गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

  विंध्य की विरासत 
 रीवा रियासत 

(  भाग दो )

 रीवा रियासत के अंतर्गत , महत्वपूर्ण स्थान है  , शहडोल जिले में ,  मेकल पर्वत पर स्थित आम्रकूट यानी आज का अमरकंटक !
  इस स्थान से दो  महत्वपूर्ण नदियाँ निकली हैं , जिनका उल्लेख पुराणों में भी है ! इस स्थान को आम्रकूट इस लिए कहा गया क्योंकि यह पर्वत शिखर कभी , आम के पेड़ों से आच्छादित था !आम की  पत्ती  शुभ कार्यों  का ,,  उल्लास का ,  , प्रतीक है ! किसी भी देवता के पूजन हेतु , रखे गए कलश में , आम्र पत्र अनिवार्य अंग है ! आदि काल से किसी के स्वागत हेतु बनाये गए बंदनवार में आम की पत्तियों का उपयोग होता रहा है !
      मेकल पर्वत का शिखर , अद्भुत है , यहां आकाश से गिरी कोई भी बूँद , किसी भी दिशा की और जा सकती है , इस लिए विभिन्न नदियों का प्रवाह विभिन्न दिशाओं की और उन्मुख हुआ ! नर्मदा जहां , पश्चिम दिशा की और गयी , वहीं सोन पूर्व की और , ! एक अन्य नदी , महा नदी भी यहां से निकल कर दक्षिण दिशा की और बह निकलती है !
          मेकल पर्वत पर कंधा टिकाये ,  लेटा , विंध्याचल पर्वत , अपनी पर्वत श्रेणियों को किसी वेणी की तरह फैलाये , उत्तर पूर्व दिशा की और निहार रहा है ! वह अगस्त्य ऋषि के आगमन की दिशा में शीश  झुकाये , उनका आदेश पालन करता हुआ जस का तस लेटा , है !    शहडोल जिला  इसी पर्वत श्रेणियों की वेणियों में फ़ैली विंध्य भूमि का , दक्षिण दिशा का    अंतिम द्वार है !
 अमरकंटक   ,,  नर्मदा और सोन के उद्गमस्थान होने के कारण आज  पर्यटन  का केंद्र बन गया है ! नर्मदा की  उतपत्ति  गोमुख  से है ! वह वहां से निकल कर एक कुंड में आती है , जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं ! यहां से एक पतली धारा बन कर वह पश्चिम की और बहती है , और एक शिखर से फिसलती हुई नीचे उत्तर जाती है !
        जबकि सोनमुडा स्थान से निकलती है सोन नदी ! यह पूर्व दिशा की और चल कर , आगे ऊँचे शिखर से सीधी नीचे की और छलांग लगा देती है ! नीचे गिरते ही यह विदीर्ण हो कर भूमिगत हो जाती है ! भूमि के नीचे नीची , दलदली क्षेत्र में , बिखरे रूप में चल कर , आगी जा कर यह पुनः एक धारा के रूप में प्रकट होती है !  वहां से पहले यह सीधे उत्तर की और मुख कर करके तीव्र गामी  होती  है , और जब  रास्ते में उसे  मिलती  है जौहला नदी तो , जिसका पानी  समेट  कर वह , एक बड़ी नदी का रूप धारण कर लेती है !आगे कैमोर पर्वत का सहारा ले कर वह बाणसागर बाँध में फ़ैल जाती है , !  बाण सागर बाँध से आगे वह पूर्व दिशा का रुख ले लेती है और सीधी जिले में बहती हुई ,,  बिहार की और चली जाती है !
       सोनघाटी के तट पर बना गहन जंगल ही  विंध्याटवी  कहलाता है !
  अमरकंटक , नर्मदा के उद्गम होने के कारण आज संत  महर्षियों  का निवास बन चुका है ! यहां कई आश्रम बन गए हैं , और पर्यटकों के ठहरने के लिए पूर्ण सुविधायुक्त होटल भी हैं !

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   शहडोल नगर , जन जातियों का नगर था ! १६  वीं सदी  में , इसे सुहागपुर के नाम से एक छोटे से गावं के रूप में जाना जाता था ! उस काल में यहां भर राजवंशों का राज था !  बाद में बघेली राजाओं ने यह क्षेत्र जीत कर यहां तक अपने राज का विस्तार किया !  गुप्त काल से लेकर , बघेलों के समय तक , धीरे धीरे यहाँ अन्य जातियां भी आईं , और यह क्षेत्र द्रविड़ और आर्य संस्कृति का मिला जुला रूप बन गया !  कुछ लोगों की मान्यता है की यह , महाभारत काल का विराट नगर था , जहां पांडवों ने अज्ञातवास का अंतिम वर्ष व्यतीत किया था !
   तथापि यह क्षेत्र , आदिवासी , जनजाति बाहुल्य क्षेत्र ही है ! यहां के मूल निवासियों में कॉल , बैगा , भारिया , अगरिया , कमर , पाँव , गोंड जातियां प्रमुख हैं , जिनका भोजन बाजरा , मक्का , धान ,  कोदो है ! इनकी संस्कृति में महुआ , मुख्य फल है , जिससे वे शराब बनाते हैं ! शिकार इनका शौक है , और जंगली मुर्गा , इनका पालतू जानवर !
     यहां  आकर बसी अन्य अनुसूचित , और पिछड़ी जातियों की संस्कृति भी , समृद्ध , सवर्ण जातियों से अलग है ! , कोरी , कुम्हार , बसोर , के साथ , अहीर गडरिया , जैसे लोग भी यहां उत्सवों में अपनी संस्कृति अनुसार नृत्य गान करते हैं !
 जन जातियों की सामाजिक  एवं सांस्कृतिक सोच में , मनोरंजन  की प्रमुखता है ! सामूहिक नृत्य इन की परम्परा है   एवं  विशेष वेश भूषा , इनकी धरोहर ! बदन पर गोदना इन का परम्परा गत आभूषण है ! तथापि चांदी के कई विभिन्न आभूषण ये विभिन्न पर्वों पर धारण करते हैं !कर्मा,  शैला , रीना ,   सज नई  , ददरिया , टप्पा , इनके लोकगीत है !
 शैला नृत्य एक सामूहिक नृत्य है ! यह पुरुषों का है ! मोर पंख , कलगी , के साथ घुँघुरु बाँध कर यह नृत्य किया जाता है ! मादल  और ढोलक की थाप पर , चांदनी रात में , अर्धवृत बना कर , मोरपंखी कलगी सर में लगा कर , कौड़ियों के बाजूबंदों से सजे स्त्री पुरुष , मग्न हो कर इस तरह नाचते हैं की रात कब बीत गयी पता ही नहीं चलता !
 कोलदहा नृत्य में स्त्रियां लहंगा , गलता , अथवा साधारण परिधान में ही मस्ती के साथ नृत्य करती हैं ! अहीरों का नृत्य बीछी है ! इसमें नगड़िया बजाई जाते है , और उसकी लय पर नृत्य !   केहरापोता नृत्य में अंग संचालन का कमाल है ! मुख पर घूंघट होता है , और अँगुलियों की कलात्मक , संचालन मन मोह लेता है ! विभिन्न जातियों की अपनी अलग लोक परम्परा है  ताड़नानुसार , कलार , कोहार , तेली , काछी , कहार, धोबी कोरी , और बारी जातियां अलग अलग शैली में नृत्य करते हैं और इनके लोकगीत भी अलग अलग हैं !
 जनजातियों के देवी देवता भी अलग हैं ! घमसान , बाघसु , कोलिया , भैंसासुर ,  बदकादेव , दूल्हादेव , मस्तानबाबा , घटबैगा , लगुरा , ठाकुरदेव , आदि कई देव इनके लिए आराधान और पूजा का  विषय हैं !  विपदाओं , और रोगों के अनुसार महामाई , फूलमती , घटपरिया , दुरसीन , हल्की ,  देवियों के नाम भी इन के बीच प्रचिलित होते हैं !
 पराशक्तियों में आस्था रखने वाली जन जातियां शिव एवं शक्ति को आदि देव मानती हैं !
 गोंड जाती निराली और भोली होती है , यह जंगलों में एकांत पहाड़ियों पर बास्ते हैं ! इनकी स्त्रियां जड़ीबूटी बेचतीं हैं ! ये रक्षार्थ कुत्ता साथ में पालते हैं , जो इनका गण चिन्ह भी है !
    विकसित क्षत्र की धरोहरें , भले ही पर्यटकों को अधिक लुभाती हैं , किन्तु विंध्य भूमि पर बसी जन जातियों की संस्कृति उससे भी ज्यादा लुभावनी है !

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     वन्य जीवन के दर्शन के लिए आज , सरकार ने वन्य अभ्यारण बना दिए हैं ! इसमें  सीधी जिले का बगदरा , जहां कभी महराजा मार्तण्ड सिंह ने सफ़ेद शेर के शिशु को पकड़ा था , विशिष्ट है ! यहां काला हिरण , तेंदुआ , चिंकारा नीलगाय जैसे वन्य जीव , अभ्यारण की सैर करते सहज ही दिख जाते हैं ! पर्यटकों के लिए यह अभ्यारण एक आकर्षण है , जहां अब ठहरने के लिए सर्व सुविधायुक्त होटल बना दिए गए हैं !
       शहडोल जिले के पनपता जंगल का अभ्यारण भी आज चर्चित हो चुका है ! यहाँ तेंदुआ , चीतल , चौसिंगा , भालू , साम्भर नीलगायें सहज ही विचरण करते हुए मिल जाती हैं !  इसी प्रकार सीधी जिले का संजय वन्य अभ्यारण भी अब  राष्ट्रीय स्टार पर प्रसिद्धि पा चुका है !  सीधी जिले में ही गहरे सोन नदी के पानी में घड़ियाल पल रहे हैं , ! इन योजनाओं के माध्यम से प्रकृति को संतुलित करने का प्रयास है !
      बघेलों की राजधानी , बांधवगढ़ में जो वन्य अभ्यारण  बना है , वह आज विश्व प्रसिद्धि पा रहा है ! ऊंची पहाड़ी पर बने बांधवगढ़ किले के चारों और की भूमि पर आज कई बाघ विचरण कर रहे हैं ! इसमें जंगली भेंसे , चीतल  , नीलगाय सहज ही दिखती है ! बांधवगढ़ में पर्यटकों का मेला जैसा लगता है ! उनकी सुख सुविधा के लिए सभी सुविधायुक्त कई होटल ,  ताला  नामक गावं में उपलब्ध है !

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 बघेल राजवंश द्वारा बसाया गया , गोविंदगढ़  किला , भी आज पर्यटकों को लुभा रहा है ! इस किले के साथ जुड़ा एक भव्य तालाब नौकायन के लिए  उपयुक्त स्थान है ! किले के अंदर बना , कठ  बंगला ,  एक दर्शनीय स्थान है ! इस कथ बंगले में , यहां के स्थानीय फिल्मकारों द्वारा  आल्हा उदल  के  जीवन  व्रत पर  बनाई  गयी  फिल्म रक्त चन्दन के दृश्य , बहुत सुन्दर बने  दीखते हैं ! फिल्म कारों के लिए और पिकनिक के लिए यह चित्ताकर्षक स्थान है
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 कलचुरियों के काल में शिव का एक भव्य मंदिर ,  रीवा  रियासत के गोर्गी गावं में बनाया गया था ! यह स्थान भी आज पर्यटन स्थल बन गया है ! कलचुरी काल में मूर्तियों का काम बड़े भव्य स्टार पर हुआ ! कहते हैं की गोर्गी का शिव मंदिर बहुत विशाल था ,  और उसके मेहराब , और द्वार , काफी ऊँचे थे ! इस स्थान की शिव पार्वती की मूर्ती आज रीवा नफगर के पद्मधर पार्क में राखी हुई है , जबकि एक तोरण दार के अवशेष , रीवा के पुतरिया दरवाजे पर लगा दिए गए हैं !
     इतिहास और संस्कृति की दृष्टि से यह स्थान बहुत महत्वपूर्ण और दर्शनीय  है !
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  सोन नदी के किनारे , फैला गहन वन ,  विंध्याटवी  के नाम से  जाना जाता है ! सोन के किनारे पर , संस्कृति और साहित्य के कई ऐतिहासिक स्थल , आज यात्रियों को शोध कार्य के लिए पुकारते हैं !  सीधी जिले में , भवरसेन नामक स्थान पर सोन के किनारे , कभी , बाणभट्ट ने आश्रम बना कर , अद्भुत कथा  काव्य की  रचना की थी , कादम्बरी नामक यह रचना , कई दृश्य आँखों के सामने  चित्रित  कर देती है , जिसमें , कई जन्मों में नायक  नायिका बार बार मिलते है !
 बाणभट्ट हर्षवर्धन के काल में उनके राज दरबार के कवी थे ! हर्षचरित नामक ग्रन्थ की रचना भी उन्ही के द्वारा की गयी ! उनसे अनबन होने पर वे इस सोन नदी के तट पर आये , और उन्होंने यहीं आश्रम बना कर , प्राकृतिक सौन्दर्य आत्मसात करते हुए , अद्भुत कल्पनाशीलता के साथ , अलंकार और उपमाओं से युक्त कथा ,,,कादम्बरी लिखी ! विशेष बात यह है की , यह रचना पिता पुत्र की कलम से  निरंतरता बनाते हुए लिखी गयी   जिसमें प्रवाह में कोई अंतर् नहीं आया !
  वन्य जीवन , और बाणभट्ट की कर्म भूमि निहारने पर्यटकों को यहां भी जरूर आना चाहिए !
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  भवरसेन जो कभी  भ्रमर शैल  के नाम से उच्चारित होता था , के निकट ही , है सोन नदी के तट पर , बना चन्दरेह   मंदिर !यह एक सुन्दर शिवालय है जो स्थापत्य में अनूठा है !  कलचुरी काल में प्रशांत शिव नामक एक तपस्वी और विद्वान , महर्षि हुए , जिनके  शिष्य , थे प्रबोध शिव ! प्रबोध शिव ने जन जातियों को शक्षित करने का प्रयास किया ! वे लोक हितकारी , वास्तुविशारद थे !  वे उत्कृष्ट निर्माता थे और प्रस्तर तुड़वा कर पहाड़ों के मध्य मार्ग बनवाये !  उन्होंने तालाब बनवाये , गहन वनो से रास्ते निकाले !
 चाँद रेह  का मंदिर उन्ही के काल का है वास्तुकला की दृष्टि से तथा प्रस्तर कला की दृष्टि से दर्शनीय है !

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 सोन नदी तट पर ही स्थापित है , सीधी जिलें स्थित , मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम ! यह ऊंचाई पर है  क्यूंकि त्रेता ययुग में यहाँ गहन वन था , और वन्य जीवों से से भय होता था ! सोन की बहती धारा , और रामायण काल का आश्रम , मन में धार्मिक अनुभूतियाँ जगा देता है ! चित्रकूट की तरह , यह स्थान भी पवित्र माना जाता है , क्यूंकि भगवान् राम के चरण यहां पड़े थे !
  यह पर्यटकों के लिए ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व पूर्ण है !
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 बांधवगढ़ किला
  यह अत्यंत प्राचीन किला है ! इस किले पर कई राजवंशों ने अधिकार जमाया , किन्तु लम्बे समय तक यह किला किसी के पास नहीं टिका !लगभग २७०० फ़ीट ऊंची ,   पहाड़ी पर बना यहां का दुर्ग सदा अजेय रहा ! यद्यपि इसने कई विभिन्न आक्रमण झेले , किन्तु दुर्गम पहुँच मार्ग के कारण , यह सदा सुरक्षित रहा !इस गढ़ के लिए तीन मील लम्बी घुमाव दार चढ़ाई चढ़नी पड़ती है ! यहां शेषशायी विष्णु प्रतिमा प्रतिस्थापित है  जो यह यह बताता है की यह दुर्ग वैष्णव मत के  अनुयायियों ने  बनवाया होगा !यहां से , मध्यकाल में , सोन घाटी में घुसने वालों पर नजर राखी जाती थी !  सिकंदर लोधी के आक्रमण के समय बघेल राजा ने यहीं शरण ली थी !  गहोरा के दुर्ग से हटने के बाद , बघेलों की राजधानी यहां लम्बे समय तक रही , किन्तु अकबर से अनबन होने पर बघेल अपनी राजधानी यहां से उठा कर रीवा ले गए !  शेर शाह सूरी ने अपनी साथज़ार घुड़सवारों की सेना यहीं टिकाई थी !
 बांधवगढ़ में अन्य मूर्तियों के साथ कच्छप , बाराह , नरसिंह , मत्स्य , , राम,  कृष्ण ,और हनुमान की अद्भुत मूर्तियां है ! कहते हैं इन मूर्तियों को कलचुरी काल क्ले मंत्री गोलक ने बनवाया था !  १५ वीं सड़ी में यहां हाथियों के क्रय विक्रय हेतु एक बड़ा मेला लगता था !
 बांधवगढ़ के नीचे चारों और बहुत बड़ा गहन वन है , जो अब , बांधवगढ़ अभ्यारण के नाम से विख्यात है !
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 पाली बीरसिंघ पुर
 यह क्षेत्र मध्यकाल में , दहाड़ क्षेत्र के नाम से जाना जाता था ! यह क्षेत्र १६ वीं सड़ी के अंत में बघेल राजाओं के आधीन हुआ ! यहां पूर्व मध्यकालीन जैन मंदिर , जैन धर्म की मूर्तियां , भग्नावशेष में उपलब्ध है !

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  पुष्पराज गढ़ तहसील
 यह भूमि घोर जंगल वाली , विरल संख्यावाली आदिवासियों की बस्तियों की भूमि है ! आज से करोड़ों वर्ष पूर्व यहां समुद्र लहलहाता था ! राजेंद्र ग्राम से २५ किलोमीटर दूर , ुफ्री खुर्द में सागरीय शिलाओं के टुकड़े मिलते हैं !  पुष्पराजगढ़ तहसील के पहाड़ी क्षेत्र में अनेक घात हैं जिसमें होकर , सोहाग पुर की और से , आक्रमण कारी आक्रमण करने आते थी ! यही घात तीर्थ यात्रियों और व्यापारियों के आवागमन के  काम आते थे ! वहां मिले पाषाण उपकरण यह सिद्ध करते हैं की आदिकाल से ही जौहला और मुण्डाकोना घाटों की बीच मानव सभ्यता पनपी थी !
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   रीवा से इलाहाबाद की और जाते हुए , गढ़ के निकट सोहागी घाटे पर , कोठार  में बौद्ध कालीन स्तूप मिले हैं ! यह बौद्ध मठ के रूप बौद्ध भिक्षुओं के लिए , धर्मप्रचार हेतु , विश्रामस्थल के रूप में बनाये गए थे ! यहां जल की पर्याप्त व्यवस्था थी ! और बौद्ध भिक्षु यहां रह  कर साधना करते थे !

 यहां खुदाई अभी जारी है , जमीन के गर्भ में समाई   सभ्यता , और धरोहरों के राज उजागर होना बाकी है !
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 रीवा के चारों और कई प्रपात है जो दर्शनीय है ! इनमें क्योटी का  प्रपात ,  बहती प्रपात , पुरवा प्रपात , और चचाई प्रपात दर्शनीय हैं !  चचाई में के निकट ही अमलाई , ओरियंटल पेपर मिल है !  बांसों का जंगल होने के कारण यहां कागज़ बनाने के लिए कच्चामाल बहुतायत में उपलब्ध है !
    पर्यावरण की शर्त पर हुआ विकास , लोकहित में नहीं माना जा सकता ! पेपर प्लांट से निकलने वाले रसायन , यहां की नदी के जल को प्रदूषित कर रहे हैं जो बहुत चिंतनीय है ! स्थानीय समाज सेवी संस्थाएं और सरकार , उन व्यवस्थाओं के प्रति अब सचेत हो रहीं हैं , जिसके रहते जल प्रदुषण को रोका जा सके !
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  सिंचाई और विद्युत् परियोजनाओं के उद्देश्य को ले कर बांधे गए बाँध  , भी आधुनिक भारत के तीर्थ होते हैं ! सोन नदी पर बांधा गया , महा कवी बाणभट्ट के नाम का बाणसागर बाँध , , आज  पर्यटन  का आकर्षण बन रहा है ! बड़े जलाशय में नौका बिहार सम्भव है ! बाँध से निकल कर बहता हुआ जल ,  नयनाभिराम दृश्य  उत्पन्न  करता है  !   यहां जल विद्युत् उत्पादन का बड़ा केंद्र है , जो तकनीकी , दृष्टि से , इंजीनियरिंग के क्षात्रों के भ्रमण की जगह है !
          यहां से निकल कर , बड़ी नहरों के माध्यम से  नदी का  जल आज , बघेलखण्ड के कई एकड़ भूमि को सींच कर , उन्नति कृषि का साधन बन गया है  !    बाणसागर परियोजना देश का अभिनव प्रयोग है ! सोन के जल को रीवा ला कर पहले रीवा से , गोविंदगढ़ मार्ग पर बने  मार्ग पर बने एक जल विद्युत् केंद्र  से सम्बद्ध किया  गया है  जहां ,  १० मेगावाट की विद्युत् का उत्पादन किया जाता है !   इस केंद्र से निकली जल धार पुनः नहर  के द्वारा ,  बिछिया नदी  में जुड़ती है , और बीहरके  संगम से होती हुई , आगे सिरमौर से पूर्व , तमसा नदी से जा मिलती है ! सिरमौर में पुनः जल विद्युत् उपकेंद्र के द्वारा विद्युत् उत्पन्न कर , प्रदेश की विद्युत् मांग को पूरा करने में ,  यह योजना   महत्त्व पूर्ण साबित हुई है !
 सोन पर बनाये गए बाँध ने , यहां की भूमि का जल स्तर बहुत ऊपर उठा दिया है   ,  और कुँए , बावड़ियों  में , सुख गया जल फिर अवतरित हो गया है  ! रीवा नगर में , बीहर नदी में बहता हुआ , निरंतर जल , झरने की तरह मनोरम वातावरण उतपन्न करता है  !
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 रीवा सीधी मार्ग पर स्थित गूढ़ कसबे में , देश का अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्लांट स्थापित हुआ है ! यह प्लांट अद्वितीय है , और दर्शनीय है ! यहां सौर्य ऊर्जा के   बड़े बड़े  सौर्य  पैनलों के माध्यम से , 250  मेगा वाट विद्युत् पैदा की जा रही है , जो सारे देश  का अभिनव प्रयोग है !  इस प्लांट की क्षमता वृद्धि कर , इससे ७५० मेगावाट की विद्युत्  उतपन्न करने  का लक्ष्य है ! यह अपने प्रकार का एशिया में बना , एक अभिनव सोलर पावर प्लांट है !

 मानव जीवन प्रकृति प्रदत्त साधनो पर ही निर्भर है , जिसमें , अग्नि , जल , वायु  ही प्रमुख है ! हमारे लिए सूर्य एक प्रकृति प्रदत्त ऊर्जा का श्रोत है , जिससे मिली ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा ,में   बदल कर हम हम विद्युत्  प्रकाश , और विद्युत् जनित  यांत्रिक शक्ति को  प्राप्त कर सकते हैं !  पर्यावरण की दृष्टि से यह नित्तांत  हानि रहित मार्ग है  क्योंकि पृथ्वी के गरब में स्थित , कोयले , और पेट्रोलियम पदार्थो का खजाना अब बहुत काम होता जा रहा है  और इसके दुष्परिणाम पृथ्वी के ताप के बढ़ने के कारण , अब ऋतुओं में हुए  गहन परिवर्तन के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं !  बढ़ता हुआ भू स्खलन , भूकंप , भी , प्रकृति से छेड़  छाड़  का परिणाम है ! जल विद्युत् उत्पादन और    सौर्य  ऊर्जा उत्पादन  के  प्रयोग , पर्यावरण के लिए , वरदान है  जिसके लिए विंध्य भूमि आज नए सिरे से स्तुति योग्य है !
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  रीवा राज की   की सांस्कृतिक विरासत ,देश में अनूठी हैं  ,! प्राकृतिक सौंदर्य में यहां के वन अभ्यारण , जल प्रपात ,  पर्वत श्रेणियों में बने तीर्थ स्थल ,  किले , जहां भ्रमण योग्य दर्शनीय स्थान है , वहीं यहां के रीत रिवाज , बोली ,  उत्सव , खानपान  , लोकसंगीत , लोकनृत्य भी विविध छटाओं के दर्शन  करवाती है ! बघेली  बोली में  आज बहुत से नाटक लिखे जा रहे हैं , कवितायें गढ़ी जा रही है , साहित्यिक रचनाएं की जा ! यहां के खान पान पर भी  बहुत कुछ कहने सुनाने योग्य बातें हैं !  बघेल खंड भूमि की उर्वरा भूमि , चावल , दाल गेहूं , जो , चना  के साथ साथ सोयाबीन जैसी कैश क्रॉप उत्पन्न कर रही है !  यूकेलिप्टिस की खेती भी यहां की गयी , और उससे धन कमाया गया !  यहां के  ग्रामीण प्रमुख व्यंजन हैं - बड़ा , मुँगौरा , भात ,  खीर , रिकंज , खिचड़ी , खिचरा , सेमी , फुलौरी , कढ़ी , पपड़ी , रसाज , दरिया , सेतुआ  !  ये व्यंजन ना सिर्फ पौष्टिक हैं बल्कि स्वादिष्ट हैं ! समय समय पर व्यंजनों का मेला भी यहां लगता रहता है !
 यहां के लोकगीतों में सोहर और व्याह के गीत बहुत सुन्दर हैं ! वैवाहिक अवसर पर हुए नगों में माटी मगरा , मातृका पूजन , मड़वा , सिलपोनी , जनेऊ , भीख , मुंडन , रिसाई , वृच्छा , कंकण भुंजाई , तेल चढ़ाई , दुआरचारा , बाटी मिलाई कलेवा के साथ विदाई आदि के बहुत मधुर गीतों के गायन का प्रचलन है !  ऋतू गीतों में बरखा , झूला , बारहमासा , होली , फगुआ , चैती , कजली , टप्पा जैसे मधुर गीतों का चलन है !  आस्था गीतों में देवी गीत , भगत  इस धारा के विशिष्ट गीत हैं ! नचनहाइ , सजनहाइ गेलहाइ , बेलन्हाई   पुतरी  पुतरा  , हिंदुली , आदि गीत परस्पर संबंधों पर आधारित , घटनाओं के गीत हैं !
 उत्सवों में मकर संक्रांति , बसंत पंचमी , शिवरात्री , नागपंचमी ,  खजुलैयाँ , के मेले   स्थान स्थान पर आयोजित होते  हैं ! पारिवारिक रिश्तों की मिठास ,     संतान सप्तमी , वट  सावित्री , भैयादूज , राखी , तीजा , करवाचौथ जैसे त्योहारों से में दिखती है , तो रामनवमी , अक्षयतृतीया , हरछट , जन्माष्टमी , गणेश चतुर्थी अनंत चौदस ,  देवोत्थानी एकादशी पर आस्था और भक्ति भाव का ज्वार देखते ही बनता है !

   इस क्षेत्र के   लोकसंस्कृति के दर्शन  वृहत स्तर पर करना सम्भव नहीं ! इसके लिए फिल्म माध्यम ही सटीक माध्यम है ! कुछ  युवा इस दिशा में प्रयत्न शील हैं  जिनके सार्थक परिणाम जरूर ही आगे आयेंगें !

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   रेवा नगरी से हट कर , ग्रामीण क्षेत्रों में फ़ैली धार्मिक स्थलों की धरोहरें  दर्शनीय है , जिनमें गोर्गी प्रमुख है ! यह शैव संस्कृति का , ऐतिहासिक शिव मंदिर का भग्नावेश स्थिति में उपलब्ध  दर्शनीय स्थल है ! पुरातत्व की दृष्टि से यह बहुत  महत्वपूर्ण स्थल है , इसी तरह चंद  रेह  स्थित मंदिर भी कलचुरी काल की प्रस्तर कला के दर्शन करवाते हैं !
 ग्रामीण क्षत्रों में बनी ऐतिहासिक धरोहरों और प्राचीन मंदिरों में देवी तालाब  आस्था का केंद्र है ! वहीं रायपुर कलचुरियाँ में बना अरविंदर आश्रम , एक शान्ति पीठ है जहां अशोक का वृक्ष , और अरविन्द का मंदिर दर्शनीय है ! ीासी नगर में , कर्मासिन माता का मंदिर है , कलचुरियों की आराध्या है ! नईगढ़ी का अष्टभुजी मंदिर भी दर्शनीय है , और तमरा पहाड़ पर बना हनुमान मंदिर , सिद्ध मंदिर माना जाता है !
        रीवा से बाहर , गूढ़ मार्ग पर बना प्राचीन मंदिर चिरहुलानाथ , हनुमान जी का सिद्ध मंदिर माना जाता है ! यहां हर शनिवार , मंगलवार को भक्तों की भीड़ , मेले का रूप ले लेती है ! मंदिर में  पूजा पाठ का भी रिवाज है , इस लिए पंडित पुरोहितों की उपस्थिति सदा वहां रहती है !
 मंदिर से लगा , तालाब भी बहुत सुन्दर है !
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 रीवा के निकट , बेला , गोविंदगढ़ मार्ग पर ,  मुकुंदपुर सफारी आज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है ! महराज पुष्पराज सिंह , और  ऊर्जा मंत्री राजेंद्र सिंह के अथक प्रयासों से , सफ़ेद शेर की वापसी  रीवा की भूमि पर पुनः सम्भव हो सकी है ! यह स्थान रमणीक है , जहां पहले भाग में , वन्य प्राणियों का ज़ू है  और दूसरे भाग में छोटा सा अभ्यारण बनाया गया है जिसमें सफ़ेद शेर उन्मुक्त विचरण करता है ! दुसरे भाग की सैर के के लिए , वन विभाग द्वारा  सुरक्षित बसें चलाई जाती हैं , जिनमे बैठ कर , हर वे के लोग , सहजता से सफ़ेद शेर को विचरण करते देख सकते हैं !
  सफ़ेद शेर , वस्तुतः बाघ की प्रजाति है ! यह रीवा रियासत द्वारा , पूरेविश्व को सौंपी गयी नायाब सौगात है ! इसकी कथा का प्रदर्शन  पोस्टरों , और  चित्रों के माध्यम से सफारी के अंदर बने एक विश्राम स्थल पर किया गया है जो दर्शनीय है !
 मुकुंदपुर , का व्हाइट टाइगर सफारी  रीवा की शान है ! यह पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनता  जा रहा है !

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 संस्कृति ऊपर से थोपी गयी विचारधार नहीं है , बल्कि उत्तरोत्तर प्रगति  के साथ , मनुष्य के अंदर विदवमान , मानवीय ऊर्जा है ! लोक संस्कृति समाज में  भाईचारे , और आपसी सौर्हार्दः का संवंधरण करती है ! उसे सहेज कर रखती है ! बदलते हुए सांस्कृतिक परिवेश में , देश की मिटी से  जुडी  ऐतिहासिक   सांस्कृतिक , और पुरातात्विक धरोहरें , न सिर्फ दर्शन की चीज़ है , बल्कि आत्मसात करने की चीज़ है ! विंध्य भूमि के एक भाग , बघेल खंड के दर्शन हमने किये , किन्तु यह तो  गागर  में सागर  जैसा है !   जितना देखें उतना कम ! क्यूंकि विंध्य भूमि का कण कण , ऊर्जा , और समृद्ध इतिहास से भरा हुआ है !
   हमें विश्वाश है की आप इस क्षेत्र का भ्रमण जरूर करेंगे , और यहां से वे यादें सहेज कर ले जायेंगें , जो आप को यहां बार बार भ्रमण हेतु विवश करेंगी !

--- आलेख सभाजीत    

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