विन्ध्य की विरासत
मैहर नगरी शारदाधाम
नेपथ्य गीत -,, स्त्री स्वर में ,, , ' कैसे के दर्शन पाऊं री , माई तोरी संकरी किवड़िया '
नेपथ्य गीत -,, स्त्री स्वर में ,, , ' कैसे के दर्शन पाऊं री , माई तोरी संकरी किवड़िया '
एंकर - सतना से ४० कि ० मी ० दूर , , , हावड़ा- मुंबई रेलवे मार्ग पर बसा मैहर नगर , आज सम्पूर्ण भारत का पवित्र तीर्थ स्थल है ! हजारों श्रद्धालु भक्तों का मेला इस नगर के प्रांगण में दिन रात लगा रहता है ! क्यों ना हो ,,? ,,विंध्य श्रेणी के त्रिकूट पर्वत पर विराजी , , विवेक और वाणी की अधिस्ठात्री , सिद्धि दात्री माई शारदा का धाम तो इसी नगरी में है ! विश्व में संगीत का डंका बजाने वाले , सितार के जादूगर , और सरोद वाद्य के अद्वितीय साधक , रविशंकर और अलीअकबर खान साहब का गुरुकुल भी तो इसी नगरी में है ! आध्यात्म , और भक्ति मार्ग के स्वामी , सिद्ध संत नीलकंठ महराज की तपोभूमि भी तो यही नगर मैहर है !
, मैहर का अर्थ है ,," माई हार " यानी मैया का आँगन ! माई के आँगन में आया हर व्यक्ति , खुद को बेटे की तरह , माँ के सुरक्षित आँचल में निर्भय महसूस करता है ! उसे विश्वाश होता है की माँ उसके सब दुःख दर्द दूर करेंगी , हर कष्ट का निवारण करेंगी , और वह माँ के दर्शन करके , एक नयी ऊर्जा के साथ , मन में शान्ति धारण कर यहां से वापिस अपने घर लौटता है ! माँ की ममता होती ही ऐसी है ,, की बिना हिचक , वह अपनी संतान को वह सब देती है , जो उनसे मनुहार करके मांगते हैं !
! संकल्प की लाल ध्वजा आसमान में फहराते हुए , मीलों दूर से टोली बना कर , भक्ति गीत गाते हुए , ग्रामवासी , माँ के आँगन में पहुँचते हैं खेतों में बोई फसल के प्रतीक चिन्ह जवारों के साथ , की हे माँ ,,हमारा कृषि धन तुम्हें अर्पित है ,, तुम हमारे घर , परिवार , और कृषि धन की रक्षा करना !
कई लोग इस स्थान को शक्तिपीठ मानते हैं !यहां विभिन्न वेशभूषाओं में तांत्रिक , और साधक भी पहुँचते हैं , , अपने तप , और अपनी साधना का फल पाने के लिए ! ,
( रेलवे स्टेशन )
प्रतिवर्ष श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देख कर , रेलवे विभाग ने इस स्टेशन को , प्रतीक्षालयों को सुविधायुक्त और आकर्षक बना दिया है ! स्टेशन पर , ट्रेनों के रुकने हेतु , सर्वसुविधायुक्त , ३ लम्बे प्लेटफार्म बन चुके हैं ! स्टेशन पर खान पान की सुविधा के साथ , जल वितरण की समुचित व्यवस्था है ! स्टेशन पर इस नगरी की महत्ता का विवरण भी अंकित किया गया है ,,,जिसमें इसे संगीत महर्षि , उस्ताद अलाउद्दीन खान की नगरी के रूप में भी उल्लेखित किया गया है ! स्टेशन से बाहर निकलते ही , ऑटो रिक्शा , यात्रियों का इंतज़ार करते खड़े दीखते हैं ! ये मंदिर तक जाने का आधुनिक साधन हैं ! कुछ वर्षों पूर्व , मंदिर जाने के लिए तांगों और साधारण रिक्शाओं का भी प्रचलन था किन्तु समय के परिवर्तन ने इन्हे विलुप्त कर दिया !
( घंटाघर चौक )
मैहर की शारदा देवी मंदिर की और अग्रसर होते हुए , मार्ग में , मैहर बस्ती के भी दर्शन होते हैं ! चहल पहल से भरपूर बस्ती , अपनी धार्मिक आस्थाओं के साथ साथ अपनी जीवन्तता का भी परिचय देती है ! मार्ग में पड़ने वाले कुछ पुराने मंदिरों को पार कर , मैहर के उस चौराहे से गुजरते हैं , जो घंटाघर चौक कहलाता है ! इस चौराहे पर ही मैहर का मुख्य बाज़ार है ! यहीं एक संगीत महाविद्यालय भवन है , जिसमें उस्ताद अलाउद्दीन खां के द्वारा स्थापित मैहर बेंड का वादन हर शाम होता है ! चौराहे से देवी मंदिर की और आगे बढ़ने पर , मिलता है , विशाल तालाब विष्णु सागर ! गर्मियों में यह प्रायः सूखा रहता है , किन्तु बरसात में इसका जल सड़क के किनारों को छूने लगता है ! त्रिकूट पर्वत पर स्थापित मंदिर की आभा यहीं से स्पष्ट दृष्टिगत होने लगती है , और हर यात्री के पग , उल्लासित हो क्र मंदिर निहारते हुए , तेजी से उठने लगते हैं !
( बीएस स्टेण्ड )
आगे आता है , मैहर का सर्वसुविधायुक्त , बस स्टेण्ड ! सड़क मार्ग से आने वाले यात्रिओं की बसें इस स्थान तक आ कर यात्रिओं को उतारती हैं ! बसों से उतरे हुए , यात्रियों के झुण्ड भी , माता के दर्शन के लिए , अपनी पग यात्रा प्रारम्भ करते हैं ! साधन संपन्न यात्री , यहां खड़े , ऑटो रिक्शाओं का सहारा ले लेते हैं ,, और मंदिर की और अग्रसर हो जाते हैं !
किसी भी साधन से आये , किसी भी दिशा से आये , किसी भी स्थिति से आये , इस नगरी में , माता के दर्शन हेतु आया हर व्यक्ति , एक श्रद्धालु ही होता है ! माता के दर्शन हेतु आया , थका हारा , उसका एक पुत्र ! जिसे अपनी माँ के दर्शनों की चाह है , और माँ ने जिसे अपने धाम बुलाया है !
लगभग १०० मीटर ऊँचे , उत्तंग शिखर पर बिराजी शारदा , आदिशक्ति का सार्व भौम स्वरूप हैं , जो मनुष्य की जिह्वा में वास करती है ! यह आदि शक्ति , जन्म से ले कर मृत्यु तक , सम्पूर्ण जीवों के विवेक और बुद्धि की स्वामिनी है ! ज्ञान के प्रतीक चिन्ह , कमल , शंख , पोथी , और माला , उनके कर कमलों में विदवमान है ! ज्ञान के अनुयायी भक्तों की रक्षा का भार , वे स्वयं उठाती हैं ! उनके भक्तों को किसी अस्त्र , शस्त्र युद्ध कौशल , शारीरिक बल की जरूरत नहीं ! संकट के क्षणों में , अपने असहाय भक्त की रक्षा , वे उसे बुद्धि प्रदान करके करती हैं !
, शारदा मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही मन आल्हादित हो जाता है ! मंदिर के नीचे फैले क्षेत्र में , ध्वजा पताकाओं से सजा , छोटा सा बाजार , स्थानीय मेले का आनंद देता है ! माँ को प्रसाद चढ़ावे में , नारियल , इलायची दाने , चुनरी , और फूल मालाएं स्वीकार हैं ! यह सहज चढ़ावा है , जो हर व्यक्ति की आर्थिक सीमाओं के अंदर है ! मंदिर और मंदिर के पूरे परिसर की व्यवस्था की बागडोर आज स्थानीय प्रशाशन के हाथों है ! ,इसलिए , नवरात्रि की संभावित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए , परिसर से बहुत पहले से ही , छावं युक्त मार्ग विभाजन , इस तरह किया गया है , की श्रद्धालु गण कतार में चल कर , निर्विघ्न रूप से मंदिर तक पहुँच सकें ! मंदिर के नीचे बनी दुकानों में , हाथ पावं धोने , नहाने की समुचित व्यवस्था है ! ! मध्यमवर्गीय सम्पन्न श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए , यहां स्थानीय औद्योगिक संस्थानों ने धर्मशालाएं बना दी हैं जहां लोग ठहर भी सकते हैं !
- प्रसाद हाँथ में लिए , यात्री नंगे पावँ , मंदिर की प्रथम सीढ़ी पर बने , विशाल प्रवेश द्वार पर पहुँचते हैं , जहां द्वारपाल के रूप में स्थापित हैं ,,भैरव देव ! जय माँ शारदे के जय घोष के साथ , ललाट पर टीका लगवा , माता का नाम ले कर भक्त शुरू करते हैं ११५६ सीढ़ियों की छायादार चढ़ाई ! पर्वत शिखर पर पहुँचने के लिए किसी जमाने में मात्र ५६५ बिना छाया दार , सीढ़ियां ही थी , जो तीन चरणों की दुर्गम , यात्रा को बहुत श्रमदायक बना देती थी ! लेकिन आज , पर्वत शिखर पर पहुँचने के लिए , यात्रा बहुत सुगम हो गयी है ! मंदिर के निकट से , ऊपर शिखर तक पहुँचने के लिए आज एक आधुनिक रोप वे उपलब्ध है , जिसमें निर्धारित किराया दे कर , सरलता पूर्वक ऊपर पहुंचा जा सकता है ! मंदिर के चारों और घूम कर , ऊपर शिखर तक जाने वाली , एक सड़क मार्ग भी है , जिसके माध्यम से वाहन सहित , पर्वत के तीसरी चरण तक आसानी से पहुंचा जा सकता है !
बलुवा पर्वत के क्षरण की आशंकाओं को देखते हुए , अब पूरी सतर्कता बरती जा रही है , इसलिए नारियल चढाने का काम अब नीचे के प्रवेश द्वार पर ही सम्पन्न कर दिया जाता है ! अपने बालक की मंगल कामना के साथ , मुंडन संस्कार करवाने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी , अब मंदिर के नीचे ही , एक स्थान नियत कर दिया गया है ! यहां , नाइयों की टोलियां , अपने आसान बिछाये , बढ़ावे के गीतों के मध्य , रट सुबकते बच्चों का मुंडन करते है , जिनकी फीस स्थानीय प्रशाशन ने नियत कर दी है !
जितनी भक्ति , जितना परिश्रम , , उतना ही फल , की भावना से ओत प्रोत अधिकतर श्रद्धालु , मंदिर पहुँचने के लिए , सीढ़ी मार्ग ही , चुनते हैं ! प्रारम्भ में जोश देखते ही बनता है , लेकिन धीरे धीरे उन्हें मालुम हो जाता है की , माँ के दर्शन आसान नहीं , जब स्वेद कण उनके मुंह पर झलकने लगते हैं ! ऊपर की और नजर गड़ाए , मान से दर्शनों की मनुहार करते , वृद्ध , अपाहिज , भी हिम्मत नहीं हारते और एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए , अंत में पहुँच ही जाते हैं मंदिर के द्वार पर !
सीढी और सड़क मार्ग से पहुंचे यात्री जब मंदिर के प्रवेशद्वार पर पहुँचते हैं , तो उन्हें वहां बैठा मिलता है एक नफरी ! नगाड़े की ध्वनि करता हुआ , वह सबकी मनोकामनाओं की पूर्ती की मंगल कामना करता है ! अंदर एक छोटा सा प्रांगण है , जिसमें , हर सुविधाओं से पहुंचे श्रद्धालु , एक सार हो कर कतार बद्ध हो क्र आगे बनी , संगमरमर की सीढियों पर चढ़ कर माँ के समक्ष जा खड़े होते हैं ! माँ की झलक पाते ही हर यात्री , अपने श्रम और थकान को भूल कर , उन्हें एकटक अपलक निहारने लगता है ! आल्हादित मन में एक ही भाव उत्पन्न होता है ,,'माँ ,,, मेरा कुछ नहीं , जो कुछ दिया वह तुम्हारा ही है ! ! माता के सामने माथा टेक कर वह अपनी मनोव्यथा , मनोकामना व्यक्त करता है और साथ लाये नैवेद्य को भक्तिभाव के साथ समर्पित कर देता है ! एक क्षण के लिए , शक्ति और भक्ति एकसार हो उठती है ! चरणामृत ग्रहण कर , माथे पर टीका लगवा कर , प्रसाद ग्रहण कर , प्रफुल्लित मन से लोग आगे बढ़ जाते हैं , कतार का एक अंग बन कर !
कभी कभी श्रद्धालुओं को माँ की आरती में भी समंलित होने का अवसर मिल जाता है जो दिन में तीन समय होती है ! प्रातः , दोपहर , और सांध्या की आरती दर्शनीय है ! जिनमे आरती का सामूहिक गीत , और अग्नि की लौ , एक ऐसे वातावरण का सृजन करती है , जो अलौकिक होता है !
आगे , नरसिंघ अवतार की मूर्ती विराजमान है और बगल में है संकटमोचक हनुमान ! नरसिंघ अवतार की मूर्ती विष्णु के अवतार की द्योतक है ! किन्तु इस अवतार का स्वरूप अनोखा है ! हाथ में कोई अस्त्र शस्त्र नहीं , ना मनुष्य है ना पशु ,किन्तु हिरणाकश्यप जैसे वरदानी असुर की मृत्यु का कारक है ! यह स्वरूप हिरणाकश्यप को मिले उन वरदानी कवच का बौद्धिक तोड़ है , जिसके बिना , उसका अंत सम्भव ही नहीं था ! उधर हनुमान हैं , जो विष्णु की सहायतार्थ शिव द्वारा लिया गया अवतार कहे गए हैं ! विद्या वारिधि , बुद्धि विधाता , हनुमान के लिए ज्ञान और शक्ति एक ही स्वरूप में निहित है ! देवी परिसर में इन दोनों अवतार स्वरूपों का आध्यात्मिक महत्त्व है ,,इसलिए , देवी दर्शन के बाद , श्रद्धालु ,इन्हे सर नवाते हैं !
मंदिर के पृष्ठ भाग में , माँ को याद दिलाते रहने के लिए , हत्थे लगाने का रिवाज है ! मंदिर के पीछे वाले शिखर प्रांगण में आ कर लोग संतोष अनुभव करते हैं की उनकी देवी दर्शन की साध पूरी हुई ! प्रांगण में लगे वट वृक्ष को महिलायें धागा बाँध कर मनौती करती हैं ! माता के मंदिर परिसर का कण कण साध पूरी करने का साधन है ! यहां घुमन्तु फोटोग्राफर , मंदिर यात्रा की यादगारों को फोटो में ढाल कर तुरंत पकड़ा देते हैं ,,, सदैव के लिए सहेज कर रखने के लिए !
,शिखर से नीचे झाँकने पर , नीचे बसी दुनिया और चलते फिरते लोग , खिलौनों की तरह प्रतीत होते हैं ! हिन्दू धर्म का यही तत्व सार है ,,,जब आप ईश्वर के निकट होते हैं तो शेष दुनिया आपको बौनी दिखती है ! शिखर से नीचे उतरते हुए यात्री धीरे धीरे पुनः उसी मायाजाल में प्रवेश करने लगते हैं , जिसे छोड़ कर , वे ऊपर माँ के दर्शन हेतु गए थे ! सीढ़ियों के दोनों और बैठे याचक , बहुरूपिये , मदारी , संपेरे , उन्हें नीचे की दुनिया से जोड़ने का माध्यम बनते हैं !नीचे बाज़ार है , माँ के चित्रों , मूर्तियों , अंगूठियों , घणो से सजी धजी दुकाने , भौतिक धरातल पर फिर ले आती हैं ! स्त्रियां अपने सुहाग रक्षा का सिंदूर खरीदती है , तो बच्चे खिलौने , और शर्म से निवृत हुए पुरुष क्षुधा शांत करने के लिए रेसुरेन्ट तलाशते हैं !
माता के दर्शन , वर्षों के पाप धो देती है ! धरातल पर आकर भले ही मनुष्य फिर से मायाजाल में फंस जाता है , किन्तु माता उसे सदैव सचेत करती रहती है ! यही मनुष्य का जीवन क्रम है ,, अनवरत , निरंतर , !यही जीवन चक्र है ,,! यही हिन्दू दर्शन है !
( आल्हा का अखाड़ा )
" माता के भक्तों में , महोबे के शूरवीर , और आध्यात्मिक साधक , ' आल्हा ' का नाम यहां बहुत चर्चित है ! मंदिर के पीछे , एक स्थान ' आल्हा के अखाड़े " के नाम से विख्यात है ! किंवदंती है की आल्हा शारदा के परम भक्त थे , और उन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त था ! वे नियमित रूप से इस मंदिर में आते थे ,, और माता को पुष्प चढ़ाते थे ! वे चंदेल शाशक परमाल के दरबार के योद्धा थे , और जब १२वीं सदी में , दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान ने चन्देलों को हराया , और आल्हा के छोटे भाई उदल बलिदान हो गए , तो आल्हा जंगलों में चले गए ! आज भी एक पुष्प , ब्रम्ह मुहूर्त बेला में , मंदिर के पट खोलने पर , माता के चरणों में चढ़ा हुआ दिखता है , कहते हैं वह आल्हा द्वारा चढ़ाया जाता है !
( रामपुर मंदिर )
त्रिकूट पर्वत के पीछे , पर्वत श्रंखला का जो किला नुमा एक घेरा दिखता है ,, उस पर स्थापित है एक और सिद्ध पुरुष , नीलकंठ महराज का तपस्या स्थल ! नीलकंठ महराज पर माता की कृपा थी , और उन्हें कई सिद्धियां प्राप्त थीं ! कहते हैं की जो एक बार महराज के मुख से निकल जाए , वह होनी में बदल जाता था ! उनके इस स्थान पर आज एक प्राचीन रामपुर मंदिर है , जिसमें राधाकृष्ण की भव्य मूर्तियां स्थापित है !
( ओइला आश्रम )
नीलकंठ महराज द्वारा एक आश्रम सतना मार्ग पर स्थापित किया गया था , जहां उनके आध्यात्म गुरु ढलाराम की समाधि है ! यह आश्रम अब ' ओयला आश्रम ' के नाम से भव्य धार्मिक परिसर का रूप ले चुका है ! नीलकंठ महराज द्वारा , गरीबों के लिए प्रारम्भ किये भंडारे की परम्परा यहां आज भी निरंतर है ! नील कंठ महराज के समाधिस्थ होने पर उनकी भी समाधि यहीं बनाई गयी , और उसके साथ विभिन्न देवताओं के भव्य मंदिर भी निर्मित हुए ! यहां सिद्धविनायक , आदिशक्ति जगदम्बा , आदिदेव शिव , लक्ष्मी नारायण , राधाकृष्ण और रामदरबार की भव्य मूर्तियां हैं , जो आये हुए यात्रियों की मनोकामना पूर्ण करते हैं ! मैहर का यह पवित्र स्थान भी , माता शारदा के मंदिर के बाद दर्शनीय स्थान के रूप में जाना जाता है !
( गोला मठ )
धर्म ध्वजा धरनी , मैहर में अनेको अनेक प्राचीन स्थान , सिद्ध क्षेत्र की तरह बिखरे हुए हैं ! जिसमें बड़ा अखाड़ा , गोला मठ , हरनामपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर , गोपाल मंदिर आदि हैं ! मंदिर मार्ग पर स्थित गोला मठ १०वीं सदी में , कलचुरियों द्वारा बनाया गया शिव मंदिर है ! यह पूर्वमुखी , पंचरावी , नागरा शैली में बनाया गया मंदिर है , जिसके बारे में कहा जाता है की इसे मात्र पंद्रह दिनों में तैयार किया गया था ! इसके शिल्प में , खजुराहो के मंदिरों के दर्शन होते हैं , जो बताते हैं , की भोग और योग से ऊपर उठने पर ही शिव की प्राप्ति होती है !गोला मठ को भी मैहर के एक और साधक , मुड़िया महराज की तपोस्थली कहा जाता है ! बड़े अखाड़े में महाराजा मैहर के प्रथम गुरु द्वारा स्थापित राम जानकी मंदिर है ! हरनामपुर के समीप स्थापित जगन्नाथ मंदिर में प्रस्तर कला के विशिष्ट नमूने देखने योग्य हैं ! यहां वर्ष में एक बार रथ यात्रा भी निकलती है !
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( बाबा अलाउद्दीन )
मैहर एक और सिद्ध पुरुष की तपोस्थली है , संगीत के महर्षि उस्ताद अलाउद्दीन खां की तपोस्थली ! बंगाल से , संगीत विद्या की प्यास मन में लिए निकले , अलाउद्दीनखाँ ने पहले कई घरानो में संगीत सीखने के लिए देश की गालियां नापीं , और अंत में रामपुर घराने से उन्हें वीणा वाद्य के बाज का गुरुमंत्र प्राप्त हुआ ! किन्तु यह सीख भी दी गयी की वह हमेशा उसी घराने के शिष्य कहलाएं और किसी को यह विद्या ना स्थानांतरित करें ! विद्या दान की वस्तु है ,, प्रसार की वस्तु है , इस मंत्र को हृदय में रख कर वह मैहर आये , और शारदा की ड्योढ़ी पर बैठ कर महीनो सरोद पर रियाज़ किया ! माता प्रसन्न हुई तो उनके गुण ग्राहक बने यहां के राजा बृजेन्द्र सिंह ! अलाउद्दीनखाँ से उन्होंने ना सिर्फ गंडा बंधवाया , बल्कि उन्हें भूमि दी , आर्थिक सहायता दी ! धीरे धीरे बाबा अलाउद्दीन की ख्याति पूरे देश में फ़ैल गयी और माता शारदा की कृपा से उन्हें दो ऐसे शिष्य रत्न मिले जिन्होंने , मैहर को एक संगीत घराने का नाम दे दिया ! सितार के जादूगर , पंडित रविशंकर , और खुद अलाउद्दीनखां साहब के पुत्र सरोद वादक अली अकबर खान , बाबा से संगीत सीख कर , देश के वे रत्न बने जिनकी चमक देश के साथ साथ विदेश तक में आलोकित हुई ! सुश्री , अन्नपूर्णा देवी , जो बाबा की बेटी थी , एक कुशल संगीत साधक हुईं , और उनका विवाह रविशंकर के साथ हुआ !
बाबा के समाधि स्थल का नाम मदीना भवन है , जो उनकी पत्नी के नाम पर है ! यहां पर उनके जीवनकाल के चित्र , पुराणी यादें ताजा करते हैं ! उनके ही घर में एक म्यूजियम भी है जहां अनेक प्रकार के भारतीय वाद्य यंत्र , मैहर गुरुकुल की कथा कहते दीखते हैं ! बाबा , प्रयोग धर्मी संगीतज्ञ थे ! राजा के शस्त्रगार में रखी पुराणी बंदूकों की नालें काट कर उन्होंने उसे एक नए वाद्य यंत्र का स्वरूप दे दिया , जो आज मैहर बेंड का अभिनव वाद्य , नलतरंग कहलाता है ! मैहर बेंड भी बाबा के दें है , जिसमें उन्होंने मैहर के संगीत प्रेमी बच्चों को जोड़ कर , उन्हें वाद्य यंत्र बजाना सिखाया , और सैकड़ों तर्जें इज़ाद की , जो आज मैहर बेंड की शान है !
( राजघराना महल )
, मैहर की आधारशिला है यहां का राजघराना ! जिसके कला प्रेम से ही आज मैहर पूरे देश में , संगीत घराने के रूप में विकसित हुआ ! यहां के राजा बृजेन्द्र सिंह को भी एक सिद्ध पुरुष कहा जाए तो अतिशियोक्ति ना होगी ! जिस स्थान पर माता शारदा विराजी हो , उस स्थान के राजा पर माँ की ऐसी कृपा रही , की उन्हें कभी संकट देखने या झेलने का कोई अवसर सम्मुख नहीं आया ! महाराजा बृजेन्द्र सिंह वे भागीरथ थे , जो संगीत की मंदाकिनी बाबा अलाउद्दीन को मैहर ले कर आये !
मैहर रजवाड़े के महल उस संगीत चेतना , और भक्ति भाव के गवाह हैं , जो इस रजवाड़े में व्याप्त रही ! रजवाड़े के महल , परकोटे , भग्नावशेष , किले , प्राचीरें , आज भी उन राज सिद्धों को नमन करती हैं , जिनके कारण आज मैहर दृश्य है ! उनके महल के दरबार में अभी भी लगता है जैसे संगीत की महफ़िल अभी अभी उठी हो !
( सीमेंट उद्योग संस्थान के चित्र )
! यद्यपि आज रजवाड़े और राजा नहीं रहे , किन्तु उनके स्थान पर , औद्योगिक घ्राणो के विशिष्ट उद्योगपति , मैहर की यश पताका पूरे विश्व में फहरा रहे हैं ! विंध्यांचल की तराई में , कटनी से रीवा तक , पृथ्वी के गर्भ में छिपी , एक अदम्य शक्ति , लाइम स्टोन आज विश्व में उच्च गुणवत्ता की सीमेंट का आधार है ! जो आधुनिक भारत के निर्माण में अपनी अदब्वितीय भूमिका निबाह रही है ! पहले यहां चुने के भट्ठे लगते थे ,, लेकिन पर्यावरण के मूल्यों को नमन करते हुए अब वे शांत हैं ! आज यहां , बिरला घराने का मैहर सीमेंट उद्योग के साथ साथ , रिलायंस सीमेंट , केजेएस सीमेंट के संयंत्र निरंतर सीमेंट निर्माण में संलग्न हैं !
( िचौल आर्ट के सीक्वेंस )
बदलती हुई संस्कृति के बीच , पुरानी संस्कृति को कलात्मक स्वरूप दे कर , अक्षुण रखने का काम कर रही है , मैहर के निकट बसे ग्राम इचौल में स्थापित। इचौल आर्ट संस्था ! यह आज एक दर्शनीय स्थान के रूप में करवट लेता स्थान है जो सतना मार्ग पर , मैहर से मात्र दस किलोमीटर दूर है ! यहां कबाड़ से निकली चीजों को अद्भुत रूप दिया गया है और इसे एक पार्क के स्वरूप में विकसित किया गया है ! परिसर के अंदर ही , एक रेस्टोरेंट है जहां सभी व्यंजन मिलते हैं !
( उपसंहार )
,, आध्यात्म , संगीत , भक्ति , और शक्ति की पर्याय मैहर नगरी को लोग कई पीढ़ियों से नमन कर रहे हैं ! मैहर के वायुमंडल में संगीत झंकृत होता रहा है , और सिद्ध दात्री माँ शारदा की अनुकम्पा , इस भूमि के कण कण पर है ! माँ के दर्शनों की ललक मन में लिए यहाँ के ग्रामीणों के कंठ से , लोकगीतों के मधुर स्वर निरंतर फूटते हैं,,
" माई के दुआरे एक अंधा पुकारे , देवो दर्श घर जाऊं री , माई तोरी संकरी किवड़िया "
प्राचीन काल में भले ही माई के मंदिर की किवड़िया संकरी रही होगी , लेकिन आज माई के द्वार की किवड़िया संकरी नहीं हैं ! पूरे देश के कोने कोने से आकर माई के दर्शनों का अमृतपान , भक्त निरंतर , ३६५ दिन करते हैं , और माई उन्हें निरंतर वात्सल्य भाव से निहारती है , उनकी मनोकामना पूरी करती है , उनके दुखों का निवारण करती हैं !
एक बार मैहर आइये , तो आप बार बार मैहर आएंगे , यह हमारा विश्वाश है !
---- आलेख सभाजीत
, मैहर का अर्थ है ,," माई हार " यानी मैया का आँगन ! माई के आँगन में आया हर व्यक्ति , खुद को बेटे की तरह , माँ के सुरक्षित आँचल में निर्भय महसूस करता है ! उसे विश्वाश होता है की माँ उसके सब दुःख दर्द दूर करेंगी , हर कष्ट का निवारण करेंगी , और वह माँ के दर्शन करके , एक नयी ऊर्जा के साथ , मन में शान्ति धारण कर यहां से वापिस अपने घर लौटता है ! माँ की ममता होती ही ऐसी है ,, की बिना हिचक , वह अपनी संतान को वह सब देती है , जो उनसे मनुहार करके मांगते हैं !
! संकल्प की लाल ध्वजा आसमान में फहराते हुए , मीलों दूर से टोली बना कर , भक्ति गीत गाते हुए , ग्रामवासी , माँ के आँगन में पहुँचते हैं खेतों में बोई फसल के प्रतीक चिन्ह जवारों के साथ , की हे माँ ,,हमारा कृषि धन तुम्हें अर्पित है ,, तुम हमारे घर , परिवार , और कृषि धन की रक्षा करना !
कई लोग इस स्थान को शक्तिपीठ मानते हैं !यहां विभिन्न वेशभूषाओं में तांत्रिक , और साधक भी पहुँचते हैं , , अपने तप , और अपनी साधना का फल पाने के लिए ! ,
( रेलवे स्टेशन )
प्रतिवर्ष श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देख कर , रेलवे विभाग ने इस स्टेशन को , प्रतीक्षालयों को सुविधायुक्त और आकर्षक बना दिया है ! स्टेशन पर , ट्रेनों के रुकने हेतु , सर्वसुविधायुक्त , ३ लम्बे प्लेटफार्म बन चुके हैं ! स्टेशन पर खान पान की सुविधा के साथ , जल वितरण की समुचित व्यवस्था है ! स्टेशन पर इस नगरी की महत्ता का विवरण भी अंकित किया गया है ,,,जिसमें इसे संगीत महर्षि , उस्ताद अलाउद्दीन खान की नगरी के रूप में भी उल्लेखित किया गया है ! स्टेशन से बाहर निकलते ही , ऑटो रिक्शा , यात्रियों का इंतज़ार करते खड़े दीखते हैं ! ये मंदिर तक जाने का आधुनिक साधन हैं ! कुछ वर्षों पूर्व , मंदिर जाने के लिए तांगों और साधारण रिक्शाओं का भी प्रचलन था किन्तु समय के परिवर्तन ने इन्हे विलुप्त कर दिया !
( घंटाघर चौक )
मैहर की शारदा देवी मंदिर की और अग्रसर होते हुए , मार्ग में , मैहर बस्ती के भी दर्शन होते हैं ! चहल पहल से भरपूर बस्ती , अपनी धार्मिक आस्थाओं के साथ साथ अपनी जीवन्तता का भी परिचय देती है ! मार्ग में पड़ने वाले कुछ पुराने मंदिरों को पार कर , मैहर के उस चौराहे से गुजरते हैं , जो घंटाघर चौक कहलाता है ! इस चौराहे पर ही मैहर का मुख्य बाज़ार है ! यहीं एक संगीत महाविद्यालय भवन है , जिसमें उस्ताद अलाउद्दीन खां के द्वारा स्थापित मैहर बेंड का वादन हर शाम होता है ! चौराहे से देवी मंदिर की और आगे बढ़ने पर , मिलता है , विशाल तालाब विष्णु सागर ! गर्मियों में यह प्रायः सूखा रहता है , किन्तु बरसात में इसका जल सड़क के किनारों को छूने लगता है ! त्रिकूट पर्वत पर स्थापित मंदिर की आभा यहीं से स्पष्ट दृष्टिगत होने लगती है , और हर यात्री के पग , उल्लासित हो क्र मंदिर निहारते हुए , तेजी से उठने लगते हैं !
( बीएस स्टेण्ड )
आगे आता है , मैहर का सर्वसुविधायुक्त , बस स्टेण्ड ! सड़क मार्ग से आने वाले यात्रिओं की बसें इस स्थान तक आ कर यात्रिओं को उतारती हैं ! बसों से उतरे हुए , यात्रियों के झुण्ड भी , माता के दर्शन के लिए , अपनी पग यात्रा प्रारम्भ करते हैं ! साधन संपन्न यात्री , यहां खड़े , ऑटो रिक्शाओं का सहारा ले लेते हैं ,, और मंदिर की और अग्रसर हो जाते हैं !
किसी भी साधन से आये , किसी भी दिशा से आये , किसी भी स्थिति से आये , इस नगरी में , माता के दर्शन हेतु आया हर व्यक्ति , एक श्रद्धालु ही होता है ! माता के दर्शन हेतु आया , थका हारा , उसका एक पुत्र ! जिसे अपनी माँ के दर्शनों की चाह है , और माँ ने जिसे अपने धाम बुलाया है !
लगभग १०० मीटर ऊँचे , उत्तंग शिखर पर बिराजी शारदा , आदिशक्ति का सार्व भौम स्वरूप हैं , जो मनुष्य की जिह्वा में वास करती है ! यह आदि शक्ति , जन्म से ले कर मृत्यु तक , सम्पूर्ण जीवों के विवेक और बुद्धि की स्वामिनी है ! ज्ञान के प्रतीक चिन्ह , कमल , शंख , पोथी , और माला , उनके कर कमलों में विदवमान है ! ज्ञान के अनुयायी भक्तों की रक्षा का भार , वे स्वयं उठाती हैं ! उनके भक्तों को किसी अस्त्र , शस्त्र युद्ध कौशल , शारीरिक बल की जरूरत नहीं ! संकट के क्षणों में , अपने असहाय भक्त की रक्षा , वे उसे बुद्धि प्रदान करके करती हैं !
, शारदा मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही मन आल्हादित हो जाता है ! मंदिर के नीचे फैले क्षेत्र में , ध्वजा पताकाओं से सजा , छोटा सा बाजार , स्थानीय मेले का आनंद देता है ! माँ को प्रसाद चढ़ावे में , नारियल , इलायची दाने , चुनरी , और फूल मालाएं स्वीकार हैं ! यह सहज चढ़ावा है , जो हर व्यक्ति की आर्थिक सीमाओं के अंदर है ! मंदिर और मंदिर के पूरे परिसर की व्यवस्था की बागडोर आज स्थानीय प्रशाशन के हाथों है ! ,इसलिए , नवरात्रि की संभावित भीड़ को नियंत्रित करने के लिए , परिसर से बहुत पहले से ही , छावं युक्त मार्ग विभाजन , इस तरह किया गया है , की श्रद्धालु गण कतार में चल कर , निर्विघ्न रूप से मंदिर तक पहुँच सकें ! मंदिर के नीचे बनी दुकानों में , हाथ पावं धोने , नहाने की समुचित व्यवस्था है ! ! मध्यमवर्गीय सम्पन्न श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए , यहां स्थानीय औद्योगिक संस्थानों ने धर्मशालाएं बना दी हैं जहां लोग ठहर भी सकते हैं !
- प्रसाद हाँथ में लिए , यात्री नंगे पावँ , मंदिर की प्रथम सीढ़ी पर बने , विशाल प्रवेश द्वार पर पहुँचते हैं , जहां द्वारपाल के रूप में स्थापित हैं ,,भैरव देव ! जय माँ शारदे के जय घोष के साथ , ललाट पर टीका लगवा , माता का नाम ले कर भक्त शुरू करते हैं ११५६ सीढ़ियों की छायादार चढ़ाई ! पर्वत शिखर पर पहुँचने के लिए किसी जमाने में मात्र ५६५ बिना छाया दार , सीढ़ियां ही थी , जो तीन चरणों की दुर्गम , यात्रा को बहुत श्रमदायक बना देती थी ! लेकिन आज , पर्वत शिखर पर पहुँचने के लिए , यात्रा बहुत सुगम हो गयी है ! मंदिर के निकट से , ऊपर शिखर तक पहुँचने के लिए आज एक आधुनिक रोप वे उपलब्ध है , जिसमें निर्धारित किराया दे कर , सरलता पूर्वक ऊपर पहुंचा जा सकता है ! मंदिर के चारों और घूम कर , ऊपर शिखर तक जाने वाली , एक सड़क मार्ग भी है , जिसके माध्यम से वाहन सहित , पर्वत के तीसरी चरण तक आसानी से पहुंचा जा सकता है !
बलुवा पर्वत के क्षरण की आशंकाओं को देखते हुए , अब पूरी सतर्कता बरती जा रही है , इसलिए नारियल चढाने का काम अब नीचे के प्रवेश द्वार पर ही सम्पन्न कर दिया जाता है ! अपने बालक की मंगल कामना के साथ , मुंडन संस्कार करवाने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी , अब मंदिर के नीचे ही , एक स्थान नियत कर दिया गया है ! यहां , नाइयों की टोलियां , अपने आसान बिछाये , बढ़ावे के गीतों के मध्य , रट सुबकते बच्चों का मुंडन करते है , जिनकी फीस स्थानीय प्रशाशन ने नियत कर दी है !
जितनी भक्ति , जितना परिश्रम , , उतना ही फल , की भावना से ओत प्रोत अधिकतर श्रद्धालु , मंदिर पहुँचने के लिए , सीढ़ी मार्ग ही , चुनते हैं ! प्रारम्भ में जोश देखते ही बनता है , लेकिन धीरे धीरे उन्हें मालुम हो जाता है की , माँ के दर्शन आसान नहीं , जब स्वेद कण उनके मुंह पर झलकने लगते हैं ! ऊपर की और नजर गड़ाए , मान से दर्शनों की मनुहार करते , वृद्ध , अपाहिज , भी हिम्मत नहीं हारते और एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए , अंत में पहुँच ही जाते हैं मंदिर के द्वार पर !
सीढी और सड़क मार्ग से पहुंचे यात्री जब मंदिर के प्रवेशद्वार पर पहुँचते हैं , तो उन्हें वहां बैठा मिलता है एक नफरी ! नगाड़े की ध्वनि करता हुआ , वह सबकी मनोकामनाओं की पूर्ती की मंगल कामना करता है ! अंदर एक छोटा सा प्रांगण है , जिसमें , हर सुविधाओं से पहुंचे श्रद्धालु , एक सार हो कर कतार बद्ध हो क्र आगे बनी , संगमरमर की सीढियों पर चढ़ कर माँ के समक्ष जा खड़े होते हैं ! माँ की झलक पाते ही हर यात्री , अपने श्रम और थकान को भूल कर , उन्हें एकटक अपलक निहारने लगता है ! आल्हादित मन में एक ही भाव उत्पन्न होता है ,,'माँ ,,, मेरा कुछ नहीं , जो कुछ दिया वह तुम्हारा ही है ! ! माता के सामने माथा टेक कर वह अपनी मनोव्यथा , मनोकामना व्यक्त करता है और साथ लाये नैवेद्य को भक्तिभाव के साथ समर्पित कर देता है ! एक क्षण के लिए , शक्ति और भक्ति एकसार हो उठती है ! चरणामृत ग्रहण कर , माथे पर टीका लगवा कर , प्रसाद ग्रहण कर , प्रफुल्लित मन से लोग आगे बढ़ जाते हैं , कतार का एक अंग बन कर !
कभी कभी श्रद्धालुओं को माँ की आरती में भी समंलित होने का अवसर मिल जाता है जो दिन में तीन समय होती है ! प्रातः , दोपहर , और सांध्या की आरती दर्शनीय है ! जिनमे आरती का सामूहिक गीत , और अग्नि की लौ , एक ऐसे वातावरण का सृजन करती है , जो अलौकिक होता है !
आगे , नरसिंघ अवतार की मूर्ती विराजमान है और बगल में है संकटमोचक हनुमान ! नरसिंघ अवतार की मूर्ती विष्णु के अवतार की द्योतक है ! किन्तु इस अवतार का स्वरूप अनोखा है ! हाथ में कोई अस्त्र शस्त्र नहीं , ना मनुष्य है ना पशु ,किन्तु हिरणाकश्यप जैसे वरदानी असुर की मृत्यु का कारक है ! यह स्वरूप हिरणाकश्यप को मिले उन वरदानी कवच का बौद्धिक तोड़ है , जिसके बिना , उसका अंत सम्भव ही नहीं था ! उधर हनुमान हैं , जो विष्णु की सहायतार्थ शिव द्वारा लिया गया अवतार कहे गए हैं ! विद्या वारिधि , बुद्धि विधाता , हनुमान के लिए ज्ञान और शक्ति एक ही स्वरूप में निहित है ! देवी परिसर में इन दोनों अवतार स्वरूपों का आध्यात्मिक महत्त्व है ,,इसलिए , देवी दर्शन के बाद , श्रद्धालु ,इन्हे सर नवाते हैं !
मंदिर के पृष्ठ भाग में , माँ को याद दिलाते रहने के लिए , हत्थे लगाने का रिवाज है ! मंदिर के पीछे वाले शिखर प्रांगण में आ कर लोग संतोष अनुभव करते हैं की उनकी देवी दर्शन की साध पूरी हुई ! प्रांगण में लगे वट वृक्ष को महिलायें धागा बाँध कर मनौती करती हैं ! माता के मंदिर परिसर का कण कण साध पूरी करने का साधन है ! यहां घुमन्तु फोटोग्राफर , मंदिर यात्रा की यादगारों को फोटो में ढाल कर तुरंत पकड़ा देते हैं ,,, सदैव के लिए सहेज कर रखने के लिए !
,शिखर से नीचे झाँकने पर , नीचे बसी दुनिया और चलते फिरते लोग , खिलौनों की तरह प्रतीत होते हैं ! हिन्दू धर्म का यही तत्व सार है ,,,जब आप ईश्वर के निकट होते हैं तो शेष दुनिया आपको बौनी दिखती है ! शिखर से नीचे उतरते हुए यात्री धीरे धीरे पुनः उसी मायाजाल में प्रवेश करने लगते हैं , जिसे छोड़ कर , वे ऊपर माँ के दर्शन हेतु गए थे ! सीढ़ियों के दोनों और बैठे याचक , बहुरूपिये , मदारी , संपेरे , उन्हें नीचे की दुनिया से जोड़ने का माध्यम बनते हैं !नीचे बाज़ार है , माँ के चित्रों , मूर्तियों , अंगूठियों , घणो से सजी धजी दुकाने , भौतिक धरातल पर फिर ले आती हैं ! स्त्रियां अपने सुहाग रक्षा का सिंदूर खरीदती है , तो बच्चे खिलौने , और शर्म से निवृत हुए पुरुष क्षुधा शांत करने के लिए रेसुरेन्ट तलाशते हैं !
माता के दर्शन , वर्षों के पाप धो देती है ! धरातल पर आकर भले ही मनुष्य फिर से मायाजाल में फंस जाता है , किन्तु माता उसे सदैव सचेत करती रहती है ! यही मनुष्य का जीवन क्रम है ,, अनवरत , निरंतर , !यही जीवन चक्र है ,,! यही हिन्दू दर्शन है !
( आल्हा का अखाड़ा )
" माता के भक्तों में , महोबे के शूरवीर , और आध्यात्मिक साधक , ' आल्हा ' का नाम यहां बहुत चर्चित है ! मंदिर के पीछे , एक स्थान ' आल्हा के अखाड़े " के नाम से विख्यात है ! किंवदंती है की आल्हा शारदा के परम भक्त थे , और उन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त था ! वे नियमित रूप से इस मंदिर में आते थे ,, और माता को पुष्प चढ़ाते थे ! वे चंदेल शाशक परमाल के दरबार के योद्धा थे , और जब १२वीं सदी में , दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान ने चन्देलों को हराया , और आल्हा के छोटे भाई उदल बलिदान हो गए , तो आल्हा जंगलों में चले गए ! आज भी एक पुष्प , ब्रम्ह मुहूर्त बेला में , मंदिर के पट खोलने पर , माता के चरणों में चढ़ा हुआ दिखता है , कहते हैं वह आल्हा द्वारा चढ़ाया जाता है !
( रामपुर मंदिर )
त्रिकूट पर्वत के पीछे , पर्वत श्रंखला का जो किला नुमा एक घेरा दिखता है ,, उस पर स्थापित है एक और सिद्ध पुरुष , नीलकंठ महराज का तपस्या स्थल ! नीलकंठ महराज पर माता की कृपा थी , और उन्हें कई सिद्धियां प्राप्त थीं ! कहते हैं की जो एक बार महराज के मुख से निकल जाए , वह होनी में बदल जाता था ! उनके इस स्थान पर आज एक प्राचीन रामपुर मंदिर है , जिसमें राधाकृष्ण की भव्य मूर्तियां स्थापित है !
( ओइला आश्रम )
नीलकंठ महराज द्वारा एक आश्रम सतना मार्ग पर स्थापित किया गया था , जहां उनके आध्यात्म गुरु ढलाराम की समाधि है ! यह आश्रम अब ' ओयला आश्रम ' के नाम से भव्य धार्मिक परिसर का रूप ले चुका है ! नीलकंठ महराज द्वारा , गरीबों के लिए प्रारम्भ किये भंडारे की परम्परा यहां आज भी निरंतर है ! नील कंठ महराज के समाधिस्थ होने पर उनकी भी समाधि यहीं बनाई गयी , और उसके साथ विभिन्न देवताओं के भव्य मंदिर भी निर्मित हुए ! यहां सिद्धविनायक , आदिशक्ति जगदम्बा , आदिदेव शिव , लक्ष्मी नारायण , राधाकृष्ण और रामदरबार की भव्य मूर्तियां हैं , जो आये हुए यात्रियों की मनोकामना पूर्ण करते हैं ! मैहर का यह पवित्र स्थान भी , माता शारदा के मंदिर के बाद दर्शनीय स्थान के रूप में जाना जाता है !
( गोला मठ )
धर्म ध्वजा धरनी , मैहर में अनेको अनेक प्राचीन स्थान , सिद्ध क्षेत्र की तरह बिखरे हुए हैं ! जिसमें बड़ा अखाड़ा , गोला मठ , हरनामपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर , गोपाल मंदिर आदि हैं ! मंदिर मार्ग पर स्थित गोला मठ १०वीं सदी में , कलचुरियों द्वारा बनाया गया शिव मंदिर है ! यह पूर्वमुखी , पंचरावी , नागरा शैली में बनाया गया मंदिर है , जिसके बारे में कहा जाता है की इसे मात्र पंद्रह दिनों में तैयार किया गया था ! इसके शिल्प में , खजुराहो के मंदिरों के दर्शन होते हैं , जो बताते हैं , की भोग और योग से ऊपर उठने पर ही शिव की प्राप्ति होती है !गोला मठ को भी मैहर के एक और साधक , मुड़िया महराज की तपोस्थली कहा जाता है ! बड़े अखाड़े में महाराजा मैहर के प्रथम गुरु द्वारा स्थापित राम जानकी मंदिर है ! हरनामपुर के समीप स्थापित जगन्नाथ मंदिर में प्रस्तर कला के विशिष्ट नमूने देखने योग्य हैं ! यहां वर्ष में एक बार रथ यात्रा भी निकलती है !
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( बाबा अलाउद्दीन )
मैहर एक और सिद्ध पुरुष की तपोस्थली है , संगीत के महर्षि उस्ताद अलाउद्दीन खां की तपोस्थली ! बंगाल से , संगीत विद्या की प्यास मन में लिए निकले , अलाउद्दीनखाँ ने पहले कई घरानो में संगीत सीखने के लिए देश की गालियां नापीं , और अंत में रामपुर घराने से उन्हें वीणा वाद्य के बाज का गुरुमंत्र प्राप्त हुआ ! किन्तु यह सीख भी दी गयी की वह हमेशा उसी घराने के शिष्य कहलाएं और किसी को यह विद्या ना स्थानांतरित करें ! विद्या दान की वस्तु है ,, प्रसार की वस्तु है , इस मंत्र को हृदय में रख कर वह मैहर आये , और शारदा की ड्योढ़ी पर बैठ कर महीनो सरोद पर रियाज़ किया ! माता प्रसन्न हुई तो उनके गुण ग्राहक बने यहां के राजा बृजेन्द्र सिंह ! अलाउद्दीनखाँ से उन्होंने ना सिर्फ गंडा बंधवाया , बल्कि उन्हें भूमि दी , आर्थिक सहायता दी ! धीरे धीरे बाबा अलाउद्दीन की ख्याति पूरे देश में फ़ैल गयी और माता शारदा की कृपा से उन्हें दो ऐसे शिष्य रत्न मिले जिन्होंने , मैहर को एक संगीत घराने का नाम दे दिया ! सितार के जादूगर , पंडित रविशंकर , और खुद अलाउद्दीनखां साहब के पुत्र सरोद वादक अली अकबर खान , बाबा से संगीत सीख कर , देश के वे रत्न बने जिनकी चमक देश के साथ साथ विदेश तक में आलोकित हुई ! सुश्री , अन्नपूर्णा देवी , जो बाबा की बेटी थी , एक कुशल संगीत साधक हुईं , और उनका विवाह रविशंकर के साथ हुआ !
बाबा के समाधि स्थल का नाम मदीना भवन है , जो उनकी पत्नी के नाम पर है ! यहां पर उनके जीवनकाल के चित्र , पुराणी यादें ताजा करते हैं ! उनके ही घर में एक म्यूजियम भी है जहां अनेक प्रकार के भारतीय वाद्य यंत्र , मैहर गुरुकुल की कथा कहते दीखते हैं ! बाबा , प्रयोग धर्मी संगीतज्ञ थे ! राजा के शस्त्रगार में रखी पुराणी बंदूकों की नालें काट कर उन्होंने उसे एक नए वाद्य यंत्र का स्वरूप दे दिया , जो आज मैहर बेंड का अभिनव वाद्य , नलतरंग कहलाता है ! मैहर बेंड भी बाबा के दें है , जिसमें उन्होंने मैहर के संगीत प्रेमी बच्चों को जोड़ कर , उन्हें वाद्य यंत्र बजाना सिखाया , और सैकड़ों तर्जें इज़ाद की , जो आज मैहर बेंड की शान है !
( राजघराना महल )
, मैहर की आधारशिला है यहां का राजघराना ! जिसके कला प्रेम से ही आज मैहर पूरे देश में , संगीत घराने के रूप में विकसित हुआ ! यहां के राजा बृजेन्द्र सिंह को भी एक सिद्ध पुरुष कहा जाए तो अतिशियोक्ति ना होगी ! जिस स्थान पर माता शारदा विराजी हो , उस स्थान के राजा पर माँ की ऐसी कृपा रही , की उन्हें कभी संकट देखने या झेलने का कोई अवसर सम्मुख नहीं आया ! महाराजा बृजेन्द्र सिंह वे भागीरथ थे , जो संगीत की मंदाकिनी बाबा अलाउद्दीन को मैहर ले कर आये !
मैहर रजवाड़े के महल उस संगीत चेतना , और भक्ति भाव के गवाह हैं , जो इस रजवाड़े में व्याप्त रही ! रजवाड़े के महल , परकोटे , भग्नावशेष , किले , प्राचीरें , आज भी उन राज सिद्धों को नमन करती हैं , जिनके कारण आज मैहर दृश्य है ! उनके महल के दरबार में अभी भी लगता है जैसे संगीत की महफ़िल अभी अभी उठी हो !
( सीमेंट उद्योग संस्थान के चित्र )
! यद्यपि आज रजवाड़े और राजा नहीं रहे , किन्तु उनके स्थान पर , औद्योगिक घ्राणो के विशिष्ट उद्योगपति , मैहर की यश पताका पूरे विश्व में फहरा रहे हैं ! विंध्यांचल की तराई में , कटनी से रीवा तक , पृथ्वी के गर्भ में छिपी , एक अदम्य शक्ति , लाइम स्टोन आज विश्व में उच्च गुणवत्ता की सीमेंट का आधार है ! जो आधुनिक भारत के निर्माण में अपनी अदब्वितीय भूमिका निबाह रही है ! पहले यहां चुने के भट्ठे लगते थे ,, लेकिन पर्यावरण के मूल्यों को नमन करते हुए अब वे शांत हैं ! आज यहां , बिरला घराने का मैहर सीमेंट उद्योग के साथ साथ , रिलायंस सीमेंट , केजेएस सीमेंट के संयंत्र निरंतर सीमेंट निर्माण में संलग्न हैं !
( िचौल आर्ट के सीक्वेंस )
बदलती हुई संस्कृति के बीच , पुरानी संस्कृति को कलात्मक स्वरूप दे कर , अक्षुण रखने का काम कर रही है , मैहर के निकट बसे ग्राम इचौल में स्थापित। इचौल आर्ट संस्था ! यह आज एक दर्शनीय स्थान के रूप में करवट लेता स्थान है जो सतना मार्ग पर , मैहर से मात्र दस किलोमीटर दूर है ! यहां कबाड़ से निकली चीजों को अद्भुत रूप दिया गया है और इसे एक पार्क के स्वरूप में विकसित किया गया है ! परिसर के अंदर ही , एक रेस्टोरेंट है जहां सभी व्यंजन मिलते हैं !
( उपसंहार )
,, आध्यात्म , संगीत , भक्ति , और शक्ति की पर्याय मैहर नगरी को लोग कई पीढ़ियों से नमन कर रहे हैं ! मैहर के वायुमंडल में संगीत झंकृत होता रहा है , और सिद्ध दात्री माँ शारदा की अनुकम्पा , इस भूमि के कण कण पर है ! माँ के दर्शनों की ललक मन में लिए यहाँ के ग्रामीणों के कंठ से , लोकगीतों के मधुर स्वर निरंतर फूटते हैं,,
" माई के दुआरे एक अंधा पुकारे , देवो दर्श घर जाऊं री , माई तोरी संकरी किवड़िया "
प्राचीन काल में भले ही माई के मंदिर की किवड़िया संकरी रही होगी , लेकिन आज माई के द्वार की किवड़िया संकरी नहीं हैं ! पूरे देश के कोने कोने से आकर माई के दर्शनों का अमृतपान , भक्त निरंतर , ३६५ दिन करते हैं , और माई उन्हें निरंतर वात्सल्य भाव से निहारती है , उनकी मनोकामना पूरी करती है , उनके दुखों का निवारण करती हैं !
एक बार मैहर आइये , तो आप बार बार मैहर आएंगे , यह हमारा विश्वाश है !
---- आलेख सभाजीत
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