रविवार, 16 अक्तूबर 2011

विशवास

विश्वास

विश्वास

VISHVASH...<
भगवान ने ,
'भाग्य' के हाथों मे दी ,
दुधारी तलवार ..!
और मुझे दिए दो 'कोमल हाथ' ,
उम्र भर जूझने के लिए...!

दुधमुँही.. किलकारी '
और
आँखो में पहचान का भाव लिए
में बढ़ाता रहा हाथ ,
समझ कर तलवार को एक 'खिलौना' ..!!

बिना यह जाने कि ,
तलवार और मेरे हाथ कभी दोस्त हो ही नही सकते .!!

में तो हर हाथ हर अंगूठे हर उंगली को ,
पकड़ कर खींचता रहा अपनी ओर ,
डालता रह अपने मुँह मे ,
माँ के आँचल कि तरह..!!

तलवार क़ी धार से ..,
'दूध' क़ी 'अमृत बूँद' नही मिलती,
मिलता है 'रक्त '..,
यह नही मालूम था मेरी मासूम समझ को,

'रक्त' बहने के लिए ही होता है,,
कभी बहता है रगों के भीतर,
कभी उमड़ कर,निकल आता है ,
उद्दाम बरसाती नाले क़ी तरह,..,

'दूध' नही बहता रगों में ,
वह तो उमड़ता है , सिर्फ़ प्यार भरी किल्कारी पर,
मैं करता रहा किलोल ,किल्कारियाँ और किल्कारियाँ,,
उच्छालकर नन्हे हाथ,
माँगता रहा 'दूध' ,
तलवार क़ी नोक से ,

'विश्वाश' क़ी टकटकी ,
और तलवार क़ी धार में,
बँधी रही होड़.,,

क्योंकि में जानता था ,
एक ना एक दिन,
आएगा वह मोड़,

जब सभ्यता और प्यार में होगा गंठजोड़ ,

'शोर्य' क़ी प्रतीक ,तलवार तब,
'धरोहर' क़ी तरह,
प्यार से पूजी जाएगी,
होगा उसका अभिषेक, और वह 'दूध' से नहाएगी,

छिटक कर 'दूध' क़ी कुछ बूंदे , मेरे होठों तक आएँगी,
'माँ' क़ी तरह मुझे 'चूमकर' ,
मेरे 'विश्वाश' क़ी प्यास को बुझायँगी...,

__ सभाजीत शर्मा '

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