शुक्रवार, 17 जून 2016


    "  सावित्री " -' सत्यवान '  और ' यम ' ,,



  ' सत्यवान  ' के प्राण हरण करके ,,,,' यम '  गहन अंधकार के उस मार्ग पर चल पड़े जहाँ कुछ भी दृश्य नहीं था ! यह वह मार्ग था जहां पर सिर्फ अंधकार था ,,,अनन्त अन्धकार ,,,और प्रकाश   का प्रवेश जहाँ वर्जित था! वे सदैव की  भाँति  आश्वस्त थे  कि  उनके इस एकाकी मार्ग पर सिवा उनके कोई और  यात्रा नहीं कर सकता!   तभी उन्हें लगा ,,, कि  आज कुछ असम्भव सा होने वाला है !  उन्होंने  चारो और देखा , फिर पीछे मुड़े तो उन्हें एक ' साया ' अपने साथ साथ चलता प्रतीत हुआ !
 उन्होंने पूछा --" कौन ' ,,,?
  किंचित हास्य भरे स्वर में एक स्त्री कंठ उन्हें सुनाई दिया ---' 'सब कुछ   जानने  वाले , अंधकार में भी  चलने वाले देव ,,,क्या आप को नहीं मालुम की आप के पीछे कौन है ,,??
  यम की छठी इंद्री जाग्रत हुई !
 उन्होंने भी हास्य भरे स्वर में उत्तर दिया ,,, ' जानता हु ,,, किन्तु पहचानना नहीं चाहता !  तुम ' अश्वपति ' की पुत्री  ' सावित्री ' हो ! "
  ' आप  मेरे पिता को  पहचानते  हैं किन्तु मुझे नहीं ,,,ऐसा क्यों देव ,,?? "
  यम  गम्भीर हो उठे ,बोले ---  ," इसलिए , क्यूंकि ,,, ' अश्वपति '  एक तपस्वी है ,,, वह राजा के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुआ ,,,और  ' अश्व ' रूपी अपनी सभी इंद्रियों की रास को अपने ' बस ' में रखने में समर्थ है !  ' तपस्या ' एक साधना है ,,,और जो इसमें सफल होता है , 'यम ' की निगाहों में वह हमेशा आदर का पात्र होता है !'
  --- तो आप जैसे ' समर्थ देव को मुझे पहचानने में  शंका क्यों ,,??
 यम इस बार जोर से हँसे ,,,__ " तुम्हे ना पहचानू यह कैसे संभव है ,,? तुम,, '  सविता ' हो ,,, भले ही तुम्हे लोग ' सावित्री ' कह कर बुलाते हैं ,,,किन्तु मैं अपनी परम शक्ति  ' अंधकार '  की एक मात्र ' शत्रु  '   सविता को ना  पहचानूँ ,,,,?,, यह संभव नहीं ,,, तुम्हारा उदय किस क्षण हो जाएगा ,,,और तुम कब मेरे इस अंधकार के साम्राज्य को छिन्न भिन्न कर दोगी ,,, उस क्षण को पहचानना कठिन है !,  इसलिए में जान कर भी तुम्हे पहचानना नहीं चाहता !  "
 अब सावित्री भी मुखरित हो गयी  !  वह बोली --' देव  आप सूर्य ' को तो पहचानते ही हैं ना ,,? '
--- हाँ सूर्य को पहचानता हूँ ,,,जैसे अंधकार  एक ' सत्य ' है उसी प्रकार  प्रकाश ' भी ,,,और वह सूर्य का ही रूप है !   "
   --  तो '  देव ' ,,, मैं इन दोनों सत्य के बीच की  वह बिंदु  हूँ   , जहाँ से ' सत्य अपना स्वरूप बदलता है !,,,, क्या में  अंधकार और प्रकाश की तरह ,  उसी कोख से उत्पन्न हुई वह  शक्ति नहीं हूँ  जो ' सत्य ' के स्वरूप को एक क्षण में  बदल देती है  ,? "
  यम थोड़ा  थम  गए ! उन्होंने कहा ---" यह बात में जानता हूँ ,,,इसलिए इस गहन अंधकार में भी  तुम्हे  मेरे पथ का अनुसरण करते देख मुझे आश्चर्य नहीं हुआ !  तथापि अब मेरा अनुसरण छोड़ दो ,,,क्यूंकि मैं इस अंधकार में ही विलीन हो जाऊंगा ,,,,जबकि  तुम्हारा ' विलीन ' होना संभव नहीं ! "
  सावित्री हंसी !   बोली ---' आप सहर्ष विलीन हो देव ,,!  किन्तु उस ' सत्य ' के साथ नहीं  जो कभी विलीन नहीं होता ! "
    ---' किस सत्य के साथ ? "  यम  थोड़ा  हिचकिचाए  !
   --- उस सत्य के साथ जो आपकी मुट्ठी में कैद है ,,और जिसे आप सदा के लिए अंधकार में  अपने साथ विलीन कर देना चाहते हैं !"
----" मेरे मुट्ठी में तो ' सत्यवान ' के प्राण है ,,, और जिसने जन्म लिया उसे समाप्त होना ही है  यह तो नियति है सावित्री ! "
       ----' देव "   यदि सत्य को धारण करने वाला , सत्य को संचालित रखने वाला , भी अन्धकार में सदा के लिए विलीन हो जाएगा ,,,तो सत्य  किस तरह इस मृत्यु लोक में प्रदर्शित होगा ,,??
    यम अब ठिठक कर खड़े हो गए !    वे बोले--- ' सत्यवान ' अमर नहीं हो सकता सावित्री !"
'----'क्या आपका यह परम सेवक,' अंधकार ' अमर है देव ,,?  क्या 'प्रकाश भी अमर है देव ,,,"  क्या ये नित जन्मते और मरते नहीं ,,?? " सावित्री ने पूछा !
     यम समझ गए थे की वह सावित्री के वाक् चातुर्य में उलझ गए हैं ,,! सबसे बड़ी चिंता उन्हें यह होने लगी की अंधकार  के क्षीण होने का   समय भी निकट आ रहा था ,,,,और तब ' सावित्री ' किसी भी क्षण अंधकार को  प्रकाश  में बदल देने वाली थी ! अंधकार की समाप्ति का अर्थ था उनकी यात्रा में ' अवरोध ' !

   वे बोले ,,,-- तुम चाहती क्या हो  ? अपना अभिप्राय स्पष्ट करो ,,! "
    सावित्री बोली----- ' अमर तो कुछ भी नहीं देव ,,!     जन्म के बाद मृत्यु  और मृत्यु के बाद जन्म एक शास्वत सत्य है !    यही एक ऐसा सत्य है जिसकी निरंतरता बनी ही रहनी चाहिए ,,!  किन्तु देव ,,, जब ' सत्य ' को धारण करने वाले ' सत्यवान ' को ही आप अंधकार में विलीन कर देंगे तो जन्म मृत्यु के इस चक्र का ओचित्य भी क्या  बचेगा ??,,,    सत्य सिर्फ एक शक्ति है ,   किन्तु इसे धारण करने वाला ' शिव ' भी चाहिए !  भले ही निरंतरता बनाये रखने के लिए जन्म मरण हो ,,,किन्तु '  सत्यवान  ' को एक अवसर भी तो मिलना चाहिए की वह अपने सत्य को दूसरे उत्तराधिकारी  को थमा कर जाए ,,!  और मैं यही कहना  चाहती हूँ की सत्यवान ने अपना वह ' कर्म ' अभी पूर्ण  नहीं किया है ,,,,इसलिए अभी आप उसे अपने साथ ले कर नहीं जा सकते ! "

    यम ने दूर नज़रें फैलाई तो पाया की अंधकार क्षीण होने लगा था ,,! सावित्री की आभा बढ़ रही  थी ,,,, अब अंधकार में यात्रा संभव नहीं थी !    उन्होंने पुनः सोचा  और निश्चित किया की "  सत्यवान ' को उन्हें लौटा देना चाहिए ,,, जब तक वह अपना कर्म पूरा ना करे ,,,और सत्य को धारण करने वाला अन्य व्यक्ति पैदा ना कर ले उसे मृत्यु देना उचित नहीं !  रह गयी ' समय ' चक्र की बात तो वह तो चलायमान है ,,,स्थिर नहीं की पुनः लौट कर ना आये ,,!

     यम  ने मुस्करा कर कहा --- ' शब्द ' भी एक ' शक्ति ' है सावित्री ,,,, यह समय को बाँध  सकती  हैं ,,, विचारने को विवश कर  सकती  हैं ,,,शब्द ,,  जय पराजय के प्रतीक हैं !  तुमने जिस शब्द शक्ति के प्रयोग से ' सत्य ' की व्याख्या ' की वह स्तुत्य है !  मैं तुम्हारे लिए ' सत्यवान ' को छोड़ रहा हूँ ,,, किन्तु इसे   निरंतरता देना तुम्हारा कर्तव्य है !   जाओ तुम वापिस लौट कर अपने उस ' सत्यवान  ' से मिलो जिसकी अभी   उस मिथ्या जगत में  जरुरत ,,शेष है " ,,! "
 यह कह कर यम अंधकार में विलीन हो गए !
  प्रकाश की वह ' आभा ' फूट पडी थी ,,, जिसे लोग " पौ फटना ' कहते हैं !


---------"  सभाजीत शर्मा ' सौरभ '