गुरुवार, 23 अगस्त 2018








" मनीषा ,,,,,,," 


     बहुत दिनों तक ,   यूनियन लीडर होने  की विद्रोही छवि के कारण , मेरा विभाग , ,मुझे   तहसील स्तर की   जगहों पर पोस्ट करता रहा    ! कभी कभी तो शुद्ध डकैत क्षेत्रों में  सहायक यंत्री  के ,    उपसंभागीय पद पर मुझे  तहसील क्षेत्र के सघन वनो के अंदर ,  विद्युतीकरण का कार्य देखना पड़ा ! जब बच्चे बड़े होने लगे , तो स्थायित्व  की चिंता सताने लगी ! ईश्वर का  सहारा था तो   ईश्वर  ने साथ दिया , और स्वयमेव बिना किसी की शिफारिश के , कमिश्नरी स्तर  के एक  बड़े  शहर में पोस्टिंग  मिल गयी !

   एक शुभाकांक्षी , वरिष्ठ साथी ने कहा की अब , प्रशाशन से लड़ाई बंद करो , और यहां जम कर रहो , ताकि बच्चे स्थिर हो कर अपनी पढ़ाई पूरी  कर सकें ,,,,, तो बात मान ली !

   यह राजनीति ग्रसित शहर था , किन्तु ब्राम्हणो का वर्चस्व होने के कारण , मुझे स्वयमेव ही सुरक्षा की छतरी , ब्राम्हण होने के कारण मिल गयी , और धीरे धीरे मैं भी उस शहर में ' अंगद का पैर  " बन गया ! फ़ायदा यह हुआ की मेरे बच्चे स्थिर हो कर पढ़े , और उनकी पढ़ाई इस शहर में ही पूर्ण हुई !  इस शहर में रहते हुए कई अनुभूतियों का पिटारा मेरी यादों में है , जिसका ,,जिक्र  आगे  फिर कभी   करूंगा !
       कई वर्ष पूर्ण होने पर बदलाव ने दस्तक दी , और उसी के साथ , ब्राम्हण वर्चस्व का गणित बदल गया !  ,,,लेकिन बदलाव होते ही , जो लोग शहर के देवता की तरह पुजते  थे , वही अब दानव मान लिए गए ! शिकायतें यह हुईं  की " ब्राम्हणो " ने मिल कर इस क्षेत्र में बड़ी मनमानी की है   , और जो ब्राम्हण यहां पदस्थ हैं  , अगर उन्हें नहीं हटाया गया , तो  क्षेत्र गर्त में  डूब  जाएगा ! दुर्भाग्य से मैं भी ब्राम्हण , था और बहुत समय से  , वहां राज कर रहा  था तो मुझे पहली लिस्ट में ही चिन्हित कर लिया गया  ,,, और तुरंत मेरा स्थानांतरण , प्रदेश की उत्तरी सीमा से सीधी दक्षिणी छोर पर बने एक आदिवासी जिले ,  में कर दिया गया !!

  नौकरी में , जातिवाद , इतना ज्यादा प्रभाव करेगा , यह मैंने सोचा ना था ! लेकिन मन  ने कहा ,,,यार ,,!!  इतने दिनों तक ब्राम्हण होने का सुख उठाये हो , तो अब विभाग में ब्राम्हण होने का दुःख भी  झेलो ! ईश्वर वादी होने के कारण , मन ने यह भी कहा ,,,," जो होता है भले के लिए होता है ,,,यह जान लो " ,,तो चुपचाप छह चकों के ट्रक में , चार बच्चों के कारण ,पिछले ३५ वर्षों की जोड़ी गृहस्थी , ठूंस ठूंस कर ,  भर कर,   वहां आदिवासी  जिले में  चला गया जहां आने जाने का साधन सिर्फ सड़क मार्ग था !  उबड़ खाबड़ मार्ग पर  सामान तो टूटा ही , मन भी , एक शहर में बने साहित्यिक मित्रों   को छोड़ने के दुःख के कारण  दुखी हो  गया !

    माँ  नर्मदा के किनारे बसे  इस शांत शहर को देख कर  लगा की सच में जो होता है भले के लिए ही होता है !  विभागीय कालोनी में क्वार्टर अलॉट हो गया , और बच्चे भी पढ़ाई पूरी  कर लेने के बाद , अपने अपने लक्ष्य पूरा करने अन्य विभिन्न शहरों में बिखर गए !  सिर्फ सबसे छोटी बेटी  अपनी शेष पढ़ाई के लिए मेरे साथ थी ! ,, यह क्षेत्र पूरी  तरह आदिवासी क्षेत्र था , जिन्हे  विकसित करने के लिए , सरकार कई वर्षों से भागीरथी प्रयास  कर रही थी ! जिला छोटा था ,और मुझे अब शान्ति चाहिए थी ,,,,तो ,, मुझे ईश्वर कृपा से मेरा मनचाहा काम , जिले के  आफिस के अधिकारी के रूप में मिल गया ! आफिस का काम , और बिलिंग , तथा , कम्प्यूटर सेक्शन के प्रभारी के रूप में , मुझे नयी नयी योजना बनाने  का काम भी सौंप दिया गया !

  जल्दी ही वहां भी बदलाव हुआ  और हमारे एक उच्च अधिकारी ,' शिवांग '   साहब की पोस्टिंग हुई ! उनकी पोस्टिंग के साथ  ही  ,  सभी दफ्तरों में , बाबुओं में कानाफूसी होने लगी , और ' शिवांग " का अर्थ जानने की जिज्ञासा  की सब के मन ,में हिलोरें उठाने  लगीं !
      तब तक कुछ लोग जान चुके थे की मेरी साहित्य में रूचि है , तो वे मेरे पास आकर , फुसफुसा कर पूछने लगे ,,," सर ,,,ये  "शिवांग " किस  जाति  में आते हैं ,,,? , अभी तक तो हमने ऐसा कोई सरनेम नहीं सुना  है ,,क्या आप जानते हैं ,,ये कौन हैं ,,,कहाँ से हैं ,,?? "  !
     लेकिन यह सरनेम तो मैंने भी नहीं सुना  था और दुर्भाग्य से मैं उन्हें पहले से जानता भी नहीं था ! मुझे लगा , की बाबू लोग , आदतन , नए अधिकारी के बारे में जान कर , अपनी गोटी बैठाने के लिए मुझसे इंक्वायरी कर रहे हैं !  तो मैंने कहा --" यह नाम तो मैं भी नहीं जानता , और जानने से मुझे क्या फर्क पडेगा ,,?? जब आ जाएँ तभी जान लेना ! "
       उस आदिवासी बाहुल्य जिले में , मेरे आफिस में , जो कुछ  सीनियर बाबू थे , वे सवर्ण  भी थे ! वे लोग किंचित मुस्करा कर बोले ,,," सर हम जानते हैं ,,,यह सरनेम '   एस सी / एस  टी  में होता है ,,,और यह साहब , इस कोटे से ही जल्दी जल्दी प्रमोशन पा कर इस पोस्ट पर आये है !  यह एस सी हैं ,,,! "

    मैं समझ गया ,,,  एस सी मायने --" दलित " ,,!!
   ,,,  मुझे लगा की सरकारी हर विभाग में , अभी भी व्यक्ति अपनी तकनीकी , और अनुभव की  योग्यता से  ज्यादा ,  जात  पांत से ही जाना जा रहा है ! पिछले शहर में भी ब्राम्हण होने की योग्यता ने मुझे वहां टिक कर रहने का अवसर दिया था ,,,यहां भी बहुत से लोग ब्राम्हण होने के कारण  मुझे मान्यता दे रहे हैं , जबकि एक उच्च पद पर आने वाले अधिकारी की पहली जांच वे उसकी जाति   आधार पर ही करने को आतुर हैं !
 भले ही विभिन्न सरकारें , सामाजिक न्याय और सामान अधिकार के नाम पर , पानी की तरह पैसा बहा कर , सामाजिक समरसता की ककहरे बांच रही थी ,,,लेकिन विडम्बना ही थी की अभी धरातल पर यह समभाव नहीं उतारा था !
   जल्दी ही नए अधिकारी आ गए ! कुछ ही मीटिंगों में हमने और बाबू स्टाफ ने यह जान लिया की वे कार्य में चतुर , अनुभवी , और दृढ निश्चय के साथ फैसले लेने वाले व्यक्ति हैं ! उन्हें बाबुओं की बैसाखी पर चलने की आदत नहीं थी , और वे विभाग में भी एक  अच्छे  ,  विशिष्ट  , अधिकारी के रूप में अपनी साख रखते थे  ! उन्होंने अपनी अनुभवी पारखी निगाह से जल्द्दी ही आलसी , कामचोर , बहाने बाज , बाबुओं , और मेहनती , लगनशील बाबुओं को अलग अलग पहचान लिया , और छटनी करके , महत्वपूर्ण कार्य , लगनशील लोगों को , तथा , अनुपयोगी कार्य बहानेबाज बाबुओं को बाँट दिए !
     फलस्वरूप , कुछ लोग उनकी तारीफों के  पुल  बांधने लगे , और कुछ उनकी जाति  पर तरस खाकर ,उन्हें कोसने लगे !

 ,,,,दफ्तर का काम तो सुचारु रूप से चलने लगा , किन्तु घर अभी अव्यवस्थित ही था ! एक कामवाली की तलाश जारी थी ,,,लेकिन सही कामवाली नहीं मिल रही थी ! अचानक एक दिन , एक लड़की हमारे घर के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गयी ! वह  युवा थी , और बहुत सलीके से वेश भूषा बनाये  हुई थी ! पूछा ,,, तो बोली--"  मैं काम करना चाहती हूँ ,,, जो सही लगे वह दे दीजियेगा ,,,मुझे काम की जरुरत है,,"  !
     पत्नी ने पूछा ,,, " किस   जाति  से हो बाई ,,?? ",,,
    तो वह सकुचाते हुए बोली ,,,' अहीर  हैं ' ! नाम "    मनीषा  " है  "  ! ,
     ,,  पत्नी आश्वश्त हो गयी ,,,,,,अहीर  मायने ,गाय चराने वाला  ,,!
       तो अहीर  से तो काम लिया  सकता है  क्यूंकि पत्नी नहीं चाहती थी की वह किसी छोटी  दलित जाति  से काम करवाए ,,,! उसे लगता था की ,,,चौके में जा कर , बर्तन समेटने में भी अच्छी  जाति  की ही कामवाली प्रवेश करे ! इसीलिये वह बहुत दिनों से ऐसी ही कामवाली के इंतज़ार में थी !
----- लिहाजा उस लड़की को तुरंत काम पर लगा लिया गया ! वह बहुत सुघढ़ ढंग से काम करने लगी ,,,और बिना किसी शिकायत के समय पर घर आ जाती !
      धीरे धीरे ,, मेरी पत्नी का विश्वाश बढ़ता गया ,,और वह लड़की भी अपने मन से कई दायित्व आगे बढ़ कर सम्हालने लगी ! मेरी सबसे छोटी बेटी , मेरे साथ ही रहती थी ! उसने वहीं कम्प्यूटर कोर्स ज्वाइन कर लिया था और बीएससी की डिग्री की पढ़ाई करने लगी ! जल्दी ही मेरी बेटी का लगाव भी उस लड़की से हो गया , और वह उसके घर की बातों के बारे में पूछने लगी ! लड़की ने कहा की वह सिर्फ पांचवी तक ही पढ़ पाई थी , तभी उसके पिता ने दूसरा विवाह कर लिया और उसकी  माँ  को छोड़ दिया ! मजबूरी की स्थिति में वह गावं छोड़ कर माँ  के साथ  इस शहर में चली आयी थी  ! माँ  अक्सर बीमार रहने लगी तो उसने काम ढूंढा  , और अब धीरे धीरे उसे काम मिल गया है इसलिए अब उसके  घर की  जीविका चलने लगी है !
  मेरी बेटी को उससे सहानुभूति हो गयी !  उसने  उसके लिए छठवीं  कक्षा की किताबें  खरीद , दीं   और  उसे  एक घंटा घर में ही पढ़ाने लगी ! !

    लड़की बहुत प्रसन्नता से समय देते हुए , मनोयोग से पढ़ने लगी ! इधर , मेरी पत्नी भी उससे खुश हो कर उससे किचिन में चाय बनवाने लगी , और धीरे धीरे , वह  किचिन में उसके साथ  रोटियां सेकने की मदद भी करने लगी !  छोटे मोटे  ,, नास्ते ,,,पकौड़ी   तलने का काम भी उसने अपने हाथ में ले लिया और सुबह आकर वह  सेंडविच , और पकौड़ी भी  सुघड़ता से बना लेती ! हमने धीरे धीरे उसे घर का मेंबर ही मान लिया और वह  हमारे घर में एक सदस्य के रूप में रम गयी !

   घर व्यवस्थित होने पर , घर में , साथी इंजीनियरों का , और अधीनस्थ बाबुओं का भी आनाजाना शुरू हो गया ! कभी कभी छोटे पद पर कार्य रत चौकीदार , और चपरासी पद के लोग भी आ जाते ,,तो वे चाय पीने के बाद   हमारे घर में ,काम करने वाली  लड़की से अलग से पानी मांगते  , और कप खुद धो कर  वापिस रख देते ! मेरे मना करने पर वे जीभ निकाल कर कहते , --" वर्षों से चाकरी और सेवा की है , आप ब्राम्हण हैं !   , हम आपके घर झूठा  कप छोड़ कर कैसे जा सकते हैं" ?,,,
 मेरी पत्नी मुझे टोक देती थी की ,,,"  जो रिवाज है , उसे चलने दो , ,,वे मन से करते हैं तो तुम्हे क्या पडी है जो तुम अपनी अलग मुर्गे की डेढ़  टांग लगाओ " ,!

  लेकिन  एक दिन,,,एक विचित्र बात हुई ! हमारे आफिस के बड़े बाबू ,,,,, जिनसे हमारी थोड़ी  मित्रता  हो गयी थी , अपने दो भाइयों के साथ , मुझसे मिलने मेरे घर आये ! बड़े बाबू एक कुलीन ब्राम्हण थे , और उनका बड़ा आदर  शहर के  समाज , और शहर में , पूज्य ब्राम्हणो के रूप में होता था ! वे नगर के  सर्व  ब्राम्हण समाज के अध्यक्ष भी थे ! वे मुझे आग्रह करके एक बार सर्व समाज ब्राम्हण की बैठक में भी  ले गए थे ,, जहां मेरा भी बहुत आदर किया गया ! एक तो मैं एक  बड़ा विद्युत् अधिकारी था , , और वह भी ब्राम्हण ,,,,, तो ब्राम्हण  समाज ने मुझे खासी इज्जत दी !
   बड़े बाबू अक्सर आ जाया करते थे और मेरी पत्नी उनके लिए चाय नास्ते का इंतजाम कर दिया करती थीं !       वे ,पहले भी  कई बार आ कर हमारे  घरमें चाय नास्ता कर गए थे !
 उस दिन जब वे अपने भाइयों के साथ आ कर बैठे , और विभिन्न बातों पर चर्चाएं होने लगी , तभी  मनीषा , मेरी पत्नी के निर्देश पर , एक प्लेट में पकौड़ी और तीन चाय ले कर बैठक में  आयी ! उसे देख कर , बड़े बाबू के भाइयों ने कौतुहल से पूछा --" यह  आपकी  बिटिया है क्या ,,?? "
  मेने बताया  _  "  नहीं यह कामवाली है , इसके हाथ की बनी  चाय पकौड़ियाँ तो आप पहले भी कई बार खा चुके हैं ,,बड़ी स्वादिष्ट बनाती है ! "
 बड़े बाबू के भाइयों ने उससे पूछा  --" कहाँ की हो बिटिया ,,?  इसी शहर की ?? "   तो मनीषा चुप हो गयी ! मैंने कहा --" यह निकट के किसी गावं की है ,, वक्त की मार के कारण ,   अपनी  माँ  के साथ यहाँ शहर में आ कर रह रही है ,,,बहुत अच्छा काम करती है ! "
 इस बार बड़े बाबू के तिलकधारी , और बड़ी सी पाण्डित्याइ  चोटी  रखे , एक  भाई ने पूछा --" बताया नहीं    बिटिया किस गावं की हो ,,?
 "  मनीषा ने अटक अटक कर बताया ---" परसवाड़ा  की " ,,!
" ----" परसवाड़ा की ,,?? " ,,,अरे वह तो हमारा ही गावं है ,,,तुम किसकी बेटी हो ,,?? "  इस बार बड़े बाबू ने    खुद भौंहे सिकोड़ते हुए  पूछा  !
  मनीषा के मुँह पर हवाइयां उड़ने लगी , वह नर्वस हो गयी !
बड़े बाबू के भाई ने  पूछा ,," अपने पिता  का नाम बताओ ,,"!
 मनीषा मेरी और ताकने लगी ! मुझे साफ़ दिखाई देने लगा की वह घबरा गयी है !
 मैंने कहा --"  डरती  क्यों हो ,,अपने पिता का नाम बता दो ना ,," !
 मनीषा ने धीमे स्वर में बताया ---" रामदीन " ,,!
   " रामदीन ,,,?? " वह तो अहिरवार था ,,  ,,,हमारे घर में हरवाहे का  काम देखता था ,,,क्या तुम उसकी बेटी हो ,," ?
   मैंने विवाद किया ,," नहीं ,,,यह तो अहीर है ,,, हो सकता है वह कोई और होगा "
   वे बोले -- " तुम्हारी माँ  का नाम रामकली ही है ना ,,?? "
  मनीषा चुपचाप नीचे देखने लगी !
  बड़े बाबू के भाई बोले ---" इसका पिता ने दूसरी औरत  रख ली थी  ! ये लोग अहीर नहीं अहिरवार हैं ,,, ,,,,,,बाद में इसकी  माँ  घर छोड़ कर चली आयी थी ,,और रामदीन सट्टेबाज़ी में जेल चला गया था ! - मैं इसे   अच्छी तरह से जानता हूँ ! "
   मुझे भी थोड़ा धक्का सा लगा !
 मैंने मनीषा से कहा ,," तुम इन्हे अपने बारे में  सही सही क्यों नहीं बताती कि ,,तुम कौन  हो "
  मनीषा बोलने में खुद को  अशक्त महसूस करने लगी !
   वह  जैसे  असहाय मृगी की तरह खुद को  चतुर शिकारियों से घिरा पा रही हो  , और उसके बोलने की शक्ति ही  जैसे समाप्त हो गयी हो , उसकी हालत ऐसे ही हो गयी ! !
   वह चुपचाप  उन लोगों को ताकती खड़ी रही !
  बड़े बाबू के भाई बोले --" इसकी माँ  अहिरन  थी  , उसने दूसरे गावं से भाग कर रामदीन के साथ शादी की थी ,,,,, लेकिन जल्दी ही दोनों में लड़ाई  हुई  , और राम कली को  उसने छोड़ दिया ! हम लोग इसकी कहानी जानते हैं ! "
   मैं चुप रह गया !
      पकौड़ियाँ और चाय ठंडी हो चुकी थीं ! बड़े बाबू उठ खड़े हुए ,,साथ में उनके तिलकधारी दोनों भाई भी !
     मैंने कहा --" अरे रुकिए चाय तो पी कर जाइये ,,"
  वे बोले---" माफ़ करें शर्माजी , अब हम कुछ नहीं खाएंगे  ! आप  निम्न जाति  के  लोगों  के हाथों की चाय    हमें पिलवाते हैं ,,और उनके ही हाथ का बना नास्ता भी खिलवा  रहे हैं   !  आप ब्राम्हण हो कर , किचन में इन छोटी जाति  के हाथ का बनाया खाना खा रहे हैं ! यह गलत बात है ! "
  वे उठ कर खड़े हो गए , और हाथ जोड़ते हुए बाहर निकल गए !
  पत्नी भी क्रोध करती हुई बाहर निकल आयी !
   वह  बोली --" मनीषा ,,! तुमने तो खुद को अहीर बताया था ,,फिरयह अहिरवार कैसे हो गयीं ,,"
   मनीषा बुझे मन से बोली ,," आंटी ,,! मेरी माँ  तो अहीर ही है ना ,,?? तो मैंने क्या गलत कहा ,,?? मानती हूँ की मेरे पिता ," अहिरवार " हैं , छोटी जाति  के ,  पर  मेरे पिता ने   तो हमें  कब से   छोड़  दिया है  ! "
   ---" वह तो  ठीक है ,,! लेकिन  जाति  तो पिता की ही मानी जाएगी ना ,,??,,, तुम्हारे जाति  छिपा लेने के कारण ,   आज हमें   उन    लोगों से बातें  सुनने  को मिल गयीं   जो हमें ,,, समाज में बहुत मान  देते हैं !  ! "
 
      मैंने बीच में पड़ते हुए कहा --" कोई बात नहीं मनीषा ,,! हमें फर्क नहीं पड़ता ,,,बहुत होगा तो बड़े बाबू हमारे घर नहीं आएंगे ,,,अब अगर नहीं आते हैं तो ना आएं ,,! "

        लेकिन  मनीषा जब वापिस ट्रे ले कर किचिन की और जाने लगी तो मेरी पत्नी  थोड़े सकुचाते हुई बोली   _ " ---" अब आज रहने दो मनीषा,,! मैं देख लुंगी ,,,तुम घर जाओ ,,,कल आना तब बात करेंगे ,,! "

        मनीषा की आँखें भर आईं ,,, बोली --" मेरी गलती माफ़ करें आंटी ,, मैंने कोई झूठ नहीं बोला , ,,मेरी  माँ  अहीर है ,,तो  मैंने खुद को अहीर कह कर काम शुरू कर दिया !   अब मुझे काम से ना हटाइएगा ,,, यह घर अब मुझे अच्छा लगने लगा है,,, दीदी ,,मुझे पढ़ाती भी हैं ,,और मैं काफी पढ़ चुकी हूँ ! "

       तभी मेरी बेटी भी  कालिज से वापिस आ गयी ! उसने पूछा - क्यों रो रही है मनीषा ? "
     ,,,,   अब   हम क्या बताते ,,!
 
      मनीषा ही बोली ,, " मेरे  कारण आज अंकल को कुछ  बातें सुननी पडी !  सब गलती मेरी है ! "

              मेरी बेटी को जब पूरा प्रकरण पता चला तो वह उलटे हम पर ही बिफर गयी !
            बोली --- " जब मेरी सहेलियां आतीं हैं , तो आप   पूछती  हो वह कौन है ,,? , किस  जाति की है ,,?? ,,आप किस युग में रह रहीं है ,शायद जानती नहीं !,, अब कोई जाति  पाँति  नहीं होती ",,! ,,
  ,,,,उसने मनीषा से मुखातिब हो कर कहा ,," मनीषा ,,!!  तुम कहीं नहीं जाओगी यहीं काम करोगी ,,"


          लेकिन मनीषा ने जैसे कुछ  सुना  ही नहीं !  शायद उसे हृदय में कोई गहरी ठेस लगी थी !  वह  चुपचाप , अपनी आँखें पोंछती हुई बाहर चली गयी !

  दूसरे दिन दफ्तर में जब अपने चैंबर में बैठा ,,,तो मुझे लगा कुछ मौहोल अलग सा है ! बड़े बाबू ने बात चारों और फैला दी थी !
  एक नजदीकी मातहत ने पूछा --" अगर आपको खाना  बनाने वाली कोई बाई चाहिए तो बताइयेगा ,,हमारे यहां एक बूढ़ी ब्राम्हणी है ,,, जो कई घर में  खाना बनाती है  ,, थोड़ा चार्ज  जरूर  ज्यादा है ,,लेकिन मेरे कहने से  कम ले लेगी ! " !
 मैंने उसे धन्यवाद कहा और कहा की,,,फिलहाल मुझे कोई जरुरत नहीं !
  उस शाम घर लौटा तो , पत्नी बोली   कि ,,,,मोहल्ले की कई औरतें पूछ रही थीं ,,मनीषा के बारे में ,,!  वे कह रहीं थी कामवाम तो करवा लीजिये , लेकिन किचन का काम ये लोग करें यह ठीक नहीं ! आप को अगर जरुरत है तो किचन के लिए कोई औरबड़ी  जाति  की औरत रख लीजिये !  लोग अच्छा नहीं मानते ,,,छोटी जाति  के हाथों का ,बना   खाना ,,,,,, खाना ! "
मैंने पूछा --"  मनीषा  आयी थी फिर ,,?? "
 पत्नी ने बताया --" नहीं ,,,! वह भी नहीं आयी ,,! कल मैंने चौके में जाने से रोक दिया था तो शायद वह भी बुरा मान गयी !"
--" चलो ,,! अपने काम अब तुम खुद करो ,,इसी में सार है ,,! " ,,मैंने लम्बी सांस छोड़ी !

समय चक्र आगे बढ़ चला ! जल्दी ही बर्तन आदि के लिए नयी कामवाली  आगयी ,,और चौका पूरी तरह पत्नी के द्वारा संचालित होने लगा !  जिस तरह मनीषा के आने की बात फ़ैली थी , उसी तरह उसके काम छोड़ने की बात फ़ैल गयी और वातावरण जैसे पूर्वतः  शांत हो गया !

    कुछ दिन बाद ही बड़े   बाबू  के घर में , उनके पुत्र के जन्म दिन की पार्टी का आयोजन हुआ !  बड़े बाबू को लोगों ने कहा की इस समारोह में,,,बड़े साहब " शिवांग " सर को भी बुलाया जाए ! बड़े बाबू  भी शायद मन से ऐसा ही चाहते थे तो मुझ से बोले --" सर ,,! आप चलिए ,,आपके साथ जा कर में शिवांग साहब को पार्टी में आने का आमंत्रण देना चाहता हूँ !  आप रहेंगे तो वे आ जाएंगे ! " "
  मैंने बात मान ली और हम लोग दो चार स्टाफ के साथ , बड़े बाबू , शिवांग साहब के घर पहुंचे !  वे अंदर थे !
   , तभी , हमारे ही आफिस का एक चपरासी , जो निम्न   जाति  का था , कुछ नास्ता और पानी के गिलास टेबिल पर रख गया !  बड़े बाबू चुपचाप बड़े साहब के बाहर आने की बाट  ,जोहने लगे  !
 बड़े साहब ने बाहर आ कर   देखा और बोले ,---," अरे ,,!  नास्ता तो ज्यूँ का  त्यूं रखा है ,,,पहले नास्ता लीजिये ,,,! "
 मैंने बड़े बाबू की और देखा ,,,लेकिन उसके पहले ही वह हाथ बढ़ा कर , बड़े  साहब के घर की किचन की  बनी पकौड़ी हाथ में ले कर , मुंह में रख चुके थे ! साथ आये  सभी  लोग  सर झुका कर नास्ता करने में लग गए ! सबने नास्ता ले कर ,,इत्मीनान से पानी पीया !  तभी बड़े साहब ने मुझ से पूछा--" आज कैसे इतने लोगों को ले कर आना हुआ शर्माजी ,,? "
 बड़े बाबू ने हाथ जोड़ते हुए कहा --" सर आज हमारे घर में मेरे पुत्र की जन्म दिन पार्टी है ,,आप सपरिवार आएं ,,यही निवेदन ले कर हम आये हैं ! "
  बड़े साहब ने थोड़ी उपेक्षा के साथ उन्हें देखा और फिर मुझे देखते हुए बोले --" आज तो बाहर का टूर है ,, मुश्किल है ,,शायद लौट ना पाऊं ,,"
 बड़े बाबू  आग्रह के साथ जोर डालते हुए बोले ,," नहीं सर !,,आप को तो आना ही पडेगा ,,आपके बिना पार्टी सूनी हो जाएगी ,,! ,,,अगर आप देर से आएंगे तो भी हम इंतज़ार कर लेंगे ,, लेकिन आप आएं जरूर ,,! "
   " देखता हूँ। .. पूरी  कोशिश करूंगा ,,,! "---- कह कर बड़े साहब उठ खड़े हुए !
   हम लोग बाहर निकल आये !  मैंने बड़े बाबू की और थोड़ी रुक्षता के साथ निहारा ,,,वे शायद समझ गए ,,लेकिन बोले कुछ नहीं !
 शाम पार्टी हुई तो दफ्तरों के सारा स्टाफ बड़े बाबू के घर इकट्ठा हुआ !  बड़े बाबू के सभी रिश्तेदारों के साथ , उनके दोनों भाई भी कार्यक्रम में डोलते नज़र आये !
 देर रात तक बड़े साहब भी आ गए !  बड़े बाबू ने अपने हाथों से प्लेट सजा कर उन्हें दी , और जैसे हर कौर को ताकते हुए धन्य होते रहे !  उनके पंडित भाई दौड़ कर पानी के गिलास ले आये , और आगे बढ़ कर उन्हें पानी प्रस्तुत किया ! पानी पी कर वापिस गिलास करते हुए , बड़े साहब के हाथों से वह गिलास भी बड़े बाबू के भाइयों ने बिना किसी हिचक के थामा !
   मुझे बड़ी वितृष्णा हुई !  मैंने एकांत होते ही बड़े बाबू  और उनके भाइयों से पूछा --" आप को मालूम  है  वे कौन हैं ,,"
   वे हंसने लगे ! बोले---"  जानते हैं  भैया के सबसे बड़े साहब हैं ,", !
  मैंने पूछा ,,और उनकी   जाति  मालूम  है ? "
   वे खिसयाते हुए बोले। ---" जानते हैं ,,,वे एस  सी  हैं ,,निम्न जाति वाले ! "
  --" फिर आपने आज उनके घर ना सिर्फ पकौड़ी खा ली , बल्कि उनके घर, उस चपरासी के हाथ का लाया पानी भी   पिया , जिसे आप वर्षों से जानते हैं की वह निम्न जाति  का है  ! ,,,,,, क्या तब आपका  'जातिबोध  '  नहीं  जागा  ,,??   जिस चपरासी के आपके घर आने पर , चाय पीने पर,  आप उसे अपने घर के  कप भी धुलवा लेते हो , उसी जाति  के अफसर के हाथ का झूठा गिलास आपने खुद आगे बढ़ कर थाम लिया ,,?? आपने तब जरुरत नहीं समझी की  वह  निम्न जाति का होने के कारण ,  गिलास धो कर वापिस करे ,,??

बड़े बाबू दबी आवाज़ में बोले --" आपत्तिकाल ,,मर्यादानास्ति " ,!
  उनके भाई भी कुटिलता से हो हो करके हंस दिए !
 
    कौन सी " आपत्ति " ,,,??   कैसी मर्यादा ,,?? ,,,,मेरे मुंह का स्वाद कसैला हो गया ! मैंने नास्ता नहीं किया !     ,,,चुपचाप वहां से बिना बताये  लौट आया !

   बहुत दिनों तक मैं ,,,मनीषा को ढूंढता रहा ,,,लेकिन वह नहीं दिखी !

   लेकिन एक दिन वह नर्मदा  घाट  पर दिख गयी ! मुझे देखते ही  उसके मुँह पर आत्मीय मुस्कान बिखर गयी ! दोनों हाथ जोड़ कर उसने नमस्ते की ,,तो मैंने पूछ लिया--

   --" कहाँ चली गयीं थी मनीषा ,,??   उस दिन गयीं तो लौट कर वापिस ही नहीं आईं ,,??
     वह गंभीर हो कर बोली --"  जब आंटी ने किचन में जाने को मना किया तो मैं उनकी मजबूरी समझ गयी  ,,,!   आप अच्छे हैं यह बात सही है , लेकिन आपके अच्छे होने से क्या होगा ,,?? दूसरे लोग आपको बुरा भला कहते , व्यवहार तोड़ देते ,,तो मुझे अच्छा नहीं लगता ! इसलिए मैं खुद जान बूझ  कर  वापिस नहीं गयी "

   मैं खामोश रह गया ! फिर रुक कर पूछा --" अभी भी कहीं काम करती हो या नहीं ,,? "
   -  " क्यों नहीं ,,," ,,वह चहक कर बोली ,," अब मैं एक क्रिश्चियन साहब के घर में काम करती हूँ ,, इरिगेशन में इंजीनियर साहब हैं ! ,,वहां कोई  दिक़्क़त  नहीं ,,पूरा किचन मैं ही सम्हालती हूँ ,,मेडम  बीमार रहती  हैं ,, वे खुश रहती हैं ! "
    मैं स्तब्ध सा देखता रह गया !  फिर पूछा --" ,,,,, कहीं वे लोग क्रिश्चियन बनने को  तो  नहीं कहते ,,? "
  मनीषा  खिलखिला कर  बोली --" मैं क्यों बनूं  क्रिश्चियन ?? ,,,मैं तो अहीर हूँ ,,, अपनी  माँ  की बेटी ,,वही रहूंगी  "  !
         वह नमस्ते कह कर चली गयी
     ,,और मैं नर्मदा की शांत बहती धारा को ताकते रह गया !  मन में उठ रही अशांत तरंगों को शांत करने की कोशिश  करते हुए मुझे लगा कि मैं नर्मदा से पूछूं --
       " किस जात की हो  मां ,,तुम ,,?? "



----सभाजीत 

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

   हिन्दू ,,,
हम सबके एक सर्वमान्य देव ,,," शिव " 

वोट के लिये निरंतर बंटते  हिन्दू समाज को एक अहम् जरुरत है , ऐसे बंधन की , जो उन्हें एक एक सूत्र में पिरो सके !  अलग अलग समुदायों के अलग अलग भगवानो ने , उन्हें पहले ही , एक दूसरे से अलग थलग कर रखा है ! हर समाज अपने अपने भगवान् की जयन्ती , चल समारोह आयोजित कर अपने ढंग से मनाता है , किन्तु वे समारोह सर्वथा , एक विलग भावना को ही जन्म देते हैं ! 
  वर्षों पूर्व , अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए , सबसे पहले , लोकमान्य  तिलक  ने ,  एक ऐसे धार्मिक बंधन की महाराष्ट्र में कल्पना की , जो सर्वमान्य हो , और आस्था से सभी महाराष्ट्र वासियों को एक सूत्र में पिरो सकें ,,! इसी भावना के तहत , गणेश उत्सव में ,  सम्पूर्ण महाराष्ट्र में , घर घर एक गणेश की मूर्ति स्थापित करने का आह्वान किया गया  , और पूरा महाराष्ट्र एक सूत्र में " गणेश मय  " हो गया ! समाज एक ईश्वर की छवि को ले कर चेतन हो गया , ! इस उत्सव को ले कर हर घर एक दूसरे से जुड़ गया , ,,,,एक आस्था , एक रूप , एक चेतना !
    आज फिर लोकमान्य तिलक की तरह , अथवा , आदि शंकराचार्य की तरह , एक आह्वान की सख्त जरुरत है , कि ,,, साकार , अथवा निराकार,  दोनों स्वरूपों में  विद्व्मान  , एक ईश्वरीय छवि को हिन्दू समाज अपने मन में धारण करे !, वह छवि  समानरुप से हर घर पूजी जाए , जिस की पूजा अर्चना में , कर्मकांड , और सनातनी  गूढ़ पद्धतियों का समावेश ना हो !और जिसकी पूजा हर व्यक्ति के लिए सहज हो ! 
   सुखद यह है की ऐसे ईश्वर की छवि हिन्दू समाज में पूर्व से ही सर्वत्र व्याप्त है ,,और वह है ,,," शिव " ,,! 
      आदि  देवों  में विष्णु के मंदिर बहुत कम  मिलेंगे , , ब्रम्हा की पूजा पूरी  तरह वर्जित है , जबकि शिव सर्वत्र व्याप्त हैं !  वे प्रकृति के देव हैं , प्राकृतिक स्थान ,," पर्वत " उनके निवास का चिन्ह है ,  वे भोग विलास से दूर , आडमबर से मुक्त हैं ! सर पर , मनुष्य का जीवन आधार  ,," जल " ,, अपने साथ लिए ,  गंगा उनकी जटाओं में विराजमान है !  अपनी कलाओं से मन मोहता , समय की  गणनाओं का प्राकृतिक माध्यम , चंद्र भी उनके माथे पर सोहता है ,,! ललाट पर , भविष्य को देखने में सक्षम , और हर पाप को भस्म करने वाला एक , तीसरा न्रेत्र  भी उपस्थित है, जो आवश्यकता अनुसार खुलता भी है ! कानो में , वे जीव जंतु , जो प्रकृति को संतुलित करने के माध्यम हैं , और जिनमे , किसी भी रोग को नष्ट करने का विष , एक दवा के रूप में विदवमान है ,,,," बिच्छु "  के आभूषण के रूप में , कुण्डल की तरह विदवमान हैं!  !  गले में वह "  हलाहल  " , स्थिर हो कर अवरुद्ध है , जो क्षण मात्र में सारी श्रष्टि को समाप्त कर सकता है ,   और जो मृत्यु का कारक है !,,, किन्तु मानो वह उनके कंठ के कारागार में सदा के लिए कैद है !  कंठ में प्रकृति के विषधारी , वे विषधर भी , हार बन कर पड़े हैं ,  जिनके विष का तोड़ मनुष्य अभी तक नहीं पैदा कर पाया है !  गले में ही , मुंडों  की वह माला है , जो सदा याद दिलाती है की जीवन नश्वर है , और अंत में वही  व्यक्ति की आधारभूत पहचान है ,  !  शरीर पर वह भस्म है , जो  पाँच तत्वों का , मृत्यु के बाद एकसार बन कर  श्मशान में धरती पर शेष रह जाती है ,  बाजुओं में प्रकृति प्रदत्त , वे फल हैं , जो बाजूबंद के रूप में , एक मुखी रुद्राक्षों के रूप में , बंधे हुए हैं ,  वे किसी को रिझाने , आकर्षित करने के लिए , कोई रंगीन तड़क भड़क वाले वस्त्र नहीं पहनते , बल्कि , मरे हुए बाघ की खाल को वस्त्र की तरह धारण करते हैं , जो दर्शाती है , की प्रकृति के पशु भी , अपनी स्वाभाविक मृत्यु के पश्चात , अपनी खाल के रूप में किसी मनुष्य के काम आ सकते हैं ! पैरों में वे ' खड़ाऊं ' पहनते हैं , जो सूखे हुए बृक्ष की , उस लकड़ी के बने हुए हैं , जो अपनी उम्र जी कर समाप्त हो चुका है !

       शिव गृहस्थ हैं , एक पत्नी धारी हैं , और उनके दो  पुत्रों  का  परिवार है !  पुत्रों में जिस ' गणेश ' को प्रथम पूज्य माना गया है , उनका स्वरूप भी प्राकृतिक है ! उनका मुख , सबसे बुद्धिमान , जीव , हाथी का है , और शेष शरीर , इस दुनिया में उपस्थित मानव का ! शिव का वाहन भी प्राकृतिक है ,," बैल " का ,,,जो शक्ति का प्रतीक है ,,और जिसे बाद में मनुष्य ने भी अपने जीवन के आधार कृषिकार्य में भी उपयोग किया है ! 

   शिव के पास जो वाद्य यंत्र है ,," डमरू " ,,,,,वह ,' नाद ' , और ' लय ' , दोनों को एक साथ  उत्पन्न करती है !  वह नृत्य की उमंग देती है , और स्वर का आनंद भी ! उनके पास जो अस्त्र है  वह " त्रिशूल " है , जो  शस्त्र  की तरह भी उपयोग में आता है , और " अस्त्र " की तरह भी ! वह रक्षात्मक भी है , और आक्रामक भी !

   शिव का स्वरूप निराकार भी है , !  प्रकृति के हर स्थान पर उपलब्ध , पत्थर के एक गोल  टुकड़े को , आप शिव स्वरूप में , आसानी से पूज सकते हैं !  पूजा में ना तो कोई कर्मकांड है , ना पद्धति , !  सर्वत्र उपलब्ध " जल " को आप उन पर उड़ेल दीजिये ,  प्राकृतिक बेल पत्र को उन पर रख दीजिये !  हो गयी पूजा ! 

   शिव का यह स्वरूप , आदिकाल से ले कर अब तक ,  हिन्दू धर्म के जनक , आर्यों और अनार्यों को एक  मतेन  स्वीकार था !  , अनार्यों  ने उन्हें उसी सम्मान के साथ पूजा , जिस सम्मान के साथ  आर्यों  ने !  शिव ने किसी भी वर्ग , जाती में कोई भेद नहीं किया ! उन्होंने प्रसन्न हो कर , सरल और सहज रूप में हर व्यक्ति की  आकांक्षा  पूर्ण की !  यहां तक की उसे भी वरदान दे दिया , जो उन्हें ही भस्म करने उनके पीछे दौड़ गया !

  तो जरुरत है , की आदिदेव " शिव " को सम्पूर्ण हिन्दू समाज आज  प्रमुख रूप से अपना पूजनीय इष्ट माने ! शिव के पास , ना भव्य मकान है , ना  भव्य गृहस्थी , ना दिखावा , ना गरीबी अमीरी का कोई भेद ! उनकी पत्नी , एक राजा की पुत्री है ,," पार्वती " ,,,,!,,,लेकिन वह शिव के साथ उसी हिमालय पर , उन्ही की जीवन पद्धति में रहती है , जिसमे शिव रहते हैं ! वे शाकाहारी हैं , प्राकृतिक फलों पर जीवन यापन करते हैं ! वे दो स्वरूपों में रह कर भी एकाकार हैं ,,," अर्धनारीश्वर " के रूप में !  वे नृत्य और संगीत पारंगत हैं , और समस्त जीवों के प्रति सहज दयालु हैं !

  हिन्दू एक जीवन पद्धति है ! आज का हिन्दू " आर्यों " और अनार्यों " की सम्मलित संतान  है !भले ही सामाजिक कारणों से हम आज कई वर्गों में  बँट  गए हों , या राजनैतिक धूर्तता  के षडयंत्र से अलग थलग किये जाने के कुचक्र में फंस गए हों , किन्तु यह सच यह है , हमारा  ईश्वर का सर्वमान्य रूप एक ही है ,,और वह है ,," शिव " !  जरुरत है कि  शिव के इस स्वरूप को हम घर घर में प्रतिस्थापित करें ,   जो मात्र एक पत्थर के गोल टुकड़े के स्वरूप में सहज ही उपलब्ध हैं , और जिन की पूजा अर्चना में किसी तरह की पद्धति , वस्तु  , या धन की जरुरत नहीं है ! शिव हमारे आदिदेव हैं ,,,जो चाहे दलित वर्ग हो या  धनाड्य , सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले सहज देव हैं ! 


,,,,,सभाजीत