,," विंध्य की विरासत " ,,
प्रथम अंक
( एक व्यक्ति ढलवां पहाड़ी के पीछे से निकल कर , क्रमशः उठता हुआ ,,कैमरे के आगे आता है ! पीछे , पृष्ठभूमि में फ़ैली हुई विंध्याचल पर्वत की चोटियां हैं ! आगे आया हुआ ,, एंकर है ,,कैमरा ज़ूम हो कर एंकर पर जाता है ! )
एंकर -दोस्तों,,! आज हम अपने धारावाहिक " विंध्य की विरासत " के माध्यम से , विंध्याचल पर्वत के पूर्वोत्तरी भाग में बिखरी , उस भूमि से आपका परिचय कराने जा रहे हैं , जिसके कण कण में राम का वास है , जिस की पवित्र भूमि में , ऋषियों और महर्षियों के तप का तेज ,है जिसके अतीत के पृष्ठों में , कई वीर राजवंशों की गाथाएं हैं , और जिस के नगरों में पग पग पर आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक की राष्ट्रीय धरोहरें स्थापित हैं ! यह भूमि भाग ,,, विंध्याचल पर्वत की तराई में , बघेल खंड के शहडोल जिले से लेकर, रीवा , सीधी , सतना , पन्ना जिले के घने जंगल लांघता , , बुन्देल खंड के ऐतिहासिक नगर खजुराहो , , ओरछा , टीकमगढ़ तक फैला हुआ है !यह भूमि भाग , आदिकालीन द्रविण संस्कृति और आर्य संस्कृति की साझा विरासत है !
{ नेपथ्य से वाइस ओवर ) ( विभिन्न दृश्यावली के साथ ) ,
भारत के हृदय क्षेत्र , मध्यप्रदेश की , पूर्वोत्तरी सीमाओं पर , पौराणिक कथाओं के अनुसार , अगस्त ऋषि को दिए वचन को निबाहता विंध्याचल पर्वत , जिस भू भाग को अपने अंक में समेटे है , वह विंध्य भूमि के नाम से जाना जाता है ! इस क्षेत्र को सींचने वाली सात नदियाँ , रिहन्द , सोन , तमसा , सतना , केन , धसान , और बेतवा , निरंतर बहने वाले गहन जल से भरी हैं ! !' विंध्यांचल की कैमोर श्रेणी के सहारे बहते हुए सोन के तट पर ,विंध्याटवी के रमणीक वन में स्थित , , भ्रमर शैल पर , महाकवि बाण भट्ट ने , अपना आश्रम बना कर , कालजयी काव्य कथा " कादंबरी " की अद्भुत रचना की ! इसी सोन के तट पर , चंद्रेह के अद्भुत शिव मंदिर का निर्माण हुआ ! इसी सोन के तट पर , मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम था और , आधुनिक भारत के निर्माण में , पर्वतों को तोड़ कर , महीन बालू प्रदान करने वाली प्रमुख नदी यही सोन है इसी सोन नदी को बाँध कर , आज बड़ा जल विद्युत् उत्पादन शक्तिकेंद्र बनाया गया है !
कैमोर पर्वत श्रंखला के ही ' तामकुंड ' स्थल से निकली , -विंध्य क्षेत्र की प्रमुख दूसरी प्रमुख नदी, ,, ' तमसा ',, यानी टोंस नदी का यहां के जनजीवन में बहुत महत्त्व है ! यह नदी यहां के चूने पत्थर के पथरीले क्षेत्र पर बहती हुई , धार्मिक नगरी मैहर में , माँ शारदा का मुंह निहारती हुई , सतना नगर के निकट , माधवगढ़ किले को दुलारते हुए , रीवा जिले के विद्युत् शक्ति केंद्र सरमौर में पहुँचती है और फिर वहां से निकल कर चाकघाट होते हुए यमुना नदी में जा मिलती है ! २६४ किलोमीटर की इस यात्रा में , वह , रीवा रियासत में कई मनोरम प्रपातों का सृजन करती है जो देखते ही बनते हैं ! पुरवा , चचाई , और क्योटी प्रपात , विंध्यभूमि के चर्चित प्रपात हैं , जिसका अपार जल हृदय को आनंदित करता है ! तमसा नदी का उलेख रामायण में भी है , जिसके किनारे पर , राम ने , वनयात्रा के दौरान , अयोध्या त्यागने के बाद पहली रात्रि विश्राम किया था ! आधुनिक भारत के निर्माण में , विंध्याचल श्रेणियों की तरहटी में , बिखरा चूने पत्थर का अनमोल खजाना , सीमेंट निर्माण का मूल तत्व है ! इसलिए सतना और रीवा क्षेत्र में आज सीमेंट के कई कारखाने उच्च ग्रेड की सीमेंट बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं !
( नेपथ्य में वाइस ओवर )
विंध्य भूमि का रीवा नगर , बघेल राजवंशों की राजधानी रहा ! बघेल राजाओं की पूर्ववर्ती राजधानी पहले , बांधवगढ़ में स्थापित हुई ,, जहां का अजेय ,किला कई राजवंशों के उत्थान , पतन , आपसी युद्धों , और राजशाही के उथलपुथल का गवाह रहा है !विश्व प्रसिद्द सफ़ेद शेर , इसी बघेल राजवंश की दी हुई सौगात है ! बांधवगढ़ का वन्य अभ्यारण , न केवल समूचे देश में प्रसिद्द है , बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी लुभा रहा है ! रीवा जिले के गोविंगढ़ तालाब में बना राजशाही युग का कठ बंगला सहज ही सबको अपनी और खींच लेता है , विंध्य भूमि के इसी भाग में , शिव , ,वैष्णव संस्कृतियों के अवशेष , आज भी धार्मिक उथल पुथल की गवाही देते हैं वहीं बौद्ध काल के स्तूपों के अवशेष और जैन मंदिर के स्मृति चिन्ह भी अहिंसा के परम् धर्म और विचारधारा की कथा कहते नजर आते हैं !मुगलकाल में , शहंशाह अकबर के दरबार के नौ रत्नों के दो रत्न , तानसेन और बीरबल भी इसी विंध्य भूमि के रत्न थे , जो रीवा राज से अकबर दरबार भेजे गए ! आज़ादी के संघर्ष में , बलिदानी युवकों में रणमत सिंह का नाम , यहां के इतिहास में अमित अक्षरों में दर्ज़ है !
विंध्याचल की छितराईयों श्रेणियों के बीच शोभा देता चित्रकूट , सतना जिले को धार्मिक आस्थाओं का केंद्र बिंदु है , जहां भगवान् राम का , मंदाकिनी नदी के किनारे , बारह वर्षों तक निवास रहा ,,और जहां की पर्वत श्रेणियों में स्थित , कामदगिरि , दो भाइयों के आत्मिक प्रेम का गवाही देता है !
( सतना जिला )
विंध्य भूमि का सतना जिला बघेलों और प्रतिहार ठाकुरों की कर्म भूमि रहा है ! यहाँ मैहर की शारदा देवी , विवेक वाणी , और कला की वरदानी देवी है , भरहुत पहाड़ पर बने बौद्धकालीन स्तूप और उनके केंद्रों के अवशेष सम्राट अशोक के शाशन काल की गाथा , पाषाण मूर्तियों के माध्यम से कह रहे हैं ! चौमुखनाथ मंदिर में शिव की चारमुद्राओं की अद्भुत मूर्ती इसी क्षेत्र में विराजी हुई है !चन्देलों के काल में बने खजुराहो के मंदिर आज विश्व में कोतुहल का केंद्र बने हुए हैं और योग , भोग , और मोक्ष ,के आनंद की परिभाषा , पाषाण मूर्तियों के ज़ुबानी बखान रहे हैं ! ,
( नेपथ्य से वाइस ओवर )+ ( कवरेज )
विंध्य पर्वत श्रेणियों के घाट चूमती , कर्णावती नदी ,,, ,के जल में किलोल करते मगर और घड़ियाल , जहाँ सदियों से पथिकों को भयभीत करते रहे वहीं केन नदी के किनारे फैला विशाल वन अभ्यारण , वन्य जीवों के राजा , बाघ का ऐशगाह रहा ! पन्ना नगरी के चर्चित धार्मिक मंदिर यहाँ आध्यात्म की अलख जगाते हैं , कृष्ण भगवान् का ' किशोरजी ' के मंदिर के साथ उनके बड़ेभाई बलदाऊ जी का भी विशाल मंदिर यहां स्थापित है !यहीं से प्रणामी सम्प्रदाय की नई धर्म परम्परा की धारा फूटी ! पन्ना का प्रणामी मंदिर आज भी प्रणामी धर्म के अनुयायियों का दर्शनीय मंदिर और आध्यात्म का केंद्र है !
पुरुष एंकर - ( धुवेला के तालाब पर ) -
विंध्य श्रेणियों पर बसा छतरपुर , वस्तुतः छत्रसाल के नाम पर बसाया गया नगर था , यह विंध्य के , बिजावर पठार पर बसा हुआ है ! यहां से बीस किलोमीटर दूर , नोगावं जाते हुए , मध्य मार्ग में पड़ता है मऊसहानियां , जो छत्रसाल की प्रारम्भिक राजधानी के रूपमें विख्यात है ! बाजीराव पेशवा की नृत्यांगना प्रेयसी , ' मस्तानी ' यहीं से मराठे दरबार को भेंट में भेजी गयी थी ! मऊसहानियां के तालाब , छत्रसालयुग के प्रतीक हैं ! यहां स्थापित आधुनिक धुवेला म्यूजियम युद्धों में प्रयोग किये गए शास्त्रों का आगार है !
नेपथ्य में
यह भू भाग चन्देलराजवंशों के स्थापत्य कला , और मूर्ती कला का गवाह है ! खजुराहो के मंदिर विश्व विख्यात हैं ! वहीं चंदला के निकट , पहाड़ी पर बनाये गए , बुंदेलों के , एक दुर्ग की छवि दर्शनीय है ! यह स्थान तीन दिशाओं का मार्ग संगम रहा ,,,जिसमें महोबे की दिशा में फैले पाने के बरेज , महोबे के प्रसिद्द पान की शान की विरासत को संजोये हुए हैं !
स्त्री एंकर -
विंध्य पर्वत की श्रेणियों के मध्य बहती धसान और बेतवा नदी ने विंध्य भूमि के उन पृष्ठों को रचा है , जिसमें बुंदेले रजवाड़ों की वीर कथाएं , यहां के प्राचीन अजेय दुर्ग , गढ़कुंडार और ओरछा में पनपी हैं ! गढ़ कुंढार से उदय हुई , बुंदेले राजवंशों के शौर्य की गाथाएं , बेतवा के तट पर बने ओरछा नगर तक बिखरीं हुई हैं ! अकबर के दरबार में , धर्म के धनी , वीर बुंदेले मधुकर शाह के मस्तक पर , जो राम भक्ति का तिलक लगा , वह ओरछा को अयोध्या से लाये गये राम राजा की राजधानी बनाने तक , सदैव दमकता रहा ! उनके वारिस महराजा रामसाह के शाशन काल में , यहां काव्य और साहित्य की जो धारा बही , वह काव्य शिरोमणि केशव के काल से अंकित है ! केशव ने जो काव्य रचनाएं की वे कालजयी हैं ! इसी युग में ओरछा के कुंवर इंद्रजीत की प्रेयसी , काव्य विदुषी , नृत्यांगना , रायप्रवीण के साहस की कथा जन श्रुतियों में बड़े स्वाभिमान स के साथ कही जाती है ! ओरछा का इतिहास , लक्ष्मण और , सीता के पवित्र देवर भाभी के रिश्ते को भी दोहराता है जो हरदौल और उनकी भाभी के बीच यहां श्रद्धा स्वरूप पूजा जाता है !
( नेपथ्य में )
ओरछा , वेत्रवती , बेतवा नदी के तट पर बसा एक रमणीक नगर है !यहां के महल , मंदिर , और बेतवा का प्राकृतिक सौन्दर्य आज अनुपम आभा बिखेर रहे हैं ! राम भगवान् के अयोध्या से यहां आने पर बुन्देल राजवंशों ने ओरछा छोड़ कर अपनी राजधानी टीकमगढ़ कर ली ! टीकम गढ़ , के चारों और कई किले हैं , जिनमें बुंदेले राजवंशों का इतिहास बिखरा पड़ा है ! टीकमगढ़ के निकट , बाणासुर के युग में प्रकट हुए , भगवान् शिव की शिवलिंग है , !
पुरुष एंकर -- सात नदियों , रिहन्द , सोन , तमसा , सतना , कर्णावती , धसान , बेतवा , से सिंचित , आम्र कूट और चित्र कूट के शैल शिखरों से सजा , आदिवासी जनजातियों की संस्कृति अपने में संजोये , विभिन्न
रीतिरिवाजों को निबाहता , आदिकाल के स्मृतिचिन्हों को गहन वनो के बीच अक्षुण रखे , विभिन्न अरण्यों में विचरते वनजीवों के आश्रय , शौर्य की धरोहरों को गॉड में समेटे , साहित्य , कला , और संगीत के धनी , इस विंध्य क्षेत्र की कथाएं , धारावाहिक के इन सीमित अंकों में समेटना सहज नहीं है ! यह धरा जहां वैदिक युग के स्मृति चिन्हों की साक्षी है ,जहां मध्यकाल के राजवंशों की उथल पुथल की गवाह है , वहीं यह आधुनिक भारत की छवि में भी अब धीरे धीरे परवर्तित होती जा रही है ! इस धरा के गर्भ जहां में चुना पत्थर , हीरा , कोयला, जैसे खनिज छिपे हुए हैं , वहीं यह धरा , वनोपज , और वन्य संस्कृति , के निर्वाहक , जनजातियों में --कोल , गोंड , भारिया , अगरिया , बैगाओं की जीवन शैली तथा उनकी संस्कृति की आधार भूमि है ! पाषाण युग के भित्तचित्र भी इस क्षेत्र के गहन वनो में स्थित है ,, जो मनुष्य जाती के क्रमशः उत्थान कथा कह रहे हैं ! इन संस्कृतियों की पूरी कथाएं कहने , उनके उत्सवों , खानपान की कथा बखानने , उनके नृत्य संगीत को निहारने , उनकी व्याख्या करने में कई अध्याय लग लग जाएंगे !
भले ही राजशाही के कारण , यहां विभिन्न संस्कृतियों का चलन हुआ , किन्तु आम्रकूट से लेकर , चित्रकूट होते हुए ओरछा तक फ़ैली इस धारा के कण कण में एक ही आराध्य लोगों के हृदय में बसे हुए हैं और वे हैं --,,," राम ",,! राम इस धरा की आत्मा हैं , राम इस धरा के आदर्श हैं , राम इस धरा के नायक हैं , इसलिए यहां का जनजीवन सहजता , सरलता और आस्था के एक ही सूत्र में पिरोया हुआ दिखता है !
अपने धारावाहिक विंध्य की विरासत में हम , यहां के कुछ आकर्षक स्थानों , परम्पराओं , संस्कृतियों से आप को जोड़ेंगे ,, जिसमें रमने के बाद आप के मन में एक ही अभिलाषा जागेगी , विंध्य की इन वीथियों में विस्तृत भ्रमण की , उसमें बिखरे आध्यात्म को आत्मसात करने की , उसके प्राकृतिक सौन्दर्य का रसपान करने की ,और उसके रमणीय स्थलों में रम जाने की ,,! हमारा विश्वाश है की आप हमारी इन कड़ियों से जुड़ने के बाद कहेंगे ,,, यह तो आनंद का अथाह है ,,, इसमें जितना डूबें ,,,उतना कम है !
तो अगली कड़ी का हमारे साथ इंतज़ार कीजिये ,,, और अपना टीवी , अपनी चैनल पहले से खोल कर रखिये ,,रात्रि ,,,बजे ,,, , ',,,' चैनल पर ,,!
शुभरात्रि ,,!
( आलेख ,,,सभाजीत
प्रथम अंक
( एक व्यक्ति ढलवां पहाड़ी के पीछे से निकल कर , क्रमशः उठता हुआ ,,कैमरे के आगे आता है ! पीछे , पृष्ठभूमि में फ़ैली हुई विंध्याचल पर्वत की चोटियां हैं ! आगे आया हुआ ,, एंकर है ,,कैमरा ज़ूम हो कर एंकर पर जाता है ! )
एंकर -दोस्तों,,! आज हम अपने धारावाहिक " विंध्य की विरासत " के माध्यम से , विंध्याचल पर्वत के पूर्वोत्तरी भाग में बिखरी , उस भूमि से आपका परिचय कराने जा रहे हैं , जिसके कण कण में राम का वास है , जिस की पवित्र भूमि में , ऋषियों और महर्षियों के तप का तेज ,है जिसके अतीत के पृष्ठों में , कई वीर राजवंशों की गाथाएं हैं , और जिस के नगरों में पग पग पर आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक की राष्ट्रीय धरोहरें स्थापित हैं ! यह भूमि भाग ,,, विंध्याचल पर्वत की तराई में , बघेल खंड के शहडोल जिले से लेकर, रीवा , सीधी , सतना , पन्ना जिले के घने जंगल लांघता , , बुन्देल खंड के ऐतिहासिक नगर खजुराहो , , ओरछा , टीकमगढ़ तक फैला हुआ है !यह भूमि भाग , आदिकालीन द्रविण संस्कृति और आर्य संस्कृति की साझा विरासत है !
{ नेपथ्य से वाइस ओवर ) ( विभिन्न दृश्यावली के साथ ) ,
भारत के हृदय क्षेत्र , मध्यप्रदेश की , पूर्वोत्तरी सीमाओं पर , पौराणिक कथाओं के अनुसार , अगस्त ऋषि को दिए वचन को निबाहता विंध्याचल पर्वत , जिस भू भाग को अपने अंक में समेटे है , वह विंध्य भूमि के नाम से जाना जाता है ! इस क्षेत्र को सींचने वाली सात नदियाँ , रिहन्द , सोन , तमसा , सतना , केन , धसान , और बेतवा , निरंतर बहने वाले गहन जल से भरी हैं ! !' विंध्यांचल की कैमोर श्रेणी के सहारे बहते हुए सोन के तट पर ,विंध्याटवी के रमणीक वन में स्थित , , भ्रमर शैल पर , महाकवि बाण भट्ट ने , अपना आश्रम बना कर , कालजयी काव्य कथा " कादंबरी " की अद्भुत रचना की ! इसी सोन के तट पर , चंद्रेह के अद्भुत शिव मंदिर का निर्माण हुआ ! इसी सोन के तट पर , मार्कण्डेय ऋषि का आश्रम था और , आधुनिक भारत के निर्माण में , पर्वतों को तोड़ कर , महीन बालू प्रदान करने वाली प्रमुख नदी यही सोन है इसी सोन नदी को बाँध कर , आज बड़ा जल विद्युत् उत्पादन शक्तिकेंद्र बनाया गया है !
कैमोर पर्वत श्रंखला के ही ' तामकुंड ' स्थल से निकली , -विंध्य क्षेत्र की प्रमुख दूसरी प्रमुख नदी, ,, ' तमसा ',, यानी टोंस नदी का यहां के जनजीवन में बहुत महत्त्व है ! यह नदी यहां के चूने पत्थर के पथरीले क्षेत्र पर बहती हुई , धार्मिक नगरी मैहर में , माँ शारदा का मुंह निहारती हुई , सतना नगर के निकट , माधवगढ़ किले को दुलारते हुए , रीवा जिले के विद्युत् शक्ति केंद्र सरमौर में पहुँचती है और फिर वहां से निकल कर चाकघाट होते हुए यमुना नदी में जा मिलती है ! २६४ किलोमीटर की इस यात्रा में , वह , रीवा रियासत में कई मनोरम प्रपातों का सृजन करती है जो देखते ही बनते हैं ! पुरवा , चचाई , और क्योटी प्रपात , विंध्यभूमि के चर्चित प्रपात हैं , जिसका अपार जल हृदय को आनंदित करता है ! तमसा नदी का उलेख रामायण में भी है , जिसके किनारे पर , राम ने , वनयात्रा के दौरान , अयोध्या त्यागने के बाद पहली रात्रि विश्राम किया था ! आधुनिक भारत के निर्माण में , विंध्याचल श्रेणियों की तरहटी में , बिखरा चूने पत्थर का अनमोल खजाना , सीमेंट निर्माण का मूल तत्व है ! इसलिए सतना और रीवा क्षेत्र में आज सीमेंट के कई कारखाने उच्च ग्रेड की सीमेंट बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं !
( नेपथ्य में वाइस ओवर )
विंध्य भूमि का रीवा नगर , बघेल राजवंशों की राजधानी रहा ! बघेल राजाओं की पूर्ववर्ती राजधानी पहले , बांधवगढ़ में स्थापित हुई ,, जहां का अजेय ,किला कई राजवंशों के उत्थान , पतन , आपसी युद्धों , और राजशाही के उथलपुथल का गवाह रहा है !विश्व प्रसिद्द सफ़ेद शेर , इसी बघेल राजवंश की दी हुई सौगात है ! बांधवगढ़ का वन्य अभ्यारण , न केवल समूचे देश में प्रसिद्द है , बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी लुभा रहा है ! रीवा जिले के गोविंगढ़ तालाब में बना राजशाही युग का कठ बंगला सहज ही सबको अपनी और खींच लेता है , विंध्य भूमि के इसी भाग में , शिव , ,वैष्णव संस्कृतियों के अवशेष , आज भी धार्मिक उथल पुथल की गवाही देते हैं वहीं बौद्ध काल के स्तूपों के अवशेष और जैन मंदिर के स्मृति चिन्ह भी अहिंसा के परम् धर्म और विचारधारा की कथा कहते नजर आते हैं !मुगलकाल में , शहंशाह अकबर के दरबार के नौ रत्नों के दो रत्न , तानसेन और बीरबल भी इसी विंध्य भूमि के रत्न थे , जो रीवा राज से अकबर दरबार भेजे गए ! आज़ादी के संघर्ष में , बलिदानी युवकों में रणमत सिंह का नाम , यहां के इतिहास में अमित अक्षरों में दर्ज़ है !
विंध्याचल की छितराईयों श्रेणियों के बीच शोभा देता चित्रकूट , सतना जिले को धार्मिक आस्थाओं का केंद्र बिंदु है , जहां भगवान् राम का , मंदाकिनी नदी के किनारे , बारह वर्षों तक निवास रहा ,,और जहां की पर्वत श्रेणियों में स्थित , कामदगिरि , दो भाइयों के आत्मिक प्रेम का गवाही देता है !
( सतना जिला )
विंध्य भूमि का सतना जिला बघेलों और प्रतिहार ठाकुरों की कर्म भूमि रहा है ! यहाँ मैहर की शारदा देवी , विवेक वाणी , और कला की वरदानी देवी है , भरहुत पहाड़ पर बने बौद्धकालीन स्तूप और उनके केंद्रों के अवशेष सम्राट अशोक के शाशन काल की गाथा , पाषाण मूर्तियों के माध्यम से कह रहे हैं ! चौमुखनाथ मंदिर में शिव की चारमुद्राओं की अद्भुत मूर्ती इसी क्षेत्र में विराजी हुई है !चन्देलों के काल में बने खजुराहो के मंदिर आज विश्व में कोतुहल का केंद्र बने हुए हैं और योग , भोग , और मोक्ष ,के आनंद की परिभाषा , पाषाण मूर्तियों के ज़ुबानी बखान रहे हैं ! ,
( नेपथ्य से वाइस ओवर )+ ( कवरेज )
विंध्य पर्वत श्रेणियों के घाट चूमती , कर्णावती नदी ,,, ,के जल में किलोल करते मगर और घड़ियाल , जहाँ सदियों से पथिकों को भयभीत करते रहे वहीं केन नदी के किनारे फैला विशाल वन अभ्यारण , वन्य जीवों के राजा , बाघ का ऐशगाह रहा ! पन्ना नगरी के चर्चित धार्मिक मंदिर यहाँ आध्यात्म की अलख जगाते हैं , कृष्ण भगवान् का ' किशोरजी ' के मंदिर के साथ उनके बड़ेभाई बलदाऊ जी का भी विशाल मंदिर यहां स्थापित है !यहीं से प्रणामी सम्प्रदाय की नई धर्म परम्परा की धारा फूटी ! पन्ना का प्रणामी मंदिर आज भी प्रणामी धर्म के अनुयायियों का दर्शनीय मंदिर और आध्यात्म का केंद्र है !
पुरुष एंकर - ( धुवेला के तालाब पर ) -
विंध्य श्रेणियों पर बसा छतरपुर , वस्तुतः छत्रसाल के नाम पर बसाया गया नगर था , यह विंध्य के , बिजावर पठार पर बसा हुआ है ! यहां से बीस किलोमीटर दूर , नोगावं जाते हुए , मध्य मार्ग में पड़ता है मऊसहानियां , जो छत्रसाल की प्रारम्भिक राजधानी के रूपमें विख्यात है ! बाजीराव पेशवा की नृत्यांगना प्रेयसी , ' मस्तानी ' यहीं से मराठे दरबार को भेंट में भेजी गयी थी ! मऊसहानियां के तालाब , छत्रसालयुग के प्रतीक हैं ! यहां स्थापित आधुनिक धुवेला म्यूजियम युद्धों में प्रयोग किये गए शास्त्रों का आगार है !
नेपथ्य में
यह भू भाग चन्देलराजवंशों के स्थापत्य कला , और मूर्ती कला का गवाह है ! खजुराहो के मंदिर विश्व विख्यात हैं ! वहीं चंदला के निकट , पहाड़ी पर बनाये गए , बुंदेलों के , एक दुर्ग की छवि दर्शनीय है ! यह स्थान तीन दिशाओं का मार्ग संगम रहा ,,,जिसमें महोबे की दिशा में फैले पाने के बरेज , महोबे के प्रसिद्द पान की शान की विरासत को संजोये हुए हैं !
स्त्री एंकर -
विंध्य पर्वत की श्रेणियों के मध्य बहती धसान और बेतवा नदी ने विंध्य भूमि के उन पृष्ठों को रचा है , जिसमें बुंदेले रजवाड़ों की वीर कथाएं , यहां के प्राचीन अजेय दुर्ग , गढ़कुंडार और ओरछा में पनपी हैं ! गढ़ कुंढार से उदय हुई , बुंदेले राजवंशों के शौर्य की गाथाएं , बेतवा के तट पर बने ओरछा नगर तक बिखरीं हुई हैं ! अकबर के दरबार में , धर्म के धनी , वीर बुंदेले मधुकर शाह के मस्तक पर , जो राम भक्ति का तिलक लगा , वह ओरछा को अयोध्या से लाये गये राम राजा की राजधानी बनाने तक , सदैव दमकता रहा ! उनके वारिस महराजा रामसाह के शाशन काल में , यहां काव्य और साहित्य की जो धारा बही , वह काव्य शिरोमणि केशव के काल से अंकित है ! केशव ने जो काव्य रचनाएं की वे कालजयी हैं ! इसी युग में ओरछा के कुंवर इंद्रजीत की प्रेयसी , काव्य विदुषी , नृत्यांगना , रायप्रवीण के साहस की कथा जन श्रुतियों में बड़े स्वाभिमान स के साथ कही जाती है ! ओरछा का इतिहास , लक्ष्मण और , सीता के पवित्र देवर भाभी के रिश्ते को भी दोहराता है जो हरदौल और उनकी भाभी के बीच यहां श्रद्धा स्वरूप पूजा जाता है !
( नेपथ्य में )
ओरछा , वेत्रवती , बेतवा नदी के तट पर बसा एक रमणीक नगर है !यहां के महल , मंदिर , और बेतवा का प्राकृतिक सौन्दर्य आज अनुपम आभा बिखेर रहे हैं ! राम भगवान् के अयोध्या से यहां आने पर बुन्देल राजवंशों ने ओरछा छोड़ कर अपनी राजधानी टीकमगढ़ कर ली ! टीकम गढ़ , के चारों और कई किले हैं , जिनमें बुंदेले राजवंशों का इतिहास बिखरा पड़ा है ! टीकमगढ़ के निकट , बाणासुर के युग में प्रकट हुए , भगवान् शिव की शिवलिंग है , !
पुरुष एंकर -- सात नदियों , रिहन्द , सोन , तमसा , सतना , कर्णावती , धसान , बेतवा , से सिंचित , आम्र कूट और चित्र कूट के शैल शिखरों से सजा , आदिवासी जनजातियों की संस्कृति अपने में संजोये , विभिन्न
रीतिरिवाजों को निबाहता , आदिकाल के स्मृतिचिन्हों को गहन वनो के बीच अक्षुण रखे , विभिन्न अरण्यों में विचरते वनजीवों के आश्रय , शौर्य की धरोहरों को गॉड में समेटे , साहित्य , कला , और संगीत के धनी , इस विंध्य क्षेत्र की कथाएं , धारावाहिक के इन सीमित अंकों में समेटना सहज नहीं है ! यह धरा जहां वैदिक युग के स्मृति चिन्हों की साक्षी है ,जहां मध्यकाल के राजवंशों की उथल पुथल की गवाह है , वहीं यह आधुनिक भारत की छवि में भी अब धीरे धीरे परवर्तित होती जा रही है ! इस धरा के गर्भ जहां में चुना पत्थर , हीरा , कोयला, जैसे खनिज छिपे हुए हैं , वहीं यह धरा , वनोपज , और वन्य संस्कृति , के निर्वाहक , जनजातियों में --कोल , गोंड , भारिया , अगरिया , बैगाओं की जीवन शैली तथा उनकी संस्कृति की आधार भूमि है ! पाषाण युग के भित्तचित्र भी इस क्षेत्र के गहन वनो में स्थित है ,, जो मनुष्य जाती के क्रमशः उत्थान कथा कह रहे हैं ! इन संस्कृतियों की पूरी कथाएं कहने , उनके उत्सवों , खानपान की कथा बखानने , उनके नृत्य संगीत को निहारने , उनकी व्याख्या करने में कई अध्याय लग लग जाएंगे !
भले ही राजशाही के कारण , यहां विभिन्न संस्कृतियों का चलन हुआ , किन्तु आम्रकूट से लेकर , चित्रकूट होते हुए ओरछा तक फ़ैली इस धारा के कण कण में एक ही आराध्य लोगों के हृदय में बसे हुए हैं और वे हैं --,,," राम ",,! राम इस धरा की आत्मा हैं , राम इस धरा के आदर्श हैं , राम इस धरा के नायक हैं , इसलिए यहां का जनजीवन सहजता , सरलता और आस्था के एक ही सूत्र में पिरोया हुआ दिखता है !
अपने धारावाहिक विंध्य की विरासत में हम , यहां के कुछ आकर्षक स्थानों , परम्पराओं , संस्कृतियों से आप को जोड़ेंगे ,, जिसमें रमने के बाद आप के मन में एक ही अभिलाषा जागेगी , विंध्य की इन वीथियों में विस्तृत भ्रमण की , उसमें बिखरे आध्यात्म को आत्मसात करने की , उसके प्राकृतिक सौन्दर्य का रसपान करने की ,और उसके रमणीय स्थलों में रम जाने की ,,! हमारा विश्वाश है की आप हमारी इन कड़ियों से जुड़ने के बाद कहेंगे ,,, यह तो आनंद का अथाह है ,,, इसमें जितना डूबें ,,,उतना कम है !
तो अगली कड़ी का हमारे साथ इंतज़ार कीजिये ,,, और अपना टीवी , अपनी चैनल पहले से खोल कर रखिये ,,रात्रि ,,,बजे ,,, , ',,,' चैनल पर ,,!
शुभरात्रि ,,!
( आलेख ,,,सभाजीत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें