" सिंघासन बत्तीस्सी "
एक नाटक
लेखक - सभाजीत
* भाग एक *
( पुराने नोटंकी नुमा हारमोनियम और नगाड़े की आवाज़ ...! मंच पर एक प्रकाश धीरे धीरे उभरता है ! मद्धिम प्रकाश में मंच पर एक कुर्सी दिखती है ! जो स्वर्णिम पत्तियों से जड़ी है ! मंच पर एक ओर... क्रमबद्ध तरीके से पांच आकृतियाँ ( कलाकार ) फ्रीज़ होकर खड़ी हैं , जो विभिन्न मुद्राओं में है ! मंच पर कुर्सी के पास एक बलिष्ठ वर्दी धरी व्यक्ति पुतले की तरह खड़ा है )
( नेपथ्य में एक ध्वनि उभरती है )
".... परदे के पीछे से , मंच के नीचे से , अथवा चुपचाप आँखें मींच कर खड़ी इन आकृतियों के बीच से , कहीं से भी में ' सूत्र धार' बोल रहा हूँ .., ! चूँकि मेरे बिना कोई भी नाटक शुरू करना , परम्परा के विरुद्ध है , ओर यह नाटक सेधान्तिक रूप से अत्यन्तं परंपरा गत है , अतः पर्दा खींचने के बाद अपनी आवाज़ आप तक पहुँचाना में अपना नेतिक कर्तब्य मानता हूँ , ओर अनेतिक रूप से उस माइक को भी टेस्ट कर लेना चाहता हूँ , जिसके जरिये आप इन आकृतियों को पहचान पायेंगे ! ...,
इस नाटक में मै अपने नाम ओर काम , दोनों से बहुत शर्मिन्दा हूँ , क्योंकि बहुत धुंडने पर भी . इस नाटक का 'सूत्र ' मै नहीं निकाल पाया हूँ , ओर चूँकि नाटककार पहले ही से मंच पर कब्जा जमाये हुए हैं , इसलिए मेरा काम सिर्फ पर्दा खींचना ही रह गया है ! ...,
यह नाटक कुछ विशेष कारणों से मै बीच में ही शुरू कर रहा हूँ , ओर बीच मै ही बंद कर दूंगा !, इसके लिए कोई क्षमा मांगने भी में आप लोगों के बीच मै नहीं आउंगा ! मुझे विशवास है की इस माइक की इको वाली आवाज़ के कारण आप मुझे पहचान भी नहीं पाएंगे ...अतः अपनी सुरक्षा ओर कुशलता के प्रति मै पूरी तरह आश्वस्त हूँ
तो लीजिये ...!..., 'टाइटल मुजिक ' जिसे अक्सर आप मूंगफली खाते हुए भी सुन लेते हैं अब बंद करवा हूँ ओर फ्रीज़ द्रश्य को अन्फ्रीज़ कर रहा हूँ ...,!
( मंच पर प्रकाश धीरे धीरे तीव्र होता है ओर सब कुछ स्पस्ट दीखता है )
( फ्रीज़ हुई आकृतियों मै हलचल होती है , ओए वे पंक्ति बना कर सिंहासन की एक परिक्रमा करके ..सामने आकर खड़ी हो जाती है , फिर आकृतियाँ धीरे धीरे कुर्सी के पास पहुँच कर उसे छूने ओर उस पर बैठने का प्रयत्न करती हैं )
(तभी कुर्सी के पास खड़े वर्दीधारी पुतले मै से एक तेज गंभीर आवाज़ उभरती है ...)
पुतला >.... "' सावधान ''.!!!" ..,
( सब चोंक पड़ते हैं , एक दुसरे को देखकर आँखे फाड़ते हैं ... फिर आपस मै फुस्फ्साहत भरे स्वर मै .., )
एक> " यह आवाज़ कहाँ से आई ...? ' .....,
दूसरा > " यह कौन बोला भाई...?? " ..,
पुतला > ( तेज़ आवाज़ मै ) .., " मै बोला...! यहाँ कुर्सी के पास से से बोला ...!!"
सब लोग > ( चोंक कर आश्चर्य भरे स्वर मै ) " बोलता पुतला ..???"
दूसरा > ' तिलस्मी पुतला ,,,,?? , "
तीसरा > ' कुर्सी छूने पर बोलता है ..."
चौथा > " चलो फिर कुर्सी छू कर टेस्ट करें .." !
( सब कुर्सी की ओर बढ़ते हैं )
पुतला > ..." ठहरो आगे मत बढ़ो ..!!"
पहला > " वाह जी ..! आगे न बढ़ें तो क्या पीछे बढ़ें ..? "
दूसरा > " कुर्सी पर ना चढ़ें तो क्या आप पर चढ़ें ..?? "
पुतला > " ठहरो ...! कुर्सी पर वही बैठे जो योग्य हो..!"
सभी > ( समवेत स्वर मै ).... " हम सभी योग्य हैं .."
पुतला > " तब सिर्फ वही आगे बढे जो अयोग्य हो ..,!"
( सब एक दुसरे का मुंह देखते हैं - खुसर फुसर करते हैं )
पहला > " यह भी कोई बात हुई .?? "
दूसरा > " पुतला सनकी है .."
तीसरा > " पुतला ही तो है ... ज्यादा अकल कहाँ होगी उसमें ..."
चौथा >.... ' नहीं नहीं ऐसा मत कहो ..., कम्पूटर है ... बहुत अक्लमंद होता है .."
पांचवा > हाँ ..!! कंप्यूटर तो आदमी से भी ज्यादा अक्लमंद होता है ..! "
पहला > " रांग फीडिंग हो गयी होगी "
दूसरा > ....होने दो ..! जैसा पूछता है वैसा ही जबाब दे दो ..!! "
तीसरा > " हाँ भाई ,...!! ससुरा जैसा चाहता है वैसा ही बन जाओ ... !"
( पहला व्यक्ति दांत निकालकर आगे बढ़ता है )
पुतला ( टोकते हुए ) - > " कुर्सी छूने से पहले अपनी ' अयोग्यता ' जाहिर करो .., "
पहला > ( हाथ जोड़ कर सर नवाते हुए )... हे आभामयी , स्वर्णमयी , कुर्सी !! तू वन्दनीय है .., तू पुरातन है , महान है .., तेरी प्राचीनता को देखते हुए मै छुद्र इस योग्य कहाँ की की........'
पुतला ( उसे रोकते हुए .., दुसरे की ओर इशारा करके ...) > ...." तुम ..!! ."
( दूसरा व्यक्ति मुस्कराकर कर आगे बढ़ते हुए )> ....." धन्यवाद..!! में जानता था की यह भार मुझे ही उठाना पड़ेगा ..!! "
पुतला ( कुर्सी के आगे हाथ अडाते हुए ) > " बैठने के लिए नहीं ...' अयोग्यता ' बखानने के लिए कहा ..!! "
दूसरा > " अभी जरुरी है क्या ..? बैठने के बाद तो वह ज़ाहिर होती ही रहेगी ..!! "
पुतला > ..." नही ! कुर्सी पर बैठते ही तुम ' योग्य ' बन जाओगे ...,बैठने से पहले ज़ाहिर करो ..!! "
तभी पांचवा व्यक्ति हाथ मै कलम कागज़ लेकर आगे बढ़ता है )
......" ज़रा एक मिनिट देंगे ..? "
पुतला > "क्या तुम भी अयोग्य हो ..? "
पांचवा > " नहीं मै ' जर्नलिस्ट ' हूँ .. पत्रकार ..!! "
पुतला > ..." 'क्या पूछना है .. ?" "
पांचवा > " क्या यह कुर्सी आपकी है .?
पुतला > ." नहीं "
पांचवा > " तब आप कौन होते है रोकने वाले ..? "
पुतला > " इस कुर्सी का पहरेदार "
पांचवा > " तो पहरेदारी करो .. कोई चुरा न ले ...! लोगों को मना क्यों करते हो ..? "
पुतला > " इसलिए क्योंकि मालिक का हुक्म है .."
पांचवा > " कौन है मालिक..? "
पुतला > " राजा भोज " ..!! "
(सब लोग आश्चर्य से ) -- " राजा भोज ...!!! कैसे भोज ..? कौन से भोज ..?? "
पहला > " भोज तो हम पार्टियों को कहते हैं ..'
दुआसरा > " जैसे रात्री भोज -- यानि ' डिनर "
तीसरा > "राजा भोज का मतलब तो हुआ --" राजाओं का भोज ...यानि इम्परर्स डिनर .." !! "
चौथा> " महराजाओं का भोज "
पहला > " यानि इम्परर्स डिनर "
पुतला > ' ..मूर्खतापूर्ण बातें मत करो ..!! यह राजा भोज की कुर्सी है , उनका सिंहासन .., ऐतिहासिक राजा भोज , न्यायप्रिय राजा भोज , प्रजा पलक राजा भोज .., !"
पहला > ...अच्छा ..! अच्छा !! ...तो यह राजा भोज की कुर्सी है .. यानि सिंहासन ..' !
दूसरा > " बत्तीस पुतलियों वाला ' ! "
तीसरा >. " हाँ .. कई साल पहले . चन्दा मामा मै छपी थी इसकी कथा ..., ! "
( पांचवा ) पत्रकार > " तब बाकि पुतलियाँ कहाँ गयीं ?? "
पुतला > ' आसमान मै उड़ गयीं "
पहला > " तब आप भी यहाँ क्या कर रहे हैं ..? वहीँ जाइये ..! "
दूसरा > " हाँ हां !! ...बाकी पुतलियाँ आपकी बाट जोह रही होंगी ..! "
चौथा > ( कड़क कर )...' चुप रहो ..!! जानते नहीं यह कुर्सी समेत उड़ जाएगा ..!"
तीसरा > " हाँ ! हाँ !! ठीक कहा ! छठवीं कक्षा मै नहीं पढ़ा क्या ..? "
दूसरा > " छठवीं कक्षा कहाँ पास की है मेने ..??
पत्रकार > ' तो जाओ ! पहले छठवीं कक्षा की परीक्षा देकर आओ ..! "
पहला >.. " हाँ ! तो पुतले जी ..!! कहाँ मिलेंगे राजा भोज ..? "
पुतला > " वहां ..., दूर मैदानों मै .., जंगलों मै .., खेतों मै .., खेत खोदने के बाद सुस्ता रहे होंगे ..!! "
पहला > " तो क्या बिना उनसे पूछे नहीं बैठ सकते इस कुर्सी पर ..? "
पत्रकार > " अरे क्यों इस पुतले से दिमाग लड़ाते हो ..सीधे राजा भोज से पूछो ..!! "
सब ( समवेत स्वर में ) - हाँ चलो ..यही ठीक है ..! "
( सब मिलकर गाते हुए खोजने का उपक्रम करते हैं )
' खोज खोज खोज ... कहाँ है राजा भोज ..., "
खोज खोज खोज ... कहाँ है राजा भोज "
( तभी दो लोग आगे बढ़ते हैं ओर विंग के बहार से अँधेरे से एक किसान को दोनों हाथों पकड़ कर ले आते हैं )
बाकि लोग > ( दूर से देख कर ) .." .हाँ ! हाँ!! यही हैं राजा भोज ...!! "
पहला>..." वही नम्रता , चाल में सोम्यता .पजा के सम्मान में झुका हुआ बदन .!! ,"
दूसरा > " वही शरीर पर मात्र उत्तरीय .."
तीसरा > " हवा में लहराते सूखे केश .."
चौथा > " प्रजा की चिंता में मुरझाया चेहरा "
सब > हाँ! हाँ ..!! वही हैं राजा भोज "( आगे बढ़ कर शाष्टाग लेट कर ) - ' महराज की जय हो !! " महराज की जय हो ..!! "
किसान > " क्या बात है भैया ..?? "
पहला > " महाराज आप मिल गए .., हमें स्वर्ग मिल गया ..!! "
दूसरा > " हम अंधों को तो जैसे आँखें मिल गयीं .."
तीसरा > " दरिद्रों को दीना नाथ मिल गए ..! "
चौथा > " हमें कुर्सी मिल गयी ! "
पहला > " आपके बिना तो हम जैसे अनाथ थे ..! "
दूसरा > " अब हम उस पुतले को नाथ लेंगे ..! "
तीसरा > " हाँ ! ,, वह तिलस्मी पुतला . कुर्सी पर हाथ ही नहीं रखने दे रहा .! "
चौथा > " आपके आदेश के बिना पसीज ही नहीं रहा ..! "
किसान > " कौन सा पुतला ..? कैसी कुर्सी ..?"
पहला > " अरे वही कुर्सी - बत्तीस पुतलियों वाली .."
दूसरा > " जो पहले जमीन में गडी थी "
तीसरा > " और खेत खोदने पे निकली थी ..! "
चौथा . " वही खेत जो आप खोदते रहते हैं .."
पहला > ' और वो आपके खेत में ही गडी थी ..! "
दूसरा > ' जिसके खेत में गडा माल मिले - वही उसका मालिक .."
तीसरा > इसलिए वह कुर्सी आपकी ही है .."
चौथा > 'आप ही मालिक हैं ..! "
पत्रकार > ( सबको हटाने की कोशिश करते हुए ) - " ज़रा एक मिनिट...! "
दूसरा > ' क्या एक मिनिट ..? क्या इंटरव्यू लोगे ..? "
पत्रकार > " हाँ भाई ! इम्पार्टेंट मेटर है ..! "
पहला ( पत्रकार को हटाते हुए ) - " अरे हटो महराज को परेशान मत करो ..! "
दूसरा > बड़ी मुश्किल से मिले हैं महराज ! "
पत्रकार > " ये क्या आप की खोज हैं ..??"
पहला > " नहीं तो क्या आपके बाप की खोज है ! "
पत्रकार > " देखो शिष्टता से बात करो.... वरना ...."
पहला > " वरना क्या करेंगे आप ? "
पत्रकार > " आपकी अशिष्टता छाप देंगे १ "
दूसरा > " जो आपको पसंद है वही तो छापेंगे आप ..! "
पत्रकार > " देख लूंगा बाद में ( पैर पटकता हुआ चला जाता है )
किसान > " मत लड़ो भैया ..! "
पहला > ' अरे हाँ ! महराज चलिए ..! "
दूसरा > " चलिए अब वह अपनी कुर्सी उस पुतले से वापिस ले लीजिये..! "
तीसरा > " वह उस कुर्सी पर किसी को बैठने ही नहीं दे रहा है ...! "
चौथा > " कंप्यूटर है रांग फीड हो गया है ससुरा ..! "
किसान > ' कहाँ है कुर्सी ..? "
सब लोग > " महाराज की जय ..! चलिए महाराज ... देखिये महराज आपनी कुर्सी ! "
( किसान को लेकर कुर्सी के पास आते हैं )
पहला > " लो भाई पुतले जी आगये महाराज..! "
दूसरा > " मालिक आगये अब वही न्याय करेंगे ! "
तीसरा > " वही फीड करेंगे तुम्हें ..! "
किसान > " यह क्या है ... ? "
पहला > " यह आपकी बत्तीस पुतलियों वाली कुर्सी है ! जिसका अब सिर्फ एक पुतला बचा है ! "
दूसरा > " वह पुतला इस कुर्सी के पीछे खड़ा है - तिलस्मी है ... बोलता है ..! "
तीसरा > " कहता है की सिर्फ आपकी बात मानेगा ..आप मालिक हैं ..! "
चौथा > " क्यूंकि आप पहले इस कुर्सी पर बैठते थे ..! "न्याय करते थे-- धन दौलत लुटाते थे ! "
पहला > " राजा कम - प्रजा अधिक थे ..! "
दूसरा > " वही कुर्सी आज खाली पड़ी है . ..! "
तीसरा > " एकदम वेकेंट ..उस पर कोई नहीं बैठा ..! "
पहला > " पुतला उसे किसी को छूने भी नहीं दे रहा ..! "
दूसरा > " अब आप मालिक हैं तो आप ही इसे छू कर देखिये ..! "
तीसरा > "हाँ ! हाँ !! पहचानिए हुजुर अपनी कुर्सी को ..! "
( सब लोग किसान को धकेलते हुए जबरन उसका हाथ पकड़ जर कुर्सी से छुल्वाते हैं ...! किसान के कुर्सी को छूते ही पुतला सर झुका कर किसान को प्रणाम करता है .. पीछे हट जाता है ! )
( सब चौंक उठते हैं आश्चर्य से आँखें फाड़ते हैं )
पहला > " यह तो सचमुच राजा भोज हैं ..! "
दूसरा > " हाँ भाई ! पुतले ने उन्हें प्रणाम किया ..! "
तीसरा > " सर झुका कर हट गया ..! "
चौथा > " ऐसे डाउन हो गया जैसे वोल्टेज कम हो गया हो ..! "
( किसान खुद आगे बढ़ कर फिर कुर्सी टटोलता है ! )
पहला > " महराज को याद आ रहा है ! "
दूसरा > " हाँ ! वे पहचान रहे हैं ! "
किसान . ( सर पर हाथ रखा कर सोचते हुए ) " कहीं यह वही कुर्सी तो नहीं .., जिसे कल्लू लोहार , लल्लू बढई , छल्लू कारीगर , और धल्लू बंजारे ने मिल कर बनाया था ! जिसकी लकड़ी मेने अपने आँगन के उस पेड़ से दी थी जो मेरे अनजाने पुरखों ने बोया था..... ! "
सब > " हाँ हाँ !! महराज !! ..यह वही कुर्सी है ! "
किसान > " कहीं यह वही कुर्सी तो नहीं जिस पर सभी कारीगरों ने अपने हाथों के निशान बना दिए थे .... जिससे में याद कर सकूँ की , की लल्लू बढई कितना चतुर कारीगर .., कल्लू लोहार मजबूत छाती वाला , छाल्लू कितना मेहनतकश मजदूर , और धल्लू बंजारा कितना निर्मोही और मीठा गायक था ..! "
सब > " हाँ हाँ महराज सच कह रहे हैं आप ..! "
किसान > " तब भैया ... तुम लोग कितने भोले हो ... जो उन कारीगरों के हाथों के निशान को पुतलियाँ समझते रहे ! ....वह तो मेरे साथियों के दिल हैं जो इस कुर्सी से जुड़े थे ...! दिल ...जो धडक रहे थे ! दिल ... जिनकी धड़कने उनके बड़प्पन की कहानिया कहती रही ..! "
पहला > हाँ महाराज हम सचमुच बड़े सीधे हैं ..! "
दूसरा > " हम सब ये बातें क्या जाने ,,, "
तीसरा > " हम तो कुर्सी जानते हैं ... वही देखते आ रहे हैं ..! "
किसान ( हर्षित होकर ) > " तब भैया - यह सचमुच मेरी कुर्सी है ! परन्तु में इस पर कभी नहीं बैठा , इसलिए भूल गया था ! यह हमेशा मेरे मेहमानों से भरी रही ! मेहमान ... जो चाहे थोड़ी देर बैठे हो या ज्यादा देर .... परन्तु आराम से बैठे ..! में तो उनके आगे अपनी ज़मीन पर ही बैठता रहा ! "
पहला > " हम कब कह रहे हैं की आप कुर्सी पर बैठें ..! "
दूसरा > " आप की जहाँ मर्ज़ी हो वहीँ बिराजे!"
तीसरा > " आप तो बस कुर्सी को पहचान ले ...! "
चौथा > " ताकि पुतले का टंटा मिटे ..! "
किसान > " मेने पहचान लिया ..! यह मेरी ही कुर्सी होनी चाहिए ! परन्तु एक बात है ... मेने इसे सोने से नहीं जड़ा था .., यह तो अब बहुत चमकदार बन गयी है ... ..! "
पहला > " हाँ महराज .. हम जैसे लोगों ने इसे छू छू कर चिकना कर दिया है ! "
दूसरा > " इसलिए यह चमक गयी ! "
तीसरा > " अब तो इस पर बैठते ही फिसलने का डर बना रहेगा ..! "
चौथा > " बिलकुल सोने की मुर्गी जैसी हो गयी ... आपकी कुर्सी ! "
किसान > ठीक है !.. ठीक है !! आप कहते हैं तो फिर यह वही कुर्सी होगी ..! "
सब लोग ( चींखते हुए ) > महराज जान गए .., महराज पहचान गए .., महराज मान गए ..!! "
पहला > अरे जाओ रे।।! हर्ष ध्वनि करो ..., नगाड़े बजाओ .., फुल उछालो ..! आज खुशी का दिन है सब शहरों में घरों में बंदनवार बांधो।।, "
( नेपथ्य में आतिशबाजी , पटाखों की आवाजें . नगाड़ों की ध्वनि ....फुल उछल उछल कर मंच पर आते हैं )
पहला > " महाराज आज हमारा मन झूम झूम कर नाचने का हो रहा है ! "
दूसरा > " यह महान दिन है .. आज के दिन आपकी कुर्सी आप को वापिस मिल गयी- खाली ! "
तीसरा > " वह कुर्सी जिसे पुतला लेकर आसमान उड़ गया था ...,और ऊपर ही ऊपर उड़ता रहा ! "
चौथा > " वह कुर्सी ...जिसे हमने ढूंडा ...! "
पहला > ' वह कुर्सी जिसे हमने महराज को दिखाया !"
चौथा > " महाराज ..!! अब हमें भी पहचान जाइये ..! "
पहला > " हम आपके वाही सेवक हैं ..! "
दूसरा > " जो तन मन से सदा आपके धन के बारे में सोचते रहे हैं ! "
तीसरा > " और इसीलिए अब हमने निश्चय किया है की इस कुर्सी को दुबारा उड़ने ना देंगे ..! "
चौथा > " चाहे इसमें हमारी जान ही क्यों न चली जाये .."
पहला > ' हम मर मर कर भी इस कुर्सी की हिफाज़त करते रहेंगे .."
किसान ( खुश हो कर ) > आप लोग कितने भले हैं .. जो मेरी चीज़ के बारे में सोच रहे हैं ! "
पहला > " हाँ महाराज अब हम यह सोच रहें है की इसे उड़ने से कैसे बचाएं ..! "
दूसरा . > " मेरे ख्याल से हम इस कुर्सी को आधा ज़मीन में गाड़ दें ..! "
तीसरा > " ' जिससे पुतला इसे उड़ा ना पाए ..! "
चोथा > " नहीं ...! पुतला बुलडोज़र से उखाड़ लेगा ..! "
पहला > " तब पुतले को आधा ज़मीन में गाड़ दें ..!"
तीसरा > " जिससे वह खुद ही ना उड़ पाए ..! "
चौथा ..( पहले से )... " पुतले को तुम गाड़ोगे ..? "
पहला > ( हकलाकर ) नहीं ...! में नहीं .., परन्तु हम में से जो सबसे अधिक ताकतवर हो वह गाड़ दे ! "
चोथा > . " कौन है ताकतवर .? "
( सब बगलें झांकने लगते हैं )
पहला > " तब हम बारी बारी से पहरा दें ..! "
दूसरा > " लेकिन अगर पुतले ने पहरेदार को फुसला लिया तो ..? "
तीसरा > हाँ हम सब फुसलने में बहुत कमज़ोर हैं ..! "
पहला > " तब पहरेदार को कुर्सी से .. और कुर्सी को खूंटा गाड़ कर ज़मीन से बाँध दें ! "
चौथा > " ठीक है पर कौन है खुद को बंधवाने के लिए तैयार ... आगे आये ..! "
( सभी बगलें झांकते हैं )
पहला > ' ठहरो सुनो .... ( दुसरे के कान में फूंकता है )
दूसरा > " वंडरफुल आइडिया ..!! ( तीसरे के कान में फूंकता है )
तीसरा > " एक्सीलेंट ..!! " ( चोथे के कान में फूंकता है )
चौथा > ( खुश होकर ) " इसे कहते हैं राजनेतिक हल ..! "
( सब लोग किसान की औरबढ़ते हैं ) ....,
पहला > "
महाराज अब आप ही इस कुर्सी को बचा सकते हैं ..! "
किसान > "( चौंक कर ) ... में .....!!
सब > " हाँ महाराज आप और सिर्फ आप ..!! क्योंकि इस कुर्सी के मालिक सिर्फ आप हैं ..! "
पहला > " और जिसकी कुर्सी वही बचाए "
दूसरा > " अपना बोझा खुदी उठाये ..! "
तीसरा > ' बिलकुल ..!!! जिसकी होवे भेंस वाही लाठी चलवाए ..! "
चौथा > हाँ ! जैसे जिसकी लाठी , उसकी भेंस ..! "
पहला > " चुप।।! यह हिंसक सिद्धांत है ! अपनी परम्परा और धर्म के विरुद्ध ..! "
दूसरा > ( चौथे से ) ..." सही ढंग से बात बनाना भी नहीं आती तुमको ..? "
चौथा > " सही ढंग क्या है भाई ..? "
तीसरा > " गलत बात को इस तरह बोलना की वह सही लगे ..! "
किसान > "ठीक है ! ठीक है ... भैया परन्तु में कैसे बचा सकता हूँ इस कुर्सी को ..? "
सब > . " .. यह हमने सोच लिया है ..! "
पहला > " इधर आइये महाराज .. "
दूसरा > " आगे बढिए महा महिम ..! "
तीसरा > ( गाते हुए ) " हम सेवक इन चरणविन्द के ..! "
(चौथा व्यक्ति एक सुनहरी जंजीर ( लम्बी - मोटी सांकल ) ले कर आता है जिसमें एक और एक कुन्दा ( गोल छल्ला ) है और दूसरी और एक सुनहरी कमर पेटी ( बेल्ट ) लगी है ! कमर पेटी में एक कब्ज़ा लगा है जिसमें ताला लगाया जा सकता है )
चौथा > " यह है वह यंत्र "
पहला > " तंत्र मंत्र ..! "
दूसरा > " कड़ी दर कड़ी बंधी शक्तिशाली व्यवस्था की ज़ंजीर ..! "
तीसरा >" जो आपको और इस कुर्सी को जोड़ कर रखेगी ..! "
चौथा > " पुतले के इरादों का मुंह तोड़ कर रखेगी ! "
पहला > " अच्छे अच्छों की हड्डियां फोड़ कर रखेगी ..! "
( सब किसान को पकड़ लेते हैं )
किसान > " अरे यह क्या कर रहे हैं आप लोग ..? "
पहला > " शांत !!.. महराज शांत !! " .
दूसरा > " धैर्य ... से काम लें हुजुर ..! "
तीसरा > " यह मजबूत इरादों .. का अवसर है ..एक बार दिखा दीजिये पुरी दुनिया को अपने मजबूत इरादे ..! "
( दो लोग मिलकर किसान को पकडे रहते हैं और एक आदमी आगे बढ़ कर पहली सांकल के एक छोर पर लगे छल्ले को कुर्सी के पैर में फंसाता है , और फिर सांकल को फैलाते हुए किसान के पास आकर उसकी कमर में लपेट कर पट्टा बाँध देता है ! )
पहला > " वह आई कुर्सी ज़ंजीर की गिरफ्त में ..! "
दूसरा > और फिर यह ज़ंजीर आपकी गिरफ्त में ! " ( कब्ज़े में ताला लगाता है ) !
तीसरा > और यह लगा ताला .! "...
चौथा > " .अलीगढ वाला ! "
पहला > " अब यह कुर्सी पुरी तरह आपकी है ! "
दूसरा > " जैसे ही यह कुर्सी हिलेगी ...ज़ंजीर हिलेगी ...! "
तीसरा > " ज़ंजीर हिलेगी तो आप की कमर हिलेगी ..! "
चौथा > " कमर हिलेगी तो ज़ाहिर है आप हिलेंगे ..! "
पहला > " और तब आपको यह पता चल जाएगा की कोई कुर्सी छू रहा है ! "
दूसरा > " बस ..!! तब आप फ़ौरन हमें बता देना ! "
तीसरा > " और हम कुर्सी को उड़ने नहीं देंगे ..! "
किसान > " ठीक है ! ठीक है ! "
पहला > ( किसान के कान के पास मुंह ले जा कर, रहस्यमय स्वर में ) ...' लेकिन महाराज अभी खतरा टला नहीं है ! "
दूसरा > " हाँ जब तक पुतला है कुर्सी खतरे में है ! "
तीसरा > " इसलिए इसकी चौकीदारी करना भी जरुरी होगा ! "
किसान > " ठीक है ! में इसकी चौकीदारी कर लूंगा ! "
सब > ( हैरान होकर आश्चर्य से ) ..." महाराज आप ..? "
पहला > " नहीं नहीं !! यह कैसे हो सकता है ! "
दूसरा > " यह हमारी परम्परा के विरुद्ध है ! "
तीसरा > " हमारे देश की महान परम्परा ..! "
चौथा > " परम्पराओं में महान हमारा देश ..! "
पहला > ..." भला यह कैसे हो सकता है की महाराज चौकीदार बन जाएँ ...? "
दूसरा > " जो महाराज हैं वो महाराज ही रहेंगे ..! "
तीसरा > " और जो चौकीदार हैं वो चौकीदार !! "
चौथा > " परम्परा बनाये रखने के लिए ... परम्पराओं से लेकर परम्पराओं तक ....! "
पहला > " हम यह पूर्ण प्रयास करेंगे की .."
दूसरा > जो जैसा हैं वैसा ही बना रहें ..! "
किसान > " ठीक है भैया ! .... जैसा आप चाहें ..! "
पहला > " तो अब आपके हुकुम से हम सब लोग बारी बारी से इस कुर्सी की चौकीदारी करेंगे ..! "
दूसरा > " हम कुर्सी पर बैठ कर देखेंगे की कोई इसे फूंक से उड़ा तो नहीं रहा है ..! "
तीसरा > " पुतला कुर्सी छूने से पहले हमें पूछेगा ! "
चौथा > " हम जागते रहेंगे ... चाहे उंघते हुए जागना पड़े ..! "
( सब समवेत स्वर में गाते हैं )
" कुर्सी पर बैठ कर , नारों को सेट कर ..,
एक राग गायेंगे ... कुर्सियां बचायेंगे ..!
तू तू और में में को , आपस की चेचे को ,
राजनीती बताएँगे ..कुर्सियां बचायेंगे !
हम दो हमारे दो .., दोनों के फिर दो दो .,
सबको बुलाएँगे .., कुर्सियां बचायेंगे ..!! "
पहला > ( सबको हटाते हुए ) तो ठीक है पहले में बैठता हूँ ! '
दूसरा > ( चिल्ला कर बोलते हुए ) " तुम क्योँ ..?? .. पहले में बैठूंगा ! "
पहला > "तुम नहीं में ..! "
दूसरा > में नहीं में ..! "
पहला >..' में अनुभवी चौकीदार हूँ ..! "
दूसरा > " में खानदानी चौकीदार हूँ ..! "
(सब चिल्लाने लगते हैं ) ...." में ..में ...में।।।में ..!!
पुतला > ( दहाड़ कर ) ... " बंद करो यह संगीत ! "
(सब सहम जाते हैं )
पहला > " क्यों भाई तुम्हे क्या हो गया ..? "
दूसरा > " तुम फिर बोलने लगे ..? "
तीसर्रा > " क्या तुम्हे यह ' वेस्टर्न " ट्यून समझ में आगई ..? "
चौथा > " यह तो हमारा कौमी गीत है ..! "
पहला > " कौमी ताल तो अभी बजी ही नहीं ..! "
पुतला > " बकवास बंद करो ! ....चौकीदार महराज मुक़र्रर करेंगे ...! "
( सब किसान की और मुड़ते हैं )
पहला > " अरे हम तो भूल ही गए थे ...महाराज तो अभी यहीं हैं ! "
दूसरा > ( तेज स्वर में ) हाँ ! हाँ ! ...वही मुकर्र करेंगे ..! "
तीसरा > " हाँ महाराज ही चुनेंगे चौकीदार ..! "
चौथा > " महाराज हम में से एक को चुन लीजिये ! "
पहला > " हाँ ! याद कीजिये स्वयंवर की ..! "
दूसरा > " वरमाल की ! "
तीसरा > " आपको चुनना ... चुनवाना तो आता ही है ! "
चौथा > " कितने ही चुनवाये होंगे आपने ...! "
पहला > " चुप मुर्ख ! ... चुनवाने को याद मत दिला .. सिर्फ चुनने की बात कह ..! " ..
दूसरा > .. हाँ हाँ सही कहा ! ( किसान से ) ...हजुर जल्दी कीजिये ! "
तीसरा > " .. वो पुतला फिर बोल रहा है ! "
चौथा > ' " उसके इरादे ठीक नहीं है ! "
पहला > ' वह तिलस्मी है ..! "
दूसरा > " इससे पहले की उसमे वायरस आये .. आप चुनाव कर लीजिये ! "
( सब एक लाइन में खड़े हो जाते है ....)किसान सबको देखने लगता है )
पहला > ( दुसरे की और इशारा करके ) ...." इसे आप ज्यादा गौर से मत देखिये ! ...ये फरेबी है ! "
दूसरा > ( पहले की और इशारा करके ) ..." इसे मत चुनिए ..इसका बाप नचनिया है ! "
तीसरा > ( चौथे की और इशारा करके ) ..." इसे भूल जाइये .. .. यह लौंडा है ! "
चौथा > > ( तीसरे की और इशारा करके ) " इसके घर में चूहों के बिल है ! अन्दर ही अन्दर सुरंगें हैं ! "
पहला > " मुझे देखिये में मजबूत हूँ ! "
दूसरा > " मुझे देखिये में रात भर उल्लुओं की तरह जाग सकता हूँ ! "
तीसरा >. " ... में बिल्लियों की तरह लड़ सकता हूँ , नोंच सकता हूँ .. खसोट सकता हूँ ! "
चौथा > " मुझे देखिये में सात पुश्तों से चोकीदार हूँ ..! "
किसान > " आप लोग लड़िये मत "
सब > " हम कहाँ लड़ रहे हैं हुजुर।।,
हम तो नया युग गढ़ रहें है हुजुर ..,
आपके पैर पड़ रहे हैं हुजुर ..,
कुर्सी के लिए सड रहे हैं हुजुर ..! "
किसान हैरान होकर सबको देखने लगता है )
पहला > " ठहरो।।! ठहरो।।!! एक तरकीब है ..! "
( एक कपड़ा निकालता है , किसान की और बढ़ाकर ))
इसे अपनी आँखों पर बाँध लें सरकार ..! "
किसान > " क्योँ ..?? "
पहला > " जिससे आप हमें देख कर ना चुन सकें ! "
( आगे बढ़कर किसान की आँखों पर पट्टी बांध देता है )
दूसरा > अब हम फिर से एक लाइन में खड़े हो जाते हैं ! "
तीसरा > " आप हम में से किसी भी एक का हाथ पकड़ लें ..! "
किसान > " परन्तु इस तरह तो में कुछ भी न देख पाउँगा की मेने किसका हाथ पकड़ा है ! "
पहला > " पुतला देख रहा है सरकार ..! "
दूसरा > " वह देख लेगा की आपने किसका हाथ पकड़ा है ! "
तीसरा > " वह आपको बता देगा !"
पहला > " इसी लिय तो हम आपके कान नहीं बाँध रहे है की आप सुन सकें ! "
दूसरा > " मुह नहीं बाँध रहे हैं ..की आप बोल सकें ..! "
किसान > " ठीक है भैया ...."
पहला > " तो अब शुरू होता है ... पुतले जी आप बोले - एक दो तीन ..! "
पुतला > " ठीक है ! ...तो,,,,,,,,. एक,!,,,,,,,,,,,,,,,दो !!.................. ... "
( सब लोगों में भगदड़ मच जाती है ... सब एक दुसरे के ऊपर चढ़ कर किसान को खुद अपना हाथ पकडवाने की कोशिश करते हैं और एक दुसरे की टांग घसीटते हैं ! जूते मारते हैं ...दबोच लेते हैं ,
दूसरा > " महाराज की परख चोखी है ! "
तीसरा > सही आदमी को सही काम ..! "
पहला > बिलकुल सही काम ...! "
सब लोग ( चिल्ला कर ) .... खल्क खुदा का , मुल्क बादशाह का .., और राज भोज का ..! "
चौथा > ( नगाड़े की चोट पर ) ....सुनिए एलान ..!!...अब महराज के हुकुम की तालीम करने के लिए में महाराजा का प्रतिरूप --- " चौकीदार महाराज " पांच घंटों तक इस कुर्सी की रखवाली करूंगा ! पहली पांच घंटो तक बराबर ...और बाद में जब तक महाराज चाहेंगे तब तक ...! "
दो ( चमचे ) > " महाराज आपको चाहते थे , चाहते रहेंगे ...! "
बाकि चमचे > " हम भी आपको चाहते हैं .. चाहते थे .. ., चाहते रहेंगे ...,! "
( सब लोग चुने गए चौकीदार को हाथों में उठा कर कुर्सी पर बैठाल देते हैं )
( सभी फ्रीज़ हो जाते हैं प्रकाश मद्धिम हो जाता है .. नेपथ्य से सूत्रधार की आवाज़ ...)
"....मैं सूत्रधार हूँ ! बीच में टांग अड़ाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ! यह बतलाते हुए मुझे प्रसन्नता है की यह इन्टरवल है यानी मध्यांतर ! उबासी लेते हुए दर्शक गण , सम्मानित अतिथि गण जिन्हें और भी कई उद्घाटन समारोहों में जाना है , इस अँधेरे का लाभ लेकर उठ सकते हैं ! महिला वर्ग से जिन पत्नियों ने अपने पतियों को घर चलने के इशारे किये हैं , वे भी घर जाने को स्वतंत्र हैं ! ...,
यह इंटरवल जैसा की आम इंटरवल होता है वैसा ही है ! अर्थात कुछ क्षणों का ..!... " क्षणिक " ..! यह चूँकि परम्परागत रूप से किया जाता है इसलिए किया गया है .. इस बीच दर्शक द्रश्यों के आधार पर नाटक के अंत के बारे में कयास लगाते हैं .., रोमांचित होते हैं ..., शायद भयग्रस्त भी होते होंगे ! लेकिन दर्शकों से हमें क्या लेना देना ..? हुई है वाही जो राईटर रची राखा ! ,,! "
नाटक के बीच में जिन महानुभावों ने फिकरे कसने या हूट करने का प्रयास किया है उन्हें बधाई ..! प्रसन्नता की बात है की भीड़ में बैठी अपनी प्रेमिकाओं का ध्यान वे अपनी और आकर्षित करने में सफल हुए हैं ! हूट ना करने वालों को भी बधाई ...उनके बुद्धिजीवी होने का वांछित प्रभाव , उनसे सम्बंधित लोगों पर बखूबी पडा है और हमें आशा है की लोगों पर उनके बारे में बना यह भ्रम बना ही रहेगा ! !
तो लीजिये सब कुछ हो चुका ...और अब फिर पेव्श है वही सब कुछ,,,,"
(..मंच पर प्रक्काश तीव्र होता है ! )
........ .........( क्रमशः .... भाग दो पढ़ें ..)
.
.!
"
एक नाटक
लेखक - सभाजीत
* भाग एक *
( पुराने नोटंकी नुमा हारमोनियम और नगाड़े की आवाज़ ...! मंच पर एक प्रकाश धीरे धीरे उभरता है ! मद्धिम प्रकाश में मंच पर एक कुर्सी दिखती है ! जो स्वर्णिम पत्तियों से जड़ी है ! मंच पर एक ओर... क्रमबद्ध तरीके से पांच आकृतियाँ ( कलाकार ) फ्रीज़ होकर खड़ी हैं , जो विभिन्न मुद्राओं में है ! मंच पर कुर्सी के पास एक बलिष्ठ वर्दी धरी व्यक्ति पुतले की तरह खड़ा है )
( नेपथ्य में एक ध्वनि उभरती है )
".... परदे के पीछे से , मंच के नीचे से , अथवा चुपचाप आँखें मींच कर खड़ी इन आकृतियों के बीच से , कहीं से भी में ' सूत्र धार' बोल रहा हूँ .., ! चूँकि मेरे बिना कोई भी नाटक शुरू करना , परम्परा के विरुद्ध है , ओर यह नाटक सेधान्तिक रूप से अत्यन्तं परंपरा गत है , अतः पर्दा खींचने के बाद अपनी आवाज़ आप तक पहुँचाना में अपना नेतिक कर्तब्य मानता हूँ , ओर अनेतिक रूप से उस माइक को भी टेस्ट कर लेना चाहता हूँ , जिसके जरिये आप इन आकृतियों को पहचान पायेंगे ! ...,
इस नाटक में मै अपने नाम ओर काम , दोनों से बहुत शर्मिन्दा हूँ , क्योंकि बहुत धुंडने पर भी . इस नाटक का 'सूत्र ' मै नहीं निकाल पाया हूँ , ओर चूँकि नाटककार पहले ही से मंच पर कब्जा जमाये हुए हैं , इसलिए मेरा काम सिर्फ पर्दा खींचना ही रह गया है ! ...,
यह नाटक कुछ विशेष कारणों से मै बीच में ही शुरू कर रहा हूँ , ओर बीच मै ही बंद कर दूंगा !, इसके लिए कोई क्षमा मांगने भी में आप लोगों के बीच मै नहीं आउंगा ! मुझे विशवास है की इस माइक की इको वाली आवाज़ के कारण आप मुझे पहचान भी नहीं पाएंगे ...अतः अपनी सुरक्षा ओर कुशलता के प्रति मै पूरी तरह आश्वस्त हूँ
तो लीजिये ...!..., 'टाइटल मुजिक ' जिसे अक्सर आप मूंगफली खाते हुए भी सुन लेते हैं अब बंद करवा हूँ ओर फ्रीज़ द्रश्य को अन्फ्रीज़ कर रहा हूँ ...,!
( मंच पर प्रकाश धीरे धीरे तीव्र होता है ओर सब कुछ स्पस्ट दीखता है )
( फ्रीज़ हुई आकृतियों मै हलचल होती है , ओए वे पंक्ति बना कर सिंहासन की एक परिक्रमा करके ..सामने आकर खड़ी हो जाती है , फिर आकृतियाँ धीरे धीरे कुर्सी के पास पहुँच कर उसे छूने ओर उस पर बैठने का प्रयत्न करती हैं )
(तभी कुर्सी के पास खड़े वर्दीधारी पुतले मै से एक तेज गंभीर आवाज़ उभरती है ...)
पुतला >.... "' सावधान ''.!!!" ..,
( सब चोंक पड़ते हैं , एक दुसरे को देखकर आँखे फाड़ते हैं ... फिर आपस मै फुस्फ्साहत भरे स्वर मै .., )
एक> " यह आवाज़ कहाँ से आई ...? ' .....,
दूसरा > " यह कौन बोला भाई...?? " ..,
पुतला > ( तेज़ आवाज़ मै ) .., " मै बोला...! यहाँ कुर्सी के पास से से बोला ...!!"
सब लोग > ( चोंक कर आश्चर्य भरे स्वर मै ) " बोलता पुतला ..???"
दूसरा > ' तिलस्मी पुतला ,,,,?? , "
तीसरा > ' कुर्सी छूने पर बोलता है ..."
चौथा > " चलो फिर कुर्सी छू कर टेस्ट करें .." !
( सब कुर्सी की ओर बढ़ते हैं )
पुतला > ..." ठहरो आगे मत बढ़ो ..!!"
पहला > " वाह जी ..! आगे न बढ़ें तो क्या पीछे बढ़ें ..? "
दूसरा > " कुर्सी पर ना चढ़ें तो क्या आप पर चढ़ें ..?? "
पुतला > " ठहरो ...! कुर्सी पर वही बैठे जो योग्य हो..!"
सभी > ( समवेत स्वर मै ).... " हम सभी योग्य हैं .."
पुतला > " तब सिर्फ वही आगे बढे जो अयोग्य हो ..,!"
( सब एक दुसरे का मुंह देखते हैं - खुसर फुसर करते हैं )
पहला > " यह भी कोई बात हुई .?? "
दूसरा > " पुतला सनकी है .."
तीसरा > " पुतला ही तो है ... ज्यादा अकल कहाँ होगी उसमें ..."
चौथा >.... ' नहीं नहीं ऐसा मत कहो ..., कम्पूटर है ... बहुत अक्लमंद होता है .."
पांचवा > हाँ ..!! कंप्यूटर तो आदमी से भी ज्यादा अक्लमंद होता है ..! "
पहला > " रांग फीडिंग हो गयी होगी "
दूसरा > ....होने दो ..! जैसा पूछता है वैसा ही जबाब दे दो ..!! "
तीसरा > " हाँ भाई ,...!! ससुरा जैसा चाहता है वैसा ही बन जाओ ... !"
( पहला व्यक्ति दांत निकालकर आगे बढ़ता है )
पुतला ( टोकते हुए ) - > " कुर्सी छूने से पहले अपनी ' अयोग्यता ' जाहिर करो .., "
पहला > ( हाथ जोड़ कर सर नवाते हुए )... हे आभामयी , स्वर्णमयी , कुर्सी !! तू वन्दनीय है .., तू पुरातन है , महान है .., तेरी प्राचीनता को देखते हुए मै छुद्र इस योग्य कहाँ की की........'
पुतला ( उसे रोकते हुए .., दुसरे की ओर इशारा करके ...) > ...." तुम ..!! ."
( दूसरा व्यक्ति मुस्कराकर कर आगे बढ़ते हुए )> ....." धन्यवाद..!! में जानता था की यह भार मुझे ही उठाना पड़ेगा ..!! "
पुतला ( कुर्सी के आगे हाथ अडाते हुए ) > " बैठने के लिए नहीं ...' अयोग्यता ' बखानने के लिए कहा ..!! "
दूसरा > " अभी जरुरी है क्या ..? बैठने के बाद तो वह ज़ाहिर होती ही रहेगी ..!! "
पुतला > ..." नही ! कुर्सी पर बैठते ही तुम ' योग्य ' बन जाओगे ...,बैठने से पहले ज़ाहिर करो ..!! "
तभी पांचवा व्यक्ति हाथ मै कलम कागज़ लेकर आगे बढ़ता है )
......" ज़रा एक मिनिट देंगे ..? "
पुतला > "क्या तुम भी अयोग्य हो ..? "
पांचवा > " नहीं मै ' जर्नलिस्ट ' हूँ .. पत्रकार ..!! "
पुतला > ..." 'क्या पूछना है .. ?" "
पांचवा > " क्या यह कुर्सी आपकी है .?
पुतला > ." नहीं "
पांचवा > " तब आप कौन होते है रोकने वाले ..? "
पुतला > " इस कुर्सी का पहरेदार "
पांचवा > " तो पहरेदारी करो .. कोई चुरा न ले ...! लोगों को मना क्यों करते हो ..? "
पुतला > " इसलिए क्योंकि मालिक का हुक्म है .."
पांचवा > " कौन है मालिक..? "
पुतला > " राजा भोज " ..!! "
(सब लोग आश्चर्य से ) -- " राजा भोज ...!!! कैसे भोज ..? कौन से भोज ..?? "
पहला > " भोज तो हम पार्टियों को कहते हैं ..'
दुआसरा > " जैसे रात्री भोज -- यानि ' डिनर "
तीसरा > "राजा भोज का मतलब तो हुआ --" राजाओं का भोज ...यानि इम्परर्स डिनर .." !! "
चौथा> " महराजाओं का भोज "
पहला > " यानि इम्परर्स डिनर "
पुतला > ' ..मूर्खतापूर्ण बातें मत करो ..!! यह राजा भोज की कुर्सी है , उनका सिंहासन .., ऐतिहासिक राजा भोज , न्यायप्रिय राजा भोज , प्रजा पलक राजा भोज .., !"
पहला > ...अच्छा ..! अच्छा !! ...तो यह राजा भोज की कुर्सी है .. यानि सिंहासन ..' !
दूसरा > " बत्तीस पुतलियों वाला ' ! "
तीसरा >. " हाँ .. कई साल पहले . चन्दा मामा मै छपी थी इसकी कथा ..., ! "
( पांचवा ) पत्रकार > " तब बाकि पुतलियाँ कहाँ गयीं ?? "
पुतला > ' आसमान मै उड़ गयीं "
पहला > " तब आप भी यहाँ क्या कर रहे हैं ..? वहीँ जाइये ..! "
दूसरा > " हाँ हां !! ...बाकी पुतलियाँ आपकी बाट जोह रही होंगी ..! "
चौथा > ( कड़क कर )...' चुप रहो ..!! जानते नहीं यह कुर्सी समेत उड़ जाएगा ..!"
तीसरा > " हाँ ! हाँ !! ठीक कहा ! छठवीं कक्षा मै नहीं पढ़ा क्या ..? "
दूसरा > " छठवीं कक्षा कहाँ पास की है मेने ..??
पत्रकार > ' तो जाओ ! पहले छठवीं कक्षा की परीक्षा देकर आओ ..! "
पहला >.. " हाँ ! तो पुतले जी ..!! कहाँ मिलेंगे राजा भोज ..? "
पुतला > " वहां ..., दूर मैदानों मै .., जंगलों मै .., खेतों मै .., खेत खोदने के बाद सुस्ता रहे होंगे ..!! "
पहला > " तो क्या बिना उनसे पूछे नहीं बैठ सकते इस कुर्सी पर ..? "
पत्रकार > " अरे क्यों इस पुतले से दिमाग लड़ाते हो ..सीधे राजा भोज से पूछो ..!! "
सब ( समवेत स्वर में ) - हाँ चलो ..यही ठीक है ..! "
( सब मिलकर गाते हुए खोजने का उपक्रम करते हैं )
' खोज खोज खोज ... कहाँ है राजा भोज ..., "
खोज खोज खोज ... कहाँ है राजा भोज "
( तभी दो लोग आगे बढ़ते हैं ओर विंग के बहार से अँधेरे से एक किसान को दोनों हाथों पकड़ कर ले आते हैं )
बाकि लोग > ( दूर से देख कर ) .." .हाँ ! हाँ!! यही हैं राजा भोज ...!! "
पहला>..." वही नम्रता , चाल में सोम्यता .पजा के सम्मान में झुका हुआ बदन .!! ,"
दूसरा > " वही शरीर पर मात्र उत्तरीय .."
तीसरा > " हवा में लहराते सूखे केश .."
चौथा > " प्रजा की चिंता में मुरझाया चेहरा "
सब > हाँ! हाँ ..!! वही हैं राजा भोज "( आगे बढ़ कर शाष्टाग लेट कर ) - ' महराज की जय हो !! " महराज की जय हो ..!! "
किसान > " क्या बात है भैया ..?? "
पहला > " महाराज आप मिल गए .., हमें स्वर्ग मिल गया ..!! "
दूसरा > " हम अंधों को तो जैसे आँखें मिल गयीं .."
तीसरा > " दरिद्रों को दीना नाथ मिल गए ..! "
चौथा > " हमें कुर्सी मिल गयी ! "
पहला > " आपके बिना तो हम जैसे अनाथ थे ..! "
दूसरा > " अब हम उस पुतले को नाथ लेंगे ..! "
तीसरा > " हाँ ! ,, वह तिलस्मी पुतला . कुर्सी पर हाथ ही नहीं रखने दे रहा .! "
चौथा > " आपके आदेश के बिना पसीज ही नहीं रहा ..! "
किसान > " कौन सा पुतला ..? कैसी कुर्सी ..?"
पहला > " अरे वही कुर्सी - बत्तीस पुतलियों वाली .."
दूसरा > " जो पहले जमीन में गडी थी "
तीसरा > " और खेत खोदने पे निकली थी ..! "
चौथा . " वही खेत जो आप खोदते रहते हैं .."
पहला > ' और वो आपके खेत में ही गडी थी ..! "
दूसरा > ' जिसके खेत में गडा माल मिले - वही उसका मालिक .."
तीसरा > इसलिए वह कुर्सी आपकी ही है .."
चौथा > 'आप ही मालिक हैं ..! "
पत्रकार > ( सबको हटाने की कोशिश करते हुए ) - " ज़रा एक मिनिट...! "
दूसरा > ' क्या एक मिनिट ..? क्या इंटरव्यू लोगे ..? "
पत्रकार > " हाँ भाई ! इम्पार्टेंट मेटर है ..! "
पहला ( पत्रकार को हटाते हुए ) - " अरे हटो महराज को परेशान मत करो ..! "
दूसरा > बड़ी मुश्किल से मिले हैं महराज ! "
पत्रकार > " ये क्या आप की खोज हैं ..??"
पहला > " नहीं तो क्या आपके बाप की खोज है ! "
पत्रकार > " देखो शिष्टता से बात करो.... वरना ...."
पहला > " वरना क्या करेंगे आप ? "
पत्रकार > " आपकी अशिष्टता छाप देंगे १ "
दूसरा > " जो आपको पसंद है वही तो छापेंगे आप ..! "
पत्रकार > " देख लूंगा बाद में ( पैर पटकता हुआ चला जाता है )
किसान > " मत लड़ो भैया ..! "
पहला > ' अरे हाँ ! महराज चलिए ..! "
दूसरा > " चलिए अब वह अपनी कुर्सी उस पुतले से वापिस ले लीजिये..! "
तीसरा > " वह उस कुर्सी पर किसी को बैठने ही नहीं दे रहा है ...! "
चौथा > " कंप्यूटर है रांग फीड हो गया है ससुरा ..! "
किसान > ' कहाँ है कुर्सी ..? "
सब लोग > " महाराज की जय ..! चलिए महाराज ... देखिये महराज आपनी कुर्सी ! "
( किसान को लेकर कुर्सी के पास आते हैं )
पहला > " लो भाई पुतले जी आगये महाराज..! "
दूसरा > " मालिक आगये अब वही न्याय करेंगे ! "
तीसरा > " वही फीड करेंगे तुम्हें ..! "
किसान > " यह क्या है ... ? "
पहला > " यह आपकी बत्तीस पुतलियों वाली कुर्सी है ! जिसका अब सिर्फ एक पुतला बचा है ! "
दूसरा > " वह पुतला इस कुर्सी के पीछे खड़ा है - तिलस्मी है ... बोलता है ..! "
तीसरा > " कहता है की सिर्फ आपकी बात मानेगा ..आप मालिक हैं ..! "
चौथा > " क्यूंकि आप पहले इस कुर्सी पर बैठते थे ..! "न्याय करते थे-- धन दौलत लुटाते थे ! "
पहला > " राजा कम - प्रजा अधिक थे ..! "
दूसरा > " वही कुर्सी आज खाली पड़ी है . ..! "
तीसरा > " एकदम वेकेंट ..उस पर कोई नहीं बैठा ..! "
पहला > " पुतला उसे किसी को छूने भी नहीं दे रहा ..! "
दूसरा > " अब आप मालिक हैं तो आप ही इसे छू कर देखिये ..! "
तीसरा > "हाँ ! हाँ !! पहचानिए हुजुर अपनी कुर्सी को ..! "
( सब लोग किसान को धकेलते हुए जबरन उसका हाथ पकड़ जर कुर्सी से छुल्वाते हैं ...! किसान के कुर्सी को छूते ही पुतला सर झुका कर किसान को प्रणाम करता है .. पीछे हट जाता है ! )
( सब चौंक उठते हैं आश्चर्य से आँखें फाड़ते हैं )
पहला > " यह तो सचमुच राजा भोज हैं ..! "
दूसरा > " हाँ भाई ! पुतले ने उन्हें प्रणाम किया ..! "
तीसरा > " सर झुका कर हट गया ..! "
चौथा > " ऐसे डाउन हो गया जैसे वोल्टेज कम हो गया हो ..! "
( किसान खुद आगे बढ़ कर फिर कुर्सी टटोलता है ! )
पहला > " महराज को याद आ रहा है ! "
दूसरा > " हाँ ! वे पहचान रहे हैं ! "
किसान . ( सर पर हाथ रखा कर सोचते हुए ) " कहीं यह वही कुर्सी तो नहीं .., जिसे कल्लू लोहार , लल्लू बढई , छल्लू कारीगर , और धल्लू बंजारे ने मिल कर बनाया था ! जिसकी लकड़ी मेने अपने आँगन के उस पेड़ से दी थी जो मेरे अनजाने पुरखों ने बोया था..... ! "
सब > " हाँ हाँ !! महराज !! ..यह वही कुर्सी है ! "
किसान > " कहीं यह वही कुर्सी तो नहीं जिस पर सभी कारीगरों ने अपने हाथों के निशान बना दिए थे .... जिससे में याद कर सकूँ की , की लल्लू बढई कितना चतुर कारीगर .., कल्लू लोहार मजबूत छाती वाला , छाल्लू कितना मेहनतकश मजदूर , और धल्लू बंजारा कितना निर्मोही और मीठा गायक था ..! "
सब > " हाँ हाँ महराज सच कह रहे हैं आप ..! "
किसान > " तब भैया ... तुम लोग कितने भोले हो ... जो उन कारीगरों के हाथों के निशान को पुतलियाँ समझते रहे ! ....वह तो मेरे साथियों के दिल हैं जो इस कुर्सी से जुड़े थे ...! दिल ...जो धडक रहे थे ! दिल ... जिनकी धड़कने उनके बड़प्पन की कहानिया कहती रही ..! "
पहला > हाँ महाराज हम सचमुच बड़े सीधे हैं ..! "
दूसरा > " हम सब ये बातें क्या जाने ,,, "
तीसरा > " हम तो कुर्सी जानते हैं ... वही देखते आ रहे हैं ..! "
किसान ( हर्षित होकर ) > " तब भैया - यह सचमुच मेरी कुर्सी है ! परन्तु में इस पर कभी नहीं बैठा , इसलिए भूल गया था ! यह हमेशा मेरे मेहमानों से भरी रही ! मेहमान ... जो चाहे थोड़ी देर बैठे हो या ज्यादा देर .... परन्तु आराम से बैठे ..! में तो उनके आगे अपनी ज़मीन पर ही बैठता रहा ! "
पहला > " हम कब कह रहे हैं की आप कुर्सी पर बैठें ..! "
दूसरा > " आप की जहाँ मर्ज़ी हो वहीँ बिराजे!"
तीसरा > " आप तो बस कुर्सी को पहचान ले ...! "
चौथा > " ताकि पुतले का टंटा मिटे ..! "
किसान > " मेने पहचान लिया ..! यह मेरी ही कुर्सी होनी चाहिए ! परन्तु एक बात है ... मेने इसे सोने से नहीं जड़ा था .., यह तो अब बहुत चमकदार बन गयी है ... ..! "
पहला > " हाँ महराज .. हम जैसे लोगों ने इसे छू छू कर चिकना कर दिया है ! "
दूसरा > " इसलिए यह चमक गयी ! "
तीसरा > " अब तो इस पर बैठते ही फिसलने का डर बना रहेगा ..! "
चौथा > " बिलकुल सोने की मुर्गी जैसी हो गयी ... आपकी कुर्सी ! "
किसान > ठीक है !.. ठीक है !! आप कहते हैं तो फिर यह वही कुर्सी होगी ..! "
सब लोग ( चींखते हुए ) > महराज जान गए .., महराज पहचान गए .., महराज मान गए ..!! "
पहला > अरे जाओ रे।।! हर्ष ध्वनि करो ..., नगाड़े बजाओ .., फुल उछालो ..! आज खुशी का दिन है सब शहरों में घरों में बंदनवार बांधो।।, "
( नेपथ्य में आतिशबाजी , पटाखों की आवाजें . नगाड़ों की ध्वनि ....फुल उछल उछल कर मंच पर आते हैं )
पहला > " महाराज आज हमारा मन झूम झूम कर नाचने का हो रहा है ! "
दूसरा > " यह महान दिन है .. आज के दिन आपकी कुर्सी आप को वापिस मिल गयी- खाली ! "
तीसरा > " वह कुर्सी जिसे पुतला लेकर आसमान उड़ गया था ...,और ऊपर ही ऊपर उड़ता रहा ! "
चौथा > " वह कुर्सी ...जिसे हमने ढूंडा ...! "
पहला > ' वह कुर्सी जिसे हमने महराज को दिखाया !"
चौथा > " महाराज ..!! अब हमें भी पहचान जाइये ..! "
पहला > " हम आपके वाही सेवक हैं ..! "
दूसरा > " जो तन मन से सदा आपके धन के बारे में सोचते रहे हैं ! "
तीसरा > " और इसीलिए अब हमने निश्चय किया है की इस कुर्सी को दुबारा उड़ने ना देंगे ..! "
चौथा > " चाहे इसमें हमारी जान ही क्यों न चली जाये .."
पहला > ' हम मर मर कर भी इस कुर्सी की हिफाज़त करते रहेंगे .."
किसान ( खुश हो कर ) > आप लोग कितने भले हैं .. जो मेरी चीज़ के बारे में सोच रहे हैं ! "
पहला > " हाँ महाराज अब हम यह सोच रहें है की इसे उड़ने से कैसे बचाएं ..! "
दूसरा . > " मेरे ख्याल से हम इस कुर्सी को आधा ज़मीन में गाड़ दें ..! "
तीसरा > " ' जिससे पुतला इसे उड़ा ना पाए ..! "
चोथा > " नहीं ...! पुतला बुलडोज़र से उखाड़ लेगा ..! "
पहला > " तब पुतले को आधा ज़मीन में गाड़ दें ..!"
तीसरा > " जिससे वह खुद ही ना उड़ पाए ..! "
चौथा ..( पहले से )... " पुतले को तुम गाड़ोगे ..? "
पहला > ( हकलाकर ) नहीं ...! में नहीं .., परन्तु हम में से जो सबसे अधिक ताकतवर हो वह गाड़ दे ! "
चोथा > . " कौन है ताकतवर .? "
( सब बगलें झांकने लगते हैं )
पहला > " तब हम बारी बारी से पहरा दें ..! "
दूसरा > " लेकिन अगर पुतले ने पहरेदार को फुसला लिया तो ..? "
तीसरा > हाँ हम सब फुसलने में बहुत कमज़ोर हैं ..! "
पहला > " तब पहरेदार को कुर्सी से .. और कुर्सी को खूंटा गाड़ कर ज़मीन से बाँध दें ! "
चौथा > " ठीक है पर कौन है खुद को बंधवाने के लिए तैयार ... आगे आये ..! "
( सभी बगलें झांकते हैं )
पहला > ' ठहरो सुनो .... ( दुसरे के कान में फूंकता है )
दूसरा > " वंडरफुल आइडिया ..!! ( तीसरे के कान में फूंकता है )
तीसरा > " एक्सीलेंट ..!! " ( चोथे के कान में फूंकता है )
चौथा > ( खुश होकर ) " इसे कहते हैं राजनेतिक हल ..! "
( सब लोग किसान की औरबढ़ते हैं ) ....,
पहला > "
महाराज अब आप ही इस कुर्सी को बचा सकते हैं ..! "
किसान > "( चौंक कर ) ... में .....!!
सब > " हाँ महाराज आप और सिर्फ आप ..!! क्योंकि इस कुर्सी के मालिक सिर्फ आप हैं ..! "
पहला > " और जिसकी कुर्सी वही बचाए "
दूसरा > " अपना बोझा खुदी उठाये ..! "
तीसरा > ' बिलकुल ..!!! जिसकी होवे भेंस वाही लाठी चलवाए ..! "
चौथा > हाँ ! जैसे जिसकी लाठी , उसकी भेंस ..! "
पहला > " चुप।।! यह हिंसक सिद्धांत है ! अपनी परम्परा और धर्म के विरुद्ध ..! "
दूसरा > ( चौथे से ) ..." सही ढंग से बात बनाना भी नहीं आती तुमको ..? "
चौथा > " सही ढंग क्या है भाई ..? "
तीसरा > " गलत बात को इस तरह बोलना की वह सही लगे ..! "
किसान > "ठीक है ! ठीक है ... भैया परन्तु में कैसे बचा सकता हूँ इस कुर्सी को ..? "
सब > . " .. यह हमने सोच लिया है ..! "
पहला > " इधर आइये महाराज .. "
दूसरा > " आगे बढिए महा महिम ..! "
तीसरा > ( गाते हुए ) " हम सेवक इन चरणविन्द के ..! "
(चौथा व्यक्ति एक सुनहरी जंजीर ( लम्बी - मोटी सांकल ) ले कर आता है जिसमें एक और एक कुन्दा ( गोल छल्ला ) है और दूसरी और एक सुनहरी कमर पेटी ( बेल्ट ) लगी है ! कमर पेटी में एक कब्ज़ा लगा है जिसमें ताला लगाया जा सकता है )
चौथा > " यह है वह यंत्र "
पहला > " तंत्र मंत्र ..! "
दूसरा > " कड़ी दर कड़ी बंधी शक्तिशाली व्यवस्था की ज़ंजीर ..! "
तीसरा >" जो आपको और इस कुर्सी को जोड़ कर रखेगी ..! "
चौथा > " पुतले के इरादों का मुंह तोड़ कर रखेगी ! "
पहला > " अच्छे अच्छों की हड्डियां फोड़ कर रखेगी ..! "
( सब किसान को पकड़ लेते हैं )
किसान > " अरे यह क्या कर रहे हैं आप लोग ..? "
पहला > " शांत !!.. महराज शांत !! " .
दूसरा > " धैर्य ... से काम लें हुजुर ..! "
तीसरा > " यह मजबूत इरादों .. का अवसर है ..एक बार दिखा दीजिये पुरी दुनिया को अपने मजबूत इरादे ..! "
( दो लोग मिलकर किसान को पकडे रहते हैं और एक आदमी आगे बढ़ कर पहली सांकल के एक छोर पर लगे छल्ले को कुर्सी के पैर में फंसाता है , और फिर सांकल को फैलाते हुए किसान के पास आकर उसकी कमर में लपेट कर पट्टा बाँध देता है ! )
पहला > " वह आई कुर्सी ज़ंजीर की गिरफ्त में ..! "
दूसरा > और फिर यह ज़ंजीर आपकी गिरफ्त में ! " ( कब्ज़े में ताला लगाता है ) !
तीसरा > और यह लगा ताला .! "...
चौथा > " .अलीगढ वाला ! "
पहला > " अब यह कुर्सी पुरी तरह आपकी है ! "
दूसरा > " जैसे ही यह कुर्सी हिलेगी ...ज़ंजीर हिलेगी ...! "
तीसरा > " ज़ंजीर हिलेगी तो आप की कमर हिलेगी ..! "
चौथा > " कमर हिलेगी तो ज़ाहिर है आप हिलेंगे ..! "
पहला > " और तब आपको यह पता चल जाएगा की कोई कुर्सी छू रहा है ! "
दूसरा > " बस ..!! तब आप फ़ौरन हमें बता देना ! "
तीसरा > " और हम कुर्सी को उड़ने नहीं देंगे ..! "
किसान > " ठीक है ! ठीक है ! "
पहला > ( किसान के कान के पास मुंह ले जा कर, रहस्यमय स्वर में ) ...' लेकिन महाराज अभी खतरा टला नहीं है ! "
दूसरा > " हाँ जब तक पुतला है कुर्सी खतरे में है ! "
तीसरा > " इसलिए इसकी चौकीदारी करना भी जरुरी होगा ! "
किसान > " ठीक है ! में इसकी चौकीदारी कर लूंगा ! "
सब > ( हैरान होकर आश्चर्य से ) ..." महाराज आप ..? "
पहला > " नहीं नहीं !! यह कैसे हो सकता है ! "
दूसरा > " यह हमारी परम्परा के विरुद्ध है ! "
तीसरा > " हमारे देश की महान परम्परा ..! "
चौथा > " परम्पराओं में महान हमारा देश ..! "
पहला > ..." भला यह कैसे हो सकता है की महाराज चौकीदार बन जाएँ ...? "
दूसरा > " जो महाराज हैं वो महाराज ही रहेंगे ..! "
तीसरा > " और जो चौकीदार हैं वो चौकीदार !! "
चौथा > " परम्परा बनाये रखने के लिए ... परम्पराओं से लेकर परम्पराओं तक ....! "
पहला > " हम यह पूर्ण प्रयास करेंगे की .."
दूसरा > जो जैसा हैं वैसा ही बना रहें ..! "
किसान > " ठीक है भैया ! .... जैसा आप चाहें ..! "
पहला > " तो अब आपके हुकुम से हम सब लोग बारी बारी से इस कुर्सी की चौकीदारी करेंगे ..! "
दूसरा > " हम कुर्सी पर बैठ कर देखेंगे की कोई इसे फूंक से उड़ा तो नहीं रहा है ..! "
तीसरा > " पुतला कुर्सी छूने से पहले हमें पूछेगा ! "
चौथा > " हम जागते रहेंगे ... चाहे उंघते हुए जागना पड़े ..! "
( सब समवेत स्वर में गाते हैं )
" कुर्सी पर बैठ कर , नारों को सेट कर ..,
एक राग गायेंगे ... कुर्सियां बचायेंगे ..!
तू तू और में में को , आपस की चेचे को ,
राजनीती बताएँगे ..कुर्सियां बचायेंगे !
हम दो हमारे दो .., दोनों के फिर दो दो .,
सबको बुलाएँगे .., कुर्सियां बचायेंगे ..!! "
पहला > ( सबको हटाते हुए ) तो ठीक है पहले में बैठता हूँ ! '
दूसरा > ( चिल्ला कर बोलते हुए ) " तुम क्योँ ..?? .. पहले में बैठूंगा ! "
पहला > "तुम नहीं में ..! "
दूसरा > में नहीं में ..! "
पहला >..' में अनुभवी चौकीदार हूँ ..! "
दूसरा > " में खानदानी चौकीदार हूँ ..! "
(सब चिल्लाने लगते हैं ) ...." में ..में ...में।।।में ..!!
पुतला > ( दहाड़ कर ) ... " बंद करो यह संगीत ! "
(सब सहम जाते हैं )
पहला > " क्यों भाई तुम्हे क्या हो गया ..? "
दूसरा > " तुम फिर बोलने लगे ..? "
तीसर्रा > " क्या तुम्हे यह ' वेस्टर्न " ट्यून समझ में आगई ..? "
चौथा > " यह तो हमारा कौमी गीत है ..! "
पहला > " कौमी ताल तो अभी बजी ही नहीं ..! "
पुतला > " बकवास बंद करो ! ....चौकीदार महराज मुक़र्रर करेंगे ...! "
( सब किसान की और मुड़ते हैं )
पहला > " अरे हम तो भूल ही गए थे ...महाराज तो अभी यहीं हैं ! "
दूसरा > ( तेज स्वर में ) हाँ ! हाँ ! ...वही मुकर्र करेंगे ..! "
तीसरा > " हाँ महाराज ही चुनेंगे चौकीदार ..! "
चौथा > " महाराज हम में से एक को चुन लीजिये ! "
पहला > " हाँ ! याद कीजिये स्वयंवर की ..! "
दूसरा > " वरमाल की ! "
तीसरा > " आपको चुनना ... चुनवाना तो आता ही है ! "
चौथा > " कितने ही चुनवाये होंगे आपने ...! "
पहला > " चुप मुर्ख ! ... चुनवाने को याद मत दिला .. सिर्फ चुनने की बात कह ..! " ..
दूसरा > .. हाँ हाँ सही कहा ! ( किसान से ) ...हजुर जल्दी कीजिये ! "
तीसरा > " .. वो पुतला फिर बोल रहा है ! "
चौथा > ' " उसके इरादे ठीक नहीं है ! "
पहला > ' वह तिलस्मी है ..! "
दूसरा > " इससे पहले की उसमे वायरस आये .. आप चुनाव कर लीजिये ! "
( सब एक लाइन में खड़े हो जाते है ....)किसान सबको देखने लगता है )
पहला > ( दुसरे की और इशारा करके ) ...." इसे आप ज्यादा गौर से मत देखिये ! ...ये फरेबी है ! "
दूसरा > ( पहले की और इशारा करके ) ..." इसे मत चुनिए ..इसका बाप नचनिया है ! "
तीसरा > ( चौथे की और इशारा करके ) ..." इसे भूल जाइये .. .. यह लौंडा है ! "
चौथा > > ( तीसरे की और इशारा करके ) " इसके घर में चूहों के बिल है ! अन्दर ही अन्दर सुरंगें हैं ! "
पहला > " मुझे देखिये में मजबूत हूँ ! "
दूसरा > " मुझे देखिये में रात भर उल्लुओं की तरह जाग सकता हूँ ! "
तीसरा >. " ... में बिल्लियों की तरह लड़ सकता हूँ , नोंच सकता हूँ .. खसोट सकता हूँ ! "
चौथा > " मुझे देखिये में सात पुश्तों से चोकीदार हूँ ..! "
किसान > " आप लोग लड़िये मत "
सब > " हम कहाँ लड़ रहे हैं हुजुर।।,
हम तो नया युग गढ़ रहें है हुजुर ..,
आपके पैर पड़ रहे हैं हुजुर ..,
कुर्सी के लिए सड रहे हैं हुजुर ..! "
किसान हैरान होकर सबको देखने लगता है )
पहला > " ठहरो।।! ठहरो।।!! एक तरकीब है ..! "
( एक कपड़ा निकालता है , किसान की और बढ़ाकर ))
इसे अपनी आँखों पर बाँध लें सरकार ..! "
किसान > " क्योँ ..?? "
पहला > " जिससे आप हमें देख कर ना चुन सकें ! "
( आगे बढ़कर किसान की आँखों पर पट्टी बांध देता है )
दूसरा > अब हम फिर से एक लाइन में खड़े हो जाते हैं ! "
तीसरा > " आप हम में से किसी भी एक का हाथ पकड़ लें ..! "
किसान > " परन्तु इस तरह तो में कुछ भी न देख पाउँगा की मेने किसका हाथ पकड़ा है ! "
पहला > " पुतला देख रहा है सरकार ..! "
दूसरा > " वह देख लेगा की आपने किसका हाथ पकड़ा है ! "
तीसरा > " वह आपको बता देगा !"
पहला > " इसी लिय तो हम आपके कान नहीं बाँध रहे है की आप सुन सकें ! "
दूसरा > " मुह नहीं बाँध रहे हैं ..की आप बोल सकें ..! "
किसान > " ठीक है भैया ...."
पहला > " तो अब शुरू होता है ... पुतले जी आप बोले - एक दो तीन ..! "
पुतला > " ठीक है ! ...तो,,,,,,,,. एक,!,,,,,,,,,,,,,,,दो !!.................. ... "
( सब लोगों में भगदड़ मच जाती है ... सब एक दुसरे के ऊपर चढ़ कर किसान को खुद अपना हाथ पकडवाने की कोशिश करते हैं और एक दुसरे की टांग घसीटते हैं ! जूते मारते हैं ...दबोच लेते हैं ,
काफी देर उछालते कूदते हैं .., पुतला देखता रहता है ! तभी खानदानी
चौकीदार सबको हटाकर खुद किसान का हाथ पकड़ने में सफल हो जाता है ! उसके हाथ
थामते ही सब हट जाते हैं ) )
पुतला > " तीन ...!! "
पहला > " धन्य है महाराज ...!1 पुतला > " तीन ...!! "
दूसरा > " महाराज की परख चोखी है ! "
तीसरा > सही आदमी को सही काम ..! "
पहला > बिलकुल सही काम ...! "
सब लोग ( चिल्ला कर ) .... खल्क खुदा का , मुल्क बादशाह का .., और राज भोज का ..! "
चौथा > ( नगाड़े की चोट पर ) ....सुनिए एलान ..!!...अब महराज के हुकुम की तालीम करने के लिए में महाराजा का प्रतिरूप --- " चौकीदार महाराज " पांच घंटों तक इस कुर्सी की रखवाली करूंगा ! पहली पांच घंटो तक बराबर ...और बाद में जब तक महाराज चाहेंगे तब तक ...! "
दो ( चमचे ) > " महाराज आपको चाहते थे , चाहते रहेंगे ...! "
बाकि चमचे > " हम भी आपको चाहते हैं .. चाहते थे .. ., चाहते रहेंगे ...,! "
( सब लोग चुने गए चौकीदार को हाथों में उठा कर कुर्सी पर बैठाल देते हैं )
( सभी फ्रीज़ हो जाते हैं प्रकाश मद्धिम हो जाता है .. नेपथ्य से सूत्रधार की आवाज़ ...)
"....मैं सूत्रधार हूँ ! बीच में टांग अड़ाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ! यह बतलाते हुए मुझे प्रसन्नता है की यह इन्टरवल है यानी मध्यांतर ! उबासी लेते हुए दर्शक गण , सम्मानित अतिथि गण जिन्हें और भी कई उद्घाटन समारोहों में जाना है , इस अँधेरे का लाभ लेकर उठ सकते हैं ! महिला वर्ग से जिन पत्नियों ने अपने पतियों को घर चलने के इशारे किये हैं , वे भी घर जाने को स्वतंत्र हैं ! ...,
यह इंटरवल जैसा की आम इंटरवल होता है वैसा ही है ! अर्थात कुछ क्षणों का ..!... " क्षणिक " ..! यह चूँकि परम्परागत रूप से किया जाता है इसलिए किया गया है .. इस बीच दर्शक द्रश्यों के आधार पर नाटक के अंत के बारे में कयास लगाते हैं .., रोमांचित होते हैं ..., शायद भयग्रस्त भी होते होंगे ! लेकिन दर्शकों से हमें क्या लेना देना ..? हुई है वाही जो राईटर रची राखा ! ,,! "
नाटक के बीच में जिन महानुभावों ने फिकरे कसने या हूट करने का प्रयास किया है उन्हें बधाई ..! प्रसन्नता की बात है की भीड़ में बैठी अपनी प्रेमिकाओं का ध्यान वे अपनी और आकर्षित करने में सफल हुए हैं ! हूट ना करने वालों को भी बधाई ...उनके बुद्धिजीवी होने का वांछित प्रभाव , उनसे सम्बंधित लोगों पर बखूबी पडा है और हमें आशा है की लोगों पर उनके बारे में बना यह भ्रम बना ही रहेगा ! !
तो लीजिये सब कुछ हो चुका ...और अब फिर पेव्श है वही सब कुछ,,,,"
(..मंच पर प्रक्काश तीव्र होता है ! )
........ .........( क्रमशः .... भाग दो पढ़ें ..)
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.!
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