रविवार, 13 मई 2018





  फटे चिथे  कपड़ों में  लिपटी ,
 किसी गावं की ,
 एक गरीब लड़की की पेंटिंग ,
 रखी  गयी एक कला दीर्धा में,

लोग निहारते रह गए ,
 अपलक ,,मुग्ध भाव से ,
  और लोगों के मुख से निकला ,
   वह ,,,!
क्या रचना है ,,!!

 अखबारों , मेग्जीनो में ,
  छपे  कई लेख ,
 और पढ़े गए कसीदे ,
पेंटर के चित्रण पर ,
सबने कहा
 वह ,,!!  क्या पेंटर है ,,!!

 कई लोगों ने लगा दी बोली ,
हज़ार से लाखों की ,
 और कड़ी प्रतिस्पर्धा में,
 बिक गयी पेंटिंग ,
लोगों ने कहा ,
 वाह  ,,!!
,इस देश में अभी भी शेष हैं ,
 कला के जौहरी ,,!

 पेण्ट,,
 बिकते हैं बाज़ारों में ,
केनवास भी ,
 और स्टेण्ड भी ,,,
कई तरह के ब्रश ,
बिना इनके ,
  शायद नहीं था सम्भव ,
जन्म किसी पेंटर की ,
 रचना का ,,!
और शायद संभव नहीं था ,
 बिना उस उस मूल फोटो के ,
जिसे खींचा गया था ,
कीमती कैमरे से , कीमती लेंसों के जरिये ,
जो बिकते हैं बाजारों में ,
औजारों की तरह ,
  बड़े दामों में ,


बिक गयी जिसकी छवि ,
मजबूरी के लिबास में ,
ऊँचे दामों में ,
उसी की खबर , जब छपी ,
 एक अखबार में ,
तो बहक उठी चैनलें ,
तमक उठे  बुद्धिवादी ,
गतिशाल , विगतशील , प्रगतिशील ,
 पहुँच गए , राजधानी के चौराहों , सडकों पर
  लेकर हाथों में मोमबत्ती ,,!
 एक बेटी की सुरक्षा की गुहार ले कर ,,!
सबसे आगें  था वह  पेंटर ,
पीछे  थे , कला समीक्षक ,
,अखबारी लोग ,
 फिर वे सब ,
 जिन्होंने  घंटों  गुजारे थे ,
कला दीर्धा में , अपलक ताकते हुए ,
 उस लड़की का लिबास ,
उसकी मायूसी , उसकी आँखों में जमे निराशा के भाव ,
और वे भी , जिन्होंने चुकाई थी कीमत ,
उस रचना की ,
अपने ड्राइंग  रूम  की शोभा के लिए ,

सबने ,,नाम दिया लड़की को ,
" रचना "
जो मर गयी थी असुरक्षित , क्षत - विक्षत ,
और पायी गयी थी घूरे पर ,
 उसी फटी चीथी लिबास में ,
जिसका फोटो लेते समय ,
किसी संवेदनशील कलाकार ने ,
नहीं सोचा  उस समय  उसे बचाने को ,
क्यूंकि ,,
 शायद  उसके लिए भी ,,
सोचने से ज्यादा जरूरी था ,
 दुनिया में
   खुद को दिखाने को ,,!

----सभाजीत