शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

ravan ka chehara

                          


      
 ;मैदान मे भीड़ भाड़ से थोड़ा हटकर ,रावण अपने ही पुतला दहन को देखने खड़ा हो गया ! चारों और गूँजती फिल्मी गीतों की धुनें माहौल के शोर शराबे को चरम सीमा तक बढ़ने मे मदद कर रही थी .! बीचबीच मे घूमते हुए गुब्बारे वाले जब बच्चो को आकर्षित करने के लिए गुब्बारो पर हाथ रगड़ते ,तो गुब्बारो की त्वचा चीत्कार करने लगती,जिससे शोर मे अजीब सी तीव्रता बढ़ जाती !

--; उदास है क्या भैया ?"

- अचानक पीछे से किसी की आवाज़ आई ! ;

रावण ने चौंक कर कर पीछे मुड कर देखा, तो 'कुम्भकरण ' को खड़ा पाया ! ;

;हज़ारो साल बीत गये ! कुम्भकरण हालाकि शरीर विहीन हो चुका था फिर भी उसकी आत्मा का आकर वैसा ही था,-उसके पुराने शरीर के अनुरूप !  चौड़ी बेडौल काया , आगे बढ़ी हुई बेतरतीब तोंद-- और मोटे मोटे हाथ पैर !

--"; नही कुम्भकरण ! , उदास तो नही थोड़ा चिंतित ज़रूर हू ";
रावण ने कुंभकरण के कंधे का थोड़ा सहारा लेते हुए कहा

--" क्यों भैया ? इस साल तो लाईटिंग पिछ्ले साल से भी ज़्यादा है , और मैदान भी खूब सज़ा है; "

-" वह तो ठीक है , लेकिन लोग हमारा मृत्यु दिवस थोड़ा कंजूसी से मनाने लगे है ; अब देखो ना , हर साल हमारे पुतले , पतले होते जा रहे है ! कारीगर मेटीरियल कम लगता है ,पर बिल पहले से ज़्यादा लेता है !"

--" ठीक कह रहे है भैया ! दशहरा कमेटी भी इस काम मे शायद ज़्यादा कमीशन खाने लगी है !- लकिन, यही तो हम चाहते थे ना भैया... धीरे धीरे ही सही ,   हो तो हमारे मन की रही है ना भैया !"

--"हाँ ....राक्षस संस्कृति का विकास देख कर तो में भी बहुत खुश हूँ ! पहले तो हम लंका तक ही सीमित थे , पर अब तो दुनिया मे हम ही हम है ! यह हमारे लिए गर्व की बात है; !"

-" भैया !! मुझे भूख लगी है ! इस मैदान मे बहुत आदमी है , ! आज्ञा हो तो दस बीस का 'डिनर' कर आऊं  !"

       ....कुंभकरण ने ललचाई नज़रों से भीड़ को देखा जो पुलिस के धक्के खा कर इधर उधर हो रही थी !

--" तुम्हारे पास पहले जैसा शरीर नही बचा है , सिर्फ़ बचा है तो आत्मा का आकार ...!...भला खाओगे कैसे ? "

--" नही भैया ; .....भले ही मेरे पास पचाने के लिए पहले जैसा उदर नही बचा , लकिन भूख तो वैसी ही बची है, वह तो मिटती ही नही है;! "

कुंभकरण ने सफाई दी !

; तभी दूर लंबे लंबे डॅग भरते हुए कोई आता हुआ दिखा !दोनों ने ध्यान से देखा -मेघनाथ, इंद्रजीत ( रावण का पुत्र ) पास आ चुका था !

उसने आते ही रावण और कुंभकरण के पैर छुए ! और फिर कुंभकरण की ओर मुखातिब होकर बोला !

--"; कहाँ गुम हो जाते हो चाचा ? में आपको ढूँढते ढूँढते थक गया! "

--" ; में तो भैया को अकेले देख इन्हें ' कंपनी ' देने चला आया ! लेकिन तुम क्या कर रहे थे वहाँ ? भीड़ में ? ";

--" मुझे भीड़ मे हमारा पुराना दुश्मन " विभीषण " मिल गया था ! वह राम का पिछलग्गू बना उनके पीछे सपाटे से जा रहा था..! एक बार तो मेने उसे लंगड़ी फसाई और वह गिर पड़ा , लकिन फिर मुझे सामने देख कर उठकर फुर्ती से भागा !;

--" तुमने उसे दबोच क्यो नही ळिया ?; "

;कुंभकरण के नथुने  फड़क  उठे !;

_ "मे अकेला था ! उसके साथ उसका पूरा विभीषण समाज था !फिर आजकल राम ने उसे वानर कमांडो दे रख्खे है , जो फ़ौरन उसको घेर लेते हैं !- चाचा अगर आप होते तो एक ही मुट्ठी मे उसे दबोच लेते !"

--" ; जाने दो ! जब हमने उसे तब छोड़ दिया तो अब दबोचने से क्या !! "

रावण ने दोनो को शांत करते हुए कहा !

- " पिता श्री" ! लकिन बदला तो हमे लेना ही है ना; ! "

--" ;बदला ? किससे ? उससे ? जिसने हमारी मददकी ?"--- रावण हंसा ;;

--"हमारी मदद की ? यह क्या कह रहे है पिता श्री ?- वह तो गद्दार था , उसकी वजह से ही तो हम पराजित हो कर मर गये !"

--";मर् गये ? ..क्या हम मर् गये पुत्र ? क्या सचमुच हम पराजित हो गए ? नही पुत्र नही , बिल्कुल नही !"

-रावण फिर हंसा !

--";ठीक है पिता श्री कि हम नही मरे ! पर विभीषण ने तो हमे मरवाया ही ! उसने हमारे साथ गद्दारी तो की ही ! "

--";नही बेटा , उसने तो वही किया जो मैं चाहता था  ! "- रावण इस बार रहस्यमय ढंग से मुस्काराया ;

--" आप ..? आप क्या चाहते थे भा ई ईयी.?"

- कुंभकरण ने इस बार भाई शब्द का उच्चारण ' दीवार फिल्म के अभिनेता शशि कपूर की तरह किया ! ;

--" ;हम चाहते थे की वह ज़िंदा रहे ! हम चाहते थे की वह शत्रु का मित्र बने !हम चाहते थे की "  विभीषण -संस्कृति " पूरे आर्य समाज मे फैल जाए ! और फिर वैसा ही हुआ जैसा मे चाहता था !"- रावण के मूह पर कुटिल मुस्कान फैल गई! उसके स्वर्ण कुंडल दमकने लगे

- आज भारत में हर एक भाई , दुसरे भाई के लिए विभीषण बना हुआ है , जैसे विभीषण ने लंका  अपने शत्रु के हाथ बेच दी थी , आज हर दूसरा व्यक्ति विभीषण की तरह अपना देश को   बेचने को तैयार है ! मज़े की बात है विभीषण होकर भी वह संत  और ' भक्त ' की श्रेणी में पूज्यनीय है !  देश द्रोही विभीषण संस्कृति आज  राम के देश में  पूरी तरह जडें   जमा चुकी है , क्या यह हमारी विजय नहीं है ??

इंद्रजीत और कुंभकरण स्तब्ध होकर उसे देखने लगे !;

--" मे ऋषि विश्ववा का पुत्र !! , राजनीति का प्रकांड विद्वान रावण ,!! क्या मूर्ख था जो मेने उसे लात मारी ? नही पुत्र नही ! विभीषण लात मारने और  हमेशा  त्याग देने लायक ही था ! मे  तो उसे बहुत पहले ही अपने राक्षस समाज से हटाना चाहता था , लकिन तब  क्या करता ? इसीलिए मौका देखते ही मेने उसे ' कट' करके वहाँ 'पेस्ट ' कर दिया , जहा उसकी सही जगह थी ! समझे पुत्र ? ";

दोनो ने हामी भरते हुए सिर हिलाया ! रावण का यह स्वरूप उन्होने पहले कभी नही देखा था; !

--" महराज " !! -----कुंभकरण रावण के इस स्वरूप से स्तब्ध होकर , संबोधन बदलते हुए बोला ; --"फिर भी इतिहास मे उसने हमे तिरिस्कार के योग्य, एक पराजित क़ौम बना दिया ;क्या यह सही हुआ ?""

--"; हाँ पिता श्री !! अब देखिए ,हर साल जनता हमे फूँक कर ताप लेती है , हमारा सरे आम अपमान करती है!---; इंद्रजीत क्षुब्द होते हुए बोला ! ;

--" कौन जनता " ? ......यही लोग ना ? जो इस उत्सव को धूमधाम से मना रहे है ? क्या यह वाकई "जनता " है ?.....नही पुत्र नही !अगर ऐसाही होता तो आज हमारे पुतले हर क़ौम द्वारा, दुनिया के हर कोने मे जलाए जा रहे होते !लेकिन ऐसा नही है! जानते हो क्यो नही है ?;

--" ;एसा क्यो नही है पिता श्री ?"

--"; क्यांकी यह सिर्फ़  मन  समझाने के लिए है कि चलो रावण मर गया ! जबकि  सब  जानते है कि रावण नही मरा ! रावन कभी मर ही नहीं सकता !  हर साल रावण को मारने  के बाद भी वो उसे कभी मार  ही नही पाए !  आज भी  चारों ओर रावण ही रावण है !यहा तक कि  लोगों के  अंदर भी रावण है,! वो खुद भी रावण है ! समझे ?" ; -
रावण ने अट्टहास किया !

; तभी शोर बढ़ गया !किसी विशिष्ट  अतिथि का आगमन हो चुका था ! जिसके इंतज़ार मे उत्सव मे विलंब हो रहा था ! सफेद एम्बेसडर कार मे लाल बत्ती चमकती हुई मैदान मे आई ! उसके आगे - पीछे सायरन बजाते हुए पुलिस कि गाड़ी मैदान मे घुसी !;......,

-" ; ये रथ किस तरह कि आवाज़ करते है पिता श्री ?- जैसे सियार बोल रहे हों !"

--" ; ये 'पुलिस सायरन ' है ! इससे लोग रास्ता छोड़ देते है !"

रावण ने खुलासा किया !

राम और लक्ष्मण के स्वरूपों के साथ विशिष्ट अतिथि आगे बढ़ने लगे ! मैदान मे नारे लगने लगे ! राम और लक्ष्मण के स्वरूपों ने तीर कमान सम्हाल लिए !

--" ; देखो-देखो ! वह विभीषण उंगली से उन्हे बता रहा है ! हमारे पुतलों कि ओर इशारा कर् रहा है "

रावण हंसा--";क्या वो हमारे पुतले है??" -- ;  -" क्या ;कोई जानता भी है हमारे चेहरे कैसे थे ?" ;

-" ;भैया आप ठीक कह रहे है ! देखिए मेरे पुतले कि गुल्मुछ्छ उस हवालदार से मिलती है जो डंडा घुमा रहा है ! "

--"हाँ चाचा !- और मेरी पतली मूँछ उस आदमी से मिल रही है जो उस विशिस्ट अतिथि के साथ साथ दाहिनी ओर चल रहा है ! 

....और हाँ पिता श्री !! ..-आपकी मूँछ !! अरे नही आपका तो  पूरा चेहरा ही  अभी कार् से उतरे उस विशिस्ट अतिथि से मिल रहा है जो राम और लक्ष्मण के साथ आगे बढ़ रहा है !" ;

--" ;बिल्कुल ठीक !!अब ध्यान से देखो , मेरे पुतले के दोनो ओर लगे दस मुंह  भी क्या विशिस्ट अतिथि को घेर कर चल रहे उन  दस लोगों से नहीं मिल रहे हैं जो नारे लगा रहे है ?" ;

--" ;ठीक कह रहे है पिता श्री ! बिल्कुल ठीक ; ! लेकिन  यह कैसे हो गया ? यह तो आश्चर्य है !!"

; रावण हंसा - ; ""यही तो मज़ा है , यही तो राज़ है ! ";

--" ; राज़ क्या है पिता श्री ? कहीं कारीगर तो बदमाशी नही कर गया ; उसीने तो जानबूझ कर वैसे चेहरे नही बना दिए ?" ;

--" ; कारीगर बेचारा मज़दूर आदमी है ,वह क्या बदमाशी करेगा ? और जब वह चेहरे लगा रहा था तो में भी वहीं खड़ा था - उसके नज़दीक !" ;

--" ; तो फिर पिता श्री ?" ;

--" ; उसने कई चेहरे बनाए और फिर बिगाड़े और फिर फिर बनाए , लकिन इन चेहरों के अलवा कोई और चेहरा बना  ही नही पा रहा था वह ... !";

_ "लकिन ऐसा कैसे  हुआ पिता श्री ?" ;

" --' विधाता' कि करतूत !! - रावण हंसा ; "कारीगर रोज़,   दिन रात अख़बारों , पोस्टरों , चौराहों, टीवी मे इन्ही चेहरो को देखता है ! उसके दिमाग मे यही चेहरे रच बस गये है , तो फिर वह और क्या बनाएगा ?  उसके लिए तो  यही सब चहरे  ' रावण  ' हैं !" ;

तभी मैदान मे आतिशबाज़ी जगमगा उठी !आकाश चमक से भरने लगा ;

--" ;लीजिए !! वह छूट गया तीर! अब पुतले आग पकड़ने लगे !"- इंद्रजीत ने उन्सांस भर कर कहा !

   " हमारे नहीं ..! खुद उनके पुतले -  " रावन हंसा !

__" ; हाँ चलो हो गया  पुतलों का दहन ! लकिन हमारे चेहरे अभी भी सुरक्षित है ! कोई हमारे असली चेहरे जान ही नही पाया , तो भला हमे क्या मारेगा; ?" - -रावण ने गंभीरता से कहा ! ;

अचानक भीड़ मे शोर शोर मच गया ! रावण , कुंभकरण और मेघनाथ धीरे से भीड़ मे घुलकर विलीन हो गए !


----सभाजीत शर्मा 'सौरभ'

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

gaandhi

एक दिन के जलसों में , अब सिमिट कर रह गए गाँधी ॥,
औपचारिक लेखों के , हो गए है विषय गाँधी ॥!!

राजनेतिक  फकीरी , ' झंडे' बनी   दरगाहों की ,
रस्मे सालाना उर्स की  ' कव्वाली '  बन गए गाँधी ॥

राम् धुन खादी और चरखा , चला कर रुखसत करें ,
एक दिन के सरकारी मेहमान हो गए गाँधी ॥

साल कुछ ही बीते है , उस शख्श को बिछुडे हुए ,
पाठ्य पुस्तक के किताबी ज्ञान हो गए गाँधी ॥

शाहरुख़, सलमान, आमिर ,विपाशा चर्चा में है ,
पीढियों के लिए तो अनजान हो गए गाँधी ॥

आचरण दूषित , पढाएं 'मुन्ना भाई गांधीगिरी ,
बाक्स ऑफिस के उछल कर हो गए प्रतिमान गाँधी ॥

हुकूमत से लड़े  जो निर्बल की खातिर उम्र भर ,
खानदानी हुकूमत के ही , हो गए पहचान गाँधी ॥

 कुर्सियों पर जमने खातिर, बटोरती  जनता के वोट ,
राजनेतिक पार्टियों के बन गए है ब्रांड गाँधी ॥
......,
 तब वो गाँधी कौन था , जिसको की हमने ' बापू' कहा ?
कौन था वह शख्श , जो आदर्श बन दिल में रहा ?
कौन थी वह शख्शियत जिस पर विदेशी मुग्ध है ??
अहिसा का पुजारी वो कौन गौतम बुद्ध है ??

किसके अनुयायी अभी है , चीन तिब्बत जापान में ,
कौन वह जिसके की आगे सर झुके सम्मान में ??
कौन वो ओबामा का इष्ट ? कौन लूथर किंग है ? ,
कौन है वह गाँधी जिस से , बेन किंग्सले दंग है ??

कौन वह शान्ति का पुजारी , कौन जन मन शक्ति है ?
कौन सिद्धांतों का महात्मा , कौन सत्ता विरक्त है ??
कौन है ख़ुद आचरण और कौन ख़ुद विचार है ,
कौन है वह सनातन जो हर जगह पर व्याप्त है ??


मिटटी कीचड़ से सना गाँधी , एक दिन फ़िर आएगा ,
आडम्बरी जन प्रतिनिधियों , तब तुम्हे न कोई बचायेगा ॥

.....सभाजीत  

सोमवार, 17 सितंबर 2012

raamleelaa

( नेपथ्य  गीत ...,)

" रघुपति राघव राजा राम ,,
पतिति पावन  सीता राम "

            ---आजादी के कर्णधार , देश के परम प्रिय , रास्ट्रपिता , महात्मा  गांधी ने , जब यह भजन गाया था , तब देश अंग्रेजों की गुलामी के १५० वर्ष भोग चुका था ! १८५७ की भग्न क्रान्ति , देशवासियों को असफलता के गहरे दंश दे गयी थी ! आम भारतीय , राजे रजवाड़े , अंग्रेजों के दमन चक्र से आक्रांत हो चुके थे और तब हर भारतीय के मन  में जो आशा और आदर्श की एकमात्र  लो  टिमटिमा रही  थी - वह थे - " राम " ! वे राम जिन्होंने हर विपरीत स्थिति का सामना द्रढ़ता से किया , जिन्होंने मानव जीवन के  विविध संबंधों को नए आयाम दिए ,  वे राम जिन्होंने हाथ उठा कर प्रतिज्ञा की की वे हर हाल में , उन असुरों का बध करेंगे , जो मानव संस्कृति के दुश्मन  हैं !
                   इश्वर के न्याय में आस्था रखने वाला , भारतीय समाज , देश के कोने कोने ,   हर कसबे , , हर गाँव , ,  में  राम की उस मूर्ति को तलाशने लगा , जिसने एक ऐसे आदर्श राज्य के स्वरुप को , भारतीय जनमानस में स्थापित किया था , जहां ना कोई दरिद्र था , ना रोगी , ना अधर्मी , और ना  किसी के द्वारा प्रताड़ित - किसी विपदा का शिकार ! ' देहिक देविक भोतिक तापा - राम राज्य काहू नहीं व्यापा ..., की कल्पना को साकार करने के लिए , लोगों ने  गोस्वामी तुलसी दास जी के ग्रन्थ - रामचरित मानस को अपना मुख्य ग्रन्थ मान कर , घर - घर में स्थापित किया  और राम से  करवद्ध यह प्रार्थना की की वे स्वयं उनके  के बीच आ कर  , भारतीय गृहस्थों , परिवारों , ग्रामों -  नगरों , में बसे   समाज को प्रेम और कर्तव्य भावना से ओतप्रोत करके , एक संस्कारित समाज की स्थापना करदें  , जिससे भारतीय समाज एक जुट होकर आसुरी प्रवत्तियों , संस्कारों से लोहा ले सकें  !
.

                सदियाँ गवाह रही है की , कोई भी विदेशी आक्रान्ता , भारतीय समाज की सहिष्णुता , सत्य प्रेम  , भाईचारे , और संतोषी जीवन शेली के गुणों के आगे , अपनी विदेशी संस्कृति के बीज रोपने में , आसानी से सफल नहीं हो सका  ! ऐसी स्थिति में , चतुर अंगरेजी कोम  ने १८ वीं सदी में , अंगरेजी संस्कृति को शिक्षा के माध्यम से  , भारतीय लोगों के दैनिक जीवन  में उतारने  का प्रयत्न शुरू किया , ताकि वे निर्बाध ब्रिटिश शाशन के लिए , ऐसा भारतीय समाज तैयार कर सकें , जिसमें अंगरेजी भाषा प्रेम  , अंगरेजी  संस्कृति के हिमायती , अंगरेजी रंग में रंगे , भारतीय समुदाय पैदा हो सकें , और जो भारतीयों को  पश्चिमी सभ्यता का दास बनाने में उन्हें सहायता कर सकें  ! अंग्रेजों की यह नीति काम कर गयी ..., और आधुनिकता के नाम पर , तेजी से भारतीय युवा , आंग्ल परिधान , आंग्ल खान पान , और आंग्ल विचारधारा  की और आकर्षित होने लगे !

                १८ वीं  और १९ वीं सदी के संधिकाल का  युग ऐसा ही युग था जिसमें भारत का  धनाड्य युवा वर्ग  , राजा रजवाड़ों की नयी पीढी , शिक्षा के नाम पर , विदेशी पढ़ाई करके , देश में एक नई विदेशी संस्कृति के बीज  बो रही थी , जिसमें अंगरेजी रीतियाँ , अंगरेजी खानपान , अंगरेजी संस्कृति का अनुसरण करना  गर्व का विषय हो गया था ! अंग्रजों ने इस नई देशी विलायती कोम के लोगों को , अपने शाशन में बड़े बड़े ओहदे देने शुरू किये , उन्हें पदवियां और रुतबे  बांटे , ताकि  अधिक से अधिक भारतीय , इस चकाचोंध से प्रभावित होकर , भारत में विदेशी संस्कृति के पुरोधा बन जाएँ !

                लेकिन दूसरी और , इस योजना को भांप कर , भारतीय जन मानस भी अपनी संस्कृति के रक्षार्थ सतर्क होने लगा ! अपनी अस्मिता पर आक्रमण होते देख , भारतीय समाज अन्दर ही अन्दर एक जुट होने लगा , और इस सांस्कृतिक घुसपेठ के विरुद्ध ऐसे मार्ग तलाशने लगा  , जो भारतीय युवाओं को , उनके धर्म , दर्शन , संस्कृति ,  रीत  रिवाज़ से अलग ना होने दे ! घोर अन्धकार में , उन्हें एक ही प्रकाशवान  मूर्ति नज़र आई ..., और वे थे जन जन के नायक - " राम " ! भ्रमित हो रहे भारतीय समाज को , अपनी संस्कृति से एकाकार करने के लिए , तत्कालीन भारतीय समाज ने - " राम कथाओं " को नाट्य माध्यम से , जन जन तक फैलाने का संकल्प लिया  और प्रारंभ हुई  गाँव गाँव में  ' राम लीला " नाट्य मंडलों की दूरगामी यात्राएँ !

                   मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में , छतरपुर जिले की वर्तमान तहसील के रूप में बसा . एक स्थान - " नोगाव "  , सांस्कृतिक उथल  पुथल की  इन दो सदियों का एक जीता जागता  महत्वपूर्ण गवाह रहा ! इस नगर की स्थापना अंग्रेजों द्वारा  सन  १८४३ में तब की गयी , जब बुंदेलखंड के दुरूह - प्रस्तर प्रांत में स्थापित , पन्ना  , छतरपुर , ओरछा , झांसी रियासतों पर उन्हें सैन्य कंट्रोल करना  मुश्किल प्रतीत होने लगा ! इन बड़ी रियासतों के सान्निध्य में आकर क्षेत्र की कई अन्य छोटी रियासतें भी बगावत के रंग में रंगने लगी थी , ऐसी स्थिति में एक बड़ी सैन्य छावनी के रूप में  - नोगाव  - अंगरेजी संस्कृति और अंगरेजी सैन्य शक्ति के  गढ़  के  रूप में उभरा  !
                     अपनी सैन्य छावनी के  रूप में अंग्रेजों ने इस नगर की संरचना  बड़े मनोयोग से की ! ४८ वर्ग किलोमीटर  के  क्षेत्र में फैले , इस सैन्य क्षेत्र में उन्होंने ४० किलोमीटर  लम्बाई की सड़कें  इस तरह फैलाई की प्रत्येक आधे  किलोमीटर पर एक चौराहा , दिशा चयन के लिए उपलब्ध हो जाये ! १३२ चौराहों से सज्जित , इस छावनी का एक भाग , साफ़ सुथरा  नगरीय क्षेत्र  बना , जहाँ चर्च , बाज़ार , सामान्य जनता , के घर बसाये गए ! सैन्य बेरक , सैन्य अधिकारीयों के बंगले  , अंगरेजी  पलटन की ट्रेनिंग और कवायद  के लिए अलग क्षेत्र  रखा गया जिसे आज लोग  एम् इ एस के नाम से पुकारते  है ! हवाई पट्टी, की व्यवस्था  के साथ यहाँ ३६ रियासतों पर द्रष्टि रखने के लिए , एक ब्रिटिश  पालिटिकल एजेंट  रखा गया  जिसके कार्यालय में  प्रत्येक रियासत के राजा आकर अपनी हजारी बजाते थे ! अंग्रेजों द्वारा बसाई  गयी यह छावनी न सिर्फ अंगरेजी हुकूमत का गढ़ थी बल्कि , अपरोक्ष में रजवाड़ों को  अंगरेजी संस्कृति की चकाचोंध में ढालने का एक केंद्र  थी !
                   इसी नोगाव कस्बे  में कानपुर से  सन १८९० में , एक सम्रद्ध खत्री परिवार , अपने व्यवसाय की चतुर्मुखी कल्पनाएँ लेकर,  आकर बसा ,  जो ' महरोत्रा ' परिवार के नाम से जाना गया ! इस परिवार के प्रथम व्यक्ति  श्री गोविन्द प्रसाद  जी महरोत्रा ने नोगाव में एक व्यावसायिक  फर्म की स्थापना की , जिसके तहत , घोड़ा  गाडी के ठेके , रेलवे आउट एजेंसी  , ब्रिटिश कंपनी को राशन सप्लाई का कार्य शुरू किया ! एक भव्य रहवासी बिल्डिंग का निर्माण , नगर के प्रमुख मार्ग के   प्रमुख चोक पर हुआ , जिसे नगर वासियों ने " कोठी " के नाम से उच्चारित किया !

>>>> इंटरव्यू ....(  श्री विनोद मेहरोत्रा का ..., उनके   पूर्वजो  और व्यवसाय  के  बारे में उनके द्वारा  संछिप्त विवरण )

                     श्री गोविन्द प्रसाद जी के छः पुत्र रत्नों में से ,  श्री बलभद्रदास जी ने प्रथम  यह महसूस किया की नोगाव अंगरेजी रियासत  बनती जा रही है जहाँ अंगरेजी संसकृति  अपना प्रभाव  ,  समाज पर शने:   शने:  जमा रही है ! इसके  प्रतिकार स्वरुप उन्होंने अपने पूज्य पिता  गोविन्द दास जी के  हाथों , नोगाव में सन १९०६ में रामलीला मंचन की नीव  खुद आग्रह करके डलवाई !  नोगाव जन मानस में  सभी सामाजिक कार्यों के अगुवा , और  धर्म ध्वजा के ध्वजारोही के रूप में ' बल्ली बाबू '  यानी बलभद्र दास जी ने  जो ज्योति जगाई वह  प्रकाशित होकर आज १०८ वर्षों तक  निरंतर जल रही है !

>>>>> इंटरव्यू   श्री विनोद महरोत्रा  ( श्री बल्ली बाबू के जीवन काल , उनके कार्यों , और रामलीला प्रेम के  बारेमें ..., उनका रामलीला में सक्रीय योगदान के बारे में संछिप्त विवरण  )

                   यूँ  तो ' रामलीला '  लोक नाट्य के रूप में १६ वी  शताब्दी से ही जन - मन के बीच आ चुकी थी  किन्तु उसमे द्रश्य परिवर्तन और द्रश्य संयोजन  की कला  समाहित ना होने से , वह सीमित दर्शकों के बीच ही अपना स्थान बना पाई !....' लोक नाट्य' - मात्र कुछ गिने चुने दो  तीन कलाकारों द्वारा ही मंदिर परिसरों , नगर के खुले चबूतरो  पर प्रस्तुत किया जाता था  , जिसमे नाट्य सामग्री  भी  मात्र सांकेतिक रूपों में  ही  व्यक्त की जाती थी ! इन नाट्य परम्पराओं में भाव  भंगिमा का स्थान ज्यादा था  और सूत्रधार  स्वयं मुख्य पात्र होता था ! किन्तु यूरोपियन  नाट्य शेली के  भारत में प्रवेश करते ही , भारतीय नाट्य विधा अधिक  रंग धर्मी , और चित्ताकर्षक  हो गयी !  नोगाव रामलीला के जनक वल्ली भैया ने - अपनी रामलीला को अधिक प्रभावी  और चित्ताकर्षक बनाने के लिए , पार्सियन थियेटर  की तकनीक और मंच सज्जा   को अपनाने का  मार्ग , एक प्रयोग धर्मी  युवा भारतीय की तरह चुना !  लेकिन ' राम कथा ' के मूल स्वरुप ,  उसके भक्ति भाव , उसके  चिंतन , और आस्था  के साथ कोई समझौता नहीं किया !   १९०६  में प्रथम मंचन , अस्थाई  मंच बना कर , वर्त्तमान बलभद्र पुस्तकालय की खुली भूमि पर हुआ  , जो कई वर्षों तक उसी प्रकार  चला !  राम लीला की कुछ लीलाएं ,  नगर के अन्य गणमान  लोगों ने  अपने  भवन द्वार  पर करवाई   जिसमे ' नाव नवैया ' , और  भरत  मिलाप  की लीलाएं  , श्री राम चरण बजाज , और सेठ कल्याण दास जी के भवन द्वारों पर की गयी !  बाद में यह लीलाएं भी निर्धारित रंग मंच पर होने लगी !

 >>>>>>>> इंटरव्यू  ( किसी पुराने सम्मानित नागरिक का  इतिहास बताते हुए )

                    ज्यो ज्यो समय बीता , नोगाव रामलीला और अधिक आकर्षक और अधिक पवित्र होती गयी !  नोगाव  नगर में रामलीला  सिर्फ नाट्य  की विषय वस्तु नहीं थी .., बल्कि वह हिन्दू उपासकों की गहन आस्था का प्रतीक थी ! इसलिए इस लीला   में   चयनित किये गए राम , लक्ष्मण , भारत , शत्रुघ्न , सीता के पात्र , अवयस्क ,ब्राम्हण  पुत्रों को सोंपे जाते रहे  ताकि आम जन,  इश्वर स्वरूपों में ही उन्हें नमन करे !  ...१३  दिनों की लीला के लिए चुने गए  बाल  ब्राम्हणों  के समूह को  , लीला के एक माह पूर्व से  ही आम जनता के सान्निध्य  में जाने से वर्जित कर दिया जाता था !  इन बालकों का अपने परिवार में रहना भी वर्जित था ! इनके खाने पीने की व्यवस्था , राजसी स्वरूप में , बलभद्र धर्मशाला  के विशेष कक्षों में रहती थी , जहां वे अपना पाठ याद करते , समायानुसार दैनिक दिनचर्या करते  !  ,   उनके स्वरुप को निखारने  के लिए उनका उबटन किया जाता ! दशरथ नंदन चारो भाइयों , और  सीता मां  के पात्र स्त्युत्य  होते थे   अतः  बालकों को यह आभाष करवाया जाता था की , जिन मर्यादा स्वरूपों का वे अभिनय कर रहे हैं , लीला के इन १३ दिनों में वस्तुतः वे खुद भी  उस इश्वर के   अंश  के स्वरुप की तरह ही  हैं    !
              १३ दिनों की राम लीला  के मंचन में , मुख्य स्वरुप पात्रों को मिला कर कम से कम ५०  अभिनेताओं की जरुरत  रामलीला मंडल को होती है  जिसकी पूर्ति नगर वासी स्वयं अभिनय करके करते हैं ! इन पात्रों में - ' विश्वा मित्र ' , 'दशरथ, कोशिल्या , केकियी , सुमित्रा , जनक , परशुराम , सुमंत , केवट , सूर्पनखा ,  रावण , मंदोदरी ,  मेघनाद , कुम्भकरण , बाली , सुग्रीव , एवं हनुमान के पात्र विशिष्ट हैं  ! इन सभी पात्रों के अभिनय का दायित्व , नगर के सभी वर्गों के विशिष्ट लोग  उठाते हैं !  विशिष्ट पात्रों में - ' रावण ' , मेघनाद , हनुमान , दशरथ , विश्वामित्र , परशुराम , और जनक के पात्र , आचारंयुक्त , संस्कारी , ब्राम्हण समुदाय के लोगों को ही आबंटित किये जाते हैं !


 >>>>>> इंटर व्यू .......( पात्रों की  विशेषता ,,, चयन .... रिहर्सल,,, आदि के बारे में - धर्मशाला के  बाहरी द्रश्य ) )
               नोगाव रामलीला में - परम्परागत मेकअप  पर बहुत पेनी द्रष्टि राखी गयी है  ! स्वरूपों के श्रृंगार में , अनुभवी  श्रन्गारियों की  टोली , मंच के पाछे जुड़े श्रृंगार कक्ष में सायं ६ बजे ही प्रवेश कर जाती है   ! श्रृंगार में , स्वरूपों के मुख पर पहले ' मुर्दाशंख ' नामक पत्थर को घिस कर लगाया जाता है  और फिर उसे समरूप किया जाता है ! भोहों को  काली स्याही से धनुषाकार  करके , कपोलों पर लाली लगाईं जाती है वा , तत्पश्चात ललाट पर  वैष्णव  तिलक की सुन्दर आकृति , लाल और सफ़ेद रंग से चित्रित करके , भोहों के ऊपर से लेकर गालों तक  लाल सफ़ेद तिपकियां   चित्रित की जाती है ! देखते ही देखते  ' स्वरुप ' सोंदर्य मय हो जाते हैं  और चेहरा देदीप्यमान  हो जाता  है ! ! शेष  शोभा - मुकुट , कुंडल , नाक की बुलाक , गले की मालाओं , विशेष राजकीय  वस्त्रों को पहना कर पूर्ण कर दी जाती है ! नोगाव की लीला में स्वरुप के चरण , मोज़े पहना कर आवृत किये जाते हैं ! स्वरुप में ईश्वरीय आव्हान  तब पूर्ण होता है , जब उनके मुकुटों पर किरीट लगाये जाते हैं और उनकी पूजा अर्चना एवं आरती संपन्न की जाती है !
  अन्य विशिस्ट पात्र जहाँ मुख पर मुर्दाशंख के   लेप  का प्रयोग करते हैं , वहीँ  साधारण पात्र  सिर्फ दाढी मूंछ लगाकर , साधारण सिरस्त्रान या मुकुट  पहन कर  पात्र के अनुरूप यथोचित वस्त्र धारण कर अपना श्रृंगार पूर्ण कर लेते हैं !
 श्रृंगार कक्ष दो भागों में बंटा रहता है ! जहाँ एक और स्वरुप का श्रृंगार पूर्ण होता है , और दूसरी और अन्य पात्रो का ! श्रृंगार कक्ष , रंगमंच के पार्श्व  के जुड़े हुए भवन में रहता है ! श्रृंगार कक्ष में  अनुशाशन बहुत कडा होता है , और किसी भी अपरचित का प्रवेश पुर्णतः वर्जित रहता है !

 >>>>>> इंटरव्यू ( श्रृंगार पर , सामान के स्टाक पर , वस्त्रों के स्टाक पर , प्रकाश डालता हुआ !  तथा पुराने श्रन्गारियों की याद ताज़ा करता हुआ ! ) "

               नोगाव रामलीला का सबसे आकर्षक और उत्कृष्ट अंग रहा -  उसका  रामलीला  मंच ! , जो थियेटर  की तरह एक सम्पूर्ण हाल रहा ! इस मंच एवं  हाल का निर्माण वल्ली बाबू ने वर्ष  १९३५ में करवाया !  २००  फीट गहरा , ७५ फीट चोडा, और प्रेक्षक स्तर से  ६ फीट उंचा  , एक चोकोर चबूतरा , जो बीच में विशेष प्रभावों को  दिखाने के लिए  खोखला रखा गया ! इसी चबूतरे पर ,  बाहरी भाग में , २५ फीट ऊँचे  स्थायी विंग लगाये गए  , जिनके पीछे लगाया गया प्रथम पर्दा - राम सीता , लक्षमण के भव्य स्वरुप को दर्शाता था ! इस परदे के पीछे , १०० फीट तक की गहराई तक , पांच पांच फीट के अंतराल में कई चित्ताकर्षक परदे होते थे , जो अयोध्या नगरी , महल , वाटिका , जंगल ,  और मायावी द्रश्यों का सजीव चित्रण  मंच पर उपस्थित कर देते थे ! इन पर्दों पर हुए चित्रों के अनुरूप ही बगल में दोनों और , तथा ऊपर , विंग लगाये जाते , जिन्हें द्रश्या अनुसार  धकेल कर आगे पीछे किया जाता था ! कुछ परदे स्क्रीन की तरह बीच से , दो भागों में बाँट जाते थे , जिसका प्रयोग चलते हुए द्रश्य के मध्य में ही किया जाता था !
 द्रश्य की प्रभावोत्पादकता  के लिए , प्रसंग के अनुसार पर्दों का उपयोग किया जाता था एवं उनसे सम्बंधित विंगो को खिसका कर आगे कर दिया जाता था ! पर्दा खुलते ही - दर्शक पहले .. द्रश्य के वातावरण में ही डूब जाता था ,  !
 इस मंच का दूसरा आकर्षण था . प्रसंग के अनुसार सेट्स बनाने का ! दशरथ दरबार में   दशरथ का ' सिंहासन ' . नदी के द्रश्य में लहरों का प्रभाव दरसाती , चलायमान पट्टिकाएं , हवन बेदी में लाल , पीली , पन्नियाँ लगा कर , उसे कम्पित करके अग्नि का स्वरुप देना  , सामान्य सेट्स की श्रेणी में आते थे , किन्तु  क्षीर  सागर में शयन करते , विष्णु को अचानक दर्शकों के सामने प्रगट करने के लिए , रिवाल्विंग सेट का प्रयोग , दशरथ को हवि सोपने  , और जनक के हल   चलाने  पर  धरती से बाहर अचानक  निकल कर आने वाले  अग्नि और सीता के पत्रों के लिए   अन्दर ग्राउंड लिफ्ट का प्रयोग , चलायमान रथ  पर सवार होकर वन गमन करते राम सीता के द्रश्य , अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करते थे , जिसकी कल्पना आज से ७० वर्ष पूर्व  मंच पर करना भी  शयद असंभव थी !
            निसंदेह  इस मंच की उत्कृष्टता , भव्यता  का  श्रेय , नोगाव रामलीला के पुरोधा - बलभद्र दास जी को ही जाता है -- जिन्होंने स्वयं अपना धन व्यय करके , नोगाव रामलीला को एसा  भव्य द्रश्यावली युक्त मंच प्रदान किया  ,


>>>> इंटर व्यू ...( कथन की सन १९२५ में रामलीला के मंचन को बंद करने के प्रकरण पर , झांसी राम लीला का आयोजन , और बाद में नोगाव में आनन् फानन में  सामग्री , चरखारी के थियेटर से खरीद कर , फिर से लीला करना )

                        लेकिन इससे भी अधिक उत्कृष्टता रही लीला के मंचन में ! , जहाँ भव्य सेट्स की प्रष्ठभूमि में , जो लीला खेली गई वह नितांत पारंपरिक शेली की थी !   १९०६ में , प्रथम मंचन के समय  से ही , लीला का मुख्य आधार ' रामचरित मानस ' को ही चुना गया ! वाचक परम्परा का निर्वाह करते हुए , मंच पर रामायण वाचक , दो व्यक्तियों के दल में , चोपाइयों का पाठ , उच्च स्वर में करते , और ' स्वरुप 'अथवा अन्य पात्र उन चोपाइयों के अर्थ को संवाद की तरह मंच पर बोलते ! वस्तुतः ये वाचक  लोग लीला के संवाहक के रूप में , लीला को आगे बढ़ने के लिए सूत्रधार की तरह काम करते !
            लीला के नाट्य अंग के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए , एक सहायक नाट्य ग्रन्थ - " राम यश दर्पण ' का चयन किया गया ! , यही नाटक आज भी लीला के नाट्य अंग का आधार है !
          भारतीय नाट्य परम्परा  में , ' संगीत ' पक्ष नाट्य का शसक्त अंग माना  गया है ! नोगाव रामलीला में , यही संगीत पक्ष , लीला का अत्यंत उज्जवल और मधुर  पक्ष है ! लीला के लिए निर्धारित  किये गए  सभी गीत और उनका संगीत  पुरी तरह  पारंपरिक है  , और उनकी धुनें अत्यंत मधुर एवं  पारंपरिक हैं !  अधिकतम गीत , राम , लक्षमण , सीता , के स्वरूपों द्वारा  गेय  हैं , जो  धनुष  यग्य , राम वनवास , लक्षमण शक्ति , एवं  जनकपुरी  की  पुष्प वाटिका  में गाये गए हैं !

>>>> इंटरव्यू ( गीतों की परम्परा , उनकी धुनों ,  , एवं प्रभाव के बारे में ) ( वाचक परम्परा में ... वल्ली बाबु , कृष्णदत्त पंडित ,घिस्सू बाबु का जिक्र ) * संगीत परम्परा में  मोनी बाबु , लखीराम जी , नारायण मास्टर , वगेरह का जिक्र   हारमोनियम  पर गीतों की रहर्सल , गाते हुए फ्लेश )

              अतीत  के झरोखे से , नोगाव  रामलीला  की यात्रा बहुत गौरव मयी  है ! इसके सञ्चालन में , तीन पीढ़ियों  के सदस्यों की भूमिका यादगार है ! १९०६ से लेकर आज तक , मंचित की गयी लीला में कई नाम ऐसे हैं , जो उनके कृत्यों के कारण अविस्मर्णीय है ! ७५ वर्ष तक , अपने वैभव का प्रतीक बना रामलीला भवन , जब एक उम्र के बाद , जीर्ण शीर्ण होने लगा , और हाल की केपेसिटी , दर्शकों की संख्या के लिए कम पड़ने लगी , तब हाल के ठीक बगल में , एक खुली ज़मीन पर , एक अन्य मंच बनवाने की योजना , रामलीला कमिटी द्वारा प्रस्तावित की गयी ! इसके व्यय का भर उठाया  महरोत्रा परिवार की तीसरी पीढ़ी के युवा सदस्य श्री विनोद मेहरोत्रा ने , जिसमे ग्राम वासियों के साथ मार्ग दर्शन मिला कमल महरोत्रा का ! एक वर्ष के अल्प काल में ही यह नया मंच १९८० में बन कर तैयार हुआ , और इसे कमिटी के अध्यक्ष श्री कमल महरोत्रा ने लोकार्पित करते हुए , राम लीला के भविष्य को  1980 में नए हाथो में सोंप दिया  !
             वर्ष १९८०, नोगाव रामलीला का हीरक जयंती का वर्ष था ! इस  वर्ष नगर के लोगों ने अपने पूर्वजों के योगदान को याद किया , उलास से हीरक जयन्ती मनाई !
              १९८० से लेकर . अब तक रामलीला , अब बाहरी मंच पर ही खेली जा रही  है ! पुराने रामलीला मंच का रूप इस मंच स्थानांतरण के कारण  क्षरित हो गया ! मंच की द्रश्यावली प्रभावित हुई , किन्तु लीला अपने स्वरुप में निरंतर रही !

>>>>>> इंटर व्यू ( १९८० के हीरक जयंती का वर्णन , मंच निर्माण का वर्णन )   !

              आज नोगाव रामलीला शतायु होकर - १०८ वर्षों का सफ़र पूरा कर चुकी है ! इन १०८ वर्षों की यात्रा में उसने कई परिवर्तन देखे हैं - लोगों के विचारों में - संस्कृति में, आस्था में !भारतीय समाज आज सजीव लीला को छोड़कर , मूर्तिपूजा के भव्य आयोजनों की और मुड  गया है ! एक और जहाँ मंच पर आकर्षक द्रश्यावली के कम होने से दर्शकों की संख्या घटी ,  वहीँ दूसरी और आधुनिकता की दौड़ में आँखे बंद कर के दौड़ती युवा पीढ़ी , टी वी , फिल्म , एवं झांकियों के आकर्षण में सिमट कर रह गयी  !
            आज ,,, १०८ वर्ष पूर्व ,जिन पूर्वजों ने , संस्कृति के क्षय से भयग्रस्त होकर , रामलीला के आयोजनों की परिकल्पनाएं की थी - उनके स्वप्न,  आज की युवा पीढ़ी के पश्चिमी संसकारों के आचरण को अपनाते  देख कर , ध्वस्त हो गए होंगे   !  एसा सिर्फ हमारे सामजिक कर्णधारों के साथ ही नहीं हुआ - हमारे स्वतन्त्रता संग्रामी  ,  देश पर प्राण  न्योछावर करने  वाले सभी रन बांकुरों , और हमारे प्रिय रास्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ भी हुआ है ,जिन्होंने भारत में रामराज्य का स्वप्न देखने के लिए  - जन मानस में राम का नाम उचारा था !
           लेकिन क्या यह अंत है ..? , शायद नहीं ! क्योंकि  राम तो अविनाशी  हैं , घट घट  में व्याप्त  .., और उनकी लीलाएं  मनुष्य का ..जीवन आधार ! तो रामलीला की आभा कभी  क्षीण नहीं होगी ! वह गंगा की तरह निरंतर है ..., वह सागर की तरह अटल है .., आकाश की तरह अनंत है ..., नोगाव की रामलीला इस निरंतरता को आज भी बनाये हुए है  और शायद कल भी बनाये रहेगी ! !


>>>>>> ( वर्तमान रामलीला के धनुष  यग्य के द्रश्य .., रावण  बध  ..., लोगों के गले मिलना ..., राज गद्दी ...) 





नामावली स्क्रोल ...!   !  ,

सोमवार, 10 सितंबर 2012

भगवान् " राम " सदेव  हिन्दू धर्म  के उद्धारक ' के रूप में  , हिन्दुओं केकाम आते रहे हैं ! जब १६ वीं सदी में ओरंगजेब ने , हिन्दुओं का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया ,  और हिन्दू आक्रांत हुए , तो " राम " ने गोएवामी तुलसीदास को प्रेरणा दी , और उनके ग्रन्थ  रामचरित मानस  के माध्यम से हिन्दू ना सिर्फ एक हुए बल्कि उन्होंने अपने चारित्रिक उत्थान के लिए ' राम कथा ' का अनुगमन किया !
 बाद में जब  अंगरेजी राज्य में ,  अंग्रेजों के वायसराय लार्ड मेकाले ने सांस्कृतिक युद्ध छेड़ते हुए , अंगरेजी संसकारों , अंगरेजी भाषा के लिए , अपने पिट्ठू भारतीयों को प्रेरित किया , तो भारत के हिन्दू समुदाय फिर जागे !   हिन्दुओं ने प्रत्येक नगरों में , संसकारों की रक्षा के  लिए , " रामलीला " खेलने का आयोजन किया , जिसमें न सिर्फ आम जनता सामने आई , बल्कि तत्कालीन धनाड्य वर्ग ने भी , ' राम ' कथा को ' रामलीला ' के माध्यम से जन जन में उतारने के लिए पूरा सहयोग दिया ! यह राम लीला विदेशी संस्कृति के विरुद्ध , हिन्दू संसकृति को अक्षुण रखने के लिए , निरंतर आजादी के बाद भी खेली जाती रहीं !
नीतियों , भारतीय मूल्यों , को साहित्य में  , सुरक्षित रखने के लिए हमारे रास्त्र्री स्तर के कवियों ने भी " राम " का सहारा लिया और मैथिली  शरण गुप्त ने " साकेत " की रचना की ! राम कथा का अनुवाद हर भाषा में हर प्रान्त में हुआ ! जन जन जैसे " राम माय " हो गया !
भारतीय राजनीती में , महात्मा गांधी ने जन जन से जुड़ने के लिए " राम " का सहारा लिया , और खुले  मन से गाया - " रघुपति राघव रजा राम " ! वे राम प्रेम और राम अनुयायी के रूप में ही आम हिन्दू जनता में महात्मा के रूप में , स्थान बनाये !  कहा गया की उन के अंतिम उदगार भी यही थे .." हे राम " ..!
भारतीय जनता पार्टी को जब अपने अस्तित्व के बचाव के लिए कोई मार्ग नहीं मिला तो उन्होंने भी " राम " का सहारा लिया ! 'राम मंदिर " के नाम पर ही भा जा पा की डूबती नैया को  नई दिशा मिली और वे फिर सत्ता में अस्तित्व में आये ! बजरंग दल , विश्व हिन्दू परिषद् , धर्म के कई ध्वजा रोही भी " जय श्री राम " कह कर ही आम हिन्दू जनता के बीच अपनी पैठ बनाये !
प्रसिद्द गायक " मुकेश " कई भावपूर्ण गीत गए , किन्तु उन्होंने जब " रामायण  " गाई तो जैसे  वे जन जन में पहुँच गए ! लता ने भी " ठुमुक चलत " और  " पायोजी मैंने रामरतन " गाया तो  ये गीत कई गानों से अलग , रत्नों की तरह सराहे गए !  ' राम कथा " पर जब जब फ़िल्मी दुनिया में " रामायण " फिल्म बनी तो सदेव सफल हुई  !
छोटे परदे पर  कई अन्य कथाएं लेकर , कई निर्माता आये , लेकिन जो प्रसद्धि " रामानद  सागर ' को " रामायण " बनाने के लिए मिली , वह अद्वित्तेय है ! इस सीरियल में काम करने वाले पात्रों में " अरुण गोयल " और दीपिका " के कलेंदरों को  ग्रामीण लोगों ने राम सीता के रूप में अपने अपने घरों में जगह दी ! अन्य पात्रों में " रावण " तक को संसद में सांसद बनाने का मौका मिला !  अभिनेता " दारा सिंह " तो हनुमान बनकर सदेव के लिए अपना नाम अमर कर गए !
इसका स्पस्ट अर्थ है भारत राममय है !   लोग भी भले ही हास्य में  भले ही यह कहें की यह देश " राम भरोसे " चल रहा है .., किन्तु यह  बात अक्षराह्साह  सही है !
ऐसे भारतीय आत्मा में बसे " राम " को आज हम फिर भूल रहे हैं ! जरुरत है की हम राम कथाओं का मंचन , पुरी तकनीक , पुरी आस्था के साथ फिर से गाँव गाँव करें , ताकि स्टेज पर " नाट्य " में आकर्षण पैदा हो ! , ध्वनी , संगीत , और प्रकाश के प्रभाव से युक्त इन नए प्रयोगों के जरिये , लोगों में स्टेज के प्रति आकर्षण तो  बढेगा  ही  और " राम कथा " पाकर आम भारतीय मानस फिर से हिंदुत्व को पहचानेगा फिरसे जीवित होगा , ,  फिरसे धर्म सेजुड़ेगा !
ग्रामीण लोग कहते हैं   " राम नाम की लूट है   , लूटत बने तो लूट , अंत काल पछतायेगा जब प्राण जायेंगे छूट ..!! .... तो इससे पहले की पछताना पड़े  आइये फिर से राम से जुड़ जाइये ... " राम लीलाएं " पुनर्जाग्रत कीजिये ..  और हिन्दू धर्म की रक्षा कीजिये !
---- सभाजीत










शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

" बे-ताल पच्चीसी "

                                 " बे-ताल  पच्चीसी " 


............सरपंच का लड़का , खूंटी से बस्ता उतार कर, उसे  " वेताल "  की तरह कंधे पर लाद कर  एक बार फिर स्कूल  की  ओर बढ़ लिया ! स्कूल की एक ही कक्षा में पढ़ते हुए उसे कई साल हो रहे थे ,  लेकिन वह हर बार किसी ना किसी विषय में फेल हो जाता था ! उसके सरपंच पिता ने  शिक्षा विभाग से कहकर , कई नालायक  मास्टरों के स्कूल से  तबादले करवा दिए थे कि  उसका लड़का बोर्ड परीक्षा में किसी तरह  पास हो जाये , लेकिन लड़का था की अति विवेकी होने के कारण  पास ही नहीं हो पा  रहा  था !

,,,,,, आधे रास्ते चलने के बाद ,  रामलीला ग्राउंड के पास पहुंचते ही बस्ते , में रखी हिन्दी की किताब ने , सरपंच के लड़के से यूँ प्रश्न किया -
".. इस ग्राउंड पर हर साल दस मुँह वाले " रावण  " का पुतला जलता है ! क्या रावण दस मुँह  वाला रहा होगा ??,,,,  यदि हाँ तो वह सोता कैसे होगा ??   उसे ' दशानन ' क्यों कहा गया ??....इन बातों के उत्तर तुम जानते बूझते भी नहीं दोगे  तो तुम्हारे पिता की सरपंची इसी क्षण छिन जायेगी ! "

          ,,,,,,सरपंच का लड़का किताबों के ऐसे ऊलजलूल  प्रश्नों से बहुत परेशान था ! ये किताबें उसे स्कूल  तक पहुँचने ही नहीं देती थी  ! बीच मार्ग में ही उससे  सवाल  पूछ कर ,उसे  इम्मोशनल  धमकियां देती रहती थी !,,,,, उसे '  विद्या-माता ' की ताकत से  बहुत डर लगता था   !,,,, भले ही  लड़के को , पिता से उतना प्रेम नहीं था लेकिन पिता की सरपंची से वो बहुत प्यार करता था इसलिए थोड़ी देर चुप रहकर आखिर वह इस प्रकार बोला  -

     - " इस प्रश्न को एक बार मेरे पिता ने मड़िया  देव के पुजारी ' देवीदीन '  से भी पूछा था !,,,,मेरे पिता को जब भी सरपंची जाने का डर लगता  तो वो  मड़िया  देव के पुजारी से गण्डा ताबीज़ बंधवाने चले  जाते थे  !,,, तब उस दिन वे मुझे भी साथ ले गए थे !,,, ' देवीदीन  महाराज '  ने अपने पास रखी रामायण की सभी पोथी ,,,, गुटका से लेकर अर्थ वाली बड़ी रामायण तक  ,पलट डाली , लेकिन इसका उत्तर  उन्हें बाल काण्ड से लेकर उत्तर  काण्ड तक कही नहीं मिला !  शायद  ' तुलसीदास जी ' भी इसका उत्तर  लिखना भूल गए थे ! खैर,,,, , मड़िया  देव के पुजारी ने अपनी अकल लगा कर जो बापू को समझाया वही में तुम्हे बताये देता हूँ ----"
    ......रावण लंका में शाशन करता था , जैसे आज भारत में लोग शाशन  करते हैं ! ,,,,उसके दरबार में ' विभीषण ' विपक्षी दल के रूप में बैठता था -,,,, जैसे आज अपने देश में सदनों में विपक्षी दल बैठते हैं !,,,,  रावण   और विभीषण एक ही कुल के वंशज थे ,,, एक ही खून ,, और उन दोनों में एक ही बात को लेकर मतभेद था की ' गद्दी ' कौन सम्हाले ! बाकी वे भाई भाई ही  थे !,,,,  रावण गद्दी छोड़ना नहीं चाहता था और विभीषण बिना गद्दी लिए टलने वाला नहीं था !
,,,,,,रावण  के पेट में बहुत सारे '  मायावी चहरे '  समाये रहते थे ! इन चेहरों के पेट नहीं थे  , लेकिन बड़े बड़े मुंह  जरुर थे  जिससे ये  बहुत सारी सामग्री , जैसे  , अयस्क , मिनिरल , जमीन ,, खदानें ,, जंगल ,, प्रोटीन की तरह   गटकते रहते थे .., रावण के पेट में रहने के कारण इन्हें जनता ठीक से  पहचानती  भी नहीं पाती  थी ,,,, और रावण को भी अपनी उदरस्थ की गयी चीज़ें , पचाने में  इससे आसानी होती थी ! ,,,,, शांति काल में रावण  अपने मूल मुख से ही शाशन करते हुए , खाता पीता रहता था !   ,,,लेकिन संघर्ष  के समय उसे शत्रु को मूर्ख  बनाने के लिए, और अपनी शक्ति दिखाने के लिए और  कई चेहरों की ज़रूरत होती थी ! रावण के पेट में समाये चहरे .., संघर्ष  में  कट  जाने के डर से बाहर नहीं आते थे !,,, रावण  भी उन्हें बाहर नहीं आने देना चाहता था कि ,,, वे कहीं खाई हुई चीज़ों के बारे में - " बक झक " ना दें ! ,,,, तब रावण ने कुछ बाहरी चेहरों को अपने खुद के के चेहरे  के साथ अतिरिक्त रूप से  जोड़ लिया ! जैसे आज हमारे देश में मूल  शासक    पार्टी को सहयोग देने के लिए ,  अन्य कई  पार्टीयाँ , शासनकर्ता पार्टी   के साथ बाहर से सपोर्ट देने के लिए  जुड़ जाती हैं !   ये चहरे वक्त पड़ने के साथ उसके दोनों और जुड़ कर  अट्टहास करते थे , जिससे रावण बहादुर और शक्तिशाली नज़र आये ! इन चेहरों में किसी के कट जाने पर उसके  स्थान पर कोई और  दूसरा चेहरा आ जाता  था , और दशानन को कमज़ोर नहीं होने देता था !  
राम से अंतिम युद्ध करते समय उसके वही सहयोगी चहरे - माल्यवान , कुम्भकरण , इन्द्रजीत , मारीच , वगेरह   राम को   डराने के लिए  दशानन बन कर आये थे , !
अंतिम युद्ध में रामने  मूल रावण  के साथ  उसके दुसरे  चहरे भी  विभीषण के द्वारा बताये जाने पर , काट डाले , तभी रावण समाप्त हुआ !
 इस प्रकार दशानन के दस चेहरों का राज. पंडित देवीदीन  द्वारा बताई गई बातों से  मेने बखान किया !.... शायद तुम संतुष्ट हो जाओ !
.        ,,,,,,,.. रही बात दशानन के सोने की समस्या की ..! तो दशानन को ये चहरे ' ' सोने ' ही नहीं देते थे ..,इसलिए वह इन चेहरों को दरबार में ही छोड़ कर घर आता था !  दूसरे ,,,, उसे  एक डर यह  भी था की कहीं दस चेहरों के साथ ' मंदोदरी " ने उसे देख लिया तो समस्या पैदा हो जायेगी  , .. कहीं  ' मंदोदरी'   मूल चहरे को छोड़ कर किसी  दूसरे  चेहरे  पर रीझगयी तो रावण का  क्या होगा    ! '''" ..


.                   .... सरपंच के कड़के के मौन भंग होते ही ....बस्ते  में से हिन्दी की किताब टपक कर कहीं  बाहर गिर गयी ,,,  स्कूल  में बस्ता खोलने पर जब उसे  किताब नही दिखी  ,, तो उसे वापिस उठाने लड़का फिर घर की और दौड़ पडा !....!!

- ' अथ   "  बे-ताल  " पच्चीसी !'



------ सभाजीत


मंगलवार, 11 सितंबर 2012

sinhaasan batteesi bhag do

                                           सिंहासन बत्तीसी 

                                                                        एक नाटक  
                                                               लेखक - सभाजीत 
                                            *  भाग दो *    


(..मंच पर प्रक्काश तीव्र होता है ! )
(..राज़ा का दरबार ,,,कुर्सी पर बैठा व्यक्ति कुर्सी को दोनों हाथों से कस  कर पकडे है ! ) कुर्सी के पीछे पुतला और दायें बाएं अन्य   चारों पात्र खड़े हैं ...))
( अचानक बादलों की गडगडाहट ,,,विभिन्न आवाजें .., विभिन्न प्रकाश।।)

  ( कुर्सी पर बैठा राजा )   >  "  कौन है ..? कौन है ..?? यह क्या हो रहा है ..?? " 

    (नेपथ्य में एक स्त्री कंठ  में गूंजती आवाज़ ) > .... शांत राजन ! शांत ..!! ..में कुर्सी बोल रही हूँ  महाराज विक्रमा दित्य की कुर्सी .  जिस पर अब तुम बैठ चुके हो !  मुझ पर बैठने के बाद अब तुम मेरे और इस पुतले के मालिक बन चुके हो !अब तुम्ही राज़ा  हो  .! "
 " वास्तव में मैं एक तिलस्मी कुर्सी हूँ .... ! मेरा तिलस्म इस पुतले में और पुतले का तिलस्म मुझमें छिपा है ! यथार्थ  में हम दोनों एक दुसरे के हिस्से ही है ! राज़ा बन जाने  के बाद  अब जो भी बात यह पुतला कहेगा  वह सिर्फ तुम्हें ही सुनाई देगा .. इसी तरह जो बात मैं कह रही हूँ वह भी सिर्फ तुम ही सुन पाओगे,कोई और नहीं सुन सकेगा   इसलिए तुम परेशान मत होना  !  इस कुर्सी के पीछे खड़े पुतले को अब  तुम्हारे सिवा कुछ भी नहीं दिखाई देगा  क्योंकि उसका तिलस्म ही इस तरह का है ...वह सिर्फ जब तक कुर्सी खाली रहती है .. तभी तक अन्य  दुसरे लोगों को देख सकता है, उसके बाद नहीं  !  पुतले के संचालन के लिए इस कुर्सी के दोनों हत्थों में कल पुर्जे लगे हैं जिनसे तुम इस पुतले से कोई भी मनचाहा काम ले सकते हो ! !"
" अब ध्यान से तुम वह एतिहासिक तिलस्मी राज  सुनो    जो मुझे छोड़ किसी को नहीं मालूम ...और मेरे मालिक होने के नाते तुम्हे वह राज बताना मेरा  फ़र्ज़ है !  " 
" इस कुर्सी पर कई सालो पहले राज़ा  भोज ने बैठने की कोशिश की ! ...तब कुर्सी से जुड़े बत्तीस पुतलों ने उन्हें बैठने नहीं दिया ! राजा  भोज ने क्रोध में आकर उन बत्तीस पुतलों को मनुष्य बना दिया   जो बाद में भोज की प्रजा में जा घुसे ! उन्होंने प्रजा को बरगला कर राजा  भोज के अस्तित्व पर हो प्रश्न उठवा दिया   और जनता उन्हें राजा  भोज की जगह " गंगू  तेली " पुकारने लगी ! उसी समय अंतिम पुतला  जो  अभी इस कुर्सी के पीछे खडा है .. कुर्सी को लेकरअन्दर ग्राउंड  हो गया !  प्रजा में हुए प्रचार के कारण  राज़ा  भोज अपनी स्मरण शक्ति खो बैठे  और विक्षिप्त हो कर जंगल चले गए ... वे वहीँ रह कर स्मरण करने की कोशिश करते रहे ... लेकिन  वहां भी लोगो ने उन्हें कुछ भी याद नहीं आने दिया ! वही राजा  भोज  किसान के रूप में अभी फिर लौट आये हैं ...जिनके आँखों पर पट्टी बांध कर तुम कुर्सी पर बैठ चुके हो !  इस कुर्सी के दोनों और खडी   यह चारोँ आकृतियाँ भी वस्तुतः   वे पुतले ही हैं ! इन्हें यदि  पीछे खड़े " तिलस्मी पुतले " से  स्पर्श  करवा कर अपने आधीन रखा जाये , तो वे पुतलों की तरह ही तुम्हारी आज्ञा मानेंगे ! वे बाकी पुतलों को भी प्रजा में से ढूंड निकालेंगे और उन के साथ मिलकर तुम्हारा हर काम पूरा करेंगे ! इस तरह तुम्हारा राज निर्विघ्न चलता रहेगा ! "
   परन्तु सावधान ...! यदि राजा  भोज यदि पुनः जाग गए और उन्हें सब कुछ स्मरण आ गया  तो मेरा और इन पुतलों का तिलस्म टूट जाएगा  और फिर तुम्हारा महत्त्व समाप्त हो जाएगा ! .... अब किस तरह तुम राज करो ...यह तुम्हारी चतुरता पर निर्भर है ! ..." 

   ( गडगडाहट की ध्वनि धीमी होती जाती है और फिर समाप्त हो जाती है )
( मंच पर प्रकाश पुर्णतः तीव्र हो जाता है )
 एक प्रहरी >  " बा अदब बा मुलाहिजा होशियार ..., दरबारे राज़ा  भोज  ... होश में  आ रहा है ..."   ( हलचल होती है )
 राजा >  ( भाषण के स्वर में )....  " मेरे साथियो ! मेरे दरबारियों ..!! मुझे आपने राजा बनाया , अच्छा किया ! क्यूंकि हम इस योग्य थे ! पहले लोगों ने इस सिंघासन पर बैठ कर बहुत ज़ुल्म ढाए  हैं- अब हम ज़ुल्म ना होने देंगे  ! पुराने राजा भोज ने जो गलतियां की हैं हम उस की खोज बीन करवाएंगे - उन पर कार्यवाही करेंगे !  हमें बहुत कुछ करना है - पहले अपने विशवास पात्र लोगों को पद बंटाना है   जिससे मजबूत दरबार बन सके ! फिर पड़ोसी राजाओं , और उनकी स्थिति के बारे में सोचना देखना है !  हमें बहुत खतरा  भी  है ..जो पहले भी था ..आज भी है ...और आगे उसके बने रहने के पुरे आसार हैं ! मैं चाहूंगा की आप उन खतरों के बारे में निरंतर सोचा करें ..यदि आप का ध्यान उस और बंटा   रहेगा  तो बहुत अच्छा रहेगा !  हम आपके आभारी हैं ..और आप हमारे रहिये की हमने यह कुर्सी की कठिन जबाबदारी सम्हाली है ! हमारा सम्बन्ध जन्म जन्मान्तरों का है - प्रजा और राजा  का ... जिसमे हम आपको और आप हमें पालेंगे  तो अच्छा रहेगा  ! . आइये अब हम और लोगों को भी  जिम्मीदारियां सोंप दे ! 
 ! "
 (एक व्यक्ति आगे बढ़ता है- पुतला उसके सर पर हाथ रखता है - झन्न की आवाज़ आती है - वह व्यक्ति कांपता है ! ) 
 राजा >  " तुम कौन।।? "
 व्यक्ति >  आपका सेवक " 
 राजा >   "अब से तुम्हारा नाम हुआ -  " हाकिम "  जाओ फटता झाड पोंछ कर , आसन जमाओ  .., " 
  (दूसरा व्यक्ति आगे बढ़ता है  पुतला सर पर हाथ रखता है - झन्न की आवाज़  ) 
राजा < " तुम कौन ..? " 
व्यक्ति >  " आपका चाकर " 
 राजा > " हमने तुम्हे खोज बीन के लिए रक्खा ...!जाओ खोजो और बीनो ... ख़ास बातें  हाकिम को बताओ " 
 (तीसरा व्यक्ति आगे बढ़ता है  - पुतला हाथ रखता है - झन्न की आवाज़) )
राजा  > " तुम कौन  ?/" 
व्यक्ति >  " आपका गुलाम .." 
राजा > ' हमने तुम्हें काटने  छांटने  और बसूल करने  के लिए रक्खा ..., जाओ कंधे पर एक वसूला रखो ... काँटों ..छांटो ... और वसूलो ... ! "
(चौथा व्यक्ति आगे बढ़ता है )
 राजा > " तुम कौन ..? " 
 व्यक्ति ( पलट कर  तेज स्वर में ) > " तुम कौन।।।।??" 
राजा हतप्रभ हो जाता है !   .. 
 पुतला  > राजन  इसका शरीर पुतले का हो  सकता है  लेकिन दिमाग नहीं ..! वह बिगड़ चुका है ! " 
 राजा > " यह कैसे काबू में आयेगा ,,,? " 
पुतला >  "इसकी दिमागी खुराक कागज़ , स्याही - विज्ञापन , प्रचार है   इसका कोटा बाँध दें ... कभी कभी इसे राजकीय भोज पर आमंत्रित करते रहें ! " 
 राजा > जाओ तुम उन  तीनो  के पीछे लगे रहो ...! कागज़ स्याही में दूंगा ...!  तुम अकल लड़ाते रहो ..उनके बारे में लिखते रहो ! " 
व्यक्ति > ( आँखे तरेर कर ... )  "  याद रहे की मेरी खुराक मुझे मिलती रहे ! " .. ( चला जाता है ) 
 ( मंच पर प्रकाश मद्धिम हो जाता है ...) मंच के बाएं कोने में आगे की तरफ कमर में पेटी बांधे  सांकल से कुर्सी तक जुडा  किसान , सर पर हाथ रखे हताश  बैठा है ... तभी खोजे और वसूले आते हैं ... वसूले कंधे पर एक वसूला रक्खे है ) 
खोजे >  " महाराज ने खोजने बीनने के नियम बड़े  कठिन बनाये हैं ..!" 
 वसूले >  " हाँ ! जिसे खोज लें उसे बीने ना .. और जिसे बीन ले उसे  खोजें ना ..!! "
 खोजे >  " पता नहीं महराज किसे धुंधवा रहे हैं ..? " 
 वसूले > " मैं तो वसूला कंधे पर रक्खे रक्खे थक गया ! " 
खोजे >  " जब बिना वसूला चलाये ही वसूल हो जाये तो क्यों लादे फिरते हो   ( अचानक सामने किसान को बैठे देखा कर ) ... अरे !! देखो देखो !! कौन बैठा है वहां ..? " 
.वसूले   >  (  हाथ आँखों पर लगा कर दूरबीन बना कर  देखते हुए ) - हाँ मिस्टर खोजे कोई बैठा है उकडू  ..सर पर हाथ रक्खे हुए ! "
खोजे  > कोई फ़कीर ना हो ..! "
 वसूले > " फ़कीर वहां क्यों होगा ,, वह तो आश्रम में मिलेगा चेलो चमचो से घिरा   .. ..., 
खोजे >    " तब कोई हिप्पी न हो ...,  शांति की खोज में गांजा उड़ा रहा हो ! "
वसूले >  " बिना  हिप्पानियों के हिप्पी कैसे . इसके तो हिप भी नहीं है ..? और फिर  हिप्पी तो समुद्र तट पर पाए जाते हैं ."
 खोजे > ' तो फिर कोई लुटेरा न हो ... यानि  ' क्रिमिनल "..! " 
  वसूले >  अह।।! हः।।!!  क्या लुटेरे भी कभी सोचते हैं ... इस तरह सर पर हाथ रख कर ...?? " 
 खोजे  >  भैया  मुझे यह   सुपर स्टार लगता है .... किसी गरीब की एक्टिंग कर रहा है  वहां बैठ कर ..! " 
वसूले   >   " बिना कैमरे और लाइट के ...?  भीड़ भी तो नहीं है उसे घेरे ..! "
 खोजे > ( परेशान होकर ) .." तब कौन हो सकता है  वह ... जो सरकारी ज़मीन पर बैठा है  ...?" 

 वसूले  >  " खास बात है की उकडू बैठा है ... " मुर्गे  " की तरह ...!! "
खोजे  > ( उछलकर ) ... मुर्गा ...!!!  ...ही ही ही ... मुर्गा !! ...,"
वसूले > " चलो पूछ लें कही मुर्गा ही ना हो ..., इससे पहले की वह " बांग " दे , और कोई दूसरा जाग जाये ... क्यों ना  हम ही उसे दबोच लें ..!! " 
खोजे > .." बिलकुल " ..!!
 ( दोनों किसान के पास जाते हैं ) 
खोजे > " क्योँ भाई किस " फ़ार्म " के हो ..? " 
 वसूले >  " देशी हो या विलायती " ..? 
किसान . > ( हाथ जोड़ कर ) ' मर्जी " ...! "
दोनों एक दुसरे को देख कर ) - " क्या मतलब ..? "  ( निराशा से सर हिलाते हैं (
खोजे <  " क्यों भाई पहले कब कटे थे ..? " 
वसूले > " " तुम्हारे पंख कब नोचे गए ..? "
किसान ( हाथ जोड़ कर ) _ " हुकुम " ! 
 ( खोजे वसूले प्रश्नवाचक द्रष्टि से  एक दुसरे को देखते है  ) 
खोजे > क्या नाम है तुम्हारा ..? " 
 किसान > " भोज " 
वसूले >  "  नाम तो ' शाही "  है ... शाही मुर्गा है ! " 
खोजे > " आगे।।।  जात- पांत ...? " 
किसान >  " राजा ..!  राजा भोज।। " 
वसूले  > ( चौंक  कर उछलते  हुए )  ..  " यह मालिक का  खानदानी  है ...! रिश्तेदार लगता है ... " 
खोजे > " (  ..! हंसता हुआ ) अरे नहीं भाई ..यह  चिन्तक है   स्कीम सोच रहा है प्रगति के नए चरण " 
वसूले  > ."  फारेन रिटर्न  हो सकता है ! "
 खोजे >  "   फारेन का आदमी  ! रिटर्न भी  दे सकता  है ... लेकिन  रिटर्न सीधे मालिक को ही देगा।। समझे ? "
वसूले > " चलो मालिक को खबर कर दें .." 
खोजे > " पहले हाकिम को बतला दें ! " 
वसूले > " हाकिम खुश हो जायेंगे ! " ..हमें ओहदा दे देंगे ..!! " 
खोजे ..." दौड़ो ...!! " 
वसूले >  " भागो।।" ! 
( दोनों दौड़ कर मंच के दुसरे कोने पर जाते हैं जहाँ " हाकिम " खड़ा खड़ा ..हवा में कलम चला रहा है ! उसके सामने एक लम्बी मेज़ है .. जिस पर कई ' डिब्बे ' रक्खे हैं ! वह कागज़ इधर उधर कर रहा हिया ..., हाथ उठा कर फोन करता है ! एक और मुंह करके चिल्लाता है ... डांटता है ... फिर कलम चलता है ) 
 खोजे वसूले दोनों वहां पहुँच कर थोड़ी देर हाथ बांधे   ' हाकिम " के एक्शन देखते रहते हैं फिर बोलते हैं ) 
खोजे >  " हुजुर ..हाकिम जी  !  लेटेस्ट न्यूज़ ..!! "
वसूले >  " ब्लास्टिंग - सीक्रेट  न्यूज़ "..! 
अफसर >  " बको .." 
खोजे >  " वहां मैदान में एक रहस्यमय आदमी उकडू बैठाहै ! " 
वसूले > " नाम है भोज  ...जात है राजा   " 
खोजे >    " कमर में सुनहरा पट्टा लगाये है .. राज दरबार की परम्परागत पेटी " 
अफसर  >  " पुरातत्व के दिब्बेमें नीले फार्म के साथ - पीली चिट  चिपका कर - एक अर्जी के साथ डाल दो ..! "
(  खोजे - वसूले , दोनों एक दुसरे की और देख कर भौं चक्के हो जाते हैं )
खोजे  > ' हुजुर वह सोच भी रहा है " 
अफसर >  " साहित्यकारों की बही में सबसे आखिर में , सफ़ेद चिपकी लगा कर एन रोल कर लो   और हरे डब्बे में  डाल दो  ..! "
खोजे  >  " हुजुर !!  वह सरकारी ज़मीन पर है  ! "
अफसर > " नगर पालिका के डब्बे में मुह घुसा कर फूस फुसा दो   वे बुलडोज़र से उखडवा देंगे ..! "
 ( दोनों एक दुसरे को परेशान हो कर देखते हैं ) 
खोजे > ( चिंता से ) क्या करें ..?? "
 वसूले > " हाकिम व्यस्त है ... रात भर सोया नहीं है ! "
 खोजे >  " सूचना तो देनी पड़ेगी ... वरना नौकरी भी जा सकती है ! "
वसूले > हाँ भाई खोजे ... सूचना तो देनी ही पड़ेगी ! " 
खोजे > ( अफसर से ) - सर !! वह " मुर्गा " भी हो सकता है   उकडू बैठा है ! " 
अफसर > ( चौंककर )  " क्या।।।???" ... उकडू बैठा है ..?? फ़ौरन लाल नीले डब्बे में रिपोर्ट करो -- आज कल यहाँ बहुत मुर्गे दिख रहे हैं ..! या खतरनाक होते हैं ... ' मुर्गियों ' का जीना हराम  कर रक्खा है इन्होने ..! "

( दोनों झुक कर एक कागज़ पर कुछ लिखते हैं   और फिर वसूले लपक कर उसे  एक डिब्बे का मुह खोल कर अन्दर डालता है .. अचानक   ' खट ' की आवाज़ होती है डिब्बे का ढक्कन बंद हो जाता है ... वसूले  का हाथ डिब्बे के अन्दर ही रह जाता है !) 
 वसूले > ' अरे ... अरे  मर गया .." 
खोजे >  ( घबरा कर )  ..." क्या हुआ वसूले ,,,?? " 
वसूले > "( कराहते हुए ) मेरा हाथ फंस गया ! "
खोजे ( घबरा कर )  ( - "  अफसर से ) - सर !! वसूले का हाथ फंस गया ! " 
अफसर > " खाली हाथ डाला था क्या ..? " 
खोजे > " यस सर ! "
अफसर > "  व्हाट नानसेंस !! ...इसने चूहे वाले कटघरे में हाथ क्यों दाल दिया .. वो भी खाली ..? " 
खोजे >  " सर उसे पता नहीं था  .. न समझ है .. बच्चा है सर ..! " 
अफसर > " वसूले और न समझ ..??.... किस गधे ने नौकरी दी ... ? " 
पहला >  " सीधा अप्वाय्मेंट है सर ... मालिक की तरफ से ..! "
अफसर > ... ओह।।।!! ..सारी ...!! ..लेकिन मालिक ने नोकरी देते समय अकल  तो नहीं ले ली थी ... वो कहाँ गयी ..! " .
खोजे > " वसूलने में खर्च हो गयी सर ..! उसे छुडवा दीजिये ! "
 अफसर > " तुम्हे मालुम है ..??  इस पिजरे की चाबी सीधे मालिक की कमर से बंधी है ...? " 
 खोजे > " नहीं मालूम सर !!  सीक्रेट बातें नहीं मालूम ..! "
अफसर > " कटघरे को खोलना आसान नहीं ...! खोजे।।।। वह विदेशी हाथ फंसाने के लिए रखा गया  है ! "
वसूले > ( आर्त स्वर में ) ..." अब क्या होगा सर !! मुझे बचाइये ..!! "
खोजे >  " अब कोई सही रिपोर्ट आपको नहीं देंगे सर सर ... इस बार बचवा लीजिये ! "
अफसर >  " कौन बचा सकता है   इसे ..? इसका हाथ तो गया ..! "
खोजे > ( आश्चर्य से )  क्या सर ....???" 
वसूले >  ( आर्त  स्वर में चीखते  हुए  ).... नहीं सर।। !  प्लीज़ सर ..!! "
अफसर > " हाथ तो काटना ही पडेगा वसूले ..! अब यह बतलाओ कहाँ से काटूँ ..??
वसूले > " नहीं सर ..!! प्लीज़ सर ...!! " 
अफसर . " जल्दी बोलो ..! मालिक को पता चले  इससे पहले बोलो ..! " 
खोजे >  " ... लेकिन सर ... बिना हाथ के यह कैसे वसूलेगा ...? "
 अफसर > " नए नियम बिना हाथ के ही वसूलने के आ गए है ! "
वसूले ( ( चिल्ला कर ) नहीं सर ..! प्लीज़ सर ..! "
( तभी पत्रकार आता है ) 
पत्रकार >  " क्या हाल है मिस्टर " गड़बड़ी !!  " ..क्या चीख पुकार मची है डिपार्टमेंट में ..? " 
अफसर  > ..." ओह आप ...!! आइये क्या लेंगे ..? " 
 पत्रकार >  " न्यूज़ और सिर्फ न्यूज़ ..!! "
अफसर  ( हंसते हुए ) .... न्यूड ..??   भैया ... न्यूड तो बाहर मिलेगा .. यहाँ विभाग में कहाँ ..? "
 पत्रकार >  धन्यवाद ..!! मुझे तो सिर्फ ' न्यूज़ " ही चाहिए ... हाँ अगर न्यूड -... न्यूज़ हो  तो और भी शुक्रिया !  
अफसर > " कहाँ फ्लेश करेंगे ..? "
पत्रकार >  " दैनिक कन्फ्यूज़ में " 
अफसर > .." देखिये आप कुछ भी लिखते हैं ...! पिछली बार मेरे पीले डिब्बे के पेंट पर लिख डाला आपने ..! .. डिब्बा खड्खादा  गया ! मुझे नया पेंट करवाना पडा ..! मालिक का खर्चा हुआ ! "
पत्रकार >   "  अब हमें क्या मालूम की " पीला डिब्बा  " काम का भी है या नहीं ....कभी प्रेस नोट तो दिया नहीं  और ना कभी विज्ञापन  ! .."
 खोजे ( बेचेनी से हाथ मलते हुए ) .." कुछ कीजिये सर !! वसूले का हाथ अभी फंसा हुआ ही है ! "
 अफसर  >  " अरे हाँ ..!  लाओ वसूला ! "
 पत्रकार > " क्या कर रहे हैं ..?? "
अफसर >  " आपके लिए समाचार बना रहा हूँ ! ... वसूले का हाथ वसूले से कट रहा है ! "   मजबूरी है ... फंस गया है ! "
वसूले >  '' नहीं सर  प्लीज़ सर ..!" 
खोजे > " कुछ कीजिये सर !! हम लोग बड़ी इम्पार्टेंट  रिपोर्ट लाये थे ..! "
पत्रकार  > " क्या रिपोर्ट थी भाई ..?? ... कितनी इम्पार्टेंट थी ..? 
अफसर >  " अरे जाइए यह आपको ना बताई जायेगी ..! "
खोजे >  " हाँ मैदान में उकडू बैठा आदमी क्या है .. यह  सब हम नहीं बताएँगे  ! "
अफसर >  ( खोजे से ) ( जोर से ).... चोप्प्प ....!! "
पत्रकार >  ' बस बहुत है !  ( लिखते हुए )  मैदान में ... उकडू आदमी ... अभी देखता हूँ ... ( भागता है ) 
अफसर > ( खोजे को डाँटते हुए ) .. कर दिया ना लीक ..मोस्ट इम्पार्टेंट टॉप  सीक्रेट ... अभी डब्बे में गया ही नहीं नहीं ...और उसे मालुम पद  गया .!! 
खोजे > " (  दबे स्वर में ) - अब क्या होगा सर।।?? " 
 अफसर > " होगा क्या ...?? ... जीप में डीज़ल डलवाओ ..! चलो फील्ड पर चेक करो ..!! थोरो चेक करो ..! डिटेल्ड रिपोर्ट लगेगी ..! "
 वसूले > ( चिल्लाकर ).."   नहीं सर प्लीज़ सर .." 
( अफास  र्खोजे भागते हैं ... दौड़ कर  मंच के  दुसरे कोने में किसान के पास पहुँचते हैं  वहां पत्रकार पहले ही पहुँच चुका है  और कैमरे से विभिन्न एंगल से उसके फोटो ले  रहा है  )
अफसर >  ' बस।।! बस।।!!  इट  इज  अवर प्रापर्टी ..हमने खोजी है ... आप फोटो नहीं ले सकते ! "
पत्रकार > " आप मुझे नहीं रोक सकते !   यह आपका माल नहीं है ! "
 अफसर >  " व्हाट आई से .. इस करेक्ट .. ! "
पत्रकार >    " व्हाट  आई राईट इस परफेक्ट ..! "
किसान > ( बद्बदते हुए ) ... " मर्जी .." 
अफसर > " क्या नाम है तुम्हारा ..? " 
किसान >  " भोज .." 
अफसर ( कड़क कर )>  ...' जात ..?? "
किसान > " राजा .... आदी  राजा ..!! " 
अफसर  > " पटवारी हल्का ..? "
खोजे >   "यह बिना पट्टे  के है हजुर ..! "
अफसर > " पट्टा  तो डाला है कमर में  !  ..  देख नहीं रहे हो ..? "
 खोजे > " तुम सरकारी ज़मीन पर क्यों बैठे हो ..? " 
 किसान >  " मर्जी।।" 
खोजे > " सरकारी ज़मीन पर  सिर्फ सरकार बैठ सकती है ... ' हाकिम ' बैठ सकते हैं ! "
 अफसर > "...और फिर उकडू बैठे हो  !! ":
खोजे > '  गन्दगी कर रहे हो ...! "
अफसर >  वह भी सर पर हाथ रख कर ..! "
खोजे > ' सोच रहे हो या षड्यंत्र  कर रहे हो ...! "
अफसर > ' तुम पर तो एक साथ कई धाराएँ लग रही हैं ...! "
 खोजे > "  कई कई दफा  लग रही हैं ! " 
अफसर >  "  बोलो क्या किया जाये तुम्हारे साथ ..? "
खोजे >  " अपनी सज़ा तुम खुद बतला दो ..! "
अफसर >  " कहो तो तुम्हारे घर हवालदार भिजवा दें ..? "
पत्रकार >  " बिना अपराध।। वारंट  के आप कुछ नहीं कर सकते ... समझे ..?? " 
अफसर >  " मिस्टर खोजे वेरीफाई करो ... पटवारी हल्का  नंबर सात में  ज़मीन किसकी थी ... ! कौन था मालिक ..? "
( खोजे एक बही निकालता है   खोजता है।।।।एकाएक  चौंक कर  )
 खोजे > '' यह रहा हुजुर !!  यहाँ लिखा है ... ' यह "  गंगू तेली " है ! "
अफसर >  ( चौंक कर ) .... " गंगू तेली ....?? हैं .. ?? गंगू तेली ..!!   मालिक  का  कम्पटीटर    .??  "
खोजे >  हाँ सर ..!! मालिक की तुलना में इसने एक कहावत बनवा दी थी .... " कहाँ राजा  भोज ... कहाँ गंगू तेली " .....आज तक चल रही है ! 
पत्रकार > " वंडर फुल ...!!!  यह गंगू तेली है .. !!  इसके नाम की कहावत से तो लोग आज तक कन्फ्यूज़ होते हैं ..! " 
खोजे > ' हनन   कहाँ राजा  भोज कहाँ गंगू तेली .. " 
पतरकार >  औरयहं  " कहाँ " शब्द  किसके लिए लागु है .. यह आज तक स्पस्ट नहीं हुआ ! " 
 अफसर > ( स्वतः  फुसफुसाकर ) .. " यह  तो बड़ा खतरनाक शख्श है ! ... वेरी   डेंजरस ..!"
पत्रकार >..."  दिस इज अ ग्रेट  स्कूप ..!! ..." राजा  भोज के भेष में गंगू तेली  की अद्भुत खोज ...! " 
अफसर > ' मिस्टर खोजे ...!! " 
 खोजे   " यस सर " 
 अफसर > " हॉट लाइन पर खबर करो ... फ़ौरन मालिक को खबर करो ..! " 
 (दूर  वसूले की चींख ...)...' नहीं सर ... प्लीज़ सर ..! " 
(अफसर बात करता है , दूर कुर्सी पर बैठा  राजा  सुनता है   बोलता है ... सामने पुतला खड़ा ऊँघ  रहा है )
 राजा > ' क्या छपा  है अखबार में ..? " 
  अफसर > " गलत छपा है .. बिलकुल गलत ... वो गंगू तेली है ... हमने डिटेल्ड चेकिंग कर ली है .. उसका बाप भी गंगू तेली था ...! बाप का बाप  यानी दादा भी गंगू तेली .... परदादा भी ... लकड़ दादा भी गंगू तेली था .  वह खानदानी तेली है ..मालिक  ..! " .!
भोज > ' यही तो बहस का मुद्दा है !  हम भी खानदानी है   बाप भी भोज थे .. दादा परदादा .. लकड़ दादा  भी भोज  ..! " 
पुतला >  " राजन ... !! सावधान !! . गंगू तेली को दूर रक्खें .!! " 
भोज >   ' तुम लोग बताये  सूत्रों पर गंगू को सम्हालो ..! उसका मनोरंजन करो ..! तब तक में कुछ नए फार्मूले भेजता हूँ ..! " 
(प्रकाश पुनः किसान पर केन्द्रित होता है ) 
खोजे > ( किसान को पुचकार कर ) - " गंगू जी !! आप इस तरह सर पर हाथ क्यों रखे हैं ..?? " 
 अफसर > " हाथ पर सर  रखिये ..! " 
खोजे > " हाँ दुनिया बदल रही है ... दुनिया के साथ चलिए ..! "
 अफसर > " अच्छा  देखिये आपको कुछ तमाशे दिखाएँ ..! "   मिस्टर खोजे पिटारा लाइए ! " 
 (खोजे एक बड़ा डिब्बा लाता है जिस का मुह टी वी जैसा है )
अफसर > ' कितना सुन्दर दिखता है  यह देखो गंगू ... इसमें ..' 
खोजे > " नाचती परियां ... बहते झरने ... ध्यान से देखो इसमे कहीं कहीं तुम भी दिखोगे ..! "
अफसर > ' अच्छा !!क्या  तुम्हारे पास तुम्हारे पुरखों के चित्र हैं ..? तुम्हे याद है  अपने बाप दादाओं का चेहरा ... नहीं ..?
खोजे >  ( एक बड़ा आइना लाता है )-( गंगू को दिखा कर )- " यह देखो अपने  पिताजी का चित्र ..... अब जरा मुह मोड़ो  कुछ तिरछे हो ... इस तरह से  ! ( आइना घुमाता है ) ..यह है तुम्हारे दादाजी का चित्र .  और ऐसा ही है तुम्हारे लकड़ दादाजी का चित्र .! " 

अफसर > " देखो सब तुम्हारे जैसे ही दिखते  थे  !   बिलकुल फर्क नहीं .. वैसे ही जैसे तुम आज  दिखते  हो ..! " 
 खोजे > " उनके पास कुछ भी नहीं था .. तुम्हारे पासभी कुछ भी नहीं !   " 
 अफसर > " लेकिन तुम्हारे लिए हमारे पास बहुत सी स्कीम है ! " 
खोजे > " बहुत से प्लान ..! " 
अफसर > " अब हम इन स्कीमों के बारे में  पढ़  कर तुम्हे बताएँगे ..! तुम सर हिलाते जाना , देखो यह पीली स्कीम - खास तुम्हारे लिए .
खोजे > " .. तुम नहीं जानते ... तुम्हारा ' बांया ' हाथ कमज़ोर है !  हम उसे और मजबूत  बनायेंगे ! " 
 अफसर > " उसे दांये हाथ के बराबर बना देंगे ..! " 
किसान > परन्तु मेरे तो दोनों हाथ बराबर हैं ...ये देखो ..! "  ( हाथ दिखाता  है ) 
अफसर > ( सहानुभूति से ) - अरे नहीं गंगू !! तुम नहीं समझ सके आज तक ., हजारों साल बीत गए ...! " 
खोजे > " अच्छा  गंगू  !! यह बताओ ..  तुम अब तक हवन , दान , जैसे पवित्र कार्य किस हाथ से करते रहे ..? 
किसान > इस हाथ से - दांये हाथ से " 
 खोजे >   " और शौच , मुखारी , जैसे गंदे काम किस हाथ से ..? " 
 किसान >  ( दूसरा हाथ दिखा कर )  " इस हाथ से ... बांये हाथ से ...! "
 अफसर >  " तो साफ़ है की बांया हाथ दांये हाथ से हमेशा नीचे रहा ! उससे सदियों तक गंदे काम लिए गए .., उसकी   अवहेलना की गयी।।। क्योँ ??    इसलिए हम उसे दाहिने हाथ के बराबर कर देंगे  ..,! "
 किसान > ( दोनों हाथ आगे ला कर दिखाते हुए ) - देखिये मेरे तो दोनों हाथ बराबर है ..! "
 खोजे > हाथ का मतलब पूरा हाथ ..! अंगुलियाँ कहाँ बराबर हैं .. ? स्कीम बराबर करने की है ... हम उंगलियाँ बराबर कर देंगे ! " 
 किसान > "  नहीं मैं ठीक हूँ , मेरे हाथ ठीक है ! " 
खोजे > " तुम्हें कैसे मालूम की तुम ठीक हो ..? फिटनेस सार्टिफिकेट है तुम्हारे पास ..?? " 
अफसर > " तुम्हे और भी सुविधा मिलेगी  गंगू ..!!   लो यह हरा फार्म भरकर पीले डिब्बे में  डालने .के लिए ! " 
खोजे > " और यह नीला फार्म  सफ़ेद डिब्बे में डालने के लिए  ..! " 
अफसर > " यह गुलाबी फार्म बेंगनी  डिब्बे के लिए .." 
 खोजे > इधर आओ गंगुजी ..!! यहाँ लगाओ अपना अंगूठा ...यहाँ ..! " 
अफसर > " और अब इस फ़ार्म को आगे बढ़ कर नीले डिब्बे में डाल  दो ! " 
( किसान हाथ में फार्म लेकर आगे बढ़ता है ! डिब्बे तक नहीं पहुँच पाता  है - कमर में बंधी सांकल रोकती है ) 
अफसर > " थोड़ा पर जोर लगाओ गंगू ... थोड़ा और ..! " 
 ( किसान आगे बढ़ता है , .. जोर लगता है ..., सांकल खिंचती  है   जिससे कुर्सी हिलती है ) 
पुतला > ( जोर से चिल्ला कर ) _ कौन कुर्सी हिला रहा है ...? " 
अफसर > " कोई नहीं सर ! .. गंगू अपनी अर्जी डिब्बे में नहीं डाल पा रहा है ..! "  
 खोजे > " थोड़ी सांकल ढीली कीजिये सर ..!! कड़ियाँ लचीली कीजिये सर ..! " 
पुतला >  " सांकल  पुरानी है , उसकी  कड़ियाँ बहुत मोटी हैं ..ढीली नहीं की जा सकती ! "
 अफसर > " थोड़ा और आगे आओ गंगू ! "
किसान  के आगे बढ़ने पर सांकल खिंचने  से फिर कुर्सी हिलती है ) 
राजा > ( चिल्ला कर ) - " बेवकुफो ..!! कुर्सी हिल रही है ! डिब्बों को उसके पास ले जाओ ..! "
(दूर - वसूले की चींख - नहीं सर प्लीज़ सर ..) 
अफसर > " ठहरो  गंगू ..!! हम हम तुम्हारे लिए डिब्बों को ही उठा कर .तुम्हारे नज़दीक ला देते हैं  ! " 
( खोजे और अफसर दोनों मिलकर डिब्बों को उठाने का प्रयत्न करते हैं - डिब्बे भारी हैं .. , बहुत ताकत लगाने पर भी हिलते नहीं . दोनों को पसीना आ जाता है .! ) 
खोजे > ( हताश स्वर में ) " यह बहुत भारी हैं ...सर ..!!   ...उठते  ही नहीं ) ! " 
राजा > ( कड़क कर ) " गधों ..!! ... नए डिब्बे बनवा लो ..., खर्च की चिंता मत करो ..!  डिब्बे उसके चारो और सज़ा दो ..! "
अफसर > " मिस्टर खोजे  नए डिब्बे बनवाओ ..! " 
( दूर से वसूले की चींख - नहीं सर प्लीज़ सर ) 
खोजे >  "  तबतक गंगू क्या करे सर ..?? ....उसके हाथ में फ़ार्म है ! " 
राजा > " मूर्खो ..!! तुम्हारे किये कुछ ना होगा ..! में खुद आता  हूँ ! " 
( राजा चल कर किसान के पास आता है  साथ में पीछे पीछे पुतला भी है ) 
अफसर >  " महाराज की जय ..! " 
खोजे > " सरकार की जय ..! " 
राजा > " शांत।।! शांत ..!!  हम गंगू भाई के लिए  चल कर आये हैं ! ... हम उनके लिए ज़मीन पर चलेंगे ..,  हम उनके सेवक हैं ! उनके लिए नयी नयी सुविधाएँ लाएंगे  ! " 
अफसर-  खोजे > " महाराज की जय - सरकार की जय "
राजा >  "  हम और गंगू भाई दोनों खानदानी हैं ... एक ही समय के एतिहासिक लोग ..! हमारा उनका  बड़ा पुराना  साथ  है ! हम उन्हें बहुत पहले से जानते हैं ... भले ही वो हमें ना जान पाए हो ..!"

अफसर- खोजे > महाराज की जय - सरकार की जय " 
राजा > " गंगू भाई  आगे बढ़ सकें ..! सबके साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें , इसके लिए हम कोई कसार बाकी ना छोड़ेंगे ..! नए डिब्बे  बनवायेंगे ..! कई नए फ़ार्म छपवायेंगे ! " 
अफसर - खोजे >   " महाराज की जय - सरकार की जय ! " 
राजा >  "  हम गंगू भाई को नयी दिशा देंगे ...,प्रगति का पाठ पढ़ाएंगे ..... आओ गंगू भाई हम मिल कर नयी दिशा की और बढ़ें ..! " 
 (  राजा गंगू के कंधे पर हाथ रख कर , कुर्सी के चारो और चक्कर मारता है ! पीछे पीछे पुतला . हाथ में डिब्बे लिए  अफसर ,  और सर पर बहुत सारे  फ़ार्म लादे खोजे चलता  हैं )
कुर्सी के चारो और  घुमाने से किसान की कमर पेटी से बंधी सांकल . कुर्सी के चारो और लिपट कर छोटी होती जाती है ... और अंत में बहुत छोटी होने से कुर्सी के निकट हो जाती है ! ) 
 (दूर वसूले की आवाज़ धीरे धीरमद्धिम होकर बंद जाती है ) 
 कुर्सी के पास आकर राजा कुर्सी पर फिर बैठ जाता है ... अपने पेरों के पास किसान को बैठा कर उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगता है , अफसर खोजे दायें बाएं खड़े हो कर फ्रीज़ हो जाते हैं .... प्रकाश मद्धिम होने लगता है ) 

 जब रजा और किसान कुर्सी के चक्कर कट रहे होते हैं  तब समवेत स्वर में एक गान गूंजता है ) 

" सेरी के रे सेरी के .., पांच पसेरी के ..,
 उड़ गए तीतर  बस गए मोर .., 
 सड़ी डुकरिया ले गए चोर ..! 
चोरन के घर क्घेती भाई .., 
खाय डुकरिया मोती भाई .., 
मन  ,मन , पीसे मन मन खाय ,
 बड़े गुरु से जुझन जाय ..!
राज लुट सब चोरन खाय ..,
 बुढिया  उनकी  लेय   बलाय ..!! 


( प्रकाश धीमा होते ही  ... मंच पर अन्धकार हो जाता है )






***** समाप्त *******


 



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