गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

लघुकथा - 1
:

:: उपदेश :::

 कृष्ण ने अर्जुन को अपने केबिन में बुलाया !
 श्री कृष्ण तिवारी अफसर थे जबकि अर्जुन दवे उसका मातहमत  !
  अर्जुन के अन्दर घुसते ही कृष्ण ने ' सखा भाव '  से कहा -
- " बैठो  अर्जुन "
   अर्जुन बैठ गया तो कृष्ण  ने पूछा  - 
- " कैसी तबियत है अब तुम्हारी वाइफ़ की ..?? "
- " ठीक है सर !! ... नरम गरम तो चलती ही रहती है ..! " 
- " भई... तुम भी अजीब आदमी हो ...! ,  बाल बच्चों और घर  की तरफ  कोई ध्यान नहीं देते ..!! "
- " क्या करूँ सर "- अर्जुन ने शिथिल भाव से कहा--"  डिपार्ट मेंट के वर्क से ही फुर्सत नहीं मिल पाती ..,!"
   कृष्ण मुस्कराए ..!,,,  फिर ' दार्शनिक भाव ' में  अर्जुन  पर नज़रें गडा दी ! -
- " घर में किसी को कुछ हो गया  तो क्या दे देगा  तुम्हें डिपार्टमेंट ..?? ... अरे पहले  घर देखो  ... यह  सरकारी काम काज तो चलता ही रहेगा ..! "
 _ " यस सर ..!! " ... अर्जुन को लगा जैसे उसके घाव पर कोई मरहम लगा रहा हो  !
कृष्ण ने दराज खोली ,  सौ रुपयों की एक गड्डी तोड़ कर  उसमें से दस नोट तोड़  कर अलग किये  .. फिर एक लिफाफे में डाल कर , अर्जुन की और उछाल दिए !
- "  " मेहता ' दे गया था ..! ..., तुम्हारा जायज हक़ है इस पर ..! ... उसकी फ़ाइल है तुम्हारे सेक्शन में ... आज ही नोटशीट बना लाओ तो   अप्रूव कर दूँ ! .."
 अर्जुन ने कृतज्ञ भाव से कृष्ण को देखा ,,फिर  लिफाफा उठा कर मोड़ा  और  चुपचाप जेब में डालते हुए कहा  -  " जी  सर .." !
 कृष्ण बोले - " और अपने परिवार का ध्यान रखा करो ..! ... आखिर कमाते किसके लिए हो ..?? ...उन्ही के लिए ना .??.... मेहता कह रहा था की तुम ' संकोची '  हो ...उससे कुछ लेते ही नहीं !.......ऐसी बात है तो  मुझसे ले लिया करो   ... आखिर इस महगाई में कैसे चलेगा तुम्हारा ..?? "
- " जी सर " -- अर्जुन का स्वर भक्ति भाव में धीमा हो गया ! वह उठने लगा तो कृष्ण बोले -
_ " आजकल कोई किसी का सगा नहीं  अर्जुन ! वक्त पर कोई काम नहीं आता ..., ना मित्र ना रिश्तेदार ..!!   काम आती है तो ' विष्णु - प्रिया ' ..यह लक्ष्मी ..!.,  बेवकूफी में जिससे तुम परहेज करते रहते हो  ..!! "
 अर्जुन उठ कर हाथ बाँध कर खड़ा हो गया !
-" और हाँ !... .. फाइलें तो बनती ही ' निबटने ' के लिए हैं ..., तुम नहीं निबटाते  तो मेहता किसी और बाबू से निबटवा  लेता  ! .. यह  सरकारी ' माया जगत  ' है ...और  याद रखो तुम महज   एक  किरदार ..!! "
- जी सर "  ... अर्जुन की आँखें मुंद  गयीं !
- "जाओ अब  नोटशीट बना कर जल्दी ले आओ ..!! "

 अर्जुन बाहर निकला तो उसका चेहरा चमक रहा था !
  कृष्ण ने उसे ' तत्व- ज्ञान ' दे दिया था !
, वह अपनी ' सीट ' पर आरूढ़ हो .. , ' गांडीव ' की तरह ..' पेन ' हाथ में धारण कर .,,,.. नोट शीट पर ' शब्दों '  की  बाण वर्षा करने लगा !


-सभाजीत


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लघुकथा-2 

:: लकी ::

 
दोनों  दोस्त ढाबे पर बैठे थे !

रफीक साइकिल के पंक्चर बनाता था और मंजीत डबलरोटी बेचने का काम करता था !

--" कैसे फंस गयी वो यार तुमसे ,,""  रफीक ने मंजीत से उसकी मुहब्बत का राज जानना चाहा !
- बस यूँ ही ,,धीरे धीरे ,,! " 
- धीरे,,धीरे ,,? क्या बचपन से जानता था तू उसे ,,??" 
--",, अरे नहीं यार ,,!! वो मुलाकात  तो अभी  एक महीने पहले,ही हुई थी,,,, दिनेश के कारण ,,! " 
-" कैसे,,"?? 
-" वो दिनेश से उसका कुछ चल रहा था ! मैं वहां डबलरोटी बेचने जाता था !  दिनेश ने कहा कि  मैं उसका सन्देश उसे दे दिया करुँ ,,! "
-" फिर ,,"??
-" फिर वह मुझे पूछने लगी ,, मुस्करा कर बात करने लगी ,,मैं भी सुबह शाम दोनों टाइम वहां जाने लगा ,,मेरी पुकार सुन कर वह रोज बाहर निकलने लगी ,,!  एक दिन मैंने डबलरोटी के पैकिट पर उसे लिख कर दे दिया ,,' आई लव यूं ',, और उसने भी दस रूपये के नोट  पर लिख दिया --' इलू,,इलू,! ," 
 --"  वाह । . ,, ऐसा क्या भा  गया उसको तुम्हारे अंदर ,,"?? 
-" उसने कहा कि  मेरा ' हेयरकट ' उसे पसंद है ,,, बिलकुल सलमान लगता हूँ ,,! " 
    रफीक ने लम्बी सांस छोड़ी  फिर मंजीत से बोला --
  - "  तू लकी है यार ,, तेरा धंधा भी अच्छा है ,,! " 
    मंजीत हंसा ,, बोला --" तुझे नहीं मिली  अभी तक कोई ,,?? " 
   रफीक ने गहरी उंसास भरी ,,बोला --
--" मेरी साइकिल की दुकान तो लड़कों के स्कूल के सामने है ,,दिन भर पंक्चर बनाते और साइकिल में हवा भरते ही बीत जाता है ,,! महीनों सैलून नहीं जा पाता  ,,,, मुहब्बत कैसे हो ,,?? " 



   ---- सभाजीत 



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लघुकथा-3 


सोमवार, 8 अप्रैल 2013


 " ज़माना "
- वे बड़ी देर से पहले साहब के गेट पर , और फिर कारीडोर में , ,,,साहब के बंगले से निकलने का इंतज़ार करते रहे ! एक अन्य व्यक्ति , जो बाद में चमचमाती कार से आया    , वो भी कारीडोर में बैठ कर  साहब के  बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगा  ! थोड़ी देर बाद आखिर चपरासी ने दरवाजे से पर्दा हटाया और,,, एक अधेड़ , रुआबदार अफसर के दर्शन हुए ! बाहर निकल कर वे पहले मुरलीधर की और मुखातिब हुए और  सवालिया  निगाह उन पर डाली - ,
वे हड़बड़ाकरसाहब के आदर में  खड़े हो गए और बोले --
" मैं ....मुरलीधर पाठक ..! ...मुझे मनोज जी ने भेजा था आपके पास ..! "
--" अच्छा जी कहिये ..! " अफसर का स्वर उभरा ! .
" वो मेरे बच्चे के सिलेक्शन का मामला था !  मनोज जी ने  यह पत्र भी दिया है ..." ! कहते हुए मुरलीधर जी ने एक पत्र अफसर को थमा दिया !

" अच्छा अच्छा ..." -अफसर ने पत्र हाथ में थाम लिया !

" देखिये ...!! " - मुरली धर जी की आवाज़ थोड़ी कांपने लगी -   
,,,, " मेरा बेटा वैसे मेरिट में है ! यूनिवर्सिटी टाप की थी उसने !...मैं यह सिफारशी पत्र ना लिखवाता ,लेकिन मनोज जी मेरे पुराने ज़माने के मित्र हैं - वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं .., उन्होंने ही  कहा  कि थोड़ी शिफारिश हो तो कोई बुरी बात नहीं ! ..कह रहे थे कि  आपके बड़े भाई को नोकरी उन्होंने ही दिलवाई थी -- शिफारश पर ..., "

" हाँ हाँ ...मैं जानता हूँ मनोज जी को ..." ..अफसर का स्वर ' शुष्क ' हो चला था ! 
  फिर ...वह दुसरे व्यक्ति की और मुड़ गया !

--" जी मैं मायाराम अग्रवाल हूँ .., " दूसरा व्यक्ति स्वर में मिठास घोलते हुए बोला---" घंटाघर चौक पर सराफे की दूकान है मेरी ! ..."

- कहिये क्या काम है आपको ..? " -- अफसर के स्वर में फिर गुरुता आ गयी !

- " कोई ख़ास नहीं ..., बस दर्शन के लिए चला आया ..., ये कुछ नमूने हैं , मेडम देख लेंगी तो मुझे बड़ी ख़ुशी होगी ..! " -- कहते हुए मायाराम ने एक  भारी  लिफाफा अफसर को थमा दिया !

- " अच्छा..! अच्छा ..! "... अफसर के स्वर में भी मिठास आगई !

- और सर ... उस लड़के का नाम लिफाफे पर ही लिखा है , जिस के लिए आज आपसे महापौर जी ने बात की थी ! " -- मायाराम ने करफुसफुसाकर कहा ..! और फिर झुक कर नमस्कार करके चला गया !

अफसर ने लिफाफे को चिट्ठी पर रख लिया ! फिर मुरलीधर की और मुड़ कर बोला -

- .." मनोज जी को मेरा प्रणाम कहियेगा !,,,,, देखिये ,,,! अब वो ज़माना नहीं रहा बहुत बदल गया है ! ... देश बहुत आगे बढ़ गया है .., बहुत तरक्की हो गयी है ! सब जगह हाई टेक है .. कंप्यूटर का ज़माना है .., , शिफारिशें नहीं चलती ! .. कोशिश करूंगा लेकिन कोई वायदा नहीं कर सकता ,,,! " --
   कह कर अफसर तेजी से मुडा और पर्दा उठा कर फिर बंगले में घुस गया !
            -  सभाजीत
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