शनिवार, 16 जून 2012

 "पिता...,"

      



अब
जब कोई नहीं है मुझसे बड़ा ..,
............तो तुम याद आते हो .., !!

वैसे सर पर आसमान ,

और पैरों की ज़मीन ही ,
शायद बोध है ,पिता  और माता  का ,
जो साथ रहते हैं , जन्म से मृत्यु तक .....,!
 वो कल भी थे ,
 और आज भी है मेरे साथ ..!!

जन्म तो था प्रकृति का खेल ,

जिसे होना ही था , मेरे लिए ,...सबके लिए ..,
मृत्यु ही होती है , सिर्फ खुद के लिए ,
की आँखें बंद ,
और सब कुछ अद्रश्य , ..!!

..तुम..!!,

 जब बंद करने लगे आँखें ..,
तो भरपूर नज़रों से देखा मुझे ..,
जैसे समेट कर खोद लेना चाहते थे मेरा अक्स ..,
 अपनी धुंधली आँखों के दर्पण में ..,   !

क्या ढूंढ़ रहे थे तुम मुझमें ..?

जो तुम में नहीं था ..??
 जबकि में तो वही था ,
 जो तुम थे ..!

जो में नहीं जान सका तब..,

 अब जान पाया हूँ ..,
की चुक रहे थे तुम.. तिल तिल ,
और सोंप रहे थे मुझे ,
 छोटे से बड़े होने  का नुस्खा ...!!

बड़ा होना कोई ' गर्व ' की बात नहीं ,

बड़ा होना नहीं है कोई  ' सम्मान ' का सिंहासन '  ..,
बड़ा होना नहीं है - 'आधिपत्य ' का पर्याय ..,
तुमसे ज्यादा भला  कौन जनता था इस सत्य को  उस वक्त ..?

बद्दप्पन के जिस बोझ से ,

 धीरे धीरे झुक जाता है सर ,
दोहरी हो जाती है कमर..,
कांपने लगते हैं पैर ,
क्योँ पहना रहे थे  मुझे वह मुकुट ,
सनह सनह  जर्जर होने के लिए ..??

मुझ से नज़र मिला कर ..,

क्योँ उडेला मुझ में यह ज़हर../
जबकि 'लघुता ' के अमृत से भींगा ,
 में ताक रहा था तुम्हे विवश होकर ..??

शायद ..,

टटोल रहे थे तुम ,
 मुझ में वह 'शिव' ..,
जिसे सोंप सको 'गरल'..,
जो कभी मरता नहीं ,
और जिसे धारण करना ..,
जरुरी है  शिव के लिए ..,
पीढ़ी दर पीढ़ी ..!!

चाहता , ना चाहता .., तो भी ..,

गरल तो धारण करना ही था
पहले तुम्हें ,
 और फिर मुझे ..,
जन्म दर जन्म ,
क्यूंकि हम और तुम ही तो थे ..,
जीवित ..,
धारण करने के लए उसे ..,
 शेष तो ज़हर ही था ,
 जो था 'अमर '
 सदा के लिए ..!!

--सभाजीत

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