बुधवार, 8 मई 2019

इक्कीसवीं सदी का पुल

भूमिका

मैं ,,यानि सौरभ शर्मा कोई कथाकार नहीं हूँ !मेरी कोई रचना अब तक किसी भी पत्रिका में नहीं छपी है !कारण बहुत से हैं - उनमें से मुख्य यही हैं की पत्रिका में छपने के लिए कथाकार होना जरूरी है !कथाकार होने के लिए लगातार छपते रहना जरूरी है ,,और लगातार छपते रहने के लिए किसी लेखक समुदाय का सदस्य होना जरूरी है ! मैं इस सिलसिले का छोर इस उम्र तक नहीं ढूंढ पाया हूँ अतः  कथाकार नहीं कहला  सकता !मेरे एक दो मित्र हैं --बचपन से साथ पढ़े , खेले कूदे हैं ,,वे बहुत बड़े कथाकार हैं , और कुछ पत्रिकाओं के स्तम्भ लेखक हैं !यूँ  बचपन में उनके साथ रहने से , मुझमें लिखने का दुर्गुण  आ गया तो मैं अपनी दैनिक डायरी जरूर  लिखने लगा ! मेरी दैनिक डायरी के कुछ पन्ने  इस लायक जरूर हैं की ,,उनमें से कोई कहानी बन जाए ,,! वैसे भी आप जानते हैं ,,इस युग में फुरसत किसे है की सलीके से बैठ कर कहानी गढ़ता रहे ! हाँ ,,जिनका व्यवसाय ही यही है  उनकी तो मजबूरी है ,,,,बाकी हम आप जैसे लोगों  ,के लिए तो सचमुच एक  मुश्किल काम  है ,,खैर ,,!! ,, ,
   मैं अपनी भाषा में लिखे डायरी के कुछ पन्ने , जैसे के तैसे , एक साथ नत्थी करके रख रहा हूँ ,,इसमें से कहानी आप ढूंढ लीजिये ,,क्योंकि मेरा मन गवाह करता है ,,इन पन्नों में शायद युगों युगों से चलती आ  एक कथा है जरूर ,,,!! ,,



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,
,," मैं ,,,,,!!
  दिनाँक१२ दिसंबर २०३०
   प्रातः,,,९:३०


        आज सुबह काफी देर बाद आँख खुली ! भारी पलकें बार बार मूँद लेने के बाद भी , जब दिमाग ने और अधिक सोने से इंकार  कर  दिया तभी  आँखें खोलनी पड़ीं ! जलती हुई आँखें सबसे पहले सामने लगी डिजिटल , इलोक्टोनिक वाच पर जा कर चिपक गयीं ! लम्बी स्ट्रिप के काउंटर   पर रेडियम के  आंकड़े  ,  , आठ बज कर दस मिनट  के साथ  एक एक छण  जोड़ते जा रहे थे !!आलस में , बिना करवट लिए ही  बगल में हाथ  बढ़ाया तो  नायलोन के  चादर पर हाथ फैलता चला गया ! चादर पर खिसकता हुआ हाथ  , सलवटें पैदा करते हुए , अपनी अंतिम सीमा तक फ़ैल कर रह गया किन्तु प्रतिदिन की भाँती ,उस सीमा के अंदर  " प्रमिला " का अलसाया शरीर नहीं बाँध सका ! ! एक लम्बी सांस ले कर ,  मुड़  कर  देखा -- सचमुच बिस्तर खाली था ! चादर की सिलवटें  अनुभवी वृद्ध  के माथे  की सलवटों की तरह एक छोर से दूसरे छोर तक फ़ैल  गयीं थीं ! किन्तु मैं जानता था इन सिलवटों का चादर पर कोई   स्थाई प्रभाव नहीं पड़ने वाला था ,,ठीक उसी तरह जिस तरह  विगत बीस  वर्षों में  मेरे दिल पर अब किसी भी सलवट का प्रभाव पढ़ना बंद हो गया था !

 बगल में पड़े दूसरे तकिये को भी हाथ बढ़ा कर , मैंने उठा कर अपने सर के नीचे लगा लिया !  प्रमिला भी चली गयी है  ! मेरे लिए कहने को कुछ नहीं छोड़ गयी  ! शेष रह गयी है  तो रात की कडुवाहट  और आँखों की जलन  जो देर रात तक प्रमिला से बहस करने के कारण पैदा हुई है  ! एक बार हाथ उठा कर मैंने अपनी उंगली के उस नाखून को घूरा  जिसके चुभ जाने से प्रमिला ने बात बढ़ा ली थी ! वैसे बात सिर्फ नाख़ून  और उसके प्रमिला के चुभ जाने तक होती तो शायद खत्म हो जाती  किन्तु बात दरअसल यह भी थी की वह नाखून मैंने  विशेष रूप से बढ़ा कर रखा था और जिसके लिए प्रमिला मुझे कई  बार टोक चुकी थी !वह जानती थी की नाखून बढ़ाना मेरा शौक नहीं है ,, बल्कि नाखून इस लिए बढ़ाया है की मैं अपना प्यारा चहेता , पच्चीस वर्ष पुराना गिटार, आसानी से , अपने मन के अनुसार बजा सकूं ! उसे यह भी मालूम है की मैं स्पलेक्ट्रम से गिटार नहीं बजा सकता  और अपने खुद के छणों में , बिना गिटार के नहीं रह सकता ! उसे मुझसे नहीं , मेरे नाखून से नहीं , , मेरे गिटार से नहीं , सिर्फ इन खुद के छणों से शिकायत थी ,,जिसमें वह सम्मलित नहीं थी !  और मैं यह ईमानदारी से मानता हूँ की मैं अपने खुद के छणों के मामले में प्रथम दर्ज़े का स्वार्थी हूँ ,,और उसमें किसी की भागीदारी नहीं चाहता ! मैंने एक लम्बी सांस लेकर पुनः छोड़ दी ,,,! वास्तव में आजकल किसी बड़े मुद्दे  के लिए हमें कई छोटे छोटे बहानों के जरिये लड़ना पड़ता है !
     नाखून पर ठहरी नज़र जो ऊपर उठी तो पुनः घड़ी पर चली गयी ! जलती हुई आँखों की जलन और तीव्र हो गयी ! कितने ऑफर आये , नई  कम्पनी वाले ,  दाशमिक प्रणाली की घड़ी देने के लिए कई बार घूम गए थे ,,किन्तु मैं वहीं ठहरा रहा ! आठ  वर्ष पूर्व १८ अक्टूबर २०२२  की डायरी के पेज  भी मैंने कुछ इसी प्रकार लिखे हैं ! उस दिन भी मेरी आँखें इसी तरह जलती रहीं थीं ,,!! कारण ,,? ,, सिर्फ इसी दाशमिक प्रणाली  की घड़ी के मुद्दे पर ' किटी  ' से मेरी बहस हुई थी ! किटी  ने आवेश में आकर  , हर बार मुझे दकियानूस कहा था ! वह चाहती थी ,,बदलते समय के साथ हम लगातार बदलते हुए नए उपकरण खरीदते जाएँ  और इसी लिए बेटे " प्रमेश "  के दुसरे जन्मदिवस पर  वह चुपचाप एक नई दाशमिक प्रणाली की घड़ी खरीद कर ले आयी थी !उत्साह में भर कर उसने वह घड़ी , इस घड़ी के स्थान पर लगा दी थी जिसे मैं सहन नहीं कर सका था !  मुझे उसकी पसंद से कोई शिकायत न थी , किन्तु जैसा की मैंने कहा -- मुझे मेरे अपने छणों में किसी की भागीदारी पसंद नहीं ,,यह घड़ी भी मेरे अपने छणों की यादगार है -- मेरी पहली पत्नी ,," शांता " के हाथों खरीदी गयी घड़ी , जिसका हटाया जाना मैं किसी भी कीमत पर सहन नहीं कर सकता था ! सिर्फ इसी मुद्दे पर किटी  ने , बात बढ़ा कर , दो वर्ष के प्रमेश का भी ख्याल नहीं किया  और तलाक ले लिया ! उस रात भी जलन कुछ इसी हद तक आँखों में समायी रही थी , आज भी वैसी ही है ! सचमुच  मेरा स्वार्थी होना उचित नहीं ,,किन्तु चाह कर भी यह कमी मैं दूर नहीं पाता  ! ,,कोशिश जरूर करता हूँ ,, !
  घड़ी ने 'इ मेजर ' कार्ड्स के व्हेम्पस  दे कर ९ बजने की सूचना दी तब जाकर लगा की सचमुच काफी दिन निकल आया है ! बाहर धूप निकल आने से कमरे के कंडीशनर थोड़े गर्मी बढ़ाने लगे तो मैंने हाथ बढ़ा कर स्विच आफ कर दिया ! वैसे आजकल दिसंबर की कड़ाकेदार सर्दी पड़  रही है ,,किन्तु मेरे बेड   रूम के अत्याधुनिक हीटर  ऑटोमेटिक कंट्रोल  पर चलते हैं अतः सर्दी का एहसास होता ही नहीं !  कभी कभी जब सर्दी महसूस करने का मूड होता है तो देर रात तक ओवर ब्रिज पर टहलने चला जाता हूँ !
    काफी पीने की  आदतन मजबूरी से वशीभूत हो कर चुपचाप कुकर का बटन चालू कर दिया ! कुछ मिनट लगते हैं ,,यह काफी मशीन का कुकर , ,,काफी बना कर सर्व कर देता है ! वैसे अब और भी कम समय में काफी बना कर देने वाले कुकर बन गए हैं ,,और उसके ऑफर भी मुझे कई कम्पनी वाले पहुंचा चुके हैं ,, किन्तु न जाने क्यों , बदलाव से मुझे अब नफरत होने लगी है ! वैसे आज से पेंतीस  वर्ष पूर्व ,, शांता से शादी मैंने इसलिए की थी ,,क्योंकि हम दोनों बदलाव को ही प्रगति का रूप मानते थे  किन्तु अब ,,?? ?
कल ही मुझे अपनी बहुत पुरानी   डायरी के दो पन्ने  मिले हैं , जिसमें ' शांता ' का जिक्र है ! मैंने वे पन्ने सहेज कर रख लिए हैं ! ये दोनों पन्ने मेरे जीवन के ऐतिहासिक पन्ने हैं !
    आँखों की जलन बहुत बढ़ गयी है अतः अब आगे कलम नहीं चलती ! शब्द भी याद नहीं आ रहे हैं ,,अतः आज की डायरी यहीं तक लिख कर बंद कर रहा हूँ ,, काफी पीने के बाद मन हुआ तो फिर आगे  लिखूंगा ,,वरना रात में सही !
 हाँ डायरी के वे दो पुराने पन्ने जरूर यहां लगा देता हूँ ताकि फिर खो न जाएँ !

" शान्ता  " ,,,,,!!

दिनांक २ फरवरी ,,१९९३ 

 आज मैंने और " शांता " ने कोर्ट मैरिज  की है ! अब इसकी जरूरत आ ही गयी थी ! वैसे शांता सकुचा रही थी ,,,बार बार उसने मुझसे कहा --" सौरभ ,,! क्या यह उचित है ,,? "
" क्या। .?? " - मैंने भोंह सिकोड़ कर पूछा था !
" यही ,,कोर्ट मैरिज  ,,? ,,लोग क्या कहेंगें। .?? तुम्हारे घर वाले क्या कहेंगें ,,?? "
" क्या कहेंगें ,,?? --मैंने कुछ रुखाई से पूछा !
 वह सहम  गयी थी ! बड़ी बड़ी उदास आँखें उठा कर उसने अनमने भाव में कहा था --
 " मुझे अच्छा नहीं लग रहा है ,,यह ढंग सही नहीं है ,,"!
" तब कौन सा ढंग सही है ,,? क्या तुम चाहती हो की मैं घर वालों के सामने हथियार दाल दूँ ,,? उन लोगों के लिए , उनके ढंग से विवाह कर लूँ  ,, जिन्हें  ज़िंदगी  भर सिर्फ रिश्ते निबाहने हैं ,,? "
शांता चुपचाप खड़ी रही ! मैं उसके मुख पर गिरते पड़ते विचारों को देखता रहा था ,,फिर उसके सर पर हाथ रख कर बोला -
 " यह सिर्फ मेरा -तुम्हारा ,,मेरे घर वालों - तुम्हारे घर वालों का ही सवाल नहीं है ,शांता !!,, एक पुरानी  रीति रिवाज को तोड़ने के  लिए बढ़ाया गया कदम है ,,इसमें मैं तुम्हें पीछे नहीं हटने दूंगा ,,!! "
शांता ने चुपचाप मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया था ! उँगलियों पर बढ़ते कसाव ने मुझे आश्वस्त कर दिया था की वह जीवन भर मेरे वैचारिक सिद्धांतों की भागीदार है !  और फिर हम लोग कोर्ट में जा कर विधिवत पति - पत्नी बन गए !
   मैं जानता हूँ मेरे विवाह की खबर , आज ही मेरे घर पहुँच गयी है ! घर के दरवाजे मेरे लिए बंद हो चुके हैं  क्योंकि  मेरे सिद्धांत के अनुसार वह घर मेरा नहीं है ,,उसके दरवाजे मेरे पिता ने अपनी मर्जी के हिसाब से चुने गए , कब्जों में फिट करवाए हैं   जो उनकी मर्जी से बंद होते हैं ,,उनकी मर्जी से खुलते हैं ! और वे दरवाजे , तीन दिन पहले उन्होंने उसी दिन बंद कर दिए थे जब मैंने उस दरवाजे से गुजरने के लिए नाही  कर दी थी !
   तीन दिन पहले ही स्थिति निर्णायक हो गयी थी ! शांत कमरे में माँ ,,चुपचाप धकडते दिल के साथ पर्दे के पीछे , कमरे में पडी चारपाई पर बैठी रह गयी थी ,,छोटी मीनू  पढ़ने का बहाना करके टेबिल पर सर झुका बैठ गयी थी  और राजू आँखें मींच कर सोने का बहाना कर रहा था ! पिता गंभीर स्वर में बोल रहे थे --
" अनुभव बड़ी चीज है सौरभ ,,!! मैं अपने अनुभवों के आधार पर तुम्हारा भविष्य संवारना चाहता हूँ ! मैंने जहां बात तय की है  वह लड़की उस घर से है ,,जिनके संस्कार मैं ही नहीं ,   इस घर की कई पीढ़ियां ,, कई पीढ़ियों से देखती चली आ रही हैं ! "
     मैंने भी कमर कस ली थी ! प्रतिवाद में कडुवाहट से बोला था --
 " परम्परागत पीढ़ियां ,,और संस्कार आप अपने आप तक ही सीमित रखिये डैडी !!ज़माना तेजी से बदल रहा है ,,मेरे सामने उम्र पड़ी है  बदलते जमाने के साथ चलना पड़ेगा ,,! आपने जो चीजें नहीं देखीं उन पर अपनी उम्र की मोहर लगा कर , मेरे पल्ले मत बांधिए ! "
 पिता ने सीधी नजरों से मुझे घूरा था ! उनकी गहरी आँखें ,,झुर्रीदार कटोरों के बीच से झाँक कर,  मुझे  बींधती  चली गयीं थी  ! वे बुदबुदा कर बोले थे -
 "  जमाना जरूर बदला है बेटे ,,!,,, मेरे जमाने में लोग चाह सकते थे ,,बोल नहीं सकते थे ,,तुम्हारे जमाने में बोल सकते हैं ,,कर नहीं सकते ,, किन्तु तुम शायद ज्यादा एडवांस हो ,, तुम करना भी चाहते हो ,,!"
    मैंने नजरें चुरा लीं  ! अपना निर्णायक उत्तर देते हुए मैंने कहा था --
     " मैं जो बोलता हूँ ,,उसे करने में भी विश्वास रखता हूँ डैडी ,,!! आज कल के आम दब्बू लड़कों की तरह नहीं रह सकता ! "
 पिता कुछ नहीं बोले ! चुपचाप सर झुका कर अंदर चले गए थे ! एक हारी हुई बाजी छोड़ कर ,,और मैं विजेता की तरह  , गर्व से सर उठा कर  , खुले दरवाजे से बाहर चला आया था ! मैं जानता था ,,,मेरे पिता हारना भी स्वाभिमानी ढंग से जानते हैं  इसलिए   वे अब मुझे कोई अगली बाजी खेलने का अवसर नहीं देंगें !

     विवाह के बाद ,,कालोनी में लिया गया छोटा सा फ्लेट , मेरे मित्रों  ने अपने ढंग से सजाया ! हम लोग देर रात तक गिफ्ट स्वीकारते रहे,,मेरे नज़दीकी मित्र शांता को चुटकुले सूना कर हंसाने की चेष्टा करते रहे ,,किन्तु पता नहीं ,,बेलबाट ,  मैक्सी,  पहनने वाली शांता , आधुनिक विचारों वाली शांता , खुलकर खिलखिलाने वाली शांता , देर रात तक सैद्धांतिक बहस करने वाली शांता ,,आज चुपचाप एक गुड़िया की तरह गुमसुम हो कर सिर्फ मुस्कराती  रही ! रात उसने एक ही  फरमाइश की --गिटार बजाने की !,,और मेरा मूड था नहीं !,,क्योंकि गिटार में सिर्फ उन छणों में बजाता हूँ जब मैं बोझिल होता हूँ ,,और जब मैं बोझिल होता हूँ तब वे छण  मेरे अपने होते हैं ,,,,जिनमें किसी की भागीदारी नहीं ! " वह बार बार  ज़िद करती रही ,,और मैं बार बार टालता रहा ! ,,
      रात हमें लगा ,,,हमने एक रस्म पूरी की है  ,,पति- पत्नी होने की ,,वरना हम जो थे वो पहले भी थे और जो हैं ,,अब भी हैं ,,!!

" अलविदा ,,,,," !

दिनांक २८ अक्टूबर २०१३

      बड़ी मुश्किल से , मैं इस कमरे में घुस कर बैठ सका हूँ ! मेरे बेड  के पायताने पर लगी , शांता द्वारा खरीदी गयी , इलेक्ट्रानिक घड़ी ,,उसी निर्विकार रूप से बढ़ती जा रही है ,,जैसे कुछ हुआ ही न हो ! डायरी के इस पन्ने को , जिसे मैं स्याही से रंग रहा हूँ ,,बार बार फाड़ देने को जी चाहता है  किन्तु मेरा मन कुछ दृढ हो गया है ,,अतः यह रात भी कागज़ पर उतार देने को जी चाहता है ! कभी कभी स्याह अक्षर फ़ैल कर बड़े होने लगते हैं , तो आँख में आई आंसू की बूँद , मैं करीने से पोंछ कर एक और कर लेता हूँ ,,,शायद आज के बाद ,,इस बूंदों की जरुरत न पड़े !
      आज शांता सदा के लिए मेरे जीवन से चली गयी ! वह इस दुनिया में ही नहीं रही !  वैसे विगत ६ वर्षों से वह , प्रतिदिन ,,हरेक दिन के साथ ही आंशिक रूप से समाप्त होती जा रही थी !,,,किन्तु आज उसने अपनी आँखें हमेशा के लिए बंद कर लीं ! पिछले  बीस वर्षों  की दौड़ में वह वह इतनी जल्दी हांफ जाएगी ,,यह मैंने कभी न सोचा था ! विवाह से पूर्व  जिस शांता को देख कर मैंने घर में विद्रोह किया था ,,वहशायद  विवाह की रात्रि में ही चली गयी थी ! ,,शायद पत्नी और मित्र में यही फर्क है ,, जो मैं मित्र को पत्नी बना कर समझ सका !  यह उसका दोष नहीं ,,,,मेरी समझ से किसी भी उस जैसी लड़की का दोष नहीं ,,बल्कि दोष वास्तव में दोष उसका भारतीय लड़की होना है ! भारतीय संस्कारों से बंधी लड़की ,,हमेशा ही भारतीय है  चाहे फिर फिर वह विचारों से कुछ भी बन जाए !
        मुझे याद है , विवाह से पूर्व शांता , नैतिक अधिकारों , प्रगतिशील विचारों , , नारी स्वतंत्रता पर घंटों बहस करती थी ,,! कभी कभी खीझ कर , उसके भाई उसे ' एंग्लो इंडियन " का खिताब दे देते थे ,,,और वह सभी आलोचनाओं और खिताबों के  बावजूद ,,अपने मुद्दे पर जमी रहती थी !  पुराने जमाने में रखे जाने वाले व्रत  , पारम्परिक गहनों , पति की सेवा , सतियों की कथाओं की आलोचना करके  , वह स्त्रियों की असमर्थता का मजाक उड़ाया करती थी !इन विषयों पर उसकी माँ  हमेशा उसका टारगेट रहती थी और माँ  भी खीझ कर बोलती थी ,," देखूंगी की तुम क्या करती हो ,,!! "
   और इस मौके पर वह वह मेरा बोला गया वाक्य ही दोहराती थी ---
   " मैं जो बोलती हूँ ,,उसे ही करने में विश्वाश रखती हूँ ! "
      किन्तु वह वैसा कुछ न कर सकी ! विवाह के बाद मेरे टूर पर जाने पर मेरी कुशलता के लिए वह पड़ोस की मिसेज़ दत्ता की तरह ,,वे सभी व्रत रखने लगी ,,जिनकी आलोचना वह स्वयं करती थी !  हनीमून पर  ,, काश्मीर की घाटियों में जब उसने काश्मीरी लड़की को गहनों से सजे धजे देखा ,,तो देखती रह गयी !बड़ी देर तक मोहक निगाहों से ताकते रहने  के बाद उसके होठों से फूटा था --" कितनी सुन्दर है यह वेश भूषा ,,!!,,,कितनी मोहक ,,! "   और ज़िद करके उसने स्वयं उन्ही गहनों में अपना एक चित्र  उतरवाया था ! स्वयं स्त्री की स्वतंत्रता पर घंटों लेक्चर देने के बाद , उसने पड़ोस की मिसेज रमन्ना को रात में   पालीवाल की कार से उतरते देख कर आँखें  सिकोड़ लीं थीं  ! मैं स्वयं नहीं समझ सका ,,वह किस मोड़ से , कब आधुनिक राजपथ छोड़ कर , छोटी छोटी घाटियों में जाने वाली पगडंडियों पर बढ़  गयी थी ! जायसवाल के यहां आयोजित शानदार पार्टी को उसने इसलिए छोड़ दिया था की उसे उसी दिन मालूम हुआ था की पार्टियों के व्यंजन से मेरी तबियत बिगड़ती है ! उसने घर की आया की छुट्टी करके खुद अपने हाथों से मेरे लिए खाना बनाना शुरू कर दिया था !
      शहर में इलोक्टोनिक वाच ने कदम रखा तो घंटों वह उसकी तारीफ़ करती हुई चहकती रही ! उस दिन उसने अपनी पहले जैसी बहस भी दोहराई  ,,
 " यह घड़ी हर तरह से अच्छी है ,,इसको खरीदना इसलिए भी जरूरी है  की यह हमें प्रगति का बोध करवाती है ,,!"
    और दो माह बाद जब हम उसे खरीदने सेल्समेन के यहां गए  तो उसने रोक दिया ! वह कहीं खो गयी थी ! बोली --
 " " इस घड़ी के बाद अपनी पुरानी घड़ी का क्या होगा ,,??
मैंने मुस्कराते हुए जबाब दिया --
 " वह आउट आफ डेट है  उसे कबाड़ी को बेच देंगें ! "
  वह सहम  कर मुझे देखती रह गयी थी ! फिर सिहर कर बोली --
 " नहीं ,,! वह हमारी शादी के अवसर पर , मिली भेंट है  वह अभी अच्छी चलती है  तब क्या जरूरत है  नई  खरीदने की ,,?? "
 मैं उखड़ पड़ा  बोला -
    " शांता !!   ,, तुम दिनोदिन दकियानूस होती जा रही हो ,,! "
   और  वह चुप चाप अपराधिनी की भाँती सर झुकाये खड़ी रही   सेल्समेन हम दोनों का मुंह ताकता रहा !
मैं रुष्ट हो कर चला आया ! दुसरे दिन आफिस से लौटने पर मैंने देखा --शांता ने वह घड़ी खरीद कर बेड  रूम में लगा दी थी ! मेरी पीठ पर सर टिका कर वह बोली थी --
 " पुरानी  घड़ी मैंने अपने बॉक्स में रख ली है " !
और मैं उसके मासूम ख्यालातों पर मुस्करा कर रह गया था ! तब से यह घड़ी लगातार चल रही है ,आगे भी चलती रहेगी ,,,लेकिन उस पुरानी  घड़ी का क्या किया जाए ,, जो बॉक्स में पड़ी है ,इसका जबाब देने के लिए वह शेष नहीं बची थी !,!!
        शांता चली गयी है ! मैं खोखला हो गया हूँ ! आज के बाद डायरी भी शायद ही लिख सकूं ,,! इस जीवन में अब कोई अभिलाषा नहीं !
 आज माँ और पिताजी भी आये थे   ! दोनों ही  काफी वृद्ध हो गए हैं,,!  माँ ने बार बार मेरे सर पर हाथ फेर कर दिलासा दी थी  ! पिता चुपचाप छड़ी टिकाये बैठे रहे !  अब वे मुझसे कुछ नहीं बोलते ,,,चुपचाप सबकुछ देखते रहते हैं ! मेरी भी अब हिम्मत नहीं होती ,,उनसे आँख मिलाने की ! वे एक हारे हुए खिलाड़ी हैं   किन्तु हैं अभी भी उतने ही मज़बूत !  ,,,,जबकि मैं जिस मोहरे पर लड़ा था ,,,वही बिसात पर से उठ गया !
      मीनू की शादी हो गयी ,,,उसे टेलीग्राम दिया है ! शायद वह भी आये,,रस्म निभाने के लिए ! छोटा राजू इसी वर्ष इंजीनियर बना है ,, मुझे डर है की कहीं वह भी मेरी तरह ही पिताजी से  कोई बाजी न खेल ले ,,,!
 अगर इस बार भी वही बिसात बिछी ,,और पिताजी हार गए तो ,,,????

 " किटी ,,प्रमिला ,,और प्रमेश ,,!!

     दिनांक - १५ मार्च २०२८ 
     आज मैंने प्रमिला  से कोर्ट मैरिज की !
      शांता की मृत्यु के बाद यह मेरा तीसरा विवाह है !
शांता के जाने के बाद मैंने सोचा था --शायद अब मेरे जीवन में किसे भी स्त्री की जरूरत नहीं किन्तु ठीक पांच वर्ष बाद ,, किटी  ने मेरे जीवन में तूफ़ान की तरह प्रवेश किया ! इसे मेरी मानवीय कमजोरी भी कहा जा सकता है की किटी के सान्निध्य में आकर में उसे नकार न सका ! शांता हमेशा मेरे विचारों में आ कर खड़ी हो जाती थी ,, और मुझे अहसास दिलाती थी की मैं वैचारिक रूप से अधूरा ही रहूंगा ,,जब तक कोई शांता की तरह ही आकर उस  उस खालीपन को  न भरे !
 किटी  ने जिस तूफानी ढंग से आकर मुझे हिला दिया ,,उसी तूफानी ढंग से , तोहफे के रूप में प्रमेश  को मुझे सौंप कर , वह आठ  वर्षों बाद ही चली भी  गयी !किटी का आना और जाना महज एक हवा थी ,, जिससे मैंने घुटते हुए कमरे में   राहत  महसूस की ,,परन्तु वह शांता जैसी धुप  न थी  जो काफी देर तक मेरी आँखों , मेरी छाती , मेरे पैरों पर टिक कर मेरे साथ आँख मिचौली खेलती रही हो !
     शांता के साथ जिस बात की मैंने  ज्यादती  की थी  ,,उसका प्रायश्चित मैंने किटी के साथ रह कर पूरा किया ! शांता की उदास आँखें जिस चीज़ को ढूंढती रहती थी  ,, वह मैं अंतिम दिनों में खूब अच्छी तरह पहचानने  लगा था ! एक गोल मटोल बच्चा ,,जिसे वह अपनी छाती से गुड्डे की तरह चिपकाना चाहती थी ! किन्तु मैं अपने प्रगतिशील विचारों के आगे इस बात को महत्त्व नहीं देता था ! शुरू में ,,बच्चे की चाह न होने से ,,प्रकृति के साथ जो अपराध मैंने शांता पर दबाव डाल  कर  कियाथा ,,उसका फल शांता को भुगतना पड़ा ! उसकी गोद  मैं फिर चाह कर भी न भर सका ,,,यही कारण था की शांता दिनों दिन टूटती गयी !
      किटी अत्याधुनिक महिला थी ,, मेरे लगातार जोर देने पर उसने माँ बनना स्वीकार किया था ,,वह भी इस शर्त पर ,,की युग के साथ चलने वाले फैशन के अनुसार वह वांछित बच्चे को जन्म देगी ! मैंने आगे  पीछे सोचने के बाद हामीं  भर ली थी  !इसके लिए  विदेश जा कर हम  , सेल्स डिपार्टमेंट  में जा कर वांछित भ्रूण का पैकिट ले आये जिसे किटी  ने डाक्टरों की मदद से विदेश में ही  अपनी कोख में , कुछ माहों के लिए पक्षी की तरह से लिया था !
     वैसे भी अब कोई लड़की , माँ बनना पसंद नहीं करती ! सामान अधिकार प्राप्त युवतियों को गर्भ धारण का एक तरफा कष्ट नैतिक नहीं लगता ,,,फिर भी चूँकि मानवीय पीढ़ी आगे बढ़ाना है  अतः सेल्स डिपार्टमेंट्स से वांछित भ्रूण चुन कर सिर्फ कुछ महीनों में बच्चा प्राप्त कर लेने का कार्य युवतियां आदमी पर तरस  खा कर , कर  देती हैं !
 अब तो विवाह भी जरूरी नहीं ,, और स्त्री पुरुष के साथ  ही विवाह करें यह भी जरूरी नहीं ! स्त्री,, स्त्री के साथ , और पुरुष,,, पुरुष के साथ वैधानिक रूप से विवाह करके वर्षों साथ रह सकते हैं ! संतानोतपत्ति भी अब  जरूरी नहीं !यह एक सरल प्रक्रियामें परवर्तित हो गयी है ! ,, आज   वांछित गुणों का भ्रूण ले कर ,, कवी , वैज्ञानिक , कलाकार , व्यवसायी , जन्मजात पैदा  किये जा सकते हैं !   अब तीस वर्षों पहले जैसी स्थिति नहीं रही  , जब सरकार को संतति नियंत्रण के लिए अभियान चलाना पड़ता था ! बीते दिन तो जैसे पंछी की तरह पर लगा कर उड़ गए ! आजकल वॉइस रिकार्डर , विज़ुओ फोन , कम्प्यूटर , फ़्लाइंग  कार ,  एक जरूरत की चीज़ है ! अंतरिक्ष तरह तरह की सैटलाइट्स से पाट दिया गया है ! तीव्र गति के वायुयान कुछ घंटों में ही पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर पर  पहुंचा देते हैं !अंतरिक्ष में कुछ छुटपुट लड़ाइयां  भी हो चुकी  हैं ! चाँद का एक बहुत बड़ा हिस्सा रहने योग्य बनाया जा रहा है ! अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन भी बन चुके हैं ,, जहां से आगे अन्य ग्रहों के लिए राकेट लांचिंग का काम प्रगति पर है ! सचमुच कितना बदल गया ,, मुझे याद है जब मेरे पिता खड़खड़ाते हुए रेडियो से कान लगा कर , खबर चूक न जानी की दृष्टि से घंटों रेडियो के सामने  बैठ जाते थे ! अब तो रेडियो रिकार्डर में पूरे विश्व की , पल पल की खबर रिकार्ड है !
     
   प्रमिला,,,मेरे जीवन में किटी के जाने के  दो वर्षों   बाद आयी !किटी  का जाना भी एक इत्तफाक था ,,जिस तरह उसका आना !किटी के जाने के बाद ,,शांता फिर मुझे याद आने लगी थी ,,,सच कहूँ तो शांता को मैं भूल ही नहीं पाया था ! वह हर पल , हर छण  मेरे ऊपर हावी हो जाती थी ,,और यही कारण था किस किसी ऐसे ही छण  में किटी  रूठ कर , मुझे छोड़ कर चली गयी थी !
         नन्हे प्रमेश को मैंने बड़ी मुश्किलों से पाला है ! प्रमेश अब १०   वर्ष का है ! कॉन्वेंट में पढ़ रहा है ,,तीक्ष्ण बुद्धि है !  किटी  अब कहाँ है  यह मुझे नहीं मालूम ,, शायद वह अंतरिक्ष में एक स्टेशन पर डाटा कंट्रोलर है ! उसे प्रमेश में कोई दिलचस्पी है या नहीं ,,यह भी मैं नहीं जानता !
          प्रमिला को भी प्रमेश से कोई लगाव नहीं है ! प्रमेश भी प्रमिला में कोई दिलचस्पी नहीं लेता !  मुझे प्रमेश अच्छा लगता है ! आखिरकार वह मेरा बेटा है ,,,मेरी किटी  का पुत्र , शांता के साथ किये गए अपराध का प्रायश्चित ,,और आगे अब भविष्य में उसके अलावा भला  मेरा है ही कौन ,,??

   प्रमिला से मेरा परिचय दो वर्ष  पूर्व ही हुआ है ! उम्र में प्रमिला मुझसे करीब आठ साल छोटी है ! उसने भी जीवन में बहुत उतार चढ़ाव देखे हैं !  ,,एक विवाह छोटी उम्र में हुआ ,,पति रहा नहीं ! दूसरा संबंध मृगमारीचिका की तरह  कुछ वर्षों तक रहा  बाद में पता चला की वह रेत  पर खड़ी है !

       इस उम्र में ,,जबकि मुझे पत्नी की  आवश्यकता ,समय काटने की है ,, प्रमिला को अपना लेना मुझे कुछ खराब नहीं लगता !  फिर प्रमिला भी मेरे विचारों के काफी निकट है ,,,इसलिए हम दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली  !  प्रमेश भी आया था ,, उसके मुख से ऐसा लग रहा था जैसे उसे यह संबंध पसंद नहीं !
    प्रमिला के घर में आते ही प्रमेश ने  हॉस्टल में प्रवेश ले लिया है ! मैंने भी उसे रोका नहीं ! प्रमिला और प्रमेश को मैं टकराने नहीं देना चाहता !प्रमिला के आने पर मैंने बहुत कुछ बदल लिया ! पुरानी  आया को हटा कर प्रमिला के रिकमंडेशन पर नवयुवती को रख लिया है ! अच्छी लड़की है ,,स्मार्ट है ,, और सुन्दर है ! घर के कामकाज के लिए ऐसी ही लड़की चाहिए ,,,जिसकी  कालोनी में रहने वाले  तारीफ़ कर सकें !
      प्रमिला ने घर में आकर बहुत बदलाव चाहा है ! फर्नीचर , उपकरण , रंग रोगन आदि ,, !!एक बड़ा बजट है ,,किन्तु मैं उसकी इच्छाओं में बाधा नहीं डालना चाहता !
     आखिर,,बदलाव ही तो प्रगति का रूप है न ,,,???

    " उपसंहार ,,,!"
पीढ़ी दर  पीढ़ी ,,,' मैं ' ,,!!

दिनांक - १२ दिसंबर २०३०   

रात्रि ९ बजे 

,,,,,,,,, आज सुबह जहां से डायरी लिखना छोड़ी थी वहीं से फिर शुरू कर रहा हूँ ! बीच में डायरी के कुछ पुराने पन्ने ,,जो फटने की कगार पर थे , करीने से सजा कर जोड़ दिए थे !
   सुबह पूरे पंद्रह मिनट इंतज़ार के बाद भी  कुकर ने काफी बना कर नहीं दी ! काउंटर पर हाथ बढ़ाया तो काउंटर वैसे ही खाली था ! रात भर की आँखों की जलन , जेहन में उतर  आयी ! खीझ कर मैंने आया को आवाज़ दी ! कुछ ही छणों में मेरी मेट सर्वेंट ' रीता '  अंदर आई ! मैंने लगभग डांटते हुए पूछा ,,-
 " कुकर में मटेरिअल फीड नहीं किया क्या ,,?? कब से स्विच  ऑन  है  ,,काउंटर खाली है ! "
   रीता ने किंचित मुस्करा कर मुझे देखा,,,फिर कुकर की और देख कर बोली --
     " मटेरियल फीड है सर ,,! सुबह ही मैडम ने काफी ,,टोस्ट लिया था ,,शायद सिस्टम खराब हो गया है ! "
    मेरी झल्लाहट रीता की मुस्कराहट और प्रमिला के संदर्भ में दब गयी ! अपना क्रोध  सुबह सुबह इस मासूम लड़की पर उतारना मुझे अच्छा नहीं लगा ! मैंने संयत हो कर एक कप काफी बना कर लाने का निर्देश दे  दिया !वह उत्साहित हो कर , एक व्यावसायिक मुस्कान मेरी और फेंक कर चली गयी ! मैं उसकी प्रसन्नता का राज जानता था ,,, इस काफी बनाने का चार्ज वह अलग से लेगी ,,! लेकिन मैं भी आश्वस्त था ,,,यह चार्ज में कुकर कम्पनी को डेबिट कर दूंगा !
          आँख उठा कर , सिरहाने की टेबिल को देखा ,, ट्रांसपेरेंट फोटोग्राफ में प्रमिला मुस्करा रही थी !  धीरे धीरे लगा ,,मुस्कराहट फैलती जा रही है  ,, चेहरा भी बदलता जा रहा है ! थोड़ी देर बाद ही वह मुस्कराहट रीता द्वारा छोड़ी गयी व्यावसायिक मुस्कान में तब्दील होती दिखने लगी ! मैंने घबरा कर आँखें बंद कर लीं ,,! होठों से बुदबुदाहट निकलने लगी ,,,
 " नहीं ,,नहीं ,,!! यह कैसे हो सकता है ,,??  प्रमिला और रीता की मुस्कराहट में फर्क है ,,! फर्क होना भी चाहिए ! एक मेरे लिए है ,, दूसरी स्वयं के लिए ,,! अपनत्व व् व्यवसाय का अंतर् तो हर युग में बना ही रहेगा ! शायद ही एक दुसरे में विलीन हो !  आँखों में कांटे गढ़ने लगे तो आँखें खोल दीं !

    करीब दस  मिनट  बाद रीता ने  काफी लाकर दी ! सिरहाने की और टेबिल पर नाश्ता जमाते हुए , उसे देख कर मैंने बात करने की गरज से पूछा -
 "  रीता ,,!! मैडम कहाँ गयीं ,,?? सुबह सुबह इतनी ठंड में ,,?
  उत्तर में रीता ने एक अर्थपूर्ण मुस्कराहट मेरी और फेंकते हुए कहा --
 "   पता नहीं सर ,,! सुबह सुबह मूड बहुत उखड़ा हुआ लगा !  जाते वक्त बोली ,,' गुडबाई रीता ,,सर का ख्याल रखना ,,!! "
   मैंने एक तीखी नज़र रीता के चेहरे पर डाली ,, निर्विकार झिल्लीदार चेहरे के पीछे एक व्यग्यात्मक चेहरा स्पष्ट झलक रहा था ! मैंने सर झटकते हुए कहा --
 " खैर ,,,आ जाएंगी ! ,,उन्हें कभी कभी ऐसा ही दौरा पड़ता है ,,झगड़ने का ! "
    रीता बिना उत्तर दिए चली गयी !  मुझे लगा जैसे वह किसी ठंडे मगर तेज धारदार चाक़ू से मेरी कमजोर नब्ज़ पर वार कर गयी है !  पिछले एक वर्ष से कमज़ोर पड़ती नब्ज़ ,, जो अब तक उखड़ी नहीं थी यही कम था !

*******

काफी पीकर बाहर आया तो कुछ देर ड्राइंगरूम में बैठा ! टीवी पर पूरे विश्व की ख़बरें फलेश हो रहीं थीं ! ! एक सरसरी निगाह डाल  कर में बाहर कारीडोर में आ गया ! मन कहीं लग ही नहीं रहा था !  थोड़ा इधर उधर टहल  कर अंदर गया तो देखा रीता विज़ुओफन पर कुकर की कम्पनी को कुकर खराब होने की कंप्लेंट कर रही थी! उसे बात करता छोड़ कर मैं  बाथ  रूम में घुस गया ! ठन्डे पानी से बहुत देर तक सर धोया ! आँखों की जलन कम करने के लिए आई क्लीनर डाला ! गर्म गर्म आंसूं  आँखों की कोर से बह कर बहुत देर तक गालों पर बहते रहे ! वैसे कहते हैं की आंसूं निकल जाने पर मन हल्का हो जाता है ,,किन्तु मुझे वैसा कुछ न लगा !  वैसे जीवन मेरे आंसूं निकले भी बहुत कम हैं !  शायद एक या दो बार ,,! किन्तु जो आंसूं शांता के जाने के बाद निकले  वैसे आंसूं फिर कभी नहीं निकले ! किटी  गई थी ,,,आज प्रमिला भी गयी है   शायद आगे फिर कभी ऐसा हो या शायद न भी हो ! किन्तु यह निश्चित है की ऐसी स्थिति में आंसूं निकालने के लिए मुझे आई क्लीनर की ही जरूरत पड़ेगी ,,,अपने आप शायद ही बहें  !  यह मेरी कमजोरी है  ,,लेकिन आप इसे वक्त का बदलाव भी कह सकते हैं  की दिल में कुछ चुभ भी जाए तो दर्द नहीं होता ,,!!

*********
 करीब ११ बजे रोमेश अरोरा का फोन आया ! मैं बाथ  रूम में ही था ! रीता ने आकर सूचना  दी ! नाम से बिलकुल भूल चुका था ,, किन्तु जब विज़ुओ फोन पर उसकी शक्ल देखी तो सब याद आ गया !
  " रोमेश अरोरा " ,,एडवोकेट है ! तलाक दिलवाने में  विशेषज्ञ  है ! यह उसका व्यवसाय है किन्तु ,,मुझे उससे दिली नफरत है ! पिछली बार किटी के मामले को भी उसने उलझा दिया था  की समझौते की कोई सूरत नहीं रही थी  ! वैसे रोमेश बीच में न होता तो शायद हम समझौता कर लेते !
 मैंने रुखाई से पूछा -- " कहिये ,," !
" मुझे पहचाना ,,? -  मूंछों में मुस्कराते हुए उसने प्रश्न दागा  !
 मैंने वितृष्णा से होंठ सिकोड़ते हुए कहा --
" आपको कोई कैसे भूल सकता है  मि ० अरोरा ,,!! "
   " ठीक पहचाना ,,! " वह पुनः गहरी कंजी आँखों से मुस्कराते हुए बोला !
  " कैसे याद किया ,,"  मैंने फिर पूछा
  " मिस प्रमिला भी यहीं हैं ,, ! "- उसका अर्थपूर्ण स्वर उभरा !
   मेरा बदन जैसे कुछ छणों के लिए ठंडा होने लगा ! एक ठंडी लहर मेरे दिल के पास से उत्तर कर खून के साथ  पूरे बदन में घुल  गयी ! जिस बात का भय  मुझे था ,,वही होने जा  रहा था !  फिर भी फंसे हुए गले को साफ़ करके मैंने प्रतिवाद किया --
 "  आपको गलतफहमी है मि ० रोमेश ,,! वे मिसेज प्रमिला हैं ,,मेरी पत्नी ,,!! "
" ,,थीं ,,मगर अब आपसे तलाक लेने के निर्णय लेने के बाद पुनः मिस प्रमिला बन गयीं हैं ! " - उसने मूंछों में हँसते हुए कहा -- " चाहें तो खुद  बात कर के कन्फर्म कर लें ,,! "
   मैं थोड़ी देर चुप रहा ,, मन हुआ की रिसीवर रख दूँ ,, अब बचा ही क्या है कन्फर्म करने के लिए ,,/  आज तक मैं खुद अंदर से कन्फर्म नहीं हो सका हूँ ,,!
 फिर भी दिल में एक कशिश  जाग उठी ! प्रमिला से प्रथम भेंट। . हफ्तों की मुलाकातें ,, अंदर जेहन तक छूने  वाली आत्मीयता ,,एक जैसे दर्द ,, समझौते ,, एक साथ  मेरी आँखों में सिमट  आये !  वे दिन  जो हमने एक दुसरे को समझने में व्यतीत किये थे ,,किताब के पीले  पन्नों की तरह पलट कर खुलने लगे !
 ठंडे स्वर में मैंने कहा --
 " बात करवा दीजिये ,,! "
 थोड़ी देर बाद स्क्रीन पर प्रमिला का चेहरा स्क्रीन पर उभरा !  मैं थोड़ी देर उसे देखता रह गया ! काली गहरी आँखें सर्द हो हो गयीं थीं ! पपोटे सूज गए थे ! सुर्ख लाल होठों पर पपड़ी जम गयी थी !  पूरा चेहरा उदास और दुखी था !  शायद बहुत देर तक रोती  रही  थी  !  मैंने अपने टूटते स्वर पर नियंत्रण पाने की कोशिश करते हुए पूछा -
 "   क्या बात है प्रमिला ,,? सिर्फ दो वर्षों में ही मैं पराया हो गया ,,? "
उत्तर में उसने आँखें झुका लीं ! होंठ थोड़े कांप कर फ़ैल गए ! स्वर न फूट  सके ! वैसे भी मैं जानता था ,,वह आँख शायद ही मिलाये  क्योंकि आँख मिलाने के बाद ,,,हम  दोनों शायद  फिर समझौते की कोई लकीर ढूंढ निकाल लेते ! मुझे लगा वह विवश है ,,किन्तु  कहाँ ,,?  यह ढूंढ पाना मेरे लिए मुश्किल था !
 मेरा नियंत्रण अपनी आवाज़ से उठने लगा ! हल्की कम्पकम्पाई आवाज़ में मैंने फिर पूछा --
 " ज़रा सोचो प्रमिला ! मैं फिर अकेला हो जाऊंगा ,,एकाकी ! सिर्फ अपने में सिमट  कर रह जाऊंगा ! "
  इस बार शक्ति भर  उसने सर उठाया ,,, मैंने देखा  उसके  कंधे  पर सहानुभूति के रूप में  रमेश हाथ रख कर  उसे शक्ति देने की कोशिश कर रहा था ! पलकें उठा कर वह बोली --
 " तुम पहले भी अकेले नहीं थे सौरभ ,,! यह तुम्हारी पहली शादी नहीं थी - तुम जानते हो  मैं टकराहट का कोई भी  पहलू  पसंद नहीं करती ,,फिर चाहे टकराहट किसी भी जगह क्यों न हो ! शायद तुम्हें याद हो ,, हमने पहले ही तय किया था -- जिस क्षण भी हम अंदरूनी ढंग से टकराने लगेंगें ,, साथ न रहेंगें ! "
  " किन्तु यह टकराहट तो अंदरूनी नहीं है ! सिर्फ ऊपरी है ,," -- मैंने प्रतिवाद किया !
 उत्तर में उसने पूरी दृष्टि उठा कर मुझसे मिला दी ! मैं काँप उठा ! सचमुच यह नज़र मेरे दिल के चोर को पकड़ लेती  थी ! उसने उसी प्रकार नज़रें उठाये हुए कहा -
 " शाब्दिक रूप से ऊपरी ही सही ,, किन्तु अनुभूति के बहाने  तुम अंदर तक , आज भी कहीं और जुड़े हुए हो ,,!   जिसका महत्व मेरे लिए कुछ भी नहीं !  बस  यही चाहती हूँ की तुम सुखी रहो ! मे गॉड ब्लेस यु ,,! "- कहते कहते वह फफक उठी ! हाथ में पकड़ा रिसीवर स्पंदित हो  गया ! आँखों का दर्द  गहराई तक छलछला उठा ! इतना अधिक की  जिसमें मैं अपना चेहरा  भी स्पष्ट देख सकता था !
 मैं कराह उठा ! तेज स्वर में पुकारकर बोला -
" प्लीज़ प्रमिला ,,!! समझने की कोशिस करो !  मैं एडजस्ट ,,,,,,,,,"
 किन्तु तब तक रिसीवर रोमेश ने ले लिया ! वह मूंछों में मुस्करा कर बोला --
  " नो,,नो मिस्टर सौरभ ,,नो मेंटल टार्चर तो माई क्लाइंट , नाउ ,,"!
  " रोमेश ,,! प्लीज़ ,,रिसीवर उसे दो ,, मैं थोड़ी देर और बात करना चाहता हूँ ,, "
 किन्तु रोमेश हँसता रहा ! कटुतापूर्वक एक भद्दे मजाक के साथ  उसने बात समाप्त की ! !
  " मैं उनका वकील हूँ ,, जो बात करना चाहो मुझ से कर सकते हो ,, ! " - फिर एक आँख दबा कर बोला --" रोमांस भी करना चाहो तो मुझसे कर लो " ,,!
   रोमेश के प्रति  क्षुब्धता ने अंतिम रूप ले लिया ! घृणा से रिसीवर नीचे रखते हुए मैंने उसे घुरा --रिसीवर रखते रखते वह बोला था -- " नोटिस  टेलीप्रिंटर पर रिसीव कर लेना ! "

*********

 फोन के बाद मन नहीं लगा ! सीधे अपने स्टडीरूम में जा कर घुस गया ! लम्बी पुरानी  इज़ी  चेयर पर पैर  पसार कर बैठ गया ! रात भर जागते रहने के कारण सर में दर्द होने लगा था  ! उँगलियों से पकड़ कर धीरे धीरे सर दबाता रहा !  दर्द थोड़ा कम होने पर निगाह उठा कर पूरे कमरे को जी भर कर देखा ! बुकशेल्फ पर मुस्कराती हुई शांता की फोटो लगी थी ! गर्द में सनी हुई ! बगल में उसकी पसंद का   बहुत चाहत के साथ खरीदा हुआ रेडियोग्राम रखा था !  सुंदर कैबनिट का,  प्यानो साइज़ का रेडियोग्राम !  जिसे मैंने और शांता ने बड़ी मुश्किल से अपने बजट में से कटौती करके  खरीदा था !  स्टीरिओ फोनिक ,,चेंजर सहित !
   मैंने हाथ बढ़ा कर दराज़ खोली ,,! लकड़ी पर जमी धूल की परत पर हाथ के निशाँ बन गए ! दराज़ खोलते ही  बड़े बड़े  एल पी पर छपे  मुकेश , लता , मन्ना डे  , मोहम्मद रफ़ी   के चेहरे मुस्करा उठे ! तलत के दर्द से छलकते गीत,,जिन्हे हमने बहुत सहेज कर रखे थे,,  किशोर की दानेदार आवाज़ में डूबे  स्वर समूह ,, उछलते कूदते चुटकी लेते ,,स्वर ,, गीता दत्त , आशा भोंसले  के चुहल भरे स्वर  ,,बरमे की तरह अंदर तक सुराख बना कर पैठ जाने वाले मीठे  स्वर के दर्दीले गीत ,,!!
 मैंने एक के बाद एक ,,सभी रिकार्डों को चेंजर पर लगा कर देखा ,,,! मैं बार बार सीरीज़ बनाने का यत्न करने लगा ! कौन सा गीत पहले रखूँ ,,? कौन सा बाद में ,,??  सभी तो एक जैसे थे ,, मेरे मन के कोने में समाये ,,, दुविधा में पड़ा बार बार उन्हें ऊपर नीचे करता रहा !
     तभी रीता आई ,, उसने द्वार पर खड़े हो कर पूछा -
" सर,,! कुकर ठीक हो गया है ,,क्या फीड  करूँ ,,? "
मैं उसकी आँखों की पुतलियों के बीच चमकते बिंदु की गहराई नापते हुए बोला --
 " दिल,,! ,, हो सके तो एक प्यारा सा दिल फीड करो   मनुहारों वाला दिल ,, कभी न टूट सकने वाला दिल ,,! "
  रीता मुझे विचित्र निगाहों से घूरने लगी ! उसे लगा की शायद मैं पागल हो गया हूँ ! थोड़ी देर  तक देख कर वह सर झटक कर वापिस चली गयी !
  रीता के जाने के बाद मैंने रेडियोग्राम की धूल झाडी ! एक एक रिकार्ड कवर ठीक से पोंछा ! शांता के चित्र को भी झाड़ पोंछ कर रख दिया ! रेडियोग्राम से टिके  हुए अपने स्पेनिश गिटार को मैंने बहुत देर तक देखा ! सादा लकड़ी का बना हुआ होलो गिटार ,,जिस पर कार्ड्स बनाते हुए मेरी आँखें मुंद  जाती थीं ! यह गिटार मुझे शांता ने प्रथम प्रणय में भेंट में दिया था !  इसी गिटार की वजह से मैं शांता से मिल सका था ! यही गिटार था  जिसकी वजह से ३५ वर्ष पूर्व  एक मॉड  लड़का कहलाता था ! प्रगतिशील विचारों का हिमायती युवक  !
   फिर एकाएक  मुझ पर जैसे सफाई का जूनून सवार हो गया ! कमरा बंद करके मैंने अपनी हर पुरानी  चीज़ की धूल झाडी !  एक एक किताब देखी ! मित्रों के दिए हुए उपहार ,, पिताजी की छड़ी ,, माँ का चश्मा  ,,रीनू का पर्स,, राजू के जन्म दिन में दी गयी  साइकिल ,, जिसे पिताजी ने जिद करके वापिस भिजवा दिया था ! सभी को बार बार उठा कर पोंछता रहा फिर जमाता रहा ,,,फिर पोंछता रहा ,, ,,बीच बीच में कई बार रीता आई ,, उसने खाना बन जाने की सूचना दी ,,किन्तु मुझे भूख महसूस हुई ही नहीं ,, वह भी मुझे विक्षिप्त मान कर चुपचाप  वापिस चली गयी !
  और ऐसा करते हुए  न जाने कब मुझे नींद आगयी ,,मुझे पता ही नहीं चला !

***********

शाम को पांच बजे , जब मैं  थक कर सो रहा था ,, रीता ने आकर जगाया ! टेलीप्रिंटर पर नोटिस आ चुका था ! रीता बतला रही थी ,,'प्रमेश ' मेरा पुत्र  मेरा इंतज़ार कर रहा था ,,,आधा घंटे से ड्राइंग रूम में बैठा था !
    मैं बाथ  रूम से फ्रेश हो कर बाहर आया ! ड्राइंगरूम में  प्रमेश सोफे पर मेरा इंतज़ार करते हुए पसर  गया था ! मुझे आते देख कर उसने उसी मुद्रा में  आधी आँखें खोल कर मुस्करा कर कहा --
 "  हाय ,, डैड ,,! "
मैंने उसका अभिवादन स्वीकार करते हुए सर हिला दिया !  अलसाये स्वर में शिकायत भर कर प्रमेश बोला -
  " बहुत देर इंतज़ार करवाया आपने डैड ,,! सच ,, बहुत बोर हुआ ! "
  मैं चुप रहा !
प्रमेश ने एक लम्बी उबासी लेते हुए पुनः कहा ---
  " कोई म्यूज़िकल कम्प्यूटर भी तो नहीं रखा आपने ,,होता तो  उसी से खेल कर मैं कुछ मन बहला लेता ! "
मैंने शांत स्वर में बिना उसकी बात सुने ही पूछा --
 " कैसे आये ,,?? "
उत्तर में प्रमेश उठ कर बैठ गया ! कुछ लापरवाही के स्वर में बोला --
 " यूँ ही चला आया ,,! आज हॉस्टल में छुट्टी थी !   फंक्शन है रात में ,, मीट टू  गैदर  ,,! "
मैं चुपचाप आँखें मूँद कर पैर  पसार कर बैठ गया ! प्रमेश थोड़ी देर चुप रह कर फिर बोला -
 " प्रमिला आंटी आपको छोड़ गयीं डैड ,,??"
   " तुम्हें किसने बताया ,,?? " मैंने चौंक कर आँखें खोलते हुए पूछा !
 उत्तर में उसने टेलीप्रिंटर पर आया नोटिस मुझे थमा दिया !  लिखा था -- ' तुम्हारे विचारों से मेरे विचार मेल नहीं खाते  ,,मुझे  मानसिक कष्ट है ,, तुम्हारे साथ नहीं रह सकती !  दिनांक १४ को कोर्ट आओ,,,, तलाक के लिए ! "
   आगे पढ़ नहीं  सका ! चुपचाप नोटिस एक और रख दिया !  थोड़ी देर बाद संयत हो कर मैंने पूछा --
  " किन्तु तुम्हें इससे क्या फर्क पड़ता है ,,? "
  " मुझे क्या फर्क  पड़ता है ,,! " ,,- प्रमेश ने लापरवाही से कंधे उचकाए !---
-" लेकिन डैड ,,! आप भी विचित्र आदमी हैं ,, ! आज के ज़माने में जब  जब ज़माना दिनों दिन बदल रहा है ,,आदमी ऊपर उठ रहा है ,, आप अभी भी उन पुरानी  चीजों से मोह लगाए बैठे हैं !   सच ,,! ज़रा सोचिये ,तो ,,! क्या यह तर्क  संगत है की प्रमिला आंटी सिर्फ एक नाखून के चुभ जाने से तलाक लेने की बात करने लगे ,,? "
  " तुम क्या कहना चाहते हो ,," - मेरा स्वर तल्ख होने लगा !
  " मैं क्या कहूंगा ,,? सभी यही कहेंगें ,,! यहां तक की दिनरात आपके संग रहने वाली मेट सर्वेंट रीता भी यही कहती है ! आजकल एक से एक  वेस्टर्न  म्यूजिक  अर्रेंजिंग  कम्प्यूटर आ गए हैं ! एक से एक एलैक्ट्रॉनिक इंस्ट्रूमेंट्स हैं ! एक से एक पॉप रिकॉर्ड्स हैं ,, किन्तु आप आज भी उसी पुराने रेडियोग्राम , होलो गिटार , पुराने सिंगर्स के गानों के रिकॉर्ड्स  से दामन बांधे बैठे हो ,! बाबा  आदम के ज़माने की लता , मुकेश की धुनें ,,आज कल आपके ही काम आ सकतीं हैं ! आप ही उनके पीछे दीवाने हो सकते हो ,,! सचमुच आप बहुत पीछे चलना चाहते हो ,,पुरानी बातें ,, पुरानी यादें ,, परम्परागत मोह ,, संस्कारों से आप बाहर निकल कर कुछ देख ही नहीं  सकते ! आपने बहुत छोटी  सी बात के लिए प्रमिला आंटी को दुखी किया ! पता नहीं कब आपका दकियानूसी नज़रिया ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,! "
,,," प्रमेश ,,!! बस  चुप रहो ,,! मुझे तुम्हारी राय की जरूरत नहीं ,,! " -- मैं लगभग चीखते हुए बोला !  सिर्फ दो वाक्य के लिए पूरी हिम्मत लगा कर चीखने से मुझे पसीना आ गया ! दिल धोंकनी की तरह चलने लगा !
   प्रमेश स्तब्ध हो कर मुझे देखता रहा ! धीरे धीरे उसके चेहरे पर संयत होने के भाव आये ,,! थोड़ी देर रुक कर कटुता से बोला --
  " मुझे शौक नहीं है ,, राय देने का ,,!  लेकिन डैड इसे आप खुद समझ सकते हैं   ,,! बदलते ज़माने से कट कर आप नहीं  जी सकते ,,! "
   मैं चुप रहा ,,! कमरे में थोड़ी देर की निस्तब्धता के बाद  प्रमेश का स्वर फिर उभरा --
     " डैड ,,मैं इसलिए भी आया हूँ की मुझे पाकिट मनी की जरूरत है ! "
      मैं आँखें बंद करके बैठा रहा ! थोड़े देर बाद उत्तर दिया --
 " ठीक है ,,इंतजाम हो जाएगा ,,! "
  " लेकिन कब डैड ,,? ,,आप मेरे नाम से बैंक में एकाउंट क्यों नहीं खुलवा देते ,,?? क्यूँ स्कूल के अन्य लड़कों के बीच मुझे भिखारी जैसा बना कर रखना चाहते हैं ,,? "
  मेरी रगों का खून गर्म होने लगा ! फिर भी मैंने संयत हो कर कहा --
  " प्रमेश,,!! नार्मल हो कर बात करने की कोशिस किया करो ! "
  " कब तक नार्मल रहूँ ,,? आखिर मेरी भी तो जरूरतें हैं ,, मैं कब तक आपके पीछे घूमूं ,,? "
  " कब तक का क्या अर्थ है ,,? ,,क्या तुम्हें अपने भविष्य के लिए मेरे पास आने में भी शर्म लगती है ,,? "

" शर्म तो है ही डैड ,,! ,,मेरा आपका सम्बन्ध नैतिक रूप से पिता पुत्र का है  ,, मुझे अपने पैरों पर खड़ा होने तक  आर्थिक मदद देना आपका नैतिक और  कानूनी फ़र्ज़ है ! और तब तक उसे आप अगर प्रेम से निबाह दें तो मैं आपके पास शिकायत करने  क्यों आऊं,,??
  " बस ,,, बस  ,,! चुप हो जाओ ,,! " - मैं थरथरा उठा ! कांपते कदमों से उठ कर मैंने चेस्ट खोला ,, चैक बुक उठा कर एक  ब्लेंक चैक पर दस्तखत किये   और उसे उसकी और बढ़ाते हुए मैं बुदबुदाया --
  " तुम जितना चाहो भर कर कैश कर लो ,,, अपने नाम से एकाउंट खोल लो ,, तुम अपनी और से कुछ भी समझो ,, किन्तु मैं सिर्फ यह मान रहा हूँ  की मैंने तुम्हारी कीमत एक बार सेल्स डिपार्टमेंट में चुकाई थी ,,किटी   की पसंद पर ,, आज भी चुका रहा हूँ ,, ! आगे जरूरत पड़ी तो चुकाऊंगा ! ,,, रिश्ते ,, कर्तव्य ,,, प्यार के शब्द  किताबों में लिख कर इतिहास में सुरक्षित रखने  के लिए छोड़ दो ,,! "
      मैं भारी कदमों से ड्राइंगरूम के बाहर निकल कर आ गया !  प्रमेश की मुस्कराहट की झलक ,,मेरी पीठ पर चिपकी आँखें महसूस कर सकतीं थीं !,
  , भले ही देख नहीं सकतीं थीं ,,!!

************"
       
,  प्रमेश संध्या छह बजे गया !उसके जाने की खबर रीता ने दी ! फिर याद भी दिलाया की मैंने खाना नहीं खाया है !  मैं निर्विकार भाव से स्टडी रूम की  ईजी  चेयर पर धंस गया था !मुझे सिर्फ एक ही बात बार बार कचोट रही थी ,, क्या मैं दकियानूस हूँ ,,? ,, परम्परागत मोह में बंधा ,,?
    मैंने  मुड़ कर शांता के फोटोग्राफ की तरफ देखा !  फिर बुदबुदा उठा -- ' नहीं शांता ,,! तुम तो  अच्छी तरह जानती हो न   मुझे  ??  ' फिर एक बार आँख उठा कर देखा -- धूल झड़ जाने के कारण रेडियोग्राम चमकने लगा था ! कुछ देर पहले चेंजर पर लटकाये गए रिकॉर्ड्स ,, सीरीज़ पूरी हो जाने की घोषणा कर रहे थे ! रिकॉर्ड्स के कवर पर बने गायकों के  चेहरे मानो गाने के लिए आतुर हो उठे थे ! पास में रखा ,,स्पेनिश गिटार  धूल झाड़ते ही  जवान हो उठा था ! मैंने एक बार अपनी उंगली उठा कर देखी ,,-- झुर्री पड़ी ,, उंगली  में बड़ा हुआ नाखून ,जैसे ,मेरे अपने ही मुलायम दिल में धंसता चला गया,,अंदर हिलोरें खाते स्वर लहरियों  को छेड़ने के लिए ,,!,,,,आगे बढ़ कर मैंने रिकार्ड प्लेयर ऑन  कर दिया !
 एक के बाद एक गाने में लता , मुकेश , रफ़ी , किशोर , गीता दत्त  , तलत , आशा , की आवाज़ कमरे में तैरती चली गयी ! मैं आँखें मूँद कर चुपचाप सुनता रहा   सभी गीत बजते गए ,,एक भी रिकार्ड न छूटा !
 करीब आठ बजे सभी रिकॉर्ड्स के बज जाने के बाद ,,मैंने स्पेनिश गिटार को उठा कर उसके तार कैसे !  कुछ देर आँख मूँद कर कार्ड्स बजाता रहा ,,! हरेक स्ट्रिंग को सहलाया ,,उन्हें छेड़ा !,, वे धुनें भी निकालीं जिसका मैं खुद दीवाना था ,,! शेल्फ पर राखी शांता की तस्वीर धूल झड़ जाने के कारण , चमकती हुई जैसे मुझे देख कर  मुस्कराती रही !
 फिर भी संतोष नहीं हुआ,,,लगा की तार ढीले हैं ,, कसने के लिए दबाब डाला  तो जंग लगा पहला तार खनखाना कर टूट गया ! और फिर तो एक के बाद एक सभी तार टूटते गए !  थोड़ी देर ही बाद बिना तारों का गिटार ,,नंगा हो कर भयावह दिखने लगा ! चेंजर पर लगे रिकॉर्ड्स भी घिसे पिटे दिखने लगे !  शांता की निगाहें भी चमक खो कर ,,बुझी बुझी दिखने लगी !  मैंने चौंक कर रीता को आवाज़ दी ! द्वार पर आकर रीता मुझे विचित्र निगाहों से  घूरने लगी ,, मुझे उन निगाहों में एक साथ प्रमिला , ,,किटी ,, ,, सभी दिखाई देने लगे ! घबरा कर पुनः देखा ,और फिर बंद कर लीं ,,! इस बार मुझे प्रमेश दिखा ,, उसके पीछे खड़ा हुआ  मैं स्वयं दिखने लगा ,,और उसके भी पीछे खड़े  मेरे पिता दिखने लगे ! कुछ आवाज़ें एक दुसरे में समाईं हुई कानों को बेधने  लगीं ,, कभी मेरे पिता की आवाज़ ,, कभी पिता को बहस के साथ उनको  जबाब देती मेरी आवाज़ ,, और कभी प्रमेश की बहस के साथ  मुझसे सवाल पूछती प्रमेश की  आवाज़ ! सभी आवाज़ों में एक शब्द गूंजता सा सुनाई दिया ,,, बदलाव ,,प्रगति ,,दकियानूसी ,,! और धीरे धीरे  हर चेहरे में मैं ही दिखने लगा ,,पिता के चेहरे मैं भी मैं ,,,, अपने चेहरे मैं भी मैं ,, ,, और प्रमेश के चेहरे में भी मैं ,, जैसे  सदा  हरसमय , हर  जगह मैं ही था  सिर्फ मैं ,, ,,और कोई नहीं था ,,!  सिर्फ वक्त बदला था ,,   !!-
 मैंने घबरा कर आँखें खोलीं और रीता से कहा --
  " रीता ,,!!,,यह सब सामान बहुत आरसे से बेकार पड़ा है ,न ,,?  जगह भी बहुत घेरता है ,,?? "
 " हाँ ,सर ,,",!! रीता ने  उत्साह से आँखें झपकाईं ,,!
 तब ऐसा करो ,,कबाड़ी को फोन करो ,,वह इसे जितने में चाहे ले  जाए ,, इसी वक्त ,,एक घंटे के अंदर ,,! "
 वह उत्साहित हो कर तुरंत वापिस लौटने लगी  तो मैंने उसे टोकते हुए कहा --
 " और एक म्यूज़िकल कम्पोज़र कम्प्यूटर का आर्डर बुक कर दो !  मार्केट से पॉप म्यूज़िक के नए रिकॉर्ड्स खरीद लाओ ,, ! कुछ न कुछ तो होना ही चाहिए  ,,बिना संगीत के जीवन अधूरा लगता है ! "
     वह  पुनः मुस्करा कर मुझे देखती हुई चली गयी !
 उसके जाते ही मैंने अपनी हथेली पर आये एक गरम गरम आंसूं को पोंछ लिया ! थोड़ी देर बाद ही  कबाड़ी आकर सब सामान ले गया  मैंने अपना स्पेनिश भी दे दिया !  सिर्फ एक चीज मैंने रीता की निगाहों से बचा कर  अपनी जेब में रख ली है ,, वह है शांता की तस्वीर ,,! सिर्फ फ्रेम ही मैंने कबाड़ी को बेचा है !
       कबाड़ी के जाने के बाद ,, रीता को बुला कर मैंने  मैंने कहा --" सचमुच कितना कबाड़ था ,,ठीक ही हुआ  जो उठ गया ,,बेकार इन पुरानी  चीजों को छाती से चिपकाए , दकियानूस ',  बने रहने से क्या ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,"
-- कहते कहते मेरा गला रुंध गया !
 और अब  आज का यह पेज मैं  बंद कर रहा हूँ ,,मुझे सख्त जरूरत है  आराम की ,,मेरा बदन टूट रहा है ,,लगता है जैसे कई मीलों की  लम्बी यात्रा पूरी करके आया हूँ ,, मीलों की ही नहीं ,,शायद युगों युगों की ! कल सुबह फिर जागूँगा  ,,न भी जागूँ तो अब कोई डर नहीं !
  अच्छा शुभ रात्रि ,,!!
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---सभाजीत

( यह कथा मैंने वर्ष १९७७ में लिखी थी ,,अक्टूबर माह में ! तब पाठकों ने कहा यह सामयिक नहीं है ,, पत्र पत्रिकाओं ने भी इसे खेद सहित वापिस कर दिया था ! अब लगभग ४० वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी क्या यह सामयिक हो पायी है ,,या क्या आगे कभी सामयिक हो पाएगी ,,इसका निर्णय प्रबुद्ध पाठक करें )

( इसके काल की गणना ,, लेखन के बाद आज की वर्तमान स्थिति देखते हुए ,,भविष्य के दस साल तक के लिए बढ़ा कर पुनः निश्चित की है ,, प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है की वे उसमें त्रुटि होने की स्थिति में उस पर अधिक ध्यान न दें बल्कि कथा का सार समझने का प्रयास करें )