विंध्य की विरासत
रीवारियासत रीवा राज
( नेपथ्य में वाइस ओवर )
वैदिक काल में , शुक्र पुत्री देवयानी के पति ययाति का राज चौदह द्वीपों पर था ! महराज ययाति ने अपने आधीन राज्य भूमि को अपने दो पुत्रों यदु और तुर्वशु को बाँट दिया ! जिसमें दक्षिण पूर्व का भाग तुर्वशु को मिला ! भूमि का वही भाग , विंध्याचल श्रेणियों के मध्य बसा विंध्य था , जहां आज विंध्य की श्रेणी कैमोर पर्वत के निकट बसा विकसित नगर रीवा , अपनी अलग सांस्कृतिक विरासत लिए , किसी रत्न की तरह चमक रहा है !
रेवा का अर्थ दुर्गम भूमि से है ! रीवा का अर्थ , रेतीले पथरीले क्षेत्र से भी है ! रेवा का अर्थ त्वरित गति से भी है ! रीवा राज्य के लिए यह सभी अर्थ लागू होते हैं ! भौगोलिक क्षेत्र की दृष्टि से , इस राज्य के दोनों और , आदिकालीन दो कूट स्थापित हैं , एक आम्रकूट , और दूसरा चित्रकूट ! ये दोनों ही कूट आर्य और द्रविण संस्कृतियों का मिला जुला केंद्र रहे हैं ! इस क्षेत्र में पहले , वनवासी जातियों का निवास था , जो वनोपज पर अपना जीवन निर्वाह करती थे ! ईसा पूर्व यह क्षत्र कौशाम्बी के महराज उदयन के अधिकार में था ! उदयन के बाद , यहां मघों का शाशन आया ! मघवंशियों ने अपनी राजधानी की यिन्ध्य श्रेणियों पर बने बांधवगढ़ किले में स्थापित की ! थी ! मघों को हटा कर नागवंशी आये ! ईसा के बाद की तीसरी सदी तक यहां नागवंशियों का राज था जिन्हे भार शिव भी कहा गया है ! बाद में गुप्त वंश का साम्राज्य आया , ! उन्हें हरा कर यहां कलचुरी आये , और कलचुरियों को हराकर अलग अलग क्षेत्रों में , चन्देलों , और बघेलों ने अपना राज विस्तारित किया !
पुरुष एंकर --,( किले की बुर्ज से )--' कहते हैं की गुजरात से आये सोलंकी राजपूतों ने वर्ष १२८९ ईस्वीं में , पहले चित्रकूट क्षेत्र के पहाड़ी किले मड़फा पर अधिकार किया ! यह किला कभी चन्देलों के आधीन था और खाली पड़ा था ! तत्कालीन बघेल राजा व्याघ्रदेव ने अपने राज्य के विस्तार हेतु , गुजरात से विभिन्न जाती के लोगों को बुलाया जिनमें क्षत्रियों के अलावा , ब्राम्हिन , कायस्थ और मुस्लिम भी थे ! बाद में उन्होंने निकटवर्ती किले , कालिंजर , गोहरा , और मण्डीहा पर भी अधिकार कर लिया !
कालांतर में बघेल राजा कर्णदेव को कलचुरियों की पुत्री से विवाह करने पर बांधवगढ़ का किला , सौगात में मिला ! महराज कर्ण देव संस्कृत के ज्ञाता थे ! उन्हें ज्योतिष का भी ज्ञान था ! महराज कर्णदेव ने पूरे कैमोर श्रंखला की भूमि पर राज विस्तार किया ! भारशिवों को हरा कर उन्होंने भरहुत पहाड़ तक अपना राज बढ़ाया ! बांधवगढ़ किले का इतिहास बहुत प्राचीन बताया गया है ! बांधवगढ़ किले को लक्ष्मण का किला कहा गया है ,, !
भरहुत हो कर , बांधव गढ़ के मार्ग से कभी कौशाम्बी जाने का रास्ता था ! इसलिए बांधवगढ़ ना सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टि से , बल्कि व्यापारिक दृष्टि से भी महत्व पूर्ण था !
स्त्री एंकर - बघेल राजवंश के राजा , रामवचन्द्र के राज में गोहरा उनकी राजधानी थी ! किन्ही कारणों से मुगलों ने जौनपुर राज के सामंत , गाजी पर आक्रमण किया ! नवाब गाजी ने , राजा रामचंद्र से शरण माँगी , और रामचंद्र देव ने उनसे शरण दे दी ! उससे खिन्न हो कर अकबर ने गोहरा पर आक्रमण करने के लिए सेना भेजी ! महराज रामचंद्र देव , गाजी नवाब को ले कर दुर्गम किले बांधवगढ़ किले में चले गए ! अकबर ने वहां भी सेना भेज दी , उससे डर कर , नवाब तो वहां से भाग गया ! महाराज रामचंद्र देव को इसका खामियाजा , गोहरा किले को गवां कर करना पड़ा ! बाद में अकबर ने उनके दरबार के गायक तानसेन को भी बुलवा भेजा ! बीरबल जो पहले बघेल राज के निवासी थे , पहले ही अकबर के दरबारी हो चुके थे , वो तानसेन को लेने आये ! महराज रामचंद्र देव ने पहले तो अकबर से लोहा लेने की ठानी , किन्तु बाद में तानसेन और बीरबल के समझाने पर उन्होंने तानसेन को आगरा जाने दिया !
पुरुष एंकर - मुगलों की आँख की किरकिरी हो जाने के कारण , बघेल राजवंश को बहुत परेशानी उठानी पडी ! कुछ दिनों के लिए अकबर ने बांधवगढ़ का किला अपने अधिकार में ले लिये , किन्तु बाद में उसे बघेल शाशक विक्रम देव को वापिस कर दिया ! विक्रमदेव ने एक बार शिकार पर आने पर , रीवा में एक अधबना किला देखा , जो शेर शाह सूरी का पुत्र सलीम शाह , छोड़ कर चला गया था ! बार बार की आशंकाओं के निराकरण के लिए विक्रम देव ने अपनी राजधानी इसी किले में बना ली और इसका विकास किया !
इसी किले के महराज विश्वनाथ सिंह ने , जो साहित्य में अभिरुचि रखते थे , पहला नाटक आनंद रघुनन्दन लिखा , ! यह हिंदी भाषा का पहला नाटक कहा जाता है !
स्त्री एंकर - बघेल राजवंश की परम्परा में महराज रघुराज सिंह और महराज गुलाब सिंह का नाम रीवा के विकास कार्यों हेतु उल्लेखनीय है ! महराज रघुराज सिंह के काल में एक सुन्दर कसबे , गोविन्द गढ़ को बसाया गया जहां आज बहुत बड़ा सरोवर जल का आगार है ! इन्ही के काल में वन संरक्षण को प्रधानता मिली , और इन्ही के काल में अंगरेजी भाषा का प्रातः स्कूल रीवा में स्थापित हुआ ! महराज गुलाब सिंह देव के समय में रीवा राज की सेना में कटौती हुई जिससे अधिक से अधिक धन जन कल्याण के लिए लगाया जा सके ! उन्होंने राज में निर्मित बांधों में कृषकों को भी सिंचाई का अधिकार दिया ! उन्होंने अनाथालय बनवाये ! दशहरा उत्सव को उन्होंने सार्वजनिक किया और खुद जनता के बीच आ कर हल चलाया ! उन्होंने अपने शाशन काल में , इतिहास लेखन को प्रारम्भ किया , और प्रथम बैंक बघेल खंड बैंक की स्थापना की ! इन्ही के समय में रीवा नगर प्रथम बार विद्युत् से जगमगाया ! बघेल राजवंश के वे यशश्वी राजा माने जाते हैं !
पुरुष एंकर- देश के आज़ाद होने के समय , यहां के महराज रहे , मार्तण्ड सिंह जो देव ! आज़ादी के बाद जो पहला प्रदेश , विंध्य प्रदेश के नाम से शहडोल , सीधी , रीवा , पन्ना , छतरपुर , टीकमगढ़ , और दतिया रियासत को मिला कर बनाया गया , उसके ये राज प्रमुख बने ! विश्व को पहले सफ़ेद शेर की सौगात देने वाले यही बघेल राजा हैं , जिन्होंने बगदरा के गहन जंगल में , सफ़ेद शेर के प्रथम शिशु , को २७ मई १९५१ में पकड़ा ! गोविन्द गढ़ के किले पाले गए इस सफ़ेद शेर से करीब ४६ सफ़ेद शेर जन्म लिए , जो सम्पूर्ण विश्व को भेंट किये गए ! महराज मार्तण्ड सिंह जू देव , तीन बार लोक सभा सांसद रहे !इन्हे अपने पूर्वजों की तरह शिकार का शौक था , और इन्होने भी कई हिंसक वन जीवों का शिकार किया !
स्त्री एंकर - रेवा राज्य के वर्तमान महराज हैं , महराज पुष्पराज सिंह जो बघेल शाशकों के यशश्वी इतिहास के वारिस हैं और जिन्होंने सामाजिक कार्यों में तथा रीवा के विकास में अपना अभिन्न योगदान दिया ! इन्होने पर्यावरण के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया और सफ़ेद शेर की प्रजाति , जिससे यह धारा पूरी तरह वंचित हो गयी थी , को वापिस रीवा लौटाने का अभियान चलाया ! आज उनके प्रयास से मुकुंदपुर में टाइगर सफारी बन गया है , जहां सफ़ेद शेर दर्शनीय है ! महराज पुष्पराज सिंह , आधुनिक भारत के रीवा के महराज हैं , और विकास में विशवास रखते हैं !उन्होंने बघेल राजवंश की धरोहरों को , रावा के किले में अक्षुण रखा है , वे वन्य जीवन की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं , उन्होंने बाघिन नाम से एक व्रत चित्र का निर्माण किया , जिसमें सफ़ेद शेर की कथा है ! उन्होंने बांधवगढ़ किले को सामाजिक हाथों में सौंप कर , उसे सभी पर्यटकों के लिए खोला ! वे सांसद भी रह चुके हैं !
( पुष्पराज सिंह का इंटरव्यू )
( नेपथ्य में वाइस ओवर )
आज का रीवा नगर , चार जिलों की कमश्निरी का केंद्र है , जिसमें शहडोल , रीवा , सीधी , और सतना जिले समाहित हैं ! यहां का जन जीवन राजनैतिक दृष्टि से बहुत उथल पुतल भरा है ! यहां क्षत्रिय , और ब्राम्हणो के अलावा , खेती करने वाले , पटेलों की बसावट भी बहुतायत में है ! रीवा नगर के मध्य में बने परिसर , पीली कोठी और कोठी कम्पाउंड परिसर में , बघेल रियासत के समय में बने भवन , रीवा की विकसित हुई भव्यता और स्थापित्य की कथा कहते हैं ! वहीं रीवा के किले से जुड़े पुराने रियासती भवन , उपरहटी , और तरहटी में , बसे लोग , रीवा रियासत की प्रगति के प्रत्यक्ष गवाह हैं ! रीवा का किला , ऐतिहासिक है ! इसमें एक भाग , यहां के राजा , पुष्पराज सिंह के निवास हेतु उपयोग में आरहा है , जबकि किले के बाहरी प्रांगण में आज शिक्षा हेतु , उनके ही द्वारा एक उत्कृष्ट स्कूल संचालित किया जा रहा है ! प्रांगण में रखी तोपें , बघेल शाशकों के समय , का यश बखान रही हैं ! किले के एक भाग को महराज ने , बघेल म्यूजियम के लिए भेंट कर दिया है , जिसमें , उनके काल के अस्त्र शस्त्र , उपयोग में आने वाले सामान , आदि पर्यटकों को देखने के लिए उपलब्ध है !
किले के दो द्वार हैं !पूर्व दिशा में बहती , , बिछिया नदी के घाटों को जोड़ता ' पुतरिया दरवाजा ' वहां की मेहराब में चित्रित मूर्तियों के कारण , पुतरिया दरवाजा कहलाता है ! कहते हैं ये मेहराब , वस्तुतः , कलचुरी काल के विशाल शिव मंदिर का भग्नावशेष , तोरण द्वार है , जो इस दरवाजे के ऊपर लगा दिया गया है ! इस द्वार से बाहर आने पर , एक और लक्ष्मण बाग़ है , जहां भव्य मंदिर हैं , और नदी किनारे बनाया गया भव्य बगीचा है ! दूसरी और एक विशाल तालाब ' रानी तालाब ' है , जिस पर एक प्राचीन मंदिर में दुर्गा भवानी की मूर्ति स्थापित है ! नवरात्रि में , महिलायें यहां जल चढाती हैं , मेला लगता है , और मनौती की जाती है ! कुछ वर्षों पूर्व तालाब का उन्नयन किया गया है , जहां अब नौकायन की सुविधा भी प्राप्त है !
किले की उत्तरी दिशा में बना द्वार , मछरिया दरवाजा कहलाता है ! यह रीवा की रियासती युग की बस्ती , उपरहटी से जुड़ा हुआ है ! इस नगरी में राजाओं के वैद्य , पुरोहित , ब्राम्हण , और मुंशी , कारिंदे रहते थे ! किले की पश्चिमी भाग को छूती हुई बीहर नदी निकलती है , जिसमें आकर बिछिया नदी समा जाती है ! किले के पीछे बीहर नदी पर बना हुआ घाट राजघाट कहलाता है !जहां बघेल वंशी राजाओं की छतरियां बनी हैं ! इनमें महराज विश्वनाथ सिंह की छतरी विशिष्ट है ! किले के ही पश्चमी भाग में , जगन्नाथ भगवान् का मंदिर स्थापित है ! पुराणी बस्ती को घेरता हुआ , परकोटा , पुराने रीवा की सीमाएं बांधता दिखता है , जिसके बस्ती में प्रवेश करने वाले उपरहटी और तरहटी दरवाजे अब भग्नावस्था में है !
स्त्री एंकर - किले की विशेष शोभा है , भगवान् मृत्युंजय का प्राचीन मंदिर ! इसमें स्थापित शिव लिंग बहुत प्राचीन है ! यह रीवा नगरी के लोगों की आस्था का केंद्र है ! प्रायः हर दिन यहां दर्शनार्थियों तांता बंधा रहता है ! शिव लिंग का जल, दूध , बेल पत्री , शहद , आदि के साथ पुरोहितों के मंत्रोच्चारणों सहित अभिषेक होता है ! मंदिर के बाहर , गणेश की विशाल मूर्ती है , और एक पुराना वट वृक्ष है जिसकी परिक्रमा करके महिलायें मनौती करती हैं ! मंदिर के द्वार के निकट हनुमान जी की मूर्ती भी स्थापित है ! राजशाही के युग में यह मंदिर , राजाओं के आधीन था , किन्तु अब यह न्यास के आधीन है !
पुरुष एंकर -
कोठी कम्पाउंड में बने भवन , बघेल राजशाही के वैभव की गाथा कहते हैं !यहां का मुख्य भवन है ' वेंकट भवन " जो महराज वेंकट रमन सिंह की याद दिलाता है ! इस भवन में अब मूर्ती संग्रहालय है ! इस महल का स्थापत्य , और भव्यता देखते ही बनती है !यह दो मंजिला भवन है , और इसकी सीढ़ियां और इसका ऊपरी भाग आकर्षक है !
इसी भवन से सट कर बनी है एक बावड़ी !सुरक्षा की दृष्टि से आज इसके चारों और जाली लगा दी गयी है ! कहते है , यहां से एक सुरंग , सीधे रीवा किले को जाती है , जो अब बंद हो गयी है ! आज का कमिश्नर आफिस भी एक कोठी का भाग है ! बावड़ी के निकट ही बना है , भगवान् कामेश्वरनाथ का शिव मंदिर ! यह स्थान यहां के चिंतकों , रचना कारों के लिए , वरदान प्राप्ति का सिद्ध मंदिर है ! मंदिर के एक और बनी दालान में , कर्मकांडी पुरोहितों की गड्डियां है जहां पूजा पाठ का , विघ्न निवारण का कार्य होता है !
स्त्री एंकर - इसी कम्पाउंड में जिला न्यायालय परिसर है ! एक और न्यायाधीशों के कोर्ट हैं , तो दूसरी और काले कोट धारण किये वकीलों की बैठकें ! यहां न्याय प्राप्ति के लिए आये , जिले भर के लोगों का मेला सा लगा रहता है !
कोठी कम्पाउंड के पश्चिमी भाग में बना है घोड़ा चौक ! यहां घोड़े पर सवार महराज वेंकट सिंह की , शानदार मूर्ती लगी है , ! मूर्ती के चारों और क्यारियां बना कर क्षेत्र को घेर दिया गया है , जिससे मूर्ती की भव्यता कायम रहे ! इस चौक से लगा है , शहीद पद्मधर पार्क ! यह पार्क अब व्यवस्थित बगीचे का रूप है ! इसके अंदर फैले छोटे से मैदान में अक्सर यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम और राज नैतिक सभाओं का आयोजन होता रहता है ! पार्क में शिव पार्वती की विशाल मूर्ती लगी है , जो गोर्की से लाकर यहां लगा दी गयी है ! यह कलचुरी काल की मूर्तिकला का उत्कृष्ट नमूना है !
पुरुष एंकर - घोड़ा चौराहा , आज रीवा का व्यस्ततम बाज़ार है ! यहां से ले कर केले मार्ग तक फैला बाजार , पूर्ववर्ती रीवा की निशानी है , जबकि कोठी कंपाउन के बाहरी हिस्सों पर विकसित हुआ शिल्पी प्लाज़ा , और पीली कोठी का बाज़ार। आधुनिक रीवा की छवि के दर्शन करवाता है ! घोड़े चौराहे पर , उज्जयनी महरानी द्वारा बनवाया गया प्रेक्षागृह , उनकी नाटकों की अभिरुचि का गवाह है ! यह प्रेक्षा गृह कभी विंध्य प्रदेश का विधान सभा भवन बना था ! आज यह प्रेक्षा गृह , नगर निगम भवन की तरह उपयोग में आ रहा है , जहां नगरनिगम आयुक्त के साथ महापौर रीवा का आफिस लगता है !
यह नगर , चार विभिन्न मार्गों द्वारा , सतना , बनारस , इलाहाबाद , सीधी , शहडोल के नगरों से जुड़ा हुआ है ! इलाहाबाद - बनारस मार्ग पर बहुत से होटल बने हुए हैं ! इसी मार्ग पर बना है ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय , जो ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व पूर्ण है ! ठाकुर रणमत सिंह का नाम यहां अत्यंत श्रद्धा से लिया जाता है ! अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत की रणभेरी बजाने वाले वे पहले सेनानी थे ! अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर , कुछ दिनों , सतना की छावनी में रखा , और फिर चुपचाप बांदा ले जा कर फांसी दे दी ! रन बाँकुरे रणमत सिंह बाद में यहां अंग्रेजों के विरुद्ध हुए आंदोलन में , अपनी शहादत के कारण एक मिसाल बन गए , और उन्होंने राजनैतिक चेतना की वह रणभेरी फूंकी की पूरा बघेल खंड , अंग्रेजों के विरुद्ध , आंदोलन का गढ़ बन गया ! इसी क्रम में यहाँ युवा शहीद , लाल प्रद्युम्न सिंह का नाम भी बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है जिन्होंने वीरता पूर्वक , इलाहाबाद में तिरंगा फहराते हुए , सीने पर गोली झेली !
स्त्री एंकर करीब पचास वर्ष पूर्व , रीवा को आकाशवाणी रीवा की सौगात मिली , किसका प्रसारण केंद्र इसी महाविद्यालय के दूसरी और , इसी मार्ग पर बना ! इस प्रसारण केंद्र ने , यहां के साहित्यकारों , रचनाकारों , कवियों , लोक गायकों , लोकगीतों , नाट्यकारों को नया मंच दिया ! रेडियो नाटक लिखे गए , और प्रसारित हुए ! यहां के युवा कलाकारों की रचनात्मक प्रतिभा प्रस्फुटित हुई ! नाट्य के प्रति रुझान बढ़ा तो मंचीय नाटक खेले जाने लगे ! संस्थाएं बनी , नाट्य लेखक और नाट्य निर्देशक सामने आये ! कला की एक रचनात्मक धारा बहने लगी जो अब एक परम्परा का रूप ले चुकी है ! रीवा का आकाशवाणी केंद्र अब , और भी उन्नत ऍफ़ एम् बेंड के साथ इस क्षेत्र में अपना अलग स्थान बना रहा है !
पुरुष एंकर - इसी इलाहाबाद रोड पर आगे है सिरमौर चौराहा ! यह इस नगर का व्यासतरम चौक है ! यहां एक उन्नत बाज़ार है ! हाल में ही बढ़ते ट्रेफिक की असुविधाओं के कारण अब यहां एक उन्नत ओवर ब्रिज बना दिया गया है ! इस चौराहे से एक मार्ग बस्ती की और जाता है , जहां पर अमहिया क्षेत्र , रीवा के राजनैतिक पुरोधाओं का गढ़ है ! इसी चुराहे पर है रीवा की महरानी , प्रवीण कुमारी द्वारा बनाया गया , बालिकाओं का स्कूल , पी के स्कूल ! दूसरा मार्ग यहां के अवधेषप्रताप सिंह विश्व विद्यालय की और जाता है , जो बघेलखण्ड की शिक्षा का आधार भूत गढ़ है ! सिरमौर मार्ग की और जाते हुए , बीच में पड़ता है स्टेडियम ! जहां राष्ट्रीय पर्व , स्वतंत्रता दिवस , और गणतंत्र दिवस , परेड के साथ धूम धाम से मनाया जाता है !स्टेडियम के बगल में ही है औद्योगिक शिक्षण केंद्र , ! और आगे है , रीवा का इंजीनियरिंग कालेज ! उसके आगे जाने पर मिलता है , अवधेश प्रताप सिंह विश्व विद्यालय का विशाल परिसर ! यहां , विज्ञान , वाणिज्य , पर्यटन , पुरातत्व , पत्रकारिता , भाषा , संस्कृति के विषय से डिग्री के पाठ्यक्रम संचालित होते हैं ! किसी युग में , टीकमगढ़ , छतरपुर , पन्ना , सतना , शहडोल , सीधी जिले के सभी महा विद्याक्य इससे संबद्ध थे , किन्तु अब टीकमगढ़ छतरपुर महाविद्यालय , सागर से सम्बद्ध हो गए है !
स्त्री एंकर - रीवा को एक विशाल गुरुकुल कहा जाए तो गलत ना होगा ! यहां हर शिक्षा की समुचित व्यवस्था है ! अवधेश प्रताप विश्विद्यालय का परिसर यहीं है ! इंजीनियरंग कालेज के अतिरिक्त कई तकनीकी कालेज भी यहां है ! ठाकुर रण मत सिंह महाविद्यालय के साथ यहां कया महाविद्यालय , और विज्ञान महाविद्यालय बहुत पहले से स्थापित है ! सैनिक शिक्षा के साथ , एकेडिमिक शिक्षा का विद्यालय , सैनिक स्कूल , क्षेत्र का विरला स्कूल है ! चिकित्सा के क्षेत्र में , यहां संजय गांधी मेडिकल कालेज , चिकित्सकों की बड़ी टीम प्रति वर्ष देश को भेंट करता है ! आयुर्वेद महाविद्यालय भी यहां है ! पड़रा स्थित कृषि विद्यालय यहां के क्षेत्रों के लिए वरदान है ! इसके अतिरिक्त जे ऐल इसके अतिरिक्त कई विद्यालय , विभिन्न मुहल्लों में संचालित है ! जिसमें सरस्वती शिशु मंदिर , क्राइस्ट ज्योति स्कूल, केंद्रीय विद्यालय , मार्तण्ड विद्यालय , मारुती विद्यालय , मंडप सांस्कृतिक शिक्षा कला केंद्र , आदर्श बहुउद्देशीय विद्यालय प्रमुख हैं ! यहां का शिक्षा का प्रतिशत ९५ प्रतिशत से ऊपर है ! इसलिए यहां का रहवासी , राजनैतिक चेतना से ओत प्रोत है ! रीवा , आज़ादी के बाद , समाजवादी विचारधारा का गढ़ रहा ! यहां ,, के प्रखर समाजवादी नेता , यमुना प्रसाद शास्त्री , और श्री निवास तिवारी हुए ! कालांतर में श्रीनिवास तिवारी जी ने कांग्रेस अपना ली और वे कांग्रेस शाशन काल में , मंत्री तथा विधान सभा अध्यक्ष बने ! समाजवादियों के अलावा बहुजन समाज पार्टी का बोलबाला भी इस क्षेत्र में रहा ! लोकसभा के इतिहास में सबसे पहला , बहुजन पार्टी का सांसद यहीं से चुना गया ! आज के विकास के पुरोधा , भाजपा के नेता , श्री राजेंद्र शुक्ला का निवास भी रीवा है , जो भाजपा शासन काल में ऊर्जा मंत्री रह चुके हैं !
पुरुष एंकर - संगीत और कला का यह गढ़ रहा है ! महाराज रामचंद्र देव के समय में , बौद्धिक सम्पदा के धनी , अकबर दरबार के ख्याति प्राप्त रत्न बीरबल और तानसेन यहीं से आगरा गए थे ! आज के समय में बावने परिवार की मूर्तिकला और चित्र कला , पेंटिंग आदि , आज चारों और धूम मचा रही है ! संगीत परम्पराओं को जीवित रखने के लिए कुंती रामा संगीत अकादमी , निरंतर भव्य संगीत के आयोजन करती है ! यहां के सुगम संगीत गायक , देश की चर्चित प्रतियोगताओं के विजेता कलाकार रहे हैं ! यहां की गायिका प्रतिभा बघेल आज , फिल्म उद्योग में परचम लहरा रही हैं , मणिकर्णिका की ताजा फिल्म के गीत , उनके स्वर में है , जिसे देश की जनता गुनगुना रही है ! ग़ज़ल गायकी के गायक , डाक्टर राजनारायण का नाम , एक परिचित नाम बन चुका है ! दूसरी और लोक गायकी भी उभर कर सामने आयी है ! आकाशवाणी रीवा केंद्र से प्रतिदिन प्रसारित होने वाले लोकगीत , इस देश की संस्कृति को चारों और फैला रहे हैं !रीवा नगर में हे सुपारी के खिलौने बनाने वाले अद्भुत कला कार हैं , जिनकी कला कृतियान राष्ट्रपति , प्रधान मंत्री को भेंट की जा चुकी है ! लकड़ी के खिलौने यहां बहुतायत में बनते हैं !
स्त्री एंकर - साहित्य और संस्कृति में भी रीवा का अपना इतिहास रहा है ! आनंद रघुनन्दन नामक नाटक , रीवा महराज विश्वनाथ सिंह का लिखा , पहला हिंदी नाटक है ! नाट्य परम्परा में यहां कई कलाकारों का नाम वरीयता क्रम के साथ लिया जाता है ! हरिकृष्ण खत्री , योगेश त्रिपाठी , अनुराधा चतुर्वेदी , हीरेन्द्र सिंह , अनवार अहमद , हरीश धवन , आदि नाट्यकार इस नगर की नाट्य विधा के पुरोधा माने जाते हैं ! योगेश त्रिपाठी को , रेडियो नाटक लेखन के लिए देश का प्रथम पुरूस्कार मिल चुका है ! उनके लिखे नाटक , हबीब तनवीर , संजय उपाध्याय , जैसे उत्कृष्ट निर्देशक खेल चुके हैं ! हाल में ही उनका लिखा नाटक न्यू जर्सी में भी खेला गया है ! हीरेन्द्र सिंह के लिखे नाटक भी लगातार खेले जारहे हैं , वहीं हरीश धवन का नाम नाट्य निर्देशक और वरिष्ठ कलाकारों में लिया जाता है !
पुरुष एंकर - साहित्य के क्षेत्र में भी यह नगर अनूठा है ! बघेली संस्कृति , उत्सव , रीति रिवाज , लोक कला , पर लिखी किताबों के लिए यहां भगवती प्रसाद शुक्ल का नाम आदर से लिया जाता है ! इसके अलावा , लखनप्रताप सिंह , गोमती प्रसाद विकल , आर्या प्रसाद त्रिपाठी , , चंद्रिका प्रताप द्विवेदी , सेवाराम त्रिपाठी के लेखन ने यहाँ की साहित्यिक धारा में अनेकों रंग भरे हैं ! काव्य जगत में यहां के उत्कृष्ट कवियों में गिरजा शंकर शुक्ल , प्रणय , दिनेश कुशवाहा उमेश मिश्र लखन जहां रसधार बहा रहे हैं , वहीं बुंदेली काव्य के प्रणेता , अमोल बटरोही , श्रीनिवास शुक्ल , रामनरेश त्रिपाठी रामलखन केवट , यहां के काव्य गगन पर नक्षत्र की भाँती चमक रहे हैं ! हिंदी कथा लेखन में यह क्षेत्र बहुत अग्रणीय है ! यहां के कथाकारों में , ओमप्रकाश मिश्र , लालजी गौतम , सपना सिंह विवेक द्विवेदी और सुधीर कमल जैसे लेखक , विभिन्न पात्र पत्रिकाओं में अपना विशिष्ट स्थान बना रहे हैं !
पत्रिकारिता जगत में यहां के पत्रकार राष्ट्रीय क्षितिज पर छाये हुए हैं ! जयराम शुक्ला , का नाम आज देश की पत्रिकारिता में अगली पंक्ति में है ! वहीं शशिकांत त्रिवेदी , अजय तिवारी , राकेश मिश्रा , अशोक मिश्रा , यहाँ के उत्कृष्ट पत्रकारों में गिने जाते हैं !
स्त्री एंकर - बघेलों की राजधानी , रीवा नगर को रीवा की सम्पूर्ण रियासत का नाभि केंद्र कह सकते हैं ! यह नगर आज , मध्यप्रदेश के कई विकसित शहरों से आगे बढ़ कर , अपना विशिष्ट स्थान बना चुका है ! यहाँ की बीहर नदी में अविरल बहता पानी , बता रहा है , की विकास के मार्ग पर , उत्तरोत्तर प्रगति में इसका कोई सानी नहीं है ! जब से यहां रेल लाइन आयी है ,यह नगर देश के सभी महानगरों से जुड़ गया है ! आज यहां से भोपाल जाने वाली ट्रेन विंध्यांचल एक्सप्रेस को कई बार , स्वच्छता के उत्कृष्ट पुरूस्कार से नवाजा जा चुका है ! इसलिए , देश के नक़्शे पर अब रीवा नगर , अपरचित नहीं रह गया है !
पुरुष एंकर - लेकिन रीवा नगर का अर्थ रीवा रियासत की सम्पूर्ण संस्कृति , और धरोहर नहीं कहला सकती , इसलिए , अगले अंक में हम चलेंगे , रीवा रियासत की वे धरोहरें , संस्कृति को देखने , जो यहां तीन जिलों , सीधी , रीवा , और शहडोल में फ़ैली हुई है !
--- आलेख सभाजीत ,
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