विंध्य की विरासत
चित्रकूट
( मार्ग पर गेरुआ वस्त्र पहने साधू , पोटली बांधे गृहस्थ पुरुष , स्त्रियां चली जा रही हैं ,, मार्ग दुर्गम , घाटी वाला है ,, कैमरा आकाश से नीचे उतरता हुआ दूर से जाते हुए इन समूहों के देखता है ,, उनके पैरों के कट्स , गठरी के कट्स , दिखाते हैं नेपथ्य से आवाज़ आती है --
अब चित चेत चित्रकूटहिं चलु
कोपित कलि ,लोपित मंगल मगु , विल्स बढ़त मोह माया मलु ,
भूमि विलोकु राम पद अंकित , वन विलोकु रघुवर बिहार थलु ,
शैल संग , भव भंग , हेतु लखु , दलन कपट पाखंड दंत दलु ,,
तभी उनके गुजरने पर एक दिशा से एक पुरुष एंकर आगे आता है )
पुरुष एंकर -तुलसीदास का यह भजन , भजन नहीं , बल्कि एक अनुभूति है ! वह अनुभूति , जिसे एक संत ने आत्म सार की , वह अनुभूति जिसे मुगलों के कटटर शहंशाह , औरंगजेब ने भी महसूस की , वह अनुभूति जिसकी चाह में आज ग्रामीण जन अपने घरबार त्याग कर , यहां आकर समय व्यतीत करते हैं ,, वह अनुभूति अगर कहीं उपलब्ध है तो उस स्थान का नाम है चित्रकूट !
महिला एंकर - चित्रकूट ,,!
जहां आदिकाल से , प्रकृति वात्सलयमयी माँ की तरह , मनुष्य को अमृत बांटने को आतुर है !जहां मानव के उज्ज्वलतम चरित्र की बानगी राम कथाओं के रूप में जन जन में व्याप्त है ! जहां सरल हृदय व पवित्र विचारों की मंदाकिनी , जन समूहों के रूप में उमड़ कर , चित्ताकर्षक पर्वतों के बीच , सलिला की तरह समा जाती है !
पुरुष एंकर-
चित्रकूट
जो अनादि काल से विभिन्न सभ्यताओं के मिलन का साक्षी रहा ! जिसने राजनीति को नए आयाम दिए ! जहां सत्ता ने त्याग को नमन किया ! जहां गृहस्थ जीवन के दर्शन को पुण्य दिशा मिली , जहां आत्मिक चिंतन के , ज्ञान का अविरल शोध हुआ ! वही चित्रकूट !
विंध्यांचल श्रेणियों की छितराई पर्वतमालाओं की श्रेणियों के बीच घिरा , भूमि का रमणीक भाग , जिसके चारों और खड़े पर्वत कूट , मानो पहरेदार बन कर इस भूमि भाग की रक्षा कर रहे हैं , जहां राम ने अपने वनवास के तरह साल आदिवासियों और वंचितों के मध्य रह कर व्यतीत किये ! जिन के शिखर पर बैठ कर , कर्म योगी लक्ष्मण ने , अपने बड़े भाई की रक्षा के दायित्व को एक सिपाही की तरह निभाया ! जहां रघुकुल की एक रानी ने , अपने पति धर्म निबाहने के लिए , सुखों का त्याग करके पर्ण कुटी में वास किया ! वही चित्रकूट , आज भारत के उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश के संधि द्वार पर , अवरिल बहती मंदाकिनी के तट पर उत्कीर्ण , उन पवित्र पृष्ठों को पलटता हुआ दिखता है ,, जो जन जन के हृदय पृष्ठों पर , आदर्श बन कर अंकित हो चुके हैं !
चित्रकूट आज आध्यात्म , आस्था , हिन्दूदर्शन , पर्यावरण , प्रकृति सौन्दर्य , व पर्यटन का केंद्र बना हुआ है ! यह सामाजिक चिंतन के महर्षि , भारत रत्न नानाजी देशमुख , के आदर्श ग्राम के स्वप्न की मूर्ती है ! यह विद्या का गढ़ है ! सेवा का केंद्र है ! आध्यात्म और चिंतन की तपोभूमि है !
महिला एंकर -
इस तपोभूमि पर पहुँचने के लिए , मध्यप्रदेश के सतना नगर से एक उन्नत सड़क मार्ग उपलब्ध है जहां सतना से लगातार कई बसें दिन भर यहां श्रद्धालुओं को ले कर आती हैं ! इस सड़क मार्ग से , अपने वाहन से या टेक्सी से , आसानी से चित्रकूट पहुंचा जा सकता है ! दूसरी और , प्रयागराज से झांसी की और जाने वाले रेल मार्ग पर बने , कर्वी चित्रकूट स्टेशन पर उत्तर कर भी यहां आसानी से आया जा सकता है ! उत्तरप्रदेश के नगर , बांदा से , अथवा प्रयागराज से भी एक उन्नत राजमार्ग , इस स्थान तक पहुँचने के लिए उपलब्ध है !
पुरुष एंकर -
चित्रकूट का तोरणद्वार है , मंदाकिनी नदी पर बना ,रामघाट , जो उत्तर प्रदेश की भू भूमि पर है ! यहां मंदाकिनी नदी अपनी गहन धारा के साथ शांत भाव से बहती है ! रामघाट वह घाट है , जहां रामचरित मानस के रचियता , गोस्वामी तुलसी दास जी को राम के दर्शन हुए थे ! तुलसी दास का जन्म बांदा जिले के राजापुर गावं का माना जाता है ! कहते हैं की जन्म के समय से ही इनके माता पिता ने इनका त्याग , किन्ही कारणों से कर दिया था ! इनका लालन पालन संत नरहरिदास के संरक्षण में हुआ ! युवा होने पर , पत्नी पर हुई आसक्ति के कारण , इन्हे पत्नी ने के कटु वचन सुनने पड़े ! पत्नी ने कहा , जितना तुम मुझ पर आसक्त हो , उसका एक अंश भी तुम्हारी अगर राम पर आसक्ति होती , तो तुम्हारा जीवन सुफल हो जाता ! पत्नी के वचनो से व्यथित हो कर इन्होने राम भक्ति का मार्ग अपना लिया ! स्वतन्त्र घूमते हुए इन्होने काशी में विद्यार्जन किया और राम कथा को जन भाषा में लिखने का निश्चय किया !
स्त्री एंकर - ( घाट पर घूमते हुए विभिन्न जगहों पर )
वह काल हिन्दू धर्म के संक्रमण का काल था ! उस समय भारत में मुगलों का शाशन था , और तेजी से धर्म परिवर्तन हो रहा था ! सामाजिक मूल्य , स्वार्थ के आगे तिरोहित हो रहे थे ! आपसी रिश्ते , वैमनस्य के जाल में फंसते जा रहे थे ! पारिवारिक संबंध , टूट रहे थे ! लोग ज्ञान को धर्म पुस्तकों में बाँध कर तिजोरियों में सहेज रहे थे ! नीतियां , अनीति के सामने सर झुका रही थी ! तब युवा तुलसी दास ने राम कथा को , सामाजिक हित में , चारों और फैलाने का निश्चय किया ! लेकिन राम कथा लिखने के लिए , उन्हें जरूरी लगा की पहले रामभक्त हनुमान की शरण में जाया जाए ! हनुमान जी की खोज में वे यहां वहां भटकने लगे , तभी उनके गुरु ने बताया की , हनुमान जी , काशी में एक राम कथा के दौरान श्रोता बन कर आते हैं ! वे श्रोताओं के अंत में , एक दीन हीन पुरुष बन कर बैठते हैं , तुम वहां जा कर उनके पैर पकड़ लो , वे तुम्हे राम के दर्शन करवा देंगे ,,और तब तुम्हारी कृति आसानी से पूर्ण हो जाएगी !
युवा तुलसी दास ने वैसा ही किया ! हनुमान जी ने उन्हें , चित्रकूट जा कर वास करने की सलाह दी ! उन्होंने कहा की वहां राम , मंदाकिनी घाट पर आयेंगें , तुम्हे आशीष देंगें , उस वक्त मैं भी वहां , शुक वेश में एक पेड़ पर रह कर इंगित करूंगा !
राम ने चित्रकूट आकर , यहीं रामचरित मानस लिखा ! राम लक्ष्मण , दो बालकों के स्वरूप में रोज आकर उनसे मिलते रहे , लेकिन तुलसी दास उन्हें पहचान नहीं पाए ! अंत में शुक वेश में हनुमान जी ने उन्हें इंगित किया की जिन बालकों के मस्तक पर तुम रोज चंदन लगाते हो , वे ही राम और लक्ष्मण हैं ! तुलसी दास जी के अनुनय पर तब राम ने उन्हें इसी मंदाकिनी घाट पर साक्षात दर्शन दिए !
रामघाट वह स्थान है जहां राम ने अपनी पहली पर्ण कुटीर बनाई थी ! यह वह स्थान है जहां पर इस क्षेत्र के प्रजापति , मत्गयेन्द्र विराजमान हैं !
पुरुष एंकर - ( मत्गयेन्द्र मंदिर में खड़े हो कर )
मत्गयेन्द्र अर्थात भगवान् शिव ! उनका विशाल मंदिर आज इस रामघाट पर स्थापित हैं ! मत्गयेन्द्र , अर्थात शिव इस क्षेत्र के प्रजापति थे ! यह स्थान उस समय द्रविणो , तथा आदिवासियों की कार्यस्थली था , जिनके आराध्य शिव ही थे इसलिए उन्हें यहां का प्रजापति कहा गया ! ऋषियों से मार्गदर्शन ले , जब राम यहां जनजातियों के बीच रमने आये , तो उन्होंने सर्व प्रथम यहां के प्रजापति , शिव का पूजन किया और उनसे इस क्षेत्र में रहने की अनुमति माँगी ! मत्गयेन्द्र मंदिर में आज भी उस उस पूजन की व्याख्या , यहां के पुजारी करते हैं !
राज वैभव में पले , एक निर्वासित राजकुमार को , यहां की जनजाति ने अपने सर आँखों पर बैठाया ! और राम उनके सुख दुःख , उनकी जीवन शैली के बीच ऐसे रमे , की वे यहां के बिना राजमुकुट के उनके हृदय पर राज करने वाले राजा बन गए ! कहते हैं की राम के अतिरिक्त , सतयुग में राजा नल , द्वापर में पांडवों , ने भी अपना निर्वासन काल यहीं व्यतीत किया !
कालांतर में , गोस्वामी तुलसी दास के अतिरिक्त , रहीम और कवी भूषण की काव्य साधना स्थली भी यही भूमि रही !
स्त्री एंकर -( विभिन्न स्थानों पर खड़े हो कर )
मत गयेन्द्र मंदिर के नीचे ही है , वह स्थली जहां राम की पर्ण कुटीर थी ! आज भक्तों ने यहां एक पक्का मंदिर बना दिया है , जो आस्थावानों के लिए तीर्थ स्थल है ! पर्ण कुटीर स्थल के स्थल के निकट ही है , राम के जीवन यापन के स्मृति चिन्ह - यञवेदी , और राघव प्रयाग ! राघव प्रयाग एक संगम है जहां तीन नदियाँ , मंदाकिनी , पयस्वनी और गायत्री , मिलती हैं !कहते हैं की गायत्री अदृश्य है व संक्रांति के अवसर पर ही उसकी श्वेत धारा दिखती है ! इससे संगम पर भगवान् राम ने अपने पिता महराज दशरथ का पिंडदान किया था !
पर्ण कुटी से थोड़ा हट कर है भारत मंदिर ! जहां राम को मनाने के लिए , अयोध्या से आयी प्रजा के साथ भरत ने राज सभा बैठाली थी ! यह भारत की वह पहली राज सभा थी , जिसने महलों के अंदर पनपे कुचक्रों , के विरोध में , प्रजातांत्रिक मूल्यों को वरीयता दी थी ! यह वह सभा थी , जिसमें , एक भाई ने रोते हुए , अपने बड़े भाई से मनुहार की थी , की वह वापिस अयोध्या लौट चले ! यह वही सभा थी , जिसमें सार्वजनिक रूप से , स्वार्थों से भटकी रानी कैकेयी ने बिलखते हुए पश्चाताप किया था !
रामघाट इसलिए आज , आस्थावानों की आस्था का केंद्र है ,,! यहां आ कर लोग उन खोये हुए मूल्यों को तलाशते हैं , जो किसी युग में आदर्श थे !
रामघाट पर सजी रंग बिरंगी नावें , पर्यटकों को , मंदाकिनी नदी के दर्शन करवाती हैं ! घाट पर लहरों के बीच उतराती यह नौकाएं आज के , काश्मीर के शिकारों की तरह रमणीक लगती हैं ! पर्यटक इस सवार हो कर , रामघाट से अनुसुइया घाट तक जल मार्ग से यात्रा करते हैं ! रामघाट वह स्थान है , जहां से मंदाकिनी का छोर पकड़ कर प्रकृति के रमणीय दृश्यों को आत्मसात किया जा सकता है !
पुरुष एंकर - ( नाव में बैठे हुए नदी में )
मंदाकिनी के जल मार्ग से ऊपर की और चलने पर , धीरे धीरे पक्के घाट विलीन हो जाते हैं और प्रकृति का नैसर्गिक स्वरूप उभरने लगता है ! मनुष्य निर्मित कोलाहल , भवनों के आँखों से ओझल होते ही , दूर हो , हो जाता है और मंदाकिनी के दोनों तटों पर दूर तक बिखरे बृक्षों की पंक्तियाँ , पक्षियों का कलरव , मन मोहने लगता है ! दूर मंदाकिनी के उद्गम छोर पर समाधिस्थ , चित्रित पर्वत कूट अपने प्रतिबिम्ब को मंदाकिनी के जल में निहारते नजर आते हैं ! मनुष्य अपनी बनाई , कांक्रीट की दुनिया से हट कर , प्रकृति की दुनिया में कदम रखते हुए , आल्हादित हो सुख का अनुभव करने लगता है
रामघाट से थोड़ा ऊपर चलने पर एक और वन के तट ,और दूसरी और आश्रमों के कृतिम घाट निरंतर गुजरते हुए दीखते हैं ! इस जल यात्रा में पहले आता है प्रमोद वन ! यह एक पुराना , राजशाही युग का , कुञ्ज वन है ! यहां पर स्थापित , वृद्धाश्रम , , पौराणिक काल की उस प्रथा का द्योतक है , जब चतुर्थ वय में व्यक्ति , दुनिया के माया मोह , सुख वैभव को त्याग कर ,ईश्वर आराधना के लिए वानप्रस्थ ग्रहण करता था ! इस स्थान पर , मंदिरों का नव निर्माण किया गया है जो दर्शनीय है !
यहां मंदाकिनी की धारा फ़ैल गयी है व उसकी गहराई इतनी कम है की छोटे बच्चे धारा के बीच बैठ कर ही स्नान करते , किलोल करते नज़र आते हैं !
महिला एंकर -
प्रमोदवन से ऊपर आने पर , मंदाकिनी की गहराई , और गति क्षीण हो जाती है ! यहां स्थित है , जानकी कुंड ! कहते हैं यहां जनकसुता स्नान करती थी ! पूर्व की और जहां आज भी वन सुषमा है , वहीं पश्चिमी तट पर बने आश्रमों के विभिन्न भवन , प्रकृति से छेड़ छाड़ की गवाही देते नज़र आते हैं ! जानकी कुंड से थोड़ा ऊपर की और आते ही दिखती है स्फटिक शिला !
इस स्फटिक शिला का वर्णन रामचरित मानस में उपलब्ध है जहां पर भगवान् राम ने , देवी सीता का स्वयं श्रृंगार ,किया और जहां पर विचलित मति वाले , इंद्र सुत , जयंत ने देवी सीता से अभद्रता करने का प्रयास किया ! यह शिला साक्षी है उस घटना की , जिसमें भगवान् राम ने , नारी से अभद्रता करने वाले , इंद्रपुत्र को बलशाली और राजपुरुष के मद में चूर होने के कारण , किये गए अभद्रता का दंड , उसके एक नेत्र को फोड़ कर दिया ! यह एक ऐतिहासिक सीख थी , जिसमें कुदृष्टि का दंड , नेत्र हीनता ठहराई गयी !
इस स्थल से ऊपर है , मंदाकिनी का उद्गम छोर , ! स्थिर चित्त , वृद्ध जाताओं युक्त , ऊंचाइयों को छूता मंद गिरि पर्वत , और उससे प्रकट होती मंदाकिनी , वह प्राकृतिक स्थल है , जहां आकर मनुष्य स्वयं को भूल कर प्रकृतिस्थ हो जाता है ! इसी स्थान पर था , महर्षि अत्रि और सती अनुसुइया का आश्रम , जहां देवी अनुसुइया ने , देवी सीता को गृहस्थ जीवन के मूल मंत्र की दीक्षा दी थी ! यहां के दर्शन करके , स्त्रियां खुद को परम् सौभाग्यशाली मानती हैं ! वे सती अनुसुइया से अपने सफल गृहस्थ जीवन के निर्वाह की कामना करती हैं !
पुरुष एंकर-
यहां से जो पर्वत श्रेणियों का क्रम शुरू होता है वह उत्तर दिशा की और दूर तक फैला दिखता है ! यही विंध्याचल की श्रेणियां हैं , जिन पर एक से एक नयनाभिराम दृश्य युक्त , रमणीक स्थल हैं ! इसी पर्वत श्रेणियों के मध्य आता है , गुप्त गोदवरी का , आकर्षक स्थल ! चित्रकूट की और , दो गुफाओं के अंदर बह रही है गुप्त गोदावरी ! यहां क्रमशः तीन गुफाएं हैं , जिनके अंदर निरंतर जल प्रवाहित होता रहता है ! अंदर के स्थान बहुत रोमांचक हैं ! कहीं कहीं कमर बराबर पानी है , कहीं पर सुखी जमीन है ! कहते हैं , यह स्थान राम के मंत्रणा कक्ष थे , जहां वे विभिन्न स्थानों से आये ऋषियों के साथ , असुर संहारने के लिए चर्चाएं करते थे ! आज यहां बहुत से पर्यटक , प्रकृति निर्मित इन अनोखी गुफाओं को देखने आते हैं !
स्त्री एंकर - ,
चित्रकूट का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है कामद गिरी !लगभग पांच किलोमीटर के व्यास में फैला , करीब तीन सौ फ़ीट ऊंचा कामद गिरी अंडा कार है ! पर्वत का ऊपरी भाग चौरस है ! पर्वत पर आच्छादित गहन वन , पर्वत की शोभा दूनी कर देते हैं ! कामदगिरि , कामनाओं को पूर्ण करने वाला गिरी है ! इस गिरी पर राम ने निरंतर कई वर्षों तक निवास किया ! संभावना है की विभिन्न ऋतुओं में , प्राकृतिक अवरोधों के कारण , राम चित्रकूट के विभिन्न भागों में समय समय पर निवास करते रहे हों ! इसलिए सम्पूर्ण चित्रकूट ही एक पवित्र स्थल माना गया है !
मान्यता है की इस गिरी की परिक्रमा करने पर आस्थावानों की कामनाएं इस हद तक यह गिरी पूर्ण कर देता है की फिर कोई कामना बाकी नहीं बचती ! यह हिन्दू दर्शन का मंत्र है ! कामनाएं मनुष्यों में पाप वृत्ति की जनक होती हैं , ये अगर पूर्ण हो कर शेष बाकी ना बचें , तो मोक्ष का द्वार खुल जाता है ! कामद गिरी इस मार्ग का अधिष्ठाता है !
पुरुष एंकर -नंगे पाँव ,पांच किलोमीटर की परिक्रमा करना , एक कठिन कार्य है किन्तु आस्थावानों के लिए यह कोई कठिन नहीं ! सं १६८८ के बाद , बुंदेला राजा छत्रसाल ने यह क्षेत्र मुगलों से मुक्त करवाया था ! रानी चंद्र कुंवरि ने १७५२ में इस गिरी के चारों और पक्का मार्ग बनवाया !बाद में राजा अमानसिंघ के काल में इस गिरी के चारों और मठों तथा बावड़ियों का निर्माण हुआ ! कालांतर में कई राजवंशों द्वारा इस गिरी के चारों और अन्य कई बावड़ियां और धर्मशालाएं बनाई गयीं ! धीरे धीरे संतों और महंतों के मठ और अखाड़े भी यहां बन गए ! आज , परिक्रमा के दौरान बहुत से पुराने अवशेष देखने को मिलते हैं !
स्त्री एंकर -परिक्रमा के क्रम में एक स्थान मिलता है जिसे भरत मिलाप स्थल कहा जाता है ! जनश्रुति है की यह वह स्थल है , जहां , राम से भरत का प्रथम मिलन हुआ था जब भरत उन्हें मनाने चित्रकूट पहुंचे ! इस मिट्टी में , दो भाइयों के परम स्नेह की अविरल अश्रु धार समाई है , जो इस माटी को माथे से लगाने योग्य बनाती है ! यह वह स्थल है , जहां समय भी दो भाइयों के पवित्र मिलन को देख ठगा सा खड़ा रह गया था !
कामदगिरि से थोड़ी दूर , स्थित है भरत कूप ! यह वह स्थान है ,जहां भरत ने रात्रि विश्राम किया , और राम अभिषेक के लिए एकत्रित किया सात नदियों का जल , एक कूप में इस लिए दाल दिया क्यूंकि राम ने अयोध्या लौटना स्वीकार नहीं किया ! आज इस स्थल पर एक भरत मंदिर है और , एक पक्का कूप , जिसका जल बहुत मीठा है ! लोग यहां आकर कूप से निकले जल को मस्तक से लगाते हैं और भरत मंदिर में भरत के दर्शन करते हैं !
पुरुष एंकर - जहां राम हों , वहां उनके अनुयायी हनुमान का निवास ना हो , यह सम्भव नहीं ! चित्रकूट के सबसे ऊँचे गिरी पर बिराजे हनुमान , जैसे आज इस भूमि भाग की निरंतर पहरेदारी कर रहे हैं ! इस शिखर पर पहुँचने के लिए ३६० सीढ़ियां चढ़ाना पड़ता है ! शिखर पर पहुँचने के बाद पूरा चित्रकूट एक नज़र में दिखाई देता है ! इस कूट पर विराजे हनुमान की मूर्ती प्राकृतिक शिलाओं में अंकित है ! इस शिखर पर एक जल धार अविरल बहती है , इसलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं ! कथाओं के अनुसार , लंका में दग्ध हुई पूंछ की जलन मिटाने जब हनुमान जी ने राम से विनय की तो , राम ने उन्हें इस स्थान पर निवास करने को कहा , जहां उन्हें बहती हुई जलधार से शीतलता अनुभव हो ! हनुमान धारा इसलिए चित्रकूट का अभिन्न अंग है , जो हनुमान जी का विश्राम स्थल है !
स्त्री एंकर-आज का चित्रकूट सबके लिए है ! उनके लिए भी जो यहां आदिकालीन पवित्रधाम मान कर कामना पूर्ती के लिए आते हैं और उनके लिए भी जो सेवाभाव से यहां नए प्रतिमान गढ़ने अपना निवास बनाते हैं ! आज के युग के महर्षियों में नानाजी देशमुख का नाम श्रद्धा से लिया जाता है ! , वनवासियों के बीच रमे राम ने जो वनवासियों की सहायता , सुरक्षा , सेवा का संकल्प लिया था , उस परम्परा का निर्वहन आज यहां के कई सामाजिक और धार्मिक संस्थान कर रहे हैं ! , ,
पुरुष एंकर - महाराष्ट्र से आये , नाना जी देशमुख यहां के जन जीवन के लिए देवड्डोत बन कर उभरे ! दीन दयाल शोध संस्थान के अधिष्ठाता ने यहाँ देश का प्रथम ग्रामीण विश्विद्यालय स्थापित किया ! चित्र कूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के नाम से बनी इस यूनिवर्सिटी में आज विज्ञान , कृषि , इंजीनियरिंग तकनीक , ग्राम व्यवस्था , और शिक्षा के विषय पर स्नातक हो कर , कई युवा देश के विभिन्न जगहों पर समाज की सेवा कर रहे हैं ! नानाजी ने निशुल्क शिक्षा , समाज के उत्थान , कृषि स्वावलंबन , एवं शुद्ध पेयजल के मुद्दों पर , इस क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है !
यहां नेत्र चिकित्सा का , अत्यंत आधुनिक अस्पताल है , जहां नेत्रों का इलाज होता है ! इस चिकित्सालय में दूर दूर से लोग आते हैं ! देश की अत्यंत विश्वशनीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद पर ना सिर्फ यहां शोध हो रहे हैं , बल्कि कई अस्पताल भी हैं , जहां असाध्य रोगों का शर्तिया इलाज हो रहा है ! योग के यहां कई केंद्र है जो स्वस्थ जीवन जीने की कला प्रचारित कर रहे हैं ! यहां वृद्धाश्रम भी है , और नेत्रहीनों के आश्रम भी जो विभिन्न संस्थाएं चला रही हैं !
यद्यपि चित्रकूट पर्यावरण की दृष्टि से स्वच्छ है , किन्तु धीरे धीरे , प्रकृति से छेड़छाड़ होने के कारण , इसका , प्राकृतिक स्वरूप बदल रहा है ! आज यह राम के वनवासी जीवन का चित्रकूट ना हो कर , बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं , सुविधाओं , मनोरंजन , और धार्मिक अखाड़ों की भूमि बनता जा रहा है ! विंध्याचल की पर्वत श्रेणियों से छन कर निकली मंदाकिनी भी , अब प्रदूषण के थपेड़े झेलने लगी है !
राम तो रमने वाले व्यक्ति हैं ! उन्हें धार्मिक मठों में , आश्रमों में , राज प्रासादों में , बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं में ढूंढना मुश्किल है क्यूंकि वे त्याग की मूर्ती हैं , ! अयोध्या का वैभव त्याग कर जब उन्होंने वनवासियों का साथ दिया , तो वे अब विकास की चकाचौंध से आलोकित चित्रकूट में कब तक रामेंगें यह चिंतन का विषय है ! राम तो मिलेंगें , उन्ही ग्रामीणों के बीच में , उन वनवासियों के बीच में , उन वंचितों के बीच में जहां उन्हें शबरी के बेर खाने को मिलेंगें !
फिर भी अगर शुद्ध ह्रदय से उन्हें पुकारेंगे तो वे यहां चित्रकूट में भी , दिखाई दे जाएंगे , अपने अनुज , अपनी भार्या , के साथ , विचरण करते हुए ! जरूरत सिर्फ दृष्टि की है ,, और अगर उस दृष्टि के साथ आप चित्रकूट आयेंगें , तो एक बार ना सही , किन्तु बार बार आने पर , एक दिन वे मिल ही जाएंगे ! राम ने कहा था --
" निर्मल म,न जन सोइ मोहे पावा , मोहि कपट छल छिद्र ना भावा !! "
तो आइये चित्रकूट ,, क्यूंकि जब चित चेतेगा , मन शुद्ध होगा , तो राम आपके ह्रदय में विराज जाएंगे !
--- आलेख सभाजीत
अयोध्या के राजकुमार , युग पुरुष राम के परिवेश में ढलने वाले तपस्वी राम की तपस्या का गवाह है ,,चित्रकूट ! मत्गयेन्द्र मंदिर से लेकर , मंदाकिनी के विभिन्न घाटों पर , कामद गिरी के शिखर पर , गुप्त गोदावरी की गहन कंदराओं में , गृहस्थ जीवन के आदर्श , सती अनुसुइया के पवित्र आश्रम पर , भार्या सीता के के साथ , रमणीक स्फटिक शिला पर , एकांत वास करते राम के पद चिन्ह , यहां आने वाले हर रामभक्त के लिए , मनोकामनाओं के पूरक हैं ! किन्तु राम किसी विशेष भूमिभाग , किसी विशेष विचारधारा के परिचायक नहीं है ! वे तो गरीब केवट के हठ को सहजता से स्वीकारने वाले , आदिवासी निषाद राज के अभिन्न मित्र , ज्ञानी तपस्वियों के आदर्श , शबरी के झूठे बेर प्रेम पूर्वक खाने वाले , जलचर , नभचर , , गरुड़ , काकभुशण्ड , जटायु , सम्पत , के आराध्य , किष्किंधा के वानरों के ह्रिदय सम्राट , रावण और विशाल सागर के अभिमान का हनन करने वाले , वे महापुरुष हैं , जिनकी कीर्ति , भारत में ही नहीं , विश्व के अनेक देशों में आज भी सूर्य की तरह दमक रही है !
राम कथाएं , नेपाल , श्रीलंका , और वर्मा देश की प्राणवायु हैं !येडागास्कर द्वीप से ले कर , आस्ट्रेलिया तक , राम की यश पताका आज भी फहरा रही हैं !मलेशिया , थाईलैंड , कम्बोडिया , जावा , सुमात्रा , बाली द्वीप , में राम के जीवन प्रसंग आज भी जन जन में चर्चित हैं ! वहां के भू भाग में , राम के युग की , आर्य संस्कृति के अवशेष आज भी विदवमान हैं !यहाँ तक की , फिलीपींस , चीन , जापान , और प्राचीन अमेरिका में भी राम की छाप आज भी देखने को मिलती है ! पेरू के राजा खुद को सूर्यवंशी ही नहीं , कौशल्या सुत राम के वंशज मानते हैं !
विश्वव्यापी राम के इस विराट स्वरूप को लोगों के ह्रदय में स्थापित करने के लिए , आधुनिक महर्षि , नानाजी देशमुख ने चित्रकूट की भूमि सर्वथा उपयुक्त माना ! चित्रकूट आने वाले सभी राम भक्तों , साधकों , पर्यटकों , और भारतीय दर्शन के शोधकर्ताओं को राम के उस विश्व्यापी विराट छवि के दर्शन होते हैं , , नानाजी देश मुख द्वारा स्थापित किये गए रामदर्शन मंदिर में ! इस भव्य स्थान पर , राम से साक्षात्कार होता है , दीर्धाओं में उत्कीर्ण , राम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के चित्रण से , जो बड़े यत्न से , विभिन्न देशों की , विभिन्न सांस्कृतिक शैलियों में उत्कीर्ण की गयी हैं ! अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्रयेष्ठि यज्ञ से ले कर , वशिष्ठ और विश्वामित्र के सान्निध्य में , धनुर्धर राम की श्रष्टि के चित्रों के साथ , सीता स्वयंबर , राम वनवास ,केवट संवाद ,निषाद मित्रता , सीताहरण , जतायुवध , हनुमान मिलन , बाली वध , अशोकवाटिका , रामरावण युद्ध और राम के राजतिलक की गाथा विशिष्ट शैलियों , और उत्कृष्ट कला के साथ उकेरी गईं है , जो विश्व के हर देश में बसे राम से से साक्षात करवाती है , और चित्रकूट पर्यटन पर आया हर व्यक्ति , इस वीथिका से निकल कर , राम से एकात्म हो कर , राम मय हो जाता है ।
राम यदि चित्रकूट न आये होते तो वे प्रकृति की उस अलौकिक शक्ति , उसकी ऊर्जा , और अमोघ औषधियों से परिचित न हुए होते , जो प्राकृतिक कन्द मूल , वनस्पतियों , और प्रकृति के नियमों में समाहित हैं । इसी प्राकृतिक शक्तियों को संचित कर , वे उस बल के स्वामी बने , जिससे निशाचरों का विनाश हुआ , और नाभि कुंड में अमृत सँजोये , रावण का विनाश भी सहजता पूर्वक हो सका । भारत के उस प्राकृतिक ज्ञान , ऊर्जा , औषधियों की जनक , आयुर्वेद की उस महाशक्ति की, विभिन्न जड़ी बूटियों को पुनः युवाओं से जोड़ने , उन्हें शिक्षित करने हेतु , औषधियों की खेती का कार्य आज , नानाजी देशमुख के प्रयत्नों से साकार हो गया है । आज के चित्रकूट में आधुनिक शिक्षा के साथ , विलुप्त होते पुरातन ज्ञान विज्ञान को भी संरक्षित करने का काम , नानाजी देशमुख द्वारा स्थापित संस्था द्वारा अबाध गति से किया जा रहा है ।
आज का चित्रकूट , सिर्फ आस्था , से शीश नवाने का तीर्थस्थल ही नहीं है , बल्कि भारतीय परंपराओं , सेवा , शिक्षा ,और संस्कृति का अभिनव केंद्र है । कहना न होगा कि आस्था का चित्रकूट अगर राम पर केंद्रित है तो सांस्कृतिक ज्ञान का चित्रकूट , युगपुरुष नानाजी देशमुख पर , जिन्होंने तत्व सार से , राम को चित्रकूट के जनजीवन से संजो दिया ।
--- सभाजीत
चित्रकूट
( मार्ग पर गेरुआ वस्त्र पहने साधू , पोटली बांधे गृहस्थ पुरुष , स्त्रियां चली जा रही हैं ,, मार्ग दुर्गम , घाटी वाला है ,, कैमरा आकाश से नीचे उतरता हुआ दूर से जाते हुए इन समूहों के देखता है ,, उनके पैरों के कट्स , गठरी के कट्स , दिखाते हैं नेपथ्य से आवाज़ आती है --
अब चित चेत चित्रकूटहिं चलु
कोपित कलि ,लोपित मंगल मगु , विल्स बढ़त मोह माया मलु ,
भूमि विलोकु राम पद अंकित , वन विलोकु रघुवर बिहार थलु ,
शैल संग , भव भंग , हेतु लखु , दलन कपट पाखंड दंत दलु ,,
तभी उनके गुजरने पर एक दिशा से एक पुरुष एंकर आगे आता है )
पुरुष एंकर -तुलसीदास का यह भजन , भजन नहीं , बल्कि एक अनुभूति है ! वह अनुभूति , जिसे एक संत ने आत्म सार की , वह अनुभूति जिसे मुगलों के कटटर शहंशाह , औरंगजेब ने भी महसूस की , वह अनुभूति जिसकी चाह में आज ग्रामीण जन अपने घरबार त्याग कर , यहां आकर समय व्यतीत करते हैं ,, वह अनुभूति अगर कहीं उपलब्ध है तो उस स्थान का नाम है चित्रकूट !
महिला एंकर - चित्रकूट ,,!
जहां आदिकाल से , प्रकृति वात्सलयमयी माँ की तरह , मनुष्य को अमृत बांटने को आतुर है !जहां मानव के उज्ज्वलतम चरित्र की बानगी राम कथाओं के रूप में जन जन में व्याप्त है ! जहां सरल हृदय व पवित्र विचारों की मंदाकिनी , जन समूहों के रूप में उमड़ कर , चित्ताकर्षक पर्वतों के बीच , सलिला की तरह समा जाती है !
पुरुष एंकर-
चित्रकूट
जो अनादि काल से विभिन्न सभ्यताओं के मिलन का साक्षी रहा ! जिसने राजनीति को नए आयाम दिए ! जहां सत्ता ने त्याग को नमन किया ! जहां गृहस्थ जीवन के दर्शन को पुण्य दिशा मिली , जहां आत्मिक चिंतन के , ज्ञान का अविरल शोध हुआ ! वही चित्रकूट !
विंध्यांचल श्रेणियों की छितराई पर्वतमालाओं की श्रेणियों के बीच घिरा , भूमि का रमणीक भाग , जिसके चारों और खड़े पर्वत कूट , मानो पहरेदार बन कर इस भूमि भाग की रक्षा कर रहे हैं , जहां राम ने अपने वनवास के तरह साल आदिवासियों और वंचितों के मध्य रह कर व्यतीत किये ! जिन के शिखर पर बैठ कर , कर्म योगी लक्ष्मण ने , अपने बड़े भाई की रक्षा के दायित्व को एक सिपाही की तरह निभाया ! जहां रघुकुल की एक रानी ने , अपने पति धर्म निबाहने के लिए , सुखों का त्याग करके पर्ण कुटी में वास किया ! वही चित्रकूट , आज भारत के उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश के संधि द्वार पर , अवरिल बहती मंदाकिनी के तट पर उत्कीर्ण , उन पवित्र पृष्ठों को पलटता हुआ दिखता है ,, जो जन जन के हृदय पृष्ठों पर , आदर्श बन कर अंकित हो चुके हैं !
चित्रकूट आज आध्यात्म , आस्था , हिन्दूदर्शन , पर्यावरण , प्रकृति सौन्दर्य , व पर्यटन का केंद्र बना हुआ है ! यह सामाजिक चिंतन के महर्षि , भारत रत्न नानाजी देशमुख , के आदर्श ग्राम के स्वप्न की मूर्ती है ! यह विद्या का गढ़ है ! सेवा का केंद्र है ! आध्यात्म और चिंतन की तपोभूमि है !
महिला एंकर -
इस तपोभूमि पर पहुँचने के लिए , मध्यप्रदेश के सतना नगर से एक उन्नत सड़क मार्ग उपलब्ध है जहां सतना से लगातार कई बसें दिन भर यहां श्रद्धालुओं को ले कर आती हैं ! इस सड़क मार्ग से , अपने वाहन से या टेक्सी से , आसानी से चित्रकूट पहुंचा जा सकता है ! दूसरी और , प्रयागराज से झांसी की और जाने वाले रेल मार्ग पर बने , कर्वी चित्रकूट स्टेशन पर उत्तर कर भी यहां आसानी से आया जा सकता है ! उत्तरप्रदेश के नगर , बांदा से , अथवा प्रयागराज से भी एक उन्नत राजमार्ग , इस स्थान तक पहुँचने के लिए उपलब्ध है !
पुरुष एंकर -
चित्रकूट का तोरणद्वार है , मंदाकिनी नदी पर बना ,रामघाट , जो उत्तर प्रदेश की भू भूमि पर है ! यहां मंदाकिनी नदी अपनी गहन धारा के साथ शांत भाव से बहती है ! रामघाट वह घाट है , जहां रामचरित मानस के रचियता , गोस्वामी तुलसी दास जी को राम के दर्शन हुए थे ! तुलसी दास का जन्म बांदा जिले के राजापुर गावं का माना जाता है ! कहते हैं की जन्म के समय से ही इनके माता पिता ने इनका त्याग , किन्ही कारणों से कर दिया था ! इनका लालन पालन संत नरहरिदास के संरक्षण में हुआ ! युवा होने पर , पत्नी पर हुई आसक्ति के कारण , इन्हे पत्नी ने के कटु वचन सुनने पड़े ! पत्नी ने कहा , जितना तुम मुझ पर आसक्त हो , उसका एक अंश भी तुम्हारी अगर राम पर आसक्ति होती , तो तुम्हारा जीवन सुफल हो जाता ! पत्नी के वचनो से व्यथित हो कर इन्होने राम भक्ति का मार्ग अपना लिया ! स्वतन्त्र घूमते हुए इन्होने काशी में विद्यार्जन किया और राम कथा को जन भाषा में लिखने का निश्चय किया !
स्त्री एंकर - ( घाट पर घूमते हुए विभिन्न जगहों पर )
वह काल हिन्दू धर्म के संक्रमण का काल था ! उस समय भारत में मुगलों का शाशन था , और तेजी से धर्म परिवर्तन हो रहा था ! सामाजिक मूल्य , स्वार्थ के आगे तिरोहित हो रहे थे ! आपसी रिश्ते , वैमनस्य के जाल में फंसते जा रहे थे ! पारिवारिक संबंध , टूट रहे थे ! लोग ज्ञान को धर्म पुस्तकों में बाँध कर तिजोरियों में सहेज रहे थे ! नीतियां , अनीति के सामने सर झुका रही थी ! तब युवा तुलसी दास ने राम कथा को , सामाजिक हित में , चारों और फैलाने का निश्चय किया ! लेकिन राम कथा लिखने के लिए , उन्हें जरूरी लगा की पहले रामभक्त हनुमान की शरण में जाया जाए ! हनुमान जी की खोज में वे यहां वहां भटकने लगे , तभी उनके गुरु ने बताया की , हनुमान जी , काशी में एक राम कथा के दौरान श्रोता बन कर आते हैं ! वे श्रोताओं के अंत में , एक दीन हीन पुरुष बन कर बैठते हैं , तुम वहां जा कर उनके पैर पकड़ लो , वे तुम्हे राम के दर्शन करवा देंगे ,,और तब तुम्हारी कृति आसानी से पूर्ण हो जाएगी !
युवा तुलसी दास ने वैसा ही किया ! हनुमान जी ने उन्हें , चित्रकूट जा कर वास करने की सलाह दी ! उन्होंने कहा की वहां राम , मंदाकिनी घाट पर आयेंगें , तुम्हे आशीष देंगें , उस वक्त मैं भी वहां , शुक वेश में एक पेड़ पर रह कर इंगित करूंगा !
राम ने चित्रकूट आकर , यहीं रामचरित मानस लिखा ! राम लक्ष्मण , दो बालकों के स्वरूप में रोज आकर उनसे मिलते रहे , लेकिन तुलसी दास उन्हें पहचान नहीं पाए ! अंत में शुक वेश में हनुमान जी ने उन्हें इंगित किया की जिन बालकों के मस्तक पर तुम रोज चंदन लगाते हो , वे ही राम और लक्ष्मण हैं ! तुलसी दास जी के अनुनय पर तब राम ने उन्हें इसी मंदाकिनी घाट पर साक्षात दर्शन दिए !
रामघाट वह स्थान है जहां राम ने अपनी पहली पर्ण कुटीर बनाई थी ! यह वह स्थान है जहां पर इस क्षेत्र के प्रजापति , मत्गयेन्द्र विराजमान हैं !
पुरुष एंकर - ( मत्गयेन्द्र मंदिर में खड़े हो कर )
मत्गयेन्द्र अर्थात भगवान् शिव ! उनका विशाल मंदिर आज इस रामघाट पर स्थापित हैं ! मत्गयेन्द्र , अर्थात शिव इस क्षेत्र के प्रजापति थे ! यह स्थान उस समय द्रविणो , तथा आदिवासियों की कार्यस्थली था , जिनके आराध्य शिव ही थे इसलिए उन्हें यहां का प्रजापति कहा गया ! ऋषियों से मार्गदर्शन ले , जब राम यहां जनजातियों के बीच रमने आये , तो उन्होंने सर्व प्रथम यहां के प्रजापति , शिव का पूजन किया और उनसे इस क्षेत्र में रहने की अनुमति माँगी ! मत्गयेन्द्र मंदिर में आज भी उस उस पूजन की व्याख्या , यहां के पुजारी करते हैं !
राज वैभव में पले , एक निर्वासित राजकुमार को , यहां की जनजाति ने अपने सर आँखों पर बैठाया ! और राम उनके सुख दुःख , उनकी जीवन शैली के बीच ऐसे रमे , की वे यहां के बिना राजमुकुट के उनके हृदय पर राज करने वाले राजा बन गए ! कहते हैं की राम के अतिरिक्त , सतयुग में राजा नल , द्वापर में पांडवों , ने भी अपना निर्वासन काल यहीं व्यतीत किया !
कालांतर में , गोस्वामी तुलसी दास के अतिरिक्त , रहीम और कवी भूषण की काव्य साधना स्थली भी यही भूमि रही !
स्त्री एंकर -( विभिन्न स्थानों पर खड़े हो कर )
मत गयेन्द्र मंदिर के नीचे ही है , वह स्थली जहां राम की पर्ण कुटीर थी ! आज भक्तों ने यहां एक पक्का मंदिर बना दिया है , जो आस्थावानों के लिए तीर्थ स्थल है ! पर्ण कुटीर स्थल के स्थल के निकट ही है , राम के जीवन यापन के स्मृति चिन्ह - यञवेदी , और राघव प्रयाग ! राघव प्रयाग एक संगम है जहां तीन नदियाँ , मंदाकिनी , पयस्वनी और गायत्री , मिलती हैं !कहते हैं की गायत्री अदृश्य है व संक्रांति के अवसर पर ही उसकी श्वेत धारा दिखती है ! इससे संगम पर भगवान् राम ने अपने पिता महराज दशरथ का पिंडदान किया था !
पर्ण कुटी से थोड़ा हट कर है भारत मंदिर ! जहां राम को मनाने के लिए , अयोध्या से आयी प्रजा के साथ भरत ने राज सभा बैठाली थी ! यह भारत की वह पहली राज सभा थी , जिसने महलों के अंदर पनपे कुचक्रों , के विरोध में , प्रजातांत्रिक मूल्यों को वरीयता दी थी ! यह वह सभा थी , जिसमें , एक भाई ने रोते हुए , अपने बड़े भाई से मनुहार की थी , की वह वापिस अयोध्या लौट चले ! यह वही सभा थी , जिसमें सार्वजनिक रूप से , स्वार्थों से भटकी रानी कैकेयी ने बिलखते हुए पश्चाताप किया था !
रामघाट इसलिए आज , आस्थावानों की आस्था का केंद्र है ,,! यहां आ कर लोग उन खोये हुए मूल्यों को तलाशते हैं , जो किसी युग में आदर्श थे !
रामघाट पर सजी रंग बिरंगी नावें , पर्यटकों को , मंदाकिनी नदी के दर्शन करवाती हैं ! घाट पर लहरों के बीच उतराती यह नौकाएं आज के , काश्मीर के शिकारों की तरह रमणीक लगती हैं ! पर्यटक इस सवार हो कर , रामघाट से अनुसुइया घाट तक जल मार्ग से यात्रा करते हैं ! रामघाट वह स्थान है , जहां से मंदाकिनी का छोर पकड़ कर प्रकृति के रमणीय दृश्यों को आत्मसात किया जा सकता है !
पुरुष एंकर - ( नाव में बैठे हुए नदी में )
मंदाकिनी के जल मार्ग से ऊपर की और चलने पर , धीरे धीरे पक्के घाट विलीन हो जाते हैं और प्रकृति का नैसर्गिक स्वरूप उभरने लगता है ! मनुष्य निर्मित कोलाहल , भवनों के आँखों से ओझल होते ही , दूर हो , हो जाता है और मंदाकिनी के दोनों तटों पर दूर तक बिखरे बृक्षों की पंक्तियाँ , पक्षियों का कलरव , मन मोहने लगता है ! दूर मंदाकिनी के उद्गम छोर पर समाधिस्थ , चित्रित पर्वत कूट अपने प्रतिबिम्ब को मंदाकिनी के जल में निहारते नजर आते हैं ! मनुष्य अपनी बनाई , कांक्रीट की दुनिया से हट कर , प्रकृति की दुनिया में कदम रखते हुए , आल्हादित हो सुख का अनुभव करने लगता है
रामघाट से थोड़ा ऊपर चलने पर एक और वन के तट ,और दूसरी और आश्रमों के कृतिम घाट निरंतर गुजरते हुए दीखते हैं ! इस जल यात्रा में पहले आता है प्रमोद वन ! यह एक पुराना , राजशाही युग का , कुञ्ज वन है ! यहां पर स्थापित , वृद्धाश्रम , , पौराणिक काल की उस प्रथा का द्योतक है , जब चतुर्थ वय में व्यक्ति , दुनिया के माया मोह , सुख वैभव को त्याग कर ,ईश्वर आराधना के लिए वानप्रस्थ ग्रहण करता था ! इस स्थान पर , मंदिरों का नव निर्माण किया गया है जो दर्शनीय है !
यहां मंदाकिनी की धारा फ़ैल गयी है व उसकी गहराई इतनी कम है की छोटे बच्चे धारा के बीच बैठ कर ही स्नान करते , किलोल करते नज़र आते हैं !
महिला एंकर -
प्रमोदवन से ऊपर आने पर , मंदाकिनी की गहराई , और गति क्षीण हो जाती है ! यहां स्थित है , जानकी कुंड ! कहते हैं यहां जनकसुता स्नान करती थी ! पूर्व की और जहां आज भी वन सुषमा है , वहीं पश्चिमी तट पर बने आश्रमों के विभिन्न भवन , प्रकृति से छेड़ छाड़ की गवाही देते नज़र आते हैं ! जानकी कुंड से थोड़ा ऊपर की और आते ही दिखती है स्फटिक शिला !
इस स्फटिक शिला का वर्णन रामचरित मानस में उपलब्ध है जहां पर भगवान् राम ने , देवी सीता का स्वयं श्रृंगार ,किया और जहां पर विचलित मति वाले , इंद्र सुत , जयंत ने देवी सीता से अभद्रता करने का प्रयास किया ! यह शिला साक्षी है उस घटना की , जिसमें भगवान् राम ने , नारी से अभद्रता करने वाले , इंद्रपुत्र को बलशाली और राजपुरुष के मद में चूर होने के कारण , किये गए अभद्रता का दंड , उसके एक नेत्र को फोड़ कर दिया ! यह एक ऐतिहासिक सीख थी , जिसमें कुदृष्टि का दंड , नेत्र हीनता ठहराई गयी !
इस स्थल से ऊपर है , मंदाकिनी का उद्गम छोर , ! स्थिर चित्त , वृद्ध जाताओं युक्त , ऊंचाइयों को छूता मंद गिरि पर्वत , और उससे प्रकट होती मंदाकिनी , वह प्राकृतिक स्थल है , जहां आकर मनुष्य स्वयं को भूल कर प्रकृतिस्थ हो जाता है ! इसी स्थान पर था , महर्षि अत्रि और सती अनुसुइया का आश्रम , जहां देवी अनुसुइया ने , देवी सीता को गृहस्थ जीवन के मूल मंत्र की दीक्षा दी थी ! यहां के दर्शन करके , स्त्रियां खुद को परम् सौभाग्यशाली मानती हैं ! वे सती अनुसुइया से अपने सफल गृहस्थ जीवन के निर्वाह की कामना करती हैं !
पुरुष एंकर-
यहां से जो पर्वत श्रेणियों का क्रम शुरू होता है वह उत्तर दिशा की और दूर तक फैला दिखता है ! यही विंध्याचल की श्रेणियां हैं , जिन पर एक से एक नयनाभिराम दृश्य युक्त , रमणीक स्थल हैं ! इसी पर्वत श्रेणियों के मध्य आता है , गुप्त गोदवरी का , आकर्षक स्थल ! चित्रकूट की और , दो गुफाओं के अंदर बह रही है गुप्त गोदावरी ! यहां क्रमशः तीन गुफाएं हैं , जिनके अंदर निरंतर जल प्रवाहित होता रहता है ! अंदर के स्थान बहुत रोमांचक हैं ! कहीं कहीं कमर बराबर पानी है , कहीं पर सुखी जमीन है ! कहते हैं , यह स्थान राम के मंत्रणा कक्ष थे , जहां वे विभिन्न स्थानों से आये ऋषियों के साथ , असुर संहारने के लिए चर्चाएं करते थे ! आज यहां बहुत से पर्यटक , प्रकृति निर्मित इन अनोखी गुफाओं को देखने आते हैं !
स्त्री एंकर - ,
चित्रकूट का सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है कामद गिरी !लगभग पांच किलोमीटर के व्यास में फैला , करीब तीन सौ फ़ीट ऊंचा कामद गिरी अंडा कार है ! पर्वत का ऊपरी भाग चौरस है ! पर्वत पर आच्छादित गहन वन , पर्वत की शोभा दूनी कर देते हैं ! कामदगिरि , कामनाओं को पूर्ण करने वाला गिरी है ! इस गिरी पर राम ने निरंतर कई वर्षों तक निवास किया ! संभावना है की विभिन्न ऋतुओं में , प्राकृतिक अवरोधों के कारण , राम चित्रकूट के विभिन्न भागों में समय समय पर निवास करते रहे हों ! इसलिए सम्पूर्ण चित्रकूट ही एक पवित्र स्थल माना गया है !
मान्यता है की इस गिरी की परिक्रमा करने पर आस्थावानों की कामनाएं इस हद तक यह गिरी पूर्ण कर देता है की फिर कोई कामना बाकी नहीं बचती ! यह हिन्दू दर्शन का मंत्र है ! कामनाएं मनुष्यों में पाप वृत्ति की जनक होती हैं , ये अगर पूर्ण हो कर शेष बाकी ना बचें , तो मोक्ष का द्वार खुल जाता है ! कामद गिरी इस मार्ग का अधिष्ठाता है !
पुरुष एंकर -नंगे पाँव ,पांच किलोमीटर की परिक्रमा करना , एक कठिन कार्य है किन्तु आस्थावानों के लिए यह कोई कठिन नहीं ! सं १६८८ के बाद , बुंदेला राजा छत्रसाल ने यह क्षेत्र मुगलों से मुक्त करवाया था ! रानी चंद्र कुंवरि ने १७५२ में इस गिरी के चारों और पक्का मार्ग बनवाया !बाद में राजा अमानसिंघ के काल में इस गिरी के चारों और मठों तथा बावड़ियों का निर्माण हुआ ! कालांतर में कई राजवंशों द्वारा इस गिरी के चारों और अन्य कई बावड़ियां और धर्मशालाएं बनाई गयीं ! धीरे धीरे संतों और महंतों के मठ और अखाड़े भी यहां बन गए ! आज , परिक्रमा के दौरान बहुत से पुराने अवशेष देखने को मिलते हैं !
स्त्री एंकर -परिक्रमा के क्रम में एक स्थान मिलता है जिसे भरत मिलाप स्थल कहा जाता है ! जनश्रुति है की यह वह स्थल है , जहां , राम से भरत का प्रथम मिलन हुआ था जब भरत उन्हें मनाने चित्रकूट पहुंचे ! इस मिट्टी में , दो भाइयों के परम स्नेह की अविरल अश्रु धार समाई है , जो इस माटी को माथे से लगाने योग्य बनाती है ! यह वह स्थल है , जहां समय भी दो भाइयों के पवित्र मिलन को देख ठगा सा खड़ा रह गया था !
कामदगिरि से थोड़ी दूर , स्थित है भरत कूप ! यह वह स्थान है ,जहां भरत ने रात्रि विश्राम किया , और राम अभिषेक के लिए एकत्रित किया सात नदियों का जल , एक कूप में इस लिए दाल दिया क्यूंकि राम ने अयोध्या लौटना स्वीकार नहीं किया ! आज इस स्थल पर एक भरत मंदिर है और , एक पक्का कूप , जिसका जल बहुत मीठा है ! लोग यहां आकर कूप से निकले जल को मस्तक से लगाते हैं और भरत मंदिर में भरत के दर्शन करते हैं !
पुरुष एंकर - जहां राम हों , वहां उनके अनुयायी हनुमान का निवास ना हो , यह सम्भव नहीं ! चित्रकूट के सबसे ऊँचे गिरी पर बिराजे हनुमान , जैसे आज इस भूमि भाग की निरंतर पहरेदारी कर रहे हैं ! इस शिखर पर पहुँचने के लिए ३६० सीढ़ियां चढ़ाना पड़ता है ! शिखर पर पहुँचने के बाद पूरा चित्रकूट एक नज़र में दिखाई देता है ! इस कूट पर विराजे हनुमान की मूर्ती प्राकृतिक शिलाओं में अंकित है ! इस शिखर पर एक जल धार अविरल बहती है , इसलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं ! कथाओं के अनुसार , लंका में दग्ध हुई पूंछ की जलन मिटाने जब हनुमान जी ने राम से विनय की तो , राम ने उन्हें इस स्थान पर निवास करने को कहा , जहां उन्हें बहती हुई जलधार से शीतलता अनुभव हो ! हनुमान धारा इसलिए चित्रकूट का अभिन्न अंग है , जो हनुमान जी का विश्राम स्थल है !
स्त्री एंकर-आज का चित्रकूट सबके लिए है ! उनके लिए भी जो यहां आदिकालीन पवित्रधाम मान कर कामना पूर्ती के लिए आते हैं और उनके लिए भी जो सेवाभाव से यहां नए प्रतिमान गढ़ने अपना निवास बनाते हैं ! आज के युग के महर्षियों में नानाजी देशमुख का नाम श्रद्धा से लिया जाता है ! , वनवासियों के बीच रमे राम ने जो वनवासियों की सहायता , सुरक्षा , सेवा का संकल्प लिया था , उस परम्परा का निर्वहन आज यहां के कई सामाजिक और धार्मिक संस्थान कर रहे हैं ! , ,
पुरुष एंकर - महाराष्ट्र से आये , नाना जी देशमुख यहां के जन जीवन के लिए देवड्डोत बन कर उभरे ! दीन दयाल शोध संस्थान के अधिष्ठाता ने यहाँ देश का प्रथम ग्रामीण विश्विद्यालय स्थापित किया ! चित्र कूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के नाम से बनी इस यूनिवर्सिटी में आज विज्ञान , कृषि , इंजीनियरिंग तकनीक , ग्राम व्यवस्था , और शिक्षा के विषय पर स्नातक हो कर , कई युवा देश के विभिन्न जगहों पर समाज की सेवा कर रहे हैं ! नानाजी ने निशुल्क शिक्षा , समाज के उत्थान , कृषि स्वावलंबन , एवं शुद्ध पेयजल के मुद्दों पर , इस क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है !
यहां नेत्र चिकित्सा का , अत्यंत आधुनिक अस्पताल है , जहां नेत्रों का इलाज होता है ! इस चिकित्सालय में दूर दूर से लोग आते हैं ! देश की अत्यंत विश्वशनीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद पर ना सिर्फ यहां शोध हो रहे हैं , बल्कि कई अस्पताल भी हैं , जहां असाध्य रोगों का शर्तिया इलाज हो रहा है ! योग के यहां कई केंद्र है जो स्वस्थ जीवन जीने की कला प्रचारित कर रहे हैं ! यहां वृद्धाश्रम भी है , और नेत्रहीनों के आश्रम भी जो विभिन्न संस्थाएं चला रही हैं !
यद्यपि चित्रकूट पर्यावरण की दृष्टि से स्वच्छ है , किन्तु धीरे धीरे , प्रकृति से छेड़छाड़ होने के कारण , इसका , प्राकृतिक स्वरूप बदल रहा है ! आज यह राम के वनवासी जीवन का चित्रकूट ना हो कर , बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं , सुविधाओं , मनोरंजन , और धार्मिक अखाड़ों की भूमि बनता जा रहा है ! विंध्याचल की पर्वत श्रेणियों से छन कर निकली मंदाकिनी भी , अब प्रदूषण के थपेड़े झेलने लगी है !
राम तो रमने वाले व्यक्ति हैं ! उन्हें धार्मिक मठों में , आश्रमों में , राज प्रासादों में , बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं में ढूंढना मुश्किल है क्यूंकि वे त्याग की मूर्ती हैं , ! अयोध्या का वैभव त्याग कर जब उन्होंने वनवासियों का साथ दिया , तो वे अब विकास की चकाचौंध से आलोकित चित्रकूट में कब तक रामेंगें यह चिंतन का विषय है ! राम तो मिलेंगें , उन्ही ग्रामीणों के बीच में , उन वनवासियों के बीच में , उन वंचितों के बीच में जहां उन्हें शबरी के बेर खाने को मिलेंगें !
फिर भी अगर शुद्ध ह्रदय से उन्हें पुकारेंगे तो वे यहां चित्रकूट में भी , दिखाई दे जाएंगे , अपने अनुज , अपनी भार्या , के साथ , विचरण करते हुए ! जरूरत सिर्फ दृष्टि की है ,, और अगर उस दृष्टि के साथ आप चित्रकूट आयेंगें , तो एक बार ना सही , किन्तु बार बार आने पर , एक दिन वे मिल ही जाएंगे ! राम ने कहा था --
" निर्मल म,न जन सोइ मोहे पावा , मोहि कपट छल छिद्र ना भावा !! "
तो आइये चित्रकूट ,, क्यूंकि जब चित चेतेगा , मन शुद्ध होगा , तो राम आपके ह्रदय में विराज जाएंगे !
--- आलेख सभाजीत
सोमवार, 18 नवंबर 2019
अयोध्या के राजकुमार , युग पुरुष राम के परिवेश में ढलने वाले तपस्वी राम की तपस्या का गवाह है ,,चित्रकूट ! मत्गयेन्द्र मंदिर से लेकर , मंदाकिनी के विभिन्न घाटों पर , कामद गिरी के शिखर पर , गुप्त गोदावरी की गहन कंदराओं में , गृहस्थ जीवन के आदर्श , सती अनुसुइया के पवित्र आश्रम पर , भार्या सीता के के साथ , रमणीक स्फटिक शिला पर , एकांत वास करते राम के पद चिन्ह , यहां आने वाले हर रामभक्त के लिए , मनोकामनाओं के पूरक हैं ! किन्तु राम किसी विशेष भूमिभाग , किसी विशेष विचारधारा के परिचायक नहीं है ! वे तो गरीब केवट के हठ को सहजता से स्वीकारने वाले , आदिवासी निषाद राज के अभिन्न मित्र , ज्ञानी तपस्वियों के आदर्श , शबरी के झूठे बेर प्रेम पूर्वक खाने वाले , जलचर , नभचर , , गरुड़ , काकभुशण्ड , जटायु , सम्पत , के आराध्य , किष्किंधा के वानरों के ह्रिदय सम्राट , रावण और विशाल सागर के अभिमान का हनन करने वाले , वे महापुरुष हैं , जिनकी कीर्ति , भारत में ही नहीं , विश्व के अनेक देशों में आज भी सूर्य की तरह दमक रही है !
राम कथाएं , नेपाल , श्रीलंका , और वर्मा देश की प्राणवायु हैं !येडागास्कर द्वीप से ले कर , आस्ट्रेलिया तक , राम की यश पताका आज भी फहरा रही हैं !मलेशिया , थाईलैंड , कम्बोडिया , जावा , सुमात्रा , बाली द्वीप , में राम के जीवन प्रसंग आज भी जन जन में चर्चित हैं ! वहां के भू भाग में , राम के युग की , आर्य संस्कृति के अवशेष आज भी विदवमान हैं !यहाँ तक की , फिलीपींस , चीन , जापान , और प्राचीन अमेरिका में भी राम की छाप आज भी देखने को मिलती है ! पेरू के राजा खुद को सूर्यवंशी ही नहीं , कौशल्या सुत राम के वंशज मानते हैं !
विश्वव्यापी राम के इस विराट स्वरूप को लोगों के ह्रदय में स्थापित करने के लिए , आधुनिक महर्षि , नानाजी देशमुख ने चित्रकूट की भूमि सर्वथा उपयुक्त माना ! चित्रकूट आने वाले सभी राम भक्तों , साधकों , पर्यटकों , और भारतीय दर्शन के शोधकर्ताओं को राम के उस विश्व्यापी विराट छवि के दर्शन होते हैं , , नानाजी देश मुख द्वारा स्थापित किये गए रामदर्शन मंदिर में ! इस भव्य स्थान पर , राम से साक्षात्कार होता है , दीर्धाओं में उत्कीर्ण , राम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के चित्रण से , जो बड़े यत्न से , विभिन्न देशों की , विभिन्न सांस्कृतिक शैलियों में उत्कीर्ण की गयी हैं ! अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्रयेष्ठि यज्ञ से ले कर , वशिष्ठ और विश्वामित्र के सान्निध्य में , धनुर्धर राम की श्रष्टि के चित्रों के साथ , सीता स्वयंबर , राम वनवास ,केवट संवाद ,निषाद मित्रता , सीताहरण , जतायुवध , हनुमान मिलन , बाली वध , अशोकवाटिका , रामरावण युद्ध और राम के राजतिलक की गाथा विशिष्ट शैलियों , और उत्कृष्ट कला के साथ उकेरी गईं है , जो विश्व के हर देश में बसे राम से से साक्षात करवाती है , और चित्रकूट पर्यटन पर आया हर व्यक्ति , इस वीथिका से निकल कर , राम से एकात्म हो कर , राम मय हो जाता है ।
राम यदि चित्रकूट न आये होते तो वे प्रकृति की उस अलौकिक शक्ति , उसकी ऊर्जा , और अमोघ औषधियों से परिचित न हुए होते , जो प्राकृतिक कन्द मूल , वनस्पतियों , और प्रकृति के नियमों में समाहित हैं । इसी प्राकृतिक शक्तियों को संचित कर , वे उस बल के स्वामी बने , जिससे निशाचरों का विनाश हुआ , और नाभि कुंड में अमृत सँजोये , रावण का विनाश भी सहजता पूर्वक हो सका । भारत के उस प्राकृतिक ज्ञान , ऊर्जा , औषधियों की जनक , आयुर्वेद की उस महाशक्ति की, विभिन्न जड़ी बूटियों को पुनः युवाओं से जोड़ने , उन्हें शिक्षित करने हेतु , औषधियों की खेती का कार्य आज , नानाजी देशमुख के प्रयत्नों से साकार हो गया है । आज के चित्रकूट में आधुनिक शिक्षा के साथ , विलुप्त होते पुरातन ज्ञान विज्ञान को भी संरक्षित करने का काम , नानाजी देशमुख द्वारा स्थापित संस्था द्वारा अबाध गति से किया जा रहा है ।
आज का चित्रकूट , सिर्फ आस्था , से शीश नवाने का तीर्थस्थल ही नहीं है , बल्कि भारतीय परंपराओं , सेवा , शिक्षा ,और संस्कृति का अभिनव केंद्र है । कहना न होगा कि आस्था का चित्रकूट अगर राम पर केंद्रित है तो सांस्कृतिक ज्ञान का चित्रकूट , युगपुरुष नानाजी देशमुख पर , जिन्होंने तत्व सार से , राम को चित्रकूट के जनजीवन से संजो दिया ।
--- सभाजीत
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