फिल्म.....!!
फिल्म ने किया -आकर्षित मुझे ,
क्योंकि यह भाषा थी ...,
उस अभिव्यक्ति की..,
जिसमें कैद हो जाते हैं ..,
छोटे. छोटे , क्षण ,
बिखरे स्वर ..,
उदबोधन ॥!!
समय से उम्रदार ..,
न कुछ हुआ - ना होगा..!!
गुजरता गया वह ..,
ओए खोदता गया ..,
अनगिनित सभ्यता .., अनगिनित कथाओं के ...,
सतरंगी चित्र,
प्रथ्वी के इस धानी दामन पर..,!!
समय के घूमते चाक पर ,
कुम्हार की जादुई उँगलियों से ..,
उभरी अल्पकालीन रचनाएं..!!
बदल कर बार बार ..,
ढल गयी अपनी मूल आकृति ,
मिटटी में ..,
की छुएँ उसे फिर वही उंगलियाँ ,
नए नए रूपों में ..,
गढ़ने के लिए ..!!
समय से आँख मिला कर ..,
किसी को कुछ उम्र दे देना..,
एक आसान काम नहीं ..,
क्यूंकि ,
उम्र देना - उस सृजनकार का काम है ,,
जिसे आता है ..,
कुछ रचना..!!
फिल्म ..,
उस गतिवान समय के ..,
क्रमबद्ध गुजरते क्षणों को रोक कर ,..,
बदल देती है - उसे जीवित चित्रों में ..,
और दे देती है उसे..,
एक उम्र -अपने हाथों से ,
अपने अंदाज़ में ..,
फिल्म जीवित करती है ,
बिलकुल ही विस्मित हो गए ,
कल्पनाओं से परे..,
उन क्षणों को ..,
जिनसे मिलना ..,
संभव ही नहीं था ..,
इस वर्तमान को ..!!
फिल्म .
एक सम्पूर्ण श्रृष्टि की तरह ..,
समेटे रहती है खुद में
हजारों हज़ार वजूद..,
हर वजूद..,
जिसमें होता है ,
समय का वह काला अक्स..,
जो उजाले में ..,
दिख ही नहीं सकता किसी को ..!!,
....सभाजीत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें