शनिवार, 26 जनवरी 2019



,,," विंध्य की विरासत " ,,

    प्रथम अंक 

( एक व्यक्ति  ढलवां पहाड़ी  के पीछे से निकल कर , क्रमशः उठता हुआ  ,,कैमरे के  आगे आता है  !  पीछे , पृष्ठभूमि में  फ़ैली हुई  विंध्याचल पर्वत  की चोटियां हैं    !  आगे आया  हुआ ,,पुरुष   एंकर है ,,कैमरा  ज़ूम हो कर  एंकर  पर जाता है ! )

एंकर -दोस्तों,,! आज हम अपने धारावाहिक " विंध्य की विरासत " के माध्यम से ,  विंध्याचल पर्वत  के पूर्वोत्तरी भाग में बिखरी , उस भूमि से आपका परिचय कराने जा रहे हैं , जिसके कण कण में राम का वास है ,  जहाँ ऋषियों  और  महर्षियों के तप का तेज ,है कई  वीर राजवंशों की गाथाएं हैं , और पग पग पर आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक की राष्ट्रीय धरोहरें हैं ! यह भूमि भाग ,,, विंध्याचल पर्वत की तराई में  बघेलखण्ड के  शहडोल जिले  से लेकर, रेवा , सीधी , सतना , पन्ना जिले की   वन सुषमा को अपने आँचल में  समेटे ,   बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले तक ,,"  विंध्य भूमि " के नाम  से आदिग्रंथों में   उल्लेखित किया गया है   ! वस्तुतः यह भूमि ,  गंगा कछार की भूमि से दक्षिण दिशा में प्रवेश करने का तोरण   द्वार  है  जिससे हो कर अगस्त ऋषि और भगवान् राम , आर्य संस्कृति के ध्वजावाहक बन कर ,  दक्षिण के  भू भाग में   प्रवेश किये  और  जहां आज भी ,,  आदिकालीन द्रविण संस्कृति  और आर्य संस्कृति की   साझा विरासत  फल फूल रही   है !
     विंध्यांचल  पर्वत ,,,,अगर  देखा जाए तो , कोई एक पर्वत के स्वरूप में नहीं है बल्कि पश्चिम  के  , गुजरात प्रांत से ले कर , पूर्व में बिहार और उत्तरप्रदेश तक  फ़ैली  कई पर्वत श्रेणियों की एक लम्बी श्रंखला है ! इसकी ऊंची  श्रेणियां ,, एक और छत्तीसगढ़ के  मेकल पर्वत को छूती हैं  और  दूसरी और   राजस्थान  के  राजपूताने  के शौर्य  वैभव ,, अरावली पर्वत को ! आदिकाल में , विंध्याचल पर्वत में फैले ,  सघन  वन , गहरी  घाटियों , हिंसक वन्यजीव , और दुर्गम भूमि के अवरोध के  कारण , इसे लांघना  संभव नहीं था और यह पर्वत  अजेय था !  मेकल पर्वत से निकल कर ,सतपुड़ा और विंध्याचल की गहरी घाटी में , पश्चिम की और  बहती नर्मदा , अरब सागर की खम्बात की खाड़ी में  विलीन होती थी और इसी पर्वत से निकल कर ,  , पूर्व की और बहता सोन  नद कैमोर घाटी से बह कर , बिहार जाकर , गंगा नदी में  अपना अस्तित्व विलीन करता था  इस प्रकार  उत्तर और दक्षिण की भूमि  को सरहदों  में बांटने का काम विंध्याचल  जैसे यहां एक प्रहरी  बन कर ,  अपनी  दोनों  भुजाएं फैला कर ,  करता था !    ! पौराणिक कथाओं के अनुसार   ,  कहते हैं की विंध्याचल पर्वत , अपनी ऊंचाई  को निरंतर उठाता हुआ  , देवताओ के प्रिय पर्वत ,  हिमालय को चुनौती देने लगा , !  अप्रिय स्थिति भांप कर , अगस्त्य ऋषि ने आर्य संस्कृति की धर्मध्वजा  ले कर , उत्तर से दक्षिण  की यात्रा की ,  और  जब वे यहां मेकल के किनारे  से गुजरे , तो  विंध्याचल पर्वत ने शाष्टांग दंडवत  लेट कर उन्हें प्रणाम किया!  अगस्त ऋषि ,  अपने  वापिस लौटने तक उसे उसी प्रकार लेटे  रहने का  निर्देश  देकर दक्षिण की और  चले गए और फिर  कभी वापिस नहीं आये ! कहते हैं आज यह उसी तरह दंडवत हो कर , पश्चिम से पूर्व तक शाष्टांग मुद्रा में लेटा है , और अगस्त ऋषि के लौटने की बाट  जोह रहा है !

   { नेपथ्य से वाइस ओवर  ) ( विभिन्न दृश्यावली के साथ )  ,
 भारत के हृदय क्षेत्र , मध्यप्रदेश की , पूर्वोत्तरी सीमाओं पर   , अगस्त ऋषि  को दिए वचन को निबाहता विंध्याचल पर्वत , जिस भू भाग को अपने आगोश में समेटे है , वह विंध्य भूमि के नाम से  जाना जाता  है ! इस क्षेत्र को सींचने वाली नदियाँ , रिहन्द , सोन , तमसा ,  सतना , केन , धसान , और बेतवा , सदा नीरा हैं !' सोन ' को अपने तीव्र वेग के कारण , हिमालय पर बहने वाले   ब्रम्हपुत्र  की तरह , पुरुषवाची  " नद " की संज्ञा मिली है  जो पौराणिक कथाओं के अनुसार , जौहला  द्वारा भटकाया हुआ , नर्मदा का  वह  विकल प्रेमी है , जो पश्चाताप की आग में झुलसकर , मेकल पर्वत से छलांग लगा कर , जौहला को अपने साथ ले , उत्तर पूर्व की और त्रीवता से दौड़ कर , मोक्षदायनी गंगा नदी की  गोद  में समा जाता है !इसी सोन के किनारे , भ्रमर शैल पर ,  महाकवि बाण भट्ट ने , अपना आश्रम बना कर , कालजयी काव्य " कादम्बरी " की  अद्भुत रचना की ! इसी सोन के   तट  पर , तपस्वी शिवभक्त ,प्रशांत शिव की तपोस्थली  है  , जिन्होंने  चंद्रेह  के अद्भुत शिव मंदिर का निर्माण करवाया ! इसी सोन के तट पर , मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम है , और इसी सोन से  जौहला  के  मिलन घाट  को , रामायण काल के पितृभक्त  ' श्रवण' को दशरथ द्वारा शब्दभेदी बाण द्वारा मारे जाने का वर्णन यहां की जनश्रुति में है ! आधुनिक भारत के निर्माण में , पर्वतों को तोड़ कर , महीन बालू प्रदान करने वाली प्रमुख  नदी यही सोन है और इसी सोन को बाणसागर में  बाँध कर , आज वद्युत उत्पादन का बड़ा जल विद्युत् उत्पादन का  शक्तिकेंद्र बनाया गया है  !
बाणसागर बाँध से निकली , सोन की वेगवती जल धाराएं , नहरों के माध्यम से बह कर ,  रीवा  जिले की बिछिया नदीं से मिल कर , इस क्षेत्र की प्रमुख नदी , तमसा  में  उड़ेल  दी गयी हैं , जहां से  , सिरमौर में , बड़ा जल विद्युत् उपकेंद्र , मध्य प्रदेश की विद्युत् वाहिकाओं में ऊर्जा का संचार कर रहा है ! बाणसागर से  निकला सोन का जल , सतना और रीवा के ग्रामीण अंचलों को भिगोता , विंध्य  के मध्य भाग में   उन्नत कृषि का सम्बल बना हुआ है , वहीं वह अपनी बिछुड़ी  प्रिया , नर्मदा,,  के बरगी बाँध से निकले जल को  , सतना जिले में गले लगाने  को  आज भी बेताब है !

( तमसा नदी के किनारे चलती हुई एक स्त्री एंकर   )
  स्त्री एंकर-   विंध्याचल पर्वत  की   ४८३ किलोमीटर लम्बी कैमोर पर्वत माला  पूर्व में बिहार के रोहतास  , और उत्तर में ,  उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर जिले  तक फ़ैली हुई है     , जिस के  पूर्वी भाग में कैमोर पर्वत श्रंखला से  सट कर  सोन अपनी पूर्व की लम्बी यात्रा संपन्न  करता है ! इस , 'सोन घाटी में ,  फ़ैली गहन  वन सुषमा आदिकाल से '  विंध्यावाटी  ' के नाम से    विख्यात है !
  कैमोर पर्वत श्रंखला के ही ' तामकुंड ' नामक स्थल से निकली , -विंध्य क्षेत्र की प्रमुख  दूसरी नदी, ,,  '  तमसा ',, यानी टोंस नदी का  यहां के जनजीवन में कम महात्यम  नहीं है ! यह नदी  यहां के  चूने   पत्थर के पथरीले क्षेत्र पर बहती हुई , धार्मिक नगरी  मैहर  में  ,  माँ  शारदा का मुंह निहारती हुई , सतना नगर के निकट , माधवगढ़ किले को छूती हुई , रीवा जिले के विद्युत् शक्ति केंद्र सरमौर से निकल कर चाकघाट होते हुए , फिर कैमोर श्रंखला को पार ,करके  यमुना नदी में   जा मिलती है ! २६४ किलोमीटर की इस यात्रा में , वह  , रीवा रियासत  में  कई मनोरम  प्रपातों का सृजन करती है  जो देखते ही बनते हैं ! पुरवा , चचाई , और क्योटी प्रपात , विंध्यभूमि के चर्चित प्रपात हैं , जिसका अपार जल  हृदय को आनंदित करता है ! तमसा नदी का उलेख रामायण में भी है , जिसके किनारे पर , राम ने , वनयात्रा के दौरान , अयोध्या त्यागने के बाद पहली रात्रि विश्राम किया था ! आधुनिक भारत के निर्माण में , विंध्याचल श्रेणियों की तरहटी में , बिखरा  चूने  पत्थर का अनमोल खजाना , सीमेंट निर्माण का मूल तत्व है ! इसलिए सतना और रीवा क्षेत्र  में आज सीमेंट के कई कारखाने उच्च ग्रेड की सीमेंट बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं !

   ( नेपथ्य में  वाइस ओवर  )
  विंध्याचल श्रेणी ,   कैमोर पर्वत माला के उत्तरी भाग की तराई की पठारी भूमि में स्थित  ,   विंध्य भूमि का रीवा नगर , बघेल राजवंशों की मुख्य  राजधानी  रहा   ! बघेल राजाओं  की   पूर्ववर्ती  राजधानी , बांधवगढ़ में स्थापित हुई ,, जहां का अजेय ,किला  कई राजवंशों के उत्थान पतन , आपसी युद्धों , और राजशाही के  उथलपुथल का गवाह रहा है !विश्व प्रसिद्द  सफ़ेद शेर , इसी बघेल  राजवंश की दी हुई  सौगात है   ! बांधवगढ़ का वन्य अभ्यारण , न केवल समूचे देश में प्रसिद्द है , बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी लुभा रहा है ! रीवा  जिले के गोविंगढ़ तालाब में बना राजशाही युग का   कठ बंगला सहज ही  सबको  अपनी और खींच लेता है , विंध्य भूमि के इसी भाग में ,   शिव , ,वैष्णव  संस्कृतियों के अवशेष , आज भी धार्मिक उथल पुथल की गवाही देते हैं वहीं बौद्ध काल के स्तूपों के  अवशेष और जैन मंदिर  के स्मृति चिन्ह भी अहिंसा के परम् धर्म और  विचारधारा की कथा कहते नजर आते हैं !मुगलकाल में , शहंशाह  अकबर के  दरबार के नौ रत्नों के दो रत्न , तानसेन और बीरबल भी इसी विंध्य भूमि के रत्न थे , जो रीवा राज से अकबर दरबार भेजे गए ! आज़ादी के संघर्ष में , बलिदानी युवकों में   रणमत  सिंह का नाम ,  यहां के इतिहास में अमित  अक्षरों में  दर्ज़  है !

   पुरुष एंकर - विंध्याचल की छितराईयों श्रेणियों के बीच शोभा देता चित्रकूट , सतना जिले को धार्मिक आस्थाओं का केंद्र बिंदु  है  ,  जहां भगवान् राम का , मंदाकिनी नदी के किनारे , बारह वर्षों  तक  निवास रहा ,,और जहां  की पर्वत श्रेणियों में स्थित ,  कामदगिरि , दो भाइयों के आत्मिक प्रेम का गवाही देता है   !  भरत की निरंतर मनुहार के स्वर आज भी यहां  जनश्रुतियों में समाये हैं और  त्याग की परम्परा निबाहते राम के पद चिन्ह यहां की रज के  कण कण में दिखाई देते हैं ! भरत  के साथ , राम को मनाने आये अवधवासी , अपनी भाषा संस्कृति के साथ ,जब  यहीं रुक गए , तो  उन्होंने  इस भू भाग की   जनजातियों के साथ मिल  कर एक   नई  संस्कृति,  नई  भाषा  का सृजन किया  जो आगे चल   कर  बघेली कहलाई!

 ( नेपथ्य से-वाइस ओवर  ) ( विभिन्न  दृश्यावली सहित  )
   विंध्य भूमि का  सतना जिला बघेलों और   प्रतिहार ठाकुरों की कर्म  भूमि  रहा है  ! यहाँ मैहर की शारदा देवी , विवेक वाणी , और कला की वरदानी देवी है , जिनके चरणों में बैठ   कर    वीण वाद्य के धनी  बाबा अल्लाउद्दीन खां ने रविशंकर, अकबर अली ,  जैसे संगीत रत्न देश  को   भेंट किये !  आदिकाल में ' विंध्याचल पर्वत की  पर्वत श्रेणी    के नीचे  बसी  ,   उच्छकल्प ' के नाम से विख्यात ,  उचेहरा नगरी , धातु शिल्प  की कारीगरी  के लिए कई वर्षों तक  विख्यात रही  !   भरहुत पहाड़ पर बने बौद्धकालीन स्तूप  और उनके केंद्रों के अवशेष सम्राट  अशोक के शाशन  काल की गाथा , पाषाण मूर्तियों के माध्यम से कह रहे हैं  !  चौमुखनाथ मंदिर में शिव की चारमुद्राओं की अद्भुत मूर्ती इसी क्षेत्र में  विराजी हुई है ! तथा विंध्य भूमि के ,  इसी जिले के एक छोर पर , उत्तरप्रदेश की सीमा से  सटा  वह ऐतिहासिक अजेय दुर्ग सीना ताने खड़ा है जिसे शेरशाह सूरी महीनो तक घेरा डाल  कर जीत नहीं पाया था ! यह भूमि वीर  चंदेल राजवंश की कर्मस्थली भी रही , जहाँ  महोबे के बनाफर  वीर आल्हा उदल  की गाथाएं आज भी पूरेभारत में ,  ओज  फैलाती  हुई   , मारीशश में भी चाव से  गायी  जा रही   हैं ! चन्देलों के काल में बने खजुराहो के मंदिर आज विश्व में कोतुहल का केंद्र बने हुए हैं और योग , भोग , और मोक्ष ,के  आनंद की परिभाषा , पाषाण मूर्तियों के ज़ुबानी बखान  रहे  हैं !   ,

स्त्री एंकर -  (  अजय गढ़  घाटी में खड़े हो कर ) -  विंध्य के पर्वत श्रेणियों पर स्थित पन्ना पठार की भूमि , महराज क्षत्रसाल की वीरगाथा  गाती  है ! कवी भूषण की पालकी को कंधा देने वाले वीर बुंदेले क्षत्रसाल , की प्रशंशा करते हुए कवि भूषण ने कहा था ,,
 ' ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी ,
 ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहती हैं ,
 कंद  मूल भोग करें कंद मूल भोग करें ,
तीन बेर खाती ती  वे तीन बेर खाती हैं !
 वहीं दूसरी और  छत्रसाल की वीरता बखानते हुए एक और दोहे में उनके साम्राज्य की सीमा , विंध्य की नदियों को दर्शाते हुए स्थापित की गयी थी ,,
  इति   यमुना  उत  नर्मदा ,
 इति  चम्बल  , उत  टोंस ,
 छत्रसाल सौं  लरन  की ,
 रही ना  कोऊ  होन्स !!

   ( नेपथ्य से वाइस ओवर  )+ ( कवरेज )
 इन्ही वीर बुंदेले छत्रसाल की राजधानी पन्ना में   हीरों की खदानें हीरे उगलती हैं  ! चारों और से घेरे , विंध्यांचल की पर्वत श्रेणियां , इस नगर को प्राकृतिक सौंदर्य  का  धनी बनाती हैं ! इसके उत्तर में बना अजयगढ़ का किला , चंदेल राजवंशों की मूर्ती कला का साक्ष्य है ! विंध्य पर्वत श्रेणियों के   घाट चूमती , कर्णावती नदी ,,, ,के जल में किलोल करते मगर और घड़ियाल , जहाँ  सदियों से पथिकों को  भयभीत करते रहे    वहीं केन नदी के किनारे फैला विशाल वन अभ्यारण , वन्य जीवों के राजा , बाघ का ऐशगाह रहा  !  पन्ना नगरी के चर्चित धार्मिक मंदिर यहाँ आध्यात्म की अलख जगाते हैं ,  कृष्ण भगवान् का ' किशोरजी ' के  मंदिर के साथ  उनके बड़ेभाई बलदाऊ जी का भी विशाल मंदिर  यहां स्थापित है  ! ओरंगजेब के  भाई , दाराशिकोह को भी इसी विंध्य भूमि ने शरण दी , और यहीं से प्रणामी सम्प्रदाय की नई  धर्म  परम्परा की धारा फूटी ! पन्ना का प्रणामी मंदिर आज भी प्रणामी धर्म के अनुयायियों का दर्शनीय मंदिर और आध्यात्म का केंद्र है   !

 पुरुष एंकर -  ( धुवेला के तालाब पर ) -
 विंध्य श्रेणियों पर बसा छतरपुर ,   वस्तुतः छत्रसाल के नाम पर बसाया गया नगर  था  , यह विंध्य के , बिजावर पठार पर बसा हुआ है !  यहां  से  बीस किलोमीटर दूर ,  नोगावं  जाते हुए , मध्य मार्ग में पड़ता है मऊसहानियां , जो छत्रसाल की प्रारम्भिक राजधानी के रूपमें विख्यात है !  बाजीराव पेशवा की नृत्यांगना प्रेयसी , ' मस्तानी ' का भाबनावेश महल यह स्थापित करता है की वह यहीं से मराठे दरबार को भेंट में भेजी गयी थी ! मऊसहानियां के तालाब , छत्रसालयुग के प्रतीक हैं ! यहां स्थापित  आधुनिक धुवेला म्यूजियम युद्धों में प्रयोग किये गए शास्त्रों का आगार है ! विंध्य की इन्ही श्रंखलाओं पर स्थापित है , बिजावर नगर के समीप ' जटाशंकर ' का मंदिर जो धर्म और आस्थाओं का केंद्र है !

नेपथ्य में 
 यह भू भाग चन्देलराजवंशों के स्थापत्य कला , और मूर्ती कला का गवाह है ! खजुराहो के मंदिर विश्व विख्यात हैं ! वहीं चंदला के निकट ,  पहाड़ी पर बनाये गए ,  बुंदेलों के , एक दुर्ग की छवि     दर्शनीय है ! यह स्थान तीन दिशाओं का मार्ग संगम रहा ,,,जिसमें महोबे की दिशा में फैले पाने के बरेज , महोबे के प्रसिद्द  पान की शान की विरासत को संजोये हुए हैं !  बुंदेलों के बनाये कई दुर्ग आज भी बड़ामलहरा नामक स्थान की पहाड़ियों पर अपनी शौर्य गाथा कह रहे हैं !

स्त्री एंकर  - 
विंध्य पर्वत की श्रेणियों के मध्य बहती धसान और बेतवा नदी ने विंध्य भूमि के उन पृष्ठों को रचा है , जिसमें बुंदेले रजवाड़ों  की वीर कथाएं , यहां के प्राचीन अजेय दुर्ग , गढ़कुंडार और ओरछा में पनपी हैं ! गढ़ कुंढार से उदय हुई , बुंदेले राजवंशों के शौर्य की गाथाएं , बेतवा के तट  पर  बने  ओरछा   नगर तक बिखरीं हुई हैं ! अकबर के दरबार में ,  धर्म  के धनी , वीर बुंदेले मधुकर शाह के  मस्तक पर  , जो राम भक्ति का तिलक लगा , वह ओरछा को  अयोध्या से लाये  गये  राम राजा  की राजधानी बनाने तक , सदैव दमकता रहा !  उनके वारिस महराजा रामसाह  के शाशन काल में , यहां काव्य और साहित्य की जो धारा बही , वह काव्य शिरोमणि केशव के काल से अंकित है ! केशव ने जो काव्य रचनाएं की वे कालजयी हैं ! इसी युग में ओरछा के  कुंवर इंद्रजीत की प्रेयसी ,   काव्य विदुषी , नृत्यांगना , रायप्रवीण के साहस की कथा जन  श्रुतियों में बड़े स्वाभिमान स के साथ   कही जाती है ! ओरछा , राम और सीता के पवित्र देवर भाभी के रिश्ते को भी दोहराता है  जो हरदौल और उनकी भाभी के बीच  यहां श्रद्धा स्वरूप विदवमान है !
( नेपथ्य में )
ओरछा ,  वेत्रवती , बेतवा नदी के तट पर बसा एक रमणीक नगर है  !यहां  के महल , मंदिर , और बेतवा  का प्राकृतिक सौन्दर्य आज अनुपम आभा बिखेर रहे हैं ! राम भगवान् के अयोध्या से यहां आने पर बुन्देल राजवंशों ने ओरछा छोड़ कर अपनी राजधानी टीकमगढ़ कर ली ! टीकम गढ़ , के चारों और कई किले हैं , जिनमें बुंदेले राजवंशों का इतिहास बिखरा पड़ा है ! टीकमगढ़ के निकट , बाणासुर के युग में प्रकट हुए , भगवान् शिव की शिवलिंग है , ! विंध्य की पर्वत श्रेणियां , टीकमगढ़ से ले कर , यहां के एक पुराने नगर , चंदेरी तक फ़ैली हुई है , जहां वस्त्र निर्माण कला  युगों पूर्व से अक्षुण है ! चंदेरी , कई ऐतिहासिक करवटों की गवाह है , !  विंध्य की धारा का यह अंतिम छोर है !

 पुरुष एंकर --  सात नदियों  , रिहन्द , सोन , तमसा , सतना ,  कर्णावती , धसान , बेतवा ,  से सिंचित , आम्र कूट  और चित्र कूट के शैल शिखरों से  सजा ,  आदिवासी जनजातियों की संस्कृति अपने में संजोये ,  विभिन्न
रीतिरिवाजों को निबाहता , आदिकाल के स्मृतिचिन्हों  को गहन वनो के बीच अक्षुण रखे ,  विभिन्न अरण्यों में विचरते वनजीवों  के आश्रय ,  शौर्य की धरोहरों को अंक में लपेटे  ,  साहित्य , कला , और संगीत के धनी , इस विंध्य क्षेत्र की कथाएं , धारावाहिक के  इन सीमित अंकों में समेटना सहज नहीं है ! यह धरा  जहां वैदिक युग के स्मृति चिन्हों की साक्षी है ,जहां मध्यकाल के राजवंशों की उथल पुथल की गवाह है ,  वहीं यह आधुनिक भारत की छवि में भी अब  धीरे धीरे परवर्तित होती जा रही है ! इस धरा के गर्भ जहां  में चुना  पत्थर , हीरा , कोयला, जैसे खनिज छिपे हुए हैं , वहीं यह धरा  , वनोपज , और वन्य संस्कृति , के निर्वाहक , जनजातियों में --कोल  , गोंड , भारिया , अगरिया , बैगाओं के जीवन आधार , और उनकी संस्कृति की आधार भूमि है !  पाषाण युग के  भित्तचित्र भी  इस क्षेत्र के  गहन वनो में   स्थित है ,, जो मनुष्य  जाती के क्रमशः उत्थान कथा कह रहे हैं  !   इन संस्कृतियों की पूरी कथाएं कहने , उनके उत्सवों , खानपान की कथा बखानने , उनके नृत्य संगीत को निहारने , उनकी व्याख्या करने में कई अध्याय लग  लग जाएंगे  ! विंध्य की  यह धरा , दो राजवंशों -बघेलों और - बुंदेलों की कर्म भूमि होने के कारण , आज  दो क्षेत्रों- बघेलखण्ड और बुंदेलखंड  के नाम से जानी जाने लगी है , !
  भले ही राजशाही के कारण , यहां विभिन्न संस्कृतियों का चलन हुआ , किन्तु आम्रकूट से लेकर , चित्रकूट होते हुए ओरछा तक फ़ैली इस धारा के कण कण में एक ही आराध्य लोगों के हृदय में बसे  हुए हैं  और वे हैं  --,,," राम ",,! राम इस धरा की आत्मा हैं , राम इस धरा के आदर्श हैं , राम इस धरा के नायक हैं , इसलिए यहां का  जनजीवन सहजता , सरलता और आस्था के एक ही सूत्र में पिरोया हुआ दिखता है !
अपने धारावाहिक विंध्य की विरासत  में हम , यहां के  कुछ आकर्षक स्थानों , परम्पराओं , संस्कृतियों से आप को जोड़ेंगे  ,, जिसमें रमने के बाद आप के मन में एक ही अभिलाषा जागेगी , विंध्य की इन वीथियों में  विस्तृत भ्रमण की , उसमें बिखरे आध्यात्म को  आत्मसात करने की , उसके प्राकृतिक सौन्दर्य का रसपान करने की ,और उसके रमणीय स्थलों में रम जाने की ,,! हमारा विश्वाश है की आप हमारी इन कड़ियों से जुड़ने के बाद कहेंगे ,,, यह तो आनंद का  अथाह है ,,, इसमें जितना डूबें ,,,उतना कम है !
तो  अगली कड़ी का हमारे साथ इंतज़ार कीजिये ,,, और अपना टीवी , अपनी चैनल पहले से खोल कर रखिये ,,रात्रि ,,,बजे ,,, , ',,,' चैनल पर ,,!
 शुभरात्रि ,,!

 ( आलेख ,,,सभाजीत )