रविवार, 9 जून 2013

bhatkaan


















जीवन की संकरी गलियों में ,
 भटक ना जाऊं  कहीं अकेला .., !!

प्यार माँगना चाहा  जिससे ,
उसने सदा मुझे ठुकराया ..,
जिसने मुझसे प्यार किया कुछ ..,
उससे मैं खुद हो कतराया ..!

पता  नहीं पतझर कब आया ..,
 जहाँ कभी बसंत था खेला  ..!!

सारे  दिन अनुभव करता था ..,
 मेरे भी पीछे कोई है ..,
मेरी तरह किसी नादा की ..,
 मनचाही मंजिल खोई है .., !

'पग- ध्वनि ' खुद की ही पायी ..,
 जब  मुड  देखा संध्या की बेला ..!!

किससे क्या कुछ कहूँ अजब जब ,
 दुनिया का ही द्रष्टिकोण है ..,
 जो वाचाल उसे सब सुनलें ..,
 कौन सुने उसकी जो मौन है ..,

भाषाओं के ग्रंथों खरीदे ..,
भावों पर खर्चा ना धेला .., !!

--सभाजीत