सोमवार, 4 जून 2012







कई बार ..,
 दर्पण में देखा करता हूँ ..,
की शक्ल ...,
बदसूरत तो नहीं हो गयी है ..?
दुनिया में दिखाने को ,
 नकली मुखौटों की ,
 मुझे भी जरुरत  तो नहीं हो गयी है ..??
हुआ जो दिल बेचैन ..,
 तो ' उतरी '  हुई  ' साइकिल की चैन ' की तरह ..,
जिंदगी फिर से चढ़ा कर ..,
 चल देता  हूँ  नयी पगडंडियों पर ...,
 ये सोच कर..,
 की आजकल के दर्पण , बाजारू दर्पण है ..,
 " प्रतिबिम्ब ' सही नहीं बनते ..!!


.......सभाजीत

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