बुधवार, 30 मई 2012


कितने मजबूत होते हैं दरवाजे..???

दीवारों के शिकंजों   में कसे  ,
दहलीज़ पर आजीवन , मूक होकर फंसे ...,
कितना मजबूत होते हैं दरवाजे ...??

कितने मजबूत होते हैं दरवाजे ,
जब अन्दर से उन्हें  बंद कर लेते हैं  हम ,
और सोच लेते हैं की कोई नहीं आ सकता  ' लक्ष्मण  रेखा '  के इस पार ..,

....' शतुर्मुगी  ' सुरक्षा का यह अहसास बहुत बड़ी चीज़ है ,
इस असुरक्षित दुनिया के बीच ..!!

कितने सूक्ष्म होते हैं दरवाजे ...,
जो तय करते है  आदमी की हद ..,
और नाप लेते हैं ,  गुजरने वालों के कद ..,
की  अनगिनित , रत्न जडित , मुकुट सहित , ऊँचे , गर्वोन्मत  सिर  ,
झुकते हैं वहां , हद लांघते वक्त ..,
 खुद के बचाव में ..!!

कितने अधीर होते हैं दरवाजे ...,
कजराई आँखों से बाट जोहते..,
हर आहट पर प्रियतम को खोजते..,
कितने अधीर होते है दरवाजे ..., !

की बाती की तरह , दीपक के संग ,
तिल तिल कर  जलते अंग ..,
घूघट छोड़ कर , पट खोल कर , किसी की प्रतीक्षा में  ..,
 जब रात भर नहीं सोते हैं दरवाजे ..!!

कितना थमे हुए होते है दरवाजे ...,
की जहाँ आकर रूकती हैं  गलियां और पंथ..,
थकी हुई यात्राओं के मीठे अंत..,
कितने थमे हुए होते हैं दरवाजे ..!!

धूप से जले,
ठण्ड से गले ,
पीड़ा भरे पांव जहाँ पाते हैं ठांव...,
माँ के आँचल की तरह ,  विपदाओं से परे , 
सुख से भरे ..,होते हैं दरवाजे .!!

ओर्र..यह जान कर , मानकर , पहचानकर  भी क्या करेंगे हम...?
की बहुत कमज़ोर होते हैं दरवाजे ...,

छाती में ठुके हुए कुंदे और कीलें ,
पेरों में सांकल..और मुह बंद  ताले ..,
क्रूस पर मसीहा से सदियों से टंगे हुए ,
कितने कमज़ोर होते हैं दरवाजे..!!

हाँफते , कांपते ,
लड़खड़ाते , फडफडाते ,
छुई मुई से .., धुनी हुई रुई से ..,
इतने कमज़ोर होते हैं दरवाजे .,
 की जिन्हें छूने ही से लगता है डर ..,
भरभरा कर ढह गए अगर ,,,.
तो बिना दरवाज़ों के कैसा डरावना लगेगा ...
अपना ये पुराना  पुश्तेनी घर ...!!

......सभाजीत


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