ,,एक गीतकार के रूप में अपना भाग्य आजमाने ,,और शिवोम भी,,मेंडोलिन सीखने ।</p><p><br /></p><p> अब मुम्बई तो सबके लिए मंजिल थी । भाईसाहब के लिए भी , प्रदीप के लिए भी , शिवोम के लिए भी ।</p><p> और में और शरद तो एक स्वप्न देख ही रहे थे ,,मुम्बई के लिए ।</p><p><br /></p><p> किन्तु भाग्य हम सबके लिए अलग अलग रास्ते तय करने वाला था । और वे रास्ते तय होने वाले थे हमारे विवाहोत्तर जीवन के टर्निंग प्वाइंट्स से जो शीघ्र ही 1977 बन कर हमारे सामने आने वाला था ।</p><p><br /></p><p>--' सभाजीत ' </p><p><br /></p><p> ,,,,,6,,,,,</p><p><br /></p><p>नौगावँ से बाहर बालाघाट प्रवास करते हुए मेरे सात वर्ष यूँ व्यतीत हो गये जैसे मात्र कुछ दिन ही बीते हों । इन वर्षों में मैं अपने स्वप्न सँजोता रहा और उन्हें मूर्तवत करने की राहें ढूंढता रहा । मैनें ठान लिया था कि जब तक वांछित मुकाम पर नहीं पँहुचूंगा ,,एकाकी ही रहूंगा । </p><p><br /></p><p> इसबीच देवेंद्र चाचाजी बालाघाट आये और अपना दिया हवाईयन गिटार वापिस ले गये। में बिना हवाईयन गिटार बजाए नहीं रह सकता था , इसलिए मैनें कलकत्ता से बुक करवा कर डबलनेक गिटार खरीदा । अब मन पूरी तरह संतुष्ट हुआ कि जो स्वप्न नौगावँ में मैनें कभी देखा था वहः अब जा कर पूर्ण हुआ । </p><p><br /></p><p> संगीत में सृजन की राह ने मुझे अलग ही दिशा में मोड़ दिया । बालाघाट के मेरे कुछ मित्रों ने , मुकुंदभाई त्रिवेदी से प्रेरणा ले कर , एक पूरी फीचर फिल्म बालाघाट में ही बनाने की योजना बना डाली । इस अभियान में में केंद्र बिंदु बन गया । ।मुकुंदभाई ने सलाह दी कि हम लोग 16 एमएम फॉर्मेट में फ़िल्म बनाएं तो मेरे मित्र एक सेकेंडहैंड 16 एम एम कैमरे को जुगाड़ कर खरीद लाये । उससे जुड़ते ही मेरी दिशा फोटोग्राफी की ओर मुड़ गई और संगीत पार्श्व में चला गया । </p><p><br /></p><p> अनन्त आकाश में उड़ने के लिए एक ओर जहां मैं अपने पंख तौल रहा था ,,इधर नौगावँ में मेरे माता पिता मुझे बंधन में बांधने की तैयारी में लगे थे । जैसा कि हर मध्यम वर्गीय परिवार में होता है ,,परिवार के बुजुर्गों में पौत्र को खिलाने की असीम इच्छा जाग उठती है । मेरी दादी अपने पड़पोते को देख कर ' स्वर्ग निसेनी " की तमन्ना करते करते जब स्वर्ग सिधार गईं तो मेरे माता पिता की व्यग्रता तीव्र हो गई । उन्होंने वर्ष 77 के शुरू होते ही विभिन्न कन्याओं के फोटो भेजने शुरू कर दिए । मैनें जब विवाह के लिए स्पष्टतः मना कर दिया तो वे दुखी हो गये और कारण पूछने लगे । </p><p><br /></p><p> कमोबेश यही बात अमर भाईसाहब के साथ घटित हुई । 1977 में वे मुम्बई में रिसर्च के अंतिम चरण में थे और उन्हें एक वर्ष और लगना था । इस बीच फ़िल्म इंडस्ट्री के संगीत क्षेत्र में रघुनाथ सेठ के माध्यम से वे अपनी पैठ बना चुके थे । रघुनाथ सेठ ने उन्हें चार स्पेनिश गिटार का एक पूरा सेट खरीदने की सलाह दी । रघुनाथ सेठ ने कहा कि यदि अमर भाईसाहब यह सेट खरीद लेते हैं तो मुम्बई में फ़िल्म इंडस्ट्री में उन्हें शीर्षस्थ गिटारिस्ट होने से कोई नहीं रोक सकता । उन्हें अपने दोनों हाथों में लड्डू होने का सुखद एहसास होने लगा था । एक ओर ' लेज़र रे ' जैसे महत्वपूर्ण विषय पर महत्वपूर्ण उपलब्धि , दूसरी ओर उनके संगीत के प्रिय साथी गिटार का एक मुक्कमल मुकाम ।</p><p> लेकिन तभी बाबूजी ( अमर भाईसाहब के पिताजी ) ने उन्हें अर्जेंट नौगावँ बुलाया और उन्हें विवाह बंधन में बंधने का आग्रह किया । अमर भाईसाहब अजीब असमंजस में पड़ गये । उन्होंने भी विवाह बंधन में बंधने हेतु अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी ।। उन्होंने एक वर्ष का समय मांगा किन्तु बाबूजी तो जैसे निर्णय ही ले चुके थे कि इस वर्ष ही अब उनका विवाह होगा । । </p><p><br /></p><p> और अंत में बुजुर्गों की इच्छा के सामने हम दोनों को सिर झुकाना पड़ा । अमर भाई साहब का विवाह एक अंतराल में आगे पीछे नवम्बर 77 में हुआ और मेरा दिसम्बर 77 में ।</p><p><br /></p><p> अमर भाईसाहब का तो नहीं पता लेकिन मेरे लिए मेरे माता पिता ने , बिलहरी निवासी एक पंडित जी से पूछा तो उन्होंने कहा मि यदि इनका विवाह 77 में नहीं हुआ तो ये सन्यास भी ले सकते हैं । मैनें जब स्पष्ट मना किया तो उन्होंने पंडितजी से एक ताबीज़ बनवाया । जब मैं 77 में ही रक्षाबंधन में घर नौगावँ आया तो राखी बंधने के बाद मेरी माताजी ने वहः ताबीज़ मेरी भुजा पर यह कह कर बंधवा दिया कि यह तुम्हारा रक्षक है । </p><p><br /></p><p> बाद में एक माह बाद जब उन्होंने एक फोटो भेजते हुए , मुझ से आग्रह किया कि मैं इलाहाबाद आकर कन्या देखने की रस्म तो कर दूं तो मेरे मित्रों ने सलाह दी कि देख आओ , कौन सा विवाह ही होने जा रहा है ,,निर्णय तो तुम्हें लेना है ,,कम से कम माता पिता का मन रह जायेगा तो मैं चला आया । समय बलवान था या ताबीज़ यह तो नहीं जानता किन्तु कन्या की मुंह दिखाई होते ही मेरी मां ने कन्या को और कन्या की मां ने मुझे अंगूठी पहनाते हुए सगाई पूर्ण होने की घोषणा कर दी और मैं मुंह बाए बैठा रहा गया । </p><p><br /></p><p> मजेदार बात यह भी हुई कि विवाह के बाद , इलाहाबाद से बरात के नौगावँ घर पँहुचते ही दूसरे दिन सुबह वहः ताबीज़ बांह से खुल कर कहीं गिर गया और पूरा घर खोज लेने पर भी नहीं मिला ।</p><p><br /></p><p>बहरहाल ,,,,,,।।</p><p><br /></p><p>**</p><p> विवाह हम दोनों के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ । </p><p>विवाह के छह माह बाद ही मेरा स्थानांतरण बालाघाट से लखनादौन हो गया और मुझे अपने सपनों के आकाश को छोड़ कर लखनादौन जाना पड़ा । फोटोग्राफी के नए शौक के कारण मैनें बालाघाट में स्टिल फोटोग्राफी का एक स्टूडियो बना डाला था । नौकरी के कारण , प्रकट में उसे में तो चला नहीं सकता था इसलिए एक मित्र के पिताजी को उसमें बैठने को राजी कर लिया था । किंतु स्थानांतरण होते ही मेरे लिए वहः एक समस्या बन गया । उस स्थिति में मैनें अपने चचेरे भाई को चिरगावँ से बुलाया और चाबी उसे सौंप दी और फिर पलट कर उस ओर कभी नहीं देखा । </p><p><br /></p><p> इसी तरह अमर भाईसाहब को भी अपनी रिसर्च अधूरी छोड़ कर नौगावँ वापिस आना पड़ा । इस परिवर्तन में उनका मुम्बई का वहः वृहत आकाश छूट गया जिसमें वे अनन्त ऊंचाई तक उड़ान भर सकते थे । नौगावँ एक छोटी जगह थी जहां संगीत के व्यवसायीकरण का कोई स्कोप नहीं था । उन्होंने जो रिसर्च की थी उसका उपयोग तो वैज्ञानिक के बतौर किसी बड़े संस्थान में नौकरी के अंतर्गत ही हो सकता था तो नौगावँ लौट के वे क्या कर सकते थे । ,,?? </p><p><br /></p><p> फिर भी वे क्यों लौट आये यह बात उनको जानने समझने वालों के लिए सवाल ही बनी रही । मैनें अपने बचपन से अमर भाईसाहब के बाबूजी को देखा था । वे मितभाषी किन्तु दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे । उनके जैसा ज्ञानी और वकालत में दक्ष कोई व्यक्ति क्षेत्र में तो क्या पूरे प्रदेश में नहीं था । जब भी में प्रताप के घर जाता , बाहर पड़े तख्त पर बहुत से वकील उनसे राय लेने को बैठे मिलते थे । अक्सर वे मेरे जाने पर , मुस्करा कर प्रताप को आवाज़ दे कर बाहर बुला लेते या फिर मुझे अंदर जा कर प्रताप से मिल लेने को कह देते । प्रताप के बताए अनुसार बाबूजी अपने युग के एक फ्रीडम फाइटर रह चुके थे । उन्होंने 1927 में बहुत छोटी उम्र में ही केमिकल इंजीनियरिंग से डिप्लोमा कर लिया था । वे गणित के स्नातक थे और साथ ही उन्होंने लॉ भी कर लिया था । गांधी जी के आह्वान पर उन्होंने अंग्रेजों की नॉकरी छोड़ दी थी और आजीवन फिर गांधी ने के अनुयायी रहे । </p><p> अपनी मेधाशक्ति से उन्होंने सफल वकालत की और सम्पत्ति भी अर्जित की । नौगावँ में उनकी गणना अग्रिम पंक्ति के लोगों में होती थी । उनकी दलीलें , लॉ के जनरल्स में दर्ज होती थीं और मिसाल की तरह उद्धत की जाती थीं । </p><p> अमर भाईसाहब को विज्ञान और संगीत में प्रति उन्मुख करने में उन्हीं का योगदान था । उन्होंने ही भाईसाहब को प्रारंभिक संगीत शिक्षा दिलवाने , घर में ही एक शिक्षक में रूप में व्यवस्था की थी । यही नहीं , सागर और मुम्बई में रिसर्च करने हेतु उन्होंने ही भाईसाहब को उद्यत किया था । </p><p> तब जब भाईसाहब अपने अभियान में पूर्ण सफल हो गये तो उन्हें तुरंत विवाह के लिए और नौगावँ वापिस लौटने को उन्होंने क्यों जोर डाला,,यह सवाल अनुत्तरित ही रहा । </p><p> तब तो नहीं , बाद में प्रताप ने सम्भावित कारण यह बताया की बाबूजी भाईसाहब को बहुत चाहते थे । भाईसाहब के नाम के पीछे सिंह शब्द लगाने का कारण कोई उपाधि नहीं बल्कि , प्रारंभिक सन्तानों के मृत्यु के बाद , देर से भाईसाहब के जन्म होने पर , एक सिख डॉक्टर के कहने पर , रक्षात्मक भाव से सिख गुरु के सिंह शब्द को लगाने की सलाह मांन कर बाबूजी ने अमर नाम मे साथ सिंह शब्द जोड़ा । जब भाईसाहब जन्मे , तब बाबूजी 43 वर्ष पार कर चुके थे । इसलिए 72 वर्ष की उम्र में आते आते वे अब पौत्र का मुख देखने को लालायित थे और कोई समझौता करने को तैयार नहीं थे । वे चाहते थे कि उनकी अचल संपत्ति की देख रेख भी अमर भाईसाहब नौगावँ रह कर करें क्योंकि इतनी सम्पत्ति के होते भाईसाहब उनसे दूर , परदेश रहें यह उन्हें मंजूर नहीं था । </p><p><br /></p><p> कोई भी कारण हो ,, पुत्र प्रेम , अथवा भावनात्मक आधार ,,,इस निर्णय ने भाईसाहब की दिशा ही बदल दी ।। विवाह तो अवश्यम्भावी है ,,वहः समय पर होना निश्चित था ,,जो हुआ ,,किन्तु मुम्बई छोड़ कर नौगावँ लौट आना उनके हित में लिया निर्णय साबित नहीं हुआ ।</p><p><br /></p><p> किन्तु यह तो अधिकांश मध्यमवर्गीय परिवारों की नियति ही है । बड़े पुत्र को अक्सर बुजुर्गों के निर्णय शिरोधार्य करने ही होते हैं । कई बार परिवार और माता पिता के सुख के लिए अपनी आकांक्षाओं को त्यागना ही पड़ता है ।</p><p><br /></p><p> और अमर भाईसाहब इसके अपवाद नहीं थे ।</p><p><br /></p><p>--' -सभाजीत</p><p><br /></p><p>,,,,7,,,,,</p><p><br /></p><p> लखनादौन, बालाघाट नगर की अपेक्षा बहुत छोटा कस्बा था । किन्तु जबलपुर - सिवनी - नागपुर मार्ग पर स्थित होने के कारण एक जीवंत कस्बा था । यहां से सागर जाने के लिए एक मार्ग फूटता था और एक मार्ग घँसौर जाने के लिए भी । </p><p> स्थान परिवर्तन के कारण , अब मुझे एकबार फिर अपरचितो के मध्य अपनी पहचान बनाने का नया काम जिम्मे आ गया । इस बार मेरे विभागीय कार्यशैली में भी एक नया परिवर्तन आ गया था । अब मैं विद्युत वितरण के कार्य से हट कर विद्युत लाइनों के निर्माण के उपसंभाग में आ गया था । यह मेरे लिए नई फील्ड तो नहीं थी ,,किन्तु इसमें मुझे अधिकतम गावों में होने वाले विस्तार कार्यों के निरीक्षण हेतु नगर से हट कर बाहरी स्थलों में ही रहना आवश्यक था । </p><p> किन्तु फिर भी जल्दी ही मैनें उस कस्बे में संगीत प्रेमियों को ढूंढ निकाला । छोटा कस्बा होने के कारण वहां वाद्यवृंद और वादक तो नहीं थे किंतु गायक बहुत थे । वे लोग सप्ताह में , एक अलग कमरे में मिल कर बैठते और गज़लें और फिल्मी गीत गाते । </p><p> वे दिन चित्रा सिंह और जगजीतसिंह के उभार के दिन थे । उनकी कोई नई ग़ज़ल आते ही लोग उस पर अपने अपने स्वरों में गाने हेतु पिल पड़ते । उन गायकों के समाज ने जल्दी ही प्रेमपूर्वक मुझे अपना लिया । वे मेरे डबलनेक गिटार वादन के कायल हो गये और जब कभी में उनके बीच उपस्थित न होता तो वे मुझे घर आ कर पकड़ ले जाते । मेरी पत्नी उस समय नौगावँ में ही , अपने सास ससुर के संरक्षण में रहीं क्योंकि वे मेरी प्रथम सन्तान को जन्म देने वाली थीं । </p><p><br /></p><p> उधर , मुम्बई से वापिस ,नौगावँ लौट कर आने वाले अमर भाईसाहब ने भी अब अपनी अगली पारी खेलने की कोशिश की । करीब दस वर्ष पूर्व नौगावँ छोड़ देने वाले भाई साहब के लिए अब अपना ही गावँ अपरचित हो गया था । उनके युग के स्कूल के साथी तो कब के , अपने दाने पानी की तलाश में घोंसले छोड़ कर उड़ चुके थे । अब समान अधिकार से अंतरंग चर्चा करने वाला उनका कोई सम वयस्क साथी नौगावँ में नहीं बचा था । अलबत्ता ,,संगीत के साथी के रूप में मुम्बई से मेंडोलिन सीख कर लौट शिवोम जरूर वहां उपलब्ध थे । प्रदीपराव भी लौट आये थे किंतु उनका एकोर्डियन खराब हो चुका था और वे एकोर्डियन बजाना छोड़ चुके थे । संगीत में एक ही बड़ी उपलब्धि नौगावँ को थी कि वहां आदरणीय चाचाजी श्री रामरतन अवस्थी जी की सुरीली बेटी अर्चना अभी मौजूद थी । </p><p> वैसे छतरपुर में खुला आकाशवाणी केंद्र अब सभी रचनाकारों और संगीतकारों का आश्रय बन चुका था । युवा वाणी कार्यक्रम के तहत जहां क्षेत्रीय कलाकार अपनी गायन वादन कला को प्रस्तुत करने लगे थे । वहीं इन्ही कलाकारों में छतरपुर के एक हरफन मौला कलाकार ,,सरदार मनोहर सिंह भी तेजी से उभर रहे थे ।</p><p><br /></p><p> जमीनी सम्पदा की जिस देखरेख के लिए बाबूजी ने अमर भाईसाहब को बुलाया था वहः अब टेढी खीर हो चुकी थी । चारों ओर बिखरी जमीन पर लोग अब अवैध कब्जा कर लिए थे जिसे हटाना आसान काम नहीं था । फौजदारी भाईसाहब कर नहीं सकते थे और अदालतों के मुकदमों में फैसले वर्षों तक होने वाले नहीं थे । </p><p> इसलिए उन्होंने अपने प्रिय विषय संगीत को चुना और अलंकार्स ग्रुप के नाम से एक ग्रुप बनाया । उन्होंने संगीत के क्षेत्र में , नौगावँ - छतरपुर की दूरी को पाटने का संकल्प लिया और मनोहर सिंह को राजी किया कि वहः सभी वाद्य यंत्र खरीदे और ग्रुप में हुई आय से अपने वाद्ययंत्रों का किराया अलग से ले ले । मनोहर सिंह ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और जाज़ ड्रम सैट सहित सभी वाद्ययंत्र तथा साउंड सिस्टम को खरीद लिया ।</p><p> </p><p> इस तरह एक अत्यंत सक्षम और मधुर आर्केस्ट्रा ग्रुप आनन फानन में तैयार हो गया । उन्होंने इस ग्रुप के संगीत निर्देशन का काम सम्हाला । वे परफेक्शन के पक्षधर धे । इसलिए उनके निर्देशन में सभी प्रस्तुतियां आकर्षक और मधुर बनीं । अलंकार्स ग्रुप ने जल्दी ही अपनी साख कायम कर ली । यह ग्रुप क्षेत्रीय कलाकारों का ग्रुप बना जिसमें नौगावँ के कलाकार तो शामिल हुए ही ,,ड्रम वादक कामेश अवस्थी और उद्घोषक कुलदीप सक्सेना ने भी सतना से छतरपुर जा कर अपनी प्रतिभा दिखाई । इस वरूप में अर्चना अवस्थी की मधुर आवाज एक निधि थी । मुझसे 20 वर्ष छोटी मेरी सबसे छोटी बहिन मृदुला भी इसमें एक गायक सदस्य बनी ।करीब दो तीन वर्ष तक साथ रहने के बाद इस ग्रुप में मतभेदों के कारण बिखराव आ गया और यह ग्रुप विखंडित हो गया । </p><p><br /></p><p> वर्ष 1979 के सितंबर माह में मेरी बड़ी बेटी ने जन्म लिया । उसी वर्ष एक माह पहले ही अगस्त 1979 में अमर भाईसाहब के घर में उनकी बड़ी बेटी ने जन्म लिया । यह संयोग ही था कि जिस एकमाह के अंतराल में हम लोगों का वर्ष 77 में विवाह हुआ था उसी एक माह के अंतराल में हमारे घर में हमारी पहली बेटियों ने जन्म लिया । आगे भी यही अंतराल बना रहा और मेरे यहाँ दो बेटियां और एक बेटे ने जन्म लिया और उनके घर में भी इसी क्रम में बेटियां और बेटा ,,तीन संतानें आईं ।</p><p><br /></p><p> बड़ी बेटी के जन्म के बाद , में अपनी पत्नी को भी लखनादौन ले गया । हम लोगों ने अपनी नई नवेली गृहस्थी बसाना शुरू किया । अब तक लखनादौन में मेरा वृहत परिचय लोगों से हो चुका था । बालाघाट में रहते हुए एक व्यक्ति ने मुझे फ़िल्म लाइन का जानकार मानते हुए किरनापुर में अस्थाई टूरिंग टाकीज खोलने की इच्छा जाहिर की थी ।</p><p> उन दिनों ही नागपुर में आज के प्रसिद्ध फ़िल्म क्रिटिक श्री जयप्रकाश चौकसे ने सस्ती जनता टाकीज खोलने का बीड़ा उठाया था । वे फ़िल्म टाकीज और फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स के एकाधिकार के विरुद्ध एक बहुत साहसिक लड़ाई लड़ने जा रहे थे । उन्होंने सुपर 8 एम एम के प्रोजेक्टर में एक ज़ूम लेंस लगा कर , 8×12 फ़ीट के स्क्रीन पर व्यावसायिक टाकीज के बराबर प्रोजेक्शन तैयार कर दिया था । इन प्रोजेक्टर्स में फ़िल्म प्रिंट भी सुपर 8 एम एम का लगता था जो सस्ता था । तो जहां व्यावसायिक 35 एम एम की टाकीज 70 लाख में तैयार होती थी वहीं गावों में मात्र एक लाख में जनता टाकीज बनने लगी थी ।</p><p> मैनें नागपुर जाकर चौकसे जी से बात की और तब किरनापुर में टाकीज खोलना तय हो गया । किन्तु बालाघाट से स्थानांतरण के बाद वहः काम अधर में ही रह गया । अब लखनादौन में कुछ उत्साही लोगों ने जनता टाकीज खोलने का मन बनाया तो मैनें उन्हें सहयोग दिया ।</p><p> लेकिन तभी फिर एकबार मेरे लखनादौन से सतना स्थानांतरण का आदेश मुझे थमा दिया गया तो मैनें विभाग में ही बागी बनने का निश्चय कर लिया । वहः आदेश 120 जूनियर इंजीनियर का एक मुश्त आदेश था । मैनें जम कर यूनियन बाजी की । पत्नी और शिशु बालिका को नौगावँ छोड़ा और जा कर जबलपुर में विभाग के विरुद्ध अपनी यूनियन के साथ डट गया । जिस अधिकारी ने आदेश पारित किया था उसके विरुद्ध कर्मचारियों को अनावश्यक सताने और नियमाविरुद्ध गलत मंशा से आदेश देने का केस दायर कर दिया । यह लड़ाई तीन माह तक चली किन्तु मैं एक जुझारू नेता के रूप में अपने इंजीनियर बंधुओं के बीच पूरे विभाग में प्रसिद्ध हो गया । बाद में कोर्ट ने स्थानांतरण को नियोक्ता का अधिकार मानते हुए हमारी अपील खारिज करदी तो मुझे अंततः सतना आना ही पड़ा । लखनादौन केलोगों ने मुझे भावभीनी विदाई दी ।</p><p> सतना आते ही मेरे कर्मचारी बंधुओं ने मेरा फूलमालाओं से स्वागत किया । अब मैं पूरी तरह कामरेड बन गया था । बढ़ी हुई दाढी , कुर्ता और कंधे पर थैला लटका कर में विभाग के ओर छोर नाप चुका था । इसलिए सतना के अधिकारियों ने भी मुझे निंदक नियरे राखिए की नीति के अंतर्गत सतना में ही इंडस्ट्रियल एस्टेट के क्षेत्र का वितरण केंद्र कुलगवां थमा दिया ताकि मेरी गतिविधियां उनकी निगाह में रहे । अब घर से ही मेरी यूनियन गतिविधियां चलने लगीं । एक आया , एक गया ,,जैसे कई साथी अपनी समस्या लेकर आते और में उनका निवारण करता ,,उनके लिए अधिकारियों से जूझ जाता । प्रदेश स्तर में भी में सीडब्ल्यूसी का महत्वपूर्ण सदस्य था इसलिए बाहर से भी पत्राचार चलने लगा । इस आपा धापी में , मैं संगीत , फ़िल्म , फोटोग्राफी , गिटार सब भूल गया । एकतरह से उन दिनों में संघर्ष शील हो गया ।</p><p><br /></p><p> अमर भाईसाहब भी उन्हीं दिनों। संघर्ष शील हो गये थे । एक ओर जमीन जायदाद के केस , दूसरी ओर पारिवारिक दायित्व और तीसरी ओर संगीत ग्रुप का बिखरजाना । तो उन्होंने भी फोटोग्राफी को व्यवसाय बना कर कैमरा उठा लिया । वे साधारण फोटोग्राफर तो थे नहीं । उनके लिए कैमरा डिवाइस नहीं बल्कि वैज्ञानिक उपकरण था । वे फोकल लेंथ , शटरस्पीड , एपर्चर , फ़िल्मस्पीड , डेप्थ ऑफ फील्ड , फ्रेमिंग के समीकरण में निष्णात थे तो उनकी खींची फोटो कुछ अलग हट कर क्लासिक ही होती थीं । उन्होंने अपने परिचितों के विवाह में व्यावसायिक हो कर फ़ोटो खींचने का काम किया । किन्तु व्यावसायिक मानसिकता और गुर तो उनमें था नहीं तो यह काम भी उन्होंने छोड़ दिया । वहः समय स्लाइड फोटोग्राफी और प्रोजेक्टर पर फ़ोटो दिखाने का था । कई बार यदि किसी की स्लाइड वे खींच भी देते तो बिना प्रोजेक्टर तो वहः उपयोगी सिद्ध होती ही नहीं । दूसरे बिना स्टूडियो या शॉप के , फ्री लानसिंग फोटोग्राफी का युग नहीं था । मैगज़ीन फोटोग्राफी के लिए यदि वे उस समय ठान लेते तो दूसरे रघुराय वे जरूर होते । </p><p><br /></p><p> सतना में कामरेडी करते हुए मुझे एक दिन लगा कि मैं अपनी राह से भटक रहा हूँ । ईश्वर ने मुझे इस काम के लिए नहीं भेजा है तो मैंने पुनः अपनी कलात्मक टीम ढूंढना शुरू किया और फिर एक बार उस ओर मुड़ गया । इस बीच मुझे यह भी भान हुआ कि बड़े होने के नाते मेरे अन्य भाई बहिनों के विवाह का कार्य भी मेरे कंधे पर है तो में उनके लिए सुयोग्य वर ढूंढने और उनके विवाह के अभियान में भी जुट गया ।</p><p><br /></p><p> भाईसाहब भी परिवार में बड़े थे ,,तो उन्हें भी यही भान हुआ और वे भी अपने परिवार के लिए इसी अभियान में जुट गए ।</p><p><br /></p><p> इस बीच हमारे बीच के कॉमन शौक गिटार को उन्होंने भी पार्श्व में रख दिया और मैनें भी । किन्तु मुझे फ़िल्म निर्माण हेतु एक अच्छी टीम मिल गयी तो मैं उसे भी साथ साथ करता चला गया जबकि वे फोटोग्राफी और संगीत से विरक्त होते चले गये ।</p><p><br /></p><p>,,,,,8,,,,,,,,</p><p><br /></p><p>,," जीवन की संकरी गलियों में , </p><p> भटक न जाऊं कहीं अकेला ,,!! " </p><p><br /></p><p> बहुत पहले , क्षात्र जीवन में , ये पंक्तियां मैनें , एक गीत के मुखड़े के रूप में लिख दीं थी । उस उम्र में भाव बोध तो था किंतु न तो जीवन की परिभाषा मालूम थी और न संकरी गलियों में भटकने का यथार्थ । </p><p> जब जीवनपथ पर चला तो शहर , गावँ , गली सभी यथार्थ बन कर सामने आए । भाईसाहब के सामने यह यथार्थ प्रश्नचिन्ह बन कर आया ।</p><p> </p><p> अपने प्रारंभिक जीवन में उन्हें कभी असुरक्षा का भाव नहीं जागा । वे एक ऐसे वटवृक्ष की छाया में थे जिसकी छाया के क्षीण होने की कल्पना वे कर ही नहीं सकते थे । किंतु वट वृक्षों की भी एक उम्र होती है , यह विचार वे कर ही नहीं सके । वे घर के बड़े सदस्य थे । उनके जिम्मे कई काम उनकी बाट जोह रहे थे जिनमें घर के शेष सदस्यों की शादी व्याह करना भी उनके जिम्मे थी । नौगावँ वापिस लौटने के बाद आठवर्षों के अन्तराल में उन्होंने जुट कर अपना यह दायित्व निभाया । बहिन के विवाह के बाद उनके पिता बाबूजी का अस्वस्थता के कारण देहांत हो गया और उन्हें तब जमीनी कठोरता का सामना करना पड़ा । </p><p> उन्होंने लोगों की वहः स्वार्थपरिता देखी जो उनके पिता की भलमनसाहत के तले पनपी थी । उनके पास अचल संपत्ति थी लेकिन वहः एक कागज के टुकड़े से ज्यादा मूल्यवान नहीं थी । जीवकोपार्जन हेतु उन्हें वहः अचल संपत्ति कोई नियमित धनोपार्जन में कोई सहायता नहीं दे सकती थी । लोगों ने जमीन को लावारिस समझ कर उस पर अवैध कब्जा कर लिया था । कब्जे हटवाने का अर्थ था ,,एक लंबी अदालती लड़ाई ,, जिसमें जिंदगी खप जाना निश्चित था । </p><p> </p><p> उधर उनकी अपनी खुद की गृहस्थी भी बड़ी हो रही थी । बच्चे बड़े हो रहे थे , उनके विद्यार्जन और उन्हें निश्चित दिशा देना भी उनके दायित्वों में शुमार था । उन्हें यह भी लगा कि विवाहोपरांत वे अपने परिवार को वहः सब कुछ नहीं दे पाए थे जो उन्हें देना चाहिए था । </p><p><br /></p><p> इसलिए उन्होंने सबकुछ छोड़ कर पहले एक नौकरी करना जरूरी समझा । कला के क्षेत्र से धन कमाने का प्रयास करकेँ वे देख चुके थे जो असफल सिद्ध हुआ था । अब नियमित जीवन के लिए नौकरी ही एक विकल्प था इसलिए उन्होंने छतरपुर में , एक क्रिश्चियन स्कूल में नौकरी ज्वाइन कर ली । जो व्यक्ति भारत का एक श्रेष्ठ वैज्ञानिक बनने की क्षमता रखता था , जो खुद एक उत्कृष्ट संगीतज्ञ था , जो दूसरों के लिए आदर्श था , वहः जीवन की संकरी गलियों में फंस कर एक छोटी सी नॉकरी से समझौता कर लिया था ।</p><p> सतना , जैतवारा , नागौद , मैहर की गलियां छानते हुए , वर्ष 1989 में पदोन्नति पाकर ,,, प्रतिनियुक्ति पर मैं एक बार फिर नौगावँ पहुंचा । भाईसाहब उन दिनों नौगावँ में ही थे । वे प्रति रविवार मुझसे बात करने घर आ जाते या फिर में उनके पास पहुंच जाता । इस दौरान हम लोग गिटार से विरक्त हो चुके थे । मैनें तो गिटार बजाना बंद ही कर दिया था ,, उन्होंने भी गिटार नहीं छुआ था । फिर भी बात संगीत की ही होती ।</p><p><br /></p><p> नौगावँ अब वहः नौगावँ नहीं रह गया था । में अपने पुराने साथियों को तलाशता तो या तो उनके पुत्र मिलते या फिर एक्का दुक्का वो लोग , जो निरन्तर मेहनत करकेँ थक चुके थे । नौगावँ में विद्युत सोसाइटी षड्यंत्रों और भरस्टाचार का अड्डा बन गई थी । अपनी आदतों से मजबूर एक बार फिर में यहां भिड़ गया । लेकिन इस बार मुझे उन लोगों से सामना करना पड़ा जो अपने थे और जो कभी सहपाठी भी रह चुके थे । इन विपरीत परिस्थितियों में मैं अपने निवेदन पर नौगावँ से स्थानांतरण ले कर रीवा जिले के दस्यु ग्रस्त क्षेत्र त्योंथर में आ गया । </p><p> मैनें उनदिनों अनुभव किया कि भाईसाहब विचिलित हैं । उनका संगीत क्षेत्र एकांत हो गया था । शिवोम वहां से दुर्ग रायपुर जा चुका था । मनोहर की छतरपुर में संगीत वतिविधियाँ शून्य थीं । वे धीरे धीरे खुद में सिमट रहे थे । किसी की परामर्श सुनना पसंद न करते । उनके पास विज्ञान का समुद्र था वे सबको बांटना चाहते थे लेकिन ग्रहण करने वालों का उनके पास अभाव था । उनमें एक छटपटाहट थी ,,,किसी ऐसे व्यक्ति के साथी संगी की ,, जो उनकी रुचियों से सांझा कर सके लेकिन वैसा व्यक्ति उनके पास नहीं था ।</p><p><br /></p><p> त्योंथर आने के दो वर्षों बाद में रीवा आ गया और 12 वर्ष रीवा में रहा । 2004 में स्थानांतरित हो मंडला गया और 2009 में रिटायर हो कर सतना में स्थित हो गया ।</p><p> इस दौरान दो तीन बार नौगावँ जाना हुआ । भाईसाहब कभी मिले ,,कभी नहीं मिले । असल में वे छतरपुर छोड़ कर इंदौर में एक स्कूल में एडमिनिस्ट्रेर के पद पर नौकरी करने चले गये थे और वहीं रम गये थे । अब फोन पर उनसे बीच बीच में वार्तालाप हो जाती थी । </p><p> इसी बीच छोटी बेटी के विवाह के सिलसिले में जबलपुर जाते हुए वे मेरे यहाँ रात में सतना रुके । मेरी पत्नी ने उनके लिए पराठे बनाये तो उन्होंने बताया कि यह उनके लिए निषेध है । तेल घी उन्हें नुकसान कर रहा है और उन्हें आंतों में कष्ट होता है ,,खाना नहीं पचता । तो मेरी पत्नी ने उन्हें तुरंत गर्म रोटी बना कर खिलाई । उन्होंने हार्दिक खुशी जाहिर की और उन्हें आशीष दिया । देर रात वे कई मुद्दों पर चर्चा करते रहे जिनमें उनके पारिवारिक मुद्दे भी शामिल रहे ।</p><p><br /></p><p> इस बीच वे मेरे फेसबुक मित्र बन गये । कई पोस्ट पर वे बेबाक टिप्पणी करते । मुद्दों पर तर्क वितर्क होता । तभी एक बार मुझे नौगावँ रामलीला कमेटी ने विगत में राम का अभिनय करने के सन्दर्भ में , सम्मानित करने बुलाया तो मैं रात में प्रताप के घर रुका । संयोग से भाईसाहब भी वहीं थे । उस रात हमने एक बार कम्प्यूटर पर फिर चैट एटकिन्स को मिलकर सुना । भाइसाहब देर रात तक और अन्य कई विदेशी गिटारिस्टों के गिटार वादन को सुनवाते रहे ,,उनकी विशिष्टताओं की व्याख्या करते रहे । उन्हें बहुत दिनों बाद मैं मिला था तो उन्होंने मुझे बताने समझाने का कोई मौका न छोड़ा ।</p><p><br /></p><p> दो तीन वर्षों बाद अचानक उन्होंने बताया की उन्हें कैंसर डिटेक्ट हो गया है । किन्तु डरने की कोई बात नहीं वे ठीक हो जाएंगे । मुझे धक्का लगा किन्तु आशा भी बंधी के वे ठीक हो ही जाएंगे । अब हम लोगों के बीच बातचीत की फ्रीक्वेंसी बढ़ गई । में बीच बीच में उनकी खोज खबर लेने लगा । उन्होंने कहा कि डॉक्टर के कहने पर उन्होंने अपना गिटार झाड़ पोंछ कर निकाल लिया है । वे अब प्रफुल्लित रहने के लिए निरन्तर गिटार बजाएँगें तो मुझे प्रसन्नता हुई और भय भी जागा कि डॉक्टर ने ऐसा क्यों कहा ।</p><p><br /></p><p> अब जब भी वे फेसबुक में कोई संगीत की अथवा अपने बजाए गिटार की पोस्ट डालते ,,तुरत फोन करके कहते कि सभाजीत इसे सुनो ,,और अपनी टिप्पणी दो । यदि मुझे एकाध दिन विलम्ब हो जाता तो वे इस बीच मुझे दो तीन बार याद दिलाते की मुझे तुम्हारी टिप्पणी का इंतज़ार है । बदलेमें में भी उन्हें अपने लिखे लेख भेजने लगा । देश की सामाजिक स्थिति से भी वे बहुत विचलित होते तो फोन करके उन मुद्दों पर बात करते । </p><p><br /></p><p> कैंसर उन्हें दिनों दिन ग्रस रहा था लेकिन अपने दर्द को वे किसी पर उजागर नहीं होने दिए । वे मौका ढूंढते की अपने संचित ज्ञान विज्ञान को वे किस से शेयर करें और वे किसे सौंपें । मेरे लेखों पर वे दिल खोल कर टिप्पणी करते । आडम्बरी देवी भक्तों पर लिखा ,," सिंहवाहिनी " लेख उन्हें बहुत पसंद आया । </p><p><br /></p><p> एक बार मैनें उन्हें नारी विमर्श पर लिखा एक लेख " सीता वनवास " भेजा । जब प्रतिक्रिया जानने को फोन लगाया तो मैनें देखा वे फोन पर सुबक रहे थे । रुंधे गले से वे बोले --' सभाजीत । में इसे पढ़ते हुए रो रहा हूँ । तुम कुछ देर बाद बात करना । </p><p> </p><p> में हतप्रभ रह गया । मुझे आश्चर्य लगा कि जो व्यक्ति कुछ वर्षों से कैंसर के भीषण दर्द को भीतर ही भीतर झेल रहा है वहः मानवीय संवेदनाओं को झेलने में कितना असमर्थ है ,,?? </p><p><br /></p><p> पाँच वर्षों तक कैंसर झेलते हुए भी उन्होंने संगीत को अपनी श्रेष्ठ भेंट,,, गिटार वादन के रूप में सौंपी । उनके पास खुद का अच्छा गिटार नहीं था । उन्हें दूसरों के गिटार से संतोष करना पड़ा । किन्तु उन संकरी गलियों से गुजरते हुए भी भटके नहीं । उन्होंने संचित ज्ञान , विज्ञान , और कला को अविरल बहने दिया ,,दूसरों की प्यास बुझाने हेतु ।</p><p><br /></p><p> सबको मालूम था कि उनका जाना निश्चित है किंतु सब चाहते थे कि वे न जाएं । उन्होंने भले ही कुछ कमाया नहीं किन्तु वे मुक्त हस्त से वहः सब बांट देना चाहते थे जो उन्होंने संचित किया था । दैव योग से में अपने कुटुंब का सबसे बड़ा पुत्र हूँ । लेकिन मैं फिर भी अपने से बड़े एक भाई को सदा ढूंढता रहा ताकि उससे कुछ ले सकूं । </p><p> </p><p> अमर भाईसाहब मेरे अचेतन मन में भी सदा स्थित रहे ,,उसी बड़े भाई की तरह जो शायद मुझ जैसा ही था ।</p><p> आज भी लगता है फोन आएगा ,,,और वे कहेंगें ,</p><p> ,,,. जल्दी से एक निवेदन सुन लो सभाजीत ,,! और फिर घण्टो बतियाएंगे , निर्देश की शैली में अपनी बात कहते हुए ,,!! " </p><p><br /></p><p>*********</p><p><br /></p><p> मध्यमवर्गीय परिवार में प्रतिभाएं जन्मती हैं किंतु प्रारब्ध में अपने कंधों पर हजारों दायित्व लिए । उस पर भी घर के बड़े होने के नाते उनके हिस्से में तथाकथित ' बड़प्पन ' हाथ आता है । वे इस बड़प्पन को निबाहते हुए अपने दर्द भी अपने से छोटों से शेयर करने से परहेज केरते हैं । विडम्बना यह भी है की परिवार के बुजुर्गों और माता पिता को भी इन बड़ों से ही उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति की आशा रहती है ।</p><p> बड़े होने के नाते पुरुष को विवाहोपरांत कुछ वर्षों तक द्वंद में रहते हुए , एक हाथ में शेष परिवार का स्नेह , और एक हाथ में नवागत पत्नी का प्रेम , आकांक्षाएं सम्हाल कर , संतुलन के साथ एक पतली रस्सी पर चलना पड़ता है । यह रस्सी आर्थिक आधार की होती है जिस पर संतुलन रखे चलना सम्भव है । </p><p> लेकिन इस कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना बहुत बड़ी चुनोती है । इस परीक्षा में अक्सर खुद की आकांक्षाएं बलि भी चढ़ जाती हैं ।</p><p><br /></p><p> यह परिणीति दुखद है ,,किन्तु स्वाभाविक भी । मेरे मित्र शरद श्रीवास्तव ने लिखा है ,,</p><p><br /></p><p>" ,,कैसा लगता न जाने ,,?? </p><p> किसी मे कंधे पर लद कर बड़े हुए ,</p><p> फिर हम पैरों पर खड़े हुए ,,!</p><p> अपने कंधे पर नया बोझ लदवाने,,।।</p><p><br /></p><p> नयन की परिधि से बड़ा ,,</p><p> प्रश्नचिन्ह सम्मुख खड़ा ,,</p><p> क्या जीने के नाम जिएंगे ,,</p><p> बीता क्रम दोहराने ,,??</p><p><br /></p><p> </p><p> और उत्तर खुद कवि ही देता है --</p><p><br /></p><p> दिन रात धरा भी दोहराती,,</p><p> पर परिक्रिमा भी कर जाती,</p><p> काश धुरी पर मैं भी घूमूं ,</p><p> नया पृष्ठ जुड़वाने ,,।।</p><p><br /></p><p> और शायद यही जीवन है और यही नियति भी ।।</p><p><br /></p><p> - " सभाजीत " </p><p><br /></p><p> !! इति !!</p><p><br /></p><p><br /></p>sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-29546904983406302312020-09-05T21:59:00.004-07:002020-09-17T16:51:06.504-07:00<p> देवदूत </p><p>******</p><p>जीवन में कुछ मित्र अचानक देवदूत बन कर हमें सीख दे जाते है । क्या उन्हें ईश्वर भेजता है या वे अपने विवेक के कारण हमारी सहायता कर जाते हैं यह चिंतन का विषय है </p><p> 1987 में , मेरी पोस्टिंग नागौद नगर वितरण केंद्र के अधिकारी के रूप में हुई ।</p><p> नागौद में एक मैदान में , बसन्त पंचमी के अवसर पर एक साप्ताहिक मेला लगता था । इस मेले का आयोजन नगरपालिका नागौद के तत्वाधान में होता था । </p><p> मेला जनता के मनोरंजनार्थ लगता था लेकिन नगरपालिका द्वारा संचालित होने के कारण उसकी कमेटी के पूरे सदस्य सरकारी थे , जिसमें तहसीलदार , सीएमओ, जेलर , थानेदार , प्रमुख होते थे ।</p><p> नागौद ठाकुर प्रधान बस्ती है । वहां अधिकतम परिहार ठाकुर रहते हैं । संयोगवश उन दिनों सीएमओ , आरआई , जेलर , थानेदार सभी ठाकुर वर्ग से थे । इस तरह मेला आयोजक समिति में अधिकतम परिहार ठाकुरों का वर्चस्व था ।</p><p> जहां बहुसंख्यक हों और पावर हो वहां निरंकुशता जन्म लेती ही है । इसलिए इस मेले को जश्न की तरह मनाने के लिए अवैध धन उपार्जन का मार्ग ढूंढ ही लिया गया । मेला ग्राउंड तो नगरपालिका ही था तो उसमें कई साल पहले बे वजह स्ट्रीट लाइट के नाम पर नगरपालिका ने पूरे मैदान में खम्बे गड़वा लिए और मेले में लगने वाली समस्त दुकानों , खेल तमाशे वाले व्यवसायियों की विद्युत व्यवस्था का जिम्मा खुद ले लिया । </p><p> नगरपालिका , विद्युतमण्डल को एक टेम्परेरी कनेक्शन का आवेदन देती और एक विद्युत मीटर मैदान के बाहर लग जाता जिसमें हो कर विद्युत सप्लाई मैदान में नगरनिगम द्वारा बिछवाये गये स्ट्रीट लाइट के अंतर्जाल में फैल जाती और तब नगर निगम वाले उन तारों से हुक फंसाकर दुकानदारों को खुद बिजली देते जिसके रेट अपने अनुसार बसूलते । जैसे प्रति बल्ब / प्रति वाट्स / प्रति दिन । इस हिसाब से 60 वाट्स के बल्ब का अगर एक दिन का किराया वे 50 रु0 लेते तो 100 वाट्स के बल्ब के लिए 100 रु0 प्रतिदिन ।</p><p> </p><p> विचित्र लीला थी । </p><p> </p><p> मेरी पोस्टिंग से पहले हर वर्ष यह निर्विघ्न रूप से सरकारी चोले पहन कर खेली जा रही थी । बिजली विभाग अपने मीटर में आई रीडिंग के आधार पर धार्मिक मेले के रेट से बिल ले लेता था जबकि अंदर के मैदान में लगी दुकानों को दस गुने रेट पर अवैध ढंग से बिजली मिलती । </p><p> वर्षों से हो रही इस सामूहिक लूट के विरोध की किसी ने कभी शिकायत नहीं की क्योंकि भय था कि उनकी मार पिटाई भी हो सकती है ।</p><p> अब यह मेरा दुर्भाग्य था या उन आयोजकों का कि मेरी पोस्टिंग वहां हुई और मेला लगने का अवसर आ गया ।</p><p> नगरपालिका वालों ने परम्परागत रूप से मेरे दफ्तर में मेले को विद्युत प्रदाय करने हेतु आवेदन दिया । उनके जाने के बाद ही आठ दस दुकानदार आ गए । उन्होंने मेले की अंदरूनी लीला कथा बताते हुए हाथ जोड़ते हुए निवेदन किया कि मैं उन लोगों को इस अवैध लूट से बचाऊं । मैनें पुराने रिकार्ड चैक किये तो पाया की मीटर तो अक्सर जल गए थे और विभाग को कोई राशि मिली ही नहीं थी । जबकि दुकानदारों के हिसाब से 100 वाट्स के तीन बल्बों में आधार पर / सात दिनों की बिजली खपत की राशि 300×7 "= 2100 रुपये प्रति दुकान नगरपालिमका कर्मचारियों द्वारा डंडे के जोर पर ली गई थी ।</p><p> मैंने अनुमान लगाया कि मेले में तीस दुकानदार से प्रतिदिन 300 रुपये के आधार पर 9000 रुपया प्रतिदिन वसूला गया तो आखिर यह कहां गया ,,?? ,,,</p><p>,,,क्या नगरपालिका ने अपने विकास कार्य में खर्च किया होगा ,,??? " </p><p> उत्तर में दुकानदारों ने बताया कि मेले के पीछे व्यवस्था हेतु लगे टेंट में , आयोजकों का देर रात तक जमावड़ा रहता था जिसमें निर्बाध शराब और मांसाहार का दौर निरन्तर चलता था ।</p><p> मैनें निश्चय किया कि यह कुचक्र में जरूर तोडूंगा । शायद ईश्वर ने मुझे इसीलिए यहां भेजा है । </p><p> मैनें दुकानदारों से कहा ,,आप अपने अपने कनेक्शन सीधे विद्युत मंडल से लो । आप लोग आवेदन करो ,,मैं आपको अपने विद्युत पोल से मीटर लगा कर कनेक्शन दूंगा । इस तरह आप अनाप शनाप हो रही लूट के शिकार नहीं बनोगे ।सब ने तुरन्त आवेदन दे दिए ।</p><p> यह सीधा जंग ए एलान था । उन के विरुद्ध जो संगठित थे , सरकारी पावर में थे , किन्तु लुटेरे थे । अपने अवैध हित को अधिकार मानते हुए वे तुरन्त कार्यालय आये और मेज पर हाथ मारते हुए बोले --' मेले में जो वर्षों से चला आ रहा है वही होगा । आप अलग से दुकानदारों को कनेक्शन नहीं दे सकते !" </p><p> मैनें भी कमर कस ली । मैनें कहा -</p><p>,,,," बिजली वितरण मेरे विभाग का अधिकार है ,,आप का नहीं । में उन्हें जरूर कनेक्शन दूंगा जिन के साथ अन्याय हो रहा है ! " </p><p> वे मुझे टेढी निगाहों से घूरते हुए यह कह कर चले गये ,," यहां हरिश्चंदयाई नहीं चलती ,,,,!! हमारे आड़े आओगे तो भुगतोगे ,,!" </p><p> और सचमुच मुझे भुगतना पड़ा । मेरे ऊपर जानलेवा आक्रमण हुआ और मैं मौत के मुंह में जाते हुए बचा ।</p><p> न्याय और अन्याय की लम्बी लड़ाई शुरू हो चुकी थी । </p><p> शैतानों की नई नई फ़ौज उनके आक्रमण में प्रकट होना शुरू हुई तो देव दूतों की सौम्य मित्र श्रृंखला मेरे हित में ।</p><p> कथा अभी खत्म नहीं ,, बल्कि शुरू हुई थी ।</p><p><br /></p><p>( क्रमशः ।)</p><p><br /></p><p> --' सभाजीत</p><p>---2---</p><p>वे मुझे धमकी दे कर चले गए ।</p><p>लेकिन मैनें निश्चय कर लिया ,,अब जो हो सो हो ,,यह जंग तो लड़ूंगा ही ,,।</p><p> मैनें सभी दुकानदारों के आवेदन स्वीकृति के लिए मैहर सम्भागीय कार्यालय भेज दिए ।</p><p> दूसरे दिन ही सम्भागीय यंत्री ने फोन पर मुझे तलब किया । शायद उन्हें भनक लग गई कि मैं किसी परेशानी को बुलावा दे रहा हूँ ।उन्होंने कहा -" जब आज तक कोई इस पचड़े में नहीं पड़ा तो तुम क्यों पड़ रहे हो ?? वहां दादागिरी का साम्राज्य है ,,कुछ भी हो सकता है ,,जैसा चल रहा है चलने दो । " </p><p> लेकिन मेरी संघर्ष शील प्रवत्ति जाग चुकी थी । मैनें उन्हें बताया कि यह गरीब दुकानदारों से हो रही लूट ही नहीं है विभाग के राजस्व के प्रति डकैती है । में तो कनेक्शन दूंगा ही ,,चाहे आप सवीकृति दो या न दो ।</p><p> सम्भागीय यंत्री जैन थे । स्वभाव से मूल्यों के संरक्षक ।</p><p>उन्होंने कहा -" ठीक है में स्वीकृति दे रहा हूँ मगर सम्हल कर रहना । " </p><p> लेकिन क्या दांतों के बीच रहते हुए कोई सम्हल सकता था ?? </p><p><br /></p><p> उसी शाम स्टाफ ने कनेक्शन करने शुरू कर दिए । दूसरे दिन सुबह उद्घाटन था । कोई स्थानीय मंत्री आने वाले थे ।</p><p> उन दिनों ब्लैक एंड व्हाइट टीवी का जमाना था । मेरे घर में टीवी था , जिसका एंटीना पताका की तरह मुहल्ले में सबसे ऊंचा था । चूंकि उस दिन कोई फ़िल्म आने वाली थी तो साफ दिखाई देने के कारण , मुहल्ले भर की महिलाएं मेरे यहाँ टीवी देखने आ जमीं ।</p><p> आफिस से घर आया तो पहले कमरे में ही मजमा लगा देख कर लौट लिया । सोचा मेले ग्राउंड में हो रहे कनेक्शन देख लूं तो उधर ही चल पड़ा । रास्ते में एक व्यक्ति जो विद्युत ठेकेदार था और जो दुकानदारों के लिए टेस्ट रिपोर्ट देने वाला था , मिल गया और साथ हो लिया ।</p><p> सूर्यास्त होने वाला था । तभी स्थल पर नगरपालिका के सीएम ओ अपने कुछ साथियों साथ रुक्ष मुद्रा में आये । </p><p> उन्होंने कहा -- आप हमारी ज़मीन पर किसी अन्य को , बिना मेरी परमीशन के कनेक्शन नहीं दे सकते । दुकानदारों के कनेक्शन रोक दें ! " </p><p> में कहां मानने वाला था ,,! मैनें कहा सार्वजनिक मेला है ,आप भी अस्थाई कनेक्शन ले रहे हैं दूसरे भी ले रहे हैं । आपने कौन सा भू अधिकार पत्र दिखाया है ,,? " </p><p> वे लोग नाराज़ हो कर मुझे घूरते हुए वापिस चले गए । </p><p> मैनें ध्यान नहीं दिया । कनेक्शन होते रहे । सूर्य डूब गया और झुटपुटा हो गया ।</p><p> तभी एक ओर से , अंधेरे में कुछ लोग हाथों में डंडे और लोहे के रॉड लिए उभरे । उन्होंने पास आकर कहा --</p><p>" न बे शर्मा ,,! तोखऱ बतायदिये रहे कि बीच में टांग न अड़ा,, फिर भी तैं नइं मानीं ,,! </p><p> में कुछ समझता इससे पहले मेरी पीठ पर डंडे का जोरदार वार पड़ा । कुछ सम्हलता ,,इससे पहले कंधे पर रॉड का दूसरा वार पड़ा । किसी ने मुझे ,,मां बहिन की भद्दी गाली देते हुए कमर पर जोरदार लात मारी । में बैलेंस न सम्हालपाने के कारण औंधे मुंह जमीन पर गिर पड़ा । </p><p> अब मेरी छाती कमर पर जूतों के टो की मार पड़ने लगी और कंधे पर डंडे की । पैरों पर रॉड लगने लगा । </p><p> मुझे तब एक ही बात समझ में आ पाई की मुझ पर गुंडों ने प्राणघातक हमला कर दिया है । दिमाग ने कहा कि हर हालत में में सिर को बचाऊं वरना वहां चोट पड़ने पर सिर फुट जाएगा । </p><p> तो मैंने अपने दोनों हाथों से अपने सिर को ढक लिया लेकिंन कब तक ढकता ,,?? </p><p> रॉड के एक प्रहार से हांथ कांप गये ।</p><p> दूसरा प्रहार होता उससे पहले कोई मेरे ऊपर मुझे ढकता हुआ लेट सा गया । </p><p>ये ठेकेदार जैसवाल था । </p><p>उसकी आवाज मुझे सुनाई दी कि " अब बस करो लाल साहब ! ये मर जायेगा तो बहुत दिक्कत हो जाएगी ।" </p><p> न जाने क्या हुआ कि वे लोग जैसवाल की बात सुन कर मुझे गाली देते हुए एक ओर चले गये ।</p><p> अब पूरी तरह अंधेरा हो चुका था । तभी जो लाइन मेंन कनेक्शन कर रहे थे और जो मेरे ऊपर हमला होते ही भाग खड़े हुए थे उन्हें जाते देख कर छुपते छुपाते मेरे पास आ गये । </p><p> अब जैसवाल , और दो लाइनमैनों ने मिल कर मुझे उठाने की कोशिश की । मेरी शर्ट खून से भींग चुकी थी और कनपटी के थोड़े ऊपर हुए घाव से खून बह कर मेरी पेंट भिंगोने की कोशिश कर रहा था । जैसवाल एक गलजन्दा साथ रखता था उसे उसने मेरे घाव पर कस कर बांध दिया ताकि खून न बहे । </p><p> लाइनमैनों ने लगभग मुझे टांग लिया और तेज डग बढाते मेरे आफिस की ओर चले । तभी मेरे एक साथी सहायक यंत्री पिकअप ले कर आ गए । </p><p> किसी तरह हम लोग अस्पताल की ओर बढ़े तो किसी ने कहा। पहले थाना चलो ,,,सबसे पहले पोलिस रिपोर्ट लिखेगी तब एम एल सी होगी ।</p><p> लिहाजा हम लोग थाने की ओर मुड़ गये । रास्ते में मेरे साथी यंत्री ने पूछा ," आप ठीक तो हैं न " ?? तो मैनें हां में सिर हिला दिया । </p><p> थाने पहुंच कर जैसे ही हम थाने के अंदर घुसे तो देखा --नगरपालिका के आर आई श्री सिंह अपने हाथ को थानेदार को दिखा कर मेरे विरुद्ध एक एफ आई आर लिखवा रहे थे कि मैनें चाकू से , मेला ग्राउंड में , उनकी हथेली पर वार किया है " ! उनकी हथेली थोड़ी सी कटी हुई थी जैसे खुद किसी ने अपनी हथेली को ब्लेड से काट लिया हो । " </p><p> अब एक एफ आई आर लिखी जा रही थी तो हमें चुपचाप इंतज़ार करने को कहा गया । </p><p> मुंशी को जैसे कोई जल्दी ही नहीं थी । वहः रुक रुक कर बार बार सिंह से पूछ कर धीरे धीरे रिपोर्ट लिख रहा था जबकि वहः देख चुका था के मेरे कपड़े खून से सने हैं ।</p><p> मेरे साथी यंत्री बिफर गये । उन्होंने थानेदार से कहा कि आप रिपोर्ट लिखो न लिखो ,,कोई बात नहीं ,,हमारा साथी खून से लथपथ है हम अस्पताल जा रहे हैं ,,,लेकिन याद रखो,,जिस बिजली के उजाले में तुम इनकी एफ आई आर तन्मयता से लिख रहे हो वहः एक घण्टे बाद बन्द हो जाएगी ।" </p><p> उन्होंने मिल कर मुझे उठाया और कमरे से बाहर निकल आये ।</p><p> तभी थानेदार ने एक सिपाही को एक चिट लिख कर थमाते हुए कहा कि वहः हम लोगों के साथ अस्पताल जा कर एमएलसी करवा दी ।</p><p> थानेदार की और मुंशी की नाम पट्टिका देख कर मुझे स्पष्ट हो गया कि ये सब सिंह हैं और सिंह की पहली एफआईआर लिखने का महती कर्तव्य निर्वाह रहे हैं ।</p><p> मुझे मालूम था कि थानेदार महोदय भी तो मेला आयोजन समिति के सदस्य थे जो देर रात तक मेला ग्राउंड पीछे बने टेंट में जश्न का लुफ्त उठाते थे ।</p><p> </p><p> थाने से बाहर निकलते हुए मुझे एक हल्का चक्कर आया ,,लेकिन साथियों ने सम्हाल लिया और हम पिकप में बैठ कर अस्पताल की ओर चल दिये ।</p><p><br /></p><p> क्रमशः ,,,।</p><p>--3----</p><p><br /></p><p> आगे आगे मोटर साइकिल पर सिपाही और पीछे पीछे पिकअप में हम चार लोग अस्पताल की ओर चले ।</p><p> जिस जैसवाल ठेकेदार ने मुझ पर लेट कर मेरी जान बचाई थी उसने थाने में आने से पहले ही हाथ जोड़ कर मुझ से विदाई ले ली थी । </p><p> उसने कहा था कि न जाने किस प्रेरणा से वहः मुझ पर अचानक लेट गया था और उसने हमलावरों को मना किया किन्तु अब आगे खुले रूप में वह वहां के ठाकुर समुदाय से विरोध मोल नहीं लेगा । उसने हाथ जोड़ कर मुझसे अनुनय की कि एफ आई आर में में उसको गवाह न बनाऊं क्योंकि वह उन लोगों के विरुद्ध गवाही देने कोर्ट नहीं आएगा और आ भी गया तो वहः कुछ भी देखने से इनकार कर देगा ।</p><p> बात मेरी समझ में आ गयी थी इसलिए मैनें उस रक्षाकर्ता को उसके अनुनय पर गवाह के रूप में एफ आई आर में उल्लेखित न करने का मन बना लिया ।</p><p> अस्पताल में जैसे डॉक्टर हम लोगों का इंतज़ार ही कर रहा था । अस्पताल छोटा था और उसके डॉक्टर सतना से अप डाउन करते थे । वार्ड खाली थे । सिर्फ कुछ ग्रामीण महिलाएं जो गावँ नही लौट सकती थी वे ही उन वार्डों में थीं ।</p><p> डॉक्टर ने मुझे ओटी में लिटाया और अकेले ही मरहम पट्टी में जुट गया । मेरा चेहरा बहुत बुरी तरह सूज चुका था । उंगलियां सूज गई थी उठते बैठते नहीं बन रहा था ।</p><p> डॉक्टर ने मेरी कनपटी का घाव देखा ,,उसने चिमटी से घाव में फंस गई बांस की पतली डंडियों को निकाला । फिर गम्भीरत्ता से बोला - " बाल बाल बच गए शर्मा जी । कनपटी से आधा सूत ऊपर चोट लगी । दूसरी चोट लगती तो आप स्थल पर ही मर सकते थे । " </p><p> उसने दवा लगा कर पट्टी बांधी और फिर बोला - " इस चोट के अनुसार मुझे आपको अस्पताल में ही भर्ती कर लेना चाहिए । लेकिन मैं आपको सलाह देता हूँ कि आप घर में ही आराम करें । यहां न रुकें । " </p><p> मैनें पूछा - " क्यों ,,? " </p><p> उसने धीरे से कहा - " यहां आपको खतरा है " </p><p> मैंने पूछा - " कैसा खतरा ,,?? " </p><p> उसने कहा --" जान का खतरा ।,,रात में आपको उठा कर लोग ले जा सकते हैं ,,आपके साथ कुछ भी हो सकता है । "</p><p> यहां पुलिस वाले एक सिपाही की ड्यूटी लगा देंगें । एक चौकीदार हमारे अस्पताल का भी रहता है लेकिन वहः किसी काम का नहीं ।</p><p> पहले भी एक दो घटनाएं हो चुकी हैं ,,जो बाद में रफा दफा हो गईं !</p><p> मैनें डाक्टर से नाम पूछा तो उसने बताया ,," राकेश शर्मा " !</p><p> पट्टी बंधवा कर मैं व्हील चेयर पर बाहर आया तो डॉक्टर ने सिपाही को कहा ,,चोटें देख लीं है रिपोर्ट सुबह बना कर भिजवा दूंगा ।" </p><p> मैनें अपने साथी यंत्री से स्लाह ली उसने भी कहा - " घर में ही रहिए । वहां घर वाले साथ रहेंगे ही ,,वहां दो लाइन स्टाफ भी रख देंगें । " </p><p> हमने घर में रहने का निश्चय किया और घर की ओर चल दिये ।</p><p> रास्ते में ही मेरा दफ्तर पड़ता था । </p><p>इस बीच मेरे ऊपर हुए आक्रमण की खबर सतना पहुंच चुकी थी ।</p><p> मैं अपनी यूनियन का सर्किल सेक्रेट्री था । मैनें सतना की अन्य विभागीय यूनियनों से सम्बन्ध बना कर वृहत रैलियां निकाली थीं । विभाग की अन्य यूनियन के पदाधिकारी मेरे आह्वान पर एक हो कर कई प्रदर्शन कर चुके थे ।</p><p> सतना आने से पूर्व में विद्युत मंडल की सशक्त जे ई यूनियन का सी डब्ल्यू सी मेम्बर रह चुका था । नीतिगत निर्णयों में मेरी सलाह अहम हुआ करती थी ।</p><p> एक समय था कि मैं कामरेड की तरह , दाढी बढ़ाये , झोला कंधे पर लटकाए,,आज यहां तो कल वहां घूमता था ।अपने साथियों के न्याय के लिए में किसी भी बड़े से बड़े अफसर से भिड़ जाया करता था ।</p><p> लिहाजा जैसे ही खबर सतना पहुंची , मेरे साथी सक्रिय हो गये। तुरन्त ही ज्ञापन बना ,,कलेक्टर , एसपी को सौंपा गया और नतीजा यह हुआ कि नागौद के पुलिस सर्किल इंस्पेक्टर को केस की रिपोर्ट देने को कहा गया ।</p><p> जब मैं घर की ओर बढ़ा तो मेरे आफिस के पास ही सर्किल इंस्पेक्टर साहब और थानेदार खड़े मिले । अब उन्होंने हम लोगों से रिक्वेस्ट की की कृपया अपनी रिपोर्ट लिखवा दें ।</p><p> लेकिन मेरी हालत खराब थी लिहाजा मैनें मना कर दिया । तब उन्होंने कहा कि अब थाना जाने की जरूरत नहीं ।आप अपने दफ्तर में ही बैठ कर तीपोर्ट लिख दें वही एफ आई आर मां ली जाएगी ।</p><p> मैनें दफ्तर में बैठ कर उन सब लोगों के विरुद्ध नामजद रिपोर्ट की जो नगरपालिका के पदाधिकारी थे और जिन्होंने मुझ पर आक्रमण किया था ।</p><p> दरअसल जब आर आई सिंह थाने में मेरे विरुद्ध रिपोर्ट लिखवा रहे थे तो उन्हें घेर कर वे सब लोग वहीं खड़े थे जिन्होंने मुझ पर हमला किया था । मेरे साथी यंत्री ने साथ के लाइनमैन से उन सब के नाम कन्फर्म कर लिए थे जो अब नामजद रिपोर्ट में लिख गये ।</p><p> रिपोर्ट लिखवा कर घर आये तो देखा सतना से मेरे माता पिता भाई वगैरह आ चुके थे ।</p><p> घर जाते ही बिस्तर पर पड़ा तो निढाल हो गया ।</p><p> तभी लोगों ने बताया कि युवराज नागौद मुझे देखने आए हैं ।</p><p> युवराज नागौद एक अद्भुत गिटारिस्ट थे और मेरे संगीत रुचि के अभिन्न मित्र थे । में कभी भी उनकी गढ़ी में चला जाता था और हम दोनों की महफ़िल जुड़ जाती ।।</p><p> उन्होंने मेरा सूजा हुआ मुंह देखा तो उनकी भृकुटी तन गई ।</p><p>चुपचाप बाहर आये और दरवाज़े पर खड़े हो कर अपने ही समाज को गालियां सुनाने लगे । वे बोले ,," ,में इस स्टेट का युवराज ,,,तुम सब को चैलेंज देता हूँ कि अब कोई मेरे दोस्त को हाथ लगा कर दिखाओ ,,,।</p><p> तुम नहीं जानते यह संगीत का प्रेमी है,,और संगीत प्रेमी अपने भाई पर यह हमला में सहन नहीं करूंगा ।" </p><p> उन्होंने ऐसा क्यों कहा इसकी एक अलग कथा है । </p><p>किंतु बाहर दहाड़ने के बाद वो फिर अंदर आये और मुझसे कहा ,,' किसी माई के लाल की अब हिम्मत नहीं जो इस तरफ रुख करे । " </p><p> उन के जाने के बाद में सो गया ।</p><p> लेकिन असली सीन तो सुबह होने वाला था ।</p><p><br /></p><p>क्रमशः</p><p>--4-- </p><p>सुबह जल्दी आंख खुल गयी ।</p><p><br /></p><p> डॉक्टर के लगाए दर्द निरोधक इंजेक्शन का असर अब खत्म हो गया था । पूरे शरीर में भीषण दर्द था । न हाथ उठा रहा था न पैर । मुंह फूल कर कुप्पा हो गया था ।</p><p> </p><p> बिस्तर पर आंखें मींचे चुपचाप पड़ा मैं सोचने लगा ,,क्या यह ठीक हुआ ,,?? मेरी दो बिटिया और एक बेटा था । सभी बहुत छोटे । मुझे उनके मासूम चेहरे दिखने लगे । और पत्नी भी । सोचने लगा अगर मुझे कल कुछ हो गया होता तो उनकी आज की सुबह कैसी होती ,,?? </p><p> मुझे अपने सम्भागीय यंत्री की कही हुई बात याद आने लगी ,," इतने दिन से सब चल रहा है ,,तुम क्यों इस पचड़े में पड़ रहे हो ,,?? " </p><p> सचमुच आदतन में ही गलत हूँ । मुझे क्या जरूरत थी दुकानदारों को अलग से कनेक्शन दिलवा कर विभाग के राजस्व को बचाने के लिए , दबंगों से भिड़ने की ,,?? यदि मैं मर जाता तो अनुकम्पा नियुक्ति पर मेरी पत्नी को क्या मिलता ,,?? एलडीसी की नॉकरी ,,?? या शायद न भी मिलती ।</p><p> सोच कर मेरी आँखें गीलीं होने लगी तभी पत्नी गर्म पानी , पेस्ट , ब्रश ले कर आ गयी । उसने कहा हिम्मत करके मुंह खोलो और ब्रश करो । किसी तरह ब्रश किया और फिर आंखें बंद करके लेट गया । पत्नी अब चाय बना ले तो किसी तरह प्लेट में डाल कर एक एक घूँट पिया । कुछ खाने के लिए जबड़ा तो खुल ही नहीं रहा था ।</p><p> पत्नी शायद मेरे मन की बात समझ गयी । बोली ,,</p><p> " क्या सोच रहे हो ,,? " </p><p> " यही,,तुम लोगों के बारे में ,, अगर मुझे कुछ हो गया होता तो तुम्हारा और बच्चों का क्या होता ,,?? " </p><p> मेरी पत्नी बहुत ईश्वरवादी है ,,उसने मुस्कराते हुए कहा ,,</p><p>" होता कैसे,,?? आखिर हम सब का भाग्य भी तो जुड़ा है न तुमसे ,,? " </p><p> मुझे दिलासा मिली । निराशा ने दामन छोड़ा । मैं फिर सोचने लगा ,,आखिर ईश्वर तो है ही हमारे साथ,,वरना स्थल पर क्यों जैसवाल मेरे साथ होता ,,? ,क्यों वहः मुझे बचाता ,,?? क्यों मेरे साथ पिकअप में ले कर मेरे साथी यंत्री थाने तक जाते,,?? क्यों अस्पताल में डॉक्टर मुझे वार्न करता ,,?? , क्यों खुद पुलिस मुझसे रिक्वेस्ट करती की में एफआईआर लिखवाऊं ,,?? क्यों एक सह्रदय , संगीत प्रेमी , गिटारिस्ट , सौम्य व्यक्ति मुझे देखने आता ,,?? , और क्यों वहः दरवाजे पर खड़ा हो कर मेरी रक्षार्थ अपनी ही कौम को ललकारता ,,?? </p><p> सच में इस ' क्यों ' का कोई उत्तर नहीं था मेरे पास ,,! </p><p> </p><p> तभी दरवाजे की घण्टी बजी और मेरे सतना के मित्र अवतरित हुए । इनमें सबसे अंतरंग मित्र थे श्री यू पी सिंह और विभागीय साथी श्री डी के शर्मा ।</p><p> यूपी सिंह मुझे बड़ा भाई मानते थे । आते ही उन्होंने मेरे पैर छुए , फिर मेरी पत्नी के ।फिर हंसते हुए बोले ,," क्या भैया ,,?? आपने मेरी नाक कटवा दी ! नाम ठाकुरों जैसा रखा है ,,' सभाजीत ' और खुद अपना सिर फुड़वा बैठे । अरे ,,,एकाध हाथ आप भी तो चलाते ,,!!" </p><p> मेरे क्लान्त मुख पर रौनक आ गयी । तभी डी के शर्मा ने कहा ,, तुम तैय्यारी कर लो , तुम्हें सतना जिला अस्पताल रैफर कर दिया गया है ,, अब नागौद में नहीं रुकना है । "</p><p> डी के शर्मा लिधौरा टीकमगढ़ निवासी थे और वे भी मेरे लिए बड़े भाई ही थे । एक वर्ष पूर्व वे नागौद में ही पोस्टिड थे । उन पर भी गावँ में एक विद्युत चोरी चेकिंग के दौरान हमला हुआ था और उन्होंने भाग कर जान बचाई थी । उन दिनों में सतना के औद्योगिक क्षेत्र के वितरण केंद्र का अधिकारी था । सम्भागीय यंत्री ने उनका ट्रांसफर मेरी जगह और मेरा सतना मुख्य शहर तत्काल प्रभाव से करके उन्हें राहत दी थी ।</p><p> तभी दरवाजे पर एक ट्रक के रुकने की आवाज़ आई । कुछ देर में ही मैहर शहर के अधिकारी श्री पी एल सिंह पूरे स्टाफ के साथ अंदर आ गये । वे मेरे परम् मित्रों में थे । हम लोगों ने मिल कर यूनियन में अपने साथियों की कई समस्याएं सुलझाएं थी ।</p><p> उन्होंने आते ही कहा ,," में जानता हूँ ,,जिसने तुम पर हमला किया है ,,वहः मेरे ही गावँ का मेरा पट्टीदार है ,,लेकिन मैं उसे सजा दिलवाने में सबसे आगे रहूंगा,,विश्वासः रखो ।" </p><p> मेरा दफ्तर मेरे घर के पास ही था । स्टाफ मुझे देख कर वापिस लौट गया और थोड़ी देर में लाउडस्पीकर से आवाज सुनाई देने लगी ,,"प्रिय साथियों ,!,,,,,,,,!!,,,!!</p><p> में समझ गया अब नेता गिरी और यूनियन बाजी शुरू हो चुकी है । </p><p> अब मैं खुद एक मुद्दा बन चुका था ,, लड़ाई का ,,,और लड़ाई शूरवीरों ने अपने हाथ ले ली है ।</p><p> तभी सतना से ट्रक भर कर तीन तीन यूनियनों के पदाधिकारी आ गए । किसी समय मैनें किसी मुद्दे पर सभी अलग अलग यूनियनों का एक संयुक्त मोर्चा बनाया था ,,वही संयुक्त मोर्चा रातों रात पुनर्जीवित हो गया था ।</p><p> तब तक मैं तैयार हो चुका था । </p><p> तभी एक लाइन स्टाफ आया ,,,उसने बताया कि नगरपालिका के सामने भी एक टेंट गढ़ गया है । नगरपालिका वालों की यूनियन भी रैली निकाल कर एसडीएम को ज्ञापन देने जा रही है ।</p><p> अब झूठ सच की घनघोर जंग छिड़ चुकी थी । </p><p> नगरनिगम वालों ने मुझ पर इल्जाम लगाया कि मैं नशे में धुत्त था ,, और मेले के दुकानदारों को तंग कर रहा था तो दुकानदारों ने क्रुद्ध हो कर मुझ पर आक्रमण कर दिया । तभी बिचारे नगरपालिका के आर आई साहब मुझे समझाने आये तो मैनें चाकू से उन पर वार कर दिया जिससे उनकी हथेली थोड़ी कट गई ।</p><p> यह इल्जाम तो मैं थाने में ही अपने ऊपर लगते देख चुका था जब मैं खून से नहाया वहां बैठा था और मुंशी जी आर आई साहब की एफआईआर लिख रहे थे ।</p><p> अब नगर निगम वालों की मांग थी कि मुझ जैसे दुर्दांत अपराधी को तुरन्त गिरिफ्तार करे । </p><p> इधर विद्युत मंडल की सभी यूनियन संयुक्त मोर्चा बना कर श्री पी एल सिंह की अगुवाई में रैली निकाल कर ज्ञापन सौंपने को तैयार हो चुकी थी और मांग कर रही थी कि आर आई सहित तीनों अपराधियों को तुरन्त गिरफ्तार करेन ,,,वरना अगला कदम ,,,नौगोद की बिजली बंद ।</p><p> एम्बुलेंस आने में देर थी तो डी के शर्मा ने कहा कि तुम जीप के पिछले हिस्से में लंबे लेट कर तुरन्त निकल जाओ । जीप आ चुकी थी तो लोगों ने मुझे उठा कर किसी तरह जीप में लिटवा दिया और एक अलग शॉर्टकट से में नागौद के बाहर निकल आया ।</p><p> एक अन्य वाहन में मेरे बच्चे , मेरी पत्नी , माता पिता वगैरह भी मेरे पीछे पीछे चले आये । मेरे आगे मोटर साइकिल पर सवार मेरे मित्र , मेरे विभागीय साथी चल रहे थे और मेरी बरात जैसा यह काफिला , अपने पीछे नागौद में लाउडस्पीकर युद्ध , ज्ञापन और रैलियों का हुड़दंग छोड कर सीधे जिला अस्पताल परिसर में आकर रुका ।</p><p> मुझे स्ट्रेचर पर लादा गया और सीधे इमरजेंसी वार्ड में ले जा कर भर्ती करवाया दिया गया ।</p><p> मुझे इस भागदौड़ में सचमुच बेहोशी आ गयी ।</p><p> इस तरह नागौद से तो निकल आया था ,,लेकिन नागौद की प्रतिछाया स्वरूप न्याय अन्याय की छाया अभी आगे इंतज़ार कर ही रही थी ।</p><p> अस्पताल में कुछ डॉक्टर जो नागौद वालों के निकटस्थ हितैषी थे तत्काल मेरे सभी परीक्षण कर मुझे जल्द से जल्द डिस्चार्ज करवाने की जुगाड़ में लग गए,,, लेकिन एक कोई था,,,जो इनके मंसूबों पर पानी फेरने वाला था,,,और वो था सीएमओ ,,,"हक" ,,!</p><p> </p><p> क्रमशः,,।</p><p>, ----4 ------</p><p>सतना का जिला अस्पताल मेरे लिए अपरिचित नहीं था । </p><p> यहां के अधिकतम डॉक्टर मुझे जानते थे । मैं यहां पावर हाउस कॉलोनी में छह साल रहा था और सतना शहर का रेवेन्यू जे ई भी रह चुका था । </p><p> यहां के सभी डॉक्टर अंगद के पांव थे और उनका कभी तबादला नहीं होता था । उनके अपने क्लीनिक भी थे और जिले के प्रायः हर गावँ के मरीजों का इलाज करने के कारण हर जगह के रसूखदार लोगों से उनके सम्बंध रहते थे ।</p><p> इसलिये इस अस्पताल के डॉक्टर सदैव वही रहते थे ,,। </p><p>बदलता था तो हर एक दो साल में सीएमओ यानी मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी । </p><p> और इस समय मुख्य चिकित्सा अधिकारी थे ,,</p><p> ,मि0 हक ।</p><p> हक साहब का पूरा नाम मुझे नहीं मालूम था लेकिन बताते थे कि वे बेहद सख्त मिजाज , अनुशासन प्रिय , और ईमानदार आदमी थे । गलती होने पर वे किसी को बख़्शते नहीं थे और किसी भी बड़ी से बड़ी ताकत के आगे , झुकते नहीं थे ।</p><p> नागौद कांड की खबर सतना के लोकल अखबारों की खबर बन चुकी थी इसलिए हर डाक्टर को मालूम था कि पेशेंट सतना अस्पताल आ सकता है ।</p><p> उधर नागौद से लोग आकर जुगाड़ लगा चुके थे कि पेशेंट को सामान्य इंज्युरी बता कर जल्द से जल्द छुटटी करवा दी जाए । </p><p> इसलिए मेरे अस्पताल में भरती होते ही डाक्टरों की टीम मुआयने पर जुट गई ।</p><p> मेरे पैर , हाथ , सिर , छाती का एक्स रे लिया गया । आंख कान को टार्च से देखा गया कि कहीं खून जमा तो नहीं हुआ । बीपी नापा गया । मेरी सिर की पट्टी उतार कर घाव साफ किया गया ।</p><p> तभी सीएमओ साहब भी आ ज्ञे । मैं आंखें मींचे परीक्षण करवा रहा था लेकिन कभी कभी अधखुली आंखों से देख भी लेता था ।</p><p> सीएमओ साहब ने पूछा ,,,</p><p> </p><p> " हाउ डीप इस इंज्युरी ,,? " </p><p> </p><p> " नथिंग ग्रिवियस सर ,,!" एक डॉक्टर ने तुरन्त कहा ।</p><p> तभी सिस्टर ने घाव पर से पट्टी हटा दी । स्टिचिंग देख कर हक साहब बिफर गए । जल्द बाजी में नागौद के डॉक्टर ने बेतरतीब स्टिचिंग कर दी थी </p><p> । सात टांके बोरे की तरह सिल दिए थे । उसमें से एक दो बांस के पतले रेशे उन्हें झांकते दिखे । </p><p> हक साहब सलीके से काम के हिमायती थे । उन्होंने पूछा --" हु स्टीच्चिड दिस ,,,? " </p><p> डॉक्टर्स इधर उधर देखने लगे तो किसी एक नए कहा ,," ये नागौद में ही स्टिच हुए । "</p><p> हक साहब ने उस डॉक्टर की ओर देखते कहा ,," अभी ग्रिवियस नहीं है तो इस हालत में आगे ग्रिवियस हो जाएगा । इसे निगरानी चाहिए । इसकी घाव की पूरी सफाई करवाइए ,,रिस्टीच् करवाइए ,,। कनपटी के पास की चोट है ,, केयर जरूरी है। ,,</p><p> इतना कह कर वे चले गये</p><p> । लेकिन उन डाक्टरों के मंसूबे टूट गए जो तीनदिन इलाज करके मुझे छुट्टी दिलाने के मूड में थे ।</p><p> बाद में किसी ने बताया कि नागौद के डॉक्टर शर्मा को हक़ साहब ने गलती के लिए मेमो इशू कर दिया ,,क्योंकि वे गलती बख़्शते नहीं थे ।</p><p> अब अस्पताल का ,,मैं खास मरीज हो चुका था । हर दिन , हर डॉक्टर आता ,, और चेकिंग के बाद फाइल में फाइंडिंग लिखता और फिर फाइल सीएमओ के पास निरीक्षण को जाती । </p><p> चोट के कारण , मुझे सिर में दर्द और भारीपन भी रहने लगा था ,,लिहाजा उपचार अब लम्बा हो गया था । </p><p> </p><p> रैलियों, ज्ञापन, और भाषणों की जंग तो मैं नागौद में अपने पीछे मैं छोड़ ही आया था सतना में अब अखबारी रिपोर्टिंग की जंग छिड़ी ।</p><p>सतना का प्रमुख दैनिक था ,,' देशबंधु । जिसके संवादाता नागौद के ही एक ठाकुर साहब थे । उन्होंने एक रिपोर्ट बना कर एडिटोरियल को भेज दी जिसमें नगरनिगम का झूठा पक्ष हूबहू छप गया । </p><p> एक शराबी के रूप में स्थल पर झगड़ा करने वाले और दुकानदारों से घूस मांगने वाले , और एक सन्त नगरपालिका अधिकारी पर चाकू से हमला करने वाले दुर्दांत व्यति के रूप में , मेरी कीर्ति पताका पूरे क्षेत्र में फैल गई ।</p><p> मेरे साथियों ने कुछ अन्य बाहरी अखबारों का सहारा ले कर इंदौर, जबलपुर , रीवा के अखबारों से रिपोर्ट छपवाई ,,,जो प्रतिउत्तर जैसा ही था । कुछ एक पेज के शहरी अखबार वाले भी आये और सवालिया कैप्शचन लगा कर फ़ोटो सहित खबर छाप दी ।</p><p> नागौद में मेला शुरू हो चुका था और साथ ही मेरे विरुद्ध हुई एफआईआर पर इन्वेस्टिगेशन भी शुरू हो गई ।। </p><p> डरे हुए दुकानदारों ने नगरनिगम की व्यवस्था स्वीकार करके , उन्ही से कनेक्शन ले लिए । </p><p> पुलिस इन्वेस्टिगेशन में इन डरे हुए दुकानदारों से झूठे बयान लिखवा लेना , नागौद पुलिस के लिए कठिन नहीं था । </p><p> अखबार में मेरे विरुद्ध छप ही चुका था इसलिए जनमत को भी भृमित होने में कोई दिक्कत नहीं थी ।</p><p> लगा कि अब सारी इन्वेस्टिगेशन झूठ के पक्ष में जा कर मुझे अपराधी घोषित करवा देगी ।</p><p> </p><p> इस स्थिति में मेरे मित्र श्री डी के शर्मा ने अलग कदम उठाया । भोपाल में विधान सभा चल रही थी । वे टीकमगढ़ गये और वहां के विधायक से विधान सभा में नागौद कांड का एक प्रश्न उठवा दिया । </p><p> प्रश्न के उत्तर में भोपाल से एक अलग इन्वेस्टीगेशन टीम आई ।उसने गुप्त रूप से घटना इंवेस्टिगेट की और सत्य उजागर करते हुए नगरनिगम के कर्मचारियों को दोषी ठहराते हुए रिपोर्ट भोपाल भेज दी ।</p><p> नतीजा यह हुआ कि इन्वेस्टिगेशन सतना के एस पी ने नागौद थाने से हटा कर सतना थाने की टीम को दे दिया ।</p><p> अब विद्युत विभाग की यूनियन ने मोर्चा सम्हाला । उन्होंने पूरे रीवा रीजन के विद्युत कर्मचारियों की रैली आयोजित की जिसमें सीधी , शहडोल , रीवा , पन्ना , छतरपुर के कर्मचारी ट्रकों में भर कर आ गए ।</p><p> सतना में विद्युत कर्मचारियों की अभूतपूर्व रैली निकली । जिसका एक छोर अस्पताल चौक पर था तो ,,, दूसरा छोर पावर हाउस गेट पर ।</p><p> ज्ञापनों से सतना ऐडमिनिस्ट्रेशन तो प्रभावित हुआ ही,,,विद्युतमण्डल का केंद्रीय एडमिनिस्ट्रेशन भी प्रभावित हुआ । अब एक के बाद एक उच्च अधिकारी जबलपुर से आने लगे और मेरी कैफियत और बयान लेने लगे ।</p><p> लेकिन अस्पताल में नागौद हितैषी कुछ डॉक्टर अलग ही खिचड़ी पका रहे थे । वे मुझे प्रतिदिन चैकिंग रिपोर्ट के आधार पर स्वस्थ्य घोषित कर शीघ्र डिस्चार्ज करवा देना चाहते थे । नागौद के डाक्टर को मेमो मिल चुका था इस लिए गलत रिपोर्ट हेतु डर भी रहे थे ।</p><p> मेरी अस्वस्थता की खबर सुन कर दूर दराज़ से मेरे रिश्तेदार और दोस्त मुझे देखने आने लगे । जबलपुर के मेरे एक मित्र श्री वैश मुझे देखने आए तो देर रात तक मेरे पास बैठ गए । वे लंबे ऊंचे कद के व्यक्ति थे और फर्राटेदार इंग्लिश बोलते थे । पहली। नज़र में वे कोई पुलिस के उच्च आफीसर लगते थे ।</p><p> रात 11 बजे वे बैठे थे तभी नर्स आई और मेरे सिरहाने रखी फाइल उठा ले गई मुझे शंका हुई कि मेरी फाइल नष्ट न कर दी जाए तो मैनें वैश से कहा कि वे देखें फाइल कहां जा रही है ।</p><p> वैश तेज कदमों से चल कर नर्स के पीछे पीछे गए जो डॉक्टर्स रूम में फाइल दे कर लौट गई । वैश तेजी से डॉक्टर्स रूम में घुसे जहां उन्होंने दो डाक्टरों को फाइल पलटते देखा । वैश ने सीधे उनसे अंग्रेजी में पूछा कि क्या वे आन ड्यूटी डॉक्टर्स हैं ,,?? और क्या पेशेंट को कोई नया प्रिस्क्रिप्शन देना चाहते हैं ,,?? </p><p> वैश को देख कर वे उठ खड़े हुए । उन्हें लगा कि वैश कोई आफीसर है ।</p><p> उन्होंने कहा कि वे ड्यूटी पर नहीं हैं किंतु अस्पताल के ही डॉक्टर हैं । यूंही देख रहे थे कि दवाइयां दे दी गईं हैं या नहीं । </p><p> उन्होंने घण्टी बजा कर दूसरी नर्स बुला कर फाइल यथा स्थान पहुंचाने को कहा ।</p><p> लौटते में वैश ने ड्यूटी पर उपस्थित हैड नर्स को कहा कि यह केस खास है । फाइल सम्हाल कर रखें ।</p><p> सुबह यह बात हक साहब को मालूम हो गई । उन्होंने फाइल बुला कर अपने चैंबर में अपनी कस्टडी में ले ली । उन्होंने व्हील चेयर पर मुझे वहीं अपने चैंबर में बुलाया फिर अन्य आक्टरों को वहीं बुलवा कर चैक करवा कर फाइल में उनसे स्थिति लिखवाई और डॉक्टरों को जाने दिया ।</p><p> अब हक साहब ने मुझसे सीधे पूछा ,,--" तुम्हारा प्रकरण क्या है ,,?? उन्होंने तुम्हारे ऊपर अटैक क्यों किया ,,?? " </p><p> मैनें उन्हें पूरी बात बताई ।</p><p> वे चुपचाप मेरी बात सुनते रहे ।</p><p> फिर फाइल पलट कर पीछे के प्रिस्क्रिप्शन देखने लगे ।</p><p> तभी चैंबर के दूसरे पार्ट में रखे टेलीफोन की घण्टी बजी । </p><p> किसी के अभिवादन के उत्तर में उन्होंने ' वालेकुम सलाम ' कहा । </p><p> उनकी आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी । उन्होंने सामने वाले की बात का जवाब देते हुए कहा ,</p><p> ," सांसद जी । अगर विश्वासः न हो तो आप अस्पताल आ जाये । ! खुद देखिए कि सिर पर डंडा पड़ने से कैसी चोट लगती है और मुंह कैसा टेढ़ा हो जाता है । " </p><p> उधर से फिर कोई आवाज आई । तो थोड़ी देर ठहर कर उन्होंने कहा ,</p><p> ," मुझे राजनीति से कोई लेना देना नहीं । में डॉक्टर हूँ और मुझे पता है कि कब किसी को भर्ती करना है और कब डिस्चार्ज " !</p><p> इतना कह कर उन्होंने फोन बंद कर दिया ।</p><p> वे तमतमाया चेहरा ले कर बाहर आये ।</p><p> </p><p> मैनें यूं दर्शाया की मैनें कुछ सुना नहीं ।</p><p> तब उन्होंने फाइल अपनी कस्टडी में अलमारी में रखी और अटेंडेंट बुला कर व्हील चेयर पर मुझे वापिस बैड पर भेज दिया ।</p><p> </p><p> मेरा इलाज एक माह तक चला और में तभी डिस्चार्ज किया गया जब में पूर्णतः स्वस्थ्य हो गया ।</p><p> </p><p> मुझे डिस्चार्ज जल्दी करने और न करने का राज जब मुझे बाद में पता चला तो मैं आश्चर्य में पड़ गया ।</p><p>--5---</p><p><br /></p><p> </p><p> अस्पताल में इलाज के दौरान दो दो उल्लेखनीय उपलब्धि हुईं ।</p><p> एक तो मेरा ट्रांसफर नागौद से मैहर हो गया दूसरे मेरी सबसे छोटी बेटी ' प्रभुता ' ने जन्म लिया । इलाज के अंतिम सप्ताह में,,मैं चलने फिरने योग्य हो गया था इसलिए प्रसूति वार्ड में भर्ती पत्नी को भी , अटेंड कर लिया ।</p><p> इस एक माह में अस्पताल के सभी डॉक्टर , कर्मचारी मुझे जान चुके थे । बेटी ने जन्म के समय ही , गर्भ थैली का फ्लूइड इन्हेल कर लिया तो उसे सांस में दिक्कत होने लगी ।</p><p> में उसे हाथों में उठा कर ,अस्पताल के ऊपरी भाग में बने चिल्ड्रन वार्ड में ले गया जहां चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर यादव के हाथों में सौंप दिया । डॉक्टर यादव मेरे शुभ चिंतकों और मित्रों में से एक थे । उन्होंने कहा - " चिंता न करो ,,इसे कुछ नहीं होगा । यह तो तुम्हारी रक्षक है । " </p><p> </p><p> जल्दी ही अस्पताल से मेरी छुट्टी हो गई ।</p><p> उधर मेरे और नगरनिगम के लोगों के विरुद्ध , पुलिस ने दो अलग अलग केस बना कर नागौद लोवर कोर्ट में चार्जशीट दायर कर दी ।</p><p> इस तरह एक ही घटना के दो केस बने ,,जिसमें एक में ,,मैं मुजरिम था और दूसरे में सरकारी गवाह ।</p><p> अस्पताल से छूटते ही मुझे मैहर में शिफ्ट होने की चिंता हुई ।</p><p>मैंने मैहर के पंजाबी मुहल्ले में एक मकान लिया और भाइयों से कहा कि। ट्रक में भरकर चुपचाप नागौद से सामान ला कर मैहर शिफ्ट कर दें ।</p><p> मकान में प्रवेश करने से पहले मैं सपरिवार शारदा मां के मंदिर में मां के सामने गया । आंख मूंद कर मैंने उनसे कहा -- </p><p> ,,,,," जो आपने करवाया ,,वो मैनें किया ,,अब आगे जो आपको उचित लगे ,,वो करो ,,। " </p><p> मंदिर के उस ऊंचे पर्वत पर मेरा विषाद पूरी तरह धुल गया । मन ने कहा " ,,अब तुम्हें क्या चिंता ,,?? अब तो माँ ने तुम्हें अपनी गोद में मैहर बुला लिया । " </p><p> मैहर में मेरी पोस्टिंग सम्भागीय कार्यालय में जे ई वर्क्स के कार्य के लिए हुई । वहां मेरे साथ एक ऐ ई वर्क्स सिन्हा साहब भी थे । कार्य सुचारू रूप से चलने लगा ।</p><p><br /></p><p> दस दिनों बाद ही नागौद से दो पुलिसवाले मेरे घर आ गये । उन्होंने कहा ," सम्मन है ,,आप को ले जा कर नागौद कोर्ट में पेश करना है ! " </p><p> मेरी पत्नी ने देखा ,,वे हथकड़ी वगैरह भी लिए थे । वो घबरा गईं ।</p><p> मैनें पत्नी को सांत्वावना दी । पुलिस वालों से कहा ,,-</p><p> " में एक सरकारी मुलाजिम हूँ ,,मेरे आफिस का समय हो चुका है ,,मुझे आफिस जाकर एक विशेष कार्य करना जरूरी है ,,आप आफिस चलो,,विशेष फाइलें अपने साथी को सौंप कर में आप के साथ चला चलूंगा ," ! </p><p> थोड़ी देर ना नुकर के बाद वे मान गए । में उनके साथ आफिस गया । वहां सिन्हा साहब को फाइलें सौंपी । उन्होंने पूछा कि ये फाइलें क्यों दे रहे हो तो मैनें बताया कि मुझे गिरफ्तार करके दो पुलिस वाले नागौद ले जाने आये हैं और बाहर बैठे हैं ।</p><p> यह सुनते ही आफिस का पूरा स्टाफ उठ खड़ा हुआ । उन्होंने पुलिस वालों को अंदर बुलाया । उन में से एक हवालदार सिपाही मेरे आफिस के बाबू का रिश्तेदार भी था ।</p><p> सिन्हा साहब ने फोन उठाया और सीधे सतना एस पी को लगाया । उन्होंने कहा </p><p>,," ,,गिरफ्तारी जरूरी नहीं ,,कोई भी जमानत दे दे और मुलजिम नियत तिथि में समय पर कोर्ट में जा कर जज के सामने पेश हो जाये ,,वहां कोर्ट फिर जमानत दे देगा क्योंकि कोई गम्भीर आपराधिक प्रकरण नहीं है ।" </p><p> पुलिस के लोग भी तुरन्त मान गये । सिन्हा साहब ने खुद जमानत ली और पुलिस वाले उन्हें सलाम करके वापिस चले गये ।</p><p> </p><p> नियत तिथि पर सुबह सुबह में अपने साथी यंत्री श्री पी एल सिंह के साथ उनकी जमीन जायदाद के कागजात ले कर कोर्ट में उपस्थित हुआ । पीएल सिंह नागौद निवासी थे और कोर्ट में उनको सब जानते थे तो जमानत का काम भी तुरन्त हो गया । </p><p> नागौद से काम होते ही में पी एल सिंह के साथ सतना लौट आया ।</p><p> अब मुझे एक वकील करना था जो केस लड़े । </p><p> पी एल सिंह ने बताया कि दूसरे पक्ष के विरुद्ध दायर हुआ केस सतना की एडीजे कोर्ट में ट्रांसफर हो चुका है ।</p><p> मैनें पूछा ,," क्यों ,," ??</p><p> तो पी एल सिंह ने बताया कि ,,"" " मारपीट में अगर चोटिल व्यक्ति 21 दिन से अधिक दिनों तक चिकित्सकीय इलाज में अस्पताल में भर्ती रहे तो मामला संगीन हो जाता है और तब उसे गम्भीर अपराध मान कर उसकी सुनवाई जिले की एडीजे कोर्ट करती है ।,," </p><p> अब मेरी आँखों के सामने से सभी पर्दे हट गए,,कि क्यों लोग मुझे जल्दी ही अस्पताल से डिस्चार्ज करवाना चाहते थे ,,! </p><p> मुझे सांसद महोदय के फोन और उस वार्तालाप के दृश्य भी आंखों के सामने घूम गए जिसमें मुझे छुट्टी करने के लिए सांसद द्वारा दिये गए दवाब को हक़ साहब ने नकार दिया था ।</p><p> मुझे अपराध के वे छिपे चेहरे भी दिखने लगे जो अपराधियो को ताकत देते हैं ।</p><p> लेकिन अभी तो एक नई जंग शुरू हुई थी ,,,कोर्ट कचहरी की जंग । जो आगे जा कर सिर्फ मुझे और मुझे ,,अकेले ही लड़नी थी ।</p><p> मजे की बात यह थी कि यहां चाह कर भी कोई मेरी मदद नहीं कर सकता था ।न यूनियन ,,न कोई मित्र ।</p><p> यहां वकालत व्यवसाय थी ,, और आप की जान का मालिक एक वकील था,।</p><p> तो मैनें एक वकील की तलाश की । </p><p> उधर ऐ डी जे कोर्ट में मेरे विरोधियों का केस आ जाने से वे सजा के भय से मेरे विरुद्ध और ज्यादा खूंखार हो गए ।</p><p> कारण अलग था ।</p><p><br /></p><p> ऐ डी जे पाराशर साहब बड़े स्ट्रिक्ट थे । कानून के गहन जानकार । उनके कोर्ट से सजा न हो यह बहुत असम्भव बात थी । </p><p><br /></p><p>तो विरोधियों को भी एक बड़ा क्रिमिनल वकील ढूंढना पड़ा ,,और उन्होंने शहर का सबसे बड़ा वकील लगाया ।</p><p> </p><p> अब जंग कठिन हो चुकी थी ।</p><p> </p><p> उन लोगोंको अपने किये की सजा मिलेगी या नहीं या फिर मुझे जेल भुगतना पड़ेगा ,,?? , यह न्यायालय पर निर्भर था ।</p><p> लेकिन देवदूत तो थे ,ही ,,जो आगे मेरी सहायता में आने वाले थे ।,,</p><p> क्रमशः,।</p><p>--6---</p><p><br /></p><p>लेकिन,,,मुझे तो अपनी चिंता सता रही थी ।</p><p>मेरा कोर्ट तो नागौद में ही था ,,उसी बस्ती में जहां मुझ पर जानलेवा हमला हुआ था ,,जहां अभी भी उन लोगों का वर्चस्व था जिनसे में भिड़ गया था । </p><p> सच कहें तो अब मैं ही रणभूमि से पलायन कर गया था और वहां अभी भी खूंखार लोगों का राज था जो अन्याय को ही अपनी ताकत समझते थे । </p><p> ऐसी स्थिति में हर बार पेशी पर नागौद जाना क्या मेरे लिए निरापद था ,,?? हर बार पी एल सिंह या कोई और साथी तो नागौद जायेंगें नहीं । मैहर से नागौद का 50 कि0 मी0 का रास्ता क्या कोई नई वारदात को अंजाम नहीं दे देगा ,,खास कर तब , जब सामने का व्यक्ति बौखला चुका हो ,,?? </p><p> किसी ऐसी दूर की जगह में नौकरी करना अब कितना दुरूह है जहां आप कौटुम्बिक रूप से अकेले हों ,,जहां संतुलन शक्ति का अभाव हो ,,?? जहां कोई सामाजिक दबाव आपके पक्ष में हो ही न ?? </p><p> ये बातें सोच कर मन घबराने लगा ।</p><p> अब मुझे ऐसा वकील भी चाहिए था जो इस न्यायिक प्रकिया में मेरे अभिन्न मित्रों की तरह सहायक बन के मुझे उबार सके । तब कचहरी की मंडी में , मैं एक साथी वकील को तलाशने लगा । </p><p> ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की लत ने अब तक मुझे खाकी रंग के पेंचदार , श्वेत एप्रिन के घुमावदार गलियारों से गुजार दिया था लेकिन अब काले रंग के तिलस्मी नगर से होंकर मुझे सुरक्षित बाहर आना था ।</p><p> दूसरे दिन इतवार था । तो मैं सुबह सुबह ही अपने एक परिचित वकील श्री खरे साहब के घर पहुंच गया । मेरे ये मित्र वकालत में तो प्रसिद्ध नहीं हुए थे किंतु व्यंगकार के रूप में देश में प्रसिद्ध हो चुके थे । वे प्रगतिशील लेखक संघ के पदाधिकारी थे तो उनका पहला लक्ष्य था ,,,' अन्याय के विरुद्ध लड़ना ,,' !</p><p> उन्होंने कहा ,," मुझे आपका पूरा किस्सा मालूम है ,,,ईमानदारी की सही सजा आपको मिली है । " </p><p> मैनें पूछा , " ,अब क्या करूं ,,?? में नागौद पेशी में नहीं जा सकता । " </p><p> वे बोले --" तो मत जाओ । मैं आपका केस सतना ट्रांसफर करवा देता हूँ । " </p><p> उन्होंने एक एप्लिकेशन बनाई जिसमे झगड़े का स्थल नागौद बताते हुए मेरी जान को खतरा बताया और मेरी एफ आई आर , और अस्पताल की रिपोर्ट लगाई और दूसरे दिन सीजेएम कोर्ट में केस सतना ट्रांसफर करने की विनय की ।</p><p> खरे साहब बहुत अच्छे प्रसिद्ध व्यंगकार थे । सीजेएम साहब उन्हें जानते थे । केस जिनायन था । तो केस सतना लोवर कोर्ट में ट्रांसफर हो गया । </p><p> मैनें वकील साहब को धन्यवाद दिया और मां शारदा को स्मरण किया । मैनें मां से कहा ,,अब तो आप कदम कदम पर मेरे साथ आ गईं हैं ,,अब मुझे कोई चिंता नहीं ।</p><p> लेकिन फिर भी केस लड़ने के लिए मैनें एक बड़ा वकील कर लिया क्योंकि खरे साहब सिविल केस ही देखते थे ।</p><p> उधर ऐ डी जे कोर्ट में उन लोगों की भी पेशी शुरू हो गई ।</p><p> न्याय पाना कोई आसान काम नहीं यह मैं न्यायालय आकर समझ गया । यहां केस फाइल , तारीखों की बैसाखियों पर लंबी छलानें लगा कर चलती है । कभी गवाह आया ,,कभी नहीं आया , कभी जज साहब बैठे,,कभी नहीं बैठे ,लेकिन मुझे दिन भर कोर्ट के द्वार के आसपास रहना जरूरी था । हांक लगते ही मुजरिम वाले कटघरे में खड़ा होना मेरी आत्मा को कचोट जाता ।</p><p> लेकिन वकील साहब की फीस तो हर पेशी पर देना ही पड़ती थी । </p><p> में अपनी तनख्वाह से पैसे निकाल कर वकील साहब को पैसे देता । कोर्ट के खर्चे के नाम पर भी कुछ पैसे देने पड़ते । कभी कभी मुझे घर की जरूरतों में भी कटौती करनी पड़ती ।</p><p> अब विभाग को मेरी लड़ाई से कुछ लेना देना नहीं था । मुझे कभी कभी पश्चाताप होता कि क्यों मैनें सम्भागीय यंत्री जैन साहब की बात पर ध्यान नहीं दिया ,,!! आखिर यह लड़ाई तो सरकारी राजस्व के हितार्थ और अन्याय के विरुद्ध ही मैनें लड़ी थी ।</p><p> दिन कटने लगे और दोनों केस आगे बढने लगे । </p><p> उधर एडीजे कोर्ट में सरकारी गवाह होस्टाइल होने लगे । मेरे ही लाइनमैनों ने कुछ भी देखने से इनकार कर दिया । कोई भी चक्षु दर्शी गवाह सामने आ कर कोर्ट में स्वीकार नहीं किया कि उन आरोपियों ने मुझ पर प्राणघाती हमला किया था । अलबत्ता सीएमओ हक साहब ने जरूर सशक्त गवाही दी कि चोट घातक थी ।</p><p> </p><p> धीरे धीरे में उद्विग्न और निराश होने लगा । मुझे लगा कि वास्तविक अपराधियों को शायद ही सजा मिले ,,लेकिन मुझे सजा होने के पूरे आसार हैं ।</p><p> यह सब चल ही रहा था की एक दिन एक अपरचित व्यक्ति ने बाजार में रोक कर कहा ,,' सतना के ," ,,x,,दादा ' ने खबर भिजवाई है कि आप नागौद वाले केस में समझौता कर लें ,,यह आप के लिए ठीक होगा । ' </p><p> "और अगर न करूं तो ,,??" </p><p> " तो आप जानों,, और दादा जानेंगे !! आप बाल बच्चे दार आदमी हो। ,,कुछ ऊंच नीच हो जाये तो क्या करोगे ,,?? " </p><p> मैं अंदर अंदर डर गया । मैंने कहा ,," सोचता हूँ !" </p><p> मैनें यह बात पी एल सिंह को बताई तो वे चिंतित होते हुए बोले ,," यह खबर तो मेरे पास भी आई है । ,,,में आपको बताने वाला ही था ,! " </p><p> तो अब क्या करूं ?? में सोचने लगा ।</p><p> ' x दादा ' सतना के घोषित दादा थे । बालबच्चे दार होने का क्या अर्थ ,,?? </p><p> अगर मेरे बच्चे को ही कोइ उठा ले जाये तो कौन ठिकाना ,,?? </p><p><br /></p><p>क्रमशः,,,,,7,,,,</p><p>सत्य के पक्ष में , ईमानदारी की यह लड़ाई मुझे इस स्थिति में ला कर खड़ी कर देगी यह मैनें सोचा नहीं था ।</p><p> अब तक फिल्मों में जो सीन देखता आया था ,,अब वो वास्तविक स्वरूप धारण करके मेरे सामने खड़ा हो गया था ।</p><p> घबराहट में पसीना निकलने लगा । पी एल सिंह की बात से यह स्पष्ट हो गया कि सतना के दादा भाई द्वारा भेजा गया सन्देश सत्य है।</p><p> सतना के दादा भाई अपराध की दुनिया के अधिपति थे । उनका सन्देश सलाह नहीं ,,आदेश की तरह ही था जिसे नकारने का कोई प्रश्न ही नहीं उठ सकता था । </p><p> भय और अवसाद के बीच झूलता में ऑफिस गया । वहां जिससे भी बताया ,,वहः चुपचाप मुझे ताकता रहा । सबने कहा कि यह फैसला मुझे खुद लेना होगा कि मैं समझौता करूं या न करूं । अलबत्ता यह भी समझाया कि दादा भाई के सन्देश की अवहेलना करके खुद के लिए संकट भी मोल न लूं । </p><p> आफिस में अब मन नहीं लगा । चुपचाप आधे दिन की छुट्टी ली और घर लौट आया । घर में आकर उहापोह में पड़ा सोचता रहा ।</p><p> अंतर्द्वंद में मेरे मन में दो परस्पर विरोधी विचार मुझे मथने लगे । सोचा कि अब तक जो हुआ उतना पर्याप्त था उन लोगों को दण्ड स्वरूप हुई परेशानियों के रूप में । व्यक्तिगत वैमनस्य बढाने से क्या लाभ ?? ,कल अगर मुझे या मेरे परिवार के साथ कोई अनहोनी हो जाये तो क्या करूंगा ?? ,,समझौते में क्या नुकसान है,?? </p><p> दूसरे विचार ने कहा कि यह तो वही स्थिति है ,, भय और आतंक की ,,,जो नागौद में थी ,,</p><p>तो उसके सामने अब हथियार क्यों डाल रहे हो ,,?? ऐसा था तो सम्भागीय यंत्री की बात तभी क्यों नहीं मान ली थी ,,जिन्होंने कहा था ,,क्यों पचड़े में पड़ते हो ,,?? </p><p> यही सोचते विचारते शाम हो गई । बच्चे स्कूल से वापिस घर आये तो पत्नी को हिदायत दी कि कुछ दिन बच्चों को स्कूल न भेजें । </p><p> वे उस समय तो कुछ नहीं बोलीं । रात में खाना खाते हुए पूछा ,," क्या हुआ ,,मुझे बताओ ,,!" </p><p> मैनें उन्हें सतना से दादाभाई द्वारा भेजे सन्देश के बारे में बताया । अपनी विचलित मनःस्थिति के बारे में बताया ।</p><p> लेकिन वे तो ईश्वरवादी थी । उन्होंने कहा ,," किसी दादाभाई की चिंता मत करो । ईश्वर से बड़ा कोई नहीं होता । ' हुई है वही जो राम रुचि राखा '।,, ईश्वर पर भरोसा रखो सब ठीक होगा । " </p><p> इतना कह वे तो सो गईं लेकिन मेरी आत्मा जग गई ।</p><p> मन बोला ,," तुम तो माँ के वरद पुत्र हो ,, सीधे माँ को क्यों नहीं बताते जा कर ,,?? वे सब देख लेंगी क्या करना है क्या नहीं । " </p><p> माँ का ध्यान मन में आते ही मन बिल्कुल हल्का हो गया । कोई अवसाद न बचा । जल्दी ही नींद आ गयी ।</p><p> सुबह स्कूटर उठाई और सीधे मंदिर के पहाड़ पर चढ़ गया । उन दिनों ऊपर मंदिर तक जाने के लिए पर्वत का घेरदार,, घुमावदार रास्ता था जिससे वाहन जाया करते थे ।</p><p>ऊपर मंदिर में आरती हो रही थी । में चुपचाप भीड़ में जा कर खड़ा हो गया ।</p><p> कुछ देर बाद जब भीड़ छंट गई तो माँ से आमना सामना हुआ ।</p><p> मैनें चुपचाप हाथ जोड़े और पूरी स्थिति को उनको सौंप कर कहा ,," अब आप जानो ,,,,जैसा उचित लगे वैसा करो ,मैं मुक्त हुआ " !</p><p> अपनी बात कह कर मैं जल्दी ही नीचे उतर आया । </p><p> नीचे उतरते ही सामने पी एल सिंह मिल गये । वे नगर वितरण केंद्र के अधिकारी थे ,,रोज मंदिर की विद्युत व्यवस्था देखने मंदिर आते ही थे । </p><p> मुझे देखते ही वे मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पास में बने चाय के ढाबे में ले गये । वहां इत्मीनान से बैठ कर उन्होंने कहा ," ,,,</p><p><br /></p><p> " कल आपसे बात होने के बाद मैं सतना गया था । वहां आपका विरोधी पक्ष भी मुझे मिला था । उनसे जब पूछा कि बीच में। 'xx दादा ' को क्यों डाला तो वे बोले कि,,' क्या करें ,?? शर्मा जी झुकने वाले नहीं,,,विभाग में हमारी प्रतिष्ठा खत्म हो चुकी है ,,इधर क्रिमिनल केस दायर हो चुका है ,,एक ही रास्ता है बचने का कि शर्माजी समझौता कर लें ,,,इसीलिए ,,xxx दादा के दरबार में गये थे ,,। आप तो अपनी जाति के हो कर भी साथ नहीं दे रहे ,,,अगर आप जिम्मा ले लें तो दादाभाई क्यों बीच में पड़ें ??'</p><p> पी एल सिंह आगे बोले,,,, कि ,,,मैनें उनसे कहा ,,' तुमने गलत किया,,, इसलिये यह सब हुआ ,,,क्या तुम्हें अपनी गलती का एहसास है ,,??'</p><p> वे बोले,,, " हम कान पकड़ कर शर्माजी से क्षमा मांगने को तैयार हैं । आप इस केस से छुटकारा दिलवा दो ,,'</p><p> पी एल सिह बोले कि,, 'तब चलो ,,पहले ,,'xxx दादा ' के दरबार में स्वीकार करो कि गलती तुम्हारी है ।' </p><p> वे सहमत हो गए तो वे सब मिल कर ,,' xxx दादा ' के दरबार में गए जहां यह तय हुआ कि,,' xxx दादा ' को अब कोइ मतलब नहीं । यह दो विभागों के बीच उत्पन्न हुआ प्रकरण है ,,,कोई जातीय प्रकरण नहीं ,,,इसलिए दादा उनका पक्ष ले कर कुछ नहीं कहेंगें ,,!,,अदालत में कोई जीते या कोई हारे इससे भी उन्हें कोई मतलब नहीं । दो पक्षों के बीच अगर हो सके तो मैं समझौता करवा दूं ,,और यदि न हो पाए तो भी उन्हें कोई मतलब नहीं । ' </p><p> जिसने जैसा जो किया वो वैसा भोगेगा,,। " </p><p> इतना कह कर पी एल सिंह ने अब मूझ पर आंखें गड़ाते हुए कहा ,</p><p> ,," इस तरह अब ' दादा xxx ' तो इस इस मामले से दूर हट गये,,,,,,,,,, लेकिन,,शर्माजी,,!,,मैं,,फंस गया ,,!!,' </p><p> </p><p> " आप किस तरह,,फंस गए ?? " </p><p> </p><p> --- " इस तरह ,,,,कि मैनें उनसे हामीं भर ली कि मैं आपको समझौते के लिए मना लूंगा । " </p><p> सिंह ने आशा भरी निगाह से मुझे ताकते हुए कहा ।</p><p> उनकी अंतिम बात सुन कर जैसे मैं अवसाद के गहरे समुद्र में डूब गया । पी एल सिंह ने मुझे एक आसन्न संकट से उबार लिया था लेकिन अहसान और रिश्तों से भरे अपनत्व के एक मीठे कुएं के जल में फिर से धकेल दिया था ।</p><p> में कुछ कह पाता ,,उससे पूर्व ही पी एल सिंह गम्भीर स्वर में फिर बोले,,,</p><p> "शर्मा जी ,,! हम लोग नौकरी पेशा हैं ,,जाती दुश्मनी क्यों पालें ,,? उधर वे लोग भी नौकरी पेशा हैं ,,,वे मान रहे हैं कि उनसे गलती हो गई है ,,वे क्षमा भी मांगने को तैयार हैं ,,तो क्यों न हम उन्हें क्षमा कर दें ,,?? ,,फिर आप तो ब्राह्मण हैं ,,आप क्षमा कर देंगें तो जीवन भर वे आपके ऋणी रहेंगे ,,। " </p><p> मैं फिर किंकर्तव्य विमूढ़ हो गया । कल तक तो दवाब था किसी बाहुबली का ,,,आज मनुहार थी ,,याचना थी ,,उस अपने की ,,,,जो संघर्ष में मेरा सारथी बना था,,सहयोगी था । </p><p> फिर भी मैनें कहा ,,</p><p> " अब तो क्रिमिनल केस शुरू हो चुका है,,,अब समझौता कैसे सम्भव होगा ,,??"</p><p> सिंह ने कहा ,," इसका हल उनके वकील साहब ने बताया है ,,आप को कोर्ट में बस यह कहना है कि आप ने आक्रमण के समय धुंधलके में ठीक से नहीं देखा ,,,ये लोग ही थे यह विश्वासः से नहीं कह सकते,,!,"</p><p> यह सीधे सीधे होस्टाइल हो जाने का सुझाव था ।</p><p> </p><p> ,,, लेकिन मैं यह कैसे मान लूं कि उन्हें अपने किये का पश्चाताप है ,,वे क्षमा मांगना चाहते हैं ,," ?</p><p>--मैनें अन्तिम प्रतिरोध किया ।</p><p> </p><p>-पी एल सिंह बोले,," वे मेरे साथ आपके घर आकर माफी मांगेंगे ,,गलती स्वीकार करेगें ,,तब तो आप मानेंगे ,,?"</p><p><br /></p><p> </p><p> मुझे लगा कि हम लोग मंदिर के नीचे बैठ कर ये बातें कर रहे हैं तो माँ की यही मंशा होगी । ,,,उसे अस्वीकार कैसे करूं ?</p><p> </p><p> मैनें पूछा - " कब आयेंगें वे लोग ?? माफी मांगने ,,??" </p><p> पी एल सिंह बोले ,," दो दिन बाद उनकी पेशी है ,,वे कल ही हाजिर होंगे आपके सामने ,,क्षमा मांगने । ,,,फिर दो दिन बाद जा कर कोर्ट में जैसा उनका वकील कहे,, वैसा आप कह दीजिये ,,। मामला ,,खत्म,,,। " </p><p> </p><p>मैनें हाँ कर दी ।</p><p> </p><p> लेकिन क्या माँ की यही मंशा थी ,,?? </p><p> क्या सचमुच समझौता होना सम्भव था ,,?? </p><p> शायद नहीं ,,,!!</p><p> क्योंकि वह अंतिम देवदूत तो अब अवतरित होने वाला था,,,अंतिम दृश्य में ,,जिसने पूरे दृश्य को बदल दिया ।</p><p> और जिसकी सीख मेरे हृदय में अमिट हो गई जीवन पर्यंत ।</p><p><br /></p><p><br /></p><p>,,सभाजीत</p><p><br /></p><p> क्रमशः ,,,,</p><p>,,,8,,,</p><p><br /></p><p> दूसरे दिन इतवार था ।</p><p> </p><p> सुबह सुबह ही पी एल सिंह अपनी प्लानिंग के मुताबिक नागौद के उन आरोपी लोगों के ले कर मेरे घर आ गए जिनसे मेरी लड़ाई हुई थी और जिन्होंने मुझ पर प्राणघातक हमला किया था ।</p><p> वे कमरे में आकर एक लाइन में खड़े हो गये । फिर पी एल सिंह के निर्देश पर एक एक व्यक्ति ने रिवहीँ अंदाज़ में आगे बढ़ कर , आधा झुक कर मुझे प्रणाम किया । वे मुंह लटकाए , आंखें झुका कर ऐसे खड़े हो गये जैसे अबोध बच्चे हों और किसी टीचर की आज्ञा पालन करने भयभीत हो कर आये हों ।</p><p> मैनें ध्यान से देखा,, वे अबोध मुखोटे लगाए वही क्रूर चेहरे थे जिन्होंने मरणासन्न होने की स्थिति तक मुझ पर भद्दी मां बहिन की गालियों के साथ लोहे की रॉड से घातक इतने प्रहार किये थे कि बस एक प्रहार और होता तो मेरे बच्चे अनाथ हो जाते ।</p><p> ये वही क्रूर चेहरे थे जो शासकीय अधिकार के मद में चूर हो कर अवैध कमाई को अपना पैतृक अधिकार मानते थे ।</p><p> ये वही चेहरे थे जिन्होंने मुझ पर अपने बचाव में झूठा मुकदमा ठोका था ।</p><p> ये वही चेहरे थे जिन्होंने जिला अस्पताल तक आ कर , वहां के मुख्य चिकित्सक को अपने मन मुताबिक मेरी चिकित्सा बाध्य करने की कोशिश की थी ।</p><p> और ये वही चेहरे थे जो अब सिर झुका कर मुझे आदर देने का ढोंग कर रहे थे ।</p><p> मैनें सोचा ,,क्या ये चेहरे क्षमा करने योग्य हैं ,,.? </p><p> आखिर माँ मुझसे क्या करवाना चाहती हैं ,?? </p><p> क्या क्षमा कोई आभूषण है जो वीभत्स और क्रूर व्यक्ति के गले में भी लटका दिया जाए,?? </p><p> तभी पी एल सिंह ने उन्हें निर्देश दिया । सब लोग शर्मा जी से माफी मांगो ,,।</p><p> उन्होंने एक एक कर के कहा ,,, हमसे गलती हो गई ।</p><p> </p><p> पी एल सिंह ने फिर कहा ,,</p><p> "- पंडितजी हैं,,,अब एक एक करके आगे बढ़ के गोड़ छुवो,,।</p><p> सबने मेरे घुटने छू कर पैर छूने की दिखावटी प्रक्रिया पूर्ण की ।</p><p> अंत में पी एल सिंह ने मुझसे कहा --" देखिये सब पश्चाताप कर रहे हैं माफी मांग रहे हैं आप भी माफ कर दीजिए ,,। "</p><p> </p><p> मुझे यह एक लघु नाटिका से बढ़ कर कुछ और नहीं लगी । फिर भी चूंकि पी एल सिंह से स्वीकार कर चुका था इसलिये सिर हिला कर हाँ करके संतुष्टि दिखा दी ।</p><p> बाहर निकल कर वे सब अपनी सामान्य मुद्राओं में हो गए । बाद में मेरी पत्नी ने बताया कि वे हंसे भी ।</p><p> शायद वो अपनी उस नाट्य कुशलता पर हंसे जिसके जरिये उन्हें लगा कि वे कोर्ट में होने वाले फैसले में वे निर्विघ्न विजयी हो जाएंगे ।</p><p> यह सब देख कर मुझे लगा कि पी एल सिंह नहीं बल्कि पी एल सिंह का प्रस्ताव स्वीकार करके मैं ही फंस गया हूँ । </p><p> वे अपना दावँ खेल कर चले गए थे और मुझे अपने हिसाब से </p><p>उनके पाले में पूर्व निर्धारित खेल खेलने को आमंत्रित कर गये हैं ।</p><p> लेकिन अब क्या हो सकता था ? ,,वकीलों के दावँ पेंच से में अनभिज्ञ था । न्याय में सत्य प्रमाणित करना कितना कठिन है यह बात मेरी समझ में आने लगी थी । </p><p> तीसरे दिन पी एल सिंह घर आ गए । साथ में दो लोग और थे जो शायद उन्ही ओपियों के रिश्तेदार थे जो माफी मांग कर गये थे । उन्होंने कहा ,,,जल्दी चलें ,,हो सकता है पुकार जल्दी हो जाये ,,और फिर वकील साहब बताएंगें कि कैसे और क्या बोलना है ,,।इसलिये जल्दी पहुंच कर समझ लें तो ज्यादा अच्छा रहेगा ।</p><p> मेरा मन मुझे अंदर ही अंदर कोसने लगा । मुझे वकील का सिखाया वहः झूठ बोलना था जो बिल्कुल सच नहीं था । लेकिन शायद मैं अब ट्रैप हो चुका था ।</p><p> और में ही क्यों ,,शायद पी एल सिंह भी ट्रैप ही हुए थे । एक ही जाल से ,,,अपनत्व के जाल से । वे जातिवाद के भाईचारे के जाल में फंसे थे ताकि उनके बन्धु बांधव सजा से बच जाए ,,और मैं विभागीय अहसान और सहयोगी भाई चारे के जाल से ताकि पी एल सिंह का विभागीय अहसान चुका सकूं ।</p><p> मन तो हुआ कि आज मना कर दूं किन्तु संकोच में रह गया । </p><p>चलते समय एक बार मंदिर की ओर नीचे से ही मुंह करके मां को प्रणाम किया और फिर सब कुछ उन्हें सौंप कर पी एल सिंह के साथ अन्य दो लोगों से घिर कर में कोर्ट पहुंचा ।</p><p> कोर्ट शुरू हो चुका था पर न जाने क्यों जज साहब बीच में ही उठ कर अपने चैंबर में जा कर बैठ गए थे । मेरे विरोधियों के वकील साहब शहर के जाने माने क्रिमिनल केसों के वकील थे । </p><p> वे जाति से ब्राह्मण और सरनेम से शर्मा ही थे । उन्होंने जाने कितने दुर्दांत अपराधियों को जेल जाने से बचाया था इसलिए वे बहुत कम समय मे प्रख्यात हो गये थे । </p><p> मुझे देख कर वे मुस्कराए,,फिर उन लोगों से कहा ,,"- आखिर तुम लोग ले ही आये इन्हें ,,अब ठीक है,,आपको वही कहना है जो पहले बताया था । कोर्ट में इन्हें तुम लोगों को नहीं पहचानना है ,,बस ,,!!" </p><p> जज साहब अभी नहीं बैठे थे ,,तो हम लोग बाहर निकल कर आ गये । लगा अभी पुकारे के लिए देर है ,,तो पी एल सिंह ने कहा ,," चलो तब तक कहीं चाय पी लेते हैं । " </p><p> हम लोग पास के एक बड़े रेस्टुरेंट में घुस गए । </p><p> तुरन्त चाय और काफी का सुविधानुसार आर्डर हुआ । फिर किसी ने कहा ,,' एकएक रसगुल्ला हो जाये ,," !</p><p> तभी मैनें देखा कि सामने की टेबिल पर मेरे परम् मित्र श्री लाजपत राय बैठे हैं ,,वे किसी काम से कोर्ट आये थे । शायद किसी से मिलने ,,क्योंकि अमूमन उन्हें कोर्ट आने की जरूरत कभी पड़ती ही नहीं थी । वे जाती से सिंधी थे किंतु सात्विक और ईमानदार । वे सतना नगर के सिंधी समाज के मुखिया थे । और सतना नगर में कोल्ड हाउस के मालिक थे ।</p><p> उन्हें सब लोग जानते थे । न सिर्फ सतना में बल्कि आसपास के अन्य नगरों में भी । उनकी प्रतिष्ठा इतनी थी कि उनके आफिस में नगर के कई लोग समस्या सुलझाने भी चले जाते थे ।</p><p> उन्हें देखते ही मैनें मुस्करा कर , हाथ उठा कर नमस्कार किया किन्तु उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया ।</p><p> तभी रसगुल्ला मेज पर लग गया । मेरे विरोधी भी उनसे अच्छी तरह परिचित थे तो आदर सहित एक प्लेट रसगुल्ला उनकी टेबिल पर भी पहुंचाया ।</p><p> उन्होंने प्लेट की तरफ किंचित न देखते हुए मेरे विरोधियों से पूछा ,," क्या बात है ,,आज बहुत अच्छा दिन है ,,आप लोगों को एक साथ देख रहा हूँ ।,,क्या हुआ आप का केस निपट गया ,,?? " </p><p> मेरे विरोधियों ने कहा ,," निपटा ही समझिए ,,,।,,हम लोगों में आपसी समझौता हो गया है ,,!" </p><p> लाजपत राय ने थोड़ा बनते हुए पूछा ,," क्या केस विदड्रा हो गया या आपके हित में फैसला हो गया ,,? " </p><p> मेरे विरोधियों ने उत्साहित हो कर कहा ,,," फैसला हमारे पक्ष में हुआ ही समझिए,,इसी लिये रसगुल्ला पेश किया है,,,मुंह मीठा करिए ,,शर्माजी हमारे पक्ष में बोल देंगें ,,यह तय हो गया है । " </p><p> लाजपत राय उठ खड़े हुए ,,रसगुल्ले की प्लेट उन्होंने सामने से सरका दी । फिर हाथ जोड़ते हुए बोले ,," रसगुल्ला तो फैसले के बाद ही खाऊंगा ,,अभी नहीं । " </p><p> उठने के बाद उन्होने एक भरपूर द्रष्टि मुझ पर डाली । उस द्रष्टि में ऐसा न जाने क्या था जो मुझे चीर गयी । </p><p> वहः द्रष्टि हिकारत की थी । क्षोभ की थी । उलाहने की थी । सवालों की थी ।तिरस्कार की थी । मित्रता की शिकायत की थी ।</p><p><br /></p><p> लाजपत राय की यह द्रष्टि , और उनका रसगुल्ले की प्लेट को तिरस्कृत करना मुझे बींध गया ।जिस द्रष्टि ने सदा मुझे आदर से देखा था ,जिसमें मेरी प्रतिष्ठा थी वहः आज इस रूप में क्यों मुझ पर उठी यह सोच कर में विह्वल हो उठा ।</p><p> अब मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैं जैसे लड़खड़ा उठा ।</p><p> रेस्टुरेंट से बाहर आते ही मैनें कहा ,,-" मेरी तबियत ठीक नहीं</p><p>आज मैं गवाही नहीं दे पाऊंगा ।" </p><p> पी एल सिंह सहित सभी अन्य लोग विचलित हो गये ।</p><p> बोले ," अभी तो आप ठीक थे अभी क्या हुआ ,,?? " </p><p> मैनें कहा -" मैं नहीं जानता । लेकिन मुझसे बोलते नहीं बन रहा ,,अब मैं घर जाऊंगा । " </p><p> उन सब ने मुझे समझाने मनाने की कोशिश की किन्तु मेरे कान तो जैसे सनसना रहे थे ।</p><p> मुझे लग रहा था कि कब में लाजपत राय के घर पहुंचूं ,,और उससे उसकी उस निगाह के बारे में पूछूं,, कि " तुम क्या कहना चाहते हो ,,?? " </p><p> आखिर पी एल सिंह मांन गये और अगली तारीख पर गवाही देने का वादा ले कर मुझे छोड़ दिया ।</p><p> में वहां से निकला और स्कूटर से सीधे लाजपत राय के घर भागा ।</p><p> लाजपत राय घर नही पहुंचा था ,,लेकिन में उसके आफिस के बाहर पड़ी बेंच पर निढाल हो कर बैठ गया ।</p><p> कुछ देर बाद लाजपत राय आया ,,लेकिन मुझे बिना देखे आफिस में घुस गया ।</p><p> यह स्पष्टतः मेरी उपेक्षा थी ।</p><p> लेकिन क्यो,?? </p><p> इसका जो उत्तर आगे लाजपतराय देने वाला था वहः मेरी कल्पना से बाहर था ।</p><p><br /></p><p> -' सभाजीत ' </p><p> </p><p> क्रमशः,,</p><p>,,,9,,,</p><p><br /></p><p> लाजपत राय जब इस तरह मुझे उपेक्षित करके अपने कार्यालय में घुस गया तो मुझे अब अपने पर और भी ग्लानि हुई । इसी सतना नगर का जब मैं विद्युत अधिकारी था तो यह व्यक्ति मुझे अपने आफिस के द्वार में घुसते देख कर उठ खड़ा होता था ,,,हाथ जोड़ कर नमस्ते करता था । अब ऐसा क्या हुआ जो उपेक्षा कर रहा है ।</p><p> मेरी मझली बेटी को ठीक दिवाली पर ,अचानक बीमार होने पर , खून चढ़ाने की जरूरत हुई तो तुरन्त इसी व्यक्ति ने न सिर्फ खून का इंतजाम करवाया था बल्कि रात में रुक कर मेरा साथ दिया था । इसके आफिस में बैठ कर हम लोग घण्टों मनोविनोद करते,,तो यह खाना खाना भी भूल जाता । मेरी किसी भी समस्या को यह फोन पर ही। लोगों से बात करके सुलझा देता था । सामाजिक कार्यक्रमों में अगर मुझे देख लेता तो मेरे पास आकर बैठ जाता । कितने ही मेरे और इसके मित्र कॉमन थे । नागौद कांड में अस्पताल में भर्ती होने पर करीब करीब हर दिन मुझे देखने आता था ।</p><p> फिर ऐसा क्या हुआ जो अब यह मेरी उपेक्षा कर रहा है ,,?? क्या नागौद कांड से मेरी प्रतिष्ठा इसकी नजर में धूमिल हो गई है ,,?? क्या मैहर तबादले से में अब क्या इसके लिए मूल्य हीं हो गया हूँ ,,?? </p><p><br /></p><p> यह सोच कर में उठा और उसके आफिस में घुस गया । वहः अंदर पहले से बैठे दो लोगों से बात कर रहा था । मुझे देख कर उसने किंचित मुस्करा कर अभिवादन किया फिर बैठने को कह उन्ही दो लोगों से बात करने में मशगूल हो गया ।</p><p> उनलोगों की बात जल्दी ही खत्म हो गई और जब वे चले गये तो हम दोनों कमरे में अकेले बचे ।</p><p> अब वहः मेरी तरफ मुखातिब हुआ ,,बोला- ," कैसे आना हुआ शर्माजी ,,! ,,मुझ से कोई काम है ,,?" </p><p> -" काम न होता तो क्यों आता ,,?? "- मैनें कहा ।</p><p> " कहिये,, क्या खिदमत करूं ,,? " - उसने कहा ।</p><p> मैनें उसके चेहरे पर नज़र गड़ाते हुए पूछा ,,- " लाजपत राय ,,अभी हम लोग कोर्ट में मिले थे ,,आपने मेरी ओर देखा तक नहीं ,,क्या भूल गये ,,?? </p><p> " भूला तो नहीं ,,पर अब भूल जाना चाहता हूँ ,,!"</p><p> -" क्यों ,?? </p><p> " इसलिए कि आज से मैनें कसम खाई है ,,की में किसी ,,' ईमानदार ' का साथ नहीं दूंगा । "</p><p> उसका यह वाक्य ठंडी छुरी की तरह मेरे जेहन को जैसे बींध गया ।</p><p> थोड़ी देर निस्तब्धता के बाद उसने मुझे घूरते हुए कहा - " क्या हुआ ? आपने समझौता करके आज उनके पक्ष में गवाही दे दी ,?? " </p><p> मैनें कहा --" नहीं ,,! आपके चले आने के बाद मैंने मना कर दिया,,न जाने क्यों,,मुझे अच्छा नहीं लगा ।" </p><p> लाजपत राय थोड़ी देर चुप रह कर बोला ,," शर्मा जी ! ,,आपके ऊपर हमला होने से लेकर कोर्ट जाने तक क्या आपने अपनी लड़ाई अकेले लड़ी,??" </p><p> मैनें कहा --" नहीं ,,!" </p><p> लाजपतराय बोला --" तब समझौते आ अधिकार आपने अकेले कैसे ले लिया ,,?? " यदि आप अपने अकेले के बल पर लड़े होते तो मुझे कोई शिकायत न होती,,लेकिन मुझे दुख है कि आपने अपने दोस्तों का हकऔर सहयोग को छीन लिया !" </p><p> आप जानते हैं कि आप के होस्टाइल होने के बाद क्या होगा,,??,,जज आपके बारे में भी टिप्पणी दर्ज कर सकता है,,आप की पूरी शख्शियत पर हमेशा के लिए दाग लग सकता है । "</p><p> दूसरे झूठे और बेईमान लोग जीत जायेंगें ,,वे लोग फिर बेईमानी करेंगें,,और आप जैसे ईमानदार लोग फिर पिटेंगे। ,,हो सकता है मर भी जाएं । " </p><p> एक केस आप पर भी दायर है ,,खुद बेदाग बरी होने के बाद वे झूठे गवाह पेश करके आपको जेल भी भिजवा देंगे,,।</p><p> तब हम लोगों का किसी ईमानदार के साथ खड़े होने से क्या फायदा ,,?? '</p><p> -" आपके विरोधी भी तो हमारे भी मित्र हैं । इसी आफिस में आकर उन्होंने कितने बार क्षोभ प्रकट नहीं किया कि हम उनका साथ न दे कर आपका साथ दे रहे हैं । हमारी आपस में बुराई भी बढ़ी,,,आपके खातिर । हम पग पग पर आपकी टोह लेते रहे ,,आपकी सुरक्षा के लिए ,,अभी भी दादा भाई को हमीं ने खबर भेजी की शर्मा जी हम लोगों के बीच के आदमी हैं और अच्छे आदमी हैं ,,,तभी उन्होंने खुद को अलग किया ।</p><p>पी एल सिंह को तो दादा भाई के हट जाने के बाद उन्होंने उपयोग किया है ,,,।" </p><p> क्या अब भी आप उन्हें बचाने के लिए उनके पक्ष में गवाही देंगें ,,??"</p><p> </p><p> मुझे अब कुछ भी सुनाई देना बंद हो गया था ।</p><p> मैनें उठ कर लाजपतराय के हाथ अपने हाथ में लिए और मेरी आँखों में भर आईं ,एक बूंद उस पर चू गईं । मैनें देखा कि उसकी भी आंखें बातें करते करते भर आईं थीं ।</p><p> अब मैं एक पल भी उसके पास नहीं रुका ।सीधे घर आया और आते ही मंदिर की देहरी पर जा कर माँ को प्रणाम किया ।</p><p> मैनें कहा --" माँ तुम्हारा नाम शारदा यूं ही नहीं है ,,तुम आदि शक्ति हो ,,लोगों के विवेक और जिव्हा में वास करती हो ,,तुम किसी के भी माध्यम से , उसके विवेक में विराज कर , उसकी जिव्हा से कुछ भी करने में समर्थ हो । तुमने सदा सत्य के रक्षा की हर युग में ,,,आज मुझ पर भी असीम दया की ,,में कृतार्थ हूँ।" </p><p>****</p><p>***********</p><p><br /></p><p>इसके बाद का वृत्तांत बहुत छोटा है ।</p><p> मैन दूसरी बार कोर्ट में अपनी गवाही में आरोपियों को स्पष्टतः पहचाना । उन के कृत्य को बताया ।</p><p> जज पराशर ज़ाहब ने तीनों को तीन तीन साल की सजा से दंडित किया और उन पर तीन तीन हज़ार का जुर्माना किया ।</p><p><br /></p><p> हालांकि,, वे हाई कोर्ट जा कर फिर छूट गये ।</p><p><br /></p><p> मेरे केस में में बेदाग बरी हुआ ।</p><p>*****</p><p><br /></p><p> यह वृत्तांत मैनें लोगों के मनोरंजन के लिए नहीं लिखा,,बल्कि उस मित्र की याद में लिखा जो कुछ दिन पूर्व ही यह दुनिया छोड़ कर चले गये ।</p><p>*** </p><p>वाट्सएप में लिखना कितना मुश्किल है ये वे लेखक जानते हैं जो लिखते हैं ।</p><p>इस लिए शाब्दिक त्रुटियोंऔर व्याकरण के लिए क्षमा ।</p><p><br /></p><p> ' सभाजीत '</p>sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-65537555344568134972020-06-27T09:01:00.008-07:002020-09-20T08:26:29.091-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<b><span style="font-size: large;">सिंहावलोकन</span></b><br />
<br />
1956 के संभवतः अप्रैल माह में मेरे पिताजी का ट्रांसफर , पन्ना के गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल से , नौगावं के ब्वायज़ हायर सेकेंडरी स्कूल में , संगीत शिक्षक के पद पर हुआ !मैं उस समय करीब छह वर्ष का रहा होऊंगा ! एक वर्ष पूर्व , मैं कुछ दिन , पन्ना के प्रायमरी स्कूल में कक्षा एक में पढ़ा ,,लेकिन वहां मुझे अच्छा नहीं लगता था तो दो तीन माह बाद ही , मुझे मेरे दादा- दादी जी के पास चिरगावं भेज दिया गया था ,,जहां मेने कक्षा एक की प्रारम्भिक पढ़ाई पूर्ण की ! जब पिताजी नौगावं में , ज्वाइन करके , एक मकान ले लिए तो मुझे और मेरी माताजी को , जिन्हें मैं " बाई " कहता था , ले कर नौगावं आये !<br />
यह मकान नौगावं की कोतवाली के सामने ही था ! मकान का यह ऊपरी हिस्सा था और मकान के आगे एक छज्जा था ! एक माह बाद ही मेरा एडमिशन नौगावं के प्राइमरी स्कूल की कक्षा दो में करा दिया गया ! शुरू में एक सप्ताह तक तो मेरे पिताजी आकर मुझे छोड़ जाते और ले जाते रहे ,,लेकिन जल्द ही मुझे घर आने का रास्ता याद हो गया !<br />
जल्दी ही पिताजी ने मकान बदल दिया ! कारण यह था की रात में कोतवाली में अपराधियों की पिटाई होती तो वे बहुत आर्त स्वर में चिल्लाते थे और उनकी दयनीय आवाजें हमें साफ़ सुनाईं देती ! मेरी बाई रात में उठ कर बैठ जातीं ,, और विह्वल हो जातीं ! तब जो नया मकान मिला ,,वह नत्थू शर्मा चौराहे पर बना श्रीवास्तव परिवार का मिला !यह परिवार अच्चट् के जमींदार साहब के कुटुंब का था ! इस कुटुंब में कई भाई थे ,,जिनमें सबसे बड़े थे शारदा बाबू ! उनके चचेरे भाई , किशन श्रीवास्तव के हिस्से में जो मकान आया था वो ठीक हमारे बगल में था ! उसके बाद उन्ही के एक अन्य चचेरे भाई के हिस्से में यह भाग था , जो कानपुर में रहते थे ,,और इसी लिए मकान हमें खाली मिल गया ! यह मकान दोमंजिला था ,, जिसमें नीचे दो कमरे और ऊपर दो कमरे , एक छत , रसोई , वगैरह थी ! हमलोगों के लिए यह पर्याप्त जगह थी !<br />
इस मकान में हम लोग करीब आठ वर्ष रहे !<br />
<br />
<b><span style="font-size: large;"><br /></span></b>
<b><span style="font-size: small;"> शख्शियत -1</span></b><br />
<b><u><span style="font-size: small;"> "नत्थू शर्माजी "</span></u></b><br />
<br />
<br />
इस मकान में आने के बाद सबसे पहले मैनें नत्थू शर्मा जी को जाना !<br />
यह चौराहा ही पूरे नौगावं में , उनके नाम से ही विख्यात था ! चौराहे पर उनकी मुख्यतः दूध दही की दो कमरे वाली दूकान थी ,,जिसके एक कमरे में एक भट्टी जलती रहती थी और दूसरे कमरे में वे खोवे की बनी मिठाइयां और दही सम्हाल कर रखते !कमरों के सामने एक छपरी थी ,,जिसमें एक बहुत छोटी सी दो खंड वाली मटमैली सी रैक रखी रहती थी ! दिन में कुछ मिठाइयां , जिनमें पेड़ा , बर्फी ,रबड़ी , मलाई , आदि प्रमुख रहते थे , लाकर सजा दिए जाते थे !<br />
सुबह सुबह उनकी दूकान पर गावं से दूध ले कर आने वालों की भीड़ मच जाती ! बड़ी बड़ी कढ़ाइयों में दूध उड़ेल दिया जाता ,,और फिर वो भट्टियों पर औंटता रहता !<br />
नत्थू शर्मा जी , हष्ट पुष्ट , गोल मुख वाले व्यक्ति थे ! वे अक्सर नंगे बदन रहते ,,और एक धोती पहने रहते ! एक जनेऊ , उनके गोरी देह पर , पेट पर लिपटी हुई , उनके ब्राम्हण होने की गवाही देती थी ! वे स्वभाव से कड़क थे , लेकिन दिल से बहुत नरम थे !<br />
जल्दी ही हम उनके ग्राहक बन गए ! दही तो अक्सर शाम को ले ही आते ,, कभी रबड़ी भी खरीद लाते !वैसी स्वादिष्ट रबड़ी और दही हमने कहीं और नहीं खाई ! कभी कभी वे रसगुल्ले भी बनाते थे ,,, जो मेरी ख़ास पसंद होते थे !<br />
कुछ दिनों बाद उनसे उधारी भी चलने लगी ,,! पहले तो वे स्ट्रिक्ट रहे,,,, बाद में ,, आलस में कहते ,,तुम्ही लिख दो कॉपी में ! उस समय तक नौगावं में पुराने सिक्के और पुराने बाँट ही चलते थे ,,जिनमें इकन्नी , दुअन्नी , चवन्नी , अठन्नी के सिक्के होते और वज़न के लिए , पाव , छँटाक , आध पाव , ही होते थे ! तराजू भी डंडी वाली ,, डोरियों से लटकती पल्लों की होती ,,, जिसमें कम ज्यादा हो जाए तो कोई बुराई नहीं थी ! कॉपी में लिखने की शैली भी पुरानी थी जिसमें एक निशाँन के बाहर सीधी खड़ी लकीरों से और आड़ी लकीरों से पाव , छँटाक लिख दिया जाता !<br />
उस समय चार आने की एक पाव मिठाई मिल जाती थी ! यानी एक रुपया सेर ,,!<br />
जल्दी ही शर्माजी के दो पुत्रों को मैंने देखा ,, जिसमें छोटे का नाम गोविन्द था ,, और बड़े का नाम गोपाल था ! दोनों ही अपने पिता जी की तरह सुदर्शन थे ! कालान्तर में जब मेरी मित्रता छोटे भाई गोविन्द से हो गयी तो मैं उनके घर भी गया ! जब चाची जी को देखा तो मुझे लगा की ऐसी माता जी सबको मिले ! वे भी बहुत सुन्दर और मृदु स्वभाव की थीं ! गोविन्द के साथ उसके घर जाने पर वहां हमें चाचीजी के हाथ से रबड़ी खाने को जरूर मिलती थी !<br />
कुछ वर्षों बाद , रामलीला में मुझे जब पहले लक्ष्मण और बाद में राम के स्वरूप के लिए चुन लिया गया तो गोविन्द ने मेरे साथ लक्ष्मण के स्वरूप का अभिनय किया ! वो बहुत ही मृदुऔर व्यवहारी लड़का था ,, और यद्यपि मुझसे पढ़ाई में बहुत जूनियर था ,,फिर भी मेरे मित्र की तरह हो गया था !<br />
शर्मा जी का परिवार बहुत सुखी था !,,,, तभी , किसी घातक रोग के कारण अचानक गोविन्द की मृत्यु हो गयी ! वह शर्माजी के लिए बहुत बड़ा आघात था ! उन्होंने दूकान बंद कर दी और और अस्वस्थ हो गए ! फिर वे कभी नहीं उबर पाए ! यद्यपि बड़े भाई ,,विटनरी में डाक्टर के पद पर नियुक्त हो गए थे , किन्तु शर्मा जी छोटे पुत्र के वियोग को बिलकुल सहन नहीं कर पाए !<br />
जो चौराहा ,,कभी नत्थू शर्मा जी का चौराहा कहलाता था , जल्दी ही अपने नाम की पहचान खो दिया ! इस बीच करीब 1964 में , श्रीवास्तव परिवार में विवाद हो जाने के कारण , कानपुर वाले भाई ने अपना मकान , शारदा बाबू के छोटे भाई सतीश को बेच दिया ,,तो हमें तुरंत मकान बदलना पड़ा ! आनन् फानन में जो नया मकान मिला ,,वह मड़ियाँ मोहल्ले में ,, जैन परिवार के बगल में मिला ! यह मकान किसी ठाकुर का था जो गावं में रहते थे ! हम लोग जब वहां चले गए तो शर्माजी से प्रतिदिन का निरंतरता का सम्बन्ध छूट गया !<br />
इस बीच गोविन्द के बड़े भाई का विवाह हुआ ! नौगावं में उस समय एक उत्सुकता हर घर की महिलाओं को होती थी की किस घर में कितनी सुन्दर बहू आयी है ,,?? गोविन्द के बड़े भाई की बहू की धूम पूरे नौगावं में गूँज गयी की वो अत्यंत सुन्दर है ! सभी महिलायें उसके दर्शन करने को लालायित हो उठीं ! लेकिन मजाल जो वह कभी घर के बाहर दिख जाए ,,?? गोविन्द की माता जी का अनुशासन ही ऐसा था की बहू घर से बाहर नहीं आयी ! यहां तक की मंदिर भी नहीं गयी !<br />
लेकिन एक जगह ऐसी थी जहां उस बहू को आना ही पड़ा ,,,और वह था' ' पाठक फोटो स्टूडियो ',,! लिहाजा वह जब वहां अपने पति के साथ फोटो खिंचाने आयी तो मोहल्ले की महिलायें , दूर से ही उसके दर्शन करने का यत्न करने लगे ! किसी को झलक मिली ,,किसी को नहीं ,, क्योंकि स्टूडियो के नियम भी स्ट्रिक्ट थे ,! वहां परदे का पूरा इंतजाम था !,और तुरंत फोटो खींचने के बाद वो वापिस भी हो गयी ~!<br />
नत्थू शर्मा जी और गोविन्द की शक्ल मेरी यादों से कभी बाहर नहीं हुई ! और न ही उस ईश्वर की क्रूरता की ,,जिसने विधान रच कर एक बहुत ही अच्छे व्यक्ति का अचानक अवसान रच दिया !<br />
<br />
क्या अब भी वह परिवार वहां है ,,या नौगावं छोड़ गया ,,? यह मुझे नहीं मालूम ! यदि कभी नौगावं की पहचान के पदचिन्ह ढूंढने पड़ें तो इस शख्सियतके बारे में शोधकर्ता जरूर पता लगाएं !<br />
<br />
<b><i>--सभाजीत</i></b><br />
<br />
<br />
<br />
<b> शख्शियत -2</b><br />
<b> किशन चच्चा और शारदा बाबू श्रीवास्तव</b><br />
<br />
नत्थू शर्मा चौराहे पर बने , जिस घर में मेरा आठ वर्ष का बचपन गुजरा , वह श्रीवास्तव परिवार का तीन हिस्सों में बाँटा हुआ बड़ा घर था ! जिस भाग में हम किराए से रहते रहे , वह उन तीनों हिस्सों में से , दो खण्डों में बना सबसे बड़ा हिस्सा था !निचले हिस्से में चार कमरे थे जिसमें से दो कमरों को छोड़ कर हमें दो कमरे दिए गए और ऊपर का पूरा भाग जिसमें एक छोटी छत थी , एक रसोई , और तीन कमरे , हमें किराए पर रहने के लिए मिले ! इस हिस्से के मालिक , श्रीवास्तव परिवार के ही सदस्यों में से एक थे जो कानपुर में रहते थे ,,और उन्हें हमने जिन्हें कभी नहीं देखा ! मकान का किराया , इस मकान से सटे , एक अन्य भाग में रहने वाले , किशन चच्चा लेते थे , जिनका आँगन , हमें अपनी छत की मुंडेर पर चढ़ कर देखने से दिख जाता था ! किशन चच्चा से हमारे बहुत घरेलु सम्बन्ध बन गए ! वे एक सज्जन और मिलनसार व्यक्ति थे !उनके परिवार में उनकी विधवा माता जी , एक बहिन , पत्नी , एक बिटिया और एक पुत्र थे ! चाचीजी की मित्रता मेरी माताजी सेबहुत जल्दी ही प्रगाढ़ हो गयी क्योंकि चाची जी को अपनी पारिवारिक चर्चाओं को शेयर करने के लिए , एक नई हमउम्र महिला पड़ोसन मिल गयी थी !<br />
इस घर में आकर हमें सबसे आकर्षक चीज दिखी , वो ऊपरी हिस्से के सड़क की तरफ बनी , कमरे में लगी झरोखे दार खिड़की थी जो लकड़ी की पट्टियों से बनी , एक लीवर से खुलने वाली पल्ले वाली खिड़की थी ,,जिसे खींच कर हम , सड़क पर चलने वाले व्यक्ति को आसानी से देख लेते थे , किन्तु सड़क पर चलने वाला व्यक्ति हमें नहीं देख सकता था !इसी कमरे में दीवार में बनी एक अलमारी भी थी ,,जिसकी तली का पैदा हटाते ही वह , किशन चचा की ऊपर वाले कमरे में , दूसरी तरफ की दीवार में बनी अलमारी में खुल जाती थी , जिस में , हाथ डाल कर किसी भी चीज का आदान प्रदान आसानी से इस और से दूसरी और किया जा सकता था ! इस एक्सचेंज मार्ग का उपयोग बड़ी सहृदयता से हमारी माता जी और चाची जी के बीच होता रहा ! जब कभी भी कोई व्यंजन हमारे घर बनता तो वह इसी मार्ग से चाची जी को बुला कर थमा दिया जाता , और इसी तरह वहां से भी व्यंजन बेखटके , हमें भी मिल जाते !उस समय सिर्फ पड़ोसियों के दिल ही एक दूसरे से मिले हुए नहीं होते थे , बल्कि घरों की दीवारों के दिल भी एक दूसरे घर से मिले होते थे !<br />
उन दिनों , नौगावं में अधिकाँश मकानों की छतें पक्की नहीं होतीं थी ! सभी पर खपरैल होती थी जिसकी लौटावनी ( मेंटेनेंस ) , मई माह में करवाना जरूरी होती थी !मई माह में ही मजदूर सडकों पर इस काम के लिए दिखने लगते थे , और खपरों से भरी बैलगाड़ियां भी घूमती दिखतीं , जो सैकड़े के हिसाब से नए खपरे बेचने निकट के गावों से नौगावं आती थीं , ताकि टूटे खपरों की जगह नए खपरे लगाए जा सकें ! चूँकि हमारे मकान मालिक कानपुर में रहते थे , इस लिए लौटावणी करवाने की जवाबदारी , उन्होंने हमें ही सौंप रखी थी ! मुझे लौटावणी के काम को देखने में बहुत मजा आता था ! एक बारगी सारे खपरे , ऊपर से निकाल दिए जाते और कमरों में सीधे धूप पड़ने लगती !,,,फिर एक एक पंक्ति में , ढाल बना कर , खपरे इस तरह सजाये जाते की पानी उन खपरों की नालियों से बहता हुआ ,, नीचे सड़क पर गिर जाए ! कभी कभी मजदूर ढाल सही नहीं बनाते थे , तो पानी खपरों में दरार बना कर बीच कमरे में टपकने लगता ,,! इस अवसर पर फिर किसी कम वजन वाले व्यक्ति को खपरों पर सावधानी पूर्वक पैर रखते हुए उस स्थान तक जा कर या तो ढाल सही करनी पड़ती , या खपरा ही बदलता पड़ता !, और इस बात के लिए मैं घर में सबसे योग्य व्यक्ति था जो ऊपर चढ़ कर , सटीक ढाल बना देता था , या खपरा बदल देता था ! भारतीय इंजीनियरिंग का यह शायद पहला पाठ था , जिसने मुझे बाद में इंजीनियरिंग की दिशा में धकेला !<br />
किशन चच्चा के घर से सटा , श्रीवास्तव परिवार के मकान का जो तीसरा हिस्सा था , उसमें सम्मलित रूप से अपने छोटे भाई के साथ रहते थे - ' शारदाश्रीवस्तव ' !शारदा बाबू के तीन बच्चे थे ,,तीनों लड़के ! जबकि उनके छोटे भाई संतोष श्रीवास्तव के एक पुत्र और एक पुत्री थी !शारदा बाबू नगर के प्रतिष्ठित लोगों में गिने जाते थे ! बाजार में उनकी एक गहनों की दूकान थी ,,,जिसमें गहने या तो सुधरते थे अथवा बनते थे ! इस दूकान में वे सेठ की तरह , जाकर गद्दी पर बैठ जाते ,,और एक मुनीम , जो काम का हिसाब लेता था , उन्हें पूरा व्योरा देता था की आज कारीगर , या सुनार कौन सा काम करेगा ! इस दूकान में अक्सर मैनें गावं से आये जरूरतमंद लोगों को देखा , जो अपने जेवर गिरवी रख कर या तो उधार पैसा लेने आते या फिर छुड़वाने आते थे !<br />
श्रीवास्तव परिवार अचट्ट गावं की जमींदारी से सम्बंधित परिवार था ! मैंने एक दो बार ही शारदाबाबू जी के पिताजी को देखा , जो गावं से यदाकदा , नौगावं आते थे ! वे अक्सर अंग्रेजों के जमाने वाली फोर्ड कार से आते थे और दूसरे दिन ही लौट जाते थे ! रोबीले व्यक्तित्व के धनी , जमींदार साहब की आवाज़ और मुखाकृति , किसी में भी भय उत्पन्न कर देती थी ! इसी भय के कारण मैनें कभी उनका सामना नहीं किया !<br />
शारदा बाबूजी के तीन बच्चों में सबसे बड़े मुन्नन ,,यानी सुधीर श्रीवास्तव से मेरी शीघ्र ही गहरी दोस्ती हो गयी ! मुन्नन से छोटे भाइयों में बिन्दु , यानी अरविन्द मुझे भाई साहब कहने लगे ! शारदा बाबू जी , जमींदार साहब के बड़े पुत्र होने पर भी , बहुत सरल और नरम ह्रदय के व्यक्तित्व थे ! उसी परम्परा में मुन्नन और भी ज्यादा सरल स्वभाव के बच्चे बने , किन्तु तुनक मिजाजी , और रईसी की ठसक उन्हें वंश परम्परा में मिली ! ! उस घर में , मुझे जिनसे बहुत स्नेह और प्यार मिला वह थीं ,',मुन्नन की माता जी ' ! वे बांदा की थीं ,, और धार्मिक आस्थाओं में गहन विश्वाश रखती थीं ! कोई भी तीज त्यौहार , व्रत उनसे नहीं छूटता था ! वाणीं बहुत मधुर और स्नेह सिंचित थी !<br />
श्रावण माह में शाम को वे एक चौकी लगा कर , , अर्थयुक्त बड़ी रामायण पढ़तीं थी जिसमें चौपाइयां और दोहे सस्वर होते थे और अर्थ को वे इस तरह बाँचतीं की आँखों के सामने दृश्य ही उत्पन्न हो जाता था ! वे हम बच्चों को निर्देशित करती थीं की हर दिन रामायण जरूर सुनें ,, कोई भी प्रसंग छूटे नहीं ,,, इस लिए मैं शाम होते ही मुन्नन के घर पहुँच कर पहली पंक्ति में बैठ जाता ! हम लोगों के पीछे दरी बिछा कर शारदा बाबू बैठते , और कभी कभी संतोष बाबू भी ! मेरे बाल मन पर राम की महिमा का जो प्रभाव पड़ा , उसमें मुन्नन की माता जी का ही योगदान है ! मैं उनका आज भी ऋणी हूँ !<br />
हमारे घर के सामने वाली सड़क के उस पार , दूसरी तरफ , ,,, बीड़ी का एक बड़ा कारखाना था ,,जिसके मालिक शारदा बाबू ही थे ! इस कारखाने का द्वार , नत्थू शर्माजी की दूकान के सामने की तरफ से था ! लेकिन इस कारखाने को मैनें जब भी देखा , बंद ही देखा !मुन्नन ने बताया की सरकारी पैसा देना बाकी है इसलिए अभी बंद है ,,लेकिन पिताजी ने बताया है कि जल्दी ही शुरू हो होगा ! इस कारखाने के पिछले हिस्से में कार का एक गैरिज था , जो अक्सर खाली रहता था ! मुन्नन ने बताया की उनकी कार अचट्ट गावं में है ,,जो जब आती है तब यहीं खड़ी की जाती है ! खाली गैरिज में हम लोगों के खेलने के लिए उपयुक्त जगह थी ! इस जगह में हमने कंचे खेलने शुरू किये ! सुधीर कंचों पर निशाना लगाता ,, और न लगने पर भी हेकड़ी दिखाता की वह दावं नहीं देगा ,, कारण की खेल उसके गैरिज में खेला जा रहा था ! सीधे साधे मुन्नन का जमींदारी रंग उसमें साफ़ दिखने लगता था ,और तब हम खेल छोड़ देते थे !, ! उस समय कंचों की उधारी भी चलती थी ! उसने दो कंचे उधार दे कर अपने लिए दो दावं सुरक्षित करवा लिए ! लेकिन मैं उससे जीत गया तो उसे कुछ कंचे मुझे देने पड़े !इस तरह मेरे कंचों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती गयी !<br />
कंचों में एक खेल था " टोंट घिसने ' का ! इसमें दावं देने वाले को कंचे को कुहनी से धकेलते हुए , गड्ढे तक पहुंचाना पड़ता था ! वह मुझे टोंट घिसवा कर तंग करने में ज्यादा आनंद अनुभव करता था ,,,लेकिन जब उसकी बारी आती तो वह साफ़ मुकर जाता ! कंचे खेलना तो आसान था किन्तु कंचे घर में छुपाना बहुत मुश्किल था ! कारण की मेरे पिता जी ऐसे खेलों के बिलकुल विरुद्ध थे ! तब किसी कपडे में बाँध कर हम उसे ऐसी जगह छिपाते की उस पर किसी की नज़र ही न पड़े !<br /> प्रारम्भिक प्राइमरी कक्षाओं के साथी मित्र जरूर बनते हैं किंतु उस उम्र का असली दोस्त मुहल्ले पड़ोस का हमउम्र का लड़का ही बनता है । उस हिसाब से मुन्नन मेरे हमउम्र वो दोस्त थे जिनको न कोई और था न कोई ठौर । हम लोग हर दो घण्टे बाद मिलते,,कोई खेल खेलते ,,फिर लड़ते और फिर घर भाग लेते । लगता कि अब कुट्टी हुई है तो शायद ही फिर मिलनी हो ,,लेकिन दो घण्टे बाद ही मुन्नन सब लड़ाई भूल कर फिर मेरे दरवाजे आ धमकते,,,या फिर में उनके घर पहुंच जाता जैसे कुछ हुआ ही न हो । कद काठी में मुन्नन मुझसे भारी पड़ते थे ,,इसलिए हाथापाई में अक्सर उनसे हार ही जाता था । हमें यह कभी पता नहीं चला कि हम में कौन बड़ा है कौन छोटा,,लेकिन मुन्नन के मन में एक बात जरूर थी कि वे रईसी में बड़े हैं और में छोटा । <div dir="ltr" trbidi="on"> शुरू में मुन्नन के घर कुआ नहीं था । कुआं किशन चच्चा के घर में था ,,। दोनों घरों के आंगन के बीच एक दीवार थी जिसके बीच एक दरवाजा था । कहारिन पानी भर कर किशन चच्चा के घर से मुन्नन के घर पहुंचा कर हौदी में भर देती थी । </div><div dir="ltr" trbidi="on"> उन दिनो देवरानी जिठानी में भी एक विशिष्टता होती थी कि कौन बड़े शहर से आई है और कौन छोटे शहर से ।,,संतोष चच्चा वाली चाची बड़े शहर कानपुर की थीं और शारदा बाबू वाली चाची बांदा की ,,तो घर में संतोष चच्चा वाली चाची का पलड़ा शहर के हिसाब से भारी ही था । कानपुर में तो नल लगें थे जबकि यहां पानी दूसरे के कुएं से आता था ,,,इसलिए तुरन्त ही मुन्नन के घर , हौदी वाली जगह तोड़ कर वहां पर कुँवा खुदाया गया । </div><div dir="ltr" trbidi="on"> मैं मुन्नन के साथ खड़े हो कर रोज कुँवा खुदता देखता । शारदा बाबू कुर्सी डाल कर वहीं बैठ जाते और हरेक फुट खुदने पर मजदूरों से रिपोर्ट लेते की कहीं पत्थर तो नहीं निकल रहा ,,? और जब पानी निकल आया तो सब लोग खुशी से उछल पड़े । पानी टेस्ट किया गया तो मीठा पाया गया । नारियल तोड़ा गया ,मुहल्ले में ,बताशे बांटे गए ।</div><div dir="ltr" trbidi="on"> कुवां खुदने के कुछ दिन बाद ही किशन चच्चा के आंगन और मुन्नन के आंगन के बीच का आपसी आने जाने का दरवाजा ईंटों से चुनवा कर हमेशा के लिए बंद करवा दिया गया । इस तरह वर्षों से आपस में जुड़े दो आंगन हमेशा के लिए अलग हो गए ।</div> फिर एक दिन देखा की कारखाना खुल गया है ,,! उसमें कारीगरों को बीड़ी बनाते मैनें देखा ! उन्हें एक छोटी सी तराजू में तौल तौल कर तम्बाखू दी जा रही थी और बंडल में बंधे पत्तों की गड्डियां भी ! वे सब कारखाने के बरामदे में लाइन में बैैैठ कर बनाते दिखे । बीड़ी के बन जाने के बाद , बीड़ी को बाद में , कारखाने के आँगन में बनी भट्टी पर सिकते हुए देखा तो मालूम हुआ की बीड़ी की सिकाई भी होती है !बीड़ी का कारखाना हम दोनों के लिए कौतूहल का केंद्र बन गया । मुन्नन के साथ अक्सर में बीड़ी के कारखाने में चला जाता । बीड़ी पैकिंग का काम भी हाथों के कौशल का काम था । तब मशीनें नहीं होती थी फिर भी पैकिंग में दक्ष लोग हर एक मिनट में बीड़ी के कट्टे पर झिल्लीदार कागज लपेट कर , उस पर लेइ से स्टीकर चिपका कर , सामने रखी ट्रे में फेंक देते ।</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> इसी क्रम में मुझे बीड़ी कारखाने के विज्ञापन विभाग के दर्शन भी हुए । दो लोग जोकरों की विचित्र वेश भूषा में मुंह पोते , अजीब से कपड़े पहने , हाथ में लम्बा भोंपू लिए कारखाने में दिखे । मुन्नन ने बताया कि ये लोग गावों में जा कर इन भोंपुओं को मुंह में लगा कर हमारी बीड़ी का प्रचार करते हैं । मुझे लगा कि ये तरीका अब बहुत पुराना है तो शायद ही कोई इन्हें सुनता होगा । और यह सच ही था । , </div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> एक हफ्ते बाद ही कारखाना फिर बंद हो गया ! शायद इस कारखाने की बनी बीड़ी का मार्केट था ही नहीं ! उस समय की प्रसिद्द बीड़ियों में चाँद छाप बीड़ी , और गदा छाप बीड़ी का विज्ञापन ज्यादा प्रचलन में था ! नौगावं की सड़कों पर , दीवारों पर ये विज्ञापन जगह जगह दिख जाते थे ! इन विज्ञापनों में एनासिन, लाल तेल ,नील , हमदर्द के विज्ञापन प्रमुखता से छाये रहते थे !<br />
बीड़ी का कारखाना जो बंद हुआ तो फिर कभी नहीं खुला ! अलबत्ता , मुन्नन की कार जरूर एक दिन गैरिज में खड़ी दिखी ! मुन्नन ने गर्व से बताया की यह कार अब कल जगत सागर घूमने जाएगी ! मैंने मुन्नन से विनय की कि मुझे भी घुमाने ले चलो ,,तो मान गया ! दूसरे दिन जब कार जाने को तैयार हुई तो उसने चुपचाप मुझे भी बुला लिया ! मुन्नन के पिताजी ने मुझे देखा तो कुछ नहीं बोले ,, कहा बैठ जाओ ,,,,शायद मुन्नन ने पहले ही उन्हें राजी करवा लिया था ! ! कार सबसे पहले मुन्नालाल पेट्रोल पम्प पर गयी जहां कुछ गैलन पेट्रोल भरवाया गया ! फिर हम लोग जगत सागर तक गए ! मैंने मुन्नन के साथ पहलीबार जगत सागर तालाब देखा ! घूम कर आये तो मेरे ऊपर मुन्नन का एक और अहसान चढ़ गया था ,,,जिसका बदला मुझे खेल में उसके द्वारा की गयी बेईमानी झेल कर ही देना था !</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div dir="ltr" trbidi="on">नौगावँ में अक्सर दिलचस्प हलचलें होती रहती थीं । उन हलचलों में कभी मुन्नन मेरे साथी होते कभी प्रतिद्वंदी । कभी कभी सुबह सुबह साधु वेश में दो व्यक्ति पूरे नौगावँ का चक्कर मारते हुए हर चौराहे पर रुक कर तेज स्वर में दोहे , चौपाईयाँ पढ़ते हुए अवतरित हो जाते । शंख, झालर बजाते हुए वे पहले तीन दिन यूंही घूमते , फिर अनोखे ढंग से दान मांगते । उनकी मांग होती कि उन्हें -' दो सौ अठन्नी , तीन सौ चवन्नी , चार सौ दुअन्नी , पांच सौ इकन्नी , दान में चाहिए एकत्रित होने पर वो हरिद्वार जायेंगें । जहां धार्मिक अनुष्ठान करेंगें ।इससे दान दाताओं को पुण्य तो मिलेगा ही , साधुओं का आशीष भी मिलेगा ।</div><div dir="ltr" trbidi="on"> तब दान देने की होड़ मच जाती । जितने सिक्के मिलते जाते , साधु अपनी मांग में प्रतिदिन उतनी मात्रा कम करते जाते ,,और एक दिन पूरा पैसा एकत्रित हो जाने पर , बटोर कर गायब हो जाते ।</div><div dir="ltr" trbidi="on"> मुन्नन अपनी माताजी से चवन्नी लेकर , मुझे दिखाते हुए एक दो दिन में दे देते । इस काम में मैं पीछे ही रह जाता ।</div><div dir="ltr" trbidi="on"> पत्ते पर ठंडी मलाई खरीदते समय भी वे आगे रहते । यदि मैं एक आने की लेता तो वे चवन्नी की । </div><div dir="ltr" trbidi="on"> लेकिन जब दूल्हा बाबा में, हवाईपट्टी पर कोई हवाई जहाज उतरता तो उसे देखने जाने में हम दोनों साथ होते । एक बार समीपस्थ गावँ झींझन में , एक बाबा ने एक गुफा में घुसने की घोषणा सुन कर उसे देखने हम दोनों साथ गये ।</div>
उन्ही दिनों सं 1959 में नौगावं में बिजली आ गयी ! सड़कों पर कुछ ही दिनों में ट्यूबलर खम्बे गड गए और उन में तार खिंच गए ! जब कनेक्शन होना शुरू हुआ तो मुन्नन का घर भी अग्रणीय कनेक्शनों में शुमार हुआ ! उसके घर जब पहली बार बिजली का बल्ब जला तो मुन्नन का स्टेटस स्वयमेव बढ़ गया क्योंकि हमारे घर तब तक लालटेन ही जलती थी ! अब मुन्नन जब तब अपनी रईसी का ताव दिखाने लगा ! उसके घर में जल्दी ही बाहर के कमरे में एक रेडियो भी लग गया जिसमें विविधभारती के प्रोग्राम आने लगे !सैनिकों के लिए गीतमाला , मुझे बहुत पसंद था , तो मुन्नन से हर हालत में निबाहना मेरी मजबूरी बन गया ! अब वो मुझे दो बातें भी सुना देता तो मैं चुपचाप सुन लेता ,,क्योंकि रेडियो तो उसी के घर में था ! हालांकि रेडियो से मैं कभी दूर नहीं रहा ,,क्योंकि उसी चौराहे पर बने अज़ीज़ मुहम्मद के घरमें बहुत पहले से बैटरी वाला रेडियो था ,,जिसमें दोपहर में लगातार तेज स्वर में फ़िल्मी गीत सुनने को मिल जाते थे ,,,,लेकिन रेडियो को ताकते हुए रेडियो सुनने की बात कुछ अलग ही थी !</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> थोड़ा बड़ा होने पर रुचियों के अनुरूप होने के कारण हम लोगों में जहां प्रगाढ़ता बढ़ी वहीं कई मुद्दों पर एकमत न होने के कारण बहस भी हो जाती । इब्ने सफी बीए के लिखे जासूसी उपन्यास हम लोग कहीं से भी जुगाड़ कर पढ़ते । लेकिन वहः खुद को कर्नल विनोद मानता और मुझे कैप्टिन हमीद । वेदप्रकाश काम्बोज के जासूसी उपन्यास में भी वहः खुद को जासूस विजय घोषित करता ,,जबकि मुझे ठग अल्फांसे बताता । जिस फ़िल्म की में तारीफ करता ,,उसकी वहः बुराइयां बता देता । अंतरिक्ष यात्रा में अमेरिका - रूस के बीच छिड़े शीत युद्ध में वहः अमेरिका की तारीफ करता और रूस की बुराई,,जबकि मेरे विचार उससे उलट रहते ।</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div dir="ltr" trbidi="on">ऐसे अवसरों पर जब हमारा विवाद बढ़ जाता तो मामला मुन्नन की माता जी के सामबे पहुंचता । अक्सर वे मेरी तारीफ करती हूं जब मेरा ही पक्ष लेतीं तो मुन्नन भड़क उठता ।</div><div dir="ltr" trbidi="on"> सामाजिक श्रेष्ठता जो उसे विरासत में मिली थी उसी आधार पर ,,, व्यक्तिगत श्रेष्ठता पर भी वहः समानाधिकार चाहता रहा । स्पर्धा में पिछड़ने पर उसे बहुत झल्लाहट होती तो कभी कभी आंख मूंद कर चिल्लाते चिल्लाते उसकी आँखों से आंसू बह निकलते । उस की यह हालत देख कर चाची को दया भी आती और हंसी भी ,,। वे मुझे कहती,," इसे समझाओ सभाजीत,,!! ,,तुम समझा सकते हो ,,,तुम इसके दोस्त हो । "</div><div dir="ltr" trbidi="on"> और सचमुच,,में उसे समझा लेता था ,,क्योंकि मैं उसका पक्का दोस्त जो था ।</div></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
धीरे धीरे मुन्नन से मेरी कई बातों में तकरार होने लगी !मेरी दूरियां बढ़ने लगी ! तभी रामलीला में मुझे लक्ष्मण के पात्र की भूमिका मिली ,,और नगर में मेरा अपना स्टेटस बढ़ गया ! नए नए मित्र बन गए ,, लोग पहचानने लगे तो मैनें मुन्नन की परवाह छोड़ दी !</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> एक दिन मैनें देखा की बीड़ी का कारखाना पूरी तरह तोड़ दिया गया है ! उस जगह अब एक पक्का ,,कई कमरों का मकान बनाया जा रहा है ! शारदा बाबू ,,खुद खड़े हो कर उस मकान को बनवाते दिखे ! गैरिज भी टूट गया ,,और कार भी कहीं चली गयी ,,! शायद वह बेच दी गयी थी ! मकान के एक बाजू में चार दुकानें बनाएं गयी ,,और शेष भाग रहने के लिए बना ! चर्चा से पता चला की शारदा बाबू और संतोष बाबू में बंटवारा हो गया है ,, और कारखाने वाला हिस्सा उन्हें मिला है ! मकान जल्दी ही तैयार हो गया और मुन्नन मेरे घर के सामने आकर रहने लगा !<br />
जो दुकानें बनीं ,,उनमें एक दूकान शारदा बाबू ने खुद अपने लिए सुरक्षित करके , उसमें कपडे की दूकान खोल दी ! बाजार वाली सोने चांदी की दूकान किन्ही कारणों से पूरी तरह बंद हो गयी ! कुछ दिनों बाद वह भी बेच दी गयी !<br />
जमींदारी के स्टेटस को त्याग कर शारदा बाबू व्यवसायी बनने की दिशा में मुड़ गए ! हालांकि ,, अनुवांशिक जमींदारी की आदत ने उन्हें व्यवसायी भी नहीं बनने दिया !<br />
मुन्नन से दूरी बनने के बावजूद भी , मुन्नन की माता जी मुझे उसी स्नेह और प्रेम से बुलाती थीं ! मैं उनके पास बैठ कर यहाँ वहां के बहुत से समाचारों से उन्हें अवगत करवाता रहता था ! मुन्नन का क्रोध बहुत जल्दी ही सातवें आसमान पर चढ़ जाता ! उधर अरविन्द अपनी छवि एक तीक्ष बुद्धि वाले की छवि बनाने में जुट गया ! तो जब मुन्नन की माता जी , अरविन्द की तारीफ़ करती तो मुन्नन अपना आपा खो बैठता !<br />
तभी 1964 में जिस मकान में हम लोग रहते थे , उसे संतोष बाबू ने खरीद लिया ! हमें आनन् फानन में मकान बदलना पड़ा ,,तो हम देवी जी की मड़ियाँ के पास , जैन परिवार के मकान के बगल में बने एक मकान में शिफ्ट हो गए !<br />
नत्थू शर्मा का चौराहा छूटते ही ,, हमारा सम्बन्ध मुन्नन के परिवार से पूरी तरह छूट गया !<br />
<br />
लेकिन मुन्नन के साथ बिताये दिन , और उस परिवार के लोगों की यादें मेरे मन पर आज भी अमिट हैं ! शारदा बाबू का व्यक्तित्व ,, और उनकी जमींदारी की ठसक , उनका अतीत भी , ,,मेरे लिए एक यादगार बात है ! ,<br />
<br />
--सभाजीत<br />
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-79549492419013059642019-11-24T02:38:00.006-08:002021-01-14T08:47:38.314-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: large;"> विंध्य की विरासत</span></b><br />
<b> सोन का अभ्यारण और सीधी जिला</b><br />
<br />
दंडवत विंध्याचल के माथे को , अपनी हथेलियों पर थामे , , मेकल पर्वत एक और विंध्याचल श्रेणियों को निहारता है तो दूसरी और , दूर तक फ़ैली सतपुड़ा श्रेणियों को ! इस यशस्वी मेकल पर्वत के आश्रम से ही क्षुब्ध हो कर निकली दो धाराएं , परस्पर विपरीत दिशाओं में कूद गयीं थी ,,! पश्चिमी दिशा की और कूदी , नर्मदा का जितना महत्त्व , भारत के पश्चिमी भाग में प्राकृतिक विरासतें संजोने का है , उतना ही महत्त्व सोन का , भारत के पूर्वी भाग में ! प्रेम विह्वल सोन , अपने बलशाली धाराओं के बाजुओं से मार्ग में आयी हर बाधा को तोड़ता हुआ , अंत में जा कर गंगा की गोद में विश्राम लेता है , किन्तु इस यात्रा में , उसने जो नैसर्गिक सौन्दर्य , और सांस्कृतिक विरासतों के सोपान रचे हैं , वे मध्यप्रदेश के सीधी और शहडोल जिले में बिखरे पड़े हैं !<br />
सोन अपने पुरुषार्थ से पहले विंध्याचल की कैमोर पर्वत श्रेणी को ही तोड़ता है , और फिर वेग पूर्वक , सीधी जिले की धरा पर , अपने अनुपम सौन्दर्य के साथ बहता है ! सोन कुल ९३२ किलोमीटर की लम्बाई में बहने वाला , भारत की प्रमुख लम्बाई की नदियों में गिना जाता है ! इसमें आकर मिलने वाली घोघर , जोहिला , छोटी महा नदी , तथा रिहन्द , कन्हार , कोहिला के साथ उसमें अपना जल उडेड़ने वाली नदियों में गोपदबनास नदी प्रमुख है ! सोन के बलखाती धारा के साथ , विंध्याचल श्रेणियों के बीच , कैमोर , केनजुहा , रानीमुंडा , पर्वतांचलों की घाटियां , में बिखरी वन सुषमा , सीधी जिले का खजाना है ! इन वनो में सभी प्रकार के बृक्ष हैं , जिन पर विभिन्न पक्षी किलोल करते सहज ही दिख जाते हैं ! सीधी जिले के ग्राम , आज भी आदिवासी जनजातियों , और उनकी संस्कृति के अक्षुण गवाह हैं ! यहाँ के वनो में , महुए के बृक्ष बहुतायत में हैं , जिसकी महक से सारा वन , एक विशेष आनंद से भर जाता है ! जनजातियों की मधुशाला के यही आधार हैं , जो उनकी गीत संगीत , खान पान का अभिन्न अंग बने हुए हैं !<br />
यह क्षेत्र वनवासियों की धरा है ! यहां की मूल भाषा गोंडी रही है , बाद में हुए राज्यों के विस्तार के अंतर्गत , यहां हिंदी और बघेली भाषाओं ने लोगों के जीवन में प्रवेश किया ! इसके पूर्वी भाग में जहां गोंड जन जाती निवास करती हैं , वहीं पश्चिमी भाग में प्रमुख रूप से कॉल जनजाति ! यहां पहले कालिंजर से आये चंदेल राजाओं ने राज किया , बाद में पश्चिमी भाग , बघेल राजवंशों के आधीन हुआ ! इस जिले की छह तहसीलों में , फ़ैली वनसम्पदा , पर्यटकों के लिए जहां , विशेष आकर्षण का केंद्र है ,,वहीं यह जिला , ऊर्जा के प्रमुख श्रोत कोयले की पूर्ती भारत के ऊर्जा संचालन के लिए वर्षों से कर रहा है ! सिंगरौली की कोयले की खदानें यहां का , प्रमुख व्यावसायिक अंग रही हैं , वहीं आधुनिक शक्ति विद्युत् ऊर्जा के विद्युत् ताप गृह , भी इसी क्षेत्र में स्थापित हुए हैं !<br />
अकबर दरबार के प्रमुख रत्न , बीरबल का जन्म भी इसी धरा पर हुआ था ! सीधी जिले में जन्मे , बीरबल के गावं गोधरा में आज एक बहुत प्राचीन देवी का दर्शनीय मंदिर है ! यह गावं इस क्षेत्र का एक प्रमुख गावं माना जाता है , जो यह दर्शाता है की बुद्धि के धनी , इतिहास प्रसिद्द बीर बल , इन्ही वनवासियों के बीच बड़े हो कर , दिल्ली जैसे राजदरबार के प्रमुख व्यक्ति बने !<br />
<br />
मध्यप्रदेश के पूर्वी द्वार पर , पर्वत श्रेणियों और सोन की धाराओं के बीच पनपा , यह जिला , आज पुरातन और नवीन सभ्यताओं का मिश्रित स्वरूप है ! इसका मुख्यालय , सीधी , अब धीरे धीरे , कसबे से एक नगर के रूप में करवट ले रहा है ! यहां के निवासियों में , समीपवर्ती गावों से आये , एवं पहले से बसे जनजातियों के लोगों की संख्या ज्यादा है , सड़कें अब धीरे धीरे आधुनिक हो रहीं हैं , और आधुनिक सुविधाओं की राह से आकर , धीरे धीरे शहरी सभ्यता भी, अपना पावं , आदिवासियों के बीच जमा रही है ! कभी यहां , साधारण कच्चे घर बहुत हुआ करते थे , लेकिन अब यहां भी अट्टालिकाएं अपने सर उठा रहीं हैं ! सीधी नगर अब रीवा कमिश्नरी के मानचित्र पर , विशेष स्थान पा चुका है ! नगर निगम यहां अब , यहां के निवासियों के लिए आकर्षक पार्क विकसित कर रही है , तो नए नए होटल और पर्यटकों के लिए पूर्ण सुविधायुके , रेस्ट हाउस भी यहां बन चुके हैं ! विकसित अस्पताल , शिक्षाकेंद्र , और सांस्कृतिक केंद्र भी स्थापित हैं ,,जो सीधी को आधुनिक विकास की राह पर अग्रसर कर चुके हैं !<br />
यहाँ पॉलिटेक्निक , आईटीआई , जैसे तकनीकी शिक्षाकेंद्रों के साथ कई अन्य कालेज भी स्थापित हैं , जो शिक्षा के क्षेत्र में अभिनव कार्य कर रहे हैं !<br />
<br />
पर्यटन की दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत से आकर्षण , अपने गोद में समाये बैठा है ! यहां का संजय नेशनल पार्क आज पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण केंद्र है ! जहां वन्य जीव बहुतायत में विचरते हुए , सहज ही दृष्टिगोचर होते हैं ! विश्वप्रसिद्ध , सफ़ेद बाघ , इसी क्षेत्र की देंन है , जिसे बघेला राजवंशों ने , यहां के जंगलों में ढूंढ निकाला था ! सोन नदी और बनास नदी के संगम पर ही स्थापित है , घड़ियालों के संरक्षण हेतु ,, घड़ियाल संरक्षण अभ्यारण ! प्रकृति के इस अनमोल खजाने में , बहुत सी पुरातात्विक विरासतें , सोन नदी के तट पर , और गहन जंगलों में बिखरीं पडी हैं ,,जिसमें प्रमुख है ,,कादम्बरी के रचियता , बाणभट्ट की साधनास्थली , भ्रमरसेन ! कादम्बरी ,, संस्कृत में , बाणभट्ट द्वारा लिखा गया अद्भुत महाकाव्य है ,, जिसकी परिकल्पना ने , इसी सोन और बनास नदी के संगम स्थल पर बने आश्रमों में जन्म लिया ! बनास नदी की धारा जब , सोन की वेगवती धारा से भेंट करती है तो , यहां एक विशाल भंवर का जन्म होता है , शायद इसीलिये इसका नाम , स्थानीय भाषा में भंवर सेन पड़ा ! आज भी यह स्थान बहुत रमणीक है ! बनास नदी के किनारे , ऊंचा खड़ा पर्वत , और दूर से बह कर आती सोन की धारा में मिलती बनास की धारा के संगम को निहारते खड़े रहने में , कितना समय बीत जाए पता ही नहीं चलता ! कादम्बरी के प्रमुख पात्र , शुक , यानी तोते , यहां की पर्वत मालाओं पर विहार करते , आकर्षक दृश्य का सृजन करते हैं ! <br />
पर्वतों के बीच , बलखाती नदी की जल धारा , और पर्वतों के घाट , आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेते हैं ! सोन के किनारे ही , बघेला राजवंशों का बनाया गया , शिकारगंज , रेस्ट हाउस , सोन के सौन्दर्य को निहारने का अद्भुत स्थल है !यह आज न सिर्फ दर्शनीय रेस्ट हाउस है , बल्कि बघेला राजवंशों के , प्रकृति प्रेम का गवाह है !<br />
सोन नदी के तट पर ही , एक तपस्वी , प्रशांत शिव ने , अपना आश्रम बना कर , यहां के कालजयी , अद्भुत , और शिल्प की धरोहरों को दर्शाने वाले मंदिर की स्थापना की थी , जो आज चन्द्ररेह के शिव मंदिर के रूप में विख्यात है !इस मंदिर में स्थापित शिव लिंग , उसका आंतरिक शिल्प , कंगूरे , भीतिकाएँ , उत्कीर्ण कला ,अचंभित करती है , और भारत के उन उत्कृष्ट शिल्पकारों की गाथा बखानती है , जो इस देश की सांस्कृतिक धारा के प्रवाह को निरंतर रखने में , अपना अपूर्व योगदान दे गए ! किसी युग में यह शिवमंदिर , शिव भक्तों और साधकों के ठहरने का भी स्थान था , जो यहां , मंदिर के चरों और बने मठों में आकर ठहरते थे ! आज यह भारत की राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित है , और पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है !<br />
संजय नेशनल पार्क , परसुली वन अभ्यारण , गुलाब सागर डेम , बाण सागर डैम , के केंद्र में आज , वन सुषमा के बीच बना है ,, परसुली रिसोर्ट ! यहां पर्यटकों के ठहरने , आहार , और सभी दिशाओं में यात्रा करने हेतु , सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं ! सोन नदी के किनारे पर बना यह रिसोर्ट , सोन की धाराओं को निहारने , उसे आत्मसात करने का सुन्दर स्थान है ! यह मध्यप्रदेश टूरिस्म का , शाश्कीय रेस्ट हाउस है , जिसका शिल्प , मध्यप्रदेश के , विधानसभाभवन के शिल्पकार द्वारा , उसी तर्ज़ पर बनाया गया है ! रिसोर्ट के अंदर , सपरिवार ठहरने हेतु सुविधायुक्त कमरे हैं !<br />
परसुली रिसोर्ट से सीधी जिले के सभी दर्शनीय स्थलों तक पहुँचने के मार्ग हैं इसलिए इसे , सीधी जिले के टूरिज्म का केंद्र कहा गया है ! इसी के निकट बना है , बघेला राजाओं द्वारा निर्मित कठ बंगला ,,,जो किसी समय राजाओं के , वन भ्रमण हेतु , ठहरने के लिए रेस्टहाउस का दायित्व निभाता था ! यह कठ बँगला आज भी दर्शनीय है !<br />
इस समूचे क्षेत्र की धरोहर है , वनवासी जीवन , उसकी लोक रीति , लोक नृत्य , लोकगीत ,, जो जिले के हर गावं में आज भी अपने मूल स्वरूप में मौजूद है ! यदि समय हो तो , कुछ दिन इन जंगलों के बीच आकर , प्रकृति से खुद को जोड़ने का कार्य हर व्यक्ति को करना चाहिए , क्योंकि सीधी जिला आज भी , अपनी मूल विरासतों से कोई समझौता नहीं किया है ! यहां की जनजातियों में कॉल , बैगाओं के अतरिक्त भारिया , अंगारिया जाती के लोग भी अपनी सांस्कृतिक विरासतों के साथ निवास कर रहे हैं ! भारिया जाती जंगलों की रखवाली करने वाली वह जाती है , जो कभी एक जगह स्थान बना कर नहीं ठहरती ! अंगारिया भी विभिन्न धातुओं को शोधने वाली विभिन्न परम्पराओं के ज्ञान के धनी हैं ! इनकी प्रमुख खेती ज्वार है ,,जो बिना किसी पानी के अतरिक्त प्रावधान के आसानी से पैदा हो जाती है ! वहीं जो भी इनके लिए प्रमुख धान है ! महुआ की मदिरा , इसके जीवन का अंग है ,, और नृत्य , लोक गीत , लोक केहायें इनकी निधि !<br />
<br />
सीधी नगर में स्थापित कई सांस्कृतिक केंद्र , का संचालन यहां के युवाओं ने अपने कंधे पर उठा रखा है ! वे मिल कर लोक नाट्य का प्रदर्शन विभिन्न स्थलों पर करते है , लोक गीतों , और लोक नृत्यों , लोकवाद्यों , को वे आज की आधुनिक सभ्यता के बीच भी , संरक्षित रखने का संकल्प अपने मन में लिए हुए , किसी भी स्थिति , किसी भी परिस्थिति में , मूर्तवत करने हेतु , अथक प्रयास कर रहे हैं ! सीधी नगर का रंग कर्म भी आज देश के विभिन्न कोनो में अलग अलख जगा रहा है जिसके सूत्रधार ,,इस नगर के रंगकर्मी युवा हैं !<br />
<br />
विंध्याचल की श्रेणियों में बहते सोन नदी ने , मध्यप्रदेश के जिले के वन भूमिभाग पर , जो सांस्कृतिक विरासतों के चिन्ह छोड़े हैं , उन्हें सीधी आ कर , स्वयं निहारे बिना , वर्णन करना सहज नहीं , क्यूंकि वे बहु आयामी हैं ! इस भाग में हम सोन से विदा ले कर , विंध्य भूमि के उन अन्य भूमिभागों की चर्चा करेंगे ,,जो विरासत की दृष्टि से अमूल्य हैं !<br />
,,,सभाजीत<br />
<br />
<br />
<h2 class="date-header" style="font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 11px; font-stretch: normal; margin: 0px; min-height: 0px; position: relative;">
<span style="color: #222222; letter-spacing: inherit; margin: inherit; padding: inherit;">शनिवार, 22 फ़रवरी 2020</span></h2>
<div class="date-posts">
<div class="post-outer">
<div class="post hentry uncustomized-post-template" itemprop="blogPost" itemscope="itemscope" itemtype="http://schema.org/BlogPosting" style="margin: 0px 0px 25px; min-height: 0px; position: relative;">
<a href="https://www.blogger.com/null" name="856896495469471388" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 16.8px;"></a><span face="Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif" style="background-color: white; color: #222222; font-size: 12px; line-height: 16.8px;"></span><div class="post-header" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 10.8px; line-height: 1.6; margin: 0px 0px 1.5em;">
<div class="post-header-line-1">
</div>
</div>
<div class="post-body entry-content" id="post-body-856896495469471388" itemprop="description articleBody" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 13.2px; line-height: 1.4; position: relative; width: 570px;">
<div dir="ltr" trbidi="on">
<span style="font-size: medium;"> विंध्य की विरासत</span><br /><br /><span style="font-size: medium;"> अमरकण्टक</span><br /> ,,,,, , जहाँ पश्चिम की और से आकर दो अलग अलग , विंध्यांचल और सतपुड़ा पर्वत की श्रेणियां , एक अन्य पर्वत श्रंखला, मेकल से भेंट करती हैं , वहीं पर समुद्र तल से करीब १०४८ मीटर ऊँचे , चौरस स्थान पर स्थापित है एक आदिकालीन ग्राम अमरकण्टक ! अमरकंटक को कभी आम्रकूट नाम से पुकारा जाता था , जिसका अर्थ था , आम्रवन के ऊँचे ऊँचे पेड़ों से आच्छादित एक पर्वत शिखर ! कहा जाय तो यह शायद पर्वत राज मेखल की कन्या नर्मदा के विवाह के लिएसजाया गया वह नैसर्गिक आम्र मंडप था जहां , उसी पर्वत पर जन्मी मेखल की पुत्री , नर्मदा , शोणभद्र के साथ विवाह करने वाली थी ! विधि का संयोग की शोणभद्र , नर्मदा की एक दासी , जोहिला के यौवन के जाल में फंस गया , और जब यह बात जब नर्मदा को पता चली , तो वह क्षोभ , वेदना , और शोणभद्र के बेवफाई के व्यवहार से चोटिल हो कर पश्चिम दिशा की और दौड़ कर मेखल की ऊंचाइयों से नीची कूद गयी !<br /> जनश्रुतियों की यह कथा भले ही कोई आधार रखती हो या न रखती हो , किन्तु तीन नदियों के उद्गम का यह क्षेत्र , तीन नदियों के चरित्र को आज भी बखान कर रहा है ! आज का अमरकंटक , अब नर्मदा की जन्म स्थली का पुण्यधाम बन चुका है ! पुराणों में नर्मदा को शिवपुत्री माना गया है ! यह भारत के पश्चमी भाग के लिए जन कल्याणी, जल दायनी माता के रूप में पूजी जा रही है ! यद्यपि शोणभद्र भी भारत के पूर्वी भाग के लिए एक वरदान की तरह प्रमुख जीवन आधार है , किन्तु इसे इसकी बेवफाई के लिए देवता , या राजपुरुष जैसा सम्मान नहीं मिल पाया ! और तीसरी नदी , जोहिला , जो अमर कंटक से करीब दस किलोमीटर दूर ज्वालेश्वर की पहाड़ियों से निकलती है वह आगे जा कर सोनभद्र को खोज कर उस में समा जाती है ,, किन्तु उसे भी तिरष्कृत और दूषित नदी माना गया है ! जनश्रुतियों की यह कथा प्रेम के उस मूल्य को स्थापित करती है जिसमें , " आसक्ति " , " वासना " और " कपट " के लिए कोई जगह नहीं है !<br /><br /> नर्मदा , पहाड़ों से रिस कर निकली एक अनवरत जल धार है , जो इस पर्वत पर आच्छादित वृक्षों की जड़ों में समायी है ! पर्वत और वृक्षों का यह मिला जुला स्वरूप ही शिव है , जिसे महादेव के स्वेद के रूप में , उसे नर्मदा की उत्पत्ति का कारण बताया गया है ! आज इस स्थान पर एक मंदिर स्थापित है , और अब उद्गम का वह बिंदु , भक्तिभावना के पीछे छिप सा गया है !भारत के कोने कोने से , विशेष कर पश्चिमी मध्य भाग से , निरंतर लोग इस उद्गमस्थान के दर्शन करने पहुँचते हैं , और मंदिर पहुँच कर अपनी यात्रा को धन्य मानते हैं ! इस उद्गम स्थान के चारों और २४ मंदिरों की श्रंखलाबद्ध कतार स्थापित है , जो विभिन्न राजाओं , अथवा श्रद्धालु भक्तों ने बनवाये हैं !यहाँ मराठा साम्राज्य के भोंसले राजवंशों ने , केशवनारायण मंदिर का निर्माण करवाया , एवं इन मंदिरों के और कुंड के जीर्णोद्धार कार्य के लिए इंदौर की रानी अहिल्या बाई का नाम भी आदर के साथ लिया जाता है ! किन्तु इस उद्गम क्षेत्र के विकास लिए , रीवा रजवाड़े का विशेष योगदान माना गया है !जिन्होंने १९३९ में इस मंदिर के पुनर्निर्माण हेतु अपना विशेष योगदान दिया ! उद्गम स्थान पर एक प्राचीन कुंड है , जिससे जल ले कर लोग पूजा अर्चना करते हैं , और माता से अपने सुखद भविष्य की कामना करते हैं !यह नर्मदा कुंड कहलाता है !आदिगुरु शंकाराचार्य ने यहां आकर नर्मदा की पूजा अर्चना कर एक स्तुति गान लिखा था जो नर्मदा स्त्रोत्र के रूप में आज नर्मदा के सभी मंदिरों में गुंजायमान होता है ! उन्ही के द्वारा यहाँ बंशेश्वर महादेव की स्थापना की गयी थी , और कुंड की आधारशिला भी उन्हें के द्वारा रखी गयी !<br /> मंदिर परिसर में एक हाथी प्रतिमा है , जिसके नीची से लेट कर लोग बाहर निकलते हैं ! इस क्रिया में भक्त अपनी शाष्टांग मुद्रा में लेट कर नर्मदा को प्रणाम करते हैं !<br /> इस कुंड से आगे निकली जलधार परएक कुछ दूर जाकर , एक अन्य कुंड है , जो पुष्कर सरोवर के नाम से जाना जाता है ! यहां सीढ़ियां बना कर , उसमें स्नान करने की सुविधा भी बना दी गयी है !, इससे उद्गम स्थान के मूल कुंड की पवित्रता स्थापित रह सके !यहां से नर्मदा उत्तर मुखी हो कर , सरपट भागती हुई , एक पतली जलधार के रूप में आगे बढ़ जाती है ,,, ! यह उसका बाल्य रूप है ,, मन को लुभाता , स्नेह भरा भाव लिए , उस आम्रकुंज की और जाता ,हुआ जहाँ उसे विश्वाश था की उसका प्रेमी , शोणभद्र उससे भेंट करेगा !वह आम्र कुञ्ज इस धारा के तट पर आज भी स्थापित है !<br /> आगे जाकर यह जलधार कबीर सरोवर जो एक कुंड के स्वरूप में है , पर कुछ देर ठहर कर जैसे उंसासें भरती है और शोणभद्र के चरित्र को भांप कर क्रोधित हो कर टेढ़े मेढ़े डग भर्ती हुई , मेकल के एक छोर पर पहुँच कर नीचे कूदती फांदती , एक झरने के रूप में पहाड़ से नीची उतर कर पश्चिम दिशा में बढ़ जाती है !८-१० किलोमीटर की इस दौड़ लगाती हुई यात्रा में , नर्मदा हजारों बार अपनी दिशा बदलती है , बौखलाई हुई , क्रोधित युवती की तरह ,,,जिसकी मनः स्थिति असंतप्त दिखती है !<br /> नर्मदा कुंड से ले कर कपिलधारा तक ,, आज इस नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर कई आश्रम , मंदिर , संस्थान स्थापित हो चुके हैं !जिसमें पूर्वी तट पर बर्फानी आश्रम , मृत्युंजय आश्रम , कल्याण सेवा आश्रम , शिवगोपाल आश्रम , रामकृष्ण कुटीर के साथ साथ , सर्वोदयी विश्रामगृह , और गुरुद्वारा गुरुसिंघ सभा प्रमुख हैं ! पूर्वी तट पर ही जैन मंदिर और शिव मंदिर स्थापित हैं !<br /> जबकि पश्चिमी तट पर , चंडिका आश्रम , कलचुरी काल के पुरातन मंदिर , कर्ण मंदिर , तपनिष्ठ धूना , कोटितीर्थ कुंड , और गीता स्वाध्याय मंदिर स्थापित हैं ! निर्माणाधीन श्रीयंत्र मंदिर आने वाले समय के लिए , एक भ्रमणीय स्थल साबित होगा ,,!<br /> विभिन्न औषधियों , वाटिका , और कुंजों के सम्मलित स्वरूप में , माई की बगिया भी इस नर्मदा के तट पर उसके उद्गम से लगभग एक किलोमीटर दूरी पर स्थित है !किंवदंतियों में यह स्थान राजा मेकल की पुत्री नर्मदा की वह वाटिका थी जहाँ आज भी गुलबकावली के फूल खिलते हैं ! यह औषधीय दिव्य पुष्प , शोणभद्र द्वारा घने जंगल से खोज कर गया वह पुष्प था जिसके लिए , मेकल राजा ने अपनी पुत्री के विवाह की शर्त निर्धारित की थी ! गुलबकावली का फूल , नेत्र रोग की वह आयुर्वैदिक औषधि है , जिससे सभी प्रकार के नेत्र रोगों का उपचार होता है ! इस उपवन में आम के वृक्षों के साथ साथ , कटहल , सरई और जामुन के वृक्ष हैं !<br /> <br />नर्मदा धारा के उद्गम से दक्षिण पश्चिम दिशा में स्थापित हैं कलचुरी काल के प्राचीन मंदिर ! इनका निर्माण काल 1041 से 1073 ईस्वी के समय का है , जब इस क्षेत्र में कलचुरियों का शाशन था ! कलचुरी राजा , कर्णदेव ने इन मंदिरों का निर्माण करवाया था ! कलचुरी शिव भक्त थे , और उन्होंने अमरकोट क्षेत्र से ले कर रीवा तक कई शिवमंदिरों का निर्माण किया था ! इन मंदिरों की स्थापित्य शैली , एक जैसी ही है ! बड़े से चबूतरे पर तोरण द्वार , मंडप और गर्भगृह ! मंदिर में चारों और कईछोटी मूर्तियों के माध्यम से , मनुष्य के भोग और योग की स्थितियों को उत्कीर्ण किया जाता रहा ! कर्ण मंदिर पुरातत्व की दृष्टि से एक दर्शनीय स्थान है !यहीं पर स्थापित है विष्णु मंदिर और आदि गुरु द्वारा स्थापित पातालेश्वर मंदिर और सूर्य कुंड ! जो आज श्रद्धा का केंद्र है !<br /><br /> उद्गमस्थल से करीब एक किलोमीटर आगे ही बन रहा है " श्रीयंत्र " मंदिर जिसकी आधार शिला स्वामी सुखदेवा जी महाराज ने अट्ठाइस वर्ष पूर्व रखी थी !यह तांत्रिक विद्याओं की साधना हेतु बनाया जा रहा , चौंसठ योगनी मंदिर की शैली का ही है !इसके गर्भ गृह में मा त्रिपुरा की मूर्ती की स्थापना होगी ! इसका शिल्प अद्वितीय है और यह अभी से पर्यटकों के लिए कोतुहल का केंद्र बन रहा है !<br />नर्मदाधरा के पूर्वोत्तरी तट पर निर्माणाधीन जैन मंदिर,कलात्मक मंदिरों की बानगी है ! जिनमें महावीर स्वामी की२४ टन वाली , १० फ़ीट ऊंची एक विशाल प्रतिमा स्थापित है और प्राणप्रतिष्ठा की बाट जोह रही है ! ! !नर्मदा ने भारत के मध्य भाग की गहन घाटी में बहते हुए हर धर्म , हर सम्प्रदाय के लोगों को अपने स्नेहयुक्त जल से अभिसिक्त कर , पल्ल्वित किया है , इसलिए उसके जन्म स्थली में हर धर्म की झांकियां , भारत के एकात्मक , बहुमुखी स्वरूप को प्रदर्शित करती है !<br /><br /><br /> नर्मदा की धरा के दोनों तट पर स्थापित कई आश्रमों में बर्फानी आश्रम एक चर्चित आश्रम है ! यह महात्माओं की साधना स्थली है और कई सिद्ध पुरुष यहां आश्रम में अपनी साधना करते हैं ! वहीं मृत्युंजय आश्रम , रामकृष्ण्कुटीर जैसे कई आश्रमों के अलावा , कल्याण सेवा आश्रम प्रमुख है! बाबा कल्याणदास जी द्वारा स्थापित यह आश्रम अद्भुत है ! जहाँ , पर्यटकों और यात्रियों के रात्रि विश्राम की भी पूर्ण सुविधा उपलब्ध है !<br /><br /> रुष्ट , पीड़ित , अपमान से क्षुब्ध नर्मदा की , कपिलधारा स्थल तक की यात्रा , टेढ़े मेढ़े पग रखती , बल खाती उस युवती की यात्रा जैसी यात्रा है , जिसकी अपने तन मन की सुध बुध खो गयी हो ! इस यात्रा में वह कभी कभी तो घूम कर एक बार फिर अपने विवाह स्थल की और भी निहारती है ,, और फिर मुड़ कर विह्वलभाव से फिरअपने पथ पर आगे बढ़ जाती है ! वह जिस और निहारती है वह है सोनभद्र का वःह स्थान जहाँ सोनभद्र जन्मा था ! वही सोनभद्र जिसे शायद वह जन्म जन्मांतर से जानती थी ! वही सोनभद्र जो जौहला के प्यार में आसक्त हो कर उसे भूल बैठा था ! वही सोनभद्र जो उसके लिए जंगलों से गुलबकावली के फूल चुन कर लाया था ! कपिलधारा स्थल पर पहुँच कर वह मेकल पर्वत को छोड़कर चुपचाप छलांग लगाती हुई नीचे उतर कर घने जंगल में विलीन हो जाती है ! यह स्थान आज पर्यटकों के भ्रमण का स्थल है ,,! यहां आज मेला सा लगता है !<br /><br /> नर्मदा ने ठिठक कर जिस सोनभद्र की और क्रुद्ध भाव से देखा था , वही सोनभद्र सोनमुंडा स्थल पर पहाडों को तोड़ कर बाहर निकल कर , जल धार बन कर पूर्व दिशा की और बह निकला है ! यहां भी एक गोमुख है , जिससे निरंतर जल बाहर निकल कर बाहर आता रहता है ! किन्तु यह जल धार ज्यादा दूर तक नहीं बहती , ! इसे भान हो जाता है की उसके कारण ही देवी नर्मदा , अमरकंटक छोड़ कर , विह्वल हो कर सर्वथा विपरीत दिशा में दौड़ती चली गयी है ,,! उसे अपनी भूल का अहसास होता है , ग्लानि होती है , पश्चाताप होता है , और वह भी अमरकंटक के उच्चतम शिखर से एकाएक नीचे कूद कर छार छार हो जाता है ! सोनमुंडा के जिस स्थान पर सोनभद्र नीचे कूदता है वह धरातल से करीब १०० फ़ीट ऊंचा है ! सोन नीचे कूद कर छार छार हो कर भूमिगत हो जाता है और करीब दस किलोमीटर दूर जाकर फिर उथली जलधार के रूप में अवतरित होता है ,,!<br /> सोनमुंडा पर पर्यटकों का मेला लगा रहता है ! यहां आज लंगूर और बंदरों का साम्राज्य है ! ये बंदर इतने चतुर होते हैं की अगर कार की खिड़की खुली रह जाए तो कार के अंदर का सारा सामान पार करने में देर नहीं लगाते ! इस स्थल पर कई प्रकार की दुकाने सजी मिल जाएंगी जहां विभिन्न सामान मिलता है ! सोन के इस अवतरण स्थल पर अब मंदिर भी स्थापित हो गए हैं और ब्रम्हा से संबंधित कई धार्मिक कथाएं जन्म ले चुकी हैं ! नर्मदा उद्गम पर जहां भक्ति भाव है , समर्पण है , वहीं इस स्थान पर आमोद प्रमोद है ! सुदूर दीखते पर्वतों की श्रेणियां , अपलक निहारने को और मन्त्र मुग्ध हो जाने को बाध्य करती हैं !<br /> अमर कंटक जहाँ श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए भक्ति स्थल है , वहीं आयुर्वेद के ज्ञाताओं के लिए जड़ी बूटियों का विशाल खजाना ! गुलबकावली के फूल की अद्भुत क्षमता तो हम देख ही चुके हैं , लेकिन कंद मूल , जड़ों , पत्तियों , वृक्ष की छालों , में छिपी औषधियां यहां प्रचुर मात्रा में मिलती है ! जबसे देश में आयुर्वेद चिकित्सा ने नए पंख पसारे हैं , तब से यह स्थल पूरे भारत में औषधियों के संकलन का प्रमुख केंद्र बन चुका है !<br /><br /><br />अमरकंटक उन नर्मदा परिक्रमा वासियों के लिए यात्रा प्रारम्भ करने का स्थल है ,जो अमरकंटक से खम्बात की खाड़ी तक की १३४२ किलो मीटर की यात्रा , उसके दोनों तटों पर करके जीवन की साध पूरी करते हैं ! नर्मदा परिक्रमा , एक कठिन वृत्त की तरह है , जिसमें जगह जगह अनजान जगहों पर पड़ाव करने होते हैं और खुद अपने हाथों से साधुओं की तरह टिक्कड़ सेक कर खाने होते हैं ! कुछ लोग पैदल यात्राएं करते हैं तो कुछ वाहनों पर ,,! यात्राओं के लक्ष्य और अनुभव इनकी थाती है ! परिक्रमाओं के अनुभवी , श्री अमृतलाल वेगड़ ने , इस परिक्रमाओं के सुख दुःख , कष्ट और शान्ति की अनुभूति पर बड़ी पुस्तकें लिखी हैं जो साहित्य जगत में अलग ही स्थान रखती है !<br /><br /> अमर कंटक शहडोल जिले के अंतर्गत आने वाला एक धार्मिक पर्यटन स्थल है ! यहाँ आकर जिस आत्मिक शान्ति की अनुभूति होती है ,,वह अद्भुत है ! विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत यहाँ आकर मेकल के कन्धों पर जैसे अपने सर टिका देते हैं वहीं पर्यटक अपने जीवन की अशांति से ऊब कर यहां आकर श्रांत होकर अपना सर इस पुण्य धरा के आश्रमों में शान्ति हेतु धरा पर टिका देते हैं !! नर्मदा यहीं से इन दो पर्वत श्रेणियों की गहन घाटी के बीच , जैसे दो भाइयों की सुरक्षित बाहुओं के बीच निःशंक हो कर पश्चिम की और बहती है ! शोक संतृप्त , शॉन भद्र यहीं से जौहला को साथ ले कर , कैमूर पर्वत की श्रेणियों का सहारा ले कर पूर्व की और बह कर , मोक्षदायनी गंगा में मिल जाता है ! और कहना न होगा की विंध्य की साझा विरासत में , दक्षिण और उत्तर की संस्कृतियां धूप छावं की तरह सहेलियां बन कर यहीं पर खेल रही हैं ! अमरकंटक विंध्यांचल की ऊंचाइयों से , उसकी श्रेणियों पर फैले , विंध्य की धरा के अवलोकन का वह विहंग बिंदु है , जिसमें विंध्य की विरासत समग्रता से एक ही दृष्टि से दृष्टिगोचर होती है !<br /><br />---सभाजीत </div>
<div style="clear: both;">
</div>
</div>
<div class="post-footer" style="background-color: #f9f9f9; border-bottom-color: rgb(238, 238, 238); border-bottom-style: solid; border-bottom-width: 1px; border-bottom: 1px solid rgb(238, 238, 238); color: #666666; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 10.8px; line-height: 1.6; margin: 20px -2px 0px; padding: 5px 10px;">
</div>
</div>
</div>
</div>
<br />
<h2 class="date-header" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 11px; font-stretch: normal; margin: 0px; min-height: 0px; position: relative;">
<span style="background-color: transparent; letter-spacing: inherit; margin: inherit; padding: inherit;">सोमवार, 24 फ़रवरी 2020</span></h2>
<div class="date-posts" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 16.8px;">
<div class="post-outer">
<div class="post hentry uncustomized-post-template" itemprop="blogPost" itemscope="itemscope" itemtype="http://schema.org/BlogPosting" style="margin: 0px 0px 25px; min-height: 0px; position: relative;">
<a href="https://www.blogger.com/null" name="3653221497668136771"></a><div class="post-header" style="font-size: 10.8px; line-height: 1.6; margin: 0px 0px 1.5em;">
<div class="post-header-line-1">
</div>
</div>
<div class="post-body entry-content" id="post-body-3653221497668136771" itemprop="description articleBody" style="font-size: 13.2px; line-height: 1.4; position: relative; width: 570px;">
<div dir="ltr" trbidi="on">
<b><span style="font-size: medium;">विंध्य की विरासत</span></b><br /><b>शहडोल सोहागपुर नगर</b><br /><br /> चारों और गहन वन , पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा , मेकल पर्वत और विंध्याचल की तलहटी में बसा , शहडोल नगर , कभी सोहागपुर नामक प्राचीन नगरी के नाम से विख्यात था ! जिस तरह अमर कंटक तीन नदियों का उद्गम है , तीन पर्वतों का संधिस्थल है , उसी तरह सोहागपुर तीन प्राचीन राजवंशों ,रतनपुर के कलचुरियों, ,गढ़ा के गोंडों , और बघेल राजाओं के राज्यों की सीमान्त भूमि रहा है ! सोहागपुर उत्तर से दक्षिण दिशा जाने आने का वह द्वार रहा है , जिससे हो कर कभी राम अपने वनवास काल की अंतिम शर्त निबाहने भारत के दक्षिण भाग में दंडकारण्य गए थे ! किम्वदंतियां है की सोहागपुर द्वापर युग का वह विराट नगर था , जहां पांडवों ने अपने वनवास के अंतिमवर्ष का अज्ञात काल , यहां के राजा विराट के महल में गुजारा था और यहीं द्रोपदी पर गलत नज़र डालने वाले विराट के साले कीचक का महाबली भीम ने वध किया था !<br /><br /> गुप्तकाल के अवसान के बाद , नर्मदा तट के कलचुरियों ने, नौवीं से ग्यारहवीं सदी तक , त्रिपुरी में राजधानी बना कर जब राज्य का विस्तार किया तो सोहागपुर उनके अधिकार में आया ! कलचुरियों ने कई दुर्ग , गढ़ियों , जलाशयों ,और भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया , जिसके अवशेष आज चंद्रेह , गोर्गी , सोहागपुर , अमरकंटक , आदि में देखने को मिलते हैं ! दक्षिण से उत्तरी राज्यों के विजय अभियान में सबसे पहले जो महत्वपूर्ण दुर्ग राह में आते थे , उनमें से , पहला सुहागपुर , दुसरा बांधवगढ़ , और तीसरा कालिंजर माना गया है !१५वीं सदी में गुजरात से आये बघेलों ने पहले कालिंजर , फिर गोहरा दुर्ग पर अधिकार जमाया किन्तु मुगलों के विरोध के कारण उन्हें जब कालिंजर और गोहरा छोड़ना पड़ा तो वे तब , बांधवगढ़ आये ! उस समय सोहागपुर गोंडों के आधीन था ! १८५७ की पहली क्रान्ति में अंग्रेजों ने बघेल शासकों का साथ लिया , और बदले में उन्हें मिला सोहाग पुर का राज , जो स्वतंत्रता प्राप्ति तक उनके आधीन रहा !<br /><br /> सोहागपुर में आज भी प्राचीन काल की गढ़ियाँ उपस्थित है ! इन गढ़ियों में बनी बावड़ियां , उस काल की अनवरत जल प्रदाय की द्योतक हैं ! वर्तमान में यहां , बघेल राजवंशों के रियासतदारों का निवास है ! सोहागपुर कल्चुरीकाल की मूर्तियों खजाना है , और आज भी पग पग पर खोदने पर कई मूर्तियां निकलती रहती हैं !<br /> लेकिन समय काल ने , सोहागपुर को पीछे छोड़ दिया ! कभी सोहागपुर से बाहर निकल कर , करीब ढाई किलोमीटर दूर , १६वीं सदी में , शहडोलवा अहीर के द्वारा ,बसाया गया एक छोटा सा गावं , आज चमक दमक से युक्त शहडोल जिले का सुन्दर नगर बन गया है ! शहडोल को सहारा मिला कटनी बिलासपुर रेलवे लाइन पर बने उस रेलवे स्टेशन से , जहां से वनोपज को देश के अन्य भागों तक ढो कर ले जाने के लिए अंग्रेजों ने उसे बनवाया था ! शहडोल का रेलवे स्टेशन ,आज बहुत विकसित स्टेशन है , और पर्यटकों के आवागमन को भारत के हर कोने से जोड़ता है ! स्टेशन के निकट का क्षेत्र अब होटल , रेस्टुरेंट , से सजा हुआ वह विकसित स्थान है जहां सभी प्रकार की भोजन और ठहरने की उत्तम व्यवस्था है !<br /><br /> रेलवे स्टेशन से बाहर निकलने पर , शहडोल की आधुनिकता के रंग में रंग में रंगी हुई , आदिवासी और विकसित आर्य सभ्यता का समवेत रूप , एक सार हुआ दिखता है ! चौराहे भव्य हैं , आवागमन के लिए सभी प्रकार के वाहन मार्गों पर दौड़ते दीखते हैं ! बाज़ार समृद्ध है , और कुछ अट्टालिकाएं , शहडोल के क्रमश उत्थान की गाथा बखान रही हैं !<br /><br /> यहां , लोगों में यह मान्यता है की महाभारतकाल में , जिस बृक्ष पर , अर्जुन ने अज्ञातवास के दौरान , अपने हथियार पोटली में बाँध कर एक पेड़ पर सुरक्षित रखे थे , वह शमी वृक्ष आज भी वहीं विदवमान है ! इस बृक्ष को आज लोग शीश नवा कर प्रणाम करते हुए , उससे अपनी मनोकामना पूर्ण होने की कामना करते हैं ! महाभारत काल के राजा विराट के महलों के कोई अवशेष तो अब यहां नहीं है , किन्तु कीचक वध का स्थान आज भी लोगों में चर्चित है !पथरीले क्षेत्र में भोज्य शाला के कई अवशेष आज उस काल के अवशेषों के रूप में जन श्रुतियों में व्याप्त हैं जहां स्त्री वेश में भीम ने कीचक का वध किया था !<br /> एक पुराने उद्यान में स्थित बावड़ी को यहां के निवासी , राजा विराट के समय उद्यान में राजा रानी के आवागमन का मार्ग बताते हैं ! इस उद्यान में बहुत उम्र दार वट बृक्ष युक्त ,एक विस्तृत बगीचा है ,~ यह रमणीक है , और पुरातन काल के अवशेषों में से एक माना जाता है !,<br /> यहीं पर स्थित है , एक सिद्ध पुरुष की धूनी !,,,फट्टी बाबा की धूनी ! कहते हैं की कभी एक रेलवे कर्मचारी को यहां की सिद्धदेवी , कंकाली देवी ने स्वप्न में दर्शन देकरआदेश दिया की वह शहडोल आकर उनकी पूजा अर्चना करे ! उस कर्मचारी ने अपनी नौकरी छोड़ दी और शहडोल आकर माँ कंकाली देवी की अनवरत पूजा में , लींन हो गया !यहां आश्रम बना कर , धूनी जला कर , यहीं रम गया ! इस धूनी पर आज लोग आकर मत्था टेक कर मंगल कामना करते हैं , औरअपने दुःख निवारण की प्रार्थना करते हैं !<br /><br /> जिन कंकाली देवी की पूजा अर्चना में , सिद्ध परुष ने अपना सारा जीवन , खुले आसमान के नीचे बिता दिया , उसका भव्य मंदिर शहडोल में ,आज भी गहन आस्था का केंद्र बना हुआ है ! यह एक विशाल मंदिर है ,,और क्षेत्र के चारों और से आकर , लोग माता के दर्शन हेतु यहां पंहुचते हैं ! धार्मिक मान्यताओं के अनुसार , दक्ष के यज्ञ को विन्ध्वन्श करने के बाद भी , जब भगवान् शिव का मोह , देवी सती की काया से नहीं टूटा , तो विष्णु ने उस काया को अपने चक्र से खंड खंड कर दिया , फिर भी कंकाल शेष रह गया , जिसे कंधे पर लादे शिव यहां जब आये तो इस सिद्ध क्षेत्र में उनकी मोह की तंद्रा जागी , और उन्होंने माँ सती का वह कंकाल यहां फेंक दिया और तपस्या हेतु पर्वत शिखर पर चले गए ! वही अठारह भुजाओं युक्त , कंकाली देवी यहां विराजमान है ! यह आदिवासियों , और उत्तरी सभ्यता के आर्यों की सम्मलित भक्ति की विरासत है ! इनकी पूजा का प्रथम अधिकार , गोंड जाती के पुजारियों को है , और उनके बिना पूजा सम्भव नहीं !<br /><br /> शिव के विराटस्वरूप का द्योतक यहां का विराटेश्वर मंदिर , कलचुरी काल के स्थापित्य का उत्कृष्ट नमूना है ! यद्यपि शिवलिंग , खजुराहो के मंदिरों की तरह विराट नहीं है ,,किन्तु मंदिर पर उत्कीर्ण , शिल्प , कलचुरियों की श्रेष्ठ कला की अभिव्यक्ति का नमूना है ! मंदिर का अग्रिम भाग , जीर्ण होने के कारण पुनः निर्मित किया गया है , किन्तु मंडप और गर्भ गृह , उसी स्थिति में है ! कलचुरी मूलतः शिव भक्त थे इसलिए उनके समय में शिव मंदिर की स्थापना यत्र तत्र देखने को मिल जाती है !<br /><br /> शहडोल का बाणगंगा कुंड , कभी अनवरत जल का श्रोत रहा होगा ! गहराई तक खुदे कुंड का तल , पृथ्वी की परतों से जुड़ा रहता है , इसलिए इसमें , भू गर्भीय जल निरंतर भरते रहने के कारण यह कभी सूखता नहीं ! ऐसे जल श्रोत को पुरातन काल में बाण गंगा , या पाताल गंगा शब्द से जोड़ कर इसकी अनवरतता को चरितार्थ करने के लिए , इसे दिव्य बाण द्वारा उतपन्न किया गया जल कुंड कहा जाता रहा है ! जनश्रुतियों में ,लोग इसे महाभारत काल के राजा विराट की राजधानी से जोड़ कर भी देखते हैं !<br /> अब यहां पर एक विकसित उद्यान , नगरपालिका द्वारा बना दिया गया है , जो आधुनिक शहडोल के निवासियों का भृमण केंद्र बन गया है ! संध्या होते ही यह उद्यान यहां के युवाओं , और वयस्कों की उपस्थिति से भर जाता है ! रंग विरंगे पुष्प , मनोरम छटा बिखेरते हुए यहां आने वाले पर्यटकों के मन को मोह लेते हैं !<br /><br /> शहडोल , आदिवासी , और आर्यों की मिली जुली संस्कृति का केंद्र रहा है !शहडोल जिले के घने जंगलों के मध्य बसे , आदिवासियों में , गोंड , कमर , अहीर , गड़रिया , अगरिया , कॉल , भूमिया , जन जातियां निवास करती हैं ! इनमें अधिकतम , वनोपज पर आधारित हैं , और खान पान में मोटा चावल , जवां का बना पेज और साधारण सब्जियां प्रयोग में लाती हैं ! कभी जंगलों के बने रहने तक आखेट करके वन्य जीवों का मांस भी इनके भोजन में शामिल रहता था , किन्तु अब जंगली मुर्गे पाल कर उसका उपयोग ये लोग करने लगे हैं ! इनके देवी देवताओं में देवी और ब्रह्म का विशेष स्थान है ! बड़े बब्बा , और चौत्रों चबूतरों को भी ये शृद्धा पूर्वक नमन करते हैं ! वनोपज से प्राप्त बांस से कई प्रकार के सामान बनाने में ये निष्णात हैं !<br /> विंध्य की विरासत के इनके लोक नृत्य ,अब तक देश भर में धूम मचा चुके हैं ! ढोलक , टिमकी , मादल , की थाप पर चांदनी रात में जब ये समूह बना कर नाचते हैं तो वह उमंग देखते ही बनती है !<br /><br /> शहडोल का शाब्दिक अर्थ कुछ भी रहा हो , उसका अधिस्थापा कोई भी हो , किन्तु अनुभूति में शहडोल , मीठे शहद से भरा वह छत्ता है , जो वनांचल में , उन पर्वतों , वृक्षों की शाखाओं पर लगता है ,, जहां प्रकृति का रस कूट कूट कर भरा होता है ! वृक्षों से झरते महुए की जो सुगंध , आदिकाल से मनुष्यों को मदमस्त करती रही , और मीठी शहद की मिठास , औषधीय गुणों से , जो मनुष्यों को चिर जीवी बनाती रही , उसका उपवन है ,,शहडोल ! विंध्य की विरासत का यह भू भाग धर्म , आस्था , प्राकृतिक सौंदर्य ,सरल जनजीवन से युक्त वह भू भाग है , जिसे देख कर न सिर्फ आँखें तृप्त होती हैं , बल्कि इसकी गोद में कुछ पल बिताने से मन को भी अपूर्व शान्ति मिलती है !<br /><br />---सभाजीत </div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<h2 class="date-header" style="font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 11px; font-stretch: normal; margin: 0px; min-height: 0px; position: relative;">
<span style="color: #222222; letter-spacing: inherit; margin: inherit; padding: inherit;">मंगलवार, 28 जनवरी 2020</span></h2>
<div class="date-posts">
<div class="post-outer">
<div class="post hentry uncustomized-post-template" itemprop="blogPost" itemscope="itemscope" itemtype="http://schema.org/BlogPosting" style="margin: 0px 0px 25px; min-height: 0px; position: relative;">
<a href="https://www.blogger.com/null" name="6490015939285479646" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 16.8px;"></a><span face="Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif" style="background-color: white; color: #222222; font-size: 12px; line-height: 16.8px;"></span><div class="post-header" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 10.8px; line-height: 1.6; margin: 0px 0px 1.5em;">
<div class="post-header-line-1">
</div>
</div>
<div class="post-body entry-content" id="post-body-6490015939285479646" itemprop="description articleBody" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 13.2px; line-height: 1.4; position: relative; width: 570px;">
<div dir="ltr" trbidi="on">
#गढ़कुंडार<br /><br />गढ कुंडार का दुर्ग और उसके भग्नावशेष गढ़-कुंडार मध्य प्रदेश के निवाङी जिले में स्थित एक गाँव है। इस गाँव का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग(या गढ़) के नाम पर पढ़ा है। यह किला उस काल की न केवल बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है<br /><br />गढ़ कुङार का इतिहास<br /><br />गढ़ कुङार का इतिहास बहुत ही गौरवशाली है । जूनागढ़ के राजा रूढ देव जू खंगार के पुत्र खेत सिंह खंगार क्षत्रिय दिल्ली सम्राट पृथ्वी राज चौहान के साथ बुदेलखंड में आए । जो की पृथ्वी राज चौहान के सामंत थे महाराजा खेत सिंह खंगार क्षत्रिय जी ने गढ कुङार पर खंगार राज्य की स्थापना की और 1182 से लेकर 1347 तक खंगार क्षत्रिय शासन रहा जिसमें खूब सिंह खंगार राजा मानसिंह खंगार<br /><br />राजा हुमात सिंह खंगार क्षत्रिय नाग देव खंगार वरदायी खंगार क्षत्रिय राजवंश साथ ही गढ़ कुङार की विरांगना केशर दे<br /><br />गढ़ कुङार का जौहर<br /><br />बुदेलखंड जिसे जिझौतिखंङ के नाम जाना जाता है था बुदेलखंड का पहला जौहर गढ़ कुङार में हुआ तुगलक ने जब गढ़ कुङार पर आक्रमण किया तब खंगार क्षत्रिणीयो ने अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु किले में बने अग्नी कुङं में हजारों खंगार क्षत्रिणीयो के साथ मिलकर जौहर किया था परन्तु कभी स्वाभिमान को नहीं झुकाया जो गर्भवती रानी थी वह गुप्त रास्ते खंगार क्षत्रिय राजवंश को जीवित रखने के जंगलों का सहारा लिया । इसमें गढ़ कुङार की विरांगना केशर दे ने तलवार से भीषण युद्ध किया और अंत में जौहर किया जिसका स्मारक आज भी गढ़ कुङार पर बना हुआ है<br /><br />गढ़ कुङार की कुल देवी माँ गजानन<br /><br />गजानन माँ जो हाथी और शेर पर विराजमान है । जो खंगारो की कुल देवी माँ गजानन जिनका प्रचीन मंदिर बना हुआ जिनका प्रसिद्ध जल कुङ आज भी हजारों सालों से पहाड़ पर बना हुआ है । गढ़ कुङार के राजा खेत सिंह जू की वरदानी थे उनकी चमत्कारी तलवार जो पत्थर को भी चीर देती थी वह माँ का वरदान स्वरुप है<br /><br />क्षत्रियों में सिंह शब्द का प्रयोग<br /><br />सिंह शब्द एक उपाधि है जो खंगार राजाओं की देन हैं जब पृथ्वी राज चौहान बुदेलखंड की ओर कूच कर रहे थे तभी भिन्ङ मार्ग पर रात्रि ठहरे तभी कुछ षडयंत्रकारी ने उन्हें उकसाया की खेत सिंह जू की वीरता का परिचय लिआ जाए सुबह आयोजन हुआ जिसमें बब्बर शेर और खेत सिंह का भीषण युद्ध हुआ जिसमें खेत सिंह खंगार क्षत्रिय जी ने शेर को चीर दिया चारो तरफ आवाज आयी शेर चीरा शेर चीरा तभी पृथ्वी राज चौहान ने कहा सिंह पर विजय प्राप्त करने वाले सिंह होते हैं 11 वी सदी के बाद सभी राजा अपने नाम के साथ सिंह जोड़ ने लगे<br /><br />वर्ष 2006 में मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं भारत के गृहमंत्री मा राजनाथ सिंह ने महाराजा खेत सिंह जू की जयंती समारोह के उपलक्ष्य में भव्य गढ़ कुङार महोत्सव की घोषणा की जो मध्य प्रदेश के संस्कृति मंत्रालय द्वारा तीन दिवसीय संचालित किया जाता है जिसमें सम्पूर्ण भारत वर्ष से लाखों खंगार क्षत्रिय समाज आते भव्य मेले का आयोजन होता । गढ़कुंडर 27 दिसंबर को महाराजा खेतसिंह खंगार की जयंती मनाई जाती है।<br /><br />★रहस्य★<br /><br />देश भर में अनेक ऐसे किला हैं, जिन्हें हम जैसा देखते है, वैसा ही पाते हैं। लेकिन यह कहानी है उस रहस्यमयी किला की, जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे है। जिसकी विशेषता ही इतनी डरावनी है कि अनेक लोग इसे सुनकर ही यहां जाने के बारे में सोचते हैं। बावजूद इसके यहां सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। इस किला का विशेषता यह है कि १२ किलोमीटर दूर से किला की आकृति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, लेकिन जैसे ही हम किला के नजदीक जाते है किला वैसे-वैसे गायब होने लगता है। नजदीक पहुंचने के बाद तो जैसे कुछ समझ पाना ही मुश्किल होता है कि जो दूर देखा था, क्या हम वहीं हैं। इतना ही इस किले की कहानियां भी डरावनी हैं।<br /><br />हम बात कर रहे है बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में स्थित गढ़ कुंडर किला की। यह किला मध्य भारत में मध्य भारत राज्य के उत्तर में स्थित एक छोटे से गांव में स्थित उच्च पहाड़ी पर स्थित है। ओरछा से सिर्फ 70 किमी दूर है। यह मध्यप्रदेश में विरासत के किले में से एक है और प्रेम, प्रेम लालच और भयानक तोडफ़ोड़ का एक महान इतिहास है। गढ़ कुंडर इतिहास में प्रमुख व्यक्तित्व नागदेव और रूपकुन्वर हैं। उनकी प्रेमिका की कहानियां अभी भी बुंदेलखंड के लोक गीतों में हैं। यह इस तरह से स्थित है कि 12 किमी से यह नग्न आंखों से दिखाई देता है, लेकिन आप इसे करीब पहुंचते हैं, यह विहीन दिखाई देता है और उसे ढूंढना मुश्किल हो जाता है। यह 1539 ईसवी तक राज्य की राजधानी का इस्तेमाल किया गया था। बाद में राजधानी को बेतवा नदी के तट पर ओरछा स्थानांतरित कर दिया गया था।.<br /><br />यह है डरावनी कहानी, पूरी बरात हो गई थी गायब<br />स्थानीय निवासी इस किले के बारे में जो बताते है, उसे कुछ डरावनी कहानियां भी है। स्थानीय वृद्ध डोमन सिंग बताते है कि अनेक वर्षों पूर्व इस किले मे घूमने के लिए आई पूरी की पूरी बारात गायब हो गई थी। जिसके बारे में अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है। यह बारात अब भी रहस्य बनी हुई है। डोमन सिंग के अनुसार काफी समय पहले यहां एक गांव में एक बारात आई थी, जिसमें करीब ७० लोगों के शामिल होना बताते है। जो कि सभी गढ़ कुंडर के किला घूमने के लिए गए थे। बताया जाता है कि बाराती किला में घूमते-घूमते वहां चले गए थे, जहां कोई नहीं पहुंच सकता था। यह किला का जमीनी के भीतर का हिस्सा बताया जाता है। इसके बाद बाराती वापस ऊपर नहीं आ सके। इस तरह पूरी की पूरी यहां गायब हो गई थी। बताया यह भी जाता है कि इस घटना के बाद जमीन से जुड़े दरबाजों को बंद कर दिया गया था। गढ़कुंडार के रहस्यों के बारे में ग्रामीणों द्वारा और अधिक तो बताया गया, लेकिन इशारों ही इशारों में इतना जरूर कह दिया कि किला रहस्य से भरा हुआ है। किले की एक और विशेषता है कि भूलभुलैया और अंधेरा रहने के कारण दिन में भी यह किला डरावना लगता है।<br /><br />जिनागढ़ के महल के नाम से था प्रचलित<br />खेत सिंह न केवल पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख हैं बल्कि एक करीबी दोस्त भी हैं। वह मूल रूप से गुजरात से थे उन्होंने युद्ध में परमल शासक शिव को पराजित किया और किले पर कब्जा कर लिया और खंगर वंश की नींव रखी। उस समय तक, यह जिनागढ़ के महल के नाम से जाना जाता था। यह खेत सिंह खंजर था जिसने नींव रखी और जिजाक भुक्ति क्षेत्र में खंगर के शासन के शासन को मजबूत किया। वह वर्ष 1212 ई। में मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद, खांगर की पांच पीढ़ी ने यहां शासन किया। बाद में खेत सिंह के पोते महाराजा खुब सिंह खंगर ने जिनागढ़ पैलेस को दृढ़ कर दिया और इसे 'कुंडर किले' के नाम से रखा। कुंडर शासक, इस किले से लेकर 1347 ईस्वी तक शासन करते थे, जब मोहम्मद तुगलक ने इसे कब्जा कर लिया था जो बुंदेल शासकों के लिए प्रभारी सौंपे थे। नागदेव आखिरी खंगेर शासक थे, जिन्हें कई अन्य खांगर सेना के जनरल के साथ हत्या कर दी गई थी, जिसमें एक बुर्जे शासकों ने हिस्सा लिया था। उस समय में बुंदेल शासकों ने मुगलों की जिम्मेदारता की थी बुन्देला राजा बीर सिंह देव ने इसके लिए आवश्यक नवीकरण का काम किया और इसके वर्तमान स्वरूप को प्रदान किया।<br /><br />किले की विशेषताएं भी दंग करने वाली<br />गढ़ कुंडर किले में 150 फीट की ऊंचाई है और 400 फीट की चौड़ाई फोर्ट में प्रवेश द्वार है जिसकी ऊंचाई 20 फीट है। किले परिसर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बाहरी दीवार में गेज्बो / टॉवर की संख्या हैब्रिटिस्टर बिलोचमन ने इस किले के बारे में प्रसिद्ध किताब अकबरनामा के बारे में बताया। उनका कहना है कि किले 01 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं। यह इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह नए आगंतुकों के लिए एक पहेली बनी रहे। किले एक खुला विशाल आंगन के आसपास बनाया गया है किले रेत पत्थर से बना है जो स्थानीय क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध है। यह इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि अंदर के कमरे आसानी से बाहरी लोगों को देख सकें लेकिन बाहरी व्यक्ति अंदरूनी नहीं देख सकते हैं। आप किले में कुछ चट्टानों और खंभे पर शिलालेख पा सकते हैं। एक बार जब आप गढ़ कुंडर किले में प्रवेश करते हैं, तो बाईं तरफ, एक छोटा सैनिक बैरक होता है। यह दक्षिणी सेना में है किले के मुख्य पहाड़ टॉवर परिसर के दक्षिण-पूर्व पर स्थित है कुल किले स्तंभों पर खड़े हैं और बहु-मंजिल किले परिसर है। प्रत्येक मंजिल के निर्माण में प्राकृतिक प्रकाश, जल आपूर्ति, घास का भंडारण, शौचालय आदि के लिए विशेष ध्यान दिया गया है।<br /><br />खंडहर में बदल रहा स्वरूप, लेकिन पहचान कम नहीं<br />गढ़ कुंडर का किला देखरेख के अभाव में दिन प्रतिदिन खंडहर में बदलता जा रहा हैं। धर के लालच में लोगों द्वारा इसमें जगह-जगह खुदाई भी कर दी हैं, लेकिन इसकी पहचान पर अब तक कोई फर्क नहीं पड़ा है। गढ़ कुंडार का किला अब भी अपनी पहचान देश में बनाए हुए है। जैसा कि सभी ने इतिहास में पढ़ा है, वहीं शान आज भी इसकी है। गढ़ कुंडर किला चंडला, बुंदेला और खंगर जैसे बुंदेलखंड शासकों के अधीन रहा। यह प्रकाश में आया जब 1180 में राजा पृथ्वी राज चौहान के प्रमुख खेत सिंह खंगार ने अपनी राजधानी यहां बनाने की योजना बनाई। गढ़ कुंडर किले के महत्वपूर्ण पर्यटक आकर्षण हैं। मुरली मनोहर मंदिर, रानी का महल, अन्धाकोप, स्टोरेज हाउस, राज महल, नरसिंह मंदिर, सिद्ध बाबा स्थान, रिसाला, दीवान-ए-अमा, दीवान-ए-ख़स, घोड़ा अस्तबल, जेल घर, मोती सागर, राव सिया हाउस आदि। इसी तरह हम भी पास के पर्यटन बिंदुओं पर जा सकते हैं जैसे निमा शहर, गढ़ी हाथीया किला आदि। उनके स्थानीय देवी महा माया ग्रीड वासनी का एक महत्वपूर्ण मंदिर है, जिसे स्थानीय लोगों के बीच बेहद माना जाता है। यहां एक पानी की टंकी भी मंदिर के करीब, सिंह सागर टैंक में मौजूद है। किले के उत्तर-पश्चिम में, बेतवा नदी 3 मील की दूरी पर बहती है। हर सोमवार एक स्थानीय बाज़ार दिन होता है जिस पर स्थानीय लोग खरीदारी करने के लिए इक_ा होते हैं, जो उनके रिवाज, अनुष्ठान, स्वाद आदि को समझने के लिए एक अच्छा दिन है। अक्टूबर से जनवरी तक यहां अधिकांश लोगों की भीड़ पहुंचती है।</div>
<div style="clear: both;">
</div>
</div>
<div class="post-footer" style="background-color: #f9f9f9; border-bottom-color: rgb(238, 238, 238); border-bottom-style: solid; border-bottom-width: 1px; border-bottom: 1px solid rgb(238, 238, 238); color: #666666; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 10.8px; line-height: 1.6; margin: 20px -2px 0px; padding: 5px 10px;">
</div>
</div>
</div>
</div> --महेबा-सहानिया मऊ </div><div>ओरछा के राजा रुद्रप्रताप सिंह के तीसरे पुत्र उदयप्रताप सिंह को बंटवारे में महेबा की जागीदारी मिली !! ओरछा के बुंदेलों ने कभी मुगलों से प्रकट में बैर नहीं की ,इसलिए ओरछा पर तो मुगलों ने कभी कोई आक्रमण नहीं किया ! , किन्तु उदय प्रताप के वंश में जन्मे चम्पतराय को मुगलों की आधीनता कभी रास आई ! उन्होंने स्वयं को स्वतन्त्र राजा घोषित करते हुए मुगलों को कर देने से मना कर दिया ,,! बदले में शाहजहां के काल में , मुगलों ने कई बार महेबा पर चढ़ाई की ! इसी छुटपुट लड़ाइयों में एक बार चम्पतराय को अपनी रक्षा हेतु यहां की मोर पहाड़ियों में , अपनी गर्भवती पत्नी के साथ शरण लेनी पडी , और इसी युद्ध के वातावरण में जो उनके यहां पुत्र रत्न पैदा हुए ,,उन्होंने बुंदेलों की कीर्ति दक्षिण में मराठा साम्राज्य तक फैला दी ! यह यशश्वी पुत्र थे ,महाराज चम्पतराय के पुत्र ,महाराजा छत्रसाल ,,जिन्होंने बाद में ओरंजेब की सेना को नाकों चने चबवा दिए !</div><div> छतरपुर से १९ किलोमीटर दूर , नागावं मार्ग पर स्थित , महेबा के ध्वस्त महल , चम्पत राय की वीर गाथाओं को बखानते हैं !</div><div><br /></div><div><br /></div><div><div dir="ltr" trbidi="on">अयोध्या के राजकुमार , युग पुरुष राम के परिवेश में ढलने वाले </div><div dir="ltr" trbidi="on">तपस्वी राम की तपस्या का गवाह है , ,,चित्रकूट ! मत्गयेन्द्र मंदिर से लेकर , मंदाकिनी के विभिन्न घाटों पर , कामद गिरी के शिखर पर , गुप्त गोदावरी की गहन कंदराओं में , गृहस्थ जीवन के आदर्श , सती अनुसुइया के पवित्र आश्रम पर , भार्या सीता के के साथ , रमणीक स्फटिक शिला पर , एकांत वास करते राम के पद चिन्ह , यहां आने वाले हर रामभक्त के लिए , मनोकामनाओं के पूरक हैं ! किन्तु राम किसी विशेष भूमिभाग , किसी विशेष विचारधारा के परिचायक नहीं है ! वे तो गरीब केवट के हठ को सहजता से स्वीकारने वाले , आदिवासी निषाद राज के अभिन्न मित्र , ज्ञानी तपस्वियों के आदर्श , शबरी के झूठे बेर प्रेम पूर्वक खाने वाले , जलचर , नभचर , , गरुड़ , काकभुशण्ड , जटायु , सम्पत , के आराध्य , किष्किंधा के वानरों के ह्रिदय सम्राट , रावण और विशाल सागर के अभिमान का हनन करने वाले , वे महापुरुष हैं , जिनकी कीर्ति , भारत में ही नहीं , विश्व के अनेक देशों में आज भी सूर्य की तरह दमक रही है !</div></div><div> राम कथाएं , नेपाल , श्रीलंका , और वर्मा देश की प्राणवायु हैं !येडागास्कर द्वीप से ले कर , आस्ट्रेलिया तक , राम की यश पताका आज भी फहरा रही हैं !मलेशिया , थाईलैंड , कम्बोडिया , जावा , सुमात्रा , बाली द्वीप , में राम के जीवन प्रसंग आज भी जन जन में चर्चित हैं ! वहां के भू भाग में , राम के युग की , आर्य संस्कृति के अवशेष आज भी विदवमान हैं !यहाँ तक की , फिलीपींस , चीन , जापान , और प्राचीन अमेरिका में भी राम की छाप आज भी देखने को मिलती है ! पेरू के राजा खुद को सूर्यवंशी ही नहीं , कौशल्या सुत राम के वंशज मानते हैं !<br /> विश्वव्यापी राम के इस विराट स्वरूप को लोगों के ह्रदय में स्थापित करने के लिए , आधुनिक महर्षि , नानाजी देशमुख ने चित्रकूट की भूमि सर्वथा उपयुक्त माना ! चित्रकूट आने वाले सभी राम भक्तों , साधकों , पर्यटकों , और भारतीय दर्शन के शोधकर्ताओं को राम के उस विश्व्यापी विराट छवि के दर्शन होते हैं , , नानाजी देश मुख द्वारा स्थापित किये गए रामदर्शन मंदिर में ! इस भव्य स्थान पर , राम से साक्षात्कार होता है , दीर्धाओं में उत्कीर्ण , राम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के चित्रण से , जो बड़े यत्न से , विभिन्न देशों की , विभिन्न सांस्कृतिक शैलियों में उत्कीर्ण की गयी हैं ! अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्रयेष्ठि यज्ञ से ले कर , वशिष्ठ और विश्वामित्र के सान्निध्य में , धनुर्धर राम की श्रष्टि के चित्रों के साथ , सीता स्वयंबर , राम वनवास ,केवट संवाद ,निषाद मित्रता , सीताहरण , जतायुवध , हनुमान मिलन , बाली वध , अशोकवाटिका , रामरावण युद्ध और राम के राजतिलक की गाथा विशिष्ट शैलियों , और उत्कृष्ट कला के साथ उकेरी गईं है , जो विश्व के हर देश में बसे राम से से साक्षात करवाती है , और चित्रकूट पर्यटन पर आया हर व्यक्ति , इस वीथिका से निकल कर , राम से एकात्म हो कर , राम मय हो जाता है ।<br /> <br /> राम यदि चित्रकूट न आये होते तो वे प्रकृति की उस अलौकिक शक्ति , उसकी ऊर्जा , और अमोघ औषधियों से परिचित न हुए होते , जो प्राकृतिक कन्द मूल , वनस्पतियों , और प्रकृति के नियमों में समाहित हैं । इसी प्राकृतिक शक्तियों को संचित कर , वे उस बल के स्वामी बने , जिससे निशाचरों का विनाश हुआ , और नाभि कुंड में अमृत सँजोये , रावण का विनाश भी सहजता पूर्वक हो सका । भारत के उस प्राकृतिक ज्ञान , ऊर्जा , औषधियों की जनक , आयुर्वेद की उस महाशक्ति की, विभिन्न जड़ी बूटियों को पुनः युवाओं से जोड़ने , उन्हें शिक्षित करने हेतु , औषधियों की खेती का कार्य आज , नानाजी देशमुख के प्रयत्नों से साकार हो गया है । आज के चित्रकूट में आधुनिक शिक्षा के साथ , विलुप्त होते पुरातन ज्ञान विज्ञान को भी संरक्षित करने का काम , नानाजी देशमुख द्वारा स्थापित संस्था द्वारा अबाध गति से किया जा रहा है ।<br /><br /> आज का चित्रकूट , सिर्फ आस्था , से शीश नवाने का तीर्थस्थल ही नहीं है , बल्कि भारतीय परंपराओं , सेवा , शिक्षा ,और संस्कृति का अभिनव केंद्र है । कहना न होगा कि आस्था का चित्रकूट अगर राम पर केंद्रित है तो सांस्कृतिक ज्ञान का चित्रकूट , युगपुरुष नानाजी देशमुख पर , जिन्होंने तत्व सार से , राम को चित्रकूट के जनजीवन से संजो दिया ।<br /><br /> --- सभाजीत<br /> </div><div> </div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-78872398515954271812019-07-01T05:04:00.002-07:002021-01-14T08:56:33.468-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr">
<div>
</div><div><br /></div><div><div dir="ltr">---------- Forwarded message ---------<br />From: <strong class="gmail_sendername" dir="auto">ANKUR MEHTA</strong> <span dir="ltr"><<a href="mailto:ankurmehta42557@gmail.com">ankurmehta42557@gmail.com</a>></span><br />Date: Fri, Oct 5, 2018 at 4:54 AM<br />Subject: पारिवारिक विवाद सुलझाने के सम्बन्ध में<br />To: <<a href="mailto:sharma.sabhajeet@gmail.com">sharma.sabhajeet@gmail.com</a>></div><br /><br /><div dir="ltr"><div dir="ltr">पूज्य पिता जी ,<div> सादर प्रणाम !</div><div>अत्यंत खेद के साथ मुझे लिखना पड़ रहा है कि आपके द्वारा मुझ पर लगाये गये सभी आरोप झूठे और निराधार हैं ! जिससे मै बहुत आहत हुआ हूँ !</div><div>मेरे या मेरे किसी भी परिवरिक सदयस के द्वारा कभी भी कोई मांग नहीं की गई ! जैसा की बार बार अपने अपनी ईमेल में उल्लेख किया है !</div><div>हमारे द्वारा २ सितंबर भेजे गए अंतिम व्हाटस एप्प मैसेज के द्वारा आपको सूचना दी जा चुकी है कि बैठक सिर्फ और सिर्फ नैनी में हो पायेगी ! और इसके बारे में मै प्रभुता से भी बात कर चूका हूँ! मेरे घर के दरवाजे हमेशा प्रभुता के लिए खुले है !</div><div>और रही बात वैवाहिक रजिस्ट्रेशन की तो यह कार्य तभी पूर्ण हो पायेगा जब प्रभुता अपने घर वापस आ जाएगी !</div><div>आपसे अनुरोध है की शीघ अति शीघ आकर इस समस्या को निपटने की कृपा करे !</div><div> </div><div>अंकुर मेहता </div><div><br /></div></div></div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><div dir="ltr">-------- Forwarded message ---------<br />From: <strong class="gmail_sendername" dir="auto">ANKUR MEHTA</strong> <span dir="ltr"><<a href="mailto:ankurmehta42557@gmail.com">ankurmehta42557@gmail.com</a>></span><br />Date: Fri, Oct 5, 2018 at 4:54 AM<br />Subject: पारिवारिक विवाद सुलझाने के सम्बन्ध में<br />To: <<a href="mailto:sharma.sabhajeet@gmail.com">sharma.sabhajeet@gmail.com</a>></div><br /><br /><div dir="ltr"><div dir="ltr">पूज्य पिता जी ,<div> सादर प्रणाम !</div><div>अत्यंत खेद के साथ मुझे लिखना पड़ रहा है कि आपके द्वारा मुझ पर लगाये गये सभी आरोप झूठे और निराधार हैं ! जिससे मै बहुत आहत हुआ हूँ !</div><div>मेरे या मेरे किसी भी परिवरिक सदयस के द्वारा कभी भी कोई मांग नहीं की गई ! जैसा की बार बार अपने अपनी ईमेल में उल्लेख किया है !</div><div>हमारे द्वारा २ सितंबर भेजे गए अंतिम व्हाटस एप्प मैसेज के द्वारा आपको सूचना दी जा चुकी है कि बैठक सिर्फ और सिर्फ नैनी में हो पायेगी ! और इसके बारे में मै प्रभुता से भी बात कर चूका हूँ! मेरे घर के दरवाजे हमेशा प्रभुता के लिए खुले है !</div><div>और रही बात वैवाहिक रजिस्ट्रेशन की तो यह कार्य तभी पूर्ण हो पायेगा जब प्रभुता अपने घर वापस आ जाएगी !</div><div>आपसे अनुरोध है की शीघ अति शीघ आकर इस समस्या को निपटने की कृपा करे !</div><div> </div><div>अंकुर मेहता </div></div></div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>प्रिय श्री अंकुर जी , </div>
<div>
<br /></div>
<div>
आपके द्वारा , अपनी सदाशयता की भाषा के साथ , सभी तथ्यों को निराधार
कहना , एवं असत्य घोषित करना , आपके पत्र में उल्लेखित , विषय , से मेल नहीं
खाता है , जिसमें आपने , विशिष्ट रूप से , परिलक्षित करते हुए , " विवाद सुलझाने "
को , पत्र का आधार बनाया है ! आपके अनुसार , यदि कोई तथ्य आधार रूप में ,
उत्पन्न ही नहीं हुए , तो फिर ' नैनी आकर विवाद सुलझाने " की बाध्यता आप ने क्यों
व्यक्त की है ? </div>
<div>
<br /></div>
<div>
, मैंने अपने पत्रों में घटनाओं का हवाला देकर , स्थितियां स्पष्ट की
हैं ,, ! मेरा उद्देश्य ना तो किसी को आहत करने का है , और ना दोषारोपण का
! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
जहां तक किसी मांग की बात है , उसका एक आडियो मेरे पास उपलब्ध है , जिसमें
आपने मांग हेतु , धन लेने को उचित बताते हुए , प्रभुता से , मेरे बारे में व्
मेरी पत्नी के बारे में , अपशब्द कहते हुए चर्चा की है ! यदि प्रभुता के माता
पिता , आपके लिए वास्तव में आदर के पात्र हैं , तो उनके लिए , इस तरह के अपशब्द एवं
मांग व्यक्त नहीं होने चाहिए थे ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
खेद का विषय है की माह , जुलाई में , आप यद्यपि अपनी माताजी के साथ ,
नैनी आये , किन्तु तब आपने अपने आगमन की हमें सूचना , चर्चा की पहल हेतु नहीं
दिए , बल्कि इसके विपरीत , हमारे द्वारा पूछे जाने पर , आपके पिताजी द्वारा यह
बताया गया की आप नैनी आये ही नहीं है ! दिनांक १६-७-१८ को मैं जब स्वयं , नैनी
गया भी , तब भी आपके परिवार ने इस बाबत कोई चर्चा नहीं की , ! </div>
<div>
बल्कि दूसरी और , , आप नैनी आने का प्रोग्राम निरंतर टालते रहे ,,और
समयानुसार , विषयान्तर्गत , उल्लेखित, अपने कथित विवाद को , अपने स्तर पर ,
सुलझाने हेतु कभी , गंभीर नहीं हुए ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
इन परिस्थितियों , में , तीन माहों से , अपनी पुत्री को , मानसिक व्यथा
झेलते हुए देख कर , और आपके द्वारा निरंतर उसकी अवहेलना को देखते हुए , मैं स्वयं
अत्यंत " आहत " हूँ ,,! आपके द्वारा , एवं आपके परिवार के द्वारा अपनी पुत्री के
प्रति किये गए , , असंगत व्यहार को देख कर मेरा स्वास्थ्य भी निरंतर गिरा है ,
एवं सामाजिक रूप से मैं खुद को आहत महसूस कर रहा हूँ ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
उक्त सभी तथ्यों के बाद भी , चूंकि , आपका विवाह मेरी पुत्री के साथ ,
समाज के लोगों के बीच सतना में संपन्न हुआ है , इसलिए , मेरा निवेदन है की आप
अपने माता पिता के साथ , सतना आएं , और शाशन के नियमान्तर्गत , अपने विवाह का
पंजीयन करके , प्रमाणपत्र प्राप्त करें , जो की कानूनन , वरपक्ष का ही दायित्व है
! मुझे विश्वाश है , की आप स्थितियों को समझते हुए , , आपसी विश्वाश , सुरक्षा ,
और दायित्व को पूर्ण करने का कार्य जरूर करेंगे ,, ताकि आपका दामपत्य जीवन सुखमय
हो सके , व् मेरी पुत्री आपके आश्रय में स्वयं को , सुरक्षित महसूस कर सके
! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
स्नेहाशीष सहित ,,, दीपावली की मंगल कामनाओं के साथ, , आपके सतना आगमन की
प्रतीक्षा में , </div>
<div>
<br /></div>
<div>
---सभाजीत<br />
<br />
<div style="color: #202124; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; min-height: 100%; position: relative;">
<div class="nH a4O" style="width: 1360px;">
<div class="nH" style="position: relative;">
<div class="nH bkL">
<div class="no" style="display: flex; float: left; width: 1360px;">
<div class="nH bkK nn" style="float: left; min-height: 1px; overflow: hidden; width: 1117px;">
<div class="nH">
<div class="nH">
<div class="nH ar4 z">
<div>
<div class="AO" style="position: relative;">
<div class="Tm aeJ" id=":3" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: none; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; height: 486px; overflow-y: scroll; padding-right: 0px;">
<div class="aeF" id=":1" style="min-height: 296px; padding: 0px; vertical-align: bottom;">
<div class="nH">
<div class="nH" role="main">
<div class="nH g">
<table cellpadding="0" class="Bs nH iY bAt" role="presentation" style="border-collapse: collapse; border-spacing: 0px; display: block; padding: 0px; position: static; width: 1032px;"><tbody>
<tr><td class="Bu bAn" style="background: rgb(255, 255, 255); display: block; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: top;"><div class="nH if" style="margin: 0px 16px 0px 0px; padding: 0px;">
<div class="nH aHU" style="position: relative;">
<div class="nH hx" style="background-color: transparent; color: #222222; min-width: 502px; padding: 0px;">
<div class="nH" jslog="20686; u014N:xr6bB" role="list">
<div class="h7 ie nH oy8Mbf" role="listitem" style="clear: both; max-width: 100000px; outline: none; padding-bottom: 0px;" tabindex="-1">
<div class="Bk" style="border-radius: 0px; border-top-color: rgb(239, 239, 239); border-top-style: solid; border-width: 0px; float: none; margin-bottom: 0px; position: relative; width: 1016px;">
<div class="G3 G2" style="background-color: transparent; border-bottom-color: rgba(100, 121, 143, 0.12); border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; border-radius: 0px; border-right-width: 0px; border-top-style: none; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; padding-top: 0px;">
<div id=":1qq">
<div class="adn ads" data-legacy-message-id="166b9ec6422d3c84" data-message-id="#msg-a:r-2784889182579325941" style="border-left-style: none; display: flex; padding: 0px;">
<div class="gs" style="margin: 0px; padding: 0px 0px 20px; width: 944px;">
<div class="gE iv gt" style="cursor: auto; font-size: 0.875rem; padding: 20px 0px 0px;">
<table cellpadding="0" class="cf gJ" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; border-collapse: collapse; display: block; font-size: 0.875rem; letter-spacing: 0.2px; margin-top: 0px; width: auto;"><tbody style="display: block;">
<tr class="acZ" style="display: flex; height: auto;"><td class="gF gK" style="display: block; line-height: 20px; margin: 0px; max-height: 20px; padding: 0px; vertical-align: top; white-space: nowrap; width: 699.688px;"><table cellpadding="0" class="cf ix" style="border-collapse: collapse; table-layout: fixed; width: 699px;"><tbody>
<tr><td class="c2" style="display: flex; margin: 0px;"><h3 class="iw" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: #5f6368; font-size: 0.75rem; font-weight: inherit; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; margin: inherit; max-width: calc(100% - 8px); overflow: hidden; text-overflow: ellipsis; white-space: nowrap;">
<span class="qu" role="gridcell" tabindex="-1"><span class="gD" data-hovercard-id="sharma.sabhajeet@gmail.com" data-hovercard-owner-id="159" email="sharma.sabhajeet@gmail.com" name="SABHAJEET1" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; color: #202124; display: inline; font-size: 0.875rem; font-weight: bold; letter-spacing: 0.2px; vertical-align: top;">SABHAJEET1</span> <span class="go" style="color: #555555; vertical-align: top;"><span aria-hidden="true"><</span>sharma.sabhajeet@gmail.com<span aria-hidden="true">></span></span></span></h3>
</td></tr>
</tbody></table>
</td><td class="gH bAk" style="align-items: center; color: #222222; display: block; margin: 0px; max-height: 20px; text-align: right; vertical-align: top; white-space: nowrap;"><div class="gK" style="align-items: center; display: flex; padding: 0px;">
<span alt="Oct 28, 2018, 2:37 PM" class="g3" id=":1qv" role="gridcell" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: #5f6368; display: block; font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; margin: 0px; vertical-align: top;" tabindex="-1" title="Oct 28, 2018, 2:37 PM">Oct 28, 2018, 2:37 PM</span><div aria-checked="false" aria-label="Not starred" class="zd bi4" jslog="20511; u014N:cOuCgd,Kr2w4b;" role="checkbox" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; display: inline-block; height: 20px; margin-left: 20px; outline: 0px; user-select: none;" tabindex="0" title="Not starred">
<span class="T-KT" style="align-items: center; border: none; display: inline-flex; height: 20px; justify-content: center; margin: 0px; outline: none; padding: 0px; position: relative; text-align: center; top: 0px; transition: opacity 0.15s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; width: 20px; z-index: 0;"></span></div>
</div>
</td><td class="gH" style="align-items: center; color: #222222; display: flex; margin: 0px; text-align: right; vertical-align: top; white-space: nowrap;"></td><td class="gH acX bAm" rowspan="2" style="align-items: center; color: #222222; display: block; margin: 0px; max-height: 20px; text-align: right; vertical-align: top; white-space: nowrap;"><div aria-label="Reply" class="T-I J-J5-Ji T-I-Js-IF aaq T-I-ax7 L3" data-tooltip="Reply" role="button" style="-webkit-user-drag: none; -webkit-user-select: none; align-items: center; background: transparent; border-radius: 2px 0px 0px 2px; border: none; box-shadow: none; color: #444444; cursor: pointer; display: inline-flex; font-size: 0.875rem; height: 20px; justify-content: center; line-height: 18px; margin: 0px 0px 0px 20px; min-width: 0px; outline: none; padding: 0px; position: relative; text-align: center; user-select: none; z-index: 0;" tabindex="0">
<img alt="" class="hB T-I-J3" role="button" src="https://mail.google.com/mail/u/0/images/cleardot.gif" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-color: initial; background-origin: initial; background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px; background: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/reply_black_20dp.png") 50% 50% / 20px no-repeat; display: inline-block; height: 20px; margin: 0px; opacity: 0.7; padding: 0px; transition: opacity 0.15s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; vertical-align: middle; width: 20px;" /></div>
<div aria-expanded="false" aria-haspopup="true" aria-label="More" class="T-I J-J5-Ji T-I-Js-Gs aap T-I-awG T-I-ax7 L3" data-tooltip="More" id=":1r6" role="button" style="-webkit-user-drag: none; -webkit-user-select: none; align-items: center; background: transparent; border-radius: 0px 2px 2px 0px; border: none; box-shadow: none; color: #444444; cursor: pointer; display: inline-flex; font-size: 0.875rem; height: 20px; justify-content: center; line-height: 18px; margin: 0px 0px 0px 20px; min-width: 0px; outline: none; padding: 0px; position: relative; text-align: center; user-select: none; z-index: 0;" tabindex="0">
<img alt="" class="hA T-I-J3" role="menu" src="https://mail.google.com/mail/u/0/images/cleardot.gif" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-color: initial; background-origin: initial; background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px; background: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/more_vert_black_20dp.png") 50% 50% / 20px no-repeat; display: inline-block; height: 20px; margin: 0px; opacity: 0.7; padding: 0px; transition: opacity 0.15s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; vertical-align: middle; width: 20px;" /></div>
</td></tr>
<tr class="acZ xD" style="display: flex; height: auto;"><td colspan="3" style="margin: 0px;"><table cellpadding="0" class="cf adz" style="border-collapse: collapse; table-layout: fixed; white-space: nowrap; width: 944px;"><tbody>
<tr><td class="ady" style="align-items: center; display: flex; line-height: 20px; margin: 0px; overflow: visible; text-overflow: ellipsis;"><div class="iw ajw" style="display: inline-block; max-width: 92%; overflow: hidden;">
<span class="hb" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: #5f6368; font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; vertical-align: top;">to <span class="g2" data-hovercard-id="ankurmehta42557@gmail.com" data-hovercard-owner-id="159" dir="ltr" email="ankurmehta42557@gmail.com" name="ANKUR" style="vertical-align: top;">ANKUR</span></span></div>
<div aria-haspopup="true" aria-label="Show details" class="ajy" data-tooltip="Show details" id=":1r5" role="button" style="align-items: center; border: none; display: inline-flex; justify-content: center; margin-left: 4px; outline: none; position: relative; vertical-align: top; z-index: 0;" tabindex="0">
<img alt="" class="ajz" src="https://mail.google.com/mail/u/0/images/cleardot.gif" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-color: initial; background-origin: initial; background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px; background: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/arrow_drop_down_black_20dp.png") 50% 50% / 20px no-repeat; border: none; cursor: pointer; display: flex; height: 20px; margin: 0px 0px 0px auto; opacity: 0.54; padding: 0px; position: relative; right: 0px; top: 0px; vertical-align: baseline; width: 20px;" /></div>
</td></tr>
</tbody></table>
</td></tr>
</tbody></table>
</div>
<div id=":1qr">
<div class="qQVYZb">
</div>
<div class="utdU2e">
</div>
<div class="btm">
</div>
</div>
<div>
<div class="aHl" style="margin-left: -38px;">
</div>
<div id=":1r4" tabindex="-1">
</div>
<div class="ii gt" id=":1qt" style="direction: ltr; font-size: 0.875rem; margin: 8px 0px 0px; padding: 0px; position: relative;">
<div class="a3s aXjCH" id=":1qs" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; font-stretch: normal; line-height: 1.5; overflow: hidden;">
<div dir="ltr">
<div dir="ltr">
<div>
प्रिय श्री अंकुर जी , </div>
<div>
<br /></div>
<div>
आपके द्वारा , अपनी सदाशयता की भाषा के साथ , सभी तथ्यों को निराधार कहना , एवं असत्य घोषित करना , आपके पत्र में उल्लेखित , विषय , से मेल नहीं खाता है , जिसमें आपने , विशिष्ट रूप से , परिलक्षित करते हुए , " विवाद सुलझाने " को , पत्र का आधार बनाया है ! आपके अनुसार , यदि कोई तथ्य आधार रूप में , उत्पन्न ही नहीं हुए , तो फिर ' नैनी आकर विवाद सुलझाने " की बाध्यता आप ने क्यों व्यक्त की है ? </div>
<div>
<br /></div>
<div>
, मैंने अपने पत्रों में घटनाओं का हवाला देकर , स्थितियां स्पष्ट की हैं ,, ! मेरा उद्देश्य ना तो किसी को आहत करने का है , और ना दोषारोपण का ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
जहां तक किसी मांग की बात है , उसका एक आडियो मेरे पास उपलब्ध है , जिसमें आपने मांग हेतु , धन लेने को उचित बताते हुए , प्रभुता से , मेरे बारे में व् मेरी पत्नी के बारे में , अपशब्द कहते हुए चर्चा की है ! यदि प्रभुता के माता पिता , आपके लिए वास्तव में आदर के पात्र हैं , तो उनके लिए , इस तरह के अपशब्द एवं मांग व्यक्त नहीं होने चाहिए थे ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
खेद का विषय है की माह , जुलाई में , आप यद्यपि अपनी माताजी के साथ , नैनी आये , किन्तु तब आपने अपने आगमन की हमें सूचना , चर्चा की पहल हेतु नहीं दिए , बल्कि इसके विपरीत , हमारे द्वारा पूछे जाने पर , आपके पिताजी द्वारा यह बताया गया की आप नैनी आये ही नहीं है ! दिनांक १६-७-१८ को मैं जब स्वयं , नैनी गया भी , तब भी आपके परिवार ने इस बाबत कोई चर्चा नहीं की , ! </div>
<div>
बल्कि दूसरी और , , आप नैनी आने का प्रोग्राम निरंतर टालते रहे ,,और समयानुसार , विषयान्तर्गत , उल्लेखित, अपने कथित विवाद को , अपने स्तर पर , सुलझाने हेतु कभी , गंभीर नहीं हुए ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
इन परिस्थितियों , में , तीन माहों से , अपनी पुत्री को , मानसिक व्यथा झेलते हुए देख कर , और आपके द्वारा निरंतर उसकी अवहेलना को देखते हुए , मैं स्वयं अत्यंत " आहत " हूँ ,,! आपके द्वारा , एवं आपके परिवार के द्वारा अपनी पुत्री के प्रति किये गए , , असंगत व्यहार को देख कर मेरा स्वास्थ्य भी निरंतर गिरा है , एवं सामाजिक रूप से मैं खुद को आहत महसूस कर रहा हूँ ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
उक्त सभी तथ्यों के बाद भी , चूंकि , आपका विवाह मेरी पुत्री के साथ , समाज के लोगों के बीच सतना में संपन्न हुआ है , इसलिए , मेरा निवेदन है की आप अपने माता पिता के साथ , सतना आएं , और शाशन के नियमान्तर्गत , अपने विवाह का पंजीयन करके , प्रमाणपत्र प्राप्त करें , जो की कानूनन , वरपक्ष का ही दायित्व है ! मुझे विश्वाश है , की आप स्थितियों को समझते हुए , , आपसी विश्वाश , सुरक्षा , और दायित्व को पूर्ण करने का कार्य जरूर करेंगे ,, ताकि आपका दामपत्य जीवन सुखमय हो सके , व् मेरी पुत्री आपके आश्रय में स्वयं को , सुरक्षित महसूस कर सके ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
स्नेहाशीष सहित ,,, दीपावली की मंगल कामनाओं के साथ, , आपके सतना आगमन की प्रतीक्षा में , </div>
<div>
<br /></div>
<div>
---सभाजीत </div>
<div class="yj6qo">
</div>
<div class="adL">
<br /></div>
</div>
</div>
<div class="adL">
</div>
</div>
</div>
<div class="hi" style="background: rgb(242, 242, 242); border-bottom-left-radius: 1px; border-bottom-right-radius: 1px; margin: 0px; padding: 0px; width: auto;">
</div>
</div>
</div>
<div class="ajx" style="clear: both;">
</div>
</div>
<div class="gA gt acV" style="background: transparent; border-bottom-left-radius: 0px; border-bottom-right-radius: 0px; border-top-style: none; font-size: 0.875rem; margin: 0px; padding: 0px; width: auto;">
<div class="gB xu" style="border-top-width: 0px; padding: 0px;">
<div class="ip iq" style="border-top-style: none; clear: both; margin: 0px; padding: 16px 0px;">
<div id=":1qu">
<table class="cf wS" role="presentation" style="border-collapse: collapse;"><tbody>
<tr><td class="amq" style="margin: 0px; padding: 0px 16px; vertical-align: top; visibility: hidden; width: 44px;"><img class="ajn bofPge" data-hovercard-id="sharma.sabhajeet@gmail.com" id=":n8_0" jid="sharma.sabhajeet@gmail.com" name=":n8" src="https://ssl.gstatic.com/ui/v1/icons/mail/no_photo.png" style="border-radius: 50%; display: block; height: 40px; width: 40px;" /></td><td class="amr" style="margin: 0px; padding: 0px; width: 944px;"><div class="nr wR" style="border-radius: 1px; border: none; box-sizing: border-box; color: #222222; margin: 0px; padding: 0px; transition: none 0s ease 0s;">
<div class="amn" style="align-items: center; color: inherit; display: flex; height: auto; line-height: 20px; padding: 0px;">
<span class="ams bkH" face="'Google Sans', Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif" id=":1qn" jslog="21576; u014N:cOuCgd,Kr2w4b;" role="link" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; -webkit-user-drag: none; -webkit-user-select: none; align-items: center; background: none; border-radius: 4px; border: none; box-shadow: rgb(218, 220, 224) 0px 0px 0px 1px inset; box-sizing: border-box; color: #5f6368; cursor: pointer; display: inline-flex; font-size: 0.875rem; height: 36px; justify-content: center; letter-spacing: 0.25px; margin-right: 12px; min-width: 104px; outline: none; padding: 0px 16px 0px 12px; position: relative; user-select: none; z-index: 0;" tabindex="0">Reply</span><span class="ams bkG" face="'Google Sans', Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif" id=":1qp" jslog="21578; u014N:cOuCgd,Kr2w4b;" role="link" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; -webkit-user-drag: none; -webkit-user-select: none; align-items: center; background: none; border-radius: 4px; border: none; box-shadow: rgb(218, 220, 224) 0px 0px 0px 1px inset; box-sizing: border-box; color: #5f6368; cursor: pointer; display: inline-flex; font-size: 0.875rem; height: 36px; justify-content: center; letter-spacing: 0.25px; margin-right: 12px; min-width: 104px; outline: none; padding: 0px 16px 0px 12px; position: relative; user-select: none; z-index: 0;" tabindex="0">Forward</span></div>
</div>
</td></tr>
</tbody></table>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="nH">
</div>
<div class="nH">
</div>
</div>
</div>
<div class="nH">
<div class="l2 pfiaof" role="contentinfo" style="margin: 0px 0px 16px; padding: 0px 16px 0px 72px; text-align: center; text-shadow: rgba(0, 0, 0, 0.8) 0px 0px 3px; visibility: hidden;">
<div id=":1qb">
</div>
<div class="aeV" id=":1qf" style="float: left; text-align: left; width: 309.016px;">
<div class="md mj" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: rgba(255, 255, 255, 0.7); font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; padding-top: 0px; text-shadow: none;">
<div>
<span dir="ltr"></span><span dir="ltr"></span></div>
<div class="aeW">
<a aria-label="Manage Storage" class="l8" href="https://drive.google.com/u/0/settings/storage?hl=en" style="color: #222222; cursor: pointer; text-decoration: none; text-shadow: none;" target="_blank"></a></div>
</div>
</div>
<div class="aeU" style="float: left; width: 309.016px;">
<div id=":1qe">
<div class="ma" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: rgba(255, 255, 255, 0.7); font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; padding-top: 0px; text-shadow: none;">
<a class="l9" href="https://www.google.com/intl/en/policies/terms/" style="color: #222222; text-decoration: none; text-shadow: none;" target="_blank"></a><a class="l9" href="https://www.google.com/intl/en/policies/privacy/" style="color: #222222; text-decoration: none; text-shadow: none;" target="_blank"></a><a class="l9" href="https://www.google.com/gmail/about/policy/" style="color: #222222; text-decoration: none; text-shadow: none;" target="_blank"></a></div>
</div>
</div>
<div class="ae3" id=":1qc" style="float: left; text-align: right; width: 309.016px;">
<div class="l6" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: rgba(255, 255, 255, 0.7); font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; padding-top: 0px; text-shadow: none;">
<div>
</div>
<span class="l8 LJOhwe" id=":1qj" role="link" style="color: #222222; cursor: pointer; text-shadow: none;" tabindex="0"></span></div>
</div>
<div style="clear: both;">
</div>
</div>
</div>
</div>
</td><td class="Bu yM" style="background: rgb(255, 255, 255); margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: top; width: 0px;"><div class="Bt" style="height: 0px; overflow: hidden; width: 0px;">
</div>
<div class="nH" style="width: 0px;">
<div class="no" style="float: left;">
<div class="nH nn" style="float: left; min-height: 1px; width: 0px;">
<div style="height: 64ex;">
</div>
</div>
</div>
<div class="dJ" style="clear: both; height: 0px; overflow: hidden;">
</div>
</div>
</td><td class="Bu y3" style="background: rgb(255, 255, 255); height: 100px; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: top; width: 0px;"><div class="Bt" style="height: 0px; overflow: hidden; width: 559px;">
</div>
<div class="nH bno adC" role="complementary" style="margin: 0px 8px 8px 0px; position: absolute; right: 32px; top: 0px; width: 0px;">
<div class="nH">
</div>
</div>
<div class="y4" style="bottom: 0px; height: 842px; left: 0px; opacity: 0; position: relative; top: 0px; visibility: hidden; width: 0px; z-index: 2;">
</div>
</td></tr>
</tbody></table>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="nH bAw nn" style="float: left; height: 534px; min-height: 1px; min-width: 56px; transition-duration: 0.15s; transition-property: min-width, width; transition-timing-function: cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 56px; z-index: 2;">
<div aria-label="Side panel" class="brC-aT5-aOt-Jw brC-aMv-auO" role="complementary" style="border-color: rgba(255, 255, 255, 0.118); border-left-style: solid; border-left-width: 1px; box-sizing: border-box; display: flex; flex-direction: column; height: 534px; position: relative; width: 56px;">
<div class="brC-aT5-aOt-bsf-Jw" style="display: flex; flex-direction: column; flex: 1 0 auto; margin-bottom: 56px;">
<div class="brC-bsf-aT5-aOt" role="tablist" style="-webkit-box-flex: 1; -webkit-user-select: none; flex-grow: 1; height: 100px; outline: none; user-select: none;" tabindex="0">
<div aria-disabled="false" aria-label="Calendar" aria-selected="false" class="bse-bvF-I aT5-aOt-I bse-bvF-aLp" data-guest-app-id="6" id="gsc-gab-6" role="tab" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; height: 56px; outline: none; pointer-events: none; position: relative; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 56px;">
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-Kv" style="-webkit-user-select: none; border-color: rgba(255, 255, 255, 0.24); border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-J6" style="-webkit-user-select: none; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-Jw" style="-webkit-user-select: none; align-items: center; background-image: url("https://www.gstatic.com/companion/icon_assets/calendar_2x.png"); background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px 20px; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; pointer-events: auto; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 40px;">
</div>
</div>
<div aria-disabled="false" aria-label="Keep" aria-selected="false" class="bse-bvF-I aT5-aOt-I bse-bvF-a9p" data-guest-app-id="2" id="gsc-gab-2" role="tab" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; height: 56px; outline: none; pointer-events: none; position: relative; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 56px;">
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-Kv" style="-webkit-user-select: none; border-color: rgba(255, 255, 255, 0.24); border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-J6" style="-webkit-user-select: none; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-Jw" style="-webkit-user-select: none; align-items: center; background-image: url("https://www.gstatic.com/companion/icon_assets/keep_2x.png"); background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px 20px; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; pointer-events: auto; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 40px;">
</div>
</div>
<div aria-disabled="false" aria-label="Tasks" aria-selected="false" class="bse-bvF-I aT5-aOt-I bse-bvF-aLp" data-guest-app-id="4" id="gsc-gab-4" role="tab" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; height: 56px; outline: none; pointer-events: none; position: relative; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 56px;">
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-Kv" style="-webkit-user-select: none; border-color: rgba(255, 255, 255, 0.24); border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-J6" style="-webkit-user-select: none; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-Jw" style="-webkit-user-select: none; align-items: center; background-image: url("https://www.gstatic.com/companion/icon_assets/tasks2_2x.png"); background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px 20px; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; pointer-events: auto; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 40px;">
</div>
</div>
<div aria-disabled="true" aria-hidden="false" class="brC-aT5-aOt-axR" id=":na" role="separator" style="-webkit-user-select: none; border-color: rgba(255, 255, 255, 0.118); border-top-style: solid; border-top-width: 1px; content: ""; flex: 1 0 auto; margin: 16px auto 0px; padding-bottom: 16px; user-select: none; width: 20px;">
</div>
<div aria-label="Get Add-ons" aria-selected="false" class="bse-bvF-I aT5-aOt-I" id="p2DdMb" role="tab" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; height: 56px; outline: none; pointer-events: none; position: relative; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 56px;">
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-Kv" style="border-color: rgba(255, 255, 255, 0.24); border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-J6" style="border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-Jw" style="align-items: center; background-image: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/add_white_24dp.png"); background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px 20px; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; pointer-events: auto; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; width: 40px;">
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div aria-label="Toggle side panel" class="brC-dA-I-Jw brC-aMv-auO" role="navigation" style="bottom: 0px; display: flex; height: 56px; overflow: hidden; position: absolute; right: 0px; width: 56px; z-index: 2;">
<div aria-label="Hide side panel" aria-pressed="false" class="aT5-aOt-I brC-dA-I" role="button" style="-webkit-user-select: none; bottom: 0px; cursor: pointer; height: 56px; outline: none; pointer-events: none; position: relative; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; user-select: none; width: 56px;" tabindex="0">
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM" style="border-radius: calc(38px); display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-Jw" style="align-items: center; background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px 20px; border-radius: calc(38px); display: flex; height: 40px; left: 8px; pointer-events: auto; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1) 0s; width: 40px;">
<svg class="aT5-aOt-I-JX" enable-background="new 0 0 24 24" fill="#5F6368" height="20px" id="Layer_1" version="1.1" viewbox="0 0 24 24" width="20px" x="0px" xml:space="preserve" y="0px"><path d="M8.59,16.59L13.17,12L8.59,7.41L10,6l6,6l-6,6L8.59,16.59z"></path><path d="M0,0h24v24H0V0z" fill="none"></path></svg></div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="dJ" style="clear: both; height: 0px; overflow: hidden;">
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="vY nq" style="color: #202124; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; height: 630px; left: 0px; position: absolute; top: 0px; visibility: hidden; width: 1360px; z-index: -2;">
</div>
<div style="color: #202124; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif;">
<div>
</div>
</div>
<iframe aria-hidden="true" id="oauth2relay1305594863" name="oauth2relay1305594863" src="https://accounts.google.com/o/oauth2/postmessageRelay?parent=https%3A%2F%2Fmail.google.com&jsh=m%3B%2F_%2Fscs%2Fabc-static%2F_%2Fjs%2Fk%3Dgapi.gapi.en.57vmlWwHHV4.O%2Fd%3D1%2Frs%3DAHpOoo8g4wyDqrTwJ_zGN6gLyTAGCEPLfg%2Fm%3D__features__#rpctoken=314864154&forcesecure=1" style="color: #202124; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; height: 1px; position: absolute; top: -100px; width: 1px;" tabindex="-1"></iframe></div>
<div>
<br /></div>
</div>
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-42132764534658142472019-07-01T05:02:00.003-07:002019-07-01T05:15:53.150-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr">
<div>
प्रिय श्री अंकुर मेहता , </div>
<div>
<br /></div>
<div>
अत्यंत खेद के साथ मुझे लिखना पड़ रहा है की मेरे द्वारा दिनांक ३० जुलाई
२०१८ को आपको , लिखे गए पत्र के बावजूद , आज दिनांक २९ -९-२०१८ तक , दो माह की
अवधि व्यतीत हो जाने के बाद भी , आप आवश्यक वैवाहिक रजिस्ट्रेशन हेतु ना तो अभी
तक सतना आये , और ना ही , दिल्ली में अपनी पत्नी प्रभुता शर्मा के साथ किये गए
अमानुषिक व्यवहार , के निदान हेतु , तथा , भविष्य में उसे सुरक्षा का
आश्वाशन देने हेतु , सतना आकर , सामाजिक बैठक में आपसी वार्तालाप में सम्मलित हो
कर सदाशय का कोई कदम उठाये ! जबकि आपको सतना बुलाने हेतु , बार बार आपके नैनी
स्थित माता पिता के मोबाइल पर भी कई बार सूचित किया जा चुका है !</div>
<div>
, एतदर्थ , हमारे द्वारा , एक सितम्बर के भेजे गए वाट्सअप के अंतिम
मेसेज के अनुसार <span style="line-height: 1.5;"> </span><span style="line-height: 1.5;">भी</span><span style="line-height: 1.5;">, आपको , अपने
माता पिता के साथ २ सितम्बर को सतना आने हेतु उनके मोबाइल पर , विनम्र निवेदन भी
किया गया ! </span></div>
<div>
आपके इस कृत्य से , अपनी पत्नी के प्रति अवहेलना , और उसे पत्नी का
दर्ज़ा प्रदान ना किये जाने की आपकी पूर्व सुनियोजित , मंशा के प्रति मेरा विश्वाश
और दृढ होता जा रहा है ! जैसा की आपको विदित ही होगा , वैवाहिक रजिस्ट्रेशन सिर्फ
सतना में ही संभव है , जिसमें आपको अपने माता पिता के साथ , सक्षम रजिस्ट्रेशन
अधिकारी के समक्ष सतना उपस्थित होना अनिवार्य है ! और उसके बिना , , मेरी बेटी
तथा हमारे सारे परिवार को सामाजिक व मानसिक रूप से , असुरक्षा की भावना के
साथ , निरंतर मानसिक प्रताड़ना का भी शिकार होना पड़ रहा है !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
आपसे पुनः एक बार निवेदन है की आप शीघ्रातिशीघ्र , अपने परिवार के
साथ सतना आकर , वैवाहिक रजिस्ट्रेशन का कार्य पूर्ण करवाए , एवं अपने व्यवहार के
कारण उत्पन्न हुए , विवाद को सामाजिक बैठक में बैठ कर सुलझाने का कदम उठायें ताकि
मेरी बेटी प्रभुता शर्मा , पूर्ण आत्मविश्वाश , एवं सुरक्षा की भावना के साथ ,
अपने पैतृक घर से , विदा हो कर , वापिस आपके संरक्षण में , अपने ससुराल जा सके
! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
</div>
<div>
सादर एवं सस्नेह , </div>
<div>
<br /></div>
<div>
सभाजीत शर्मा ,<br />
<br />
<div class="gE iv gt" style="cursor: auto; font-size: 0.875rem; padding: 20px 0px 0px;">
<table cellpadding="0" class="cf gJ" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; border-collapse: collapse; display: block; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 0.875rem; letter-spacing: 0.2px; margin-top: 0px; width: auto;"><tbody style="display: block;">
<tr class="acZ" style="display: flex; height: auto;"><td class="gF gK" style="display: block; line-height: 20px; margin: 0px; max-height: 20px; padding: 0px; vertical-align: top; white-space: nowrap; width: 670.188px;"><table cellpadding="0" class="cf ix" style="border-collapse: collapse; table-layout: fixed; width: 670px;"><tbody>
<tr><td class="c2" style="display: flex; margin: 0px;"><h3 class="iw" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: #5f6368; font-size: 0.75rem; font-weight: inherit; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; margin: inherit; max-width: calc(100% - 8px); overflow: hidden; text-overflow: ellipsis; white-space: nowrap;">
<span class="qu" role="gridcell" tabindex="-1"><span class="gD" data-hovercard-id="sharma.sabhajeet@gmail.com" data-hovercard-owner-id="159" email="sharma.sabhajeet@gmail.com" name="SABHAJEET1" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; color: #202124; display: inline; font-size: 0.875rem; font-weight: bold; letter-spacing: 0.2px; vertical-align: top;">SABHAJEET1</span> <span class="go" style="color: #555555; vertical-align: top;"><span aria-hidden="true"><</span>sharma.sabhajeet@gmail.com<span aria-hidden="true">></span></span></span></h3>
</td></tr>
</tbody></table>
</td><td class="gH bAk" style="align-items: center; color: #222222; display: block; margin: 0px; max-height: 20px; text-align: right; vertical-align: top; white-space: nowrap;"><div class="gK" style="align-items: center; display: flex; padding: 0px;">
<span alt="Sep 30, 2018, 1:10 AM" class="g3" id=":1rc" role="gridcell" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: #5f6368; display: block; font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; margin: 0px; vertical-align: top;" tabindex="-1" title="Sep 30, 2018, 1:10 AM">Sun, Sep 30, 2018, 1:10 AM</span><div aria-checked="false" aria-label="Not starred" class="zd bi4" jslog="20511; u014N:cOuCgd,Kr2w4b;" role="checkbox" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; display: inline-block; height: 20px; margin-left: 20px; outline: 0px;" tabindex="0" title="Not starred">
<span class="T-KT" style="align-items: center; border: none; display: inline-flex; height: 20px; justify-content: center; margin: 0px; outline: none; padding: 0px; position: relative; text-align: center; top: 0px; transition: opacity 0.15s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 20px; z-index: 0;"></span></div>
</div>
</td><td class="gH" style="align-items: center; color: #222222; display: flex; margin: 0px; text-align: right; vertical-align: top; white-space: nowrap;"></td><td class="gH acX bAm" rowspan="2" style="align-items: center; color: #222222; display: block; margin: 0px; max-height: 20px; text-align: right; vertical-align: top; white-space: nowrap;"><div aria-label="Reply" class="T-I J-J5-Ji T-I-Js-IF aaq T-I-ax7 L3" data-tooltip="Reply" role="button" style="-webkit-user-drag: none; -webkit-user-select: none; align-items: center; background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; border-radius: 2px 0px 0px 2px; border: none; box-shadow: none; color: #444444; cursor: pointer; display: inline-flex; font-size: 0.875rem; height: 20px; justify-content: center; line-height: 18px; margin: 0px 0px 0px 20px; min-width: 0px; outline: none; padding: 0px; position: relative; text-align: center; z-index: 0;" tabindex="0">
<img alt="" class="hB T-I-J3 " role="button" src="https://mail.google.com/mail/u/0/images/cleardot.gif" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/reply_black_20dp.png"); background-origin: initial; background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px; display: inline-block; height: 20px; margin: 0px; opacity: 0.7; padding: 0px; transition: opacity 0.15s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); vertical-align: middle; width: 20px;" /></div>
<div aria-expanded="false" aria-haspopup="true" aria-label="More" class="T-I J-J5-Ji T-I-Js-Gs aap T-I-awG T-I-ax7 L3" data-tooltip="More" id=":1r4" role="button" style="-webkit-user-drag: none; -webkit-user-select: none; align-items: center; background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; border-radius: 0px 2px 2px 0px; border: none; box-shadow: none; color: #444444; cursor: pointer; display: inline-flex; font-size: 0.875rem; height: 20px; justify-content: center; line-height: 18px; margin: 0px 0px 0px 20px; min-width: 0px; outline: none; padding: 0px; position: relative; text-align: center; z-index: 0;" tabindex="0">
<img alt="" class="hA T-I-J3" role="menu" src="https://mail.google.com/mail/u/0/images/cleardot.gif" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/more_vert_black_20dp.png"); background-origin: initial; background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px; display: inline-block; height: 20px; margin: 0px; opacity: 0.7; padding: 0px; transition: opacity 0.15s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); vertical-align: middle; width: 20px;" /></div>
</td></tr>
<tr class="acZ xD" style="display: flex; height: auto;"><td colspan="3" style="margin: 0px;"><table cellpadding="0" class="cf adz" style="border-collapse: collapse; table-layout: fixed; white-space: nowrap; width: 944px;"><tbody>
<tr><td class="ady" style="align-items: center; display: flex; line-height: 20px; margin: 0px; overflow: visible; text-overflow: ellipsis;"><div class="iw ajw" style="display: inline-block; max-width: 92%; overflow: hidden;">
<span class="hb" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: #5f6368; font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; vertical-align: top;">to <span class="g2" data-hovercard-id="ankurmehta42557@gmail.com" data-hovercard-owner-id="159" dir="ltr" email="ankurmehta42557@gmail.com" name="ANKUR" style="vertical-align: top;">ANKUR</span></span></div>
<div aria-haspopup="true" aria-label="Show details" class="ajy" data-tooltip="Show details" id=":1r5" role="button" style="align-items: center; border: none; display: inline-flex; justify-content: center; margin-left: 4px; outline: none; position: relative; vertical-align: top; z-index: 0;" tabindex="0">
<img alt="" class="ajz" src="https://mail.google.com/mail/u/0/images/cleardot.gif" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/arrow_drop_down_black_20dp.png"); background-origin: initial; background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px; border: none; cursor: pointer; display: flex; height: 20px; margin: 0px 0px 0px auto; opacity: 0.54; padding: 0px; position: relative; right: 0px; top: 0px; vertical-align: baseline; width: 20px;" /></div>
</td></tr>
</tbody></table>
</td></tr>
</tbody></table>
</div>
<div id=":1ps">
<div class="qQVYZb">
</div>
<div class="utdU2e">
</div>
<div class="btm">
</div>
</div>
<div class="">
<div class="aHl" style="margin-left: -38px;">
</div>
<div id=":1r6" tabindex="-1">
</div>
<div class="ii gt" id=":1pq" style="direction: ltr; font-size: 0.875rem; margin: 8px 0px 0px; padding: 0px; position: relative;">
<div class="a3s aXjCH " id=":1pr" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; font-stretch: normal; line-height: 1.5; overflow: hidden;">
<div dir="ltr">
<div dir="ltr">
<div dir="ltr">
<div dir="ltr">
<div dir="ltr">
<div style="background-color: white; color: #222222;">
प्रिय श्री अंकुर मेहता , </div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
अत्यंत खेद के साथ मुझे लिखना पड़ रहा है की मेरे द्वारा दिनांक ३० जुलाई २०१८ को आपको , लिखे गए पत्र के बावजूद , आज दिनांक २९ -९-२०१८ तक , दो माह की अवधि व्यतीत हो जाने के बाद भी , आप आवश्यक वैवाहिक रजिस्ट्रेशन हेतु ना तो अभी तक सतना आये , और ना ही , दिल्ली में अपनी पत्नी प्रभुता शर्मा के साथ किये गए अमानुषिक व्यवहार , के निदान हेतु , तथा , भविष्य में उसे सुरक्षा का आश्वाशन देने हेतु , सतना आकर , सामाजिक बैठक में आपसी वार्तालाप में सम्मलित हो कर सदाशय का कोई कदम उठाये ! जबकि आपको सतना बुलाने हेतु , बार बार आपके नैनी स्थित माता पिता के मोबाइल पर भी कई बार सूचित किया जा चुका है !</div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
, एतदर्थ , हमारे द्वारा , एक सितम्बर के भेजे गए वाट्सअप के अंतिम मेसेज के अनुसार <span style="line-height: 1.5;"> </span><span style="line-height: 1.5;">भी</span><span style="line-height: 1.5;">, आपको , अपने माता पिता के साथ २ सितम्बर को सतना आने हेतु उनके मोबाइल पर , विनम्र निवेदन भी किया गया ! </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
आपके इस कृत्य से , अपनी पत्नी के प्रति अवहेलना , और उसे पत्नी का दर्ज़ा प्रदान ना किये जाने की आपकी पूर्व सुनियोजित , मंशा के प्रति मेरा विश्वाश और दृढ होता जा रहा है ! जैसा की आपको विदित ही होगा , वैवाहिक रजिस्ट्रेशन सिर्फ सतना में ही संभव है , जिसमें आपको अपने माता पिता के साथ , सक्षम रजिस्ट्रेशन अधिकारी के समक्ष सतना उपस्थित होना अनिवार्य है ! और उसके बिना , , मेरी बेटी तथा हमारे सारे परिवार को सामाजिक व मानसिक रूप से , असुरक्षा की भावना के साथ , निरंतर मानसिक प्रताड़ना का भी शिकार होना पड़ रहा है !</div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
आपसे पुनः एक बार निवेदन है की आप शीघ्रातिशीघ्र , अपने परिवार के साथ सतना आकर , वैवाहिक रजिस्ट्रेशन का कार्य पूर्ण करवाए , एवं अपने व्यवहार के कारण उत्पन्न हुए , विवाद को सामाजिक बैठक में बैठ कर सुलझाने का कदम उठायें ताकि मेरी बेटी प्रभुता शर्मा , पूर्ण आत्मविश्वाश , एवं सुरक्षा की भावना के साथ , अपने पैतृक घर से , विदा हो कर , वापिस आपके संरक्षण में , अपने ससुराल जा सके ! </div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
</div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
सादर एवं सस्नेह , </div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222;">
सभाजीत शर्मा ,</div>
<div class="yj6qo" style="background-color: white; color: #222222;">
</div>
<div class="adL" style="background-color: white; color: #222222;">
<br /></div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
</div>
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-30580970518413567752019-07-01T05:00:00.003-07:002019-07-01T05:17:54.342-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr">
प्रिय श्री अंकुर मेहता ,
<br />
<div>
<br /></div>
<div>
अत्यंत खेद के साथ मुझे लिखना पड़ रहा है की , आपका व्यवहार मेरी पुत्री
प्रभुता शर्मा , ( अब आपकी पत्नी - प्रभुता मेहता ) के साथ निरंतर , विवाह के बाद
से ही , अमानवीय , और हिंसात्मक रहा है ! </div>
<div>
जैसा की उसने बताया की विवाह के बाद से ही आप ने उसे समुचित दहेज़ ना लाने ,
विवाह में व्यवस्था में दोष दर्शाने , के बहाने उलाहने देने शुरू किये , और उसे एक
पत्नी की बजाय , एक नौकरानी के रूप में कार्य करने के लिए उत्पीड़ित किया तथा उसे
अपने माता पिता - भाई बहिन के साथ साथ सभी मातृ पक्ष से सम्बन्ध तोड़ देने और
मोबाइल पर बात ना करने के लिए आदेशित किया !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
जबकि आपके साथ , प्रभुता का विवाह , आपके द्वारा सतना आकर , उससे व्यक्तिगत
रूप से मिल लेने , तथा उसकी सम्पूर्ण , शैक्षिक डिग्रियां समझ लेने , तथा , एक घंटे
के निरंतर संतोषप्रद बातचीत एवं आपसी समझ के स्थापित होने के बाद ही , अंतिम रूप
से सतना निवासी , आपके रिश्तेदार श्री अजय दानायक के भरहुत नगर निवास पर , मातृ
पक्ष को बुला कर , आपके माता पिता की सहमति , के साथ ही तय हुआ ! इस बैठक में ही
, विवाह की समस्त रीत रिवाज , तथा व्यवस्था के सभी कार्य , आपके माता पिता के
वांछित रीत रिवाज़ को पूर्ण करने के लिए हमें , यानी सभाजीत शर्मा एवं श्रीमती कनक
शर्मा को लिखित रूप से निर्देशित किया गया ! उल्लेखनीय है की हमारा परिवार पढ़ा लिखा
है , और हम किसी डाबरी के लेन देन को स्वीकार नहीं करते हैं , और ना यह हमारे
संस्कारों , और हमारे समाज में मान्य है , इसलिए विवाह तय होते समय , आपके
रिश्तेदार श्री अजय दानायक एवं आपके माता पिता श्री अजय कृष्ण मेहता , श्रीमती
सरिता मेहता , के सामने ही यह स्पष्ट कर दिया गया था की हम कोई डाबरी का
लेन देन नहीं करते हैं ! आपके माता पिता श्री , अजयकृष्ण मेहता तथा श्रीमती
सरिता मेहता तथा स्वयं आपने तभी यह भी बताया था की आप एन थाइव ग्लोबल सोलुशन
प्राइवेट लिमिटेड नोयडा में सीनियर एनालिस्ट के पद पर कार्य करते हैं , और विवाह
बाद आप वहां पत्नी के साथ रहने की समुचित आवास व्यवस्था कर रहे हैं , जो दामपत्य
जीवन के लिए वन बी एच के , के फ्लेट के रूप में , पर्याप्त होगी !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
आपके माता पिता के द्वारा , श्री अजय दानायक को , विवाह हेतु सभी
व्यवस्थाओं को आपकी और से देखने समझने , और एप्रूव करने के लिए प्रतिनिधि के रूप
में नामित किया , जिनके साथ मिल कर उनकी संतुष्टि के अनुरूप , यथा संभव सभी उच्च
स्तर की वैवाहिक व्यवस्थाएं मेने की ! इन्ही व्यवस्थाओं के अंतर्गत , सामान्य
तौर से अलग , आप एक दिन पूर्व ही अपनी बरात ले कर ११ फरवरी को , काशी एक्सप्रेस के
स्लीपर कोच से , नैनी से , ट्रेन से सतना आये , और हमने आपको जनवासे में उपलब्ध सभी
उचित सुविधाएं दी ! वर पक्ष में उपस्थित करीब ५० बारातियों के समक्ष , एवं वधु
पक्ष के भी क़रीब ५० घरातियों के समक्ष , तथा सतना नगर के कई गणमान्य लोगों की
उपस्थिति में , यह विवाह आकर्षक और पूर्ण सुविधाओं के साथ , संतोषजनक रूप से संपन्न
हुआ , जिसके साक्ष्य आज भी सतना के नागरिक भी हैं ! किन्तु विवाह के दौरान भी मैंने
तथा कई अन्य उपस्थित लोगों ने यह परिलक्षित किया की आप का व्यवहार सामान्य नहीं है
और आप विवाह में रूचि नहीं ले रहे हैं !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
विवाह के बाद , विवाह के वैधानिक मैरिज सार्टिफिकेट को सतना आकर , नगर निगम
में , औपचारिकताएं पूर्ण कर उसे प्राप्त करने में भी आपने कोई रूचि नहीं दिखाई , और
ना आपने इस हेतु कोई स मुचित कदम उठाया और ना ही सतना आये ! मेरी बेटी को आपके
माता पिता दूसरी विदा करवाकर १३ अप्रैल को नैनी ले गए , जहाँ करीब एक माह तक वह
आपके माता पिता के साथपूर्ण संतोषजनक रूप से , रही ! इस बीच आपने फोन पर भी मेरी
बेटी से कहा की आपको विवाह में रूचि नहीं थी , और और आप मेरी बेटी को नैनी आकर नहीं
ले जायेंगें ! इस स्थिति में मेरी बेटी को आपकी माताजी , श्रीमती सरिता मेहता , खुद
साथ ले कर , दिल्ली गयीं , जहां आप का निवास , नोयडा के छलेरा गावं में , श्री
अमित चौहान के चाल नुमा मकान के कमरा नंबर १९ में था ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
मेरी बेटी ने उस अपर्याप्त जगह में , भीषण गर्मी के बीच , अपर्याप्त
व्यवस्था के बीच ही खुद को एडजस्ट किया , तथा उसने अपने एक कमरे के इस मकान को ही
गृहस्थी के अनुरूप सजाने की कोशिश की , किन्तु आप ने इस पर भीषण , आपत्ति प्रकट की
, तथा अपने मोबाइल , और लेप टॉप को कभी भी छूने के लिए मना किया और कहा की वे
आपके नित्तांत व्यक्तिगत चीजें है जो किसी भी हालत में प्रभुता से शेयर नहीं कर
सकते ! ! आपने कहा की उसको आपकी वस्तुएं छूने का अधिकार नहीं और वह खुद को एक
नौकरानी के रूप में ही समझे ,,,ना की पत्नी के रूप में ! इस कमरे में ना तो गृहस्थी
का सामान था और ना अन्य जरूरी उपयोग का सामान अतः जानकारी मिलने पर मैं दिल्ली गया
,,और आपकी पसंद के अनुरूप अत्यंत जरूरी सामान मैंने आपकी मांग के हिसाब से अट्टा
बाजार सेक्टर १६ से खरीद कर आपके कमरे में पहुंचाए , जिसमें एक फ्रिज , एक वाशिंग
मशीन , एक कूलर और सोने बैठने के लिए एक दीवान सह पलंग था !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
इस सामान की प्राप्ति पर भी आप संतुष्ट नहीं हुए , और आपने मेरी बेटी को
गाली दीं तथा कहा की सामान कचरा है ! आपने उसके मां पिता को भी अपशब्द कहे , और
मातृ पक्ष से मिले </div>
<div>
अन्य सामानो को भी कचरा कह कर असंतुष्टि जताई ! आप ने उसे कहा की आप उसे
दिल्ली नहीं रखना चाहते और वापिस सतना या इलाहाबाद भेज देना चाहते हैं ! इससे पूर्व
भी आप उसे इस तरह प्रतिदिन कोई ना कोई उलाहना देकर , उसे मानसिक प्रताड़ना देते रहे
और दिल्ली छोड़ कर वापिस सतना जाने के लिए बाध्य करते रहे ! आपने कभी दिल्ली में
कहीं उसे समय देने , उससे आपसी बात करने , आपस में एकदूसरे को समझने का कोई समय
नहीं दिया और ना ही ऐसा कोई अवसर , जिसमें अवकाश के दिन भी दोनों कहीं अकेले में ,
सार्वजनिक स्थानों पर जा कर बात कर सकें ! इसके विपरीत , दिल्ली जाने के बाद ,
तुरंत ही आप ने उस पर दबाव बनाया की वह खुद नौकरी करना शुरू करे , और अपने लिए खुद
आजीविका का इंतजाम करे क्यूंकि आप उसका खर्चा वहां नहीं उठा पाएंगे ! ! जबकि मात्र
एक माह में उसे आपने ना तो घर से बाहर कहीं खुद जाने दिया , और ना ही दिल्ली के
आवागमन के सिस्टम से अवगत कराया ! निरंतर बार बार मानसिक प्रताड़नाओं से , वह
दिल्ली में अस्वस्थ भी हुई !</div>
<div>
उसने बताया की , इसी दौरान आपने क्रुद्ध हो कर , एक दिन उसका गला दबाया ,
और मारपीट भी की ! इन स्थितियों में अपनी सुरक्षा और बचाव के लिए उसने आपकी उसके
साथ हुई वार्तालाप की रिकार्डिंग की जिसमें आपने उसके साथ अभद्र बात चीत की है ,
गाली गलौज किया है , और उसके माता पिता को भी अपशब्द कहे हैं !, आपने उसे भयभीत
भी किया की अगर वह , अपने साथ हुई मारपीट अथवा हिंसा की बातें किसी को बताएगी , या
पुलिस में रिपोर्ट करेगी तो आप उसके परिवार के साथ उसको नष्ट कर देंगे क्यूंकि
आपकी पहुँच हर जगह है ! ! भय की स्थिति में उसने अपनी निकटस्थ , बालयकाल की
सहेली से बता कर पूछा की वह ऐसी दुरूह स्थितियों में क्या करे ! उसने समय समय पर
आपके पिता को फोन करके , आपको समझाने तथा इस हिंसात्मक और मानसिक प्रताड़ना
के व्यवहार को रोकने के लिए निवेदन किया तथा वहां उपस्थित माँ को वस्तु
स्थिति बतायी ,लेकिन वे चुप रह कर अपनी मौन स्वीकृति ही जताते रहे ! मानसिक
प्रताड़ना से त्रस्त हो कर उसने अपने परिवारवालों से भी बात की और अपनी सुरक्षा
हेतु , राय लेने , अपने साथ हुए वार्तालाप को शेयर किया ! इस पर आपने उसका मोबाइल
भी छीन लिया और उसे दिनांक ९-७-२०१८ को मारपीट कर , घर से , भूखा ही बाहर निकाल
दिया ! </div>
<div>
इन परिस्थितियों में , उसनेएक अन्य मोबाइल पर , अपने चाचा , कलश सत्यार्थी ,
जो की दिल्ली में ही रहते हैं , अपनी बुआ श्रीमती कुमकुम , तथा मुझे भी सूचित किया
और स्थिति की जानकारी होने पर मैंने श्री कलश को कहा की वे छलेरा जा कर , आप की
माँ से बात करके , उसे अपने घर ले आएं और तब वे उसे अपने घर ले गए ! ! जहाँ से
वह बाद में अपने भाई के साथ सतना चली आयी ! यहां आने पर मैंने पाया की वह बहुत '
सकते ' में हैं , और ' भयभीत ' है !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
सतना आने के बाद , मैंने आपके माता पिता से नैनी फोन पर संपर्क साध कर , उनसे
प्रार्थना की , कि वे आपको नैनी बुलाएं , और वहां सामाजिक रूप से आप और प्रभुता
बैठ कर अपनी समस्याओं की चर्चा सबके सामने करके कोई हल निकालें , जिससे एक घर ना
टूटे , दाम्पत्य जीवन सुचारु रूप से चल सके ! मैं इस हेतु स्वयं , दिनांक
१६-७-२०१८ को , नैनी जाकर आपकी माताजी का स्वास्थ और हालचाल ले कर निवेदन किया की
इस बात को शीघ्र निबटाएँ ! बाद में फोन पर फिर उनसे अनुरोध किया , और सतना निवासी
श्री अजय दानायक को भी स्थिति की जानकारी दे कर , सामाजिक बैठक कर किसी हल पर
पहुँचने का निवेदन किया ,,किन्तु आपके द्वारा इस बैठक में आने की असमर्थता दिखाई
गयी ! यही नहीं , , पुणे स्थित मेरी बड़ी बेटी प्रशश्ति ने भी आपसे निवेदन कर पूछा
की भविष्य में किस तरह का रवैय्या आप रखना चाहते हो और इस विवाद का हल निकालने कब
वहां आ रहे हो , किन्तु आपने उस पर भी कोई संतुष्टिजनक उत्तर नहीं दिया ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
लड़की का पिता होने के नाते , तथा , आपके लिए पितातुल्य होने के नाते , मैं
आपसे निवेदन करता हूँ की आप अपने व्यवहार को ठीक करें , अपनी पत्नी को कोई मानसिक
या शारीरिक प्रताड़ना ना दें , और वर्षों पूर्व समाप्त हो गयी प्रथाओं के अंतर्गत ,
बेटी को ' डाबरी 'एवं दहेज़ के लिए प्रताड़ित ना करें , उसे पूरी सुरक्षा प्रदान
करें , और उसे अपनी पत्नीवत साथ में दिल्ली रखें , उसे नौकरानी की तरह व्यवहार ना
करें , !</div>
<div>
वर्तमान स्थिति में हुई घटनाओं , और वारदातों को देखते हुए , यह जरूरी है की
आप सामाजिक रूप से आपसी निदान की बैठक में अतिशीघ्र आएं , जो अब सतना में ही उन
लोगों की मध्यस्थता में आयोजित होगी , जो विवाह के साक्ष्य हैं ! </div>
<div>
मुझे विश्वाश है , की आधुनिक सभ्य हुए समाज में , हिंसा की कोई गुंजाइश
अब आप नहीं देंगे , और लिखित आश्वश्त करेंगे की आप के संरक्षण में एक नारी
सुरक्षित है , यही आज की न्याय व्यवस्था और कानून की भी मंशा है , !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
शुभकामनाओं , शुभाशीष के साथ , </div>
<div>
<br /></div>
<div>
सभाजीत शर्मा<br />
<br />
<div style="color: #202124; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; min-height: 100%; position: relative;">
<div class="nH a4O" style="width: 1360px;">
<div class="nH" style="position: relative;">
<div class="nH bkL">
<div class="no" style="display: flex; float: left; width: 1360px;">
<div class="nH bkK nn" style="float: left; min-height: 1px; overflow: hidden; width: 1117px;">
<div class="nH">
<div class="nH">
<div class="nH ar4 z">
<div class="aeI">
<div class="AO" style="position: relative;">
<div class="Tm aeJ" id=":3" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: none; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; height: 486px; overflow-y: scroll; padding-right: 0px;">
<div class="aeF" id=":1" style="min-height: 296px; padding: 0px; vertical-align: bottom;">
<div class="nH">
<div class="nH" role="main">
<div class="nH g">
<table cellpadding="0" class="Bs nH iY bAt" role="presentation" style="border-collapse: collapse; border-spacing: 0px; display: block; padding: 0px; position: static !important; width: 1032px;"><tbody>
<tr><td class="Bu bAn" style="background: rgb(255, 255, 255); display: block; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: top;"><div class="nH if" style="margin: 0px 16px 0px 0px; padding: 0px;">
<div class="nH aHU" style="position: relative;">
<div class="nH hx" style="background-color: transparent; color: #222222; min-width: 502px; padding: 0px;">
<div class="nH" jslog="20686; u014N:xr6bB" role="list">
<div class="h7 ie nH oy8Mbf" role="listitem" style="clear: both; max-width: 100000px; outline: none; padding-bottom: 0px;" tabindex="-1">
<div class="Bk" style="border-radius: 0px; border-top-color: rgb(239, 239, 239); border-top-style: solid; border-width: 0px; float: none !important; margin-bottom: 0px; position: relative; width: 1016px;">
<div class="G3 G2" style="background-color: transparent; border-bottom-color: rgba(100, 121, 143, 0.121569); border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; border-radius: 0px; border-right-width: 0px; border-top-style: none; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; padding-top: 0px;">
<div id=":1ri">
<div class="adn ads" data-legacy-message-id="164ead914f1efcd5" data-message-id="#msg-a:s:-1770160265704387477" style="border-left-style: none; display: flex; padding: 0px;">
<div class="gs" style="margin: 0px; padding: 0px 0px 20px; width: 944px;">
<div class="gE iv gt" style="cursor: auto; font-size: 0.875rem; padding: 20px 0px 0px;">
<table cellpadding="0" class="cf gJ" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; border-collapse: collapse; display: block; font-size: 0.875rem; letter-spacing: 0.2px; margin-top: 0px; width: auto;"><tbody style="display: block;">
<tr class="acZ" style="display: flex; height: auto;"><td class="gF gK" style="display: block; line-height: 20px; margin: 0px; max-height: 20px; padding: 0px; vertical-align: top; white-space: nowrap; width: 670.188px;"><table cellpadding="0" class="cf ix" style="border-collapse: collapse; table-layout: fixed; width: 670px;"><tbody>
<tr><td class="c2" style="display: flex; margin: 0px;"><h3 class="iw" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: #5f6368; font-size: 0.75rem; font-weight: inherit; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; margin: inherit; max-width: calc(100% - 8px); overflow: hidden; text-overflow: ellipsis; white-space: nowrap;">
<span class="qu" role="gridcell" tabindex="-1"><span class="gD" data-hovercard-id="sharma.sabhajeet@gmail.com" data-hovercard-owner-id="159" email="sharma.sabhajeet@gmail.com" name="SABHAJEET1" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; color: #202124; display: inline; font-size: 0.875rem; font-weight: bold; letter-spacing: 0.2px; vertical-align: top;">SABHAJEET1</span> <span class="go" style="color: #555555; vertical-align: top;"><span aria-hidden="true"><</span>sharma.sabhajeet@gmail.com<span aria-hidden="true">></span></span></span></h3>
</td></tr>
</tbody></table>
</td><td class="gH bAk" style="align-items: center; color: #222222; display: block; margin: 0px; max-height: 20px; text-align: right; vertical-align: top; white-space: nowrap;"><div class="gK" style="align-items: center; display: flex; padding: 0px;">
<span alt="Jul 30, 2018, 4:30 PM" class="g3" id=":1qy" role="gridcell" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: #5f6368; display: block; font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; margin: 0px; vertical-align: top;" tabindex="-1" title="Jul 30, 2018, 4:30 PM">Mon, Jul 30, 2018, 4:30 PM</span><div aria-checked="false" aria-label="Not starred" class="zd bi4" jslog="20511; u014N:cOuCgd,Kr2w4b;" role="checkbox" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; display: inline-block; height: 20px; margin-left: 20px; outline: 0px;" tabindex="0" title="Not starred">
<span class="T-KT" style="align-items: center; border: none; display: inline-flex; height: 20px; justify-content: center; margin: 0px; outline: none; padding: 0px; position: relative; text-align: center; top: 0px; transition: opacity 0.15s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 20px; z-index: 0;"></span></div>
</div>
</td><td class="gH" style="align-items: center; color: #222222; display: flex; margin: 0px; text-align: right; vertical-align: top; white-space: nowrap;"></td><td class="gH acX bAm" rowspan="2" style="align-items: center; color: #222222; display: block; margin: 0px; max-height: 20px; text-align: right; vertical-align: top; white-space: nowrap;"><div aria-label="Reply" class="T-I J-J5-Ji T-I-Js-IF aaq T-I-ax7 L3" data-tooltip="Reply" role="button" style="-webkit-user-drag: none; -webkit-user-select: none; align-items: center; background: transparent; border-radius: 2px 0px 0px 2px; border: none; box-shadow: none; color: #444444; cursor: pointer; display: inline-flex; font-size: 0.875rem; height: 20px; justify-content: center; line-height: 18px; margin: 0px 0px 0px 20px; min-width: 0px; outline: none; padding: 0px; position: relative; text-align: center; z-index: 0;" tabindex="0">
<img alt="" class="hB T-I-J3 " role="button" src="https://mail.google.com/mail/u/0/images/cleardot.gif" style="background: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/reply_black_20dp.png") 50% 50% / 20px no-repeat; display: inline-block; height: 20px; margin: 0px; opacity: 0.7; padding: 0px; transition: opacity 0.15s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); vertical-align: middle; width: 20px;" /></div>
<div aria-expanded="false" aria-haspopup="true" aria-label="More" class="T-I J-J5-Ji T-I-Js-Gs aap T-I-awG T-I-ax7 L3" data-tooltip="More" id=":1r6" role="button" style="-webkit-user-drag: none; -webkit-user-select: none; align-items: center; background: transparent; border-radius: 0px 2px 2px 0px; border: none; box-shadow: none; color: #444444; cursor: pointer; display: inline-flex; font-size: 0.875rem; height: 20px; justify-content: center; line-height: 18px; margin: 0px 0px 0px 20px; min-width: 0px; outline: none; padding: 0px; position: relative; text-align: center; z-index: 0;" tabindex="0">
<img alt="" class="hA T-I-J3" role="menu" src="https://mail.google.com/mail/u/0/images/cleardot.gif" style="background: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/more_vert_black_20dp.png") 50% 50% / 20px no-repeat; display: inline-block; height: 20px; margin: 0px; opacity: 0.7; padding: 0px; transition: opacity 0.15s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); vertical-align: middle; width: 20px;" /></div>
</td></tr>
<tr class="acZ xD" style="display: flex; height: auto;"><td colspan="3" style="margin: 0px;"><table cellpadding="0" class="cf adz" style="border-collapse: collapse; table-layout: fixed; white-space: nowrap; width: 944px;"><tbody>
<tr><td class="ady" style="align-items: center; display: flex; line-height: 20px; margin: 0px; overflow: visible; text-overflow: ellipsis;"><div class="iw ajw" style="display: inline-block; max-width: 92%; overflow: hidden;">
<span class="hb" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: #5f6368; font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; vertical-align: top;">to <span class="g2" data-hovercard-id="ankurmehta42557@gmail.com" data-hovercard-owner-id="159" dir="ltr" email="ankurmehta42557@gmail.com" name="ankurmehta42557" style="vertical-align: top;">ankurmehta42557</span></span></div>
<div aria-haspopup="true" aria-label="Show details" class="ajy" data-tooltip="Show details" id=":1r5" role="button" style="align-items: center; border: none; display: inline-flex; justify-content: center; margin-left: 4px; outline: none; position: relative; vertical-align: top; z-index: 0;" tabindex="0">
<img alt="" class="ajz" src="https://mail.google.com/mail/u/0/images/cleardot.gif" style="background: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/arrow_drop_down_black_20dp.png") 50% 50% / 20px no-repeat; border: none; cursor: pointer; display: flex; height: 20px; margin: 0px 0px 0px auto; opacity: 0.54; padding: 0px; position: relative; right: 0px; top: 0px; vertical-align: baseline; width: 20px;" /></div>
</td></tr>
</tbody></table>
</td></tr>
</tbody></table>
</div>
<div id=":1q7">
<div class="qQVYZb">
</div>
<div class="utdU2e">
</div>
<div class="btm">
</div>
</div>
<div class="">
<div class="aHl" style="margin-left: -38px;">
</div>
<div id=":1r4" tabindex="-1">
</div>
<div class="ii gt" id=":1q9" style="direction: ltr; font-size: 0.875rem; margin: 8px 0px 0px; padding: 0px; position: relative;">
<div class="a3s aXjCH " id=":1q8" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; font-stretch: normal; line-height: 1.5; overflow: hidden;">
<div dir="ltr">
प्रिय श्री अंकुर मेहता , <div>
<br /></div>
<div>
अत्यंत खेद के साथ मुझे लिखना पड़ रहा है की , आपका व्यवहार मेरी पुत्री प्रभुता शर्मा , ( अब आपकी पत्नी - प्रभुता मेहता ) के साथ निरंतर , विवाह के बाद से ही , अमानवीय , और हिंसात्मक रहा है ! </div>
<div>
जैसा की उसने बताया की विवाह के बाद से ही आप ने उसे समुचित दहेज़ ना लाने , विवाह में व्यवस्था में दोष दर्शाने , के बहाने उलाहने देने शुरू किये , और उसे एक पत्नी की बजाय , एक नौकरानी के रूप में कार्य करने के लिए उत्पीड़ित किया तथा उसे अपने माता पिता - भाई बहिन के साथ साथ सभी मातृ पक्ष से सम्बन्ध तोड़ देने और मोबाइल पर बात ना करने के लिए आदेशित किया !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
जबकि आपके साथ , प्रभुता का विवाह , आपके द्वारा सतना आकर , उससे व्यक्तिगत रूप से मिल लेने , तथा उसकी सम्पूर्ण , शैक्षिक डिग्रियां समझ लेने , तथा , एक घंटे के निरंतर संतोषप्रद बातचीत एवं आपसी समझ के स्थापित होने के बाद ही , अंतिम रूप से सतना निवासी , आपके रिश्तेदार श्री अजय दानायक के भरहुत नगर निवास पर , मातृ पक्ष को बुला कर , आपके माता पिता की सहमति , के साथ ही तय हुआ ! इस बैठक में ही , विवाह की समस्त रीत रिवाज , तथा व्यवस्था के सभी कार्य , आपके माता पिता के वांछित रीत रिवाज़ को पूर्ण करने के लिए हमें , यानी सभाजीत शर्मा एवं श्रीमती कनक शर्मा को लिखित रूप से निर्देशित किया गया ! उल्लेखनीय है की हमारा परिवार पढ़ा लिखा है , और हम किसी डाबरी के लेन देन को स्वीकार नहीं करते हैं , और ना यह हमारे संस्कारों , और हमारे समाज में मान्य है , इसलिए विवाह तय होते समय , आपके रिश्तेदार श्री अजय दानायक एवं आपके माता पिता श्री अजय कृष्ण मेहता , श्रीमती सरिता मेहता , के सामने ही यह स्पष्ट कर दिया गया था की हम कोई डाबरी का लेन देन नहीं करते हैं ! आपके माता पिता श्री , अजयकृष्ण मेहता तथा श्रीमती सरिता मेहता तथा स्वयं आपने तभी यह भी बताया था की आप एन थाइव ग्लोबल सोलुशन प्राइवेट लिमिटेड नोयडा में सीनियर एनालिस्ट के पद पर कार्य करते हैं , और विवाह बाद आप वहां पत्नी के साथ रहने की समुचित आवास व्यवस्था कर रहे हैं , जो दामपत्य जीवन के लिए वन बी एच के , के फ्लेट के रूप में , पर्याप्त होगी !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
आपके माता पिता के द्वारा , श्री अजय दानायक को , विवाह हेतु सभी व्यवस्थाओं को आपकी और से देखने समझने , और एप्रूव करने के लिए प्रतिनिधि के रूप में नामित किया , जिनके साथ मिल कर उनकी संतुष्टि के अनुरूप , यथा संभव सभी उच्च स्तर की वैवाहिक व्यवस्थाएं मेने की ! इन्ही व्यवस्थाओं के अंतर्गत , सामान्य तौर से अलग , आप एक दिन पूर्व ही अपनी बरात ले कर ११ फरवरी को , काशी एक्सप्रेस के स्लीपर कोच से , नैनी से , ट्रेन से सतना आये , और हमने आपको जनवासे में उपलब्ध सभी उचित सुविधाएं दी ! वर पक्ष में उपस्थित करीब ५० बारातियों के समक्ष , एवं वधु पक्ष के भी क़रीब ५० घरातियों के समक्ष , तथा सतना नगर के कई गणमान्य लोगों की उपस्थिति में , यह विवाह आकर्षक और पूर्ण सुविधाओं के साथ , संतोषजनक रूप से संपन्न हुआ , जिसके साक्ष्य आज भी सतना के नागरिक भी हैं ! किन्तु विवाह के दौरान भी मैंने तथा कई अन्य उपस्थित लोगों ने यह परिलक्षित किया की आप का व्यवहार सामान्य नहीं है और आप विवाह में रूचि नहीं ले रहे हैं !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
विवाह के बाद , विवाह के वैधानिक मैरिज सार्टिफिकेट को सतना आकर , नगर निगम में , औपचारिकताएं पूर्ण कर उसे प्राप्त करने में भी आपने कोई रूचि नहीं दिखाई , और ना आपने इस हेतु कोई स मुचित कदम उठाया और ना ही सतना आये ! मेरी बेटी को आपके माता पिता दूसरी विदा करवाकर १३ अप्रैल को नैनी ले गए , जहाँ करीब एक माह तक वह आपके माता पिता के साथपूर्ण संतोषजनक रूप से , रही ! इस बीच आपने फोन पर भी मेरी बेटी से कहा की आपको विवाह में रूचि नहीं थी , और और आप मेरी बेटी को नैनी आकर नहीं ले जायेंगें ! इस स्थिति में मेरी बेटी को आपकी माताजी , श्रीमती सरिता मेहता , खुद साथ ले कर , दिल्ली गयीं , जहां आप का निवास , नोयडा के छलेरा गावं में , श्री अमित चौहान के चाल नुमा मकान के कमरा नंबर १९ में था ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
मेरी बेटी ने उस अपर्याप्त जगह में , भीषण गर्मी के बीच , अपर्याप्त व्यवस्था के बीच ही खुद को एडजस्ट किया , तथा उसने अपने एक कमरे के इस मकान को ही गृहस्थी के अनुरूप सजाने की कोशिश की , किन्तु आप ने इस पर भीषण , आपत्ति प्रकट की , तथा अपने मोबाइल , और लेप टॉप को कभी भी छूने के लिए मना किया और कहा की वे आपके नित्तांत व्यक्तिगत चीजें है जो किसी भी हालत में प्रभुता से शेयर नहीं कर सकते ! ! आपने कहा की उसको आपकी वस्तुएं छूने का अधिकार नहीं और वह खुद को एक नौकरानी के रूप में ही समझे ,,,ना की पत्नी के रूप में ! इस कमरे में ना तो गृहस्थी का सामान था और ना अन्य जरूरी उपयोग का सामान अतः जानकारी मिलने पर मैं दिल्ली गया ,,और आपकी पसंद के अनुरूप अत्यंत जरूरी सामान मैंने आपकी मांग के हिसाब से अट्टा बाजार सेक्टर १६ से खरीद कर आपके कमरे में पहुंचाए , जिसमें एक फ्रिज , एक वाशिंग मशीन , एक कूलर और सोने बैठने के लिए एक दीवान सह पलंग था !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
इस सामान की प्राप्ति पर भी आप संतुष्ट नहीं हुए , और आपने मेरी बेटी को गाली दीं तथा कहा की सामान कचरा है ! आपने उसके मां पिता को भी अपशब्द कहे , और मातृ पक्ष से मिले </div>
<div>
अन्य सामानो को भी कचरा कह कर असंतुष्टि जताई ! आप ने उसे कहा की आप उसे दिल्ली नहीं रखना चाहते और वापिस सतना या इलाहाबाद भेज देना चाहते हैं ! इससे पूर्व भी आप उसे इस तरह प्रतिदिन कोई ना कोई उलाहना देकर , उसे मानसिक प्रताड़ना देते रहे और दिल्ली छोड़ कर वापिस सतना जाने के लिए बाध्य करते रहे ! आपने कभी दिल्ली में कहीं उसे समय देने , उससे आपसी बात करने , आपस में एकदूसरे को समझने का कोई समय नहीं दिया और ना ही ऐसा कोई अवसर , जिसमें अवकाश के दिन भी दोनों कहीं अकेले में , सार्वजनिक स्थानों पर जा कर बात कर सकें ! इसके विपरीत , दिल्ली जाने के बाद , तुरंत ही आप ने उस पर दबाव बनाया की वह खुद नौकरी करना शुरू करे , और अपने लिए खुद आजीविका का इंतजाम करे क्यूंकि आप उसका खर्चा वहां नहीं उठा पाएंगे ! ! जबकि मात्र एक माह में उसे आपने ना तो घर से बाहर कहीं खुद जाने दिया , और ना ही दिल्ली के आवागमन के सिस्टम से अवगत कराया ! निरंतर बार बार मानसिक प्रताड़नाओं से , वह दिल्ली में अस्वस्थ भी हुई !</div>
<div>
उसने बताया की , इसी दौरान आपने क्रुद्ध हो कर , एक दिन उसका गला दबाया , और मारपीट भी की ! इन स्थितियों में अपनी सुरक्षा और बचाव के लिए उसने आपकी उसके साथ हुई वार्तालाप की रिकार्डिंग की जिसमें आपने उसके साथ अभद्र बात चीत की है , गाली गलौज किया है , और उसके माता पिता को भी अपशब्द कहे हैं !, आपने उसे भयभीत भी किया की अगर वह , अपने साथ हुई मारपीट अथवा हिंसा की बातें किसी को बताएगी , या पुलिस में रिपोर्ट करेगी तो आप उसके परिवार के साथ उसको नष्ट कर देंगे क्यूंकि आपकी पहुँच हर जगह है ! ! भय की स्थिति में उसने अपनी निकटस्थ , बालयकाल की सहेली से बता कर पूछा की वह ऐसी दुरूह स्थितियों में क्या करे ! उसने समय समय पर आपके पिता को फोन करके , आपको समझाने तथा इस हिंसात्मक और मानसिक प्रताड़ना के व्यवहार को रोकने के लिए निवेदन किया तथा वहां उपस्थित माँ को वस्तु स्थिति बतायी ,लेकिन वे चुप रह कर अपनी मौन स्वीकृति ही जताते रहे ! मानसिक प्रताड़ना से त्रस्त हो कर उसने अपने परिवारवालों से भी बात की और अपनी सुरक्षा हेतु , राय लेने , अपने साथ हुए वार्तालाप को शेयर किया ! इस पर आपने उसका मोबाइल भी छीन लिया और उसे दिनांक ९-७-२०१८ को मारपीट कर , घर से , भूखा ही बाहर निकाल दिया ! </div>
<div>
इन परिस्थितियों में , उसनेएक अन्य मोबाइल पर , अपने चाचा , कलश सत्यार्थी , जो की दिल्ली में ही रहते हैं , अपनी बुआ श्रीमती कुमकुम , तथा मुझे भी सूचित किया और स्थिति की जानकारी होने पर मैंने श्री कलश को कहा की वे छलेरा जा कर , आप की माँ से बात करके , उसे अपने घर ले आएं और तब वे उसे अपने घर ले गए ! ! जहाँ से वह बाद में अपने भाई के साथ सतना चली आयी ! यहां आने पर मैंने पाया की वह बहुत ' सकते ' में हैं , और ' भयभीत ' है !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
सतना आने के बाद , मैंने आपके माता पिता से नैनी फोन पर संपर्क साध कर , उनसे प्रार्थना की , कि वे आपको नैनी बुलाएं , और वहां सामाजिक रूप से आप और प्रभुता बैठ कर अपनी समस्याओं की चर्चा सबके सामने करके कोई हल निकालें , जिससे एक घर ना टूटे , दाम्पत्य जीवन सुचारु रूप से चल सके ! मैं इस हेतु स्वयं , दिनांक १६-७-२०१८ को , नैनी जाकर आपकी माताजी का स्वास्थ और हालचाल ले कर निवेदन किया की इस बात को शीघ्र निबटाएँ ! बाद में फोन पर फिर उनसे अनुरोध किया , और सतना निवासी श्री अजय दानायक को भी स्थिति की जानकारी दे कर , सामाजिक बैठक कर किसी हल पर पहुँचने का निवेदन किया ,,किन्तु आपके द्वारा इस बैठक में आने की असमर्थता दिखाई गयी ! यही नहीं , , पुणे स्थित मेरी बड़ी बेटी प्रशश्ति ने भी आपसे निवेदन कर पूछा की भविष्य में किस तरह का रवैय्या आप रखना चाहते हो और इस विवाद का हल निकालने कब वहां आ रहे हो , किन्तु आपने उस पर भी कोई संतुष्टिजनक उत्तर नहीं दिया ! </div>
<div>
<br /></div>
<div>
लड़की का पिता होने के नाते , तथा , आपके लिए पितातुल्य होने के नाते , मैं आपसे निवेदन करता हूँ की आप अपने व्यवहार को ठीक करें , अपनी पत्नी को कोई मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना ना दें , और वर्षों पूर्व समाप्त हो गयी प्रथाओं के अंतर्गत , बेटी को ' डाबरी 'एवं दहेज़ के लिए प्रताड़ित ना करें , उसे पूरी सुरक्षा प्रदान करें , और उसे अपनी पत्नीवत साथ में दिल्ली रखें , उसे नौकरानी की तरह व्यवहार ना करें , !</div>
<div>
वर्तमान स्थिति में हुई घटनाओं , और वारदातों को देखते हुए , यह जरूरी है की आप सामाजिक रूप से आपसी निदान की बैठक में अतिशीघ्र आएं , जो अब सतना में ही उन लोगों की मध्यस्थता में आयोजित होगी , जो विवाह के साक्ष्य हैं ! </div>
<div>
मुझे विश्वाश है , की आधुनिक सभ्य हुए समाज में , हिंसा की कोई गुंजाइश अब आप नहीं देंगे , और लिखित आश्वश्त करेंगे की आप के संरक्षण में एक नारी सुरक्षित है , यही आज की न्याय व्यवस्था और कानून की भी मंशा है , !</div>
<div>
<br /></div>
<div>
शुभकामनाओं , शुभाशीष के साथ , </div>
<div>
<br /></div>
<div>
सभाजीत शर्मा </div>
</div>
<div class="yj6qo">
</div>
<div class="adL">
</div>
</div>
</div>
<div class="hi" style="background: rgb(242, 242, 242); border-bottom-left-radius: 1px; border-bottom-right-radius: 1px; margin: 0px; padding: 0px; width: auto;">
</div>
</div>
</div>
<div class="ajx" style="clear: both;">
</div>
</div>
<div class="gA gt acV" style="background: transparent; border-bottom-left-radius: 0px; border-bottom-right-radius: 0px; border-top-style: none; font-size: 0.875rem; margin: 0px; padding: 0px; width: auto;">
<div class="gB xu" style="border-top-width: 0px; padding: 0px;">
<div class="ip iq" style="border-top-style: none; clear: both; margin: 0px; padding: 16px 0px;">
<div id=":1qx">
<table class="cf wS" role="presentation" style="border-collapse: collapse;"><tbody>
<tr><td class="amq" style="margin: 0px; padding: 0px 16px; vertical-align: top; visibility: hidden; width: 44px;"><img class="ajn bofPge" data-hovercard-id="sharma.sabhajeet@gmail.com" id=":n8_4" jid="sharma.sabhajeet@gmail.com" name=":n8" src="https://ssl.gstatic.com/ui/v1/icons/mail/no_photo.png" style="border-radius: 50%; display: block; height: 40px; width: 40px;" /></td><td class="amr" style="margin: 0px; padding: 0px; width: 944px;"><div class="nr wR" style="border-radius: 1px; border: none !important; box-sizing: border-box; color: #222222; margin: 0px !important; padding: 0px; transition: none;">
<div class="amn" style="align-items: center; color: inherit; display: flex; height: auto; line-height: 20px; padding: 0px;">
<span class="ams bkH" id=":1rm" jslog="21576; u014N:cOuCgd,Kr2w4b;" role="link" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; -webkit-user-drag: none; -webkit-user-select: none; align-items: center; background: none; border-radius: 4px; border: none; box-shadow: rgb(218, 220, 224) 0px 0px 0px 1px inset; box-sizing: border-box; color: #5f6368; cursor: pointer; display: inline-flex; font-family: 'Google Sans', Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 0.875rem; height: 36px; justify-content: center; letter-spacing: 0.25px; margin-right: 12px; min-width: 104px; outline: none; padding: 0px 16px 0px 12px; position: relative; z-index: 0;" tabindex="0">Reply</span><span class="ams bkG" id=":1rt" jslog="21578; u014N:cOuCgd,Kr2w4b;" role="link" style="-webkit-font-smoothing: antialiased; -webkit-user-drag: none; -webkit-user-select: none; align-items: center; background: none; border-radius: 4px; border: none; box-shadow: rgb(218, 220, 224) 0px 0px 0px 1px inset; box-sizing: border-box; color: #5f6368; cursor: pointer; display: inline-flex; font-family: 'Google Sans', Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 0.875rem; height: 36px; justify-content: center; letter-spacing: 0.25px; margin-right: 12px; min-width: 104px; outline: none; padding: 0px 16px 0px 12px; position: relative; z-index: 0;" tabindex="0">Forward</span></div>
</div>
</td></tr>
</tbody></table>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="nH">
</div>
<div class="nH">
</div>
</div>
</div>
<div class="nH">
<div class="l2 pfiaof" role="contentinfo" style="margin: 0px 0px 16px; padding: 0px 16px 0px 72px; text-align: center; text-shadow: rgba(0, 0, 0, 0.8) 0px 0px 3px; visibility: hidden;">
<div id=":1re">
</div>
<div class="aeV" id=":1qb" style="float: left; text-align: left; width: 309.016px;">
<div class="md mj" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: rgba(255, 255, 255, 0.701961); font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; padding-top: 0px; text-shadow: none;">
<div>
<span dir="ltr"></span><span dir="ltr"></span></div>
<div class="aeW">
<a aria-label="Manage Storage" class="l8" href="https://drive.google.com/u/0/settings/storage?hl=en" style="color: #222222; cursor: pointer; text-decoration: none; text-shadow: none;" target="_blank"></a></div>
</div>
</div>
<div class="aeU" style="float: left; width: 309.016px;">
<div id=":1qj">
<div class="ma" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: rgba(255, 255, 255, 0.701961); font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; padding-top: 0px; text-shadow: none;">
<a class="l9" href="https://www.google.com/intl/en/policies/terms/" style="color: #222222; text-decoration: none; text-shadow: none;" target="_blank"></a><a class="l9" href="https://www.google.com/intl/en/policies/privacy/" style="color: #222222; text-decoration: none; text-shadow: none;" target="_blank"></a><a class="l9" href="https://www.google.com/gmail/about/policy/" style="color: #222222; text-decoration: none; text-shadow: none;" target="_blank"></a></div>
</div>
</div>
<div class="ae3" id=":1qq" style="float: left; text-align: right; width: 309.016px;">
<div class="l6" style="-webkit-font-smoothing: auto; color: rgba(255, 255, 255, 0.701961); font-size: 0.75rem; letter-spacing: 0.3px; line-height: 20px; padding-top: 0px; text-shadow: none;">
<div>
</div>
<span class="l8 LJOhwe" id=":1qf" role="link" style="color: #222222; cursor: pointer; text-shadow: none;" tabindex="0"></span></div>
</div>
<div style="clear: both;">
</div>
</div>
</div>
</div>
</td><td class="Bu yM" style="background: rgb(255, 255, 255); margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: top; width: 0px;"><div class="Bt" style="height: 0px; overflow: hidden; width: 0px;">
</div>
<div class="nH" style="width: 0px;">
<div class="no" style="float: left;">
<div class="nH nn" style="float: left; min-height: 1px; width: 0px;">
<div style="height: 64ex;">
</div>
</div>
</div>
<div class="dJ" style="clear: both; height: 0px; overflow: hidden;">
</div>
</div>
</td><td class="Bu y3" style="background: rgb(255, 255, 255); height: 100px; margin: 0px; padding: 0px; vertical-align: top; width: 0px;"><div class="Bt" style="height: 0px; overflow: hidden; width: 559px;">
</div>
<div class="nH bno adC" role="complementary" style="margin: 0px 8px 8px 0px; position: absolute; right: 32px; top: 0px; width: 0px;">
<div class="nH">
</div>
</div>
<div class="y4" style="bottom: 0px; height: 1640px; left: 0px; opacity: 0; position: relative; top: 0px; visibility: hidden; width: 0px; z-index: 2;">
</div>
</td></tr>
</tbody></table>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="nH bAw nn" style="float: left; height: 534px; min-height: 1px; min-width: 56px; transition-duration: 0.15s; transition-property: min-width, width; transition-timing-function: cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 56px; z-index: 2;">
<div aria-label="Side panel" class="brC-aT5-aOt-Jw brC-aMv-auO" role="complementary" style="border-color: rgba(255, 255, 255, 0.117647); border-left-style: solid; border-left-width: 1px; box-sizing: border-box; display: flex; flex-direction: column; height: 534px; position: relative; width: 56px;">
<div class="brC-aT5-aOt-bsf-Jw" style="display: flex; flex-direction: column; flex: 1 0 auto; margin-bottom: 56px;">
<div class="brC-bsf-aT5-aOt" role="tablist" style="-webkit-box-flex: 1; -webkit-user-select: none; flex-grow: 1; height: 100px; outline: none;" tabindex="0">
<div aria-disabled="false" aria-label="Calendar" aria-selected="false" class="bse-bvF-I aT5-aOt-I bse-bvF-aLp" data-guest-app-id="6" id="gsc-gab-6" role="tab" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; height: 56px; outline: none; pointer-events: none; position: relative; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 56px;">
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-Kv" style="-webkit-user-select: none; border-color: rgba(255, 255, 255, 0.239216); border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-J6" style="-webkit-user-select: none; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-Jw" style="-webkit-user-select: none; align-items: center; background-image: url("https://www.gstatic.com/companion/icon_assets/calendar_2x.png"); background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px 20px; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; pointer-events: auto; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
</div>
<div aria-disabled="false" aria-label="Keep" aria-selected="false" class="bse-bvF-I aT5-aOt-I bse-bvF-a9p" data-guest-app-id="2" id="gsc-gab-2" role="tab" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; height: 56px; outline: none; pointer-events: none; position: relative; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 56px;">
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-Kv" style="-webkit-user-select: none; border-color: rgba(255, 255, 255, 0.239216); border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-J6" style="-webkit-user-select: none; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-Jw" style="-webkit-user-select: none; align-items: center; background-image: url("https://www.gstatic.com/companion/icon_assets/keep_2x.png"); background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px 20px; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; pointer-events: auto; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
</div>
<div aria-disabled="false" aria-label="Tasks" aria-selected="false" class="bse-bvF-I aT5-aOt-I bse-bvF-aLp" data-guest-app-id="4" id="gsc-gab-4" role="tab" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; height: 56px; outline: none; pointer-events: none; position: relative; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 56px;">
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-Kv" style="-webkit-user-select: none; border-color: rgba(255, 255, 255, 0.239216); border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-J6" style="-webkit-user-select: none; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-Jw" style="-webkit-user-select: none; align-items: center; background-image: url("https://www.gstatic.com/companion/icon_assets/tasks2_2x.png"); background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px 20px; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; pointer-events: auto; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
</div>
<div aria-disabled="true" aria-hidden="false" class="brC-aT5-aOt-axR" id=":na" role="separator" style="-webkit-user-select: none; border-color: rgba(255, 255, 255, 0.117647); border-top-style: solid; border-top-width: 1px; content: ""; flex: 1 0 auto; margin: 16px auto 0px; padding-bottom: 16px; width: 20px;">
</div>
<div aria-label="Get Add-ons" aria-selected="false" class="bse-bvF-I aT5-aOt-I" id="p2DdMb" role="tab" style="-webkit-user-select: none; cursor: pointer; height: 56px; outline: none; pointer-events: none; position: relative; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 56px;">
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-Kv" style="border-color: rgba(255, 255, 255, 0.239216); border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM aT5-aOt-I-JX-atM-J6" style="border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-Jw" style="align-items: center; background-image: url("https://www.gstatic.com/images/icons/material/system/1x/add_white_24dp.png"); background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px 20px; border-radius: 50%; display: flex; height: 40px; left: 8px; pointer-events: auto; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div aria-label="Toggle side panel" class="brC-dA-I-Jw brC-aMv-auO" role="navigation" style="bottom: 0px; display: flex; height: 56px; overflow: hidden; position: absolute; right: 0px; width: 56px; z-index: 2;">
<div aria-label="Hide side panel" aria-pressed="false" class="aT5-aOt-I brC-dA-I" role="button" style="-webkit-user-select: none; bottom: 0px; cursor: pointer; height: 56px; outline: none; pointer-events: none; position: relative; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 56px;" tabindex="0">
<div class="aT5-aOt-I-JX-atM" style="border-radius: calc(38px); display: flex; height: 40px; left: 8px; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
</div>
<div class="aT5-aOt-I-JX-Jw" style="align-items: center; background-position: 50% 50%; background-repeat: no-repeat; background-size: 20px 20px; border-radius: calc(38px); display: flex; height: 40px; left: 8px; pointer-events: auto; position: absolute; top: 8px; transition: all 0.3s cubic-bezier(0.4, 0, 0.2, 1); width: 40px;">
<svg class="aT5-aOt-I-JX" enable-background="new 0 0 24 24" fill="#5F6368" height="20px" id="Layer_1" version="1.1" viewbox="0 0 24 24" width="20px" x="0px" xml:space="preserve" y="0px"><path d="M8.59,16.59L13.17,12L8.59,7.41L10,6l6,6l-6,6L8.59,16.59z"></path><path d="M0,0h24v24H0V0z" fill="none"></path></svg></div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="dJ" style="clear: both; height: 0px; overflow: hidden;">
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div class="vY nq" style="color: #202124; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; height: 630px; left: 0px; position: absolute; top: 0px; visibility: hidden; width: 1360px; z-index: -2;">
</div>
<div style="color: #202124; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif;">
<div>
</div>
</div>
<iframe aria-hidden="true" id="oauth2relay1305594863" name="oauth2relay1305594863" src="https://accounts.google.com/o/oauth2/postmessageRelay?parent=https%3A%2F%2Fmail.google.com&jsh=m%3B%2F_%2Fscs%2Fabc-static%2F_%2Fjs%2Fk%3Dgapi.gapi.en.57vmlWwHHV4.O%2Fd%3D1%2Frs%3DAHpOoo8g4wyDqrTwJ_zGN6gLyTAGCEPLfg%2Fm%3D__features__#rpctoken=314864154&forcesecure=1" style="color: #202124; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; height: 1px; position: absolute; top: -100px; width: 1px;" tabindex="-1"></iframe></div>
</div>
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-89060180730112031992019-05-08T04:40:00.002-07:002020-03-11T00:55:13.433-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: large;">इक्कीसवीं सदी का पुल</span></b><br />
<br />
<b><span style="font-size: large;">भूमिका</span></b><br />
<br />
मैं ,,यानि सौरभ शर्मा कोई कथाकार नहीं हूँ !मेरी कोई रचना अब तक किसी भी पत्रिका में नहीं छपी है !कारण बहुत से हैं - उनमें से मुख्य यही हैं की पत्रिका में छपने के लिए कथाकार होना जरूरी है !कथाकार होने के लिए लगातार छपते रहना जरूरी है ,,और लगातार छपते रहने के लिए किसी लेखक समुदाय का सदस्य होना जरूरी है ! मैं इस सिलसिले का छोर इस उम्र तक नहीं ढूंढ पाया हूँ अतः कथाकार नहीं कहला सकता !मेरे एक दो मित्र हैं --बचपन से साथ पढ़े , खेले कूदे हैं ,,वे बहुत बड़े कथाकार हैं , और कुछ पत्रिकाओं के स्तम्भ लेखक हैं !यूँ बचपन में उनके साथ रहने से , मुझमें लिखने का दुर्गुण आ गया तो मैं अपनी दैनिक डायरी जरूर लिखने लगा ! मेरी दैनिक डायरी के कुछ पन्ने इस लायक जरूर हैं की ,,उनमें से कोई कहानी बन जाए ,,! वैसे भी आप जानते हैं ,,इस युग में फुरसत किसे है की सलीके से बैठ कर कहानी गढ़ता रहे ! हाँ ,,जिनका व्यवसाय ही यही है उनकी तो मजबूरी है ,,,,बाकी हम आप जैसे लोगों ,के लिए तो सचमुच एक मुश्किल काम है ,,खैर ,,!! ,, ,<br />
मैं अपनी भाषा में लिखे डायरी के कुछ पन्ने , जैसे के तैसे , एक साथ नत्थी करके रख रहा हूँ ,,इसमें से कहानी आप ढूंढ लीजिये ,,क्योंकि मेरा मन गवाह करता है ,,इन पन्नों में शायद युगों युगों से चलती आ एक कथा है जरूर ,,,!! ,,<br />
<br />
<br />
<br />
****<br />
,<br />
,<span style="font-size: large;"><b>," मैं ,,,,,!!</b></span><br />
दिनाँक१२ दिसंबर २०३०<br />
प्रातः,,,९:३०<br />
<br />
<br />
आज सुबह काफी देर बाद आँख खुली ! भारी पलकें बार बार मूँद लेने के बाद भी , जब दिमाग ने और अधिक सोने से इंकार कर दिया तभी आँखें खोलनी पड़ीं ! जलती हुई आँखें सबसे पहले सामने लगी डिजिटल , इलोक्टोनिक वाच पर जा कर चिपक गयीं ! लम्बी स्ट्रिप के काउंटर पर रेडियम के आंकड़े , , आठ बज कर दस मिनट के साथ एक एक छण जोड़ते जा रहे थे !!आलस में , बिना करवट लिए ही बगल में हाथ बढ़ाया तो नायलोन के चादर पर हाथ फैलता चला गया ! चादर पर खिसकता हुआ हाथ , सलवटें पैदा करते हुए , अपनी अंतिम सीमा तक फ़ैल कर रह गया किन्तु प्रतिदिन की भाँती ,उस सीमा के अंदर " प्रमिला " का अलसाया शरीर नहीं बाँध सका ! ! एक लम्बी सांस ले कर , मुड़ कर देखा -- सचमुच बिस्तर खाली था ! चादर की सिलवटें अनुभवी वृद्ध के माथे की सलवटों की तरह एक छोर से दूसरे छोर तक फ़ैल गयीं थीं ! किन्तु मैं जानता था इन सिलवटों का चादर पर कोई स्थाई प्रभाव नहीं पड़ने वाला था ,,ठीक उसी तरह जिस तरह विगत बीस वर्षों में मेरे दिल पर अब किसी भी सलवट का प्रभाव पढ़ना बंद हो गया था !<br />
<br />
बगल में पड़े दूसरे तकिये को भी हाथ बढ़ा कर , मैंने उठा कर अपने सर के नीचे लगा लिया ! प्रमिला भी चली गयी है ! मेरे लिए कहने को कुछ नहीं छोड़ गयी ! शेष रह गयी है तो रात की कडुवाहट और आँखों की जलन जो देर रात तक प्रमिला से बहस करने के कारण पैदा हुई है ! एक बार हाथ उठा कर मैंने अपनी उंगली के उस नाखून को घूरा जिसके चुभ जाने से प्रमिला ने बात बढ़ा ली थी ! वैसे बात सिर्फ नाख़ून और उसके प्रमिला के चुभ जाने तक होती तो शायद खत्म हो जाती किन्तु बात दरअसल यह भी थी की वह नाखून मैंने विशेष रूप से बढ़ा कर रखा था और जिसके लिए प्रमिला मुझे कई बार टोक चुकी थी !वह जानती थी की नाखून बढ़ाना मेरा शौक नहीं है ,, बल्कि नाखून इस लिए बढ़ाया है की मैं अपना प्यारा चहेता , पच्चीस वर्ष पुराना गिटार, आसानी से , अपने मन के अनुसार बजा सकूं ! उसे यह भी मालूम है की मैं स्पलेक्ट्रम से गिटार नहीं बजा सकता और अपने खुद के छणों में , बिना गिटार के नहीं रह सकता ! उसे मुझसे नहीं , मेरे नाखून से नहीं , , मेरे गिटार से नहीं , सिर्फ इन खुद के छणों से शिकायत थी ,,जिसमें वह सम्मलित नहीं थी ! और मैं यह ईमानदारी से मानता हूँ की मैं अपने खुद के छणों के मामले में प्रथम दर्ज़े का स्वार्थी हूँ ,,और उसमें किसी की भागीदारी नहीं चाहता ! मैंने एक लम्बी सांस लेकर पुनः छोड़ दी ,,,! वास्तव में आजकल किसी बड़े मुद्दे के लिए हमें कई छोटे छोटे बहानों के जरिये लड़ना पड़ता है !<br />
नाखून पर ठहरी नज़र जो ऊपर उठी तो पुनः घड़ी पर चली गयी ! जलती हुई आँखों की जलन और तीव्र हो गयी ! कितने ऑफर आये , नई कम्पनी वाले , दाशमिक प्रणाली की घड़ी देने के लिए कई बार घूम गए थे ,,किन्तु मैं वहीं ठहरा रहा ! आठ वर्ष पूर्व १८ अक्टूबर २०२२ की डायरी के पेज भी मैंने कुछ इसी प्रकार लिखे हैं ! उस दिन भी मेरी आँखें इसी तरह जलती रहीं थीं ,,!! कारण ,,? ,, सिर्फ इसी दाशमिक प्रणाली की घड़ी के मुद्दे पर ' किटी ' से मेरी बहस हुई थी ! किटी ने आवेश में आकर , हर बार मुझे दकियानूस कहा था ! वह चाहती थी ,,बदलते समय के साथ हम लगातार बदलते हुए नए उपकरण खरीदते जाएँ और इसी लिए बेटे " प्रमेश " के दुसरे जन्मदिवस पर वह चुपचाप एक नई दाशमिक प्रणाली की घड़ी खरीद कर ले आयी थी !उत्साह में भर कर उसने वह घड़ी , इस घड़ी के स्थान पर लगा दी थी जिसे मैं सहन नहीं कर सका था ! मुझे उसकी पसंद से कोई शिकायत न थी , किन्तु जैसा की मैंने कहा -- मुझे मेरे अपने छणों में किसी की भागीदारी पसंद नहीं ,,यह घड़ी भी मेरे अपने छणों की यादगार है -- मेरी पहली पत्नी ,," शांता " के हाथों खरीदी गयी घड़ी , जिसका हटाया जाना मैं किसी भी कीमत पर सहन नहीं कर सकता था ! सिर्फ इसी मुद्दे पर किटी ने , बात बढ़ा कर , दो वर्ष के प्रमेश का भी ख्याल नहीं किया और तलाक ले लिया ! उस रात भी जलन कुछ इसी हद तक आँखों में समायी रही थी , आज भी वैसी ही है ! सचमुच मेरा स्वार्थी होना उचित नहीं ,,किन्तु चाह कर भी यह कमी मैं दूर नहीं पाता ! ,,कोशिश जरूर करता हूँ ,, !<br />
घड़ी ने 'इ मेजर ' कार्ड्स के व्हेम्पस दे कर ९ बजने की सूचना दी तब जाकर लगा की सचमुच काफी दिन निकल आया है ! बाहर धूप निकल आने से कमरे के कंडीशनर थोड़े गर्मी बढ़ाने लगे तो मैंने हाथ बढ़ा कर स्विच आफ कर दिया ! वैसे आजकल दिसंबर की कड़ाकेदार सर्दी पड़ रही है ,,किन्तु मेरे बेड रूम के अत्याधुनिक हीटर ऑटोमेटिक कंट्रोल पर चलते हैं अतः सर्दी का एहसास होता ही नहीं ! कभी कभी जब सर्दी महसूस करने का मूड होता है तो देर रात तक ओवर ब्रिज पर टहलने चला जाता हूँ !<br />
काफी पीने की आदतन मजबूरी से वशीभूत हो कर चुपचाप कुकर का बटन चालू कर दिया ! कुछ मिनट लगते हैं ,,यह काफी मशीन का कुकर , ,,काफी बना कर सर्व कर देता है ! वैसे अब और भी कम समय में काफी बना कर देने वाले कुकर बन गए हैं ,,और उसके ऑफर भी मुझे कई कम्पनी वाले पहुंचा चुके हैं ,, किन्तु न जाने क्यों , बदलाव से मुझे अब नफरत होने लगी है ! वैसे आज से पेंतीस वर्ष पूर्व ,, शांता से शादी मैंने इसलिए की थी ,,क्योंकि हम दोनों बदलाव को ही प्रगति का रूप मानते थे किन्तु अब ,,?? ?<br />
कल ही मुझे अपनी बहुत पुरानी डायरी के दो पन्ने मिले हैं , जिसमें ' शांता ' का जिक्र है ! मैंने वे पन्ने सहेज कर रख लिए हैं ! ये दोनों पन्ने मेरे जीवन के ऐतिहासिक पन्ने हैं !<br />
आँखों की जलन बहुत बढ़ गयी है अतः अब आगे कलम नहीं चलती ! शब्द भी याद नहीं आ रहे हैं ,,अतः आज की डायरी यहीं तक लिख कर बंद कर रहा हूँ ,, काफी पीने के बाद मन हुआ तो फिर आगे लिखूंगा ,,वरना रात में सही !<br />
हाँ डायरी के वे दो पुराने पन्ने जरूर यहां लगा देता हूँ ताकि फिर खो न जाएँ !<br />
<br />
<b><span style="font-size: large;">" शान्ता " ,,,,,!!</span></b><br />
<br />
<i>दिनांक २ फरवरी ,,१९९३ </i><br />
<br />
आज मैंने और " शांता " ने कोर्ट मैरिज की है ! अब इसकी जरूरत आ ही गयी थी ! वैसे शांता सकुचा रही थी ,,,बार बार उसने मुझसे कहा --" सौरभ ,,! क्या यह उचित है ,,? "<br />
" क्या। .?? " - मैंने भोंह सिकोड़ कर पूछा था !<br />
" यही ,,कोर्ट मैरिज ,,? ,,लोग क्या कहेंगें। .?? तुम्हारे घर वाले क्या कहेंगें ,,?? "<br />
" क्या कहेंगें ,,?? --मैंने कुछ रुखाई से पूछा !<br />
वह सहम गयी थी ! बड़ी बड़ी उदास आँखें उठा कर उसने अनमने भाव में कहा था --<br />
" मुझे अच्छा नहीं लग रहा है ,,यह ढंग सही नहीं है ,,"!<br />
" तब कौन सा ढंग सही है ,,? क्या तुम चाहती हो की मैं घर वालों के सामने हथियार दाल दूँ ,,? उन लोगों के लिए , उनके ढंग से विवाह कर लूँ ,, जिन्हें ज़िंदगी भर सिर्फ रिश्ते निबाहने हैं ,,? "<br />
शांता चुपचाप खड़ी रही ! मैं उसके मुख पर गिरते पड़ते विचारों को देखता रहा था ,,फिर उसके सर पर हाथ रख कर बोला -<br />
" यह सिर्फ मेरा -तुम्हारा ,,मेरे घर वालों - तुम्हारे घर वालों का ही सवाल नहीं है ,शांता !!,, एक पुरानी रीति रिवाज को तोड़ने के लिए बढ़ाया गया कदम है ,,इसमें मैं तुम्हें पीछे नहीं हटने दूंगा ,,!! "<br />
शांता ने चुपचाप मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया था ! उँगलियों पर बढ़ते कसाव ने मुझे आश्वस्त कर दिया था की वह जीवन भर मेरे वैचारिक सिद्धांतों की भागीदार है ! और फिर हम लोग कोर्ट में जा कर विधिवत पति - पत्नी बन गए !<br />
मैं जानता हूँ मेरे विवाह की खबर , आज ही मेरे घर पहुँच गयी है ! घर के दरवाजे मेरे लिए बंद हो चुके हैं क्योंकि मेरे सिद्धांत के अनुसार वह घर मेरा नहीं है ,,उसके दरवाजे मेरे पिता ने अपनी मर्जी के हिसाब से चुने गए , कब्जों में फिट करवाए हैं जो उनकी मर्जी से बंद होते हैं ,,उनकी मर्जी से खुलते हैं ! और वे दरवाजे , तीन दिन पहले उन्होंने उसी दिन बंद कर दिए थे जब मैंने उस दरवाजे से गुजरने के लिए नाही कर दी थी !<br />
तीन दिन पहले ही स्थिति निर्णायक हो गयी थी ! शांत कमरे में माँ ,,चुपचाप धकडते दिल के साथ पर्दे के पीछे , कमरे में पडी चारपाई पर बैठी रह गयी थी ,,छोटी मीनू पढ़ने का बहाना करके टेबिल पर सर झुका बैठ गयी थी और राजू आँखें मींच कर सोने का बहाना कर रहा था ! पिता गंभीर स्वर में बोल रहे थे --<br />
" अनुभव बड़ी चीज है सौरभ ,,!! मैं अपने अनुभवों के आधार पर तुम्हारा भविष्य संवारना चाहता हूँ ! मैंने जहां बात तय की है वह लड़की उस घर से है ,,जिनके संस्कार मैं ही नहीं , इस घर की कई पीढ़ियां ,, कई पीढ़ियों से देखती चली आ रही हैं ! "<br />
मैंने भी कमर कस ली थी ! प्रतिवाद में कडुवाहट से बोला था --<br />
" परम्परागत पीढ़ियां ,,और संस्कार आप अपने आप तक ही सीमित रखिये डैडी !!ज़माना तेजी से बदल रहा है ,,मेरे सामने उम्र पड़ी है बदलते जमाने के साथ चलना पड़ेगा ,,! आपने जो चीजें नहीं देखीं उन पर अपनी उम्र की मोहर लगा कर , मेरे पल्ले मत बांधिए ! "<br />
पिता ने सीधी नजरों से मुझे घूरा था ! उनकी गहरी आँखें ,,झुर्रीदार कटोरों के बीच से झाँक कर, मुझे बींधती चली गयीं थी ! वे बुदबुदा कर बोले थे -<br />
" जमाना जरूर बदला है बेटे ,,!,,, मेरे जमाने में लोग चाह सकते थे ,,बोल नहीं सकते थे ,,तुम्हारे जमाने में बोल सकते हैं ,,कर नहीं सकते ,, किन्तु तुम शायद ज्यादा एडवांस हो ,, तुम करना भी चाहते हो ,,!"<br />
मैंने नजरें चुरा लीं ! अपना निर्णायक उत्तर देते हुए मैंने कहा था --<br />
" मैं जो बोलता हूँ ,,उसे करने में भी विश्वास रखता हूँ डैडी ,,!! आज कल के आम दब्बू लड़कों की तरह नहीं रह सकता ! "<br />
पिता कुछ नहीं बोले ! चुपचाप सर झुका कर अंदर चले गए थे ! एक हारी हुई बाजी छोड़ कर ,,और मैं विजेता की तरह , गर्व से सर उठा कर , खुले दरवाजे से बाहर चला आया था ! मैं जानता था ,,,मेरे पिता हारना भी स्वाभिमानी ढंग से जानते हैं इसलिए वे अब मुझे कोई अगली बाजी खेलने का अवसर नहीं देंगें !<br />
<br />
विवाह के बाद ,,कालोनी में लिया गया छोटा सा फ्लेट , मेरे मित्रों ने अपने ढंग से सजाया ! हम लोग देर रात तक गिफ्ट स्वीकारते रहे,,मेरे नज़दीकी मित्र शांता को चुटकुले सूना कर हंसाने की चेष्टा करते रहे ,,किन्तु पता नहीं ,,बेलबाट , मैक्सी, पहनने वाली शांता , आधुनिक विचारों वाली शांता , खुलकर खिलखिलाने वाली शांता , देर रात तक सैद्धांतिक बहस करने वाली शांता ,,आज चुपचाप एक गुड़िया की तरह गुमसुम हो कर सिर्फ मुस्कराती रही ! रात उसने एक ही फरमाइश की --गिटार बजाने की !,,और मेरा मूड था नहीं !,,क्योंकि गिटार में सिर्फ उन छणों में बजाता हूँ जब मैं बोझिल होता हूँ ,,और जब मैं बोझिल होता हूँ तब वे छण मेरे अपने होते हैं ,,,,जिनमें किसी की भागीदारी नहीं ! " वह बार बार ज़िद करती रही ,,और मैं बार बार टालता रहा ! ,,<br />
रात हमें लगा ,,,हमने एक रस्म पूरी की है ,,पति- पत्नी होने की ,,वरना हम जो थे वो पहले भी थे और जो हैं ,,अब भी हैं ,,!!<br />
<br />
<span style="font-size: large;"><b>" अलविदा ,,,,," !</b></span><br />
<span style="font-size: large;"><b><br /></b></span>
दिनांक २८ अक्टूबर २०१३<br />
<br />
बड़ी मुश्किल से , मैं इस कमरे में घुस कर बैठ सका हूँ ! मेरे बेड के पायताने पर लगी , शांता द्वारा खरीदी गयी , इलेक्ट्रानिक घड़ी ,,उसी निर्विकार रूप से बढ़ती जा रही है ,,जैसे कुछ हुआ ही न हो ! डायरी के इस पन्ने को , जिसे मैं स्याही से रंग रहा हूँ ,,बार बार फाड़ देने को जी चाहता है किन्तु मेरा मन कुछ दृढ हो गया है ,,अतः यह रात भी कागज़ पर उतार देने को जी चाहता है ! कभी कभी स्याह अक्षर फ़ैल कर बड़े होने लगते हैं , तो आँख में आई आंसू की बूँद , मैं करीने से पोंछ कर एक और कर लेता हूँ ,,,शायद आज के बाद ,,इस बूंदों की जरुरत न पड़े !<br />
आज शांता सदा के लिए मेरे जीवन से चली गयी ! वह इस दुनिया में ही नहीं रही ! वैसे विगत ६ वर्षों से वह , प्रतिदिन ,,हरेक दिन के साथ ही आंशिक रूप से समाप्त होती जा रही थी !,,,किन्तु आज उसने अपनी आँखें हमेशा के लिए बंद कर लीं ! पिछले बीस वर्षों की दौड़ में वह वह इतनी जल्दी हांफ जाएगी ,,यह मैंने कभी न सोचा था ! विवाह से पूर्व जिस शांता को देख कर मैंने घर में विद्रोह किया था ,,वहशायद विवाह की रात्रि में ही चली गयी थी ! ,,शायद पत्नी और मित्र में यही फर्क है ,, जो मैं मित्र को पत्नी बना कर समझ सका ! यह उसका दोष नहीं ,,,,मेरी समझ से किसी भी उस जैसी लड़की का दोष नहीं ,,बल्कि दोष वास्तव में दोष उसका भारतीय लड़की होना है ! भारतीय संस्कारों से बंधी लड़की ,,हमेशा ही भारतीय है चाहे फिर फिर वह विचारों से कुछ भी बन जाए !<br />
मुझे याद है , विवाह से पूर्व शांता , नैतिक अधिकारों , प्रगतिशील विचारों , , नारी स्वतंत्रता पर घंटों बहस करती थी ,,! कभी कभी खीझ कर , उसके भाई उसे ' एंग्लो इंडियन " का खिताब दे देते थे ,,,और वह सभी आलोचनाओं और खिताबों के बावजूद ,,अपने मुद्दे पर जमी रहती थी ! पुराने जमाने में रखे जाने वाले व्रत , पारम्परिक गहनों , पति की सेवा , सतियों की कथाओं की आलोचना करके , वह स्त्रियों की असमर्थता का मजाक उड़ाया करती थी !इन विषयों पर उसकी माँ हमेशा उसका टारगेट रहती थी और माँ भी खीझ कर बोलती थी ,," देखूंगी की तुम क्या करती हो ,,!! "<br />
और इस मौके पर वह वह मेरा बोला गया वाक्य ही दोहराती थी ---<br />
" मैं जो बोलती हूँ ,,उसे ही करने में विश्वाश रखती हूँ ! "<br />
किन्तु वह वैसा कुछ न कर सकी ! विवाह के बाद मेरे टूर पर जाने पर मेरी कुशलता के लिए वह पड़ोस की मिसेज़ दत्ता की तरह ,,वे सभी व्रत रखने लगी ,,जिनकी आलोचना वह स्वयं करती थी ! हनीमून पर ,, काश्मीर की घाटियों में जब उसने काश्मीरी लड़की को गहनों से सजे धजे देखा ,,तो देखती रह गयी !बड़ी देर तक मोहक निगाहों से ताकते रहने के बाद उसके होठों से फूटा था --" कितनी सुन्दर है यह वेश भूषा ,,!!,,,कितनी मोहक ,,! " और ज़िद करके उसने स्वयं उन्ही गहनों में अपना एक चित्र उतरवाया था ! स्वयं स्त्री की स्वतंत्रता पर घंटों लेक्चर देने के बाद , उसने पड़ोस की मिसेज रमन्ना को रात में पालीवाल की कार से उतरते देख कर आँखें सिकोड़ लीं थीं ! मैं स्वयं नहीं समझ सका ,,वह किस मोड़ से , कब आधुनिक राजपथ छोड़ कर , छोटी छोटी घाटियों में जाने वाली पगडंडियों पर बढ़ गयी थी ! जायसवाल के यहां आयोजित शानदार पार्टी को उसने इसलिए छोड़ दिया था की उसे उसी दिन मालूम हुआ था की पार्टियों के व्यंजन से मेरी तबियत बिगड़ती है ! उसने घर की आया की छुट्टी करके खुद अपने हाथों से मेरे लिए खाना बनाना शुरू कर दिया था !<br />
शहर में इलोक्टोनिक वाच ने कदम रखा तो घंटों वह उसकी तारीफ़ करती हुई चहकती रही ! उस दिन उसने अपनी पहले जैसी बहस भी दोहराई ,,<br />
" यह घड़ी हर तरह से अच्छी है ,,इसको खरीदना इसलिए भी जरूरी है की यह हमें प्रगति का बोध करवाती है ,,!"<br />
और दो माह बाद जब हम उसे खरीदने सेल्समेन के यहां गए तो उसने रोक दिया ! वह कहीं खो गयी थी ! बोली --<br />
" " इस घड़ी के बाद अपनी पुरानी घड़ी का क्या होगा ,,??<br />
मैंने मुस्कराते हुए जबाब दिया --<br />
" वह आउट आफ डेट है उसे कबाड़ी को बेच देंगें ! "<br />
वह सहम कर मुझे देखती रह गयी थी ! फिर सिहर कर बोली --<br />
" नहीं ,,! वह हमारी शादी के अवसर पर , मिली भेंट है वह अभी अच्छी चलती है तब क्या जरूरत है नई खरीदने की ,,?? "<br />
मैं उखड़ पड़ा बोला -<br />
" शांता !! ,, तुम दिनोदिन दकियानूस होती जा रही हो ,,! "<br />
और वह चुप चाप अपराधिनी की भाँती सर झुकाये खड़ी रही सेल्समेन हम दोनों का मुंह ताकता रहा !<br />
मैं रुष्ट हो कर चला आया ! दुसरे दिन आफिस से लौटने पर मैंने देखा --शांता ने वह घड़ी खरीद कर बेड रूम में लगा दी थी ! मेरी पीठ पर सर टिका कर वह बोली थी --<br />
" पुरानी घड़ी मैंने अपने बॉक्स में रख ली है " !<br />
और मैं उसके मासूम ख्यालातों पर मुस्करा कर रह गया था ! तब से यह घड़ी लगातार चल रही है ,आगे भी चलती रहेगी ,,,लेकिन उस पुरानी घड़ी का क्या किया जाए ,, जो बॉक्स में पड़ी है ,इसका जबाब देने के लिए वह शेष नहीं बची थी !,!!<br />
शांता चली गयी है ! मैं खोखला हो गया हूँ ! आज के बाद डायरी भी शायद ही लिख सकूं ,,! इस जीवन में अब कोई अभिलाषा नहीं !<br />
आज माँ और पिताजी भी आये थे ! दोनों ही काफी वृद्ध हो गए हैं,,! माँ ने बार बार मेरे सर पर हाथ फेर कर दिलासा दी थी ! पिता चुपचाप छड़ी टिकाये बैठे रहे ! अब वे मुझसे कुछ नहीं बोलते ,,,चुपचाप सबकुछ देखते रहते हैं ! मेरी भी अब हिम्मत नहीं होती ,,उनसे आँख मिलाने की ! वे एक हारे हुए खिलाड़ी हैं किन्तु हैं अभी भी उतने ही मज़बूत ! ,,,,जबकि मैं जिस मोहरे पर लड़ा था ,,,वही बिसात पर से उठ गया !<br />
मीनू की शादी हो गयी ,,,उसे टेलीग्राम दिया है ! शायद वह भी आये,,रस्म निभाने के लिए ! छोटा राजू इसी वर्ष इंजीनियर बना है ,, मुझे डर है की कहीं वह भी मेरी तरह ही पिताजी से कोई बाजी न खेल ले ,,,! <br />
अगर इस बार भी वही बिसात बिछी ,,और पिताजी हार गए तो ,,,????<br />
<br />
"<b><span style="font-size: large;"> किटी ,,प्रमिला ,,और प्रमेश ,,!!</span></b><br />
<b><span style="font-size: large;"><br /></span></b>
दिनांक - १५ मार्च २०२८ <br />
आज मैंने<b> प्रमिला </b>से कोर्ट मैरिज की !<br />
शांता की मृत्यु के बाद यह मेरा तीसरा विवाह है !<br />
शांता के जाने के बाद मैंने सोचा था --शायद अब मेरे जीवन में किसे भी स्त्री की जरूरत नहीं किन्तु ठीक पांच वर्ष बाद ,, किटी ने मेरे जीवन में तूफ़ान की तरह प्रवेश किया ! इसे मेरी मानवीय कमजोरी भी कहा जा सकता है की किटी के सान्निध्य में आकर में उसे नकार न सका ! शांता हमेशा मेरे विचारों में आ कर खड़ी हो जाती थी ,, और मुझे अहसास दिलाती थी की मैं वैचारिक रूप से अधूरा ही रहूंगा ,,जब तक कोई शांता की तरह ही आकर उस उस खालीपन को न भरे !<br />
किटी ने जिस तूफानी ढंग से आकर मुझे हिला दिया ,,उसी तूफानी ढंग से , तोहफे के रूप में प्रमेश को मुझे सौंप कर , वह आठ वर्षों बाद ही चली भी गयी !किटी का आना और जाना महज एक हवा थी ,, जिससे मैंने घुटते हुए कमरे में राहत महसूस की ,,परन्तु वह शांता जैसी धुप न थी जो काफी देर तक मेरी आँखों , मेरी छाती , मेरे पैरों पर टिक कर मेरे साथ आँख मिचौली खेलती रही हो !<br />
शांता के साथ जिस बात की मैंने ज्यादती की थी ,,उसका प्रायश्चित मैंने किटी के साथ रह कर पूरा किया ! शांता की उदास आँखें जिस चीज़ को ढूंढती रहती थी ,, वह मैं अंतिम दिनों में खूब अच्छी तरह पहचानने लगा था ! एक गोल मटोल बच्चा ,,जिसे वह अपनी छाती से गुड्डे की तरह चिपकाना चाहती थी ! किन्तु मैं अपने प्रगतिशील विचारों के आगे इस बात को महत्त्व नहीं देता था ! शुरू में ,,बच्चे की चाह न होने से ,,प्रकृति के साथ जो अपराध मैंने शांता पर दबाव डाल कर कियाथा ,,उसका फल शांता को भुगतना पड़ा ! उसकी गोद मैं फिर चाह कर भी न भर सका ,,,यही कारण था की शांता दिनों दिन टूटती गयी !<br />
किटी अत्याधुनिक महिला थी ,, मेरे लगातार जोर देने पर उसने माँ बनना स्वीकार किया था ,,वह भी इस शर्त पर ,,की युग के साथ चलने वाले फैशन के अनुसार वह वांछित बच्चे को जन्म देगी ! मैंने आगे पीछे सोचने के बाद हामीं भर ली थी !इसके लिए विदेश जा कर हम , सेल्स डिपार्टमेंट में जा कर वांछित भ्रूण का पैकिट ले आये जिसे किटी ने डाक्टरों की मदद से विदेश में ही अपनी कोख में , कुछ माहों के लिए पक्षी की तरह से लिया था !<br />
वैसे भी अब कोई लड़की , माँ बनना पसंद नहीं करती ! सामान अधिकार प्राप्त युवतियों को गर्भ धारण का एक तरफा कष्ट नैतिक नहीं लगता ,,,फिर भी चूँकि मानवीय पीढ़ी आगे बढ़ाना है अतः सेल्स डिपार्टमेंट्स से वांछित भ्रूण चुन कर सिर्फ कुछ महीनों में बच्चा प्राप्त कर लेने का कार्य युवतियां आदमी पर तरस खा कर , कर देती हैं !<br />
अब तो विवाह भी जरूरी नहीं ,, और स्त्री पुरुष के साथ ही विवाह करें यह भी जरूरी नहीं ! स्त्री,, स्त्री के साथ , और पुरुष,,, पुरुष के साथ वैधानिक रूप से विवाह करके वर्षों साथ रह सकते हैं ! संतानोतपत्ति भी अब जरूरी नहीं !यह एक सरल प्रक्रियामें परवर्तित हो गयी है ! ,, आज वांछित गुणों का भ्रूण ले कर ,, कवी , वैज्ञानिक , कलाकार , व्यवसायी , जन्मजात पैदा किये जा सकते हैं ! अब तीस वर्षों पहले जैसी स्थिति नहीं रही , जब सरकार को संतति नियंत्रण के लिए अभियान चलाना पड़ता था ! बीते दिन तो जैसे पंछी की तरह पर लगा कर उड़ गए ! आजकल वॉइस रिकार्डर , विज़ुओ फोन , कम्प्यूटर , फ़्लाइंग कार , एक जरूरत की चीज़ है ! अंतरिक्ष तरह तरह की सैटलाइट्स से पाट दिया गया है ! तीव्र गति के वायुयान कुछ घंटों में ही पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंचा देते हैं !अंतरिक्ष में कुछ छुटपुट लड़ाइयां भी हो चुकी हैं ! चाँद का एक बहुत बड़ा हिस्सा रहने योग्य बनाया जा रहा है ! अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन भी बन चुके हैं ,, जहां से आगे अन्य ग्रहों के लिए राकेट लांचिंग का काम प्रगति पर है ! सचमुच कितना बदल गया ,, मुझे याद है जब मेरे पिता खड़खड़ाते हुए रेडियो से कान लगा कर , खबर चूक न जानी की दृष्टि से घंटों रेडियो के सामने बैठ जाते थे ! अब तो रेडियो रिकार्डर में पूरे विश्व की , पल पल की खबर रिकार्ड है !<br />
<br />
प्रमिला,,,मेरे जीवन में किटी के जाने के दो वर्षों बाद आयी !किटी का जाना भी एक इत्तफाक था ,,जिस तरह उसका आना !किटी के जाने के बाद ,,शांता फिर मुझे याद आने लगी थी ,,,सच कहूँ तो शांता को मैं भूल ही नहीं पाया था ! वह हर पल , हर छण मेरे ऊपर हावी हो जाती थी ,,और यही कारण था किस किसी ऐसे ही छण में किटी रूठ कर , मुझे छोड़ कर चली गयी थी !<br />
नन्हे प्रमेश को मैंने बड़ी मुश्किलों से पाला है ! प्रमेश अब १० वर्ष का है ! कॉन्वेंट में पढ़ रहा है ,,तीक्ष्ण बुद्धि है ! किटी अब कहाँ है यह मुझे नहीं मालूम ,, शायद वह अंतरिक्ष में एक स्टेशन पर डाटा कंट्रोलर है ! उसे प्रमेश में कोई दिलचस्पी है या नहीं ,,यह भी मैं नहीं जानता !<br />
प्रमिला को भी प्रमेश से कोई लगाव नहीं है ! प्रमेश भी प्रमिला में कोई दिलचस्पी नहीं लेता ! मुझे प्रमेश अच्छा लगता है ! आखिरकार वह मेरा बेटा है ,,,मेरी किटी का पुत्र , शांता के साथ किये गए अपराध का प्रायश्चित ,,और आगे अब भविष्य में उसके अलावा भला मेरा है ही कौन ,,??<br />
<br />
प्रमिला से मेरा परिचय दो वर्ष पूर्व ही हुआ है ! उम्र में प्रमिला मुझसे करीब आठ साल छोटी है ! उसने भी जीवन में बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं ! ,,एक विवाह छोटी उम्र में हुआ ,,पति रहा नहीं ! दूसरा संबंध मृगमारीचिका की तरह कुछ वर्षों तक रहा बाद में पता चला की वह रेत पर खड़ी है !<br />
<br />
इस उम्र में ,,जबकि मुझे पत्नी की आवश्यकता ,समय काटने की है ,, प्रमिला को अपना लेना मुझे कुछ खराब नहीं लगता ! फिर प्रमिला भी मेरे विचारों के काफी निकट है ,,,इसलिए हम दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली ! प्रमेश भी आया था ,, उसके मुख से ऐसा लग रहा था जैसे उसे यह संबंध पसंद नहीं !<br />
प्रमिला के घर में आते ही प्रमेश ने हॉस्टल में प्रवेश ले लिया है ! मैंने भी उसे रोका नहीं ! प्रमिला और प्रमेश को मैं टकराने नहीं देना चाहता !प्रमिला के आने पर मैंने बहुत कुछ बदल लिया ! पुरानी आया को हटा कर प्रमिला के रिकमंडेशन पर नवयुवती को रख लिया है ! अच्छी लड़की है ,,स्मार्ट है ,, और सुन्दर है ! घर के कामकाज के लिए ऐसी ही लड़की चाहिए ,,,जिसकी कालोनी में रहने वाले तारीफ़ कर सकें !<br />
प्रमिला ने घर में आकर बहुत बदलाव चाहा है ! फर्नीचर , उपकरण , रंग रोगन आदि ,, !!एक बड़ा बजट है ,,किन्तु मैं उसकी इच्छाओं में बाधा नहीं डालना चाहता !<br />
आखिर,,बदलाव ही तो प्रगति का रूप है न ,,,???<br />
<br />
<b><span style="font-size: large;">" उपसंहार ,,,!"</span></b><br />
<b>पीढ़ी दर पीढ़ी ,,,' मैं ' ,,!!</b><br />
<b><br /></b>
<b>दिनांक - १२ दिसंबर २०३० </b><br />
<b><br /></b>
<b>रात्रि ९ बजे </b><br />
<b><br /></b>
,,,,,,,,, आज सुबह जहां से डायरी लिखना छोड़ी थी वहीं से फिर शुरू कर रहा हूँ ! बीच में डायरी के कुछ पुराने पन्ने ,,जो फटने की कगार पर थे , करीने से सजा कर जोड़ दिए थे !<br />
सुबह पूरे पंद्रह मिनट इंतज़ार के बाद भी कुकर ने काफी बना कर नहीं दी ! काउंटर पर हाथ बढ़ाया तो काउंटर वैसे ही खाली था ! रात भर की आँखों की जलन , जेहन में उतर आयी ! खीझ कर मैंने आया को आवाज़ दी ! कुछ ही छणों में मेरी मेट सर्वेंट ' रीता ' अंदर आई ! मैंने लगभग डांटते हुए पूछा ,,-<br />
" कुकर में मटेरिअल फीड नहीं किया क्या ,,?? कब से स्विच ऑन है ,,काउंटर खाली है ! "<br />
रीता ने किंचित मुस्करा कर मुझे देखा,,,फिर कुकर की और देख कर बोली --<br />
" मटेरियल फीड है सर ,,! सुबह ही मैडम ने काफी ,,टोस्ट लिया था ,,शायद सिस्टम खराब हो गया है ! "<br />
मेरी झल्लाहट रीता की मुस्कराहट और प्रमिला के संदर्भ में दब गयी ! अपना क्रोध सुबह सुबह इस मासूम लड़की पर उतारना मुझे अच्छा नहीं लगा ! मैंने संयत हो कर एक कप काफी बना कर लाने का निर्देश दे दिया !वह उत्साहित हो कर , एक व्यावसायिक मुस्कान मेरी और फेंक कर चली गयी ! मैं उसकी प्रसन्नता का राज जानता था ,,, इस काफी बनाने का चार्ज वह अलग से लेगी ,,! लेकिन मैं भी आश्वस्त था ,,,यह चार्ज में कुकर कम्पनी को डेबिट कर दूंगा !<br />
आँख उठा कर , सिरहाने की टेबिल को देखा ,, ट्रांसपेरेंट फोटोग्राफ में प्रमिला मुस्करा रही थी ! धीरे धीरे लगा ,,मुस्कराहट फैलती जा रही है ,, चेहरा भी बदलता जा रहा है ! थोड़ी देर बाद ही वह मुस्कराहट रीता द्वारा छोड़ी गयी व्यावसायिक मुस्कान में तब्दील होती दिखने लगी ! मैंने घबरा कर आँखें बंद कर लीं ,,! होठों से बुदबुदाहट निकलने लगी ,,,<br />
" नहीं ,,नहीं ,,!! यह कैसे हो सकता है ,,?? प्रमिला और रीता की मुस्कराहट में फर्क है ,,! फर्क होना भी चाहिए ! एक मेरे लिए है ,, दूसरी स्वयं के लिए ,,! अपनत्व व् व्यवसाय का अंतर् तो हर युग में बना ही रहेगा ! शायद ही एक दुसरे में विलीन हो ! आँखों में कांटे गढ़ने लगे तो आँखें खोल दीं !<br />
<br />
करीब दस मिनट बाद रीता ने काफी लाकर दी ! सिरहाने की और टेबिल पर नाश्ता जमाते हुए , उसे देख कर मैंने बात करने की गरज से पूछा -<br />
" रीता ,,!! मैडम कहाँ गयीं ,,?? सुबह सुबह इतनी ठंड में ,,?<br />
उत्तर में रीता ने एक अर्थपूर्ण मुस्कराहट मेरी और फेंकते हुए कहा --<br />
" पता नहीं सर ,,! सुबह सुबह मूड बहुत उखड़ा हुआ लगा ! जाते वक्त बोली ,,' गुडबाई रीता ,,सर का ख्याल रखना ,,!! "<br />
मैंने एक तीखी नज़र रीता के चेहरे पर डाली ,, निर्विकार झिल्लीदार चेहरे के पीछे एक व्यग्यात्मक चेहरा स्पष्ट झलक रहा था ! मैंने सर झटकते हुए कहा --<br />
" खैर ,,,आ जाएंगी ! ,,उन्हें कभी कभी ऐसा ही दौरा पड़ता है ,,झगड़ने का ! "<br />
रीता बिना उत्तर दिए चली गयी ! मुझे लगा जैसे वह किसी ठंडे मगर तेज धारदार चाक़ू से मेरी कमजोर नब्ज़ पर वार कर गयी है ! पिछले एक वर्ष से कमज़ोर पड़ती नब्ज़ ,, जो अब तक उखड़ी नहीं थी यही कम था !<br />
<br />
*******<br />
<br />
काफी पीकर बाहर आया तो कुछ देर ड्राइंगरूम में बैठा ! टीवी पर पूरे विश्व की ख़बरें फलेश हो रहीं थीं ! ! एक सरसरी निगाह डाल कर में बाहर कारीडोर में आ गया ! मन कहीं लग ही नहीं रहा था ! थोड़ा इधर उधर टहल कर अंदर गया तो देखा रीता विज़ुओफन पर कुकर की कम्पनी को कुकर खराब होने की कंप्लेंट कर रही थी! उसे बात करता छोड़ कर मैं बाथ रूम में घुस गया ! ठन्डे पानी से बहुत देर तक सर धोया ! आँखों की जलन कम करने के लिए आई क्लीनर डाला ! गर्म गर्म आंसूं आँखों की कोर से बह कर बहुत देर तक गालों पर बहते रहे ! वैसे कहते हैं की आंसूं निकल जाने पर मन हल्का हो जाता है ,,किन्तु मुझे वैसा कुछ न लगा ! वैसे जीवन मेरे आंसूं निकले भी बहुत कम हैं ! शायद एक या दो बार ,,! किन्तु जो आंसूं शांता के जाने के बाद निकले वैसे आंसूं फिर कभी नहीं निकले ! किटी गई थी ,,,आज प्रमिला भी गयी है शायद आगे फिर कभी ऐसा हो या शायद न भी हो ! किन्तु यह निश्चित है की ऐसी स्थिति में आंसूं निकालने के लिए मुझे आई क्लीनर की ही जरूरत पड़ेगी ,,,अपने आप शायद ही बहें ! यह मेरी कमजोरी है ,,लेकिन आप इसे वक्त का बदलाव भी कह सकते हैं की दिल में कुछ चुभ भी जाए तो दर्द नहीं होता ,,!!<br />
<br />
*********<br />
करीब ११ बजे रोमेश अरोरा का फोन आया ! मैं बाथ रूम में ही था ! रीता ने आकर सूचना दी ! नाम से बिलकुल भूल चुका था ,, किन्तु जब विज़ुओ फोन पर उसकी शक्ल देखी तो सब याद आ गया !<br />
" रोमेश अरोरा " ,,एडवोकेट है ! तलाक दिलवाने में विशेषज्ञ है ! यह उसका व्यवसाय है किन्तु ,,मुझे उससे दिली नफरत है ! पिछली बार किटी के मामले को भी उसने उलझा दिया था की समझौते की कोई सूरत नहीं रही थी ! वैसे रोमेश बीच में न होता तो शायद हम समझौता कर लेते !<br />
मैंने रुखाई से पूछा -- " कहिये ,," !<br />
" मुझे पहचाना ,,? - मूंछों में मुस्कराते हुए उसने प्रश्न दागा !<br />
मैंने वितृष्णा से होंठ सिकोड़ते हुए कहा --<br />
" आपको कोई कैसे भूल सकता है मि ० अरोरा ,,!! "<br />
" ठीक पहचाना ,,! " वह पुनः गहरी कंजी आँखों से मुस्कराते हुए बोला !<br />
" कैसे याद किया ,," मैंने फिर पूछा<br />
" मिस प्रमिला भी यहीं हैं ,, ! "- उसका अर्थपूर्ण स्वर उभरा !<br />
मेरा बदन जैसे कुछ छणों के लिए ठंडा होने लगा ! एक ठंडी लहर मेरे दिल के पास से उत्तर कर खून के साथ पूरे बदन में घुल गयी ! जिस बात का भय मुझे था ,,वही होने जा रहा था ! फिर भी फंसे हुए गले को साफ़ करके मैंने प्रतिवाद किया --<br />
" आपको गलतफहमी है मि ० रोमेश ,,! वे मिसेज प्रमिला हैं ,,मेरी पत्नी ,,!! "<br />
" ,,थीं ,,मगर अब आपसे तलाक लेने के निर्णय लेने के बाद पुनः मिस प्रमिला बन गयीं हैं ! " - उसने मूंछों में हँसते हुए कहा -- " चाहें तो खुद बात कर के कन्फर्म कर लें ,,! "<br />
मैं थोड़ी देर चुप रहा ,, मन हुआ की रिसीवर रख दूँ ,, अब बचा ही क्या है कन्फर्म करने के लिए ,,/ आज तक मैं खुद अंदर से कन्फर्म नहीं हो सका हूँ ,,!<br />
फिर भी दिल में एक कशिश जाग उठी ! प्रमिला से प्रथम भेंट। . हफ्तों की मुलाकातें ,, अंदर जेहन तक छूने वाली आत्मीयता ,,एक जैसे दर्द ,, समझौते ,, एक साथ मेरी आँखों में सिमट आये ! वे दिन जो हमने एक दुसरे को समझने में व्यतीत किये थे ,,किताब के पीले पन्नों की तरह पलट कर खुलने लगे !<br />
ठंडे स्वर में मैंने कहा --<br />
" बात करवा दीजिये ,,! "<br />
थोड़ी देर बाद स्क्रीन पर प्रमिला का चेहरा स्क्रीन पर उभरा ! मैं थोड़ी देर उसे देखता रह गया ! काली गहरी आँखें सर्द हो हो गयीं थीं ! पपोटे सूज गए थे ! सुर्ख लाल होठों पर पपड़ी जम गयी थी ! पूरा चेहरा उदास और दुखी था ! शायद बहुत देर तक रोती रही थी ! मैंने अपने टूटते स्वर पर नियंत्रण पाने की कोशिश करते हुए पूछा -<br />
" क्या बात है प्रमिला ,,? सिर्फ दो वर्षों में ही मैं पराया हो गया ,,? "<br />
उत्तर में उसने आँखें झुका लीं ! होंठ थोड़े कांप कर फ़ैल गए ! स्वर न फूट सके ! वैसे भी मैं जानता था ,,वह आँख शायद ही मिलाये क्योंकि आँख मिलाने के बाद ,,,हम दोनों शायद फिर समझौते की कोई लकीर ढूंढ निकाल लेते ! मुझे लगा वह विवश है ,,किन्तु कहाँ ,,? यह ढूंढ पाना मेरे लिए मुश्किल था !<br />
मेरा नियंत्रण अपनी आवाज़ से उठने लगा ! हल्की कम्पकम्पाई आवाज़ में मैंने फिर पूछा --<br />
" ज़रा सोचो प्रमिला ! मैं फिर अकेला हो जाऊंगा ,,एकाकी ! सिर्फ अपने में सिमट कर रह जाऊंगा ! "<br />
इस बार शक्ति भर उसने सर उठाया ,,, मैंने देखा उसके कंधे पर सहानुभूति के रूप में रमेश हाथ रख कर उसे शक्ति देने की कोशिश कर रहा था ! पलकें उठा कर वह बोली --<br />
" तुम पहले भी अकेले नहीं थे सौरभ ,,! यह तुम्हारी पहली शादी नहीं थी - तुम जानते हो मैं टकराहट का कोई भी पहलू पसंद नहीं करती ,,फिर चाहे टकराहट किसी भी जगह क्यों न हो ! शायद तुम्हें याद हो ,, हमने पहले ही तय किया था -- जिस क्षण भी हम अंदरूनी ढंग से टकराने लगेंगें ,, साथ न रहेंगें ! "<br />
" किन्तु यह टकराहट तो अंदरूनी नहीं है ! सिर्फ ऊपरी है ,," -- मैंने प्रतिवाद किया !<br />
उत्तर में उसने पूरी दृष्टि उठा कर मुझसे मिला दी ! मैं काँप उठा ! सचमुच यह नज़र मेरे दिल के चोर को पकड़ लेती थी ! उसने उसी प्रकार नज़रें उठाये हुए कहा -<br />
" शाब्दिक रूप से ऊपरी ही सही ,, किन्तु अनुभूति के बहाने तुम अंदर तक , आज भी कहीं और जुड़े हुए हो ,,! जिसका महत्व मेरे लिए कुछ भी नहीं ! बस यही चाहती हूँ की तुम सुखी रहो ! मे गॉड ब्लेस यु ,,! "- कहते कहते वह फफक उठी ! हाथ में पकड़ा रिसीवर स्पंदित हो गया ! आँखों का दर्द गहराई तक छलछला उठा ! इतना अधिक की जिसमें मैं अपना चेहरा भी स्पष्ट देख सकता था !<br />
मैं कराह उठा ! तेज स्वर में पुकारकर बोला -<br />
" प्लीज़ प्रमिला ,,!! समझने की कोशिस करो ! मैं एडजस्ट ,,,,,,,,,"<br />
किन्तु तब तक रिसीवर रोमेश ने ले लिया ! वह मूंछों में मुस्करा कर बोला --<br />
" नो,,नो मिस्टर सौरभ ,,नो मेंटल टार्चर तो माई क्लाइंट , नाउ ,,"!<br />
" रोमेश ,,! प्लीज़ ,,रिसीवर उसे दो ,, मैं थोड़ी देर और बात करना चाहता हूँ ,, "<br />
किन्तु रोमेश हँसता रहा ! कटुतापूर्वक एक भद्दे मजाक के साथ उसने बात समाप्त की ! !<br />
" मैं उनका वकील हूँ ,, जो बात करना चाहो मुझ से कर सकते हो ,, ! " - फिर एक आँख दबा कर बोला --" रोमांस भी करना चाहो तो मुझसे कर लो " ,,!<br />
रोमेश के प्रति क्षुब्धता ने अंतिम रूप ले लिया ! घृणा से रिसीवर नीचे रखते हुए मैंने उसे घुरा --रिसीवर रखते रखते वह बोला था -- " नोटिस टेलीप्रिंटर पर रिसीव कर लेना ! "<br />
<br />
*********<br />
<br />
फोन के बाद मन नहीं लगा ! सीधे अपने स्टडीरूम में जा कर घुस गया ! लम्बी पुरानी इज़ी चेयर पर पैर पसार कर बैठ गया ! रात भर जागते रहने के कारण सर में दर्द होने लगा था ! उँगलियों से पकड़ कर धीरे धीरे सर दबाता रहा ! दर्द थोड़ा कम होने पर निगाह उठा कर पूरे कमरे को जी भर कर देखा ! बुकशेल्फ पर मुस्कराती हुई शांता की फोटो लगी थी ! गर्द में सनी हुई ! बगल में उसकी पसंद का बहुत चाहत के साथ खरीदा हुआ रेडियोग्राम रखा था ! सुंदर कैबनिट का, प्यानो साइज़ का रेडियोग्राम ! जिसे मैंने और शांता ने बड़ी मुश्किल से अपने बजट में से कटौती करके खरीदा था ! स्टीरिओ फोनिक ,,चेंजर सहित !<br />
मैंने हाथ बढ़ा कर दराज़ खोली ,,! लकड़ी पर जमी धूल की परत पर हाथ के निशाँ बन गए ! दराज़ खोलते ही बड़े बड़े एल पी पर छपे मुकेश , लता , मन्ना डे , मोहम्मद रफ़ी के चेहरे मुस्करा उठे ! तलत के दर्द से छलकते गीत,,जिन्हे हमने बहुत सहेज कर रखे थे,, किशोर की दानेदार आवाज़ में डूबे स्वर समूह ,, उछलते कूदते चुटकी लेते ,,स्वर ,, गीता दत्त , आशा भोंसले के चुहल भरे स्वर ,,बरमे की तरह अंदर तक सुराख बना कर पैठ जाने वाले मीठे स्वर के दर्दीले गीत ,,!!<br />
मैंने एक के बाद एक ,,सभी रिकार्डों को चेंजर पर लगा कर देखा ,,,! मैं बार बार सीरीज़ बनाने का यत्न करने लगा ! कौन सा गीत पहले रखूँ ,,? कौन सा बाद में ,,?? सभी तो एक जैसे थे ,, मेरे मन के कोने में समाये ,,, दुविधा में पड़ा बार बार उन्हें ऊपर नीचे करता रहा !<br />
तभी रीता आई ,, उसने द्वार पर खड़े हो कर पूछा -<br />
" सर,,! कुकर ठीक हो गया है ,,क्या फीड करूँ ,,? "<br />
मैं उसकी आँखों की पुतलियों के बीच चमकते बिंदु की गहराई नापते हुए बोला --<br />
" दिल,,! ,, हो सके तो एक प्यारा सा दिल फीड करो मनुहारों वाला दिल ,, कभी न टूट सकने वाला दिल ,,! "<br />
रीता मुझे विचित्र निगाहों से घूरने लगी ! उसे लगा की शायद मैं पागल हो गया हूँ ! थोड़ी देर तक देख कर वह सर झटक कर वापिस चली गयी !<br />
रीता के जाने के बाद मैंने रेडियोग्राम की धूल झाडी ! एक एक रिकार्ड कवर ठीक से पोंछा ! शांता के चित्र को भी झाड़ पोंछ कर रख दिया ! रेडियोग्राम से टिके हुए अपने स्पेनिश गिटार को मैंने बहुत देर तक देखा ! सादा लकड़ी का बना हुआ होलो गिटार ,,जिस पर कार्ड्स बनाते हुए मेरी आँखें मुंद जाती थीं ! यह गिटार मुझे शांता ने प्रथम प्रणय में भेंट में दिया था ! इसी गिटार की वजह से मैं शांता से मिल सका था ! यही गिटार था जिसकी वजह से ३५ वर्ष पूर्व एक मॉड लड़का कहलाता था ! प्रगतिशील विचारों का हिमायती युवक !<br />
फिर एकाएक मुझ पर जैसे सफाई का जूनून सवार हो गया ! कमरा बंद करके मैंने अपनी हर पुरानी चीज़ की धूल झाडी ! एक एक किताब देखी ! मित्रों के दिए हुए उपहार ,, पिताजी की छड़ी ,, माँ का चश्मा ,,रीनू का पर्स,, राजू के जन्म दिन में दी गयी साइकिल ,, जिसे पिताजी ने जिद करके वापिस भिजवा दिया था ! सभी को बार बार उठा कर पोंछता रहा फिर जमाता रहा ,,,फिर पोंछता रहा ,, ,,बीच बीच में कई बार रीता आई ,, उसने खाना बन जाने की सूचना दी ,,किन्तु मुझे भूख महसूस हुई ही नहीं ,, वह भी मुझे विक्षिप्त मान कर चुपचाप वापिस चली गयी !<br />
और ऐसा करते हुए न जाने कब मुझे नींद आगयी ,,मुझे पता ही नहीं चला !<br />
<br />
***********<br />
<br />
शाम को पांच बजे , जब मैं थक कर सो रहा था ,, रीता ने आकर जगाया ! टेलीप्रिंटर पर नोटिस आ चुका था ! रीता बतला रही थी ,,'प्रमेश ' मेरा पुत्र मेरा इंतज़ार कर रहा था ,,,आधा घंटे से ड्राइंग रूम में बैठा था !<br />
मैं बाथ रूम से फ्रेश हो कर बाहर आया ! ड्राइंगरूम में प्रमेश सोफे पर मेरा इंतज़ार करते हुए पसर गया था ! मुझे आते देख कर उसने उसी मुद्रा में आधी आँखें खोल कर मुस्करा कर कहा --<br />
" हाय ,, डैड ,,! "<br />
मैंने उसका अभिवादन स्वीकार करते हुए सर हिला दिया ! अलसाये स्वर में शिकायत भर कर प्रमेश बोला -<br />
" बहुत देर इंतज़ार करवाया आपने डैड ,,! सच ,, बहुत बोर हुआ ! "<br />
मैं चुप रहा !<br />
प्रमेश ने एक लम्बी उबासी लेते हुए पुनः कहा ---<br />
" कोई म्यूज़िकल कम्प्यूटर भी तो नहीं रखा आपने ,,होता तो उसी से खेल कर मैं कुछ मन बहला लेता ! "<br />
मैंने शांत स्वर में बिना उसकी बात सुने ही पूछा --<br />
" कैसे आये ,,?? "<br />
उत्तर में प्रमेश उठ कर बैठ गया ! कुछ लापरवाही के स्वर में बोला --<br />
" यूँ ही चला आया ,,! आज हॉस्टल में छुट्टी थी ! फंक्शन है रात में ,, मीट टू गैदर ,,! "<br />
मैं चुपचाप आँखें मूँद कर पैर पसार कर बैठ गया ! प्रमेश थोड़ी देर चुप रह कर फिर बोला -<br />
" प्रमिला आंटी आपको छोड़ गयीं डैड ,,??"<br />
" तुम्हें किसने बताया ,,?? " मैंने चौंक कर आँखें खोलते हुए पूछा !<br />
उत्तर में उसने टेलीप्रिंटर पर आया नोटिस मुझे थमा दिया ! लिखा था -- ' तुम्हारे विचारों से मेरे विचार मेल नहीं खाते ,,मुझे मानसिक कष्ट है ,, तुम्हारे साथ नहीं रह सकती ! दिनांक १४ को कोर्ट आओ,,,, तलाक के लिए ! "<br />
आगे पढ़ नहीं सका ! चुपचाप नोटिस एक और रख दिया ! थोड़ी देर बाद संयत हो कर मैंने पूछा --<br />
" किन्तु तुम्हें इससे क्या फर्क पड़ता है ,,? "<br />
" मुझे क्या फर्क पड़ता है ,,! " ,,- प्रमेश ने लापरवाही से कंधे उचकाए !---<br />
-" लेकिन डैड ,,! आप भी विचित्र आदमी हैं ,, ! आज के ज़माने में जब जब ज़माना दिनों दिन बदल रहा है ,,आदमी ऊपर उठ रहा है ,, आप अभी भी उन पुरानी चीजों से मोह लगाए बैठे हैं ! सच ,,! ज़रा सोचिये ,तो ,,! क्या यह तर्क संगत है की प्रमिला आंटी सिर्फ एक नाखून के चुभ जाने से तलाक लेने की बात करने लगे ,,? "<br />
" तुम क्या कहना चाहते हो ,," - मेरा स्वर तल्ख होने लगा !<br />
" मैं क्या कहूंगा ,,? सभी यही कहेंगें ,,! यहां तक की दिनरात आपके संग रहने वाली मेट सर्वेंट रीता भी यही कहती है ! आजकल एक से एक वेस्टर्न म्यूजिक अर्रेंजिंग कम्प्यूटर आ गए हैं ! एक से एक एलैक्ट्रॉनिक इंस्ट्रूमेंट्स हैं ! एक से एक पॉप रिकॉर्ड्स हैं ,, किन्तु आप आज भी उसी पुराने रेडियोग्राम , होलो गिटार , पुराने सिंगर्स के गानों के रिकॉर्ड्स से दामन बांधे बैठे हो ,! बाबा आदम के ज़माने की लता , मुकेश की धुनें ,,आज कल आपके ही काम आ सकतीं हैं ! आप ही उनके पीछे दीवाने हो सकते हो ,,! सचमुच आप बहुत पीछे चलना चाहते हो ,,पुरानी बातें ,, पुरानी यादें ,, परम्परागत मोह ,, संस्कारों से आप बाहर निकल कर कुछ देख ही नहीं सकते ! आपने बहुत छोटी सी बात के लिए प्रमिला आंटी को दुखी किया ! पता नहीं कब आपका दकियानूसी नज़रिया ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,! "<br />
,,," प्रमेश ,,!! बस चुप रहो ,,! मुझे तुम्हारी राय की जरूरत नहीं ,,! " -- मैं लगभग चीखते हुए बोला ! सिर्फ दो वाक्य के लिए पूरी हिम्मत लगा कर चीखने से मुझे पसीना आ गया ! दिल धोंकनी की तरह चलने लगा !<br />
प्रमेश स्तब्ध हो कर मुझे देखता रहा ! धीरे धीरे उसके चेहरे पर संयत होने के भाव आये ,,! थोड़ी देर रुक कर कटुता से बोला --<br />
" मुझे शौक नहीं है ,, राय देने का ,,! लेकिन डैड इसे आप खुद समझ सकते हैं ,,! बदलते ज़माने से कट कर आप नहीं जी सकते ,,! "<br />
मैं चुप रहा ,,! कमरे में थोड़ी देर की निस्तब्धता के बाद प्रमेश का स्वर फिर उभरा --<br />
" डैड ,,मैं इसलिए भी आया हूँ की मुझे पाकिट मनी की जरूरत है ! "<br />
मैं आँखें बंद करके बैठा रहा ! थोड़े देर बाद उत्तर दिया --<br />
" ठीक है ,,इंतजाम हो जाएगा ,,! "<br />
" लेकिन कब डैड ,,? ,,आप मेरे नाम से बैंक में एकाउंट क्यों नहीं खुलवा देते ,,?? क्यूँ स्कूल के अन्य लड़कों के बीच मुझे भिखारी जैसा बना कर रखना चाहते हैं ,,? "<br />
मेरी रगों का खून गर्म होने लगा ! फिर भी मैंने संयत हो कर कहा --<br />
" प्रमेश,,!! नार्मल हो कर बात करने की कोशिस किया करो ! "<br />
" कब तक नार्मल रहूँ ,,? आखिर मेरी भी तो जरूरतें हैं ,, मैं कब तक आपके पीछे घूमूं ,,? "<br />
" कब तक का क्या अर्थ है ,,? ,,क्या तुम्हें अपने भविष्य के लिए मेरे पास आने में भी शर्म लगती है ,,? "<br />
<br />
" शर्म तो है ही डैड ,,! ,,मेरा आपका सम्बन्ध नैतिक रूप से पिता पुत्र का है ,, मुझे अपने पैरों पर खड़ा होने तक आर्थिक मदद देना आपका नैतिक और कानूनी फ़र्ज़ है ! और तब तक उसे आप अगर प्रेम से निबाह दें तो मैं आपके पास शिकायत करने क्यों आऊं,,??<br />
" बस ,,, बस ,,! चुप हो जाओ ,,! " - मैं थरथरा उठा ! कांपते कदमों से उठ कर मैंने चेस्ट खोला ,, चैक बुक उठा कर एक ब्लेंक चैक पर दस्तखत किये और उसे उसकी और बढ़ाते हुए मैं बुदबुदाया --<br />
" तुम जितना चाहो भर कर कैश कर लो ,,, अपने नाम से एकाउंट खोल लो ,, तुम अपनी और से कुछ भी समझो ,, किन्तु मैं सिर्फ यह मान रहा हूँ की मैंने तुम्हारी कीमत एक बार सेल्स डिपार्टमेंट में चुकाई थी ,,किटी की पसंद पर ,, आज भी चुका रहा हूँ ,, ! आगे जरूरत पड़ी तो चुकाऊंगा ! ,,, रिश्ते ,, कर्तव्य ,,, प्यार के शब्द किताबों में लिख कर इतिहास में सुरक्षित रखने के लिए छोड़ दो ,,! "<br />
मैं भारी कदमों से ड्राइंगरूम के बाहर निकल कर आ गया ! प्रमेश की मुस्कराहट की झलक ,,मेरी पीठ पर चिपकी आँखें महसूस कर सकतीं थीं !,<br />
, भले ही देख नहीं सकतीं थीं ,,!!<br />
<br />
************"<br />
<br />
, प्रमेश संध्या छह बजे गया !उसके जाने की खबर रीता ने दी ! फिर याद भी दिलाया की मैंने खाना नहीं खाया है ! मैं निर्विकार भाव से स्टडी रूम की ईजी चेयर पर धंस गया था !मुझे सिर्फ एक ही बात बार बार कचोट रही थी ,, क्या मैं दकियानूस हूँ ,,? ,, परम्परागत मोह में बंधा ,,?<br />
मैंने मुड़ कर शांता के फोटोग्राफ की तरफ देखा ! फिर बुदबुदा उठा -- ' नहीं शांता ,,! तुम तो अच्छी तरह जानती हो न मुझे ?? ' फिर एक बार आँख उठा कर देखा -- धूल झड़ जाने के कारण रेडियोग्राम चमकने लगा था ! कुछ देर पहले चेंजर पर लटकाये गए रिकॉर्ड्स ,, सीरीज़ पूरी हो जाने की घोषणा कर रहे थे ! रिकॉर्ड्स के कवर पर बने गायकों के चेहरे मानो गाने के लिए आतुर हो उठे थे ! पास में रखा ,,स्पेनिश गिटार धूल झाड़ते ही जवान हो उठा था ! मैंने एक बार अपनी उंगली उठा कर देखी ,,-- झुर्री पड़ी ,, उंगली में बड़ा हुआ नाखून ,जैसे ,मेरे अपने ही मुलायम दिल में धंसता चला गया,,अंदर हिलोरें खाते स्वर लहरियों को छेड़ने के लिए ,,!,,,,आगे बढ़ कर मैंने रिकार्ड प्लेयर ऑन कर दिया !<br />
एक के बाद एक गाने में लता , मुकेश , रफ़ी , किशोर , गीता दत्त , तलत , आशा , की आवाज़ कमरे में तैरती चली गयी ! मैं आँखें मूँद कर चुपचाप सुनता रहा सभी गीत बजते गए ,,एक भी रिकार्ड न छूटा !<br />
करीब आठ बजे सभी रिकॉर्ड्स के बज जाने के बाद ,,मैंने स्पेनिश गिटार को उठा कर उसके तार कैसे ! कुछ देर आँख मूँद कर कार्ड्स बजाता रहा ,,! हरेक स्ट्रिंग को सहलाया ,,उन्हें छेड़ा !,, वे धुनें भी निकालीं जिसका मैं खुद दीवाना था ,,! शेल्फ पर राखी शांता की तस्वीर धूल झड़ जाने के कारण , चमकती हुई जैसे मुझे देख कर मुस्कराती रही !<br />
फिर भी संतोष नहीं हुआ,,,लगा की तार ढीले हैं ,, कसने के लिए दबाब डाला तो जंग लगा पहला तार खनखाना कर टूट गया ! और फिर तो एक के बाद एक सभी तार टूटते गए ! थोड़ी देर ही बाद बिना तारों का गिटार ,,नंगा हो कर भयावह दिखने लगा ! चेंजर पर लगे रिकॉर्ड्स भी घिसे पिटे दिखने लगे ! शांता की निगाहें भी चमक खो कर ,,बुझी बुझी दिखने लगी ! मैंने चौंक कर रीता को आवाज़ दी ! द्वार पर आकर रीता मुझे विचित्र निगाहों से घूरने लगी ,, मुझे उन निगाहों में एक साथ प्रमिला , ,,किटी ,, ,, सभी दिखाई देने लगे ! घबरा कर पुनः देखा ,और फिर बंद कर लीं ,,! इस बार मुझे प्रमेश दिखा ,, उसके पीछे खड़ा हुआ मैं स्वयं दिखने लगा ,,और उसके भी पीछे खड़े मेरे पिता दिखने लगे ! कुछ आवाज़ें एक दुसरे में समाईं हुई कानों को बेधने लगीं ,, कभी मेरे पिता की आवाज़ ,, कभी पिता को बहस के साथ उनको जबाब देती मेरी आवाज़ ,, और कभी प्रमेश की बहस के साथ मुझसे सवाल पूछती प्रमेश की आवाज़ ! सभी आवाज़ों में एक शब्द गूंजता सा सुनाई दिया ,,, बदलाव ,,प्रगति ,,दकियानूसी ,,! और धीरे धीरे हर चेहरे में मैं ही दिखने लगा ,,पिता के चेहरे मैं भी मैं ,,,, अपने चेहरे मैं भी मैं ,, ,, और प्रमेश के चेहरे में भी मैं ,, जैसे सदा हरसमय , हर जगह मैं ही था सिर्फ मैं ,, ,,और कोई नहीं था ,,! सिर्फ वक्त बदला था ,, !!-<br />
मैंने घबरा कर आँखें खोलीं और रीता से कहा --<br />
" रीता ,,!!,,यह सब सामान बहुत आरसे से बेकार पड़ा है ,न ,,? जगह भी बहुत घेरता है ,,?? "<br />
" हाँ ,सर ,,",!! रीता ने उत्साह से आँखें झपकाईं ,,!<br />
तब ऐसा करो ,,कबाड़ी को फोन करो ,,वह इसे जितने में चाहे ले जाए ,, इसी वक्त ,,एक घंटे के अंदर ,,! "<br />
वह उत्साहित हो कर तुरंत वापिस लौटने लगी तो मैंने उसे टोकते हुए कहा --<br />
" और एक म्यूज़िकल कम्पोज़र कम्प्यूटर का आर्डर बुक कर दो ! मार्केट से पॉप म्यूज़िक के नए रिकॉर्ड्स खरीद लाओ ,, ! कुछ न कुछ तो होना ही चाहिए ,,बिना संगीत के जीवन अधूरा लगता है ! "<br />
वह पुनः मुस्करा कर मुझे देखती हुई चली गयी !<br />
उसके जाते ही मैंने अपनी हथेली पर आये एक गरम गरम आंसूं को पोंछ लिया ! थोड़ी देर बाद ही कबाड़ी आकर सब सामान ले गया मैंने अपना स्पेनिश भी दे दिया ! सिर्फ एक चीज मैंने रीता की निगाहों से बचा कर अपनी जेब में रख ली है ,, वह है शांता की तस्वीर ,,! सिर्फ फ्रेम ही मैंने कबाड़ी को बेचा है !<br />
कबाड़ी के जाने के बाद ,, रीता को बुला कर मैंने मैंने कहा --" सचमुच कितना कबाड़ था ,,ठीक ही हुआ जो उठ गया ,,बेकार इन पुरानी चीजों को छाती से चिपकाए , दकियानूस ', बने रहने से क्या ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,"<br />
-- कहते कहते मेरा गला रुंध गया !<br />
और अब आज का यह पेज मैं बंद कर रहा हूँ ,,मुझे सख्त जरूरत है आराम की ,,मेरा बदन टूट रहा है ,,लगता है जैसे कई मीलों की लम्बी यात्रा पूरी करके आया हूँ ,, मीलों की ही नहीं ,,शायद युगों युगों की ! कल सुबह फिर जागूँगा ,,न भी जागूँ तो अब कोई डर नहीं !<br />
अच्छा शुभ रात्रि ,,!!<br />
*****************<br />
<br />
---सभाजीत<br />
<br />
( यह कथा मैंने वर्ष १९७७ में लिखी थी ,,अक्टूबर माह में ! तब पाठकों ने कहा यह सामयिक नहीं है ,, पत्र पत्रिकाओं ने भी इसे खेद सहित वापिस कर दिया था ! अब लगभग ४० वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी क्या यह सामयिक हो पायी है ,,या क्या आगे कभी सामयिक हो पाएगी ,,इसका निर्णय प्रबुद्ध पाठक करें )<br />
<br />
( इसके काल की गणना ,, लेखन के बाद आज की वर्तमान स्थिति देखते हुए ,,भविष्य के दस साल तक के लिए बढ़ा कर पुनः निश्चित की है ,, प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है की वे उसमें त्रुटि होने की स्थिति में उस पर अधिक ध्यान न दें बल्कि कथा का सार समझने का प्रयास करें )<br />
<br />
<br />
<br /></div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-49404739833052795382019-02-10T08:04:00.001-08:002019-03-05T10:19:47.650-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<b><span style="font-size: large;">विंध्य की विरासत</span></b><br />
<br />
<b><span style="font-size: large;">सतना इन्द्र धनुषी भूमि</span></b><br />
<b><br /></b>
<b>भाग २</b><br />
<br />
गगन में चमकते इंद्रधुष के विविध छटाओं की तरह , सतना जिले की चारों और की विस्तृत भूमि भी कई रंगों , कई छटाओं , को बिखरती मनोरम भूमि है ! पूर्व दिशा की और रीवा रियासत , और बघेल राजवंश के स्मृति चिन्ह , सज्जन पुर की गढ़ी , माधव गढ़ के किले , और रामपुर बघेलान जैसे कस्बों की गाथाएं हैं , तो पश्चिम दिशा में सोहावल की गढ़ी , नागोद का किला , और कालीलजनर किले की इतिहास के साथ , चौमुखनाथ का शिव मंदिर , और श्रेयांस गिरी के जैन मंदिर और कन्दराएँ , लोगों के मन में जिज्ञासा जगाते है , उत्तर दिशा में राम के बारह वर्षीय वनवास के पग चिन्ह अंकित किये हुए चित्रकूट , भक्तों को आकर्षित करटा है , और कोठी , का किला , अपनी कथा कहने को निमंत्रित करता है , तो दक्षिण में , भरुहत पहाड़ पर मिले बौद्धकालीन स्तूपों के अवशेष , उंचेहरा की धातु शिल्प की जादूगरी , मैहर का संगीत , और माता शारदा का पवित्र धाम लोगों को सम्मोहित करता है ! विंध्यके पर्वत श्रेणियों के रूप में दक्षिण से पश्चिम की और फ़ैली , परसमनिया पठार की भूमि कई ऐतिहासिक धरोहरों को अपने आँचल में छिपाए है ! यहां बौद्ध धर्म के अवशेष हैं , तो जैन धर्म के मंदिर भी , यहां राम के पद चिन्ह हैं , तो शिव के विभिन्न दर्शन भी , यहां मैहर की शारदा हैं , तो भरजुना की दुर्गा भी , यहां संगीत कला की उत्कृष्ट साधना है तो आदिकालीन धातु कला की चमक भी , यहां कालिंजर जैसे अजेय दुर्ग हैं , तो ऐतिहासिक किलों के साथ सामंती इतिहास की गढ़ियाँ भी , यह क्षेत्र सभी धर्मों , सभी पंथों , और सभी राजवंशों की यादगार भूमि है , जो अपने आप में अनोखी है !<br />
<br />
हम आप के साथ चित्रकूट और मैहर की भूमि के दर्शन करें , इससे पूर्व , यहां की विभिन्न भूमि में फ़ैली , विभिन्न धरोहरों को देखते चलते हैं !<br />
<br />
<b> भरहुत पहाड़ </b><br />
विजय के बाद , हिंसा के प्रति , उत्पन्न हुई वितृष्णा से ग्रसित होकर सम्राट अशोक ने जब , बौद्ध धर्म अपना कर , पूरे भारत में उसके प्रचारार्थ , बौद्ध मठ और स्तूप बनवाये , तो उसी श्रंखला में , सतना के निकट स्थापित इस भरहुत पहाड़ पर अंकित हुआ वह इतिहास , जिसकी झलक ना सिर्फ अभी भी इस पहाड़ पर विदवमान है , बल्कि इसकी चमक बंगाल के कलकत्ता इंडियन म्यूजियम और विदेशों के अन्य म्यूजियम को भी चमत्कृत कर रही है !<br />
<br />
इस स्थान में निकले पाषाण मूर्तियों के अवशेष , स्तूप , और तोरण द्वार , , सांची के स्तूप की शैली के बताये गए हैं , किन्तु इनके निर्माण का समय , ईसा से ११० वर्ष पूर्व से ले कर तीसरी सदी पूर्व तक माना गया है इससे ऐसा विदित होता है की यहां के स्तूपों का निर्माण धीरे धीरे कई वर्षों तक होता रहा है !<br />
<br />
<b><br /></b>
<b> </b><br />
<b><br /></b>
<b> उंचेहरा का धातु शिल्प </b><br />
<b><br /></b>
<b> </b> सतना मैहर मार्ग पर बसा है , बौद्ध काल का गौरवमयी गावं उंचेहरा ! यहां कभी कांसे के बर्तन , और सिक्कों की ढलाई का काम आदिकाल से हो रहा था ! कांसे के बर्तनों में , बेले , थालियां , आदि प्रमुख थे , जो उत्तर भारत के कई नगरों तक जाते थी ! किसी समय घर घर भट्टियां लगती थीं और ताम्बे और रांगे को , एक निश्चित अनुपात में मिला कर , मिश्र धातु तैयार की जाती थी , जिसे यहां की भाषा में फूल कहा जाता था ! फूल से अर्थ था , फूल जैसे नाजुक बर्तन , जो थोड़े से आघात से तुरंत टूट जाए ! थाली बनानी की प्रक्रिया में सभी कारीगर हस्त कला का उपयोग करते थे , जो श्रम साध्य काम था !<br />
वक्त ने , ना सिर्फ देश की सांस्कृत परम्पराओं पर कुठारघात किया , बल्कि कुटीर कला को पूरी तरह नष्ट कर दिया ! आज फूल के बर्तन बनाने का पैतृक कार्य उंचेहरा में कोई नहीं करना चाहता , इस लिए फूल के बर्तन बनाने की कला अब लुप्त होती जा रही है ! कला के लुप्त होने और संस्कृति के बदलते रूप के प्रति आज पुराणी पीढ़ी का क्या कथन है आइये मिलते हैं उंचेहरा निवासी ,,,,,,से !<br />
<br />
( इंटरव्यू )<br />
<br />
<br />
<b><br /></b>
<b><br /></b>
<b> नाचना का चौमुख नाथ मंदिर </b><br />
<b><br /></b>
<b> </b> शैव मत के साधकों का स्थान था नाचना कुठरा गावं जो की नागोद के निकट जसो गावं से थोड़ा आगे स्थित है ! उसके आस पास फैले विशद क्षेत्र में कभी शिव के कई मंदिर बने थे , जिन्हे गुप्त काल का कहा गया है ! अभी जो शिव मंदिर उपलब्ध है , उसमें शिव की चार मुख मुद्राएं , शिव लिंग के स्वरूप में चारों और उत्कीर्ण है ! इन मुद्राओं में तीन मुद्राएं शान्ति स्वरूप में है , जबकि एक मुद्रा में शिव की जीभ को , विष के प्रभाव से ऐंठता हुआ दिखाया गया है ! शिव की यह मुख मुद्रा अध्भुत है , और देखते ही बनती है ! चौमुखी शिवलिंग होने के कारण , इसे चौमुख नाथ कहा गया है !<br />
कहते हैं समुद्र मंथन से निकले हुए तीव्र हलाहल से जब पूरी श्रष्टि जलने लगी तो , शिव ने उस हलाहल को पी लिये ! हलाहल पीते समय जो उन्हें कष्ट हुआ , उससे उनकी मुद्रा में जो तनाव उत्पन्न हुआ , और जीभ ऐंठी , उसका चित्रण इस मूर्ती में बहुत सजीव है !<br />
<br />
आज यह स्थान पर्यटन स्थल बन गया है ! चौमुखनाथ मंदिर के अलावा और भी कई मंदिर यहां ध्वस्त अवस्था में है जो शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण की चीज है !<br />
<br />
<b><br /></b>
<b> श्रेयाशगिरि </b><br />
श्रेयांशगिरि एक पर्वत है , जिस की प्राकृतिक में जैन धर्म की कई मूर्तियां आदिकाल से स्थापित है ! कुछ इतिहासकार इसे ईसा से चौथी सदी पूर्व के समय का बताते हैं ! क्यूंकि यहां पर उत्कीर्ण मूर्तियों के लिए कोई शिला लेख उपस्थित नहीं है , इसलिए इसका समय काल निश्चित रूप से तय कर पाना कठिन है ! जैन धर्माचार्यों के कथना नुसार , सामान्यतः , अन्य जैन मूर्तियों के स्थलों में २४ रेखाओं के चक्र मिलते हैं , जबकि यहां १४ रेखाओं के चक्र हैं , जो मोक्ष के प्रतीक माने जाते हैं इसलिए यह स्थान बहुत प्राचीन काल का है ! श्रेयांश गिरी की प्रथम गुफा में ३२ ारों से युक्त भगवान् आदिश्वर की प्रतिमा स्थित है ! सिद्ध पीठ पर विराजमान आदिनाथ कमलासन मुद्रा में है ! इस मूर्ती में सही वत्स नहीं है ! केश विन्यास अनुपम है और मूर्ती के नेत्र खुले हैं ! मूर्ती के दोनों और चमर धारी यक्ष है ! मूर्ती के पृष्ठ भाग में विशाल प्रभा मंडल है !<br />
इस गुफा के पीछे एक और गुफा है जो लाल पत्थरों से ढंक दी गयी है ! जबकि दूसरी गुफा में सिंह पीठ पर भगवान् पार्श्वनाथ खड़े हुए हैं ! गतिशील लेकिन खड़ा चक्र है ! मूर्ती के पार्श्व में सात फनो वाली नागावली है !<br />
<br />
इस गिरी की मूर्तियां दर्शनीय हैं ! प्राकृतिक गुफा में उत्कीर्ण मूर्तियां पर्यटकों के लिए आश्चर्य के साथ गहन श्रद्धा और आस्था का भाव उत्पन्न करती हैं<br />
<b><br /></b>
<b><br /></b>
<b> भाकुलबाबा </b><br />
<b><br /></b>
नागोद तहसील के जसो गावं के वन क्षेत्र में स्थापित है शिव का मंदिर ! यहां एक गुफा है ,, जहां जाना दुरूह है ! संभवतः यह मंदिर भी उन्ही शिव आराधकों ने बनवाया है , जिन्होंने नाचना में चौमुखनाथ का मंदिर बनवाया है ! यह गुप्त कालीन है और सम्बहव्तः चौथी सदी का है !<br />
<b><br /></b>
<br />
<b><br /></b>
<b> भरजुना का दुर्गा मंदिर </b><br />
<b>और भटनवारा का देवी मंदिर </b><br />
<b><br /></b>
<b> इसकी जानकारी ज्यादा नहीं है ! शूटिंग के समय साधारण ढंग से शूट करलें इसे मुख्य कमेंट्री में दिखासा दें !</b><br />
<b> धारकुंडी आश्रम </b><br />
<b><br /></b> धन वैभव , से विरक्त हो कर जैम नौशी शान्ति की तलाश में , राजप्रासादों को छोड़ कर वन में आता है तो , पर्वत और कंदराएँ ही उसे आश्रय देती हैं , और आध्ययात्म की और उन्मुख करती हैं ! धार कुंडी , सतना के बिरसिंगपुर के निकट , एक संत द्वारा स्थापित किया गया आश्रम है जहां आने पर मन को ना सिर्फ शान्ति मिलती है , बल्कि रमणीय प्रकृति के दर्शन होते हैं !<br />
यहां संत ,,,,,,,,, का आश्रम है !और एक देवालय भी है ! यह आश्रम स्वावलंबन का पाठ पढ़ाता है ,,क्यूंकि यहां आवश्यकता की चीजें आश्रम में ही उत्पन्न की जाती है ! खेतों से उपज , सब्जियां मिलती है , और बहती हुई जल धारा से विद्युत् शक्ति , जिससे आश्रम प्रकाशित होता है ! आज यहां आयुर्वेद का बड़ा अस्पताल भी बन गया है , जिसमें चारों और बसे ग्रामीण निशुल्क चिकित्सा का लाभ लेते हैं !<br />
सतना का यह धारकुंडी आश्रम लोगों की आस्था का केंद्र है !<br />
<b> गिद्ध कूट </b><br />
<br />
<br />
प्राकृतिक स्वच्छता के संरक्षक अगर कोई जीव हैं , तो वे हैं गिद्ध ! गिद्ध पूरी तत्रह प्रकृति पर निर्भर हैं और प्रदूषित मांस नहीं खाते हैं , इसलिए , निरंतर बढ़ते प्रदुषण के कारण यह प्रजाति अब समाप्त होने की कगार पर है !<br />
सतना से अमरपाटन हो कर , रामनगर जाते समय मार्ग में पड़ता है गिद्ध कूट ! यह एक पर्वत है , जिस पर बहु संख्या में गिद्ध आज भी निवास कर रहे हैं ! कहते हैं की यहां , हनुमान जी को , लंका में बैठी , सीता जी का पता जिस सम्पाती गिद्ध ने दिया था , यह रामायण काल के बलिष्ठ गिद्ध , बालयकाल की ,सम्पाती की निवास भूमि थी ! (अपनी डॉक्यूमेंट्री लगा दें )<br />
<b><br /></b>
<b> नागोद का किला</b><br />
<b><br /></b>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px;">1478 में, राजा भोजराज जूदेव ने उचेहराकल्प (वर्तमान में उचेहरा शहर) की स्थापना की थी जिसे उन्होंने तेली राजाओं से नारो के किले पर कब्जा कर प्राप्त की थी। 1720 में रियासत को अपनी नई राजधानी के नाम पर नागौद नाम दिया गया। 1807 में नागौद, पन्ना रियासत </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px;"> के अन्तर्गत आता था और उस रियासत को दिए गए सनद में शामिल था। हालांकि, 1809 में, शिवराज सिंह को उनके क्षेत्र में एक अलग सनद द्वारा मान्यता प्राप्ति की पुष्टि हुई थी। नागौद रियासत, 1820 में बेसिन की संधि के बाद एक ब्रिटिश संरक्षक बन गया। राजा बलभद्र सिंह को अपने भाई की हत्या के लिए 1831 में पदच्युत कर दिया गया था। फिजुलखर्ची और वेबन्दोबस्ती के कारण में रियासत पर बहुत कर्ज हो गया और 1844 में ब्रिटिश प्रशासन ने आर्थिक कुप्रबंधन के कारण प्रशासन को अपने हाथ में ले लिया। नागौद के शासक १८६७ के विद्रोह </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px;"> के दौरान अंग्रेजों के वफादार बने रहे फलस्वरूप उन्हें धनवाल की परगना दे दी गई। 1862 में राजा को गोद लेने की अनुमति देने वाले एक सनद प्रदान किया गया और 1865 में वहाँ का शासन पुनः राजा को दे दिया गया। नागौद रियासत 1871 से 1931 तक बघेलखण्ड एजेंसी का एक हिस्सा रहा, फिर इसे अन्य छोटे राज्यों के साथ बुंदेलखंड एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया। नागौद के अंतिम राजा, एच.एच. श्रीमंत महेंद्रसिंह ने 1 जनवरी 1950 को भारतीय राज्य में अपने रियासत के विलय पर हस्ताक्षर किए।</span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px;"> नागोद एक रियासत के रूप में माना गया है , जिसका मूल उंचेहरा है ! उंचेहरा और नागोद दोनों जगह किले हैं ! यह किले यद्यपि सुदृढ़ स्थिति में नहीं हैं , किन्तु दर्शनीय हैं ! यहां के वर्तमान राजा नगींद्र सिंह , मध्यप्रदेश के गृहमंत्री रह चुके हैं ! </span><br />
<b><br /></b>
<b> </b><br />
<b><br /></b>
<b><br /></b>
<b> कालिंजर का अजेय दुर्ग </b><br />
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
प्राचीन काल में यह दुर्ग जे जाक भुक्ति साम्राज्य के अधीन था। बाद में यह १०वीं शताब्दी तक चंदेला राजपूतों के अधीन , और फिर रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी , , कुतुबुद्दीन ऐबक शरशाह सूरी और हुमायूं आदि ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। कालिंजर विजय अभियान में ही तोप के गोले से शेरशाह की मृत्यु हो गई थी। मुगल शासनकाल में बादशाह अकबर ने इसपर अधिकार किया।</div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
बाद में यह राजा छतरसाल के हाथों में आ गया और अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो गुप्तवंश के तीसरी से पांचवी शताब्दी तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ शिल्प कला के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। </div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
कालिंजर शब्द (कालंजर) प्राचीन पौराणिक हिन्दू ग्रंथों में उल्लेख तो पाता है, किन्तु इस किले का सही सही उद्गम स्रोत अभी अज्ञात ही है। जनश्रुतियों के अनुसार इसकी स्थापना चंदेल वंश के संस्थापक चंद्र वर्मा ने की थी, हालांकि कुछ इतिहासवेत्ताओं का यह भी मानना है कि इसकी स्थापना केदारवर्मन द्बारा करवायी गई थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार औरंगजेब ने इसके कुछ द्वारों का निर्माण कराया था। हिन्दू पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार यह स्थान सतयुग में कीर्तिनगर, त्रेता युग में मध्यगढ़, द्वापर युग में सिंहलगढ़ और कलियुग में कालिंजर के नाम से विख्यात रहा है! <span style="line-height: 22.4px;">जिस पहाड़ी पर कालिंजर दुर्ग निर्मित है, यह दक्षिण पूर्वी</span><span style="line-height: 22.4px;"> विंध्याचल </span><span style="line-height: 22.4px;"> </span><span style="line-height: 22.4px;">श्रेणी का भाग है।! </span><span style="line-height: 22.4px;">पर्वत का यह भाग १,१५० मी॰ चौड़ा है व ६-८ कि॰मी॰ में फ़ैला हुआ है। इसके पूर्वी ओर एक अन्य छोटी किन्तु ऊंचाई में इसी के बराबर पहाड़ी है, जो कालिंजरी कहलाती है। कालिंजर पर्वत की भूमितल से ऊंचाई लगभग ६० मी॰ है। यहाँ विंध्याचल पर्वतमाला के अन्य पर्वत जैसे मईफ़ा पर्वत, फ़तेहगंज पर्वत, पाथर कछार पर्वत, रसिन पर्वत, बृहस्पति कुण्ड पर्वत, आदि के बीच बना हुआ है। ये पर्वत बड़ी चट्टानों से युक्त हैं व यहाँ ढेरों प्रकार के वृक्ष एवं झाड़ियां पाई जाती हैं, जिनमें से कई औषधीय भी हैं।</span><span style="line-height: 22.4px;">इस दुर्ग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ढेरों युद्धों एवं आक्रमणों से भरी पड़ी है। विभिन्न राजवंशों के हिन्दू राजाओं तथा मुस्लिम शासकों द्वारा इस दुर्ग पर वर्चस्व प्राप्त करने हेतु बड़े-बड़े आक्रमण हुए हैं, एवं इसी कारण से यह दुर्ग एक शासक से दूसरे के हाथों में चलता चला गया। किन्तु केवल चन्देल शासकों के अलावा,</span><span class="reference plainlinksneverexpand" style="background-attachment: initial !important; background-clip: initial !important; background-image: none !important; background-origin: initial !important; background-position: initial !important; background-repeat: initial !important; background-size: initial !important; line-height: 22.4px; padding: 0px !important; white-space: nowrap;"><sup style="line-height: 1;">:</sup> </span><span style="line-height: 22.4px;">कोई भी राजा इस पर लम्बा शासन नहीं कर पाया।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
इस दुर्ग में सात द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है। दुर्ग का प्रथम द्वार सिंह द्वार कहलाता है, और यही मुख्य द्वार भी है। इसके उपरान्त द्वितीय द्वार गणेश द्वार कहलाता है, जिसके बाद तृतीय दरवाजा चंडी द्वार है। चौथे द्वार को स्वर्गारोहण द्वार या बुद्धगढ़ द्वार भी कहते हैं। इसके पास एक जलाशय है जो भैरवकुण्ड या गंधी कुण्ड कहलाता है। किले का पाचवाँ द्वार बहुत कलात्मक बना है तथा इसका नाम हनुमान द्वार है। यहाँ कलात्मक शिल्पकारी, मूर्तियाँ व चंदेल शासकों से सम्बन्धित शिलालेख मिलते हैं। इन लेखों में मुख्यतः कीर्तिवर्मन तथा मदन वर्मन का नाम मिलता है। यहाँ मातृ-पितृ भक्त, श्रवणकुमार का चित्र भी दिखाई देता है। छठा द्वार लाल द्वार कहलाता है जिसके पश्चिम में हम्मीर कुण्ड स्थित है। चंदेल शासकों का कला-प्रेम व प्रतिभा यहाँ की दो मूर्तियों से साफ़ झलकती है। सातवाँ व अंतिम द्वार नेमि द्वार है। इसे महादेव द्वार भी कहते हैं। इनके अलावा मुगल बादशाह आलमगीर औरंगजेब द्वारा निर्मित आलमगीर दरवाजा, चौबुरजी दरवाजा, बुद्ध भद्र दरवाजा, और बारा दरवाजा नामक अन्य द्वार भी हैं।<span style="line-height: 22.4px;"> यहीं एक कुण्ड भी है जो सीताकुण्ड कहलाता है। किले में स्थित दो तालों, बुड्ढा एवं बुड्ढी ताल के जल को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है जिसमें स्नान कर स्वास्थ्य लाभ उठाया जाता था। इनका जल चर्म रोगों के लिए लाभदायक बताया जाता था व मान्यता है कि इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<span style="line-height: 22.4px;">यहाँ कई त्रिमूर्ति भी बनायी गई हैं, जिनमें ब्रम्हा , विष्णु , </span><span style="line-height: 22.4px;"> एवं शिव </span><span style="line-height: 22.4px;"> के चेहरे बने हैं। कुछ ही दूरी पर शेष शायी विष्णु </span><span style="line-height: 22.4px;"> की क्षीरसागर </span><span style="line-height: 22.4px;"> स्थित विशाल मूर्ति बनी है। इनके अलावा भगवान शिव , कामदेव </span><span style="line-height: 22.4px;">, शचि (इन्द्राणी), आदि की मूर्तियां भी बनी हैं। इनके अलावा यहाँ की मूर्तियां विभिन्न जातियों और धर्मों से भी प्रभावित हैं। यहाँ स्पष्ट हो जाता है कि चन्देल संस्कृति में किसी एक क्षेत्र विशेष का ही योगदान नहीं है। चन्देल वंश से पूर्ववर्ती बरगुजर शासक शैव मत के आवलम्बी थे। इसीलिये अधिकांश पाषाण शिल्प व मूर्तियां शिव, पार्वती, नंदी </span><span style="line-height: 22.4px;"> एवं शिवलिंग की ही हैं। शिव की बहुत सी मूर्तियां नृत्य करते हुए में ताण्डव मुद्रा में, या फिर माता पार्वती के संग दिखायी गई हैं। इनके अलावा अन्य आकर्षणों में वेंकट बिहारी मन्दिर, दस लाख तीर्थों का फल देने वाला सरोवर, सीता-कुण्ड, पाताल गंगा, आदि हैं। </span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<span style="line-height: 22.4px;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<span style="line-height: 22.4px;">कालिंजर दुर्ग में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा </span><span style="line-height: 22.4px;"> के अवसर पर पाँच दिवसीय कटकी मेला </span><span style="line-height: 22.4px;"> (जिसे कतिकी मेला भी कहते हैं) लगता है। इसमें हजारों श्रद्धालुओं कि भीड़ उमड़ती है।</span><span style="line-height: 22.4px;"> साक्ष्यों के अनुसार यह मेला चंदेल शासक परिमर्दिदेव (११६५-१२०२ ई॰) के समय आरम्भ हुआ था, जो आज तक लगता आ रहा है।</span><span style="line-height: 22.4px;"> इस कालिंजर महोत्सव का उल्लेख सर्वप्रथम परिमर्दिदेव के मंत्री एवं नाटककार वत्सराज रचित नाटक </span><i style="line-height: 22.4px;">रूपक षटकम</i><span style="line-height: 22.4px;"> में मिलता है। उनके शासनकाल में हर वर्ष मंत्री वत्सराज के दो नाटकों का मंचन इसी महोत्सव के अवसर पर किया जाता था। कालांतर में मदनवर्मन के समय एक पद्मावती नामक नर्तकी के नृत्य कार्यक्रमों का उल्लेख भी कालिंजर के इतिहास में मिलता है। उसका नृत्य उस समय महोत्सव का मुख्य आकर्षण हुआ करता था। एक सहस्र वर्ष से यह परंपरा आज भी कतकी मेले के रूप चलती चली आ रही है, जिसमें विभिन्न अंचलों के लाखों लोग यहाँ आकर विभिन्न सरोवरों में स्नान कर नीलकंठेश्वर महादेव के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। तीर्थ-पर्यटक दुर्ग के ऊपर एवं नीचे लगे मेले में खरीददारी आदि भी करते हैं। इसके अलावा यहाँ ढेरों तीर्थयात्री तीन दिन का कल्पवास भी करते हैं। इस भीड़ के उत्साह के आगे दुर्ग की अच्छी चढ़ाई भी कम होती प्रतीत होती है। यहाँ ऊपर पहाड़ के बीचों-बीच गुफानुमा तीन खंड का नलकुंठ है जो सरग्वाह के नाम से प्रसिद्ध है।</span><span style="line-height: 22.4px;"> वहां भी श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है।</span></div>
<h3 style="background: none rgb(255, 255, 255); border-bottom-width: 0px; font-family: sans-serif; font-size: 1.2em; line-height: 1.6; margin: 0.3em 0px 0px; overflow: hidden; padding-bottom: 0px; padding-top: 0.5em;">
<span style="font-weight: normal;"><span id=".E0.A4.B8.E0.A5.80.E0.A4.A4.E0.A4.BE_.E0.A4.B8.E0.A5.87.E0.A4.9C_.E0.A4.B5_.E0.A4.95.E0.A5.81.E0.A4.A3.E0.A5.8D.E0.A4.A1"></span> </span><span style="font-weight: normal;"><span style="font-weight: normal;">विंध्य भूमि के इस ऐतिहासिक दुर्ग को देखे बगैर विंध्याचल पर्वत की महत्ता को आंकना कठिन है , इसलिए राजवंशों के उत्थान पतन की गाथाएं हृदय में संजोये , इस दुर्गम दुर्ग को नमन करना आवश्यक है ! </span></span></h3>
<div>
<span style="line-height: 22.4px;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: sans-serif; font-size: 14px; line-height: 22.4px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.5em;">
<span style="line-height: 22.4px;"></span><br />
<b><br /></b>
<b> </b></div>
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<b> बिरसिंगपुर के गैबी नाथ</b><br />
<br />
सतना से करीब तीस किलोमीटर दूर स्थित है , बिरसिंगपुर का अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर गैबी नाथ मंदिर ! यहां शिव और पार्वती के अलग अलग मंदिर हैं जिनके बीच स्थापित है एक तालाब ! शिव मंदिर से पार्वती के मंदिर तक लम्बी बंधन की कतार है , जो उन्हें दंपत्ति के रूप में दिखाती है ! कहते हैं की यवनो के आक्रमण के समय , इस शिव लिंग पर किसी एवं ने तलवार चलाई तो इससे दूध की धरा बह निकली थी ! यह देख यवन भी इसे नमन कर वापिस लौट गए थे ! आज इस शिव लिंग का अभिषेक यहां के ग्रामीण आस्था के साथ करते हैं , और लोगों की मनोकामना यहां पूरी होती ही है !<br />
शिवरात्रि में यहां बहुत बड़ा मेला लगता है ! इस मेले में दूर दूर से ग्रामीण आते हैं ,<br />
यह इस स्थान का सिद्ध मंदिर है !<br />
सतना की भूमि पर यह सिद्ध मंदिर माना गया है जिसके दर्शन से पुण्य लाभ होता है !<br />
<br />
<b><br /></b>
<b> माधव गढ़ का किला</b><br />
<br />
<br />
रीवा के महाराजा विश्वनाथ प्रताप प्रताप सिंह , प्रकृति प्रेमी और विद्वान थे , उन्होंने अपने राज्य के अंतर्गत , तमसा नदी के किनारे यह गढ़ी बनवाई और उसे अपने छोटे भाई लक्ष्मण सिंह को सौंप दी ! लक्ष्मण सिंह ने बाद में इस गढ़ी का विकास किया , और यहां अपने महल के साथ , एक छोटा सा दरबार हाल , और तमसा नदी के सौंदर्य को निहारने के लिए किले की दीवार पर एक छायादार बैठक बनवाई !<br />
बल खाती , तमसा नदी यहां पथरीले क्षेत्र बहती है , इसलिए नदी की धार उथली , और चौड़ी हो कर , इसकी रमणीयता बढ़ा देती है ! गढ़ी से जुड़ा माधव गढ़ एक प्राचीन गावं है ! आज़ादी के बाद यह विकसित हुआ है , किन्तु मात्र दस किलोमीटर दूर सतना नगर इसकी सभी जरूरतें पूरी क्र देता है , इसलिए , यहां बाज़ार विकसित नहीं हुआ !<br />
<br />
( अपनी डाक्यूमेंट्री लगा दें )<br />
<br />
किले और गढ़ियों में विशेष अंतर् यह है की , गढ़ियाँ सामंतों के निवास हेतु बनती थीं जबकि किले युद्ध से बचाव करने के लिए , चारों और के परकोटे सहित तैयार किये जाते थे ! कोठी की गढ़ी , सोहावल की गढ़ी , सज्जनपुर की गढ़ी , जैसी कई गढ़ियाँ इस क्षेत्र में मौजूद है , जो बघेल राज की सुदृढ़ता का प्रतीक हैं ! इसके अतिरिक्त यहां मठ भी देखने को मिलते हैं जो सन्यासियों के मठ कहलाते हैं ! किसी युग में सन्यासी भी योद्धा होते थे , और वक्त पड़ने पर किसी भी राजा की सहायता भी करते थे ! यह स्वतंत्र , घुम्मकड़ , स्वावलम्बी फौज थी जो अखाड़े के रूप में घूमती रहती थी !<br />
धर्म के सबसे बड़े मेले , कुम्भ में , आने वाले अखाड़े इसी परम्परा का प्रतीक हैं ! !<br />
<br />
<br />
<br />
<b> रामपुर बघेलान</b><br />
<b><br /></b>
<b> सोलंकी राजपूत , बघेलों की वृहत बस्ती है , रामपुर बघेलान ! यहां भी एक गढ़ी है ! आज यह एक विकसित कस्बा है जहां शिक्षा , संस्कृति , के अलावा , एक समर्द्ध बाजार भी है ! </b><br />
<b> इस क्षेत्र में कभी पशुपालन को बहुत महत्त्व दिया जाता था , इस लिए यहाँ दूध और खोवे के अत्यंत स्वादिष्ट मिष्ठान बनते हैं , जिनमें दूध से बने एक मिस्ठान ,,," खुर्चन " को बहुत पसंद किया जाता है ! खुर्चन , दूध की मलाई की परतों से तैयार होता है ! </b><br />
<br />
<br />
स्थान की शूटिंग करें अगर उचित समझें तो लिख दिया जाएगा !<br />
<br />
<b> रामवन </b><br />
<b><br /></b> सतना रीवा मार्ग पर बसे सज्जनपुर गावं के निकट बना है ' रामवन ' जिसका तुलसी संग्रहालय , दर्शनीय है ! यहां मूर्तियों के संग्रहालय के अलावा , हस्तलिखित प्राचीन रामायण भी उपलब्ध है ! यहां एक राम का मंदिर है , और उसके पीछे उपवन है ! उपवन में हनुमान जी के विराट स्वरूप को दर्शाने वाली ऊंची मूर्ती प्रतिष्ठापित है ! इस हनुमान परिसर में ,, राम की पूरी कथा , एक बड़ी गैलरी के रूप में , मूर्तियों द्वारा उत्कीर्ण है ! आस्था , और मानवीय पवित्र संबंधों को भूलती , नयी पीढ़ी को अपने गौरवमयी संस्कृति से परिचय करवाने हेतु बना यह हनुमान मंदिर सार्थक है !<br />
हनुमान परिसर के सामने ही बना है , शिव परिवार का मनोरम दृश्य , जो कैलाश पर विराजे शिव के साथ , गणेश , कार्तिकेय , और नंदी के दर्शन भी करवाता है ! यहां भी चारों और एक दीर्धा है , विभिन्न देवी देवताओं की !<br />
रामवन में , एक बहुत सुन्दर भवन है , जहां सदैव , धार्मिक संवादों के आयोजन होते रहते हैं !<br />
पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए , राम वन एक उपवन बन गया है , जहां अब वाटर पार्क के अलावा , बच्चों के स्वतन्त्र खेलने के लिए कई साधन उपलब्ध हैं ! रामवन परिसर में , अब एक विविध व्यंजनों युक्त , केंटीन भी है , जहां जा कर पर्यटक , दर्शनों के पश्चात , भोजन भी प्राप्त कर सकता है !<br />
यहां बसंत पंचमी के दिन , ग्रामीणों का बड़ा मेला लगता है !<br />
<br />
सतना जिले का राम वन , आज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है , जहां ज्ञान है , आध्यात्म है , दर्शन है , और उपवन का आकर्षण है ! सतना आने पर यहां जरूर आना चाहिए !<br />
<br />
<b> प्रिज्म सीमेंट , जे पी सीमेंट खजुराहो सीमेंट संयंत्र</b><br />
<br />
सीमनेट संयंत्र हैं ! इनकी अगर शूटिंग कर लें तो तथ्य लिख देंगें !<br />
सतना की भूमि , कई धरोहरों से युक्त भूमि है , जिसे देखने के लिए वृहत भ्रमण और पर्यटन की जरूरत है ! तथापि , अगर आप एक बार इस भूमि पर पग रखेंगें , तो बिना सब कुछ देखे , लौटने का मन नहीं होगा !<br />
एक बार मन बनाइये ,,, और यहां आकर प्रकृति , और धरोहरों के बीच खो जाइये !<br />
<br />
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-17314448531363775032019-02-07T07:19:00.001-08:002019-02-07T20:59:43.960-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: large;"> विंध्य की विरासत </span></b><br />
<b><span style="font-size: large;"> रीवा रियासत </span></b><br />
<br />
<b>( भाग दो )</b><br />
<b><br /></b>
रीवा रियासत के अंतर्गत , महत्वपूर्ण स्थान है , शहडोल जिले में , मेकल पर्वत पर स्थित आम्रकूट यानी आज का अमरकंटक !<br />
इस स्थान से दो महत्वपूर्ण नदियाँ निकली हैं , जिनका उल्लेख पुराणों में भी है ! इस स्थान को आम्रकूट इस लिए कहा गया क्योंकि यह पर्वत शिखर कभी , आम के पेड़ों से आच्छादित था !आम की पत्ती शुभ कार्यों का ,, उल्लास का , , प्रतीक है ! किसी भी देवता के पूजन हेतु , रखे गए कलश में , आम्र पत्र अनिवार्य अंग है ! आदि काल से किसी के स्वागत हेतु बनाये गए बंदनवार में आम की पत्तियों का उपयोग होता रहा है !<br />
मेकल पर्वत का शिखर , अद्भुत है , यहां आकाश से गिरी कोई भी बूँद , किसी भी दिशा की और जा सकती है , इस लिए विभिन्न नदियों का प्रवाह विभिन्न दिशाओं की और उन्मुख हुआ ! नर्मदा जहां , पश्चिम दिशा की और गयी , वहीं सोन पूर्व की और , ! एक अन्य नदी , महा नदी भी यहां से निकल कर दक्षिण दिशा की और बह निकलती है !<br />
मेकल पर्वत पर कंधा टिकाये , लेटा , विंध्याचल पर्वत , अपनी पर्वत श्रेणियों को किसी वेणी की तरह फैलाये , उत्तर पूर्व दिशा की और निहार रहा है ! वह अगस्त्य ऋषि के आगमन की दिशा में शीश झुकाये , उनका आदेश पालन करता हुआ जस का तस लेटा , है ! शहडोल जिला इसी पर्वत श्रेणियों की वेणियों में फ़ैली विंध्य भूमि का , दक्षिण दिशा का अंतिम द्वार है !<br />
अमरकंटक ,, नर्मदा और सोन के उद्गमस्थान होने के कारण आज पर्यटन का केंद्र बन गया है ! नर्मदा की उतपत्ति गोमुख से है ! वह वहां से निकल कर एक कुंड में आती है , जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं ! यहां से एक पतली धारा बन कर वह पश्चिम की और बहती है , और एक शिखर से फिसलती हुई नीचे उत्तर जाती है ! <br />
जबकि सोनमुडा स्थान से निकलती है सोन नदी ! यह पूर्व दिशा की और चल कर , आगे ऊँचे शिखर से सीधी नीचे की और छलांग लगा देती है ! नीचे गिरते ही यह विदीर्ण हो कर भूमिगत हो जाती है ! भूमि के नीचे नीची , दलदली क्षेत्र में , बिखरे रूप में चल कर , आगी जा कर यह पुनः एक धारा के रूप में प्रकट होती है ! वहां से पहले यह सीधे उत्तर की और मुख कर करके तीव्र गामी होती है , और जब रास्ते में उसे मिलती है जौहला नदी तो , जिसका पानी समेट कर वह , एक बड़ी नदी का रूप धारण कर लेती है !आगे कैमोर पर्वत का सहारा ले कर वह बाणसागर बाँध में फ़ैल जाती है , ! बाण सागर बाँध से आगे वह पूर्व दिशा का रुख ले लेती है और सीधी जिले में बहती हुई ,, बिहार की और चली जाती है !<br />
सोनघाटी के तट पर बना गहन जंगल ही विंध्याटवी कहलाता है !<br />
अमरकंटक , नर्मदा के उद्गम होने के कारण आज संत महर्षियों का निवास बन चुका है ! यहां कई आश्रम बन गए हैं , और पर्यटकों के ठहरने के लिए पूर्ण सुविधायुक्त होटल भी हैं !<br />
<br />
*******<br />
<br />
शहडोल नगर , जन जातियों का नगर था ! १६ वीं सदी में , इसे सुहागपुर के नाम से एक छोटे से गावं के रूप में जाना जाता था ! उस काल में यहां भर राजवंशों का राज था ! बाद में बघेली राजाओं ने यह क्षेत्र जीत कर यहां तक अपने राज का विस्तार किया ! गुप्त काल से लेकर , बघेलों के समय तक , धीरे धीरे यहाँ अन्य जातियां भी आईं , और यह क्षेत्र द्रविड़ और आर्य संस्कृति का मिला जुला रूप बन गया ! कुछ लोगों की मान्यता है की यह , महाभारत काल का विराट नगर था , जहां पांडवों ने अज्ञातवास का अंतिम वर्ष व्यतीत किया था ! <br />
तथापि यह क्षेत्र , आदिवासी , जनजाति बाहुल्य क्षेत्र ही है ! यहां के मूल निवासियों में कॉल , बैगा , भारिया , अगरिया , कमर , पाँव , गोंड जातियां प्रमुख हैं , जिनका भोजन बाजरा , मक्का , धान , कोदो है ! इनकी संस्कृति में महुआ , मुख्य फल है , जिससे वे शराब बनाते हैं ! शिकार इनका शौक है , और जंगली मुर्गा , इनका पालतू जानवर !<br />
यहां आकर बसी अन्य अनुसूचित , और पिछड़ी जातियों की संस्कृति भी , समृद्ध , सवर्ण जातियों से अलग है ! , कोरी , कुम्हार , बसोर , के साथ , अहीर गडरिया , जैसे लोग भी यहां उत्सवों में अपनी संस्कृति अनुसार नृत्य गान करते हैं !<br />
जन जातियों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक सोच में , मनोरंजन की प्रमुखता है ! सामूहिक नृत्य इन की परम्परा है एवं विशेष वेश भूषा , इनकी धरोहर ! बदन पर गोदना इन का परम्परा गत आभूषण है ! तथापि चांदी के कई विभिन्न आभूषण ये विभिन्न पर्वों पर धारण करते हैं !कर्मा, शैला , रीना , सज नई , ददरिया , टप्पा , इनके लोकगीत है !<br />
शैला नृत्य एक सामूहिक नृत्य है ! यह पुरुषों का है ! मोर पंख , कलगी , के साथ घुँघुरु बाँध कर यह नृत्य किया जाता है ! मादल और ढोलक की थाप पर , चांदनी रात में , अर्धवृत बना कर , मोरपंखी कलगी सर में लगा कर , कौड़ियों के बाजूबंदों से सजे स्त्री पुरुष , मग्न हो कर इस तरह नाचते हैं की रात कब बीत गयी पता ही नहीं चलता !<br />
कोलदहा नृत्य में स्त्रियां लहंगा , गलता , अथवा साधारण परिधान में ही मस्ती के साथ नृत्य करती हैं ! अहीरों का नृत्य बीछी है ! इसमें नगड़िया बजाई जाते है , और उसकी लय पर नृत्य ! केहरापोता नृत्य में अंग संचालन का कमाल है ! मुख पर घूंघट होता है , और अँगुलियों की कलात्मक , संचालन मन मोह लेता है ! विभिन्न जातियों की अपनी अलग लोक परम्परा है ताड़नानुसार , कलार , कोहार , तेली , काछी , कहार, धोबी कोरी , और बारी जातियां अलग अलग शैली में नृत्य करते हैं और इनके लोकगीत भी अलग अलग हैं !<br />
जनजातियों के देवी देवता भी अलग हैं ! घमसान , बाघसु , कोलिया , भैंसासुर , बदकादेव , दूल्हादेव , मस्तानबाबा , घटबैगा , लगुरा , ठाकुरदेव , आदि कई देव इनके लिए आराधान और पूजा का विषय हैं ! विपदाओं , और रोगों के अनुसार महामाई , फूलमती , घटपरिया , दुरसीन , हल्की , देवियों के नाम भी इन के बीच प्रचिलित होते हैं ! <br />
पराशक्तियों में आस्था रखने वाली जन जातियां शिव एवं शक्ति को आदि देव मानती हैं !<br />
गोंड जाती निराली और भोली होती है , यह जंगलों में एकांत पहाड़ियों पर बास्ते हैं ! इनकी स्त्रियां जड़ीबूटी बेचतीं हैं ! ये रक्षार्थ कुत्ता साथ में पालते हैं , जो इनका गण चिन्ह भी है !<br />
विकसित क्षत्र की धरोहरें , भले ही पर्यटकों को अधिक लुभाती हैं , किन्तु विंध्य भूमि पर बसी जन जातियों की संस्कृति उससे भी ज्यादा लुभावनी है !<br />
<br />
***********<br />
वन्य जीवन के दर्शन के लिए आज , सरकार ने वन्य अभ्यारण बना दिए हैं ! इसमें सीधी जिले का बगदरा , जहां कभी महराजा मार्तण्ड सिंह ने सफ़ेद शेर के शिशु को पकड़ा था , विशिष्ट है ! यहां काला हिरण , तेंदुआ , चिंकारा नीलगाय जैसे वन्य जीव , अभ्यारण की सैर करते सहज ही दिख जाते हैं ! पर्यटकों के लिए यह अभ्यारण एक आकर्षण है , जहां अब ठहरने के लिए सर्व सुविधायुक्त होटल बना दिए गए हैं !<br />
शहडोल जिले के पनपता जंगल का अभ्यारण भी आज चर्चित हो चुका है ! यहाँ तेंदुआ , चीतल , चौसिंगा , भालू , साम्भर नीलगायें सहज ही विचरण करते हुए मिल जाती हैं ! इसी प्रकार सीधी जिले का संजय वन्य अभ्यारण भी अब राष्ट्रीय स्टार पर प्रसिद्धि पा चुका है ! सीधी जिले में ही गहरे सोन नदी के पानी में घड़ियाल पल रहे हैं , ! इन योजनाओं के माध्यम से प्रकृति को संतुलित करने का प्रयास है !<br />
बघेलों की राजधानी , बांधवगढ़ में जो वन्य अभ्यारण बना है , वह आज विश्व प्रसिद्धि पा रहा है ! ऊंची पहाड़ी पर बने बांधवगढ़ किले के चारों और की भूमि पर आज कई बाघ विचरण कर रहे हैं ! इसमें जंगली भेंसे , चीतल , नीलगाय सहज ही दिखती है ! बांधवगढ़ में पर्यटकों का मेला जैसा लगता है ! उनकी सुख सुविधा के लिए सभी सुविधायुक्त कई होटल , ताला नामक गावं में उपलब्ध है !<br />
<br />
**********<br />
बघेल राजवंश द्वारा बसाया गया , गोविंदगढ़ किला , भी आज पर्यटकों को लुभा रहा है ! इस किले के साथ जुड़ा एक भव्य तालाब नौकायन के लिए उपयुक्त स्थान है ! किले के अंदर बना , कठ बंगला , एक दर्शनीय स्थान है ! इस कथ बंगले में , यहां के स्थानीय फिल्मकारों द्वारा आल्हा उदल के जीवन व्रत पर बनाई गयी फिल्म रक्त चन्दन के दृश्य , बहुत सुन्दर बने दीखते हैं ! फिल्म कारों के लिए और पिकनिक के लिए यह चित्ताकर्षक स्थान है<br />
**********<br />
कलचुरियों के काल में शिव का एक भव्य मंदिर , रीवा रियासत के गोर्गी गावं में बनाया गया था ! यह स्थान भी आज पर्यटन स्थल बन गया है ! कलचुरी काल में मूर्तियों का काम बड़े भव्य स्टार पर हुआ ! कहते हैं की गोर्गी का शिव मंदिर बहुत विशाल था , और उसके मेहराब , और द्वार , काफी ऊँचे थे ! इस स्थान की शिव पार्वती की मूर्ती आज रीवा नफगर के पद्मधर पार्क में राखी हुई है , जबकि एक तोरण दार के अवशेष , रीवा के पुतरिया दरवाजे पर लगा दिए गए हैं !<br />
इतिहास और संस्कृति की दृष्टि से यह स्थान बहुत महत्वपूर्ण और दर्शनीय है !<br />
**********,<br />
सोन नदी के किनारे , फैला गहन वन , विंध्याटवी के नाम से जाना जाता है ! सोन के किनारे पर , संस्कृति और साहित्य के कई ऐतिहासिक स्थल , आज यात्रियों को शोध कार्य के लिए पुकारते हैं ! सीधी जिले में , भवरसेन नामक स्थान पर सोन के किनारे , कभी , बाणभट्ट ने आश्रम बना कर , अद्भुत कथा काव्य की रचना की थी , कादम्बरी नामक यह रचना , कई दृश्य आँखों के सामने चित्रित कर देती है , जिसमें , कई जन्मों में नायक नायिका बार बार मिलते है !<br />
बाणभट्ट हर्षवर्धन के काल में उनके राज दरबार के कवी थे ! हर्षचरित नामक ग्रन्थ की रचना भी उन्ही के द्वारा की गयी ! उनसे अनबन होने पर वे इस सोन नदी के तट पर आये , और उन्होंने यहीं आश्रम बना कर , प्राकृतिक सौन्दर्य आत्मसात करते हुए , अद्भुत कल्पनाशीलता के साथ , अलंकार और उपमाओं से युक्त कथा ,,,कादम्बरी लिखी ! विशेष बात यह है की , यह रचना पिता पुत्र की कलम से निरंतरता बनाते हुए लिखी गयी जिसमें प्रवाह में कोई अंतर् नहीं आया !<br />
वन्य जीवन , और बाणभट्ट की कर्म भूमि निहारने पर्यटकों को यहां भी जरूर आना चाहिए !<br />
**********<br />
<br />
भवरसेन जो कभी भ्रमर शैल के नाम से उच्चारित होता था , के निकट ही , है सोन नदी के तट पर , बना चन्दरेह मंदिर !यह एक सुन्दर शिवालय है जो स्थापत्य में अनूठा है ! कलचुरी काल में प्रशांत शिव नामक एक तपस्वी और विद्वान , महर्षि हुए , जिनके शिष्य , थे प्रबोध शिव ! प्रबोध शिव ने जन जातियों को शक्षित करने का प्रयास किया ! वे लोक हितकारी , वास्तुविशारद थे ! वे उत्कृष्ट निर्माता थे और प्रस्तर तुड़वा कर पहाड़ों के मध्य मार्ग बनवाये ! उन्होंने तालाब बनवाये , गहन वनो से रास्ते निकाले !<br />
चाँद रेह का मंदिर उन्ही के काल का है वास्तुकला की दृष्टि से तथा प्रस्तर कला की दृष्टि से दर्शनीय है !<br />
<br />
*************<br />
सोन नदी तट पर ही स्थापित है , सीधी जिलें स्थित , मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम ! यह ऊंचाई पर है क्यूंकि त्रेता ययुग में यहाँ गहन वन था , और वन्य जीवों से से भय होता था ! सोन की बहती धारा , और रामायण काल का आश्रम , मन में धार्मिक अनुभूतियाँ जगा देता है ! चित्रकूट की तरह , यह स्थान भी पवित्र माना जाता है , क्यूंकि भगवान् राम के चरण यहां पड़े थे !<br />
यह पर्यटकों के लिए ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व पूर्ण है !<br />
*********<br />
बांधवगढ़ किला<br />
यह अत्यंत प्राचीन किला है ! इस किले पर कई राजवंशों ने अधिकार जमाया , किन्तु लम्बे समय तक यह किला किसी के पास नहीं टिका !लगभग २७०० फ़ीट ऊंची , पहाड़ी पर बना यहां का दुर्ग सदा अजेय रहा ! यद्यपि इसने कई विभिन्न आक्रमण झेले , किन्तु दुर्गम पहुँच मार्ग के कारण , यह सदा सुरक्षित रहा !इस गढ़ के लिए तीन मील लम्बी घुमाव दार चढ़ाई चढ़नी पड़ती है ! यहां शेषशायी विष्णु प्रतिमा प्रतिस्थापित है जो यह यह बताता है की यह दुर्ग वैष्णव मत के अनुयायियों ने बनवाया होगा !यहां से , मध्यकाल में , सोन घाटी में घुसने वालों पर नजर राखी जाती थी ! सिकंदर लोधी के आक्रमण के समय बघेल राजा ने यहीं शरण ली थी ! गहोरा के दुर्ग से हटने के बाद , बघेलों की राजधानी यहां लम्बे समय तक रही , किन्तु अकबर से अनबन होने पर बघेल अपनी राजधानी यहां से उठा कर रीवा ले गए ! शेर शाह सूरी ने अपनी साथज़ार घुड़सवारों की सेना यहीं टिकाई थी !<br />
बांधवगढ़ में अन्य मूर्तियों के साथ कच्छप , बाराह , नरसिंह , मत्स्य , , राम, कृष्ण ,और हनुमान की अद्भुत मूर्तियां है ! कहते हैं इन मूर्तियों को कलचुरी काल क्ले मंत्री गोलक ने बनवाया था ! १५ वीं सड़ी में यहां हाथियों के क्रय विक्रय हेतु एक बड़ा मेला लगता था !<br />
बांधवगढ़ के नीचे चारों और बहुत बड़ा गहन वन है , जो अब , बांधवगढ़ अभ्यारण के नाम से विख्यात है !<br />
*********<br />
पाली बीरसिंघ पुर<br />
यह क्षेत्र मध्यकाल में , दहाड़ क्षेत्र के नाम से जाना जाता था ! यह क्षेत्र १६ वीं सड़ी के अंत में बघेल राजाओं के आधीन हुआ ! यहां पूर्व मध्यकालीन जैन मंदिर , जैन धर्म की मूर्तियां , भग्नावशेष में उपलब्ध है !<br />
<br />
*******<br />
पुष्पराज गढ़ तहसील<br />
यह भूमि घोर जंगल वाली , विरल संख्यावाली आदिवासियों की बस्तियों की भूमि है ! आज से करोड़ों वर्ष पूर्व यहां समुद्र लहलहाता था ! राजेंद्र ग्राम से २५ किलोमीटर दूर , ुफ्री खुर्द में सागरीय शिलाओं के टुकड़े मिलते हैं ! पुष्पराजगढ़ तहसील के पहाड़ी क्षेत्र में अनेक घात हैं जिसमें होकर , सोहाग पुर की और से , आक्रमण कारी आक्रमण करने आते थी ! यही घात तीर्थ यात्रियों और व्यापारियों के आवागमन के काम आते थे ! वहां मिले पाषाण उपकरण यह सिद्ध करते हैं की आदिकाल से ही जौहला और मुण्डाकोना घाटों की बीच मानव सभ्यता पनपी थी !<br />
**********<br />
रीवा से इलाहाबाद की और जाते हुए , गढ़ के निकट सोहागी घाटे पर , कोठार में बौद्ध कालीन स्तूप मिले हैं ! यह बौद्ध मठ के रूप बौद्ध भिक्षुओं के लिए , धर्मप्रचार हेतु , विश्रामस्थल के रूप में बनाये गए थे ! यहां जल की पर्याप्त व्यवस्था थी ! और बौद्ध भिक्षु यहां रह कर साधना करते थे !<br />
<br />
यहां खुदाई अभी जारी है , जमीन के गर्भ में समाई सभ्यता , और धरोहरों के राज उजागर होना बाकी है !<br />
*********<br />
रीवा के चारों और कई प्रपात है जो दर्शनीय है ! इनमें क्योटी का प्रपात , बहती प्रपात , पुरवा प्रपात , और चचाई प्रपात दर्शनीय हैं ! चचाई में के निकट ही अमलाई , ओरियंटल पेपर मिल है ! बांसों का जंगल होने के कारण यहां कागज़ बनाने के लिए कच्चामाल बहुतायत में उपलब्ध है !<br />
पर्यावरण की शर्त पर हुआ विकास , लोकहित में नहीं माना जा सकता ! पेपर प्लांट से निकलने वाले रसायन , यहां की नदी के जल को प्रदूषित कर रहे हैं जो बहुत चिंतनीय है ! स्थानीय समाज सेवी संस्थाएं और सरकार , उन व्यवस्थाओं के प्रति अब सचेत हो रहीं हैं , जिसके रहते जल प्रदुषण को रोका जा सके !<br />
**************<br />
<br />
सिंचाई और विद्युत् परियोजनाओं के उद्देश्य को ले कर बांधे गए बाँध , भी आधुनिक भारत के तीर्थ होते हैं ! सोन नदी पर बांधा गया , महा कवी बाणभट्ट के नाम का बाणसागर बाँध , , आज पर्यटन का आकर्षण बन रहा है ! बड़े जलाशय में नौका बिहार सम्भव है ! बाँध से निकल कर बहता हुआ जल , नयनाभिराम दृश्य उत्पन्न करता है ! यहां जल विद्युत् उत्पादन का बड़ा केंद्र है , जो तकनीकी , दृष्टि से , इंजीनियरिंग के क्षात्रों के भ्रमण की जगह है !<br />
यहां से निकल कर , बड़ी नहरों के माध्यम से नदी का जल आज , बघेलखण्ड के कई एकड़ भूमि को सींच कर , उन्नति कृषि का साधन बन गया है ! बाणसागर परियोजना देश का अभिनव प्रयोग है ! सोन के जल को रीवा ला कर पहले रीवा से , गोविंदगढ़ मार्ग पर बने मार्ग पर बने एक जल विद्युत् केंद्र से सम्बद्ध किया गया है जहां , १० मेगावाट की विद्युत् का उत्पादन किया जाता है ! इस केंद्र से निकली जल धार पुनः नहर के द्वारा , बिछिया नदी में जुड़ती है , और बीहरके संगम से होती हुई , आगे सिरमौर से पूर्व , तमसा नदी से जा मिलती है ! सिरमौर में पुनः जल विद्युत् उपकेंद्र के द्वारा विद्युत् उत्पन्न कर , प्रदेश की विद्युत् मांग को पूरा करने में , यह योजना महत्त्व पूर्ण साबित हुई है !<br />
सोन पर बनाये गए बाँध ने , यहां की भूमि का जल स्तर बहुत ऊपर उठा दिया है , और कुँए , बावड़ियों में , सुख गया जल फिर अवतरित हो गया है ! रीवा नगर में , बीहर नदी में बहता हुआ , निरंतर जल , झरने की तरह मनोरम वातावरण उतपन्न करता है !<br />
*********<br />
<br />
रीवा सीधी मार्ग पर स्थित गूढ़ कसबे में , देश का अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्लांट स्थापित हुआ है ! यह प्लांट अद्वितीय है , और दर्शनीय है ! यहां सौर्य ऊर्जा के बड़े बड़े सौर्य पैनलों के माध्यम से , 250 मेगा वाट विद्युत् पैदा की जा रही है , जो सारे देश का अभिनव प्रयोग है ! इस प्लांट की क्षमता वृद्धि कर , इससे ७५० मेगावाट की विद्युत् उतपन्न करने का लक्ष्य है ! यह अपने प्रकार का एशिया में बना , एक अभिनव सोलर पावर प्लांट है !<br />
<br />
मानव जीवन प्रकृति प्रदत्त साधनो पर ही निर्भर है , जिसमें , अग्नि , जल , वायु ही प्रमुख है ! हमारे लिए सूर्य एक प्रकृति प्रदत्त ऊर्जा का श्रोत है , जिससे मिली ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा ,में बदल कर हम हम विद्युत् प्रकाश , और विद्युत् जनित यांत्रिक शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं ! पर्यावरण की दृष्टि से यह नित्तांत हानि रहित मार्ग है क्योंकि पृथ्वी के गरब में स्थित , कोयले , और पेट्रोलियम पदार्थो का खजाना अब बहुत काम होता जा रहा है और इसके दुष्परिणाम पृथ्वी के ताप के बढ़ने के कारण , अब ऋतुओं में हुए गहन परिवर्तन के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं ! बढ़ता हुआ भू स्खलन , भूकंप , भी , प्रकृति से छेड़ छाड़ का परिणाम है ! जल विद्युत् उत्पादन और सौर्य ऊर्जा उत्पादन के प्रयोग , पर्यावरण के लिए , वरदान है जिसके लिए विंध्य भूमि आज नए सिरे से स्तुति योग्य है !<br />
***********<br />
<br />
रीवा राज की की सांस्कृतिक विरासत ,देश में अनूठी हैं ,! प्राकृतिक सौंदर्य में यहां के वन अभ्यारण , जल प्रपात , पर्वत श्रेणियों में बने तीर्थ स्थल , किले , जहां भ्रमण योग्य दर्शनीय स्थान है , वहीं यहां के रीत रिवाज , बोली , उत्सव , खानपान , लोकसंगीत , लोकनृत्य भी विविध छटाओं के दर्शन करवाती है ! बघेली बोली में आज बहुत से नाटक लिखे जा रहे हैं , कवितायें गढ़ी जा रही है , साहित्यिक रचनाएं की जा ! यहां के खान पान पर भी बहुत कुछ कहने सुनाने योग्य बातें हैं ! बघेल खंड भूमि की उर्वरा भूमि , चावल , दाल गेहूं , जो , चना के साथ साथ सोयाबीन जैसी कैश क्रॉप उत्पन्न कर रही है ! यूकेलिप्टिस की खेती भी यहां की गयी , और उससे धन कमाया गया ! यहां के ग्रामीण प्रमुख व्यंजन हैं - बड़ा , मुँगौरा , भात , खीर , रिकंज , खिचड़ी , खिचरा , सेमी , फुलौरी , कढ़ी , पपड़ी , रसाज , दरिया , सेतुआ ! ये व्यंजन ना सिर्फ पौष्टिक हैं बल्कि स्वादिष्ट हैं ! समय समय पर व्यंजनों का मेला भी यहां लगता रहता है !<br />
यहां के लोकगीतों में सोहर और व्याह के गीत बहुत सुन्दर हैं ! वैवाहिक अवसर पर हुए नगों में माटी मगरा , मातृका पूजन , मड़वा , सिलपोनी , जनेऊ , भीख , मुंडन , रिसाई , वृच्छा , कंकण भुंजाई , तेल चढ़ाई , दुआरचारा , बाटी मिलाई कलेवा के साथ विदाई आदि के बहुत मधुर गीतों के गायन का प्रचलन है ! ऋतू गीतों में बरखा , झूला , बारहमासा , होली , फगुआ , चैती , कजली , टप्पा जैसे मधुर गीतों का चलन है ! आस्था गीतों में देवी गीत , भगत इस धारा के विशिष्ट गीत हैं ! नचनहाइ , सजनहाइ गेलहाइ , बेलन्हाई पुतरी पुतरा , हिंदुली , आदि गीत परस्पर संबंधों पर आधारित , घटनाओं के गीत हैं !<br />
उत्सवों में मकर संक्रांति , बसंत पंचमी , शिवरात्री , नागपंचमी , खजुलैयाँ , के मेले स्थान स्थान पर आयोजित होते हैं ! पारिवारिक रिश्तों की मिठास , संतान सप्तमी , वट सावित्री , भैयादूज , राखी , तीजा , करवाचौथ जैसे त्योहारों से में दिखती है , तो रामनवमी , अक्षयतृतीया , हरछट , जन्माष्टमी , गणेश चतुर्थी अनंत चौदस , देवोत्थानी एकादशी पर आस्था और भक्ति भाव का ज्वार देखते ही बनता है !<br />
<br />
इस क्षेत्र के लोकसंस्कृति के दर्शन वृहत स्तर पर करना सम्भव नहीं ! इसके लिए फिल्म माध्यम ही सटीक माध्यम है ! कुछ युवा इस दिशा में प्रयत्न शील हैं जिनके सार्थक परिणाम जरूर ही आगे आयेंगें !<br />
<br />
********<br />
<br />
रेवा नगरी से हट कर , ग्रामीण क्षेत्रों में फ़ैली धार्मिक स्थलों की धरोहरें दर्शनीय है , जिनमें गोर्गी प्रमुख है ! यह शैव संस्कृति का , ऐतिहासिक शिव मंदिर का भग्नावेश स्थिति में उपलब्ध दर्शनीय स्थल है ! पुरातत्व की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण स्थल है , इसी तरह चंद रेह स्थित मंदिर भी कलचुरी काल की प्रस्तर कला के दर्शन करवाते हैं !<br />
ग्रामीण क्षत्रों में बनी ऐतिहासिक धरोहरों और प्राचीन मंदिरों में देवी तालाब आस्था का केंद्र है ! वहीं रायपुर कलचुरियाँ में बना अरविंदर आश्रम , एक शान्ति पीठ है जहां अशोक का वृक्ष , और अरविन्द का मंदिर दर्शनीय है ! ीासी नगर में , कर्मासिन माता का मंदिर है , कलचुरियों की आराध्या है ! नईगढ़ी का अष्टभुजी मंदिर भी दर्शनीय है , और तमरा पहाड़ पर बना हनुमान मंदिर , सिद्ध मंदिर माना जाता है !<br />
रीवा से बाहर , गूढ़ मार्ग पर बना प्राचीन मंदिर चिरहुलानाथ , हनुमान जी का सिद्ध मंदिर माना जाता है ! यहां हर शनिवार , मंगलवार को भक्तों की भीड़ , मेले का रूप ले लेती है ! मंदिर में पूजा पाठ का भी रिवाज है , इस लिए पंडित पुरोहितों की उपस्थिति सदा वहां रहती है !<br />
मंदिर से लगा , तालाब भी बहुत सुन्दर है !<br />
***********<br />
रीवा के निकट , बेला , गोविंदगढ़ मार्ग पर , मुकुंदपुर सफारी आज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है ! महराज पुष्पराज सिंह , और ऊर्जा मंत्री राजेंद्र सिंह के अथक प्रयासों से , सफ़ेद शेर की वापसी रीवा की भूमि पर पुनः सम्भव हो सकी है ! यह स्थान रमणीक है , जहां पहले भाग में , वन्य प्राणियों का ज़ू है और दूसरे भाग में छोटा सा अभ्यारण बनाया गया है जिसमें सफ़ेद शेर उन्मुक्त विचरण करता है ! दुसरे भाग की सैर के के लिए , वन विभाग द्वारा सुरक्षित बसें चलाई जाती हैं , जिनमे बैठ कर , हर वे के लोग , सहजता से सफ़ेद शेर को विचरण करते देख सकते हैं !<br />
सफ़ेद शेर , वस्तुतः बाघ की प्रजाति है ! यह रीवा रियासत द्वारा , पूरेविश्व को सौंपी गयी नायाब सौगात है ! इसकी कथा का प्रदर्शन पोस्टरों , और चित्रों के माध्यम से सफारी के अंदर बने एक विश्राम स्थल पर किया गया है जो दर्शनीय है !<br />
मुकुंदपुर , का व्हाइट टाइगर सफारी रीवा की शान है ! यह पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है !<br />
<br />
*************<br />
संस्कृति ऊपर से थोपी गयी विचारधार नहीं है , बल्कि उत्तरोत्तर प्रगति के साथ , मनुष्य के अंदर विदवमान , मानवीय ऊर्जा है ! लोक संस्कृति समाज में भाईचारे , और आपसी सौर्हार्दः का संवंधरण करती है ! उसे सहेज कर रखती है ! बदलते हुए सांस्कृतिक परिवेश में , देश की मिटी से जुडी ऐतिहासिक सांस्कृतिक , और पुरातात्विक धरोहरें , न सिर्फ दर्शन की चीज़ है , बल्कि आत्मसात करने की चीज़ है ! विंध्य भूमि के एक भाग , बघेल खंड के दर्शन हमने किये , किन्तु यह तो गागर में सागर जैसा है ! जितना देखें उतना कम ! क्यूंकि विंध्य भूमि का कण कण , ऊर्जा , और समृद्ध इतिहास से भरा हुआ है !<br />
हमें विश्वाश है की आप इस क्षेत्र का भ्रमण जरूर करेंगे , और यहां से वे यादें सहेज कर ले जायेंगें , जो आप को यहां बार बार भ्रमण हेतु विवश करेंगी !<br />
<br />
--- आलेख सभाजीत </div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-6443333933472320882019-02-07T00:15:00.003-08:002019-02-07T21:15:19.717-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<b><span style="font-size: large;"> विंध्य की विरासत</span></b><br />
<br />
<b><span style="font-size: large;"> रीवारियासत रीवा राज </span></b><br />
( नेपथ्य में वाइस ओवर )<br />
वैदिक काल में , शुक्र पुत्री देवयानी के पति ययाति का राज चौदह द्वीपों पर था ! महराज ययाति ने अपने आधीन राज्य भूमि को अपने दो पुत्रों यदु और तुर्वशु को बाँट दिया ! जिसमें दक्षिण पूर्व का भाग तुर्वशु को मिला ! भूमि का वही भाग , विंध्याचल श्रेणियों के मध्य बसा विंध्य था , जहां आज विंध्य की श्रेणी कैमोर पर्वत के निकट बसा विकसित नगर रीवा , अपनी अलग सांस्कृतिक विरासत लिए , किसी रत्न की तरह चमक रहा है !<br />
<br />
रेवा का अर्थ दुर्गम भूमि से है ! रीवा का अर्थ , रेतीले पथरीले क्षेत्र से भी है ! रेवा का अर्थ त्वरित गति से भी है ! रीवा राज्य के लिए यह सभी अर्थ लागू होते हैं ! भौगोलिक क्षेत्र की दृष्टि से , इस राज्य के दोनों और , आदिकालीन दो कूट स्थापित हैं , एक आम्रकूट , और दूसरा चित्रकूट ! ये दोनों ही कूट आर्य और द्रविण संस्कृतियों का मिला जुला केंद्र रहे हैं ! इस क्षेत्र में पहले , वनवासी जातियों का निवास था , जो वनोपज पर अपना जीवन निर्वाह करती थे ! ईसा पूर्व यह क्षत्र कौशाम्बी के महराज उदयन के अधिकार में था ! उदयन के बाद , यहां मघों का शाशन आया ! मघवंशियों ने अपनी राजधानी की यिन्ध्य श्रेणियों पर बने बांधवगढ़ किले में स्थापित की ! थी ! मघों को हटा कर नागवंशी आये ! ईसा के बाद की तीसरी सदी तक यहां नागवंशियों का राज था जिन्हे भार शिव भी कहा गया है ! बाद में गुप्त वंश का साम्राज्य आया , ! उन्हें हरा कर यहां कलचुरी आये , और कलचुरियों को हराकर अलग अलग क्षेत्रों में , चन्देलों , और बघेलों ने अपना राज विस्तारित किया !<br />
<br />
<b> पुरुष एंकर </b>--<b>,( किले की बुर्ज से )--'</b> कहते हैं की गुजरात से आये सोलंकी राजपूतों ने वर्ष १२८९ ईस्वीं में , पहले चित्रकूट क्षेत्र के पहाड़ी किले मड़फा पर अधिकार किया ! यह किला कभी चन्देलों के आधीन था और खाली पड़ा था ! तत्कालीन बघेल राजा व्याघ्रदेव ने अपने राज्य के विस्तार हेतु , गुजरात से विभिन्न जाती के लोगों को बुलाया जिनमें क्षत्रियों के अलावा , ब्राम्हिन , कायस्थ और मुस्लिम भी थे ! बाद में उन्होंने निकटवर्ती किले , कालिंजर , गोहरा , और मण्डीहा पर भी अधिकार कर लिया !<br />
कालांतर में बघेल राजा कर्णदेव को कलचुरियों की पुत्री से विवाह करने पर बांधवगढ़ का किला , सौगात में मिला ! महराज कर्ण देव संस्कृत के ज्ञाता थे ! उन्हें ज्योतिष का भी ज्ञान था ! महराज कर्णदेव ने पूरे कैमोर श्रंखला की भूमि पर राज विस्तार किया ! भारशिवों को हरा कर उन्होंने भरहुत पहाड़ तक अपना राज बढ़ाया ! बांधवगढ़ किले का इतिहास बहुत प्राचीन बताया गया है ! बांधवगढ़ किले को लक्ष्मण का किला कहा गया है ,, ! <br />
<br />
भरहुत हो कर , बांधव गढ़ के मार्ग से कभी कौशाम्बी जाने का रास्ता था ! इसलिए बांधवगढ़ ना सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टि से , बल्कि व्यापारिक दृष्टि से भी महत्व पूर्ण था !<br />
<b> स्त्री एंकर - </b> बघेल राजवंश के राजा , रामवचन्द्र के राज में गोहरा उनकी राजधानी थी ! किन्ही कारणों से मुगलों ने जौनपुर राज के सामंत , गाजी पर आक्रमण किया ! नवाब गाजी ने , राजा रामचंद्र से शरण माँगी , और रामचंद्र देव ने उनसे शरण दे दी ! उससे खिन्न हो कर अकबर ने गोहरा पर आक्रमण करने के लिए सेना भेजी ! महराज रामचंद्र देव , गाजी नवाब को ले कर दुर्गम किले बांधवगढ़ किले में चले गए ! अकबर ने वहां भी सेना भेज दी , उससे डर कर , नवाब तो वहां से भाग गया ! महाराज रामचंद्र देव को इसका खामियाजा , गोहरा किले को गवां कर करना पड़ा ! बाद में अकबर ने उनके दरबार के गायक तानसेन को भी बुलवा भेजा ! बीरबल जो पहले बघेल राज के निवासी थे , पहले ही अकबर के दरबारी हो चुके थे , वो तानसेन को लेने आये ! महराज रामचंद्र देव ने पहले तो अकबर से लोहा लेने की ठानी , किन्तु बाद में तानसेन और बीरबल के समझाने पर उन्होंने तानसेन को आगरा जाने दिया !<br />
<br />
<b> पुरुष एंकर - </b> मुगलों की आँख की किरकिरी हो जाने के कारण , बघेल राजवंश को बहुत परेशानी उठानी पडी ! कुछ दिनों के लिए अकबर ने बांधवगढ़ का किला अपने अधिकार में ले लिये , किन्तु बाद में उसे बघेल शाशक विक्रम देव को वापिस कर दिया ! विक्रमदेव ने एक बार शिकार पर आने पर , रीवा में एक अधबना किला देखा , जो शेर शाह सूरी का पुत्र सलीम शाह , छोड़ कर चला गया था ! बार बार की आशंकाओं के निराकरण के लिए विक्रम देव ने अपनी राजधानी इसी किले में बना ली और इसका विकास किया !<br />
इसी किले के महराज विश्वनाथ सिंह ने , जो साहित्य में अभिरुचि रखते थे , पहला नाटक आनंद रघुनन्दन लिखा , ! यह हिंदी भाषा का पहला नाटक कहा जाता है !<br />
<b> स्त्री एंकर -</b> बघेल राजवंश की परम्परा में महराज रघुराज सिंह और महराज गुलाब सिंह का नाम रीवा के विकास कार्यों हेतु उल्लेखनीय है ! महराज रघुराज सिंह के काल में एक सुन्दर कसबे , गोविन्द गढ़ को बसाया गया जहां आज बहुत बड़ा सरोवर जल का आगार है ! इन्ही के काल में वन संरक्षण को प्रधानता मिली , और इन्ही के काल में अंगरेजी भाषा का प्रातः स्कूल रीवा में स्थापित हुआ ! महराज गुलाब सिंह देव के समय में रीवा राज की सेना में कटौती हुई जिससे अधिक से अधिक धन जन कल्याण के लिए लगाया जा सके ! उन्होंने राज में निर्मित बांधों में कृषकों को भी सिंचाई का अधिकार दिया ! उन्होंने अनाथालय बनवाये ! दशहरा उत्सव को उन्होंने सार्वजनिक किया और खुद जनता के बीच आ कर हल चलाया ! उन्होंने अपने शाशन काल में , इतिहास लेखन को प्रारम्भ किया , और प्रथम बैंक बघेल खंड बैंक की स्थापना की ! इन्ही के समय में रीवा नगर प्रथम बार विद्युत् से जगमगाया ! बघेल राजवंश के वे यशश्वी राजा माने जाते हैं !<br />
<br />
<b> पुरुष एंकर-</b> देश के आज़ाद होने के समय , यहां के महराज रहे , मार्तण्ड सिंह जो देव ! आज़ादी के बाद जो पहला प्रदेश , विंध्य प्रदेश के नाम से शहडोल , सीधी , रीवा , पन्ना , छतरपुर , टीकमगढ़ , और दतिया रियासत को मिला कर बनाया गया , उसके ये राज प्रमुख बने ! विश्व को पहले सफ़ेद शेर की सौगात देने वाले यही बघेल राजा हैं , जिन्होंने बगदरा के गहन जंगल में , सफ़ेद शेर के प्रथम शिशु , को २७ मई १९५१ में पकड़ा ! गोविन्द गढ़ के किले पाले गए इस सफ़ेद शेर से करीब ४६ सफ़ेद शेर जन्म लिए , जो सम्पूर्ण विश्व को भेंट किये गए ! महराज मार्तण्ड सिंह जू देव , तीन बार लोक सभा सांसद रहे !इन्हे अपने पूर्वजों की तरह शिकार का शौक था , और इन्होने भी कई हिंसक वन जीवों का शिकार किया !<br />
<b> स्त्री एंकर -</b> रेवा राज्य के वर्तमान महराज हैं , महराज पुष्पराज सिंह जो बघेल शाशकों के यशश्वी इतिहास के वारिस हैं और जिन्होंने सामाजिक कार्यों में तथा रीवा के विकास में अपना अभिन्न योगदान दिया ! इन्होने पर्यावरण के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया और सफ़ेद शेर की प्रजाति , जिससे यह धारा पूरी तरह वंचित हो गयी थी , को वापिस रीवा लौटाने का अभियान चलाया ! आज उनके प्रयास से मुकुंदपुर में टाइगर सफारी बन गया है , जहां सफ़ेद शेर दर्शनीय है ! महराज पुष्पराज सिंह , आधुनिक भारत के रीवा के महराज हैं , और विकास में विशवास रखते हैं !उन्होंने बघेल राजवंश की धरोहरों को , रावा के किले में अक्षुण रखा है , वे वन्य जीवन की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं , उन्होंने बाघिन नाम से एक व्रत चित्र का निर्माण किया , जिसमें सफ़ेद शेर की कथा है ! उन्होंने बांधवगढ़ किले को सामाजिक हाथों में सौंप कर , उसे सभी पर्यटकों के लिए खोला ! वे सांसद भी रह चुके हैं !<br />
( <b>पुष्पराज सिंह का इंटरव्यू )</b><br />
( <b>नेपथ्य में वाइस ओवर</b> )<br />
<br />
आज का रीवा नगर , चार जिलों की कमश्निरी का केंद्र है , जिसमें शहडोल , रीवा , सीधी , और सतना जिले समाहित हैं ! यहां का जन जीवन राजनैतिक दृष्टि से बहुत उथल पुतल भरा है ! यहां क्षत्रिय , और ब्राम्हणो के अलावा , खेती करने वाले , पटेलों की बसावट भी बहुतायत में है ! रीवा नगर के मध्य में बने परिसर , पीली कोठी और कोठी कम्पाउंड परिसर में , बघेल रियासत के समय में बने भवन , रीवा की विकसित हुई भव्यता और स्थापित्य की कथा कहते हैं ! वहीं रीवा के किले से जुड़े पुराने रियासती भवन , उपरहटी , और तरहटी में , बसे लोग , रीवा रियासत की प्रगति के प्रत्यक्ष गवाह हैं ! रीवा का किला , ऐतिहासिक है ! इसमें एक भाग , यहां के राजा , पुष्पराज सिंह के निवास हेतु उपयोग में आरहा है , जबकि किले के बाहरी प्रांगण में आज शिक्षा हेतु , उनके ही द्वारा एक उत्कृष्ट स्कूल संचालित किया जा रहा है ! प्रांगण में रखी तोपें , बघेल शाशकों के समय , का यश बखान रही हैं ! किले के एक भाग को महराज ने , बघेल म्यूजियम के लिए भेंट कर दिया है , जिसमें , उनके काल के अस्त्र शस्त्र , उपयोग में आने वाले सामान , आदि पर्यटकों को देखने के लिए उपलब्ध है !<br />
किले के दो द्वार हैं !पूर्व दिशा में बहती , , बिछिया नदी के घाटों को जोड़ता ' पुतरिया दरवाजा ' वहां की मेहराब में चित्रित मूर्तियों के कारण , पुतरिया दरवाजा कहलाता है ! कहते हैं ये मेहराब , वस्तुतः , कलचुरी काल के विशाल शिव मंदिर का भग्नावशेष , तोरण द्वार है , जो इस दरवाजे के ऊपर लगा दिया गया है ! इस द्वार से बाहर आने पर , एक और लक्ष्मण बाग़ है , जहां भव्य मंदिर हैं , और नदी किनारे बनाया गया भव्य बगीचा है ! दूसरी और एक विशाल तालाब ' रानी तालाब ' है , जिस पर एक प्राचीन मंदिर में दुर्गा भवानी की मूर्ति स्थापित है ! नवरात्रि में , महिलायें यहां जल चढाती हैं , मेला लगता है , और मनौती की जाती है ! कुछ वर्षों पूर्व तालाब का उन्नयन किया गया है , जहां अब नौकायन की सुविधा भी प्राप्त है !<br />
किले की उत्तरी दिशा में बना द्वार , मछरिया दरवाजा कहलाता है ! यह रीवा की रियासती युग की बस्ती , उपरहटी से जुड़ा हुआ है ! इस नगरी में राजाओं के वैद्य , पुरोहित , ब्राम्हण , और मुंशी , कारिंदे रहते थे ! किले की पश्चिमी भाग को छूती हुई बीहर नदी निकलती है , जिसमें आकर बिछिया नदी समा जाती है ! किले के पीछे बीहर नदी पर बना हुआ घाट राजघाट कहलाता है !जहां बघेल वंशी राजाओं की छतरियां बनी हैं ! इनमें महराज विश्वनाथ सिंह की छतरी विशिष्ट है ! किले के ही पश्चमी भाग में , जगन्नाथ भगवान् का मंदिर स्थापित है ! पुराणी बस्ती को घेरता हुआ , परकोटा , पुराने रीवा की सीमाएं बांधता दिखता है , जिसके बस्ती में प्रवेश करने वाले उपरहटी और तरहटी दरवाजे अब भग्नावस्था में है !<br />
<br />
<b> स्त्री एंकर </b>- किले की विशेष शोभा है , भगवान् मृत्युंजय का प्राचीन मंदिर ! इसमें स्थापित शिव लिंग बहुत प्राचीन है ! यह रीवा नगरी के लोगों की आस्था का केंद्र है ! प्रायः हर दिन यहां दर्शनार्थियों तांता बंधा रहता है ! शिव लिंग का जल, दूध , बेल पत्री , शहद , आदि के साथ पुरोहितों के मंत्रोच्चारणों सहित अभिषेक होता है ! मंदिर के बाहर , गणेश की विशाल मूर्ती है , और एक पुराना वट वृक्ष है जिसकी परिक्रमा करके महिलायें मनौती करती हैं ! मंदिर के द्वार के निकट हनुमान जी की मूर्ती भी स्थापित है ! राजशाही के युग में यह मंदिर , राजाओं के आधीन था , किन्तु अब यह न्यास के आधीन है !<br />
<b> पुरुष एंकर -</b><br />
कोठी कम्पाउंड में बने भवन , बघेल राजशाही के वैभव की गाथा कहते हैं !यहां का मुख्य भवन है ' वेंकट भवन " जो महराज वेंकट रमन सिंह की याद दिलाता है ! इस भवन में अब मूर्ती संग्रहालय है ! इस महल का स्थापत्य , और भव्यता देखते ही बनती है !यह दो मंजिला भवन है , और इसकी सीढ़ियां और इसका ऊपरी भाग आकर्षक है !<br />
इसी भवन से सट कर बनी है एक बावड़ी !सुरक्षा की दृष्टि से आज इसके चारों और जाली लगा दी गयी है ! कहते है , यहां से एक सुरंग , सीधे रीवा किले को जाती है , जो अब बंद हो गयी है ! आज का कमिश्नर आफिस भी एक कोठी का भाग है ! बावड़ी के निकट ही बना है , भगवान् कामेश्वरनाथ का शिव मंदिर ! यह स्थान यहां के चिंतकों , रचना कारों के लिए , वरदान प्राप्ति का सिद्ध मंदिर है ! मंदिर के एक और बनी दालान में , कर्मकांडी पुरोहितों की गड्डियां है जहां पूजा पाठ का , विघ्न निवारण का कार्य होता है !<br />
<b> स्त्री एंकर </b><b> - </b>इसी कम्पाउंड में जिला न्यायालय परिसर है ! एक और न्यायाधीशों के कोर्ट हैं , तो दूसरी और काले कोट धारण किये वकीलों की बैठकें ! यहां न्याय प्राप्ति के लिए आये , जिले भर के लोगों का मेला सा लगा रहता है !<br />
कोठी कम्पाउंड के पश्चिमी भाग में बना है घोड़ा चौक ! यहां घोड़े पर सवार महराज वेंकट सिंह की , शानदार मूर्ती लगी है , ! मूर्ती के चारों और क्यारियां बना कर क्षेत्र को घेर दिया गया है , जिससे मूर्ती की भव्यता कायम रहे ! इस चौक से लगा है , शहीद पद्मधर पार्क ! यह पार्क अब व्यवस्थित बगीचे का रूप है ! इसके अंदर फैले छोटे से मैदान में अक्सर यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम और राज नैतिक सभाओं का आयोजन होता रहता है ! पार्क में शिव पार्वती की विशाल मूर्ती लगी है , जो गोर्की से लाकर यहां लगा दी गयी है ! यह कलचुरी काल की मूर्तिकला का उत्कृष्ट नमूना है !<br />
<b> पुरुष एंकर -</b> घोड़ा चौराहा , आज रीवा का व्यस्ततम बाज़ार है ! यहां से ले कर केले मार्ग तक फैला बाजार , पूर्ववर्ती रीवा की निशानी है , जबकि कोठी कंपाउन के बाहरी हिस्सों पर विकसित हुआ शिल्पी प्लाज़ा , और पीली कोठी का बाज़ार। आधुनिक रीवा की छवि के दर्शन करवाता है ! घोड़े चौराहे पर , उज्जयनी महरानी द्वारा बनवाया गया प्रेक्षागृह , उनकी नाटकों की अभिरुचि का गवाह है ! यह प्रेक्षा गृह कभी विंध्य प्रदेश का विधान सभा भवन बना था ! आज यह प्रेक्षा गृह , नगर निगम भवन की तरह उपयोग में आ रहा है , जहां नगरनिगम आयुक्त के साथ महापौर रीवा का आफिस लगता है !<br />
यह नगर , चार विभिन्न मार्गों द्वारा , सतना , बनारस , इलाहाबाद , सीधी , शहडोल के नगरों से जुड़ा हुआ है ! इलाहाबाद - बनारस मार्ग पर बहुत से होटल बने हुए हैं ! इसी मार्ग पर बना है ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय , जो ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व पूर्ण है ! ठाकुर रणमत सिंह का नाम यहां अत्यंत श्रद्धा से लिया जाता है ! अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत की रणभेरी बजाने वाले वे पहले सेनानी थे ! अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर , कुछ दिनों , सतना की छावनी में रखा , और फिर चुपचाप बांदा ले जा कर फांसी दे दी ! रन बाँकुरे रणमत सिंह बाद में यहां अंग्रेजों के विरुद्ध हुए आंदोलन में , अपनी शहादत के कारण एक मिसाल बन गए , और उन्होंने राजनैतिक चेतना की वह रणभेरी फूंकी की पूरा बघेल खंड , अंग्रेजों के विरुद्ध , आंदोलन का गढ़ बन गया ! इसी क्रम में यहाँ युवा शहीद , लाल प्रद्युम्न सिंह का नाम भी बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है जिन्होंने वीरता पूर्वक , इलाहाबाद में तिरंगा फहराते हुए , सीने पर गोली झेली !<br />
<b> स्त्री एंकर </b> करीब पचास वर्ष पूर्व , रीवा को आकाशवाणी रीवा की सौगात मिली , किसका प्रसारण केंद्र इसी महाविद्यालय के दूसरी और , इसी मार्ग पर बना ! इस प्रसारण केंद्र ने , यहां के साहित्यकारों , रचनाकारों , कवियों , लोक गायकों , लोकगीतों , नाट्यकारों को नया मंच दिया ! रेडियो नाटक लिखे गए , और प्रसारित हुए ! यहां के युवा कलाकारों की रचनात्मक प्रतिभा प्रस्फुटित हुई ! नाट्य के प्रति रुझान बढ़ा तो मंचीय नाटक खेले जाने लगे ! संस्थाएं बनी , नाट्य लेखक और नाट्य निर्देशक सामने आये ! कला की एक रचनात्मक धारा बहने लगी जो अब एक परम्परा का रूप ले चुकी है ! रीवा का आकाशवाणी केंद्र अब , और भी उन्नत ऍफ़ एम् बेंड के साथ इस क्षेत्र में अपना अलग स्थान बना रहा है !<br />
<b> पुरुष एंकर -</b> इसी इलाहाबाद रोड पर आगे है सिरमौर चौराहा ! यह इस नगर का व्यासतरम चौक है ! यहां एक उन्नत बाज़ार है ! हाल में ही बढ़ते ट्रेफिक की असुविधाओं के कारण अब यहां एक उन्नत ओवर ब्रिज बना दिया गया है ! इस चौराहे से एक मार्ग बस्ती की और जाता है , जहां पर अमहिया क्षेत्र , रीवा के राजनैतिक पुरोधाओं का गढ़ है ! इसी चुराहे पर है रीवा की महरानी , प्रवीण कुमारी द्वारा बनाया गया , बालिकाओं का स्कूल , पी के स्कूल ! दूसरा मार्ग यहां के अवधेषप्रताप सिंह विश्व विद्यालय की और जाता है , जो बघेलखण्ड की शिक्षा का आधार भूत गढ़ है ! सिरमौर मार्ग की और जाते हुए , बीच में पड़ता है स्टेडियम ! जहां राष्ट्रीय पर्व , स्वतंत्रता दिवस , और गणतंत्र दिवस , परेड के साथ धूम धाम से मनाया जाता है !स्टेडियम के बगल में ही है औद्योगिक शिक्षण केंद्र , ! और आगे है , रीवा का इंजीनियरिंग कालेज ! उसके आगे जाने पर मिलता है , अवधेश प्रताप सिंह विश्व विद्यालय का विशाल परिसर ! यहां , विज्ञान , वाणिज्य , पर्यटन , पुरातत्व , पत्रकारिता , भाषा , संस्कृति के विषय से डिग्री के पाठ्यक्रम संचालित होते हैं ! किसी युग में , टीकमगढ़ , छतरपुर , पन्ना , सतना , शहडोल , सीधी जिले के सभी महा विद्याक्य इससे संबद्ध थे , किन्तु अब टीकमगढ़ छतरपुर महाविद्यालय , सागर से सम्बद्ध हो गए है !<br />
<b> स्त्री एंकर -</b> रीवा को एक विशाल गुरुकुल कहा जाए तो गलत ना होगा ! यहां हर शिक्षा की समुचित व्यवस्था है ! अवधेश प्रताप विश्विद्यालय का परिसर यहीं है ! इंजीनियरंग कालेज के अतिरिक्त कई तकनीकी कालेज भी यहां है ! ठाकुर रण मत सिंह महाविद्यालय के साथ यहां कया महाविद्यालय , और विज्ञान महाविद्यालय बहुत पहले से स्थापित है ! सैनिक शिक्षा के साथ , एकेडिमिक शिक्षा का विद्यालय , सैनिक स्कूल , क्षेत्र का विरला स्कूल है ! चिकित्सा के क्षेत्र में , यहां संजय गांधी मेडिकल कालेज , चिकित्सकों की बड़ी टीम प्रति वर्ष देश को भेंट करता है ! आयुर्वेद महाविद्यालय भी यहां है ! पड़रा स्थित कृषि विद्यालय यहां के क्षेत्रों के लिए वरदान है ! इसके अतिरिक्त जे ऐल इसके अतिरिक्त कई विद्यालय , विभिन्न मुहल्लों में संचालित है ! जिसमें सरस्वती शिशु मंदिर , क्राइस्ट ज्योति स्कूल, केंद्रीय विद्यालय , मार्तण्ड विद्यालय , मारुती विद्यालय , मंडप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र , आदर्श बहुउद्देशीय विद्यालय प्रमुख हैं ! यहां का शिक्षा का प्रतिशत ९५ प्रतिशत से ऊपर है ! इसलिए यहां का रहवासी , राजनैतिक चेतना से ओत प्रोत है ! रीवा , आज़ादी के बाद , समाजवादी विचारधारा का गढ़ रहा ! यहां ,, के प्रखर समाजवादी नेता , यमुना प्रसाद शास्त्री , और श्री निवास तिवारी हुए ! कालांतर में श्रीनिवास तिवारी जी ने कांग्रेस अपना ली और वे कांग्रेस शाशन काल में , मंत्री तथा विधान सभा अध्यक्ष बने ! समाजवादियों के अलावा बहुजन समाज पार्टी का बोलबाला भी इस क्षेत्र में रहा ! लोकसभा के इतिहास में सबसे पहला , बहुजन पार्टी का सांसद यहीं से चुना गया ! आज के विकास के पुरोधा , भाजपा के नेता , श्री राजेंद्र शुक्ला का निवास भी रीवा है , जो भाजपा शासन काल में ऊर्जा मंत्री रह चुके हैं !<br />
<br />
<b> पुरुष एंकर -</b> संगीत और कला का यह गढ़ रहा है ! महाराज रामचंद्र देव के समय में , बौद्धिक सम्पदा के धनी , अकबर दरबार के ख्याति प्राप्त रत्न बीरबल और तानसेन यहीं से आगरा गए थे ! आज के समय में बावने परिवार की मूर्तिकला और चित्र कला , पेंटिंग आदि , आज चारों और धूम मचा रही है ! संगीत परम्पराओं को जीवित रखने के लिए कुंती रामा संगीत अकादमी , निरंतर भव्य संगीत के आयोजन करती है ! यहां के सुगम संगीत गायक , देश की चर्चित प्रतियोगताओं के विजेता कलाकार रहे हैं ! यहां की गायिका प्रतिभा बघेल आज , फिल्म उद्योग में परचम लहरा रही हैं , मणिकर्णिका की ताजा फिल्म के गीत , उनके स्वर में है , जिसे देश की जनता गुनगुना रही है ! ग़ज़ल गायकी के गायक , डाक्टर राजनारायण का नाम , एक परिचित नाम बन चुका है ! दूसरी और लोक गायकी भी उभर कर सामने आयी है ! आकाशवाणी रीवा केंद्र से प्रतिदिन प्रसारित होने वाले लोकगीत , इस देश की संस्कृति को चारों और फैला रहे हैं !रीवा नगर में हे सुपारी के खिलौने बनाने वाले अद्भुत कला कार हैं , जिनकी कला कृतियान राष्ट्रपति , प्रधान मंत्री को भेंट की जा चुकी है ! लकड़ी के खिलौने यहां बहुतायत में बनते हैं !<br />
<br />
<b> स्त्री एंकर -</b> साहित्य और संस्कृति में भी रीवा का अपना इतिहास रहा है ! आनंद रघुनन्दन नामक नाटक , रीवा महराज विश्वनाथ सिंह का लिखा , पहला हिंदी नाटक है ! नाट्य परम्परा में यहां कई कलाकारों का नाम वरीयता क्रम के साथ लिया जाता है ! हरिकृष्ण खत्री , योगेश त्रिपाठी , अनुराधा चतुर्वेदी , हीरेन्द्र सिंह , अनवार अहमद , हरीश धवन , आदि नाट्यकार इस नगर की नाट्य विधा के पुरोधा माने जाते हैं ! योगेश त्रिपाठी को , रेडियो नाटक लेखन के लिए देश का प्रथम पुरूस्कार मिल चुका है ! उनके लिखे नाटक , हबीब तनवीर , संजय उपाध्याय , जैसे उत्कृष्ट निर्देशक खेल चुके हैं ! हाल में ही उनका लिखा नाटक न्यू जर्सी में भी खेला गया है ! हीरेन्द्र सिंह के लिखे नाटक भी लगातार खेले जारहे हैं , वहीं हरीश धवन का नाम नाट्य निर्देशक और वरिष्ठ कलाकारों में लिया जाता है !<br />
<b> पुरुष एंकर -</b> साहित्य के क्षेत्र में भी यह नगर अनूठा है ! बघेली संस्कृति , उत्सव , रीति रिवाज , लोक कला , पर लिखी किताबों के लिए यहां भगवती प्रसाद शुक्ल का नाम आदर से लिया जाता है ! इसके अलावा , लखनप्रताप सिंह , गोमती प्रसाद विकल , आर्या प्रसाद त्रिपाठी , , चंद्रिका प्रताप द्विवेदी , सेवाराम त्रिपाठी के लेखन ने यहाँ की साहित्यिक धारा में अनेकों रंग भरे हैं ! काव्य जगत में यहां के उत्कृष्ट कवियों में गिरजा शंकर शुक्ल , प्रणय , दिनेश कुशवाहा उमेश मिश्र लखन जहां रसधार बहा रहे हैं , वहीं बुंदेली काव्य के प्रणेता , अमोल बटरोही , श्रीनिवास शुक्ल , रामनरेश त्रिपाठी रामलखन केवट , यहां के काव्य गगन पर नक्षत्र की भाँती चमक रहे हैं ! हिंदी कथा लेखन में यह क्षेत्र बहुत अग्रणीय है ! यहां के कथाकारों में , ओमप्रकाश मिश्र , लालजी गौतम , सपना सिंह विवेक द्विवेदी और सुधीर कमल जैसे लेखक , विभिन्न पात्र पत्रिकाओं में अपना विशिष्ट स्थान बना रहे हैं !<br />
पत्रिकारिता जगत में यहां के पत्रकार राष्ट्रीय क्षितिज पर छाये हुए हैं ! जयराम शुक्ला , का नाम आज देश की पत्रिकारिता में अगली पंक्ति में है ! वहीं शशिकांत त्रिवेदी , अजय तिवारी , राकेश मिश्रा , अशोक मिश्रा , यहाँ के उत्कृष्ट पत्रकारों में गिने जाते हैं !<br />
<br />
<b> स्त्री एंकर -</b> बघेलों की राजधानी , रीवा नगर को रीवा की सम्पूर्ण रियासत का नाभि केंद्र कह सकते हैं ! यह नगर आज , मध्यप्रदेश के कई विकसित शहरों से आगे बढ़ कर , अपना विशिष्ट स्थान बना चुका है ! यहाँ की बीहर नदी में अविरल बहता पानी , बता रहा है , की विकास के मार्ग पर , उत्तरोत्तर प्रगति में इसका कोई सानी नहीं है ! जब से यहां रेल लाइन आयी है ,यह नगर देश के सभी महानगरों से जुड़ गया है ! आज यहां से भोपाल जाने वाली ट्रेन विंध्यांचल एक्सप्रेस को कई बार , स्वच्छता के उत्कृष्ट पुरूस्कार से नवाजा जा चुका है ! इसलिए , देश के नक़्शे पर अब रीवा नगर , अपरचित नहीं रह गया है !<br />
<br />
<b> पुरुष एंकर -</b> लेकिन रीवा नगर का अर्थ रीवा रियासत की सम्पूर्ण संस्कृति , और धरोहर नहीं कहला सकती , इसलिए , अगले अंक में हम चलेंगे , रीवा रियासत की वे धरोहरें , संस्कृति को देखने , जो यहां तीन जिलों , सीधी , रीवा , और शहडोल में फ़ैली हुई है !<br />
<br />
--- आलेख सभाजीत ,<br />
<br />
<br />
,<br />
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-222798680694530352019-02-06T06:30:00.002-08:002020-03-09T09:25:58.438-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>विंध्य की विरासत</b><br />
<b>चित्रकूट</b><br />
<br />
( मार्ग पर गेरुआ वस्त्र पहने साधू , पोटली बांधे गृहस्थ पुरुष , स्त्रियां चली जा रही हैं ,, मार्ग दुर्गम , घाटी वाला है ,, कैमरा आकाश से नीचे उतरता हुआ दूर से जाते हुए इन समूहों के देखता है ,, उनके पैरों के कट्स , गठरी के कट्स , दिखाते हैं नेपथ्य से आवाज़ आती है --<br />
अब चित चेत चित्रकूटहिं चलु<br />
कोपित कलि ,लोपित मंगल मगु , विल्स बढ़त मोह माया मलु ,<br />
भूमि विलोकु राम पद अंकित , वन विलोकु रघुवर बिहार थलु , <br />
शैल संग , भव भंग , हेतु लखु , दलन कपट पाखंड दंत दलु ,,<br />
<br />
तभी उनके गुजरने पर एक दिशा से एक पुरुष एंकर आगे आता है )<br />
<b> पुरुष एंकर </b>-तुलसीदास का यह भजन , भजन नहीं , बल्कि एक अनुभूति है ! वह अनुभूति , जिसे एक संत ने आत्म सार की , वह अनुभूति जिसे मुगलों के कटटर शहंशाह , औरंगजेब ने भी महसूस की , वह अनुभूति जिसकी चाह में आज ग्रामीण जन अपने घरबार त्याग कर , यहां आकर समय व्यतीत करते हैं ,, वह अनुभूति अगर कहीं उपलब्ध है तो उस स्थान का नाम है <b>चित्रकूट !</b><br />
<b> महिला एंकर - चित्रकूट ,,! </b><br />
जहां आदिकाल से , प्रकृति वात्सलयमयी माँ की तरह , मनुष्य को अमृत बांटने को आतुर है !जहां मानव के उज्ज्वलतम चरित्र की बानगी राम कथाओं के रूप में जन जन में व्याप्त है ! जहां सरल हृदय व पवित्र विचारों की मंदाकिनी , जन समूहों के रूप में उमड़ कर , चित्ताकर्षक पर्वतों के बीच , सलिला की तरह समा जाती है !<br />
<b>पुरुष एंकर-</b><br />
<b> चित्रकूट </b><br />
<b> </b>जो अनादि काल से विभिन्न सभ्यताओं के मिलन का साक्षी रहा ! जिसने राजनीति को नए आयाम दिए ! जहां सत्ता ने त्याग को नमन किया ! जहां गृहस्थ जीवन के दर्शन को पुण्य दिशा मिली , जहां आत्मिक चिंतन के , ज्ञान का अविरल शोध हुआ ! वही चित्रकूट !<br />
विंध्यांचल श्रेणियों की छितराई पर्वतमालाओं की श्रेणियों के बीच घिरा , भूमि का रमणीक भाग , जिसके चारों और खड़े पर्वत कूट , मानो पहरेदार बन कर इस भूमि भाग की रक्षा कर रहे हैं , जहां राम ने अपने वनवास के तरह साल आदिवासियों और वंचितों के मध्य रह कर व्यतीत किये ! जिन के शिखर पर बैठ कर , कर्म योगी लक्ष्मण ने , अपने बड़े भाई की रक्षा के दायित्व को एक सिपाही की तरह निभाया ! जहां रघुकुल की एक रानी ने , अपने पति धर्म निबाहने के लिए , सुखों का त्याग करके पर्ण कुटी में वास किया ! वही चित्रकूट , आज भारत के उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश के संधि द्वार पर , अवरिल बहती मंदाकिनी के तट पर उत्कीर्ण , उन पवित्र पृष्ठों को पलटता हुआ दिखता है ,, जो जन जन के हृदय पृष्ठों पर , आदर्श बन कर अंकित हो चुके हैं !<br />
चित्रकूट आज आध्यात्म , आस्था , हिन्दूदर्शन , पर्यावरण , प्रकृति सौन्दर्य , व पर्यटन का केंद्र बना हुआ है ! यह सामाजिक चिंतन के महर्षि , भारत रत्न नानाजी देशमुख , के आदर्श ग्राम के स्वप्न की मूर्ती है ! यह विद्या का गढ़ है ! सेवा का केंद्र है ! आध्यात्म और चिंतन की तपोभूमि है !<br />
<b> महिला एंकर -</b><br />
<b><br /></b>
इस तपोभूमि पर पहुँचने के लिए , मध्यप्रदेश के सतना नगर से एक उन्नत सड़क मार्ग उपलब्ध है जहां सतना से लगातार कई बसें दिन भर यहां श्रद्धालुओं को ले कर आती हैं ! इस सड़क मार्ग से , अपने वाहन से या टेक्सी से , आसानी से चित्रकूट पहुंचा जा सकता है ! दूसरी और , प्रयागराज से झांसी की और जाने वाले रेल मार्ग पर बने , कर्वी चित्रकूट स्टेशन पर उत्तर कर भी यहां आसानी से आया जा सकता है ! उत्तरप्रदेश के नगर , बांदा से , अथवा प्रयागराज से भी एक उन्नत राजमार्ग , इस स्थान तक पहुँचने के लिए उपलब्ध है !<br />
<b><br /></b>
<b>पुरुष एंकर -</b><br />
<br />
चित्रकूट का तोरणद्वार है , मंदाकिनी नदी पर बना ,रामघाट , जो उत्तर प्रदेश की भू भूमि पर है ! यहां मंदाकिनी नदी अपनी गहन धारा के साथ शांत भाव से बहती है ! रामघाट वह घाट है , जहां रामचरित मानस के रचियता , गोस्वामी तुलसी दास जी को राम के दर्शन हुए थे ! तुलसी दास का जन्म बांदा जिले के राजापुर गावं का माना जाता है ! कहते हैं की जन्म के समय से ही इनके माता पिता ने इनका त्याग , किन्ही कारणों से कर दिया था ! इनका लालन पालन संत नरहरिदास के संरक्षण में हुआ ! युवा होने पर , पत्नी पर हुई आसक्ति के कारण , इन्हे पत्नी ने के कटु वचन सुनने पड़े ! पत्नी ने कहा , जितना तुम मुझ पर आसक्त हो , उसका एक अंश भी तुम्हारी अगर राम पर आसक्ति होती , तो तुम्हारा जीवन सुफल हो जाता ! पत्नी के वचनो से व्यथित हो कर इन्होने राम भक्ति का मार्ग अपना लिया ! स्वतन्त्र घूमते हुए इन्होने काशी में विद्यार्जन किया और राम कथा को जन भाषा में लिखने का निश्चय किया !<br />
<br />
<b>स्त्री एंकर - ( घाट पर घूमते हुए विभिन्न जगहों पर )</b><br />
<b></b> वह काल हिन्दू धर्म के संक्रमण का काल था ! उस समय भारत में मुगलों का शाशन था , और तेजी से धर्म परिवर्तन हो रहा था ! सामाजिक मूल्य , स्वार्थ के आगे तिरोहित हो रहे थे ! आपसी रिश्ते , वैमनस्य के जाल में फंसते जा रहे थे ! पारिवारिक संबंध , टूट रहे थे ! लोग ज्ञान को धर्म पुस्तकों में बाँध कर तिजोरियों में सहेज रहे थे ! नीतियां , अनीति के सामने सर झुका रही थी ! तब युवा तुलसी दास ने राम कथा को , सामाजिक हित में , चारों और फैलाने का निश्चय किया ! लेकिन राम कथा लिखने के लिए , उन्हें जरूरी लगा की पहले रामभक्त हनुमान की शरण में जाया जाए ! हनुमान जी की खोज में वे यहां वहां भटकने लगे , तभी उनके गुरु ने बताया की , हनुमान जी , काशी में एक राम कथा के दौरान श्रोता बन कर आते हैं ! वे श्रोताओं के अंत में , एक दीन हीन पुरुष बन कर बैठते हैं , तुम वहां जा कर उनके पैर पकड़ लो , वे तुम्हे राम के दर्शन करवा देंगे ,,और तब तुम्हारी कृति आसानी से पूर्ण हो जाएगी !<br />
युवा तुलसी दास ने वैसा ही किया ! हनुमान जी ने उन्हें , चित्रकूट जा कर वास करने की सलाह दी ! उन्होंने कहा की वहां राम , मंदाकिनी घाट पर आयेंगें , तुम्हे आशीष देंगें , उस वक्त मैं भी वहां , शुक वेश में एक पेड़ पर रह कर इंगित करूंगा !<br />
राम ने चित्रकूट आकर , यहीं रामचरित मानस लिखा ! राम लक्ष्मण , दो बालकों के स्वरूप में रोज आकर उनसे मिलते रहे , लेकिन तुलसी दास उन्हें पहचान नहीं पाए ! अंत में शुक वेश में हनुमान जी ने उन्हें इंगित किया की जिन बालकों के मस्तक पर तुम रोज चंदन लगाते हो , वे ही राम और लक्ष्मण हैं ! तुलसी दास जी के अनुनय पर तब राम ने उन्हें इसी मंदाकिनी घाट पर साक्षात दर्शन दिए !<br />
<br />
रामघाट वह स्थान है जहां राम ने अपनी पहली पर्ण कुटीर बनाई थी ! यह वह स्थान है जहां पर इस क्षेत्र के प्रजापति , मत्गयेन्द्र विराजमान हैं !<br />
<br />
<b>पुरुष एंकर - ( मत्गयेन्द्र मंदिर में खड़े हो कर )</b><br />
मत्गयेन्द्र अर्थात भगवान् शिव ! उनका विशाल मंदिर आज इस रामघाट पर स्थापित हैं ! मत्गयेन्द्र , अर्थात शिव इस क्षेत्र के प्रजापति थे ! यह स्थान उस समय द्रविणो , तथा आदिवासियों की कार्यस्थली था , जिनके आराध्य शिव ही थे इसलिए उन्हें यहां का प्रजापति कहा गया ! ऋषियों से मार्गदर्शन ले , जब राम यहां जनजातियों के बीच रमने आये , तो उन्होंने सर्व प्रथम यहां के प्रजापति , शिव का पूजन किया और उनसे इस क्षेत्र में रहने की अनुमति माँगी ! मत्गयेन्द्र मंदिर में आज भी उस उस पूजन की व्याख्या , यहां के पुजारी करते हैं !<br />
राज वैभव में पले , एक निर्वासित राजकुमार को , यहां की जनजाति ने अपने सर आँखों पर बैठाया ! और राम उनके सुख दुःख , उनकी जीवन शैली के बीच ऐसे रमे , की वे यहां के बिना राजमुकुट के उनके हृदय पर राज करने वाले राजा बन गए ! कहते हैं की राम के अतिरिक्त , सतयुग में राजा नल , द्वापर में पांडवों , ने भी अपना निर्वासन काल यहीं व्यतीत किया !<br />
कालांतर में , गोस्वामी तुलसी दास के अतिरिक्त , रहीम और कवी भूषण की काव्य साधना स्थली भी यही भूमि रही !<br />
<b> स्त्री एंकर -( विभिन्न स्थानों पर खड़े हो कर ) </b><br />
मत गयेन्द्र मंदिर के नीचे ही है , वह स्थली जहां राम की पर्ण कुटीर थी ! आज भक्तों ने यहां एक पक्का मंदिर बना दिया है , जो आस्थावानों के लिए तीर्थ स्थल है ! पर्ण कुटीर स्थल के स्थल के निकट ही है , राम के जीवन यापन के स्मृति चिन्ह - यञवेदी , और राघव प्रयाग ! राघव प्रयाग एक संगम है जहां तीन नदियाँ , मंदाकिनी , पयस्वनी और गायत्री , मिलती हैं !कहते हैं की गायत्री अदृश्य है व संक्रांति के अवसर पर ही उसकी श्वेत धारा दिखती है ! इससे संगम पर भगवान् राम ने अपने पिता महराज दशरथ का पिंडदान किया था !<br />
पर्ण कुटी से थोड़ा हट कर है भारत मंदिर ! जहां राम को मनाने के लिए , अयोध्या से आयी प्रजा के साथ भरत ने राज सभा बैठाली थी ! यह भारत की वह पहली राज सभा थी , जिसने महलों के अंदर पनपे कुचक्रों , के विरोध में , प्रजातांत्रिक मूल्यों को वरीयता दी थी ! यह वह सभा थी , जिसमें , एक भाई ने रोते हुए , अपने बड़े भाई से मनुहार की थी , की वह वापिस अयोध्या लौट चले ! यह वही सभा थी , जिसमें सार्वजनिक रूप से , स्वार्थों से भटकी रानी कैकेयी ने बिलखते हुए पश्चाताप किया था !<br />
रामघाट इसलिए आज , आस्थावानों की आस्था का केंद्र है ,,! यहां आ कर लोग उन खोये हुए मूल्यों को तलाशते हैं , जो किसी युग में आदर्श थे !<br />
रामघाट पर सजी रंग बिरंगी नावें , पर्यटकों को , मंदाकिनी नदी के दर्शन करवाती हैं ! घाट पर लहरों के बीच उतराती यह नौकाएं आज के , काश्मीर के शिकारों की तरह रमणीक लगती हैं ! पर्यटक इस सवार हो कर , रामघाट से अनुसुइया घाट तक जल मार्ग से यात्रा करते हैं ! रामघाट वह स्थान है , जहां से मंदाकिनी का छोर पकड़ कर प्रकृति के रमणीय दृश्यों को आत्मसात किया जा सकता है !<br />
<b>पुरुष एंकर - ( नाव में बैठे हुए नदी में )</b><br />
<b><br /></b>
मंदाकिनी के जल मार्ग से ऊपर की और चलने पर , धीरे धीरे पक्के घाट विलीन हो जाते हैं और प्रकृति का नैसर्गिक स्वरूप उभरने लगता है ! मनुष्य निर्मित कोलाहल , भवनों के आँखों से ओझल होते ही , दूर हो , हो जाता है और मंदाकिनी के दोनों तटों पर दूर तक बिखरे बृक्षों की पंक्तियाँ , पक्षियों का कलरव , मन मोहने लगता है ! दूर मंदाकिनी के उद्गम छोर पर समाधिस्थ , चित्रित पर्वत कूट अपने प्रतिबिम्ब को मंदाकिनी के जल में निहारते नजर आते हैं ! मनुष्य अपनी बनाई , कांक्रीट की दुनिया से हट कर , प्रकृति की दुनिया में कदम रखते हुए , आल्हादित हो सुख का अनुभव करने लगता है <br />
रामघाट से थोड़ा ऊपर चलने पर एक और वन के तट ,और दूसरी और आश्रमों के कृतिम घाट निरंतर गुजरते हुए दीखते हैं ! इस जल यात्रा में पहले आता है प्रमोद वन ! यह एक पुराना , राजशाही युग का , कुञ्ज वन है ! यहां पर स्थापित , वृद्धाश्रम , , पौराणिक काल की उस प्रथा का द्योतक है , जब चतुर्थ वय में व्यक्ति , दुनिया के माया मोह , सुख वैभव को त्याग कर ,ईश्वर आराधना के लिए वानप्रस्थ ग्रहण करता था ! इस स्थान पर , मंदिरों का नव निर्माण किया गया है जो दर्शनीय है !<br />
यहां मंदाकिनी की धारा फ़ैल गयी है व उसकी गहराई इतनी कम है की छोटे बच्चे धारा के बीच बैठ कर ही स्नान करते , किलोल करते नज़र आते हैं !<br />
<b> महिला एंकर -</b> <br />
<b> </b>प्रमोदवन से ऊपर आने पर , मंदाकिनी की गहराई , और गति क्षीण हो जाती है ! यहां स्थित है , जानकी कुंड ! कहते हैं यहां जनकसुता स्नान करती थी ! पूर्व की और जहां आज भी वन सुषमा है , वहीं पश्चिमी तट पर बने आश्रमों के विभिन्न भवन , प्रकृति से छेड़ छाड़ की गवाही देते नज़र आते हैं ! जानकी कुंड से थोड़ा ऊपर की और आते ही दिखती है स्फटिक शिला !<br />
इस स्फटिक शिला का वर्णन रामचरित मानस में उपलब्ध है जहां पर भगवान् राम ने , देवी सीता का स्वयं श्रृंगार ,किया और जहां पर विचलित मति वाले , इंद्र सुत , जयंत ने देवी सीता से अभद्रता करने का प्रयास किया ! यह शिला साक्षी है उस घटना की , जिसमें भगवान् राम ने , नारी से अभद्रता करने वाले , इंद्रपुत्र को बलशाली और राजपुरुष के मद में चूर होने के कारण , किये गए अभद्रता का दंड , उसके एक नेत्र को फोड़ कर दिया ! यह एक ऐतिहासिक सीख थी , जिसमें कुदृष्टि का दंड , नेत्र हीनता ठहराई गयी !<br />
इस स्थल से ऊपर है , मंदाकिनी का उद्गम छोर , ! स्थिर चित्त , वृद्ध जाताओं युक्त , ऊंचाइयों को छूता मंद गिरि पर्वत , और उससे प्रकट होती मंदाकिनी , वह प्राकृतिक स्थल है , जहां आकर मनुष्य स्वयं को भूल कर प्रकृतिस्थ हो जाता है ! इसी स्थान पर था , महर्षि अत्रि और सती अनुसुइया का आश्रम , जहां देवी अनुसुइया ने , देवी सीता को गृहस्थ जीवन के मूल मंत्र की दीक्षा दी थी ! यहां के दर्शन करके , स्त्रियां खुद को परम् सौभाग्यशाली मानती हैं ! वे सती अनुसुइया से अपने सफल गृहस्थ जीवन के निर्वाह की कामना करती हैं !<br />
<b> पुरुष एंकर- </b><br />
यहां से जो पर्वत श्रेणियों का क्रम शुरू होता है वह उत्तर दिशा की और दूर तक फैला दिखता है ! यही विंध्याचल की श्रेणियां हैं , जिन पर एक से एक नयनाभिराम दृश्य युक्त , रमणीक स्थल हैं ! इसी पर्वत श्रेणियों के मध्य आता है , गुप्त गोदवरी का , आकर्षक स्थल ! चित्रकूट की और , दो गुफाओं के अंदर बह रही है गुप्त गोदावरी ! यहां क्रमशः तीन गुफाएं हैं , जिनके अंदर निरंतर जल प्रवाहित होता रहता है ! अंदर के स्थान बहुत रोमांचक हैं ! कहीं कहीं कमर बराबर पानी है , कहीं पर सुखी जमीन है ! कहते हैं , यह स्थान राम के मंत्रणा कक्ष थे , जहां वे विभिन्न स्थानों से आये ऋषियों के साथ , असुर संहारने के लिए चर्चाएं करते थे ! आज यहां बहुत से पर्यटक , प्रकृति निर्मित इन अनोखी गुफाओं को देखने आते हैं !<br />
<b> स्त्री एंकर - , </b><br />
चित्रकूट का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है कामद गिरी !लगभग पांच किलोमीटर के व्यास में फैला , करीब तीन सौ फ़ीट ऊंचा कामद गिरी अंडा कार है ! पर्वत का ऊपरी भाग चौरस है ! पर्वत पर आच्छादित गहन वन , पर्वत की शोभा दूनी कर देते हैं ! कामदगिरि , कामनाओं को पूर्ण करने वाला गिरी है ! इस गिरी पर राम ने निरंतर कई वर्षों तक निवास किया ! संभावना है की विभिन्न ऋतुओं में , प्राकृतिक अवरोधों के कारण , राम चित्रकूट के विभिन्न भागों में समय समय पर निवास करते रहे हों ! इसलिए सम्पूर्ण चित्रकूट ही एक पवित्र स्थल माना गया है !<br />
मान्यता है की इस गिरी की परिक्रमा करने पर आस्थावानों की कामनाएं इस हद तक यह गिरी पूर्ण कर देता है की फिर कोई कामना बाकी नहीं बचती ! यह हिन्दू दर्शन का मंत्र है ! कामनाएं मनुष्यों में पाप वृत्ति की जनक होती हैं , ये अगर पूर्ण हो कर शेष बाकी ना बचें , तो मोक्ष का द्वार खुल जाता है ! कामद गिरी इस मार्ग का अधिष्ठाता है !<br />
<b>पुरुष एंकर </b>-नंगे पाँव ,पांच किलोमीटर की परिक्रमा करना , एक कठिन कार्य है किन्तु आस्थावानों के लिए यह कोई कठिन नहीं ! सं १६८८ के बाद , बुंदेला राजा छत्रसाल ने यह क्षेत्र मुगलों से मुक्त करवाया था ! रानी चंद्र कुंवरि ने १७५२ में इस गिरी के चारों और पक्का मार्ग बनवाया !बाद में राजा अमानसिंघ के काल में इस गिरी के चारों और मठों तथा बावड़ियों का निर्माण हुआ ! कालांतर में कई राजवंशों द्वारा इस गिरी के चारों और अन्य कई बावड़ियां और धर्मशालाएं बनाई गयीं ! धीरे धीरे संतों और महंतों के मठ और अखाड़े भी यहां बन गए ! आज , परिक्रमा के दौरान बहुत से पुराने अवशेष देखने को मिलते हैं !<br />
<b> स्त्री एंकर </b>-परिक्रमा के क्रम में एक स्थान मिलता है जिसे भरत मिलाप स्थल कहा जाता है ! जनश्रुति है की यह वह स्थल है , जहां , राम से भरत का प्रथम मिलन हुआ था जब भरत उन्हें मनाने चित्रकूट पहुंचे ! इस मिट्टी में , दो भाइयों के परम स्नेह की अविरल अश्रु धार समाई है , जो इस माटी को माथे से लगाने योग्य बनाती है ! यह वह स्थल है , जहां समय भी दो भाइयों के पवित्र मिलन को देख ठगा सा खड़ा रह गया था !<br />
कामदगिरि से थोड़ी दूर , स्थित है भरत कूप ! यह वह स्थान है ,जहां भरत ने रात्रि विश्राम किया , और राम अभिषेक के लिए एकत्रित किया सात नदियों का जल , एक कूप में इस लिए दाल दिया क्यूंकि राम ने अयोध्या लौटना स्वीकार नहीं किया ! आज इस स्थल पर एक भरत मंदिर है और , एक पक्का कूप , जिसका जल बहुत मीठा है ! लोग यहां आकर कूप से निकले जल को मस्तक से लगाते हैं और भरत मंदिर में भरत के दर्शन करते हैं !<br />
<b>पुरुष एंकर - </b>जहां राम हों , वहां उनके अनुयायी हनुमान का निवास ना हो , यह सम्भव नहीं ! चित्रकूट के सबसे ऊँचे गिरी पर बिराजे हनुमान , जैसे आज इस भूमि भाग की निरंतर पहरेदारी कर रहे हैं ! इस शिखर पर पहुँचने के लिए ३६० सीढ़ियां चढ़ाना पड़ता है ! शिखर पर पहुँचने के बाद पूरा चित्रकूट एक नज़र में दिखाई देता है ! इस कूट पर विराजे हनुमान की मूर्ती प्राकृतिक शिलाओं में अंकित है ! इस शिखर पर एक जल धार अविरल बहती है , इसलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं ! कथाओं के अनुसार , लंका में दग्ध हुई पूंछ की जलन मिटाने जब हनुमान जी ने राम से विनय की तो , राम ने उन्हें इस स्थान पर निवास करने को कहा , जहां उन्हें बहती हुई जलधार से शीतलता अनुभव हो ! हनुमान धारा इसलिए चित्रकूट का अभिन्न अंग है , जो हनुमान जी का विश्राम स्थल है !<br />
<b>स्त्री एंकर</b>-आज का चित्रकूट सबके लिए है ! उनके लिए भी जो यहां आदिकालीन पवित्रधाम मान कर कामना पूर्ती के लिए आते हैं और उनके लिए भी जो सेवाभाव से यहां नए प्रतिमान गढ़ने अपना निवास बनाते हैं ! आज के युग के महर्षियों में नानाजी देशमुख का नाम श्रद्धा से लिया जाता है ! , वनवासियों के बीच रमे राम ने जो वनवासियों की सहायता , सुरक्षा , सेवा का संकल्प लिया था , उस परम्परा का निर्वहन आज यहां के कई सामाजिक और धार्मिक संस्थान कर रहे हैं ! , ,<br />
<br />
<b> पुरुष एंकर - </b>महाराष्ट्र से आये , नाना जी देशमुख यहां के जन जीवन के लिए देवड्डोत बन कर उभरे ! दीन दयाल शोध संस्थान के अधिष्ठाता ने यहाँ देश का प्रथम ग्रामीण विश्विद्यालय स्थापित किया ! चित्र कूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के नाम से बनी इस यूनिवर्सिटी में आज विज्ञान , कृषि , इंजीनियरिंग तकनीक , ग्राम व्यवस्था , और शिक्षा के विषय पर स्नातक हो कर , कई युवा देश के विभिन्न जगहों पर समाज की सेवा कर रहे हैं ! नानाजी ने निशुल्क शिक्षा , समाज के उत्थान , कृषि स्वावलंबन , एवं शुद्ध पेयजल के मुद्दों पर , इस क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है !<br />
यहां नेत्र चिकित्सा का , अत्यंत आधुनिक अस्पताल है , जहां नेत्रों का इलाज होता है ! इस चिकित्सालय में दूर दूर से लोग आते हैं ! देश की अत्यंत विश्वशनीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद पर ना सिर्फ यहां शोध हो रहे हैं , बल्कि कई अस्पताल भी हैं , जहां असाध्य रोगों का शर्तिया इलाज हो रहा है ! योग के यहां कई केंद्र है जो स्वस्थ जीवन जीने की कला प्रचारित कर रहे हैं ! यहां वृद्धाश्रम भी है , और नेत्रहीनों के आश्रम भी जो विभिन्न संस्थाएं चला रही हैं !<br />
<br />
यद्यपि चित्रकूट पर्यावरण की दृष्टि से स्वच्छ है , किन्तु धीरे धीरे , प्रकृति से छेड़छाड़ होने के कारण , इसका , प्राकृतिक स्वरूप बदल रहा है ! आज यह राम के वनवासी जीवन का चित्रकूट ना हो कर , बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं , सुविधाओं , मनोरंजन , और धार्मिक अखाड़ों की भूमि बनता जा रहा है ! विंध्याचल की पर्वत श्रेणियों से छन कर निकली मंदाकिनी भी , अब प्रदूषण के थपेड़े झेलने लगी है !<br />
<br />
राम तो रमने वाले व्यक्ति हैं ! उन्हें धार्मिक मठों में , आश्रमों में , राज प्रासादों में , बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं में ढूंढना मुश्किल है क्यूंकि वे त्याग की मूर्ती हैं , ! अयोध्या का वैभव त्याग कर जब उन्होंने वनवासियों का साथ दिया , तो वे अब विकास की चकाचौंध से आलोकित चित्रकूट में कब तक रामेंगें यह चिंतन का विषय है ! राम तो मिलेंगें , उन्ही ग्रामीणों के बीच में , उन वनवासियों के बीच में , उन वंचितों के बीच में जहां उन्हें शबरी के बेर खाने को मिलेंगें !<br />
<br />
फिर भी अगर शुद्ध ह्रदय से उन्हें पुकारेंगे तो वे यहां चित्रकूट में भी , दिखाई दे जाएंगे , अपने अनुज , अपनी भार्या , के साथ , विचरण करते हुए ! जरूरत सिर्फ दृष्टि की है ,, और अगर उस दृष्टि के साथ आप चित्रकूट आयेंगें , तो एक बार ना सही , किन्तु बार बार आने पर , एक दिन वे मिल ही जाएंगे ! राम ने कहा था --<br />
" निर्मल म,न जन सोइ मोहे पावा , मोहि कपट छल छिद्र ना भावा !! "<br />
तो आइये चित्रकूट ,, क्यूंकि जब चित चेतेगा , मन शुद्ध होगा , तो राम आपके ह्रदय में विराज जाएंगे !<br />
<br />
--- आलेख सभाजीत<br />
<br />
<h2 class="date-header" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 11px; font-stretch: normal; margin: 0px; min-height: 0px; position: relative;">
<span style="background-color: transparent; letter-spacing: inherit; margin: inherit; padding: inherit;">सोमवार, 18 नवंबर 2019</span></h2>
<div class="date-posts" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 16.8px;">
<div class="post-outer">
<div class="post hentry uncustomized-post-template" itemprop="blogPost" itemscope="itemscope" itemtype="http://schema.org/BlogPosting" style="margin: 0px 0px 25px; min-height: 0px; position: relative;">
<a href="https://www.blogger.com/null" name="4617576102148399641"></a><div class="post-header" style="font-size: 10.8px; line-height: 1.6; margin: 0px 0px 1.5em;">
<div class="post-header-line-1">
</div>
</div>
<div class="post-body entry-content" id="post-body-4617576102148399641" itemprop="description articleBody" style="font-size: 13.2px; line-height: 1.4; position: relative; width: 570px;">
<div dir="ltr" trbidi="on">
<br /><br />अयोध्या के राजकुमार , युग पुरुष राम के परिवेश में ढलने वाले तपस्वी राम की तपस्या का गवाह है ,,चित्रकूट ! मत्गयेन्द्र मंदिर से लेकर , मंदाकिनी के विभिन्न घाटों पर , कामद गिरी के शिखर पर , गुप्त गोदावरी की गहन कंदराओं में , गृहस्थ जीवन के आदर्श , सती अनुसुइया के पवित्र आश्रम पर , भार्या सीता के के साथ , रमणीक स्फटिक शिला पर , एकांत वास करते राम के पद चिन्ह , यहां आने वाले हर रामभक्त के लिए , मनोकामनाओं के पूरक हैं ! किन्तु राम किसी विशेष भूमिभाग , किसी विशेष विचारधारा के परिचायक नहीं है ! वे तो गरीब केवट के हठ को सहजता से स्वीकारने वाले , आदिवासी निषाद राज के अभिन्न मित्र , ज्ञानी तपस्वियों के आदर्श , शबरी के झूठे बेर प्रेम पूर्वक खाने वाले , जलचर , नभचर , , गरुड़ , काकभुशण्ड , जटायु , सम्पत , के आराध्य , किष्किंधा के वानरों के ह्रिदय सम्राट , रावण और विशाल सागर के अभिमान का हनन करने वाले , वे महापुरुष हैं , जिनकी कीर्ति , भारत में ही नहीं , विश्व के अनेक देशों में आज भी सूर्य की तरह दमक रही है !<br /> राम कथाएं , नेपाल , श्रीलंका , और वर्मा देश की प्राणवायु हैं !येडागास्कर द्वीप से ले कर , आस्ट्रेलिया तक , राम की यश पताका आज भी फहरा रही हैं !मलेशिया , थाईलैंड , कम्बोडिया , जावा , सुमात्रा , बाली द्वीप , में राम के जीवन प्रसंग आज भी जन जन में चर्चित हैं ! वहां के भू भाग में , राम के युग की , आर्य संस्कृति के अवशेष आज भी विदवमान हैं !यहाँ तक की , फिलीपींस , चीन , जापान , और प्राचीन अमेरिका में भी राम की छाप आज भी देखने को मिलती है ! पेरू के राजा खुद को सूर्यवंशी ही नहीं , कौशल्या सुत राम के वंशज मानते हैं !<br /> विश्वव्यापी राम के इस विराट स्वरूप को लोगों के ह्रदय में स्थापित करने के लिए , आधुनिक महर्षि , नानाजी देशमुख ने चित्रकूट की भूमि सर्वथा उपयुक्त माना ! चित्रकूट आने वाले सभी राम भक्तों , साधकों , पर्यटकों , और भारतीय दर्शन के शोधकर्ताओं को राम के उस विश्व्यापी विराट छवि के दर्शन होते हैं , , नानाजी देश मुख द्वारा स्थापित किये गए रामदर्शन मंदिर में ! इस भव्य स्थान पर , राम से साक्षात्कार होता है , दीर्धाओं में उत्कीर्ण , राम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के चित्रण से , जो बड़े यत्न से , विभिन्न देशों की , विभिन्न सांस्कृतिक शैलियों में उत्कीर्ण की गयी हैं ! अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्रयेष्ठि यज्ञ से ले कर , वशिष्ठ और विश्वामित्र के सान्निध्य में , धनुर्धर राम की श्रष्टि के चित्रों के साथ , सीता स्वयंबर , राम वनवास ,केवट संवाद ,निषाद मित्रता , सीताहरण , जतायुवध , हनुमान मिलन , बाली वध , अशोकवाटिका , रामरावण युद्ध और राम के राजतिलक की गाथा विशिष्ट शैलियों , और उत्कृष्ट कला के साथ उकेरी गईं है , जो विश्व के हर देश में बसे राम से से साक्षात करवाती है , और चित्रकूट पर्यटन पर आया हर व्यक्ति , इस वीथिका से निकल कर , राम से एकात्म हो कर , राम मय हो जाता है ।<br /> <br /> राम यदि चित्रकूट न आये होते तो वे प्रकृति की उस अलौकिक शक्ति , उसकी ऊर्जा , और अमोघ औषधियों से परिचित न हुए होते , जो प्राकृतिक कन्द मूल , वनस्पतियों , और प्रकृति के नियमों में समाहित हैं । इसी प्राकृतिक शक्तियों को संचित कर , वे उस बल के स्वामी बने , जिससे निशाचरों का विनाश हुआ , और नाभि कुंड में अमृत सँजोये , रावण का विनाश भी सहजता पूर्वक हो सका । भारत के उस प्राकृतिक ज्ञान , ऊर्जा , औषधियों की जनक , आयुर्वेद की उस महाशक्ति की, विभिन्न जड़ी बूटियों को पुनः युवाओं से जोड़ने , उन्हें शिक्षित करने हेतु , औषधियों की खेती का कार्य आज , नानाजी देशमुख के प्रयत्नों से साकार हो गया है । आज के चित्रकूट में आधुनिक शिक्षा के साथ , विलुप्त होते पुरातन ज्ञान विज्ञान को भी संरक्षित करने का काम , नानाजी देशमुख द्वारा स्थापित संस्था द्वारा अबाध गति से किया जा रहा है ।<br /><br /> आज का चित्रकूट , सिर्फ आस्था , से शीश नवाने का तीर्थस्थल ही नहीं है , बल्कि भारतीय परंपराओं , सेवा , शिक्षा ,और संस्कृति का अभिनव केंद्र है । कहना न होगा कि आस्था का चित्रकूट अगर राम पर केंद्रित है तो सांस्कृतिक ज्ञान का चित्रकूट , युगपुरुष नानाजी देशमुख पर , जिन्होंने तत्व सार से , राम को चित्रकूट के जनजीवन से संजो दिया ।<br /><br /> --- सभाजीत</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-47654530130139937102019-02-05T09:12:00.003-08:002019-03-05T11:19:38.355-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: large;">विन्ध्य की विरासत</span></b><br />
<div>
<br /></div>
<div>
<span style="font-size: large;">मैहर नगरी शारदाधाम</span><br />
<br />
<b>नेपथ्य गीत -,, स्त्री स्वर में ,, , ' कैसे के दर्शन पाऊं री , माई तोरी संकरी किवड़िया ' </b></div>
<div>
<br /></div>
<div>
<br /></div>
<div>
<b> एंकर </b>- सतना से ४० कि ० मी ० दूर , , , हावड़ा- मुंबई रेलवे मार्ग पर बसा मैहर नगर , आज सम्पूर्ण भारत का पवित्र तीर्थ स्थल है ! हजारों श्रद्धालु भक्तों का मेला इस नगर के प्रांगण में दिन रात लगा रहता है ! क्यों ना हो ,,? ,,विंध्य श्रेणी के त्रिकूट पर्वत पर विराजी , , विवेक और वाणी की अधिस्ठात्री , सिद्धि दात्री माई शारदा का धाम तो इसी नगरी में है ! विश्व में संगीत का डंका बजाने वाले , सितार के जादूगर , और सरोद वाद्य के अद्वितीय साधक , रविशंकर और अलीअकबर खान साहब का गुरुकुल भी तो इसी नगरी में है ! आध्यात्म , और भक्ति मार्ग के स्वामी , सिद्ध संत नीलकंठ महराज की तपोभूमि भी तो यही नगर मैहर है !<br />
<b> </b> , मैहर का अर्थ है ,," माई हार " यानी मैया का आँगन ! माई के आँगन में आया हर व्यक्ति , खुद को बेटे की तरह , माँ के सुरक्षित आँचल में निर्भय महसूस करता है ! उसे विश्वाश होता है की माँ उसके सब दुःख दर्द दूर करेंगी , हर कष्ट का निवारण करेंगी , और वह माँ के दर्शन करके , एक नयी ऊर्जा के साथ , मन में शान्ति धारण कर यहां से वापिस अपने घर लौटता है ! माँ की ममता होती ही ऐसी है ,, की बिना हिचक , वह अपनी संतान को वह सब देती है , जो उनसे मनुहार करके मांगते हैं !<br />
<br />
! संकल्प की लाल ध्वजा आसमान में फहराते हुए , मीलों दूर से टोली बना कर , भक्ति गीत गाते हुए , ग्रामवासी , माँ के आँगन में पहुँचते हैं खेतों में बोई फसल के प्रतीक चिन्ह जवारों के साथ , की हे माँ ,,हमारा कृषि धन तुम्हें अर्पित है ,, तुम हमारे घर , परिवार , और कृषि धन की रक्षा करना !<br />
<br />
कई लोग इस स्थान को शक्तिपीठ मानते हैं !यहां विभिन्न वेशभूषाओं में तांत्रिक , और साधक भी पहुँचते हैं , , अपने तप , और अपनी साधना का फल पाने के लिए ! ,<br />
<br />
<br />
( रेलवे स्टेशन )<br />
<b> </b> प्रतिवर्ष श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देख कर , रेलवे विभाग ने इस स्टेशन को , प्रतीक्षालयों को सुविधायुक्त और आकर्षक बना दिया है ! स्टेशन पर , ट्रेनों के रुकने हेतु , सर्वसुविधायुक्त , ३ लम्बे प्लेटफार्म बन चुके हैं ! स्टेशन पर खान पान की सुविधा के साथ , जल वितरण की समुचित व्यवस्था है ! स्टेशन पर इस नगरी की महत्ता का विवरण भी अंकित किया गया है ,,,जिसमें इसे संगीत महर्षि , उस्ताद अलाउद्दीन खान की नगरी के रूप में भी उल्लेखित किया गया है ! स्टेशन से बाहर निकलते ही , ऑटो रिक्शा , यात्रियों का इंतज़ार करते खड़े दीखते हैं ! ये मंदिर तक जाने का आधुनिक साधन हैं ! कुछ वर्षों पूर्व , मंदिर जाने के लिए तांगों और साधारण रिक्शाओं का भी प्रचलन था किन्तु समय के परिवर्तन ने इन्हे विलुप्त कर दिया !<br />
( घंटाघर चौक )<br />
<br />
मैहर की शारदा देवी मंदिर की और अग्रसर होते हुए , मार्ग में , मैहर बस्ती के भी दर्शन होते हैं ! चहल पहल से भरपूर बस्ती , अपनी धार्मिक आस्थाओं के साथ साथ अपनी जीवन्तता का भी परिचय देती है ! मार्ग में पड़ने वाले कुछ पुराने मंदिरों को पार कर , मैहर के उस चौराहे से गुजरते हैं , जो घंटाघर चौक कहलाता है ! इस चौराहे पर ही मैहर का मुख्य बाज़ार है ! यहीं एक संगीत महाविद्यालय भवन है , जिसमें उस्ताद अलाउद्दीन खां के द्वारा स्थापित मैहर बेंड का वादन हर शाम होता है ! चौराहे से देवी मंदिर की और आगे बढ़ने पर , मिलता है , विशाल तालाब विष्णु सागर ! गर्मियों में यह प्रायः सूखा रहता है , किन्तु बरसात में इसका जल सड़क के किनारों को छूने लगता है ! त्रिकूट पर्वत पर स्थापित मंदिर की आभा यहीं से स्पष्ट दृष्टिगत होने लगती है , और हर यात्री के पग , उल्लासित हो क्र मंदिर निहारते हुए , तेजी से उठने लगते हैं !<br />
<b> </b><br />
<br />
( बीएस स्टेण्ड )<br />
<br />
आगे आता है , मैहर का सर्वसुविधायुक्त , बस स्टेण्ड ! सड़क मार्ग से आने वाले यात्रिओं की बसें इस स्थान तक आ कर यात्रिओं को उतारती हैं ! बसों से उतरे हुए , यात्रियों के झुण्ड भी , माता के दर्शन के लिए , अपनी पग यात्रा प्रारम्भ करते हैं ! साधन संपन्न यात्री , यहां खड़े , ऑटो रिक्शाओं का सहारा ले लेते हैं ,, और मंदिर की और अग्रसर हो जाते हैं !<br />
किसी भी साधन से आये , किसी भी दिशा से आये , किसी भी स्थिति से आये , इस नगरी में , माता के दर्शन हेतु आया हर व्यक्ति , एक श्रद्धालु ही होता है ! माता के दर्शन हेतु आया , थका हारा , उसका एक पुत्र ! जिसे अपनी माँ के दर्शनों की चाह है , और माँ ने जिसे अपने धाम बुलाया है !<br />
<br />
<b> लगभग </b> १०० मीटर ऊँचे , उत्तंग शिखर पर बिराजी शारदा , आदिशक्ति का सार्व भौम स्वरूप हैं , जो मनुष्य की जिह्वा में वास करती है ! यह आदि शक्ति , जन्म से ले कर मृत्यु तक , सम्पूर्ण जीवों के विवेक और बुद्धि की स्वामिनी है ! ज्ञान के प्रतीक चिन्ह , कमल , शंख , पोथी , और माला , उनके कर कमलों में विदवमान है ! ज्ञान के अनुयायी भक्तों की रक्षा का भार , वे स्वयं उठाती हैं ! उनके भक्तों को किसी अस्त्र , शस्त्र युद्ध कौशल , शारीरिक बल की जरूरत नहीं ! संकट के क्षणों में , अपने असहाय भक्त की रक्षा , वे उसे बुद्धि प्रदान करके करती हैं !<br />
<b> </b> , शारदा मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही मन आल्हादित हो जाता है ! मंदिर के नीचे फैले क्षेत्र में , ध्वजा पताकाओं से सजा , छोटा सा बाजार , स्थानीय मेले का आनंद देता है ! माँ को प्रसाद चढ़ावे में , नारियल , इलायची दाने , चुनरी , और फूल मालाएं स्वीकार हैं ! यह सहज चढ़ावा है , जो हर व्यक्ति की आर्थिक सीमाओं के अंदर है ! मंदिर और मंदिर के पूरे परिसर की व्यवस्था की बागडोर आज स्थानीय प्रशाशन के हाथों है ! ,इसलिए , नवरात्रि की संभावित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए , परिसर से बहुत पहले से ही , छावं युक्त मार्ग विभाजन , इस तरह किया गया है , की श्रद्धालु गण कतार में चल कर , निर्विघ्न रूप से मंदिर तक पहुँच सकें ! मंदिर के नीचे बनी दुकानों में , हाथ पावं धोने , नहाने की समुचित व्यवस्था है ! ! मध्यमवर्गीय सम्पन्न श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए , यहां स्थानीय औद्योगिक संस्थानों ने धर्मशालाएं बना दी हैं जहां लोग ठहर भी सकते हैं !<br />
<b> </b> - प्रसाद हाँथ में लिए , यात्री नंगे पावँ , मंदिर की प्रथम सीढ़ी पर बने , विशाल प्रवेश द्वार पर पहुँचते हैं , जहां द्वारपाल के रूप में स्थापित हैं ,,भैरव देव ! जय माँ शारदे के जय घोष के साथ , ललाट पर टीका लगवा , माता का नाम ले कर भक्त शुरू करते हैं ११५६ सीढ़ियों की छायादार चढ़ाई ! पर्वत शिखर पर पहुँचने के लिए किसी जमाने में मात्र ५६५ बिना छाया दार , सीढ़ियां ही थी , जो तीन चरणों की दुर्गम , यात्रा को बहुत श्रमदायक बना देती थी ! लेकिन आज , पर्वत शिखर पर पहुँचने के लिए , यात्रा बहुत सुगम हो गयी है ! मंदिर के निकट से , ऊपर शिखर तक पहुँचने के लिए आज एक आधुनिक रोप वे उपलब्ध है , जिसमें निर्धारित किराया दे कर , सरलता पूर्वक ऊपर पहुंचा जा सकता है ! मंदिर के चारों और घूम कर , ऊपर शिखर तक जाने वाली , एक सड़क मार्ग भी है , जिसके माध्यम से वाहन सहित , पर्वत के तीसरी चरण तक आसानी से पहुंचा जा सकता है !<br />
<br />
बलुवा पर्वत के क्षरण की आशंकाओं को देखते हुए , अब पूरी सतर्कता बरती जा रही है , इसलिए नारियल चढाने का काम अब नीचे के प्रवेश द्वार पर ही सम्पन्न कर दिया जाता है ! अपने बालक की मंगल कामना के साथ , मुंडन संस्कार करवाने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी , अब मंदिर के नीचे ही , एक स्थान नियत कर दिया गया है ! यहां , नाइयों की टोलियां , अपने आसान बिछाये , बढ़ावे के गीतों के मध्य , रट सुबकते बच्चों का मुंडन करते है , जिनकी फीस स्थानीय प्रशाशन ने नियत कर दी है !<br />
जितनी भक्ति , जितना परिश्रम , , उतना ही फल , की भावना से ओत प्रोत अधिकतर श्रद्धालु , मंदिर पहुँचने के लिए , सीढ़ी मार्ग ही , चुनते हैं ! प्रारम्भ में जोश देखते ही बनता है , लेकिन धीरे धीरे उन्हें मालुम हो जाता है की , माँ के दर्शन आसान नहीं , जब स्वेद कण उनके मुंह पर झलकने लगते हैं ! ऊपर की और नजर गड़ाए , मान से दर्शनों की मनुहार करते , वृद्ध , अपाहिज , भी हिम्मत नहीं हारते और एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए , अंत में पहुँच ही जाते हैं मंदिर के द्वार पर !<br />
सीढी और सड़क मार्ग से पहुंचे यात्री जब मंदिर के प्रवेशद्वार पर पहुँचते हैं , तो उन्हें वहां बैठा मिलता है एक नफरी ! नगाड़े की ध्वनि करता हुआ , वह सबकी मनोकामनाओं की पूर्ती की मंगल कामना करता है ! अंदर एक छोटा सा प्रांगण है , जिसमें , हर सुविधाओं से पहुंचे श्रद्धालु , एक सार हो कर कतार बद्ध हो क्र आगे बनी , संगमरमर की सीढियों पर चढ़ कर माँ के समक्ष जा खड़े होते हैं ! माँ की झलक पाते ही हर यात्री , अपने श्रम और थकान को भूल कर , उन्हें एकटक अपलक निहारने लगता है ! आल्हादित मन में एक ही भाव उत्पन्न होता है ,,'माँ ,,, मेरा कुछ नहीं , जो कुछ दिया वह तुम्हारा ही है ! ! माता के सामने माथा टेक कर वह अपनी मनोव्यथा , मनोकामना व्यक्त करता है और साथ लाये नैवेद्य को भक्तिभाव के साथ समर्पित कर देता है ! एक क्षण के लिए , शक्ति और भक्ति एकसार हो उठती है ! चरणामृत ग्रहण कर , माथे पर टीका लगवा कर , प्रसाद ग्रहण कर , प्रफुल्लित मन से लोग आगे बढ़ जाते हैं , कतार का एक अंग बन कर !<br />
कभी कभी श्रद्धालुओं को माँ की आरती में भी समंलित होने का अवसर मिल जाता है जो दिन में तीन समय होती है ! प्रातः , दोपहर , और सांध्या की आरती दर्शनीय है ! जिनमे आरती का सामूहिक गीत , और अग्नि की लौ , एक ऐसे वातावरण का सृजन करती है , जो अलौकिक होता है !<br />
<br />
<b> </b> आगे , नरसिंघ अवतार की मूर्ती विराजमान है और बगल में है संकटमोचक हनुमान ! नरसिंघ अवतार की मूर्ती विष्णु के अवतार की द्योतक है ! किन्तु इस अवतार का स्वरूप अनोखा है ! हाथ में कोई अस्त्र शस्त्र नहीं , ना मनुष्य है ना पशु ,किन्तु हिरणाकश्यप जैसे वरदानी असुर की मृत्यु का कारक है ! यह स्वरूप हिरणाकश्यप को मिले उन वरदानी कवच का बौद्धिक तोड़ है , जिसके बिना , उसका अंत सम्भव ही नहीं था ! उधर हनुमान हैं , जो विष्णु की सहायतार्थ शिव द्वारा लिया गया अवतार कहे गए हैं ! विद्या वारिधि , बुद्धि विधाता , हनुमान के लिए ज्ञान और शक्ति एक ही स्वरूप में निहित है ! देवी परिसर में इन दोनों अवतार स्वरूपों का आध्यात्मिक महत्त्व है ,,इसलिए , देवी दर्शन के बाद , श्रद्धालु ,इन्हे सर नवाते हैं !<br />
मंदिर के पृष्ठ भाग में , माँ को याद दिलाते रहने के लिए , हत्थे लगाने का रिवाज है ! मंदिर के पीछे वाले शिखर प्रांगण में आ कर लोग संतोष अनुभव करते हैं की उनकी देवी दर्शन की साध पूरी हुई ! प्रांगण में लगे वट वृक्ष को महिलायें धागा बाँध कर मनौती करती हैं ! माता के मंदिर परिसर का कण कण साध पूरी करने का साधन है ! यहां घुमन्तु फोटोग्राफर , मंदिर यात्रा की यादगारों को फोटो में ढाल कर तुरंत पकड़ा देते हैं ,,, सदैव के लिए सहेज कर रखने के लिए !<br />
<b> </b> ,शिखर से नीचे झाँकने पर , नीचे बसी दुनिया और चलते फिरते लोग , खिलौनों की तरह प्रतीत होते हैं ! हिन्दू धर्म का यही तत्व सार है ,,,जब आप ईश्वर के निकट होते हैं तो शेष दुनिया आपको बौनी दिखती है ! शिखर से नीचे उतरते हुए यात्री धीरे धीरे पुनः उसी मायाजाल में प्रवेश करने लगते हैं , जिसे छोड़ कर , वे ऊपर माँ के दर्शन हेतु गए थे ! सीढ़ियों के दोनों और बैठे याचक , बहुरूपिये , मदारी , संपेरे , उन्हें नीचे की दुनिया से जोड़ने का माध्यम बनते हैं !नीचे बाज़ार है , माँ के चित्रों , मूर्तियों , अंगूठियों , घणो से सजी धजी दुकाने , भौतिक धरातल पर फिर ले आती हैं ! स्त्रियां अपने सुहाग रक्षा का सिंदूर खरीदती है , तो बच्चे खिलौने , और शर्म से निवृत हुए पुरुष क्षुधा शांत करने के लिए रेसुरेन्ट तलाशते हैं !<br />
माता के दर्शन , वर्षों के पाप धो देती है ! धरातल पर आकर भले ही मनुष्य फिर से मायाजाल में फंस जाता है , किन्तु माता उसे सदैव सचेत करती रहती है ! यही मनुष्य का जीवन क्रम है ,, अनवरत , निरंतर , !यही जीवन चक्र है ,,! यही हिन्दू दर्शन है !<br />
<br />
( आल्हा का अखाड़ा )<br />
<br />
" माता के भक्तों में , महोबे के शूरवीर , और आध्यात्मिक साधक , ' आल्हा ' का नाम यहां बहुत चर्चित है ! मंदिर के पीछे , एक स्थान ' आल्हा के अखाड़े " के नाम से विख्यात है ! किंवदंती है की आल्हा शारदा के परम भक्त थे , और उन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त था ! वे नियमित रूप से इस मंदिर में आते थे ,, और माता को पुष्प चढ़ाते थे ! वे चंदेल शाशक परमाल के दरबार के योद्धा थे , और जब १२वीं सदी में , दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान ने चन्देलों को हराया , और आल्हा के छोटे भाई उदल बलिदान हो गए , तो आल्हा जंगलों में चले गए ! आज भी एक पुष्प , ब्रम्ह मुहूर्त बेला में , मंदिर के पट खोलने पर , माता के चरणों में चढ़ा हुआ दिखता है , कहते हैं वह आल्हा द्वारा चढ़ाया जाता है !<br />
<br />
<br />
( रामपुर मंदिर )<br />
<br />
त्रिकूट पर्वत के पीछे , पर्वत श्रंखला का जो किला नुमा एक घेरा दिखता है ,, उस पर स्थापित है एक और सिद्ध पुरुष , नीलकंठ महराज का तपस्या स्थल ! नीलकंठ महराज पर माता की कृपा थी , और उन्हें कई सिद्धियां प्राप्त थीं ! कहते हैं की जो एक बार महराज के मुख से निकल जाए , वह होनी में बदल जाता था ! उनके इस स्थान पर आज एक प्राचीन रामपुर मंदिर है , जिसमें राधाकृष्ण की भव्य मूर्तियां स्थापित है !<br />
<br />
( ओइला आश्रम )<br />
नीलकंठ महराज द्वारा एक आश्रम सतना मार्ग पर स्थापित किया गया था , जहां उनके आध्यात्म गुरु ढलाराम की समाधि है ! यह आश्रम अब ' ओयला आश्रम ' के नाम से भव्य धार्मिक परिसर का रूप ले चुका है ! नीलकंठ महराज द्वारा , गरीबों के लिए प्रारम्भ किये भंडारे की परम्परा यहां आज भी निरंतर है ! नील कंठ महराज के समाधिस्थ होने पर उनकी भी समाधि यहीं बनाई गयी , और उसके साथ विभिन्न देवताओं के भव्य मंदिर भी निर्मित हुए ! यहां सिद्धविनायक , आदिशक्ति जगदम्बा , आदिदेव शिव , लक्ष्मी नारायण , राधाकृष्ण और रामदरबार की भव्य मूर्तियां हैं , जो आये हुए यात्रियों की मनोकामना पूर्ण करते हैं ! मैहर का यह पवित्र स्थान भी , माता शारदा के मंदिर के बाद दर्शनीय स्थान के रूप में जाना जाता है !<br />
<br />
( गोला मठ )<br />
<br />
धर्म ध्वजा धरनी , मैहर में अनेको अनेक प्राचीन स्थान , सिद्ध क्षेत्र की तरह बिखरे हुए हैं ! जिसमें बड़ा अखाड़ा , गोला मठ , हरनामपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर , गोपाल मंदिर आदि हैं ! मंदिर मार्ग पर स्थित गोला मठ १०वीं सदी में , कलचुरियों द्वारा बनाया गया शिव मंदिर है ! यह पूर्वमुखी , पंचरावी , नागरा शैली में बनाया गया मंदिर है , जिसके बारे में कहा जाता है की इसे मात्र पंद्रह दिनों में तैयार किया गया था ! इसके शिल्प में , खजुराहो के मंदिरों के दर्शन होते हैं , जो बताते हैं , की भोग और योग से ऊपर उठने पर ही शिव की प्राप्ति होती है !गोला मठ को भी मैहर के एक और साधक , मुड़िया महराज की तपोस्थली कहा जाता है ! बड़े अखाड़े में महाराजा मैहर के प्रथम गुरु द्वारा स्थापित राम जानकी मंदिर है ! हरनामपुर के समीप स्थापित जगन्नाथ मंदिर में प्रस्तर कला के विशिष्ट नमूने देखने योग्य हैं ! यहां वर्ष में एक बार रथ यात्रा भी निकलती है !<br />
<b> -</b><br />
( बाबा अलाउद्दीन )<br />
मैहर एक और सिद्ध पुरुष की तपोस्थली है , संगीत के महर्षि उस्ताद अलाउद्दीन खां की तपोस्थली ! बंगाल से , संगीत विद्या की प्यास मन में लिए निकले , अलाउद्दीनखाँ ने पहले कई घरानो में संगीत सीखने के लिए देश की गालियां नापीं , और अंत में रामपुर घराने से उन्हें वीणा वाद्य के बाज का गुरुमंत्र प्राप्त हुआ ! किन्तु यह सीख भी दी गयी की वह हमेशा उसी घराने के शिष्य कहलाएं और किसी को यह विद्या ना स्थानांतरित करें ! विद्या दान की वस्तु है ,, प्रसार की वस्तु है , इस मंत्र को हृदय में रख कर वह मैहर आये , और शारदा की ड्योढ़ी पर बैठ कर महीनो सरोद पर रियाज़ किया ! माता प्रसन्न हुई तो उनके गुण ग्राहक बने यहां के राजा बृजेन्द्र सिंह ! अलाउद्दीनखाँ से उन्होंने ना सिर्फ गंडा बंधवाया , बल्कि उन्हें भूमि दी , आर्थिक सहायता दी ! धीरे धीरे बाबा अलाउद्दीन की ख्याति पूरे देश में फ़ैल गयी और माता शारदा की कृपा से उन्हें दो ऐसे शिष्य रत्न मिले जिन्होंने , मैहर को एक संगीत घराने का नाम दे दिया ! सितार के जादूगर , पंडित रविशंकर , और खुद अलाउद्दीनखां साहब के पुत्र सरोद वादक अली अकबर खान , बाबा से संगीत सीख कर , देश के वे रत्न बने जिनकी चमक देश के साथ साथ विदेश तक में आलोकित हुई ! सुश्री , अन्नपूर्णा देवी , जो बाबा की बेटी थी , एक कुशल संगीत साधक हुईं , और उनका विवाह रविशंकर के साथ हुआ !<br />
बाबा के समाधि स्थल का नाम मदीना भवन है , जो उनकी पत्नी के नाम पर है ! यहां पर उनके जीवनकाल के चित्र , पुराणी यादें ताजा करते हैं ! उनके ही घर में एक म्यूजियम भी है जहां अनेक प्रकार के भारतीय वाद्य यंत्र , मैहर गुरुकुल की कथा कहते दीखते हैं ! बाबा , प्रयोग धर्मी संगीतज्ञ थे ! राजा के शस्त्रगार में रखी पुराणी बंदूकों की नालें काट कर उन्होंने उसे एक नए वाद्य यंत्र का स्वरूप दे दिया , जो आज मैहर बेंड का अभिनव वाद्य , नलतरंग कहलाता है ! मैहर बेंड भी बाबा के दें है , जिसमें उन्होंने मैहर के संगीत प्रेमी बच्चों को जोड़ कर , उन्हें वाद्य यंत्र बजाना सिखाया , और सैकड़ों तर्जें इज़ाद की , जो आज मैहर बेंड की शान है !<br />
<br />
( राजघराना महल )<br />
<b> </b>, मैहर की आधारशिला है यहां का राजघराना ! जिसके कला प्रेम से ही आज मैहर पूरे देश में , संगीत घराने के रूप में विकसित हुआ ! यहां के राजा बृजेन्द्र सिंह को भी एक सिद्ध पुरुष कहा जाए तो अतिशियोक्ति ना होगी ! जिस स्थान पर माता शारदा विराजी हो , उस स्थान के राजा पर माँ की ऐसी कृपा रही , की उन्हें कभी संकट देखने या झेलने का कोई अवसर सम्मुख नहीं आया ! महाराजा बृजेन्द्र सिंह वे भागीरथ थे , जो संगीत की मंदाकिनी बाबा अलाउद्दीन को मैहर ले कर आये !<br />
मैहर रजवाड़े के महल उस संगीत चेतना , और भक्ति भाव के गवाह हैं , जो इस रजवाड़े में व्याप्त रही ! रजवाड़े के महल , परकोटे , भग्नावशेष , किले , प्राचीरें , आज भी उन राज सिद्धों को नमन करती हैं , जिनके कारण आज मैहर दृश्य है ! उनके महल के दरबार में अभी भी लगता है जैसे संगीत की महफ़िल अभी अभी उठी हो !<br />
<br />
<br />
( सीमेंट उद्योग संस्थान के चित्र )<br />
<b> </b> ! यद्यपि आज रजवाड़े और राजा नहीं रहे , किन्तु उनके स्थान पर , औद्योगिक घ्राणो के विशिष्ट उद्योगपति , मैहर की यश पताका पूरे विश्व में फहरा रहे हैं ! विंध्यांचल की तराई में , कटनी से रीवा तक , पृथ्वी के गर्भ में छिपी , एक अदम्य शक्ति , लाइम स्टोन आज विश्व में उच्च गुणवत्ता की सीमेंट का आधार है ! जो आधुनिक भारत के निर्माण में अपनी अदब्वितीय भूमिका निबाह रही है ! पहले यहां चुने के भट्ठे लगते थे ,, लेकिन पर्यावरण के मूल्यों को नमन करते हुए अब वे शांत हैं ! आज यहां , बिरला घराने का मैहर सीमेंट उद्योग के साथ साथ , रिलायंस सीमेंट , केजेएस सीमेंट के संयंत्र निरंतर सीमेंट निर्माण में संलग्न हैं !<br />
<b> </b><br />
<b> ( िचौल आर्ट के सीक्वेंस ) </b><br />
<b> </b> बदलती हुई संस्कृति के बीच , पुरानी संस्कृति को कलात्मक स्वरूप दे कर , अक्षुण रखने का काम कर रही है , मैहर के निकट बसे ग्राम इचौल में स्थापित। इचौल आर्ट संस्था ! यह आज एक दर्शनीय स्थान के रूप में करवट लेता स्थान है जो सतना मार्ग पर , मैहर से मात्र दस किलोमीटर दूर है ! यहां कबाड़ से निकली चीजों को अद्भुत रूप दिया गया है और इसे एक पार्क के स्वरूप में विकसित किया गया है ! परिसर के अंदर ही , एक रेस्टोरेंट है जहां सभी व्यंजन मिलते हैं !<br />
<br />
( उपसंहार )<br />
<b> ,, आध्यात्म , संगीत , भक्ति , और शक्ति की पर्याय मैहर नगरी को लोग कई पीढ़ियों से नमन कर रहे हैं ! मैहर के वायुमंडल में संगीत झंकृत होता रहा है , और सिद्ध दात्री माँ शारदा की अनुकम्पा , इस भूमि के कण कण पर है ! माँ के दर्शनों की ललक मन में लिए यहाँ के ग्रामीणों के कंठ से , लोकगीतों के मधुर स्वर निरंतर फूटते हैं,,</b><br />
<b> " माई के दुआरे एक अंधा पुकारे , देवो दर्श घर जाऊं री , माई तोरी संकरी किवड़िया " </b><br />
<b> प्राचीन काल में भले ही माई के मंदिर की किवड़िया संकरी रही होगी , लेकिन आज माई के द्वार की किवड़िया संकरी नहीं हैं ! पूरे देश के कोने कोने से आकर माई के दर्शनों का अमृतपान , भक्त निरंतर , ३६५ दिन करते हैं , और माई उन्हें निरंतर वात्सल्य भाव से निहारती है , उनकी मनोकामना पूरी करती है , उनके दुखों का निवारण करती हैं !</b><br />
<b> एक बार मैहर आइये , तो आप बार बार मैहर आएंगे , यह हमारा विश्वाश है ! </b><br />
<b><br /></b>
<b>----</b> आलेख सभाजीत<br />
<br />
</div>
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-57626256904640023472019-02-02T03:44:00.001-08:002019-03-05T10:52:02.950-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">,," विंध्य की विरासत " ,,</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;"> प्रथम अंक </span><br />
<br />
( एक व्यक्ति ढलवां पहाड़ी के पीछे से निकल कर , क्रमशः उठता हुआ ,,कैमरे के आगे आता है ! पीछे , पृष्ठभूमि में फ़ैली हुई विंध्याचल पर्वत की चोटियां हैं ! आगे आया हुआ ,, एंकर है ,,कैमरा ज़ूम हो कर एंकर पर जाता है ! )<br />
<br />
<b>एंकर</b> -दोस्तों,,! आज हम अपने धारावाहिक " विंध्य की विरासत " के माध्यम से , विंध्याचल पर्वत के पूर्वोत्तरी भाग में बिखरी , उस भूमि से आपका परिचय कराने जा रहे हैं , जिसके कण कण में राम का वास है , जिस की पवित्र भूमि में , ऋषियों और महर्षियों के तप का तेज ,है जिसके अतीत के पृष्ठों में , कई वीर राजवंशों की गाथाएं हैं , और जिस के नगरों में पग पग पर आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक की राष्ट्रीय धरोहरें स्थापित हैं ! यह भूमि भाग ,,, विंध्याचल पर्वत की तराई में , बघेल खंड के शहडोल जिले से लेकर, रीवा , सीधी , सतना , पन्ना जिले के घने जंगल लांघता , , बुन्देल खंड के ऐतिहासिक नगर खजुराहो , , ओरछा , टीकमगढ़ तक फैला हुआ है !यह भूमि भाग , आदिकालीन द्रविण संस्कृति और आर्य संस्कृति की साझा विरासत है !<br />
<br />
<br />
{ <b>नेपथ्य से वाइस ओवर </b> ) ( <b>विभिन्न दृश्यावली के साथ</b> ) ,<br />
भारत के हृदय क्षेत्र , मध्यप्रदेश की , पूर्वोत्तरी सीमाओं पर , पौराणिक कथाओं के अनुसार , अगस्त ऋषि को दिए वचन को निबाहता विंध्याचल पर्वत , जिस भू भाग को अपने अंक में समेटे है , वह विंध्य भूमि के नाम से जाना जाता है ! इस क्षेत्र को सींचने वाली सात नदियाँ , रिहन्द , सोन , तमसा , सतना , केन , धसान , और बेतवा , निरंतर बहने वाले गहन जल से भरी हैं ! !' विंध्यांचल की कैमोर श्रेणी के सहारे बहते हुए सोन के तट पर ,विंध्याटवी के रमणीक वन में स्थित , , भ्रमर शैल पर , महाकवि बाण भट्ट ने , अपना आश्रम बना कर , कालजयी काव्य कथा " कादंबरी " की अद्भुत रचना की ! इसी सोन के तट पर , चंद्रेह के अद्भुत शिव मंदिर का निर्माण हुआ ! इसी सोन के तट पर , मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम था और , आधुनिक भारत के निर्माण में , पर्वतों को तोड़ कर , महीन बालू प्रदान करने वाली प्रमुख नदी यही सोन है इसी सोन नदी को बाँध कर , आज बड़ा जल विद्युत् उत्पादन शक्तिकेंद्र बनाया गया है !<br />
<br />
<br />
<br />
कैमोर पर्वत श्रंखला के ही ' तामकुंड ' स्थल से निकली , -विंध्य क्षेत्र की प्रमुख दूसरी प्रमुख नदी, ,, ' तमसा ',, यानी टोंस नदी का यहां के जनजीवन में बहुत महत्त्व है ! यह नदी यहां के चूने पत्थर के पथरीले क्षेत्र पर बहती हुई , धार्मिक नगरी मैहर में , माँ शारदा का मुंह निहारती हुई , सतना नगर के निकट , माधवगढ़ किले को दुलारते हुए , रीवा जिले के विद्युत् शक्ति केंद्र सरमौर में पहुँचती है और फिर वहां से निकल कर चाकघाट होते हुए यमुना नदी में जा मिलती है ! २६४ किलोमीटर की इस यात्रा में , वह , रीवा रियासत में कई मनोरम प्रपातों का सृजन करती है जो देखते ही बनते हैं ! पुरवा , चचाई , और क्योटी प्रपात , विंध्यभूमि के चर्चित प्रपात हैं , जिसका अपार जल हृदय को आनंदित करता है ! तमसा नदी का उलेख रामायण में भी है , जिसके किनारे पर , राम ने , वनयात्रा के दौरान , अयोध्या त्यागने के बाद पहली रात्रि विश्राम किया था ! आधुनिक भारत के निर्माण में , विंध्याचल श्रेणियों की तरहटी में , बिखरा चूने पत्थर का अनमोल खजाना , सीमेंट निर्माण का मूल तत्व है ! इसलिए सतना और रीवा क्षेत्र में आज सीमेंट के कई कारखाने उच्च ग्रेड की सीमेंट बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं !<br />
<br />
( <b>नेपथ्य में वाइस ओवर </b> )<br />
विंध्य भूमि का रीवा नगर , बघेल राजवंशों की राजधानी रहा ! बघेल राजाओं की पूर्ववर्ती राजधानी पहले , बांधवगढ़ में स्थापित हुई ,, जहां का अजेय ,किला कई राजवंशों के उत्थान , पतन , आपसी युद्धों , और राजशाही के उथलपुथल का गवाह रहा है !विश्व प्रसिद्द सफ़ेद शेर , इसी बघेल राजवंश की दी हुई सौगात है ! बांधवगढ़ का वन्य अभ्यारण , न केवल समूचे देश में प्रसिद्द है , बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी लुभा रहा है ! रीवा जिले के गोविंगढ़ तालाब में बना राजशाही युग का कठ बंगला सहज ही सबको अपनी और खींच लेता है , विंध्य भूमि के इसी भाग में , शिव , ,वैष्णव संस्कृतियों के अवशेष , आज भी धार्मिक उथल पुथल की गवाही देते हैं वहीं बौद्ध काल के स्तूपों के अवशेष और जैन मंदिर के स्मृति चिन्ह भी अहिंसा के परम् धर्म और विचारधारा की कथा कहते नजर आते हैं !मुगलकाल में , शहंशाह अकबर के दरबार के नौ रत्नों के दो रत्न , तानसेन और बीरबल भी इसी विंध्य भूमि के रत्न थे , जो रीवा राज से अकबर दरबार भेजे गए ! आज़ादी के संघर्ष में , बलिदानी युवकों में रणमत सिंह का नाम , यहां के इतिहास में अमित अक्षरों में दर्ज़ है !<br />
<br />
विंध्याचल की छितराईयों श्रेणियों के बीच शोभा देता चित्रकूट , सतना जिले को धार्मिक आस्थाओं का केंद्र बिंदु है , जहां भगवान् राम का , मंदाकिनी नदी के किनारे , बारह वर्षों तक निवास रहा ,,और जहां की पर्वत श्रेणियों में स्थित , कामदगिरि , दो भाइयों के आत्मिक प्रेम का गवाही देता है !<br />
<br />
( सतना जिला )<br />
विंध्य भूमि का सतना जिला बघेलों और प्रतिहार ठाकुरों की कर्म भूमि रहा है ! यहाँ मैहर की शारदा देवी , विवेक वाणी , और कला की वरदानी देवी है , भरहुत पहाड़ पर बने बौद्धकालीन स्तूप और उनके केंद्रों के अवशेष सम्राट अशोक के शाशन काल की गाथा , पाषाण मूर्तियों के माध्यम से कह रहे हैं ! चौमुखनाथ मंदिर में शिव की चारमुद्राओं की अद्भुत मूर्ती इसी क्षेत्र में विराजी हुई है !चन्देलों के काल में बने खजुराहो के मंदिर आज विश्व में कोतुहल का केंद्र बने हुए हैं और योग , भोग , और मोक्ष ,के आनंद की परिभाषा , पाषाण मूर्तियों के ज़ुबानी बखान रहे हैं ! ,<br />
<br />
<br />
<br />
( <b>नेपथ्य से वाइस ओवर </b> )+ ( कवरेज )<br />
विंध्य पर्वत श्रेणियों के घाट चूमती , कर्णावती नदी ,,, ,के जल में किलोल करते मगर और घड़ियाल , जहाँ सदियों से पथिकों को भयभीत करते रहे वहीं केन नदी के किनारे फैला विशाल वन अभ्यारण , वन्य जीवों के राजा , बाघ का ऐशगाह रहा ! पन्ना नगरी के चर्चित धार्मिक मंदिर यहाँ आध्यात्म की अलख जगाते हैं , कृष्ण भगवान् का ' किशोरजी ' के मंदिर के साथ उनके बड़ेभाई बलदाऊ जी का भी विशाल मंदिर यहां स्थापित है !यहीं से प्रणामी सम्प्रदाय की नई धर्म परम्परा की धारा फूटी ! पन्ना का प्रणामी मंदिर आज भी प्रणामी धर्म के अनुयायियों का दर्शनीय मंदिर और आध्यात्म का केंद्र है !<br />
<br />
<b>पुरुष एंकर - ( धुवेला के तालाब पर ) -</b><br />
विंध्य श्रेणियों पर बसा छतरपुर , वस्तुतः छत्रसाल के नाम पर बसाया गया नगर था , यह विंध्य के , बिजावर पठार पर बसा हुआ है ! यहां से बीस किलोमीटर दूर , नोगावं जाते हुए , मध्य मार्ग में पड़ता है मऊसहानियां , जो छत्रसाल की प्रारम्भिक राजधानी के रूपमें विख्यात है ! बाजीराव पेशवा की नृत्यांगना प्रेयसी , ' मस्तानी ' यहीं से मराठे दरबार को भेंट में भेजी गयी थी ! मऊसहानियां के तालाब , छत्रसालयुग के प्रतीक हैं ! यहां स्थापित आधुनिक धुवेला म्यूजियम युद्धों में प्रयोग किये गए शास्त्रों का आगार है !<br />
<br />
<b>नेपथ्य में </b><br />
यह भू भाग चन्देलराजवंशों के स्थापत्य कला , और मूर्ती कला का गवाह है ! खजुराहो के मंदिर विश्व विख्यात हैं ! वहीं चंदला के निकट , पहाड़ी पर बनाये गए , बुंदेलों के , एक दुर्ग की छवि दर्शनीय है ! यह स्थान तीन दिशाओं का मार्ग संगम रहा ,,,जिसमें महोबे की दिशा में फैले पाने के बरेज , महोबे के प्रसिद्द पान की शान की विरासत को संजोये हुए हैं !<br />
<br />
<b>स्त्री एंकर - </b><br />
विंध्य पर्वत की श्रेणियों के मध्य बहती धसान और बेतवा नदी ने विंध्य भूमि के उन पृष्ठों को रचा है , जिसमें बुंदेले रजवाड़ों की वीर कथाएं , यहां के प्राचीन अजेय दुर्ग , गढ़कुंडार और ओरछा में पनपी हैं ! गढ़ कुंढार से उदय हुई , बुंदेले राजवंशों के शौर्य की गाथाएं , बेतवा के तट पर बने ओरछा नगर तक बिखरीं हुई हैं ! अकबर के दरबार में , धर्म के धनी , वीर बुंदेले मधुकर शाह के मस्तक पर , जो राम भक्ति का तिलक लगा , वह ओरछा को अयोध्या से लाये गये राम राजा की राजधानी बनाने तक , सदैव दमकता रहा ! उनके वारिस महराजा रामसाह के शाशन काल में , यहां काव्य और साहित्य की जो धारा बही , वह काव्य शिरोमणि केशव के काल से अंकित है ! केशव ने जो काव्य रचनाएं की वे कालजयी हैं ! इसी युग में ओरछा के कुंवर इंद्रजीत की प्रेयसी , काव्य विदुषी , नृत्यांगना , रायप्रवीण के साहस की कथा जन श्रुतियों में बड़े स्वाभिमान स के साथ कही जाती है ! ओरछा का इतिहास , लक्ष्मण और , सीता के पवित्र देवर भाभी के रिश्ते को भी दोहराता है जो हरदौल और उनकी भाभी के बीच यहां श्रद्धा स्वरूप पूजा जाता है !<br />
( <b>नेपथ्य में</b> )<br />
ओरछा , वेत्रवती , बेतवा नदी के तट पर बसा एक रमणीक नगर है !यहां के महल , मंदिर , और बेतवा का प्राकृतिक सौन्दर्य आज अनुपम आभा बिखेर रहे हैं ! राम भगवान् के अयोध्या से यहां आने पर बुन्देल राजवंशों ने ओरछा छोड़ कर अपनी राजधानी टीकमगढ़ कर ली ! टीकम गढ़ , के चारों और कई किले हैं , जिनमें बुंदेले राजवंशों का इतिहास बिखरा पड़ा है ! टीकमगढ़ के निकट , बाणासुर के युग में प्रकट हुए , भगवान् शिव की शिवलिंग है , !<br />
<br />
<b> पुरुष एंकर -- </b> सात नदियों , रिहन्द , सोन , तमसा , सतना , कर्णावती , धसान , बेतवा , से सिंचित , आम्र कूट और चित्र कूट के शैल शिखरों से सजा , आदिवासी जनजातियों की संस्कृति अपने में संजोये , विभिन्न<br />
रीतिरिवाजों को निबाहता , आदिकाल के स्मृतिचिन्हों को गहन वनो के बीच अक्षुण रखे , विभिन्न अरण्यों में विचरते वनजीवों के आश्रय , शौर्य की धरोहरों को गॉड में समेटे , साहित्य , कला , और संगीत के धनी , इस विंध्य क्षेत्र की कथाएं , धारावाहिक के इन सीमित अंकों में समेटना सहज नहीं है ! यह धरा जहां वैदिक युग के स्मृति चिन्हों की साक्षी है ,जहां मध्यकाल के राजवंशों की उथल पुथल की गवाह है , वहीं यह आधुनिक भारत की छवि में भी अब धीरे धीरे परवर्तित होती जा रही है ! इस धरा के गर्भ जहां में चुना पत्थर , हीरा , कोयला, जैसे खनिज छिपे हुए हैं , वहीं यह धरा , वनोपज , और वन्य संस्कृति , के निर्वाहक , जनजातियों में --कोल , गोंड , भारिया , अगरिया , बैगाओं की जीवन शैली तथा उनकी संस्कृति की आधार भूमि है ! पाषाण युग के भित्तचित्र भी इस क्षेत्र के गहन वनो में स्थित है ,, जो मनुष्य जाती के क्रमशः उत्थान कथा कह रहे हैं ! इन संस्कृतियों की पूरी कथाएं कहने , उनके उत्सवों , खानपान की कथा बखानने , उनके नृत्य संगीत को निहारने , उनकी व्याख्या करने में कई अध्याय लग लग जाएंगे !<br />
भले ही राजशाही के कारण , यहां विभिन्न संस्कृतियों का चलन हुआ , किन्तु आम्रकूट से लेकर , चित्रकूट होते हुए ओरछा तक फ़ैली इस धारा के कण कण में एक ही आराध्य लोगों के हृदय में बसे हुए हैं और वे हैं --,,," राम ",,! राम इस धरा की आत्मा हैं , राम इस धरा के आदर्श हैं , राम इस धरा के नायक हैं , इसलिए यहां का जनजीवन सहजता , सरलता और आस्था के एक ही सूत्र में पिरोया हुआ दिखता है !<br />
अपने धारावाहिक विंध्य की विरासत में हम , यहां के कुछ आकर्षक स्थानों , परम्पराओं , संस्कृतियों से आप को जोड़ेंगे ,, जिसमें रमने के बाद आप के मन में एक ही अभिलाषा जागेगी , विंध्य की इन वीथियों में विस्तृत भ्रमण की , उसमें बिखरे आध्यात्म को आत्मसात करने की , उसके प्राकृतिक सौन्दर्य का रसपान करने की ,और उसके रमणीय स्थलों में रम जाने की ,,! हमारा विश्वाश है की आप हमारी इन कड़ियों से जुड़ने के बाद कहेंगे ,,, यह तो आनंद का अथाह है ,,, इसमें जितना डूबें ,,,उतना कम है !<br />
तो अगली कड़ी का हमारे साथ इंतज़ार कीजिये ,,, और अपना टीवी , अपनी चैनल पहले से खोल कर रखिये ,,रात्रि ,,,बजे ,,, , ',,,' चैनल पर ,,!<br />
शुभरात्रि ,,!<br />
<br />
( आलेख ,,,सभाजीत</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-12671794845891337992019-02-01T22:35:00.000-08:002019-03-05T10:15:44.067-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; font-size: large; line-height: 18.48px;"><b>विंध्य की विरासत</b></span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"><b><br /></b></span>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; font-size: large; line-height: 18.48px;"><b>सतना शहर</b></span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;">प्रथम अंक</span><br />
सूर्योदय का दृश्य !<br />
लोगों के घूमने , जॉगिंग , करने के दृश्य ! आवागमन के दृश्य ! चाय की गुमटी के दृश्य ! जलेबी समोसे की दूकान के दृश्य ! <br />
<b> ( वाइस ओवर ) </b><br />
<b><br /></b>
<b> </b> सूर्य की नई किरण के साथ ही करवट लेने वाला सतना शहर , विंध्य भूमि का वह यशश्वी शहर है , जिसकी विरासत में श्रम ही उसकी अपनी खुद की पूंजी है , ! सुबह से ही लोग , खुद को तैयार करते हैं , दिन भर की भाग दौड़ के लिए , ताकि वे विकास की तेज दौड़ में अन्य शहरों की तुलना में कहीं पिछड़ ना जाएँ ! हर दिन , महानगरों की होड़ से प्रभावित , यह शहर , हर दिन नए नए व्यवसायों की और उन्मुख होता है , और स्मार्ट सिटी बनाने की दौड़ में , चमक दमक से भरे , नए नए बाजारों का सृजन करता है ! जरूरतें , बाजार को जन्म , देती हैं और बाजार उपभोक्तावाद को ! सतना शहर के जन्म की कहानी भी , जरुरत और उपभोक्तावाद की एक कहानी है , जो तब शुरू हुई जब ,देश की प्रथम विफल क्रान्ति के बाद , अंग्रेजों ने , देशी रियासतों पर अंकुश लगाने के लिए यहां एक सैनिक छावनी स्थापित की , , ! अंग्रेजों ने सतना की सैनिक छावनी को , अन्य मुख्य सैनिक छावनियों , जबलपुर , इलाहाबाद , झांसी से आपस में जोड़ने के लिए , जब रेलवे लाइनों का निर्माण किया , तो उस रेलवे लाइन पर बना १८६८ में एक नया स्टेशन ,,सतना !<br />
जल्दी ही , अंग्रेज अफसरों और उनकी सैनकों की जरूरतों को पूरी करने के लिए एक बाजार की जरुरत पडी , और तब रेलवे स्टेशन के आस पास ही बना सतना का छोटा सा बाजार , जिसे देश के अलग अलग प्रांतों से आये लोगों ने साझा संस्कृति के रूप में , विकसित किया ! बुंदेलखंड और बघेल खंड की रियासतों के बीच , यह एकलौता स्टेशन था , जो उन्हें पूर्व में हावड़ा , और पश्चिम में मुंबई महा नगरों से जोड़ता था , इस लिए यहां का वह छोटा सा बाजार , बहुत जल्दी ही , रीवा , सीधी , पन्ना , छतरपुर रियासतों के लिए , थोक बाजार के रूप में विकसित हो गया ! इसलिए सतना के विकास की कहानी का सबसे बड़ा गवाह है यहां का रेलवे स्टेशन जिसकी यादों के बस्ते में कई कहानियां करीने से सजी हुई राखी हैं !<br />
( <b>नेपथ्य का एंकर वाइस ओवर</b> )<br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> आज के कायाकल्प की चमक से ओतप्रोत , सतना शहर के स्टेशन की आँखों ने , कई रंग बिरंगी घटनाएं अपने जीवनकाल में देखी है ! इस स्टेशन ने , गोरी जाति के अंग्रेजों की उस पहली व्हाइट ट्रेन को देखा है , जिसमें भारतीयों के लिए यात्रा करना निषेध था ! इसने पहली इलाहाबाद से भुसावल के लिए चलने वाली पैसेंजर ट्रेन को भी रवाना किया है ,इसने रीवा रियासत के महाराजा , गुलाब सिंह की बरात को आते जाते देखा है , अंगरेजी हुकूमत के वायसराय के भव्य स्वागत को देखा है , पृत्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर के लाव लश्कर को यहां उतरते देखा है , और उनके पुत्र , राजकपूर की बरात की आगवानी भी की है ! स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में , महात्मा गांधी के दर्शन के लिए उमड़ी अपार भीड़ को देखा है , जवाहरलाल नेहरू , लोकमान्य तिलक , सुभाषचंद्र बोस के आत्मिक स्वागत को भी देखा है ! </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> यह किसी राजवंश के द्वारा बसाया गया कोई रियासती , शहर नहीं था ! इसलिए इस शहर में ना तो कोई किला था , ना कोई , परकोटा ना प्रवेश द्वार , ना कोई बुर्ज़ ! इसे ना कभी किसी विदेशी आक्रमण का डर लगा , ना आतातायी लूट का ! इस शहर को उन हाथों ने ,पाला , जो अलग अलग धर्म , अलग अलग जाती , अलग अलग संस्कृति के थे ,,जिनमें आपसी वैमनस्य नहीं था ,और ना सत्ता की भूख ! वे इस शहर को अपने बच्चे की तरह प्यार करते थे , और इसका लालन पालन , इसका विस्तार , अपनी नेक नियती के साथ किये !</span><br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> <b> -</b>-सतना के जन्म की कहानी जहां से शुरू होती है ,, वह जगह , आज सिविल लाइन कहलाती है ! जिस क्षेत्र में कभी , अंग्रेजों की पलटन के घोड़े , , सैनिकों की बैरकें , अधिकारियों के बंगले , हुआ करते थे , अब वह यहां का न्यायालय परिसर बन चुका है ! भले ही १५० वर्ष बीत गए , लेकिन इस न्यायालय परिसर के भवनों की बनावट , उस काल की गवाही देती नज़र आती हैं ! आज इस परिसर में सुबह से ही जैसे मेला लग जाता है ! न्याय की प्रतीक्षा में आये ग्रामीण लोग अपने अपने वकीलों को खोजते यहां घुमते नजर आते हैं ! वकीलों का , एक एक कुर्सी का सामूहिक दफ्तर , तीन शेड के नीचे सज जाता है , और टाइपराइटरों की खट खटाहट शुरू हो जाती है ! चाय और पान , इस परिसर की ऊर्जा है , इसलिए पान चाय के ठेले यहां वहां लगे दिख जाते हैं ! बीच बीच में , न्यायाधीश के दरवाजे पर हुई पुकार, एक अनोखी हलचल पैदा करती रहती है ,,जिसमें मिसिल दबाये वकील और पक्षकार , अपने गवाहों के साथ , दरवाजों की और दौड़ते नज़र आते हैं ! न्यायालय परिसर से लगे , भव्य बंगले , जिनमें कभी अंग्रेज अफसर रहते थे , आज , कलेक्टर , पुलिस अधीक्षक , और अन्य जिला अधिकारियों के निवास में तब्दील हो चुके हैं ! जहां कभी , सिरकम , बग्घियां , और घोड़ों की लाइन लगी रहती थी , वहां अब लाल पीली बत्ती की सरकारी चमचमाती कारे खड़ी दिखती हैं ! </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> सतना के इतिहास का अहम हिस्सा आज , रेलवे लाइन के किनारे बना रेलवे कालोनी के रूप में , फैला दीखता है , पुराने क्वार्टर्स , रेलवे के पुराने स्वरूप को दर्शाते हैं ! यहां एक छोर पर , १८८ ८ में बना , सैंट मेरी चर्च , १५० वर्ष की स्थापित्य कला का नमूना है ! यह आज भी यहां के क्रिश्चियन समाज का अहम् उपासना स्थल है , ! गुड़ फ्राइडे , और क्रिसमिस डे के अलावा , नए वर्ष के आगमन पर यह चर्च गुलजार हो उठता है ! रेलवे के इसी छोर के अंत में , एक १५० वर्ष पुराना</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;">क्रिश्चियन</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> कब्रिस्तान है </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> जिसकी गोद में , सतना के अधिष्ठाता अंग्रेज अफसरों सहित , शहर के क्रिश्चियन समाज के कई लोग , चिर निद्रा में लीन है ! </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> ( <b>इंटरव्यू किसी क्रिश्चयन वृद्ध का</b> ) </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> सतना की </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> स्टेशन रोड पर स्थित आज का सरकारी महाविद्यालय , कभी रीवा महाराजा की कोठी हुआ करता था !दो मंजिला , कोठी की लाल और भूरे पत्थरों की दीवारें , इसका गोल खम्बों वाला पोर्च , दीवारों पर बना रीवा राज्य का राजचिन्ह , फर्श पर लगा बर्मी टीक , और नीचे का दरबार हाल इसके अतीत की कहानी कहता है ! राजशाही के जमाने में , इसके अहाते में एक बड़ा चिड़ियाघर भी था , जिसमें कई प्रजातियों की चिड़ियाँ थी </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद भी यहां रुक चुके हैं ! इसका शिल्प बताता है की यह भवन , रियासती जमाने में सतना की शान था ! ! आज यहां क्षात्रों के भविष्य को संवारता , सतना का ऐतिहासिक महाविद्यालय है ! इसके प्रांगण में , युवा क्षात्रों की हलचल आने वाले भारत के उज्जवल भविष्य का संकेत देती है </span><br />
<div>
</div>
<div>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"><br /></span></div>
<div>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> अमूमन , किसी शहर का इतिहास उसके ऐतिहासिक भवनों से परिलक्षित होता है ! ,लेकिन सतना का इतिहास यहां के चौराहों में अंकित है </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> ! </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> यहां का ऐतिहासिक पन्नीलाल चौक , कभी अंग्रेज मेमों , और अंग्रेज अधिकारियों का सैरगाह था ! यहां पन्नीलाल सौदागर की चर्चित दूकान थी , जिसमें विदेशी कपड़ा , बिस्कुट , शराब , डिब्बा बंद गोस्त , ग्रामोफोन के रिकार्ड , वगैरह मिलते थे , जिन्हे अंग्रेज खरीदने आते थे ! यह चौराहा , डाक्टर राम मनोहर लोहिया की सभा , पहलवान गामा की हुंकार , , आर एस एस के दफ्तर और संघ कार्यकर्ताओं की हलचल , समाजवादियों के अड्डे , का गवाह है ! इसी चौराहे पर हाजी गनी का होटल था ! जिसमें गांधी जी के बगावती पुत्र , हरी लाल गांधी , जो कुछ दिन सतना में रहे , भोजन करने आते थे ! आज भी यह चौराहा शहर का प्रसिद्द चौराहा है , जहां भरा पूरा बाज़ार , होटल , और धर्मशालाएं हैं ! इसी चौक के फैज़ होटल में , डाक्टर लोहिया , राजनारायण , मृणाल गोर , जॉर्ज फर्नाडीज वगैरह आ चुके हैं ! यहां रामलीला का भरत मिलाप संपन्न होता है , ! इसी के निकट , जैनियों का उपासना स्थल , जैन मंदिर भी है ! कभी यहां इस शहर का आकर्षण ,," अशोक टाकीज " भी हुआ करती थी , जो अब शॉपिंग कम्प्लेक्स में तब्दील हो गयी है !</span></div>
<div>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> पन्नीलाल चौक की तरह ' हनुमान चौक ' भी एक दूसरा ऐतिहासिक चौक है ! जिसका जिक्र किये बिना सतना का इतिहास अधूरा है !यहां एक हनुमान जी का छोटा सा मंदिर है , जिसकी स्थापना १५० वर्ष पूर्व , सं १८७८ में हुई ! यह मंदिर पूरे शहर की आस्था का केंद्र है ! हर मंगलवार , और शनिवार यहां हनुमान भक्तों का तांता लगा रहता है ! इस चौक पर लुल्ली हलवाई की दूकान कभी बड़ी प्रसिद्द थी , जिसका बना कलाकंद , रेवा के महाराजा को बहुत पसंद था , इसलिए वह सतना से रीवा भेजा जाता था ! इस चौराहे पर सतना के अग्रणीय व्यवसायी ,. बाबू गोपाल नाथ खत्री का निवास था जिनका सामाजिक योगदान सतना के सुनहरे पन्नो में अंकित है !</span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;">हनुमानचौक से लगा पावर हाउस चौक है ! यहां जैन धर्मावलम्बियों प्रसिद्द मंदिर और पाठशाला है ! मंदिर में महावीर स्वामी की मूर्ती विराज मान है ! सतना में जैन समाज प्रचुर मात्रा में है ! आज़ादी के बाद , सतना के व्यापार को गति देने का काम इसी जैन समाज द्वारा संपन्न हुआ ! </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;">यह समुदाय बुंदेलखंड से आकर यहां बसा ! अहिंसा और शान्ति का मंत्र सतना की आत्मा में बसा है , इसलिए इस नगर में कभी कोई दंगा , नहीं हुआ ! ह्त्या लूटपाट के प्रकरण भी , यहां , अन्य शहरों की तुलना में नगण्य हैं ! </span><br />
<br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> -क्या आप सोच सकते हैं की किसी जमाने का प्रसिद्द फ़िल्मी गीत</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;">" टम टम से ना झांको रानी जी , गाड़ी से गाड़ी लड़ जाएगी " जैसे हिट गीत लिखने वाले गीतकार , ,,</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;">प्यारेलाल संतोषी</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> इसी नगर के</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> हनुमान चौक से ही लगे शास्त्री चौक पर रहते थे ! इस चौक पर कभी तमेरों की बर्तनो की दुकाने भी बहुतायत में थीं ,, चारों और बर्तन ठोकने की आवाज़ आती रहती थी ! यहां जो लोग रहे , उनमें , फ़िल्मी गीतकार तो थे ही फिल्म निर्देशक ,,' बिन्दु शुक्ला ' का बचपन भी यहीं बीता जो बतौर मनमोहन देसाई के चीफ अस्सिस्टेंट , , का काम भी करते रहे ! ! जिगनहट के कुंवर साहब को , फिल्म में हीरो का शौक परवान चढ़ा , तो उन्होंने बाजार में स्थित अपनी पूरी प्रॉपर्टी बेच कर उसे निभाया ! यह शहर आज भी फिल्म कलाकारों और फिल्मकारों से भरा पड़ा है !</span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"><br /></span>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;">-सतना शहर के एक अन्य चौराहे , बिहारी चौक ' की महत्ता , हिन्दू धर्म की दृष्टि से ऐतिहासिक है !इस चौक की स्थापना तभी हुई जब , अंग्रेज इस भूमि पर , रेल लाइन बिछा रहे थे ! बाबा बृन्दावन दास द्वारा बनवाये गए , , बिहारी जी के मंदिर में , बांके बिहारी यानी कृष्ण की १५० साल पहले की ऐतिहासिक मूर्ति स्थापित है ! यह मंदिर हिन्दुओं की आस्था का महत्वपूर्ण मंदिर है ! इसी चौक में बाबा बृन्दावन दास द्वारा शुरू की गयी रामलीला का मंचन आरम्भ हुआ , जो आज भी अनवरत है ! रामलीला , स्थानीय लोगों का लोकप्रिय मंचन है , जिसमें स्थानीय नागरिक ही पात्रों का अभिनय करते हैं ! यह चौराहा आज़ादी के आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा , जहां विशाल जन सभाएं आयोजित होती थीं ! यहां पुरुषोत्तम दास टंडन ठहर चुके हैं ! </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> बिहारी चौक से लगे , बाजार चौक को भी वही ऐतिहासिक महत्त्व प्राप्त है , जो बिहारी चौक को है ! वस्तुतः , सतना का पुरातन ऐतिहासिक बाजार यही है !</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;">इस चौक ने सतना में आज़ादी के आंदोलनों की आधार शिला राखी ! विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का सत्याग्रह इसी चौराहे पर हुआ और सत्याग्रहियों पर तत्कालीन अंगरेजी पुलिस के डंडे भी यहीं बरसे ! इसी चौक पर उमड़ी भीड़ को देख कर पुलिस ने हवाई फायर भी किये !</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"><b><br /></b></span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"><b>-</b>बिहारी चौक से पूरब की तरफ बढ़ने पर , मिलता है </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> आज का प्रमुख चौक , लालता चौक! इस चौक पर आज महदूरों की हाट </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> लगती है ! चौक के चारों और फ़ैली सब्जी की दुकाने , यहां कदम रखने का स्थान नहीं छोड़ती ! दिन भर की मजदूरी के लिए , शारीरिक श्रम देने वाले मजदूरों की चाह में , यहां शहर के लोग आते हैं , और मजदूरों को साथ ले जाते हैं ! एक प्रकार से शारीरिक श्रम की खरीद फरोख्त की यह परम्परा , अनायास ही , उस युग की याद दिलाता है जब यह मुहल्ला </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> किसी जमाने में चकलाटोला चौहट्टा के नाम से जाना जाता रहा था !</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> बांदा की नवाबी रियासत कमजोर पड़ने पर , कई वेश्याएं , बांदा से सतना आकर बस गयीं थीं ! यह चौराहा , उनके यहां आबाद होने से , चकला टोला के नाम से जाना गया ! वेश्याओं का जमावड़ा यहां १९१८ से ले कर १९४० तक शीर्ष पर रहा ! </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> कहते हैं की लालता बाई नाम की एक नर्तकी यहां बहुत प्रसिद्द हुई ! कभी कभी झगडे भी हुए , जिसमें एक नर्तकी हमीदन जान की नाक भी उसके प्रेमी ने काट डाली ! इसी चौक पर मार्तण्ड टाकीज़ के नाम से , एक टाकीज भी खुली , जिसमें बैठने के लिए बेंच नहीं थी ! लोग घर से बोरी फट्टा ले कर आते , और उस पर बैठते ! इसी चौक पर पक्षियों का बाजार भी था , जहां तरह तरह के पक्षी बिकते थे !</span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> विविधताओं से भरे इस शहर के समाज में हर समाज के लोगों ने यहां आमद दी ! इसलिए यह शहर आज विविध उपासनाओं का केंद्र है !बंगाली समाज ने , मुख्त्यार गंज में माँ काली का भव्य मंदिर बनाया जो कालीबाड़ी के नाम से जाना जाता है ! नव रात्रि में बंगाली समाज यहां परम्परागत रूप से पूजा करता है ! बिड़ला अस्पताल के सामने रामकृष्ण परमहंस आश्रम और भव्य मंदिर है ! यह मंदिर दर्शनीय है ! बांधवगढ़ कॉलोनी में अय्यप्पा स्वामी का दक्षिण शैली में भव्य मंदिर बना हुआ है ! गायत्री देवी का मंदिर , गायत्री पीठ के अन्यायियों ने सर्किट हाउस चौक पर बनवाया है ! यहां प्रणामी सम्प्रदाय का मंदिर भी पुराणी चांदनी टाकीज के पास है यहां के कायस्थ समाज ने चित्रगुप्त मंदिर जगतदेव तालाब पर बनवाया ! इसी तरह हरदौल का एक मंदिर नजीरा बाद में है ! डाली बाबा चौक पर नामदेव समाज का बनवाया नामदेव भगवान का मंदिर है ! गहरा नाला में नरसिंघ भगवान् बिराजे हैं ! जयस्तंभ चौक पर मार्कण्डेय मंदिर है ! इसके अलावा शिरडी के साईं भगवान् के मंदिर , हनुमान जी के मंदिर , भगवान् शिव के मंदिर , और दुर्गा मंदिर इस शहर के हर क्षेत्र्र में है ! </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> मुस्लिमों द्वारा बनाई गई करीब बीस मस्जिदें भी इस शहर में विदवमान है ! </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> <b> </b>लेकिन इन सब धार्मिक स्थलों में , जगत देव तालाब का शिव मंदिर ऐतिहासिक, और धार्मिक दृष्टि से सबसे ज्यादा पुराना है !</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> जगत देव तालाब सतना का ऐतिहासिक तालाब है , जिसे जगत देव पांडे ने सं १८६९ में खुदवाया था ! इस तालाब के जनानी घाट को बनवाने का श्रेय , मोती बाई वेश्या को जाता है ! समाज के वर्जित समुदाय , की सदस्य , मोतीबाई वेश्या की धर्म परायणता सिद्ध करती है की कर्म से भी बड़ा धर्म है ,, सामाज हित का धर्म ! ! जगत देव तालाब की सीढ़ियों पर बैठे भिक्षुक , दान पुण्य की आशा में , यहां के धार्मिक लोगों का सतत इन्तजार करते देखे जाते हैं ! </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> सतना का दूसरा भव्य और पुरातन मंदिर , मुख्त्यारगंज का व्यंकटेश भगवान् का मंदिर है ! विष्णु सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले देव हैं !</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> </span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> इस मंदिर का निर्माण सं १८७६ में हुआ ! इसका शिल्प नयनाभिराम है ,,और इसके अंदर आध्यात्मिक अनुभूति होती है ! मंदिर की मूर्तियां बहुत सुन्दर हैं जिनमें व्यंकटेश भगवान् के साथ साथ श्री रंगनाथ , और लक्ष्मी नारायण की मूर्तियां स्थापित है ! सामने गरुण मंदिर हैं ,, और मुख्य मंदिर के पास छोटा सा सरोवर भी है ! इस मन्दिर का स्थापत्य दक्षिण शैली का है ! </span><br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;">-जैन सम्प्रदाय के कई मंदिर इस नगर में है , किन्तु हनुमान चौक पर स्थापित जैन मंदिर और शास्त्री चौक पर स्थापित गुजराती स्वेताम्बर जैनो का भव्य मंदिर दर्शनीय है ! हनुमान चौक पर स्थापित मंदिर में तीर्थंकर की खंगासनीं प्राचीन प्रतिमा स्थापित है ! मंदिर में छह वेदियां मूल नायकों की है ! और अन्य सभी २४ तीर्थंकरों की है ! पहली वेदी ,वेदी नेमीनाथ स्वामी की है , अंतिम शांतिनाथ भगवान् की ! यहां पूरे वर्ष विभिन्न आयोजन होते रहते हैं ! यहां रथ यात्राओं के आयोजन भी हो चुके हैं ! </span><br />
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"> सुभाष चौक के पास बना जैन मंदिर अत्यंत भव्य और दर्शनीय है !यह मंदिर १९७५ में बना और इसमें संगमरमर का प्रयोग किया गया है ! इसके गर्भमंडल , प्रभामंडल कलात्मक और आबू शैली के हैं ! रंग मंडप रणकपुर शैली का है और इसका शिखर पालीताना शैली का बना है ! इसमें भगवान् शांतिनाथ , नेमनाथ , पार्श्वनाथ , और भगवान् महावीर की भव्य मूर्तियों के साथ साथ भगवान् आदिनाथ की मूर्ती प्रतिस्थापित है ! </span><br />
<br />
<br />
<br />
<b> महिला एंकर </b>-किसी भी शहर की असली पहचान होती है , उसकी कला संस्कृति और , साहित्य सृजन से ! सतना शहर के पास विरासत में धरोहर के रूप में यह दोनों विधाएँ विदवमान हैं ! इस शहर में कभी पृथ्वी थियेटर ने नाटकों ने प्रदर्शन की जो नीवं स्थापित की , उसका निर्वहन इस नगर के लोग समय समय पर करते रहे ! लेकिन इस शहर की आत्मा में बसी रामलीला एक ऐसा मंच रही , जिसमें हर अभिनय प्रेमी को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला ! रामलीला एक ऐसा आयोजन था , जिसमें पुराने लोगों के हटने के बाद नए लोग आते गए और अभिनय की ललक की निरंतरता बनी रही !<br />
<b> - </b> १९८० के दशक में , यहां नुक्कड़ नाटकों ने धूम मचाई ! विविधता के इस शहर में , राष्ट्रीय नाट्य विद्यालयों से स्नातक हुए , युवाओं के निर्देशन में खेले गए वे अब सतना के रुझान को नई दिशा दे रहे हैं ! ! अब इस नगर में नाट्य उत्सव भी हो रहे हैं ,, और मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय से स्नातक हुए युवा , अब रंग कर्म की धारा ही बहा रहे हैं !<br />
<br />
<b> </b> संगीत के क्षेत्र में , भले ही इस शहर में कोई उस्ताद पैदा नहीं हुआ , लेकिन मैहर के संगीत घराने से प्रभावित शास्त्रीय संगीत की धारा यहां निरंतर बहती रही ! संगीत भारती , और गीतम नामक संगीत संस्थाएं बनी , और संगीत के उत्कृष्ट आयोजन हुए !संगीत के कई स्कूल , , यहां की संगीत परम्परा में खुले और धीरे धीरे संगीत कला के श्रोताओं के साथ साथ कलाकार भी यहां स्थापित हुए ! शास्त्रीय संगीत के अलावा , सुगम संगीत ने भी यहां अपनी छटा बिखेरी , और फ़िल्मी संगीत के कई आर्केष्ट्रा यहां स्थापित हुए !<br />
<b><br /></b>
<b> - </b> साहित्य में सतना शहर सदा अग्रणीय रहा ! नगर निगम का पुस्तकालय यहां किताबों का आगार रहा ! इसमें कथा साहित्य के साथ , उपन्यास , काव्य संग्रह , लोगों की रूचि वर्धन का सहारा बना ! सतना में निरंतर हुए भव्य कवी सम्मेलनों ने यहां श्रोताओं को काव्य विधा जोड़ा ! देश के नामी गिरामी कवि , सतना आकर अपना काव्य पाठ कर चुके हैं ! <b> </b><br />
<br />
<b> </b> पत्रिकारिता में सतना की अपनी विशेष आभा है , आज़ादी के समय से ही पत्रकारिता यहां परवान चढ़ी , और दैनिक सांध्य पत्रों के साथ साथ , दैनिक अखबार भी यहां से प्रकाशित हुए ! सं १९३३ में पहला प्रेस , माया प्रेस के नाम से सतना में खुला !इसी प्रेस से पहला अखबार " रैय्यत " नाम से नुमाया हुआ ! उस काल में अखबार निकालना , जुर्म जैसा था , तो उसका खामयाजा भी माया बाबू ने झेला और जेल गए ! १९४० के बाद कुछ अन्य लोगों ने भी प्रेस लगाए , समाचार पात्र प्रकाशित किये , किन्तु वे ज्यादा दिन नहीं चले ! १९६२ में सनसनी नामक दैनिक सांध्य अखबार चिंतामणि मिश्र ने शुरू किया और फिर १९७३ में श्री आनंद अग्रवाल की सम्पादकीय में जवान भारत ने धूम मचाई ! इंद्रा गांधी के आपात काल में जब कई पत्रकार जेल चले गए तो समाचार पत्रों की श्रंखला यहां रुक गयी ! पत्रकारिता के लिए शहीद हुए आनंद अग्रवाल का नाम सतना में आदर से लिया जाता है ! इनके अखबार जवान भारत ने , कई पत्रकारों को पटल पर आगे आने के अवसर दिए ! १९८४ में मायाराम सुरजन ने सतना में " देशबंधु " नामक दैनिक समाचार पात्र का आगाज़ किया , और इस समाचार पात्र ने कई लेखकों , और पत्रकारों को आगे आने के अवसर दिए !आज यहां से लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र , दैनिक भाष्कर सहित सतना स्टार , और दैनिक पत्रिका का प्रकाशन भी हो रहा है !इन समाचार पत्रों के सम्पादक और सह सम्पादक माने हुए वरिष्ठ पत्रकार हैं और सतना की हर गतिविधि को देश के शेष संसार से जोड़ते हैं !<br />
<br />
सतना शहर को जिन सुघड़ हाथों ने गढ़ा , जिसमें मूल्यों के रंग भरे , जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम से इसे जोड़ा , और जिनकी बदौलत यह शहर आज जीवित है , उन महापुरुषों का उल्लेख करना , आज उन्हें पूर्वजों की तरह याद करने जैसा है ! हर शहर का अपना विशिष्ट इतिहास होता है , लेकिन सतना का इतिहास तो रंगबिरंगी पेंटिंग की तरह है ,,जिसमें हर कोण से देखने पर नई आकृति उभरती है ,,ऐसी आकृति जो कहती है की ठहरो , अभी तो मेरी हे कथा पूरी नहीं हुई , तुम अगला पृष्ठ कैसे पलट सकते हो ,,? इस शहर के प्रणेता , वे अंग्रेज , जो सुदूर देश से इस विंध्य भूमि पर आये , और भले ही उनका मूल्य ध्येय यहां शाशन करने का रहा हो , किन्तु जिन्होंने यहां की भूमि में , नयी आबादी वाला एक शहर बसा दिया हो , वापिस नहीं गए , और सतना रेलवे स्टेशन के एक कोने में बने अपने चिर विराम स्थल क्रिश्चियन कब्रिस्तान में सो गए !उन्हें श्रद्धा के दो फूल चढाने का दस्तूर तो बनता ही है ! उन्हें भी शृद्धा सुमन चढाने का दस्तूर बनता है , जो विभिन्न शहरों से यहां आये , यहां व्यापार की नीवं डाली , सामाजिक मूल्यों को जिया , और इस शहर को पनपता छोड़ कर , अतीत में विलीन हो गए ! उन कला प्रेमियों , नृत्यांगनाओं , और साहित्य लेखकों को भी शृद्धा सुमन चढाने का दस्तूर बनता है , जिन्होंने इस शहर को मनोरंजक बनाया , इसे रंगीन धड़कन दी , और उन अनाम मजदूरों को भी श्रद्धा सुमन चढाने का हक बनता है ,, जिन्होंने इस भू भाग को रेल की पटरियों के माध्यम से , देश के हर कोने से जोड़ा !<br />
पेड़ , निरंतर विकसित हो कर आसमान की और ऊपर उठता हुआ , मीठे फल देता है , जो लोगों की क्षुधा शांत करता है , उन्हें ऊर्जा देता है , और थके हुए शरीर को छाया प्रदान करता है , लेकिन उसकी जड़ें सदा जमीन से जुडी रहती हैं , उसे थामे रहती हैं ! विरासतें भी हमें , हमारी जमीन से जोड़े रहती हैं , उस अतीत की याद दिलाती रहती हैं , जिसके सहारे हम आज इतने ऊपर उठे हैं ! सतना शहर का अतीत सबको एक ही सन्देश देता है , बंजर में भी जीवन स्थापित करना है तो कर्मयोगी बनो , श्रमजीवी बनो , और हो सके तो स्वयं भू बनो ! विरासत कभी कभी कहीं से मिलती नहीं , खुद बनानी पड़ती है और सतना शहर का इतिहास ही उसकी विरासत है !<br />
<br />
<br />
<br />
सतना नगर की गाथा कहने से सतना का पूरा परिचय नहीं मिलता ! वस्तुतः यह तो उस नगर की कथा थी , जो स्वयं भू नगर था ,,, जिसका सृजन किसी ने नहीं किया ,, !<br />
किन्तु इस नगर के चारों और फैले विंध्य की भूमि पर पुरातन काल से जिन संस्कृतियों ने पंख पसारे , जो अपने पीछे अनोखी धरोहरें छोड़ गईं , जिनके पद चिन्ह आज भी इस माटी पर अंकित हैं , उसकी कथा हम अगले अंक में कहेंगे ,, ताकि हम आप जान सकें की भले ही शहर स्वयं भू बन जाएँ लेकिन इस धरा की आदि संस्कृति , स्वयंभू नहीं नहीं कहला सकती ! वह सिर्फ किसी एक सदी का इतिहास नहीं होती ,,बल्कि वह कई सदियों के इतिहास का दस्तावेज होती है ! और सतना जिले के दस्तावेज तो कई सदियों के दस्तावेज हैं ,, जिनकी छटा वैष्णव और शैव संस्कृतियों के इंद्रधनुषी रंग से ओत प्रोत है ! जहां बौद्ध काल , और भगवान् महावीर के युग की धरोहतरें हैं ! <br />
तो अगले अंक में हम मिलेंगे ,सतना शहर के चारों और फैले उन स्थानों से , जो विंध्य की अद्वितीय वास्तविक विरासत है !<br />
<br />
---सभाजीत<br />
<div>
<br /></div>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"></span>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; line-height: 18.48px;"><br /></span></div>
<div>
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "tahoma" , "helvetica" , "freesans" , sans-serif; font-size: 13.2px; line-height: 18.48px;"><br /></span></div>
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-62146127729450062692019-02-01T00:29:00.003-08:002019-03-05T07:28:22.268-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
विंध्य की विरासत<br />
सतना शहर<br />
प्रथम अंक<br />
<br />
सुबह से शाम तक , व्यापार के बहीखाते खंगालता , एक बंधे बँधाये जीवन क्रम को जीता , सतना शहर , विंध्य क्षेत्र का वह तोरणद्वार है , जो बुंदेली और बघेली संस्कृति की सीमा रेखाओं को एक दूसरे में विलीन करता है ! यहां से प्रतिदिन गुजरने वाली करीब ९० ट्रेनें , अपनी गोद में कई यात्रियों, व्यापारियों , पर्यटकों , को लाकर उन्हें यहां उतारती हैं , और कई लोगों को अपनी गोद में ले कर , , निर्विकार रूप से गुजर जाती हैं , जिससे यह शहर रात में भी ऊंघता , जागता हुआ , जीवंत नज़र आता है ! गर्मियों में झुलसते , बरसात में भींगते , और सर्दी में ठिठुरते , स्टेशन के बाहर , यात्रियों की प्रतीक्षा करते , रिक्शा चालक , ऑटो चालक , इस शहर की बानगी दते हैं की यह शहर , श्रमजीवी लोगों का शहर है ,,श्रम फिर चाहे शारीरिक हो , बौद्धिक हो ,मानसिक हो या , व्यापारिक हो , ,,,श्रम ही इस शहर की मूल पूंजी है ! १८६३ में बने , वयोवृद्ध सतना स्टेशन की अपनी अविश्मरणीय स्मृतियाँ हैं ! युवा कायाकल्प की चमक से ओतप्रोत , सतना शहर के स्टेशन की वृद्ध आँखों ने , कई रंग बिरंगी घटनाएं अपने जीवनकाल में देखी है ! इस स्टेशन ने , रीवा रियासत के महाराजा , गुलाब सिंह की बरात को आते जाते देखा है , अंगरेजी हुकूमत के वायसराय के भव्य स्वागत को देखा है , पृत्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर के लाव लश्कर को यहां उतरते देखा है , और उनके पुत्र , राजकपूर की बरात की आगवानी को भी देखा है ! स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में , महात्मा गांधी के दर्शन के लिए उमड़ी अपार भीड़ को देखा है , जवाहरलाल नेहरू , लोकमान्य तिलक , सुभाषचंद्र बोस के आत्मिक स्वागत को भी देखा है ! इस शहर ने अंग्रेजों के युग में , सभी रियासतों को अंग्रेजों की हाज़री बजाते देखा है , बड़े बड़े व्यापारियों , और रियासती कारिंदों की बड़ी बड़ी कोठियों को भी देखा ,,रजवाड़ों की शानो शौकत को भी देखा अंगरेजी संस्कृति के अनुशाशन , और राग रंग को भी देखा है , , , जो अब पूरी तरह अतीत में खो कर इतिहास बन चुकी हैं !<br />
<br />
इतनी विविधताओं भी , यह शहर सदैव , स्वावलम्बी शहर बन कर ही जिया , क्योंकि यह किसी राजवंश के द्वारा बसाया गया कोई रियासती , शहर नहीं है ! इसलिए इस शहर में ना तो कोई किला है , ना कोई , परकोटा ना प्रवेश द्वार , ना कोई बुर्ज़ ! इसे ना कभी किसी विदेशी आक्रमण का डर लगा , ना आतातायी लूट का ! इस शहर को उन हाथों ने ,पाला , जो अलग अलग धर्म , अलग अलग जाती , अलग अलग संस्कृति के थे ,,जिनमें आपसी वैमनस्य नहीं था ,और ना सत्ता की भूख ! वे इस शहर को अपने बच्चे की तरह प्यार करते थे , और इसका लालन पालन , इसका विस्तार , अपनी नेक नियती के साथ किये ! यह शहर , खुद अपने लिए नहीं जिया , बल्कि निकटवर्ती रियासती नगरों की जरूरतें पूरी करने को एक साझा बाज़ार बन कर जिया ! देश के दो महानगर , कलकत्ता , और मुंबई से रेलवे लाइन से जुड़े होने के कारण , आसपास के नगर , छतरपुर , पन्ना रीवा और , , सीधी के लिए यह समृद्ध थोक बाजार के रूप में विकसित हुआ !<br />
<br />
सतना का कोई पौराणिक लिपि बढ़ इतिहास नहीं है , फिर भी यहां के लोगों की मान्यता है , की यह नगर ,राम के युग से , महर्षि सुतीक्ष्ण की तपोभूमि के रूप में जाना जाता रहा ! उनके आश्रम के निकट से निकली , सतना नदी के नाम पर इस शहर का नाम स्थापित हुआ ! दूसरी और , आज के शोधकर्ताओं का मानना है की इस शहर का जन्म १८ वीं सदी में तब हुआ ,,जब १८५७ की विफल क्रान्ति के बाद , अंग्रेजों ने रजवाड़ों को अंकुश में रखने के लिए यहां , मिलिट्री केम्प की स्थापनी की ! उनकी सैनिक छावनी की जरूरतों को पूरा करने , रसद , हथियार , सैनिकों के त्वरित आवागमन के लिए , एक रेलवे लाइन यहां होते हुए , १८६३ में डाली गयी , जो एक और नैनी इलाहाबाद , और दूसरी और जबलपुर को जोड़ती थी ! सैनिक छावनी , और अंग्रेज अफसरों की दैनिक सामग्रियों की पूर्ती के लिए तब एक बाजार रेलवे के किनारे धीरे धीरे विकसित हुआ , और देश के विभिन्न भागों से आये , गुजराती, मारवाड़ी, वैश्य व्यापारियों ने यहां डेरा डाला ! भारत विभाजन के बाद सिंध से आये लोगों ने भी इस नगर को व्यापारिक केंद्र बना दिया ! शिक्षा , चिकित्सा , न्यायालय , और विभिन्न सरकारी संस्थाओं के साथ साथ , फैक्ट्रियों आदि में तैनात हुए कर्मचारियों से यह शहर गुलज़ार हुआ , और इस शहर की साझा संस्कृति ने एक अनुपम बगिया की शक्ल अख्तियार कर ली !<br />
आइये सुनते हैं , इस शहर की कहानी , यहां के अतिवरिष्ठ ,साहित्यकार और यशश्वी पत्रकार , श्री चिंता मणि मिश्र से ,,,<br />
, , , (<b> इंटर व्यू ,,,श्री चिंतामणि मिश्र</b> )<br />
<br />
अंग्रेजों के युग का बसा , पुराना सतना जहां , पांच समानांतर , कम चौड़ी सडकों और करीब बीस चौराहों की संख्याओं में सीमित , पुराणी विरासत लिए , नजीराबाद से ले कर पन्नी लाल चौक तक की सीमाओं में समाया शहर है , वहीं आज का नया शहर निकटवर्ती अन्य कस्बों की सीमाएं छू रहा है ! रेलवे लाइन के एक और बसे पुराने शहर का विस्तार अधिक नहीं हुआ , लेकिन रेलवे लाइन की दूसरी और बसे सतना का विस्तार , धवारी , जवाहरनगर , खूंटी , राजेंद्रनगर , सिविल ,लाइन कोठीरोड , रीवारोड , विराटनगर , पन्नारोड , भरहुत कालोनी , सीमारियाचौक , हवाईपट्टी , कोलगवां , नईबस्ती , सिंधी केम्प , बांधवगढ कालोनी , बिरला कॉलोनी , आदि नामों से ९० के दशक के बाद तेजी से हुआ है ! इस शहर के पुराने हिस्से में चौराहों और सडकों पर हुई राजनैतिक और सामाजिक हलचलें , इसका इतिहास बयान करती हैं !<br />
स्टेशन रोड पर स्थित आज का सरकारी महाविद्यालय , कभी रीवा महाराजा की कोठी हुआ करता था !दो मंजिला , कोठी की लाल और भूरे पत्थरों की दीवारें , इसका गोल खम्बों वाला पोर्च , दीवारों पर बना रीवा राज्य का राजचिन्ह , फर्श पर लगा बर्मी टीक , और नीचे का दरबार हाल इसके अतीत की कहानी कहता है ! राजशाही के जमाने में , इसके अहाते में एक बड़ा चिड़ियाघर भी था , जिसमें कई प्रजातियों की चिड़ियाँ थी ! इसके दक्षिण की और , एक बगीचा भी था , जिसमें कई बृक्ष थे , छोटा सा सरोवर था , मोर , हंस , आदि पले रहते थे ! महाराजा व्यंकट रमन के जमाने में यहां इलाहाबाद से आयी नर्तकी , ' छप्पन छुरी का मुजरा हुआ ,, जो शक्ल से तो बदसूरत थी किन्तु आवाज़ से अद्वितीय ! किसी ने उस की शक्ल को ले कर तंज़ कस दिया , तो उसने घूंघट डाल कर , नृत्य किया ! जब राजा ने उस की आवाज़ और कला पर खुश हो बख्शीश देनी चाही तो उसने कहा की जहां कला को रूप से तौला जाए , उस महफ़िल में , मैं बख्शीश नहीं लेती ! इस भवन में अक्सर पन्ना के राजा भी आ कर रुकते थे ! भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद भी यहां रुक चुके हैं ! इसका शिल्प और महत्त्व यह बताता है की यह भवन , रियासती जमाने से ले कर आज के आधुनिक सतना की शान है ! ! आज यह क्षात्रों के भविष्य को संवारता , सतना का ऐतिहासिक महाविद्यालय है ! इसके प्रांगण में , युवा क्षात्रों हलचल आने वाले भारत के उज्जवल भविष्य का संकेत देती है !<br />
( <b>इंटरव्यू किसी महाविद्यालय के प्रिंसिपल का ,,, हो सके तो सत्येंद्र शर्मा का</b> )<br />
इस नगर के ऐतिहासिक भवन आज या तो जर्जर हैं , या पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं !१९३५ के समय जगतदेव तालाब के पास बनी सोमचन्द आयल मिल , पुराने पावरहाउस के पास बनी सरवरिया बोर्डिंग हाउस , महावीर भवन के पास बनी सेठ गणपत मारवाड़ी की लल्ला बिल्डिंग , जिसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का जमावड़ा था , और जिस भवन में , सेठ गोविन्द दस , सीताराम काटजू , पुरुषोत्तमदास टंडन , मदनमोहन मालवीय , कप्तान अवधेश प्रतापसिंघ ने अपने भाषण दिए , ध्वस्त हो चुकी है ! कई रंगारंग कार्यक्रमों का साक्षी , पृथ्वी थियेटर के नाटक का प्रत्यक्ष दर्शी , और बाद में शहर की आकर्षण बनी ' चांदनी टाकीज़ ' का सिनेमा भवन आज सिर्फ यादों में ही शेष है !<br />
लेकिन रेलवे लाइन के दूसरी और बने व्यंकट स्कूल के भवन , थर्मल पावर हाउस , अंग्रेजों के युग में सिविल लाइन में बने भवन , धवारी का प्रिंस हाल , और बरदाडीह की गढ़ी , आज भी शहर का पुराना इतिहास बखान रही है ! शहर का पोस्ट आफिस , , पुराना बघेलखण्ड बैंक भवन , जो अब कम्युनिटी हाल है , एम् एल बी इमारत , मारवाड़ी धर्मशाला , बाजार अस्पताल , गौशाला , इतिहास का ' समय चिन्ह ' बन कर आज भी अपनी गवाही खुद दे रहा है !<br />
<br />
इस शहर की गालियां और चौराहे , सिर्फ गालियां और चौराहे ही नहीं हैं बल्कि इतिहास का दस्तावेज हैं ! १९१४ में स्थापित गौशाला चौक कभी , पुराने सतना शहर का दक्षिणी सीमा हुआ करती थी ! यहां की गौशाला में गायें पली थीं और शहर को उनसे शुद्ध दूध मिलता था ! इस चौक से लगे पहले कई बड़े बड़े बगीचे थे , जो अब कांक्रीट के भवनों में तब्दील हो गए ! १९३० से १९४० तक , आज़ादी के आंदोलन के सिपाही , भुग्गी महराज ने यहीं निवास किया ! पहले यहां एक बावड़ी और कुवां भी था ,, जिसके चिन्ह दीखते हैं !<br />
गौशाला चौक से मैहर की और जाने पर , आज के सतना की अंतिम सीमा पर बसा है ' नज़ीरा बाद ' ! यद्यपि यह मुस्लिम बाहुल्य बस्ती है , किन्तु यहां की तहजीब गंगा जमुनी है ! गंगा जमुनी इसलिए , क्यूंकि इस मोहल्ले में जहां मस्जिद है , वहीं मंदिर भी कम संख्या में नहीं ! कहते हैं की इस बस्ती को हाजी नज़ीर सौदागर ने मुस्लिमों को मुफ्त में जमीन बाँट कर बसाया था , लेकिन इसी बस्ती में हिन्दुओं की संख्या भी कम नहीं ! यहां कांग्रेस के प्रख्यात नेता , बैरिस्टर गुलशेर अहमद का निवास है , तो वहीं फौजदारी के प्रख्यात वकील मुरलीधर शर्मा और सतना के प्रख्यात पत्रकार स्व आनंद अग्रवाल के बेटे भी इसी मोहल्ले में रहते हैं !<br />
अन्य चौकों में पुराने शहर की उत्तरी सीमा पर बने , पन्नीलाल चौक , और हनुमान चौक भी ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं !कहते हैं की पन्नीलाल चौक , कभी अंग्रेज मेमों , और अंग्रेज अधिकारियों का सैरगाह था ! यहां पन्नीलाल सौदागर की चर्चित दूकान थी , जिसमें विदेशी कपड़ा , बिस्कुट , शराब , डिब्बा बंद गोस्त , ग्रामोफोन के रिकार्ड , वगैरह मिलते थे , जिन्हे अंग्रेज खरीदने आते थे ! इस चौक के बीच एक बड़ा , पानीदार कुवां भी था ! यह चौराहा , डाक्टर राम मनोहर लोहिया की सभा , पहलवान गामा के अल्प विश्राम , आर एस एस के दफ्तर और संघ कार्यकर्ताओं की हलचल , समाजवादियों के अड्डे , का गवाह है ! इसी चौराहे पर हाजी गनी का होटल था ! जिसमें गांधी जी के बगावती पुत्र , हरी लाल गांधी , जो कुछ दिन सतना में रहे , और जिन्होंने मुस्लिम धर्म अपना लिया था भोजन करने आते थे ! आज भी यह चौराहा शहर का प्रसिद्द चौराहा है , जहां भरा पूरा बाज़ार , होटल , और धर्मशालाएं हैं ! इसी चौक के फैज़ होटल में , डाक्टर लोहिया , राजनारायण , मृणाल गोर , जॉर्ज फर्नाडीज वगैरह आ चुके हैं ! यहां रामलीला का भरत मिलाप संपन्न होता है , ! इसी के निकट , जैनियों का उपासना स्थल , जैन मंदिर भी है ! कभी यहां इस शहर का आकर्षण ,," अशोक टाकीज " भी हुआ करती थी , जो अब शॉपिंग कम्प्लेक्स में तब्दील हो गयी है !<br />
पन्नीलाल चौक की तरह ' हनुमान चौक ' भी एक ऐतिहासिक चौक है ! यहां एक हनुमान जी का छोटा सा मंदिर है , जिसकी स्थापना १५० वर्ष पूर्व , सं १८७८ में हुई ! यह इस शहर की आस्था का केंद्र है ! हर मंगलवार , और शनिवार यहां हनुमान भक्तों का तांता लगा रहता है ! इस चौक पर लुल्ली हलवाई की दूकान कभी बड़ी प्रसिद्द थी , जिसका बना कलाकंद , रेवा के महाराजा को बहुत पसंद था , इसलिए वह सतना से रीवा भेजा जाता था ! इस चौराहे पर सतना के अग्रणीय व्यवसायी ,. बाबू गोपाल नाथ खत्री का निवास था जिनका सामाजिक योगदान सतना के सुनहरे पन्नो में अंकित है ! कहते हैं की उनके पीछे बनी एक मस्जिद में कुवां ना होने से पानी का अभाव था , इसलिए नमाज़ियों को वजू करने की दिक्कत होती थी ! एक दिन उनके घर आयी , चूड़ी पहनाने वाली मुस्लिम मनिहारिन ने उनकी बहु को यह स्थिति बताई तो बहू ने मस्जिद प्रांगण में, अपने खर्चे से कुवां खुदवाना स्वीकार कर लिया ! खत्री बाबू को जब यह मालूम हुआ तो वे बहुत प्रसन्न हुए , अपनी बहु को आशीषा , और मौलवी को बुलवा कर कहा की वे जल्द से जल्द कुवां खुदवा लें , और जो खर्च लगे , वह उनकी गद्दी से ले जाएँ !हिन्दू मुस्लिम एकता की ऐसी मिसाल मिलना मुश्किल है ! इसी चौक पर हीरालाल मारवाड़ी , अमृतलाल मिश्र , मोहनलालमिश्र , जैसे सतना के कर्मठ नागरिकों के मकान थे ,,,जिनका सतना के यत्थान में बहुत बड़ा योगदान है ! सतना का पहला सांध्य अखबार , इसी चौराहे से , प्रखर पत्रकार , चिंतामणि मिश्र द्वारा प्रकाशित हुआ !<br />
हनुमानचौक से लगा पावर हाउस चौक है ! यहां जैन धर्मावलम्बियों प्रसिद्द मंदिर और पाठशाला है ! पावर हाउस चौक शहर के पहले बिजलीघर डीज़ल पावर स्टेशन के नाम पर पड़ा है ! हनुमान चौक से ही लगा शास्त्री चौक है ! यहां कभी तमेरों की बर्तनो की दुकाने बहुतायत में थी ! यहां जो लोग रहे , उनमें , प्यारेलाल संतोषी फ़िल्मी गीतकार का नाम प्रसिद्द है , जिनका लिखा गीत ,, " टम टम से ना झांको रानी जी , गाड़ी से गाड़ी लड़ जाएगी " पुरे भारत में प्रसिद्द हुआ था ! हनुमान चौक से पूर्व की और जाने पर पर एडवोकेट राजकिशोर शुक्ला का निवास था , जिनके छोटे भाई ,,' बिन्दु शुक्ला ' ने बतौर मनमोहन देसाई के चीफ अस्सिस्टेंट , , फिल्म इंडस्ट्री में बड़ा नाम कमाया ! उनकी अपनी निर्देशित फिल्म ' मेरा जीवन ' भले ही ज्यादा नहीं चली , किन्तु डाक्टर के जीवन पर बनी इस फिल्म की कथा ने दर्शकों को बहुत प्रभावित किया !<br />
<br />
(<b>इंटरव्यू सभाजीत शर्मा का</b> )<br />
<br />
सतना शहर के एक अन्य चौराहे , बिहारी चौक ' की महत्ता , हिन्दू धर्म की दृष्टि से ऐतिहासिक है !इस चौक की स्थापना तभी हुई जब , अंग्रेज इस भूमि पर , रेल लाइन बिछा रहे थे ! बाबा बृन्दावन दास द्वारा बनवाये गए , , बिहारी जी के मंदिर में , बांके बिहारी यानी कृष्ण की १५० साल पहले की ऐतिहासिक मूर्ति स्थापित है ! यह मंदिर हिन्दुओं की आस्था का महत्वपूर्ण मंदिर है ! इसी चौक में बाबा बृन्दावन दास द्वारा शुरू की गयी रामलीला का मंचन आरम्भ हुआ , जो आज भी अनवरत है ! रामलीला , स्थानीय लोगों का लोकप्रिय मंचन है , जिसमें स्थानीय नागरिक ही पात्रों का अभिनय करते हैं ! यह चौराहा आज़ादी के आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा , जहां विशाल जन सभाएं आयोजित होती थीं ! यहां पुरुषोत्तम दास टंडन ठहर चुके हैं ! गुजराती सेठ धारसी जी, जिनका निवास इस चौक पर था , ने यहां पहला स्कूल खुलवाया ! इसी जगह पहले गुजराती समाज का गरबा नृत्य वर्षों तक होता रहा ! यह चौराहा , धार्मिक आस्थाओं , और राजनैतिक गतिविधियों का ऐतिहासिक केंद्र रहा है !<br />
बिहारी चौक से लगे , बाजार चौक को भी वही ऐतिहासिक महत्त्व प्राप्त है , जो बिहारी चौक को है ! वस्तुतः , सतना का पुरातन ऐतिहासिक बाजार यही है ! यहां के सीरिया हलवाई की रबड़ी और बब्बू पान वाले का पान कभी बहुत प्रसिद्द था , इस चौक ने सतना में आज़ादी के आंदोलनों की आधार शिला राखी ! विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का सत्याग्रह इसी चौराहे पर हुआ और सत्याग्रहियों पर तत्कालीन अंगरेजी पुलिस के डंडे भी यहीं बरसे ! इसी चौक पर उमड़ी भीड़ को देख कर पुलिस ने हवाई फायर भी किये ! यहां कई सामाजिक विवाद भी हुए , और उनका निदान भी निकाला गया ! इसी चौक के निवासी नारायणदास खंडेलवाल को पतंगें उड़ाने का शौक था , ! वो पतंगों के साथ पांच रूपये का नॉट टांक देते थे , और कटने पर उसे लूटने की होड़ युवा बच्चों में मच जाती ! इसी चौराहे पर काशी महराज की सोडावाटर की दूकान थी , ! काशी महराज क्रांतिकारियों के पक्षधर थे , और उनकी दूकान में उस काल में भी भगत सिंह , चंद्रशेखर की फोटो लगी रहती थी !<br />
सतना जहां , आज़ादी के दीवानो , सामाज सेवियों , प्रखर पत्रकारों , बड़े व्यवसाइयों का चर्चित शहर रहा , वहीं रास रंग और मनोरंजन के लिए भी यह शहर प्रमुख रूप से जाना जाता रहा ! आज का प्रमुख चौक , लालता चौक किसी जमाने में चकलाटोला चौहट्टा के नाम से जाना जाता रहा ! बांदा की नवाबी रियासत कमजोर पड़ने पर , कई वेश्याएं , बांदा से सतना आकर बस गयीं ! यह चौराहा , उनके यहां आबाद होने से , चकला टोला के नाम से जाना जाता रहा ! वेश्याओं का जमावड़ा यहां १९१८ से ले कर १९४० तक शीर्ष पर रहा ! वेश्याओं के रास रंग , नृत्य गान के कारण इस मोहल्ले में शराब की दुकानों के साथ साथ नशे की कई और भी अड्डे स्थापित हो गए , जिसमें अफीम का चलन बहुत रहा ! शराब के साथ भजिया , कबाब , पापड की दुकाने यहां खुलीं और उनमे से प्रसिद्द हुए एक भजिया बनाने वाले के नाम पर , लगा हुआ निकटस्थ चौराहा , फूलचंद भजिया वाला आज भी शहर में प्रसिद्द है ! कहते हैं की लालता नाम की एक नर्तकी यहां बहुत प्रसिद्द हुई ! कभी कभी झगडे भी हुए , जिसमें एक नर्तकी हमीदन जान की नाक भी उसके प्रेमी ने काट डाली ! इसी चौक पर मार्तण्ड टाकीज़ के नाम से , एक टाकीज भी खुली , जिसमें बैठने के लिए बेंच नहीं थी ! लोग घर से बोरी फटता ले कर आते , और उस पर बैठते ! इसी चौक पर पक्षियों का बाजार भी था , जहां तरह तरह के पक्षी बिकते थे !<br />
देश आज़ाद होने के बाद जब सतना ने करवट बदली , तो वेश्याओं के अड्डे यहाँ से खत्म हो गए ! बाद में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी , और कांग्रेस के प्रखर नेता डाक्टर लालता प्रसाद ने यहां जब अपनी क्लीनिक खोली तो चाऊ का नाम बदल कर " लालता चौक " कर दिया गया ! डाक्टर लालता प्रसाद नेता से अधिक समाजसेवी थे , इसलिए अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने नीमी ग्राम में एक वृद्धाश्रम खोल लिया और वहीं चले गए !<br />
आज यह चौराहा मजदूरों के लिए प्रसिद्द है जहां दिहाड़ी पर , काम करने के लिए मजदूरों की हाट लगती है !<br />
<br />
सतना में अन्य चौराहों में कोतवाली चौराहा , भैंसाखाना चौक , धवारी चौराहा , सिविल लाइन चौक , सर्किट हाउस चौक , अस्पताल चौक , और सिमरिया चौक के नाम से विख्यात है ! ये सतना के बाद में हुए विकास से विकसित हुए चौराहे हैं ! इनमें धवारी चौक एक पुराना चौराहा है जिसका ऐतिहासिक महत्त्व है ,इस चौराहे पर बना आधुनिक स्टेडियम , खेलों की हर सुविधा प्रदान करता है ! धवारी बस्ती कभी सतना शहर के बाहर मानी जाती थी , लेकिन अब यह सतना के मध्य आ गयी है ! अस्पताल चौराहे पर सतना का सर्व सुविधायुक्त जिला अस्पताल है वहीं इसी चौराहे पर शहर प्राचीन देवी मंदिर भी है ! नवरात्रि में , शीतला अष्टमी पर , इस नगर की महिलायें देवी प्रतिमा पर जल चढाने आती हैं ! इसी चौराहे पर जगतदेव तालाब है , जिसके घाट पर शिव का प्राचीन मंदिर है ! ,, सेमरिया चौक सतना के आधुनिक विकास का केंद्र है ,यहां यातायात की सुविधा के लिए , एक फ्लाई ओवर ब्रिज निर्माणाधीन है ! ,! सिमरिया चौक पर सतना का बस स्टेण्ड है , जहां से हर दिशा में बसें प्रस्थान करती हैं ! सतना का एक मात्र कम्युनिटी हाल इसी चौक पर स्थापित है जिसमें विविध आयोजन होते हैं ! इसमें एक साथ एक हजार तक लोगों के बैठने की व्यवस्था है ,,और एक बड़ा स्टेज भी है , जहां पर नाटक , सभाएं आदि आयोजित होती हैं !यह हाल सर्व सुविधायुक्त हाल है ! सतना के विकास का वर्णन करते समय , सीमेंट संयंत्र के लिए बसी , बिरला कॉलोनी का जिक्र भी बहुत जरूरी है ! सतना के बहुमुखी उद्योगों में सीमेंट उद्योग का प्रथम स्थान है , वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहे गए यूनिवर्सल केबिल फैक्ट्री का योगदान भी सतना के लिए महत्त्व पूर्ण है !<br />
<br />
पुराने गौरव की कीर्ति पताका फहराता आज का सतना , , विभिन्न जातियों , धर्मों , मतों , सम्प्रदायों का मिलाजुला शहर है ! इसमें हर धर्म के उपासकों के उपासना केंद्र हैं! यहां बंगालियों की दुर्गा पूजा अब पूरे हिन्दू समाज द्वारा अपना ली गयी है और नवरात्रि पर यहां जगह दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जातीं हैं ! दूसरी और , महाराष्ट्र की गणेश पूजा भी आज इस नगर का प्रमुख आयोजन बन चुकी है , और महाराष्ट्रियन समाज के साथ साथ सम्पूर्ण हिन्दू समाज , जगह जगह , हर्षोल्लाष के साथ गणेश प्रतिमाएं स्थापित करता है ! नवरात्रि में गरबा नृत्य का आयोजन , अब सिर्फ गुजरातियों का उत्सव नहीं है , बल्कि यह सम्पूर्ण सतना निवासियों का उत्सव है ! यहां के शिव मंदिरों में , शिवरात्रि धूम धाम के साथ मनाई जाती है , वहीं बसंतोत्सव पर हर स्कूल , हर समाज में सरसवती पूजी जाती है ! होली यहां का सार्वजनिक उत्सव है ,,, जिसमें रंग और उल्लास देखते ही बनता है ! चैत्र की नव रात्रि , नागपंचमी , कजलियां , और रक्षा बंधन का आज भी यहां बरकरार है ,,वहीं ,, पितृ पक्ष में पुरखों को जलांजलि , दशहरे में रामलीलाओं का आयोजन , रावण दहन के त्योहारों के साथ साथ दीपावली का प्रकाश पर्व भी सतना को जगमगा देता है !<br />
कन्याओं की शिक्षा के लिए यहां दो सरकारी स्कूल हैं ,जिनमें महारानी लक्ष्मी बाई कन्या पाठशाला , और बूटी बाई स्कूल प्रमुख है ! इसके अतिरिक्त आर्य कन्या विद्यालय , सिंधु कन्या विद्यालय भी शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं ! स्टेशन रोड पर स्थित महिला कला विद्यालय भी सतना की शान है ! कन्याओं की उच्च शिक्षा के लिए , महाराजा कोठी का महाविद्यालय अब पूरी तरह कन्या महाविद्यालय के नाम से जाना जाने लगा है ! बच्चों की शिक्षा के उत्कृष्ट विद्यालय , प्रेम नगर स्थित वेंकट एक , वेंकट दो , के नाम से विख्यात हैं ! इसके अतिरिक्त कई अन्य स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणीय भूमिका निभा रहे हैं , जिसमें , सरस्वती स्कूल , संत ,,,,,,,,, , सी एम् ऐ विद्यालय , आदि प्रमुख हैं !<br />
सतना में एक यूनिवर्सिटी , ऐ के एस यूनिवर्सिटी के नाम से अपना परचम लहरा रही है ! इस के विविध पाठ्यक्रम , युवाओं को रोजगार , और खुद के व्यवसाय की दिशा देने में पूरी तरह समर्थ है ! यह यूनिवर्सिटी कई बार विविध अवार्डों से , अच्छे कार्य के लिए नवाज़ी जा चुकी है ! इसी तरह आज के सतना में आदित्य कालेज भी तकनीकी पाठ्यक्रमों का उत्कृष्ट केंद्र है ! यहां इंजीनियरिंग की सभी शाखाओं के साथ , आधुनिक शिक्षा की सभी सुविधाएं प्राप्त हैं ! इससे पढ़े क्षात्र , आज विविध फैक्ट्रियों , माइनिंग , और अग्निशामक इंजीनियिरिंग में सतना का नाम रोशन कर रहे हैं !<br />
(<b> इंटरव्यू ऐ के इस के संचालक का</b> )<br />
सतना का वित्स कालेज , शिक्षा के क्षेत्र में एक अभिनव संस्थान है ! इसका नाम आज देश में भी प्रसिद्धि पा रहा है ! शिक्षा के प्रतिमानों के साथ साथ , इसके क्षात्रों को रंग कर्म , और अभिनय कला ,में भी चारों और प्रसिद्धि मिल रही है ! इस कालेज में दो भव्य थियेटर हैं , जहां समय समय पर नाटकों के आयोजन भी होते हैं ! <br />
आज का सतना , शिक्षा के क्षेत्र में समृद्ध सतना है ! यहां तकनीकी शिक्षा के लिए पॉलीटेक्निक पहले से ही है ! मध्यप्रदेश सरकार ने जल्दी ही यहां मेडिकल कालेज खोले जाने की स्वीकृति दी है !इसके अलावा पेरा मेडिकल कोर्स पहले से ही यहां संचालित है ! महिलाओं के लिए सिलाई कढ़ाई , के केंद्र भी यहाँ कई वर्षों से संचालित हैं !<br />
<br />
( <b>इंटरव्यू किसी शिक्षाविद का हो सके तो सेनानी जी का )</b> )<br />
<br />
किसी भी शहर की असली पहचान होती है , उसकी कला संस्कृति और , साहित्य सृजन ! सतना शहर के पास विरासत में धरोहर के रूप में यह दोनों विधाएँ विदवमान हैं ! इस शहर में पृथ्वी थियेटर ने नाटकों की जो नीवं स्थापित की , उसका निर्वहन इस नगर के लोग समय समय पर करते रहे ! १९३१ में यहां मारवाड़ी समाज ने नाटक मंडली स्थापित की कृष्णावतार , भीष्मपितामह जैसे आदर्श नाटक खेले गए ! यहां कभी बजरंग विजय कंपनी नामक नाटक मंडली बनी जिसने वीर अभिमन्यु , श्रवणकुमार , लैला मजनू नाटक खेले ! बाद में जैन समाज ने भी नाटक मंडली बनाई और कुछ नाटक खेले ! लेकिन इस शहर की आत्मा में बसी रामलीला एक ऐसा मंच रही , जिसमें हर अभिनय प्रेमी को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला ! रामलीला एक ऐसा आयोजन था , जिसमें पुराने लोगों के हटने के बाद नए लोग आते गए और निरंतरता बनी रही !<br />
१९८० के दशक में , यहां नुक्कड़ नाटकों ने धूम मचाई ! इससे पहले भी क खा ग नामक संस्था के निर्देशक श्री दिलीप मिश्र ने कई नाटक खेले जिसमें आज के लब्ध प्रतिष्ठ , स्क्रिप्ट राइटर , अशोक मिश्र ने भी निर्देशन दिया ! श्री दिलीप मिश्र के सतना से बाहर चले जाने के बाद रंग कर्म के लिए बहुत दिनों तक खामोशी छाई रही , लेकिन तीन वर्षों पूर्व से इस शहर का रंग मंच नई चमक के साथ फिर उभरा , जब राष्ट्रीय नाट्य स्कूल के स्नातक द्वारिका दाहिया ने यहां फिर से नाट्य कर्म की बाग़ डोर सम्हाली ! उनके निर्देशन में वित्स कालेज के थियेटर में जो नाटक खेले गए वे अब सतना के रुझान को नई दिशा दे रहे हैं ! श्री दाहिया की पत्नी श्रीमती सविता दाहिया भी उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर एक से एक नाटकों को नया आयाम दे रही है ! अब इस नगर में नाट्य उत्सव भी हो रहे हैं ,, और मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय से स्नातक हुए युवा , अब रंग कर्म की धारा ही बहा रहे हैं ! इस बीच श्री दिलीप मिश्र भी लौट आये और उन्होंने भी कई अच्छे नाटक खेल डाले !<br />
(<b> इंटरव्यू द्वारिका दाहिया का+ दिलीप मिश्र का ) </b> )<br />
संगीत के क्षेत्र में , भले ही इस शहर में कोई उस्ताद पैदा नहीं हुआ , लेकिन मैहर के संगीत घराने से प्रभावित शास्त्रीय संगीत की धारा यहां निरंतर बहती रही ! संगीत भारती , और गीतम नामक संगीत संस्थाएं बनी , और संगीत के उत्कृष्ट आयोजन हुए ! सं १९८४ में , बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले से आये , संगीत महर्षि रतनजन कर के शिष्य , श्री ज्ञान सागर शर्मा ने यहां शास्त्रीय संगीत के विद्यालय स्थापित किये , और यहाँ के संगीत प्रेमी शिष्यों को शास्त्रीय संगीत की उच्चकोटि की शिक्षा से दीक्षित किया ! संगीत के कई स्कूल , उनके बाद , यहां की परम्परा में खुले और धीरे धीरे संगीत कला के श्रोताओं के साथ साथ कलाकार भी यहां स्थापित हुए ! शास्त्रीय संगीत के अलावा , सुगम संगीत ने भी यहां अपनी छटा बिखेरी , और फ़िल्मी संगीत के कई आर्केष्ट्रा यहां स्थापित हुए ! जिसमें रागनी आर्केष्ट्रा प्रमुख है ! आज भी इस परम्परा को निबाहते कई आर्केष्ट्रा सतना में संगीत माधुर्य बिखेर रहे हैं !<br />
साहित्य में सतना शहर सदा अग्रणीय रहा ! नगर निगम का पुस्तकालय यहां किताबों का आगार रहा ! इसमें कथा साहित्य के साथ , उपन्यास , काव्य संग्रह , लोगों की रूचि वर्धन का सहारा बना ! सतना में निरंतर हुए भव्य कवी सम्मेलनों ने यहां श्रोताओं को काव्य विधा जोड़ा ! देश के नामी गिरामी कवि , सतना आकर अपना काव्य पाठ कर चुके हैं ! आज यहां के लेखक और कवियों में हरीश निगम , गीतकवि सुमेर सिंह शैलेश , सुदामा शरद अनूप अशेष , ऋषिवंश , बाबूलाल दाहिया , नाम अग्रणीय कवियों में लिया जाता है , वहीं साहित्य विधा के दमकते नक्षत्रों में चिंतामणि मिश्र , प्रह्लाद अग्रवाल , सुषमा मुनींद्र , संतोष खरे , डाक्टर प्रदीप मिश्र , वन्दना दुबे और डाक्टर सत्येंद्र शर्मा , साहित्याकाश को आलोकित कर रहे हैं ! इस नगरी में उर्दू शायरी भी पल्ल्वित हुई है ,,जिसके लोकप्रिय शायर रफीक सतनवी , राईस नस्तर , पुरनम सुल्तानपुरी आदि हैं ! सतना में कई फिल्मकारों ने कई विषयों पर वृत्तचित्र और लघु फ़िल्में बनाई हैं , जिनमे सभाजीत शर्मा , हरी चौरसिया , कुलदीप सक्सेना , और पृथ्वी अयलानी प्रमुख हैं !<br />
( <b>इंटरव्यू प्रह्लाद अग्रवाल का</b> )<br />
पत्रिकारिता में सतना की अपनी विशेष आभा है , जिसमें चिंतामणि वरिष्ठ पत्रकार हैं ! आज़ादी के समय से ही पत्रकारिता यहां परवान चढ़ी , और दैनिक सांध्य पत्रों के साथ साथ , दैनिक अखबार भी यहां से प्रकाशित हुए ! सं १९३३ में पहला प्रेस , माया प्रेस के नाम से सतना में खुला जिसे माया बाबू नामक बंगाली महोदय ने चालू किया ! इसी प्रेस से पहला अखबार " रैय्यत " नाम से नुमाया हुआ ! उस काल में अखबार निकालना , जुर्म जैसा था , तो उसका खामयाजा भी माया बाबू ने झेला और जेल गए ! १९४० के बाद कुछ अन्य लोगों ने भी प्रेस लगाए , समाचार पात्र प्रकाशित किये , किन्तु वे ज्यादा दिन नहीं चले ! १९६२ में सनसनी नामक दैनिक सांध्य अखबार चिंतामणि मिश्र ने शुरू किया और फिर १९७३ में श्री आनंद अग्रवाल की सम्पादकीय में जवान भारत ने धूम मचाई ! इंद्रा गांधी के आपात काल में जब कई पत्रकार जेल चले गए तो समाचार पत्रों की श्रंखला यहां रुक गयी ! बाद में १९८० के बाद कुमार कपूर ने सतना टाइगर नाम का अखबार शुरू किया , जो लोकप्रिय हुआ ! इसके बाद कई समाचार पात्र शुरू हुए , जिसमें कृष्णगोपाल गुप्ता का साप्ताहिक आयोग , शंकरलाल तिवारी का बेधड़क भारत , निरंजन शर्मा का क्रांतिदूत , गिरजा प्रसाद का चितेरा आदि उल्लेखनीय है ! पत्रकारिता के लिए शहीद हुए आनंद अग्रवाल का नाम सतना में आदर से लिया जाता है ! इनके अखबार जवान भारत ने , कई पत्रकारों को पटल पर आगे आने के अवसर दिए ! १९८४ में मायाराम सुरजन ने सतना में " देशबंधु " नामक दैनिक समाचार पात्र का आगाज़ किया , और इस समाचार पात्र ने कई लेखकों , और पत्रकारों को आगे आने के अवसर दिए ! भगवान् दास सफड़िया , सुदामा शरद , प्रह्लाद अग्रवाल , बाबूलाल दाहिया , देवीशरण ग्रामीण इस समाचार पात्र के नियमित स्तम्भकार बने ! एक और समाचार पत्र नेशनल टू डे भी कुछ दिनों के लिए प्रकाशित हुआ किन्तु जल्द ही बंद हो गया ! पत्रकारों में निरंजन शर्मा का नाम विशेष उल्लेखनीय है जिन्होंने अल्प आयु से ही पत्रकारिता शुरू की , और कई समाचार पत्रों का सम्पादन सम्हाला ! आज यहां से लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र , दैनिक भाष्कर सहित सतना स्टार , और दैनिक पत्रिका का प्रकाशन भी हो रहा है !इन समाचार पत्रों के सम्पादक और सह सम्पादक माने हुए वरिष्ठ पत्रकार हैं और सतना की हर गतिविधि को देश के शेष संसार से जोड़ते हैं !<br />
(<b>इंटरव्यू किसी पत्रकार का ,,हो सके तो सुदामाशारद , अथवा निरंजन शर्मा का</b> )<br />
<br />
सतना शहर को जिन सुघड़ हाथों ने गढ़ा , जिसमें मूल्यों के रंग भरे , जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम से इसे जोड़ा , और जिनकी बदौलत यह शहर आज जीवित है , उन महापुरुषों का उल्लेख करना , आज उन्हें पूर्वजों की तरह याद करने जैसा है ! हर शहर का अपना विशिष्ट इतिहास होता है , लेकिन सतना का इतिहास तो रंगबिरंगी पेंटिंग की तरह है ,,जिसमें हर कोण से देखने पर नई आकृति उभरती है ,,ऐसी आकृति जो कहती है की ठहरो , अभी तो मेरी हे कथा पूरी नहीं हुई , तुम अगला पृष्ठ कैसे पलट सकते हो ,,? इस शहर के प्रणेता , वे अंग्रेज , जो सुदूर देश से इस विंध्य भूमि पर आये , और भले ही उनका मूल्य ध्येय यहां शाशन करने का रहा हो , किन्तु जिन्होंने यहां की भूमि में , नयी आबादी वाला एक शहर बसा दिया हो , वापिस नहीं गए , और सतना रेलवे स्टेशन के एक कोने में बने अपने चिर विराम स्थल क्रिश्चियन कब्रिस्तान में सो गए !उन्हें श्रद्धा के दो फूल चढाने का दस्तूर तो बनता ही है ! उन्हें भी शृद्धा सुमन चढाने का दस्तूर बनता है , जो विभिन्न शहरों से यहां आये , यहां व्यापार की नीवं डाली , सामाजिक मूल्यों को जिया , और इस शहर को पनपता छोड़ कर , अतीत में विलीन हो गए ! उन कला प्रेमियों , नृत्यांगनाओं , और साहित्य लेखकों को भी शृद्धा सुमन चढाने का दस्तूर बनता है , जिन्होंने इस शहर को मनोरंजक बनाया , इसे रंगीन धड़कन दी , और उन अनाम मजदूरों को भी श्रद्धा सुमन चढाने का हक बनता है ,, जिन्होंने इस भू भाग को रेल की पटरियों के माध्यम से , देश के हर कोने से जोड़ा ! सतना नगर की गाथा कहने से सतना का पूरा परिचय नहीं मिलता ! वस्तुतः यह तो उस नगर की कथा थी , जो स्वयं भू नगर था ,,, जिसका सृजन किसी ने नहीं किया ,, ! किन्तु इस नगर के चारों और फैले विंध्य की भूमि पर जिन संस्कृतियों ने पंख पसारे , जो अपने पीछे अनोखी धरोहरें छोड़ गए हैं , जिनके पद चिन्ह आज भी इस माटी पर अंकित हैं , उसकी कथा भी हम अगले अंक में कहेंगे ,, ताकि हम आप जान सकें की भले ही शहर स्वयं भू हो सकते हैं , लेकिन इस धरा की संस्कृति , स्वयंभू नहीं नहीं हो सकती ! वह सिर्फ किसी एक सड़ी का इतिहास नहीं है ,,,बल्कि सदियों का इतिहास है !<br />
<br />
--सभाजीत<br />
maihar mandir <br />
<b>पुरुष एंकर</b> - उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार , , मंदिर में उपलब्ध शिला पट्ट यह व्यक्त करता है की यह मंदिर ५०२ ईस्वी में निर्मित हुआ ! इतिहास के अनुसार पांचवी सदी से ले कर दसवीं सदी तक यह क्षेत्र विभिन्न राजवंशों का संघर्ष क्षेत्र रहा ! गुप्त राजवंश और कलचुरी राजवंश जहां वैष्णव मत के आराधक थे , वहीं नागा राजवंश और चंदेल राजवंश शिव आराधक ! इसलिए यह क्षेत्र दोनों भक्ति की साझा भूमि के रूप में जाना जाता है ! मैहर व् इससे जुड़े कई स्थानों के मंदिर , विष्णु मंदिरों के साथ साथ , शिव के मंदिरों के रूप में उपलब्ध हैं !<br />
एक किंबदंती के अनुसार , मैहर नगर का विकास , उन घुमक्क्ड योग साधना के संतों द्वारा सं १७७८ में किया गया , जिन्हे यह क्षेत्र , ओरछा के बुंदेली राजाओं द्वारा दान में मिला था ! जोगी नाम से विख्यात इस समुदाय को , कई स्थानों को नाथ सम्प्रदाय माना जाता है ! इस नगर की बोली बुंदेली है , जो यह स्थापित करती है की यह विंध्य के , बुंदेलखंड भूमि का ही हिस्सा है !<br />
<div>
<br /></div>
<br />
<br />
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-3793837791463384332019-01-26T01:30:00.003-08:002019-03-05T09:41:49.800-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
,<span style="font-size: large;">,," विंध्य की विरासत " ,,</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> प्रथम अंक </span><br />
<br />
( एक व्यक्ति ढलवां पहाड़ी के पीछे से निकल कर , क्रमशः उठता हुआ ,,कैमरे के आगे आता है ! पीछे , पृष्ठभूमि में फ़ैली हुई विंध्याचल पर्वत की चोटियां हैं ! आगे आया हुआ ,,पुरुष एंकर है ,,कैमरा ज़ूम हो कर एंकर पर जाता है ! )<br />
<br />
<b>एंकर</b> -दोस्तों,,! आज हम अपने धारावाहिक " विंध्य की विरासत " के माध्यम से , विंध्याचल पर्वत के पूर्वोत्तरी भाग में बिखरी , उस भूमि से आपका परिचय कराने जा रहे हैं , जिसके कण कण में राम का वास है , जहाँ ऋषियों और महर्षियों के तप का तेज ,है कई वीर राजवंशों की गाथाएं हैं , और पग पग पर आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक की राष्ट्रीय धरोहरें हैं ! यह भूमि भाग ,,, विंध्याचल पर्वत की तराई में बघेलखण्ड के शहडोल जिले से लेकर, रेवा , सीधी , सतना , पन्ना जिले की वन सुषमा को अपने आँचल में समेटे , बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले तक ,," विंध्य भूमि " के नाम से आदिग्रंथों में उल्लेखित किया गया है ! वस्तुतः यह भूमि , गंगा कछार की भूमि से दक्षिण दिशा में प्रवेश करने का तोरण द्वार है जिससे हो कर अगस्त ऋषि और भगवान् राम , आर्य संस्कृति के ध्वजावाहक बन कर , दक्षिण के भू भाग में प्रवेश किये और जहां आज भी ,, आदिकालीन द्रविण संस्कृति और आर्य संस्कृति की साझा विरासत फल फूल रही है !<br />
विंध्यांचल पर्वत ,,,,अगर देखा जाए तो , कोई एक पर्वत के स्वरूप में नहीं है बल्कि पश्चिम के , गुजरात प्रांत से ले कर , पूर्व में बिहार और उत्तरप्रदेश तक फ़ैली कई पर्वत श्रेणियों की एक लम्बी श्रंखला है ! इसकी ऊंची श्रेणियां ,, एक और छत्तीसगढ़ के मेकल पर्वत को छूती हैं और दूसरी और राजस्थान के राजपूताने के शौर्य वैभव ,, अरावली पर्वत को ! आदिकाल में , विंध्याचल पर्वत में फैले , सघन वन , गहरी घाटियों , हिंसक वन्यजीव , और दुर्गम भूमि के अवरोध के कारण , इसे लांघना संभव नहीं था और यह पर्वत अजेय था ! मेकल पर्वत से निकल कर ,सतपुड़ा और विंध्याचल की गहरी घाटी में , पश्चिम की और बहती नर्मदा , अरब सागर की खम्बात की खाड़ी में विलीन होती थी और इसी पर्वत से निकल कर , , पूर्व की और बहता सोन नद कैमोर घाटी से बह कर , बिहार जाकर , गंगा नदी में अपना अस्तित्व विलीन करता था इस प्रकार उत्तर और दक्षिण की भूमि को सरहदों में बांटने का काम विंध्याचल जैसे यहां एक प्रहरी बन कर , अपनी दोनों भुजाएं फैला कर , करता था ! ! पौराणिक कथाओं के अनुसार , कहते हैं की विंध्याचल पर्वत , अपनी ऊंचाई को निरंतर उठाता हुआ , देवताओ के प्रिय पर्वत , हिमालय को चुनौती देने लगा , ! अप्रिय स्थिति भांप कर , अगस्त्य ऋषि ने आर्य संस्कृति की धर्मध्वजा ले कर , उत्तर से दक्षिण की यात्रा की , और जब वे यहां मेकल के किनारे से गुजरे , तो विंध्याचल पर्वत ने शाष्टांग दंडवत लेट कर उन्हें प्रणाम किया! अगस्त ऋषि , अपने वापिस लौटने तक उसे उसी प्रकार लेटे रहने का निर्देश देकर दक्षिण की और चले गए और फिर कभी वापिस नहीं आये ! कहते हैं आज यह उसी तरह दंडवत हो कर , पश्चिम से पूर्व तक शाष्टांग मुद्रा में लेटा है , और अगस्त ऋषि के लौटने की बाट जोह रहा है !<br />
<br />
{ <b>नेपथ्य से वाइस ओवर </b> ) ( <b>विभिन्न दृश्यावली के साथ</b> ) ,<br />
भारत के हृदय क्षेत्र , मध्यप्रदेश की , पूर्वोत्तरी सीमाओं पर , अगस्त ऋषि को दिए वचन को निबाहता विंध्याचल पर्वत , जिस भू भाग को अपने आगोश में समेटे है , वह विंध्य भूमि के नाम से जाना जाता है ! इस क्षेत्र को सींचने वाली नदियाँ , रिहन्द , सोन , तमसा , सतना , केन , धसान , और बेतवा , सदा नीरा हैं !' सोन ' को अपने तीव्र वेग के कारण , हिमालय पर बहने वाले ब्रम्हपुत्र की तरह , पुरुषवाची " नद " की संज्ञा मिली है जो पौराणिक कथाओं के अनुसार , जौहला द्वारा भटकाया हुआ , नर्मदा का वह विकल प्रेमी है , जो पश्चाताप की आग में झुलसकर , मेकल पर्वत से छलांग लगा कर , जौहला को अपने साथ ले , उत्तर पूर्व की और त्रीवता से दौड़ कर , मोक्षदायनी गंगा नदी की गोद में समा जाता है !इसी सोन के किनारे , भ्रमर शैल पर , महाकवि बाण भट्ट ने , अपना आश्रम बना कर , कालजयी काव्य " कादम्बरी " की अद्भुत रचना की ! इसी सोन के तट पर , तपस्वी शिवभक्त ,प्रशांत शिव की तपोस्थली है , जिन्होंने चंद्रेह के अद्भुत शिव मंदिर का निर्माण करवाया ! इसी सोन के तट पर , मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम है , और इसी सोन से जौहला के मिलन घाट को , रामायण काल के पितृभक्त ' श्रवण' को दशरथ द्वारा शब्दभेदी बाण द्वारा मारे जाने का वर्णन यहां की जनश्रुति में है ! आधुनिक भारत के निर्माण में , पर्वतों को तोड़ कर , महीन बालू प्रदान करने वाली प्रमुख नदी यही सोन है और इसी सोन को बाणसागर में बाँध कर , आज वद्युत उत्पादन का बड़ा जल विद्युत् उत्पादन का शक्तिकेंद्र बनाया गया है !<br />
बाणसागर बाँध से निकली , सोन की वेगवती जल धाराएं , नहरों के माध्यम से बह कर , रीवा जिले की बिछिया नदीं से मिल कर , इस क्षेत्र की प्रमुख नदी , तमसा में उड़ेल दी गयी हैं , जहां से , सिरमौर में , बड़ा जल विद्युत् उपकेंद्र , मध्य प्रदेश की विद्युत् वाहिकाओं में ऊर्जा का संचार कर रहा है ! बाणसागर से निकला सोन का जल , सतना और रीवा के ग्रामीण अंचलों को भिगोता , विंध्य के मध्य भाग में उन्नत कृषि का सम्बल बना हुआ है , वहीं वह अपनी बिछुड़ी प्रिया , नर्मदा,, के बरगी बाँध से निकले जल को , सतना जिले में गले लगाने को आज भी बेताब है !<br />
<br />
( <b>तमसा नदी के किनारे चलती हुई एक स्त्री एंकर</b> )<br />
<b> स्त्री एंकर-</b> विंध्याचल पर्वत की ४८३ किलोमीटर लम्बी कैमोर पर्वत माला पूर्व में बिहार के रोहतास , और उत्तर में , उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर जिले तक फ़ैली हुई है , जिस के पूर्वी भाग में कैमोर पर्वत श्रंखला से सट कर सोन अपनी पूर्व की लम्बी यात्रा संपन्न करता है ! इस , 'सोन घाटी में , फ़ैली गहन वन सुषमा आदिकाल से ' विंध्यावाटी ' के नाम से विख्यात है !<br />
कैमोर पर्वत श्रंखला के ही ' तामकुंड ' नामक स्थल से निकली , -विंध्य क्षेत्र की प्रमुख दूसरी नदी, ,, ' तमसा ',, यानी टोंस नदी का यहां के जनजीवन में कम महात्यम नहीं है ! यह नदी यहां के चूने पत्थर के पथरीले क्षेत्र पर बहती हुई , धार्मिक नगरी मैहर में , माँ शारदा का मुंह निहारती हुई , सतना नगर के निकट , माधवगढ़ किले को छूती हुई , रीवा जिले के विद्युत् शक्ति केंद्र सरमौर से निकल कर चाकघाट होते हुए , फिर कैमोर श्रंखला को पार ,करके यमुना नदी में जा मिलती है ! २६४ किलोमीटर की इस यात्रा में , वह , रीवा रियासत में कई मनोरम प्रपातों का सृजन करती है जो देखते ही बनते हैं ! पुरवा , चचाई , और क्योटी प्रपात , विंध्यभूमि के चर्चित प्रपात हैं , जिसका अपार जल हृदय को आनंदित करता है ! तमसा नदी का उलेख रामायण में भी है , जिसके किनारे पर , राम ने , वनयात्रा के दौरान , अयोध्या त्यागने के बाद पहली रात्रि विश्राम किया था ! आधुनिक भारत के निर्माण में , विंध्याचल श्रेणियों की तरहटी में , बिखरा चूने पत्थर का अनमोल खजाना , सीमेंट निर्माण का मूल तत्व है ! इसलिए सतना और रीवा क्षेत्र में आज सीमेंट के कई कारखाने उच्च ग्रेड की सीमेंट बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं !<br />
<br />
( <b>नेपथ्य में वाइस ओवर </b> )<br />
विंध्याचल श्रेणी , कैमोर पर्वत माला के उत्तरी भाग की तराई की पठारी भूमि में स्थित , विंध्य भूमि का रीवा नगर , बघेल राजवंशों की मुख्य राजधानी रहा ! बघेल राजाओं की पूर्ववर्ती राजधानी , बांधवगढ़ में स्थापित हुई ,, जहां का अजेय ,किला कई राजवंशों के उत्थान पतन , आपसी युद्धों , और राजशाही के उथलपुथल का गवाह रहा है !विश्व प्रसिद्द सफ़ेद शेर , इसी बघेल राजवंश की दी हुई सौगात है ! बांधवगढ़ का वन्य अभ्यारण , न केवल समूचे देश में प्रसिद्द है , बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी लुभा रहा है ! रीवा जिले के गोविंगढ़ तालाब में बना राजशाही युग का कठ बंगला सहज ही सबको अपनी और खींच लेता है , विंध्य भूमि के इसी भाग में , शिव , ,वैष्णव संस्कृतियों के अवशेष , आज भी धार्मिक उथल पुथल की गवाही देते हैं वहीं बौद्ध काल के स्तूपों के अवशेष और जैन मंदिर के स्मृति चिन्ह भी अहिंसा के परम् धर्म और विचारधारा की कथा कहते नजर आते हैं !मुगलकाल में , शहंशाह अकबर के दरबार के नौ रत्नों के दो रत्न , तानसेन और बीरबल भी इसी विंध्य भूमि के रत्न थे , जो रीवा राज से अकबर दरबार भेजे गए ! आज़ादी के संघर्ष में , बलिदानी युवकों में रणमत सिंह का नाम , यहां के इतिहास में अमित अक्षरों में दर्ज़ है !<br />
<br />
<b> पुरुष एंकर -</b> विंध्याचल की छितराईयों श्रेणियों के बीच शोभा देता चित्रकूट , सतना जिले को धार्मिक आस्थाओं का केंद्र बिंदु है , जहां भगवान् राम का , मंदाकिनी नदी के किनारे , बारह वर्षों तक निवास रहा ,,और जहां की पर्वत श्रेणियों में स्थित , कामदगिरि , दो भाइयों के आत्मिक प्रेम का गवाही देता है ! भरत की निरंतर मनुहार के स्वर आज भी यहां जनश्रुतियों में समाये हैं और त्याग की परम्परा निबाहते राम के पद चिन्ह यहां की रज के कण कण में दिखाई देते हैं ! भरत के साथ , राम को मनाने आये अवधवासी , अपनी भाषा संस्कृति के साथ ,जब यहीं रुक गए , तो उन्होंने इस भू भाग की जनजातियों के साथ मिल कर एक नई संस्कृति, नई भाषा का सृजन किया जो आगे चल कर बघेली कहलाई!<br />
<br />
( <b>नेपथ्य से-वाइस ओवर </b> ) ( <b>विभिन्न दृश्यावली सहित</b> )<br />
विंध्य भूमि का सतना जिला बघेलों और प्रतिहार ठाकुरों की कर्म भूमि रहा है ! यहाँ मैहर की शारदा देवी , विवेक वाणी , और कला की वरदानी देवी है , जिनके चरणों में बैठ कर वीण वाद्य के धनी बाबा अल्लाउद्दीन खां ने रविशंकर, अकबर अली , जैसे संगीत रत्न देश को भेंट किये ! आदिकाल में ' विंध्याचल पर्वत की पर्वत श्रेणी के नीचे बसी , उच्छकल्प ' के नाम से विख्यात , उचेहरा नगरी , धातु शिल्प की कारीगरी के लिए कई वर्षों तक विख्यात रही ! भरहुत पहाड़ पर बने बौद्धकालीन स्तूप और उनके केंद्रों के अवशेष सम्राट अशोक के शाशन काल की गाथा , पाषाण मूर्तियों के माध्यम से कह रहे हैं ! चौमुखनाथ मंदिर में शिव की चारमुद्राओं की अद्भुत मूर्ती इसी क्षेत्र में विराजी हुई है ! तथा विंध्य भूमि के , इसी जिले के एक छोर पर , उत्तरप्रदेश की सीमा से सटा वह ऐतिहासिक अजेय दुर्ग सीना ताने खड़ा है जिसे शेरशाह सूरी महीनो तक घेरा डाल कर जीत नहीं पाया था ! यह भूमि वीर चंदेल राजवंश की कर्मस्थली भी रही , जहाँ महोबे के बनाफर वीर आल्हा उदल की गाथाएं आज भी पूरेभारत में , ओज फैलाती हुई , मारीशश में भी चाव से गायी जा रही हैं ! चन्देलों के काल में बने खजुराहो के मंदिर आज विश्व में कोतुहल का केंद्र बने हुए हैं और योग , भोग , और मोक्ष ,के आनंद की परिभाषा , पाषाण मूर्तियों के ज़ुबानी बखान रहे हैं ! ,<br />
<br />
<b>स्त्री एंकर - ( अजय गढ़ घाटी में खड़े हो कर ) -</b> विंध्य के पर्वत श्रेणियों पर स्थित पन्ना पठार की भूमि , महराज क्षत्रसाल की वीरगाथा गाती है ! कवी भूषण की पालकी को कंधा देने वाले वीर बुंदेले क्षत्रसाल , की प्रशंशा करते हुए कवि भूषण ने कहा था ,,<br />
' ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी ,<br />
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहती हैं ,<br />
कंद मूल भोग करें कंद मूल भोग करें ,<br />
तीन बेर खाती ती वे तीन बेर खाती हैं !<br />
वहीं दूसरी और छत्रसाल की वीरता बखानते हुए एक और दोहे में उनके साम्राज्य की सीमा , विंध्य की नदियों को दर्शाते हुए स्थापित की गयी थी ,,<br />
इति यमुना उत नर्मदा ,<br />
इति चम्बल , उत टोंस ,<br />
छत्रसाल सौं लरन की ,<br />
रही ना कोऊ होन्स !!<br />
<br />
( <b>नेपथ्य से वाइस ओवर </b> )+ ( कवरेज )<br />
इन्ही वीर बुंदेले छत्रसाल की राजधानी पन्ना में हीरों की खदानें हीरे उगलती हैं ! चारों और से घेरे , विंध्यांचल की पर्वत श्रेणियां , इस नगर को प्राकृतिक सौंदर्य का धनी बनाती हैं ! इसके उत्तर में बना अजयगढ़ का किला , चंदेल राजवंशों की मूर्ती कला का साक्ष्य है ! विंध्य पर्वत श्रेणियों के घाट चूमती , कर्णावती नदी ,,, ,के जल में किलोल करते मगर और घड़ियाल , जहाँ सदियों से पथिकों को भयभीत करते रहे वहीं केन नदी के किनारे फैला विशाल वन अभ्यारण , वन्य जीवों के राजा , बाघ का ऐशगाह रहा ! पन्ना नगरी के चर्चित धार्मिक मंदिर यहाँ आध्यात्म की अलख जगाते हैं , कृष्ण भगवान् का ' किशोरजी ' के मंदिर के साथ उनके बड़ेभाई बलदाऊ जी का भी विशाल मंदिर यहां स्थापित है ! ओरंगजेब के भाई , दाराशिकोह को भी इसी विंध्य भूमि ने शरण दी , और यहीं से प्रणामी सम्प्रदाय की नई धर्म परम्परा की धारा फूटी ! पन्ना का प्रणामी मंदिर आज भी प्रणामी धर्म के अनुयायियों का दर्शनीय मंदिर और आध्यात्म का केंद्र है !<br />
<br />
<b>पुरुष एंकर - ( धुवेला के तालाब पर ) -</b><br />
विंध्य श्रेणियों पर बसा छतरपुर , वस्तुतः छत्रसाल के नाम पर बसाया गया नगर था , यह विंध्य के , बिजावर पठार पर बसा हुआ है ! यहां से बीस किलोमीटर दूर , नोगावं जाते हुए , मध्य मार्ग में पड़ता है मऊसहानियां , जो छत्रसाल की प्रारम्भिक राजधानी के रूपमें विख्यात है ! बाजीराव पेशवा की नृत्यांगना प्रेयसी , ' मस्तानी ' का भाबनावेश महल यह स्थापित करता है की वह यहीं से मराठे दरबार को भेंट में भेजी गयी थी ! मऊसहानियां के तालाब , छत्रसालयुग के प्रतीक हैं ! यहां स्थापित आधुनिक धुवेला म्यूजियम युद्धों में प्रयोग किये गए शास्त्रों का आगार है ! विंध्य की इन्ही श्रंखलाओं पर स्थापित है , बिजावर नगर के समीप ' जटाशंकर ' का मंदिर जो धर्म और आस्थाओं का केंद्र है !<br />
<br />
<b>नेपथ्य में </b><br />
यह भू भाग चन्देलराजवंशों के स्थापत्य कला , और मूर्ती कला का गवाह है ! खजुराहो के मंदिर विश्व विख्यात हैं ! वहीं चंदला के निकट , पहाड़ी पर बनाये गए , बुंदेलों के , एक दुर्ग की छवि दर्शनीय है ! यह स्थान तीन दिशाओं का मार्ग संगम रहा ,,,जिसमें महोबे की दिशा में फैले पाने के बरेज , महोबे के प्रसिद्द पान की शान की विरासत को संजोये हुए हैं ! बुंदेलों के बनाये कई दुर्ग आज भी बड़ामलहरा नामक स्थान की पहाड़ियों पर अपनी शौर्य गाथा कह रहे हैं !<br />
<br />
<b>स्त्री एंकर - </b><br />
विंध्य पर्वत की श्रेणियों के मध्य बहती धसान और बेतवा नदी ने विंध्य भूमि के उन पृष्ठों को रचा है , जिसमें बुंदेले रजवाड़ों की वीर कथाएं , यहां के प्राचीन अजेय दुर्ग , गढ़कुंडार और ओरछा में पनपी हैं ! गढ़ कुंढार से उदय हुई , बुंदेले राजवंशों के शौर्य की गाथाएं , बेतवा के तट पर बने ओरछा नगर तक बिखरीं हुई हैं ! अकबर के दरबार में , धर्म के धनी , वीर बुंदेले मधुकर शाह के मस्तक पर , जो राम भक्ति का तिलक लगा , वह ओरछा को अयोध्या से लाये गये राम राजा की राजधानी बनाने तक , सदैव दमकता रहा ! उनके वारिस महराजा रामसाह के शाशन काल में , यहां काव्य और साहित्य की जो धारा बही , वह काव्य शिरोमणि केशव के काल से अंकित है ! केशव ने जो काव्य रचनाएं की वे कालजयी हैं ! इसी युग में ओरछा के कुंवर इंद्रजीत की प्रेयसी , काव्य विदुषी , नृत्यांगना , रायप्रवीण के साहस की कथा जन श्रुतियों में बड़े स्वाभिमान स के साथ कही जाती है ! ओरछा , राम और सीता के पवित्र देवर भाभी के रिश्ते को भी दोहराता है जो हरदौल और उनकी भाभी के बीच यहां श्रद्धा स्वरूप विदवमान है !<br />
( <b>नेपथ्य में</b> )<br />
ओरछा , वेत्रवती , बेतवा नदी के तट पर बसा एक रमणीक नगर है !यहां के महल , मंदिर , और बेतवा का प्राकृतिक सौन्दर्य आज अनुपम आभा बिखेर रहे हैं ! राम भगवान् के अयोध्या से यहां आने पर बुन्देल राजवंशों ने ओरछा छोड़ कर अपनी राजधानी टीकमगढ़ कर ली ! टीकम गढ़ , के चारों और कई किले हैं , जिनमें बुंदेले राजवंशों का इतिहास बिखरा पड़ा है ! टीकमगढ़ के निकट , बाणासुर के युग में प्रकट हुए , भगवान् शिव की शिवलिंग है , ! विंध्य की पर्वत श्रेणियां , टीकमगढ़ से ले कर , यहां के एक पुराने नगर , चंदेरी तक फ़ैली हुई है , जहां वस्त्र निर्माण कला युगों पूर्व से अक्षुण है ! चंदेरी , कई ऐतिहासिक करवटों की गवाह है , ! विंध्य की धारा का यह अंतिम छोर है !<br />
<br />
<b> पुरुष एंकर -- </b> सात नदियों , रिहन्द , सोन , तमसा , सतना , कर्णावती , धसान , बेतवा , से सिंचित , आम्र कूट और चित्र कूट के शैल शिखरों से सजा , आदिवासी जनजातियों की संस्कृति अपने में संजोये , विभिन्न<br />
रीतिरिवाजों को निबाहता , आदिकाल के स्मृतिचिन्हों को गहन वनो के बीच अक्षुण रखे , विभिन्न अरण्यों में विचरते वनजीवों के आश्रय , शौर्य की धरोहरों को अंक में लपेटे , साहित्य , कला , और संगीत के धनी , इस विंध्य क्षेत्र की कथाएं , धारावाहिक के इन सीमित अंकों में समेटना सहज नहीं है ! यह धरा जहां वैदिक युग के स्मृति चिन्हों की साक्षी है ,जहां मध्यकाल के राजवंशों की उथल पुथल की गवाह है , वहीं यह आधुनिक भारत की छवि में भी अब धीरे धीरे परवर्तित होती जा रही है ! इस धरा के गर्भ जहां में चुना पत्थर , हीरा , कोयला, जैसे खनिज छिपे हुए हैं , वहीं यह धरा , वनोपज , और वन्य संस्कृति , के निर्वाहक , जनजातियों में --कोल , गोंड , भारिया , अगरिया , बैगाओं के जीवन आधार , और उनकी संस्कृति की आधार भूमि है ! पाषाण युग के भित्तचित्र भी इस क्षेत्र के गहन वनो में स्थित है ,, जो मनुष्य जाती के क्रमशः उत्थान कथा कह रहे हैं ! इन संस्कृतियों की पूरी कथाएं कहने , उनके उत्सवों , खानपान की कथा बखानने , उनके नृत्य संगीत को निहारने , उनकी व्याख्या करने में कई अध्याय लग लग जाएंगे ! विंध्य की यह धरा , दो राजवंशों -बघेलों और - बुंदेलों की कर्म भूमि होने के कारण , आज दो क्षेत्रों- बघेलखण्ड और बुंदेलखंड के नाम से जानी जाने लगी है , !<br />
भले ही राजशाही के कारण , यहां विभिन्न संस्कृतियों का चलन हुआ , किन्तु आम्रकूट से लेकर , चित्रकूट होते हुए ओरछा तक फ़ैली इस धारा के कण कण में एक ही आराध्य लोगों के हृदय में बसे हुए हैं और वे हैं --,,," राम ",,! राम इस धरा की आत्मा हैं , राम इस धरा के आदर्श हैं , राम इस धरा के नायक हैं , इसलिए यहां का जनजीवन सहजता , सरलता और आस्था के एक ही सूत्र में पिरोया हुआ दिखता है !<br />
अपने धारावाहिक विंध्य की विरासत में हम , यहां के कुछ आकर्षक स्थानों , परम्पराओं , संस्कृतियों से आप को जोड़ेंगे ,, जिसमें रमने के बाद आप के मन में एक ही अभिलाषा जागेगी , विंध्य की इन वीथियों में विस्तृत भ्रमण की , उसमें बिखरे आध्यात्म को आत्मसात करने की , उसके प्राकृतिक सौन्दर्य का रसपान करने की ,और उसके रमणीय स्थलों में रम जाने की ,,! हमारा विश्वाश है की आप हमारी इन कड़ियों से जुड़ने के बाद कहेंगे ,,, यह तो आनंद का अथाह है ,,, इसमें जितना डूबें ,,,उतना कम है !<br />
तो अगली कड़ी का हमारे साथ इंतज़ार कीजिये ,,, और अपना टीवी , अपनी चैनल पहले से खोल कर रखिये ,,रात्रि ,,,बजे ,,, , ',,,' चैनल पर ,,!<br />
शुभरात्रि ,,!<br />
<br />
( आलेख ,,,सभाजीत )<br />
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-56124676138382134742018-12-10T07:50:00.003-08:002018-12-10T07:50:14.888-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
किताबों के कीड़े ,<br />
किताबों में रहते हैं ,,<br />
किताबें कुतरते ,<br />
किताबें खाते हैं ,,<br />
और जब बहुत मोटे हो जाते हैं ,<br />
तब बाहर आते हैं ,,!!<br />
<br />
बाहर निकलने पर ,<br />
वे दीमक को समझाते हैं ,,!<br />
की किताबें तो बस वही हैं ,,<br />
जिसको उन्होंने पढ़ा ,,<br />
बाकी तो ,,बकवास है ,<br />
' मूर्खों का गढ़ा ',,!!<br />
<br />
वर्जनाओं को तोड़ दो ,<br />
हवाओं का रुख मोड़ दो ,,<br />
तुम घुसो हर जगह पर ,<br />
हर पुराने घर ,<br />
फोड़ दो ,<br />
<br />
तुम लिखो कि,,<br />
नदियों के धारे ,,<br />
ऊपर से नीचे क्यों नहीं बहे ,,?<br />
तुम कहो कि,,<br />
पर्वत घमंडी ,,<br />
सर उठाये क्यों खड़े ,,??<br />
<br />
तुम ये पूछो ,<br />
क्यों हवा में ,,परिंदों का राज है ,,?<br />
तुम ये पूछो ,<br />
शेर क्यों ,,<br />
बकरी को खाने को आज़ाद है ,,??<br />
तुम बताओ ,,<br />
नई पीढ़ी को,,, कि ,,<br />
वाद ही संवाद है ,,!<br />
तुम समझाओ ,<br />
प्रगति का मतलब ही बस ,<br />
प्रतिवाद है ,,!!<br />
<br />
बदल दो तुम देश ,<br />
हर परिवेश ,<br />
तोड़ कर पुराने विश्वाश ,<br />
मिटा दो किंबदंती ,<br />
कि,,लिख लो ,<br />
खुद नया इतिहास ,,,!!<br />
भुला दो पूर्वजों के नाम ,<br />
पुराने खानपान ,,!<br />
कि किंचित शेष ना रह पाए ,<br />
अपने आप की पहचान ,,!!<br />
<br />
प्रगति के नाम पर ,<br />
विदेशी हाथ,,,<br />
थाम कर ,,<br />
तुम धरो एक लक्ष्य ,<br />
की हो तुम्हारा ,,<br />
चतुर्दिश ,,एकछत्र ,,राज ,,,<br />
रटाते रहो सबको सदा ,<br />
की बाकी सब हैं ,<br />
गरीब और मजदूर ,,<br />
एक तुम ही हो ,<br />
सबके ,,," गरीब नवाज़ " ,,,!!<br />
रियासत से ,,<br />
सियासत तक ,<br />
प्रजा कहलाये ,हरदम ,एक चिड़िया ,,<br />
और तुम रहो ,,<br />
उनके शिकारी ,,,<br />
आसमां में उड़ते ,,,' बाज़ ' ,,!!<br />
<br />
--- सभाजीत<br />
<br /></div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-18471084356040322112018-10-27T00:10:00.002-07:002020-08-02T00:26:20.303-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: x-large;">" चन्दा मामा "</span></div>
<br />
<div style="text-align: center;">
<div style="text-align: left;">
*******</div>
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrijXdyItcdCUZPzAYSxTiuMu6QktuYYRoIalcwSrKU8xDKyFnTUPKXAy006XnN7OYISorICXgMD4egztujNbMXeajNQMJarQhaYkg_zU8VUSZSOMapSCB2yG-5lJNIgqEP7QOtukdITo/s1600/moon-1859616_960_720.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="640" data-original-width="960" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrijXdyItcdCUZPzAYSxTiuMu6QktuYYRoIalcwSrKU8xDKyFnTUPKXAy006XnN7OYISorICXgMD4egztujNbMXeajNQMJarQhaYkg_zU8VUSZSOMapSCB2yG-5lJNIgqEP7QOtukdITo/s320/moon-1859616_960_720.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<br />
<br />
<span style="font-size: large;">शैशवास्था में , माँ के चेहरे को लगातार देखते रहने के बाद , जब घर के बाहर किसी और चेहरे को पहचानने का बोध जागा , तो माँ ने मुझे गोद में ले कर , चाँद दिखाते हुए कहा --" वह है ' चन्दा मामा " ! मैंने माँ के चेहरे को छू कर , फिर चाँद के चहरे को छूने के लिए अपना नन्हा हाथ बढ़ाया , तो माँ ने हँसते हुए कहा --" चन्दा मामा दूर के ,," !,,,, , उसे सिर्फ बुला सकते हो ,,, उसके साथ खेल सकते हो , लेकिन उसे छू नहीं सकते ! तब मुझे महसूस हुआ की माँ के जैसा ही कोई अपना और भी है , जो मेरे साथ खेल सकता है , जिसे मैं कभी भी बुला सकता हूँ , और जिससे मुझे कोई भय नहीं ! ,</span><br />
<span style="font-size: large;"> </span><br />
<span style="font-size: large;"> कुछ बड़ा हुआ , तो वही चाँद , अपने कई रूप बदलता दिखा ,, कभी , नाखून की तरह , कभी आधा अधूरा , कभी बहुत बड़ा , तो कभी आसमान से बिलकुल विलुप्त ! कभी वह बदलियों में घंटों छुप जाता , तो कभी अचानक प्रकट हो जाता ! तब मैंने माँ से पूछा भी था की यह कैसा मामा है ,,? जो रूप बदल बदल कर रहता है ,,?? </span><br />
<span style="font-size: large;"> माँ ने कहा ,,," वह तुम्हें ' चिढ़ाता " है , वह भी उसका तुम्हारे लिए एक खेल है ,, तुम भी उसे चिढ़ा देना ! मैंने माँ की बात मान कर चाँद को कई बार जीभ दिखा कर चिढ़ाया भी ,,और खुश भी हुआ की मैंने उसे जबाब दे दिया !</span><br />
<span style="font-size: large;"> </span><br />
<span style="font-size: large;"> कुछ दिनों बाद मेरी बहिन ने जन्म लिया , तो चाँद को मैं भूल गया ! दिन भर बहिन का चेहरा देख कर ही खुश होता रहता ,, लेकिन बहिन के थोड़ा बड़े होते ही , चाँद फिर मेरे जीवन में आ गया , अपना बड़ा सा गोल मुँह ले कर , की देखो ,,, मैं साक्षी हूँ , उस रक्षा बंधन का , जो तुम अपनी बहिन की रक्षा के लिए , अपनी कलाई पर " राखी " के रूप में बँधवाओगे ! माँ ने बताया की , ' रक्षा बंधन ' पूर्णिमा के दिन आता है ,!,,,,,,जब तुम्हारा चंदामामा तुम्हारे हाथ में , तुम्हारी बहिन के हाथ की बंधी राखी देखता है !,,,, वह यह भी कहता है की आज से तुम बड़े हो गए हो , ,,, अब तुम्हें मामा की रक्षा नहीं चाहिए , क्यूंकि अब तुम खुद एक</span><br />
<span style="font-size: large;"> ' रक्षक ' बन चुके हो !</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> कुछ बड़ा हुआ , तो चाँद फिर दिखा ,,, गणेश चतुर्थी के दिन ,,! बोला ,,, ' मैं तो सबका मामा हूँ ना ,,,तो शिवजी के बेटे के जन्म पर भी तो दिखूंगा ही ! </span><br />
<span style="font-size: large;">,,,,, गणेश मेरे प्रिय देव थे , उनका चेहरा ही मेरे लिए कौतूहल के साथ साथ , एक दोस्त के चेहरे जैसा लगता था ! और उनका वाहन चूहा ,,,!,वह तो मेरे घर में कई बार रोटी चुरा कर भागा था ! </span><br />
<span style="font-size: large;"> वे लड्डू खाते थे , जो मुझे भी प्रिय था ! मुझे चाँद की यह बात तब भी अच्छी लगी ,, और तब भी अच्छी लगी , जब वह अनंत चौदस के दिन खुद आकर गणेश जी को वापिस ले गया !</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> स्कूल गया तो , एक दिन जब बहुत बड़ा गोल सा चाँद , आसमान में हँसते हुए उभरा , तो माँ ने कहा ,,,आज " गुरू पूर्णिमा " है ! आज फिर चाँद तुम्हे बताने आया है की जीवन में गुरू का महत्त्व कभी ना भूलना ! तुम्हे जीवन में बहुत सी बातें सिखाने वाले , बहुत से गुरू मिलेंगें , लेकिन गलत या सही जानने - समझने का बोध जिस गुरू ने तुम्हें दिया है ,,उसे सदा याद रखना ! जाओ अपनी पाठशाला के गुरूजी को प्रणाम करके आओ ! मैं ने आसमान में हँसते चाँद को निहारा ,,और उसे भी प्रणाम किया ! सोचा कि ,,, असली गुरू तो तुम्ही हो --" मामा " ,,!!</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> थोड़ा समय ही बीता , कि एक दिन वह फिर आसमान से झांका ,, ! इस बार पूरा चेहरा तो नहीं दिखाया ,, लेकिन झाँक कर बोला ,,' आज राम का विजय दिवस है ! तुम जो कुछ दिनों से , राम लीला देख कर मुदित हो रहे थे , उसका निष्कर्ष दिवस है ,,जब रावण का वध भी होगा , और उसकी बुराइयों का दहन भी ! आज तुम्हारे कसबे का मैदान सजा हुआ है ,, तुम भी जा कर आनंद लो ,, मैं वहां तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ !'!,,, उसकी बात मान कर मैंने यह उत्सव भी मनाया !</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> मैदान में जा कर लगा की , अब ठण्ड के दिन आ गए हैं ,, इसलिए पूरीबांह की कमीज पहनना शुरू कर दूँ , की तभी , एक दिन चाँद ,, थोड़ी सिहरन लिए , आसमान में आ धमका !,,,, बोला .--</span><br />
<span style="font-size: large;">,,,,,, ' आज शरद पूर्णिमा है बेटा ,,! माँ से कहो की खीर बनाएं और , अपने आँगन में रख दें ! मैं तुम्हारे जीवन में अमृत भरने के लिए बूँदें टपकाऊँगा ,, जो तुम्हे ना सिर्फ निरोगी करेंगी ,,बल्कि तुम्हारी वाणी में भी खीर खाने से अमृत का वास हो जाएगा ! " !</span><br />
<span style="font-size: large;"> घर आया तो माँ पहले से ही जैसे तैयार बैठी थी ,,शायद उसे अपने भाई की करतूतों के बारे में बहुत पहले से ही पता था !</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> ठण्ड पड़ते ही , मेरा जीवन क्रम थोड़ा बदल गया , जल्दी सोना ,,और देर से उठाना ,,इसलिए ,, चाँद से बातें तो नहीं हो पाईं ,,लेकिन वह खिड़की से झाँक कर मेरी टोह लेता ही रहा ! ठण्ड जब घटी , तो जो मौसम आया , उसने गुदगुदाना शुरू किया ! यह फागुन था ,,!</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> ,,,,,,,,अब तक मैं कुछ बड़ा भी हो चुका था ,, एक दिन चाँद आसमान में आकर ठिठोली करने लगा ,,हुड़दंगी करते हुए बोला --" " बिटवा !!,, आज होलिका दहन है ,,और परसों,, रग से सराबोर होने वाली 'होली; ! ,,, थोड़ा होशियार रहना ,,!,, तुम्हारी बहिन सुबह से तुम्हारा मुंह रंगने को तैयार बैठी है ! हालांकि उस दिन वह तुम्हें टीका लगा के तुम्हे माँ के हाथ के बने घर के पकवान , गुजिया पपडिया भी खिलाएगी ,,! ,,,, लेकिन फिर भी रंग में तुम उससे जीत ना पाओगे ! समझे ,,!!,,,, " </span><br />
<span style="font-size: large;">,,,,,,, मैंने मुंह बिचका कर उसे चिढ़ाया ,,, और कहा --" मामा ,,तुम मुझे डराने के इरादे से आये हो क्या ,,?? हा ,हा ,,!! मैं भी कम होशियार नहीं ,,समझे ,,? " ,,,,,,,,,</span><br />
<span style="font-size: large;">,,,,,,, होली के हुड़ंग में तो बाद में कई दिन बीत गए , पता ही नहीं चला ! " फिर तो स्कूल की परीक्षा ,, और परीक्षा के डर ने पता नहीं कब मेरा समय बितवा दिया ! ,,,, चाँद की और ना मैंने देखा ,,,और ना उसे अपनी ओर मुझे देखने दिया ! बस ,,!! ,, पास - फेल शंशय में उतराते हुए ,, जब परिक्षा में उत्तीर्ण होने की खबर मुझे मिली तो,,, मैं खुश हो गया ! तभी इतनी गर्मी पड़ने लगी ,, की रात में चारपाइयाँ निकाल कर सब लोग छत पर सोने लगे !</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> अब चंदा मामा ,, पंद्रह दिन बाद फेरा लगाते ,,और छत पर पडी हमारी चादरों को ठंडा कर जाते ! जब वे आते ,,तो हमसे बातें होती रहतीं ,, लेकिन जब वे नहीं आते तो हम तारे गिनकर अपनी गणित को मजबूत करने की कोशिश करते ! इन कामों में मेरी चुलबुली बहिन , मुझसे हमेशा ही आगे रहती ,, !</span><br />
<span style="font-size: large;"> चाँद से बातें करते करते ,,,, उसके बताये त्यौहार मनाते मनाते ,,,,, मैं कब बड़ा हो गया ,, यह जान ही नहीं पाया ! लेकिन अब ,, मुझे चाँद ' मामा ' नहीं ,,बल्कि एक ' चेहरा' जैसा दिखने लगा था ! मुझमें यह बदलाव कैसे आया ,,, यह तो ठीक से नहीं बता सकता !,, लेकिन एक बात जरूर जान गया की , यह बदलाव , फ़िल्मी गीत सुनने से , और फ़िल्में देखने से हुआ है ! ,,,, मुझे " चौदहवीं के चाँद " में , एक चेहरा दिखाने वाले वे शायर ही थे , जो बार बार मेरे इस नए चाँद को एक सुन्दर , युवा , स्त्री के चेहरे से तौल रहे थे !</span><br />
<span style="font-size: large;"> " चौदहवीं का चाँद हो ,,' , ' चाँद सा मुखड़ा क्यों शरमाया ' , , चाँद सी महबूबा हो मेरी , ' जैसे गीत मुझे गुदगुदाने लगे !,,,,तो मैंने चाँद से नाता बदल लिया !,,, मैं भी चाँद में एक चाँद से मुखड़े को तलाशने लगा ! ,,,,,,,,,मोहल्ले के चेहरे तो मेरी बहिन जैसे ही दिखे ,,इसलिए ,,उनमें चाँद ढूंढने पर भी नहीं मिला ,,! फिल्मों के परदे पर जो चाँद थे ,, वे मेरी पहुँच से उतने ही दूर थे ,, जितना की वास्तविक चाँद !,,,और ,,, दूसरे मुहल्लों में जा कर चाँद ढूंढने की जुर्रत मुझे इसलिए नहीं हुई ,,क्योंकि वहां कई ,,राहु केतु ,सितारे ,,, पहले से ही उन चांदों को घेरे रहते थे !,,</span><br />
<span style="font-size: large;"> तो चाह कर भी चाँद नहीं पा सका ! यही करते करते नौकरी लग गयी ,,और दिन रात उसमें खट्ने लगा ! एक दिन एक ज्योतिषी को पूछा ,, तो उसने कुंडली देख कर बताया की तुम्हारा जन्म , कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ है !,,जब चाँद बिलकुल ही प्रगट नहीं होता ! यही कारण है की ना तो तुम चाँद के प्रति कभी आसक्त होंगे , और ना चाँद तुम्हारे प्रति !</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> दिन बीतते गए ,, और जब चाँद को मैं नहीं ढूंढ पाया , तो मेरे माता पिता ने , एक ' चाँद ' ढूंढ कर , उसे मेरी जीवन संगिनी बना दिया ! अब चाँद तो हमेशा साथ था ,,,लेकिन जल्दी ही युवा वस्था का गीत सच हो कर सामने आ गया ___ " चौदहवीं का चाँद हो ,,या " आफताब " हो ,,? " ! ,,,,,मेरी उम्र ढलते ढलते ,, चाँद भी अक्सर " आफताब " बन कर दिखने लगा !</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> लेकिन ' मेरा चाँद " जिसे मुझे मेरी माँ ने बचपन में दिखाया था ,, एक बार ,, जरूर फिर आया ! </span><br />
<span style="font-size: large;">,,,,,,, जब पहली ' करवा चौथ " में , मेरी पत्नी ने छलनी से झाँक कर , पहले उसे , और फिर मुझे देखा ,,तो वह पीछे से खिलखिलाया ! बोला --" तुमने मुझ से सभी त्योहारों के बारे में जाना था ,,बेटा ! लेकिन इसके बारे में ,, मैं तभी बता सकता था , जब ज़मीन का चाँद तुम्हारी ज़िंदगी में उतर आये ! अब इस चाँद को सम्हाल कर रखना ,, यह तुम्हारे लिए खिलौना नहीं ,,बल्कि जीवन का अमृत है ! यह दिन भर भूखी प्यासी रह कर भी ,, तुम्हारे दीर्ध जीवन के लिए व्रत रहेगी ! तुम्हारा मुंह देख कर व्रत तोड़ेगी ! यह मेरी तरह दूर का चाँद नहीं ,,तुम्हारे घर का चाँद है ! और याद रखो ,,, जिस माँ के कारण तुम मुझसे परिचित हुए थे ,,जब वह भी तुम्हारे साथ दुनिया में नहीं रहेगी ,,तब यही ,, तुम्हें ,, और तुम्हारे बेटे के लिए एक माँ की भूमिका भी निभाएगी ! ,,,मैं तो एक अजन्मा ,," मामा " हूँ ,,तुम्हारे लिए ही नहीं बल्कि सबके लिए ,!, जो भी बेटी ,,वहां ,,ज़मीन पर माँ का रूप धारण करती है ,,मैं ही उसके बेटे का पहला मामा होता हूँ !</span><br />
<span style="font-size: large;"> अब मुझे धरती की एक नयी बहिन मिल गयी है ,,जो तुम्हारे साथ रहेगी ! इसे दुखी मत करना ,,, वरना मैं तुम्हारी कुंडली से हमेशा के लिए गायब हो जाऊंगा ! मेरे न रहने पर अमावस्या का घनघोर अन्धेरा ही तुम्हारे पीछे शेष बचेगा ! और अन्धेरा तुम झेल नहीं पाओगे ! ",,,,</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> मैंने सर झुका कर चाँद को प्रणाम किया ! मैंने कहा --" तुम सदा मेरे साथ ही रहना ,,,चाहे मेरे मामा की तरह , चाहे मेरी गृहिणी की तरह ,,और चाहे मेरे बेटे के मामा की तरह ,,! तुम्हारे बिना तो मेरे जीवन की गणना भी संभव नहीं ! वह शून्य है ! " </span><br />
<span style="font-size: large;">,,,,,, ! तब से हर करवाचौथ पर पहले मैं अपनी माँ को , फिर चाँद को , को प्रणाम करता हूँ ,और फिर अपनी पत्नी, को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने मुझे हमेशा के लिए चाँद से फिर जोड़ दिया !</span><br />
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> --- सभाजीत</span><br />
<br />
<br />
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4237986684666290861.post-19925679568115608382018-10-21T09:57:00.002-07:002020-03-09T09:51:44.862-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: x-large;"> सीख</span><br />
<span style="font-size: x-large;"><br /></span>
<span style="font-size: x-large;"> *****</span><br />
<br />
<br />
( यह नीति कथा है , जो कभी लिखी नहीं गयी ! यह सिर्फ अनुभव की गयी ! यद्यपि राम कथा लिखने वाले महर्षि बाल्मीक और गोस्वामी तुलसीदास की नज़रों में यह आयी होगी , किन्तु इसे किन्ही कारणों से वे टाल गए ! बाद में रावण वध के बाद से अयोध्या में जन्मी कई घटनाओं से इस सीख की उपस्थिति सत्यापित हुई है , तथापि यह आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है , जिसका अनुगमन , आज के राजनीतिज्ञ भी करते हैं ! और खुद भी घटना क्रमों का कारण भी बनते हैं )<br />
<br />
********<br />
<br />
<br />
<br />
नाभि में , लगे घातक वाणों से , चोटिल हो कर , रावण पृथ्वी पर गिर पड़ा ! उठने की कोशिश की तो उसे लगा , की उसकी संचित ऊर्जा का अमृत कुंड जैसे अचानक सूख रहा है ! वह जान गया की , अब उसका उठना मुश्किल है ! शक्ति धीरे धीरे क्षीण होने लगी , और असह्य दर्द के साथ उसकी आँखों के आगे अन्धेरा छाने लगा ! , उसके चारों और , उसकी रक्षार्थ लड़ने वाले लंका के सभी योद्धा , दौड़ कर उसके पास आये , और उसे उठाने की मदद करने लगे ,, लेकिन उसने उन्हें मना कर दिया !<br />
उसने थोड़ा सर उठा कर दूसरे पक्ष में खड़े विभीषण की और निहारा ,, और असह्य वेदना के साथ भी मुस्करा दिया!<br />
उधर राम के समीप खड़े विभीषण ने भी भांप लिया की राम के विषाक्त वाण अपने लक्ष्य पर काम कर गए हैं ,,और रावण अब मृत्यु के मुंह में जा रहा है ,! तभी अपने भाई की चिरपरिचित मुस्कान में उसे , अपने बाल्य काल के उस भाई की स्नेह दृष्टि दिखाई दी , जो कह रही थी , की अब तो आओ , मुझे सम्हालो , या मैं सिर्फ अनुचरों के हाथों में ही प्राण त्याग दूँ ,,? , आखिर तो ,,, इस राज पाट की लालसा में तुमने अपने मन की कर ही ली है ,,,अब अंतिम समय में मुझसे कैसा द्वेष ,,?? "<br />
<br />
उस दृष्टि से आहत हो कर , विभीषण के मुंह से भी दुःख भरी चींख निकल गयी , और वह दौड़ता हुआ रावण के समीप जा कर उसके सर को अपने हाथों पर ले लिया ! अब कोई द्वेष नहीं बचा था ,,, ना कोई मतांतर , ! अब सिर्फ वहां दो भाई थे , , जो एक ही कोख से जन्मे थे , लेकिन जिनमें ,, सत्ता ,,, और नीति के कारण इतना विरोध हो गया था ,,,की वे एक दूसरे के जान के दुश्मन बन गए थे , लेकिन अब जब विरोधी ही शेष नहीं बचने वाला था , तो विरोध क्या शेष बचने वाला था !<br />
<br />
,,, विभीषण की आँखों से अश्रुधार बह निकली ! बोला ---" मुझे क्षमा करना भैया ! मुझसे भूल हुई ! मुझे लंका त्याग कर राम का साथ नहीं देना चाहिए था ,,, लेकिन आप मेरी और आदरणीय भाभीश्री , मंदोदरी की बात बिलकुल नहीं मान रहे थे , ,, मैंने कई नीति की बातें भी आपसे निवेदन की , किन्तु आप सभी निर्णय , अपने तक सुरक्षित रखते गए ! यहां तक की आप मेरी सीख को भी अपने लिए घातक मानने लगे , और मुझे लगा की अगर मैं ज्यादा दिन लंका में रहा तो आप मुझे या तो कारागार में डाल देंगें ,,या फिर मेरी ह्त्या करवा देंगे ! "<br />
रावण ने दर्द में कराहते हुए भी , मुस्कराने की कोशिश की और बोला --" यह बात छोटे भाई ,, सोच सकते हैं ,,लेकिन बड़े कभी नहीं सोच सकते ! छोटे भाई को भय तो दिखाया जा सकता है , किन्तु बड़ा भाई कभी उसका अहित नहीं कर सकता ,,,क्यूंकि वह उसे पुत्रवत मानता है ! अच्छा हुआ तुमने लंका छोड़ दी ,,,लेकिन मंदोदरी भी तो मेरी आलोचक है ,,, उसने मुझे क्यों नहीं छोड़ा ,,? "<br />
विभीषण को कोई उत्तर नहीं सुझा ! वह और भी ज्यादा विलखता हुआ अश्रु पात करने लगा !<br />
रावण कराहते हुए बोला -- ' अब दुखी मत हो ,,! मेरे बाद तुम्हें ही वंश और कुल को चलाना है ,, ! हाँ मंदोदरी मेरी सबसे प्रिय है ,,उसका ध्यान रखना ! "<br />
<br />
राम दूर से यह दृश्य देख रहे थे ! वे समझ गए की रावण अब कुछ क्षणों का ही मेहमान है ! उन्होंने कुछ सोचा और लक्ष्मण से बोले --" रावण अब इस पृथ्वीलोक से जा रहा है ! वह एक राजा था ,, भले ही उसकी नीतियां सफल नहीं हुई ! तुम जाकर उससे पूछो की वह अंतिम समय में क्या महसूस कर रहा है ,,, किस कारण से इतना बलशाली होते हुए भी वह आज पराजित हुआ है ,, इसका भेद वह खुद खोले ,,! तुम उससे राजनीति के ज्ञान के याचक बन कर शिक्षा ले कर मुझे बताओ ,, , ! "<br />
लक्षमण अनमने मन से , राम की आज्ञा शिरोधार्य करके रावण के पास गए ,, और वही प्रश्न पूछा ,,,जो राम ने कहा था ! रावण ने उन्हें अनसुना कर दिया ! तो वे वापिस लौट आये ! राम समझ गए ,,और बोले ,,की----"<br />
""-- लक्ष्मण ,,!! वह भले ही धराशायी है , किन्तु एक पंडित है ,,और राजा भी , तुम उसके कर्मों पर मत जाओ ,,उसके ज्ञान और अनुभव को देखो ,,और उसके कदमों की तरफ खड़े हो कर फिर पूछो , वह जरूर जबाब देगा ! "<br />
लक्षमण दोबारा गए ,,और रावण के क़दमों की तरफ खड़े हो खड़े कर वही प्रश्न फिर दोहराया,,! इस बार रावण ने आँखें खोलीं ,, और बोला ---<br />
--- " हे लक्ष्मण ,,!! राम तो मुझ से भी ज्यादा नीतिज्ञ हैं ,, लेकिन अगर पूछा ही है तो मैं बताता हूँ की ,, एक राजा को सभी की सलाह जरूर सुननी चाहिए ! भले ही वह छोटे से छोटा व्यक्ति हो या कोई बड़ा व्यक्ति हो ! राज्य कर्म सिर्फ अपने अनुभव , और अपनी नीतियों से नहीं चल सकते ! राजा सिर्फ अपने लिए राजा नहीं होता , वह सबके लिए होता है ! इसलिए किसी की भी अवहेलना करना ठीक नहीं ! "<br />
इतना कह कर रावण के मुंह पर संतोष के भाव आ गए , उसे लगा की उसने अपने मन की बात कह दी है ! , और वह आँखें बंद करके गहन मूर्छा में चला गया !<br />
लक्षमण वापिस राम के पास गए और उन्हें रावण के उत्तर से अवगत करवा दिया ! राम चुपचाप मनन करते रहे और फिर उन्होंने हनुमान को बुला कर कहा ,, " हे हनुमत ,,आप जाओ ,,और विभीषण के शोक संताप को कम करवाने में सहायता करो ! रावण की मृत्यु हो चुकी है ,,उसके ,, अंतिम संस्कार की भी व्यवस्था करवा दो , ताकि ,, उसे राजोचित सम्मान मिल सके !<br />
<br />
रावण के अंतिम संस्कार के बाद , सीता की अग्नि परिक्षा हुई , और तब राम उन्हें ले कर वापिस अयोध्या आ गए , जहां उनका राजतिलक हुआ ! राम ने राजा का दायित्व निभाया ,, और पूरी प्रजा उनके राज में सुख अनुभव करने लगी !<br />
<br />
लेकिन एक दिन अयोध्या में एक धोबी ने बखेड़ा खड़ा कर दिया ! उसने जो सवाल अपनी पत्नी को ले कर उठाये ,,उससे राम विचिलित हो गए ! इस अवसर पर उन्हें क्या करना चाहिए ,,,यह प्रश्न बार बार उनके मन में कौंधता रहा ! उन्होंने मनन किया , और अंदर टटोला , तो एक राजा के बतौर , रावण की दी सीख उन्हें बार बार याद आने लगी !<br />
,,,,,,,, " एक राजा को सभी की सलाह जरूर सुननी चाहिए ! भले ही वह छोटे से छोटा व्यक्ति हो या कोई बड़ा व्यक्ति हो ! राज्य कर्म सिर्फ अपने अनुभव , और अपनी नीतियों से नहीं चल सकते ! राजा सिर्फ अपने लिए राजा नहीं होता , वह सबके लिए होता है ! इसलिए किसी की भी अवहेलना करना ठीक नहीं ! "<br />
इस बात पर मनन करके ,, उन्होंने अपने साथियों से सलाह ली , और अंतिम निष्कर्ष यह निकाला की , धोबी के कथन पर हुई , प्रजा की प्रतिक्रया की अवहेलना उन्हें नहीं करना चाहिए ! इसलिए उन्होंने निर्णय लिया की वे अपनी प्रिय पत्नी को भी बनवास हेतु भेज देंगें ,,और तदानुसार उन्होंने लक्षमण को बुला कर आज्ञा भी दे दी !<br />
रावण की सीख ने रघुकुल को भी वेदना दे दी ! सीता को वनवास क्या मिला , ,, अयोध्या ही , श्री रहित हो गयी !<br />
<br />
************<br />
<br />
आज भी राजनीति इन दो सिद्धांतों के बीच झूल रही है ! क्या राजा को स्वविवेक से , अपनी नीति पर अडिग रह कर निर्णय लेने चाहिए , या फिर प्रजा की भावना अनुसार , मंत्री परिषद् की राय से निर्णय लेना चाहिए ! यह प्रश्न अनुत्तरित है !<br />
अपने विवेक और अपनी नीति और अपने निर्णय पर रावण चला ,,,किन्तु उसका परिणाम ठीक नहीं हुआ ,,,<br />
,,, और लोगों की भावना को सर्वोपरि मान कर , मंत्री परिषद् की सलाह से राम चले , तो उनका अपना दाम्पत्य जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ ! <br />
सर्वथा दो विपरीत आचरण , और सिद्धांत की नीतियों के बीच , सफल नीति क्या है ,,,यह तो ज्ञानी लोग ही बता पाएंगे , किन्तु यह सच है की दोनों एकल नीतियां ,, " लोकतंत्र , और राजतंत्र , उस त्रेता युग में भी , असफल नीतियां ही सिद्ध हुईं थीं !<br />
<br />
---सभाजीत <br />
<br />
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: medium; line-height: 19.32px;">" शोध " </span><br />
<div class="post-body entry-content" id="post-body-6325167117469854423" itemprop="description articleBody" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 13.2px; line-height: 1.4; position: relative; width: 570px;">
<div dir="ltr" trbidi="on">
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
सफाई पर लेख लिखना था !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
दोस्तों ने कहा , तुम गप्पें ज्यादा मारते हो , यथार्थ कम होता है ! इसलिए शोध पर्यक लेख लिखा करो ! तो सोचा ,,,कलम घसीटने से पहले थोड़ा शोध ही कर लूँ ,,!!</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
सुबह सुबह घर से निकल पड़ा !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
इधर उधर देखता चल ही रहा था की एक लड़का मिल गया !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
उम्र सिर्फ दस साल ,,,कपडे मैले ,,बाल उलझे ! इतने सुबह बेचारा यह लड़का , काम ढूंढने निकल पड़ा ,,,यह सोच कर मेरा ह्रदय द्रवित हो गया !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
पता नहीं कब यह देश नौनिहालों के प्रति जाग्रत होगा !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
यही विचारते विचारते मैं थोड़ा ठिठक गया !<br />वह बोला --" क्या ढूंढ रहे हो बाबूजी ,,?<br />कुछ नहीं ,,कोई सफाई वाला है तुम्हारी निगाह में ,,??<br />वह हंसा , बोला --" सफाई तो मैं ही कर दूंगा ,,,मौका दीजिये ,,! "<br />" क्या तुम भी सफाई करते हो ,," ?<br />" आजमा कर देख लीजिये ,,! अभी अभी ,,दस ट्रेनों में घूम कर वापिस लौटा हूँ ,,! "<br />" तो तुम ट्रेन में सफाई करते हो ,?'<br />" हाँ ,,! भीड़ में भी करता हूँ ,,,बाज़ार में भी करता हूँ , मंदिर में भी करता हूँ ,, जहां मौका लगे वहीं करदेता हूँ ,,! "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
" भीड़ में ,,? मतलब ,,? "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
" मैं जेब साफ़ करता हूँ ,,! " ---वह हंसा ,,!!</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मैं घबरा गया ! उसे वहीं छोड़ कर , अपनी जेब टटोलता आगे चल दिया !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
आगे खद्दर धारी मिल गए !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
वे सुबह सुबह अपने दो कुत्तों को सैर करवाने निकले थे !<br />दोनों कुत्ते दो अलग अलग विपरीत दिशाओं में उनको खींच रहे थे , और वे संतुलन बनाते हुए , उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे थे !<br />कुत्ते शायद अलग अलग अपनी भोज्य सामग्री देख कर लपके थे ,,,जो शायद एक और कुछ मैला जैसी थी और दूसरी और एक सड़ी हड्डी !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मुझे देख कर वे खद्दर धारी नेताजी ,,,झेंपते हुए बोले ---" सुबह सुबह कहाँ चल दिए भाई ,,? "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मैंने उन्हें अपने अभिप्राय के बारे में बताया ,,,!</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
वे बोले हम विपक्ष में हैं ,,! तुम तो देख ही रहे हो ,, सफाई का हाल , मेरे दोनों कुत्ते गन्दगी देख कर मचल रहे हैं ,,सरकार का काम है सफाई करवाना ,,,अगर करवाती तो ये क्यों भागते ,,?</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
" सही कहा भाईसाहब ! लेकिन मैं तो सफाई का यथार्थ ढूंढने निकला हूँ ! ,,,मुझे लेख लिखना है ! "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
अगर यथार्थ पर लिखना है तो मेरी विरोधी पार्टी पर लिखो ना ,, वह तो सफाई में अव्वल रही है ! "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
" कैसे ,,? "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
" अरे वे तो सफाई मास्टर हैं ! पार्टी का चन्दा वे साफ़ कर गए ! योज़सनाओं की राशि वे साफ़ कर गए , अनुदान राशि , रिलीफ फंड , बैंक लोन वे साफ़ कर गए ! सब्सिडी वे साफ़ कर गए ! खनिज वे साफ़ कर गए , पहाड़ , जंगल वे साफ़ कर गए ! यही तो असली सफाई हुई है ,,पिछले सत्तर वर्षों में !<br />" भाई साहब ,,! कुछ साल तो आपकी पार्टी ने भी राज किया है ,,,क्या आप पर यह सफाई लागू नहीं होगी ,,? "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
" तो क्या वे हमें छोड़ देते हैं ,,? वे भी तो वही कहते हैं ,,,जो हम कहते हैं ! "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
" इसका मतलब तो आप लोगों ने बारी बारी से सफाई की है ,,,! "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
वे हंसने लगे ! बोले _ " आप लिख रहे हो और यथार्थ लिखना चाहते हो तो जो मैं बता रहा हूँ वही लिखो ,,, बाकी तो पढ़ने वाले समझेंगे ! "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
तभी उनके दोनों कुत्ते , अपना भोज्य पदार्थ छोड़ कर सीधे मुझ पर ही भोंकने लगे ! मैं घबरा कर पीछे हट गया ! वे उन्हें पुचकार कर " लाड " भरे सम्बोधन से बुलाने लगे !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मैंने हाथ जोड़े और आगे बढ़ लिया !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br />आगे थोड़ा सुनसान पड़ा ,,, तो जल्दी जल्दी पैर उठाने लगा ,,,यह इलाका थोड़ा बदनाम था !<br />तभी ना जाने कहाँ से टी तहमद पहने , बड़ी बड़ी मूंछे रखाये , मुंह पर रुमाल बांधे एक आदमी सामने आ गया ! बोला--" बाबूजी जहां हो वहीं रुक जाओ ,,!"</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मैं रुक गया तो वह बोला ---" जो भी पहने हो उतार दो फ़ौरन ,,आवाज़ मत करना समझे ,,! "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मेरी घिघ्घी बांध गयीं ! लेकिन मेरे पास तो कुछ था ही नहीं ! सोना चांदी पहनने का शौक था नहीं , घड़ी बांधता नहीं था , मोबाइल में टाइम देख कर काम चला लेता था , जो आज घर पर ही धोखे से छूट गया था ! हाँ बटुआ ,,जरूर जेब में था !<br />मैंने कहा --" मेरे पास कुछ नहीं है भाई ,,चाहो तो तलाशी ले लो ! "<br />उसने तलाशी ली ,,,बटुआ निकाला ! लेकिन उसमें एक भी नॉट नहीं था ,,,खाली पड़ा था !<br />बोला --" फालतू टीम खराब कराया ,,,बोनी भी नहीं हो रही है ! कैसे फटीचर हो ,,?? क्या करते हो "<br />"<br />मैंने कहा ,,," भैया ,,!! लिखने का फितूर है सफाई पर लिखने का मूड था ,,तो यथार्थ लिखने के लिए सुबह सुबह ही निकल पड़ा ,,!</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
" तो क्या दिखा सफाई पर तुम्हे अब तक ,,?'<br />" आप जैसे ही लोग ही दिखे ,,! और कुछ तो नहीं दिखा ! "<br />" ठीक कहते हो बाबू ,,! अब हमारे बारे में कुछ ना लिखना वरना हम भी " साफ़ " कर देते हैं ,,,आदमी को भी ,,समझे ,,? "<br />" कैसे ,,"-- मैंने नादानी में यथार्थ जानने के लिए पूछ लिया !<br />वह मुस्कराया ,,,उसने एक रामपुरी चाक़ू निकाल लिया ,,और मेरे मुंह के पास लहराते हुए कहा ,,," ऐसे "<br />मैंने डर के मारे घरघराती आवाज़ में कहा ,,," बिलकुल नहीं लिखूंगा भाई ! ,,, मैं तो फेसबुकिया लेखक हूँ ,, ये तो दोस्तों की बेवकूफी में आकर यथार्थ ढूंढने आ गया ,, मुझे कौन कोई पी एच डी,, लेनी है ! "<br />वह हंसा ---" पी एच डी ले कर भी क्या करते बाबू ,,? मैंने ली है ,,,तो कौन सी नौकरी मिल गयी ,,? आखिर करना तो यही काम पड़ रहा है ! "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मैंने हाथ जोड़े और वापिस लौट लिया !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
घर आकर पत्नी को बताया तो वह हँसते हुए बोली __ " मुझे धन्यवाद दो ,,,! मैंने तुम्हारा बटुआ रात में ही साफ़ कर दिया था ,,एक भी पैसा नहीं छोड़ा था ,,,वरना आज कुछ ना कुछ नुक्सान तो तुम्हें होता ही ! "</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मैं सफाई के यथार्थ को अब पूरी तरह जान चुका था !</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
--- सभाजीत</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<h2 class="date-header" style="font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 11px; font-stretch: normal; line-height: normal; margin: 0px; min-height: 0px; position: relative;">
<span style="background-color: transparent; color: #222222; letter-spacing: inherit; margin: inherit; padding: inherit;">बुधवार, 29 अगस्त 2018</span></h2>
<div class="date-posts">
<div class="post-outer">
<div class="post hentry uncustomized-post-template" itemprop="blogPost" itemscope="itemscope" itemtype="http://schema.org/BlogPosting" style="margin: 0px 0px 25px; min-height: 0px; position: relative;">
<a href="https://www.blogger.com/null" name="2378342572188334323" style="color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 16.8px;"></a><span style="color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 16.8px;"></span><div class="post-header" style="color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 10.8px; line-height: 1.6; margin: 0px 0px 1.5em;">
<div class="post-header-line-1">
</div>
</div>
<div class="post-body entry-content" id="post-body-2378342572188334323" itemprop="description articleBody" style="color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 13.2px; line-height: 1.4; position: relative; width: 570px;">
<div dir="ltr" trbidi="on">
कल सड़क पर एक चोर उचक्का मिला !<br /><br /> चोर उचक्का इसलिए , क्यूंकि पहले २००७, फिर २०१२ में वह इन्ही आरोपों में जेल काट आया था ! अदालत ने खुद अपनी धारदार कलम से उसे सज़ा सुनाई थी , और वह अपने कृत्य के लिए दोष सिद्ध किया जा चुका था !<br /> उससे हाल चाल पूछा तो उलटे वह मुझी से पूछने लगा _<br /><br /> कहो साहब ,,? ,,, कुछ घर में " माल-वाल " जोड़ा की नहीं ,,??<br /> " तुम्हें क्यों बताऊँ ,,? " - मैंने सशंकित हो कर इधर उधर देखते हुए कहा !<br /> वह हंसा फिर बोला --" तुम्हारा " डाटा " है मेरे पास ,,! तुम्हारी पेंशन , तुमने क्या खरीदा , तुम कहाँ गए , तुम्हारे घर में कौन से ताले लगे हैं ,,तुम रात में कितने बजे तक जागते हो , ,,,सब मेरी जानकारी में रहता है ,,समझे ,,?? "<br /> मुझे पसीना निकल आया ! मैंने डरते हुए पूछा --" तुम्हें कैसे मालुम है यह सब ,,?? मैं अगर चाहूँ तो मोहल्ले की एक खबर भी नहीं बताता कोई ,, और तुम इतना सब जान जाते हो ,,?'<br /> वह हंसा फिर बोला ---" किस दुनिया में जी रहे हे दोस्त ,,? यह डिजिटल युग है ,,मेरे पास तो शहर के सभी छोटे से ले कर बड़े आदमी के सभी डाटा मौजूद हैं ,, एक परसनल " डाटा बैंक " बना कर रखता हूँ ! "<br /> -- " चलो ठीक है ,,, क्या उठाईगिरी करना बंद कर दिया है आजकल ,,? " - मैंने पूछा !<br /> उसने एक सिगार निकाला और एक चीनी लाइटर से उसे जला कर मेरी और धुंआ छोड़ता हुआ बोला ---" किस ज़माने की बात कर रहे हो बाबूजी ,,?? ,,सबने प्रगति की ,,,तो मैं क्यों " प्रगतिशील " ना बनता ,,?? "<br /> --" प्रगतिशील ? "<br /> -- " हाँ जो प्रगति की चाह में प्रयत्नशील रहे ,,वही तो हुआ --" प्रगति शील " ,,तो मैं भी हुआ प्रगति शील ,,! "<br /> - " चलो ठीक ,,,लेकिन तुमने इस बीच क्या प्रगति की भाई ,,? "<br /> - " तुम्हें तो मालुम ही था ,, मैं कोई अनपढ़ उठाईगीर तो था नहीं ,, " हिस्ट्री " में " एमए " था ,, तभी सोच लिया की यह उठाईगिरी अब सभ्य ढंग से करूँ ,, तो मैंने एक संस्था बनाई ,,," अखिल भारतीय उठाईगीर समूह " ,,जिसमें मेने देश के सभी उठाईगीरों ' को जोड़ा ! मैंने बड़े लोगों से कहा की इससे पहले , तुम्हारा पूरा माल उड़वा दूँ ,,,तुम खुद हमें एक मुश्त बड़ा चन्दा देना शुरू कर दो ,,फायदे में रहोगे ! "<br /> - " अरे ,,!! तुम्हारी संस्था रजिस्टर कैसे हो गयी ,,,? उठाईगिरी तो आपराधिक शब्द है ,,? "<br /> उसने सिगार का जोर दस कश लिया ,,और इस बार धुंए का एक गुबार मेरे मुंह पर उंडेल दिया ,,फिर थोड़ा तल्खी से बोला --" " अपराध क्या है ,,,क्या तुम जानते हो ,,?? ---अपराध वह होता है जो अदालत मान ले , पुलिसिया भाषा में लिखा गया शब्द ,,,अपराध नहीं होता समझे चश्मुद्दीन ,,? ,समझे , जब तक अदालत ना कह दे की अपराध हुआ है तब तक इस देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आज़ादी है और मानव अधिकार की सुरक्षा की छतरी उसके सर पर तनी मानो ! ,,,<br /> ---" ठीक है ठीक है ,," ,,मैं घबरा गया की यह नाराज़ ना हो जाए ,,वरना मेरा घर साफ़ हुआ समझूँ !<br /> समझ गया की मैं घबरा गया हूँ तो मुस्करा कर मेरी खिल्ली उड़ती हुए बोला --" डरो मत ,,,अब मैं छोटे मोटे शिकार नहीं करता ,, अब मैं वो पुराना व्यक्ति नहीं हूँ ! "<br /> '--" धीरे धीरे मैंने एक एनजीओ बना ली ! "-- वह आगे बोला --" जानकारी के अधिकार ' के तहत मैंने सरकार से जानकारियां लीं ,,,और फिर उसी के विरुद्ध तीखे लेख लिखने लगा ! सरकार मुझसे डरने लगी तो मैं " एक्टिविस्ट " कहलाने लगा ! आजकल कविता में छंद सोरठां तो लिखना नहीं पड़ता , तुकबंदी के भी जरुरत नहीं ,,,तो मैं वर्ग वाद , गरीबी अमीरे को ले कर कवितायें रचना शुरू कर दिया ,,,और आज मैं एक चर्चित कवि हूँ ! नकल करके मैंने हिस्ट्री में एमए किया था ,,, तो खुद को " इतिहासकार " सिद्ध कर दिया ! इस देश का कोई लिखित इतिहास तो है नहीं , तो मैंने अपनी दृष्टि से बहुत सी जगहों और घटनाओं का इतिहास लिख मारा ,,तो मुझे ,, पी एच डी मिल गयी ! "<br /> --- मैं अपलक उसे ताकता रह गया !<br /> ---- " मुझे माफ़ करना यार ,,! ,,मैंने तुम्हारे पुराने धंधे के बारे में पूछ लिया था ,,,मुझ से गलती हो गयी ! " -- मैं करीब करीब घिघयाते हुए बोला !<br /> --- अरे तुम अगर कहोगे भी तो क्या आज लोग तुम्हारी बात सुनेंगे ,,? ,,,अब में राजनीति में कूद गया हूँ ,,, मैं इस देश में अब समाजवाद लाना चाहता हूँ ,,,! और इसलिए आजकल जगह जगह मेरे भाषण होते हैं ,,,भारी जनता जुड़ती है ,,,! कई पार्टियां मेरे ऊपर डोरे डाल रही है ,,, की मैं उन्हें ज्वाइन कर लूँ ,,,मगर मैं उन्हें घास नहीं डाल रहा हूँ ! " ,<br /> " क्यों सर ,,! " --मैंने उसका सम्बोधन आदर में बदलते हुए पूछा !<br /> --" इसलिए की पहले वे मुझे टिकट कन्फर्म करें ,,, और मंत्री बनाने का वायदा करें ,,,तभी मैं उन्हें ज्वाइन करूंगा ! "<br /> --- वह,,,! वह,,,!! " ,,, अब मेरे पास तारीफ़ के शब्द भी नहीं बचे थे !<br /> --- अरे क्या वह,,,वह ,,?? ,,,अभी तो हमारी मंजिल बहुत दूर है ,,, ! अभी तो हमें बहुत कुछ करना है ,,! "<br /> --- " जब इतना हुआ तो आगे भी होगा ,,,गाते रहिये ,,," हम होंगे कामयाब ,,,हम होंगे कामयाब ,,एक दिन ,," --- मैंने हँसते हुए कहा !<br /> उन्होंने मुझे घूर कर देखा ,,,,तभी एक लम्बी कार ,, आकर उनके पास रुकी ,,ड्रायवर ने उतरकर उन्हें सेल्यूट किया ! मैंने आश्चर्य से पूछा --" आप आज पैदल कैसे चल रहे थे ,,,बिना कार के ,,? "<br /> वे हांसे फिर बोले --" कभी कभी फिर से साधारण आदमी की तरह जीने की तमन्ना होती है ,,,तो कार पीछे छोड़ कर पैदल चलने लगता हूँ , देखना चाहता हूँ ,,की जहां से कभी मैंने माल पार किया था ,,,उन लोगों ने भी कितनी तरक्की की है ,,! ,! दो फायदे हैं ,,,लोग और आप जैसे पत्रकार , मुझे सरल व्यक्ति मान लेते हैं ,,,और मेरी तमन्ना एक आम आदमी बन कर घूमने की पूरी हो जाती है ! "<br /><br /> मैंने हाथ जोड़े ,!,,<br /> वे एकबार कार के अंदर से अपनी मुंडी उचका कर बोले --<br /><br /> " इसे छाप ना देना ,,वरना तुम्हें जेल करवा दूंगा ,,,' मानहानि ' के आरोप में ,,समझे ,,,,,??? "<br /><br /> इस बार फिर मेरे मुंह पर बहुत बड़ा धुंए का गुबार आया !,,,लेकिन यह कार का था ,,,सिगार का नहीं ,,!<br /><br /> इसकी सरकार बन जाएगी तब क्या होगा ,,??<br /><br /> यह सोचते सोचते मैं आगे बढ़ गया !<br /><br />--- सभाजीत<br /><br /><div>
<br /></div>
</div>
<div style="clear: both;">
</div>
</div>
<div class="post-footer" style="background-color: #f9f9f9; border-bottom-color: rgb(238, 238, 238); border-bottom-style: solid; border-bottom-width: 1px; color: #666666; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 10.8px; line-height: 1.6; margin: 20px -2px 0px; padding: 5px 10px;">
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
<div style="clear: both;">
</div>
</div>
<div class="post-footer" style="background-color: #f9f9f9; border-bottom-color: rgb(238, 238, 238); border-bottom-style: solid; border-bottom-width: 1px; color: #666666; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 10.8px; line-height: 1.6; margin: 20px -2px 0px; padding: 5px 10px;">
</div>
</div>
sabhajeethttp://www.blogger.com/profile/10391264415920827682noreply@blogger.com0