मंगलवार, 17 जनवरी 2012

" बटुए में समाये मुहूर्त "

" बटुए में समाये मुहूर्त "

धर्म प्रधान हमारे देश , हमारे भारत में , 'मुहूर्त 'का विशेष महत्त्व है ।

सुबह जागने से लेकर , दिन भर के कर्म , और शयन तक पग पग पर मुहूर्तों का बोलबाला है । ' जन्म मुहूर्त ', 'कर्ण छेदन मुहूर्त' , यज्ञोपवीत मुहूर्त , विवाह मुहूर्त , गृह प्रवेश मुहूर्त , कुआँ तालाब खुदवाने का मुहूर्त , उदघाटन का मुहूर्त , क्रय विक्रय मुहूर्त , फिल्म मुहूर्त , आदि , आदि ।

उत्तर भारत में कुछ ख़ास कलेंडर , हर घर में विद्यमान पाए जाते है जिसमे , चौघडियों , मुहूर्तों ,से लेकर , छिपकली के किसी अंग पर गिरने के विचार , बिल्ली के रास्ता काटने के विचार , छींकने के विचार , पहले से परस्थिति अनुसार छपे रहते है । अमृत मुहूर्त , शुभ मुहूर्त , सर्वार्थ सिध्ही मुहूर्त जैसे कई मुहूर्तों की जानकारी इन कलेंडर में " रेडी मेड " उपलब्ध रहती है । बची खुची कमी ' नक्षत्रों ' से पूरी होती है , जैसे पुष्य नक्षत्र , अश्विनी नक्षत्र , धनिष्ठा नक्षत्र , शतभिषा नक्षत्र , आदि आदि ।

लगता है कि जीवन सिर्फ मुहूर्तों में ही जीना चाहिए, बाकी समय ब्यर्थ है । क्योंकि , मुहूर्त विहीन क्षणों में किये गए कार्य तो " फल " देंगे ही नहीं । मुहूर्तों का त्योहारों से सीधा सम्बन्ध है , और , त्योहारों का हमारे 'बटुए' से - जहां धन रूपी लक्ष्मी , कागज़ के पंछी बनकर , कुछ देर के लिए अपना घोंसला बना कर प्रवास करती है । ईश्वर कि दया से हिन्दू धर्म में , प्रत्येक माह में कुछ ना कुछ त्यौहार आते ही रहते है । यदि किन्ही कारणों से त्यौहार ना आयें , तो फिर कलेंडर में स्त्रियों के लिए - एकादशी , सोमवार , पूर्णिमा, अमावश्या जैसे बहुत सारे फलदायी अवसर उपलब्ध है , जिन्हें धर्म परायण स्त्रियाँ गंवाना नहीं चाहती । ऐसी स्थिति में , बटुए में बसेरा लिए , सुआपंखी तोते कब फर्र से उड़ कर दूसरे घोंसले में बसेरा कर लें , इसका अनुमान करना भी कठिन है ।

त्यौहार आते ही , 'न्यूज़ चेनल ' पूर्ण सक्रिय हो जाती है । वे न्यूज़ के साथ साथ , मुहूर्तों को इंगित करने , उनकी महिमा बताने को अपना परम कर्त्यब्य समझती है । प्रत्येक चेनल पर , एक , धुरंधर ग्यानी पंडित , कर्मकांडों कि पोथी खोले , उपस्थित रहता है । किस मुहूर्त में पूजा करना श्रेयकर है और कौन सा समय निषेध है ये उनके भाष्य से पता चलता है । इन पूजाओं के फल क्या क्या होंगे , इनमें क्या सामग्री लगेगी , इनकी क्या विधि है , कौन सा दान किस पात्र में किसे देना है , यह इनकी जिव्हा पर अंकित रहता है । मृदु मुस्कान बिखेरते हुए ये ग्यानी , दर्शकों के उत्तर बड़ी चतुरता से देते है - जैसे पहेली बूझ रहे हों ।

इधर , बाज़ार के व्यापारियों को , इनकी गद्दियों के चक्कर लगाते भी देखा जाता है । किस त्यौहार में , कौन सी वास्तु बहुतायत में खरीदने , दान करने से धर्म लाभ होगा , यह बात व्यापारियों और धर्म ज्ञानियों कि सांठ- गाँठ से तय होती है । ऐसे में भले ही , अर्थ शास्त्री यह कह कर अपनी पीठ ठोंके कि उनके मार्ग दर्शन से , भारत का बाज़ार गर्म रहा , और मंदी नहीं आयी , लकिन यह कहना सिर्फ भ्रम पालना ही होगा । वस्तुतः बाज़ार कि मंदी गर्मी के नए कंट्रोलर अब ग्यानी पंडित ही है , जिनके निर्देशन में , सराफे से लेकर हल्दी तक का - क्रय-विक्रय मंदा और तेज़ होता है ।

अमेरिका की लगातार मंदी का कारण उसका 'उत्पाद' और उसका 'क्रय- विक्रय ' है । ये युध्ध व्यापारी सिवाय 'शस्त्र ' के कुछ भी नहीं बना पाए और शस्त्र पूजा के तो मुहूर्त होते है , किन्तु खरीदने के नहीं । कोई भी ग्यानी पंडित अपने जजमान के हाथ में शस्त्र नहीं थमाना चाहते , ना जाने कब चल जाए , और खुद पंडितजी का मुहूर्त अशुभ हो जाए । जजमान सिर्फ मंदिर जाए , दर्शन करे , धर्म पोथी पढ़े और मुहूर्त देखे बाकी ,सब भगवान् पर छोड़ दे - वे सब भला करेंगे ।
मुहूर्तों की इस दुनिया में , अशुभ मुहूर्त , अशुभ नक्षत्र , आकस्मिक आपदाएं भी काफी फल दायी होती है । इनका सीधा फल ग्यानी पंडितों को लक्ष्मी के रूप में प्राप्त होता है । मंगल प्रकोप , शनि प्रकोप , मूल नक्षत्र , भद्रा, सूर्य ग्रहण , चन्द्र ग्रहण में यजमान भले ही सूख कर काँटा हो जाता है , किन्तु ग्यानी पंडित फलते फूलते रहते है । जितने भारी ग्रह होंगे , उसके निवारण में उतनी ही भारी पूजा करवाना जरुरी है । पूजा में आपको सामग्री खरीद कर नहीं देनी है , वह पंडित खुद खरीदते है , आपको सिर्फ " कैश " देना है ।
भटका हुआ मन , यदि किसी तार्थ स्थल में जाकर शान्ति ढूंढे तो वह वहां की अशांति से तृप्त हो जाएगा । मंदिर में मूल भगवान् की मूर्ति से पहले , छोटी मोटी सेकड़ों मूर्तियाँ , दरबानों की तरह रास्ता रोक कर खड़ी है । सबके चरणों में पत्रं - पुष्पं दान- दक्षिणा चढ़ाए और तब , जब मूल मूर्ति के समक्ष , भीड़ के धक्के खा कर पहुचें तो भूल ही जाए की वस्तुतः आप वहां क्यों गए है । इसी बीच व्यवस्था के नाम पर खड़े , पुलिस कर्मचारी , पण्डे, आपको धकिया कर बाहर कर देंगे । संभवतः ऐसा इस लिए होता है , की आप मुहूर्त से मंदिर नहीं गए । मुहूर्त से लाइन में नहीं लगे , मुहूर्त से भगवान् के सामने नहीं खड़े हुए , और शायद मुहूर्त से नहीं नहाए । मंदिर जाने से पहले भी किसी ग्यानी पंडित से मुहूर्त विचरवाना जरुरी है । यदि जल्दी के कारण ऐसा मुहूर्त नहीं विचार्वा पाते है तो , बटुए से कुछ तोते निकालें , भगवान् के दरबान पण्डे के हाथ में पकड़ा दें और वी आई पी मुहूर्त पाकर भगवान् के दर्शन , अभिषेक, महा पूजा सब कर लें । इस - " तोते थमा- मुहूर्त पा " को व्यवहार कहते है ।
किसी की मृत्यु संवेदना पर , उसके घर जाने पर , उनके सगे संबंधी यह बतलाने से नहीं चूकते की मृत्यु कितने पुण्य काल में कब हुई । ब्रम्ह मुहूर्त , गोधुलिबेला , पुष्य नक्षत्र , में मरने वाले को सीधे स्वर्ग मिलता है । जीवन भर लूट मार करने वाला व्यक्ति भी यदि पुण्य नक्षत्र में मरता है तो उसे स्वर्ग मिलना तय है । ऐसा शास्त्र कहते है , भले ही उसकी आत्मा की शान्ति के लिए " त्रयोदशी" , " बरसी " और 'गया पिंड दान ' करना पड़े । पंचक में मरा व्यक्ति खतरनाक हो सकता है - कम से कम पांच और लोगों को ले जा सकता है - इसलिए गोबर के पांच पुतले भी ऐसे मृतक के साथ जलाए जाते है । पंचक का अर्थ है , वही काम पांच बार होना । इस पंचक का महत्त्व यदि आधुनिक मजनूँ जान लें तो वे पंचक में ही शादी करना पसंद करें, ताकि उन्हें यह अवसर पांच बार , पांच लोगों के साथ प्राप्त हो ।
ज्योतिष , धर्म , और ज्ञान की इस त्रिवेणी के तट पर मैं भी अपनी एक दूकान खोलने की कोशिश बहुत दिनों से कर रहा हूँ , किन्तु सफल नहीं हो पा रहा हूँ । मेरे ब्लॉग को पढने वाले मेरे मित्र मुझे कर्मयोगी , ध्यानी , ग्यानी समझ कर मुझसे कटने की कोशिश करते है । वे एक मनोरंजक मित्र चाहते है गहन विचारक नहीं । किन्तु सच तो यह है की इन सब में कुछ भी नहीं हूँ । जो कुछ हूँ उसे में खुद ही नहीं जान पाया हूँ । शायद् खुद को जानने समझने का मुहूर्त अभी आया ही नहीं - और ऐसा मुहूर्त बतलाने वाले पंडित का दुनिया में पैदा होना अभी शेष है ।

हरीओम ....!!

_____सौरभ  (  सभाजीत ) 

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