शनिवार, 27 अक्तूबर 2018


"  चन्दा मामा "

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शैशवास्था में , माँ के चेहरे को लगातार देखते रहने के बाद , जब घर के बाहर किसी और चेहरे को पहचानने का बोध जागा , तो माँ ने मुझे गोद में ले कर , चाँद दिखाते हुए कहा --" वह है ' चन्दा मामा " ! मैंने  माँ के चेहरे को छू कर , फिर चाँद के चहरे को छूने के लिए अपना नन्हा हाथ बढ़ाया , तो माँ ने हँसते हुए कहा --" चन्दा मामा दूर के ,,"  !,,,,  , उसे सिर्फ बुला सकते हो ,,, उसके साथ खेल सकते हो , लेकिन उसे छू नहीं सकते !  तब मुझे महसूस हुआ  की माँ के जैसा ही कोई अपना और भी है , जो मेरे साथ खेल सकता है , जिसे मैं कभी भी बुला सकता हूँ ,  और  जिससे मुझे कोई भय नहीं ! ,
 
   कुछ बड़ा हुआ , तो वही चाँद , अपने कई रूप बदलता दिखा ,, कभी , नाखून की तरह , कभी आधा अधूरा , कभी बहुत बड़ा , तो कभी आसमान से बिलकुल विलुप्त ! कभी वह बदलियों में घंटों छुप जाता , तो कभी  अचानक प्रकट हो जाता !  तब मैंने माँ से पूछा भी था की यह कैसा मामा है ,,? जो रूप बदल बदल कर रहता है ,,?? 
       माँ ने कहा ,,," वह तुम्हें '  चिढ़ाता  " है , वह भी उसका तुम्हारे लिए एक खेल है ,,  तुम  भी उसे चिढ़ा देना !  मैंने माँ की बात मान कर चाँद को कई बार जीभ दिखा कर चिढ़ाया भी ,,और खुश भी हुआ की मैंने उसे जबाब दे दिया !
 
        कुछ दिनों बाद मेरी बहिन ने जन्म लिया , तो चाँद को मैं भूल गया !  दिन भर बहिन का चेहरा देख कर ही खुश होता रहता ,,   लेकिन बहिन के थोड़ा  बड़े होते ही ,  चाँद  फिर मेरे जीवन में  आ गया   , अपना बड़ा सा गोल मुँह ले कर , की  देखो ,,, मैं साक्षी हूँ , उस रक्षा बंधन का , जो तुम अपनी बहिन की रक्षा के लिए , अपनी कलाई पर " राखी " के रूप में बँधवाओगे ! माँ ने बताया की , ' रक्षा बंधन ' पूर्णिमा के दिन आता है ,!,,,,,,जब तुम्हारा चंदामामा  तुम्हारे हाथ में , तुम्हारी बहिन के हाथ की बंधी  राखी देखता है !,,,,  वह यह भी कहता है की आज से तुम बड़े हो गए हो , ,,, अब तुम्हें मामा की रक्षा नहीं चाहिए , क्यूंकि अब तुम खुद एक
  ' रक्षक ' बन चुके हो !

       कुछ बड़ा हुआ , तो चाँद फिर दिखा ,,, गणेश चतुर्थी के दिन ,,! बोला ,,, ' मैं तो सबका मामा हूँ ना ,,,तो शिवजी के बेटे के जन्म पर भी तो दिखूंगा ही ! 
,,,,, गणेश मेरे प्रिय देव थे ,  उनका चेहरा ही मेरे लिए कौतूहल के साथ साथ , एक दोस्त के  चेहरे जैसा लगता था ! और  उनका वाहन चूहा ,,,!,वह  तो मेरे घर में कई बार रोटी चुरा कर भागा था ! 
      वे लड्डू खाते थे , जो मुझे भी प्रिय था !  मुझे चाँद  की यह बात तब भी अच्छी लगी ,, और तब भी अच्छी लगी , जब वह अनंत चौदस के दिन खुद  आकर गणेश जी को वापिस ले गया !

    स्कूल गया तो , एक दिन जब बहुत बड़ा गोल सा चाँद , आसमान में हँसते हुए उभरा , तो माँ  ने कहा ,,,आज " गुरू पूर्णिमा " है !  आज फिर चाँद तुम्हे बताने आया है की जीवन में गुरू का महत्त्व कभी ना भूलना !  तुम्हे जीवन में बहुत सी  बातें  सिखाने वाले , बहुत से गुरू मिलेंगें ,  लेकिन गलत या सही जानने -  समझने  का बोध जिस  गुरू  ने तुम्हें दिया है ,,उसे सदा याद रखना ! जाओ अपनी पाठशाला के गुरूजी को प्रणाम करके आओ ! मैं ने  आसमान में  हँसते चाँद को निहारा ,,और उसे भी प्रणाम किया !  सोचा कि ,,, असली गुरू तो तुम्ही हो --" मामा " ,,!!

 थोड़ा  समय ही बीता , कि   एक दिन वह फिर  आसमान से झांका ,, ! इस बार पूरा चेहरा तो नहीं दिखाया ,, लेकिन झाँक कर बोला ,,' आज राम का विजय दिवस है !  तुम जो कुछ दिनों से ,  राम लीला  देख कर मुदित हो रहे थे , उसका निष्कर्ष दिवस है ,,जब रावण  का वध भी होगा , और उसकी बुराइयों का दहन भी !  आज तुम्हारे कसबे का मैदान सजा हुआ है ,, तुम भी जा कर आनंद लो ,, मैं वहां तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ !'!,,,  उसकी बात मान कर मैंने यह उत्सव भी मनाया !

  मैदान में जा कर लगा की , अब ठण्ड के दिन आ गए हैं ,, इसलिए पूरीबांह की कमीज पहनना शुरू कर दूँ ,  की तभी , एक दिन चाँद ,, थोड़ी सिहरन लिए , आसमान में आ  धमका !,,,,  बोला .--
,,,,,, ' आज शरद पूर्णिमा है बेटा ,,!  माँ से कहो की खीर बनाएं और , अपने आँगन में रख दें ! मैं तुम्हारे जीवन में अमृत भरने के लिए बूँदें टपकाऊँगा ,, जो तुम्हे ना सिर्फ निरोगी करेंगी  ,,बल्कि तुम्हारी वाणी में भी खीर खाने से अमृत का वास हो जाएगा  ! " !
       घर आया तो माँ पहले से ही जैसे तैयार बैठी थी ,,शायद उसे अपने भाई की करतूतों के बारे में बहुत पहले से ही पता था !

    ठण्ड पड़ते ही , मेरा जीवन क्रम थोड़ा बदल गया , जल्दी सोना ,,और देर से उठाना ,,इसलिए ,, चाँद से बातें तो नहीं हो पाईं ,,लेकिन वह खिड़की से झाँक कर मेरी टोह लेता ही रहा !  ठण्ड जब घटी , तो   जो मौसम आया , उसने गुदगुदाना शुरू किया !  यह फागुन था ,,!

  ,,,,,,,,अब तक मैं कुछ बड़ा भी हो चुका था ,,  एक दिन चाँद आसमान में आकर ठिठोली करने लगा ,,हुड़दंगी करते हुए बोला --" "  बिटवा !!,, आज होलिका दहन है ,,और  परसों,, रग से सराबोर होने वाली 'होली; ! ,,,  थोड़ा होशियार रहना ,,!,, तुम्हारी बहिन सुबह से तुम्हारा मुंह रंगने को तैयार बैठी है !  हालांकि   उस दिन  वह तुम्हें  टीका लगा के  तुम्हे  माँ के हाथ के  बने घर के  पकवान , गुजिया पपडिया  भी खिलाएगी ,,! ,,,, लेकिन फिर भी रंग में तुम उससे जीत ना पाओगे !   समझे ,,!!,,,, " 
,,,,,,, मैंने मुंह बिचका कर उसे चिढ़ाया ,,, और कहा --" मामा ,,तुम मुझे डराने के इरादे से  आये हो क्या ,,?? हा  ,हा ,,!! मैं भी कम होशियार नहीं ,,समझे ,,? " ,,,,,,,,,
,,,,,,, होली के हुड़ंग में तो बाद में कई दिन बीत गए , पता ही नहीं चला !  "  फिर तो स्कूल की परीक्षा  ,, और परीक्षा के डर   ने पता नहीं कब मेरा समय बितवा  दिया ! ,,,, चाँद की और ना मैंने देखा ,,,और ना उसे अपनी  ओर मुझे  देखने  दिया !   बस ,,!! ,, पास - फेल  शंशय में उतराते हुए ,, जब  परिक्षा में उत्तीर्ण होने की खबर मुझे  मिली तो,,, मैं खुश हो गया !  तभी इतनी गर्मी पड़ने लगी ,, की  रात में चारपाइयाँ निकाल कर सब लोग  छत पर सोने लगे !

     अब  चंदा मामा ,, पंद्रह दिन बाद फेरा लगाते ,,और छत पर पडी हमारी चादरों को ठंडा कर जाते !  जब वे आते ,,तो हमसे बातें होती रहतीं ,, लेकिन जब वे नहीं आते तो हम तारे  गिनकर अपनी गणित को मजबूत करने की कोशिश करते ! इन कामों में मेरी चुलबुली बहिन , मुझसे हमेशा ही आगे रहती ,, !
          चाँद से बातें करते करते ,,,, उसके बताये त्यौहार मनाते मनाते ,,,,, मैं  कब बड़ा हो गया ,, यह जान ही नहीं पाया !  लेकिन  अब ,, मुझे चाँद ' मामा ' नहीं ,,बल्कि एक ' चेहरा' जैसा  दिखने लगा था !  मुझमें यह बदलाव कैसे आया ,,, यह तो ठीक से नहीं बता सकता !,, लेकिन एक बात जरूर  जान गया की , यह बदलाव , फ़िल्मी गीत सुनने से , और फ़िल्में देखने से हुआ  है ! ,,,, मुझे  "   चौदहवीं  के  चाँद "  में , एक चेहरा दिखाने वाले वे शायर ही थे , जो बार बार मेरे इस नए  चाँद को एक सुन्दर , युवा , स्त्री के चेहरे से तौल रहे थे !
  " चौदहवीं का चाँद हो ,,' , ' चाँद सा मुखड़ा क्यों शरमाया ' , , चाँद सी महबूबा हो मेरी , '    जैसे गीत मुझे गुदगुदाने लगे !,,,,तो मैंने चाँद से नाता बदल लिया  !,,,  मैं भी चाँद में एक  चाँद से मुखड़े  को तलाशने लगा !  ,,,,,,,,,मोहल्ले के चेहरे तो मेरी बहिन जैसे ही दिखे ,,इसलिए ,,उनमें चाँद ढूंढने पर भी नहीं मिला ,,!  फिल्मों के परदे पर जो चाँद थे ,, वे मेरी पहुँच से उतने ही दूर थे ,,  जितना की वास्तविक चाँद !,,,और ,,, दूसरे  मुहल्लों में जा कर चाँद ढूंढने की जुर्रत मुझे इसलिए नहीं हुई ,,क्योंकि  वहां कई ,,राहु केतु ,सितारे ,,, पहले से ही उन चांदों  को  घेरे रहते थे !,,
         तो चाह कर भी चाँद  नहीं पा सका !   यही करते करते नौकरी लग गयी ,,और दिन रात उसमें खट्ने लगा !  एक दिन एक ज्योतिषी  को पूछा ,, तो उसने कुंडली देख कर बताया की तुम्हारा जन्म , कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ है !,,जब  चाँद बिलकुल ही प्रगट नहीं होता !  यही कारण है की ना तो तुम चाँद के प्रति कभी  आसक्त होंगे , और ना चाँद तुम्हारे प्रति  !

    दिन बीतते गए ,, और जब चाँद को मैं नहीं ढूंढ पाया , तो मेरे माता पिता ने , एक ' चाँद ' ढूंढ कर , उसे मेरी जीवन संगिनी बना दिया !  अब चाँद तो हमेशा साथ था ,,,लेकिन जल्दी ही  युवा वस्था का गीत  सच हो कर सामने आ गया ___ " चौदहवीं का चाँद हो ,,या " आफताब " हो ,,? " !  ,,,,,मेरी उम्र ढलते ढलते ,, चाँद भी अक्सर " आफताब " बन कर  दिखने लगा !

    लेकिन ' मेरा चाँद " जिसे मुझे मेरी माँ ने बचपन में दिखाया था ,, एक बार ,, जरूर फिर आया ! 
,,,,,,, जब पहली ' करवा चौथ " में  ,  मेरी पत्नी ने छलनी से झाँक कर , पहले उसे , और फिर मुझे देखा ,,तो वह पीछे से खिलखिलाया  !   बोला  --"  तुमने मुझ से सभी त्योहारों के बारे में जाना था ,,बेटा ! लेकिन इसके बारे में ,, मैं तभी बता सकता था , जब ज़मीन का चाँद तुम्हारी ज़िंदगी में उतर आये !  अब इस चाँद को सम्हाल कर रखना ,, यह तुम्हारे लिए खिलौना नहीं ,,बल्कि जीवन का अमृत है ! यह दिन भर भूखी प्यासी रह कर भी ,, तुम्हारे दीर्ध जीवन के लिए व्रत रहेगी !  तुम्हारा मुंह देख कर व्रत  तोड़ेगी ! यह मेरी तरह  दूर का चाँद नहीं ,,तुम्हारे घर का चाँद है !  और याद रखो ,,, जिस माँ के कारण तुम मुझसे परिचित हुए थे ,,जब वह भी तुम्हारे साथ दुनिया में नहीं रहेगी ,,तब यही ,, तुम्हें ,, और तुम्हारे बेटे के लिए एक माँ की भूमिका भी निभाएगी !     ,,,मैं तो एक  अजन्मा ,," मामा " हूँ ,,तुम्हारे लिए ही नहीं बल्कि  सबके लिए ,!,  जो भी बेटी ,,वहां ,,ज़मीन पर माँ का रूप धारण करती है ,,मैं ही उसके बेटे का पहला मामा होता हूँ !
  अब मुझे धरती की  एक नयी बहिन मिल गयी है ,,जो तुम्हारे साथ रहेगी  ! इसे दुखी मत करना ,,, वरना मैं  तुम्हारी कुंडली से हमेशा के लिए गायब हो जाऊंगा ! मेरे न रहने पर अमावस्या का घनघोर अन्धेरा ही तुम्हारे पीछे  शेष बचेगा ! और अन्धेरा तुम झेल नहीं पाओगे ! ",,,,

   मैंने सर झुका कर चाँद  को प्रणाम किया ! मैंने कहा --" तुम सदा मेरे साथ ही रहना ,,,चाहे मेरे मामा की तरह , चाहे मेरी गृहिणी की तरह ,,और चाहे मेरे बेटे के मामा की तरह ,,!  तुम्हारे बिना  तो मेरे  जीवन की गणना भी संभव नहीं ! वह शून्य है ! " 
,,,,,, !   तब से हर करवाचौथ पर  पहले मैं अपनी माँ को , फिर चाँद को ,  को प्रणाम करता हूँ ,और फिर अपनी पत्नी, को धन्यवाद देता हूँ   जिन्होंने मुझे हमेशा के लिए चाँद से फिर  जोड़ दिया  !

 ---  सभाजीत
     
     
   

रविवार, 21 अक्तूबर 2018

   सीख

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 (  यह नीति कथा है , जो कभी लिखी नहीं गयी !  यह सिर्फ  अनुभव की गयी !  यद्यपि राम कथा  लिखने वाले   महर्षि बाल्मीक  और गोस्वामी तुलसीदास  की नज़रों में यह आयी होगी , किन्तु इसे  किन्ही कारणों से वे   टाल गए ! बाद में रावण वध के बाद से  अयोध्या में जन्मी कई घटनाओं से इस सीख की उपस्थिति सत्यापित हुई है  , तथापि यह आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है , जिसका अनुगमन , आज के राजनीतिज्ञ भी करते हैं ! और  खुद भी घटना क्रमों का कारण भी बनते हैं   )

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 नाभि में , लगे घातक वाणों से  ,  चोटिल  हो कर , रावण पृथ्वी पर गिर पड़ा !   उठने  की कोशिश की तो उसे लगा ,  की  उसकी संचित ऊर्जा का अमृत कुंड जैसे अचानक सूख  रहा  है ! वह जान गया की , अब  उसका  उठना  मुश्किल है !  शक्ति धीरे धीरे क्षीण होने लगी , और  असह्य  दर्द के   साथ   उसकी आँखों के आगे   अन्धेरा  छाने लगा !  ,  उसके चारों और  , उसकी रक्षार्थ लड़ने वाले  लंका के सभी योद्धा , दौड़ कर उसके पास आये , और उसे उठाने की मदद  करने लगे ,, लेकिन उसने उन्हें  मना कर  दिया !
  उसने थोड़ा सर उठा कर  दूसरे पक्ष में खड़े विभीषण की और निहारा ,, और असह्य वेदना के साथ  भी  मुस्करा दिया!
   उधर राम के   समीप खड़े  विभीषण ने भी भांप  लिया की राम के  विषाक्त वाण अपने लक्ष्य पर काम कर गए हैं ,,और रावण अब मृत्यु के मुंह में जा रहा है ,! तभी अपने भाई की चिरपरिचित मुस्कान में उसे , अपने  बाल्य काल   के उस  भाई की स्नेह  दृष्टि दिखाई दी , जो कह रही थी , की अब तो आओ , मुझे सम्हालो , या मैं सिर्फ अनुचरों के हाथों में ही प्राण त्याग दूँ ,,? ,  आखिर तो ,,, इस राज पाट की लालसा में तुमने अपने मन की कर ही ली है ,,,अब अंतिम समय में मुझसे कैसा द्वेष ,,?? "

   उस दृष्टि से  आहत  हो कर , विभीषण के मुंह से भी दुःख भरी चींख निकल गयी , और वह दौड़ता हुआ  रावण के समीप जा कर  उसके  सर को  अपने हाथों पर ले लिया ! अब कोई द्वेष नहीं बचा था ,,, ना कोई मतांतर , ! अब सिर्फ वहां दो भाई थे ,  , जो एक ही कोख से जन्मे थे , लेकिन  जिनमें ,, सत्ता ,,, और नीति के कारण इतना विरोध हो गया था ,,,की वे एक दूसरे के जान के दुश्मन बन गए थे  , लेकिन अब जब विरोधी ही शेष नहीं बचने वाला था , तो विरोध क्या शेष बचने वाला था !

     ,,,  विभीषण की आँखों से अश्रुधार बह निकली !  बोला ---"  मुझे क्षमा करना भैया ! मुझसे भूल हुई !  मुझे लंका त्याग कर राम का साथ नहीं देना चाहिए था ,,, लेकिन आप मेरी और आदरणीय भाभीश्री , मंदोदरी की बात बिलकुल नहीं मान रहे थे , ,, मैंने कई नीति की बातें भी आपसे निवेदन की , किन्तु आप सभी निर्णय , अपने तक सुरक्षित रखते गए !  यहां तक की आप मेरी सीख को भी अपने लिए घातक मानने लगे , और मुझे लगा की अगर मैं ज्यादा दिन लंका में रहा तो आप मुझे या तो कारागार में डाल देंगें ,,या फिर मेरी ह्त्या करवा देंगे ! "
   रावण ने दर्द में कराहते हुए भी , मुस्कराने की कोशिश की  और बोला --" यह बात छोटे भाई ,, सोच सकते हैं ,,लेकिन बड़े कभी नहीं सोच सकते ! छोटे भाई को भय तो दिखाया जा सकता है , किन्तु बड़ा भाई कभी उसका अहित नहीं कर सकता ,,,क्यूंकि वह उसे पुत्रवत मानता है !  अच्छा हुआ तुमने लंका छोड़ दी ,,,लेकिन मंदोदरी भी तो मेरी आलोचक है ,,, उसने मुझे क्यों नहीं छोड़ा ,,? "
   विभीषण को कोई उत्तर नहीं सुझा ! वह और भी ज्यादा विलखता  हुआ अश्रु पात करने लगा !
     रावण कराहते हुए बोला -- ' अब दुखी मत हो ,,! मेरे बाद तुम्हें ही वंश और कुल को चलाना है ,, !  हाँ मंदोदरी मेरी सबसे प्रिय है ,,उसका ध्यान रखना ! "

     राम दूर से यह दृश्य देख रहे थे !  वे समझ गए की रावण अब कुछ क्षणों का ही मेहमान है !  उन्होंने कुछ सोचा और लक्ष्मण से बोले --" रावण अब इस पृथ्वीलोक से जा रहा है ! वह एक  राजा था ,, भले ही उसकी नीतियां सफल नहीं हुई ! तुम जाकर उससे पूछो की वह अंतिम समय में क्या महसूस कर रहा है ,,, किस कारण से इतना बलशाली होते हुए भी वह आज पराजित हुआ है ,, इसका भेद वह खुद खोले ,,!  तुम उससे राजनीति के ज्ञान के याचक बन कर  शिक्षा ले कर मुझे बताओ ,, , ! "
   लक्षमण अनमने मन से , राम की आज्ञा शिरोधार्य करके  रावण के पास गए ,, और वही प्रश्न पूछा ,,,जो राम ने कहा था ! रावण ने उन्हें अनसुना कर दिया ! तो वे वापिस लौट आये ! राम   समझ गए ,,और बोले ,,की----"
            ""--  लक्ष्मण ,,!!  वह भले ही धराशायी है , किन्तु एक पंडित है ,,और राजा भी ,   तुम उसके कर्मों पर मत जाओ ,,उसके ज्ञान और अनुभव को देखो ,,और उसके कदमों की तरफ खड़े हो कर फिर पूछो , वह जरूर जबाब देगा ! "
         लक्षमण दोबारा गए ,,और रावण के क़दमों की तरफ खड़े हो  खड़े कर   वही प्रश्न फिर दोहराया,,! इस बार रावण ने आँखें खोलीं ,, और बोला ---
      --- "  हे लक्ष्मण ,,!! राम तो मुझ से भी ज्यादा नीतिज्ञ हैं ,, लेकिन अगर पूछा ही है तो  मैं बताता हूँ की ,,  एक राजा को सभी की सलाह जरूर सुननी चाहिए !  भले ही वह छोटे से छोटा व्यक्ति हो या कोई बड़ा व्यक्ति हो !  राज्य कर्म सिर्फ अपने अनुभव , और अपनी नीतियों से नहीं चल सकते !    राजा सिर्फ अपने लिए राजा नहीं होता , वह सबके लिए होता है ! इसलिए किसी की भी अवहेलना करना ठीक नहीं ! "
             इतना कह कर रावण के मुंह पर संतोष के भाव आ गए , उसे  लगा की उसने अपने मन की बात कह दी है ! , और वह आँखें बंद करके गहन मूर्छा में चला गया !
   लक्षमण वापिस राम के पास गए और उन्हें रावण के उत्तर से अवगत करवा दिया ! राम चुपचाप मनन करते रहे और  फिर उन्होंने हनुमान को बुला कर कहा ,, " हे हनुमत ,,आप जाओ ,,और विभीषण के  शोक संताप को कम करवाने में सहायता करो !  रावण की मृत्यु हो चुकी है ,,उसके ,, अंतिम संस्कार की भी व्यवस्था करवा दो , ताकि ,, उसे राजोचित सम्मान मिल सके !

           रावण के अंतिम संस्कार के बाद , सीता की अग्नि परिक्षा हुई , और तब राम उन्हें ले कर वापिस अयोध्या आ गए , जहां उनका राजतिलक हुआ !  राम ने  राजा का दायित्व निभाया ,, और पूरी प्रजा उनके राज में सुख अनुभव करने लगी !

    लेकिन एक दिन अयोध्या में एक धोबी ने बखेड़ा खड़ा कर दिया !  उसने जो सवाल अपनी पत्नी को ले कर उठाये ,,उससे  राम विचिलित हो गए !  इस अवसर पर उन्हें क्या करना चाहिए ,,,यह प्रश्न बार बार उनके मन में कौंधता रहा ! उन्होंने मनन किया , और अंदर टटोला , तो  एक राजा के बतौर , रावण की दी सीख उन्हें बार बार याद आने लगी !
 ,,,,,,,, "  एक राजा को सभी की सलाह जरूर सुननी चाहिए !  भले ही वह छोटे से छोटा व्यक्ति हो या कोई बड़ा व्यक्ति हो !  राज्य कर्म सिर्फ अपने अनुभव , और अपनी नीतियों से नहीं चल सकते !    राजा सिर्फ अपने लिए राजा नहीं होता , वह सबके लिए होता है ! इसलिए किसी की भी अवहेलना करना ठीक नहीं ! "
          इस बात पर मनन करके ,,  उन्होंने अपने साथियों से सलाह ली , और अंतिम निष्कर्ष यह निकाला की , धोबी के कथन पर हुई , प्रजा की प्रतिक्रया की अवहेलना उन्हें नहीं करना चाहिए !  इसलिए उन्होंने  निर्णय लिया की वे अपनी प्रिय पत्नी को भी बनवास हेतु भेज देंगें ,,और तदानुसार उन्होंने लक्षमण को बुला कर आज्ञा भी दे दी !
          रावण की सीख ने  रघुकुल को भी वेदना दे दी !  सीता को वनवास क्या मिला ,  ,, अयोध्या ही , श्री रहित हो गयी !

                   ************

    आज भी राजनीति इन दो सिद्धांतों के बीच झूल रही है !  क्या राजा को स्वविवेक से , अपनी  नीति पर अडिग रह कर   निर्णय लेने चाहिए , या फिर प्रजा की भावना अनुसार ,  मंत्री परिषद् की राय से  निर्णय  लेना  चाहिए ! यह प्रश्न अनुत्तरित है !
 अपने विवेक और अपनी नीति और अपने निर्णय  पर रावण चला ,,,किन्तु उसका  परिणाम ठीक नहीं  हुआ   ,,,
,,, और लोगों की भावना को सर्वोपरि मान कर , मंत्री परिषद् की सलाह से राम चले , तो उनका अपना दाम्पत्य  जीवन बुरी तरह  प्रभावित हुआ !
   सर्वथा  दो विपरीत आचरण , और सिद्धांत की नीतियों  के बीच  ,  सफल नीति क्या है ,,,यह तो ज्ञानी  लोग ही बता पाएंगे , किन्तु यह सच है की दोनों एकल  नीतियां ,, " लोकतंत्र , और राजतंत्र , उस त्रेता युग में भी ,   असफल नीतियां ही सिद्ध हुईं  थीं !

   ---सभाजीत 

 " शोध " 


सफाई पर लेख लिखना था !
दोस्तों ने कहा , तुम गप्पें ज्यादा मारते हो , यथार्थ कम होता है ! इसलिए शोध पर्यक लेख लिखा करो ! तो सोचा ,,,कलम घसीटने से पहले थोड़ा शोध ही कर लूँ ,,!!
सुबह सुबह घर से निकल पड़ा !
इधर उधर देखता चल ही रहा था की एक लड़का मिल गया !
उम्र सिर्फ दस साल ,,,कपडे मैले ,,बाल उलझे ! इतने सुबह बेचारा यह लड़का , काम ढूंढने निकल पड़ा ,,,यह सोच कर मेरा ह्रदय द्रवित हो गया !
पता नहीं कब यह देश नौनिहालों के प्रति जाग्रत होगा !
यही विचारते विचारते मैं थोड़ा ठिठक गया !
वह बोला --" क्या ढूंढ रहे हो बाबूजी ,,?
कुछ नहीं ,,कोई सफाई वाला है तुम्हारी निगाह में ,,??
वह हंसा , बोला --" सफाई तो मैं ही कर दूंगा ,,,मौका दीजिये ,,! "
" क्या तुम भी सफाई करते हो ,," ?
" आजमा कर देख लीजिये ,,! अभी अभी ,,दस ट्रेनों में घूम कर वापिस लौटा हूँ ,,! "
" तो तुम ट्रेन में सफाई करते हो ,?'
" हाँ ,,! भीड़ में भी करता हूँ ,,,बाज़ार में भी करता हूँ , मंदिर में भी करता हूँ ,, जहां मौका लगे वहीं करदेता हूँ ,,! "
" भीड़ में ,,? मतलब ,,? "
" मैं जेब साफ़ करता हूँ ,,! " ---वह हंसा ,,!!
मैं घबरा गया ! उसे वहीं छोड़ कर , अपनी जेब टटोलता आगे चल दिया !
आगे खद्दर धारी मिल गए !
वे सुबह सुबह अपने दो कुत्तों को सैर करवाने निकले थे !
दोनों कुत्ते दो अलग अलग विपरीत दिशाओं में उनको खींच रहे थे , और वे संतुलन बनाते हुए , उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे थे !
कुत्ते शायद अलग अलग अपनी भोज्य सामग्री देख कर लपके थे ,,,जो शायद एक और कुछ मैला जैसी थी और दूसरी और एक सड़ी हड्डी !
मुझे देख कर वे खद्दर धारी नेताजी ,,,झेंपते हुए बोले ---" सुबह सुबह कहाँ चल दिए भाई ,,? "
मैंने उन्हें अपने अभिप्राय के बारे में बताया ,,,!
वे बोले हम विपक्ष में हैं ,,! तुम तो देख ही रहे हो ,, सफाई का हाल , मेरे दोनों कुत्ते गन्दगी देख कर मचल रहे हैं ,,सरकार का काम है सफाई करवाना ,,,अगर करवाती तो ये क्यों भागते ,,?
" सही कहा भाईसाहब ! लेकिन मैं तो सफाई का यथार्थ ढूंढने निकला हूँ ! ,,,मुझे लेख लिखना है ! "
अगर यथार्थ पर लिखना है तो मेरी विरोधी पार्टी पर लिखो ना ,, वह तो सफाई में अव्वल रही है ! "
" कैसे ,,? "
" अरे वे तो सफाई मास्टर हैं ! पार्टी का चन्दा वे साफ़ कर गए ! योज़सनाओं की राशि वे साफ़ कर गए , अनुदान राशि , रिलीफ फंड , बैंक लोन वे साफ़ कर गए ! सब्सिडी वे साफ़ कर गए ! खनिज वे साफ़ कर गए , पहाड़ , जंगल वे साफ़ कर गए ! यही तो असली सफाई हुई है ,,पिछले सत्तर वर्षों में !
" भाई साहब ,,! कुछ साल तो आपकी पार्टी ने भी राज किया है ,,,क्या आप पर यह सफाई लागू नहीं होगी ,,? "
" तो क्या वे हमें छोड़ देते हैं ,,? वे भी तो वही कहते हैं ,,,जो हम कहते हैं ! "
" इसका मतलब तो आप लोगों ने बारी बारी से सफाई की है ,,,! "
वे हंसने लगे ! बोले _ " आप लिख रहे हो और यथार्थ लिखना चाहते हो तो जो मैं बता रहा हूँ वही लिखो ,,, बाकी तो पढ़ने वाले समझेंगे ! "
तभी उनके दोनों कुत्ते , अपना भोज्य पदार्थ छोड़ कर सीधे मुझ पर ही भोंकने लगे ! मैं घबरा कर पीछे हट गया ! वे उन्हें पुचकार कर " लाड " भरे सम्बोधन से बुलाने लगे !
मैंने हाथ जोड़े और आगे बढ़ लिया !

आगे थोड़ा सुनसान पड़ा ,,, तो जल्दी जल्दी पैर उठाने लगा ,,,यह इलाका थोड़ा बदनाम था !
तभी ना जाने कहाँ से टी तहमद पहने , बड़ी बड़ी मूंछे रखाये , मुंह पर रुमाल बांधे एक आदमी सामने आ गया ! बोला--" बाबूजी जहां हो वहीं रुक जाओ ,,!"
मैं रुक गया तो वह बोला ---" जो भी पहने हो उतार दो फ़ौरन ,,आवाज़ मत करना समझे ,,! "
मेरी घिघ्घी बांध गयीं ! लेकिन मेरे पास तो कुछ था ही नहीं ! सोना चांदी पहनने का शौक था नहीं , घड़ी बांधता नहीं था , मोबाइल में टाइम देख कर काम चला लेता था , जो आज घर पर ही धोखे से छूट गया था ! हाँ बटुआ ,,जरूर जेब में था !
मैंने कहा --" मेरे पास कुछ नहीं है भाई ,,चाहो तो तलाशी ले लो ! "
उसने तलाशी ली ,,,बटुआ निकाला ! लेकिन उसमें एक भी नॉट नहीं था ,,,खाली पड़ा था !
बोला --" फालतू टीम खराब कराया ,,,बोनी भी नहीं हो रही है ! कैसे फटीचर हो ,,?? क्या करते हो "
"
मैंने कहा ,,," भैया ,,!! लिखने का फितूर है सफाई पर लिखने का मूड था ,,तो यथार्थ लिखने के लिए सुबह सुबह ही निकल पड़ा ,,!
" तो क्या दिखा सफाई पर तुम्हे अब तक ,,?'
" आप जैसे ही लोग ही दिखे ,,! और कुछ तो नहीं दिखा ! "
" ठीक कहते हो बाबू ,,! अब हमारे बारे में कुछ ना लिखना वरना हम भी " साफ़ " कर देते हैं ,,,आदमी को भी ,,समझे ,,? "
" कैसे ,,"-- मैंने नादानी में यथार्थ जानने के लिए पूछ लिया !
वह मुस्कराया ,,,उसने एक रामपुरी चाक़ू निकाल लिया ,,और मेरे मुंह के पास लहराते हुए कहा ,,," ऐसे "
मैंने डर के मारे घरघराती आवाज़ में कहा ,,," बिलकुल नहीं लिखूंगा भाई ! ,,, मैं तो फेसबुकिया लेखक हूँ ,, ये तो दोस्तों की बेवकूफी में आकर यथार्थ ढूंढने आ गया ,, मुझे कौन कोई पी एच डी,, लेनी है ! "
वह हंसा ---" पी एच डी ले कर भी क्या करते बाबू ,,? मैंने ली है ,,,तो कौन सी नौकरी मिल गयी ,,? आखिर करना तो यही काम पड़ रहा है ! "
मैंने हाथ जोड़े और वापिस लौट लिया !
घर आकर पत्नी को बताया तो वह हँसते हुए बोली __ " मुझे धन्यवाद दो ,,,! मैंने तुम्हारा बटुआ रात में ही साफ़ कर दिया था ,,एक भी पैसा नहीं छोड़ा था ,,,वरना आज कुछ ना कुछ नुक्सान तो तुम्हें होता ही ! "
मैं सफाई के यथार्थ को अब पूरी तरह जान चुका था !
--- सभाजीत

बुधवार, 29 अगस्त 2018

  कल सड़क पर एक चोर उचक्का मिला !

    चोर उचक्का इसलिए , क्यूंकि पहले २००७, फिर २०१२ में वह इन्ही आरोपों में जेल काट आया था !  अदालत ने खुद   अपनी धारदार कलम से उसे सज़ा सुनाई थी , और वह अपने कृत्य के लिए दोष सिद्ध किया जा चुका था !
 उससे हाल चाल पूछा तो उलटे वह मुझी से पूछने लगा _

   कहो साहब ,,? ,,, कुछ घर में " माल-वाल "   जोड़ा की नहीं ,,??
   " तुम्हें क्यों बताऊँ ,,? " - मैंने सशंकित हो कर इधर उधर देखते हुए कहा !
     वह हंसा   फिर बोला --" तुम्हारा " डाटा " है मेरे पास ,,!   तुम्हारी पेंशन , तुमने क्या खरीदा , तुम कहाँ गए , तुम्हारे घर में कौन से ताले लगे हैं ,,तुम रात में कितने बजे तक जागते हो , ,,,सब मेरी जानकारी में  रहता  है ,,समझे ,,?? "
   मुझे पसीना निकल आया ! मैंने डरते हुए पूछा --" तुम्हें कैसे मालुम है यह सब ,,?? मैं अगर चाहूँ तो मोहल्ले की एक खबर भी नहीं बताता कोई ,, और तुम इतना सब जान जाते हो ,,?'
    वह हंसा  फिर बोला ---" किस दुनिया में जी रहे हे दोस्त ,,? यह डिजिटल युग है ,,मेरे पास तो शहर के सभी छोटे से ले कर बड़े आदमी के सभी डाटा मौजूद हैं ,,  एक परसनल " डाटा बैंक " बना कर रखता हूँ ! "
 -- " चलो ठीक है ,,,   क्या  उठाईगिरी करना बंद कर दिया है आजकल ,,? " - मैंने पूछा !
     उसने एक सिगार निकाला और एक चीनी लाइटर से उसे जला कर मेरी और धुंआ छोड़ता हुआ बोला ---" किस ज़माने की बात कर रहे हो बाबूजी ,,?? ,,सबने प्रगति की ,,,तो मैं  क्यों   " प्रगतिशील "  ना बनता ,,?? "
   --" प्रगतिशील ? "
   -- " हाँ जो प्रगति की चाह में प्रयत्नशील रहे ,,वही तो हुआ --" प्रगति शील " ,,तो मैं भी हुआ प्रगति शील ,,! "
   - " चलो ठीक ,,,लेकिन तुमने इस बीच क्या प्रगति की भाई ,,? "
  - " तुम्हें तो मालुम ही था ,, मैं कोई अनपढ़ उठाईगीर तो था नहीं ,, " हिस्ट्री " में " एमए " था ,, तभी सोच लिया की यह उठाईगिरी अब सभ्य ढंग से करूँ ,, तो मैंने एक संस्था बनाई ,,," अखिल भारतीय उठाईगीर समूह " ,,जिसमें मेने  देश के सभी  उठाईगीरों ' को जोड़ा !  मैंने बड़े लोगों से कहा की इससे पहले , तुम्हारा पूरा माल उड़वा दूँ ,,,तुम खुद हमें एक मुश्त बड़ा चन्दा देना शुरू कर दो ,,फायदे में रहोगे ! "
  - " अरे ,,!!    तुम्हारी  संस्था रजिस्टर कैसे हो गयी ,,,? उठाईगिरी तो आपराधिक शब्द है ,,? "
     उसने सिगार का जोर दस कश लिया ,,और इस बार धुंए का एक गुबार मेरे मुंह पर उंडेल दिया ,,फिर थोड़ा तल्खी से बोला --"  " अपराध क्या है ,,,क्या तुम जानते हो ,,?? ---अपराध वह  होता है  जो अदालत मान ले , पुलिसिया भाषा में लिखा गया शब्द ,,,अपराध नहीं होता समझे  चश्मुद्दीन ,,? ,समझे ,  जब तक अदालत ना कह दे की अपराध हुआ है तब तक इस देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आज़ादी है और मानव अधिकार की सुरक्षा की छतरी उसके सर पर तनी मानो  ! ,,,
  ---" ठीक है ठीक है ,," ,,मैं घबरा गया की यह नाराज़ ना हो जाए ,,वरना मेरा घर साफ़ हुआ समझूँ !
     समझ गया की मैं घबरा गया हूँ  तो मुस्करा कर मेरी खिल्ली उड़ती हुए बोला --" डरो मत ,,,अब मैं छोटे मोटे शिकार नहीं करता ,, अब मैं वो पुराना  व्यक्ति नहीं हूँ ! "
        '--" धीरे धीरे मैंने एक एनजीओ  बना ली ! "-- वह आगे बोला --" जानकारी के अधिकार ' के तहत मैंने सरकार से   जानकारियां लीं ,,,और फिर उसी के विरुद्ध तीखे लेख लिखने लगा !  सरकार मुझसे डरने लगी  तो मैं " एक्टिविस्ट " कहलाने लगा !  आजकल कविता में छंद  सोरठां  तो लिखना नहीं पड़ता , तुकबंदी के भी जरुरत नहीं ,,,तो मैं  वर्ग वाद , गरीबी अमीरे को ले कर कवितायें रचना शुरू कर दिया ,,,और आज मैं एक चर्चित   कवि हूँ !  नकल करके मैंने हिस्ट्री में एमए किया था ,,, तो खुद को " इतिहासकार " सिद्ध कर दिया !   इस देश का कोई लिखित इतिहास तो है नहीं , तो मैंने अपनी दृष्टि से बहुत सी जगहों और घटनाओं का इतिहास लिख मारा ,,तो  मुझे ,, पी एच डी  मिल गयी ! "
    --- मैं अपलक उसे ताकता रह गया !
       ---- " मुझे माफ़ करना यार ,,! ,,मैंने तुम्हारे पुराने धंधे के बारे में पूछ लिया था ,,,मुझ से गलती हो गयी ! " -- मैं करीब करीब घिघयाते हुए बोला !
     --- अरे तुम अगर कहोगे भी तो क्या आज लोग तुम्हारी बात सुनेंगे ,,? ,,,अब में राजनीति में कूद गया हूँ ,,, मैं इस देश में अब समाजवाद लाना चाहता हूँ ,,,! और इसलिए  आजकल जगह जगह मेरे भाषण होते हैं ,,,भारी जनता जुड़ती है ,,,!  कई पार्टियां मेरे ऊपर डोरे डाल  रही है ,,, की मैं उन्हें ज्वाइन कर लूँ ,,,मगर मैं  उन्हें घास नहीं  डाल  रहा हूँ ! "  ,
  "  क्यों सर ,,! " --मैंने उसका सम्बोधन आदर में बदलते हुए पूछा !
     --" इसलिए की पहले वे मुझे टिकट कन्फर्म करें ,,, और मंत्री बनाने का वायदा करें ,,,तभी मैं उन्हें ज्वाइन करूंगा ! "
       --- वह,,,! वह,,,!! " ,,, अब मेरे पास तारीफ़ के शब्द भी नहीं बचे थे !
       --- अरे क्या वह,,,वह ,,?? ,,,अभी तो हमारी मंजिल बहुत दूर है ,,, !  अभी तो हमें बहुत कुछ करना है ,,! "
       --- " जब इतना हुआ तो आगे भी होगा ,,,गाते रहिये ,,," हम होंगे कामयाब ,,,हम होंगे कामयाब ,,एक दिन ,," --- मैंने हँसते हुए कहा !
            उन्होंने मुझे  घूर  कर देखा ,,,,तभी एक लम्बी कार ,, आकर उनके पास रुकी ,,ड्रायवर ने उतरकर उन्हें सेल्यूट किया !  मैंने आश्चर्य से पूछा --" आप आज पैदल कैसे चल रहे थे ,,,बिना कार के ,,? "
             वे हांसे फिर बोले --" कभी कभी फिर से साधारण आदमी की तरह जीने की तमन्ना होती है ,,,तो कार पीछे छोड़ कर पैदल चलने लगता हूँ , देखना चाहता हूँ ,,की जहां से कभी मैंने माल पार किया था ,,,उन लोगों ने भी कितनी तरक्की की है ,,! ,!   दो फायदे हैं ,,,लोग और आप जैसे पत्रकार , मुझे सरल व्यक्ति मान लेते हैं ,,,और मेरी तमन्ना एक आम आदमी बन कर घूमने की पूरी  हो जाती है ! "

   मैंने हाथ जोड़े ,!,,
     वे एकबार कार के अंदर से अपनी मुंडी उचका कर बोले --

     " इसे छाप ना देना ,,वरना तुम्हें जेल करवा दूंगा ,,,' मानहानि ' के आरोप में ,,समझे ,,,,,??? "

    इस बार फिर मेरे मुंह पर बहुत बड़ा धुंए का गुबार आया !,,,लेकिन यह कार का था ,,,सिगार का नहीं ,,!

   इसकी सरकार बन जाएगी तब क्या होगा ,,??

    यह सोचते सोचते मैं आगे बढ़ गया !

--- सभाजीत