शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

विंध्य की विरासत
सतना शहर
प्रथम अंक

सुबह से शाम तक , व्यापार के बहीखाते खंगालता , एक बंधे बँधाये जीवन क्रम को जीता , सतना शहर , विंध्य क्षेत्र का वह तोरणद्वार है , जो बुंदेली और बघेली संस्कृति   की सीमा रेखाओं को एक दूसरे में विलीन  करता है ! यहां से प्रतिदिन  गुजरने वाली करीब ९० ट्रेनें , अपनी गोद  में कई यात्रियों, व्यापारियों , पर्यटकों , को  लाकर उन्हें यहां उतारती   हैं , और कई लोगों को अपनी गोद  में ले कर ,   , निर्विकार रूप से गुजर जाती    हैं , जिससे यह शहर रात में भी ऊंघता , जागता  हुआ , जीवंत नज़र आता है ! गर्मियों में झुलसते , बरसात में भींगते , और सर्दी में ठिठुरते , स्टेशन के बाहर , यात्रियों की प्रतीक्षा करते , रिक्शा चालक  , ऑटो चालक  , इस शहर की बानगी दते हैं  की यह शहर , श्रमजीवी लोगों का शहर है ,,श्रम फिर चाहे शारीरिक हो , बौद्धिक हो ,मानसिक हो या  ,  व्यापारिक हो , ,,,श्रम ही इस शहर की मूल  पूंजी है !  १८६३  में बने , वयोवृद्ध सतना स्टेशन की अपनी अविश्मरणीय स्मृतियाँ हैं ! युवा कायाकल्प की चमक से ओतप्रोत  , सतना शहर  के  स्टेशन की    वृद्ध आँखों ने , कई  रंग बिरंगी  घटनाएं अपने जीवनकाल में देखी है ! इस स्टेशन ने , रीवा रियासत के महाराजा , गुलाब सिंह की  बरात  को  आते जाते देखा है  , अंगरेजी हुकूमत के वायसराय  के  भव्य स्वागत को देखा है , पृत्वीराज कपूर के पृथ्वी थियेटर के लाव लश्कर को यहां उतरते  देखा है , और उनके पुत्र , राजकपूर  की बरात की आगवानी को भी देखा है ! स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में , महात्मा गांधी के दर्शन के लिए उमड़ी अपार भीड़ को देखा है , जवाहरलाल नेहरू , लोकमान्य तिलक , सुभाषचंद्र बोस के आत्मिक  स्वागत को  भी देखा है !  इस शहर ने अंग्रेजों के युग में , सभी रियासतों को अंग्रेजों की हाज़री बजाते देखा है , बड़े बड़े व्यापारियों , और रियासती कारिंदों की बड़ी बड़ी कोठियों को भी देखा ,,रजवाड़ों की शानो शौकत को भी  देखा  अंगरेजी संस्कृति के अनुशाशन , और  राग रंग को भी देखा है ,  , ,   जो  अब  पूरी तरह  अतीत में  खो कर इतिहास बन चुकी   हैं !

        इतनी विविधताओं  भी , यह शहर सदैव , स्वावलम्बी शहर बन कर ही जिया , क्योंकि यह किसी राजवंश के द्वारा बसाया गया कोई रियासती   ,  शहर नहीं है ! इसलिए इस शहर में ना तो कोई किला है , ना कोई , परकोटा ना प्रवेश द्वार , ना कोई बुर्ज़ ! इसे ना कभी किसी विदेशी आक्रमण का डर  लगा , ना  आतातायी लूट का ! इस शहर को उन  हाथों ने ,पाला ,  जो  अलग अलग  धर्म ,  अलग अलग  जाती , अलग अलग  संस्कृति के  थे ,,जिनमें आपसी वैमनस्य नहीं था ,और  ना सत्ता की भूख ! वे इस शहर को अपने बच्चे की तरह प्यार करते थे , और इसका लालन पालन , इसका विस्तार , अपनी नेक नियती के साथ  किये  ! यह शहर , खुद अपने लिए नहीं जिया   , बल्कि निकटवर्ती रियासती नगरों की जरूरतें पूरी करने को एक साझा बाज़ार बन कर जिया ! देश के दो महानगर , कलकत्ता , और मुंबई से रेलवे लाइन से जुड़े होने के कारण , आसपास के नगर , छतरपुर , पन्ना रीवा और , , सीधी  के लिए यह समृद्ध थोक बाजार के रूप में  विकसित  हुआ !

     सतना का कोई पौराणिक लिपि बढ़ इतिहास नहीं है , फिर भी यहां के लोगों की मान्यता है , की यह नगर ,राम के युग  से , महर्षि सुतीक्ष्ण  की तपोभूमि के रूप में जाना जाता रहा ! उनके आश्रम के निकट से निकली , सतना नदी के नाम पर इस शहर का नाम  स्थापित हुआ ! दूसरी और , आज के शोधकर्ताओं का मानना है  की इस शहर का जन्म १८ वीं सदी  में तब  हुआ ,,जब १८५७ की विफल क्रान्ति के बाद , अंग्रेजों ने रजवाड़ों को अंकुश में रखने के लिए यहां , मिलिट्री केम्प की स्थापनी की ! उनकी सैनिक छावनी की जरूरतों को पूरा  करने , रसद , हथियार , सैनिकों के त्वरित आवागमन के लिए , एक रेलवे लाइन यहां होते हुए , १८६३ में डाली गयी , जो एक और नैनी इलाहाबाद , और दूसरी और जबलपुर को जोड़ती थी ! सैनिक छावनी , और अंग्रेज अफसरों की दैनिक सामग्रियों की पूर्ती के लिए तब एक बाजार रेलवे के किनारे धीरे धीरे विकसित हुआ , और देश के विभिन्न भागों से आये , गुजराती,  मारवाड़ी, वैश्य  व्यापारियों ने यहां डेरा डाला ! भारत विभाजन के बाद सिंध से आये लोगों ने भी इस नगर को व्यापारिक केंद्र  बना दिया ! शिक्षा , चिकित्सा , न्यायालय , और विभिन्न सरकारी संस्थाओं के साथ साथ ,  फैक्ट्रियों आदि में तैनात हुए कर्मचारियों से यह शहर गुलज़ार हुआ , और इस शहर की साझा संस्कृति ने एक अनुपम  बगिया  की शक्ल अख्तियार कर ली !
   आइये सुनते हैं , इस  शहर की कहानी , यहां के अतिवरिष्ठ ,साहित्यकार और यशश्वी पत्रकार , श्री चिंता मणि मिश्र से ,,,
  , ,  ,  ( इंटर व्यू ,,,श्री चिंतामणि मिश्र )

   अंग्रेजों के युग का बसा  ,  पुराना सतना जहां , पांच समानांतर , कम चौड़ी सडकों और करीब बीस चौराहों की संख्याओं में सीमित  , पुराणी विरासत लिए ,  नजीराबाद से ले कर पन्नी लाल चौक तक की  सीमाओं में समाया शहर है , वहीं आज का नया शहर  निकटवर्ती अन्य कस्बों की   सीमाएं छू रहा है ! रेलवे लाइन के एक और बसे  पुराने शहर का विस्तार अधिक नहीं हुआ , लेकिन रेलवे लाइन की दूसरी और बसे  सतना का विस्तार , धवारी , जवाहरनगर , खूंटी , राजेंद्रनगर , सिविल ,लाइन   कोठीरोड , रीवारोड ,  विराटनगर , पन्नारोड ,  भरहुत कालोनी , सीमारियाचौक , हवाईपट्टी , कोलगवां ,  नईबस्ती , सिंधी केम्प , बांधवगढ कालोनी , बिरला कॉलोनी ,  आदि नामों से ९० के दशक के बाद तेजी से  हुआ है ! इस शहर के पुराने हिस्से में चौराहों और सडकों पर हुई राजनैतिक और सामाजिक  हलचलें , इसका इतिहास बयान करती हैं !
 स्टेशन रोड पर स्थित आज का सरकारी  महाविद्यालय  , कभी रीवा  महाराजा  की कोठी हुआ   करता था !दो मंजिला , कोठी की लाल और भूरे पत्थरों की दीवारें , इसका गोल खम्बों वाला पोर्च , दीवारों पर बना रीवा राज्य का राजचिन्ह , फर्श पर लगा बर्मी टीक  ,   और नीचे का दरबार हाल  इसके अतीत की कहानी कहता है ! राजशाही के जमाने में , इसके अहाते में  एक बड़ा चिड़ियाघर भी था , जिसमें कई प्रजातियों की चिड़ियाँ थी ! इसके दक्षिण की और , एक बगीचा भी था , जिसमें कई  बृक्ष थे  , छोटा सा  सरोवर  था  , मोर , हंस ,    आदि  पले   रहते थे ! महाराजा व्यंकट रमन के जमाने में यहां इलाहाबाद से आयी नर्तकी , ' छप्पन छुरी  का मुजरा हुआ ,, जो शक्ल से तो बदसूरत थी किन्तु आवाज़ से अद्वितीय ! किसी ने उस की शक्ल को ले कर तंज़  कस दिया , तो उसने घूंघट डाल  कर ,  नृत्य किया ! जब राजा ने उस की आवाज़ और कला पर खुश हो  बख्शीश देनी चाही तो  उसने कहा  की जहां कला को रूप से तौला जाए , उस महफ़िल में , मैं बख्शीश नहीं लेती ! इस भवन में अक्सर पन्ना के राजा भी  आ  कर  रुकते थे ! भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद भी यहां रुक चुके हैं !     इसका शिल्प और महत्त्व यह  बताता है की यह भवन ,  रियासती जमाने से ले कर आज के  आधुनिक सतना की शान है !  ! आज यह  क्षात्रों  के भविष्य को संवारता , सतना का ऐतिहासिक महाविद्यालय है ! इसके प्रांगण में , युवा  क्षात्रों  हलचल आने वाले भारत के उज्जवल  भविष्य का संकेत देती है !
( इंटरव्यू किसी  महाविद्यालय के प्रिंसिपल का ,,, हो सके तो सत्येंद्र शर्मा का )
    इस नगर   के   ऐतिहासिक  भवन आज या तो जर्जर हैं , या पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं !१९३५ के समय जगतदेव  तालाब के पास बनी  सोमचन्द आयल मिल , पुराने पावरहाउस के पास बनी सरवरिया बोर्डिंग हाउस  , महावीर भवन के पास बनी सेठ गणपत मारवाड़ी की लल्ला बिल्डिंग , जिसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का जमावड़ा   था ,  और जिस भवन में , सेठ गोविन्द दस , सीताराम काटजू , पुरुषोत्तमदास टंडन , मदनमोहन मालवीय  , कप्तान अवधेश प्रतापसिंघ ने अपने भाषण दिए ,   ध्वस्त हो चुकी है ! कई रंगारंग कार्यक्रमों  का  साक्षी , पृथ्वी थियेटर के नाटक  का  प्रत्यक्ष दर्शी , और बाद में शहर की आकर्षण बनी ' चांदनी टाकीज़ ' का  सिनेमा भवन आज सिर्फ यादों में ही  शेष  है !
 लेकिन रेलवे लाइन के दूसरी और बने व्यंकट स्कूल के भवन , थर्मल पावर हाउस ,   अंग्रेजों के युग में सिविल लाइन में  बने भवन , धवारी का प्रिंस हाल , और बरदाडीह की गढ़ी , आज भी शहर का पुराना इतिहास बखान रही है ! शहर का पोस्ट आफिस , , पुराना बघेलखण्ड बैंक भवन  , जो अब कम्युनिटी हाल है , एम् एल  बी इमारत , मारवाड़ी धर्मशाला , बाजार अस्पताल , गौशाला ,  इतिहास का ' समय चिन्ह ' बन कर आज भी अपनी गवाही खुद दे रहा है !

    इस शहर की गालियां और चौराहे , सिर्फ गालियां और चौराहे ही नहीं हैं बल्कि इतिहास का दस्तावेज हैं ! १९१४ में स्थापित  गौशाला चौक कभी , पुराने सतना शहर का दक्षिणी सीमा हुआ करती थी ! यहां  की गौशाला में गायें पली थीं और शहर को उनसे शुद्ध दूध मिलता था ! इस चौक से लगे पहले कई बड़े बड़े बगीचे थे , जो अब कांक्रीट के भवनों में तब्दील हो गए ! १९३० से १९४० तक , आज़ादी के आंदोलन के सिपाही  , भुग्गी महराज ने यहीं निवास किया ! पहले यहां एक बावड़ी और कुवां भी था ,, जिसके चिन्ह दीखते हैं !
      गौशाला चौक से मैहर की और जाने पर , आज के सतना की अंतिम सीमा पर बसा है ' नज़ीरा बाद ' ! यद्यपि यह मुस्लिम बाहुल्य बस्ती है , किन्तु यहां की तहजीब गंगा जमुनी है ! गंगा जमुनी इसलिए , क्यूंकि इस मोहल्ले में जहां मस्जिद है , वहीं मंदिर भी कम संख्या में नहीं ! कहते हैं की इस बस्ती को हाजी नज़ीर सौदागर ने मुस्लिमों को मुफ्त में जमीन बाँट कर  बसाया था , लेकिन इसी बस्ती में हिन्दुओं की संख्या भी कम नहीं ! यहां कांग्रेस के प्रख्यात नेता , बैरिस्टर  गुलशेर अहमद का निवास है , तो वहीं   फौजदारी के प्रख्यात वकील मुरलीधर शर्मा  और सतना के प्रख्यात पत्रकार स्व आनंद अग्रवाल  के बेटे भी इसी मोहल्ले में रहते हैं !
 अन्य चौकों में पुराने शहर की उत्तरी  सीमा पर बने , पन्नीलाल चौक , और हनुमान चौक भी ऐतिहासिक महत्त्व रखते हैं !कहते हैं की पन्नीलाल चौक , कभी अंग्रेज मेमों , और अंग्रेज अधिकारियों का सैरगाह था ! यहां पन्नीलाल सौदागर की चर्चित दूकान थी , जिसमें विदेशी कपड़ा , बिस्कुट , शराब , डिब्बा बंद गोस्त , ग्रामोफोन के रिकार्ड , वगैरह मिलते थे , जिन्हे अंग्रेज खरीदने आते थे ! इस चौक के बीच एक बड़ा , पानीदार कुवां भी था ! यह चौराहा , डाक्टर राम मनोहर लोहिया की सभा , पहलवान गामा के अल्प  विश्राम , आर एस  एस  के दफ्तर और संघ कार्यकर्ताओं की हलचल  , समाजवादियों के अड्डे , का गवाह है ! इसी चौराहे पर हाजी गनी का होटल था ! जिसमें गांधी जी के बगावती पुत्र , हरी लाल गांधी , जो कुछ दिन सतना में रहे ,  और  जिन्होंने मुस्लिम धर्म अपना लिया था भोजन करने आते थे ! आज भी यह चौराहा शहर का प्रसिद्द चौराहा है , जहां भरा पूरा बाज़ार , होटल , और धर्मशालाएं हैं ! इसी चौक के फैज़ होटल में , डाक्टर लोहिया , राजनारायण , मृणाल गोर , जॉर्ज फर्नाडीज वगैरह आ चुके हैं  ! यहां रामलीला का  भरत  मिलाप संपन्न होता है , ! इसी के निकट , जैनियों का उपासना स्थल , जैन मंदिर भी है ! कभी यहां इस शहर का आकर्षण ,," अशोक टाकीज " भी हुआ करती थी , जो अब शॉपिंग कम्प्लेक्स में तब्दील हो गयी है !
  पन्नीलाल चौक की तरह ' हनुमान चौक ' भी एक ऐतिहासिक चौक है ! यहां एक हनुमान जी का छोटा सा मंदिर है , जिसकी स्थापना १५० वर्ष पूर्व ,  सं १८७८ में हुई ! यह इस शहर की आस्था का केंद्र है ! हर मंगलवार , और शनिवार यहां हनुमान भक्तों का तांता लगा रहता है ! इस चौक पर लुल्ली हलवाई की दूकान कभी बड़ी प्रसिद्द थी , जिसका बना कलाकंद , रेवा के महाराजा को बहुत पसंद था , इसलिए वह सतना से रीवा भेजा जाता था ! इस चौराहे पर सतना के अग्रणीय व्यवसायी ,. बाबू गोपाल नाथ खत्री का निवास था  जिनका सामाजिक योगदान सतना के सुनहरे पन्नो में अंकित है ! कहते हैं की उनके पीछे बनी एक मस्जिद में कुवां ना होने से पानी का अभाव था , इसलिए नमाज़ियों को वजू करने की  दिक्कत  होती थी ! एक दिन उनके घर आयी , चूड़ी पहनाने वाली मुस्लिम मनिहारिन ने उनकी बहु को यह स्थिति बताई तो बहू ने मस्जिद प्रांगण में, अपने खर्चे से  कुवां खुदवाना  स्वीकार कर लिया !  खत्री बाबू को जब यह मालूम हुआ तो वे बहुत प्रसन्न हुए , अपनी बहु को आशीषा , और मौलवी को बुलवा कर कहा की वे जल्द से  जल्द  कुवां खुदवा लें , और जो खर्च लगे , वह उनकी गद्दी से ले जाएँ !हिन्दू मुस्लिम एकता की ऐसी मिसाल मिलना मुश्किल है !  इसी चौक पर हीरालाल मारवाड़ी , अमृतलाल मिश्र , मोहनलालमिश्र  , जैसे  सतना के कर्मठ नागरिकों के मकान थे ,,,जिनका सतना के यत्थान में बहुत बड़ा योगदान है ! सतना का पहला सांध्य अखबार , इसी चौराहे से , प्रखर पत्रकार , चिंतामणि मिश्र द्वारा प्रकाशित हुआ !
  हनुमानचौक से लगा पावर हाउस चौक है ! यहां  जैन धर्मावलम्बियों प्रसिद्द मंदिर और पाठशाला है ! पावर हाउस चौक शहर के पहले बिजलीघर  डीज़ल पावर स्टेशन के नाम पर पड़ा है !  हनुमान चौक से ही लगा शास्त्री चौक है ! यहां कभी तमेरों की बर्तनो की दुकाने बहुतायत में थी ! यहां जो लोग रहे , उनमें , प्यारेलाल संतोषी फ़िल्मी गीतकार का नाम प्रसिद्द है , जिनका लिखा गीत ,, " टम  टम  से ना झांको रानी जी , गाड़ी से गाड़ी लड़ जाएगी "  पुरे भारत में प्रसिद्द हुआ था ! हनुमान चौक से पूर्व की और जाने पर पर एडवोकेट राजकिशोर शुक्ला का निवास था , जिनके छोटे भाई ,,' बिन्दु शुक्ला ' ने बतौर मनमोहन देसाई के चीफ अस्सिस्टेंट , , फिल्म इंडस्ट्री में बड़ा नाम कमाया ! उनकी अपनी  निर्देशित  फिल्म ' मेरा जीवन ' भले ही ज्यादा नहीं चली , किन्तु  डाक्टर के जीवन पर बनी इस फिल्म की कथा ने दर्शकों को बहुत प्रभावित किया !

(इंटरव्यू सभाजीत शर्मा का )

      सतना शहर के एक अन्य चौराहे , बिहारी चौक ' की महत्ता , हिन्दू धर्म की दृष्टि से ऐतिहासिक है !इस चौक की स्थापना तभी हुई जब , अंग्रेज इस भूमि पर , रेल लाइन बिछा रहे थे ! बाबा बृन्दावन  दास   द्वारा बनवाये गए , , बिहारी जी के मंदिर में , बांके बिहारी यानी कृष्ण की  १५० साल पहले की  ऐतिहासिक  मूर्ति स्थापित है ! यह मंदिर हिन्दुओं की आस्था का महत्वपूर्ण मंदिर है ! इसी चौक में बाबा बृन्दावन दास द्वारा शुरू की गयी रामलीला का मंचन आरम्भ हुआ , जो आज भी अनवरत है ! रामलीला , स्थानीय लोगों का लोकप्रिय मंचन है , जिसमें स्थानीय नागरिक ही पात्रों का अभिनय करते हैं ! यह चौराहा आज़ादी के आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा , जहां विशाल जन सभाएं आयोजित होती थीं ! यहां पुरुषोत्तम दास टंडन ठहर चुके हैं ! गुजराती सेठ धारसी जी, जिनका निवास इस चौक पर था ,  ने यहां पहला स्कूल खुलवाया ! इसी जगह पहले गुजराती समाज का गरबा नृत्य वर्षों तक होता रहा ! यह चौराहा , धार्मिक आस्थाओं , और राजनैतिक गतिविधियों का ऐतिहासिक केंद्र रहा है !
       बिहारी चौक से लगे , बाजार चौक को भी वही ऐतिहासिक महत्त्व प्राप्त है , जो बिहारी चौक को है ! वस्तुतः , सतना का पुरातन ऐतिहासिक बाजार यही है ! यहां के सीरिया हलवाई की रबड़ी  और बब्बू पान वाले का पान कभी बहुत प्रसिद्द  था  , इस चौक ने सतना में आज़ादी के आंदोलनों की आधार शिला राखी ! विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का सत्याग्रह इसी चौराहे पर हुआ  और सत्याग्रहियों पर तत्कालीन अंगरेजी पुलिस के डंडे भी यहीं बरसे ! इसी चौक पर उमड़ी भीड़ को देख कर पुलिस ने हवाई फायर भी किये ! यहां कई सामाजिक  विवाद भी हुए , और उनका निदान भी निकाला गया ! इसी चौक के निवासी नारायणदास खंडेलवाल को पतंगें उड़ाने का शौक था , ! वो पतंगों के साथ पांच रूपये का नॉट टांक देते थे , और कटने पर उसे लूटने की होड़ युवा बच्चों में मच जाती ! इसी चौराहे पर काशी महराज की सोडावाटर की दूकान थी , ! काशी महराज क्रांतिकारियों के पक्षधर थे , और उनकी दूकान में उस काल में भी भगत सिंह , चंद्रशेखर की फोटो लगी रहती थी !
        सतना जहां , आज़ादी के दीवानो , सामाज सेवियों , प्रखर पत्रकारों , बड़े व्यवसाइयों का चर्चित शहर रहा , वहीं रास रंग और मनोरंजन के लिए भी यह शहर प्रमुख रूप से जाना जाता  रहा  ! आज का प्रमुख चौक , लालता चौक किसी जमाने में चकलाटोला चौहट्टा के नाम से जाना जाता रहा ! बांदा की  नवाबी  रियासत कमजोर पड़ने पर , कई वेश्याएं , बांदा  से सतना आकर  बस  गयीं ! यह चौराहा , उनके यहां आबाद होने से , चकला टोला के नाम से जाना जाता रहा ! वेश्याओं का जमावड़ा यहां १९१८ से ले कर १९४० तक शीर्ष पर रहा ! वेश्याओं के रास रंग , नृत्य गान के कारण इस मोहल्ले में शराब की दुकानों के साथ साथ नशे की कई और भी अड्डे स्थापित हो गए , जिसमें अफीम का चलन बहुत रहा ! शराब के साथ भजिया , कबाब , पापड की दुकाने यहां खुलीं और उनमे से प्रसिद्द हुए एक भजिया बनाने वाले के नाम पर , लगा हुआ निकटस्थ चौराहा , फूलचंद भजिया वाला आज भी शहर में प्रसिद्द है !  कहते हैं की लालता नाम की एक नर्तकी यहां बहुत प्रसिद्द हुई !  कभी कभी झगडे भी हुए , जिसमें एक नर्तकी हमीदन जान की नाक भी उसके प्रेमी ने काट डाली ! इसी चौक पर मार्तण्ड टाकीज़ के नाम से ,  एक टाकीज भी खुली , जिसमें बैठने के लिए बेंच नहीं थी ! लोग घर से बोरी फटता ले कर आते , और उस पर बैठते ! इसी चौक पर पक्षियों का बाजार भी था , जहां तरह तरह के पक्षी बिकते थे !
     देश आज़ाद होने के बाद जब सतना ने करवट बदली , तो वेश्याओं के अड्डे यहाँ से खत्म हो गए ! बाद में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी , और कांग्रेस के प्रखर नेता डाक्टर लालता प्रसाद ने यहां जब अपनी क्लीनिक खोली तो चाऊ का नाम बदल कर " लालता चौक " कर दिया गया ! डाक्टर लालता प्रसाद नेता से अधिक समाजसेवी थे , इसलिए अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने नीमी ग्राम में एक वृद्धाश्रम खोल लिया और वहीं चले गए !
 आज यह चौराहा मजदूरों के लिए प्रसिद्द है  जहां दिहाड़ी पर , काम करने के लिए मजदूरों की हाट लगती है !

    सतना में अन्य चौराहों में कोतवाली चौराहा  , भैंसाखाना चौक ,  धवारी चौराहा , सिविल लाइन चौक , सर्किट हाउस चौक , अस्पताल चौक ,  और सिमरिया चौक के नाम से विख्यात है ! ये सतना के बाद में हुए विकास से विकसित हुए चौराहे हैं ! इनमें धवारी चौक एक पुराना चौराहा है जिसका ऐतिहासिक महत्त्व है ,इस चौराहे पर बना आधुनिक स्टेडियम ,  खेलों  की हर सुविधा प्रदान करता है ! धवारी बस्ती कभी सतना शहर के बाहर मानी जाती थी , लेकिन अब यह सतना के मध्य  आ गयी है ! अस्पताल चौराहे पर  सतना का सर्व सुविधायुक्त जिला अस्पताल है  वहीं इसी चौराहे पर शहर  प्राचीन देवी मंदिर भी है !  नवरात्रि में , शीतला अष्टमी पर , इस नगर की महिलायें देवी प्रतिमा पर जल चढाने आती हैं ! इसी चौराहे पर जगतदेव तालाब है , जिसके  घाट  पर शिव का प्राचीन मंदिर है !  ,, सेमरिया चौक सतना के आधुनिक विकास का केंद्र है ,यहां यातायात की सुविधा के लिए , एक फ्लाई ओवर ब्रिज निर्माणाधीन है ! ,! सिमरिया चौक पर सतना का बस स्टेण्ड है , जहां से हर दिशा में  बसें  प्रस्थान करती हैं ! सतना का एक मात्र कम्युनिटी हाल इसी चौक पर स्थापित है  जिसमें विविध आयोजन होते हैं ! इसमें एक साथ एक हजार तक लोगों के बैठने की व्यवस्था है ,,और  एक बड़ा स्टेज भी है , जहां पर नाटक , सभाएं आदि आयोजित होती हैं !यह हाल सर्व सुविधायुक्त हाल है !  सतना के विकास का वर्णन करते समय , सीमेंट संयंत्र के लिए बसी , बिरला कॉलोनी का जिक्र भी बहुत जरूरी है !  सतना के बहुमुखी उद्योगों में सीमेंट उद्योग का प्रथम स्थान है , वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहे गए यूनिवर्सल केबिल फैक्ट्री का योगदान भी सतना के लिए महत्त्व पूर्ण है !

      पुराने गौरव की कीर्ति पताका फहराता आज का सतना ,  ,  विभिन्न जातियों , धर्मों , मतों , सम्प्रदायों का मिलाजुला शहर है ! इसमें हर धर्म के उपासकों के उपासना केंद्र हैं! यहां बंगालियों की दुर्गा पूजा अब पूरे हिन्दू समाज द्वारा अपना ली गयी है और नवरात्रि पर यहां जगह दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जातीं हैं ! दूसरी और ,  महाराष्ट्र की  गणेश पूजा भी आज इस नगर  का  प्रमुख आयोजन बन चुकी है , और महाराष्ट्रियन समाज के साथ साथ सम्पूर्ण हिन्दू समाज , जगह जगह , हर्षोल्लाष के साथ गणेश प्रतिमाएं स्थापित करता है ! नवरात्रि में गरबा नृत्य का आयोजन , अब सिर्फ गुजरातियों का उत्सव नहीं है , बल्कि यह सम्पूर्ण सतना निवासियों का उत्सव है !  यहां के शिव मंदिरों में , शिवरात्रि धूम धाम के साथ मनाई जाती है , वहीं  बसंतोत्सव पर हर स्कूल , हर समाज में सरसवती पूजी जाती है ! होली यहां का सार्वजनिक उत्सव है ,,, जिसमें रंग और उल्लास देखते ही बनता है !  चैत्र की नव रात्रि , नागपंचमी ,  कजलियां , और रक्षा बंधन का आज  भी यहां बरकरार है ,,वहीं ,, पितृ पक्ष में पुरखों को  जलांजलि , दशहरे में रामलीलाओं का आयोजन , रावण दहन के त्योहारों के साथ साथ  दीपावली  का प्रकाश पर्व भी सतना को जगमगा देता है !
    कन्याओं की शिक्षा के लिए यहां दो सरकारी  स्कूल हैं ,जिनमें महारानी लक्ष्मी बाई कन्या पाठशाला , और बूटी बाई स्कूल प्रमुख है ! इसके अतिरिक्त आर्य कन्या विद्यालय , सिंधु कन्या विद्यालय  भी शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं ! स्टेशन रोड पर स्थित महिला कला विद्यालय भी सतना की शान है !  कन्याओं की उच्च शिक्षा के लिए , महाराजा कोठी का महाविद्यालय अब पूरी तरह कन्या महाविद्यालय के नाम से जाना जाने लगा है ! बच्चों की शिक्षा के उत्कृष्ट विद्यालय ,  प्रेम नगर स्थित वेंकट  एक  , वेंकट  दो  ,  के नाम से विख्यात हैं ! इसके अतिरिक्त कई अन्य स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणीय भूमिका निभा रहे हैं , जिसमें ,  सरस्वती  स्कूल ,   संत ,,,,,,,,, , सी एम् ऐ  विद्यालय , आदि प्रमुख हैं !
        सतना में एक यूनिवर्सिटी , ऐ के एस यूनिवर्सिटी के नाम से अपना परचम लहरा रही है ! इस के विविध पाठ्यक्रम , युवाओं को रोजगार , और खुद के व्यवसाय की दिशा देने में पूरी तरह समर्थ है ! यह यूनिवर्सिटी कई बार विविध अवार्डों से , अच्छे कार्य के लिए नवाज़ी जा चुकी है ! इसी तरह आज के सतना में आदित्य कालेज भी तकनीकी पाठ्यक्रमों का उत्कृष्ट केंद्र है ! यहां इंजीनियरिंग की सभी शाखाओं के साथ , आधुनिक शिक्षा की सभी सुविधाएं प्राप्त हैं ! इससे पढ़े क्षात्र , आज विविध फैक्ट्रियों , माइनिंग , और अग्निशामक इंजीनियिरिंग में सतना का नाम रोशन कर रहे हैं !
( इंटरव्यू ऐ के इस के संचालक का )
   सतना का वित्स कालेज , शिक्षा के क्षेत्र में एक अभिनव संस्थान है ! इसका नाम आज देश में भी प्रसिद्धि पा रहा है ! शिक्षा के प्रतिमानों के साथ साथ , इसके  क्षात्रों  को रंग कर्म , और अभिनय कला ,में भी चारों और प्रसिद्धि मिल रही है ! इस कालेज  में दो भव्य थियेटर हैं , जहां समय समय पर नाटकों के आयोजन भी होते हैं !
            आज का सतना , शिक्षा के क्षेत्र में समृद्ध सतना है ! यहां तकनीकी शिक्षा के लिए पॉलीटेक्निक पहले से ही है !  मध्यप्रदेश सरकार ने जल्दी ही यहां मेडिकल कालेज खोले जाने की स्वीकृति दी है !इसके अलावा पेरा मेडिकल कोर्स पहले से ही यहां संचालित है ! महिलाओं के लिए सिलाई कढ़ाई , के केंद्र भी यहाँ कई वर्षों से संचालित हैं !

  ( इंटरव्यू किसी शिक्षाविद का  हो सके तो सेनानी जी का ) )
     
     किसी भी शहर की असली पहचान होती है , उसकी कला संस्कृति और , साहित्य सृजन ! सतना शहर के  पास विरासत में धरोहर के रूप में यह दोनों विधाएँ विदवमान हैं ! इस शहर में पृथ्वी थियेटर ने नाटकों की जो नीवं स्थापित की , उसका  निर्वहन इस नगर के लोग समय समय पर करते रहे ! १९३१ में यहां मारवाड़ी समाज ने नाटक मंडली स्थापित की कृष्णावतार , भीष्मपितामह  जैसे आदर्श  नाटक खेले गए ! यहां कभी बजरंग विजय कंपनी  नामक  नाटक मंडली बनी जिसने वीर अभिमन्यु , श्रवणकुमार , लैला मजनू नाटक खेले ! बाद में जैन समाज ने भी नाटक मंडली बनाई और कुछ नाटक खेले ! लेकिन इस शहर की आत्मा में बसी रामलीला एक ऐसा मंच रही , जिसमें हर अभिनय प्रेमी  को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला ! रामलीला एक ऐसा आयोजन था , जिसमें पुराने लोगों के हटने के बाद नए लोग आते गए और निरंतरता बनी रही !
    १९८० के दशक में , यहां नुक्कड़ नाटकों ने धूम मचाई ! इससे पहले भी क खा  ग  नामक संस्था के निर्देशक श्री दिलीप मिश्र ने कई नाटक खेले  जिसमें आज के लब्ध  प्रतिष्ठ  , स्क्रिप्ट राइटर ,  अशोक मिश्र  ने भी निर्देशन दिया !  श्री दिलीप मिश्र के सतना से बाहर चले जाने के बाद रंग कर्म के लिए बहुत दिनों तक खामोशी छाई रही , लेकिन  तीन वर्षों पूर्व से इस शहर का रंग मंच नई  चमक के साथ फिर उभरा , जब राष्ट्रीय  नाट्य स्कूल के स्नातक द्वारिका दाहिया ने यहां फिर से नाट्य कर्म की बाग़ डोर  सम्हाली ! उनके निर्देशन में वित्स कालेज के थियेटर में जो नाटक खेले गए वे अब  सतना के रुझान को  नई  दिशा दे रहे हैं ! श्री दाहिया की पत्नी श्रीमती सविता दाहिया भी उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर एक से एक नाटकों को नया आयाम दे रही है ! अब इस नगर में नाट्य उत्सव भी हो रहे हैं ,, और मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय से स्नातक हुए युवा , अब रंग कर्म की धारा ही बहा रहे हैं !  इस बीच श्री दिलीप मिश्र भी लौट आये और उन्होंने भी कई अच्छे नाटक खेल डाले !
  ( इंटरव्यू द्वारिका दाहिया का+ दिलीप मिश्र का )  )
    संगीत के क्षेत्र में , भले ही इस शहर में कोई उस्ताद पैदा नहीं हुआ , लेकिन मैहर  के संगीत घराने से प्रभावित शास्त्रीय संगीत की धारा यहां निरंतर बहती रही ! संगीत भारती , और गीतम नामक संगीत संस्थाएं बनी , और संगीत के उत्कृष्ट आयोजन हुए ! सं १९८४ में , बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले से आये , संगीत महर्षि रतनजन कर के शिष्य , श्री ज्ञान सागर शर्मा ने यहां शास्त्रीय संगीत के विद्यालय स्थापित किये , और यहाँ के संगीत प्रेमी शिष्यों को शास्त्रीय संगीत की उच्चकोटि की शिक्षा से दीक्षित किया !  संगीत के कई स्कूल , उनके बाद , यहां की परम्परा में खुले और धीरे धीरे संगीत कला के श्रोताओं के साथ साथ कलाकार भी यहां स्थापित हुए !  शास्त्रीय संगीत के अलावा , सुगम संगीत ने भी यहां अपनी छटा बिखेरी , और फ़िल्मी संगीत के कई आर्केष्ट्रा  यहां स्थापित हुए ! जिसमें रागनी आर्केष्ट्रा  प्रमुख है !  आज भी इस परम्परा को निबाहते कई आर्केष्ट्रा सतना में संगीत माधुर्य बिखेर रहे हैं !
    साहित्य में सतना शहर सदा अग्रणीय रहा !  नगर निगम का पुस्तकालय यहां  किताबों का आगार रहा ! इसमें कथा साहित्य के साथ , उपन्यास , काव्य संग्रह , लोगों की रूचि वर्धन का सहारा बना ! सतना में निरंतर हुए भव्य कवी सम्मेलनों   ने यहां श्रोताओं को काव्य विधा जोड़ा ! देश के नामी गिरामी कवि , सतना आकर अपना काव्य पाठ कर चुके हैं !  आज यहां के लेखक और कवियों में हरीश निगम , गीतकवि सुमेर सिंह शैलेश , सुदामा शरद  अनूप अशेष , ऋषिवंश , बाबूलाल दाहिया , नाम अग्रणीय कवियों में लिया जाता है , वहीं साहित्य विधा के दमकते नक्षत्रों में चिंतामणि मिश्र , प्रह्लाद अग्रवाल , सुषमा मुनींद्र , संतोष खरे , डाक्टर प्रदीप मिश्र , वन्दना दुबे   और डाक्टर सत्येंद्र शर्मा , साहित्याकाश को आलोकित कर रहे हैं ! इस नगरी में उर्दू शायरी भी पल्ल्वित हुई है ,,जिसके लोकप्रिय शायर  रफीक सतनवी , राईस नस्तर  , पुरनम  सुल्तानपुरी आदि हैं ! सतना में कई फिल्मकारों ने कई विषयों पर वृत्तचित्र और लघु फ़िल्में बनाई हैं , जिनमे  सभाजीत शर्मा , हरी चौरसिया , कुलदीप सक्सेना , और पृथ्वी अयलानी प्रमुख हैं !
( इंटरव्यू प्रह्लाद अग्रवाल का )
      पत्रिकारिता  में सतना की अपनी विशेष आभा है , जिसमें  चिंतामणि वरिष्ठ पत्रकार हैं ! आज़ादी के समय से ही पत्रकारिता यहां परवान चढ़ी , और दैनिक सांध्य पत्रों के साथ साथ , दैनिक अखबार भी यहां से प्रकाशित हुए ! सं १९३३ में पहला प्रेस , माया प्रेस के नाम से सतना में खुला जिसे माया बाबू नामक बंगाली महोदय ने चालू किया ! इसी प्रेस से पहला अखबार " रैय्यत " नाम से नुमाया हुआ ! उस काल में अखबार निकालना , जुर्म जैसा था , तो उसका खामयाजा भी माया बाबू ने झेला और जेल गए ! १९४० के बाद कुछ अन्य लोगों ने भी प्रेस लगाए , समाचार पात्र प्रकाशित किये , किन्तु वे ज्यादा दिन नहीं चले ! १९६२ में सनसनी नामक दैनिक सांध्य अखबार चिंतामणि मिश्र ने शुरू किया और फिर १९७३ में श्री आनंद अग्रवाल की सम्पादकीय में जवान भारत ने धूम मचाई ! इंद्रा गांधी के आपात काल में जब कई पत्रकार जेल चले गए तो समाचार पत्रों की श्रंखला यहां रुक गयी !  बाद में १९८० के बाद कुमार कपूर ने सतना टाइगर नाम का अखबार शुरू किया , जो लोकप्रिय हुआ ! इसके बाद कई समाचार पात्र शुरू हुए , जिसमें कृष्णगोपाल गुप्ता का साप्ताहिक आयोग , शंकरलाल तिवारी का बेधड़क भारत , निरंजन शर्मा का क्रांतिदूत , गिरजा प्रसाद का चितेरा आदि उल्लेखनीय है ! पत्रकारिता के लिए शहीद हुए आनंद अग्रवाल का नाम सतना में आदर से लिया जाता है ! इनके अखबार जवान भारत ने , कई पत्रकारों को पटल पर आगे आने के अवसर दिए ! १९८४ में मायाराम सुरजन ने सतना में " देशबंधु " नामक दैनिक समाचार पात्र का आगाज़ किया , और इस समाचार पात्र ने कई लेखकों , और पत्रकारों को आगे आने के अवसर दिए ! भगवान् दास सफड़िया  , सुदामा शरद , प्रह्लाद अग्रवाल  , बाबूलाल दाहिया , देवीशरण ग्रामीण इस समाचार पात्र के नियमित स्तम्भकार बने !  एक और समाचार पत्र  नेशनल टू  डे भी कुछ दिनों के लिए प्रकाशित हुआ किन्तु जल्द ही बंद हो गया ! पत्रकारों में निरंजन शर्मा का नाम विशेष उल्लेखनीय है  जिन्होंने अल्प  आयु से ही पत्रकारिता शुरू की , और कई समाचार पत्रों का सम्पादन सम्हाला !  आज   यहां से लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र  , दैनिक भाष्कर  सहित सतना स्टार , और दैनिक  पत्रिका का प्रकाशन भी हो रहा है !इन समाचार पत्रों के सम्पादक और सह सम्पादक  माने हुए वरिष्ठ पत्रकार हैं और सतना की हर गतिविधि को देश के शेष संसार से जोड़ते हैं !
 (इंटरव्यू किसी पत्रकार का ,,हो सके तो सुदामाशारद , अथवा निरंजन शर्मा का )

    सतना शहर को जिन सुघड़ हाथों ने गढ़ा , जिसमें मूल्यों के रंग भरे , जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम से इसे जोड़ा , और जिनकी बदौलत यह शहर आज जीवित है , उन महापुरुषों का उल्लेख करना , आज उन्हें पूर्वजों की तरह याद करने जैसा है ! हर शहर का अपना विशिष्ट इतिहास होता है , लेकिन सतना का इतिहास तो  रंगबिरंगी पेंटिंग की तरह है ,,जिसमें हर कोण से देखने पर नई  आकृति उभरती है ,,ऐसी आकृति  जो कहती है की ठहरो , अभी तो मेरी हे कथा पूरी नहीं हुई , तुम अगला पृष्ठ कैसे पलट सकते हो ,,? इस शहर के प्रणेता , वे अंग्रेज , जो सुदूर देश से इस विंध्य भूमि पर आये , और भले ही उनका मूल्य ध्येय यहां शाशन करने का रहा हो , किन्तु जिन्होंने यहां की भूमि में  , नयी आबादी वाला एक शहर बसा दिया हो ,  वापिस नहीं गए , और सतना रेलवे स्टेशन के एक कोने में बने अपने चिर विराम स्थल क्रिश्चियन कब्रिस्तान में सो  गए  !उन्हें  श्रद्धा के दो फूल चढाने का दस्तूर तो बनता ही है ! उन्हें भी शृद्धा सुमन चढाने का दस्तूर बनता है , जो विभिन्न शहरों से यहां आये , यहां व्यापार की नीवं डाली , सामाजिक मूल्यों  को जिया , और इस शहर को पनपता छोड़ कर , अतीत में विलीन हो गए !  उन कला प्रेमियों , नृत्यांगनाओं , और साहित्य लेखकों को भी शृद्धा सुमन चढाने का दस्तूर बनता है , जिन्होंने इस शहर को मनोरंजक बनाया ,  इसे  रंगीन धड़कन दी , और उन अनाम मजदूरों को भी श्रद्धा सुमन चढाने का हक बनता है ,, जिन्होंने इस भू भाग को रेल की पटरियों के माध्यम से , देश के हर कोने से जोड़ा !  सतना नगर की गाथा कहने से सतना का पूरा परिचय नहीं मिलता ! वस्तुतः यह तो उस नगर की कथा थी , जो स्वयं भू नगर था ,,, जिसका सृजन किसी ने नहीं किया ,, ! किन्तु इस नगर के चारों और  फैले विंध्य की भूमि पर जिन संस्कृतियों ने पंख पसारे  , जो अपने  पीछे अनोखी धरोहरें छोड़ गए हैं , जिनके पद चिन्ह आज भी इस माटी पर अंकित हैं , उसकी कथा भी हम अगले अंक में कहेंगे ,, ताकि हम आप जान सकें की भले ही शहर स्वयं भू हो सकते हैं , लेकिन इस  धरा  की  संस्कृति , स्वयंभू नहीं नहीं हो सकती ! वह सिर्फ किसी एक सड़ी का इतिहास नहीं है ,,,बल्कि सदियों का इतिहास है !

--सभाजीत
 maihar mandir
पुरुष एंकर - उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार ,  , मंदिर में उपलब्ध शिला  पट्ट  यह व्यक्त करता है की यह मंदिर ५०२ ईस्वी में निर्मित हुआ ! इतिहास के अनुसार  पांचवी सदी  से ले कर दसवीं सदी  तक यह क्षेत्र विभिन्न राजवंशों का संघर्ष क्षेत्र रहा !  गुप्त राजवंश और कलचुरी राजवंश  जहां वैष्णव मत के आराधक थे , वहीं नागा राजवंश और चंदेल राजवंश  शिव आराधक ! इसलिए यह क्षेत्र  दोनों  भक्ति  की साझा  भूमि के रूप में   जाना जाता   है !   मैहर व् इससे जुड़े कई  स्थानों के    मंदिर , विष्णु  मंदिरों के साथ साथ ,  शिव   के मंदिरों   के रूप में उपलब्ध हैं !
       एक किंबदंती के अनुसार , मैहर नगर का विकास , उन घुमक्क्ड योग साधना के संतों द्वारा सं १७७८ में किया गया , जिन्हे यह क्षेत्र , ओरछा के बुंदेली राजाओं द्वारा दान में  मिला था  ! जोगी नाम से विख्यात इस समुदाय को , कई स्थानों को नाथ सम्प्रदाय माना जाता है ! इस नगर की बोली बुंदेली है , जो यह स्थापित करती है की यह विंध्य   के  , बुंदेलखंड भूमि का ही हिस्सा है !



  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें