फटे चिथे कपड़ों में लिपटी ,
किसी गावं की ,
एक गरीब लड़की की पेंटिंग ,
रखी गयी एक कला दीर्धा में,
लोग निहारते रह गए ,
अपलक ,,मुग्ध भाव से ,
और लोगों के मुख से निकला ,
वह ,,,!
क्या रचना है ,,!!
अखबारों , मेग्जीनो में ,
छपे कई लेख ,
और पढ़े गए कसीदे ,
पेंटर के चित्रण पर ,
सबने कहा
वह ,,!! क्या पेंटर है ,,!!
कई लोगों ने लगा दी बोली ,
हज़ार से लाखों की ,
और कड़ी प्रतिस्पर्धा में,
बिक गयी पेंटिंग ,
लोगों ने कहा ,
वाह ,,!!
,इस देश में अभी भी शेष हैं ,
कला के जौहरी ,,!
पेण्ट,,
बिकते हैं बाज़ारों में ,
केनवास भी ,
और स्टेण्ड भी ,,,
कई तरह के ब्रश ,
बिना इनके ,
शायद नहीं था सम्भव ,
जन्म किसी पेंटर की ,
रचना का ,,!
और शायद संभव नहीं था ,
बिना उस उस मूल फोटो के ,
जिसे खींचा गया था ,
कीमती कैमरे से , कीमती लेंसों के जरिये ,
जो बिकते हैं बाजारों में ,
औजारों की तरह ,
बड़े दामों में ,
बिक गयी जिसकी छवि ,
मजबूरी के लिबास में ,
ऊँचे दामों में ,
उसी की खबर , जब छपी ,
एक अखबार में ,
तो बहक उठी चैनलें ,
तमक उठे बुद्धिवादी ,
गतिशाल , विगतशील , प्रगतिशील ,
पहुँच गए , राजधानी के चौराहों , सडकों पर
लेकर हाथों में मोमबत्ती ,,!
एक बेटी की सुरक्षा की गुहार ले कर ,,!
सबसे आगें था वह पेंटर ,
पीछे थे , कला समीक्षक ,
,अखबारी लोग ,
फिर वे सब ,
जिन्होंने घंटों गुजारे थे ,
कला दीर्धा में , अपलक ताकते हुए ,
उस लड़की का लिबास ,
उसकी मायूसी , उसकी आँखों में जमे निराशा के भाव ,
और वे भी , जिन्होंने चुकाई थी कीमत ,
उस रचना की ,
अपने ड्राइंग रूम की शोभा के लिए ,
सबने ,,नाम दिया लड़की को ,
" रचना "
जो मर गयी थी असुरक्षित , क्षत - विक्षत ,
और पायी गयी थी घूरे पर ,
उसी फटी चीथी लिबास में ,
जिसका फोटो लेते समय ,
किसी संवेदनशील कलाकार ने ,
नहीं सोचा उस समय उसे बचाने को ,
क्यूंकि ,,
शायद उसके लिए भी ,,
सोचने से ज्यादा जरूरी था ,
दुनिया में
खुद को दिखाने को ,,!
----सभाजीत