शनिवार, 27 अक्तूबर 2018


"  चन्दा मामा "

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शैशवास्था में , माँ के चेहरे को लगातार देखते रहने के बाद , जब घर के बाहर किसी और चेहरे को पहचानने का बोध जागा , तो माँ ने मुझे गोद में ले कर , चाँद दिखाते हुए कहा --" वह है ' चन्दा मामा " ! मैंने  माँ के चेहरे को छू कर , फिर चाँद के चहरे को छूने के लिए अपना नन्हा हाथ बढ़ाया , तो माँ ने हँसते हुए कहा --" चन्दा मामा दूर के ,,"  !,,,,  , उसे सिर्फ बुला सकते हो ,,, उसके साथ खेल सकते हो , लेकिन उसे छू नहीं सकते !  तब मुझे महसूस हुआ  की माँ के जैसा ही कोई अपना और भी है , जो मेरे साथ खेल सकता है , जिसे मैं कभी भी बुला सकता हूँ ,  और  जिससे मुझे कोई भय नहीं ! ,
 
   कुछ बड़ा हुआ , तो वही चाँद , अपने कई रूप बदलता दिखा ,, कभी , नाखून की तरह , कभी आधा अधूरा , कभी बहुत बड़ा , तो कभी आसमान से बिलकुल विलुप्त ! कभी वह बदलियों में घंटों छुप जाता , तो कभी  अचानक प्रकट हो जाता !  तब मैंने माँ से पूछा भी था की यह कैसा मामा है ,,? जो रूप बदल बदल कर रहता है ,,?? 
       माँ ने कहा ,,," वह तुम्हें '  चिढ़ाता  " है , वह भी उसका तुम्हारे लिए एक खेल है ,,  तुम  भी उसे चिढ़ा देना !  मैंने माँ की बात मान कर चाँद को कई बार जीभ दिखा कर चिढ़ाया भी ,,और खुश भी हुआ की मैंने उसे जबाब दे दिया !
 
        कुछ दिनों बाद मेरी बहिन ने जन्म लिया , तो चाँद को मैं भूल गया !  दिन भर बहिन का चेहरा देख कर ही खुश होता रहता ,,   लेकिन बहिन के थोड़ा  बड़े होते ही ,  चाँद  फिर मेरे जीवन में  आ गया   , अपना बड़ा सा गोल मुँह ले कर , की  देखो ,,, मैं साक्षी हूँ , उस रक्षा बंधन का , जो तुम अपनी बहिन की रक्षा के लिए , अपनी कलाई पर " राखी " के रूप में बँधवाओगे ! माँ ने बताया की , ' रक्षा बंधन ' पूर्णिमा के दिन आता है ,!,,,,,,जब तुम्हारा चंदामामा  तुम्हारे हाथ में , तुम्हारी बहिन के हाथ की बंधी  राखी देखता है !,,,,  वह यह भी कहता है की आज से तुम बड़े हो गए हो , ,,, अब तुम्हें मामा की रक्षा नहीं चाहिए , क्यूंकि अब तुम खुद एक
  ' रक्षक ' बन चुके हो !

       कुछ बड़ा हुआ , तो चाँद फिर दिखा ,,, गणेश चतुर्थी के दिन ,,! बोला ,,, ' मैं तो सबका मामा हूँ ना ,,,तो शिवजी के बेटे के जन्म पर भी तो दिखूंगा ही ! 
,,,,, गणेश मेरे प्रिय देव थे ,  उनका चेहरा ही मेरे लिए कौतूहल के साथ साथ , एक दोस्त के  चेहरे जैसा लगता था ! और  उनका वाहन चूहा ,,,!,वह  तो मेरे घर में कई बार रोटी चुरा कर भागा था ! 
      वे लड्डू खाते थे , जो मुझे भी प्रिय था !  मुझे चाँद  की यह बात तब भी अच्छी लगी ,, और तब भी अच्छी लगी , जब वह अनंत चौदस के दिन खुद  आकर गणेश जी को वापिस ले गया !

    स्कूल गया तो , एक दिन जब बहुत बड़ा गोल सा चाँद , आसमान में हँसते हुए उभरा , तो माँ  ने कहा ,,,आज " गुरू पूर्णिमा " है !  आज फिर चाँद तुम्हे बताने आया है की जीवन में गुरू का महत्त्व कभी ना भूलना !  तुम्हे जीवन में बहुत सी  बातें  सिखाने वाले , बहुत से गुरू मिलेंगें ,  लेकिन गलत या सही जानने -  समझने  का बोध जिस  गुरू  ने तुम्हें दिया है ,,उसे सदा याद रखना ! जाओ अपनी पाठशाला के गुरूजी को प्रणाम करके आओ ! मैं ने  आसमान में  हँसते चाँद को निहारा ,,और उसे भी प्रणाम किया !  सोचा कि ,,, असली गुरू तो तुम्ही हो --" मामा " ,,!!

 थोड़ा  समय ही बीता , कि   एक दिन वह फिर  आसमान से झांका ,, ! इस बार पूरा चेहरा तो नहीं दिखाया ,, लेकिन झाँक कर बोला ,,' आज राम का विजय दिवस है !  तुम जो कुछ दिनों से ,  राम लीला  देख कर मुदित हो रहे थे , उसका निष्कर्ष दिवस है ,,जब रावण  का वध भी होगा , और उसकी बुराइयों का दहन भी !  आज तुम्हारे कसबे का मैदान सजा हुआ है ,, तुम भी जा कर आनंद लो ,, मैं वहां तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ !'!,,,  उसकी बात मान कर मैंने यह उत्सव भी मनाया !

  मैदान में जा कर लगा की , अब ठण्ड के दिन आ गए हैं ,, इसलिए पूरीबांह की कमीज पहनना शुरू कर दूँ ,  की तभी , एक दिन चाँद ,, थोड़ी सिहरन लिए , आसमान में आ  धमका !,,,,  बोला .--
,,,,,, ' आज शरद पूर्णिमा है बेटा ,,!  माँ से कहो की खीर बनाएं और , अपने आँगन में रख दें ! मैं तुम्हारे जीवन में अमृत भरने के लिए बूँदें टपकाऊँगा ,, जो तुम्हे ना सिर्फ निरोगी करेंगी  ,,बल्कि तुम्हारी वाणी में भी खीर खाने से अमृत का वास हो जाएगा  ! " !
       घर आया तो माँ पहले से ही जैसे तैयार बैठी थी ,,शायद उसे अपने भाई की करतूतों के बारे में बहुत पहले से ही पता था !

    ठण्ड पड़ते ही , मेरा जीवन क्रम थोड़ा बदल गया , जल्दी सोना ,,और देर से उठाना ,,इसलिए ,, चाँद से बातें तो नहीं हो पाईं ,,लेकिन वह खिड़की से झाँक कर मेरी टोह लेता ही रहा !  ठण्ड जब घटी , तो   जो मौसम आया , उसने गुदगुदाना शुरू किया !  यह फागुन था ,,!

  ,,,,,,,,अब तक मैं कुछ बड़ा भी हो चुका था ,,  एक दिन चाँद आसमान में आकर ठिठोली करने लगा ,,हुड़दंगी करते हुए बोला --" "  बिटवा !!,, आज होलिका दहन है ,,और  परसों,, रग से सराबोर होने वाली 'होली; ! ,,,  थोड़ा होशियार रहना ,,!,, तुम्हारी बहिन सुबह से तुम्हारा मुंह रंगने को तैयार बैठी है !  हालांकि   उस दिन  वह तुम्हें  टीका लगा के  तुम्हे  माँ के हाथ के  बने घर के  पकवान , गुजिया पपडिया  भी खिलाएगी ,,! ,,,, लेकिन फिर भी रंग में तुम उससे जीत ना पाओगे !   समझे ,,!!,,,, " 
,,,,,,, मैंने मुंह बिचका कर उसे चिढ़ाया ,,, और कहा --" मामा ,,तुम मुझे डराने के इरादे से  आये हो क्या ,,?? हा  ,हा ,,!! मैं भी कम होशियार नहीं ,,समझे ,,? " ,,,,,,,,,
,,,,,,, होली के हुड़ंग में तो बाद में कई दिन बीत गए , पता ही नहीं चला !  "  फिर तो स्कूल की परीक्षा  ,, और परीक्षा के डर   ने पता नहीं कब मेरा समय बितवा  दिया ! ,,,, चाँद की और ना मैंने देखा ,,,और ना उसे अपनी  ओर मुझे  देखने  दिया !   बस ,,!! ,, पास - फेल  शंशय में उतराते हुए ,, जब  परिक्षा में उत्तीर्ण होने की खबर मुझे  मिली तो,,, मैं खुश हो गया !  तभी इतनी गर्मी पड़ने लगी ,, की  रात में चारपाइयाँ निकाल कर सब लोग  छत पर सोने लगे !

     अब  चंदा मामा ,, पंद्रह दिन बाद फेरा लगाते ,,और छत पर पडी हमारी चादरों को ठंडा कर जाते !  जब वे आते ,,तो हमसे बातें होती रहतीं ,, लेकिन जब वे नहीं आते तो हम तारे  गिनकर अपनी गणित को मजबूत करने की कोशिश करते ! इन कामों में मेरी चुलबुली बहिन , मुझसे हमेशा ही आगे रहती ,, !
          चाँद से बातें करते करते ,,,, उसके बताये त्यौहार मनाते मनाते ,,,,, मैं  कब बड़ा हो गया ,, यह जान ही नहीं पाया !  लेकिन  अब ,, मुझे चाँद ' मामा ' नहीं ,,बल्कि एक ' चेहरा' जैसा  दिखने लगा था !  मुझमें यह बदलाव कैसे आया ,,, यह तो ठीक से नहीं बता सकता !,, लेकिन एक बात जरूर  जान गया की , यह बदलाव , फ़िल्मी गीत सुनने से , और फ़िल्में देखने से हुआ  है ! ,,,, मुझे  "   चौदहवीं  के  चाँद "  में , एक चेहरा दिखाने वाले वे शायर ही थे , जो बार बार मेरे इस नए  चाँद को एक सुन्दर , युवा , स्त्री के चेहरे से तौल रहे थे !
  " चौदहवीं का चाँद हो ,,' , ' चाँद सा मुखड़ा क्यों शरमाया ' , , चाँद सी महबूबा हो मेरी , '    जैसे गीत मुझे गुदगुदाने लगे !,,,,तो मैंने चाँद से नाता बदल लिया  !,,,  मैं भी चाँद में एक  चाँद से मुखड़े  को तलाशने लगा !  ,,,,,,,,,मोहल्ले के चेहरे तो मेरी बहिन जैसे ही दिखे ,,इसलिए ,,उनमें चाँद ढूंढने पर भी नहीं मिला ,,!  फिल्मों के परदे पर जो चाँद थे ,, वे मेरी पहुँच से उतने ही दूर थे ,,  जितना की वास्तविक चाँद !,,,और ,,, दूसरे  मुहल्लों में जा कर चाँद ढूंढने की जुर्रत मुझे इसलिए नहीं हुई ,,क्योंकि  वहां कई ,,राहु केतु ,सितारे ,,, पहले से ही उन चांदों  को  घेरे रहते थे !,,
         तो चाह कर भी चाँद  नहीं पा सका !   यही करते करते नौकरी लग गयी ,,और दिन रात उसमें खट्ने लगा !  एक दिन एक ज्योतिषी  को पूछा ,, तो उसने कुंडली देख कर बताया की तुम्हारा जन्म , कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ है !,,जब  चाँद बिलकुल ही प्रगट नहीं होता !  यही कारण है की ना तो तुम चाँद के प्रति कभी  आसक्त होंगे , और ना चाँद तुम्हारे प्रति  !

    दिन बीतते गए ,, और जब चाँद को मैं नहीं ढूंढ पाया , तो मेरे माता पिता ने , एक ' चाँद ' ढूंढ कर , उसे मेरी जीवन संगिनी बना दिया !  अब चाँद तो हमेशा साथ था ,,,लेकिन जल्दी ही  युवा वस्था का गीत  सच हो कर सामने आ गया ___ " चौदहवीं का चाँद हो ,,या " आफताब " हो ,,? " !  ,,,,,मेरी उम्र ढलते ढलते ,, चाँद भी अक्सर " आफताब " बन कर  दिखने लगा !

    लेकिन ' मेरा चाँद " जिसे मुझे मेरी माँ ने बचपन में दिखाया था ,, एक बार ,, जरूर फिर आया ! 
,,,,,,, जब पहली ' करवा चौथ " में  ,  मेरी पत्नी ने छलनी से झाँक कर , पहले उसे , और फिर मुझे देखा ,,तो वह पीछे से खिलखिलाया  !   बोला  --"  तुमने मुझ से सभी त्योहारों के बारे में जाना था ,,बेटा ! लेकिन इसके बारे में ,, मैं तभी बता सकता था , जब ज़मीन का चाँद तुम्हारी ज़िंदगी में उतर आये !  अब इस चाँद को सम्हाल कर रखना ,, यह तुम्हारे लिए खिलौना नहीं ,,बल्कि जीवन का अमृत है ! यह दिन भर भूखी प्यासी रह कर भी ,, तुम्हारे दीर्ध जीवन के लिए व्रत रहेगी !  तुम्हारा मुंह देख कर व्रत  तोड़ेगी ! यह मेरी तरह  दूर का चाँद नहीं ,,तुम्हारे घर का चाँद है !  और याद रखो ,,, जिस माँ के कारण तुम मुझसे परिचित हुए थे ,,जब वह भी तुम्हारे साथ दुनिया में नहीं रहेगी ,,तब यही ,, तुम्हें ,, और तुम्हारे बेटे के लिए एक माँ की भूमिका भी निभाएगी !     ,,,मैं तो एक  अजन्मा ,," मामा " हूँ ,,तुम्हारे लिए ही नहीं बल्कि  सबके लिए ,!,  जो भी बेटी ,,वहां ,,ज़मीन पर माँ का रूप धारण करती है ,,मैं ही उसके बेटे का पहला मामा होता हूँ !
  अब मुझे धरती की  एक नयी बहिन मिल गयी है ,,जो तुम्हारे साथ रहेगी  ! इसे दुखी मत करना ,,, वरना मैं  तुम्हारी कुंडली से हमेशा के लिए गायब हो जाऊंगा ! मेरे न रहने पर अमावस्या का घनघोर अन्धेरा ही तुम्हारे पीछे  शेष बचेगा ! और अन्धेरा तुम झेल नहीं पाओगे ! ",,,,

   मैंने सर झुका कर चाँद  को प्रणाम किया ! मैंने कहा --" तुम सदा मेरे साथ ही रहना ,,,चाहे मेरे मामा की तरह , चाहे मेरी गृहिणी की तरह ,,और चाहे मेरे बेटे के मामा की तरह ,,!  तुम्हारे बिना  तो मेरे  जीवन की गणना भी संभव नहीं ! वह शून्य है ! " 
,,,,,, !   तब से हर करवाचौथ पर  पहले मैं अपनी माँ को , फिर चाँद को ,  को प्रणाम करता हूँ ,और फिर अपनी पत्नी, को धन्यवाद देता हूँ   जिन्होंने मुझे हमेशा के लिए चाँद से फिर  जोड़ दिया  !

 ---  सभाजीत
     
     
   

1 टिप्पणी:

  1. यथार्थ कहती कल्पनाशीलता का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करती बहुत अच्छी रचना।

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