रावन का चेहरा
;मैदान मे भीड़
भाड़ से थोड़ा हटकर ,रावण अपने ही पुतला दहन को देखने खड़ा हो गया !
चारों और गूँजती फिल्मी गीतों की धुनें माहौल के शोर शराबे को चरम सीमा तक
बढ़ने मे मदद कर रही थी .! बीचबीच मे घूमते हुए गुब्बारे वाले जब बच्चो
को आकर्षित करने के लिए गुब्बारो पर हाथ रगड़ते ,तो गुब्बारो की त्वचा चीत्कार करने लगती,जिससे शोर मे अजीब सी तीव्रता बढ़ जाती !
--; उदास है क्या भैया ?"
- अचानक पीछे से किसी की आवाज़ आई ! ;
रावण ने चौंक कर कर पीछे मुड कर देखा, तो 'कुम्भकरण ' को खड़ा पाया ! ;
;हज़ारो साल बीत गये ! कुम्भकरण हालाकि शरीर विहीन हो चुका था फिर भी उसकी आत्मा का आकर वैसा ही था,-उसके पुराने शरीर के अनुरूप ! चौड़ी बेडौल काया , आगे बढ़ी हुई बेतरतीब तोंद-- और मोटे मोटे हाथ पैर !
--"; नही कुम्भकरण ! , उदास तो नही थोड़ा चिंतित ज़रूर हू ";
रावण ने कुंभकरण के कंधे का थोड़ा सहारा लेते हुए कहा
--" क्यों भैया ? इस साल तो लाईटिंग पिछ्ले साल से भी ज़्यादा है , और मैदान भी खूब सज़ा है; "
-" वह तो ठीक है , लेकिन लोग हमारा मृत्यु दिवस थोड़ा कंजूसी से मनाने लगे है ; अब देखो ना , हर साल हमारे पुतले , पतले होते जा रहे है ! कारीगर मेटीरियल कम लगता है ,पर बिल पहले से ज़्यादा लेता है !"
--" ठीक कह रहे है भैया ! दशहरा कमेटी भी इस काम मे शायद ज़्यादा कमीशन खाने लगी है !- लकिन, यही तो हम चाहते थे ना भैया... धीरे धीरे ही सही , हो तो हमारे मन की रही है ना भैया !"
--"हाँ ....राक्षस संस्कृति का विकास देख कर तो में भी बहुत खुश हूँ ! पहले तो हम लंका तक ही सीमित थे , पर अब तो दुनिया मे हम ही हम है ! यह हमारे लिए गर्व की बात है; !"
-" भैया !! मुझे भूख लगी है ! इस मैदान मे बहुत आदमी है , ! आज्ञा हो तो दस बीस का 'डिनर' कर आऊं !"
....कुंभकरण ने ललचाई नज़रों से भीड़ को देखा जो पुलिस के धक्के खा कर इधर उधर हो रही थी !
--" तुम्हारे पास पहले जैसा शरीर नही बचा है , सिर्फ़ बचा है तो आत्मा का आकार ...!...भला खाओगे कैसे ? "
--" नही भैया ; .....भले ही मेरे पास पचाने के लिए पहले जैसा उदर नही बचा , लकिन भूख तो वैसी ही बची है, वह तो मिटती ही नही है;! "
कुंभकरण ने सफाई दी !
; तभी दूर लंबे लंबे डॅग भरते हुए कोई आता हुआ दिखा !दोनों ने ध्यान से देखा -मेघनाथ, इंद्रजीत ( रावण का पुत्र ) पास आ चुका था !
--; उदास है क्या भैया ?"
- अचानक पीछे से किसी की आवाज़ आई ! ;
रावण ने चौंक कर कर पीछे मुड कर देखा, तो 'कुम्भकरण ' को खड़ा पाया ! ;
;हज़ारो साल बीत गये ! कुम्भकरण हालाकि शरीर विहीन हो चुका था फिर भी उसकी आत्मा का आकर वैसा ही था,-उसके पुराने शरीर के अनुरूप ! चौड़ी बेडौल काया , आगे बढ़ी हुई बेतरतीब तोंद-- और मोटे मोटे हाथ पैर !
--"; नही कुम्भकरण ! , उदास तो नही थोड़ा चिंतित ज़रूर हू ";
रावण ने कुंभकरण के कंधे का थोड़ा सहारा लेते हुए कहा
--" क्यों भैया ? इस साल तो लाईटिंग पिछ्ले साल से भी ज़्यादा है , और मैदान भी खूब सज़ा है; "
-" वह तो ठीक है , लेकिन लोग हमारा मृत्यु दिवस थोड़ा कंजूसी से मनाने लगे है ; अब देखो ना , हर साल हमारे पुतले , पतले होते जा रहे है ! कारीगर मेटीरियल कम लगता है ,पर बिल पहले से ज़्यादा लेता है !"
--" ठीक कह रहे है भैया ! दशहरा कमेटी भी इस काम मे शायद ज़्यादा कमीशन खाने लगी है !- लकिन, यही तो हम चाहते थे ना भैया... धीरे धीरे ही सही , हो तो हमारे मन की रही है ना भैया !"
--"हाँ ....राक्षस संस्कृति का विकास देख कर तो में भी बहुत खुश हूँ ! पहले तो हम लंका तक ही सीमित थे , पर अब तो दुनिया मे हम ही हम है ! यह हमारे लिए गर्व की बात है; !"
-" भैया !! मुझे भूख लगी है ! इस मैदान मे बहुत आदमी है , ! आज्ञा हो तो दस बीस का 'डिनर' कर आऊं !"
....कुंभकरण ने ललचाई नज़रों से भीड़ को देखा जो पुलिस के धक्के खा कर इधर उधर हो रही थी !
--" तुम्हारे पास पहले जैसा शरीर नही बचा है , सिर्फ़ बचा है तो आत्मा का आकार ...!...भला खाओगे कैसे ? "
--" नही भैया ; .....भले ही मेरे पास पचाने के लिए पहले जैसा उदर नही बचा , लकिन भूख तो वैसी ही बची है, वह तो मिटती ही नही है;! "
कुंभकरण ने सफाई दी !
; तभी दूर लंबे लंबे डॅग भरते हुए कोई आता हुआ दिखा !दोनों ने ध्यान से देखा -मेघनाथ, इंद्रजीत ( रावण का पुत्र ) पास आ चुका था !
उसने आते ही
रावण और कुंभकरण के पैर छुए ! और फिर कुंभकरण की ओर मुखातिब होकर बोला !
--"; कहाँ गुम हो जाते हो चाचा ? में आपको ढूँढते ढूँढते थक गया! "
--" ; में तो भैया को अकेले देख इन्हें ' कंपनी ' देने चला आया ! लेकिन तुम क्या कर रहे थे वहाँ ? भीड़ में ? ";
--" मुझे भीड़ मे हमारा पुराना दुश्मन " विभीषण " मिल गया था ! वह राम का पिछलग्गू बना उनके पीछे सपाटे से जा रहा था..! एक बार तो मेने उसे लंगड़ी फसाई और वह गिर पड़ा , लकिन फिर मुझे सामने देख कर उठकर फुर्ती से भागा !;
--" तुमने उसे दबोच क्यो नही ळिया ?; "
;कुंभकरण के नथुने फड़क उठे !;
_ "मे अकेला था ! उसके साथ उसका पूरा विभीषण समाज था !फिर आजकल राम ने उसे वानर कमांडो दे रख्खे है , जो फ़ौरन उसको घेर लेते हैं !- चाचा अगर आप होते तो एक ही मुट्ठी मे उसे दबोच लेते !"
--" ; जाने दो ! जब हमने उसे तब छोड़ दिया तो अब दबोचने से क्या !! "
रावण ने दोनो को शांत करते हुए कहा !
- " पिता श्री" ! लकिन बदला तो हमे लेना ही है ना; ! "
--" ;बदला ? किससे ? उससे ? जिसने हमारी मददकी ?"--- रावण हंसा ;;
--"हमारी मदद की ? यह क्या कह रहे है पिता श्री ?- वह तो गद्दार था , उसकी वजह से ही तो हम पराजित हो कर मर गये !"
--";मर् गये ? ..क्या हम मर् गये पुत्र ? क्या सचमुच हम पराजित हो गए ? नही पुत्र नही , बिल्कुल नही !"
-रावण फिर हंसा !
--";ठीक है पिता श्री कि हम नही मरे ! पर विभीषण ने तो हमे मरवाया ही ! उसने हमारे साथ गद्दारी तो की ही ! "
--";नही बेटा , उसने तो वही किया जो मैं चाहता था ! "- रावण इस बार रहस्यमय ढंग से मुस्काराया ;
--" आप ..? आप क्या चाहते थे भा ई ईयी.?"
- कुंभकरण ने इस बार भाई शब्द का उच्चारण ' दीवार फिल्म के अभिनेता शशि कपूर की तरह किया ! ;
--" ;हम चाहते थे की वह ज़िंदा रहे ! हम चाहते थे की वह शत्रु का मित्र बने !हम चाहते थे की " विभीषण -संस्कृति " पूरे आर्य समाज मे फैल जाए ! और फिर वैसा ही हुआ जैसा मे चाहता था !"- रावण के मूह पर कुटिल मुस्कान फैल गई! उसके स्वर्ण कुंडल दमकने लगे
- आज भारत में हर एक भाई , दुसरे भाई के लिए विभीषण बना हुआ है , जैसे विभीषण ने लंका अपने शत्रु के हाथ बेच दी थी , आज हर दूसरा व्यक्ति विभीषण की तरह अपना देश को बेचने को तैयार है ! मज़े की बात है विभीषण होकर भी वह संत और ' भक्त ' की श्रेणी में पूज्यनीय है ! देश द्रोही विभीषण संस्कृति आज राम के देश में पूरी तरह जडें जमा चुकी है , क्या यह हमारी विजय नहीं है ??
इंद्रजीत और कुंभकरण स्तब्ध होकर उसे देखने लगे !;
--" मे ऋषि विश्ववा का पुत्र !! , राजनीति का प्रकांड विद्वान रावण ,!! क्या मूर्ख था जो मेने उसे लात मारी ? नही पुत्र नही ! विभीषण लात मारने और हमेशा त्याग देने लायक ही था ! मे तो उसे बहुत पहले ही अपने राक्षस समाज से हटाना चाहता था , लकिन तब क्या करता ? इसीलिए मौका देखते ही मेने उसे ' कट' करके वहाँ 'पेस्ट ' कर दिया , जहा उसकी सही जगह थी ! समझे पुत्र ? ";
दोनो ने हामी भरते हुए सिर हिलाया ! रावण का यह स्वरूप उन्होने पहले कभी नही देखा था; !
--" महराज " !! -----कुंभकरण रावण के इस स्वरूप से स्तब्ध होकर , संबोधन बदलते हुए बोला ; --"फिर भी इतिहास मे उसने हमे तिरिस्कार के योग्य, एक पराजित क़ौम बना दिया ;क्या यह सही हुआ ?""
--"; हाँ पिता श्री !! अब देखिए ,हर साल जनता हमे फूँक कर ताप लेती है , हमारा सरे आम अपमान करती है!---; इंद्रजीत क्षुब्द होते हुए बोला ! ;
--" कौन जनता " ? ......यही लोग ना ? जो इस उत्सव को धूमधाम से मना रहे है ? क्या यह वाकई "जनता " है ?.....नही पुत्र नही !अगर ऐसाही होता तो आज हमारे पुतले हर क़ौम द्वारा, दुनिया के हर कोने मे जलाए जा रहे होते !लेकिन ऐसा नही है! जानते हो क्यो नही है ?;
--" ;एसा क्यो नही है पिता श्री ?"
--"; क्यांकी यह सिर्फ़ मन समझाने के लिए है कि चलो रावण मर गया ! जबकि सब जानते है कि रावण नही मरा ! रावन कभी मर ही नहीं सकता ! हर साल रावण को मारने के बाद भी वो उसे कभी मार ही नही पाए ! आज भी चारों ओर रावण ही रावण है !यहा तक कि लोगों के अंदर भी रावण है,! वो खुद भी रावण है ! समझे ?" ; -
रावण ने अट्टहास किया !
; तभी शोर बढ़ गया !किसी विशिष्ट अतिथि का आगमन हो चुका था ! जिसके इंतज़ार मे उत्सव मे विलंब हो रहा था ! सफेद एम्बेसडर कार मे लाल बत्ती चमकती हुई मैदान मे आई ! उसके आगे - पीछे सायरन बजाते हुए पुलिस कि गाड़ी मैदान मे घुसी !;......,
-" ; ये रथ किस तरह कि आवाज़ करते है पिता श्री ?- जैसे सियार बोल रहे हों !"
--" ; ये 'पुलिस सायरन ' है ! इससे लोग रास्ता छोड़ देते है !"
रावण ने खुलासा किया !
राम और लक्ष्मण के स्वरूपों के साथ विशिष्ट अतिथि आगे बढ़ने लगे ! मैदान मे नारे लगने लगे ! राम और लक्ष्मण के स्वरूपों ने तीर कमान सम्हाल लिए !
--" ; देखो-देखो ! वह विभीषण उंगली से उन्हे बता रहा है ! हमारे पुतलों कि ओर इशारा कर् रहा है "
रावण हंसा--";क्या वो हमारे पुतले है??" -- ; -" क्या ;कोई जानता भी है हमारे चेहरे कैसे थे ?" ;
-" ;भैया आप ठीक कह रहे है ! देखिए मेरे पुतले कि गुल्मुछ्छ उस हवालदार से मिलती है जो डंडा घुमा रहा है ! "
--"हाँ चाचा !- और मेरी पतली मूँछ उस आदमी से मिल रही है जो उस विशिस्ट अतिथि के साथ साथ दाहिनी ओर चल रहा है !
....और हाँ पिता श्री !! ..-आपकी मूँछ !! अरे नही आपका तो पूरा चेहरा ही अभी कार् से उतरे उस विशिस्ट अतिथि से मिल रहा है जो राम और लक्ष्मण के साथ आगे बढ़ रहा है !" ;
--" ;बिल्कुल ठीक !!अब ध्यान से देखो , मेरे पुतले के दोनो ओर लगे दस मुंह भी क्या विशिस्ट अतिथि को घेर कर चल रहे उन दस लोगों से नहीं मिल रहे हैं जो नारे लगा रहे है ?" ;
--" ;ठीक कह रहे है पिता श्री ! बिल्कुल ठीक ; ! लेकिन यह कैसे हो गया ? यह तो आश्चर्य है !!"
; रावण हंसा - ; ""यही तो मज़ा है , यही तो राज़ है ! ";
--" ; राज़ क्या है पिता श्री ? कहीं कारीगर तो बदमाशी नही कर गया ; उसीने तो जानबूझ कर वैसे चेहरे नही बना दिए ?" ;
--" ; कारीगर बेचारा मज़दूर आदमी है ,वह क्या बदमाशी करेगा ? और जब वह चेहरे लगा रहा था तो में भी वहीं खड़ा था - उसके नज़दीक !" ;
--" ; तो फिर पिता श्री ?" ;
--" ; उसने कई चेहरे बनाए और फिर बिगाड़े और फिर फिर बनाए , लकिन इन चेहरों के अलवा कोई और चेहरा बना ही नही पा रहा था वह ... !";
_ "लकिन ऐसा कैसे हुआ पिता श्री ?" ;
" --' विधाता' कि करतूत !! - रावण हंसा ; "कारीगर रोज़, दिन रात अख़बारों , पोस्टरों , चौराहों, टीवी मे इन्ही चेहरो को देखता है ! उसके दिमाग मे यही चेहरे रच बस गये है , तो फिर वह और क्या बनाएगा ? उसके लिए तो यही सब चहरे ' रावण ' हैं !" ;
तभी मैदान मे आतिशबाज़ी जगमगा उठी !आकाश चमक से भरने लगा ;
--" ;लीजिए !! वह छूट गया तीर! अब पुतले आग पकड़ने लगे !"- इंद्रजीत ने उन्सांस भर कर कहा !
" हमारे नहीं ..! खुद उनके पुतले - " रावन हंसा !
__" ; हाँ चलो हो गया पुतलों का दहन ! लकिन हमारे चेहरे अभी भी सुरक्षित है ! कोई हमारे असली चेहरे जान ही नही पाया , तो भला हमे क्या मारेगा; ?" - -रावण ने गंभीरता से कहा ! ;
अचानक भीड़ मे शोर शोर मच गया ! रावण , कुंभकरण और मेघनाथ धीरे से भीड़ मे घुलकर विलीन हो गए !
----सभाजीत शर्मा 'सौरभ'
--"; कहाँ गुम हो जाते हो चाचा ? में आपको ढूँढते ढूँढते थक गया! "
--" ; में तो भैया को अकेले देख इन्हें ' कंपनी ' देने चला आया ! लेकिन तुम क्या कर रहे थे वहाँ ? भीड़ में ? ";
--" मुझे भीड़ मे हमारा पुराना दुश्मन " विभीषण " मिल गया था ! वह राम का पिछलग्गू बना उनके पीछे सपाटे से जा रहा था..! एक बार तो मेने उसे लंगड़ी फसाई और वह गिर पड़ा , लकिन फिर मुझे सामने देख कर उठकर फुर्ती से भागा !;
--" तुमने उसे दबोच क्यो नही ळिया ?; "
;कुंभकरण के नथुने फड़क उठे !;
_ "मे अकेला था ! उसके साथ उसका पूरा विभीषण समाज था !फिर आजकल राम ने उसे वानर कमांडो दे रख्खे है , जो फ़ौरन उसको घेर लेते हैं !- चाचा अगर आप होते तो एक ही मुट्ठी मे उसे दबोच लेते !"
--" ; जाने दो ! जब हमने उसे तब छोड़ दिया तो अब दबोचने से क्या !! "
रावण ने दोनो को शांत करते हुए कहा !
- " पिता श्री" ! लकिन बदला तो हमे लेना ही है ना; ! "
--" ;बदला ? किससे ? उससे ? जिसने हमारी मददकी ?"--- रावण हंसा ;;
--"हमारी मदद की ? यह क्या कह रहे है पिता श्री ?- वह तो गद्दार था , उसकी वजह से ही तो हम पराजित हो कर मर गये !"
--";मर् गये ? ..क्या हम मर् गये पुत्र ? क्या सचमुच हम पराजित हो गए ? नही पुत्र नही , बिल्कुल नही !"
-रावण फिर हंसा !
--";ठीक है पिता श्री कि हम नही मरे ! पर विभीषण ने तो हमे मरवाया ही ! उसने हमारे साथ गद्दारी तो की ही ! "
--";नही बेटा , उसने तो वही किया जो मैं चाहता था ! "- रावण इस बार रहस्यमय ढंग से मुस्काराया ;
--" आप ..? आप क्या चाहते थे भा ई ईयी.?"
- कुंभकरण ने इस बार भाई शब्द का उच्चारण ' दीवार फिल्म के अभिनेता शशि कपूर की तरह किया ! ;
--" ;हम चाहते थे की वह ज़िंदा रहे ! हम चाहते थे की वह शत्रु का मित्र बने !हम चाहते थे की " विभीषण -संस्कृति " पूरे आर्य समाज मे फैल जाए ! और फिर वैसा ही हुआ जैसा मे चाहता था !"- रावण के मूह पर कुटिल मुस्कान फैल गई! उसके स्वर्ण कुंडल दमकने लगे
- आज भारत में हर एक भाई , दुसरे भाई के लिए विभीषण बना हुआ है , जैसे विभीषण ने लंका अपने शत्रु के हाथ बेच दी थी , आज हर दूसरा व्यक्ति विभीषण की तरह अपना देश को बेचने को तैयार है ! मज़े की बात है विभीषण होकर भी वह संत और ' भक्त ' की श्रेणी में पूज्यनीय है ! देश द्रोही विभीषण संस्कृति आज राम के देश में पूरी तरह जडें जमा चुकी है , क्या यह हमारी विजय नहीं है ??
इंद्रजीत और कुंभकरण स्तब्ध होकर उसे देखने लगे !;
--" मे ऋषि विश्ववा का पुत्र !! , राजनीति का प्रकांड विद्वान रावण ,!! क्या मूर्ख था जो मेने उसे लात मारी ? नही पुत्र नही ! विभीषण लात मारने और हमेशा त्याग देने लायक ही था ! मे तो उसे बहुत पहले ही अपने राक्षस समाज से हटाना चाहता था , लकिन तब क्या करता ? इसीलिए मौका देखते ही मेने उसे ' कट' करके वहाँ 'पेस्ट ' कर दिया , जहा उसकी सही जगह थी ! समझे पुत्र ? ";
दोनो ने हामी भरते हुए सिर हिलाया ! रावण का यह स्वरूप उन्होने पहले कभी नही देखा था; !
--" महराज " !! -----कुंभकरण रावण के इस स्वरूप से स्तब्ध होकर , संबोधन बदलते हुए बोला ; --"फिर भी इतिहास मे उसने हमे तिरिस्कार के योग्य, एक पराजित क़ौम बना दिया ;क्या यह सही हुआ ?""
--"; हाँ पिता श्री !! अब देखिए ,हर साल जनता हमे फूँक कर ताप लेती है , हमारा सरे आम अपमान करती है!---; इंद्रजीत क्षुब्द होते हुए बोला ! ;
--" कौन जनता " ? ......यही लोग ना ? जो इस उत्सव को धूमधाम से मना रहे है ? क्या यह वाकई "जनता " है ?.....नही पुत्र नही !अगर ऐसाही होता तो आज हमारे पुतले हर क़ौम द्वारा, दुनिया के हर कोने मे जलाए जा रहे होते !लेकिन ऐसा नही है! जानते हो क्यो नही है ?;
--" ;एसा क्यो नही है पिता श्री ?"
--"; क्यांकी यह सिर्फ़ मन समझाने के लिए है कि चलो रावण मर गया ! जबकि सब जानते है कि रावण नही मरा ! रावन कभी मर ही नहीं सकता ! हर साल रावण को मारने के बाद भी वो उसे कभी मार ही नही पाए ! आज भी चारों ओर रावण ही रावण है !यहा तक कि लोगों के अंदर भी रावण है,! वो खुद भी रावण है ! समझे ?" ; -
रावण ने अट्टहास किया !
; तभी शोर बढ़ गया !किसी विशिष्ट अतिथि का आगमन हो चुका था ! जिसके इंतज़ार मे उत्सव मे विलंब हो रहा था ! सफेद एम्बेसडर कार मे लाल बत्ती चमकती हुई मैदान मे आई ! उसके आगे - पीछे सायरन बजाते हुए पुलिस कि गाड़ी मैदान मे घुसी !;......,
-" ; ये रथ किस तरह कि आवाज़ करते है पिता श्री ?- जैसे सियार बोल रहे हों !"
--" ; ये 'पुलिस सायरन ' है ! इससे लोग रास्ता छोड़ देते है !"
रावण ने खुलासा किया !
राम और लक्ष्मण के स्वरूपों के साथ विशिष्ट अतिथि आगे बढ़ने लगे ! मैदान मे नारे लगने लगे ! राम और लक्ष्मण के स्वरूपों ने तीर कमान सम्हाल लिए !
--" ; देखो-देखो ! वह विभीषण उंगली से उन्हे बता रहा है ! हमारे पुतलों कि ओर इशारा कर् रहा है "
रावण हंसा--";क्या वो हमारे पुतले है??" -- ; -" क्या ;कोई जानता भी है हमारे चेहरे कैसे थे ?" ;
-" ;भैया आप ठीक कह रहे है ! देखिए मेरे पुतले कि गुल्मुछ्छ उस हवालदार से मिलती है जो डंडा घुमा रहा है ! "
--"हाँ चाचा !- और मेरी पतली मूँछ उस आदमी से मिल रही है जो उस विशिस्ट अतिथि के साथ साथ दाहिनी ओर चल रहा है !
....और हाँ पिता श्री !! ..-आपकी मूँछ !! अरे नही आपका तो पूरा चेहरा ही अभी कार् से उतरे उस विशिस्ट अतिथि से मिल रहा है जो राम और लक्ष्मण के साथ आगे बढ़ रहा है !" ;
--" ;बिल्कुल ठीक !!अब ध्यान से देखो , मेरे पुतले के दोनो ओर लगे दस मुंह भी क्या विशिस्ट अतिथि को घेर कर चल रहे उन दस लोगों से नहीं मिल रहे हैं जो नारे लगा रहे है ?" ;
--" ;ठीक कह रहे है पिता श्री ! बिल्कुल ठीक ; ! लेकिन यह कैसे हो गया ? यह तो आश्चर्य है !!"
; रावण हंसा - ; ""यही तो मज़ा है , यही तो राज़ है ! ";
--" ; राज़ क्या है पिता श्री ? कहीं कारीगर तो बदमाशी नही कर गया ; उसीने तो जानबूझ कर वैसे चेहरे नही बना दिए ?" ;
--" ; कारीगर बेचारा मज़दूर आदमी है ,वह क्या बदमाशी करेगा ? और जब वह चेहरे लगा रहा था तो में भी वहीं खड़ा था - उसके नज़दीक !" ;
--" ; तो फिर पिता श्री ?" ;
--" ; उसने कई चेहरे बनाए और फिर बिगाड़े और फिर फिर बनाए , लकिन इन चेहरों के अलवा कोई और चेहरा बना ही नही पा रहा था वह ... !";
_ "लकिन ऐसा कैसे हुआ पिता श्री ?" ;
" --' विधाता' कि करतूत !! - रावण हंसा ; "कारीगर रोज़, दिन रात अख़बारों , पोस्टरों , चौराहों, टीवी मे इन्ही चेहरो को देखता है ! उसके दिमाग मे यही चेहरे रच बस गये है , तो फिर वह और क्या बनाएगा ? उसके लिए तो यही सब चहरे ' रावण ' हैं !" ;
तभी मैदान मे आतिशबाज़ी जगमगा उठी !आकाश चमक से भरने लगा ;
--" ;लीजिए !! वह छूट गया तीर! अब पुतले आग पकड़ने लगे !"- इंद्रजीत ने उन्सांस भर कर कहा !
" हमारे नहीं ..! खुद उनके पुतले - " रावन हंसा !
__" ; हाँ चलो हो गया पुतलों का दहन ! लकिन हमारे चेहरे अभी भी सुरक्षित है ! कोई हमारे असली चेहरे जान ही नही पाया , तो भला हमे क्या मारेगा; ?" - -रावण ने गंभीरता से कहा ! ;
अचानक भीड़ मे शोर शोर मच गया ! रावण , कुंभकरण और मेघनाथ धीरे से भीड़ मे घुलकर विलीन हो गए !
----सभाजीत शर्मा 'सौरभ'