देवदूत
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जीवन में कुछ मित्र अचानक देवदूत बन कर हमें सीख दे जाते है । क्या उन्हें ईश्वर भेजता है या वे अपने विवेक के कारण हमारी सहायता कर जाते हैं यह चिंतन का विषय है
1987 में , मेरी पोस्टिंग नागौद नगर वितरण केंद्र के अधिकारी के रूप में हुई ।
नागौद में एक मैदान में , बसन्त पंचमी के अवसर पर एक साप्ताहिक मेला लगता था । इस मेले का आयोजन नगरपालिका नागौद के तत्वाधान में होता था ।
मेला जनता के मनोरंजनार्थ लगता था लेकिन नगरपालिका द्वारा संचालित होने के कारण उसकी कमेटी के पूरे सदस्य सरकारी थे , जिसमें तहसीलदार , सीएमओ, जेलर , थानेदार , प्रमुख होते थे ।
नागौद ठाकुर प्रधान बस्ती है । वहां अधिकतम परिहार ठाकुर रहते हैं । संयोगवश उन दिनों सीएमओ , आरआई , जेलर , थानेदार सभी ठाकुर वर्ग से थे । इस तरह मेला आयोजक समिति में अधिकतम परिहार ठाकुरों का वर्चस्व था ।
जहां बहुसंख्यक हों और पावर हो वहां निरंकुशता जन्म लेती ही है । इसलिए इस मेले को जश्न की तरह मनाने के लिए अवैध धन उपार्जन का मार्ग ढूंढ ही लिया गया । मेला ग्राउंड तो नगरपालिका ही था तो उसमें कई साल पहले बे वजह स्ट्रीट लाइट के नाम पर नगरपालिका ने पूरे मैदान में खम्बे गड़वा लिए और मेले में लगने वाली समस्त दुकानों , खेल तमाशे वाले व्यवसायियों की विद्युत व्यवस्था का जिम्मा खुद ले लिया ।
नगरपालिका , विद्युतमण्डल को एक टेम्परेरी कनेक्शन का आवेदन देती और एक विद्युत मीटर मैदान के बाहर लग जाता जिसमें हो कर विद्युत सप्लाई मैदान में नगरनिगम द्वारा बिछवाये गये स्ट्रीट लाइट के अंतर्जाल में फैल जाती और तब नगर निगम वाले उन तारों से हुक फंसाकर दुकानदारों को खुद बिजली देते जिसके रेट अपने अनुसार बसूलते । जैसे प्रति बल्ब / प्रति वाट्स / प्रति दिन । इस हिसाब से 60 वाट्स के बल्ब का अगर एक दिन का किराया वे 50 रु0 लेते तो 100 वाट्स के बल्ब के लिए 100 रु0 प्रतिदिन ।
विचित्र लीला थी ।
मेरी पोस्टिंग से पहले हर वर्ष यह निर्विघ्न रूप से सरकारी चोले पहन कर खेली जा रही थी । बिजली विभाग अपने मीटर में आई रीडिंग के आधार पर धार्मिक मेले के रेट से बिल ले लेता था जबकि अंदर के मैदान में लगी दुकानों को दस गुने रेट पर अवैध ढंग से बिजली मिलती ।
वर्षों से हो रही इस सामूहिक लूट के विरोध की किसी ने कभी शिकायत नहीं की क्योंकि भय था कि उनकी मार पिटाई भी हो सकती है ।
अब यह मेरा दुर्भाग्य था या उन आयोजकों का कि मेरी पोस्टिंग वहां हुई और मेला लगने का अवसर आ गया ।
नगरपालिका वालों ने परम्परागत रूप से मेरे दफ्तर में मेले को विद्युत प्रदाय करने हेतु आवेदन दिया । उनके जाने के बाद ही आठ दस दुकानदार आ गए । उन्होंने मेले की अंदरूनी लीला कथा बताते हुए हाथ जोड़ते हुए निवेदन किया कि मैं उन लोगों को इस अवैध लूट से बचाऊं । मैनें पुराने रिकार्ड चैक किये तो पाया की मीटर तो अक्सर जल गए थे और विभाग को कोई राशि मिली ही नहीं थी । जबकि दुकानदारों के हिसाब से 100 वाट्स के तीन बल्बों में आधार पर / सात दिनों की बिजली खपत की राशि 300×7 "= 2100 रुपये प्रति दुकान नगरपालिमका कर्मचारियों द्वारा डंडे के जोर पर ली गई थी ।
मैंने अनुमान लगाया कि मेले में तीस दुकानदार से प्रतिदिन 300 रुपये के आधार पर 9000 रुपया प्रतिदिन वसूला गया तो आखिर यह कहां गया ,,?? ,,,
,,,क्या नगरपालिका ने अपने विकास कार्य में खर्च किया होगा ,,??? "
उत्तर में दुकानदारों ने बताया कि मेले के पीछे व्यवस्था हेतु लगे टेंट में , आयोजकों का देर रात तक जमावड़ा रहता था जिसमें निर्बाध शराब और मांसाहार का दौर निरन्तर चलता था ।
मैनें निश्चय किया कि यह कुचक्र में जरूर तोडूंगा । शायद ईश्वर ने मुझे इसीलिए यहां भेजा है ।
मैनें दुकानदारों से कहा ,,आप अपने अपने कनेक्शन सीधे विद्युत मंडल से लो । आप लोग आवेदन करो ,,मैं आपको अपने विद्युत पोल से मीटर लगा कर कनेक्शन दूंगा । इस तरह आप अनाप शनाप हो रही लूट के शिकार नहीं बनोगे ।सब ने तुरन्त आवेदन दे दिए ।
यह सीधा जंग ए एलान था । उन के विरुद्ध जो संगठित थे , सरकारी पावर में थे , किन्तु लुटेरे थे । अपने अवैध हित को अधिकार मानते हुए वे तुरन्त कार्यालय आये और मेज पर हाथ मारते हुए बोले --' मेले में जो वर्षों से चला आ रहा है वही होगा । आप अलग से दुकानदारों को कनेक्शन नहीं दे सकते !"
मैनें भी कमर कस ली । मैनें कहा -
,,,," बिजली वितरण मेरे विभाग का अधिकार है ,,आप का नहीं । में उन्हें जरूर कनेक्शन दूंगा जिन के साथ अन्याय हो रहा है ! "
वे मुझे टेढी निगाहों से घूरते हुए यह कह कर चले गये ,," यहां हरिश्चंदयाई नहीं चलती ,,,,!! हमारे आड़े आओगे तो भुगतोगे ,,!"
और सचमुच मुझे भुगतना पड़ा । मेरे ऊपर जानलेवा आक्रमण हुआ और मैं मौत के मुंह में जाते हुए बचा ।
न्याय और अन्याय की लम्बी लड़ाई शुरू हो चुकी थी ।
शैतानों की नई नई फ़ौज उनके आक्रमण में प्रकट होना शुरू हुई तो देव दूतों की सौम्य मित्र श्रृंखला मेरे हित में ।
कथा अभी खत्म नहीं ,, बल्कि शुरू हुई थी ।
( क्रमशः ।)
--' सभाजीत
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वे मुझे धमकी दे कर चले गए ।
लेकिन मैनें निश्चय कर लिया ,,अब जो हो सो हो ,,यह जंग तो लड़ूंगा ही ,,।
मैनें सभी दुकानदारों के आवेदन स्वीकृति के लिए मैहर सम्भागीय कार्यालय भेज दिए ।
दूसरे दिन ही सम्भागीय यंत्री ने फोन पर मुझे तलब किया । शायद उन्हें भनक लग गई कि मैं किसी परेशानी को बुलावा दे रहा हूँ ।उन्होंने कहा -" जब आज तक कोई इस पचड़े में नहीं पड़ा तो तुम क्यों पड़ रहे हो ?? वहां दादागिरी का साम्राज्य है ,,कुछ भी हो सकता है ,,जैसा चल रहा है चलने दो । "
लेकिन मेरी संघर्ष शील प्रवत्ति जाग चुकी थी । मैनें उन्हें बताया कि यह गरीब दुकानदारों से हो रही लूट ही नहीं है विभाग के राजस्व के प्रति डकैती है । में तो कनेक्शन दूंगा ही ,,चाहे आप सवीकृति दो या न दो ।
सम्भागीय यंत्री जैन थे । स्वभाव से मूल्यों के संरक्षक ।
उन्होंने कहा -" ठीक है में स्वीकृति दे रहा हूँ मगर सम्हल कर रहना । "
लेकिन क्या दांतों के बीच रहते हुए कोई सम्हल सकता था ??
उसी शाम स्टाफ ने कनेक्शन करने शुरू कर दिए । दूसरे दिन सुबह उद्घाटन था । कोई स्थानीय मंत्री आने वाले थे ।
उन दिनों ब्लैक एंड व्हाइट टीवी का जमाना था । मेरे घर में टीवी था , जिसका एंटीना पताका की तरह मुहल्ले में सबसे ऊंचा था । चूंकि उस दिन कोई फ़िल्म आने वाली थी तो साफ दिखाई देने के कारण , मुहल्ले भर की महिलाएं मेरे यहाँ टीवी देखने आ जमीं ।
आफिस से घर आया तो पहले कमरे में ही मजमा लगा देख कर लौट लिया । सोचा मेले ग्राउंड में हो रहे कनेक्शन देख लूं तो उधर ही चल पड़ा । रास्ते में एक व्यक्ति जो विद्युत ठेकेदार था और जो दुकानदारों के लिए टेस्ट रिपोर्ट देने वाला था , मिल गया और साथ हो लिया ।
सूर्यास्त होने वाला था । तभी स्थल पर नगरपालिका के सीएम ओ अपने कुछ साथियों साथ रुक्ष मुद्रा में आये ।
उन्होंने कहा -- आप हमारी ज़मीन पर किसी अन्य को , बिना मेरी परमीशन के कनेक्शन नहीं दे सकते । दुकानदारों के कनेक्शन रोक दें ! "
में कहां मानने वाला था ,,! मैनें कहा सार्वजनिक मेला है ,आप भी अस्थाई कनेक्शन ले रहे हैं दूसरे भी ले रहे हैं । आपने कौन सा भू अधिकार पत्र दिखाया है ,,? "
वे लोग नाराज़ हो कर मुझे घूरते हुए वापिस चले गए ।
मैनें ध्यान नहीं दिया । कनेक्शन होते रहे । सूर्य डूब गया और झुटपुटा हो गया ।
तभी एक ओर से , अंधेरे में कुछ लोग हाथों में डंडे और लोहे के रॉड लिए उभरे । उन्होंने पास आकर कहा --
" न बे शर्मा ,,! तोखऱ बतायदिये रहे कि बीच में टांग न अड़ा,, फिर भी तैं नइं मानीं ,,!
में कुछ समझता इससे पहले मेरी पीठ पर डंडे का जोरदार वार पड़ा । कुछ सम्हलता ,,इससे पहले कंधे पर रॉड का दूसरा वार पड़ा । किसी ने मुझे ,,मां बहिन की भद्दी गाली देते हुए कमर पर जोरदार लात मारी । में बैलेंस न सम्हालपाने के कारण औंधे मुंह जमीन पर गिर पड़ा ।
अब मेरी छाती कमर पर जूतों के टो की मार पड़ने लगी और कंधे पर डंडे की । पैरों पर रॉड लगने लगा ।
मुझे तब एक ही बात समझ में आ पाई की मुझ पर गुंडों ने प्राणघातक हमला कर दिया है । दिमाग ने कहा कि हर हालत में में सिर को बचाऊं वरना वहां चोट पड़ने पर सिर फुट जाएगा ।
तो मैंने अपने दोनों हाथों से अपने सिर को ढक लिया लेकिंन कब तक ढकता ,,??
रॉड के एक प्रहार से हांथ कांप गये ।
दूसरा प्रहार होता उससे पहले कोई मेरे ऊपर मुझे ढकता हुआ लेट सा गया ।
ये ठेकेदार जैसवाल था ।
उसकी आवाज मुझे सुनाई दी कि " अब बस करो लाल साहब ! ये मर जायेगा तो बहुत दिक्कत हो जाएगी ।"
न जाने क्या हुआ कि वे लोग जैसवाल की बात सुन कर मुझे गाली देते हुए एक ओर चले गये ।
अब पूरी तरह अंधेरा हो चुका था । तभी जो लाइन मेंन कनेक्शन कर रहे थे और जो मेरे ऊपर हमला होते ही भाग खड़े हुए थे उन्हें जाते देख कर छुपते छुपाते मेरे पास आ गये ।
अब जैसवाल , और दो लाइनमैनों ने मिल कर मुझे उठाने की कोशिश की । मेरी शर्ट खून से भींग चुकी थी और कनपटी के थोड़े ऊपर हुए घाव से खून बह कर मेरी पेंट भिंगोने की कोशिश कर रहा था । जैसवाल एक गलजन्दा साथ रखता था उसे उसने मेरे घाव पर कस कर बांध दिया ताकि खून न बहे ।
लाइनमैनों ने लगभग मुझे टांग लिया और तेज डग बढाते मेरे आफिस की ओर चले । तभी मेरे एक साथी सहायक यंत्री पिकअप ले कर आ गए ।
किसी तरह हम लोग अस्पताल की ओर बढ़े तो किसी ने कहा। पहले थाना चलो ,,,सबसे पहले पोलिस रिपोर्ट लिखेगी तब एम एल सी होगी ।
लिहाजा हम लोग थाने की ओर मुड़ गये । रास्ते में मेरे साथी यंत्री ने पूछा ," आप ठीक तो हैं न " ?? तो मैनें हां में सिर हिला दिया ।
थाने पहुंच कर जैसे ही हम थाने के अंदर घुसे तो देखा --नगरपालिका के आर आई श्री सिंह अपने हाथ को थानेदार को दिखा कर मेरे विरुद्ध एक एफ आई आर लिखवा रहे थे कि मैनें चाकू से , मेला ग्राउंड में , उनकी हथेली पर वार किया है " ! उनकी हथेली थोड़ी सी कटी हुई थी जैसे खुद किसी ने अपनी हथेली को ब्लेड से काट लिया हो । "
अब एक एफ आई आर लिखी जा रही थी तो हमें चुपचाप इंतज़ार करने को कहा गया ।
मुंशी को जैसे कोई जल्दी ही नहीं थी । वहः रुक रुक कर बार बार सिंह से पूछ कर धीरे धीरे रिपोर्ट लिख रहा था जबकि वहः देख चुका था के मेरे कपड़े खून से सने हैं ।
मेरे साथी यंत्री बिफर गये । उन्होंने थानेदार से कहा कि आप रिपोर्ट लिखो न लिखो ,,कोई बात नहीं ,,हमारा साथी खून से लथपथ है हम अस्पताल जा रहे हैं ,,,लेकिन याद रखो,,जिस बिजली के उजाले में तुम इनकी एफ आई आर तन्मयता से लिख रहे हो वहः एक घण्टे बाद बन्द हो जाएगी ।"
उन्होंने मिल कर मुझे उठाया और कमरे से बाहर निकल आये ।
तभी थानेदार ने एक सिपाही को एक चिट लिख कर थमाते हुए कहा कि वहः हम लोगों के साथ अस्पताल जा कर एमएलसी करवा दी ।
थानेदार की और मुंशी की नाम पट्टिका देख कर मुझे स्पष्ट हो गया कि ये सब सिंह हैं और सिंह की पहली एफआईआर लिखने का महती कर्तव्य निर्वाह रहे हैं ।
मुझे मालूम था कि थानेदार महोदय भी तो मेला आयोजन समिति के सदस्य थे जो देर रात तक मेला ग्राउंड पीछे बने टेंट में जश्न का लुफ्त उठाते थे ।
थाने से बाहर निकलते हुए मुझे एक हल्का चक्कर आया ,,लेकिन साथियों ने सम्हाल लिया और हम पिकप में बैठ कर अस्पताल की ओर चल दिये ।
क्रमशः ,,,।
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आगे आगे मोटर साइकिल पर सिपाही और पीछे पीछे पिकअप में हम चार लोग अस्पताल की ओर चले ।
जिस जैसवाल ठेकेदार ने मुझ पर लेट कर मेरी जान बचाई थी उसने थाने में आने से पहले ही हाथ जोड़ कर मुझ से विदाई ले ली थी ।
उसने कहा था कि न जाने किस प्रेरणा से वहः मुझ पर अचानक लेट गया था और उसने हमलावरों को मना किया किन्तु अब आगे खुले रूप में वह वहां के ठाकुर समुदाय से विरोध मोल नहीं लेगा । उसने हाथ जोड़ कर मुझसे अनुनय की कि एफ आई आर में में उसको गवाह न बनाऊं क्योंकि वह उन लोगों के विरुद्ध गवाही देने कोर्ट नहीं आएगा और आ भी गया तो वहः कुछ भी देखने से इनकार कर देगा ।
बात मेरी समझ में आ गयी थी इसलिए मैनें उस रक्षाकर्ता को उसके अनुनय पर गवाह के रूप में एफ आई आर में उल्लेखित न करने का मन बना लिया ।
अस्पताल में जैसे डॉक्टर हम लोगों का इंतज़ार ही कर रहा था । अस्पताल छोटा था और उसके डॉक्टर सतना से अप डाउन करते थे । वार्ड खाली थे । सिर्फ कुछ ग्रामीण महिलाएं जो गावँ नही लौट सकती थी वे ही उन वार्डों में थीं ।
डॉक्टर ने मुझे ओटी में लिटाया और अकेले ही मरहम पट्टी में जुट गया । मेरा चेहरा बहुत बुरी तरह सूज चुका था । उंगलियां सूज गई थी उठते बैठते नहीं बन रहा था ।
डॉक्टर ने मेरी कनपटी का घाव देखा ,,उसने चिमटी से घाव में फंस गई बांस की पतली डंडियों को निकाला । फिर गम्भीरत्ता से बोला - " बाल बाल बच गए शर्मा जी । कनपटी से आधा सूत ऊपर चोट लगी । दूसरी चोट लगती तो आप स्थल पर ही मर सकते थे । "
उसने दवा लगा कर पट्टी बांधी और फिर बोला - " इस चोट के अनुसार मुझे आपको अस्पताल में ही भर्ती कर लेना चाहिए । लेकिन मैं आपको सलाह देता हूँ कि आप घर में ही आराम करें । यहां न रुकें । "
मैनें पूछा - " क्यों ,,? "
उसने धीरे से कहा - " यहां आपको खतरा है "
मैंने पूछा - " कैसा खतरा ,,?? "
उसने कहा --" जान का खतरा ।,,रात में आपको उठा कर लोग ले जा सकते हैं ,,आपके साथ कुछ भी हो सकता है । "
यहां पुलिस वाले एक सिपाही की ड्यूटी लगा देंगें । एक चौकीदार हमारे अस्पताल का भी रहता है लेकिन वहः किसी काम का नहीं ।
पहले भी एक दो घटनाएं हो चुकी हैं ,,जो बाद में रफा दफा हो गईं !
मैनें डाक्टर से नाम पूछा तो उसने बताया ,," राकेश शर्मा " !
पट्टी बंधवा कर मैं व्हील चेयर पर बाहर आया तो डॉक्टर ने सिपाही को कहा ,,चोटें देख लीं है रिपोर्ट सुबह बना कर भिजवा दूंगा ।"
मैनें अपने साथी यंत्री से स्लाह ली उसने भी कहा - " घर में ही रहिए । वहां घर वाले साथ रहेंगे ही ,,वहां दो लाइन स्टाफ भी रख देंगें । "
हमने घर में रहने का निश्चय किया और घर की ओर चल दिये ।
रास्ते में ही मेरा दफ्तर पड़ता था ।
इस बीच मेरे ऊपर हुए आक्रमण की खबर सतना पहुंच चुकी थी ।
मैं अपनी यूनियन का सर्किल सेक्रेट्री था । मैनें सतना की अन्य विभागीय यूनियनों से सम्बन्ध बना कर वृहत रैलियां निकाली थीं । विभाग की अन्य यूनियन के पदाधिकारी मेरे आह्वान पर एक हो कर कई प्रदर्शन कर चुके थे ।
सतना आने से पूर्व में विद्युत मंडल की सशक्त जे ई यूनियन का सी डब्ल्यू सी मेम्बर रह चुका था । नीतिगत निर्णयों में मेरी सलाह अहम हुआ करती थी ।
एक समय था कि मैं कामरेड की तरह , दाढी बढ़ाये , झोला कंधे पर लटकाए,,आज यहां तो कल वहां घूमता था ।अपने साथियों के न्याय के लिए में किसी भी बड़े से बड़े अफसर से भिड़ जाया करता था ।
लिहाजा जैसे ही खबर सतना पहुंची , मेरे साथी सक्रिय हो गये। तुरन्त ही ज्ञापन बना ,,कलेक्टर , एसपी को सौंपा गया और नतीजा यह हुआ कि नागौद के पुलिस सर्किल इंस्पेक्टर को केस की रिपोर्ट देने को कहा गया ।
जब मैं घर की ओर बढ़ा तो मेरे आफिस के पास ही सर्किल इंस्पेक्टर साहब और थानेदार खड़े मिले । अब उन्होंने हम लोगों से रिक्वेस्ट की की कृपया अपनी रिपोर्ट लिखवा दें ।
लेकिन मेरी हालत खराब थी लिहाजा मैनें मना कर दिया । तब उन्होंने कहा कि अब थाना जाने की जरूरत नहीं ।आप अपने दफ्तर में ही बैठ कर तीपोर्ट लिख दें वही एफ आई आर मां ली जाएगी ।
मैनें दफ्तर में बैठ कर उन सब लोगों के विरुद्ध नामजद रिपोर्ट की जो नगरपालिका के पदाधिकारी थे और जिन्होंने मुझ पर आक्रमण किया था ।
दरअसल जब आर आई सिंह थाने में मेरे विरुद्ध रिपोर्ट लिखवा रहे थे तो उन्हें घेर कर वे सब लोग वहीं खड़े थे जिन्होंने मुझ पर हमला किया था । मेरे साथी यंत्री ने साथ के लाइनमैन से उन सब के नाम कन्फर्म कर लिए थे जो अब नामजद रिपोर्ट में लिख गये ।
रिपोर्ट लिखवा कर घर आये तो देखा सतना से मेरे माता पिता भाई वगैरह आ चुके थे ।
घर जाते ही बिस्तर पर पड़ा तो निढाल हो गया ।
तभी लोगों ने बताया कि युवराज नागौद मुझे देखने आए हैं ।
युवराज नागौद एक अद्भुत गिटारिस्ट थे और मेरे संगीत रुचि के अभिन्न मित्र थे । में कभी भी उनकी गढ़ी में चला जाता था और हम दोनों की महफ़िल जुड़ जाती ।।
उन्होंने मेरा सूजा हुआ मुंह देखा तो उनकी भृकुटी तन गई ।
चुपचाप बाहर आये और दरवाज़े पर खड़े हो कर अपने ही समाज को गालियां सुनाने लगे । वे बोले ,," ,में इस स्टेट का युवराज ,,,तुम सब को चैलेंज देता हूँ कि अब कोई मेरे दोस्त को हाथ लगा कर दिखाओ ,,,।
तुम नहीं जानते यह संगीत का प्रेमी है,,और संगीत प्रेमी अपने भाई पर यह हमला में सहन नहीं करूंगा ।"
उन्होंने ऐसा क्यों कहा इसकी एक अलग कथा है ।
किंतु बाहर दहाड़ने के बाद वो फिर अंदर आये और मुझसे कहा ,,' किसी माई के लाल की अब हिम्मत नहीं जो इस तरफ रुख करे । "
उन के जाने के बाद में सो गया ।
लेकिन असली सीन तो सुबह होने वाला था ।
क्रमशः
--4--
सुबह जल्दी आंख खुल गयी ।
डॉक्टर के लगाए दर्द निरोधक इंजेक्शन का असर अब खत्म हो गया था । पूरे शरीर में भीषण दर्द था । न हाथ उठा रहा था न पैर । मुंह फूल कर कुप्पा हो गया था ।
बिस्तर पर आंखें मींचे चुपचाप पड़ा मैं सोचने लगा ,,क्या यह ठीक हुआ ,,?? मेरी दो बिटिया और एक बेटा था । सभी बहुत छोटे । मुझे उनके मासूम चेहरे दिखने लगे । और पत्नी भी । सोचने लगा अगर मुझे कल कुछ हो गया होता तो उनकी आज की सुबह कैसी होती ,,??
मुझे अपने सम्भागीय यंत्री की कही हुई बात याद आने लगी ,," इतने दिन से सब चल रहा है ,,तुम क्यों इस पचड़े में पड़ रहे हो ,,?? "
सचमुच आदतन में ही गलत हूँ । मुझे क्या जरूरत थी दुकानदारों को अलग से कनेक्शन दिलवा कर विभाग के राजस्व को बचाने के लिए , दबंगों से भिड़ने की ,,?? यदि मैं मर जाता तो अनुकम्पा नियुक्ति पर मेरी पत्नी को क्या मिलता ,,?? एलडीसी की नॉकरी ,,?? या शायद न भी मिलती ।
सोच कर मेरी आँखें गीलीं होने लगी तभी पत्नी गर्म पानी , पेस्ट , ब्रश ले कर आ गयी । उसने कहा हिम्मत करके मुंह खोलो और ब्रश करो । किसी तरह ब्रश किया और फिर आंखें बंद करके लेट गया । पत्नी अब चाय बना ले तो किसी तरह प्लेट में डाल कर एक एक घूँट पिया । कुछ खाने के लिए जबड़ा तो खुल ही नहीं रहा था ।
पत्नी शायद मेरे मन की बात समझ गयी । बोली ,,
" क्या सोच रहे हो ,,? "
" यही,,तुम लोगों के बारे में ,, अगर मुझे कुछ हो गया होता तो तुम्हारा और बच्चों का क्या होता ,,?? "
मेरी पत्नी बहुत ईश्वरवादी है ,,उसने मुस्कराते हुए कहा ,,
" होता कैसे,,?? आखिर हम सब का भाग्य भी तो जुड़ा है न तुमसे ,,? "
मुझे दिलासा मिली । निराशा ने दामन छोड़ा । मैं फिर सोचने लगा ,,आखिर ईश्वर तो है ही हमारे साथ,,वरना स्थल पर क्यों जैसवाल मेरे साथ होता ,,? ,क्यों वहः मुझे बचाता ,,?? क्यों मेरे साथ पिकअप में ले कर मेरे साथी यंत्री थाने तक जाते,,?? क्यों अस्पताल में डॉक्टर मुझे वार्न करता ,,?? , क्यों खुद पुलिस मुझसे रिक्वेस्ट करती की में एफआईआर लिखवाऊं ,,?? क्यों एक सह्रदय , संगीत प्रेमी , गिटारिस्ट , सौम्य व्यक्ति मुझे देखने आता ,,?? , और क्यों वहः दरवाजे पर खड़ा हो कर मेरी रक्षार्थ अपनी ही कौम को ललकारता ,,??
सच में इस ' क्यों ' का कोई उत्तर नहीं था मेरे पास ,,!
तभी दरवाजे की घण्टी बजी और मेरे सतना के मित्र अवतरित हुए । इनमें सबसे अंतरंग मित्र थे श्री यू पी सिंह और विभागीय साथी श्री डी के शर्मा ।
यूपी सिंह मुझे बड़ा भाई मानते थे । आते ही उन्होंने मेरे पैर छुए , फिर मेरी पत्नी के ।फिर हंसते हुए बोले ,," क्या भैया ,,?? आपने मेरी नाक कटवा दी ! नाम ठाकुरों जैसा रखा है ,,' सभाजीत ' और खुद अपना सिर फुड़वा बैठे । अरे ,,,एकाध हाथ आप भी तो चलाते ,,!!"
मेरे क्लान्त मुख पर रौनक आ गयी । तभी डी के शर्मा ने कहा ,, तुम तैय्यारी कर लो , तुम्हें सतना जिला अस्पताल रैफर कर दिया गया है ,, अब नागौद में नहीं रुकना है । "
डी के शर्मा लिधौरा टीकमगढ़ निवासी थे और वे भी मेरे लिए बड़े भाई ही थे । एक वर्ष पूर्व वे नागौद में ही पोस्टिड थे । उन पर भी गावँ में एक विद्युत चोरी चेकिंग के दौरान हमला हुआ था और उन्होंने भाग कर जान बचाई थी । उन दिनों में सतना के औद्योगिक क्षेत्र के वितरण केंद्र का अधिकारी था । सम्भागीय यंत्री ने उनका ट्रांसफर मेरी जगह और मेरा सतना मुख्य शहर तत्काल प्रभाव से करके उन्हें राहत दी थी ।
तभी दरवाजे पर एक ट्रक के रुकने की आवाज़ आई । कुछ देर में ही मैहर शहर के अधिकारी श्री पी एल सिंह पूरे स्टाफ के साथ अंदर आ गये । वे मेरे परम् मित्रों में थे । हम लोगों ने मिल कर यूनियन में अपने साथियों की कई समस्याएं सुलझाएं थी ।
उन्होंने आते ही कहा ,," में जानता हूँ ,,जिसने तुम पर हमला किया है ,,वहः मेरे ही गावँ का मेरा पट्टीदार है ,,लेकिन मैं उसे सजा दिलवाने में सबसे आगे रहूंगा,,विश्वासः रखो ।"
मेरा दफ्तर मेरे घर के पास ही था । स्टाफ मुझे देख कर वापिस लौट गया और थोड़ी देर में लाउडस्पीकर से आवाज सुनाई देने लगी ,,"प्रिय साथियों ,!,,,,,,,,!!,,,!!
में समझ गया अब नेता गिरी और यूनियन बाजी शुरू हो चुकी है ।
अब मैं खुद एक मुद्दा बन चुका था ,, लड़ाई का ,,,और लड़ाई शूरवीरों ने अपने हाथ ले ली है ।
तभी सतना से ट्रक भर कर तीन तीन यूनियनों के पदाधिकारी आ गए । किसी समय मैनें किसी मुद्दे पर सभी अलग अलग यूनियनों का एक संयुक्त मोर्चा बनाया था ,,वही संयुक्त मोर्चा रातों रात पुनर्जीवित हो गया था ।
तब तक मैं तैयार हो चुका था ।
तभी एक लाइन स्टाफ आया ,,,उसने बताया कि नगरपालिका के सामने भी एक टेंट गढ़ गया है । नगरपालिका वालों की यूनियन भी रैली निकाल कर एसडीएम को ज्ञापन देने जा रही है ।
अब झूठ सच की घनघोर जंग छिड़ चुकी थी ।
नगरनिगम वालों ने मुझ पर इल्जाम लगाया कि मैं नशे में धुत्त था ,, और मेले के दुकानदारों को तंग कर रहा था तो दुकानदारों ने क्रुद्ध हो कर मुझ पर आक्रमण कर दिया । तभी बिचारे नगरपालिका के आर आई साहब मुझे समझाने आये तो मैनें चाकू से उन पर वार कर दिया जिससे उनकी हथेली थोड़ी कट गई ।
यह इल्जाम तो मैं थाने में ही अपने ऊपर लगते देख चुका था जब मैं खून से नहाया वहां बैठा था और मुंशी जी आर आई साहब की एफआईआर लिख रहे थे ।
अब नगर निगम वालों की मांग थी कि मुझ जैसे दुर्दांत अपराधी को तुरन्त गिरिफ्तार करे ।
इधर विद्युत मंडल की सभी यूनियन संयुक्त मोर्चा बना कर श्री पी एल सिंह की अगुवाई में रैली निकाल कर ज्ञापन सौंपने को तैयार हो चुकी थी और मांग कर रही थी कि आर आई सहित तीनों अपराधियों को तुरन्त गिरफ्तार करेन ,,,वरना अगला कदम ,,,नौगोद की बिजली बंद ।
एम्बुलेंस आने में देर थी तो डी के शर्मा ने कहा कि तुम जीप के पिछले हिस्से में लंबे लेट कर तुरन्त निकल जाओ । जीप आ चुकी थी तो लोगों ने मुझे उठा कर किसी तरह जीप में लिटवा दिया और एक अलग शॉर्टकट से में नागौद के बाहर निकल आया ।
एक अन्य वाहन में मेरे बच्चे , मेरी पत्नी , माता पिता वगैरह भी मेरे पीछे पीछे चले आये । मेरे आगे मोटर साइकिल पर सवार मेरे मित्र , मेरे विभागीय साथी चल रहे थे और मेरी बरात जैसा यह काफिला , अपने पीछे नागौद में लाउडस्पीकर युद्ध , ज्ञापन और रैलियों का हुड़दंग छोड कर सीधे जिला अस्पताल परिसर में आकर रुका ।
मुझे स्ट्रेचर पर लादा गया और सीधे इमरजेंसी वार्ड में ले जा कर भर्ती करवाया दिया गया ।
मुझे इस भागदौड़ में सचमुच बेहोशी आ गयी ।
इस तरह नागौद से तो निकल आया था ,,लेकिन नागौद की प्रतिछाया स्वरूप न्याय अन्याय की छाया अभी आगे इंतज़ार कर ही रही थी ।
अस्पताल में कुछ डॉक्टर जो नागौद वालों के निकटस्थ हितैषी थे तत्काल मेरे सभी परीक्षण कर मुझे जल्द से जल्द डिस्चार्ज करवाने की जुगाड़ में लग गए,,, लेकिन एक कोई था,,,जो इनके मंसूबों पर पानी फेरने वाला था,,,और वो था सीएमओ ,,,"हक" ,,!
क्रमशः,,।
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सतना का जिला अस्पताल मेरे लिए अपरिचित नहीं था ।
यहां के अधिकतम डॉक्टर मुझे जानते थे । मैं यहां पावर हाउस कॉलोनी में छह साल रहा था और सतना शहर का रेवेन्यू जे ई भी रह चुका था ।
यहां के सभी डॉक्टर अंगद के पांव थे और उनका कभी तबादला नहीं होता था । उनके अपने क्लीनिक भी थे और जिले के प्रायः हर गावँ के मरीजों का इलाज करने के कारण हर जगह के रसूखदार लोगों से उनके सम्बंध रहते थे ।
इसलिये इस अस्पताल के डॉक्टर सदैव वही रहते थे ,,।
बदलता था तो हर एक दो साल में सीएमओ यानी मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी ।
और इस समय मुख्य चिकित्सा अधिकारी थे ,,
,मि0 हक ।
हक साहब का पूरा नाम मुझे नहीं मालूम था लेकिन बताते थे कि वे बेहद सख्त मिजाज , अनुशासन प्रिय , और ईमानदार आदमी थे । गलती होने पर वे किसी को बख़्शते नहीं थे और किसी भी बड़ी से बड़ी ताकत के आगे , झुकते नहीं थे ।
नागौद कांड की खबर सतना के लोकल अखबारों की खबर बन चुकी थी इसलिए हर डाक्टर को मालूम था कि पेशेंट सतना अस्पताल आ सकता है ।
उधर नागौद से लोग आकर जुगाड़ लगा चुके थे कि पेशेंट को सामान्य इंज्युरी बता कर जल्द से जल्द छुटटी करवा दी जाए ।
इसलिए मेरे अस्पताल में भरती होते ही डाक्टरों की टीम मुआयने पर जुट गई ।
मेरे पैर , हाथ , सिर , छाती का एक्स रे लिया गया । आंख कान को टार्च से देखा गया कि कहीं खून जमा तो नहीं हुआ । बीपी नापा गया । मेरी सिर की पट्टी उतार कर घाव साफ किया गया ।
तभी सीएमओ साहब भी आ ज्ञे । मैं आंखें मींचे परीक्षण करवा रहा था लेकिन कभी कभी अधखुली आंखों से देख भी लेता था ।
सीएमओ साहब ने पूछा ,,,
" हाउ डीप इस इंज्युरी ,,? "
" नथिंग ग्रिवियस सर ,,!" एक डॉक्टर ने तुरन्त कहा ।
तभी सिस्टर ने घाव पर से पट्टी हटा दी । स्टिचिंग देख कर हक साहब बिफर गए । जल्द बाजी में नागौद के डॉक्टर ने बेतरतीब स्टिचिंग कर दी थी
। सात टांके बोरे की तरह सिल दिए थे । उसमें से एक दो बांस के पतले रेशे उन्हें झांकते दिखे ।
हक साहब सलीके से काम के हिमायती थे । उन्होंने पूछा --" हु स्टीच्चिड दिस ,,,? "
डॉक्टर्स इधर उधर देखने लगे तो किसी एक नए कहा ,," ये नागौद में ही स्टिच हुए । "
हक साहब ने उस डॉक्टर की ओर देखते कहा ,," अभी ग्रिवियस नहीं है तो इस हालत में आगे ग्रिवियस हो जाएगा । इसे निगरानी चाहिए । इसकी घाव की पूरी सफाई करवाइए ,,रिस्टीच् करवाइए ,,। कनपटी के पास की चोट है ,, केयर जरूरी है। ,,
इतना कह कर वे चले गये
। लेकिन उन डाक्टरों के मंसूबे टूट गए जो तीनदिन इलाज करके मुझे छुट्टी दिलाने के मूड में थे ।
बाद में किसी ने बताया कि नागौद के डॉक्टर शर्मा को हक़ साहब ने गलती के लिए मेमो इशू कर दिया ,,क्योंकि वे गलती बख़्शते नहीं थे ।
अब अस्पताल का ,,मैं खास मरीज हो चुका था । हर दिन , हर डॉक्टर आता ,, और चेकिंग के बाद फाइल में फाइंडिंग लिखता और फिर फाइल सीएमओ के पास निरीक्षण को जाती ।
चोट के कारण , मुझे सिर में दर्द और भारीपन भी रहने लगा था ,,लिहाजा उपचार अब लम्बा हो गया था ।
रैलियों, ज्ञापन, और भाषणों की जंग तो मैं नागौद में अपने पीछे मैं छोड़ ही आया था सतना में अब अखबारी रिपोर्टिंग की जंग छिड़ी ।
सतना का प्रमुख दैनिक था ,,' देशबंधु । जिसके संवादाता नागौद के ही एक ठाकुर साहब थे । उन्होंने एक रिपोर्ट बना कर एडिटोरियल को भेज दी जिसमें नगरनिगम का झूठा पक्ष हूबहू छप गया ।
एक शराबी के रूप में स्थल पर झगड़ा करने वाले और दुकानदारों से घूस मांगने वाले , और एक सन्त नगरपालिका अधिकारी पर चाकू से हमला करने वाले दुर्दांत व्यति के रूप में , मेरी कीर्ति पताका पूरे क्षेत्र में फैल गई ।
मेरे साथियों ने कुछ अन्य बाहरी अखबारों का सहारा ले कर इंदौर, जबलपुर , रीवा के अखबारों से रिपोर्ट छपवाई ,,,जो प्रतिउत्तर जैसा ही था । कुछ एक पेज के शहरी अखबार वाले भी आये और सवालिया कैप्शचन लगा कर फ़ोटो सहित खबर छाप दी ।
नागौद में मेला शुरू हो चुका था और साथ ही मेरे विरुद्ध हुई एफआईआर पर इन्वेस्टिगेशन भी शुरू हो गई ।।
डरे हुए दुकानदारों ने नगरनिगम की व्यवस्था स्वीकार करके , उन्ही से कनेक्शन ले लिए ।
पुलिस इन्वेस्टिगेशन में इन डरे हुए दुकानदारों से झूठे बयान लिखवा लेना , नागौद पुलिस के लिए कठिन नहीं था ।
अखबार में मेरे विरुद्ध छप ही चुका था इसलिए जनमत को भी भृमित होने में कोई दिक्कत नहीं थी ।
लगा कि अब सारी इन्वेस्टिगेशन झूठ के पक्ष में जा कर मुझे अपराधी घोषित करवा देगी ।
इस स्थिति में मेरे मित्र श्री डी के शर्मा ने अलग कदम उठाया । भोपाल में विधान सभा चल रही थी । वे टीकमगढ़ गये और वहां के विधायक से विधान सभा में नागौद कांड का एक प्रश्न उठवा दिया ।
प्रश्न के उत्तर में भोपाल से एक अलग इन्वेस्टीगेशन टीम आई ।उसने गुप्त रूप से घटना इंवेस्टिगेट की और सत्य उजागर करते हुए नगरनिगम के कर्मचारियों को दोषी ठहराते हुए रिपोर्ट भोपाल भेज दी ।
नतीजा यह हुआ कि इन्वेस्टिगेशन सतना के एस पी ने नागौद थाने से हटा कर सतना थाने की टीम को दे दिया ।
अब विद्युत विभाग की यूनियन ने मोर्चा सम्हाला । उन्होंने पूरे रीवा रीजन के विद्युत कर्मचारियों की रैली आयोजित की जिसमें सीधी , शहडोल , रीवा , पन्ना , छतरपुर के कर्मचारी ट्रकों में भर कर आ गए ।
सतना में विद्युत कर्मचारियों की अभूतपूर्व रैली निकली । जिसका एक छोर अस्पताल चौक पर था तो ,,, दूसरा छोर पावर हाउस गेट पर ।
ज्ञापनों से सतना ऐडमिनिस्ट्रेशन तो प्रभावित हुआ ही,,,विद्युतमण्डल का केंद्रीय एडमिनिस्ट्रेशन भी प्रभावित हुआ । अब एक के बाद एक उच्च अधिकारी जबलपुर से आने लगे और मेरी कैफियत और बयान लेने लगे ।
लेकिन अस्पताल में नागौद हितैषी कुछ डॉक्टर अलग ही खिचड़ी पका रहे थे । वे मुझे प्रतिदिन चैकिंग रिपोर्ट के आधार पर स्वस्थ्य घोषित कर शीघ्र डिस्चार्ज करवा देना चाहते थे । नागौद के डाक्टर को मेमो मिल चुका था इस लिए गलत रिपोर्ट हेतु डर भी रहे थे ।
मेरी अस्वस्थता की खबर सुन कर दूर दराज़ से मेरे रिश्तेदार और दोस्त मुझे देखने आने लगे । जबलपुर के मेरे एक मित्र श्री वैश मुझे देखने आए तो देर रात तक मेरे पास बैठ गए । वे लंबे ऊंचे कद के व्यक्ति थे और फर्राटेदार इंग्लिश बोलते थे । पहली। नज़र में वे कोई पुलिस के उच्च आफीसर लगते थे ।
रात 11 बजे वे बैठे थे तभी नर्स आई और मेरे सिरहाने रखी फाइल उठा ले गई मुझे शंका हुई कि मेरी फाइल नष्ट न कर दी जाए तो मैनें वैश से कहा कि वे देखें फाइल कहां जा रही है ।
वैश तेज कदमों से चल कर नर्स के पीछे पीछे गए जो डॉक्टर्स रूम में फाइल दे कर लौट गई । वैश तेजी से डॉक्टर्स रूम में घुसे जहां उन्होंने दो डाक्टरों को फाइल पलटते देखा । वैश ने सीधे उनसे अंग्रेजी में पूछा कि क्या वे आन ड्यूटी डॉक्टर्स हैं ,,?? और क्या पेशेंट को कोई नया प्रिस्क्रिप्शन देना चाहते हैं ,,??
वैश को देख कर वे उठ खड़े हुए । उन्हें लगा कि वैश कोई आफीसर है ।
उन्होंने कहा कि वे ड्यूटी पर नहीं हैं किंतु अस्पताल के ही डॉक्टर हैं । यूंही देख रहे थे कि दवाइयां दे दी गईं हैं या नहीं ।
उन्होंने घण्टी बजा कर दूसरी नर्स बुला कर फाइल यथा स्थान पहुंचाने को कहा ।
लौटते में वैश ने ड्यूटी पर उपस्थित हैड नर्स को कहा कि यह केस खास है । फाइल सम्हाल कर रखें ।
सुबह यह बात हक साहब को मालूम हो गई । उन्होंने फाइल बुला कर अपने चैंबर में अपनी कस्टडी में ले ली । उन्होंने व्हील चेयर पर मुझे वहीं अपने चैंबर में बुलाया फिर अन्य आक्टरों को वहीं बुलवा कर चैक करवा कर फाइल में उनसे स्थिति लिखवाई और डॉक्टरों को जाने दिया ।
अब हक साहब ने मुझसे सीधे पूछा ,,--" तुम्हारा प्रकरण क्या है ,,?? उन्होंने तुम्हारे ऊपर अटैक क्यों किया ,,?? "
मैनें उन्हें पूरी बात बताई ।
वे चुपचाप मेरी बात सुनते रहे ।
फिर फाइल पलट कर पीछे के प्रिस्क्रिप्शन देखने लगे ।
तभी चैंबर के दूसरे पार्ट में रखे टेलीफोन की घण्टी बजी ।
किसी के अभिवादन के उत्तर में उन्होंने ' वालेकुम सलाम ' कहा ।
उनकी आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी । उन्होंने सामने वाले की बात का जवाब देते हुए कहा ,
," सांसद जी । अगर विश्वासः न हो तो आप अस्पताल आ जाये । ! खुद देखिए कि सिर पर डंडा पड़ने से कैसी चोट लगती है और मुंह कैसा टेढ़ा हो जाता है । "
उधर से फिर कोई आवाज आई । तो थोड़ी देर ठहर कर उन्होंने कहा ,
," मुझे राजनीति से कोई लेना देना नहीं । में डॉक्टर हूँ और मुझे पता है कि कब किसी को भर्ती करना है और कब डिस्चार्ज " !
इतना कह कर उन्होंने फोन बंद कर दिया ।
वे तमतमाया चेहरा ले कर बाहर आये ।
मैनें यूं दर्शाया की मैनें कुछ सुना नहीं ।
तब उन्होंने फाइल अपनी कस्टडी में अलमारी में रखी और अटेंडेंट बुला कर व्हील चेयर पर मुझे वापिस बैड पर भेज दिया ।
मेरा इलाज एक माह तक चला और में तभी डिस्चार्ज किया गया जब में पूर्णतः स्वस्थ्य हो गया ।
मुझे डिस्चार्ज जल्दी करने और न करने का राज जब मुझे बाद में पता चला तो मैं आश्चर्य में पड़ गया ।
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अस्पताल में इलाज के दौरान दो दो उल्लेखनीय उपलब्धि हुईं ।
एक तो मेरा ट्रांसफर नागौद से मैहर हो गया दूसरे मेरी सबसे छोटी बेटी ' प्रभुता ' ने जन्म लिया । इलाज के अंतिम सप्ताह में,,मैं चलने फिरने योग्य हो गया था इसलिए प्रसूति वार्ड में भर्ती पत्नी को भी , अटेंड कर लिया ।
इस एक माह में अस्पताल के सभी डॉक्टर , कर्मचारी मुझे जान चुके थे । बेटी ने जन्म के समय ही , गर्भ थैली का फ्लूइड इन्हेल कर लिया तो उसे सांस में दिक्कत होने लगी ।
में उसे हाथों में उठा कर ,अस्पताल के ऊपरी भाग में बने चिल्ड्रन वार्ड में ले गया जहां चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर यादव के हाथों में सौंप दिया । डॉक्टर यादव मेरे शुभ चिंतकों और मित्रों में से एक थे । उन्होंने कहा - " चिंता न करो ,,इसे कुछ नहीं होगा । यह तो तुम्हारी रक्षक है । "
जल्दी ही अस्पताल से मेरी छुट्टी हो गई ।
उधर मेरे और नगरनिगम के लोगों के विरुद्ध , पुलिस ने दो अलग अलग केस बना कर नागौद लोवर कोर्ट में चार्जशीट दायर कर दी ।
इस तरह एक ही घटना के दो केस बने ,,जिसमें एक में ,,मैं मुजरिम था और दूसरे में सरकारी गवाह ।
अस्पताल से छूटते ही मुझे मैहर में शिफ्ट होने की चिंता हुई ।
मैंने मैहर के पंजाबी मुहल्ले में एक मकान लिया और भाइयों से कहा कि। ट्रक में भरकर चुपचाप नागौद से सामान ला कर मैहर शिफ्ट कर दें ।
मकान में प्रवेश करने से पहले मैं सपरिवार शारदा मां के मंदिर में मां के सामने गया । आंख मूंद कर मैंने उनसे कहा --
,,,,," जो आपने करवाया ,,वो मैनें किया ,,अब आगे जो आपको उचित लगे ,,वो करो ,,। "
मंदिर के उस ऊंचे पर्वत पर मेरा विषाद पूरी तरह धुल गया । मन ने कहा " ,,अब तुम्हें क्या चिंता ,,?? अब तो माँ ने तुम्हें अपनी गोद में मैहर बुला लिया । "
मैहर में मेरी पोस्टिंग सम्भागीय कार्यालय में जे ई वर्क्स के कार्य के लिए हुई । वहां मेरे साथ एक ऐ ई वर्क्स सिन्हा साहब भी थे । कार्य सुचारू रूप से चलने लगा ।
दस दिनों बाद ही नागौद से दो पुलिसवाले मेरे घर आ गये । उन्होंने कहा ," सम्मन है ,,आप को ले जा कर नागौद कोर्ट में पेश करना है ! "
मेरी पत्नी ने देखा ,,वे हथकड़ी वगैरह भी लिए थे । वो घबरा गईं ।
मैनें पत्नी को सांत्वावना दी । पुलिस वालों से कहा ,,-
" में एक सरकारी मुलाजिम हूँ ,,मेरे आफिस का समय हो चुका है ,,मुझे आफिस जाकर एक विशेष कार्य करना जरूरी है ,,आप आफिस चलो,,विशेष फाइलें अपने साथी को सौंप कर में आप के साथ चला चलूंगा ," !
थोड़ी देर ना नुकर के बाद वे मान गए । में उनके साथ आफिस गया । वहां सिन्हा साहब को फाइलें सौंपी । उन्होंने पूछा कि ये फाइलें क्यों दे रहे हो तो मैनें बताया कि मुझे गिरफ्तार करके दो पुलिस वाले नागौद ले जाने आये हैं और बाहर बैठे हैं ।
यह सुनते ही आफिस का पूरा स्टाफ उठ खड़ा हुआ । उन्होंने पुलिस वालों को अंदर बुलाया । उन में से एक हवालदार सिपाही मेरे आफिस के बाबू का रिश्तेदार भी था ।
सिन्हा साहब ने फोन उठाया और सीधे सतना एस पी को लगाया । उन्होंने कहा
,," ,,गिरफ्तारी जरूरी नहीं ,,कोई भी जमानत दे दे और मुलजिम नियत तिथि में समय पर कोर्ट में जा कर जज के सामने पेश हो जाये ,,वहां कोर्ट फिर जमानत दे देगा क्योंकि कोई गम्भीर आपराधिक प्रकरण नहीं है ।"
पुलिस के लोग भी तुरन्त मान गये । सिन्हा साहब ने खुद जमानत ली और पुलिस वाले उन्हें सलाम करके वापिस चले गये ।
नियत तिथि पर सुबह सुबह में अपने साथी यंत्री श्री पी एल सिंह के साथ उनकी जमीन जायदाद के कागजात ले कर कोर्ट में उपस्थित हुआ । पीएल सिंह नागौद निवासी थे और कोर्ट में उनको सब जानते थे तो जमानत का काम भी तुरन्त हो गया ।
नागौद से काम होते ही में पी एल सिंह के साथ सतना लौट आया ।
अब मुझे एक वकील करना था जो केस लड़े ।
पी एल सिंह ने बताया कि दूसरे पक्ष के विरुद्ध दायर हुआ केस सतना की एडीजे कोर्ट में ट्रांसफर हो चुका है ।
मैनें पूछा ,," क्यों ,," ??
तो पी एल सिंह ने बताया कि ,,"" " मारपीट में अगर चोटिल व्यक्ति 21 दिन से अधिक दिनों तक चिकित्सकीय इलाज में अस्पताल में भर्ती रहे तो मामला संगीन हो जाता है और तब उसे गम्भीर अपराध मान कर उसकी सुनवाई जिले की एडीजे कोर्ट करती है ।,,"
अब मेरी आँखों के सामने से सभी पर्दे हट गए,,कि क्यों लोग मुझे जल्दी ही अस्पताल से डिस्चार्ज करवाना चाहते थे ,,!
मुझे सांसद महोदय के फोन और उस वार्तालाप के दृश्य भी आंखों के सामने घूम गए जिसमें मुझे छुट्टी करने के लिए सांसद द्वारा दिये गए दवाब को हक़ साहब ने नकार दिया था ।
मुझे अपराध के वे छिपे चेहरे भी दिखने लगे जो अपराधियो को ताकत देते हैं ।
लेकिन अभी तो एक नई जंग शुरू हुई थी ,,,कोर्ट कचहरी की जंग । जो आगे जा कर सिर्फ मुझे और मुझे ,,अकेले ही लड़नी थी ।
मजे की बात यह थी कि यहां चाह कर भी कोई मेरी मदद नहीं कर सकता था ।न यूनियन ,,न कोई मित्र ।
यहां वकालत व्यवसाय थी ,, और आप की जान का मालिक एक वकील था,।
तो मैनें एक वकील की तलाश की ।
उधर ऐ डी जे कोर्ट में मेरे विरोधियों का केस आ जाने से वे सजा के भय से मेरे विरुद्ध और ज्यादा खूंखार हो गए ।
कारण अलग था ।
ऐ डी जे पाराशर साहब बड़े स्ट्रिक्ट थे । कानून के गहन जानकार । उनके कोर्ट से सजा न हो यह बहुत असम्भव बात थी ।
तो विरोधियों को भी एक बड़ा क्रिमिनल वकील ढूंढना पड़ा ,,और उन्होंने शहर का सबसे बड़ा वकील लगाया ।
अब जंग कठिन हो चुकी थी ।
उन लोगोंको अपने किये की सजा मिलेगी या नहीं या फिर मुझे जेल भुगतना पड़ेगा ,,?? , यह न्यायालय पर निर्भर था ।
लेकिन देवदूत तो थे ,ही ,,जो आगे मेरी सहायता में आने वाले थे ।,,
क्रमशः,।
--6---
लेकिन,,,मुझे तो अपनी चिंता सता रही थी ।
मेरा कोर्ट तो नागौद में ही था ,,उसी बस्ती में जहां मुझ पर जानलेवा हमला हुआ था ,,जहां अभी भी उन लोगों का वर्चस्व था जिनसे में भिड़ गया था ।
सच कहें तो अब मैं ही रणभूमि से पलायन कर गया था और वहां अभी भी खूंखार लोगों का राज था जो अन्याय को ही अपनी ताकत समझते थे ।
ऐसी स्थिति में हर बार पेशी पर नागौद जाना क्या मेरे लिए निरापद था ,,?? हर बार पी एल सिंह या कोई और साथी तो नागौद जायेंगें नहीं । मैहर से नागौद का 50 कि0 मी0 का रास्ता क्या कोई नई वारदात को अंजाम नहीं दे देगा ,,खास कर तब , जब सामने का व्यक्ति बौखला चुका हो ,,??
किसी ऐसी दूर की जगह में नौकरी करना अब कितना दुरूह है जहां आप कौटुम्बिक रूप से अकेले हों ,,जहां संतुलन शक्ति का अभाव हो ,,?? जहां कोई सामाजिक दबाव आपके पक्ष में हो ही न ??
ये बातें सोच कर मन घबराने लगा ।
अब मुझे ऐसा वकील भी चाहिए था जो इस न्यायिक प्रकिया में मेरे अभिन्न मित्रों की तरह सहायक बन के मुझे उबार सके । तब कचहरी की मंडी में , मैं एक साथी वकील को तलाशने लगा ।
ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की लत ने अब तक मुझे खाकी रंग के पेंचदार , श्वेत एप्रिन के घुमावदार गलियारों से गुजार दिया था लेकिन अब काले रंग के तिलस्मी नगर से होंकर मुझे सुरक्षित बाहर आना था ।
दूसरे दिन इतवार था । तो मैं सुबह सुबह ही अपने एक परिचित वकील श्री खरे साहब के घर पहुंच गया । मेरे ये मित्र वकालत में तो प्रसिद्ध नहीं हुए थे किंतु व्यंगकार के रूप में देश में प्रसिद्ध हो चुके थे । वे प्रगतिशील लेखक संघ के पदाधिकारी थे तो उनका पहला लक्ष्य था ,,,' अन्याय के विरुद्ध लड़ना ,,' !
उन्होंने कहा ,," मुझे आपका पूरा किस्सा मालूम है ,,,ईमानदारी की सही सजा आपको मिली है । "
मैनें पूछा , " ,अब क्या करूं ,,?? में नागौद पेशी में नहीं जा सकता । "
वे बोले --" तो मत जाओ । मैं आपका केस सतना ट्रांसफर करवा देता हूँ । "
उन्होंने एक एप्लिकेशन बनाई जिसमे झगड़े का स्थल नागौद बताते हुए मेरी जान को खतरा बताया और मेरी एफ आई आर , और अस्पताल की रिपोर्ट लगाई और दूसरे दिन सीजेएम कोर्ट में केस सतना ट्रांसफर करने की विनय की ।
खरे साहब बहुत अच्छे प्रसिद्ध व्यंगकार थे । सीजेएम साहब उन्हें जानते थे । केस जिनायन था । तो केस सतना लोवर कोर्ट में ट्रांसफर हो गया ।
मैनें वकील साहब को धन्यवाद दिया और मां शारदा को स्मरण किया । मैनें मां से कहा ,,अब तो आप कदम कदम पर मेरे साथ आ गईं हैं ,,अब मुझे कोई चिंता नहीं ।
लेकिन फिर भी केस लड़ने के लिए मैनें एक बड़ा वकील कर लिया क्योंकि खरे साहब सिविल केस ही देखते थे ।
उधर ऐ डी जे कोर्ट में उन लोगों की भी पेशी शुरू हो गई ।
न्याय पाना कोई आसान काम नहीं यह मैं न्यायालय आकर समझ गया । यहां केस फाइल , तारीखों की बैसाखियों पर लंबी छलानें लगा कर चलती है । कभी गवाह आया ,,कभी नहीं आया , कभी जज साहब बैठे,,कभी नहीं बैठे ,लेकिन मुझे दिन भर कोर्ट के द्वार के आसपास रहना जरूरी था । हांक लगते ही मुजरिम वाले कटघरे में खड़ा होना मेरी आत्मा को कचोट जाता ।
लेकिन वकील साहब की फीस तो हर पेशी पर देना ही पड़ती थी ।
में अपनी तनख्वाह से पैसे निकाल कर वकील साहब को पैसे देता । कोर्ट के खर्चे के नाम पर भी कुछ पैसे देने पड़ते । कभी कभी मुझे घर की जरूरतों में भी कटौती करनी पड़ती ।
अब विभाग को मेरी लड़ाई से कुछ लेना देना नहीं था । मुझे कभी कभी पश्चाताप होता कि क्यों मैनें सम्भागीय यंत्री जैन साहब की बात पर ध्यान नहीं दिया ,,!! आखिर यह लड़ाई तो सरकारी राजस्व के हितार्थ और अन्याय के विरुद्ध ही मैनें लड़ी थी ।
दिन कटने लगे और दोनों केस आगे बढने लगे ।
उधर एडीजे कोर्ट में सरकारी गवाह होस्टाइल होने लगे । मेरे ही लाइनमैनों ने कुछ भी देखने से इनकार कर दिया । कोई भी चक्षु दर्शी गवाह सामने आ कर कोर्ट में स्वीकार नहीं किया कि उन आरोपियों ने मुझ पर प्राणघाती हमला किया था । अलबत्ता सीएमओ हक साहब ने जरूर सशक्त गवाही दी कि चोट घातक थी ।
धीरे धीरे में उद्विग्न और निराश होने लगा । मुझे लगा कि वास्तविक अपराधियों को शायद ही सजा मिले ,,लेकिन मुझे सजा होने के पूरे आसार हैं ।
यह सब चल ही रहा था की एक दिन एक अपरचित व्यक्ति ने बाजार में रोक कर कहा ,,' सतना के ," ,,x,,दादा ' ने खबर भिजवाई है कि आप नागौद वाले केस में समझौता कर लें ,,यह आप के लिए ठीक होगा । '
"और अगर न करूं तो ,,??"
" तो आप जानों,, और दादा जानेंगे !! आप बाल बच्चे दार आदमी हो। ,,कुछ ऊंच नीच हो जाये तो क्या करोगे ,,?? "
मैं अंदर अंदर डर गया । मैंने कहा ,," सोचता हूँ !"
मैनें यह बात पी एल सिंह को बताई तो वे चिंतित होते हुए बोले ,," यह खबर तो मेरे पास भी आई है । ,,,में आपको बताने वाला ही था ,! "
तो अब क्या करूं ?? में सोचने लगा ।
' x दादा ' सतना के घोषित दादा थे । बालबच्चे दार होने का क्या अर्थ ,,??
अगर मेरे बच्चे को ही कोइ उठा ले जाये तो कौन ठिकाना ,,??
क्रमशः,,,,,7,,,,
सत्य के पक्ष में , ईमानदारी की यह लड़ाई मुझे इस स्थिति में ला कर खड़ी कर देगी यह मैनें सोचा नहीं था ।
अब तक फिल्मों में जो सीन देखता आया था ,,अब वो वास्तविक स्वरूप धारण करके मेरे सामने खड़ा हो गया था ।
घबराहट में पसीना निकलने लगा । पी एल सिंह की बात से यह स्पष्ट हो गया कि सतना के दादा भाई द्वारा भेजा गया सन्देश सत्य है।
सतना के दादा भाई अपराध की दुनिया के अधिपति थे । उनका सन्देश सलाह नहीं ,,आदेश की तरह ही था जिसे नकारने का कोई प्रश्न ही नहीं उठ सकता था ।
भय और अवसाद के बीच झूलता में ऑफिस गया । वहां जिससे भी बताया ,,वहः चुपचाप मुझे ताकता रहा । सबने कहा कि यह फैसला मुझे खुद लेना होगा कि मैं समझौता करूं या न करूं । अलबत्ता यह भी समझाया कि दादा भाई के सन्देश की अवहेलना करके खुद के लिए संकट भी मोल न लूं ।
आफिस में अब मन नहीं लगा । चुपचाप आधे दिन की छुट्टी ली और घर लौट आया । घर में आकर उहापोह में पड़ा सोचता रहा ।
अंतर्द्वंद में मेरे मन में दो परस्पर विरोधी विचार मुझे मथने लगे । सोचा कि अब तक जो हुआ उतना पर्याप्त था उन लोगों को दण्ड स्वरूप हुई परेशानियों के रूप में । व्यक्तिगत वैमनस्य बढाने से क्या लाभ ?? ,कल अगर मुझे या मेरे परिवार के साथ कोई अनहोनी हो जाये तो क्या करूंगा ?? ,,समझौते में क्या नुकसान है,??
दूसरे विचार ने कहा कि यह तो वही स्थिति है ,, भय और आतंक की ,,,जो नागौद में थी ,,
तो उसके सामने अब हथियार क्यों डाल रहे हो ,,?? ऐसा था तो सम्भागीय यंत्री की बात तभी क्यों नहीं मान ली थी ,,जिन्होंने कहा था ,,क्यों पचड़े में पड़ते हो ,,??
यही सोचते विचारते शाम हो गई । बच्चे स्कूल से वापिस घर आये तो पत्नी को हिदायत दी कि कुछ दिन बच्चों को स्कूल न भेजें ।
वे उस समय तो कुछ नहीं बोलीं । रात में खाना खाते हुए पूछा ,," क्या हुआ ,,मुझे बताओ ,,!"
मैनें उन्हें सतना से दादाभाई द्वारा भेजे सन्देश के बारे में बताया । अपनी विचलित मनःस्थिति के बारे में बताया ।
लेकिन वे तो ईश्वरवादी थी । उन्होंने कहा ,," किसी दादाभाई की चिंता मत करो । ईश्वर से बड़ा कोई नहीं होता । ' हुई है वही जो राम रुचि राखा '।,, ईश्वर पर भरोसा रखो सब ठीक होगा । "
इतना कह वे तो सो गईं लेकिन मेरी आत्मा जग गई ।
मन बोला ,," तुम तो माँ के वरद पुत्र हो ,, सीधे माँ को क्यों नहीं बताते जा कर ,,?? वे सब देख लेंगी क्या करना है क्या नहीं । "
माँ का ध्यान मन में आते ही मन बिल्कुल हल्का हो गया । कोई अवसाद न बचा । जल्दी ही नींद आ गयी ।
सुबह स्कूटर उठाई और सीधे मंदिर के पहाड़ पर चढ़ गया । उन दिनों ऊपर मंदिर तक जाने के लिए पर्वत का घेरदार,, घुमावदार रास्ता था जिससे वाहन जाया करते थे ।
ऊपर मंदिर में आरती हो रही थी । में चुपचाप भीड़ में जा कर खड़ा हो गया ।
कुछ देर बाद जब भीड़ छंट गई तो माँ से आमना सामना हुआ ।
मैनें चुपचाप हाथ जोड़े और पूरी स्थिति को उनको सौंप कर कहा ,," अब आप जानो ,,,,जैसा उचित लगे वैसा करो ,मैं मुक्त हुआ " !
अपनी बात कह कर मैं जल्दी ही नीचे उतर आया ।
नीचे उतरते ही सामने पी एल सिंह मिल गये । वे नगर वितरण केंद्र के अधिकारी थे ,,रोज मंदिर की विद्युत व्यवस्था देखने मंदिर आते ही थे ।
मुझे देखते ही वे मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पास में बने चाय के ढाबे में ले गये । वहां इत्मीनान से बैठ कर उन्होंने कहा ," ,,,
" कल आपसे बात होने के बाद मैं सतना गया था । वहां आपका विरोधी पक्ष भी मुझे मिला था । उनसे जब पूछा कि बीच में। 'xx दादा ' को क्यों डाला तो वे बोले कि,,' क्या करें ,?? शर्मा जी झुकने वाले नहीं,,,विभाग में हमारी प्रतिष्ठा खत्म हो चुकी है ,,इधर क्रिमिनल केस दायर हो चुका है ,,एक ही रास्ता है बचने का कि शर्माजी समझौता कर लें ,,,इसीलिए ,,xxx दादा के दरबार में गये थे ,,। आप तो अपनी जाति के हो कर भी साथ नहीं दे रहे ,,,अगर आप जिम्मा ले लें तो दादाभाई क्यों बीच में पड़ें ??'
पी एल सिंह आगे बोले,,,, कि ,,,मैनें उनसे कहा ,,' तुमने गलत किया,,, इसलिये यह सब हुआ ,,,क्या तुम्हें अपनी गलती का एहसास है ,,??'
वे बोले,,, " हम कान पकड़ कर शर्माजी से क्षमा मांगने को तैयार हैं । आप इस केस से छुटकारा दिलवा दो ,,'
पी एल सिह बोले कि,, 'तब चलो ,,पहले ,,'xxx दादा ' के दरबार में स्वीकार करो कि गलती तुम्हारी है ।'
वे सहमत हो गए तो वे सब मिल कर ,,' xxx दादा ' के दरबार में गए जहां यह तय हुआ कि,,' xxx दादा ' को अब कोइ मतलब नहीं । यह दो विभागों के बीच उत्पन्न हुआ प्रकरण है ,,,कोई जातीय प्रकरण नहीं ,,,इसलिए दादा उनका पक्ष ले कर कुछ नहीं कहेंगें ,,!,,अदालत में कोई जीते या कोई हारे इससे भी उन्हें कोई मतलब नहीं । दो पक्षों के बीच अगर हो सके तो मैं समझौता करवा दूं ,,और यदि न हो पाए तो भी उन्हें कोई मतलब नहीं । '
जिसने जैसा जो किया वो वैसा भोगेगा,,। "
इतना कह कर पी एल सिंह ने अब मूझ पर आंखें गड़ाते हुए कहा ,
,," इस तरह अब ' दादा xxx ' तो इस इस मामले से दूर हट गये,,,,,,,,,, लेकिन,,शर्माजी,,!,,मैं,,फंस गया ,,!!,'
" आप किस तरह,,फंस गए ?? "
--- " इस तरह ,,,,कि मैनें उनसे हामीं भर ली कि मैं आपको समझौते के लिए मना लूंगा । "
सिंह ने आशा भरी निगाह से मुझे ताकते हुए कहा ।
उनकी अंतिम बात सुन कर जैसे मैं अवसाद के गहरे समुद्र में डूब गया । पी एल सिंह ने मुझे एक आसन्न संकट से उबार लिया था लेकिन अहसान और रिश्तों से भरे अपनत्व के एक मीठे कुएं के जल में फिर से धकेल दिया था ।
में कुछ कह पाता ,,उससे पूर्व ही पी एल सिंह गम्भीर स्वर में फिर बोले,,,
"शर्मा जी ,,! हम लोग नौकरी पेशा हैं ,,जाती दुश्मनी क्यों पालें ,,? उधर वे लोग भी नौकरी पेशा हैं ,,,वे मान रहे हैं कि उनसे गलती हो गई है ,,वे क्षमा भी मांगने को तैयार हैं ,,तो क्यों न हम उन्हें क्षमा कर दें ,,?? ,,फिर आप तो ब्राह्मण हैं ,,आप क्षमा कर देंगें तो जीवन भर वे आपके ऋणी रहेंगे ,,। "
मैं फिर किंकर्तव्य विमूढ़ हो गया । कल तक तो दवाब था किसी बाहुबली का ,,,आज मनुहार थी ,,याचना थी ,,उस अपने की ,,,,जो संघर्ष में मेरा सारथी बना था,,सहयोगी था ।
फिर भी मैनें कहा ,,
" अब तो क्रिमिनल केस शुरू हो चुका है,,,अब समझौता कैसे सम्भव होगा ,,??"
सिंह ने कहा ,," इसका हल उनके वकील साहब ने बताया है ,,आप को कोर्ट में बस यह कहना है कि आप ने आक्रमण के समय धुंधलके में ठीक से नहीं देखा ,,,ये लोग ही थे यह विश्वासः से नहीं कह सकते,,!,"
यह सीधे सीधे होस्टाइल हो जाने का सुझाव था ।
,,, लेकिन मैं यह कैसे मान लूं कि उन्हें अपने किये का पश्चाताप है ,,वे क्षमा मांगना चाहते हैं ,," ?
--मैनें अन्तिम प्रतिरोध किया ।
-पी एल सिंह बोले,," वे मेरे साथ आपके घर आकर माफी मांगेंगे ,,गलती स्वीकार करेगें ,,तब तो आप मानेंगे ,,?"
मुझे लगा कि हम लोग मंदिर के नीचे बैठ कर ये बातें कर रहे हैं तो माँ की यही मंशा होगी । ,,,उसे अस्वीकार कैसे करूं ?
मैनें पूछा - " कब आयेंगें वे लोग ?? माफी मांगने ,,??"
पी एल सिंह बोले ,," दो दिन बाद उनकी पेशी है ,,वे कल ही हाजिर होंगे आपके सामने ,,क्षमा मांगने । ,,,फिर दो दिन बाद जा कर कोर्ट में जैसा उनका वकील कहे,, वैसा आप कह दीजिये ,,। मामला ,,खत्म,,,। "
मैनें हाँ कर दी ।
लेकिन क्या माँ की यही मंशा थी ,,??
क्या सचमुच समझौता होना सम्भव था ,,??
शायद नहीं ,,,!!
क्योंकि वह अंतिम देवदूत तो अब अवतरित होने वाला था,,,अंतिम दृश्य में ,,जिसने पूरे दृश्य को बदल दिया ।
और जिसकी सीख मेरे हृदय में अमिट हो गई जीवन पर्यंत ।
,,सभाजीत
क्रमशः ,,,,
,,,8,,,
दूसरे दिन इतवार था ।
सुबह सुबह ही पी एल सिंह अपनी प्लानिंग के मुताबिक नागौद के उन आरोपी लोगों के ले कर मेरे घर आ गए जिनसे मेरी लड़ाई हुई थी और जिन्होंने मुझ पर प्राणघातक हमला किया था ।
वे कमरे में आकर एक लाइन में खड़े हो गये । फिर पी एल सिंह के निर्देश पर एक एक व्यक्ति ने रिवहीँ अंदाज़ में आगे बढ़ कर , आधा झुक कर मुझे प्रणाम किया । वे मुंह लटकाए , आंखें झुका कर ऐसे खड़े हो गये जैसे अबोध बच्चे हों और किसी टीचर की आज्ञा पालन करने भयभीत हो कर आये हों ।
मैनें ध्यान से देखा,, वे अबोध मुखोटे लगाए वही क्रूर चेहरे थे जिन्होंने मरणासन्न होने की स्थिति तक मुझ पर भद्दी मां बहिन की गालियों के साथ लोहे की रॉड से घातक इतने प्रहार किये थे कि बस एक प्रहार और होता तो मेरे बच्चे अनाथ हो जाते ।
ये वही क्रूर चेहरे थे जो शासकीय अधिकार के मद में चूर हो कर अवैध कमाई को अपना पैतृक अधिकार मानते थे ।
ये वही चेहरे थे जिन्होंने मुझ पर अपने बचाव में झूठा मुकदमा ठोका था ।
ये वही चेहरे थे जिन्होंने जिला अस्पताल तक आ कर , वहां के मुख्य चिकित्सक को अपने मन मुताबिक मेरी चिकित्सा बाध्य करने की कोशिश की थी ।
और ये वही चेहरे थे जो अब सिर झुका कर मुझे आदर देने का ढोंग कर रहे थे ।
मैनें सोचा ,,क्या ये चेहरे क्षमा करने योग्य हैं ,,.?
आखिर माँ मुझसे क्या करवाना चाहती हैं ,??
क्या क्षमा कोई आभूषण है जो वीभत्स और क्रूर व्यक्ति के गले में भी लटका दिया जाए,??
तभी पी एल सिंह ने उन्हें निर्देश दिया । सब लोग शर्मा जी से माफी मांगो ,,।
उन्होंने एक एक कर के कहा ,,, हमसे गलती हो गई ।
पी एल सिंह ने फिर कहा ,,
"- पंडितजी हैं,,,अब एक एक करके आगे बढ़ के गोड़ छुवो,,।
सबने मेरे घुटने छू कर पैर छूने की दिखावटी प्रक्रिया पूर्ण की ।
अंत में पी एल सिंह ने मुझसे कहा --" देखिये सब पश्चाताप कर रहे हैं माफी मांग रहे हैं आप भी माफ कर दीजिए ,,। "
मुझे यह एक लघु नाटिका से बढ़ कर कुछ और नहीं लगी । फिर भी चूंकि पी एल सिंह से स्वीकार कर चुका था इसलिये सिर हिला कर हाँ करके संतुष्टि दिखा दी ।
बाहर निकल कर वे सब अपनी सामान्य मुद्राओं में हो गए । बाद में मेरी पत्नी ने बताया कि वे हंसे भी ।
शायद वो अपनी उस नाट्य कुशलता पर हंसे जिसके जरिये उन्हें लगा कि वे कोर्ट में होने वाले फैसले में वे निर्विघ्न विजयी हो जाएंगे ।
यह सब देख कर मुझे लगा कि पी एल सिंह नहीं बल्कि पी एल सिंह का प्रस्ताव स्वीकार करके मैं ही फंस गया हूँ ।
वे अपना दावँ खेल कर चले गए थे और मुझे अपने हिसाब से
उनके पाले में पूर्व निर्धारित खेल खेलने को आमंत्रित कर गये हैं ।
लेकिन अब क्या हो सकता था ? ,,वकीलों के दावँ पेंच से में अनभिज्ञ था । न्याय में सत्य प्रमाणित करना कितना कठिन है यह बात मेरी समझ में आने लगी थी ।
तीसरे दिन पी एल सिंह घर आ गए । साथ में दो लोग और थे जो शायद उन्ही ओपियों के रिश्तेदार थे जो माफी मांग कर गये थे । उन्होंने कहा ,,,जल्दी चलें ,,हो सकता है पुकार जल्दी हो जाये ,,और फिर वकील साहब बताएंगें कि कैसे और क्या बोलना है ,,।इसलिये जल्दी पहुंच कर समझ लें तो ज्यादा अच्छा रहेगा ।
मेरा मन मुझे अंदर ही अंदर कोसने लगा । मुझे वकील का सिखाया वहः झूठ बोलना था जो बिल्कुल सच नहीं था । लेकिन शायद मैं अब ट्रैप हो चुका था ।
और में ही क्यों ,,शायद पी एल सिंह भी ट्रैप ही हुए थे । एक ही जाल से ,,,अपनत्व के जाल से । वे जातिवाद के भाईचारे के जाल में फंसे थे ताकि उनके बन्धु बांधव सजा से बच जाए ,,और मैं विभागीय अहसान और सहयोगी भाई चारे के जाल से ताकि पी एल सिंह का विभागीय अहसान चुका सकूं ।
मन तो हुआ कि आज मना कर दूं किन्तु संकोच में रह गया ।
चलते समय एक बार मंदिर की ओर नीचे से ही मुंह करके मां को प्रणाम किया और फिर सब कुछ उन्हें सौंप कर पी एल सिंह के साथ अन्य दो लोगों से घिर कर में कोर्ट पहुंचा ।
कोर्ट शुरू हो चुका था पर न जाने क्यों जज साहब बीच में ही उठ कर अपने चैंबर में जा कर बैठ गए थे । मेरे विरोधियों के वकील साहब शहर के जाने माने क्रिमिनल केसों के वकील थे ।
वे जाति से ब्राह्मण और सरनेम से शर्मा ही थे । उन्होंने जाने कितने दुर्दांत अपराधियों को जेल जाने से बचाया था इसलिए वे बहुत कम समय मे प्रख्यात हो गये थे ।
मुझे देख कर वे मुस्कराए,,फिर उन लोगों से कहा ,,"- आखिर तुम लोग ले ही आये इन्हें ,,अब ठीक है,,आपको वही कहना है जो पहले बताया था । कोर्ट में इन्हें तुम लोगों को नहीं पहचानना है ,,बस ,,!!"
जज साहब अभी नहीं बैठे थे ,,तो हम लोग बाहर निकल कर आ गये । लगा अभी पुकारे के लिए देर है ,,तो पी एल सिंह ने कहा ,," चलो तब तक कहीं चाय पी लेते हैं । "
हम लोग पास के एक बड़े रेस्टुरेंट में घुस गए ।
तुरन्त चाय और काफी का सुविधानुसार आर्डर हुआ । फिर किसी ने कहा ,,' एकएक रसगुल्ला हो जाये ,," !
तभी मैनें देखा कि सामने की टेबिल पर मेरे परम् मित्र श्री लाजपत राय बैठे हैं ,,वे किसी काम से कोर्ट आये थे । शायद किसी से मिलने ,,क्योंकि अमूमन उन्हें कोर्ट आने की जरूरत कभी पड़ती ही नहीं थी । वे जाती से सिंधी थे किंतु सात्विक और ईमानदार । वे सतना नगर के सिंधी समाज के मुखिया थे । और सतना नगर में कोल्ड हाउस के मालिक थे ।
उन्हें सब लोग जानते थे । न सिर्फ सतना में बल्कि आसपास के अन्य नगरों में भी । उनकी प्रतिष्ठा इतनी थी कि उनके आफिस में नगर के कई लोग समस्या सुलझाने भी चले जाते थे ।
उन्हें देखते ही मैनें मुस्करा कर , हाथ उठा कर नमस्कार किया किन्तु उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया ।
तभी रसगुल्ला मेज पर लग गया । मेरे विरोधी भी उनसे अच्छी तरह परिचित थे तो आदर सहित एक प्लेट रसगुल्ला उनकी टेबिल पर भी पहुंचाया ।
उन्होंने प्लेट की तरफ किंचित न देखते हुए मेरे विरोधियों से पूछा ,," क्या बात है ,,आज बहुत अच्छा दिन है ,,आप लोगों को एक साथ देख रहा हूँ ।,,क्या हुआ आप का केस निपट गया ,,?? "
मेरे विरोधियों ने कहा ,," निपटा ही समझिए ,,,।,,हम लोगों में आपसी समझौता हो गया है ,,!"
लाजपत राय ने थोड़ा बनते हुए पूछा ,," क्या केस विदड्रा हो गया या आपके हित में फैसला हो गया ,,? "
मेरे विरोधियों ने उत्साहित हो कर कहा ,,," फैसला हमारे पक्ष में हुआ ही समझिए,,इसी लिये रसगुल्ला पेश किया है,,,मुंह मीठा करिए ,,शर्माजी हमारे पक्ष में बोल देंगें ,,यह तय हो गया है । "
लाजपत राय उठ खड़े हुए ,,रसगुल्ले की प्लेट उन्होंने सामने से सरका दी । फिर हाथ जोड़ते हुए बोले ,," रसगुल्ला तो फैसले के बाद ही खाऊंगा ,,अभी नहीं । "
उठने के बाद उन्होने एक भरपूर द्रष्टि मुझ पर डाली । उस द्रष्टि में ऐसा न जाने क्या था जो मुझे चीर गयी ।
वहः द्रष्टि हिकारत की थी । क्षोभ की थी । उलाहने की थी । सवालों की थी ।तिरस्कार की थी । मित्रता की शिकायत की थी ।
लाजपत राय की यह द्रष्टि , और उनका रसगुल्ले की प्लेट को तिरस्कृत करना मुझे बींध गया ।जिस द्रष्टि ने सदा मुझे आदर से देखा था ,जिसमें मेरी प्रतिष्ठा थी वहः आज इस रूप में क्यों मुझ पर उठी यह सोच कर में विह्वल हो उठा ।
अब मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैं जैसे लड़खड़ा उठा ।
रेस्टुरेंट से बाहर आते ही मैनें कहा ,,-" मेरी तबियत ठीक नहीं
आज मैं गवाही नहीं दे पाऊंगा ।"
पी एल सिंह सहित सभी अन्य लोग विचलित हो गये ।
बोले ," अभी तो आप ठीक थे अभी क्या हुआ ,,?? "
मैनें कहा -" मैं नहीं जानता । लेकिन मुझसे बोलते नहीं बन रहा ,,अब मैं घर जाऊंगा । "
उन सब ने मुझे समझाने मनाने की कोशिश की किन्तु मेरे कान तो जैसे सनसना रहे थे ।
मुझे लग रहा था कि कब में लाजपत राय के घर पहुंचूं ,,और उससे उसकी उस निगाह के बारे में पूछूं,, कि " तुम क्या कहना चाहते हो ,,?? "
आखिर पी एल सिंह मांन गये और अगली तारीख पर गवाही देने का वादा ले कर मुझे छोड़ दिया ।
में वहां से निकला और स्कूटर से सीधे लाजपत राय के घर भागा ।
लाजपत राय घर नही पहुंचा था ,,लेकिन में उसके आफिस के बाहर पड़ी बेंच पर निढाल हो कर बैठ गया ।
कुछ देर बाद लाजपत राय आया ,,लेकिन मुझे बिना देखे आफिस में घुस गया ।
यह स्पष्टतः मेरी उपेक्षा थी ।
लेकिन क्यो,??
इसका जो उत्तर आगे लाजपतराय देने वाला था वहः मेरी कल्पना से बाहर था ।
-' सभाजीत '
क्रमशः,,
,,,9,,,
लाजपत राय जब इस तरह मुझे उपेक्षित करके अपने कार्यालय में घुस गया तो मुझे अब अपने पर और भी ग्लानि हुई । इसी सतना नगर का जब मैं विद्युत अधिकारी था तो यह व्यक्ति मुझे अपने आफिस के द्वार में घुसते देख कर उठ खड़ा होता था ,,,हाथ जोड़ कर नमस्ते करता था । अब ऐसा क्या हुआ जो उपेक्षा कर रहा है ।
मेरी मझली बेटी को ठीक दिवाली पर ,अचानक बीमार होने पर , खून चढ़ाने की जरूरत हुई तो तुरन्त इसी व्यक्ति ने न सिर्फ खून का इंतजाम करवाया था बल्कि रात में रुक कर मेरा साथ दिया था । इसके आफिस में बैठ कर हम लोग घण्टों मनोविनोद करते,,तो यह खाना खाना भी भूल जाता । मेरी किसी भी समस्या को यह फोन पर ही। लोगों से बात करके सुलझा देता था । सामाजिक कार्यक्रमों में अगर मुझे देख लेता तो मेरे पास आकर बैठ जाता । कितने ही मेरे और इसके मित्र कॉमन थे । नागौद कांड में अस्पताल में भर्ती होने पर करीब करीब हर दिन मुझे देखने आता था ।
फिर ऐसा क्या हुआ जो अब यह मेरी उपेक्षा कर रहा है ,,?? क्या नागौद कांड से मेरी प्रतिष्ठा इसकी नजर में धूमिल हो गई है ,,?? क्या मैहर तबादले से में अब क्या इसके लिए मूल्य हीं हो गया हूँ ,,??
यह सोच कर में उठा और उसके आफिस में घुस गया । वहः अंदर पहले से बैठे दो लोगों से बात कर रहा था । मुझे देख कर उसने किंचित मुस्करा कर अभिवादन किया फिर बैठने को कह उन्ही दो लोगों से बात करने में मशगूल हो गया ।
उनलोगों की बात जल्दी ही खत्म हो गई और जब वे चले गये तो हम दोनों कमरे में अकेले बचे ।
अब वहः मेरी तरफ मुखातिब हुआ ,,बोला- ," कैसे आना हुआ शर्माजी ,,! ,,मुझ से कोई काम है ,,?"
-" काम न होता तो क्यों आता ,,?? "- मैनें कहा ।
" कहिये,, क्या खिदमत करूं ,,? " - उसने कहा ।
मैनें उसके चेहरे पर नज़र गड़ाते हुए पूछा ,,- " लाजपत राय ,,अभी हम लोग कोर्ट में मिले थे ,,आपने मेरी ओर देखा तक नहीं ,,क्या भूल गये ,,??
" भूला तो नहीं ,,पर अब भूल जाना चाहता हूँ ,,!"
-" क्यों ,??
" इसलिए कि आज से मैनें कसम खाई है ,,की में किसी ,,' ईमानदार ' का साथ नहीं दूंगा । "
उसका यह वाक्य ठंडी छुरी की तरह मेरे जेहन को जैसे बींध गया ।
थोड़ी देर निस्तब्धता के बाद उसने मुझे घूरते हुए कहा - " क्या हुआ ? आपने समझौता करके आज उनके पक्ष में गवाही दे दी ,?? "
मैनें कहा --" नहीं ,,! आपके चले आने के बाद मैंने मना कर दिया,,न जाने क्यों,,मुझे अच्छा नहीं लगा ।"
लाजपत राय थोड़ी देर चुप रह कर बोला ,," शर्मा जी ! ,,आपके ऊपर हमला होने से लेकर कोर्ट जाने तक क्या आपने अपनी लड़ाई अकेले लड़ी,??"
मैनें कहा --" नहीं ,,!"
लाजपतराय बोला --" तब समझौते आ अधिकार आपने अकेले कैसे ले लिया ,,?? " यदि आप अपने अकेले के बल पर लड़े होते तो मुझे कोई शिकायत न होती,,लेकिन मुझे दुख है कि आपने अपने दोस्तों का हकऔर सहयोग को छीन लिया !"
आप जानते हैं कि आप के होस्टाइल होने के बाद क्या होगा,,??,,जज आपके बारे में भी टिप्पणी दर्ज कर सकता है,,आप की पूरी शख्शियत पर हमेशा के लिए दाग लग सकता है । "
दूसरे झूठे और बेईमान लोग जीत जायेंगें ,,वे लोग फिर बेईमानी करेंगें,,और आप जैसे ईमानदार लोग फिर पिटेंगे। ,,हो सकता है मर भी जाएं । "
एक केस आप पर भी दायर है ,,खुद बेदाग बरी होने के बाद वे झूठे गवाह पेश करके आपको जेल भी भिजवा देंगे,,।
तब हम लोगों का किसी ईमानदार के साथ खड़े होने से क्या फायदा ,,?? '
-" आपके विरोधी भी तो हमारे भी मित्र हैं । इसी आफिस में आकर उन्होंने कितने बार क्षोभ प्रकट नहीं किया कि हम उनका साथ न दे कर आपका साथ दे रहे हैं । हमारी आपस में बुराई भी बढ़ी,,,आपके खातिर । हम पग पग पर आपकी टोह लेते रहे ,,आपकी सुरक्षा के लिए ,,अभी भी दादा भाई को हमीं ने खबर भेजी की शर्मा जी हम लोगों के बीच के आदमी हैं और अच्छे आदमी हैं ,,,तभी उन्होंने खुद को अलग किया ।
पी एल सिंह को तो दादा भाई के हट जाने के बाद उन्होंने उपयोग किया है ,,,।"
क्या अब भी आप उन्हें बचाने के लिए उनके पक्ष में गवाही देंगें ,,??"
मुझे अब कुछ भी सुनाई देना बंद हो गया था ।
मैनें उठ कर लाजपतराय के हाथ अपने हाथ में लिए और मेरी आँखों में भर आईं ,एक बूंद उस पर चू गईं । मैनें देखा कि उसकी भी आंखें बातें करते करते भर आईं थीं ।
अब मैं एक पल भी उसके पास नहीं रुका ।सीधे घर आया और आते ही मंदिर की देहरी पर जा कर माँ को प्रणाम किया ।
मैनें कहा --" माँ तुम्हारा नाम शारदा यूं ही नहीं है ,,तुम आदि शक्ति हो ,,लोगों के विवेक और जिव्हा में वास करती हो ,,तुम किसी के भी माध्यम से , उसके विवेक में विराज कर , उसकी जिव्हा से कुछ भी करने में समर्थ हो । तुमने सदा सत्य के रक्षा की हर युग में ,,,आज मुझ पर भी असीम दया की ,,में कृतार्थ हूँ।"
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इसके बाद का वृत्तांत बहुत छोटा है ।
मैन दूसरी बार कोर्ट में अपनी गवाही में आरोपियों को स्पष्टतः पहचाना । उन के कृत्य को बताया ।
जज पराशर ज़ाहब ने तीनों को तीन तीन साल की सजा से दंडित किया और उन पर तीन तीन हज़ार का जुर्माना किया ।
हालांकि,, वे हाई कोर्ट जा कर फिर छूट गये ।
मेरे केस में में बेदाग बरी हुआ ।
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यह वृत्तांत मैनें लोगों के मनोरंजन के लिए नहीं लिखा,,बल्कि उस मित्र की याद में लिखा जो कुछ दिन पूर्व ही यह दुनिया छोड़ कर चले गये ।
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वाट्सएप में लिखना कितना मुश्किल है ये वे लेखक जानते हैं जो लिखते हैं ।
इस लिए शाब्दिक त्रुटियोंऔर व्याकरण के लिए क्षमा ।
' सभाजीत '
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