विंध्य की विरासत
सतना शहर
प्रथम अंक
सूर्योदय का दृश्य !
लोगों के घूमने , जॉगिंग , करने के दृश्य ! आवागमन के दृश्य ! चाय की गुमटी के दृश्य ! जलेबी समोसे की दूकान के दृश्य !
( वाइस ओवर )
सूर्य की नई किरण के साथ ही करवट लेने वाला सतना शहर , विंध्य भूमि का वह यशश्वी शहर है , जिसकी विरासत में श्रम ही उसकी अपनी खुद की पूंजी है , ! सुबह से ही लोग , खुद को तैयार करते हैं , दिन भर की भाग दौड़ के लिए , ताकि वे विकास की तेज दौड़ में अन्य शहरों की तुलना में कहीं पिछड़ ना जाएँ ! हर दिन , महानगरों की होड़ से प्रभावित , यह शहर , हर दिन नए नए व्यवसायों की और उन्मुख होता है , और स्मार्ट सिटी बनाने की दौड़ में , चमक दमक से भरे , नए नए बाजारों का सृजन करता है ! जरूरतें , बाजार को जन्म , देती हैं और बाजार उपभोक्तावाद को ! सतना शहर के जन्म की कहानी भी , जरुरत और उपभोक्तावाद की एक कहानी है , जो तब शुरू हुई जब ,देश की प्रथम विफल क्रान्ति के बाद , अंग्रेजों ने , देशी रियासतों पर अंकुश लगाने के लिए यहां एक सैनिक छावनी स्थापित की , , ! अंग्रेजों ने सतना की सैनिक छावनी को , अन्य मुख्य सैनिक छावनियों , जबलपुर , इलाहाबाद , झांसी से आपस में जोड़ने के लिए , जब रेलवे लाइनों का निर्माण किया , तो उस रेलवे लाइन पर बना १८६८ में एक नया स्टेशन ,,सतना !
जल्दी ही , अंग्रेज अफसरों और उनकी सैनकों की जरूरतों को पूरी करने के लिए एक बाजार की जरुरत पडी , और तब रेलवे स्टेशन के आस पास ही बना सतना का छोटा सा बाजार , जिसे देश के अलग अलग प्रांतों से आये लोगों ने साझा संस्कृति के रूप में , विकसित किया ! बुंदेलखंड और बघेल खंड की रियासतों के बीच , यह एकलौता स्टेशन था , जो उन्हें पूर्व में हावड़ा , और पश्चिम में मुंबई महा नगरों से जोड़ता था , इस लिए यहां का वह छोटा सा बाजार , बहुत जल्दी ही , रीवा , सीधी , पन्ना , छतरपुर रियासतों के लिए , थोक बाजार के रूप में विकसित हो गया ! इसलिए सतना के विकास की कहानी का सबसे बड़ा गवाह है यहां का रेलवे स्टेशन जिसकी यादों के बस्ते में कई कहानियां करीने से सजी हुई राखी हैं !
( नेपथ्य का एंकर वाइस ओवर )
आज के कायाकल्प की चमक से ओतप्रोत , सतना शहर के स्टेशन की आँखों ने , कई रंग बिरंगी घटनाएं अपने जीवनकाल में देखी है ! इस स्टेशन ने , गोरी जाति के अंग्रेजों की उस पहली व्हाइट ट्रेन को देखा है , जिसमें भारतीयों के लिए यात्रा करना निषेध था ! इसने पहली इलाहाबाद से भुसावल के लिए चलने वाली पैसेंजर ट्रेन को भी रवाना किया है ,इसने रीवा रियासत के महाराजा , गुलाब सिंह की बरात को आते जाते देखा है , अंगरेजी हुकूमत के वायसराय के भव्य स्वागत को देखा है , पृत्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर के लाव लश्कर को यहां उतरते देखा है , और उनके पुत्र , राजकपूर की बरात की आगवानी भी की है ! स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में , महात्मा गांधी के दर्शन के लिए उमड़ी अपार भीड़ को देखा है , जवाहरलाल नेहरू , लोकमान्य तिलक , सुभाषचंद्र बोस के आत्मिक स्वागत को भी देखा है !
यह किसी राजवंश के द्वारा बसाया गया कोई रियासती , शहर नहीं था ! इसलिए इस शहर में ना तो कोई किला था , ना कोई , परकोटा ना प्रवेश द्वार , ना कोई बुर्ज़ ! इसे ना कभी किसी विदेशी आक्रमण का डर लगा , ना आतातायी लूट का ! इस शहर को उन हाथों ने ,पाला , जो अलग अलग धर्म , अलग अलग जाती , अलग अलग संस्कृति के थे ,,जिनमें आपसी वैमनस्य नहीं था ,और ना सत्ता की भूख ! वे इस शहर को अपने बच्चे की तरह प्यार करते थे , और इसका लालन पालन , इसका विस्तार , अपनी नेक नियती के साथ किये !
--सतना के जन्म की कहानी जहां से शुरू होती है ,, वह जगह , आज सिविल लाइन कहलाती है ! जिस क्षेत्र में कभी , अंग्रेजों की पलटन के घोड़े , , सैनिकों की बैरकें , अधिकारियों के बंगले , हुआ करते थे , अब वह यहां का न्यायालय परिसर बन चुका है ! भले ही १५० वर्ष बीत गए , लेकिन इस न्यायालय परिसर के भवनों की बनावट , उस काल की गवाही देती नज़र आती हैं ! आज इस परिसर में सुबह से ही जैसे मेला लग जाता है ! न्याय की प्रतीक्षा में आये ग्रामीण लोग अपने अपने वकीलों को खोजते यहां घुमते नजर आते हैं ! वकीलों का , एक एक कुर्सी का सामूहिक दफ्तर , तीन शेड के नीचे सज जाता है , और टाइपराइटरों की खट खटाहट शुरू हो जाती है ! चाय और पान , इस परिसर की ऊर्जा है , इसलिए पान चाय के ठेले यहां वहां लगे दिख जाते हैं ! बीच बीच में , न्यायाधीश के दरवाजे पर हुई पुकार, एक अनोखी हलचल पैदा करती रहती है ,,जिसमें मिसिल दबाये वकील और पक्षकार , अपने गवाहों के साथ , दरवाजों की और दौड़ते नज़र आते हैं ! न्यायालय परिसर से लगे , भव्य बंगले , जिनमें कभी अंग्रेज अफसर रहते थे , आज , कलेक्टर , पुलिस अधीक्षक , और अन्य जिला अधिकारियों के निवास में तब्दील हो चुके हैं ! जहां कभी , सिरकम , बग्घियां , और घोड़ों की लाइन लगी रहती थी , वहां अब लाल पीली बत्ती की सरकारी चमचमाती कारे खड़ी दिखती हैं !
सतना के इतिहास का अहम हिस्सा आज , रेलवे लाइन के किनारे बना रेलवे कालोनी के रूप में , फैला दीखता है , पुराने क्वार्टर्स , रेलवे के पुराने स्वरूप को दर्शाते हैं ! यहां एक छोर पर , १८८ ८ में बना , सैंट मेरी चर्च , १५० वर्ष की स्थापित्य कला का नमूना है ! यह आज भी यहां के क्रिश्चियन समाज का अहम् उपासना स्थल है , ! गुड़ फ्राइडे , और क्रिसमिस डे के अलावा , नए वर्ष के आगमन पर यह चर्च गुलजार हो उठता है ! रेलवे के इसी छोर के अंत में , एक १५० वर्ष पुरानाक्रिश्चियन कब्रिस्तान है जिसकी गोद में , सतना के अधिष्ठाता अंग्रेज अफसरों सहित , शहर के क्रिश्चियन समाज के कई लोग , चिर निद्रा में लीन है !
( इंटरव्यू किसी क्रिश्चयन वृद्ध का )
सतना की स्टेशन रोड पर स्थित आज का सरकारी महाविद्यालय , कभी रीवा महाराजा की कोठी हुआ करता था !दो मंजिला , कोठी की लाल और भूरे पत्थरों की दीवारें , इसका गोल खम्बों वाला पोर्च , दीवारों पर बना रीवा राज्य का राजचिन्ह , फर्श पर लगा बर्मी टीक , और नीचे का दरबार हाल इसके अतीत की कहानी कहता है ! राजशाही के जमाने में , इसके अहाते में एक बड़ा चिड़ियाघर भी था , जिसमें कई प्रजातियों की चिड़ियाँ थी भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद भी यहां रुक चुके हैं ! इसका शिल्प बताता है की यह भवन , रियासती जमाने में सतना की शान था ! ! आज यहां क्षात्रों के भविष्य को संवारता , सतना का ऐतिहासिक महाविद्यालय है ! इसके प्रांगण में , युवा क्षात्रों की हलचल आने वाले भारत के उज्जवल भविष्य का संकेत देती है
सतना शहर
प्रथम अंक
सूर्योदय का दृश्य !
लोगों के घूमने , जॉगिंग , करने के दृश्य ! आवागमन के दृश्य ! चाय की गुमटी के दृश्य ! जलेबी समोसे की दूकान के दृश्य !
( वाइस ओवर )
सूर्य की नई किरण के साथ ही करवट लेने वाला सतना शहर , विंध्य भूमि का वह यशश्वी शहर है , जिसकी विरासत में श्रम ही उसकी अपनी खुद की पूंजी है , ! सुबह से ही लोग , खुद को तैयार करते हैं , दिन भर की भाग दौड़ के लिए , ताकि वे विकास की तेज दौड़ में अन्य शहरों की तुलना में कहीं पिछड़ ना जाएँ ! हर दिन , महानगरों की होड़ से प्रभावित , यह शहर , हर दिन नए नए व्यवसायों की और उन्मुख होता है , और स्मार्ट सिटी बनाने की दौड़ में , चमक दमक से भरे , नए नए बाजारों का सृजन करता है ! जरूरतें , बाजार को जन्म , देती हैं और बाजार उपभोक्तावाद को ! सतना शहर के जन्म की कहानी भी , जरुरत और उपभोक्तावाद की एक कहानी है , जो तब शुरू हुई जब ,देश की प्रथम विफल क्रान्ति के बाद , अंग्रेजों ने , देशी रियासतों पर अंकुश लगाने के लिए यहां एक सैनिक छावनी स्थापित की , , ! अंग्रेजों ने सतना की सैनिक छावनी को , अन्य मुख्य सैनिक छावनियों , जबलपुर , इलाहाबाद , झांसी से आपस में जोड़ने के लिए , जब रेलवे लाइनों का निर्माण किया , तो उस रेलवे लाइन पर बना १८६८ में एक नया स्टेशन ,,सतना !
जल्दी ही , अंग्रेज अफसरों और उनकी सैनकों की जरूरतों को पूरी करने के लिए एक बाजार की जरुरत पडी , और तब रेलवे स्टेशन के आस पास ही बना सतना का छोटा सा बाजार , जिसे देश के अलग अलग प्रांतों से आये लोगों ने साझा संस्कृति के रूप में , विकसित किया ! बुंदेलखंड और बघेल खंड की रियासतों के बीच , यह एकलौता स्टेशन था , जो उन्हें पूर्व में हावड़ा , और पश्चिम में मुंबई महा नगरों से जोड़ता था , इस लिए यहां का वह छोटा सा बाजार , बहुत जल्दी ही , रीवा , सीधी , पन्ना , छतरपुर रियासतों के लिए , थोक बाजार के रूप में विकसित हो गया ! इसलिए सतना के विकास की कहानी का सबसे बड़ा गवाह है यहां का रेलवे स्टेशन जिसकी यादों के बस्ते में कई कहानियां करीने से सजी हुई राखी हैं !
( नेपथ्य का एंकर वाइस ओवर )
आज के कायाकल्प की चमक से ओतप्रोत , सतना शहर के स्टेशन की आँखों ने , कई रंग बिरंगी घटनाएं अपने जीवनकाल में देखी है ! इस स्टेशन ने , गोरी जाति के अंग्रेजों की उस पहली व्हाइट ट्रेन को देखा है , जिसमें भारतीयों के लिए यात्रा करना निषेध था ! इसने पहली इलाहाबाद से भुसावल के लिए चलने वाली पैसेंजर ट्रेन को भी रवाना किया है ,इसने रीवा रियासत के महाराजा , गुलाब सिंह की बरात को आते जाते देखा है , अंगरेजी हुकूमत के वायसराय के भव्य स्वागत को देखा है , पृत्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर के लाव लश्कर को यहां उतरते देखा है , और उनके पुत्र , राजकपूर की बरात की आगवानी भी की है ! स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में , महात्मा गांधी के दर्शन के लिए उमड़ी अपार भीड़ को देखा है , जवाहरलाल नेहरू , लोकमान्य तिलक , सुभाषचंद्र बोस के आत्मिक स्वागत को भी देखा है !
यह किसी राजवंश के द्वारा बसाया गया कोई रियासती , शहर नहीं था ! इसलिए इस शहर में ना तो कोई किला था , ना कोई , परकोटा ना प्रवेश द्वार , ना कोई बुर्ज़ ! इसे ना कभी किसी विदेशी आक्रमण का डर लगा , ना आतातायी लूट का ! इस शहर को उन हाथों ने ,पाला , जो अलग अलग धर्म , अलग अलग जाती , अलग अलग संस्कृति के थे ,,जिनमें आपसी वैमनस्य नहीं था ,और ना सत्ता की भूख ! वे इस शहर को अपने बच्चे की तरह प्यार करते थे , और इसका लालन पालन , इसका विस्तार , अपनी नेक नियती के साथ किये !
--सतना के जन्म की कहानी जहां से शुरू होती है ,, वह जगह , आज सिविल लाइन कहलाती है ! जिस क्षेत्र में कभी , अंग्रेजों की पलटन के घोड़े , , सैनिकों की बैरकें , अधिकारियों के बंगले , हुआ करते थे , अब वह यहां का न्यायालय परिसर बन चुका है ! भले ही १५० वर्ष बीत गए , लेकिन इस न्यायालय परिसर के भवनों की बनावट , उस काल की गवाही देती नज़र आती हैं ! आज इस परिसर में सुबह से ही जैसे मेला लग जाता है ! न्याय की प्रतीक्षा में आये ग्रामीण लोग अपने अपने वकीलों को खोजते यहां घुमते नजर आते हैं ! वकीलों का , एक एक कुर्सी का सामूहिक दफ्तर , तीन शेड के नीचे सज जाता है , और टाइपराइटरों की खट खटाहट शुरू हो जाती है ! चाय और पान , इस परिसर की ऊर्जा है , इसलिए पान चाय के ठेले यहां वहां लगे दिख जाते हैं ! बीच बीच में , न्यायाधीश के दरवाजे पर हुई पुकार, एक अनोखी हलचल पैदा करती रहती है ,,जिसमें मिसिल दबाये वकील और पक्षकार , अपने गवाहों के साथ , दरवाजों की और दौड़ते नज़र आते हैं ! न्यायालय परिसर से लगे , भव्य बंगले , जिनमें कभी अंग्रेज अफसर रहते थे , आज , कलेक्टर , पुलिस अधीक्षक , और अन्य जिला अधिकारियों के निवास में तब्दील हो चुके हैं ! जहां कभी , सिरकम , बग्घियां , और घोड़ों की लाइन लगी रहती थी , वहां अब लाल पीली बत्ती की सरकारी चमचमाती कारे खड़ी दिखती हैं !
सतना के इतिहास का अहम हिस्सा आज , रेलवे लाइन के किनारे बना रेलवे कालोनी के रूप में , फैला दीखता है , पुराने क्वार्टर्स , रेलवे के पुराने स्वरूप को दर्शाते हैं ! यहां एक छोर पर , १८८ ८ में बना , सैंट मेरी चर्च , १५० वर्ष की स्थापित्य कला का नमूना है ! यह आज भी यहां के क्रिश्चियन समाज का अहम् उपासना स्थल है , ! गुड़ फ्राइडे , और क्रिसमिस डे के अलावा , नए वर्ष के आगमन पर यह चर्च गुलजार हो उठता है ! रेलवे के इसी छोर के अंत में , एक १५० वर्ष पुरानाक्रिश्चियन कब्रिस्तान है जिसकी गोद में , सतना के अधिष्ठाता अंग्रेज अफसरों सहित , शहर के क्रिश्चियन समाज के कई लोग , चिर निद्रा में लीन है !
( इंटरव्यू किसी क्रिश्चयन वृद्ध का )
सतना की स्टेशन रोड पर स्थित आज का सरकारी महाविद्यालय , कभी रीवा महाराजा की कोठी हुआ करता था !दो मंजिला , कोठी की लाल और भूरे पत्थरों की दीवारें , इसका गोल खम्बों वाला पोर्च , दीवारों पर बना रीवा राज्य का राजचिन्ह , फर्श पर लगा बर्मी टीक , और नीचे का दरबार हाल इसके अतीत की कहानी कहता है ! राजशाही के जमाने में , इसके अहाते में एक बड़ा चिड़ियाघर भी था , जिसमें कई प्रजातियों की चिड़ियाँ थी भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद भी यहां रुक चुके हैं ! इसका शिल्प बताता है की यह भवन , रियासती जमाने में सतना की शान था ! ! आज यहां क्षात्रों के भविष्य को संवारता , सतना का ऐतिहासिक महाविद्यालय है ! इसके प्रांगण में , युवा क्षात्रों की हलचल आने वाले भारत के उज्जवल भविष्य का संकेत देती है
अमूमन , किसी शहर का इतिहास उसके ऐतिहासिक भवनों से परिलक्षित होता है ! ,लेकिन सतना का इतिहास यहां के चौराहों में अंकित है ! यहां का ऐतिहासिक पन्नीलाल चौक , कभी अंग्रेज मेमों , और अंग्रेज अधिकारियों का सैरगाह था ! यहां पन्नीलाल सौदागर की चर्चित दूकान थी , जिसमें विदेशी कपड़ा , बिस्कुट , शराब , डिब्बा बंद गोस्त , ग्रामोफोन के रिकार्ड , वगैरह मिलते थे , जिन्हे अंग्रेज खरीदने आते थे ! यह चौराहा , डाक्टर राम मनोहर लोहिया की सभा , पहलवान गामा की हुंकार , , आर एस एस के दफ्तर और संघ कार्यकर्ताओं की हलचल , समाजवादियों के अड्डे , का गवाह है ! इसी चौराहे पर हाजी गनी का होटल था ! जिसमें गांधी जी के बगावती पुत्र , हरी लाल गांधी , जो कुछ दिन सतना में रहे , भोजन करने आते थे ! आज भी यह चौराहा शहर का प्रसिद्द चौराहा है , जहां भरा पूरा बाज़ार , होटल , और धर्मशालाएं हैं ! इसी चौक के फैज़ होटल में , डाक्टर लोहिया , राजनारायण , मृणाल गोर , जॉर्ज फर्नाडीज वगैरह आ चुके हैं ! यहां रामलीला का भरत मिलाप संपन्न होता है , ! इसी के निकट , जैनियों का उपासना स्थल , जैन मंदिर भी है ! कभी यहां इस शहर का आकर्षण ,," अशोक टाकीज " भी हुआ करती थी , जो अब शॉपिंग कम्प्लेक्स में तब्दील हो गयी है !
पन्नीलाल चौक की तरह ' हनुमान चौक ' भी एक दूसरा ऐतिहासिक चौक है ! जिसका जिक्र किये बिना सतना का इतिहास अधूरा है !यहां एक हनुमान जी का छोटा सा मंदिर है , जिसकी स्थापना १५० वर्ष पूर्व , सं १८७८ में हुई ! यह मंदिर पूरे शहर की आस्था का केंद्र है ! हर मंगलवार , और शनिवार यहां हनुमान भक्तों का तांता लगा रहता है ! इस चौक पर लुल्ली हलवाई की दूकान कभी बड़ी प्रसिद्द थी , जिसका बना कलाकंद , रेवा के महाराजा को बहुत पसंद था , इसलिए वह सतना से रीवा भेजा जाता था ! इस चौराहे पर सतना के अग्रणीय व्यवसायी ,. बाबू गोपाल नाथ खत्री का निवास था जिनका सामाजिक योगदान सतना के सुनहरे पन्नो में अंकित है !
हनुमानचौक से लगा पावर हाउस चौक है ! यहां जैन धर्मावलम्बियों प्रसिद्द मंदिर और पाठशाला है ! मंदिर में महावीर स्वामी की मूर्ती विराज मान है ! सतना में जैन समाज प्रचुर मात्रा में है ! आज़ादी के बाद , सतना के व्यापार को गति देने का काम इसी जैन समाज द्वारा संपन्न हुआ ! यह समुदाय बुंदेलखंड से आकर यहां बसा ! अहिंसा और शान्ति का मंत्र सतना की आत्मा में बसा है , इसलिए इस नगर में कभी कोई दंगा , नहीं हुआ ! ह्त्या लूटपाट के प्रकरण भी , यहां , अन्य शहरों की तुलना में नगण्य हैं !
-क्या आप सोच सकते हैं की किसी जमाने का प्रसिद्द फ़िल्मी गीत " टम टम से ना झांको रानी जी , गाड़ी से गाड़ी लड़ जाएगी " जैसे हिट गीत लिखने वाले गीतकार , ,,प्यारेलाल संतोषी इसी नगर के हनुमान चौक से ही लगे शास्त्री चौक पर रहते थे ! इस चौक पर कभी तमेरों की बर्तनो की दुकाने भी बहुतायत में थीं ,, चारों और बर्तन ठोकने की आवाज़ आती रहती थी ! यहां जो लोग रहे , उनमें , फ़िल्मी गीतकार तो थे ही फिल्म निर्देशक ,,' बिन्दु शुक्ला ' का बचपन भी यहीं बीता जो बतौर मनमोहन देसाई के चीफ अस्सिस्टेंट , , का काम भी करते रहे ! ! जिगनहट के कुंवर साहब को , फिल्म में हीरो का शौक परवान चढ़ा , तो उन्होंने बाजार में स्थित अपनी पूरी प्रॉपर्टी बेच कर उसे निभाया ! यह शहर आज भी फिल्म कलाकारों और फिल्मकारों से भरा पड़ा है !
-सतना शहर के एक अन्य चौराहे , बिहारी चौक ' की महत्ता , हिन्दू धर्म की दृष्टि से ऐतिहासिक है !इस चौक की स्थापना तभी हुई जब , अंग्रेज इस भूमि पर , रेल लाइन बिछा रहे थे ! बाबा बृन्दावन दास द्वारा बनवाये गए , , बिहारी जी के मंदिर में , बांके बिहारी यानी कृष्ण की १५० साल पहले की ऐतिहासिक मूर्ति स्थापित है ! यह मंदिर हिन्दुओं की आस्था का महत्वपूर्ण मंदिर है ! इसी चौक में बाबा बृन्दावन दास द्वारा शुरू की गयी रामलीला का मंचन आरम्भ हुआ , जो आज भी अनवरत है ! रामलीला , स्थानीय लोगों का लोकप्रिय मंचन है , जिसमें स्थानीय नागरिक ही पात्रों का अभिनय करते हैं ! यह चौराहा आज़ादी के आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा , जहां विशाल जन सभाएं आयोजित होती थीं ! यहां पुरुषोत्तम दास टंडन ठहर चुके हैं ! बिहारी चौक से लगे , बाजार चौक को भी वही ऐतिहासिक महत्त्व प्राप्त है , जो बिहारी चौक को है ! वस्तुतः , सतना का पुरातन ऐतिहासिक बाजार यही है !इस चौक ने सतना में आज़ादी के आंदोलनों की आधार शिला राखी ! विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का सत्याग्रह इसी चौराहे पर हुआ और सत्याग्रहियों पर तत्कालीन अंगरेजी पुलिस के डंडे भी यहीं बरसे ! इसी चौक पर उमड़ी भीड़ को देख कर पुलिस ने हवाई फायर भी किये !
-बिहारी चौक से पूरब की तरफ बढ़ने पर , मिलता है आज का प्रमुख चौक , लालता चौक! इस चौक पर आज महदूरों की हाट लगती है ! चौक के चारों और फ़ैली सब्जी की दुकाने , यहां कदम रखने का स्थान नहीं छोड़ती ! दिन भर की मजदूरी के लिए , शारीरिक श्रम देने वाले मजदूरों की चाह में , यहां शहर के लोग आते हैं , और मजदूरों को साथ ले जाते हैं ! एक प्रकार से शारीरिक श्रम की खरीद फरोख्त की यह परम्परा , अनायास ही , उस युग की याद दिलाता है जब यह मुहल्ला किसी जमाने में चकलाटोला चौहट्टा के नाम से जाना जाता रहा था !
बांदा की नवाबी रियासत कमजोर पड़ने पर , कई वेश्याएं , बांदा से सतना आकर बस गयीं थीं ! यह चौराहा , उनके यहां आबाद होने से , चकला टोला के नाम से जाना गया ! वेश्याओं का जमावड़ा यहां १९१८ से ले कर १९४० तक शीर्ष पर रहा ! कहते हैं की लालता बाई नाम की एक नर्तकी यहां बहुत प्रसिद्द हुई ! कभी कभी झगडे भी हुए , जिसमें एक नर्तकी हमीदन जान की नाक भी उसके प्रेमी ने काट डाली ! इसी चौक पर मार्तण्ड टाकीज़ के नाम से , एक टाकीज भी खुली , जिसमें बैठने के लिए बेंच नहीं थी ! लोग घर से बोरी फट्टा ले कर आते , और उस पर बैठते ! इसी चौक पर पक्षियों का बाजार भी था , जहां तरह तरह के पक्षी बिकते थे !
विविधताओं से भरे इस शहर के समाज में हर समाज के लोगों ने यहां आमद दी ! इसलिए यह शहर आज विविध उपासनाओं का केंद्र है !बंगाली समाज ने , मुख्त्यार गंज में माँ काली का भव्य मंदिर बनाया जो कालीबाड़ी के नाम से जाना जाता है ! नव रात्रि में बंगाली समाज यहां परम्परागत रूप से पूजा करता है ! बिड़ला अस्पताल के सामने रामकृष्ण परमहंस आश्रम और भव्य मंदिर है ! यह मंदिर दर्शनीय है ! बांधवगढ़ कॉलोनी में अय्यप्पा स्वामी का दक्षिण शैली में भव्य मंदिर बना हुआ है ! गायत्री देवी का मंदिर , गायत्री पीठ के अन्यायियों ने सर्किट हाउस चौक पर बनवाया है ! यहां प्रणामी सम्प्रदाय का मंदिर भी पुराणी चांदनी टाकीज के पास है यहां के कायस्थ समाज ने चित्रगुप्त मंदिर जगतदेव तालाब पर बनवाया ! इसी तरह हरदौल का एक मंदिर नजीरा बाद में है ! डाली बाबा चौक पर नामदेव समाज का बनवाया नामदेव भगवान का मंदिर है ! गहरा नाला में नरसिंघ भगवान् बिराजे हैं ! जयस्तंभ चौक पर मार्कण्डेय मंदिर है ! इसके अलावा शिरडी के साईं भगवान् के मंदिर , हनुमान जी के मंदिर , भगवान् शिव के मंदिर , और दुर्गा मंदिर इस शहर के हर क्षेत्र्र में है !
मुस्लिमों द्वारा बनाई गई करीब बीस मस्जिदें भी इस शहर में विदवमान है !
लेकिन इन सब धार्मिक स्थलों में , जगत देव तालाब का शिव मंदिर ऐतिहासिक, और धार्मिक दृष्टि से सबसे ज्यादा पुराना है ! जगत देव तालाब सतना का ऐतिहासिक तालाब है , जिसे जगत देव पांडे ने सं १८६९ में खुदवाया था ! इस तालाब के जनानी घाट को बनवाने का श्रेय , मोती बाई वेश्या को जाता है ! समाज के वर्जित समुदाय , की सदस्य , मोतीबाई वेश्या की धर्म परायणता सिद्ध करती है की कर्म से भी बड़ा धर्म है ,, सामाज हित का धर्म ! ! जगत देव तालाब की सीढ़ियों पर बैठे भिक्षुक , दान पुण्य की आशा में , यहां के धार्मिक लोगों का सतत इन्तजार करते देखे जाते हैं !
सतना का दूसरा भव्य और पुरातन मंदिर , मुख्त्यारगंज का व्यंकटेश भगवान् का मंदिर है ! विष्णु सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले देव हैं ! इस मंदिर का निर्माण सं १८७६ में हुआ ! इसका शिल्प नयनाभिराम है ,,और इसके अंदर आध्यात्मिक अनुभूति होती है ! मंदिर की मूर्तियां बहुत सुन्दर हैं जिनमें व्यंकटेश भगवान् के साथ साथ श्री रंगनाथ , और लक्ष्मी नारायण की मूर्तियां स्थापित है ! सामने गरुण मंदिर हैं ,, और मुख्य मंदिर के पास छोटा सा सरोवर भी है ! इस मन्दिर का स्थापत्य दक्षिण शैली का है !
-जैन सम्प्रदाय के कई मंदिर इस नगर में है , किन्तु हनुमान चौक पर स्थापित जैन मंदिर और शास्त्री चौक पर स्थापित गुजराती स्वेताम्बर जैनो का भव्य मंदिर दर्शनीय है ! हनुमान चौक पर स्थापित मंदिर में तीर्थंकर की खंगासनीं प्राचीन प्रतिमा स्थापित है ! मंदिर में छह वेदियां मूल नायकों की है ! और अन्य सभी २४ तीर्थंकरों की है ! पहली वेदी ,वेदी नेमीनाथ स्वामी की है , अंतिम शांतिनाथ भगवान् की ! यहां पूरे वर्ष विभिन्न आयोजन होते रहते हैं ! यहां रथ यात्राओं के आयोजन भी हो चुके हैं !
सुभाष चौक के पास बना जैन मंदिर अत्यंत भव्य और दर्शनीय है !यह मंदिर १९७५ में बना और इसमें संगमरमर का प्रयोग किया गया है ! इसके गर्भमंडल , प्रभामंडल कलात्मक और आबू शैली के हैं ! रंग मंडप रणकपुर शैली का है और इसका शिखर पालीताना शैली का बना है ! इसमें भगवान् शांतिनाथ , नेमनाथ , पार्श्वनाथ , और भगवान् महावीर की भव्य मूर्तियों के साथ साथ भगवान् आदिनाथ की मूर्ती प्रतिस्थापित है !
महिला एंकर -किसी भी शहर की असली पहचान होती है , उसकी कला संस्कृति और , साहित्य सृजन से ! सतना शहर के पास विरासत में धरोहर के रूप में यह दोनों विधाएँ विदवमान हैं ! इस शहर में कभी पृथ्वी थियेटर ने नाटकों ने प्रदर्शन की जो नीवं स्थापित की , उसका निर्वहन इस नगर के लोग समय समय पर करते रहे ! लेकिन इस शहर की आत्मा में बसी रामलीला एक ऐसा मंच रही , जिसमें हर अभिनय प्रेमी को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला ! रामलीला एक ऐसा आयोजन था , जिसमें पुराने लोगों के हटने के बाद नए लोग आते गए और अभिनय की ललक की निरंतरता बनी रही !
- १९८० के दशक में , यहां नुक्कड़ नाटकों ने धूम मचाई ! विविधता के इस शहर में , राष्ट्रीय नाट्य विद्यालयों से स्नातक हुए , युवाओं के निर्देशन में खेले गए वे अब सतना के रुझान को नई दिशा दे रहे हैं ! ! अब इस नगर में नाट्य उत्सव भी हो रहे हैं ,, और मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय से स्नातक हुए युवा , अब रंग कर्म की धारा ही बहा रहे हैं !
संगीत के क्षेत्र में , भले ही इस शहर में कोई उस्ताद पैदा नहीं हुआ , लेकिन मैहर के संगीत घराने से प्रभावित शास्त्रीय संगीत की धारा यहां निरंतर बहती रही ! संगीत भारती , और गीतम नामक संगीत संस्थाएं बनी , और संगीत के उत्कृष्ट आयोजन हुए !संगीत के कई स्कूल , , यहां की संगीत परम्परा में खुले और धीरे धीरे संगीत कला के श्रोताओं के साथ साथ कलाकार भी यहां स्थापित हुए ! शास्त्रीय संगीत के अलावा , सुगम संगीत ने भी यहां अपनी छटा बिखेरी , और फ़िल्मी संगीत के कई आर्केष्ट्रा यहां स्थापित हुए !
- साहित्य में सतना शहर सदा अग्रणीय रहा ! नगर निगम का पुस्तकालय यहां किताबों का आगार रहा ! इसमें कथा साहित्य के साथ , उपन्यास , काव्य संग्रह , लोगों की रूचि वर्धन का सहारा बना ! सतना में निरंतर हुए भव्य कवी सम्मेलनों ने यहां श्रोताओं को काव्य विधा जोड़ा ! देश के नामी गिरामी कवि , सतना आकर अपना काव्य पाठ कर चुके हैं !
पत्रिकारिता में सतना की अपनी विशेष आभा है , आज़ादी के समय से ही पत्रकारिता यहां परवान चढ़ी , और दैनिक सांध्य पत्रों के साथ साथ , दैनिक अखबार भी यहां से प्रकाशित हुए ! सं १९३३ में पहला प्रेस , माया प्रेस के नाम से सतना में खुला !इसी प्रेस से पहला अखबार " रैय्यत " नाम से नुमाया हुआ ! उस काल में अखबार निकालना , जुर्म जैसा था , तो उसका खामयाजा भी माया बाबू ने झेला और जेल गए ! १९४० के बाद कुछ अन्य लोगों ने भी प्रेस लगाए , समाचार पात्र प्रकाशित किये , किन्तु वे ज्यादा दिन नहीं चले ! १९६२ में सनसनी नामक दैनिक सांध्य अखबार चिंतामणि मिश्र ने शुरू किया और फिर १९७३ में श्री आनंद अग्रवाल की सम्पादकीय में जवान भारत ने धूम मचाई ! इंद्रा गांधी के आपात काल में जब कई पत्रकार जेल चले गए तो समाचार पत्रों की श्रंखला यहां रुक गयी ! पत्रकारिता के लिए शहीद हुए आनंद अग्रवाल का नाम सतना में आदर से लिया जाता है ! इनके अखबार जवान भारत ने , कई पत्रकारों को पटल पर आगे आने के अवसर दिए ! १९८४ में मायाराम सुरजन ने सतना में " देशबंधु " नामक दैनिक समाचार पात्र का आगाज़ किया , और इस समाचार पात्र ने कई लेखकों , और पत्रकारों को आगे आने के अवसर दिए !आज यहां से लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र , दैनिक भाष्कर सहित सतना स्टार , और दैनिक पत्रिका का प्रकाशन भी हो रहा है !इन समाचार पत्रों के सम्पादक और सह सम्पादक माने हुए वरिष्ठ पत्रकार हैं और सतना की हर गतिविधि को देश के शेष संसार से जोड़ते हैं !
सतना शहर को जिन सुघड़ हाथों ने गढ़ा , जिसमें मूल्यों के रंग भरे , जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम से इसे जोड़ा , और जिनकी बदौलत यह शहर आज जीवित है , उन महापुरुषों का उल्लेख करना , आज उन्हें पूर्वजों की तरह याद करने जैसा है ! हर शहर का अपना विशिष्ट इतिहास होता है , लेकिन सतना का इतिहास तो रंगबिरंगी पेंटिंग की तरह है ,,जिसमें हर कोण से देखने पर नई आकृति उभरती है ,,ऐसी आकृति जो कहती है की ठहरो , अभी तो मेरी हे कथा पूरी नहीं हुई , तुम अगला पृष्ठ कैसे पलट सकते हो ,,? इस शहर के प्रणेता , वे अंग्रेज , जो सुदूर देश से इस विंध्य भूमि पर आये , और भले ही उनका मूल्य ध्येय यहां शाशन करने का रहा हो , किन्तु जिन्होंने यहां की भूमि में , नयी आबादी वाला एक शहर बसा दिया हो , वापिस नहीं गए , और सतना रेलवे स्टेशन के एक कोने में बने अपने चिर विराम स्थल क्रिश्चियन कब्रिस्तान में सो गए !उन्हें श्रद्धा के दो फूल चढाने का दस्तूर तो बनता ही है ! उन्हें भी शृद्धा सुमन चढाने का दस्तूर बनता है , जो विभिन्न शहरों से यहां आये , यहां व्यापार की नीवं डाली , सामाजिक मूल्यों को जिया , और इस शहर को पनपता छोड़ कर , अतीत में विलीन हो गए ! उन कला प्रेमियों , नृत्यांगनाओं , और साहित्य लेखकों को भी शृद्धा सुमन चढाने का दस्तूर बनता है , जिन्होंने इस शहर को मनोरंजक बनाया , इसे रंगीन धड़कन दी , और उन अनाम मजदूरों को भी श्रद्धा सुमन चढाने का हक बनता है ,, जिन्होंने इस भू भाग को रेल की पटरियों के माध्यम से , देश के हर कोने से जोड़ा !
पेड़ , निरंतर विकसित हो कर आसमान की और ऊपर उठता हुआ , मीठे फल देता है , जो लोगों की क्षुधा शांत करता है , उन्हें ऊर्जा देता है , और थके हुए शरीर को छाया प्रदान करता है , लेकिन उसकी जड़ें सदा जमीन से जुडी रहती हैं , उसे थामे रहती हैं ! विरासतें भी हमें , हमारी जमीन से जोड़े रहती हैं , उस अतीत की याद दिलाती रहती हैं , जिसके सहारे हम आज इतने ऊपर उठे हैं ! सतना शहर का अतीत सबको एक ही सन्देश देता है , बंजर में भी जीवन स्थापित करना है तो कर्मयोगी बनो , श्रमजीवी बनो , और हो सके तो स्वयं भू बनो ! विरासत कभी कभी कहीं से मिलती नहीं , खुद बनानी पड़ती है और सतना शहर का इतिहास ही उसकी विरासत है !
सतना नगर की गाथा कहने से सतना का पूरा परिचय नहीं मिलता ! वस्तुतः यह तो उस नगर की कथा थी , जो स्वयं भू नगर था ,,, जिसका सृजन किसी ने नहीं किया ,, !
किन्तु इस नगर के चारों और फैले विंध्य की भूमि पर पुरातन काल से जिन संस्कृतियों ने पंख पसारे , जो अपने पीछे अनोखी धरोहरें छोड़ गईं , जिनके पद चिन्ह आज भी इस माटी पर अंकित हैं , उसकी कथा हम अगले अंक में कहेंगे ,, ताकि हम आप जान सकें की भले ही शहर स्वयं भू बन जाएँ लेकिन इस धरा की आदि संस्कृति , स्वयंभू नहीं नहीं कहला सकती ! वह सिर्फ किसी एक सदी का इतिहास नहीं होती ,,बल्कि वह कई सदियों के इतिहास का दस्तावेज होती है ! और सतना जिले के दस्तावेज तो कई सदियों के दस्तावेज हैं ,, जिनकी छटा वैष्णव और शैव संस्कृतियों के इंद्रधनुषी रंग से ओत प्रोत है ! जहां बौद्ध काल , और भगवान् महावीर के युग की धरोहतरें हैं !
तो अगले अंक में हम मिलेंगे ,सतना शहर के चारों और फैले उन स्थानों से , जो विंध्य की अद्वितीय वास्तविक विरासत है !
---सभाजीत
हनुमानचौक से लगा पावर हाउस चौक है ! यहां जैन धर्मावलम्बियों प्रसिद्द मंदिर और पाठशाला है ! मंदिर में महावीर स्वामी की मूर्ती विराज मान है ! सतना में जैन समाज प्रचुर मात्रा में है ! आज़ादी के बाद , सतना के व्यापार को गति देने का काम इसी जैन समाज द्वारा संपन्न हुआ ! यह समुदाय बुंदेलखंड से आकर यहां बसा ! अहिंसा और शान्ति का मंत्र सतना की आत्मा में बसा है , इसलिए इस नगर में कभी कोई दंगा , नहीं हुआ ! ह्त्या लूटपाट के प्रकरण भी , यहां , अन्य शहरों की तुलना में नगण्य हैं !
-क्या आप सोच सकते हैं की किसी जमाने का प्रसिद्द फ़िल्मी गीत " टम टम से ना झांको रानी जी , गाड़ी से गाड़ी लड़ जाएगी " जैसे हिट गीत लिखने वाले गीतकार , ,,प्यारेलाल संतोषी इसी नगर के हनुमान चौक से ही लगे शास्त्री चौक पर रहते थे ! इस चौक पर कभी तमेरों की बर्तनो की दुकाने भी बहुतायत में थीं ,, चारों और बर्तन ठोकने की आवाज़ आती रहती थी ! यहां जो लोग रहे , उनमें , फ़िल्मी गीतकार तो थे ही फिल्म निर्देशक ,,' बिन्दु शुक्ला ' का बचपन भी यहीं बीता जो बतौर मनमोहन देसाई के चीफ अस्सिस्टेंट , , का काम भी करते रहे ! ! जिगनहट के कुंवर साहब को , फिल्म में हीरो का शौक परवान चढ़ा , तो उन्होंने बाजार में स्थित अपनी पूरी प्रॉपर्टी बेच कर उसे निभाया ! यह शहर आज भी फिल्म कलाकारों और फिल्मकारों से भरा पड़ा है !
-सतना शहर के एक अन्य चौराहे , बिहारी चौक ' की महत्ता , हिन्दू धर्म की दृष्टि से ऐतिहासिक है !इस चौक की स्थापना तभी हुई जब , अंग्रेज इस भूमि पर , रेल लाइन बिछा रहे थे ! बाबा बृन्दावन दास द्वारा बनवाये गए , , बिहारी जी के मंदिर में , बांके बिहारी यानी कृष्ण की १५० साल पहले की ऐतिहासिक मूर्ति स्थापित है ! यह मंदिर हिन्दुओं की आस्था का महत्वपूर्ण मंदिर है ! इसी चौक में बाबा बृन्दावन दास द्वारा शुरू की गयी रामलीला का मंचन आरम्भ हुआ , जो आज भी अनवरत है ! रामलीला , स्थानीय लोगों का लोकप्रिय मंचन है , जिसमें स्थानीय नागरिक ही पात्रों का अभिनय करते हैं ! यह चौराहा आज़ादी के आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा , जहां विशाल जन सभाएं आयोजित होती थीं ! यहां पुरुषोत्तम दास टंडन ठहर चुके हैं ! बिहारी चौक से लगे , बाजार चौक को भी वही ऐतिहासिक महत्त्व प्राप्त है , जो बिहारी चौक को है ! वस्तुतः , सतना का पुरातन ऐतिहासिक बाजार यही है !इस चौक ने सतना में आज़ादी के आंदोलनों की आधार शिला राखी ! विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का सत्याग्रह इसी चौराहे पर हुआ और सत्याग्रहियों पर तत्कालीन अंगरेजी पुलिस के डंडे भी यहीं बरसे ! इसी चौक पर उमड़ी भीड़ को देख कर पुलिस ने हवाई फायर भी किये !
-बिहारी चौक से पूरब की तरफ बढ़ने पर , मिलता है आज का प्रमुख चौक , लालता चौक! इस चौक पर आज महदूरों की हाट लगती है ! चौक के चारों और फ़ैली सब्जी की दुकाने , यहां कदम रखने का स्थान नहीं छोड़ती ! दिन भर की मजदूरी के लिए , शारीरिक श्रम देने वाले मजदूरों की चाह में , यहां शहर के लोग आते हैं , और मजदूरों को साथ ले जाते हैं ! एक प्रकार से शारीरिक श्रम की खरीद फरोख्त की यह परम्परा , अनायास ही , उस युग की याद दिलाता है जब यह मुहल्ला किसी जमाने में चकलाटोला चौहट्टा के नाम से जाना जाता रहा था !
बांदा की नवाबी रियासत कमजोर पड़ने पर , कई वेश्याएं , बांदा से सतना आकर बस गयीं थीं ! यह चौराहा , उनके यहां आबाद होने से , चकला टोला के नाम से जाना गया ! वेश्याओं का जमावड़ा यहां १९१८ से ले कर १९४० तक शीर्ष पर रहा ! कहते हैं की लालता बाई नाम की एक नर्तकी यहां बहुत प्रसिद्द हुई ! कभी कभी झगडे भी हुए , जिसमें एक नर्तकी हमीदन जान की नाक भी उसके प्रेमी ने काट डाली ! इसी चौक पर मार्तण्ड टाकीज़ के नाम से , एक टाकीज भी खुली , जिसमें बैठने के लिए बेंच नहीं थी ! लोग घर से बोरी फट्टा ले कर आते , और उस पर बैठते ! इसी चौक पर पक्षियों का बाजार भी था , जहां तरह तरह के पक्षी बिकते थे !
विविधताओं से भरे इस शहर के समाज में हर समाज के लोगों ने यहां आमद दी ! इसलिए यह शहर आज विविध उपासनाओं का केंद्र है !बंगाली समाज ने , मुख्त्यार गंज में माँ काली का भव्य मंदिर बनाया जो कालीबाड़ी के नाम से जाना जाता है ! नव रात्रि में बंगाली समाज यहां परम्परागत रूप से पूजा करता है ! बिड़ला अस्पताल के सामने रामकृष्ण परमहंस आश्रम और भव्य मंदिर है ! यह मंदिर दर्शनीय है ! बांधवगढ़ कॉलोनी में अय्यप्पा स्वामी का दक्षिण शैली में भव्य मंदिर बना हुआ है ! गायत्री देवी का मंदिर , गायत्री पीठ के अन्यायियों ने सर्किट हाउस चौक पर बनवाया है ! यहां प्रणामी सम्प्रदाय का मंदिर भी पुराणी चांदनी टाकीज के पास है यहां के कायस्थ समाज ने चित्रगुप्त मंदिर जगतदेव तालाब पर बनवाया ! इसी तरह हरदौल का एक मंदिर नजीरा बाद में है ! डाली बाबा चौक पर नामदेव समाज का बनवाया नामदेव भगवान का मंदिर है ! गहरा नाला में नरसिंघ भगवान् बिराजे हैं ! जयस्तंभ चौक पर मार्कण्डेय मंदिर है ! इसके अलावा शिरडी के साईं भगवान् के मंदिर , हनुमान जी के मंदिर , भगवान् शिव के मंदिर , और दुर्गा मंदिर इस शहर के हर क्षेत्र्र में है !
मुस्लिमों द्वारा बनाई गई करीब बीस मस्जिदें भी इस शहर में विदवमान है !
लेकिन इन सब धार्मिक स्थलों में , जगत देव तालाब का शिव मंदिर ऐतिहासिक, और धार्मिक दृष्टि से सबसे ज्यादा पुराना है ! जगत देव तालाब सतना का ऐतिहासिक तालाब है , जिसे जगत देव पांडे ने सं १८६९ में खुदवाया था ! इस तालाब के जनानी घाट को बनवाने का श्रेय , मोती बाई वेश्या को जाता है ! समाज के वर्जित समुदाय , की सदस्य , मोतीबाई वेश्या की धर्म परायणता सिद्ध करती है की कर्म से भी बड़ा धर्म है ,, सामाज हित का धर्म ! ! जगत देव तालाब की सीढ़ियों पर बैठे भिक्षुक , दान पुण्य की आशा में , यहां के धार्मिक लोगों का सतत इन्तजार करते देखे जाते हैं !
सतना का दूसरा भव्य और पुरातन मंदिर , मुख्त्यारगंज का व्यंकटेश भगवान् का मंदिर है ! विष्णु सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले देव हैं ! इस मंदिर का निर्माण सं १८७६ में हुआ ! इसका शिल्प नयनाभिराम है ,,और इसके अंदर आध्यात्मिक अनुभूति होती है ! मंदिर की मूर्तियां बहुत सुन्दर हैं जिनमें व्यंकटेश भगवान् के साथ साथ श्री रंगनाथ , और लक्ष्मी नारायण की मूर्तियां स्थापित है ! सामने गरुण मंदिर हैं ,, और मुख्य मंदिर के पास छोटा सा सरोवर भी है ! इस मन्दिर का स्थापत्य दक्षिण शैली का है !
-जैन सम्प्रदाय के कई मंदिर इस नगर में है , किन्तु हनुमान चौक पर स्थापित जैन मंदिर और शास्त्री चौक पर स्थापित गुजराती स्वेताम्बर जैनो का भव्य मंदिर दर्शनीय है ! हनुमान चौक पर स्थापित मंदिर में तीर्थंकर की खंगासनीं प्राचीन प्रतिमा स्थापित है ! मंदिर में छह वेदियां मूल नायकों की है ! और अन्य सभी २४ तीर्थंकरों की है ! पहली वेदी ,वेदी नेमीनाथ स्वामी की है , अंतिम शांतिनाथ भगवान् की ! यहां पूरे वर्ष विभिन्न आयोजन होते रहते हैं ! यहां रथ यात्राओं के आयोजन भी हो चुके हैं !
सुभाष चौक के पास बना जैन मंदिर अत्यंत भव्य और दर्शनीय है !यह मंदिर १९७५ में बना और इसमें संगमरमर का प्रयोग किया गया है ! इसके गर्भमंडल , प्रभामंडल कलात्मक और आबू शैली के हैं ! रंग मंडप रणकपुर शैली का है और इसका शिखर पालीताना शैली का बना है ! इसमें भगवान् शांतिनाथ , नेमनाथ , पार्श्वनाथ , और भगवान् महावीर की भव्य मूर्तियों के साथ साथ भगवान् आदिनाथ की मूर्ती प्रतिस्थापित है !
महिला एंकर -किसी भी शहर की असली पहचान होती है , उसकी कला संस्कृति और , साहित्य सृजन से ! सतना शहर के पास विरासत में धरोहर के रूप में यह दोनों विधाएँ विदवमान हैं ! इस शहर में कभी पृथ्वी थियेटर ने नाटकों ने प्रदर्शन की जो नीवं स्थापित की , उसका निर्वहन इस नगर के लोग समय समय पर करते रहे ! लेकिन इस शहर की आत्मा में बसी रामलीला एक ऐसा मंच रही , जिसमें हर अभिनय प्रेमी को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला ! रामलीला एक ऐसा आयोजन था , जिसमें पुराने लोगों के हटने के बाद नए लोग आते गए और अभिनय की ललक की निरंतरता बनी रही !
- १९८० के दशक में , यहां नुक्कड़ नाटकों ने धूम मचाई ! विविधता के इस शहर में , राष्ट्रीय नाट्य विद्यालयों से स्नातक हुए , युवाओं के निर्देशन में खेले गए वे अब सतना के रुझान को नई दिशा दे रहे हैं ! ! अब इस नगर में नाट्य उत्सव भी हो रहे हैं ,, और मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय से स्नातक हुए युवा , अब रंग कर्म की धारा ही बहा रहे हैं !
संगीत के क्षेत्र में , भले ही इस शहर में कोई उस्ताद पैदा नहीं हुआ , लेकिन मैहर के संगीत घराने से प्रभावित शास्त्रीय संगीत की धारा यहां निरंतर बहती रही ! संगीत भारती , और गीतम नामक संगीत संस्थाएं बनी , और संगीत के उत्कृष्ट आयोजन हुए !संगीत के कई स्कूल , , यहां की संगीत परम्परा में खुले और धीरे धीरे संगीत कला के श्रोताओं के साथ साथ कलाकार भी यहां स्थापित हुए ! शास्त्रीय संगीत के अलावा , सुगम संगीत ने भी यहां अपनी छटा बिखेरी , और फ़िल्मी संगीत के कई आर्केष्ट्रा यहां स्थापित हुए !
- साहित्य में सतना शहर सदा अग्रणीय रहा ! नगर निगम का पुस्तकालय यहां किताबों का आगार रहा ! इसमें कथा साहित्य के साथ , उपन्यास , काव्य संग्रह , लोगों की रूचि वर्धन का सहारा बना ! सतना में निरंतर हुए भव्य कवी सम्मेलनों ने यहां श्रोताओं को काव्य विधा जोड़ा ! देश के नामी गिरामी कवि , सतना आकर अपना काव्य पाठ कर चुके हैं !
पत्रिकारिता में सतना की अपनी विशेष आभा है , आज़ादी के समय से ही पत्रकारिता यहां परवान चढ़ी , और दैनिक सांध्य पत्रों के साथ साथ , दैनिक अखबार भी यहां से प्रकाशित हुए ! सं १९३३ में पहला प्रेस , माया प्रेस के नाम से सतना में खुला !इसी प्रेस से पहला अखबार " रैय्यत " नाम से नुमाया हुआ ! उस काल में अखबार निकालना , जुर्म जैसा था , तो उसका खामयाजा भी माया बाबू ने झेला और जेल गए ! १९४० के बाद कुछ अन्य लोगों ने भी प्रेस लगाए , समाचार पात्र प्रकाशित किये , किन्तु वे ज्यादा दिन नहीं चले ! १९६२ में सनसनी नामक दैनिक सांध्य अखबार चिंतामणि मिश्र ने शुरू किया और फिर १९७३ में श्री आनंद अग्रवाल की सम्पादकीय में जवान भारत ने धूम मचाई ! इंद्रा गांधी के आपात काल में जब कई पत्रकार जेल चले गए तो समाचार पत्रों की श्रंखला यहां रुक गयी ! पत्रकारिता के लिए शहीद हुए आनंद अग्रवाल का नाम सतना में आदर से लिया जाता है ! इनके अखबार जवान भारत ने , कई पत्रकारों को पटल पर आगे आने के अवसर दिए ! १९८४ में मायाराम सुरजन ने सतना में " देशबंधु " नामक दैनिक समाचार पात्र का आगाज़ किया , और इस समाचार पात्र ने कई लेखकों , और पत्रकारों को आगे आने के अवसर दिए !आज यहां से लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र , दैनिक भाष्कर सहित सतना स्टार , और दैनिक पत्रिका का प्रकाशन भी हो रहा है !इन समाचार पत्रों के सम्पादक और सह सम्पादक माने हुए वरिष्ठ पत्रकार हैं और सतना की हर गतिविधि को देश के शेष संसार से जोड़ते हैं !
सतना शहर को जिन सुघड़ हाथों ने गढ़ा , जिसमें मूल्यों के रंग भरे , जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम से इसे जोड़ा , और जिनकी बदौलत यह शहर आज जीवित है , उन महापुरुषों का उल्लेख करना , आज उन्हें पूर्वजों की तरह याद करने जैसा है ! हर शहर का अपना विशिष्ट इतिहास होता है , लेकिन सतना का इतिहास तो रंगबिरंगी पेंटिंग की तरह है ,,जिसमें हर कोण से देखने पर नई आकृति उभरती है ,,ऐसी आकृति जो कहती है की ठहरो , अभी तो मेरी हे कथा पूरी नहीं हुई , तुम अगला पृष्ठ कैसे पलट सकते हो ,,? इस शहर के प्रणेता , वे अंग्रेज , जो सुदूर देश से इस विंध्य भूमि पर आये , और भले ही उनका मूल्य ध्येय यहां शाशन करने का रहा हो , किन्तु जिन्होंने यहां की भूमि में , नयी आबादी वाला एक शहर बसा दिया हो , वापिस नहीं गए , और सतना रेलवे स्टेशन के एक कोने में बने अपने चिर विराम स्थल क्रिश्चियन कब्रिस्तान में सो गए !उन्हें श्रद्धा के दो फूल चढाने का दस्तूर तो बनता ही है ! उन्हें भी शृद्धा सुमन चढाने का दस्तूर बनता है , जो विभिन्न शहरों से यहां आये , यहां व्यापार की नीवं डाली , सामाजिक मूल्यों को जिया , और इस शहर को पनपता छोड़ कर , अतीत में विलीन हो गए ! उन कला प्रेमियों , नृत्यांगनाओं , और साहित्य लेखकों को भी शृद्धा सुमन चढाने का दस्तूर बनता है , जिन्होंने इस शहर को मनोरंजक बनाया , इसे रंगीन धड़कन दी , और उन अनाम मजदूरों को भी श्रद्धा सुमन चढाने का हक बनता है ,, जिन्होंने इस भू भाग को रेल की पटरियों के माध्यम से , देश के हर कोने से जोड़ा !
पेड़ , निरंतर विकसित हो कर आसमान की और ऊपर उठता हुआ , मीठे फल देता है , जो लोगों की क्षुधा शांत करता है , उन्हें ऊर्जा देता है , और थके हुए शरीर को छाया प्रदान करता है , लेकिन उसकी जड़ें सदा जमीन से जुडी रहती हैं , उसे थामे रहती हैं ! विरासतें भी हमें , हमारी जमीन से जोड़े रहती हैं , उस अतीत की याद दिलाती रहती हैं , जिसके सहारे हम आज इतने ऊपर उठे हैं ! सतना शहर का अतीत सबको एक ही सन्देश देता है , बंजर में भी जीवन स्थापित करना है तो कर्मयोगी बनो , श्रमजीवी बनो , और हो सके तो स्वयं भू बनो ! विरासत कभी कभी कहीं से मिलती नहीं , खुद बनानी पड़ती है और सतना शहर का इतिहास ही उसकी विरासत है !
सतना नगर की गाथा कहने से सतना का पूरा परिचय नहीं मिलता ! वस्तुतः यह तो उस नगर की कथा थी , जो स्वयं भू नगर था ,,, जिसका सृजन किसी ने नहीं किया ,, !
किन्तु इस नगर के चारों और फैले विंध्य की भूमि पर पुरातन काल से जिन संस्कृतियों ने पंख पसारे , जो अपने पीछे अनोखी धरोहरें छोड़ गईं , जिनके पद चिन्ह आज भी इस माटी पर अंकित हैं , उसकी कथा हम अगले अंक में कहेंगे ,, ताकि हम आप जान सकें की भले ही शहर स्वयं भू बन जाएँ लेकिन इस धरा की आदि संस्कृति , स्वयंभू नहीं नहीं कहला सकती ! वह सिर्फ किसी एक सदी का इतिहास नहीं होती ,,बल्कि वह कई सदियों के इतिहास का दस्तावेज होती है ! और सतना जिले के दस्तावेज तो कई सदियों के दस्तावेज हैं ,, जिनकी छटा वैष्णव और शैव संस्कृतियों के इंद्रधनुषी रंग से ओत प्रोत है ! जहां बौद्ध काल , और भगवान् महावीर के युग की धरोहतरें हैं !
तो अगले अंक में हम मिलेंगे ,सतना शहर के चारों और फैले उन स्थानों से , जो विंध्य की अद्वितीय वास्तविक विरासत है !
---सभाजीत
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