हिन्दू ,,,
हम सबके एक सर्वमान्य देव ,,," शिव "
वोट के लिये निरंतर बंटते हिन्दू समाज को एक अहम् जरुरत है , ऐसे बंधन की , जो उन्हें एक एक सूत्र में पिरो सके ! अलग अलग समुदायों के अलग अलग भगवानो ने , उन्हें पहले ही , एक दूसरे से अलग थलग कर रखा है ! हर समाज अपने अपने भगवान् की जयन्ती , चल समारोह आयोजित कर अपने ढंग से मनाता है , किन्तु वे समारोह सर्वथा , एक विलग भावना को ही जन्म देते हैं !
वर्षों पूर्व , अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए , सबसे पहले , लोकमान्य तिलक ने , एक ऐसे धार्मिक बंधन की महाराष्ट्र में कल्पना की , जो सर्वमान्य हो , और आस्था से सभी महाराष्ट्र वासियों को एक सूत्र में पिरो सकें ,,! इसी भावना के तहत , गणेश उत्सव में , सम्पूर्ण महाराष्ट्र में , घर घर एक गणेश की मूर्ति स्थापित करने का आह्वान किया गया , और पूरा महाराष्ट्र एक सूत्र में " गणेश मय " हो गया ! समाज एक ईश्वर की छवि को ले कर चेतन हो गया , ! इस उत्सव को ले कर हर घर एक दूसरे से जुड़ गया , ,,,,एक आस्था , एक रूप , एक चेतना !
आज फिर लोकमान्य तिलक की तरह , अथवा , आदि शंकराचार्य की तरह , एक आह्वान की सख्त जरुरत है , कि ,,, साकार , अथवा निराकार, दोनों स्वरूपों में विद्व्मान , एक ईश्वरीय छवि को हिन्दू समाज अपने मन में धारण करे !, वह छवि समानरुप से हर घर पूजी जाए , जिस की पूजा अर्चना में , कर्मकांड , और सनातनी गूढ़ पद्धतियों का समावेश ना हो !और जिसकी पूजा हर व्यक्ति के लिए सहज हो !
सुखद यह है की ऐसे ईश्वर की छवि हिन्दू समाज में पूर्व से ही सर्वत्र व्याप्त है ,,और वह है ,,," शिव " ,,!
आदि देवों में विष्णु के मंदिर बहुत कम मिलेंगे , , ब्रम्हा की पूजा पूरी तरह वर्जित है , जबकि शिव सर्वत्र व्याप्त हैं ! वे प्रकृति के देव हैं , प्राकृतिक स्थान ,," पर्वत " उनके निवास का चिन्ह है , वे भोग विलास से दूर , आडमबर से मुक्त हैं ! सर पर , मनुष्य का जीवन आधार ,," जल " ,, अपने साथ लिए , गंगा उनकी जटाओं में विराजमान है ! अपनी कलाओं से मन मोहता , समय की गणनाओं का प्राकृतिक माध्यम , चंद्र भी उनके माथे पर सोहता है ,,! ललाट पर , भविष्य को देखने में सक्षम , और हर पाप को भस्म करने वाला एक , तीसरा न्रेत्र भी उपस्थित है, जो आवश्यकता अनुसार खुलता भी है ! कानो में , वे जीव जंतु , जो प्रकृति को संतुलित करने के माध्यम हैं , और जिनमे , किसी भी रोग को नष्ट करने का विष , एक दवा के रूप में विदवमान है ,,,," बिच्छु " के आभूषण के रूप में , कुण्डल की तरह विदवमान हैं! ! गले में वह " हलाहल " , स्थिर हो कर अवरुद्ध है , जो क्षण मात्र में सारी श्रष्टि को समाप्त कर सकता है , और जो मृत्यु का कारक है !,,, किन्तु मानो वह उनके कंठ के कारागार में सदा के लिए कैद है ! कंठ में प्रकृति के विषधारी , वे विषधर भी , हार बन कर पड़े हैं , जिनके विष का तोड़ मनुष्य अभी तक नहीं पैदा कर पाया है ! गले में ही , मुंडों की वह माला है , जो सदा याद दिलाती है की जीवन नश्वर है , और अंत में वही व्यक्ति की आधारभूत पहचान है , ! शरीर पर वह भस्म है , जो पाँच तत्वों का , मृत्यु के बाद एकसार बन कर श्मशान में धरती पर शेष रह जाती है , बाजुओं में प्रकृति प्रदत्त , वे फल हैं , जो बाजूबंद के रूप में , एक मुखी रुद्राक्षों के रूप में , बंधे हुए हैं , वे किसी को रिझाने , आकर्षित करने के लिए , कोई रंगीन तड़क भड़क वाले वस्त्र नहीं पहनते , बल्कि , मरे हुए बाघ की खाल को वस्त्र की तरह धारण करते हैं , जो दर्शाती है , की प्रकृति के पशु भी , अपनी स्वाभाविक मृत्यु के पश्चात , अपनी खाल के रूप में किसी मनुष्य के काम आ सकते हैं ! पैरों में वे ' खड़ाऊं ' पहनते हैं , जो सूखे हुए बृक्ष की , उस लकड़ी के बने हुए हैं , जो अपनी उम्र जी कर समाप्त हो चुका है !
शिव गृहस्थ हैं , एक पत्नी धारी हैं , और उनके दो पुत्रों का परिवार है ! पुत्रों में जिस ' गणेश ' को प्रथम पूज्य माना गया है , उनका स्वरूप भी प्राकृतिक है ! उनका मुख , सबसे बुद्धिमान , जीव , हाथी का है , और शेष शरीर , इस दुनिया में उपस्थित मानव का ! शिव का वाहन भी प्राकृतिक है ,," बैल " का ,,,जो शक्ति का प्रतीक है ,,और जिसे बाद में मनुष्य ने भी अपने जीवन के आधार कृषिकार्य में भी उपयोग किया है !
शिव के पास जो वाद्य यंत्र है ,," डमरू " ,,,,,वह ,' नाद ' , और ' लय ' , दोनों को एक साथ उत्पन्न करती है ! वह नृत्य की उमंग देती है , और स्वर का आनंद भी ! उनके पास जो अस्त्र है वह " त्रिशूल " है , जो शस्त्र की तरह भी उपयोग में आता है , और " अस्त्र " की तरह भी ! वह रक्षात्मक भी है , और आक्रामक भी !
शिव का स्वरूप निराकार भी है , ! प्रकृति के हर स्थान पर उपलब्ध , पत्थर के एक गोल टुकड़े को , आप शिव स्वरूप में , आसानी से पूज सकते हैं ! पूजा में ना तो कोई कर्मकांड है , ना पद्धति , ! सर्वत्र उपलब्ध " जल " को आप उन पर उड़ेल दीजिये , प्राकृतिक बेल पत्र को उन पर रख दीजिये ! हो गयी पूजा !
शिव का यह स्वरूप , आदिकाल से ले कर अब तक , हिन्दू धर्म के जनक , आर्यों और अनार्यों को एक मतेन स्वीकार था ! , अनार्यों ने उन्हें उसी सम्मान के साथ पूजा , जिस सम्मान के साथ आर्यों ने ! शिव ने किसी भी वर्ग , जाती में कोई भेद नहीं किया ! उन्होंने प्रसन्न हो कर , सरल और सहज रूप में हर व्यक्ति की आकांक्षा पूर्ण की ! यहां तक की उसे भी वरदान दे दिया , जो उन्हें ही भस्म करने उनके पीछे दौड़ गया !
तो जरुरत है , की आदिदेव " शिव " को सम्पूर्ण हिन्दू समाज आज प्रमुख रूप से अपना पूजनीय इष्ट माने ! शिव के पास , ना भव्य मकान है , ना भव्य गृहस्थी , ना दिखावा , ना गरीबी अमीरी का कोई भेद ! उनकी पत्नी , एक राजा की पुत्री है ,," पार्वती " ,,,,!,,,लेकिन वह शिव के साथ उसी हिमालय पर , उन्ही की जीवन पद्धति में रहती है , जिसमे शिव रहते हैं ! वे शाकाहारी हैं , प्राकृतिक फलों पर जीवन यापन करते हैं ! वे दो स्वरूपों में रह कर भी एकाकार हैं ,,," अर्धनारीश्वर " के रूप में ! वे नृत्य और संगीत पारंगत हैं , और समस्त जीवों के प्रति सहज दयालु हैं !
हिन्दू एक जीवन पद्धति है ! आज का हिन्दू " आर्यों " और अनार्यों " की सम्मलित संतान है !भले ही सामाजिक कारणों से हम आज कई वर्गों में बँट गए हों , या राजनैतिक धूर्तता के षडयंत्र से अलग थलग किये जाने के कुचक्र में फंस गए हों , किन्तु यह सच यह है , हमारा ईश्वर का सर्वमान्य रूप एक ही है ,,और वह है ,," शिव " ! जरुरत है कि शिव के इस स्वरूप को हम घर घर में प्रतिस्थापित करें , जो मात्र एक पत्थर के गोल टुकड़े के स्वरूप में सहज ही उपलब्ध हैं , और जिन की पूजा अर्चना में किसी तरह की पद्धति , वस्तु , या धन की जरुरत नहीं है ! शिव हमारे आदिदेव हैं ,,,जो चाहे दलित वर्ग हो या धनाड्य , सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले सहज देव हैं !
,,,,,सभाजीत
हम सबके एक सर्वमान्य देव ,,," शिव "
वोट के लिये निरंतर बंटते हिन्दू समाज को एक अहम् जरुरत है , ऐसे बंधन की , जो उन्हें एक एक सूत्र में पिरो सके ! अलग अलग समुदायों के अलग अलग भगवानो ने , उन्हें पहले ही , एक दूसरे से अलग थलग कर रखा है ! हर समाज अपने अपने भगवान् की जयन्ती , चल समारोह आयोजित कर अपने ढंग से मनाता है , किन्तु वे समारोह सर्वथा , एक विलग भावना को ही जन्म देते हैं !
वर्षों पूर्व , अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए , सबसे पहले , लोकमान्य तिलक ने , एक ऐसे धार्मिक बंधन की महाराष्ट्र में कल्पना की , जो सर्वमान्य हो , और आस्था से सभी महाराष्ट्र वासियों को एक सूत्र में पिरो सकें ,,! इसी भावना के तहत , गणेश उत्सव में , सम्पूर्ण महाराष्ट्र में , घर घर एक गणेश की मूर्ति स्थापित करने का आह्वान किया गया , और पूरा महाराष्ट्र एक सूत्र में " गणेश मय " हो गया ! समाज एक ईश्वर की छवि को ले कर चेतन हो गया , ! इस उत्सव को ले कर हर घर एक दूसरे से जुड़ गया , ,,,,एक आस्था , एक रूप , एक चेतना !
आज फिर लोकमान्य तिलक की तरह , अथवा , आदि शंकराचार्य की तरह , एक आह्वान की सख्त जरुरत है , कि ,,, साकार , अथवा निराकार, दोनों स्वरूपों में विद्व्मान , एक ईश्वरीय छवि को हिन्दू समाज अपने मन में धारण करे !, वह छवि समानरुप से हर घर पूजी जाए , जिस की पूजा अर्चना में , कर्मकांड , और सनातनी गूढ़ पद्धतियों का समावेश ना हो !और जिसकी पूजा हर व्यक्ति के लिए सहज हो !
सुखद यह है की ऐसे ईश्वर की छवि हिन्दू समाज में पूर्व से ही सर्वत्र व्याप्त है ,,और वह है ,,," शिव " ,,!
आदि देवों में विष्णु के मंदिर बहुत कम मिलेंगे , , ब्रम्हा की पूजा पूरी तरह वर्जित है , जबकि शिव सर्वत्र व्याप्त हैं ! वे प्रकृति के देव हैं , प्राकृतिक स्थान ,," पर्वत " उनके निवास का चिन्ह है , वे भोग विलास से दूर , आडमबर से मुक्त हैं ! सर पर , मनुष्य का जीवन आधार ,," जल " ,, अपने साथ लिए , गंगा उनकी जटाओं में विराजमान है ! अपनी कलाओं से मन मोहता , समय की गणनाओं का प्राकृतिक माध्यम , चंद्र भी उनके माथे पर सोहता है ,,! ललाट पर , भविष्य को देखने में सक्षम , और हर पाप को भस्म करने वाला एक , तीसरा न्रेत्र भी उपस्थित है, जो आवश्यकता अनुसार खुलता भी है ! कानो में , वे जीव जंतु , जो प्रकृति को संतुलित करने के माध्यम हैं , और जिनमे , किसी भी रोग को नष्ट करने का विष , एक दवा के रूप में विदवमान है ,,,," बिच्छु " के आभूषण के रूप में , कुण्डल की तरह विदवमान हैं! ! गले में वह " हलाहल " , स्थिर हो कर अवरुद्ध है , जो क्षण मात्र में सारी श्रष्टि को समाप्त कर सकता है , और जो मृत्यु का कारक है !,,, किन्तु मानो वह उनके कंठ के कारागार में सदा के लिए कैद है ! कंठ में प्रकृति के विषधारी , वे विषधर भी , हार बन कर पड़े हैं , जिनके विष का तोड़ मनुष्य अभी तक नहीं पैदा कर पाया है ! गले में ही , मुंडों की वह माला है , जो सदा याद दिलाती है की जीवन नश्वर है , और अंत में वही व्यक्ति की आधारभूत पहचान है , ! शरीर पर वह भस्म है , जो पाँच तत्वों का , मृत्यु के बाद एकसार बन कर श्मशान में धरती पर शेष रह जाती है , बाजुओं में प्रकृति प्रदत्त , वे फल हैं , जो बाजूबंद के रूप में , एक मुखी रुद्राक्षों के रूप में , बंधे हुए हैं , वे किसी को रिझाने , आकर्षित करने के लिए , कोई रंगीन तड़क भड़क वाले वस्त्र नहीं पहनते , बल्कि , मरे हुए बाघ की खाल को वस्त्र की तरह धारण करते हैं , जो दर्शाती है , की प्रकृति के पशु भी , अपनी स्वाभाविक मृत्यु के पश्चात , अपनी खाल के रूप में किसी मनुष्य के काम आ सकते हैं ! पैरों में वे ' खड़ाऊं ' पहनते हैं , जो सूखे हुए बृक्ष की , उस लकड़ी के बने हुए हैं , जो अपनी उम्र जी कर समाप्त हो चुका है !
शिव गृहस्थ हैं , एक पत्नी धारी हैं , और उनके दो पुत्रों का परिवार है ! पुत्रों में जिस ' गणेश ' को प्रथम पूज्य माना गया है , उनका स्वरूप भी प्राकृतिक है ! उनका मुख , सबसे बुद्धिमान , जीव , हाथी का है , और शेष शरीर , इस दुनिया में उपस्थित मानव का ! शिव का वाहन भी प्राकृतिक है ,," बैल " का ,,,जो शक्ति का प्रतीक है ,,और जिसे बाद में मनुष्य ने भी अपने जीवन के आधार कृषिकार्य में भी उपयोग किया है !
शिव के पास जो वाद्य यंत्र है ,," डमरू " ,,,,,वह ,' नाद ' , और ' लय ' , दोनों को एक साथ उत्पन्न करती है ! वह नृत्य की उमंग देती है , और स्वर का आनंद भी ! उनके पास जो अस्त्र है वह " त्रिशूल " है , जो शस्त्र की तरह भी उपयोग में आता है , और " अस्त्र " की तरह भी ! वह रक्षात्मक भी है , और आक्रामक भी !
शिव का स्वरूप निराकार भी है , ! प्रकृति के हर स्थान पर उपलब्ध , पत्थर के एक गोल टुकड़े को , आप शिव स्वरूप में , आसानी से पूज सकते हैं ! पूजा में ना तो कोई कर्मकांड है , ना पद्धति , ! सर्वत्र उपलब्ध " जल " को आप उन पर उड़ेल दीजिये , प्राकृतिक बेल पत्र को उन पर रख दीजिये ! हो गयी पूजा !
शिव का यह स्वरूप , आदिकाल से ले कर अब तक , हिन्दू धर्म के जनक , आर्यों और अनार्यों को एक मतेन स्वीकार था ! , अनार्यों ने उन्हें उसी सम्मान के साथ पूजा , जिस सम्मान के साथ आर्यों ने ! शिव ने किसी भी वर्ग , जाती में कोई भेद नहीं किया ! उन्होंने प्रसन्न हो कर , सरल और सहज रूप में हर व्यक्ति की आकांक्षा पूर्ण की ! यहां तक की उसे भी वरदान दे दिया , जो उन्हें ही भस्म करने उनके पीछे दौड़ गया !
तो जरुरत है , की आदिदेव " शिव " को सम्पूर्ण हिन्दू समाज आज प्रमुख रूप से अपना पूजनीय इष्ट माने ! शिव के पास , ना भव्य मकान है , ना भव्य गृहस्थी , ना दिखावा , ना गरीबी अमीरी का कोई भेद ! उनकी पत्नी , एक राजा की पुत्री है ,," पार्वती " ,,,,!,,,लेकिन वह शिव के साथ उसी हिमालय पर , उन्ही की जीवन पद्धति में रहती है , जिसमे शिव रहते हैं ! वे शाकाहारी हैं , प्राकृतिक फलों पर जीवन यापन करते हैं ! वे दो स्वरूपों में रह कर भी एकाकार हैं ,,," अर्धनारीश्वर " के रूप में ! वे नृत्य और संगीत पारंगत हैं , और समस्त जीवों के प्रति सहज दयालु हैं !
हिन्दू एक जीवन पद्धति है ! आज का हिन्दू " आर्यों " और अनार्यों " की सम्मलित संतान है !भले ही सामाजिक कारणों से हम आज कई वर्गों में बँट गए हों , या राजनैतिक धूर्तता के षडयंत्र से अलग थलग किये जाने के कुचक्र में फंस गए हों , किन्तु यह सच यह है , हमारा ईश्वर का सर्वमान्य रूप एक ही है ,,और वह है ,," शिव " ! जरुरत है कि शिव के इस स्वरूप को हम घर घर में प्रतिस्थापित करें , जो मात्र एक पत्थर के गोल टुकड़े के स्वरूप में सहज ही उपलब्ध हैं , और जिन की पूजा अर्चना में किसी तरह की पद्धति , वस्तु , या धन की जरुरत नहीं है ! शिव हमारे आदिदेव हैं ,,,जो चाहे दलित वर्ग हो या धनाड्य , सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले सहज देव हैं !
,,,,,सभाजीत
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